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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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चुनाव-शुद्धि की दृष्टि से उन्होंने अणुव्रत के माध्यम से मतदाता और उम्मीदवार की एक नैतिक आचार-संहिता तो प्रस्तुत की ही है, साथ ही अपने प्रवचनों एवं निबन्धों में भी अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाकर जनता को प्रशिक्षित किया है । चुनावशुद्धि के सन्दर्भ में दिए गए उनके तीन विकल्प अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैंपहला-हम विजयी बनें या न बनें, पर चुनाव में भ्रष्ट तरीकों का
प्रयोग नहीं करेंगे। दूसरा--सत्तारूढ़ दल चुनाव-शुद्धि के लिए संकल्पबद्ध हो ।
तीसरा---जनमत जागृत हो।" सांसद एवं विधायक
लोकतंत्र में शासनतंत्र की बागडोर जनता द्वारा चुने गए सांसदों और विधायकों के हाथों में होती है। लोकतंत्र की यह दुर्बलता है कि (सांसदों) विधायकों का चुनाव अर्हता, गुणवत्ता एवं योग्यता के आधार पर न होकर, दल या संस्था के आधार पर होता है । इससे राजनीति स्वस्थ नहीं बन सकती । आचार्य तुलसी का मानना है कि राष्ट्रीय चरित्र अपने चरित्र को भारतीय मूल्यों एवं आदर्शों के अनुरूप ढाले, यह अत्यन्त आवश्यक है। अतः प्रत्याशियों को प्रतिबोध देते हुए वे कहते हैं-"लोगों में चुनाव के लिए पार्टी का टिकट पाने की जितनी उत्सुकता होती है, उतनी उत्सुकता यदि योग्य बनने की हो तो कितना अच्छा काम हो सकता है।
। चुनाव के माहौल में एक पत्रकार द्वारा पूछा गया प्रश्न कि हम किसको वोट दें, का उत्तर देते हुए वे कहते हैं----"इस प्रसंग में पार्टी, पक्ष, विपक्ष, सम्प्रदाय, जाति आदि के लेबल को नजरअंदाज कर सही व्यक्ति की खोज करनी चाहिए। अणुव्रत के अनुसार उस व्यक्ति की पहचान यह हो सकती है जो नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थाशील हो, ईमानदार हो, निर्लोभी हो, सत्यनिष्ठ हो, व्यसनमुक्त हो तथा निष्कामसेवी हो ।" इसी सन्दर्भ में उनका दूसरा वक्तव्य भी स्वस्थ राजनीतिज्ञ की अनेक विशेषताओं को उजागर करने वाला है-"स्वस्थ राजनीति में ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है, जो निष्पक्ष हो, सक्षम हो, सुदृढ़ हो, स्पष्ट व सर्वजनहिताय का लक्ष्य लेकर चलने वाला हो।'
सांसद और विधायक के रूप में वे ऐसे व्यक्तित्व की कल्पना करते हैं,
१. एक बूंद : एक सागर, पृ० ५८५ । २. उद्बोधन, पृ० १२९ । ३. जीवन की सार्थक दिशाएं, पृ० ३६ ।
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