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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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इस नए अभियान के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- " आज की विषम परिस्थितियों में आवश्यक है कि अहिंसा का स्वर उठे, लोक- चेतना जागे और हिंसा के विरुद्ध लोकशक्ति अपना मार्ग प्रशस्त करे । अहिंसा सार्वभौम इसी का प्रतीक है। गांधीजी के बाद अहिंसा के क्षेत्र में आचार्य तुलसी द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्य हो रहा है । आचार्य तुलसी मजहब से दूर भारतीय संस्कृति को एक शुद्ध, ठोस एवं आध्यात्मिक आधार प्रदान कर रहे हैं । "
अहिंसा सार्वभौम की एक अंतरंग परिषद् को सम्बोधित करते हुए आचार्य तुलसी इसका उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहते हैं- "मेरा यह निश्चित अभिमत है कि संसार में हिंसा थी, है और रहेगी । हिंसा की तरह अहिंसा का भी कालिक अस्तित्व है । हिंसा की प्रबलता देखकर अहिंसा की निष्ठा शिथिल हो जाए या समाप्त हो जाए, यह चिन्तन का विषय है। हिंसा का पड़ा अहिंसा से भारी न हो, ऐसी जागरूकता रखनी है । यह काम निराशा और कुण्ठा के वातावरण में नहीं होगा । प्रसन्नता, उत्साह और लगन के साथ काम करना है, अहिंसा की शक्ति को उजागर करना है । अहिंसा सार्वभौम की सफलता का पहला कदम यही होगा ।'
अहिंसा और वीरता
आचार्य तुलसी कहते हैं - " अहिंसा का पथ तलवार की धार से भी अधिक तीक्ष्ण है । इस स्थिति में कोई भी कायर और दुर्बल व्यक्ति इस पर चलने का साहस कैसे कर सकता है ? "
कुछ लोग अहिंसा का सम्बन्ध कायरता से जोड़ते हुए कहते हैंजैनधर्म की अहिंसा ने हमें कायर बना दिया है। इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य तुलसी का स्पष्ट मन्तव्य है - " कायरता अहिंसा का अंचल तक नहीं छू सकती । सोने के थाल बिना सिंहनी का दूध कहां रह सकता है ? उसी प्रकार अहिंसा का वास वीर हृदय को छोड़कर अन्यत्र असम्भव है । यह अटल सत्य है | अहिंसा और कायरता का वही सम्बन्ध है, जो ३६ के अंकों में तीन और छः का है ।' अहिंसा तो साहस और पुरुषार्थ का पर्याय है । वह कभी नहीं कहती कि हम अपनी सुरक्षा ही न करें । जिस प्रकार भय दिखाना हिंसा है, उसी तरह भयभीत होना भी हिंसा ही है । जो लोग स्वयं की कमजोरी पर आवरण डालने के लिये अहिंसा का सहारा लेते हैं, ऐसे तथाकथित
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१. अमरित बरसा अरावली में, पृ० २८१ ।
२. एक बूंद : एक सागर, पृ० २७३ | ३. शांति के पथ पर, पृ० ५७ । ४. २५-४-६५ के प्रवचन से उद्धृत ।
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