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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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क्रांतिकारी दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया है। क्रांति के संदर्भ में आचार्य तुलसी का निजी मंतव्य है कि क्रांति की सार्थकता तब होती है, जब व्यक्ति - चेतना में सत्य या सिद्धांत की सुरक्षा के लिए गलत मूल्यों या गलत तत्त्वों को निरस्त करने का मनोभाव जागता है ।' वे रूढ़ सामाजिक मान्यताओं के परिवर्तन हेतु क्रांति को अनिवार्य मानते हैं पर उसका साधन शुद्ध होना आवश्यक मानते हैं ।
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आचार्य तुलसी सामाजिक क्रांति की सफलता में मुख्य केन्द्र-बिन्दु युवा समाज को स्वीकारते हैं । इस सन्दर्भ में उनकी निम्न टिप्पणी पठनीय है - "क्रांति का इतिहास युवाशक्ति का इतिहास है। युवकों के सहयोग और असहयोग पर ही वह सफल एवं असफल होती है ।"" युवकों को अतिरिक्त महत्त्व देने पर भी उनका संतुलित एवं समन्वित दृष्टिकोण इस तथ्य को भी स्वीकारता है - " मैं मानता हूं समाज की प्रगति एवं परिवर्तन के लिए वृद्धों का अनुभव तथा युवकों की कर्तृत्व शक्ति दोनों का उपयोग है। मैं चाहता हूं वृद्ध अपने अनुभवों से युवकों का पथदर्शन करें और युवक वृद्धों के पथदर्शन में अपने पौरुष का उपयोग करें ।"3
आचार्य तुलसी की दृष्टि में सामाजिक क्रांति का होना चाहिए, समाज से नहीं । वे अनेक बार इस तथ्य चुके हैं कि व्यक्ति-परिवर्तन के माध्यम से किया गया समाज - परिवर्तन ही चिरस्थायी होगा । व्यक्ति-परिवर्तन की उपेक्षा कर थोपा गया समाजपरिवर्तन भविष्य में अनेक समस्याओं का उत्पादक बनेगा ।"* आचार्य तुलसी व्यक्ति-सुधार के माध्यम से समाज-सुधार करने में अधिक लाभ एवं स्थायित्व देखते हैं । 'अणुव्रत गीत' में भी वे इसी सत्य का संगान करते हैं
सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा । 'तुलसी' अणुव्रत सिंहनाद सारे जग में पसरेगा ।।
सामाजिक क्रांति की सफलता के संदर्भ में आचार्य तुलसी का मानना है कि जब तक परिवर्तन और अपरिवर्तन का भेद स्पष्ट नहीं होगा, तब तक सामाजिक क्रांति का चिरस्वप्न साकार नहीं होगा ।" "
सामाजिक संकट की विभीषिका को उनका दूरदर्शी व्यक्तित्व समय से पहले पहचान लेता है । इसी दूरदृष्टि के कारण वे परिवर्तन और स्थिरता
१. सफर : आधी शताब्दी का, पृ० ८३ ।
२. भोर भई, पृ० २० ।
३. धर्मचक्र का प्रवर्तन, पृ० २१७ ।
४. एक बूंद : एक सागर, पृ० १४९७ । ५. वही, पृ० १५५९
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