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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
नहीं रोका गया तो भविष्य हमारे हाथ से निकल जाएगा । राष्ट्र के नाम अपने एक विशेष सन्देश में समाज को सावचेत करते हुए वे अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहते हैं - "पशु अज्ञानी होता है, उसमें विवेक नहीं होता फिर भी वह नशा नहीं करता । मनुष्य ज्ञानी होने का दम्भ भरता है । विवेक की रास हाथ में लेकर चलता है, फिर भी नशा करता है । क्या उसकी ज्ञान- चेतना सो गयी ? जान-बूझकर अश्रेयस् की यात्रा क्यों ?" उनके द्वारा रचित काव्य की ये पंक्तियां आज की दिग्भ्रमित युवापीढ़ी को जागरण का नव सन्देश दे रही हैं
यदि सुख से जीना है तो, त्यागो मदिरा की बोतल । यदि अमृत पीना है तो त्यागो यह जहर हलाहल ॥ सोचो यह इन्द्रधनुष सा जीवन है कैसा चंचल | फिर तुच्छ तृप्ति के खातिर क्यों है व्यसनों की हलचल ॥
आचार्य तुलसी ने निषेध की भाषा में नहीं, अपितु वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तरीके से युवा समाज के मन में नशीले पदार्थों के प्रति वितृष्णा पैदा की है । अणुव्रत के माध्यम से उन्होंने देशव्यापी नशामुक्ति अभियान चलाया है, जिससे लाखों युवकों ने व्यसनमुक्त जीवन जीने का संकल्प अभिव्यक्त किया है
आदर्श युवक के लिए आचार्य तुलसी पांच कसौटियां प्रस्तुत करते
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श्रद्धाशील श्रद्धा वह कवच है, जिसे धारण करने वाला व्यक्ति भ्रांतियों और अफवाहों के नुकीले तीरों से आविद्ध नहीं हो सकता ।
सहनशील सहनशीलता वह मरहम है, जो मानसिक आघातों से बने घावों को अविलम्ब भर सकती है ।
• विचारशील- विचारशीलता वह सेतु है, जो पारस्परिक दूरियों को पाटकर एक समतल धरातल का निर्माण करती है ।
• कर्मशील --- कर्मशीलता वह पुरुषार्थ है, जो अधिकार की भावना समाप्त कर कर्तव्यबोध की प्रेरणा देती है ।
० चरित्रशील - चरित्रशीलता वह निधि है, जो सब रिक्तताओं को भरकर व्यक्ति को परिपूर्ण बना देती है । ""
आचार्य तुलसी ने युवापीढ़ी का विश्वास लिया ही नहीं, मुक्त मन से विश्वास किया भी है । यही कारण है कि उनके हर मिशन से युवक जुड़े हुए हैं और उसे सफल करने का प्रयत्न करते हैं ।
युवापीढ़ी पर विश्वास व्यक्त
१. दोनों हाथ : एक साथ, पृ०
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