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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
कहीं-कहीं वे अपने कथ्य को इतनी भावुकतापूर्ण शैली में कहते हैं कि पाठक उसमें बहने लगता है । ग्रामीणों के बारे में वे कितनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दे रहे हैं---
"जब मैं इन भोले-भाले, सहज, निश्छल और फटे-पुराने कपड़ों में लिपटे ग्रामीणों को देखता हूं तो मेरा मन पसीज उठता है। ये मेरी छोटी-सी प्रेरणा से शराब, तम्बाकू आदि नशीली वस्तुओं को छोड़ देते हैं तथा अपनी सादगीपूर्ण जिन्दगी और भक्ति-भावना से मेरे दिल में स्थान बना लेते हैं।''
युवापीढ़ी के प्रति अपने आंतरिक स्नेह को अभिव्यक्त करते हुए उनका वक्तव्य कितना संवेदनशील और हृदयग्राह्य बन गया है
"युवापीढ़ी सदा से मेरी भाशा का केन्द्र रही है। चाहे वह मेरे दिखाए मार्ग पर कम चल पायी हो या अधिक चल पायी हो, फिर भी मेरे मन में उसके प्रति कभी भी अविश्वास और निराशा की भावना नहीं आती । मुझे युवक इतने प्यारे लगते हैं, जितना कि मेरा अपना जीवन । मैं उनकी अद्भुत कर्मजा शक्ति के प्रति पूर्ण आश्वस्त हूं।"
उनकी प्रतिपादन-शैली का वैशिष्ट्य है कि वे शब्द और विषय की आत्मा को पकड़कर उसकी व्याख्या करते हैं। किसी भी शब्द या विषय की रूढ़ व्याख्या उन्हें पसंद नहीं है। अहिंसा की मूल आत्मा को व्यक्त करती उनकी कथन-शैली का चमत्कार दर्शनीय है.--.
"जो लोग अहिंसा को सीमित अर्थों में देखते हैं, उन्हें चींटी के मर जाने पर पछतावा होता है, किन्तु दूसरों पर झूठा मामला चलाने में पछतावा नहीं होता । अप्रामाणिक साधनों से पैसा कमाने में हिंसा का अनुभव नहीं होता । अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति में दूसरों का बड़े से बड़ा अहित करने में उन्हें हिंसा की अनुभूति नहीं होती।"
धर्म की सीधी व्याख्या उनके अनुभव में इस प्रकार है
"मेरा धर्म किसी मंदिर या पुस्तक में नहीं, बल्कि मेरे जीवन में है, मेरे व्यवहार में है, मेरी भाषा में है।"
उनके प्रवचनों में ही नहीं, लेखन में भी यह विशेषता है कि वे किसी भी विषय या व्यक्ति के विविध रूपों को एक साथ सामने रख देते हैं । यह उनकी स्मृति-शक्ति का तो परिचायक है ही, साथ ही पाठक के समक्ष उस विषय को स्पष्टता भी हो जाती है। नारी के अनेक रूपों को प्रकट करने वाली निम्न पंक्तियां उनके इस शैलीगत वैशिष्ट्य को उजागर करती हैं
"कभी नारी सुघड़ गृहिणी के रूप में उपस्थित होती है तो कभी पूरे
१. एक बूंद : एक सागर, पृ० १७१३ २. वही, पृ० १७११
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