________________
१५०
आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
नीति अन्ततः लोकतन्त्र की विनाशक बनेगी। ३. व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता एवं सिद्धांतवादी राजनीति का
पुनस्र्थापन। ४. चुनाव-पद्धति एवं परिणाम को देखते हुए शासनपद्धति में भी
परिवर्तन । ५. चरित्र-हनन की घातक प्रवृत्ति का परित्याग । ६. विधायक आचार-संहिता का निर्माण । ७. नैतिक शिक्षण एवं साम्प्रदायिक सौहार्द।'
राजनीति के क्षेत्र में विद्यार्थियों के गलत उपयोग के वे सख्त विरोधी हैं । क्योंकि इस उम्र में उनकी कोमल भावनाओं को भड़काकर उन्हें ध्वंसात्मक प्रवृत्तियों में शामिल करने से उनके जीवन की दिशा गलत हो जाती है । इससे न केवल उनका स्वयं का भविष्य ही अंधकारमय बनता हैं, अपितु पूरे राष्ट्र का भविष्य भी धुंधलाता है। इस सन्दर्भ में उनका स्पष्ट कथन है- "जिस देश में विद्यार्थियों को राजनीति का मोहरा बनाकर गुमराह किया जाता है, उनकी शिक्षा में व्यवधान उपस्थित किया जाता है, उस देश का भविष्य कैसा होगा, कल्पना नहीं की जा सकती।"२ इसी सन्दर्भ में उनका निम्न वक्तव्य भी मननीय है.---"यदि विद्यार्थियों को राजनीति के साथ जोड़ा गया तो भविष्य में यह खतरनाक मोड़ ले सकता है, क्योंकि बच्चों के कोमल मानस को उभारा जा सकता है, किन्तु उसका शमन करना सहज नहीं है । संसद
संसद राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था है । आचार्य तुलसी मानते हैं कि देश का भविष्य संसद के चेहरे पर लिखा होता है । यदि वहां भी शालीनता और सभ्यता का भंग होता है तो समस्या सुलझने के बजाय उलझती जाती है। वार्तमानिक संसद की शालीनता भंग करने वाली स्थिति का वर्णन करते हुए वे कहते हैं- "छोटी-छोटी बातों पर अभद्र शब्दों का व्यवहार, हो-हल्ला, छींटाकशी, हंगामा और बहिर्गमन आदि ऐसी घटनाएं हैं, जिनसे संसद जैसी प्रतिनिधि संस्था का गौरव घटता है।"४ सांसद जनता के सम्मानित प्रतिनिधि होते हैं। संसद में उनका तभी तक सत्ता पर बने रहने का अधिकार है, जब तक जनता के मन में उनके प्रति सम्मान और विश्वास है ।
__ संसद में कैसे व्यक्तित्व आने चाहिए, इस बात को आचार्य तुलसी १. पांव-पांव चलने वाला सूरज, पृ० २४३ । २. क्या धर्म बुद्धिगम्य है ? पृ० १४४ । ३. जैन भारती, ३ जन० १९७१ । ४. तेरापन्थ टाइम्स, ३० जुलाई १९९० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org