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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
परिभाषाएं भी इसको व्याख्यायित करने में असमर्थ रही हैं । आचार्य तुलसी ने इसे आधुनिक परिवेश में परिभाषित करने का प्रयत्न किया है।
___ अहिंसा के विषय में उनका चिन्तन न केवल भारतीय चिन्तन के इतिहास में नया चिन्तन प्रस्तुत करता है, अपितु पाश्चात्य विचारधारा में भी नई सोच पैदा करने की सामर्थ्य रखता है। उनके वाङ्मय में अहिंसा की सैकड़ों परिभाषाएं बिखरी पड़ी हैं, जो अहिंसा के विविध पहलुओं का स्पर्श करती हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं
० सत्, चित् और आनन्द की अनुभूति ही अहिंसा है। ० सब प्राणियों के प्रति आत्मीय भाव होने का नाम अहिंसा है। ____ अर्थात् सबके दर्द को अपना दर्द मानना अहिंसाभाव है। ० मन, वाणी और कर्म इन तीनों को विशुद्ध और पवित्र रखना
ही अहिंसा है। ० शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक-- हर प्रवृत्ति में भावक्रिया रहे,
यही अहिंसा की साधना का फलित रूप है। ० अहिंसा का अर्थ है-स्वयं निर्भय होना और दूसरों को अभयदान
देना। ० प्राप्त कष्टों को समभाव से सहन करना अहिंसा का विशिष्ट रूप
० अहिंसा का अर्थ है-बाहरी आकर्षण से मुक्ति तथा स्व का
विस्तार । ० जहां भोग का त्याग हो, उन्माद का त्याग हो, आवेग का त्याग
हो, वहां अहिंसा रहती है। • यदि छोटी-छोटी बातों पर तू-तू मैं-मैं होती है तो समझना
चाहिए, अहिंसा का नाम केवल अधरों पर है, जीवन में नहीं। ० अहिंसा का अर्थ अन्यायी के आगे दबकर घुटने टेकना नहीं, बल्कि अन्यायी की इच्छा के विरुद्ध अपनी आत्मा की सारी शक्ति लगा
देना है। • हम किसी दूसरे को न मारें, न पीट, इतनी ही अहिंसा नहीं है। हम अपने आपको भी न मारें, न पीटें और न कोसें-यही अहिंसा
का मूल हार्द है। ० जो निष्काम कर्म है, वही तो आंतरिक अहिंसा है। ० अहिंसा के जगत् में इस चिन्तन की कोई भाषा नहीं होती कि मैं
१. मुक्तिपथ, पृ० १३ । २. जैन भारती, २६ नव० ६१।
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