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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
महत्त्वपूर्ण संकलन इस पुस्तक में है। इन लेखों में भारतीय मानसिकता में व्याप्त विभिन्न कुरीतियों, विकृतियों एवं विसंगतियों पर भी प्रभावी ढंग से प्रहार किया गया है।
३६ आलेखों में लेखक ने सामयिक एवं शाश्वत सत्यों के समन्वय का सुन्दर एवं सार्थक प्रयास किया है। यह कृति लोगों को पुरुषार्थी बनकर शक्तिशाली बनने का आह्वान करती है। सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं वैचारिक खुराक की दृष्टि से साहित्य-जगत् में यह कृति अपना विशिष्ट स्थान रखती है तथा समस्या के तमस् को समाधान के आलोक में बदलने का सामर्थ्य रखती है। अगले संस्करण में इसके प्रायः लेख 'सफर : आधी शताब्दी का' पुस्तक में समाविष्ट कर दिए गए हैं।
अर्हत वंदना __ महावीर के प्रत्येक शब्द में वह शक्ति है, जो सोए मानस को जगा सके, घोर तिमिर में आलोक प्रदान कर सके तथा लड़खड़ाते कदमों को अस्खलित गति दे सके । आचार्य तुलसी महावीर की परम्परा के कीर्तिधर एवं यशस्वी पट्टधर हैं। उन्होंने अनेक माध्यमों से महावीर-वाणी को दिगदिगन्तों तक फैलाने का कार्य किया है। उसी का एक लघु एवं सशक्त उपक्रम है --'अर्हत् वंदना'।
प्रायः सभी धर्म-सम्प्रदायों में प्रार्थना का महत्त्व स्वीकृत है। इस युग के महापुरुष महात्मा गांधी कहते थे -"प्रार्थना के बिना मैं कब का पागल हो गया होता । मैं कोई काम बिना प्रार्थना नहीं करता। मेरी आत्मा के लिए प्रार्थना उतनी ही अनिवार्य है, जितना शरीर के लिए भोजन"--ये पंक्तियां प्रार्थना के महत्त्व को स्पष्ट उजागर कर रही हैं । आचार्य तुलसी ने जैन दर्शन के आत्मकर्तृत्व के सिद्धांत के अनुरूप प्रार्थना शब्द को स्वीकृत नहीं किया क्योंकि उसमें याचना का भाव होता है। अतः इसका नाम दिया -- 'अर्हत् वंदना' । अर्हत् अनन्त शक्तिसम्पन्न आत्मा का वाचक शब्द है । उनके प्रति वंदना या श्रद्धा की अभिव्यक्ति व्यक्ति के भीतर भी शक्ति जगाने में निमित्त बन सकती है। आचार्य तुलसी कहते हैं- "व्यक्तित्व के निर्माण एवं रूपांतरण में इसकी शक्ति अमोघ है। शक्ति से शक्ति का जागरण, यही है अर्हत् वंदना की एक मात्र प्रेरणा ।"
अर्हत् वंदना आचार्य तुलसी की स्वोपज्ञ कृति नहीं है। महावीरवाणी का संकलन है. पर आज लाखों-लाखों कंठ प्रतिदिन इसका संगान कर आध्यात्मिक संबल प्राप्त करते हैं। यह अपने आपको देखने तथा शांति प्राप्त करने का सशक्त उपक्रम है । इसका प्रत्येक पद व्यक्ति को झंकृत करता है तथा मानसिक एवं भावनात्मक पोषण देता है।।
अर्हत् वंदना पुस्तक की महत्ता इसलिए बढ़ गयी है कि इसका
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