________________
आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
० निम्न सात सूत्रों से जिसका जीवन परिवेष्टित है, वही अहिंसक
है। व्यक्ति स्वयं को तोले कि उसका जीवन किसकी परिक्रमा कर रहा है(१) शांति की अथवा क्रोध की। (२) नम्रता की अथवा अभिमान की। (३) संतोष की अथवा आकांक्षा की। (४) ऋजुता की अथवा दंभ की। (५) अनाग्रह की अथवा दुराग्रह की। (६) सामंजस्य की अथवा वैषम्य की। (७) वीरता की अथवा दुर्बलता की।
आचार्य तुलसी द्वारा उद्गीत अहिंसक की ये कसौटियां उसके सर्वांगीण व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने वाली हैं। हिंसा के विविध रूप
हिंसा ऐसी चिनगारी है, जो निमित्त मिलते ही भड़क उठती है । हिंसा के बारे में आचार्य तुलसी का मन्तव्य है कि किसी को मार देने तक ही हिंसा की व्याप्ति नहीं है। अहिंसा को समझने के लिए हिंसा के स्वरूप एवं उसके विविध रूपों को समझना आवश्यक है। आचार्य तुलसी हिंसा के जिस सूक्ष्म तल तक पैठे हैं, वहां तक पहुंचना हर किसी व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है । वे हिंसा को बहुत व्यापक अर्थ में देखते हैं। हिंसा के स्वरूप-विश्लेषण में उनके मंथन से निकलने वाले कुछ निष्कर्ष इस भाषा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं
० राग-द्वेष युक्त प्रवृत्ति से किया जाने वाला हर कार्य हिंसा है।' • हिंसा मात्र तलवार से ही नहीं होती, मिलावट और शोषण भी हिंसा है, जिसके द्वारा लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। संक्षेप में कहें तो जीवन की हर असंयत प्रवृत्ति हिंसा
• किसी से अतिश्रम लेने की नीति हिंसा है। ० अपने विश्वास या विचार को बलपूर्वक दूसरे पर थोपने का प्रयास
करना भी हिंसा है, फिर चाहे वह अच्छी धार्मिक क्रिया ही क्यों
न हो। ० जैसे दूसरों को मारना हिंसा है, वैसे ही हिंसा को रोकने के लिए आत्म-बलिदान से कतराना भी हिंसा है।
१. मुक्तिपथ, पृ० २१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org