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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
इस बात की झांकी निम्न पंक्तियों में देखी जा सकती है- "मैं महिला को ममता, समता और क्षमता की त्रिवेणी मानता हूं। उसके ममता भरे हाथों से नई पीढ़ी का निर्माण होता है, समता से परिवार में संतुलन रहता है और क्षमता से समाज एवं राष्ट्र को संरक्षण मिलता है। आचार्य तुलसी की प्रेरणा से युगों से आत्मविस्मृत नारी को अपनी अस्मिता और कर्तृत्वशक्ति का तो अहसास हुआ ही है, साथ ही उसकी चेतना में क्रांति का ऐसा ज्वालामुखी फूटा है, जिससे अंधविश्वास, रूढसंस्कार, मानसिक कुंठा
और अशिक्षा जैसी बुराइयों के अस्तित्व पर प्रहार हुआ है। आचार्य तुलसी अनेक बार महिला सम्मेलनों में अपने इस संकल्प को मुखर करते हैं -- "शताब्दियों से अशिक्षा के कुहरे से आच्छन्न महिला-समाज को आगे लाना मेरे अनेक स्वप्नों में से एक स्वप्न है । ......."मैं महिला-समाज के अतीत को देखता हूं तो मुझे लगता है, उसने बहुत प्रगति की है । भविष्य की कल्पना करता है तो लगता है कि अभी बहुत विकास करना है।"
यह कहना अत्युक्ति या प्रशस्ति नहीं होगा कि यह सदी आचार्य तुलसी को और अनेक रूपों में तो याद करेगी ही पर नारी उद्धारक के रूप में उनकी सदैव अभिवन्दना करती रहेगी।
नारी के भीतर पनपने वाली हीनता एवं दुर्बलता की ग्रंथि को आचार्य तुलसी ने जिस मनोवैज्ञानिक ढंग से सुलझाया है, वह इतिहास के पृष्ठों में अमर रहेगा। वे नारी को संबोधित करते हुए कहते हैं --"पुरुष नारी का सम्मान करे, इससे पहले यह आवश्यक है कि नारी स्वयं अपना सम्मान करना सीखे । महिलाएं यदि प्रतीक्षा करती रहेंगी कि कोई अवतार आकर उन्हें जगाएगा तो समय उनके हाथ से निकल जाएगा और वे जहां खड़ी हैं, वहीं खड़ी रहेंगी।"
इसी संदर्भ में उनकी निम्न प्रेरणा भी नारी को उसकी अस्मिता का अहसास कराने वाली हैं - "पुरुषवर्ग नारी को देह रूप में स्वीकार करता है, किंतु वह उसके सामने मस्तिष्क बनकर अपनी क्षमताओं का परिचय दे, तभी वह पुरुषों को चुनौती दे सकती है।"४.
नारी जाति में अभिनव स्फूर्ति एवं अट आत्मविश्वास भरने वाले निम्न उद्धरण कितने सजीव एवं हृदयस्पर्शी बन पड़े हैं ---
० केवल लक्ष्मी और सरस्वती बनने से ही महिलाओं का काम नहीं
१. एक बूंद : एक सागर, पृ० १०६६ । २. वही, पृ० १७३२ । ३. वही, पृ० १०६६ ।। ४. दोनों हाथ : एक साथ, पृ० ८५।
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