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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir hamasammer PAN AnimaARPRARoamzanianusmiths. 000000000000000000 M OHAGAN EDUOUGH DIMUR ॐ श्री विजयदेवसूर संघ ज्ञान भंडार. पायधुनी मुंबई नं. 3. वीरसं० 2470 सन 1954 विक्रमसं० 2000 प्रत 1500 ARUNRAIAusnRMA 44X4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्रीमद्गणधरवरसुधर्मस्वामिप्रणीता / // व्याख्याप्रज्ञप्तिः॥ // श्रीभगवतीसूत्रं भाग-४. // दिसके *उद्देशा | // 837 // (मूल सूत्र अने तेना गुजराती भाषान्तर सहित) (शतक 9.) उद्देशक 6. 1 . (त्रीजा भागनुं अनुसंधान चालु) तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुझे समणं भगवं महा-18 6 वीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता तमेव चाउग्घंट आसरहं दुरूहेइ दुरूहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अं★ातियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिखमइ पडिनिवमित्ता सकोरंटजाव धरिजमाणेणं महया भडचडगर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 9 शतके उद्देशा & leta जावपरिक्खित्ते जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं व्याख्या-18 मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उचट्ठाणसाला तेणेव उचागच्छह तेणेच उवागच्छित्ता तुरए निप्राप्तिः गिण्हइ तुरए निगिण्हित्ता रहं ठवेइ रहं ठवेत्ता रहाओ पचोरुहइ रहाओ पञ्चोरुहित्ता जेणेव अभितरिया उव11८३८॥ ट्ठाणसाला जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता अम्मापियरो जएणं विजएणं वदावेड़ वद्धावेत्ता एवं बयासी-एवं खलु अम्मताओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते, सेवि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिमइए, तए ण तं जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-धन्नेसि गं तुम जाया! कयस्थेसि णं तुम जाया! कयपुन्नेसि णं तुम जाया ! कयलक्खणेसि णं तुम जाया! जन्नं तुमे समणस्म भगवओ महावीरस्स अंतिय धम्मे निसंते सेवि य धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, ज्यारे श्रमण भगवंत महावीरे जमालिने ए प्रमाणे कात्यारे ते प्रसन्न अने संतुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करीने चारघंटाबाळा अश्वरथ उपर चढे छे, चढीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी अने बहुशालक | चैत्यथी नीकळे छे. नीकळीने माथे धराता यावत् कोरंटपुष्पनी मालाबाळा छत्रसहित, मोटा मुभोभटोना समूहथी बींटायलो ते जमालि ज्यां क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगर छे त्यां आवे छे. आवीने क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगरनी मध्यभागमा थइने जे स्थळे पोतार्नु घर छे | अने ज्यां बह्मरनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे. त्या आवीने घोडाओने रोकीने रथने उभो राखे छे. उभो राखीने रथयी नीचे | उतरे छे. उतरीने ज्यां अंदरनी उपस्थानशाला छे, ज्यां माता-पिता (बेठा) छे त्यां आवे छे, आवीने माता-पिताने जय अने विज For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्ति 1839 // यथी वधावे छे. वधावीने ते जमालिए आ प्रमाणे का-हे माता पिता! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळयो / छे, ते धर्म मने इष्ट छ, अत्यन्त इष्ट छे, अने तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. त्यारपछी ते जमालि कुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कयु-'हे पुत्र ! तुं धन्य हे, हे पुत्र! तुं कृतार्थ छे, हे पुत्र ! तुं कृतपुण्य छे अने हे पुत्र ! तुं कृतलक्षण छे के जे ते श्रमण | भगवंत महाबीरनी पासेथी धर्मने सांभळ्यो छे, अने ते धर्म तने प्रिय छे, अत्यन्त प्रिय छे अने तेमां तारी अभिरुचि थई छे.' तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो दोचपि एवं बधासी-एवं खलु मए अम्मताओ! समणस्स 11839 // भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते जाव अभिरुहए, तए णं अहं अम्मताओ! संसारभउब्बिग्गे भीए जम्मजरामरणाणं तं इच्छामि अम्मताओ! तुझेहिं अब्भणुनाए समाणे ममणस्स भगवओ महावीरस्स अतिय मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए / पछी ते जामलि क्षत्रियकुमारे बीजीवार पण पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कडु के-'हे माता-पिता ! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्म सांभळ्यो छे, यावत् तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. तेथी हे माता-पिता ! हुं संसारना भयथी उद्विन थयो छु, जन्म जरा अने मरणथी भय पम्यो छु, तेथी हे माता-पिता! तमारी आज्ञाधी हुँ श्रमण भगवंत महाबीरनी पासे दीक्षा | लेइने, गृहवासनो त्याग करी, अनगारिकपणाने ग्रहण करवा इच्छु छु. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुनं अमणाम असुयपुवंस *गिरं सोचा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलतविलीणगत्ता सोगभरपवेवियं गमगी नित्तया दीणविमणवयणा For Prvate and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रजातिः // 840 // 9 शतके उद्देशन // 8400 करयलमलियब्ध कमलमाला तक्खणओलुग्गदुब्बलमरीरलायनमुन्ननिच्छाया गयसिरीया पसिढिलभूसणपडतखुपिणयसंचुनियधवलवलयपन्भट्टउत्तरिजा मुच्छावसणट्टचेतगुरुई सुकुमालविकिनकेसहत्था परसुणिय त्तव्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुशसंधियंधणा कोहिमतलंसि धसत्ति सव्वंगेहिं संनिवडिया, तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्म माया ससंभमोयत्तियाए तुरिय कंचभिंगारमुहविणिग्गयसीयलविमलजलधारापरिसिंचमाणनिव्वचियगायलट्ठी उक्खेवयतालियंटवीयणगजणियवाएणं सफुसिएणं अंतेउ|रपरिजणेणं आसासिया समाणी रोयमाणी कंदमाणी सोयमाणी विलवमाणी जमालिं वत्तियकुमारं एवं वयासी-तुमंसिणं आया ! अम्हं एगे पुत्त इडे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेजे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविऊसचिये हिययानंदिजणणे उबरपुप्फमिब दुल्लभे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ?, तं नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो तुज्झं खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया जाव ताव अम्हे जीवामो, तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वड्डियकुलवंसतंतुकजंमि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिथं मुंडे भवित्ता आगागओ अणगारियं पब्बइहिसि। त्यारबाद जमालि क्षत्रियकुमारनी माता अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अमनोज्ञ, मनने न गमे तेवी अने पूर्व नहीं सांभळेली एवी वाणीने सांभळी अने अवधारीने रोमकूपथी झरता परसेवाथी भीना शरीरवाळी थइ, शोकना भारथी तेनां अंगो अंग कंपवा लाग्या, ते निस्तेज थई, तेनुं मुख दीन अने शोकातुर थयु, करतलवडे चोळायेली कमलमालानी पेठे तेनुं शरीर तत्काळ ग्लान अने दुर्बल For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie 9 शतके व्याख्याप्राप्ति // 841 // उद्देशा // 8415 थ. ते लावण्यशून्य, प्रभारहित अने शोभाविनानि थइ गइ. तेना आभूषणो ढीलां थइ गयो, अने तेथी तेना निर्मल बलयो पडी गयां अने मांगीने चूर्ण थइ गया. तेनु उत्तरीय वस्त्र शरीर उपरथी सरी मयु, अने मूर्छाबडे तेनुं चैतन्य नष्ट थयु होवाथी ते भारे शरीरवाळी थइ गई. तेनो सुकुमाल केशपाश विखराइ गयो. कुहाडीना पाथी दाएली चंपकलतानी पेठे अने उत्सव पूरो थता इन्द्रध्वजदंडनी जेम तेनां संधिबंधनो शिथिल थइ गयां, अने ते फरसबंधी उपर सर्व अंगोबडे 'धस्' दइने नीचे पडी गइ. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माताना शरीरने (दासीवडे) व्याकुलचित्ते त्वराधी ढळाता सोनाना कलशनामुखथीनीकळेली शीतल अने निर्मल जलधागना सिंचनवडे स्वस्थ कयु, अने ते उत्क्षेपक (वांसना बनेला),तालवृत (ताडना पांदडाना बनेला) पंखा अने वींजणाना | जलबिन्दुसहित पवनवडे अंत:पुरना माणसोथी आश्वासनने प्राप्त थइ. रोती, आक्रंदन करती, शोक करती अने विलाप करती ते जमालि क्षत्रियकुमरनी माता एप्रमाणे कहेवा लागी-'हे जात ! तुं अमारे इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मन गमतो, आधारभूत, विश्वा४ासपात्र, संमत, बहुमत, अनुमत, आभरणनी पेटी जेवो, रत्नस्वरूप, रत्नना जेवो, जीवितना उत्सव समान अने हदयने आनंदजनक। एमज पुत्र छो. वळी उंबरानापुष्पनी पेठे तारा नाम- श्रवण पण दुर्लभ छे, तो तारुं दर्शन दुर्लभ होय एमां शुं कहे ? माटे हे पुत्र ! खरेखर अमे तारो एक क्षण पण वियोग इच्छता ना. तेथी हे पुत्र! ज्यां सुधी अमे जीवीए छीए त्यांसुधी तुं रहे. अने अमे कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशतन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवंत महावीरनी पासे दीक्षा ग्रहण करी गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे.' तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जपणं तुझे मम For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande एवं वदह तुमंसि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इढे कते तं चैव जाव पब्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ ! माणुस्सए व्याख्या- भवे अणेगजाइजरामरणरोगसारीरमाणसपकामदुक्खवेयणवसणसतोवद्दवाभिभूए अधुए अणितिए असासए 9 शतके प्रदाप्तिः संझम्भरागमरिसे जलवुन्बुदसमाणे कुसग्गजलविंदुसन्निभे सुविणगर्दसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडणप उद्देशक // 842 // डणविद्धसणधम्मे पुन्धि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियब्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ! के पुचि // 842 // गमणयाए ?, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुझे हिं अम्भणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्बइत्तए। त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता! हमणां मने जे तमे ए प्रमाणे कषु के-हे पुत्र! तुं अमारे इष्ट तथा कांत एक पुत्र छो-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं प्रवज्या लेजे." पण हे माता -पिता! ए प्रमाणे मरेखर आ मनुष्यभव अनेक जन्म, जरा, मरण अने रोगरूप शारीर अने मानसिक दुःखोनी अत्यन्त वेदनाथी अने सेंकडो व्यसनोथी पीडित, अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे, तेम संध्याना रंग जेवो, पाणीना परपोटा जेवो, डाभनी अणी उपर रहेला जलबिन्दु जेवो, खमदर्शनना समान, विजळीनी पेठे चंचळ अने अनित्य 2. सड, पडवू अने नाश पामयो ए तेनो धर्म 2. पहेला के पछी तेनो अवश्य त्याग करवानो छे हे माता-पिता ! ते कोण जाणे हे के-कोण पूर्वे जशे, अने कोण पछी जशे | INIमाटे हे माता-पिता ! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भमवंत महावीरनी पासे यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करवाने इच्छु छु. तए णं तं जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमं च ते जाया! सरीरगं पविसिहरू-ठा 4646 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir **** E ९सके उद्देशा // 843 // C4 वलक्वणवंजणगुणोववेयं उत्समबलवीरियसत्तजुत्तं विण्णाणवियक्खणं ससोहग्गगुणसमुस्मियं अभिजायमहशिवमं विविवाहिरोगरहियं निरुवहयउदत्तलहूं पंचिंदियपडुपढमजोब्वत्थं अणेगउत्तमगुणेहिं संजुत्तं तं अणु प्रतिः होहि ताच जाव जाया! नियगमरीररूवसोहग्गजोवणगुणे, तओ पच्छा अणुभूयनियगमरीररूवसोह८४३॥ ग्गजोवणगुणे अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवये वड्डियकुलवंसतंतुकमि निरक्यक्खे समणस्स भग वओ महावीरस्स अंतिणं मुंडे भरित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वड हिसि,तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे मम एवं वदह-इमं च ण ते जाया सरीरगं तं चेव जाव पब्वइहिसि. एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सगं मरीरं दुक्खाययणं विविहवाहिसयसंनिकेत अट्टियकट्टियं छिरा| पहारजालओणद्धसंपिणद्धं मत्तियभंड व दुब्बलं असुइसंकिलिट्ठ अणिढवियसब्यकालसठप्पियं जराकुणिमजजरघरं व सडणपडणविद्वंसणधम्मं पुदि वा पच्छा वा अवस्मविप्पजहियव्वं भविस्सइ, से केस णं जाणति ? अ|म्मताओ! के पुचि तं चेव जाव पव्वहत्तए। त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ तरुं शरीर उत्तम रूप, लक्षण, व्यंजन (मस, तल बगेरे) अने गुणोथी युक्त छे, उत्तम बल, वीर्य अने सत्वसहित छे, विज्ञानमा विचक्षण छे, सौभाग्य गुणथी उम्मत छे, कुलीन छे, अत्यन्त समर्थ छे, अनेक प्रकारना व्याधि अने रोगथी रहित छ, निरुपहत. उदात्त, अने मनोहर छे, पटु (चतुर) एवी | * पांच इन्द्रियोथी युक्त अने उगती युवावस्थाने प्राप्त थयेलं छे, अने ए शिवाय बीजा अनेक उत्तम गुणोथी भरपूर थे. माटे हे पुत्र। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ज्यां मुघी तारा पोताना शरीरमा रूप, सौभाग्य क्या यौवनादि गुणो छे त्यांसुधी तेनो तुं अनुभव कर, अने अनुभव करी अमो व्याख्या-5 कालगत थया पछी वृद्धावस्थामा कुलवंशरूप तन्तुनी वृद्धि करीने निरपेक्ष एवो तुं श्रमण भगवान् महावीर पासे दीक्षा लइने गृहवा-18९ शतके प्राप्ति | सनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारजे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने ए प्रमणे का के-'हे | दाउद्देशम्म // 844 // माता-पिता! ते बरोबर छे, पण जे तमे मने ए प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! आ तरुं शरीर (उत्तमरूप, लक्षण व्यंजन अने गुमोथी | // 8441 युक्त छे) इत्यादि यावत् (अमारा कालगत थया पछी) तुं दीक्षा लेजे.' पण ए रीते तो हे माता-पिता ! खरेखर आ मनुष्यनु शरीर दुःखनुं घर छे, अनेक प्रकारना सेंकडो व्याधिओवें स्थान छे, अस्थिरूप लाकडानुं बनेलुं छे, नाडीओ अने स्नायुना समूहथी अत्यन्त विटाएल, माटीना वासणनी पेठे दल छ, अशुचिथी भरपूर छे, जेनु शुश्रूषा कार्य हमेशा चालु छे. जीण मृतक अने जीर्ण घरनी पेठे संडg, पड अने नाश पामबो-ए तेनो सहज धर्मों छे. वळी ए शरीर पहेला के पछी अवश्य छोडवानु छे, तो हे माता-पिता! ते कोण जाणे छ के कोण पहेलां (जशे अने कोण पछी जशे.) इत्यादि. नए णं तं जमालि खत्तियकमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमाओ य ते जाया। विपुलकुलबालियाओसरित्तयाओसरिचयाओ मरिसलावन्नरूवजीव्वणगुणोत्रवेयाओ सरिसएहितो कुलहितो आणिएल्लियाओ कलाकुसलसव्वकाललालियसुहोचियाओ मद्दगुण जुत्तनिउणविणओवयारपंडियवि यक्वणाओ मंजुलमियमहुरमणियबिहसियविप्पेक्खियगतिविसालचिट्टियविसारदाओ अविकलकुलसीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंससंताणतंतुबद्धणप्पग (म्भु) भवप्पभाविणीओ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ट तुज्झ गुणवल्लहाओ उत्तमाओ निच्च भावाणुत्त For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति 1845 // उद्देश // 845 // रसव्वंगसुंदरीओ भारियाओ, तं भुंजाहि ताव जाया ! एताहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा मुत्तभोगी विसयविगययोजिउनकोउहल्ले अम्हहिं कालगएहिं जाव पचहहिसि / त्यारपछी तेना माता-पिताए ते जमालि क्षत्रियकुमरने आ प्रमाणे को के-'हे पुत्र ! आ तारे आठ स्त्रीओ छे, ते विशाल कुलमा उत्पन्न थयेली अने बाळाओ छे, ते समान त्वचावाळी, समान उमरवाळी, समान लावण्य, रूप अने यौवनगुणथी युक्त छे बळी ते समान कुलथी आणेली, कलामां कुशल, सर्वकाल लालित अने मुखने योग्य छ; ते मार्दवगुणथी युक्त, निपुण, विनयोपचारमा पंडित अने विचक्षण छे; सुंदर मित, अने मधुर बोलनामां, तेमज हारय, विप्रेक्षित, (कटाक्ष दृष्टि), गति, विलास अने स्थितिमां विशारद छ; उत्तम कुल अने शीलथी सुशोभित छ विशुद्ध कुलरूप वंशतंतुनी वृद्धि करवामां समर्थ यौवनवाळी के मनने अनुकूल अने हृद| यने इसके बळी गुणो वडे प्रिय अने उत्तम छे, तेमज हमेशां भावमा अनुरक्त अने सर्व अंगमा सुंदर छे. माटे हे पुत्र! तुं ए स्त्रीओ 1. साथे मनुष्यसंबन्धी विशाल कामभोगोने भोगव अने त्यारपछी भुक्तभोगी थइ विषयनी उत्सुकता दूर थाय त्यारे अमारा कालगत थया पछी यावत् तुं दीक्षा लेजे. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहावि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे मम एवं 4aa वयह-इमाओ ते जाया विपुल कुलजावपवरहिसि, एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सय कामभोगा असुई असा सया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा उच्चारपासवणखेलसिंघाणगवंतपित्तपूयसुक्कसोणियसमुन्भया अमणुन्नदुरूवमुत्तगृहयपुरीसपुना मयगंधुस्सासअसुभनिस्सासा उब्वेषणगा बीभत्था अप्पकालिया For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Pvan |लहूसगा कलमलाहिया सदुक्खबहुजणसाहारणा परिकिलेसकिच्छदुक्खसज्झा अबुहजणणिसैविया सदा साहुव्याख्या- दागरहणिज्जा अणंतसंसारवद्धणा कडगफलविवागा चुडलिव्व अमुच्चमाणदुक्खाणुवंधिणो सिद्धिगमणविग्धा, से केस||९ शतके प्राप्तिः णं जाणति अम्मताओ! के पुचि गमणयाए, के पच्छा गमणयाए?,तं इच्छामि णं अम्मताओ! जाव पवइत्तए। // 846 // त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता पिताने आ प्रमाणे कधु के-'हे माता-पिता! हमणा तमे जे मने कह्यु के-हे पुत्र ! तारे विशाल कुलमां (उत्पन्न ययेली आ आठ स्त्रीओ छे)-इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेजे, ते ठीक छे. पण हे माता-पिता! ए प्रमाणे खरेखर मनुष्यसंबन्धी कामभोगो अक्षुची अने अशाश्वत छ वात, पित्त, श्लेष्म, वीर्य अने लोहीने झरवावाळा के विष्ठा, मूत्र, श्लेष्म, नासिकानो मेल, वमन, पिच, परु, शुक्र अने शोणितथी उत्पन्न थयेला केवळी ते अमनोज्ञ, स्वराच मूत्र अने दुर्ग|न्धी विष्ठाथी भरपुर में मृतकना जेवी गंधवाळा उच्चासथी अने अशुभ निःश्वासथी उद्वेमने उत्पन्न करे छ, चीभत्स, अल्पकाळस्थायी, | हलका, अने कलमल-(शरीरमा रहेल एक प्रकारना अशुभ द्रव्य)ना स्थानरूप होवाथी दुःखरूप अने सर्व मनुष्वोने साधारण छे; शारीरिक अने मानसिक अत्यंत दुःखवडे साध्य छ; अज्ञान जनथी सेवाएला छ साधु पुरुषोथी हमेशां निंदनीय छ; अमंत संसारनी वृद्धि करनारा छे, परिणामे कटुकफळबाळा छे, बळता वासना पूळानी पेठे न मुकी शकाय नेवा दुःखानुबंधी अने मोक्षमार्गमा विनरूप छे. बळी हे माता-पिता! ते कोण जाणे छ के कोण पहेलां जशे अने कोण पछी जशे ! माटे हे माता-पिता ! हुं यावद् दीक्षा लेवाने इच्छु छु,' तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरोएवं वयासी-इमे य ते जाया ! अजयचज्जयपिउपजयागएसु For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavela Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande तके उद्देश // 847 // बहु हिरन्ने य सुवन्ने य कंसे यदूसे य विउलधणकणगजाव संतसारसावएज्ज अलाहि जाव आसत्तमाओकुलवंसाओ व्याख्या- पकामं दाउं पकामं भोत्तु पकामं परिभाएउं तं अणुहोहिताव जाया! विउले माणुस्सा इड्डिसकारसमुदए, तओ प्राप्ति पच्छा अणुहयकल्लाणे वड्डियकुलतंतु जाव पव्वइहिसि / तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं बयासीM८४७॥ हैतहाचि णं तं अम्मताओ! जन्नं तुज्झे ममं एवं बदह-इमं च ते जाया! अजगपजगजावपब्वहहिसि, एवं खलु अम्मताओ। हिरन्ने य सुबन्ने य जाव साधएजे अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए मच्चुसाहिए दायसाहिए एवं अग्गिसामने जाव दाहयसामन्ने अधुवे अणितिए असासए पुखि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियग्वे भविस्सह, से केस णं जाणइ तं चेव जाव पब्वइत्तए / त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिताए आ प्रमाणे कांके 'हे पुत्र ! आ अर्या (पितामह), पर्या (प्रपि8 तामह) अने पिताना पर्या-(प्रपितामह-) थकी आवेलु घणुं हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वन, विपुल धन, कनक यावत् सारभूत द्रव्य | विद्यमान छे, अने ते तारे सात पेढी सुधी पुष्कळ दान देवा भोगववाने अने वहेंचवा माटे पूरतुं . माटे हे पुत्र! मनुष्यसंबन्धी विपुल ऋद्धि अने सन्मानने भोगव, अने त्यारपछी सुखनो अनुभव करी, अने कुलवंशने वधारी यावत् तुं दीक्षा लेजे.' त्यारवाद जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे का के–'हे माता-पिता! तमे जे ए प्रमाणे कयुके, 'हे पुत्र ! आ हिरण्यादि द्रव्य तारा पितामाह अने प्रपितामहथी यावत् आवेलुं छे, इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेजे. ए ठीक छे, पण हे माता-पिता!ए प्रमाणे खरेखर ते हिरण्य, सुवर्ण, यावत् सर्व सारभूत द्रव्य अभिने साधारण छे, चोरने साधारण छ, राजाने साधारण छे, मृत्युने साधारण For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः // 848 // 9 शतके उदेश ICPCH छे, दायाद (भायात) ने साधारण छे, अनिने सामान्य छे, यावद् दायादने सामान्य के. बळी ते अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे. 6 पहेला के पछी ते अवश्य कोडवानुं छे, तो कोण जाणे छे के पहेला कोण जशे अने पछी कोण जशे ? इत्यादि बाबद ई प्रवज्या | लेवाने इच्छु डूं.' तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएन्ति विसयाणुलोमाहिं बहहिं आघवणादि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहि य आघवेत्तए दा पन्नवेत्तए वासन्न वेत्तए वा विन्नवेत्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभयुब्वेयणकराहिं पन्नवणाहिं पनवेमाषा एवं बयासी-एवं खलु जाया ! निगंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले जहा आवस्सए जाव सब्वदुक्खाणमंतं करेंति अहीव एगंतदिट्टीए खुरो इव एगंतधाराए लोहमया जवा चावेयब्वा बालुयाकवले इव निस्साए गंगा वा महानदी पडिसोयममणयाए महासमुद्दे वा भुवाहिं दुत्तरो तिक्खं कमियध्वं गरुयं लंबेयब्यं असिधारगं वतं चरियवं, नो स्वल्लु कप्पड़ जाया! समणाण निग्गंथाणं आहाकम्मिएत्ति वा उद्देसिएइ वा मिस्सजाएड वा अज्झोयरएइ वा पूइएइ वा कीएड वा पामिच्चेइ वा अच्छेन्जेइ बा अणिसट्टेद वा अभिहडेइ वा कंतारभत्तह वा दुम्भिवभत्तइ वा गिलाणभत्तइ वा बद्दलियाभत्तेइ वा पाहुण. गभत्तइ वा सेजायरपिंडेइ वा रायपिंडेइ वा मूलभोयणेइ वा कंदभोयणेइ वा फलभोयणेइ वा वीयभोयणेइ वा हरियभोयणेइ वा भुक्षए वा पायए बा, तुम च णं जाया! मुहसमुचिए, णो चेव णं दुहसमुचिते, नालं सीयं नालं उहं नालं खुहा नालं पिपासा नालं चोरा नालं वाला नालं दसा नालं मसया नालं वाइयपित्तियसेंभियसन्नि For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्या-1GI प्राप्ति 9 शतके उद्देश का॥८४९॥ // 849 // PRAKAKAAKAS वाइए विविहे रोगार्यके परिसहोवसग्गे उदिन्ने अहियासेत्तए, तं नो खल्लु जाया! अम्हे इच्छामो तुझ स्वणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया ! जाव ताव अम्हे जीवामो, तओ पच्छा अम्हहिं जाव पब्वइहिसि। ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिता विषयने अनुकूल एवी घणी उक्तिओ, प्रज्ञप्तिओ, संज्ञप्तिओ अने विज्ञप्तिओथी कहेवाने, जणाववाने, समजाववाने, विनववाने समर्थ न थया त्यारे नेओए विषयने प्रतिकूल, अने संयमने विषे भय अने उद्वेग करनारी एवी उक्तिओथी समजावता आ प्रमाणे कार्य के 'हे पुत्र! ए प्रमाणे खरेखर निग्रंथ प्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वितीय छे. इत्यादि आवश्यक सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् ते सर्व दुःखोनो नाश करनारु छे. परन्तु ते सर्पनी पेठे एकांत-निश्चितहष्टिवाळू, | अस्खानी पेठे एकांत धारवालु, लोढाना जवने चाववानी पेठे दुष्कर, अने वेळुना कोळीयानी पेठे निःस्वाद छे, बळी ते गंगा नदीना सामे प्रवाहे जवानी पेठे, अने वे हाथथी समुद्र तरवाना जेवू ते प्रवचननुं अनुपालन मुश्केल छे. तीक्ष्ण खड्गादि उपर चालवाना जेवू [ दुष्कर ] छे, मोटी शिलाने उचकवा बरोबर छे अने तरचारनी धारा समान व्रतर्नु आचरण करवान छे. हे पुत्र ! श्रमण निर्गयोने 1 आधार्मिक, 2 औद्देशिक, 3 मिश्रजात, 4 अध्यवपूरक, 5 पूतिकृत, 6 क्रीत, 7 प्रामित्य, 8 अच्छेद्य, 9 अनिःसृष्ट, 10 अभ्याहृत, 11 कांतारभक्त, 12 दुर्भिक्षभक्त, 13 ग्लानभक्त, 14 वार्दलिकाभक्त, 15 प्राधूर्णकभक्त, 16 शय्यातरपिंड अने 17 राजपिंड, तेमज मूलनु भोजन, कंदर्नु भोजन, फलनु भोजन, वीजर्नु भोजन अने हरित-(लीलीवनस्पति) नु भोजन खातुं के पीg कल्पतुं नथी. वळी हे पुत्र ! तुं सुखने योग्य छो पण दुःखने योग्य नथी. तेमज टाढ, तडका, भुख, तरश, चोर श्वापद, डांस अने मच्छरना उपद्रवोने, तथा वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक अने संनिपातजन्य विविध प्रकारना रोगो अने तेना दुःखोने, तेमज परिषह अने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्या 9 शतके उद्देशा // 850 // 850 // उपसर्गोने सहबाने तुं समर्थ नथी. माटे हे पुत्र ! अमे तारो वियोग एक क्षण पण इच्छता नथी; तेथी ज्यांसुधी अमे जीविए त्यांसुधी तुं रहे अने अमारा कालगत थया पछी यावत् तुं दीक्षा लेजे'. / तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहाविणं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे मम एवं चयह-एवं खलु जाया ! निग्गंथे पाययणे सच्चे अणुत्तरे केवले तं चेव जाव पब्बडहिसि, एवं खलु 4 अम्मताओ! निग्गंधे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाण इहलोगपडियदाण परलोगपरंमुहाण विसयति सियाणं दुरणुचरे पागयजणस्स, धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्यं किंचिवि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुझेहिं अभणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए / तए ण जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहहि य आ. घवणाहि य पन्नवणाहि य 4 आघवेत्तए वा जाव विन्नवेत्तए वा ताहे अकामए चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमन्नित्था // (सूत्रं 384) // / त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता ! तमे मने जे ए प्रमाणे कधु के-हे पुत्र ! निग्रंथप्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वीतीय ने-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं दीक्षा लेजे. ते ठीक छे, पण हे माता-पिता ! ए प्रमाणे खरेखर निर्ग्रन्थ प्रवचन क्लीव-मन्दशक्तिवाळा, कायर अने हलका पुरुषोने, तथा आ लोकमां | आसक्त, परलोकथी पराङ्मुख एवा विषयनी कृष्णाबाळा सामान्य पुरुषोने (तेनुं अनुपालन) दुष्कर के पण धीर, निश्चित अने प्रय -C444 4 + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Maa Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Se Klasagarsun Gyarmandir ९सके उद्देशा 1851 // नवान् पुरुषने तेनुं अनुपालन जरा पण दुष्कर नथी. माटे हे माता पिता! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावद् दीक्षा लेवाने इच्छु छु, ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिता विषयने अनुकूल तथा विषयने प्रतिकूल एवी घणी व्याख्याप्राप्ति | उक्तिओ, प्रबप्तिओ, संज्ञप्तिओ अने विनतिओधी कद्देवाने यावत् समजाववाने शक्तिमान् न थया त्यारे बगर इच्छा ए ओए जमालि क्षत्रियकुमारने दीक्षा लेवानी अनुमति आपी. // 384 // 851 // तए णं तस्म जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेद सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव दाभो देवाणुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नगरं सम्भितरवाहिरियं आसियसंमजिओचलितं जहा उववाइए जाव प चप्पिणति, तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोचंपि कोडंबियपुरिसेसद्दावेद सहावइत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उब हवेह, तए णं ते कोटुंबियपुरिसा तहेव जाच पचप्पिणंति, तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहं निसीयाति निसीयावेत्ता अट्ठसएणं सोवनियाणं कलसाणं एवं जहा रायप्पसेणइब्जे जाव अट्टसएणं भोमेजाणं कलसाणं सब्बिड्डीए जाव रवेणं महया महया निक्खमणाभिसेगेणं अभिसिंचन्ति निक्खमणाभिसेगेण / / ___ त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या. अने बोलावीने एम कड्यु के–'हे देवानुप्रियो / शीघ्र आ क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी बहार अने अंदर पाणीथी छंटकाव करावो, वाळीने साफ करावो, अने लींपायो'--इत्यादि जेम औष PRAKAKAARAKAKKA ** * * For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 9 शतके उपाय 852 // पातिक सूत्रमा का छे तेम करीने यावत् ते कौटुंबिक पुरुषो आज्ञा पाछी आपे छे. त्यारबाद फरीने पण जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या, अने बोलावीने आ प्रमाणे कयु के-'हे देवानुप्रियो ! जलदी जमालि क्षत्रियकुमारनो महार्थ, व्याख्या महामूल्य, महापूज्य अने मोटो दीक्षानो अभिषेक तैयार करो.' त्यारबाद ते कौटुंबिक पुरुषो कह्या प्रमाणे करीने आज्ञा पाठी आपे प्रतिः | छे. त्यारवाद जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता-पिता उत्तम सिंहासनमां पूर्व दिशा सन्मुख बेसाडे छे, अने बेसाडीने एकसो आठ // 52 // | सोनाना कलशोथी इत्यादि राजप्रश्नीयसत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् एकसोने आठ माटीना कलशोथी सर्व ऋद्धिवडे यावद् मोटा शब्दमोटा 2 निष्क्रमणाभिषेकथी तेनो अभिषेक करे छे, अभिसिंचित्ता करयल जाव जएणं विजएणं वदावेन्ति, जएण विजएण वद्धावेत्ता एवं वयासी-भण |जाया! किं देमो? किं पयच्छामो? किंणा वा ते अट्ठो!, ताण से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-इच्छामि णं अम्मताओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणिउं कासवगं च सद्दाविउं,तए णं से जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स पिया कोडंबियपुरिसे सद्दावेह सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सिरिघराओ तिन्नि सयसहस्साई गहाय दोहि सयसहस्सेहिं कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणेह सयसहस्सेणं कासवगं च सद्दावेइ, तए णं ते कोटुंबियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं बुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा करयल जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सिरिघराओ तिन्नि सयसहस्साई तहेव जाव कासवगं भासदावेंति / तए ण से कासवए जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा कोटुंबियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हढे तुढे For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 9 शतके प्राप्ति // 853 // बहाए कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता अभिषेक कर्या बाद ते जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता हाथ जोडी यावत् तेने जय अने विजयथी वधावे छे. वधावीने द्र तेओए आ प्रमाणे कमु के-'हे पुत्र! तुं कहे के तने अमे शुं दइए, शुं आपीए, अथवा तारे कांइ प्रयोजन के ? त्यारे ते जमालि 18 उद्देश६ क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे का के-हे माता-पिता ! हुं कुत्रिकापणधी एक रजोहरण अने एक पात्र मंगाववा // 53 // तथा एक हजामने बोलाववा इच्छु छु; त्यारे ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या अने बोलावीने कह्यु 6 के-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र आपणा खजानामाथी त्रण लाख (सोनेया) ने लइने तेमांथी चे लाख (सोनया) वडे कुत्रिकापणथी एक रजोहरण अने एक पात्र लावो, तथा एक लाख सोनैया आपीने एक हजामने बोलावो. ज्यारे जमालि क्षत्रिकुमारना पिताए ते कौटुंचिक पुरुषोने ए प्रमाणे आज्ञा करी त्यारे तेओ खुश थया, तुष्ट थया, अने हाथ जोडीने यावत् पोताना स्वामीनु वचन स्वीकारीने तुरतज खजानामांथी त्रण लाख सुवर्णमुद्रा लइने यावत् हजामने बोलावे छे, त्यारवाद जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषो द्वारा बोलावेलो ते हजाम खुश थयो, तुष्ट थयो, न्हायो, अने बलिकर्म (देवपूजा) करी, यावत् तेणे पोतानुं शरीर शणगायु, अने पछी ज्यां जमालि क्षत्रियकुमारनो पिता हे त्यां ते आवे छे. करयल जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पियरं जाणं विजएणं बद्धावेइ जएणं विजएणं वद्धावित्ता एवं वया सी-संदिसंतु ण देवाणुप्पिया! जं मए करणिजं, तए णं से जमालिस्स वत्तियकुमारस्म पिया तं कासवगं एवं वयासी-तुम देवाणुप्पिया! जमालिस्म खत्तियकुमारस्स परेण जत्तणं चउरंगुलवले निक्खमणपयोगे अग्गकेसे | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः 854 // D पडिकप्पेह, तए ण से कासवे जमालिस्स स्वत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ते समाणे हद्दतुढे करयल जाव एवं सामी ! तहत्ताणाए विणएणं वयर्ण पडिसुणेह 2 त्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्वपादे पक्खालेइ सुरभिणा 2 319 शतके सुद्धाए अट्ठपडलाए पोत्तीए मुहं बंधड मुहं बंधित्ता जमालिस्म खत्तियकुमारस्स परेण जत्तेणं चउरंगुलवज्जे नि- उदेश क्खमणपयोगे अग्गकेसे कप्पड़ / तर णं साजमालिस्म खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाइएणं अग्गकेसे // 854 // पडिच्छइ अग्गकेसे पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदपणं पक्खालेह मुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेत्ता अग्गेहिं बरेहि गंधेहिं मल्लहिं अचेति 2 सुद्धवत्थेणं बंधेह सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्विवति 2 हारवारिधारासिंदुवारछिन्नमुत्तावलिप्पगामाई सुयवियोगदूसहाई अंसूई विणिम्मुयमाणी 2 एवं बयासी-एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहसु तिहीसु य पब्वणीसु य उस्सवेस य जन्नेसु य छणेसु य अपच्छिमे दरिसणे भविस्सतीतिकडु ओसीसगमले ठवेति, I आबीने हाथ जोडीने जमालि क्षत्रियकुमारना पिताने जय अने विजयधी वधाये छै; वधाव्या पछी ते हजाम आ प्रमाणे बोल्यो के–'हे देवानुप्रिय! जे मारे करवानुं होय ते फरमावों'. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने आ प्रमाणे का के-'हे देवानुप्रिय ! जमालि क्षत्रियकुमारना अत्यन्त यत्नपूर्वक चार अंगुल मूकीने निष्क्रमणने (दीक्षाने) योग्य आगळना वाळ कापी नाख. त्यारपछी ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए ते हजामने ए प्रमाणे कडं त्यारे ते खुश थयो, तुष्ट थयो अने हाथ | जोडीने ए प्रमाणे बोल्यो-'हे खामिन् ! आज्ञा प्रमाणे करीश एम कहीने विनयर्थी ते वचननो स्वीकार करे छे. स्वीकार करीने ACANCE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Avadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 9 अत्तके माल्या उद्देश६ // 855 // // 855 // है सुगंधी गंधोदकथी हाथ पगने धुए छे, घोइने शुद्ध आठ पडवळा वस्त्रथी मोढाने बांधी अत्यंत यत्नपूर्वक जमालि क्षत्रियकुमारना निष्क्रमण योग्य अग्रकेशो चार आंगळ मूकीने कापे छे. त्यार पछी जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हंसना जेवा श्वेत पटशाटकथी ते अग्रकेशोने ग्रहण करे छे. ग्रहण करीने ते केशोने सुगंधी गंधोदकथी धृए हे. धोइने उत्तम अने प्रधान गंध तथा मालावडे पूजे हे. पूजीने शुद्ध वखवडे बांधे छे. बांधीने रत्नना करंडियामां मूके के. त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हार, पाणीनी धारा, सिंदुवारना पुष्पो अने लूटी गएली मोतीनी माळा जेवां पुत्रना वियोगथी दुःसह आंसू पाडती आ प्रमाणे बोली के-आ केशो अमारा माटे घणी तिथिओ, पर्वणीओ, उत्सवो, यज्ञो, अने महोत्सवोमां जमालिकुमारना वारंवारं दर्शनरूप थशे' एम धारी तेने ओशीकाना मूळमां मूके छे. तए णं तस्स जमालिस्म ग्वत्तियकुमारस्म अम्मापियरो दोचंपि उत्तरावकमणं सीहासणं रयाति 2 दोचंपि जमालिस्स खत्तियकुमारस्स सीयापीयएहिं कलसेहिं नाण्हेंति सीयापीयाहिं कलसेहिं नाण्हेत्ता पम्हसुकुमालाए सुरभिए गंधकासाइए मायाई लूहेंति सुरभिए गंधकासाइए गायाइं लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपित्ता नासानिस्सासवायवोझ चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं महरिहं हंसलवणपडसाडगं परिहिंति 2 हारं पिणटुंति 2 अद्वहारं पिणटुंति 2 एवं जहा सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं रयणसंकडुक्कडं मउढं पिणद्वंति, किं बहुणा!, गंथिमवेढिमपूरिमसंघातिमेणं चउब्बिहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकिय विभूसियं करेंति / TR For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 9 शतके उद्देशा // 856 // IM त्यार बाद ते जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता पुनः उत्तर दिशा सन्मुख वीजु सिंहासन मूकावे . मूकाबीने फरीवार व्याख्या-8 जमालि क्षत्रियकुमार ने सोना अने रूपाना कलशो बडे न्हवरावे छे. न्हवरावीने सुरमि, दशावाळी अने सुकमाल सुगंधी गंधकापाय (गन्धपधान लाल) वस्त्र बहे तेनां अंगोने लूछे छ, अने अंगोने लुछीने सरस गोशीर्ष चंदनबडे गात्रनुं विलेपन करे छे. विलेपन 456 // करीने नासिकाना निःश्वासना वायुथी उडी जाय एबुं हलकुं, आंखने गमे ते, सुंदर, वर्ण अने स्पर्शथी संयुक्त, घोडानी लाळ करतां पण वधारे नरम, धोळ, सोनाना कसबी छेडावाळ, महामूल्यबाळु, अने हंसना चिसयुक्तएवं पटशाटक (रेशमी बत्र) पहेरावे हे. पहेरावीने हार अने अर्धहारने पहेरावे . ए प्रमाणे जेम सूर्याभना अलंकारनुं वर्णन करेलु छे तेम अहिं करचु, यावद विचित्र रत्नोथी जडेला उत्कृष्ट प्रकुटने पहेरावे छे. वधारे शुं कहे ! पण ग्रंथिम-गुंथेली, वेष्टिम-चींटेली, पूरिम पूरेली अने संघातिम-परस्पर संघात बडे तैयार थयेली चारे प्रकारनी माळाओ चढे कल्पवृक्षनी पेठे ते जमालि कुमारने अलंकृत-विभूषित करे छे. तए णं से जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सद्दावेह सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेगखंभसयसन्निविटुं लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवन्नओ जाव मणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्तं पुरिससहस्सपाहणीयं सीयं उक्ट्ठवेह उवट्ठवेत्ता मम पयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, नए ण ते कोडुंबियपुरिसा जाव पञ्चप्पिणति / ता से जमाली वत्तियकुमारे केसालंकारेणं वस्थालंकारेणं मल्लालंका. रेणं आभरणालंकारेणं चउविहेणं अलंकारेणं अलंकारिए समाणे पडिपुन्नालंकारे सीहासणाओ अन्भुट्ठइ सीहा सणाओ अन्भुटेता सीय अणुप्पदाहिणीकरेमाणे सीयं दुरूहह 2 सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे सन्निसण्णे। RAHKASAKARANA For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 9 शतके व्याख्याप्रातिः // 857 // उडेका // 857 // त्यार चाद ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिता कौटुंबिक पुरुषोने बोलाचे छ. अने बोलाचीने तेणे आ प्रमाणे का के- 'हे देवानुप्रियो! शीघ्र सेंकडो स्तंभोबडे सहित लीलापूर्वक पुतळीओथी युक्त -इत्यादि राजप्रश्नीयसूत्रमा विमाननुं वर्णन कयु छ तेवी यावत् मणिरत्ननी घंटिकाओना समूह युक्त, हजार पुरुषोथी उंचकी शकाय तेवी शीविका पालखीने तैयार करो अने तैयार करीने मारी आज्ञा पाछी आपो.' त्यारवाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञाने पाछी आपे . त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमार केशालंकार, वस्त्रालंकार समाल्यालंकार अने आभरणालंकार ए चार प्रकारना अलंकारथी अलंकृत थइ प्रतिपूर्ण अलंकारथी विभूषित थइ सिंहासनथी उठे छे. उठीने ते शिविकाने प्रदक्षिणा दइने तेना उपर चढे के. चढीने उत्तम सिंहासन उपर पूर्व दिशा सन्मुख बेसे छे. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया गहाया कयबलि जाव सरीरा हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय सीय अणुप्पदाहिणीकरमाणी सीयं दुरूहइ सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स म्वत्तियकुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणवरंसि संनिसना, तगणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्म अम्मधाई बहाया जाव सरीरा रयहरणं च पडिम्गहं च गहाय सीय अणुप्पदाहिणी करेमाणी सीयं दुरूहह सीयं दुरूहित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बामे पासे भदासणवरंसि संनिसन्ना / तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागार चारवेसा | संगयगय जाव रूवजोव्वणविलासकलिया सुंदरथण हिमरययकुमुदकुंदेंदुप्पगासं सकोरेंटमल्लदामं धवलं आयवत्तं गहाय सलीलं उबरि धारेमाणी 2 चिट्ठति, तए णं तस्स जमालिस्स उभओपार्सि दुवे वरतरुणीओ सिंगारागारा|चरुजावकलियाओ नाणामणिकणगरयणविमल महरिहतवणिज्जुजलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ संखककुदेंदुदः। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गरयअमयमहियफेणपुंजसंनिकासाओ धवलाओ चामराओ गहाय सलील बीयमाणीओ चिट्ठति, व्याख्या त्यापछी ते जमालि क्षत्रिकुमारनी माता स्वान करी बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी, हंसना चिहवाळा पटशाटकने 519 शतके प्राप्तिः मालइ शिरिकाने प्रदक्षिणा करी तेना उपर चढे छ; अने चढीने ते जमालि क्षत्रियकुमारने जमणे पडखे उत्तम भद्रासन उपर बेठी. उरेशा // 858 // पछी जमालि क्षत्रियामारनी धावमाता स्नान करी यावत् शरीरने शणगारी रजोरहण अने पात्रने लइ ते शिविकाने प्रदक्षिणा करी // 858 हातना उपर चढ़े के, अने चढीने जमालि क्षत्रियकुमारने डावे पडखे उत्तम भद्रासन उपर बेठी. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी लपाछळ मनोहर आकार अने सुंदर पहेरवेशवाळी, संगतगतिवाळी यावद रूप अने यौवानना विलासथी युक्त, मुंदर स्तनवाळी एकद युवती हिम, रजत, कुमुद. मोगरानुं फुल अने चंद्रसमान कोरंटकपुष्पनी माळायुक्त, धोढुं छत्र हाथमा लइ तेने लीलापूर्वक धारण करती उभी रहे हे. त्यारपछी ते जमालिने बन्ने पडखे श्रृंगारना जेवा मनोहर आकारवाळी अने सुंदर वेशवाळी उत्तम वे युवती स्त्रीयो | यावत अनेक प्रकारना मणि, कनक, रत्न अने विमल, महामूल्य तपनीय रक्त सुवर्ण-)ी बनेला, उज्ज्वल विचित्र दंडवाळां, दीपता, शंख, अंक, मोगगना फुल, चंद्र, पाणीना बिन्दु अने मथेल अमृतना फीणना समान धोळ चामरोने ग्रहण करी लीलापूक वींजती उभी रहेको तए तस्स जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स उत्तरपुरच्छिमेणं एगा धरतरुणी मिंगागगारजाव कलिया सेतरय गामयविमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिममाण भिंगारं गहाय चिट्ठइ, तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरच्छिमेणं एगा वरतरुणी सिगारागारजाव कलिया चित्तकणगदंडं तालवें गहाय चिट्टति, तए For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie व्याख्याप्राप्ति 859 // ण तस्स जमालिस्म खत्तियकुमारस्स पिया कोडंबियपुरिसे सहावेई को०२त्ता एवं बयासी-विप्पामेव भो देवाणुप्पिया!सरिसयं सरित्तयं मरिव्वयं सरिसलावन्नरूवजोवणगुणोववेयं एगाभरणं वसणगहियनिजोयं कोहूं बियवरतरुणसहस्सं सद्दावेह, तए णं ले कोडुंबियपुरिसा जाब पडिसुणेत्ता विप्पामेव सरिमयं मरित्तयंजाब सद्दावेंति, 9 शतके तए ण ते कोडुबियपुरिसा जमालिस्स ग्वत्तियकुमारस्स पिउणको९बियपुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हतुह० पहाया उमेश कयवलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता एगाभरणवसणगहियनिजोया जेणेव जमालिस्म खत्तियकुमारस्म पि // 859 // या तेणेव उवागच्छन्ति ते २त्ताकरयलजाव वदावेत्ता एवं वयासी-संदिसंतुण देवाणुप्पिया! अम्हेहिं करणिज, पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी उत्तरपूर्व दिशाए शृंगारना गृह जेवी उत्तम वेषवाळी यावत् एक उत्तम स्त्री श्वेत रजतमय, पवित्र पाणीथी भरेला अने उन्मत्त हस्तीना मोटा मुखना आकारवाळा कलशने ग्रहण करीने यावत् उभी रहे छे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी दक्षिण पूर्व शृंगारना गृहरूप उत्तम वेषवाळी यावत् एक उत्तम स्वी विचित्र सोनाना दंडवाळा विंजणाने लइने उभी रहे डे, पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या अने बोलावीने आ प्रमाणे कयु के 'हे देवानुप्रियो शीघ्र सरखा, समानत्वचाबाळा, समानउमरवाळा, समानलावण्य, रूप अने यौवान गुणयुक्त. अने एक सरखा आभरण अने वखरूप परिर करवाळा एक हजार उत्तम युवान कौटुंबिक पुरुषोने चोलावों'. पछी ते कौटुंबिक पुरुषोए यावत् पोताना स्वामीनुं वचन स्वीकारीने जलदी एक सरखा अने सरखी त्वचाचाळा यावत् एक हजार पुरुषोने बोलाव्या. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारना पिताए कौटुंबिक |पुरुष द्वारा बोलावेला ते कौटुंबिक पुरुषो हर्षित अने तुष्ट थया. स्नान करी, बलिकर्म (पूजा) करी, कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित्त For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्राप्ति करी, एकसरखाघरेणां अने वखरूप परिकरवाळा थईने तेओ ज्यां जमालि क्षत्रियकुमारना पिता छे त्यां आवे छे. आवीने हाथ जोडी व्याख्या-18 यावत् वधाची तेओए आ प्रमाणे कड्यु के-'हे देवानुप्रिय! जे कार्य अमारे करवानुं होय ते फरमावो.' 9 शतके ताणं से जमालिस्स वत्तियकुमारस्सपियातं कोडुवियवरतरुणसहस्संपि एवं वदासी-तुझे णं देवाणुप्पिया! ट्र उमेश // 40 // पहाया कयवलिकम्मा जाव गहियनिजोगा जमालिस्स खत्तियकुमारम्स सीयं परिवहह, तए ण ते कोडंबियपुरिसा IRC60 // जमालिस्म खत्तियकुमारस्स जाव पडिमणेत्ता पहाया जाव गहियनिजोगा जमालिस्म खत्तियकुमारस्स सीय परिवहति / तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरिमसहस्सवाहिणीं सीयं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठद्वमंगलगा पुरओ अहाणुपु ठवीए संपडिया, तं०-सोस्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणा, तदाणतरं च ण पुन्नकलसभिंगारं जहा उववाहप जाव गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुढचीए संपट्ठिया, एवं जहा उववाइए तहेव भाणियव्वं जाव आलोयं वा करेमाणा जय 2 सदं च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपविया / तदाणतरं च णं बहवे उग्गा भोगा जहा उच वाइए जाव महापुरिसवग्गुरपरिक्वित्ता जमालिस्म खत्तियस्स पुरओ य मग्गओ य पामओ य अहाणुपुब्बीए संपट्ठिया। पछी ते जमालिकुमारना पिताए ते हजार कौटुंबिक उत्तम युवान पुरुषोने आ प्रमाणे कयु के-'हे देवानुप्रियो ! स्नान करी, बलिकर्म करी अने यावत् एक सरखां आभरण अने वस्त्ररूपपरिकरवाळा तमे जमालि क्षत्रियकुमारनी शिबिकाने उपाडी.' पछी ते 18 जमालि क्षत्रियकुमारना पितान वचन स्वीकारी स्नान करेला यावत् सरखो पहेवेष धारण करेला ते कौटुंबिक पुरुषो जमालि क्षत्रिय CCC For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 4903 ९शत त उद्देशा // 862 // कुमारनी शिविका उपडे छे. पछी ज्यारे ते जमालि क्षत्रियकुमार हजार पुरुषोथी उपाडेली शीविकामां बेठो त्यारे सौ पहेलां आ आठ आठ मंगलो आगळ अनुक्रमे चाल्या. ते आ प्रमाणे 1 स्वस्तिक, 2 श्रीवत्स, यावद् 8 दर्पण. ते आठ मंगळ पछी पूर्ण कलश व्याख्या-1 चाल्यो-इत्यादि औषपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे यावद् गगन तलनो स्पर्श करती एवी वैजयंती-वजा आगळ अनुक्रमे चालीप्रति इत्यादि औपपातिकमत्रमा कया प्रमाणे यावत् जय जय शब्दनो उच्चार करता तेओ आगळ अनुक्रमे चाल्या. स्यारपछी घणा उग्र॥४१॥ कुलमां उत्पन्न थयेला, भोगकुलमा उत्पन्न थयेला पुरुषो औपपातिकमूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् मोटा पुरुषो रूपी वागुराथी वीटायेलि जमालि क्षत्रियकुमारनी आगळ, पाछळ अने पडखे अनुक्रमे चाल्या. ता तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिघा पहाए कयबलिकम्मे जाब विभूसिए हस्थिरखंधवरगए Rसकोरेंटमल्लदामेणं छत्तणं धरिजमाणेण सेयवरचापराहिं उधुव्वमाणे 2 हयगयरह पवरजोहकलियाए चाउरंगि णीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे महयाभडचडगर जाव परिक्खित्ते जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ 2 अणुगच्छइ / तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ महं आसा आसवरा उभओ पासिं णागा णागवरा पिट्टओ रहा रहसंगेल्ली। तए णं से जमाली बत्तियकुमारे अब्भुग्गयभिंगारे परिग्गहियतालियंटे ऊसवियसेतछत्ते पवीइयसेतचामरवालवीयणीए सब्बिड्डीप जाव णादितरवेणं / तयागंतरं च णं वहये लढिग्गाहा कुंनग्गाहा जाव पुत्थयगाहा जाव वीणगाहा, तयाणंतरं च णं अट्ठसयं गयाणं अट्ठसयं तुरयाणं अट्ठसयं रहाणं, तयाणंतरं च णं लउड असिकोतहस्थाणं बट्टणं पायत्ताणीणं पुरओ संपडियं, तयाणंतरं च णं बहवे राईसरतलवरजावसत्यवा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasagarsun Gyanmandir * * * हप्पभिहओ पुरओ संपट्ठिया जाव णादितरवण खत्तियकुंडग्गाम नगरं मज्झमज्झणं जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे व्याख्याजेणेव बहुसालए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्य गमणाए / 9 शतके प्रतिः त्यारपछी ते जमालिकुमारना पिता स्नान करी, बलिकर्म करी यावद् विभूषित थइ हाथीना उत्तम स्कंध उपर चडी, कोरंटक | उद्देशा 862 // पुष्पनी माळा युक्त. (मस्तके) धारण कराता छत्रसहित, बे श्वेत चामरोथी वीजाता 2, घोडा, हाथी, रथ अने प्रवर योद्धाओ सहित // 86 // चतुरंगिणी सेना साथे परिवृत थइ, मोटा सुभटना वृन्दथी यावत् वींटायेला जमालि क्षत्रियकुमारनी पाछळ चाले , त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी आगळ मोटा अने उत्तम घोडाओ. अने बन्ने पडखे उत्तम हाथीओ, पाछळ रथो अने स्थनो समूह चाल्यो. त्यार बाद ते जमालिकुमार सर्व ऋद्धिसहित यावत् बादित्रना शब्दसहित चाल्यो. तेनी आगळ कलश अने तालवृन्तने लइने पुरुषो चालता हता, तेना उपर उंचे श्वेत छत्र धारण करायं हतं, अने तेना पडखे श्वेत चामर अने नाना पंखाओ वीजाता हता. त्यार पठी15 केटलाक लाकडीवाळा, भालाबाळा, पुस्तकवाळा यावत् वीणवाळा पुरुषो चाल्या. त्यारपछी एकसो आठ हाथी, एकसो आठ घोडा | अने एकसो आठ रथो चाल्या, त्यारपछी लाकडी, तरवार अने भालाने ग्रहण करी मोटुं पायदळ आगळ चाल्यु, त्यारपछी घणा युवराजो, धनिको, तलवरो, यावत् सार्थवाह प्रमुख आगळ चाल्या. यावद् क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी बच्चे थइने ज्यां ब्रह्मणकुंडग्राम नामे GIनगर छ, ज्यां बहुशालक चैत्य हे अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां जवानो विचार कयों. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्म खत्तियकुंडग्गाम नगर मज्झमज्झणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडगतियचउक्जाव पहेसु बहवे अत्यत्थिया जहा उबवाइए जाव अभिनंदंता य अभित्थुणता य एवं वयासी-जय FECREENAKACK+ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Maa Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Se Klasagarsun Gyarmandir व्याख्या प्रातिः 9 शतके उरेशा ||863 // // 863 // जय णंदा! धम्मेण जय जय गंदा तवेणं जय जय गंदा ! भई ते अभग्गेहिं गाणदंसण चरित्तमुत्तमेहिं अजियाई जिणाहि इंदियाई जियं च पालेहि समषधम्म जियविग्योऽवि य बसाहि तं देव! सिद्धिमज्झे णिहणाहि य रागदोसमल्ले तवेण घितिधणियबद्धकच्छे मद्दाहि अट्ठ कम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुकेणं अप्पमत्तो हराहि यारा हणपडागं च धीर! तेलोकरंगमज्झे पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च गाणं गच्छय मोश्वं परं पदं जिणवरोवदिट्टेणं सिद्विमग्गेणं अकुडिलेणं हंना परीसहच अभिभविय गामकंटकोवसग्गाणं धम्मे ते अविग्धमत्थुत्तिकटु अभिनंदति य अभिथुणति य। स्यारपछी क्षत्रियकुंडग्राम नगरनी वचोवच निकळता ते जमालि क्षत्रियकुमारने शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् मार्गोमा घणा * धनना अर्थिओए, कामना अर्थिओए-इत्यादि औषपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् अभिनंदन आपता, स्तुति करता आ प्रमाणे कयु के-'हेनंद -आनन्ददायक ! तारो धर्म बडे जय थाओ, हे नन्द ! तारो तपवडे जय थाओ, हे नन्द तारुं भद्र थाओ, अभग्न-अखंडित अने उत्तम ज्ञान, दर्शन अने चारित्र बडे अजित एवी इन्दियोने तुं जित, अने जीतिने श्रमण धर्मर्नु पालन कर. हे देव ! विमोने जीती तुं सिद्धिगतिमां निवास कर. धैरूप कच्छने मजबूत बांधीने तपवडे रागद्वेषरूप मल्ल नो घात कर. उत्तम शुक्ल ध्यानवडे अष्टकमरूप शत्रुर्नु मर्दन कर. वळी हे धीर ! तुं अप्रमत्त थइ त्रणलोकरूप रंगमंडप मध्ये आराधनापताकाने ग्रहण करी निर्मळ अने अनुत्तर एवा केवलज्ञानने प्राप्त कर, अने जिनवरे उपदेशेल सरल सिद्धिमार्गबडे परमपदरूप मोक्षने प्राप्त कर. परीपहरूप सेनाने हणीने इन्द्रियोने प्रतिकूल उपसर्गोनो पराजय कर. तने धर्ममा अविघ्न थाओं-ए प्रमाणे तेओ अभिनंदन आपे छे अने स्तुति करे छे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Avadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्तिः Iku तर ण से जमाली खत्तियकुमारे नयणमालासहस्सेहिं पिच्छिजमाणे 2 एवं जहा उववाहए कूणिओ जाव णिग्गच्छति निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेहए तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागकिछत्ता४९ शतके छत्तादीए तित्थगरातिसरा पासइ पासित्ता पुरिसहस्सवाहिणी सीयं ठवेइ 2 पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ८ उपेशा पचोकहइतएणं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो पुरओ काउंजेणेव ममणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ // 86 // तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वदासी-एवं खलु भंते! जमाली स्वत्तियकुमारे अम्हं एगे पुत्ते इह कते जाव किमंग पुण पासणयाए ? से जहानामए-उप्पलेइ वा पउमेइ वा जाव पउमसहस्सपत्तेइ वा पंके जाए जले संवुड्ढे णोवलिप्पति पंकरएणं णोवलिप्पड़ जलरएणं एवामेव जमालीवि स्वत्तियकुमारे कामेहिं जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोधलिप्पह कामरएणं णोवलिप्पइ भोगरएणं णोवलिप्पइ मित्तणाई. नियगसयणसंबंधिपरिजणेणं, एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउब्बिग्गे भीए जम्मणमरणाण देवाणुप्पियाण अं|तिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पब्वइए, तं एयन्न देवाणुप्पियाणं अम्हे भिक्ख दलयामो, पडिच्छंतु णं| देवाणुप्पिया! सीसभिक्खं, त्यारबाद ते जमालि क्षत्रियकुमार हजागे नेत्रोनी मालाओथी वारंवार जोबातो-इत्यादि औपपातिकसूत्रमांकूणिकना प्रसंगे का | के तेम अहिं जाणवू यावत् ते [जमालि] नीकळे 2. नीकळीने ज्या ब्राह्मणकुंडग्राम नामे नगर छे, ज्यां बहुशाल नामे चैत्य छे का त्यां आवे छे. त्या आवीने तीर्थकरना छत्रादिक अतिशयोने जुए छे, जोइने हजार पुरुपोथी वहन कराती ते शिविकाने उभी राखे / KARANASACARSAC For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बाल्या- प्रातिः 465 // उभी राखीने ते शिविका थकी नीचे उतरे छे. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमारने आगळ करी तेना माता-पिता ज्यां श्रमण भग वान महावीर छे त्यां आवे छे. त्यां आवीने श्रमण भगवंत महावीरने प्रण वार प्रदक्षिणा करी यावत् नमी ते ओ आ प्रमाणे बोल्या शतके के-हे भगवान् / ए प्रमाणे खरेखर आ जमालि क्षत्रियकुमार अमारे एक इष्ट अने प्रिय पुत्र के, जेर्नु नाम श्रवण पण दुर्लभ छे, उषा दा तो दर्शन दुर्लभ होय तेमां शुं कहे, ? जेम कोइ एक कमळ, पद्म, यावत् सहस्रपत्र कादवमा उत्पन्न थाय, अने पाणीमां वधे, तोपण[XI8n ते पंकनी रजथी तेम जलना कणथी लेपातुं नथी; ए प्रमाणे आ जमालि क्षत्रियकुमार पण कामथकी उत्पन्न थयो के अने भोगोथी वृद्धि पाम्यो छे, तो पण ते कामरजथी अने भोगरजथी लेपातो नथी, तेमज मित्र, ज्ञाति, पोताना स्वजन, संबन्धी अने परिजनथी पण लेपातो नथी. हे देवानुप्रिय ! आ जमालि क्षत्रियकुमार संसारना भयथी उद्विग्न थयो, जन्म मरणथी भयभीत थयो छ, अने देवानुप्रिय पवा आपनी पासे मुंड-दीक्षित थइने अगारवासथी अनगारिकपणाने स्वीकारवाने इच्छे . तो देवानुमियने अमे आ शिष्यरूपी मिक्षा आपीए छीए. तो हे देवानुप्रिय ! आप आ शिष्यरूप भिक्षानो स्वीकार करों'. तए णं समं० 3 तं नमालिं खत्तियकुमार एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिया। मा पडिबंध / तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हद्दतुढे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवक्कमइ 2 सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयह, ततेणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्समाया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारं पहिच्छति पडिच्छित्ता हारवारिजाव विणिम्मुयमाणा वि० 2 जमालि खत्तियकुमारं एवं वयासी-घडियवं जाया! जइयव्वं जाया! 2-442 For Private and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie उदेशा IKEN परिकमियब्वं जाया! अस्सि च णं अट्ठे णो पमायेतब्वंतिकटु जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मापियरो समण व्याख्या- दाभगवं महावीरं वंदहणमंसह वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसि पडिगया / तए णं से ज मालिखत्तियए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति 2 जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह तेणेव उवाग4६॥ |च्छित्ता एवं जहा उसभवत्तो तहेव पब्वहओ नवरं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव सव्वं सामाइयमाझ्याई | एकारस अंगाई अहिज्जह सामाइयमा० अहिजेत्ता बहहिं चउथहमजावमासद्धमासखमणेहिं विचित्तोहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरह // (सूत्रं 385) // त्यारे श्रमण भगवंत महावीरे ते जमालि क्षत्रियकुमारने आ प्रमाणे कडु के-'हे देवानुप्रिय ! जेम सुख उपजे तेम करो, प्रतिवन्ध न करों'. ज्यारे श्रमण भगवान महावीरे जमालि क्षत्रियकुमारने ए प्रमाणे कह्युस्यारे ते हर्षित धइ, तुष्ट थइ, यावत् श्रमण भगलावंत महावीरने प्रण वार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करी, उत्तरपूर्व दिशा तरफ जाय हे, जइने पोतानी मेळे आभरण, माला अने अलंकार उतारे छे. पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हंसना चिहवाळा पटशाटकथी आभरण, माला अने अलंकारोने ग्रहण करे के. ग्रहण करीने हार अने पाणीनी धारा जेवा आंसु पाडती 2 तेथे पोताना पुत्र जमालिन आ प्रमाणे कधुके-'हे पुत्र ! संयमने विषे प्रयत्न करजे, हे पुत्र ! यत्न करजे, हे पुत्र! पराक्रम करजे, संयम पाळवामां प्रमाद न करीश. ए प्रमाणे (कहीने) ते जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता श्रमण भगवंत महावीरने वांदे , नमे थे; बांदी अने नमीने जे दिशाथी तेओ आव्या हता ते दिशाए | पाछा गया. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमार पोतानी मेळे पंच मुष्टिक लोच करे छे, करीने ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्यां RRRRRRRRRRR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande 9 शतक - उमेशा 18674 867 // आवे छे, आवीने ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे तेणे प्रत्रज्या लीधी. परन्तु जमालि क्षत्रियकुमारे पांचसो पुरुषो साथे मत्रज्या लीधी-इत्यादि सर्व जाणवू. यावत् ते जमालि अनगार सामायिकादि अगीआर अंगोने भणे छे. भणीने घणा चतुर्थ भक्त, छट्ट, छडम, अने यावत् मासार्ध तथा मासक्षमणरूप विचित्र तपकर्मचडे आत्माने भावित करता विहरे छे. / / 385 // तएणं से जमाली अणगारे अन्नया कयाई जेणेव समण भगवं महावीरे तेणेव उवागाछह तेणेव उवागच्छ इत्ता समर्ण भगवं महावीरं वंदति नमसति वंदित्ता 2 एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुझेहिं अन्भणुनाए ममाणे पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं बहियो जणवयविहारं विहरित्तए, ताणं से समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमझु णो आढाइ णो परिजाणाह तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अणगारे ममण भगवं महावीरं दोचंपि तचंपि एवं बयासी-इच्छामिण भंते ! तुज्झहिं अन्भणुन्नाए समाणे पंचहिं अणगारसएहिं सद्धि जाब विहरित्तए, ताण समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोचंपि तचंपि एयम8 णो आढाइ जाव तुसिणीए मंचिट्ठद / तए णं से जमाली अणगारे समण भगवं महावीरं वंदह णमंसद बंदित्ता णमंसित्ता समणस्म भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेहयाओ पडिनिक्वमह पडिनिक्खमित्ता पंचहि अणगारसहि सद्धिं बहिया जणवयविहारं बिहरह, त्यार वाद अन्य कोई दिवसे ते जमालि अनगार ज्यां श्रमण भगवान महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे. बांदी अने नमीने तेणे आ प्रमाणे कयु के-'हे भगवन् ! तमारी अनुमतिथी हुं पांचसे अनगारनी साथे| * For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie व्याख्या- // 46 // HTRA बहारना देशोमा विहार करवाने इच्छु छु.' त्यारे श्रमण मगवान् महावीरे जमालि अनगारनी आ वातनो आदर न कयों, स्वीकार | न कों, परन्तु मौन रखा. त्यार पछी ते जमालि अनगारे श्रमण भगवंत महावीरने बीजी वार, बीजी बार पण एप्रमाणे कछु के-है।०९बके | भगवान् ! तमारी अनुमतिथी हुं पांचसो साधु साथे यावत् विहार करवाने इच्छु छु.' पछी श्रमण भगवान् महावीरे जमालि अन उशा गारनी आवातनो बीजी वार, श्रीजी चार पण आदर न कर्यो, यावत् मौन रह्या. त्यारबाद जमालि अनगार श्रमण भगवंत महावीरने III
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir & काले अने ते समये चंपा नामे नगरी हती, वर्णन. पूर्णभद्र चैत्य हतुं. वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. हवे अन्य कोइ दिवसे ते ब्याख्या- जमालि अनगार पांचसो साधुओना परिवारनी साये अनुक्रमे विहार करता, एक गामथी बीजे गाम जता ज्या श्रावस्ती नामे नगरी||९ शतके 1 2, अने ज्या कोष्ठक चैत्य छ त्यां आवे छे. त्या आवीने यथायोग्य अवग्रहने ग्रहण करीने संयम अने तपवहे आत्माने भावित उद्देशा N869 // 4aa करवा करता विहरे छे. त्यारवाद अन्य कोई दिवसे श्रमण भगवान महावीर अनुक्रमे विचरता यावत् मुखपूर्वक विहार करता ज्यां चंपा- & 869 // | नगरी छे, अने ज्यां पूर्णभद्र चैत्य छे त्यां आवे छे आवीने यथायोग्य अवग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपबडे आत्माने भावित | करता विचरे छे. तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्म तेहिं अरसेहि य विरसेहि य अंतेहि य पंतेहि य लूहेहि | य तुच्छेहि य कालाइतेहि य पमाणाइतेहि य सीतएहि य पाणभोयणेहिं अन्नया कयावि सरीरगंसि विउले रोगातके पाउम्भूए उज्जले विउले पगाढे ककसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे दु रहियासे पित्तज्जरपरिगतसरीरे दाहवकंतिए यावि विहरइ / तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे णिग्गंथे सहावेइ सहावेत्ता एवं क्यासी-तुझे ण देवाणुप्पिया। मम सेजामथारगं संधरेह, तए णं ते समणा णिग्गंधा जमालिस्स अणगारस्स एयमटुं विणएणं पडिसुणेति पडिसुणेत्ताजमालिस्स अणगारस्स सेज्जासंथारगं संथरेंति, तए णं से जमाली अणगारे बलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोचंपि समणे निग्गंथे सहावेह 3 त्ता दोचंपि एवं | वयासी-ममन्नं देवाणुप्यिासेिनासंथारए किं कडेकजही,एवं वुत्ते समाणे समणा निग्गंथा बिति-भो सामी! कीरह, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्या ठा शसके उदेश 1con 870 // हवे अन्य कोई दिवसे ते जमालि अनगारने रसरहित, विरस, अन्त, प्रान्त, रुक्ष (लुखा) तुच्छ, कालातिक्रांस, (भुख तरसनो | काल बीती गया पछी) प्रमाणातिक्रांत (प्रमाणथी वधारे के ओछा) शीत पान-भोजनथी शरीरमा मोटो व्याधि पेदा थयो, ते व्याधि अत्यन्त दाह करनार, विपुल, सख्त, कर्कश, कटुक, चंड, (भयंकर) दुःखरूप, कष्टसाध्य, तीव्र अने असह्य हतो, तेनुं शरीर पित्तज्वरथी व्यप्त होवाथी ते दाहयुक्त हतो. हवे ते जमालि अनगार वेदनाथी पीडित थयेलो पोताना श्रमण निग्रेथोने बोलावे हे. बोलावीने तेथे ए प्रमाणे का के- देवानुप्रियो / तमे मारे मुवा माटे संस्तारक (शय्या) पाथरो'. त्यारबाद ते श्रमण निर्ग्रन्थो जमालि अनगारनी आ वातनो विनयपूर्वक स्वीकार करे छे, स्वीकारीने जमालि अनगारने मुवा माटे संस्तारक पाथरे छे. ज्यारे ते जमालि अनगार अत्यंत वेदनाथी व्याकुल थयो त्यारे फरीथी श्रमण निग्रंथोने बोलाव्या अने बोलावीने फरी रणे आ प्रमाणे कछु के-'हे देवानुप्रियो ! मारे माटे संस्तारक कयों छे के कराय छ ?' जए ते समणा निग्गंथा जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो स्वलु देवाणुप्पियाण सेज्जासंधारण माकडे कज्जति तए ण तस्स जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाय समुप्पज्जित्था-जन्नं संमणे भगवं महाबीरे एवं आइक्वइ जाब एवं परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए उदीरिजमाणे उदीरिए जाव निजरिजमाणे णिजिन्ने त ण मिच्छा, इमं च पञ्चश्वमेव दीमइ सेजासंथारए कजमाणे अकडे संथरिज|माणे असंथिरए, जम्हा णं सेजासंधारण कन्जमाणे अकडे संघरिजमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणेवि अचलिए जाव 4. निजरिजमाणेवि अणिजिन्ने, एवं संपेहेइ एवं संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेह समणे निग्गंथे सहावेत्ता एवं ॐ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande 9 शतके उदेशा // 8717 वयासी-जनं देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खद जाव परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए तं चेव पाल्या- सव्वं जाव णिजरिजमाणे अणिजिन्ने / तए णं जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेप्राणस्स प्राप्ति अस्धेगइया समणा निग्गंथा एयम8 सद्दहं ति पत्तियति रोयति अत्थेगहया समणा निग्गंधा एयमर्दु णो सद्दहति Mo71 // हि, तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमटुं सद्दहति 3 ते णं जमालिं चेव अणगारं उब | संपज्जित्ताणं विहरंति, तत्थ णं जे ते समणा णिग्गंधा जमालिस्स अणगारस्स एयमझे णो सद्दति णो पत्तियंति ४ाणो रोयंति ते गं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओकोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति 2 पुब्याणुपुर्दिव चरमाणे गामाणुगाम दूह. जेणेव चपानयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद 2 त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति २त्ता बंदह णमंसद२ समर्ण भगवं महावीरं उपसंपज्जित्ता णं विहरति / / (सूत्रं 386) // / त्यार पछी ते श्रमण निर्ग्रन्थोए जमालि अनगारने एम कहु के-'देवानुप्रियने पाटे शय्यासंस्तारक को नथी, पण कराय छे'. | त्यार पछी ते जमालि अनगारने आ आवा प्रकारनो संकल्प उत्पन्न भयो के-"श्रमण भगवंत महावीर जे ए प्रमाणे कडे छे, यावत् प्ररूपे छे के, चालतुं होय ते चाल्यू कद्देवाय, उदीरात होय ते उदीरायुं कहेवाय, यावत् निर्जरातुं होय ते निर्जराघु कहेवाय, ते मिथ्या छे. कारण के आ प्रत्यक्ष देखाय छे के, शय्या संस्तारक करातो होय त्या सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्या सुधी ते पथरायो नथी जे कारणथी आ शय्या-संस्तारक करातो होय त्यां सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्यां सुधी ते पथरायेलो नथी; ते For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति 872 // कारणथी चालतुं होय त्यां सुधी ते चलित नथी, पण अचलित छ; यावत् निर्जरातुं होय त्यां मुधी ते निर्जरायु नथी पण अनिर्जरित छ" ए प्रमाणे विचार करे छे. विचार करीने ते जमालि अनगार श्रमण निग्रंथोने बोलावे छे, बोलावीने तेणे आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवंत महावीर जे आ प्रमाणे कई छे, यावत् प्ररूपे छे के-खरेखर ए प्रमाणे "चालतुं ने चलित कहेवाय" उरेशा इत्यादि, पूर्ववत् सर्व कहे, यावत निर्जरातुं होय ते निजेरित नथी, पण अनिर्जरित छ.' ज्यारे जमालि अनगार ए प्रमाणे कहेता // 872 // हता, यावत प्ररूपणा करता हता, त्यारे केटलाएक श्रमण निर्ग्रन्थो ए वातने श्रद्धापूर्वक मानता हता, तेनी प्रतीति करता हता, रुचि करता हता; अने केटलाक श्रमण निग्रन्थो ए बात मानता न होता, तथा तेनी प्रतीति अने रुचि करता न होता. तेमां जे श्रमण | निग्रंथो ते जमालि अनगारना आ मन्तव्यनी श्रद्धा करता हता. प्रतीति करता हता अने रुचि करता हता तेओ ते जमालि अनगा| रने आश्रयी विहार करे छे. अने जे श्रमण निग्रंथो जमालि अनगारना ए मन्तव्यमां श्रद्धा करता न होता, प्रतीति करता न होता अने रुचि करता न होता तेओ जमालि अनगारनी पासेथी कोष्ठक चैत्य थकी बहार नीकळे छ, अने बहार नीकळीने अनुक्रमे विचरता, एक गामथी बीजे गाम विहार करता ज्यां चंपा नगरी छे, ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण 12 भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करे छे, करीने बांदे छ नमे छे, अने वांदी-नमीने श्रमण भगवंत महावीरनी निश्राए विहार करे छे. // 386 // तए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयावि ताओ रोगायंकाओ विष्पमुक्के हढे तुढे जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्वमह२ पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेच C4 % 4% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 9 शतके उरेशान // 6 // com काफ-5 चंपा नयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ२ समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं बयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं वहवे अंतेवासी समणा निग्गंधा छउमत्था भवेत्ता छउमस्थावक्कमणणं अवकंता णो खस्लु अहंतहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावकमणणं अवकमिए, अहन्नं उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलि अवकमणेणं अवकमिए, सए णं भगवं गोयमे जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो खलु जमाली ! केवलिस्स णाणे वा दसण वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवरिजइ वा णिवारिजह वा, जइ णं तुम जमाली! उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकते तो इमाइं दो वागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली!, सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली?, तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्त समाणे संकिए कंखिए जाब कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिति पमोकवमाइक्खित्तए तुसिणीए सचिट्ठइ, | त्यार पछी कोइ एक दिवसे ते जमालि अनगार पूर्वोक्त रोगना दुःखथी विमुक्त थयो, हृष्ट, रोगरहित अने बलवान् शरीरवाळो थियो. अने श्रावस्ती नगरीथी अने कोष्ठक चैत्यथी बहार नीकळी अनुक्रमे विचरता ग्रामानुग्राम विहार करता ज्यां चंपानगरी छे, ज्यां पूर्णभद्र चैत्य छ, अने ज्या श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी अत्यन्त दूर नहि तेम अत्यन्त पासे नहि, तेम उभा रहीने श्रमण भगवंत महावीरने आ प्रमाणे कयु-'जेम देवानुप्रियना घणा शिष्यो श्रमण निग्रन्थो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir उद्देशा // 874 // छमस्थ होइने छमस्थ विहारथी विहरी रह्या छ: पण हुं तेम छमस्थ विहारथी विहरतो नथी. हुं तो उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शन माख्या-4 धारण करनारो अर्हन्, जिन अने केवली थइने केवलिविहारथी विचरु छु. त्यार पछी भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे प्रचाप्तिः | कह्यु के-'हे जमालि! खरेखर ए प्रमाणे केवलिनुं ज्ञान के दर्शन पर्वतथी स्तंभथी के स्तूपथी अवृत थतुं नथी, तेम निवारित थतुं | 874 // नथी, हे जमालि! जो तुं उत्पन्न थयेला ज्ञान, दर्शनने धारण करनार अर्हन्, जिन अने केवली थइने केबलिविहारथी विचरे छे तो आ वे प्रश्नोनो उत्तर आप. [प्र०] हे जमालि!१ लोक शाश्वत ले के अशाश्वत छे ? हे जमालि! 2 जीव शाश्वत छे के अशाश्वत छे ? ज्यारे भगवंत गौतमे ते जमालि अनगारने पूर्व प्रमाणे पूछयु त्यारे ते शंकित अने कांक्षित थयो, यावत् कलुषितपरिणामवाळो थयो. ज्यारे ते (जमालि) भगवंत गौतमना प्रश्नोनो काइ पण उत्तर आपवा समर्थ न थयो त्यारे तेणे मौन धारण कयु. जमालीति समणे भगवं महावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अस्थि णं जमाली! मम बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था जे णं एयं वागरणं वागरित्तए जहा ण अहं नो चेवण एयप्पगारं भासं भासित्तए जहा णं तुम, सासए लोए जमाली! जन्न कयावि णासी णो कयावि ण भवति ण कदावि ण भविस्सइ भुवि च भवइय भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अब्बए अवढिए णिच्चे, असासए लोए जमालि ! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्मप्पिणी भवह उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ,सासए जीवे जमालि ! जे न कयाइ णासि जाव णिच्चे असासए जीवे जमाली! जन्नं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ मणुस्से भवित्ता देवे भवइ, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir पछी श्रमण भगवान महावीरे 'हे जमालि!' गम कहीने ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे कयु के-'हे जमालि ! मारे घणा* म्याख्या- श्रमण निग्रंथ शिष्यो छमस्य छे, तेओ मारी पेठे आ प्रश्नोनो उत्तर आपवा समर्थ छे, पण जेम तुं कहे छे तेम 'हुं सर्वज्ञ अने जिन [४ाएं एवी भाषा तेओ बोलता नथी. हे जमालि! लोक शाश्वत हे, कारण के 'लोक कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि लोक नथी' | उद्देवा // 875 // एम नथी, अने 'कदापि लोक नहि हशे' पम पण नथी. परन्तु लोक हतो, छे अने हशे. ते ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अध्यय, 11875 // अवस्थित अने नित्य हे. वळी हे जमालि ! लोक अशाश्वत पण हे, कारण के अवसर्पिणी थइने उत्सर्पिणी थाय छे. उत्सर्पिणी थइने अवसर्पिणी थाय छे. हे जमालि ! जीव शाश्वत छे, कारण के ते 'कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि नथीं' एम नथी अने, 'कदापि नहि हशे' एम पण नथी, जीव यावद् नित्य के. वळी हे जमालि ! जीव अशाश्वत पण छे, कारण के नैरयिक थइने तियंचयोनिक थाय छे, तियंचयोनिक थइने मनुष्य थाय छे, अने मनुष्य थइने देव थाय छे. तए णं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओमहावीरस्स एवमाइखमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयम१ णो सद्दहह णो पत्तिएइ णो रोएइ एयम४ असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोचपि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवकमइ दोचंपि आयाए अवक्कमित्ता बहूहि असम्भावुन्भावणाहिं मिच्छत्ताभि|णिवेसेहि य अप्पाणंच परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणे बुप्पाएमाणे बहूयाई वासाइं सामनपरियगो पाउणइ 2 | अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेइ अ०२ तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति 2 तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालमांसे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितिएसु देवकिब्धिसिएसु देवेसुदेवकिब्विसियत्ताए। CS4%A8+ 5 Far Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रवासिः 876 // उद्देशा 1811001 उववन्ने / (सूत्र० 387) / / त्यारपछी ते जमालि अनगार आ प्रमाणे कहेता, यावत् ए प्रकारे प्ररूपणा करता श्रमण भगवान महावीरनी आ वातनी श्रद्धा करतो नथी, प्रतीति करतो ना, रुचि करतो नथी, अने आ बाबतनी अश्रद्धा करतो, अप्रतीति करतो अने अरुचि करतो पोते बीजी वार पण श्रमण भगवंत महावीर पासेथी नीकळे छे, नीकळीने घणा असद्-असत्य भावने प्रकट करवा वडे अने मिथ्यात्वना अभिनिवेश बडे पोताने, परने तथा बनेने भ्रान्त करतो अने मिथ्याज्ञानवाला करतो घणा वरस सुधी श्रमण पर्यायने पाळे छ, पाळीने अर्धमासिकसंलेखनावडे आत्माने-शरीरने कश करीने अनशनवडे त्रीश भक्तोने पूरा करी ते पापस्थानकने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय मरण समये काल करीने लान्तक देवलोकने विषे तेर सागरोपमनीस्थितिवाळा किल्बिषिक देवोमा किल्बिषिक देवपणे उत्पन्न थयो. / / 387 // तए णं से भगवं गोयमे जमालिं अणमारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ते 2 समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति 2 एवं बयासी-एवं स्खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कृसिस्से जमालिणाम अणगारे से णं भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववन्ने ?, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं बयासी-एवं खलु गोयम! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नाम से णं तदा मम एवं आइक्खमाणस्स 4 एयमटुं णो सद्दहह 3 एयमढें असदहमाणे 3 दोचपि ममं अंतियाओ आयाए अवकमइ 2 बहुहिं असम्भावुभावणाहिं तं चेय जाव देवकिदिवसियत्ताए उववन्ने / (सूत्रं 388) // For Private and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie बाख्या प्राप्ति पछी ते जमालि अनगारने कालगत थयेला जाणीने भगवान् गौतम ज्यां श्रमण भगवान् महावीर ने त्यां आवे छे. अवीने KI श्रमण भगवान् महावीरने वांदे छे, नमे छे, बांदी-नमीने ते आ प्रमाणे बोल्या के-'हे भगवन् ! ए प्रमाणे देवानुप्रिय एवा आपनो 9 शतके अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामे अनगार हतो, ते काळ समये काळ करीने क्यां गयो-क्यां उत्पन थयो [उ०] 'हे गौतमादि !' उद्देशा ए प्रमाणे कहीने श्रमण भगवंत महावीरे भगवान् गौतमने आ प्रमाणे का के-'हे गौतम ! मारो अंतेवासी कुशिष्य जमालि नामे // 8770 अनगार हतो ते ज्यारे हुए प्रमाणे कहेतो हतो, यावत् प्ररूपणा करतो हतो त्यारे ते आ बाबतनी श्रद्धा करतो नहोतो, प्रतीति के रुचि करतो नहोतो. आ बाबतनी श्रद्धा, प्रतीति 6. रुचि न करतो फरीथी मारी पासेथी नीकळीने घणा असद्भूत-मिथ्या भावोने प्रकट करवावडे-इत्यादि यावत् किल्विपिकदेवपणे उत्पन्न थयो छे. // 388 // कतिविहा ण भंते ! देवकिब्विसिया पन्नत्ता?, गोयमा तिविहा देवकिश्चिमिया पण्णत्ता, तंजहा-तिपलिओवमद्विझ्या तिसागरोवमहिइया तेरससागरोवमट्टिइया, कहिं णं भंते ! तिपलिओवमहितीया देवकिब्धिसिया परिवसंति?, गोयमा! उम्पि जोइसियाण हिहिँ सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिया देवकिविसिया परिवसंति / कहिं णं भंते ! निसागरोवमट्टिया देवकिब्बिसिया परिवसंति, गोयमा ! उप्पि सोह. ममीसाणाणं कप्पाणं हिटिं सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु पस्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिब्विसिया परिवसति, कहिं णं भंते ! तेरससागरोवमहिइया देवकिञ्चिसिया परिवसनि?, गोयमा ! उरिप बंभलोगस्स कप्पस्म हिडिं | लंतए कप्पे एत्थ णं तेरससागरोबमहिइया देवकिदिवसिया देवा परिवसंति / देवकिदिवसिया णं भंते ! केसुरा 4% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कस 9 शखके उदेशाव IICOCH | कम्मादाणेसु देवकिदिवसियत्ताए उववत्तारो भवंति', गोयमा!जे इमे जीवा आयरियपडिणीया उवज्झायपडि णीया कुलपडिणीया गणपडिणीया संघपहिणीया आयरियउवमायाणं अयसकरा अवनकरा अकित्तिकरा वहि व्याख्या असम्भाबुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं च 3 बुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा वतई वासाई सामन्नपप्रजाप्तिः रियागं पाउणंति पा० तस्म ठाणस्म अणालोइयपडिकते कालमासे कालं किच्चा अन्नपरेसु देवकिब्बिसिएसु 1878 // | देवकिन्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति, तंजहा-तिपलिओवमहितीएसु वा तिसागरोबमाहितीएसु वा तेरससादागरोवमट्टितीएसु वा / है [प्र.] हे भगवन् ! किल्विषिक देवो केटला प्रकारना कहा ? [उ०] हे गौतम ! त्रण प्रकारना किल्लिषिक देवो कह्या छे. माते आ प्रमाणे-त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा, ऋण सागरोपमनी स्थितिवाळा अने तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा. [प्र.] हे भगवन् ! छत्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा किल्लिषिक देवो कये ठेकाणे रहे ! [उ०] हे गौतम ! ज्योतिष्कदेवोनी उपर अने ईशानदेवलोकनी | नीचे त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा किल्बिषिक देवो रहे डे. [प्र.] हे भगवन् !त्रण सागरोपमनी स्थितिवाळा किल्बिषिक देवो क्या रहे छे? [उ.] हे गौतम! सौधर्म अने ईशानदेवलोकनी उपर तथा सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवलोकनी नीचे त्रण मागरोपमनी स्थि| तिवाळा किल्बिषिक देवो रहे छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा किल्लिषिक देवो क्या रहे छ?[उ०] हे गौतम! ब्रह्मणलोकनी उपर अने लांतक कल्पनी नीचे तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा किल्लिपिक देवो रहे छे. [प्र०] भगवन् ! किल्विषिक देवो क्या कर्मना निमित्त किल्बिषिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे ? [30] हे गौतम ! जे जीवो आचार्यना प्रत्यनीक (द्वेषी), उपाध्यायना For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavw Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir A प्राप्ति Mess RTHACK प्रत्यनीक, कुलप्रत्यनीक, गणप्रत्यनीक अने संघना प्रत्यनीक होय, तथा आचार्य अने उपाध्यायना अयश करनारा, अवर्णवाद कर || नारा, अने अकीर्ति करनारा होय, तथा घणा असत्य अर्थने प्रगट करवाथी अने मिथ्या कदाग्रहथी पोताने, परने अने बनेने भ्रान्त 9 शतके करता, दुर्बोध करता, घणा वरस सुधी साधुपणाने पाळे, अने पाळीने ते अकार्य स्थाननु आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या सिवाय | उद्देश मरणसमये काल करीने कोइ पण किल्विपिक देवोमा किल्बिषिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे.ते आ प्रमाणे-त्रण पल्योपमनी स्थिति- // 879 // वाळामां, के तेर सागरोपमनी स्थितिवाळामा. (उत्पत्र थाय.) देवकिब्विसियाण भंते! साओ देवलोगाओ आउक्खरणं भवस्वएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति ?, गोयमा। जाव चत्तारि पंच नेरइयतिरिक्वजोणियमणुस्मदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति बुज्झंति जाव अंतं करेंति, अस्थेगइया अणादीय अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियति / / जमाली ण भंते ! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरमजीवी विरसजीवी जाच तुच्छजीची उवसंतजीची पसंतजीवी विवित्तजीवी ?, हंता गोयमा! जमाली ण अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी / जति ण भंत! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाच विवित्तजीवी कम्हा ण भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोदमट्ठितिएसु देवकिब्विसिएम देवेसु देवकिग्विसियत्ताए उववन्ने ?, गोयमा! जमाली णं अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाणं अयसकारण जाव वुप्पाएमाणे जाव बहूई पासाई सामनपरि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsun yarmandie व्याख्या उपेशा 1601 16000 यागं पाउणित्ता अद्धमासियाए सलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति तीसं०२ तस्स ठाणस्स अणालोइय-17 पडिकंते कालमासे कालं किचा लंतए कप्पे जाव उववन्ने // (सूत्र० 389) // [प्र०] हे भगवन् ! ते किल्बिषिक देवो आयुष्यनो क्षय थवार्थी, भवनो क्षय थवाथी, स्थितिनो क्षय थवाथी, तरत ते देवलोकथी | च्यवीने क्या जाय-क्यां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! ते किल्विषिक देवो नारक, तिर्यच, मनुष्य अने देवना चार के पांच भवो | करी, एटलो संसार भ्रमण करीने त्यारपछी सिद्ध थाय, बुद्ध थाय अने यावद् दुःखोनो नाश करे. अने केटलाक किल्विपिक देवो तो अनादि, अनंत अने दीर्घमार्गवाला चारगति संसाराटवीमां भम्या करे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं जमालि नामे अनगार रसरहित आहार करतो, विरसाहार करतो, अंताहार करतो, प्रांतहार करतो, रूक्षाहार करतो, तुच्छाहार करतो, अरसजीवी, विरसजीवी, यावत् तुच्छजीवी, उपशांतजीवनवाळो, प्रशांतजीवनवाळो, पवित्र अने एकान्त जीवनवाळो हतो? [उ०] हे गौतम ! हा, जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावद् पवित्रजीवनवाळो हतो. [प्र०] हे भगवन् ! जो जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी अने यावद् पवित्र जीवनवाळो हतो तो हे भगवन् ! ते जमालि अनगार मरणसमये काल करीने लांतक देवलोकमां तेर सामरोपमनी स्थितिवाळा किल्बिषिक देवोमा किल्विपिक देवपणे केम उत्पन्न थयो ? [30] हे गौतम ! ते जमालि अनगार आचार्यनो अने उपाध्यायनो प्रत्यनीक हतो, तथा आचार्य अने उपाध्यायनो अयश करनार अवर्णवाद करनार हतो यावद ते (मिथ्या अभिनिवेश बडे पोताने, परने अने उभयने भ्रान्त करतो) दुर्बोध करतो, यावत् घणा वरस सुधी श्रमणपणाने पाळीने अर्धमासिक संलेखना बडे शरीरने कृश करीने त्रीश भक्तोने अनशन बडे पूरा करीने ते स्थानकने आलोच्या के प्रतिक्रम्या सिवाय काळसमये काळ करीने ॐॐ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir प्रातिः 11881 // लांतककल्पमा यावद् उत्पन्न थयो. // 389 // जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउखएणं जाव कहिं उववन्जिहिइ ?, गोयमा! चत्तारि पंच 9 शतके |तिरिक्खजोणिगमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति जाव अंतं काहेति / उमेश सेवं भंते सेवं भंते ! त्ति // (सू० 390) // जमाली समत्तो॥९॥ 33 // / / 881 // है। [प्र०] हे भगवान् ! ते जमालि नामे देव देवपणाथी, देवलोकथी, पोताना आयुषनो क्षय थया चाद यावत् क्या उत्पन्न थशे ? काउ.] हे गौतम ! तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, अने देवना चार पांच भवो करी-एटलो संसार भमी-त्यार पछी ते सिद्ध थशे, यावत सर्वत्र दुःखोनो नाश करशे. हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमजले. (एम कही भगवंत गौतम ! यावत् विहरे छे.) // 390 // भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ९मा शतकमा ६ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. KAMANAKACHARACA उद्देशक 7 तेणं कालेणं तेणं समा रायगिहे जाव एवं वयासी-पुरिसे ण भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिस हणइ नो पुरिसं हणइ?, गोयमा ! पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणति, सेकेणद्वेणं भंते ! एवं बुच पुरिमपि हणइ नोपुरिसेवि हणह, गोयमा ! तस्स णं एवं-भवइ एवं खलु अहं एग पुरिसं हणामि, से गां एगं पुरिस हणमाणे अणेगाटू जीवा हणइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुचड़ पुरिमपि हणइ नोपुरिसेवि हणति / पुरिसे ण भंते ! आसं हणमाणे For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कि आम हणइ नोआसेवि हणड ?. गोयमा! आसंपि हणइ नोआसेवि हणइ, से केणटेणं अट्ठो तहेब, एवं 18| हत्यि सीहं वग्धं जाव चिल्ललगं। व्याख्या-1 I [प्र०] ते काले-ते समय गजगृह नगरमा (भगवान् गौतमे) यावत् ए प्रमाणे पुछयं के हे भगवन् ! कोइ पुरुष घात करतो P9 शसके प्रबप्तिः शुं पुरुषनोज घात करे के नोपुरुषनो घात करे। [उ०] हे गौतम ! पुरुषनो पण घात करे अने यावत् नोपुरुषोनो (पुरुष शिवाय |8|उद्देशा INEERIबीजा जीवोनो) पण घात करे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी को छो के-पुरुषनो घात करे अने यावत् नोपुरु- // 882 // पोनो पण घात करे ? [उ०] हे गौतम! ते घात करनारना मनमां तो एम के के 'हुँ एक पुरुषने हृणुं छु', पण ते एक पुरुषने हणतो बीजा अनेक जीवोने हणे डे; माटे ते हेतुथी हे गौतम! एम कहुं छु छ के ते पुरुषने पण हणे अने यावत् नोपुरुषोने पण हणे. हानिकहे भगवन ! अश्वने हणतो कोई पुरुष शु अश्वने हणे के नोअश्वोने (अश्व सिवाय वीजा जीवोने) पण हणे [30] हे गौतम ! ते अश्चने पण हणे अने नोअश्वोने पण हणे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुर्थी कहो छो? [उ०] हे गौतम ! उत्तर पूर्व वत् जाणवो. ए प्रमाणे हस्ती, सिंह, वाघ तथा यावत् चिल्ललक संबन्धे पण जाण. ए बधानो एक सरखो पाठ जाणवो. 4aa पुरिसे णं भंते! अन्नयरं तमपाण हणमाणे किं अन्नयरं तसपाणं हणड नोअन्नयरे तसपाणे हणह?, गोयमा! अन्नयरपि तसपाण हणइ नोअन्नयरेवि तसे पाणे हणह, से केणतुणं भंते एवं बुबइ अन्नयरंपि तम पाणं नोअन्न-2 यरेचि तसे पाणे हणइ ?, गोयमा! तस्स ण एवं भवह एवं खल अहंएगं अन्नयरं तसं पाणं हणामि, से णं एग अन्नयरं तसं पाण हणमाणे अणेगे जीवे हणह, से तेणद्वेणं गोयमा त चेव एए सब्वेवि एकगमा / पुरिसे णं भते! | इसिं हणमाणे किं इसि हणइ नोइसिं हणइ ?, गोयमा ! इसिपि हणह नोइसिपि हणइ, से केण?णं भंते ! एवं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पाख्या 9 शतक उपक्षा / / 883 / / प्राप्ति बुच्चह जाब नोइसिपि हणइ ?, गोयमा! तस्म णं एवं भवइ एवं खलु अहं एग इसिं हणामि, से णं एग इसि | हणमाणे अणते जीवे हणइ से तेण?ण निरखेवओ। पुरिसे ण भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसवेरेणं पुढे नो पुरि- सवेरेणं पुढे !, गोयमा ! नियमा ताव पुरिसरेण पुढे अहवा पुरिसवे रेण य पोपुरिसवेरेण य पुढे अहवा पुरिम- वेरेण य नोपुरिसवेरेहि य पुढे, एवं आसं एवं जाव चिल्ललगं जाव अहवा चिल्ललगबेरेण य णोचिल्ललगवेरेहि य पुढे, पुरिसे णं भंते ! इसिं हणमाणे किं इसिवेरेणं पुढे नोइसिवे रेण पुढे ?, गोयमा! नियमा इसिवरेण य नोइसिवेरेहि य पुढे // (सूत्रं.३९१)॥ [प्र.] हे भगवन् ! कोई पुरुष कोइ एक त्रस जीवने हणतो शु ते त्रस जीवने हणे के ते शिवाय वीजा त्रस जीवोने पण हणे? [उ०] हे गौतम ! ते कोई एक त्रस जीवने पण हणे, अने ते शिवाय बीजा त्रस जीवोने पण हणे. [उ.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप या हेतुथी कहो छो के 'ते कोई एक त्रस जीवने हणे अने ते शिवाय वीजा बस जीवने पण हणे 1 [उ०] हे गौतम! ते हणनारना मनमा ए प्रमाणे होय के के हुँकोइ एक त्रस जीवने हणुं हुं, पण ते कोई एक त्रस जीवने हणतो ते शिवाय बीजा अनेक त्रस जीवोने हणे छे. माटे हे गौतम ! इत्यादि पूर्ववत् जाणg. ए बधाना एक सरखा पाठ कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! ऋषिने हणतो कोई पुरुष शु ऋषिने हणे के ऋषि शिवाय बीजाने पण हणे? [उ०] हे गौतम ! ऋषिने हणे अने ऋषि शिवाय बीजाने पण हणे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के यावद् ऋषि शिवाय बीजाने पण हणे? [उ०] हे गौतम! ते हणनारना मनमा एम दोय के के हुं एक ऋषिने हणुं छु", पण ते एक ऋषिने हणतो अनंत जीवोने हणे हे ते हेतुथी एम कहेवाय के NAGARSONAMEk For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ध्याख्या 11884|| CAKACAN इत्यादि उपसंहार जाणवो. [40] हे भगवन् ! कोई पुरुष बीजा पुरुषने हणतो शु पुरुषना वैरथी बन्धाय के नोपुरुषना (पुरुष शिवाय बीजा जीबोना) वैरथी बन्धाय ? [उ०] हे गौतम! ते अवश्य पुरुषना वैरथी बन्धाप, 1 अथवा पुरुषना वैरथी अने नोपुरुषना वैरथी | बन्धाय, 2 अथवा पुरुषना वैरथी अने नोपुरुषना बैरोधी बन्धाय. ए प्रमाणे अश्वसंबन्धे अने यावत् चिल्ललक संबन्धे पण जाणवू. ९खके | यावत् अथवा चिल्ललकना वैरथी अने नोचिल्ललकना बैरोथी बन्धाय. [प्र०] हे भगवन् ! ऋषिनो वध करनार पुरुष शुं ऋषिना | उद्देश |वन्थी बन्धाय के नोऋषिना वैरथी बन्धाय ? [उ.] हे गौतम ! ते अवश्य ऋषिना वैरथी अने नोऋपिना वैरोथी बन्धाय. // 391 / / || 11884 पुढविकाइया णं भंते ! पुढ विकायं चेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ?, हता *गोयमा पुढविकाइए पुढविकाइयं चेव आणमंति वा जाव नीससंति वा / पुढवीकाइगणं भंते ! आउकाइयं आ णमंति वा जाब नीससंति ?, हंता गोयमा ! पुढविक्काइए आउक्काइयं आणमंति वा जाव नीससंति बा, एवं तेउकाइयं बाउक्काइयं एवं वणस्सइकाइयं / आउक्काइए णं भंते ! पुढवीकाइयं आणमंति वा पाणमंति वा, एवं चेव, / आउकाइए ण भंते! आउक्काइयं चेव आणमंति वा, एवं चेव, एवं तेउवाऊबणस्सइकाइयं / तेउकाइए णं भंते ! | पुढविकाइयं आणमति वा?, एवं जाव वणस्मइकाइए णं भंते वणस्सइकाइयं चेव आणमंति वा तहेव | पुढविकाहए ण मंते ! पुढविकाइयं चेव आणममाणे वा पाणममाणे वा ऊससमाणे वा नीससमाणे वा कइकिरिए,गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिण, पुढविकाइए णं भंते ! आउकाइयं आणममाणे वा०१ एवं चेव, | एवं जाव वणस्सइकाइयं, एवं आउकाइएणचि सब्वेवि भाणियब्बा, एवं ते उक्काइएणवि, एवं वा उक्काइएणवि, जाव 499656 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir वणस्मइकाइप णं भंते ! वणस्सइकाइयं चेव आणममाणे चा?, पुच्छा, गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए 14 व्याख्या सिय पंचकिरिए // (सूत्रं 392) // [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मुके ? [उ०] हे 9 शतके प्रकाशिः उमेश |गौतम! हा, पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूके. [प्र०] हे भगवन् ! पृथि11८८५॥ बीकायिक जीव अप्कायिकने आनप्राणरूपे श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूके ? [उ.] हा, गौतम पृथिवीकायिक अप्कायिकने | 1885 // श्वासोच्छ्वामरूपे ग्रहण करे, यावद मूके. ए प्रमाणे अग्निकाय, वायुकायिक अने वनस्पतिकायिकसंबन्धे प्रश्नो करवा. [प्र.] हे भगवन् ! अकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मुके? [उ०] एरीते पूर्व प्रमाणे जाणवु. [प्र०] हे भगवन् ! अप्कायिक जीव अप्कायिकने आनप्रणरूपे--श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूक ? (उ०] पूर्व प्रमाणे जाण. ए प्रमाणे तेजःकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय संबन्धे पण जाणवं. [प्र. हे भगवन् ! अग्निकायिक जीव पृथिवीकायिकने आनप्राणरूपे श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करे अने मूक ? ए प्रमाणे यावत् [H0] हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छवासरूपे ग्रहण करे अने मुके ? [उ०] उत्तर पूर्ववत् जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव पृथिवी कायिकने आनप्राणरूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो अने मृकतो केटली क्रियावाळो होय ? [उ.] डे गौतम ! ते कदाच प्रणक्रिFयावाळो, कदाच चारक्रियावाळो अने कदाच पांचक्रियावाळो होय. [10] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव अप्कायिकने आनप्राण रूपे-श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो (केटली क्रियावाळो होय !) [उ.] इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, ए प्रमाणे यावद् वनस्पति For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | व्याख्याप्रवतिः Ikecall उमेश IICERN कायिक संबन्धे पण जाणवू. तथा ए प्रमाणे अकायिकनी साथे सर्व पृथिवीकायादिकनो संबन्ध कहेचो. तेज प्रकारे तेजःकायिक अने वायुकायिकनी साथे सर्वनो संबन्ध कहेवो. यावद [प्र०] हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकापिकने आनप्राणरूपे| श्वासोच्छ्वासरूपे ग्रहण करतो (अने मुकतो केटली क्रियावालो ह.य ?) [उ०] हे गौतम ! ते कदाच त्रक्रियावालो, कदाच चार| क्रियावालौ अने कदाच पांचक्रियावाळो पण होय. / / 392 // बाउकाइए णं भंते ! मक्खस्स मूलं पचालेमाणे चा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ?, गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए / एवं कंद, एवं जाव मूलं बीयं पचालेमाणे वा पुच्छा, गोयमा सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति / / (सूत्रं 393) // नवम सयं समत्तं / / 1 / 34 // [प्र.] हे भगवन् ! वायुकायिक जीव वृक्षना मूळने कंपावतो के पाडतो केटली क्रियावाळो होय ? [उ.] हे गौतम ! कदाच त्रणक्रियावाळो होय, कदाच चारक्रियावालो होय अने कदाच पांचक्रियावालो पण होय. ए प्रमाणे यावत् कंद संबन्धे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् [प्र०] बीजने कंपावतो-इत्यादि संबन्धे प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! कदाच त्रणक्रियावालो, कदाच चारक्रियावाळो अने कदाच पांचक्रियावाळो होय. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज / / 393 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीम्ना 9 मा शतकमा 7 मा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. // इति श्रीमद्भयदेवसूरिविरचितवृत्तियुतं नवमं शतकं समाप्तं // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandir 1 शतके उतार 16con शतक 10 ( उद्देशक 1) 1887 // दिसि 1 संवुडअणगारे 2 आयड्ढी 3 सामहथि 4 देवि 5 सभा 6 / उत्तरअंतरदीवा 28 दसमंमि भासयंमि चोत्तीसा // 34 // (उद्देशक संग्रह-)१ दिशा, 2 संवृत अनगार, 3 आत्मऋद्धि, 4 श्यामहस्ती, 5 देवी, 6 सभा अने 7-34 उत्तर दिशाना अन्तरद्वीपो-ए सबन्धे दशमां शतकमां चोत्रीश उद्देशको छे. (1 दिशा संबंधे प्रथम उद्देशक, 2 संवृत (संवरयुक्त) अनगारादि विणे #बीजो उद्देशक, 3 आत्म ऋद्धि-पोतानी शक्ति-थी देवो देवावासोने उल्लंघन करें-इत्यादि संवन्धे बीजो उद्देशक, 4 श्यामहस्ति 5नामे श्रीमहावीरना शिष्यना प्रश्न संबन्धे चोथो उद्देशक, 8 देवी-चमरादि इन्द्रनी अनमहिषी-संबन्धे पांचमो उद्देशक, सभामृधर्मा सभा-संबंधे छट्ठो उद्देशक अने 7-3. उत्तर दिशाना अठ्यावीश अन्तरद्वीपो संबन्धी सातथी चोत्रीश उद्देशको के.) गयगिहे जाव एवं वयासी-किमियं भंते ! पाईणत्ति पवुचई, गोयमा ! जीवा चेव अजीवा चेव, किमियं भंते ! पडीणाति पवुचई 1, गोयमा! एवं चेव, एवं दाहिणा एवं उदीणा एवं उड्डा एवं अहोवि / कति ण भंते ! 6 दिसाओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! दस दिसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा पुरच्छिमा 1 पुरच्छिमदाहिणा 2 दाहिणा है 3 दाहिणपञ्चत्थिमा 4 पञ्चत्थिमा 5 पञ्चस्थिमुत्तरा 6 उत्तरा 7 उत्तरपुरच्छिमा 8 उड्डा 9 अहो 10 / एयासिणं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir ARTICS भंते ! दसण्हं दिसाणं कति णामधेजा पण्णत्ता', गोयमा! दस नामचेज्जा पण्णत्ता, तंजहा-इंदा 1 अग्गेयी 2 जमा य३ नेरती४ वारुणी५ य वायव्वाद। सोमा७ ईसागी य८ विमला या९ तमा य१० बोद्धव्वा // 1 // (62320) व्याख्याइंदा ण भंते ! दिमा किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा?, गोयमा! जीवावि 3 १०सके प्राप्ति तं चेव जाव अजीवपएसावि, जे जीवा ते नियमा एगिदिया बेइंदिया जाव पंचिंदिया अणि दिया, जे जीवदेसा* उद्देश 1&cal ननियमा पगिदियदेसा जाव अणिदियदेसा, जे जीवपरसा ते एगिंदियपएसा वेइंदियपएसा जाव अणिदियप-18 11888 // एमा, जे अजोचा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रूवी अजीवा य अरूवी अजीचा य, जे रूवी अजीवा ते चउविहा पन्नत्ता, तंजहा-खंधा 1 वधदसा 2 खंधपएसा 3 परमाणुपोग्गला 4, जे अरूवी अजीबा ते मत्तविहा तेपत्ता, | तंजहा-नोधम्मस्थिकाए धम्मस्थिकायस्स देसे धम्मस्थिकायस्सपएसा नो अधम्मस्थिकाए अधम्नस्थिकायस्स देसे अधम्मत्धियस्स पएसा नोआगासथिकाए आगामत्थिकायस्स देसे आगासन्धिकायस्स पएसा अद्धासमए॥ [प्र.] राजगृह नगरमां (गौतम) यावत् आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! आ पूर्व दिशा ए शु कहेवाय हे ? [उ०] हे गौतम! |ते जीवरूप अने अजीवरूप कहेवाय के. [प्र०] हे भगवन् ! आ पश्चिम दिशा ए शुं कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे दक्षिण दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्वदिशा, अने अधोदिशा संबन्धे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! केटली दिशाओ 8|कही छे ? [उ.] हे गौतम ! दश दिशाओ कही नेते आ प्रमाणे-१ पूर्व, 2 पूर्वदक्षिण (अग्नि कोण), 3 दक्षिण, 4 दक्षिणपश्चिम का(नैर्ऋत कोण), 5 पश्चिम, 6 पश्चिमोत्तर (वायव्य कोण), " उत्तर, 8 उत्तरपूर्व (ईशान कोण), 9 ऊर्ध्व अने 10 अधो दिशा. - For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या-1 प्रति 889 // प्र०] हे भगवन् ! ए दश दिशाओनां केटलां नाम कयां छे ? (उ०] हे गौतम ! दश नाम कहां छे. ते आ प्रमाणे-१ एन्द्री (पूर्व), आग्नेयी (अग्नि कोण), 3 याम्या (दक्षिण), 4 नैऋती (नैतकोण), 5 वारुणी (पश्चिम), 6 वायव्य, 7 सोम्या (उत्तर),८ १.शतके ऐशानी (ईशान कोण), 9 विमला (उर्ध्व दिशा), अने 10 तमा (अधो दिशा). ए दिशाना नामो अनुक्रमे जाणवां. [प्र०] हे भग Pउद्देशन वन् ! ऐन्द्री (पूर्व) दिशा शु१जीवरूप छे, 2 जीवना देशरूप ले के जीवना प्रदेशरूप छे ? अथवा 1 अजीवरूप छे, 2 अजीवना देशरूप छे के 3 अजीवना प्रदेशरूप छे ? [उ.] हे गौतम ! ऐन्द्री दिशा जीवरूप छे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे यावत् अजीवप्रदेशरूप पण 1889 // छे. तेमा जे जीवो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय, तथा अनिन्द्रिय (सिद्धो) छे. जे जीवना देशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छे, यावद् अनिद्रिय-मुक्तजीवना देशो छे. जे जीवप्रदेशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना प्रदेशो छे, चेहन्द्रियजीवना प्रदेशो छे, यावद अनिन्द्रिय (मुक्त) जीवना प्रदेशो छे. वळी जे अजीबो छे ते ये प्रकारना कबा छे, ते आ प्रमाणे-एक रूपिअजीव अने अरूपिअजीव. तेमां जे रूपिअजीवो छे ते चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ स्कंध, 2 स्कंध देश, 3 स्कंधप्रदेश अने 4 परमाणु पुगल. तथा जे अरूपिअजीवो छे ते सात प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो देश, 2 धर्मास्तिकायनो प्रदेशो, 3 नोअधर्मास्तिकायरूप अधर्मास्तिकायनो देश, 4 अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, 5 नो आकाशास्तिकायरूप आकाशास्तिकायनो देश, 6 आकाशास्तिकायना प्रदेशो, अने 7 अद्धासमय (काल). अग्गेई णं भंते ! दिसा किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा? पुच्छा, गोयमा! णो जीवा जीवदेसावि 1 जीवपएसावि 2 अजीवावि 1 अजीवदेसावि 2 अजीवपएसावि 3, जे जीवदेसा ते नियमा एगिदि CRIMACARABANK For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie |१०शक्षके प्राप्तिः यदेसा अहवा एगिंदियदेसा घ बेइंदियस्म देसे 1 अहवा एगदियदेसा य बेइंदियस्स देसा 2 अहवा एगिदियव्याख्या-13 देसा य बेइंदियाण य देसा 3 अहवा एगिदियदेसा तेइंदियस्स देसे एवं चेव तियभंगो भाणियब्वो एवं जाव अणिदियाण तियभंगो, जे जीवपएसा ते नियमा एगिदियपएसा अहवा एगिदिषपएसा य बेइंदियस्स पएसा उद्देश // 890 // अहवा एगिदियपदेसा य बेइंदियाण य पएसा एवं आइल्लविरहिओ जाव अणिवियाण, जे अजीवा ते दुविहा | 21601 3] पन्नत्ता,तंजहा-रूविअजावा य अरूवीअजीचा य. जे रूवीजीवा ते चउम्बिहा पन्नत्ता, तंजहा-खंधा जाव परमा|णुपोग्गला 4, जे अरूवी अजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तंजहा नोधम्मत्यिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मस्थि| कायस्स पएसा एवं अधम्मत्यिकायस्सवि जाव आगासत्थिकायस्स पएसा अद्धासमए / विदिसासु नत्थि जीवा देसे भंगो य होड सब्वस्थ / / जमा णं भंते ! दिसा किं जीवा जहा इंदा तहेव निरवसेसा, नेरई य जहा अग्गेयी, वारुणी जहा इंदा,वायवा जहा अग्गेयी, मोमा जहा इंदा, ईसाणी जहा अग्गेयी, विमलाए जीवा जहा अग्गेयी, है अजीवा जहा इंदा, एवं तमाएवि, नवरं अरूबी छब्बिहा, अद्धासमयो न भन्नति // ( सूत्रं 394) (म०] हे भगवन् ! आग्नेयी दिशा (अग्निकोण) अ॒१ जीवरूप ने, 2 जीवदेशरूप छे के 3 जीवप्रदेशरूप छे--इत्यादि प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! 1 नोजीवरूप जीवना देश अने 2 जीवना प्रदेशरूप छे, 3 अजीवरूप के, 4 अजीवना दंशरूप के अने है| अजीवना प्रदेशरूप पण छे. तेमा जे जीवना देशो के ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छ, 1 अथवा एकेन्यिोना देशो अने* बेइन्द्रयजीवनो देश , 2 अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने बेइन्द्रियना देशो छे; 3 अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो e For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १.शतके व्याख्याप्रशतिः M891 // उदेश // 49 // हे. 1 अथवा एकेन्द्रियोना देशो अने त्रीन्द्रियनो देश छे--इत्यादि पूर्व प्रमाणे अहिं त्रण विकल्पो जाणवा. ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय सुधी त्रण विकल्पो-मांगा कहेवा, तेमां जे जीवना प्रदेशो छे. ते अवश्य एकेन्द्रियोना प्रदेशो छ, 1 अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने बेइन्द्रियना प्रदेशो छे, 2 अथवा एकेन्द्रियोना प्रदेशो अने बेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे सर्वत्र प्रथम भांगा सिबाय के भांगा जाणवा, ए प्रमाणे यावद् अनिद्रिय मुधी जाणवू. हवे जे अजीवो छे ते वे प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे-रूपिअजीव अने बीजा | अरूपिअजीव. जे रूपिअजीवो के ते चार प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ स्कंधो, यावत् 4 परमाणुपुद्गलो. तथा जे अरूपिअ-ते जीवो छे ते सात प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकायरूप धर्मास्तिकायनो देश, 2 धर्मास्तिकायना प्रदेशो; ए प्रमाणे द्र अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू; यावत् आकाशास्तिकायना प्रदेशो अने अद्धासमय. विदिशाओमां जीवो नथी, माटे सर्वत्र देश विषयक भांगो जाणयो. [प्र०] हे भगवन् ! याम्या (दक्षिण) दिशा शु जीवरूप छे-इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! जेम* ऐन्द्री दिशा संबन्धे को (सू. 6) तेम सर्व अहीं जाणवू. जेम आमेयी दिशा संबन्धे का (सू. 7) ते प्रमाणे नैऋती दिशा माटे जाणवू.जेम ऐन्द्री दिशा संबन्धे का तेम वारुणी (पश्चिम) दिशा माटे जाणवू. वायव्यदिशाने आग्रेयीनी पेठे जाणवू. ऐन्द्रीनी | पेठे सोम्या अने आग्नेयीनी पेठे ऐशानी दिशा जाणवी. तथा विमला-ऊर्ध्वदिशा-मां जेम आग्नेयीमां जीवो कहा तेम जीवो अने ऐन्द्रीमा अजीबो कहा तेम अजीबो जाणवा. ए प्रमाणे तमा-अधोदिशा-ने विषे पण जाणवं, परन्तु विशेष ए छे के, तमा दिशामां 4ii अरूपिअजीवो छ प्रकारना छे, कारण के त्यां अद्धासमय (काल) नी. // 394 / / कति णं भंते! सरीरा पन्नता, गोयमा ! पंच सरीरा पन्नत्ता, तंजहा-ओरालिए जाव कम्मए / ओरालिय For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir जा सरीरेणं भंते! कतिविहे षन्नत्ते, एवं ओगाहणसंठाणं निरवसेसं भाणियब्वं जाब अप्पाबहुगंति / सेवं भत! व्याख्या- सेवं भंतेत्ति (सूत्रं. 395) दसमे सप पढमो उद्देसो सत्तमो॥१०॥१॥ १०शक्षके प्रज्ञप्ति [प्र०] हे भगवन् ! शरीरो केटला प्रकारना कह्या छ। [उ०] हे गौतम! शरीरो पांच प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे- | उशार // 89 // : औदारिक, (2 वैक्रिय, 3 आहारक, 4 तैजस) यावत् 5 कार्मण. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक शरीर केटला प्रकारे का छे? ८९शा 131[उ०] हे गौतम! अहिं सर्व 'अवगाहनासंस्थान' पद अल्पबहुत्व सुधी कहे, हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज हे.18 हा(एम कही यावत् भगवान् गौतम विहरे छे) // 395 // ___ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना 10 मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 2. रायगिहे जाव एवं वयासी-संवुडस्स ण भंते ! अणगारस्म बीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स मग्गओ रूवाई अवयक्खमाणस्स पासओ रूवाई अवलोएमाणस्स उड्डे रूबाई ओलोएमाणस्स अहे रूवाई आलोएमाणस्स तस्स भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कज्जह?, गोयमा! संवुडस्स ण अणगारस्स वीयीपंथे ठिचा जाब तस्स णं णो ईरियावहिया किरिया कज्जह संपराइया किरिया कजइ, से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ संवुड० जाव संपराइया किरिया कबइ 1, गोयमा! जस्स णं कोहमाणमायालोभा एवं जहा म. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रति १.शुतके | उद्देशा३ // 893 // C त्तमसए पढमोहेसए जाव से णं उस्सुत्तमेद रीयति, से तेणटेणं जाव संपराइया किरिया कन्जइ / संवुडस्स ण व्याख्या- भंते! अणगारस्स अवीयीपंथे ठिचा पुरओ रूवाइं निज्झायमाणस्स जाब तस्स णं भंते! किं ईरियावहिया किरिया कजा, पुच्छा, गोयमा! संवुड० जाब तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइनो संपराइया किरिया कजइ, से 893 // केण?णं भंते ! एवं बुचइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहासुत्तमेव रीयति से तेण?णं जाव नो संपराइया किरिया कजइ / / (सूत्र. 396) // [प्र०] राजगृह नगरमां यावत् (गौतम) ए प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! वीचिमार्गमां-कषायभावमा-हीने आगळ रहेलां रूपोने जोता, पाछळना रूपोने देखता, पढखेना रूपोने अवलोकता,ऊंचेना रूपोने आलोकता अने नीचेना रूपोने अबलोकता संवृत (संवतरयुक्त) अनगारने शुं ऐपिथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे? [उ.] हे गौतम ! वीचिमार्गमां (कषायभावमां) रहीने यावत् रूपोने जोता संकृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया न लागे, पण सांपरायिकी क्रिया लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के संवृत अनगारने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ क्षीण थया होय तेने ऐपिथिकी क्रिया लागे-इत्यादि सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत् 'ते संवृत अनगार सूत्र विरुद्ध वर्ते छे' त्यांसुधी कहे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे छे. [म.] हे भगवन् ! अवीचिमा मां-अकषायभावमां-रहीने आगळना रूपोने जोता, यावत् अवलोकता संघृत अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे। [उ०] हे गौतम ! यावत् अकषायभावमा रहीने आगळ रूपोने जोता यावत् ते संवृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया REDIT-645453 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * लागे, पण सांपरायिकी क्रिया न लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के ते अनगारने ऐपिथिकी क्रिया | व्याख्या | लागे पण सांपरायिकी किया न लागे ? (उ०Jहे गौतम! 'जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ श्रीण थया छे तेने ऐपिथिकी|१०शसके प्रचाप्तिः क्रिया लागे छे-इत्यादि जेम सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमा (उ०१.०१८.) का छे तेम अहीं पण यावत् 'ते अनगार सूत्रा- उमेशा // 894 // | नुसारे वर्ते छ' त्यांसुधी कहे, हे गौतम! ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागती नथी. // 396 // // 894 // __कइविहा ण भंते ! जोणी पन्नत्ता, गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तंजहा-सीया उसिणा सीतोसिणा, एवं जोणीपयं निरवसेसं भाणियब्वं / / (सूत्रं 397) [प्र०] हे भगवन् ! योनि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! योनि त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, एउष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं समग्र योनिपद कहेवू. // 397 / / कतिविहाणं भंते। वेयणा पन्नत्ता, गोयमा!तिविहा वेयणा पन्नत्ता, संजहा-सीया उसिणा सीओसिणा, एवं वेयणापयं निरवसेसं भाणियव्वं जाब नेरइया भंते! कि दुक्खं वेदणं वेदेति सुहं वेयणं वेयंति अदुवममुह वेयणं वयंति?, गोयमा ! दुश्खपि वेयण वेयंति सुहंपि वेयणं वेयंति अदुक्खमसुहंपि वेषणं वेति / / (ऋत्रं 398) [प्र०] हे भगवन् ! वेदना केटला प्रकारनी कही छ ? [उ.] हे गौतम ! वेदना प्रण पकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, &aa उष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं संपूर्ण वेदनापद कहे. यावत्-[प्र०] 'हे भगवन् ! नरयिको शु दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, सुखपूर्वक वेदना वेदे छे के सुख-दुःख शिवाय वेदना वेदे छे! [उ०] हे गौतम नैरयिको दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, मुखपूर्वक *% % For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir व्याख्याप्राप्ति 895 // १.शतके उरेवार // 895 // वेदना वेदे छे अने सुखदुःख सिवाय पण वेदना वेदे छे. // 398 // मासियण्णं भंते ! भिक्खुपडिमं पडिबन्नस्स अणगारस्स निचं वोसट्टे काये चियत्ते देहे, एवं मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियबा [ जाव दसाहिं ] जाव आराहिया भवइ / (सूत्रं 399) [प्र.] हे भगवन् ! जे अनगारे मासिक भिक्षु प्रतिमाने स्वीकारेली छे, अने हमेशां शरीरना ममत्वनो त्याग कर्यो छे-देहनो त्याग कयों छे-इत्यादि मासिक भिक्षु प्रतिमानो संपूर्ण विचार अहिं दशाश्रुत रकंधयां बताव्या प्रमाणे यावत् ( बारमी प्रतिमा) 'आराधी होय छेत्यांमुधी जाणवो. // 399 // भिक्खू य अन्नयर अकिञ्चट्ठाणं पडिसेबित्ता से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालं करेइ नत्थि तस्स | आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा, भिक्खू य अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ पच्छावि णं अहं चरमकालममयंसि एयरस ठाणस्म आलोएस्मामि जाव पडिवजिस्मा सेमिण, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते जाव नधि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा, भिक्खू य अन्नयर अकिञ्चट्ठाण पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवह-जइ ताव समणोवास गावि कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएमु देवत्ताए उववत्तारोभवति किमंगपुण अहं अन्नपन्नियदेवत्तणपि नो लभिस्सामित्तिक से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालं करेइ नस्थि तस्स आराहणा, से गं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेह अस्थि तस्स आराहणा / सेवं सेवं भंते! For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राज्ञप्तिः // 896 // सेवं भंतेत्ति / ( सूत्र 400)10 / 2 / / का जो ते भिक्षु कोइ एक अकृत्यस्थानने सेवीने अने ते अकृत्य स्थान- आलोचन तथा प्रतिक्रमण कर्या विना काल करे तो तेने १०शसके आराधना यती नथी, परन्तु जोते ते अकृत्यस्थाननु आलोचन अने प्रतिक्रमण करीने काल करे तो तने आराधना थाय छे. वळी उशार कदाच कोइ भिक्षुए अकृत्यस्थान प्रतिसेवन कर्य होय, पछी तेना मनमा एम विचार थाय के 'हुं मारा अंतकालना समये ते अक | मा८९६॥ त्यस्थान- आलोचन करीश, यावत तपरूप प्रायश्चित्तनो स्वीकार करीश,' स्यारपछी ते भिक्षु ते अकृत्यस्थान- आलोचन के प्रति-15 क्रमण कर्या विना मरण पामे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते भिक्षु ते अकृत्यस्थानने आलोचन अने प्रतिक्रमण करी काल * करे तो तेने आराधना थाय छेवळी कोइ भिककोई एक अकृत्यस्थाननं प्रतिसेवन करी पछी मनमा एम विचारे के, 'जो श्रमणो पासको पण मरणसमये काल करीने कोइ एक देवलोका देवपणे उत्पन्न थाय छे, तो शुं हुं अणपत्रिकदेवपणुं पण नहि पामुं,' एम विचारीने ते अकृत्यस्थानन आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या विना जो काल करे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते अकृत्यस्था पद नने आलोची तथा प्रतिक्रमी पछी काल करे तो तेने आराधना थाय छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे, (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.)॥ 400 // भगवत् मुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना 10 मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो, *** ** For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir उद्देशक 3. 4-KA १०शतके माख्याप्राप्ति 897 // उद्देशा // 897 // रायगिहे जाव एवं वयासी-आइड्डीए ण भंते! देवे जाव चत्तारि पंच देवा वासंतराई बीतिकंते तेण परं | परिडीए ?, हंता गोयमा! आइड्डीए णं तं चेव, एवं अमुरकुमारेवि, नवरं असुरकुमारावासंतराई सेसं तं चेव, एवं एएणं कमेण जाव थणियकुमारे, एवं चाणमंतरे जोइसवेमाणिय जाव तेण परं परिड्डीए / अप्पड्ढीप ण भंते! देवे से महिड्ढीयस्स देवस्स मज्झमजझणं वीइवहजा, णो तिणढे समझे। समिट्टीए ण भंते ! देवे समड्ढीयस्स देवस्स मज्झमज्झेणं बीइवएज्जा?, णो तिणढे समढे, पमत्तं पुण बीइबइजा. से णं भंते! किं विमोहित्ता प र अविमोहित्ता पभू?, गोयमा ! विमोहेत्ता पभू, नो अविमोहेत्ता पंभू / से भंते! किं पुचि विमोहेत्ता पच्छा वीहवएज्जा पुर्दिव बीइवएत्ता पच्छा विमोहेजा, गोयमा ! पुचि विमोहेत्ता पच्छा वीइपएज्जा, णो पुचि वीइवइत्ता | पच्छा विमोहेजा। [प्र०] राजगृह नगरमा (भगवान् गौतम) यावत् आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! शुं देव पोतानी शक्तिवडे यावत् चार पांच देवावासोने उल्लंघन करे अने त्यारपछी बीजानी शक्तिवडे उल्लंघन करे। [उ०] हा, गोतम! पोतानी शक्तिवडे चार पांच देवावा. सोनुं उल्लंघन करे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे कहे, ए प्रमाणे असुरकुमार संबन्धे पण जाणवंपरन्तु ते आत्मशक्तिी असुरकुमारोना आवा| सोनू उल्लंघन करे. बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए रीते आ अनुक्रमथी यावत् स्तनितकुमार, वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक सुधी - - For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir CS व्याख्या 10 उमेश Re // 898 // -% जाणg. 'तेओ यावत् चार पांच देवावासोनुं उल्लंघन करे अने त्यारपछी आगळ परनी शक्तिथी उल्लंघन करें त्यांमुधी जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! अल्पऋद्धिक-अल्पशक्तिकाळो देव मद्धिक-महाशक्तिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ? [उ.] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नयी. (अर्थात् ते बचोवच थइने न जाय.) [10] हे भगवन् ! समर्द्धिक-समानशक्तिवाळो-देव समानशक्तिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ? [30] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. पण जो ते प्रमत्त (असावधान) होय तो तेनी वच्चे थईने जाय, [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते देव सामेना देवने विमोह पमाडीने जइ शके, के विमोह पमाड्या सिवाय जडू शके: [उ०] हे गौतम! ते देव सामेना देवने विमोह पमाडीने जइ शके, पण विमोह पमाड्या सिवाय न जई शके. [50] हे भगवन् ! शु ते देव पहेला विमोह पमाडीने | पछी जाय के पहेला जइने पछी विमोह पमाडे ! [उ०) हे गौतम! ते देव पहेला विमोड पमाडीने पछी जाय, पण पहेला जइने पछी विमोड न पमाडे. महिड्डीए णं भंते! देवे अप्पड्डियस्स देवस्स मज्झमज्झेणं वीइवएजा ?, हंता बीइथएज्जा, सेणं भंते ! | किं विमोहित्ता पभू अविमोहेता पभू , गोयमा! विमोहेसावि पभू अविमोहेत्तात्रि पभू, से भंते ! किं पुधि विमोहेत्ता पच्छा वीइवइज्जा पुद्धि वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा, गोयमा! पुन्धि वा बिमोहेत्ता पच्छा वीइवएना पुटिव वीइवरजा पच्छा विमोहेजा। अप्पिड्डीए णं भंते! असुरकुमारे महड्डीयस्स असुरकुमारस्म मज्झमज्झेर्ण वीइवरजा!, णो इणडे समढे, एवं असुरकुमारेवि तिन्नि आलावगा भाणियब्वा जहा ओहिएणं देवेणं भाणेया, एवं जाव थणियकुमाराणं, वाणमंतरजोइसियवेमाणिएणं एवं चेव / अप्पड्डिए ण भंते ! देवे मह ---CESS % * + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandir व्याख्या प्राप्ति // 899 // दियाए देवीए मज्झमज्झेण वीइचएज्जा, णो इणढे समहे, काहे भगवन ! महर्दिक-महाशक्तिवाळो देव अल्पशक्तिवाला देवनी बचोवच थईने जाय ? उहा . गौतम! जाय. १.शतः [प्र०] हे भगवन् ! ते महर्द्धिक देव शु ते अल्पशक्तिवाला देवने विमोह पमाडीने जइ शके के विमोह पमाड्या विना जई शके 151 उद्देशा३ [उ०] हे गौतम ! विमोह पमाडीने पण जइ शके अने विमोह पमाझ्या विना पण जइ शके. [40] हे भगवन् ! ते महर्द्धिक देव // 4991 शुं पूर्वे विमोह पमाडीने पछी जाय के पूर्व जाय अने पछी विमोह पमाडे ! [उ०] हे गौतम ! ते महद्धिक देव पहेलां विमोह पमाडीने पछी जय, के पहेला जइने पछी विमोह पमाडे, [प्र०] हे भगवन् ! अल्पशक्तिबाळो असुरकुमार महाशक्तिवाळा असुरकुमारनी बचोचच थइने जइ शके ? [उ०] हे गौतम ! आ अर्थ योग्य नथी. ए प्रमाणे सामान्य देवनी पेठे अमुरकुमारना पण त्रण आलापक कहेवा. ए प्रमाणे यावत स्तनितकुमार सुधी कहेवं. तथा वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोने पण ए प्रमाणे कहे. [प्र०] हे भगवन् ! अल्पशक्तिवाळो देव महाशक्तिवाळी देवीनी वचोवच थइने जाय ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नी; अर्थात् न जाय. समडिए ण भंते ! देवीए मज्झमज्झणं एवं तहेव देवेण य देवीण य दंडओ भाणियन्बो जाव वेमाणियाण अप्पड्डिया णं भंते ! देवी महड्डीयस्स देवस्स मज्झममज्झेणं एवं एसोवि तहओ दंडओ भाणियब्बोजाव महड्डिया माणिणी अप्पड्डियरस वेमाणियस्स मज्झमझेणं बीइवएज्जा, हता वीइवएज्जा। अप्पड्डिया णं भंते! देवी महिड्डीयाए देवीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा?, णो इणढे समढे, एवं समड्डिया देवी समड्डियाए देवीए, तहेव, महड्डियावि देवी अप्पड्डियाए देवीए तहेव, एवं एकेके तिन्नि२ आलावगा भाणियवा जाव महड्ढीया णं भंते ! वेमा རི་ཆུཏྟཅུ ཙཅུ སན ཎ༥ ་ཏཱའི་ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir १०शतके डोशा // 10 // 4 णिणी अप्पड्ढीयाए वेमाणिणीए मज्झमझेण वीइवएज्जा ?, हंता वीइवएज्जा, सा भंते! किं विमोहित्ता पभू तहेव जाव पुब्बि वा वीहवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा एए चत्तारि दंडगा / / (सू०४०१)॥ व्याख्या 1 [प्र.] हे भगवन् ! समानशक्तिवाळो देव समानशक्तिवाळी देवीनी वचोवच थइने जाय ? [उ०] हे गौतम! ए प्रमाणे पूर्वनी प्राप्तिः पेठे देवनी साथे देवीनो दंडक कहेवो, यावत् वैमानिक सुधी जाण. [प्र०] हे भगवन् ! अल्पशक्तिवाळी देवी महाशक्तिवाळा देवनी 131 वचोवच थहने जाय ? [उ०] हे गीतम! न जाय, ए प्रमाणे अहीं बीजो दंडक पूर्व प्रमाणे कहेवो; यावत्-[प्र०] 'हे भगवन् ! महा शक्तिवाळी वैमानिक देवी अल्पशक्तिवाला वैमानिक देवनी वचोवच थइने जाय ? [उ०] हां, गौतम ! जाय. [प्र०] हे भगवन् ! अल्पशक्तिवाळी देवी मोटी शक्तिवाळी देवीनी वचोवच थइने जाय ? [उ.] हे गौतम ! आ अर्थ योग्य नथी. ए प्रमाणे समानशक्तिवाळी देवीनो समानशक्तिवाळी देवी साथे, तथा महाशक्तिवाळी देवीनो अल्पशक्तिवाळी देवी साथे ते प्रमाणे आलापक कहेवा, अने ए रीते एक एकना त्रण त्रण आलापक कहेवा. यावत्-[प्र.] 'हे भगवन् ! मोटीशक्तिवाळी वैमानिक देवी अल्पशक्तिवाळी वैमानिक देवीनी वचोवच थइने जाय ? [उ०] हा, गौतम ! जाय; यावत् [प्र०] 'हे भगवन् : शुं ते महाश| क्तिवाळी देवी विमोह पमाडीने जइ शके (के विमोह पमाडया विना जइ शके ? बळी पहेलां विमोह पमाडे, अने पछी जाय के | पहेला जाय अने पछी विमोह पमाडे ! [उ.] हे गौतम) पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् 'पूर्वे जाय अने पछीथी विमोह पमाडे' त्यां सुधी कहे. ए प्रमाणे ए चार दंडक कहेवा. / / 401 // आसस्स णं भंते! धावमाणस्स किं खुखुत्ति करेति !, गोपमा! आसस्स णं धावमाणस्स हिदयस्स जग + 4-45 + + + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उमेशा प्राशि // 9. यस्स य अंतरा एत्य गं कब्बडए नाम वाए संमुच्छह जेणं आसस्स धावमाणस्स खुखुत्ति करेइ // (मू० 102) प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे घोडो दोडतो होय त्यारे ते 'खु खु' शब्द केम करे ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे घोडो दोडतो 8|१०वके द होय छे, त्यारे हृदय अने यकृत् (लीव्हर)-नी बच्चे कर्कटनामे वायु उत्पन्न थाय छे, अने तेथी घोडो दोडतो होय छे त्यारे ते 'खुद खु' शब्द करे छे, // 42 // // 901 // - अह भंते ! आसहस्सामोसइस्सोमो चिट्ठिस्सामो निसिहस्सामो तुयहिस्सामो आमंतणि आणवणी जायणि तह पुच्छणी य पण्णवणी / पञ्चक्रवाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा य // 1 // अणभिग्गहिया भासा भासा यह अभिग्गहमि बोद्धव्वा / संसयकरणी भासा वोयडमव्वोयडा चेव // 2 // पन्नवणी णं एसा न एसा, भासा 18. मोसा', हंता गोयमा। आसइस्सामोतं चेव जावन एसा भासा मोसा। सेवं भंते! सेवं भतेत्ति / / (सूत्रं 403) / दसमे सए तईओ उद्देमो // 1-3 // प्र०] हे भगवन् ! अमे आश्रय करीधं, शयन करीधं, उभा रहीशुं, बेसीशु, (पथारीमा) आळोटशु इत्यादि भाषा "1 आमंत्रणी, 2 आज्ञापनी, 3 याचनी, 4 प्रच्छनी, प्रज्ञापनी, 6 प्रत्याख्यानी, इच्छानुलोमा 8 अनभिगृहीत, 9 अभिगृहीत, 104 संशयकरणी. 11 व्याकृता, अने 12 अव्याकृता भाषा ने." तेमांनी आ प्रज्ञापनी भाषा कडेवाय ? अने ए भाषा मृथा (असत्य)न कहेवाय! [उ. हे गौतम! 'आश्रय करीशु'-इत्यादि भाषा पूर्ववत कडेवाय, पण मृषा भाषा न कहेवाय. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे) // 403 // भगवत् मृधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना 10 मा शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्तिः // 902 // उद्देशक 4 तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नाम नयरे होत्था वन्नओ, दूतिपलासए चेहए, सामी समोसढे, |१०शतके जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेण समएण समणस्स भगवओ महावीरस्म जेडे अंतेवासी इंदभूई नाम: अणगारे जाव उड्डजाणू जाव विहरइ / तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सा उनम्र महत्थी नाम अणगारे पयइभद्दए जहा रोहे जाव उबृजाणू जाब विहरह, तए णं से सामहत्थी अणगारे जायसड्ढे // 902 // जाव उट्टाए उठूत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोयमं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवाममाणे एवं बयासी ते काले-ते समये वाणिज्य ग्राम नगर हतुं. वर्णन. त्या दृतिपलाश नामे चैत्य हतुं. त्यो भगवान् महावीर स्वामी समोसर्या. परिषद् धर्मोपदेश श्रवण करीने पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवंत महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामे अनगार यावद् | ऊर्ध्वजान (जेना दींचण उभा छे एवा) यावद् विहरे छे. ते काले-ते समये अमण भगवान् महावीरना शिष्य श्यामहस्ती नामे अनगार हता. जे रोह नामे अनगारनी पेठे भद्रप्रकृतिना यावद् ऊर्ध्वजानु विहरता हता. त्यार पछी श्रद्धावाळा ते श्यामहस्ती अनगार यावत् उभा थइने ज्या भगवान् गौतम के त्यां आवे छे, आवीने भगवान गौतमने त्रणवार प्रदक्षिणा करी, वंदी, नमी अने पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्या अस्थि णं भंते ! चमरस्म असुरिंदस्स असुरकुमारस्स तायत्तीसगा देवा !, हंता अस्थि, से केणटेणं For Prvate and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * |१०शतके // 9.3 // FOcte भंते! एवं बुचह चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररणो तायत्तीसगा देवा 21, एवं खलु सामहत्थी! तेणं व्याख्या कालेण तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था बन्नओ, तत्थ णं कायंप्रति | दीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा परिवसन्ति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा|| उरेशान उबलद्धपुण्णपाचा जाव विहरंति तए णं ते तायत्तीस सहाया गाहावई समणोवासया पुयि उग्गा उग्गविहारी 31 // 903 // KIसंविग्गा मंविग्गविहारी भवित्ता तओ पच्छा पासस्थविहारी ओसन्ना ओसनविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहा छंदा अहाछंदविहारी बहई बासाई समणोवासगपरियागं पाउणंति 2 अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूमैति अत्ताणं झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणमणाए छेदेति 2 तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकना कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना, [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इन्द्र चमरने त्रायविंशक देवो छ ? [उ०] हा, चमरेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के असुरकुमारना इंद्र चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो के ? [उ०] हे श्यामहस्ती! ते वायखिशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबूद्वीपमां, भारतवर्षमा काकंदी नामे नगरी हती, वर्णन. ते काकंदी नगरीमा परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ रहेता हता, जेओ धनिक, यावत् अपरिभूत (जेनो पराभव न थइ शके एवा समर्थ) हता, जीवाजीक्ने जाणनारा, अने पुण्य पापना ज्ञाता तेओ यावद् विहरे छे. त्यारपछी ते परस्पर सहाय करनारा 6 तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ पूर्व उग्र, उपविहारी (उग्रचर्यावाळा) संविग्न अने संविमविहारी इता, पण पाछळी पासस्था, पास *SHAHN5 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कास्थविहारी (पासस्थानी चर्याबाळा) अवसब, अवसनविहारी, कुशील, कुशीलविहारी, यथाछंद, अने यथाछंदविहारी थईने तेओ घणा2 हवरमसुधी श्रमणोपासकना पर्यायने पाळे छे, पाळीने अर्धमासिक संखेलनावडे आत्माने सेवीने त्रीश भक्तोने अनशनपणे व्यतीत व्याख्या करीने ते प्रमादस्थान- आलोचन अने प्रतिक्रमण कर्या विना काल समये काल करी तेओ असुरेंद्र, असुरकुमार राजा चमरना त्रायः प्राप्तिः स्विंशकदेवपणे उत्पन्न वया. | उद्देशान // 90 // जपभिई च णं भंते ! कायंदगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकु-181 // 904 // माररन्नो तायत्तीसदेवताए उवचन्ना तप्पभिई च णं भंते! एवं वुच्चइ चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो नाय त्तीसगा देवा ?, तए ण भगवं गोयमे सामहधिणा अणगारेण एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए 1 उहाए उद्वेइ उट्ठाए उद्देत्ता सामहस्थिणा अणगारेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागछित्ता समणं भगवं 'महावीरं वंदइ नमसा वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयामी [म.] हे भगवन ! ज्यारथी मांडीने काकंदीना रहेनास अने परस्पर सहाय करनारा, तेत्रीश श्रमणोपासको असुरेंद्र, असुरकु. मारराजा चमरना त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थया त्यारथी एम कहेवाय छे के असुरेंद्र, असुरकुमारराजा चमरने त्रायविंशक देवो छ ? (अर्थात् ते पूर्व त्रायखिंशक देवो न होता). ज्यारे ते श्यामहस्ती अनगारे भगवंत गौतमने ए प्रमाणे कात्यारे भगवान् गौतम शंकित, कांक्षित अने अत्यन्त संदिग्ध थया, अने तेओ उभा थईने ते श्यामहस्ती अनगारनी साथे ज्यां श्रमण भगवान् महा181 वीर हता त्यां आवे छे त्यां आवीने श्रमण भगवान् महावीरने वांदी अने नमीने आ प्रमाणे बोल्या For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir १०तके उद्देश | // 905 // अस्थि ण भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररणो तायत्तीसगा देवा ता० 21, हंता अस्थि, व्याख्या-1 *से केपट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ 1, एवं तं चेव सब्वं भाणियब्वं जाव तप्पभियं च णं एवं वुचइ चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा 21, णो इणढे समवे, गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररनो तायत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेजे पण्णत्ते, जं न कयाइ नासीन कदावि न भवति ण कयाई ण भविस्सई जाव निचे अब्बोच्छित्तिनयट्टयाए अन्ने चयंति अन्ने उपबज्जति / अस्थि णं भंते ! बलिस्स वइरोणिदस्स वइरोयणरन्नो तायत्तीसगा देवा ? ता० 21, हंता अस्थि, से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ बलिस्स बहरोयणिदस्स जाव तायत्तीसगा देवा ता० 21, एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुडीवे 2 भारहे वासे बिभेले णाम संनिवेसे होत्था वन्नओ, तत्थ णं विभेले संनिवेसे जहा चमरस्म जाव उवचना, जप्पभिई च ण भते! ते विमेलगा तायत्तीस सहाया गाहावइसमणोवासगा बलिस्स वइ० सेसं तं चेव जाव निच्चे अव्वोच्छिद्र त्तिणयट्टयाए अन्ने चयंति अन्ने उबवजति।। है [प्र०] हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरकुमारना राजा चमरने त्रायविंशक देवो छे? [उ०] हा, गौतम! छे. [प्र०] हे भगवन् ! भए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के ते चमरने प्रायविंशक देवो छ ?-इत्यादि पूर्वे कहेलो त्रायविंशक देवोनो सर्व संबन्ध कहेवो; 4 यावत् काकंदीना रहेनारा श्रमणोपासको त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थया छे त्यारथी शृं एम कहेबाय छे के चमरने वायविंशक देवो It (ते पूर्वे शुं नहोता!) [उ०] हे गौतम! ते अर्थ योग्य नथी, पण असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरना त्रायविंशक देवोना नामो For Private and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie *१०शतके व्याख्या- है प्रवासिः // 906 // | शाश्वत कया हे, जेथी तेओ कदी न हतां एम नथी, कदी न हशे एम नथी; कदी नथी एम पण नथी. यावत् (तेओ नित्य छे, IP अव्युच्छित्तिनय-(द्रव्यार्थिकनय-) नी अपेक्षाए अन्य च्यवे हे अने अन्य उत्पन्न थाय हे. (पण तेओनो विच्छेद थतो नथी.) 0] हे भगवन् ! वैरोचनेंद्र, वैरोचनराजा चलिने त्रायस्त्रिंशकदेवो छ ? [उ०] हे गौतम! हा, के. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुर्थी कहो छो के वैरोचनेंद्र बलिने त्रायविंशक देवो के ? [उ०] हे गौतम ! बलिना बायस्त्रिंशक देवोनो संबन्ध आ7 उद्देशान प्रमाणे डे-ते काले-ते समये जंबूद्वीपना भारतवर्षमा विमेल नामे संनिवेश (कस्बो) हतो. वर्णन. ते विभेल सन्निवेशमा परस्पर सहाय // 906 // करनारा तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता हता. इत्यादि जेम चमरेन्द्रना संबन्धे का तेम अहीं पण जाणवू. यावत् तेओ त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थया. ज्यारथी मांडीने ते विभेल संनिवेशना परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको वैरोचनेन्द्र बलिना त्रायविंशकदेवपणे उत्पन्न थया-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व हकीकत यावत् 'तेओ नित्य छ, अव्यवच्छित्तिनयनी अपेक्षाए अन्य च्यवे के अन्य उत्पन्न थाय हे त्यांसृधी जाणवी. अस्थि भंते ! धरणस्स णागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगा देवा ता०२?, हंता अस्थि, से |* केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा 21, गोयमा ! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेज्जे पन्नत्ते जे न कयाइ नासी जाव अन्ने चयंति अन्ने उववज्जंति, एवं भूयाणंदस्सवि एवं जाव महाघोसस्स / अस्थि णं भंते! सकस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अस्थि, से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा 1, एवं स्वल्लु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम संनिवेसे होत्था For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir | वन्नओ, तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरंति, नए म्याख्या Iणं तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोबासगा पुबिपि पच्छावि उग्गा उग्गविहारी संविग्गा संविग्गविहारी १०शतके बहई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाग अत्ताण झूसेइ झूसित्ता मढि भत्ताई अण- उद्देश प्राप्ति | सणाए छेदेति 2 आलोइयपडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किचा जाव उवबन्ना, जप्पभिई च णं भंते ! दा९०७॥ // 907 // पालासिगा तायत्तीससहाया गाहावई समणोवासगा सेसं जहा चमरस्स जाव उपवजंति। [प्र.] हे भगवन् ! नागकमारना इंद्र अने नागकुमारना राजा धरणने त्रायविंशक देवो छ / [उ.] हे गौतम! हा, 2. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के धरोन्द्रने त्रायविंशक देवो छ ? [उ०] हे गौतम ! नागकुमारना इंद्र अने नागकुमारना राजा धरणना त्रायस्त्रिंशक देवोना नामो शाश्वत कह्या हे, जेथी तेओ कदापि न हता एम नथी, कदापि नथी एम नथी, | अने कदापि न हशे एम पण नथी. यावत् अन्य च्यवे के अने अन्य उपजे छे. ए प्रमाणे भूतानंद अने यावत् महाघोष इन्द्रना त्रायविंशक देवो संबन्धे पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायविंशक देवो छ ? [उ.] हा गौतम ! छे. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे? [उ०] हे गौतम! शक्रना त्रायनिशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबूद्वीपना भरतवर्षमा पलाशक नामे सनिवेश हतो. वर्णन. ते पलाशक | नामे संनिवेशमा परस्पर सहाय करनार तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता हता-इत्यादि जेम चमर संबन्धे का ते प्रमाणे यावत् तेओ| | विचरे छे. त्यारपछी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपति श्रमणोपासको पहेला अने पछी उग्र, उपविहारी, संविन अने संविग्न RECEXCAMBAR C4X64565 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie २०७तके प्रवाप्तिः %* 15 विहारी थइने घणा वर्ष सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पालीने मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवे , सेवीने साठ भक्तो अनशान वडे || व्यतीत करीने आलोचन, प्रतिक्रमण करीने समाधिने प्राप्त थाय , अने मरणसमये काळ करी यावत् त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थाय व्याख्या-1 छे. ज्यारथी आरंभीने पलाशक संनिवेशना निवासी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको शकना त्रायशिकपणे | उत्पन्न क्या इत्यादि सर्व वृत्तान्त चमरेन्द्रना प्रमाणे यावत् 'अन्य के न्यवे के अने अन्य उत्पन्न थाय छे' त्यांसुधी जाणवो. उद्देश // 908 // अस्थि णं भंते। ईसाणस्स एवं जहा सकस्स नवरं चंपाए नयरीए जाव उववन्ना, जापभिहं च णं भंते ! // 908 चंपिज्जा तायत्तीसं सहाया, सेसं तं चेव जाव अन्ने उववअंति। अस्थि णं भंते ! सर्णकुमारस्स देविंदस्स देवरन्नो पुच्छा, हंता अत्थि, से केणढणं जहा धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्म एवं अच्चुयस्स जाव अन्ने उववजंति / सेवं भंते ! सेवं भते // (सूत्र 404) / दसमस्स चउत्थो // 10 // [प्र०] हे भगवन् ! ईशान इंद्रने त्रायख्रिश्नक देवो 2 [उ०] शक्रनी पेठे ईशानेन्द्रने पण जाणवू परन्तु विशेष ए छे के ते गृहपतिओ श्रमणोपासको पलाशक संनिवेशने बदले चंपानगरीमा उत्पन्न थयेला छे. 'ज्यारथी चंपाना निवासी त्रायस्त्रिंशकपणे उत्पन्न टीथया'-इत्यादि पूर्वोक्त सर्व वृत्तान्त यावत् 'अन्य उपजे छे' त्यांमुधी जाणवो. [प्र०) हे भगवन् ! देवोना राजा देवेंद्र सनत्कुमारने | वायखिशक देवो छ (उ०] हा, गौतम ! छे. [प्र०] हे भगवन् ! आप एप्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के सनत्कुमार देवेंद्रने त्रायविंशक देवो छ। [उ०] हे गौतम! जेम धरणेन्द्र संबन्धे का ते प्रमाण अहीं जाणवू. ए रीते यावत् प्राणतथी मांडीने अच्युतपर्यन्त यावन् है 'बीजा उत्पन्न थाय छे' त्यांधी कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. (एम कही भगवान् गौतम विहरे छे.) भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना: मा शतकमा चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Prate and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie माख्याप्राति E 905 // उद्देशक 5 १०यक्ष तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे गुणसिलए चेहए जाव परिसा पडिगया, तेणं कालेणं तेणं|| उदेशा समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्ठमे सए मत्तमुद्देसए 1909. जाब विहरति / तर ण ते घेरा भगवंतो जायसट्टा जाव संसया जहा गोमयसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं |वयासी-चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-काली रायी रयणी विज्जु मेहा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ट देवीसहस्सा परिवारो पन्नत्तो, जा ते काले-ते समये राजगृह नामे नगर हतुं, अने त्यां गुणसिल नामे चैत्य हतु [श्रमण भगवान महावीर समोसर्या. ] यावत् सभा [ धर्मश्रवण करीने ] पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना घणा शिष्यो पूज्य स्थपिरो जातिसंपन्न-इत्यादि जेम आठमां शतकना सातमा उद्देशकमां कडा छ तेम यावत् विहरे छे. त्यारपछी ते स्थविर भगवंतो जाणवानी श्रद्धावाळा यावद | संशयवाला थईने गौतमखामीनी पेठे पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्या. [प्र०] हे भगवन् ! असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरने केटली अग्रमहिपीओ (पट्टराणीओ) कही छे ? [उ.] हे आर्यो ! चमरेन्द्रने पांच पट्टराणीओ कही . ते आ प्रमाणे-काली रायी, रजनी, विद्युत् अने मेधा. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार को छे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir * व्याख्याप्राप्तिः // 910 // पभू ण भंते ! ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं अट्ठदेवीसहस्साई परिवार विउवित्तए 1, एवामेव सपुब्वाव-| बारेणं चत्तालीसं देवीसहस्सा, से तं तुडिए, पभू ण भंते ! चमरे असुरिंदे अमुरकुमाररायाचमरचंपाए रायहाणीए सभाए चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्तए ?, णो तिणद्वे समढे, से १०यतके केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ नो पभू चमरे अमुरिंदे चमरचंचाए रायहाणीए जाव विहरित्तए ?, अलो चमरस्स णं // 910 असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ संनिश्वित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो अन्नेसिं च षहणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य अचणिज्जाओ बंदणिज्जाओ नममणिज्जाओ पूयणिज्जाओ | सकारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जाओ भवति तेसिं पणिहाए नो पभू, से तेणट्टेणं अजो! एवं बुच्चइ-नो पभू चमरे असुरिंदे जाव राया चमरचंचाए जाव विहरित्तए, पभू णं अज्जो! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए जाव अन्नेहिं च बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहि य देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे मह| याहय जाव भुंजमाणे विह रित्तए. केवलं परियारिडीए नो चेव ण मेहुणवत्तियं / ( सूत्रं 405) / [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते एक एक देवी आठ आठ हजार देविओना परिवारने विकर्बवा समर्थ छ ? [30] हे आर्यों ! हा, ए प्रमाणे पूर्वापर बधी मळीने [ पांच पट्टराणीओनो परिवार चालीश हजार देवीओ छे अने ते त्रुटिक (वर्ग) कहेवाय हे. [प्र०] हे **** *** For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie १०शतके | भगवन ! अमरेंद्र अने असुरकुमारोनो राजा चमर पोतानी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा सभामा चमर नामे सिंहासनमा व्याख्या-1बेसी ते श्रुटिक (सीओना परिवार) साथे भोगववा लायक दिव्यभोगोने भोगवना समर्थ के ? [उ०] हे आयें। ! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के चमरचंचा राजधानीमा ते अमुरेंद्र अने असुरकुमारनो राजा चमर दिव्य || उशाप 4912 // | भोगोने भोमववा समर्थ नयी ? [उ०] हे आर्यों ! असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरनी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्माद|॥९११॥ नामे सभामां माणवक चैत्यस्तंभने विषे वज्रमय अने गोल-वृत्त डाबडामा नांखेलां जिनना घणां अस्थिओ (हाडकांओ) के, जे मा असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरने तथा चीजा घणां असुरकुमार देवोने अने देवीओने अर्चनीय, चंदनीय, नमस्कार करवा योग्य, पूजवा योग्य, सत्कार करवा योग्य अने समान करवा योग्य है, तथा कल्याण अने मंगलरूप देव चैत्यनी पेठे उपासना करवा योग्य छ, माटे ते जिनना अस्थिओना प्रणिधानमा [संनिधानमा] ते असुरेंद्र पोतानी राजधानीमां यावत् ( भोगो भोगववा] समर्थ नथी. तेथी हे आर्यो ! एम कहेवाय छे के चमर असुरेंद्र यावत् चमरचंचा राजधानीमां यावत् [ ते देवीओ साथे दिव्य भोगो) भोगववा समर्थ नथी. पण हे आर्यो ! ते अमुरेंद्र असुरकुमारराजा चमर चमरचंचा नामे राजधानीमां, सुधमों सभामां, चमरनामे सिंहासनमा बेसी चोसठ हजार सामानिक देवो, त्रायविंशक देवो, अने बीजा घणा असुरकुमार देवो तथा देवीओ साथे परिवृत थह मोटा अने निरन्तर थता नाट्य, गीत, अने वादित्रोना शब्दो वडे केवल परिवारनी ऋद्धिथी भोगो भोगचा समर्थ के, परन्तु मैथुननिमित्तक भोगो भोगववा समर्थ न . [प्र.] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुकुमारना राजा चमरना (लोकपाल) सोम महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही के ? [उ.] हे आर्यों ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता For Prate and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ARC H उदेशा५ // 912 अने वसुंधरा. त्यां एक एक देवीने एक एक हजार देवीनो परिवार छे. तेओमांनी एक एक देवी एक एक हजार हजार देवीना परिवारने विक्कुर्वी शके छ, ए प्रमाणे पूर्वापर बघी मळीने चार हजार देवीओ थाय छे. ते त्रुटिक (देवीओमो वर्ग) कहेवाय छे.॥ 405 // पाख्या-1 चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्म असुरकुमाररन्नोसोमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?,अजो! चत्तारि प्राप्तिः अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, संजहा-कणगा कलगलया चित्तगुत्ता वसुंधरा, तत्थ ण एगमेगाए देवीए एगमेगसि देवि. // 11 // सहस्सं परिवारो पन्नत्तो, पभू णं ताओ एगमेगाए देवीए अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियारं विउवित्तए, एवामेच सपुष्वावरेणं चत्तारि देविसहस्सा, सेत्तं तुडिप, पभू ण भंते! चमरस्स अमरिंदस्म असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं अवसेसं जहा चमरस्स नवरं परियारो जहा सूरियाभस्स, सेसं तं चेव, जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं / चमरस्सणे भंते ! जाव रन्नो जमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ, एवं चेव नवरं जमाए रायहाणीए सेसं जहा सोमस्स, एवं वरुणस्सवि, नवरं वरुणाए रायहाणीए, | एवं घेसमणस्सषि, नवरं वेसमणाए रायहाणीए, सेसं तं चेव जाब मेहुणवत्तियं / / [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरना (लोकपाल) सोम नामे महाराजा पोतानी सोमा नामे राजधानीमा सुधर्मा सभामां सोमनामे सिंहासनमां बेसी ते त्रुटिक (देवीओना वर्ग) साथे भोगववा समर्थ छ ? उ०] चमरना संबन्धे का ते सर्व अहीं पण जाणवं. परन्तु तेनो परीवार सूर्यामनी पेठे जाणवो. अने बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे कहेवं, यावत् ते देवीओ Pसाचे पोवानी सोमा राजधानीमां मैथुननिमित्तक भोग भोगववा समर्थ नथी. [प्र०) हे भगवन् ! ते चमरना (लोकपाल) यम नामे KARNAKER For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्राशि // 913 // |१०शतके उरेशा५ 1913 // *- SANSAR महाराजाने केटली पट्टराणीओ कहीछे ? [उ.] हे आर्यों ! पूर्व प्रमाणे जाणवू. विशेष ए के के ( यम लोकपालने ) यमा नामे राजधानी के. बाकी बधुं मोमनी पेठे जाणवू. तथा ए प्रमाणे वरुणना संबन्धे पण जाणवं, परन्तु तेने वरुणा राजधानी हे. ते प्रमाणे वैश्रमणने पण जाणवू. परन्तु तेने वैश्रमणा राजधानी छे. बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् 'तेओ मैथुननिमित्ते भोग | भोगववा समर्थ नथी.' | बलिस्स ण भंते ! वहरोयर्णिदस्स पुच्छा, अजो! पंच 2 अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-सुभा निसुभा रंभा निरंभा मदणा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ठ सेसं जहा चमररस, नवरं बलिचचाए रायहाणीए, परियारो जहा मोउद्देमए, सेसं तं चेव, जाव मेहुणवत्तियं / वलिस्स णं भंते ! बहरोयणिदस्स वइरोयणरन्नो सोमस्स महारनो कति अग्गहिसीओ पन्नत्ताओ? अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-मीणगा सुभद्दा विजया | | असणी, तत्थ णं एगमेगा सेसं जहा देवीए चमरसोमस्स, एवं जाव वैसमणस्स | धरणस्स णं भंते ! नागकुमा | रिदस्म नागकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! छ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-इला | सुक्का सदारा सोदामणी इंदा घणविज्जुया,तस्थ णं एगमेगाए देवीए छ छ देविसहस्सा परिवारो पन्नत्तो, पभू ण भंते! ताओ एगमेगाए देवीए अन्नाई छ छ देविसहस्साई परियारं विउवित्तए एवामेव मपुव्वावरेणं छत्तीस देविसहस्साई, सेत्तं तुडिए, पभू ण भंते ! धरणे सेसं तं चेव, नवरं धरणाए रायहाणीए धरणंसि सीहासणंसि |सओ परियाओ सेस तं चेव / STROCIAS For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ওই | // 11 // - प्र] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र बलिने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [30] हे आर्य! पांच पट्टराणीओ कही छै; ते आ प्रमाणे शुभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा अने मदना. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार होय छे-इत्यादि सर्व चमरेव्याख्या-1 न्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु बलि नामे इन्द्रने बलिचंचा नामे राजधानी ने. अने तेनो परिवार तृतीय शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रवाप्तिः प्रमाणे जाणवो, बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणवं, यावत् ते मैथुननिमित्ते भोग भोगववा समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र // 914 // | वैरोचनराजा बलिना (लोकपाल) सोम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य! चार पट्टराणीओ कही छे, ने आ प्रमाणे-मेनका, मुभद्रा, विजया अने अशनी. तेमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे बधुं चमरना सोम नामे लोकपालनी पेठे | | जाणवू, ए प्रमाणे यावत् वैश्रमण सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! नागकुमारना इन्द्र अने नागकमारना राजा धरणने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ.] हे आर्य ! तेने छ पट्टराणीओ कही है, ते आ प्रमाणे-इला, शुक्रा, सतारा, सौदामिनी, इन्द्रा अने धनवि धुव. तेमां एक एक देवीने छ छ हजार देवीओनो परिवार कह्यो छे. [प्र.] हे भगवन् ! तेमांनी एक एक देवी अन्य छ छ हजार देवीओना परिवारने चिकुर्वी शके 1 [उ०] तेओ पूर्वे कह्या प्रमाणे पूर्वापर सर्व मळीने छत्रीश हजार देवीओने विकुर्ववा समर्थ छे. ए प्रमाणे ते त्रुटिक (देवीओनो समूह) कह्यो. [प्र.] हे भगवन् ! शुधरेणेन्द्र पोतानी धरणा नामे राजधानीमा धरण नामे सिंहासनमा है बेसी पोताना परिवार देवीओ साथे भोग भोगवत्रा समर्थ छे इत्यादि 1 [उ.] बाकी सर्व पूर्ववत् जाणचुं, (अर्थात मैथुननिमित्ते त्यां भोग भोगववा समर्थ नथी.) धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स कालवालस्स लोगपालस्स महारन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?,अजो! ACC35 + + + ++ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie ग्याल्या द्र १०शतके | 19150 4% 1915 // चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-असोगा विमला सुप्पभा सुदंसणा, तत्थ णं एगमेगाए अवसेस जहा चमरस्स लोगपालाणं,एवं सेसाणं तिण्हवि। भूयाणंदस्त णं भंते ! पुच्छा, अजोछ अग्गमहिस्सीओ पन्नत्ताओ, | तंजहा-रूया रूयंसा सुरूया रुयगावती रुयकता रुयप्पभा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अवसेसं जहा धरणस्म, [प्र०] हे भगवन् ! नागकुमारना इन्द्र धरणना लोकपाल कालवाल नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य ! चार पट्टराणीओ कही छे; ते आ प्रमाणे-अशोका, विमला, सुप्रभा अने सुदर्शना. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे चमरना लोकपालोनी पेठे जाणवू, ए प्रमाणे बाकीना त्रणे लोकपालोसंबन्धे जाणयु. [प्र.] हे भगवन् ! भूतानेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे / [उ.] हे आर्य ! छ पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपकाक्ती, रूपकांता अने रूपप्रभा. तेमां | एक एक देवीनो परिवार इत्यादि सर्व धरणेन्द्रनी पेठे जाणवु. भूयाणंदस्स णं भंते ! नागवित्तस्म पुच्छा अजो चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-सुणंदा सुभद्दा सुजाया सुमणा, तत्थ णं एगमेगाए देवीए अवसेस जहा चमरलोगपालाणं एवं सेसाणं तिण्हवि लोगपालाणं, जे दाहिणिल्लागिंदा तेसिं जहा धरणिंदस्स, लोगपालाणंपि तेसिं जहा धरणस्स लोगपालाण, उत्तरिल्लाणं, इंदाण जहा भूयाणंदस्स, लोगपालाणचि तेसिं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं, नवरं इंदाणं सब्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणि य सरिमणामगाणि परियारो जहा तइयसए पढमे उद्देसए,लोगपालाणं सब्वेसिं रायहाणीओ सीहामणाणि य सरिमनामगाणि परियारो जहा चमरस्स लोगपालाणं / कालस्स णं भंते ! पिसायिंदस्स For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahawan Avadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie * व्याख्या -* १०वके उदेशा५ // 916 // - पिसायरन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?, अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नताओ, तंजहा-कमला कमल|प्पभा उप्पला सुदंमणा, तन्थ ण एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं सेसं जहा थमरलोगपालाणं, परियारो | तहेव, नवरं कालाए रायहाणीए कालंसि सीहासणं सि, सेस तं चेव, एवं महाकालस्सवि। | [प्र०] हे भगवन् ! भूतानेंद्रना लोकपाल नामविनने केटली पट्टराणीओ कही 21 [उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही 2. ते आ प्रमाणे-सुनंदा, सुभद्रा, सृजाता अने सुमना. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे बधुं चमरेन्द्रना लोकपालोनी पेठे| जाणवू. ए प्रमाणे बाकी रहेला त्रणे लोकपालोना संबन्धे जाणवू. जे दक्षिण दिशिना इन्द्रो छे तेओने धरणेन्द्रनी पेठे (म. 10.) जाणवू, अने तेओना लोकपालोने पण धरणेंद्रना लोकपालोनी पेठे जाणवू. तथा उत्तर दिशिना इंद्रोने भूतानेंद्रनी पेठे (सू. 13.) जाणवू. तेओना लोकपालोने पण भूतनेंद्रना लोकपालोनी पेठे जाणवू, परन्तु विशेष एन्ले के सर्व इन्द्रोनी राजधानीओ अने सिंहासनो इंद्रना समान नामे जाणवां. अने तेओनो परिवार तृतीय शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे समजबो. तथा बधा लोकपापालोनी राजधानीओ अने सिंहासनो पण तेओनां समान नामे जणवां. अने तेओनो परिवार चमरेन्द्रना लोकपालोना परिवारनी पेठे जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! पिशाचना इंद्र अने पिशाचना राजा कालने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ:] हे आर्य! तेनें चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे-कमला, कमलप्रभा, उत्पला अने सुदर्शना, तेमांनी एक एक देवीने एक एक हजार देवीनो परिवार छ, बाकी पधु चमरना लोकपालोनी पेठे जाणवं, अने परिवार एण तेज प्रमाणे जाणवो. परन्तु विशेष ए के काला नामे राजधानी अने काल नामे सिंहासन जाणवू. तथा बाकी बधु पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे महाकालसंबंधे पण जाणवू. 34 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir HTA . 1917 // सुरूवस्स णं भंते! भूईदस्स रन्नो पुच्छा, अज्जोचत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा, तस्थ णं एगमेगाए सेसं जहा कालस्स,एवं पडिरूवस्सवि। पुन्न भद्दस्स भंतेजक्खिदस्स पुच्छा व्याख्या | अजो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-पुन्ना बहुपुत्तिया उत्तमा तारया, नत्थ ण एगमेगाप सेसं जहा प्राप्ति कालस्स, एवं माणिभद्दस्सवि। भीमस्स ण भंते! रक्खसिंदस्स पुच्छा, अज्जो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, 1917 // तंजहा-पउमा पउमावती कणगा रयणप्पभा. नस्थ णं एगमेगा सेसं जहा कालस्स / एवं महाभीमस्सवि / [प्र०] हे भगवन् ! भूतना इन्द्र अने भूतना राजा सुरूपने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ &कही , ते आ प्रमाणे-रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, अने सुभगा. तेमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी पेठे जाणवू. अने |एज प्रमणे प्रतिरूपेन्द्र संबंधे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवान् ! यक्षना इन्द्र पूर्णभद्रने केटली पट्टराणीओ कही के ? [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही, ते आ प्रमाणे-पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा अने तारका. तेमा एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी तापेठे जाणवू, अने ए प्रमाणे माणिभद्र संवन्धे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! राक्षसना इंद्र भीमने केटली पट्टराणीओ कही है। [10] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- पद्मा, पद्मावती, कनका अने रत्नप्रभा. तेमां एक एक देवीनो परिवार | वगेरे सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महाभीमेन्द्रसंबन्धे पण जाणवू. किन्नरस्म णं भंते ! पुच्छा अजो! चत्तारि अग्गमहिमीओ पन्नताओ, तजहा-बडेंसा केतुमती रतिसेणा रहप्पियातत्थ णं सेसं तं चेव, गवं किंपुरिसस्सवि / सप्पुरिसम्म णं पुच्छा अज्जो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, Ke+C+ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या 118 // तंजहा-रोहिणी नवमिया हिरी पुप्फवती, तत्थ णं एगमेगा, सेसं तं चेव, एवं महापुरिसस्सवि / अतिकायस्स णं पुच्छा, अजो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-भुयंगा भुयंगवती महाकच्छा फुडा, तत्थ णं, सेसं तं चेच, एवं महाकायस्सवि | गीयरहस्म णं भंते! पुच्छा, अजो चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता,तंजहा-सुघोसा विमला IIतक सुस्मरा सरस्सई, तत्थ पं०, सेस तं चेव, एवं गीयजसस्सवि, सव्वेसिं एएसिं जहा कालस्स, नवरं मरिस-1 उरेशान नामियाओ रायहाणीओ सीहामणाणि य, सेसं ते चेव / 11CH प्र०] हे भगवन् ! किंनरेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही के ? [उ.] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे| अवतंसा, केतुमती, रतिसेना अने रतिप्रिया. तेओनां एक एकनो परिवार बमेरे पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे किंपुरुषेन्द्र संबंधे| पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! सत्पुरुपेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे 1 [उ०] हे आर्य / तेने चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ| प्रमाणे रोहिणी, नवमिका, ही अने पुष्पवती. तेमां एक एकनो परिवार वगेरे बर्षा पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महापुरुपेन्द्र संबन्धे | पण जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! अतिकायेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही ? [उ०] हे आयें। तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-भुजंगा, भुजगवती, महाकच्छा अने स्फुटा. तेमा एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणवु. ए प्रमाणे महाकायेन्द्र संबन्धे पण जाणवू, [म.] हे भगवान् ! गीतरतीन्द्रने केटली पट्टराणीओ होय छे ? [10] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ होय छे. ते आ प्रमाणे-सुघोषा, विमला. सुस्वरा अने सरस्वती. तेमा एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणवू, ए प्रमाणे | गीतयश इन्द्र संबन्धे पण समजबु, आ सर्व इन्द्रोने बाकीनुं सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु विशेष ए छे के, राजधानीओ अने 1404 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सिंहासनो इन्द्रना समान नामे जाणवां, वकी सर्व पूर्वनी पेठे जाणवू. चदस्स ण भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो पुच्छा, अजो चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-चंदप्पभा व्याख्यादोसिणाभा अचिमाली पभंकर एवं जहा जीवाभिगमे जोइसियउद्देसए तहेव, सूरस्सवि सुरप्पभा आयवाभा १०तके प्रासि अचिमाली पभंकरा, सेसं तं चेव, जहा (जाव) नो चेव ण मेहुणवत्तियं / इंगालस्स णं भंते ! महग्गहस्सा उऐशा५ // 919 // कति अग्गः पुच्छा, अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-विजया वेजयंती जयंती अपराजिया, I // 919 // तस्थ णं एगमेगाए देवीए सेसं तं चेव जहा चंदस्स, नवरं इंगालवडेंसए विमाणे इंगालगंसि मीहादोसणंसि सेसं तं चेव, एवं जाब वियालगस्सवि, एवं अट्ठासीतीएविमहागहाणं भाणियब्वं जाव भावके उस्स, नवरं वडेंसगा सीहासणाणि य सरिसनामगणि, सेसं तं चेव / सक्कस्स णं भंते! देविंदस्म देवरन्नो पुच्छा, अनो। अट्ट अगमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-पउमा सिवा सेया अंजू अमला अच्छरा नवमिया रोहिणी, तत्थ ण पगमेगाए18 | देवीए सोलस सोलस देविसहस्सा परिवारो पन्नत्तो. पभू ण ताओ गगमेगा देवी अन्नाई सोलस देविसहस्सपरि| यारं विउब्धित्ता, एवामेव मपुवावरेणं अट्ठावीसुत्तरं देविसयमहस्म परियारं विउब्वित्तए, सेत्तं तुहिए। [प्र०] हे भगवन् ! ज्योतिष्कना इन्द्र अने ज्योतिष्कना राजा चन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही हे ? [उ०] हे आर्य ! तेने चार द्रा पट्टराणीओ कही बे, ते आ प्रमाणे-चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा. आर्चाली अने प्रभंकरा-इत्यादि जेम जीवाभिगमसूत्रमा ज्योतिष्कना उद्दे शकमां का छे तेम जाणवू. सूर्यसंबन्धे पण यधुं तेमज जाणवू. सूर्यने चार पट्टराणीओ छे, ते आ प्रमाणे-सूर्यप्रभा, आतपाभा, leoC5445e4:12% For Private and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie १०शसके आर्चर्माली अने प्रभंकरा-इत्यादि सर्व पूर्वोक्त कहे, यावत् तेओ पोतानी राजधानीमा सिंहासनने विषे मैथुननिमित्ते भोगो भोगवी शकता नथी. [प्र०) हे भगवन् ! अंगार नामना महाग्रहने केटली पट्टराणीओ कही के 1 [उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही व्याख्या-18 हे, ते आ प्रमाणे-विजया, वैजयंती, जयंती अने अपराजिता. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे बधुं चन्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु प्राप्ति विशेष ए के, अंगारावतंसकनामना विमानमा अने अंगारक नामना सिंहासनने विपे यावत् मैथुननिमित्त भोगो भोगवता नथी. उद्देशा५ // 920 // बाकी सर्व पूर्ववत् जाणवू. तथा ए प्रमाणे यावत् व्याल नामे ग्रहसंबन्धे पण जाणवू, एम अठ्याशी महाग्रहो माटे यावत् भावकेतु ग्रह // 920 // सुधी कहे. परन्तु विशेष पो के, अवतंसको अने सिंहासनो इन्द्रना समान नामे जाणवां. चाकी बधु पूर्वप्रमाणे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! देवना इन्द्र देवना राजा शक्रने केटली पट्टराणीओ कही छे? [उ.] हे आर्य! तेने आठ पट्टराणीओ कही हे, ते आ | प्रमाणे-पमा, शिवा, श्रेया, अंजु, अमला, अप्सरा, नवमिका अने रोहिणी. तेमांनी एक एक देवीनो सोळ सोळ हजार देवीओनो परिवार होय ने. तेमानी एक एक देवी बीजी सोळ सोळ हजार देवीओना परिवारने विकरू शके छे. ए प्रमाणे पूर्वापर मळीने एक लाख अने अठ्यावीश हजार देवीओना परिवारने विकुर्ववा समर्थ छे, ए प्रमाणे त्रुटिक (देवीओनो समूह) कह्यो. पभू णं भंते ! सके देविंदे देवराया सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसा विमाणे सभाए मुहम्माए सकसि सीहासशंसि तुडिएणं सद्धिं सेसं जहा चमरस्म, नवरं परियारो जहा मोउद्देसए / सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्सा महारस्रो कति अग्गमहिसीओ, पुच्छा, अबोचत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-रोहिणी मदणा चित्ता सोमा, तत्थ ण एगमेगा० सेसं जहा चमरलोगपालाणं, नवरं मयंपभे विमाणे सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहामणंसि,151 SC-% A5% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १०तके व्याख्या प्राप्तिः // 921 // उदेश // 921 // सेसं तं चेव एवं जाय वेसमणस्स, नवरं विमाणाई जहा तइयसए / ईसाणस्स भंते ! पुच्छा, अजो! अह अग्गमाहिसी पन्नत्ता, संजहा-कण्हा कण्हराई रामा रामरक्खिया वसू वसुगुत्ता वसुमित्ता वसुंधरा, नत्थ णं एग| मेगाप, सेसं जहा मकस्स / ईसाणस्स ण भंते! देविंदम्स मोमस्म महारपणो कति अग्गमहिसीओ!, पुच्छा, अजो। चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-पुढवी रायी रयणी विज्जू, मत्था सेसं जहा सकस्म लोगपालोणं, एवं जाव वरुणस्स, नवरं विमाणा जहा चउत्थसए, सेमं तं चेव जाब नो चेव णं मेहुणवत्तियं / सेवं भंते! | सेवं भंतत्ति जाव विहरह।।(सूत्रं 406) / -- (म०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र मौधर्म देवलोकमां सौधर्मावतंसक विमानमा मुधर्मा मभाने विषे अने शक्र नामे सिंहा. | सनमां बेसी ते त्रुटिक (देवीओना समूह) साथे भोग भोगववा समर्थ के ? [उ०] हे आर्य ! चाकी सर्व चमरेन्द्रनी पेठे जाण, पर न्तु विशेष ए छ के तेनो परिवार तृतीयशतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे जाणवो. [प्र०] हे भगवन ! देवेन्द्र देवगज शकना (लोकपाल) सोम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य / तेने चार पट्टराणीओ कही , ते आ प्रमाणेरोहिणी, मदना, चित्रा अने सोमा. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे चमरेन्द्रना लोकपालोनी पेठे जाणवो; परन्तु विशेष ए के के स्वयंप्रभ नामे विमानमां, सुधर्मा सभामा अने सोम नामना सिंहासनमा बेसीने मैथुननिमित्ते देवीओनी साथे भोग भोगववा समर्थ नधी-इत्यादि सर्व पूर्ववत् जाणवू.ए प्रमाणे यावद् वैश्रमण सुधी जाणचे, परन्तु विशेष ए के तेमना विमानो तृतीयशतकमा कह्या प्रमाणे कहवा. [10] हे भगवन् ! ईशानेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही हे ? [उ०] हे आर्य ! तेने आठ पट्टराणीओ कही छे, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir | ते आ प्रमाणे-कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसू, वसुगुप्ता, वसुमित्रा अने वसुंधरा. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे | बधुं शक्रनी पेठे जाणq. [प्र.] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशानना (लोकपाल) सोम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही| व्याख्या- 1 छे 1 [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-पृथिवी, रात्री, रजनी, अने विद्युत. तेमां एक एकनो परिवार P१०शसके ४ावगेरे बाकी बधुं शक्रना लोकपालोनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् वरुण सुधी जाणवू. परन्तु विशेष ए छे के चोथा शतकमां कहा|81 उमेशा ॥९२२॥द प्रमाणे विमानो कहेवा, बाकी बधुं पूर्वनी पेठे जाण. यावत् ते मैथुननिमित्ते (राजधानीमा पोताना सिंहासन उपर वेसीने) भोग 4 // 12 // भोगवता नथी. हे मगवन् ! ते एमज , हे भगवन् ! ते एमज छे. // 406 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्रना 10 मा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. RKASH उद्देशक 6 कहिं णं भंते ! मकस्स देविंदस्म देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता, गोयमा। जंबुद्दीवे 2 मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तंजहा-अमोगवडेंसए जाव मझे सोहम्मबडेसए, से णं सोहम्मव.सए महाविमाणे अद्धतेरस य जोयणसयसहस्साई आयामविक्वंभेणंएवं जह सूरिया तहेव माणं तहेव उववाओ। सकस्स य अभिसेओ तहेव जह सूरियाभस्स // 1 // अलंकारअचणिया तहेब जाव आयरक्वत्ति, दो सागरोवमाई ठिती। सक्के णं भंते! देविंदे देवराया केमहिडीए जाव For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गोयमा महिडीए जाव महसोक्खे, से णं सत्य बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणंजाब विहरति केमहसोक्खे, एवं महडिए जाव एवं महासोक्खे सके देविंदे देवराया। सेवं भंते ! सेवं मंतेत्ति / / (सूत्रं 407) // 10-6 // १०शतके व्याख्या II [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्रनी सुधर्मा नामे सभा क्या कही छ ? [उ०] हे गौतम ! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मेरु || उद्देशा प्रवातिः पर्वतनी दक्षिणे आ रत्नप्रभापृथिवीना (बहु सम अने रमणीय भूमिभागनी उंचे घणा कोटाकोटि योजन दूर सौधर्म नामे देवलोकने | 1923 // // 923 // 11 विषे) इत्यादि रायपसेणीय' सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत पांच अवतंसक विमानो कराळे, ते आ प्रमाणे-अशोकावतसक, यावत बच्चे सौधर्मावतंसक छे. ते सौधर्मावतंसक नामे महा विमाननी लंबाई अने पहोळाई साडा चार लाख योजन के. शक्रतुं प्रमाण, उपपात (उपज), अभिषेक, अलंकार अने अचनिका (पूजा)-इत्यादि यावत् आत्मरक्षको सूर्याम देवनी पेठे जाणवा, तेनी स्थिति (आयुष) वे सागरोपमनी छे. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र केवी महाऋद्धिवाळो छे. केवा महासुखवाळो छ ? [उ०] हे गौतम! ते महाऋद्धिवाळो यावत् महासुखवाळो बत्रीश लाख विमानोनो स्वामी थइने यावद् विहरे छे, ए प्रमाणे महाऋद्धिवाळो अने महासुखवाळो ते देवेन्द्र देवराज शक्र छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे के.)॥ 40 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती स्त्रना 10 मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १०वके उशा७ // 924 // उद्देशक 7 व्याख्या कहिनं भंते ! उत्तरिल्लाणं पगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे नाम दीवे पन्नत्ते, एवं जहा जीवाभिगमे तहेव प्रजाति: |निरवसेसं जाव सुद्धदंतदीवात्ति, एए अट्ठावासं उद्देसगा भाणियव्वा / सेवं भंते! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति / 1924 // 4 // (सूत्रं 408)|10-34 // दसम सयं ममतं // 10 // [प्र०] हे भगवन् ! उत्तरमा रहेनारा एकोरुक मनुष्योना एकोरुक नामे द्वीप कये स्थळे को छ ? [10] हे गौतम का जीवाभिगमात्रमा कया प्रमाणे सर्व द्विपो संबन्धे यावत शुद्धदंतद्वीप सुधी कहे. ए प्रमणे प्रत्येक द्वीप संबन्धे एक एक उद्देशक कहेबो. एम अख्यावीश उद्देशको कहेवा. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज . (एम कही भगवान् गौतम यावत् विहरे छे.) / / 458 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 10 मा शतकमां सादमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. COMMON CUMULATED TO MAKE C HA NYETI Column TRIMER MILITEIT) TUO CORTARTU ETOILEKUT ) Canal // इति श्रीमद्भयदेवाचार्यवृत्तियुतं दशमंशतकं समाप्तम् // berumal entrenar.. MENTIRAIT) Costume) ETIKETTE) TRAILA URTE) ESTUMISTO ULERTE MULTETE STATEKTED Tunes TM FINNS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie शतक 11. (उद्देशक 1.) ११शतके व्याख्या प्रजाप्तिः 915 // RECAUSE उप्पल 1 साल 2 पलासे 3 कुंभी 4 नाली य 5 परम कन्नी ७य / नलिण 8 सिव 5 लोग 10 काला 115-16 उशार भिय 12 दस दो य एक्कारे॥६६॥ उववाओ१ परिमाणं 2 अवहारु 3 चत्त 4 बंध 5 वेदे 6 य | उदए 7 उदी- 1925 // रणाए८ लेसा९ विट्ठी १०य नाणे 1 य॥६७। जोगु 12 वओगे 13 वन्न 14 रसमाई 15 ऊसासगे 16 य आहारे / 17 / विरई 18 किरिया 19 बंधे 20 सन्न 21 कसायि 22 स्थि 23 बंधे 24 य // 68 // सन्निं 25 दिय 26 अणुबंधे 37 संवेहा 28 हार 29 ठिह 30 मनुग्धाए 31 / चयणं 32 मूलादीसु य उवयाओ३ सध्वजीवाणं // 19 // (उद्देश संग्रह) उत्पल, 2 शालूक, 3 पलाश, कुंमी 5 नाडीक, 6 पद्म, 7 कार्णिका, 8 नलिन, 9 शिवराजर्षि, 10 लोक, 11 काल. अने 12 आलभिक-ए संवन्धे अग्यारमा शतकमां बार उद्देशको छे. (उत्पल)-अमुक जातना कमल संबन्धे प्रथम उद्देशक, शालूक-उत्पलकन्द-संबन्धे बीजो उद्देशक, पाश-खाखरा-ना वृक्ष संबन्धे त्रीजो उद्देशक, कुंभीवनस्पति संबन्धे चोथो उद्देशक, नाडीक वनस्पति संबन्धे पांचमो उद्देशक, पद्म-अमुक जातना कमल-विषे छहो उद्देशक, कर्णिका संबन्धे सातमो उद्देशक, नलिन-अमुक प्रकारना कमल संबंधे आठमो उद्देशक, शिवराजर्षि संबन्धे नवमो उद्देशक, लोकने विषे दशमो उद्देशक, काल संबन्धे अगीआरमो उद्देशक, अने आलभिक-आलमिकानगरीमां करेला प्रश्न-संबंधे बारमो उद्देशक-ए प्रमाणे अगीयारमा शतकमां चार उदेशको के.) For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १५शतके उद्देशा 1916 // तेणं कालेण तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-उप्पले ण भंते / एगपत्तए कि एग जोवे अणेगजीवे ?, गोयमा! एगजीवे नो अणेगजीवे, तेण परंजे अन्ने जीवा उवववति ते णं णो एगजीचा अणेव्याख्या-1 गजीवा / ते णं भंते ! जीवा कओहिंतो उथवजति ? किं नेरइएहिंतो उसयजति तिरि० मणु देवेहिंतो उववजंति? प्रशामिः गोयमा! नो नेरतिएहितो उधवज्जति तिरिक्खजोणिएहिंतोधि उपवजन्ति माणुस्सेहिंतो देवेहिंतोवि उवववंति, एवं उववाओ भाणियब्यो, जहा वतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसाणेति 1 ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजतिी, गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेण संस्खज्जा वा असंखजा वा उववनंति 2 / प्र०] ने काले-ते समये राजगृह नगरने विपे पर्युपासना करता (गौतम) आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! उत्पल झुं एक जीववाळ ळे के अनेकजीववालु छ ? [उ०] हे गौतम! ते एक जीववाळजे, पण अनेक जीववाळु नथी. त्यार पछी ज्यारे ते उत्पलने विषे बीजा जीवो-जीवाश्रित पांदडा वगेरे अवयवो-उगे छे त्यारे ते उत्पल एक जीववाळु नथी, पण अनेक जीववाळु छ. [प्र०] हे * भगवन् ! (उत्पलमां) ते जीवो क्याथी आवीने उपजे -शु नैरयिकथी, तियचथी, मनुष्यथी के देवथी आवीने उपजे ळे ? [उ०] काहे गौतम! ते जीवो नैरयिकथी आवीने उपजता नथी, पण तियचथी, मनुष्यथी के देवथी आवीने उपजे के. जेम प्रजापनासूत्रनां व्युत्क्रांतिपदमां कडुं छे ते प्रमाणे वनस्पतिकायिकोमा यावत् ईशान देवलोक सुधीना जीवोनो उपपात कहेवो. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो (उत्पलमां) एक समयमा केटला उत्पन्न थाय ! [उ.] हे गौतम ! जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्यात के 5. असंख्याता जीवो एक समयमा उत्पन्न थाय. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 15 उदेश व्याख्याप्राप्ति // 927 // ACC+ तेण भंते ! जीवा समए 2 अवहीरमाणा 2 केवतिकालेण अवहीरंति', गोयमा / तेणं असंखेजा समए 2 | अवहीरमाणा 2 असंखजाहिं उस्सपि,णिओसप्पिणीहिं अवहीरंति,नो चेचणं अपहिया सिया 3 / तेसि णं भंते ! ११शतके | जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता!, गोयमा। जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं 4 ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा, गोयमा! नो अबंधगा, IS927 // | बंधए वा बंधगा वा एवं जाय अंतराइयस्स, नवरं आउयस्स पुच्छा गोषमा!बंधए वा अबंधए वा बंधगा वा अबंधगा वा अहवा बंधए य अबंधए य अहवा बंधए य अबंधगा य अहवा पंधगा य अबंधए य अहवा बंधगा य अपंधगा य 8 एते अह भंगा 5 / [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो समये समये काढवामां आवे तो केटले काले ते पूरा काढी शकाय ? [उ.] हे गौतम ! साजो ते जीवो समये समये असंख्य काढवामां आवे, अने ते असंख्य उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काल सुधी काढवामां आवे तो पण लाते पूरा काढी शकाय नहीं. [प्र०] हे भगवन् ! उत्पलना जीवोनी केटली मोटी शरीरावगाहना कही छे ? [उ.] हे मौतम ! जघ न्य-ओछामा ओछी-अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली, अने उत्कृष्ट कइंक अधिक हजार योजन होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं ज्ञानावरणीय कर्मना बंधक के के अबंधक छ' [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानारणीय कर्मना अबंधक नथी, पण बन्धक छे. अथवा एक जीव बंधक छ अने अनेक जीवो पण बंधक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतरायकर्म संबंधे पण जाण. [म.] परन्तु आयुषकर्मना संबंधे प्रश्न करतो. (हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो आयुषकर्मना बंधक के के अबंधक के ) [उ.] हे गौतम!१(उत्प For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रति लनी) एक जीव बंधक छे, 2 एक जीव अबंधक छ, 3 अनेक जीवो बंधक छे, 4 अनेक जीवो अबंधक है, 5 अथवा एक बंधक अने एक अबंधक छे, 6 अथवा एक बंधक अने अनेक अबंधक छे,७ अथवा अनेक बंधक अने एक अबंधक छ, 8 अथवा अनेक|* व्याख्याबंधक अने अनेक प्रबंधक छे. ए प्रमाणे ए आठ मांगा जाणवा. *११शतके तेणं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा?, गोयमा! नो अवेदगा, वेदए वा वेदगा उद्देशा // 928 वा एवं जाच अंतराइयस्म, ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा, गोयमा! सायावेदए वा असाया-४॥९२८॥ लवेयए वा अट्ट भंगा 6 ते णभंते! जीवा णाणावरणिजस्म कम्मस्स किं उदई अणुदई, गोयमा! नो अणुदई, माउदई वा उदहणो वा, एवं जाब अंतराइयस्स७॥ तेणं भंते! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं उदीरगा?, II गोयमा! नो अणुदीरगा, उदीरए वा उदीरगा वा, पवं जाव अंतराइयस्स, नवरं वेयणिजाउएसु अट्ठ भंगा 8 / म.) हे भगवन् ! ने उत्पलना जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना वेदक छे के अवेदक छे! [उ०) हे गौतम ! नेओ अवेदक नथी, पण एक जीव वेदक छ अथवा अनेक जीवो अवेदक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतराय कर्म सुधी जाण. [प्र०] हे भगवन् ! ते (उत्प-11 लना) जीवो साताना वेदक छे के असाताना वेदक छ। [उ०] हे गौतम! ते जीवो साताना वेदक छे अने असाताना पण वेदक छे. अहीं पूर्व प्रमाणे आठ भांगा कहेवा. [म.] हे भगवन् ! ते (उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीय कर्मना उदयवाळा छे के अनुदयवाळा छे. [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीयकर्मना अनुदयवाळा नथी, पण एक जीव उदयवाळो छ अथवा अनेक जीवो उदय वाला छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म संबंधे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना उदीरक के For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie C |के अनुदीरक छ / [उ०) हे गौतम ! तेओ अनुदीरक नथी, पण एक जीव उदीरक छे, अथवा अनेक जीवो उदीरक छ. 5 प्रमाणे 13 यावद अंतरायकर्म सुधी जाणवू परन्तु विशेष ए के के वेदनीयकर्म अने अयुषकर्ममा पूर्ववत् (सू०८) आठ भांगा कहेवा. ११शतके प्राप्ति 5 ते भंते ! जीवा किं कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेमा, गोयमा! कण्हलेसे वा जाव तेउलेसे|४| उरेशान // 919 // वा कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काउलेस्मा वा तेउलेमा वा अहवा कण्हलेसे य नीललेस्से य एवं एए दुयासं-18| // 9 // | जोगतियासजोगचउकर्मजागेण असीती भंगा भवंति 9 // ते णं भंते! जीवा किं सम्मट्टिी मिच्छा-11 दिट्ठी सम्मामिच्छादिड्डी, गोयमा! नो सम्मदिट्टी नो सम्मामिच्छादिट्ठी मिच्छादिट्टी वा मिच्छादिहिणो वा | 10 / ते णं भंते ! जीवा किं नाणी अनाणी, गोयमा! नो नाणी अण्णाणी वा अनाणिणो वा 11 / तेणं भंते ! जीवा किं मणजोगी चयजोगी कायजोगी, गोयमा! नो मणजोगी णो वयजोगी कायजोगी वा काय| जोगिणो दा 12 / [प्र.] हे भगवन् ! शं ते (उत्पलना) जीवो कृष्णलेश्याचाळा, नीललेश्यावाळा, कापोतलेश्यावाला के तेजोलेश्यावाळा होया [[उ.] हे गौतम! एक जीव कृष्णलेश्यावाळो, यावत् एक तेजोलेश्यावाळो होय, अथवा अनेक जीवो कृष्णलेश्यावाला, नीललेश्ण81 बाळा, कापोतलेश्यावाळा अने तेजोलण्याचाळा होय, अथवा एक कृष्णलेश्यावाळो अने एक नीललेश्यावालो होय. ए प्रमाणे द्विक| संयोग, त्रिकसंयोग अने चतुष्कसंयोग बड़े सर्व मळीने एंशी भांगा कहेवा. [म०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो सम्यगृष्टि से, मिथ्यारष्टि छ, के सम्यगूमिध्यादृष्टि 21 [] हे गौतम! तेश्रो सम्यग्दृष्टि नथी, सम्यग्मिथ्यारष्टि नथी, पण एक जीव | 94 % For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandie ११शतके मिथ्यादृष्टि , अथवा अनेक जीवो मिथ्यादृष्टिओ छे, [प्र.] हे भगवन् ! ते (उत्पलना) जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [उ०] हे गौतम! ते ज्ञानी नथी, पण एक अबानी छे, अथवा अनेक अज्ञानीओ छे. [प्र०) हे भगवन् ! झुं ते (उत्पलना) जीवो मनयोगी वचनव्याख्या योगी के काययोगी छे[उ०] हे गौतम ! तेओ मनयोगी नथी, वचनयोगी नथी, पण एक काययोगीछे अथवा अनेक काययोगिओ छे. प्रचप्तिः ते गं भते / जीवा किं सागारोव उत्ता अणागारोवउत्ता ?, गोयमा! मागारोवउत्त वा अणागारोव उत्तवा उद्देशन // 930 // 13 अट्ठ भंगा 13 / तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरमा कतिवन्ना कतिगंधा कतिरमा कतिफासा पन्नत्ता?, गोयमा! // 930 पंचवन्ना पंचरसा दुगंधा अट्ठफामा पन्नत्ता, ते पुण अप्पणा अवन्ना अगंधा अरमा अफासा पन्नत्ता 14-15 // | ते णं मंते! जीवा किं उस्सासा निस्सामा नो उस्सासनिसासा, गोयमा! उस्सासए बा१निस्सासए वा 2 नो* उस्मासनिस्मासए वा 3 उस्सासगा बा 4 निस्सासगा बा 5 नो उस्सासनीसासगा वा 6, अहया उस्सासए य ४ानिस्मासा य 4 अहवा उस्मासए य नो उस्सासनिस्सासए य४ अहवा निस्सासा यनो उस्सासनीसासग य४, * अहवा ऊसासए य नीसासए यनो उस्सासनिस्सासए य अट्ट भंगा ८एए छब्बीस भंगा भवंति 26 // [प्र०] हे भगवन् ! शु ते (उत्पलना) जीवो साकार उपयोगबाळा के के अनाकार उपयोगवाळा छे! [10] हे गौतम / एक दाजीव माकार उपयोगबाळो छ, अथवा एक जीच अनाकारउपयोगवाळो छ-इत्यादि पूर्व प्रमाणे (पू. 8) आठ भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन ! ते (उत्पलना) जीवोना शरीरो केटला वर्णचाळां, केटलाधवाळां, केटला रसपाळा अने केटला स्पर्शवाला कयां छे।। 151(उ.] हे गौतम! पांच वर्णवाळां, पांच रसवाळां, वे गंधवाळा अने आठ स्पर्शवाळां कयां छे. अने जीवो पोते वर्ण. गंध, रस अने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्तिः // 931 // 151 उद्देशा C-11-20k ते स्पर्श रहित छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो उच्छ्वासक (श्वास लेनारा) छे, निःश्वासक (श्वास मूकनारा) छ क अनु / च्वासक-निःश्वासक (श्वास नहि लेनारा अने नहि मूकनारा) होय छे?[उ.] हे गौतम!१कोई एक उउघड्यासक छे, 2 कोई||११शतक एक निःश्वासक छे, अने 3 कोई एक अनुच्छवासकनिःश्वासक पण छे. 4 अथवा अनेक जीवो उच्छ्वासक छ, 5 अनेक निःश्वासक छ, अने 6 अनेक अनुच्छ्वासक-निःश्वासक पण छे. 1-4 अथवा एक उच्छ्वासक, अने एक निश्वासक छे. 5-4 अथवा एक // 931 // | उच्छ्वासक अने एक अनुच्छ्वासक नि:श्वासक. छ, १-अथवा एक निःश्वासक अने एक अनुच्छ्वासक-नि:श्वासक छ, १-दा अथवा एक उच्छ्वासक, एक निःच्छ्वासक अने एक अनुच्छ्वासकनिःश्वासक छे.-ए प्रमाणे आठ भांगा करवा. ए सर्व मळीने | छडीश मांगा थाय छे. ते णं भंते! जीवा किं आहारगा अणाहारगा, गोयमा नो अणाहारग* आहारण वा अणाहारए वा एवं अट्ट भंगा 17 / ते णं भंते ! जीवा किं विरता अविरता बिरताविरता?, गोयमा! नो विरता नो विरयाविरया अविरए वा अविरया वा 18 ते णं भंते ! जीवा किं सकिरिया अकिरिया ?, गोयमा! नो अकिरिया, सकिरिए वा सकिरिया वा 19 / ते णं भंते ! जीवा किं सत्तविहबंधगा अट्टविहबंधगा,, गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा अट्ट भगा 20 / ते णं भंते ! जीचा किं आहारमन्नोवउत्सा भयसन्नोवउत्ता मेहुणसनोवउत्ता परि-2 ग्गहसन्नोवउत्ता', गोयमा! आहारसन्नोवउत्ता वा असीती भंगा 21 / [प्र.] हे भगवन् ! शुं ने (उत्पलना) जीवो आहारक छे के अनाहारक छ ? [उ.] हे मौतम! तेओ सपळा अनाहारक नथी, 454597 ANS% KNOW For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्यापतिः // 932 // पण एक आहारक छ, अथवा एक अनाहारक छे.-इत्यादि आठ भांगा अहीं कहेवा. [प्र०] हे भगवान् ! शुं ते उत्पलना जीवो सर्वविरति छे, अविरति छे के विरताविरत (देशविरति) छे ? [उ.] हे गौतम ! ते सर्वविरति नथी, विरताविरत (देशविरत) नथी, पण |एक जीव अविरति छ, अथवा अनेक जीवो अविरति छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो शुं सक्रिय छे के अक्रिय छ ? [उ.] ११शतके हे गौतम ! तेओ अक्रिय नथी पण तेमांनो एक जीव सक्रिय छे अथवा अनेक जीवो सक्रिय छे. [प्र.] हे भगवन् ! शु ते उत्पलनाउदेश जीवो सात प्रकारे कर्मना बंधक छे के आठ प्रकारे कर्मना बंधक छ / [उ०] हे गौतम ! ते जीवो सात प्रकारे कर्मना बंधक I4 // 9320 अथवा आठ प्रकारे बंधक छे. अहीं आठ भांगा कहेवा. [प्र.) हे भगवन् / शुते (उत्पलना) जीरो आहारसंज्ञाना उपयोगवाळा, भयसंज्ञाना उपयोगवाळा, मैथुनसंज्ञाना उपयोगवाळा, के परिग्रहसंज्ञाना उपयोगवाळा छ। [उ.] हे गौतम ! तेओ आहारसंज्ञाना उपयोगवाळा छे-इत्यादि पंशी भांगा कडेवा. तेणं भंते ! जीवा किं कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई लोभकसाई ?, असीती भंगा 22 / ते णं भंते! जोवा किं इत्थीवेदगा पुरिसवेदगा नपुंसगवेदगा?, गोयमानो इस्थिवेदगा नो पुरिसवेदगा नपुंसगवेदए वा नपुंसगवेदगा वा 23 ते णं भंते ! जीवा किं इत्थीवेदबंधगा परिसवेदबंधगा नपुंसगवेदबंधगा?, गोयमा। इथिवेदवंधए वा पुरिमवेदबंधए वा नपुंसगवेयबंधए बा छब्बीसं भंगा 24 / ते णं भंते ! जीवा किं सन्नी असन्नी?, गोयम ! नो सन्नी अमन्त्री वा असन्निणो वा 5 ते णं भंते ! जीवा किं मइंदिया अणिदिया?, गोयमा ! नो अणिंदिया, | सईदिए वा मई दिया वा 26 / -%A4 + For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शक्के उदेशा // 933 // [प्र०] हे भगवन् ! छूते उत्पलना जीवो क्रोधकषायवाळा, मानकषायवाळा, मायाकषायवाळा के लोभकषायवाला छे / उ०] व्याख्या- हे गौतम ! अहीं पण एशी भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् : शु ते उत्पलनः जीवो स्त्रीवेदवाळा, पुरुषवेदवाळा के नपुंसकवेदवाळा प्रज्ञप्तिः 4 होय ! [उ०] हे गौतम ! ते स्त्रीवेदवाळा नथी, पुरुषवेदवाळा नथी, पण एक जीव नपुंसकवेदवाळो के अनेक नपुंसक वेदवाळा होय. [प्र०] हे भगवन् ! सुं ते उत्पलना जीवो स्त्रीवेदना बंधक, पुरुष वेदना बंधक क नपुंसक वेदना बंधक छे ? [30] हे गौतम ! ते | स्त्रीवेदना बंधक, पुरुषवेदना बंधक अथवा नपुंसकवेदना बंधक छे. अहीं पण छवीश भांगा कहेवा. [म.] हे भगवन् ! ते उत्पल ॐाजीवो संज्ञी छे के असंबी छ ? [उ०] हे गौतम! ते संज्ञी नथी, एक असंज्ञी छ, अथवा अनेक असंशिओ छ..] हे भगवन ! | शुं ते उत्पलजीवो इंद्रियसहित छे के इंद्रियरहित छे[उ.] हे गौतम ! ते इंद्रियरहित नथी, पण एक जीव इंद्रियवाळो छ, अथवा अनेक जीवो इंद्रियवाळा . से णं भंते! उप्पलजीवेति कालतो केवचिरं होई, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं | असंखेनं कालं 27 से गंभंते! उप्पलजीवे पुढविजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं काल सेवेजा, केवतियं कालं गतिरागति करेजा ?, मोयमा! भधादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं असंखेज्वाई भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, एवतियं काल सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागर्ति करेजा, सेणं भंते! उप्पलजीवे आउजीवे एवं चेव एवं जहा पुढविजीवे भणिए तहा जाव वाउजीवे |भाणियब्वे, सेणं भंते ! उप्पलजीवेसे वणस्सइजीवे से पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं काल सेवेजा केवतियं कालं CARKARI For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गतिरागतिं कजइ ?, मोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गणाई उक्कोसेणं अणंताई भवग्गहणाई, कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता उकोसेणं अणंतं कालं-रुकालं, पवयं कालं सेवेजा एवइयं कालं गतिरागतिं कजइ, भ्याख्या प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव उत्पलपणे कालथी क्यांसुधी रहे ! [उ.] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त सुधी अने प्रश्नतिः | उद्देशन उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव पृथिवीकायिकमां आवे, अने फरीथी पाछो उत्पलमां // 13 // 934 // माआवे-ए प्रमाणे केटलो काळ सेवे-केटला काळ सुधी गमनागमन करे ? [उ०] हे गौल्म! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव अने, त उत्कृष्टथी असंख्यात भव सुधी गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्महत, अने उत्कृष्ट थी असंख्यकालः पटलो काल| सेवे-लेटलो काल गमनागमन करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव अप्कायिकपणे उपजे अने फरीथी ते पाछो उत्पलमां]k आव. ए प्रमाणे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] पूर्व प्रमाणे जाणवू. जेम पृथिवीना जीव संबन्धे (सू० 3) कयुतेम यावत् वायुना जीव सुधी कहे. [प्र.] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव वनस्पतिमा आवे, अने ते फरीथी उत्पलमा आवे ए प्रमाणे केटलो काल सेवे-केटलो काल गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, अने उत्कृष्टथी अनंत भव सुधी | गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी अनंत काल-वनस्पतिकाल पर्यन्त; एटलो काळ सेवेएटलो काल गमनागमन करे. से गं भंते ! उप्पलजीवे बेइंदियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं कालं सेवेला केवइयं कालं गतिरा-18 13गति कन्जद, गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवन्गणाई उकासेणं संखेजाई भवग्गहणाई, कालादेसणं जह-17 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * ११शक्के % व्याख्या प्रदाप्तिः // 935 // उदेश // 935 // नेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं संखेनं कालं एवतियं कालं मवेजा एवतियं कालं गतिरागति कज्जइ, एवं तेइंदि. 8 यजीवे, एवं चरिंदियजीवेवि, से णं भंते ! उप्पलजीवे पंचेदियतिरिक्वजोणियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति पुच्छा, गोयमा ! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसणं अट्ठ भवग्गहणाई कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ताई उक्कोसेणं पुब्बकोडिपुत्ताइएवतियं कालं सेवेजा एवतिय कालं गतिरागति करेजा, एवं मणुस्सेणवि समं जाव एवतियं कालं गतिरागतिं करेजा 28 ते णं भंते! जीवा किमाहारमाहारेंति?, गोयमा! दवओ अणंतपएसियाई दवाई एवं जहा आहारुद्देसए वणस्सइकाइयाणं आहारो तहेव जाव सबप्पणयाए आहारमाहारेंति नवरं नियमा छपिसि सेसं तं चेव 29 / [प्र.] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव बेइन्द्रियमा आवे, अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे ए प्रमाणे ते केटलो काळ सेवे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी चे भव, उत्कृष्टथी संख्याता भवो; तथा कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्महूर्त, अने उत्कृष्टयी संख्यातो काल; एटलो काल सेवे-एटलो काल गमनागमन करे. एज प्रमाणे त्रीन्द्रियपणे, अने चतुरिद्रियजीवपणे गमनागमन करवामा पूर्ववत् काल जाणवो. [प्र.] हे भगवन् ! उत्पलनो जीव पंचेन्द्रियतियंचयोनिकपणे उपजे अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे, एम केटलो काल गमनागमन करे ! [उ.] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी ये भव, उत्कृष्टयी आठ भवो, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टयी पूर्वकोटिपृथक्त्व एटलो काल सेवे-पटलो काल गमनागमन करे. ए प्रमाणे उत्पलनो जीव मनुष्य साथे पण यावत् एटलो काल गमनागमन करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो AGAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पाख्याप्रधति // 936 // K कया पदार्थनो आहार करे ? [उ.] हे गौतम ! ते जीवो द्रव्यथी अनन्तप्रदेशिक द्रव्योनो आहार करे, इत्यादि सर्व आहारक जद्देश| कमां वनस्पतिकायिकोनो आहार कयो छे ते प्रमाणे यावत 'तेओ सर्वात्मना-सर्व प्रदेशोए आहार करे छ,' त्यां सुधी कहे, परन्तु एटलो विशेष छे के तेओ अवश्य छए दिशीनो आहार करे छे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. | उमेश तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वासस ला॥९३६॥ हस्माई 30 तेसिणं भंते! जीवाणं कति समुग्घाया पण्णसा?, गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तंजहावेदणासमुग्घाए कसायस. मारणंतियस. 31 / ते ण भंते ! जीवा मारणंतियम मुग्धारण किं समोहया मरंति अममोहया मरंति !, गोयमा ! समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति 32 / ते ण भंते! जीवा अणंतरं उब्यद्वित्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति किं नेरइएसु उववज्जति तिरिक्खजोणिएसु उवव० एवं जहा वकंतीए उव्वदृणाए | वणस्महकाइयाण तहा 'भाणियव्यं / अह भंते! सब्बपाणा सव्वभूया सध्यजीवा सब्यसत्ता उप्पलमलत्ताएx उप्पलकंदत्ताए उप्पलनालत्ताए उप्पलपत्तत्ताए उप्पलकेसरत्ताए उप्पलकन्नियत्ताए उपलथिभुगत्ताए उवचन-। पुवा ?, हंता गोयमा! अति अदुवा अणंतक्खुत्तो / सेवं भंते ! सेवं भंते / त्ति३३ / / ( सूत्र 401) // | उप्पलु हेसए // 11-1 // | [म.] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधी कही के ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी दस हजार वर्षनी स्थिति कही . [म.] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोने केटला समुद्घातो कह्या छ ? [उ०] हे -4943 S. ST For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie | उद्देशः किया छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओने त्रण समुद्घातो कया के, ते आ प्रमाणे-बेदनासमुदघात, कपायसमुद्घात अने मारणांतिकस. व्याख्या-लामुद्घात. [प्र०] हे भगवन् ! ते [ उत्पलना] जीवो मारणांतिक समुद्घात बडे समवा ( समुद्घातने प्राप्त ) थइने मरे, के अस-13 प्रज्ञप्तिः |११शतके महत (समुद्घातने प्राप्त थया शिवाय) मरे ? [उ०] हे गौतम ! ते समवहत थइने पण मरे अने असमवहत थइने पण मरे // 937|| [[10] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो मरीने तरत क्या जाय?-क्यां उत्पन्न थाय ? शुं नैरथिकोमा उत्पन्न थाय, तिर्यचयोनीकोमां| // 937 // उत्पन्न थाय, मनुष्योमा उत्पन्न थाय के के देवोमां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! प्रजापना सूत्रना व्य-क्रांतिपदमा उद्वर्तना| प्रकरणमां वनस्पतिकायिकोने कह्या प्रमाणे अहीं पण कहे प्र०] हे भगवन् ! सर्व प्राणो भूतो, सर्व जीवो अने सर्व सच्चो उत्पलना | मूलपणे, कंदपणे, नालपणे, पांददापणे, केसरपणे, कणिकापणे अने थिभुग (पांदडार्नु उत्पत्ति स्थान ) पणे पूर्व उत्पन्न थया ? [उ.] हा, गौतम! जीवो अनेकवार अथवा अनन्तबार पूर्व उत्पन्न थया लेहे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ने पमजले.॥४०९।। भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगतीसूचना 11 मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 2. सालुए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे?, गोयमा! एगजीवे एवं उप्पलु देगसवत्तव्यया अपरिसेसा भाणियब्बा जाब अणं तखुत्तो, नवरं सरीरोगाणा जहन्नणं अंगुलम्स असंखेजहभागं उकोसेणं धणुपुहुत्तं, 18 सेसं तं चेव / सेवं मंते ! सेवं भंतेत्ति / / (सूत्र 41.)11-2 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir [H0] हे भगवन् ! एक पांदडावाळो शालूक (उत्पलकन्द) झु एक जीववाळो छे के अनेक जीववाळो ? [10] हे गौतम। ते एक जीववालो के ए प्रमाणे उत्पले देशकनी सघळी वक्तव्वता कहेची, यावद् 'अनन्तबार उत्पन थया छे.' परन्तु विशेष एछ के, व्याख्याशालूकना शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली. अने उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व छ बाकी पधुं पूर्ववत् जाणq. प्रज्ञप्तिः हे भगवन् ! ते एमज छे हे भगवन् ते एमन छे. // 410 // // 938 // भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमां चीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ११शतके उद्देशः३ // 938 // उद्देशक 3. पलासे ण मते ! एगपत्तए किंगजीवे अणेगजीवे , एवं उपलुद्देसगवत्तब्वया अपरिसेसा भाणियब्धा, *नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजहभागं उक्कोसेणं गाउयपुहत्ता, देवा एगसुन उववजंति। लेसास ते णमंते! जीवा किं कण्हलेसे नीललेसे काउलेसे०, गोयमा कण्हलेसे वा नीललेस्से वा काउलेस्से वा छब्बीस ह भंगा, सेस तं चेव / सेवं भंते! २त्ति / / (सूत्रं 411) // 11-3 // / [] हे भगवन् ! पलाशवृक्ष [ प्रारंभमां ] एक पांदडावाळो होय त्यारे | एक जीववाळो होय के अनेक जीववालो होय ? [उ०] हे गौतम! उत्पल उद्देशकनी बधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. परन्तु विशेष ए छे के, पलाशना शरीरनी अबगाहाना जघन्यथी अंगुलनो असंख्यातमो भाग अने उत्कृष्ट गाउपृथक्त्व छे. बळी देवो च्यवीने 5 पलाशवृक्षमा उत्पन्न थता नथी. [10] लेश्याद्वा-हा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्रज्ञप्तिः / // 939 // | रमा हे भगवन् ! शुं पलाशवृक्षना जीवो कृष्णलेश्यावाला, नीललेश्यावाळा के कापोतलेश्यावाळा होय 1 [उ०] हे गौतम ! ते कृष्ण लेश्यावाळा, नीललझ्यावाळा के कापोतलेश्यावाळा होय, ए प्रमाणे छब्बीश भांगा कहेवा. बाकी बधुं पूर्वनी पेठे जाणवू, है भगवन् / ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 411 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा श्रीजा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. ११शतके | उद्देशः४ // 939 / / उद्देशक 4. कुंभिए णं भंते ! जीवे एगपत्ता किं एगजीचे अणेगजीवे ?, एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणियब्वे, नवरं ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुतं उकोसेणं वासपहुत्तं, सेसं तं चेव / सेवं भते / सेवं भंतेत्ति / / (सू०४:२)॥११-४॥ [प्र०] हे भगवन् ! एक पांदडावाळो कुंभिकं [वनस्पतिविशेप झुं एक जीववालो होय के अनेकजीवाळो होय ? [उ.] हे गौतम! ए प्रमाणे पलाशोद्देशकमां कह्या प्रमाणे बधुं कहे, परन्तु विशेष ए छे के कुंभिकनी स्थिति (आयु) जघन्यथी अंतर्मुहूते, अने उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व-के वर्षथी नव वर्ष-सुधीनी होय छे. बाकी बधं पूर्व कया प्रमाणे जाण. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भग| वन् ! ते एमज छे. // 412 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना 11 मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal use only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie |2|११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः 940 // उद्देशक 5. नालिए णं भंते ! एगपत्ता किं एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं कुंभिउद्देसगवरावया निरवसेसा भाणियब्वा / सेव भंते ! सेवं भंते त्ति // (सूत्रं 413) / / 11- // [म.] हे भगवन् ! एकपादडावाळो नाडिक [वनस्पतिविशेष शृं एक जीववाळो छ के अनेकजीवयाळो छे' [उ] हे गौतम!11दशा-३ ||940 // कुंभिक उद्देशकनी [उ०४ सू० 1] वधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज हे. // 413 / / भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना 11 मां शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 6 पउमे ण भंते ! एगपत्ता किं एगजीवे अणेगजीवे?, उप्पलुद्देसगवत्तब्वया निरवसेसा भाणियब्वा / सेव भंते! सेवं भंते! त्ति / / (सूच 414) // 11-6 // [प्र.] हे भगवन् एक पांदडावाळं पद्म शुं एक जीवबाळु होय के अनेक जीपचालु होय ? [उ.] हे गौतम ! उत्पल उद्देशकमां (उ०१०) कह्या प्रमाण पधुं कहे, हे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज छे. // 414 / / भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना 11 मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir उद्देशक 7. व्याख्याप्रज्ञप्तिः कन्निए णमंत! एगपत्तए किंगजीवे, पंचेच निरवसेसं भाणि यव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते / त्तिरशतक उद्देशः७८ // 942 // (सूत्र 415) 11-7 // | // 941 // 50] हे भगवन् ! एक पांदडावाळी कणिका शुं एक जीववाली छे के अनेक जीववाळी छ ? [उ०] हे गौतम ! बधु पूर्व | ताप्रमाणे कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 15 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 946 eHims hire % उद्देशक 8. नलिणे णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे!, एवं चेव निरवसेसं जाय अणंतक्खुत्तो / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति (सूत्रं 416) // 11-8 // [प्र०] हे भगवन् ! एकपत्रवाळु नलिन (कमलविशेष) शुं एकजीववाळु छ के अनेकजीववाळु छ ? [उ.] हे गौतम ! ए बधं पूर्व प्रमाणे (उ० 1 01) 'यावत सर्व जीवो अनंतबार उत्पन्न थया छ' त्यांसुधी कहे. हे भगवन् / ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 415 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. C % For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Is व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 942 // ११शतके उद्देशा९ // 942 // S उद्देशक 9. तेणं कालेणं तेणं ममएणं हथिणापुरे नाम नगरे होत्था वनओ, तस्स णं हस्थिणागपुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिम दिसीमागे पत्थ णं सहसबवणे णाम उजाणे होस्था मम्वोउयपुष्फफलसमिद्धे रम्मे गंदणवणसंनिप्यगासे सुहसीयलच्छाए मणोरमे सादुफले अकंटए पामादीप जाव पडिरूवे, तत्थ णं हथिणापुरे नगरे सिवे नाम राया होत्था महयाहिमवंत बन्नओ, तस्स ण सिवस्स रन्नो धारिणी नाम देवी होत्था सुकुमालपाणिपाया वन्नओ. तस्स ण सिवस्स रन्नो पुत्ते धारणीए अत्तए सिवभहए नाम कुमारे होत्था सुकुमाल. जहा सूरियकते जाव पच्छुवेवमाणे पच्चुवेवमाणे विहरइ. ते काले-ते समय हस्तिनापुर नामे नगर हतुं वर्णन. ते हस्तिनापुर नगरनी बहार उतर पूर्व दिशामां-ईशानकोणमां-सहस्राम्रवन नामे उद्यान हतुं. ते उद्यान सर्व ऋतुना पुष्प अने फलथी समृद्ध, रम्य अने नंदनवन समान हतुं. तेनी छाया सुखकारक अने शीतळ हती, ते मनोहर, स्वादिष्ठफलवालु, कंटकरहित. प्रसन्नता आपनार, यावद प्रतिरूम-मुन्दर-हतु, ते हस्तिनापुर नगरमां शिव | नामे राजा हतो, ते मोट। हिमाचल पर्वतनी पेठे [सब राजाओमो] श्रेष्ठ हतो, [इत्यादि राजानु वर्णन कहे. ते शिव राजाने धारिणी | नामे पद्दराणी हती. तेना हाथ पग मुकुमाल हता,-[इत्यादि श्रीजें वर्णन कहेg.] ते शिवराजाने धारिणी राणीथी उत्पन्न थयेलो शिव | भद्र नामे पुत्र हतो, तेना हाथ पग सुकुमाल हता-इत्यादि कुमारनु वर्णन सूर्यकांत राजकुमारनी पेठे कहे. यावत ते कुमार [राज्य, राष्ट्र, सैन्यादिन] जोतो जोतो विहरे . tor For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके उद्देशः९ // 943 // तए णं तस्स सिक्स्स रन्नो अन्नया कयावि पुञ्चरत्तावरत्तकालसमयंसि रजधुरं चिंतमाणस्स अयमेयारूवे व्याख्या IPअभथिए जाव समुप्पजिस्था-अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं जहा तामलिस्स जाव पुत्तेहिं वड्डामि पसूहि वड्डामि प्रज्ञप्तिः रजेणं बढ़ामि एवं रहेणं बलेणं वाहणेणं कोसेगं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरण बड्डामि विपुलधणकणगरयणजावसं. // 943 // तसारसावएजेणं अतीव 2 अभिषड्वामित किन्नं अहं पुरा पोराणाणं जाव पगंतसोस्वयं उब्वेहमाणे विहरामि ? सं जाय ताव अहं हिरन्नेणं बड्डामि तं चेव जाव अभिवहामि जाव मे मामंतरापाणोऽवि वसे वहति ताव ना मे सेयं कालं पाउपभापाप जाव जलते सुबहु लोहीलोहकडाहकटुच्छुयं तंबियं तावसभंडगं घडावेत्ता सिवभई कुमार रजेठावेत्ता तं सुबहुं लोहीलोहकडाहकडच्छुयं तबिय तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूले बाणपत्या तावमा भवंति तं-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जन्नई सडई थालई हुंब उह दंतुक्वलिया उम्मजया संमजगा निमलगा संपक | वाला उद्धकंडूयगा अहोकंडूयगा दाहिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमया कूलधमगा मितलुद्धाहत्थितावमा जलाभिसेयकिढिणगाया अंबुवासिणो वाउवासिणो वकालवासिणो जलवासिणो चेलवामिणो अधुभक्विणो वायभविखणो सेवाल भरिखणो मूलाहारा कंदाहारा पत्ताहारा तपाहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिमडियकंदमूलपंडपत्तपुष्फफलाहारा उद्दडा सावमूलिया मंडलिया वणपासिणो दिसापोक्विया आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालमोल्लियंपिध कंडसोल्लियंपिव कट्टसाल्लियपिव अप्पाणं जाव करेमाणा विहरंति [जहा उववाइए जाव कट्टसोल्लियंपिव अप्पाणं करेमाणा विहरति / तत्थ ण जे ते दिमापोक्खि यतावमा तेमि अतिय मुंडे भवित्ता ARKOCHANA For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 944 // उद्देश:९ // 944 // Sansar दिसापोक्बियतावसत्ताए पचहत्ता, पब्बहावि यणं ममाणे अयमेधारूवं अभिग्गह अभिगिहिस्सामि-कप्पइ मे जावजीवा छटुंछट्टेणं अनिक्वित्तेणं दिमाचकवालेणं तवोकम्मेण उड्डे बाहाओ पगिज्झिय 2 जाव विहरितएत्तिकद्द, एवं संपेहेनि / / ___हवे कोई एक दिवसे शिवराजाने पूर्वरात्रिना पाइला भागमा राज्यकारभारनो विचार करता आ आयो अध्यवसाय-संकल्प | उत्पन्न थयो के मारा पूर्व पुण्यकर्मोनो प्रभाव छे, इत्यादि तामलि तापमनी पेठे कहे, जे पावन ई पुत्रोवडे, पशुओवडे, राज्यबडे, राष्ट्र पर | वढे बलबडे, वाहनवडे, कोशवडे कोष्ठागारवडे, पुरवडे अने अन्तःपुरवडे वृद्धि पा, छ. बळी पुष्फळ धन, कनक, रब याचन सारभूत द्रव्यवडे अतिशय अत्यंत वृद्धि पाएं छु तो अ॒ हवे हुं मारा पूर्व पुण्यकर्मोना फलरूप एकान्त मुखने भोगवतो ज विहाँ ? ते माटे ज्यांसुधी हु हिरण्यथी वृद्धि पामु छु, यावत् पूर्वे कन्या प्रमाणे वृद्धि पामुं हुं ज्यांसुधी सामंत राजाओ मारे तावे छे, त्यांसुधी मारे काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान थये छते घणी लोढीओ, लोहना कडाया कडछा अने त्रांबाना बीना तापमना उपकरणोने घडावीने शिवभद्र कुमारने राज्यमा स्थापीने घणी लोढीओ, लोहना कडायां, कडछा अने त्रांचाना तापसना उपकरणो लइने, जे आ गंगाने कांठे वानप्रस्थ तापसो रहे छे, ते आ प्रकारे-अग्निहोत्री, पोतिक-वख धारण करनारा-इत्यादि'उबवाह सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावतजेओ काष्ठधी शरीरने तपावता विचरे छे, ते तापसोमां जे तापसो दिशाप्रोक्षक (पाणी वडे दिशाने पूजी फल पुष्पादि ग्रहण करनारा) छे, तेओनी पासे मारे मुंड थइने दिक्प्रोक्षकतापसपणे प्रव्रज्या अंगीकार करवी श्रेय छे, प्रव्रज्या ग्रहण करीने हु आ आवा प्रका रनो अभिग्रह ग्रहण करीश. ते आ प्रकारे-यावजीव निरंतर छ? छट्ट करवायी दिक्चक्रवाल तपकर्म बडे उंचा हाथ राखीने रहे मने कल्पे-ए प्रमाणे ते शिवराजा विचारे छे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir उशा९ // 945 // संपेहेत्ता कल्लं जाच जलते सुबहुं लोहीलोह जाव घडावेत्ता कोडुंघियपुरिसे महावेइ सहावेत्सा एवं वयासी-बि प्पामेव भो देवाणुप्पिया! हस्थिणागपुरं नगरं सम्भितरबाहिरियं आसिय जाव तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति, नए ण भ्याख्या-1 प्रशसिः | से सिवे गया दोच्चपि कोडंपियपुरिसे सहावेंत्ति 2 एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया: सिवभहस्स कुमारस्म | // 946 // महत्थं 3 विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह, तए णं ते कोडुंबियपुरिमा तहेव जाव उबद्दति, तए णसे सिवे राया | अणेगगणनायगदंडनायग जाव संधिपाल सद्धिं संपरिबुडे सिवभई कुमारं सीहासणवरंसि पुरस्थाभिमुहं निसी यावन्ति 2 अट्ठमएणं मोपनियाणं कलमाणं जाव अट्ठमण भोमेजाणं कलमाणं सब्बिड्डीए जाच रवेणं महया 2 xरायाभिसेएणं अभिसिंचइ२ पम्हलसुकुमालाए सुरभिए मंधकासाईए गायाई लूहेड पम्ह० 2 मासेणं गोसीसेणं एवं जहेव जमालिस्म अलंकारो तहेब जाव कप्पक्वगंपिव अलंकियविभूमियं करेंति 2 करयल जाव कट्टु सिव. भई कुमारं जाणं विजपणं बद्धावेति जएणं विजएणं बद्धावेत्ता ताहिं इहाहिं कंताहिं पियाहिं जहा उववाहए कोणियस्म जाव परमाउं पालयाहि इजणसंपरिबुडे हस्थिणपुरस्स नगरस्स अनेसि च बहणं गामागरनगर जाव विहराहित्तिकटु जयजयसई पउंति, नए णे से सिवभहे कुमार राया जाए महया हिमबंत० बन्नओ जाव विहरह, पप्रमाणे विचारीने आवती काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान छते, अनेक प्रकारना लोढी, कडाया वगेरे तापसना उपकरणो तैयार करावी पोताना कौटुंबिक पुरुषोने बोलावे छे. बोलावीने तेथे तेओने आ प्रमाणे कयु-हे देवानुप्रियो / शीघ्र आ हस्तिनापुर *%AKAKKARAN 14434 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande |११शतके उद्देशः९ व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 946 // // 14 // KESARASHTRA नगरनी चाहेर अने अंदर जल छंटकावी साफकाबो-इत्यादि यावत् तेम करी तेओ तेनी आज्ञाने पाछी आपे छे. त्यारपछी ते शिव-10 राजा फरीने पण ते कौटुंचिक पुरुषोने बोलावे छे, बोलोवीने तेणे आ प्रमाणेकधु-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र शिवभद्र कुमारना महाभथवाळा यावत् विपुल राज्याभिषेकनी तैयारी करो. त्यारबाद चे कौटुंबिक पुरुषो ते प्रमाणे यावत् राज्याभिषेकनी तैयारी करे हे, त्यारपछी ते शिवराजा अनेक गणन यक, दंडनायक, यावत् संधिपालना परिवारयुक्त शिवभद्र कुमारने उत्तम सिंहासन उपर पूर्व दिशा सन्मुख बेसडे के, बेसाडीने एकसो साठ सोनाना कलशोवडे, यावत् एकसो आठ माटीना कलशोवडे, सर्व ऋद्धियी यावत् वादित्रादिकना शब्दोवडे मोटा राज्याभिषेकथी अभिषेक करे छ, त्यस्पछी पापण जेवा सुकुमाल अने सुगंधी गंधवनबढे तेनां शरी. रने साफ कर छे, साफ करीने सरस गोशीर्षचंदन वडे लेप करी यावत् जेम जमालिनु वर्णन कयं के तेम कल्पवृक्षनी पेठे तेने अलंकृत-विभूषित करे छे. त्यारपछी हाथ जोडी शिवभद्रकुमारने जय अने विजयथी वधावे हे वधावीने इष्ट, कान्त, प्रिय वाणीबडे आशीर्वाद आपता औपापातिक सूत्रमा कोणिक राजा संबन्धे कह्या प्रमाणे तेओए कपु-यावत् तुं दीर्घायुषी था, अमे इष्ट जनना परिवारयुक्त हस्तिनापुर नगर अने वीजा अनेक ग्राम, आकर तथा नगरोनुं स्वामिपणुं भोगव-इत्पादि कहीने तेओ जय जय शब्द बोल छे. त्यारचाद ते शिवभद्र कुमार राजा थयो, ते मोटा हिमाचलनी पेठे सर्व राजाओमां मुख्य थान यावत् विहरे में, अहीं दाशिवभद्रराजार्नु वर्णन करवं. तए ण से सिवे राया अन्नया कयाई मोभणमि तिहिकरणदिवसनुहुतनक्वतंसि विपुल असणपाणखा|मइसाइम उवक्रवडायति उचकवडावेत्ता मित्तणाइनियगजाबपरिजण रायाणो य खत्तिया आमंतेति आमंतेत्ता For Private and Personal Use Only
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________________ Shri ahova Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्तिः // 947 // SAN ११शतके उद्देशा९ // 947 // तओ पच्छा पहाए जाब सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगप तेणं मित्तणातिनियगसयण जाव परिजणेणं राहि य खत्तिएहि य सद्धिं विपुलं असणपाणखाइमसाइम एवं जहा तामली जाव सकारेति संमाणेति सकारत्ता संमाणेत्ता त मित्तणाति जाव परिजण रायागो य वत्तिए य सिबभई च रायाणं आपुच्छइ आ. पुच्छित्ता सुबहुं लोहोलोहकडाहकटुच्छुयं जाव भंग गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति तं चेच जाय तसिं अंतिय मुंडे भवित्ता दिसापोविन्वयतावसत्ताए पवइए. पवाऽविय ण ममाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पह मे जावजीवाए छटुंतं चेव जाव अभिग्गई अभिगिण्हइ 2 पदम छट्टकम्यमण उपसंपजिसाणं विहरह। त्यारपछी ते शिवराजा अन्य कोई दिवसे प्रशस्त तिथि, करण, दिवस अने नक्षत्रना योगमां विपुल अशन, पान ग्वादिम अने स्वादिम वस्तुओने तैयार करावे . तैयार करावी मित्र, ज्ञाति, यावत् पोताना परिजनने, राजाओने अने क्षत्रियोने आमन्त्रण करे के, आमन्त्रण करी त्यार वाद स्नान करी यावत् शरीरने अलंकृत करी भोजनवेलाए भोजनमंडपमा उत्तम मुखासन उपर वेसी मित्र, ज्ञाति अने पोताना वजन यावत् परिजन साधे तथा राजा अने क्षत्रियो साथे विपुल अशन, पान, खादिम अने स्वादिम भोजन करी तामलितापसनी पेठे यावत् ते शिवराजा बधाओनो सत्कार करे छ, सन्मान करे हे. सत्कार अने सन्मान करीने मित्र, ज्ञाति, पोताना वजन, यावत् परिजननी तथा राजाओ, क्षत्रियो अने शिवभद्र राजानी रजा मागे छे. रजा मागीने अनेक प्रकारना लोढी, | लोढाना कडायां, कडछा यावत् तापसना उचित उपकरणो लइने गंगान कांठे जे आ वानप्रस्थ तापसो रहे छे-इत्यादि सर्व पूर्ववत् RECE%E5%94% CHAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Maa Jan Aradhana Kendra Acharya Se Klasagarsun Gyarmandir प्राप्तिः 1948 // जाणवू, यावत् ते दिशाप्रोक्षक तापसोनी पासे दीक्षित थह दिशाप्रोक्षकतापसरूपे प्रवज्या ग्रहण करी प्रवजित थइने ते आ प्रकारनो अभिग्रह धारण करे छ-'मारे यावज्जीव निरंतर छठु छट्ठनो तप करको कल्पे'-इत्यादि पूर्ववत् अभिग्रह ग्रहण करीने प्रथम छट्ठ 3 तपनो स्वीकार करी विहरे छे. का उद्देशा नए णं से मिवेरायरिसी पढमट्ठक्वमणपारणगसि आयावणभूमीओ पञ्चोकहइ आयावणभूमिओ पनोरुहित्ता वागलबत्थनियत्थे जेणेव मा उडा तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हइ गिणिहत्ता पुरच्छिम दिस पोक्खेह पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरग्वउ मिवं रायरिसिं अभिः 2, जाणि य तस्य कदाणि य मूलाणि यतयाणि य पत्साणि य पुष्पाणि च फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य* ताणि अणुजाणउसि कह धुरच्छिमंदिसं पसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि यताई गेण्ड) 2 किढिणसंकाइयं भरेइ कढि०१ दम्मे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गेण्डेड 2 जेणेव सए उडए तेणेव | उवागच्छह 2 किढिणसंकाइयगं ठवेइ किढि०२ वेदिं यड्डेड 2 उबलेवणसंमजणं करेइ उ०२ दम्भमगम्भकलसाह. स्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेच उवागच्छह गंगामहानदी ओगाहेति जलमजणं करेड 2 जलकीड करेइहाजलाभिसेयं करेति 2 आयंते चोक्खे परमसुहभूण देवयपितिकयकले दम्भसगम्भकलसाहत्थगए गंगाओ म. | नईओ पच्चुत्तरइ 2 जेणेव मग उडए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि य वालुयापहि | य वेति रपति वेति पत्ता सरगणं अरणिं महेति सर०२ अग्गि पाडेति अग्गि मंधुकह 2 ममिहाकट्ठाई %*%ACAN Re% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रक्षप्तिः // 949 // ११शतके उद्देशा // 949 // X 4 पक्खिबह समिहाकट्ठाइं पक्विवित्ता अग्गि उज्जालेइ अग्गि उल्लालेत्ता-'अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे / तं०-सकहं वक्कलं ठाणं. सिन्जाभंडं कमंडलं // 70 // दंडदारूं तहा पाणं, अहे ताई समादहे / / महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणित्ता चळं साहेह, चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वह स्महदेवं करेत्ता अतिहिपूर्य करेइ अतिहिपूर्य करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति, त्यारवाद प्रथम छट्ठ तपना पारणाना दिवसे ते शिव राजर्षि आतापना भूमिथी नीचे आवे छे, नीचे आवीने चालकलना वस्त्र पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, त्या आवी किढिन (वांसजें पात्र) अने कावडने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी पूर्व दिशाने प्रोक्षितकरी 'पूर्व दिशाना सोम महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थएला शिव राजर्पित रक्षण करो, अने पूर्व दिशमा रहेला कंद, मूल, छाल, पांदडा, पुष्प, फल, बीज अने हरित-लीली बनस्पतिने लेवानी अनुज्ञा आपो-एम कही ते शिव राजर्षि पूर्व दिशा तरफ जाय हे, जइने त्यां रहेला कंद, यावत्-लीली वनस्पतिने ग्रहण करीने पोतानी कावड भरे छे. त्यार पछी. दर्भ, कुश, समिध-काष्ठ अने झाडनी शाखाने मरडी पांदडाओने ले छ; लेईने ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, आवीने कावडने नीचे मूके के, मूकीने वेदिकाने प्रमार्जित करे छ पछी वेदिकाने (छाण पाणीवडे) लीपी शुद्ध करे छे. त्यारबाद डाभ भने कलशने हाथमां लइ ज्यां गंगा | महानदी छे, त्यां आवीने गंगा महानदीमा प्रवेश करे छे, प्रवेश करी डुबकी मारे छे, जलक्रीडा करे छ, अने स्नान करे छ, पछी आचमन करी चोक्खा थइ-परम पवित्र थइ देवता अने पितृ कार्य करी डाम अने पाणीनो कलश हाथमा लइ गंगा महानदीथी | बहार नीकळीने ज्यां पोतानी झुपडी छे, त्यां आवे छे आवीने डाम, कुश अने वालुका बडे वेदिने बनावे छे, बनावी मथनकाष्ठवडे %A3%ERe-% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्ति 95011 वार 950 // अरणिने घसे छे, घसीने अग्नि पाडे छ, पाडीने अग्रिने सळगावे छे, पछी तेमा समिधना काष्ठोने नांखी ते अधिने प्रज्वलित कर छ / अने अमिनी दक्षिण बाजुए आ सात वस्तुओ मुके छे ते आ प्रमाणे -"1 सकथा (उपकरणविशेष), 2 बल्कल, 3 दीप, 4 शय्याना उपकरण, 5 कमंडल, 6 दंड अने 7 आत्मा (पोते). ए सीने एकठा करे छे" पछी मध, घी अने चोखा बडे अमिमां होम करे छे होम करीने चरु-बलि तैयार करे छे, अने बलिथी वैश्वदेवनी पूजा करे छे, त्यारबाद अतिथिनी पूजा करी ते शिव राजर्षि पोते आहार कर छे. ली तए णं से सिवे रायरिसी दोचं छट्टक्स्वमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ट| क्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोकहइ आयावण०२ एवं जहा पदमपारणगं नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति 2 दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेस तं चेव आहारमाहारेइ, तए ण से सिवरायरिसी तचं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरति, तए ण से सिवे रायरिसी सेस तं चेव नवरं पचच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेस तं चेव जाव आहारमाहारेह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्खमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्वमणं एवं तं चेव नवरं उत्तरदिसं पोक्खेह उत्सराए दिसाए बेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेस तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेह // (मूत्रं 417) // त्यारवाद ते शिवराजर्षि फरीवार छ? तप करीने विहरे छे, पछी ते शिवराजर्षि आतापनाभूमिथी उतरीच कलतुं वस्त्र पहेरे छे, +964--SCRk For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके 4%AC उद्देशा // 951 // | इत्यादि बधुं प्रथम पारणानी पेठे जाणवू. परन्तु विशेष ए के के बीजा पारणा वखते दक्षिण दिशाने प्रोक्षित करे-पूजे, तेम करीने | एम कहे के 'दक्षिण दिशाना (लोकपाल) यम महाराजा प्रस्थान-परलोकसाधन-मां प्रवृत्त थएला शिवराजर्षिर्नु रक्षण करों' इत्यादि बाल्पा | सर्व पूर्ववत् कहे, यावत् पोते आहार कर के. पछी ते शिवराजर्षि त्रीजा छ? तपने स्वीकारी विहरे , तेना पारणानी बधी हकीकत // 951 // पूर्वनी पेठे जाणवी, परंतु विशेष ए के, पश्चिम दिशानुं प्रोक्षण-पूजन-करे, अने एम कहे के पश्चिम दिशाना (लोकपाल) वरुण Pमहाराजा प्रस्थान-परलोक साधनमा प्रवृत्त थयेला शिव राजर्षितुं रक्षण करो, बाकी वर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् त्यार पछी ते सीआहार करे. पछी ते शिवराजर्षि चोथा छदुना तपने स्वीकारी विहरे छे-इत्यादि पूर्ववत जाणवं. परन्तु (चोथे पारणे) उत्तर दिशाने। पूजेने, अने एम कहे के के 'उत्तर दिशाना (लोकपाल) वैश्रमण महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थयेला शिवराजषिर्नु रक्षण करो, बाकी |वधू पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् त्यार पर्छ। पोते आहार करे छे. // 417 // आ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणं अनिक्खित्तणं दिसाचक्कवालेणं जाव आयावेमाणस्स पगइमद्द याए जाब विणीययाए अन्नया कयावि तयावरणिज्जाणं कम्माण वओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्म विभंगे नाम अन्नाणे समुप्पन्ने, से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नणं पासह अस्मि लोए सत्त दीवे सत्त समुद्दे तेण परं न जाणति न पासति, ता णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अम्भत्थिए जाव समुप्पजित्थाअस्थि णं मम अइसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा मत्त समुद्दा, तेण परं बोच्छिन्ना दीया य समुद्दा य, एवं मंपेहेइ एवं.२ आयावणभूमीओ पञ्चोकहइ आ०२ वागलषस्थनियत्थे जेणेव सप उडए HACK RE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmander ११शतके उद्देशान // 952 // तेणेव उवागच्छह 2 सुबहुं लोहीलोहकडाहकडच्छुयं जाव भंडगं किदिणसंकाइयं च गेण्हह 2 जेणेव हस्थिणा | पुरे नगरे जेणेव नायसाबसहे तेणेव उबागच्छद उवा०२ भंडनिक्खेवं करेह 2 हथिणापुरे नगरे सिंघाडगतिगव्याख्या प्राप्तिः जावपहेसु बहुजणस्स एचमाइक्वइ जाव एवं परूवेह-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदमणे समु 952 // प्पन्न, एवं स्वलु अस्सि लोए जाब दीवा य ममुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमढे सोचा | निमम्म हस्थिणापुरे नगरे मिंघाडगतिगजाब पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ जाब परूवेइ-गवं खलु लदेवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्वइ जाव परूवेह-अस्थि ण देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदसणे PIजाव सेण परं चोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं मन्न एवं / | एप्रमाणे निरंतर छट्ठ छहना तप करवाधी दिक्चकवाल तप करता, यावत् आतापना लेता ते शिवराजर्षिने प्रकृतिनी भद्रता &aa अने यावद् विनीतताथी अन्य कोई दिवसे तेना आवरणभूत कमोना क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषण करता विभंग नामे ज्ञान उत्पम थयु. पळी ते उत्पन्न थयेला ते विभंगज्ञान वडे आ लोकमां सात द्वीपो अने सात समुद्रो जुए डे, ते पछी आगळ जाणता नथी, के जोता नथी. त्यारवाद ते शिवराजर्षिने आ आवा प्रकारनो अध्यवसाय उत्पन्न थयो के, 'मने अतिशयवाछु ज्ञान अने द.न उत्पन्न थयु छ, अने ए प्रमाणे पा लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो के, अने त्यारपछी द्वीपो अने समुद्रो नथीएम विचारे ने, विचारीने आतापना भूमिथी नीचे उतरे दहे, अने वल्कलना बस्त्रो पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवी अनेक |प्रकारना लोढी, लोढाना कडायां अने कडछा यावद् वीजा उपकरणो अने काबढने ग्रहण करें छे, अने ज्यां हस्तिनापुर नगर छ भने 6 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri ahova Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie 459 प्राप्तिः ज्यां तापसोनुं यावद् आश्रम के त्यां आवे छे, आवीने उपकरण वगेरेने मूके छे, अने हस्तिनापुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक, यावद् | राजमार्गोमा घणा माणसोने एम कड़े छे, यावद् एम प्ररूपे छे के, 'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाळशान अने दर्शन उत्पन्न थाले छे, अने आ लोकमा ए प्रमाणे सात द्वीपो अने सात समुद्रो छ,' त्यास्वाद ते शिवराजा पासेथी ए प्रकारचं वचन सांभळी, अवधारी|Bा उद्देशार हस्तिनापुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक, यवद् राजमार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम कहे छे-यावद् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो || // 953 // शिवराजर्षि आ प्रमाणे कहे छे-यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाल ज्ञान अन दशन उत्पन्न थयुं छे, यावत् एर प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी नथी, ते एम केवी. रीते होय? तेणं कालेणं तेणं समएण सामी समोसढे परिसा जाव पडिगया / तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी जहा वितियसए नियंदुहेसए जाव अडमाणे बहुजणसई निमामेड़ बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्वह एवं जाव परूबेह-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रापरिसी एवं आहवह जाव परूबेहअस्थि णं देवाणुप्पिया! तं चेव जाव वोच्छिन्ना दीवाय समुद्दा य, से कहमेयं मन्ने एवंी, तप णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म जाव सड्ढे जहा नियंदुद्देसए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं 1, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं बयासी-जन्नं गोयमा ! से बहुजणे अन्नमनस्स एवमातिक्खहतं चेव सब्वं भाणियव्वं जाव भंडनिकखेवं करेति हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग०२ चेव जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, ताणं तस्स सिक्स्स रायरिसिस्स अंतिए पयमटुं सोचा निसम्म तं चेव + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir ११शतके देशा 954 // सव्वं भाणियवं जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवाय समुद्दा य तण मिच्छा, अहं पुण गोयमा एवमाइक्वामि जाव परूवेमि-एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एगविहि विहाणा वित्थारओ अणेगविहिविहाव्याख्या तणाएवं जहा जीवाभिगमेजाव सयंभूरमणपज्जवसाणा अस्मि सिरियलो" असंखेज दीवसमुद्दे पन्नत ममणाउसो! / / प्रज्ञप्तिः 954 ले काले-ते समये महावीरस्वामी समोसर्या, पर्षद् पण पाछी गई. ते काले-ते समये श्रमण भगवन् महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभृति नामे अनगार बीजा शतकना निग्रन्थोद्देशकमां वर्णव्या प्रमाणे गवन् मिक्षाए जता घणा माणसोनो शब्द सांभळे हे-बहु माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहेहे-यावत् प्रसपेरे के 'हे देवानुप्रियो ! शिव राजर्षि एम कहे डे-यावत् एम प्ररूपे छे-हे देवानु-16 | प्रियो ! मने अति यवाळु ज्ञान अने दर्शन उत्पन थ\ छे, अने यावत् सात द्वीप अने सात समुद्रो, त्यार पछी द्वीपो अने समुद्रो | नथी, तो ए प्रमाणे केम होय? [प्र०] त्यार पछी भगवान् गौतमे घणा माणसो पासे आ वात सांभळी, अवधारी श्रद्धावाळा थई निग्रंथ उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत् श्रमण गगवंत महावीरने पछ्यु-हे भगवन् ! शिवराजर्षि को ले के-'यावत् सात द्वीप अने | सात समुद्र के, त्यार पछी कांइ नी' तोए प्रमाणे कम होइ शके ? [उ०] 'हे गौतम एम कही श्रमण भगवान महावीरे गौतमने आ प्रमाणे कबु-हे गौतम! घणा माणसोजे परस्पर ए प्रमाणे कहे छ,-इत्यादि धुं कहे, यावद् ते शिवराजर्षि पोताना उपकरणो मूके के अने हस्तिनापुर नगरमा जइ शृंगाटक, त्रिक अने बहु प्रकारना मार्गोमा आ प्रमाणे कहे छे, यावत् सात द्वीपो अने समुद्रो *छे त्यार पछी नथी, त्यारबाद ते शिवराजषिनी पासे आ बात सांभळी अर्थ अबधारी हस्तिनापुर नगरमा माणसो परस्पर आ प्रमाणे 181 कहे के के-'यावत् मात द्वीप अने समुद्रो छे, ने पछी, कांइ नी' इत्यादि, ते मिथ्या (असत्य) छे. हे गौतम ! हुंए प्रमाण कहुं छु, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir ११शव प्रवासिः CENS HORSt: यावत् प्रस्' -ए धमागे जंबूद्वीपादि द्वीपो अने लवणादि समुद्रो वधा (वृत्ताकार होबाथी) आकारे एक सरवा छे, पण विचालताए / द्विगुण द्विगुण विस्तारवाळा होवाथी अनेक प्रकारना छे-इत्यादि सर्व 'जीवाभिगम'मां कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् हे आयुष्मन् श्रमण! आ तिर्यग्लोकमा स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीपो अने समुद्रो कथा . | उद्देशान ____ अस्थि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दवाई सवनाईपि अवनाईपि सगंधाइंपि अगंधाईपि सरमाइंपि अरमाइंपि // 955 // सफासाइपि अफासाईपि अनमनबद्धाई अन्नमनपुट्ठाई जाव घडताए चिट्ठति?, हंता अस्थि / अस्थि ण भंते! लवणसमुद्दे दबाई सवन्नाइंपि अवनाईपि मगंधाइंपि अगंधाइंपि सरसाईपि अरसाइंपि सफामाईपि अफासाइंपि अनमन्त्रबद्धाई अनमनपुट्ठाई जाव घडत्ताग चिट्ठति ?,हंता अस्थि / अस्थि णं भंते धायहसंडे दीवे दबाई सब-14 नाइंपि. एवं चेव एवं जाव सयंभूरमणममुद्दे ? जाब हंता अस्थि। नए णं मा महतिमहालिया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्ठा समणं भगवं महावीरं बंदा नमसह वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिस पडिगया, तएणं हथिणापुरे नगरे सिंघाडगजावपहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्वइ जाच परूवेह-जन्नं देवाणुप्पिया। मिवे रायरिसी एचमाइक्बह जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणे जाद समुद्दा यतं नो इणढे समढे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्वइ जाव परूवेह-एवं खलु एयरस सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणंतं चेव जाव भंडनिक्खेवं करेह भंडनिक्खेवं करेत्ता हथि. *णापुरे नगरे सिंघाडग जाव समुहा य, ता णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एपमहूँ सोचा निसम्म जाव RAKESPECARS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir का व्याख्या ११सके प्रज्ञप्तिः // 956 // CHS समुदा यसपणं मिच्छा, ममणे भगवं महावीरे एबमाइक्खड़-एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा तं चेव जाव असंखेजा दोवसमुद्दा पन्नत्ता समणाउमो।। मा प्र०] हे भगवन् : जंबूद्वीप नामे द्वीपमा वर्णवाळां, वर्णरहित, गंधवाळां, गंधरहित, रसवाळां, रसरहित, पचान्ठां अने उद्देशा स्पशरहित द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट यावद् अन्योन्य संबद्ध है? [उ०] हे गौतम ! हा, छे. [4] हे भगवन् ! लवण // 956 // समुद्रमा वर्णवाळा, वर्णविनाना, गंधवाळा, मंध विनाना, रमवाळां, रसविनाना, स्पर्शबाळा ने स्पर्शविनाना द्रव्यो अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य संबद्ध छे ? [उ०] हे गौतम! हा, छे. [प्र०] हे भगवन् ! धातकिखंडमां अने ए प्रमाणे यावत् वयंभूरमण समुद्रमा वर्णवाळां ने वर्णरहित इत्यादि पूर्वोक्त द्रव्यो परस्पर संबद्ध छे इत्यादि यावत् ? [उ.] हे गौतम ! हा, छे त्यां। सुधी जाणवू. त्यारवाद ते अत्यन्त मोटी अने महत्त्व युक्त परिषद् श्रमण भगवान महावीर पासेथीए अर्थ सांभळी अने अवधारी हृष्ट तुष्ट थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी नमी जे दिशामांथी आवी हती ते दिशामा गइ. त्यारपाद हस्तिनापुर नगरमा श्रृंगाटक यावद् वीजा मागोमा घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे काहे छे, यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि जे एम कहे हे-- यावत प्ररूपे ले-'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवाळु ज्ञान उत्पन्न थयु मे, यावत् वीजा द्वीप-समुद्रो नथी; ते तेनु कथन यथार्थ नथी. श्रमण भगवान महावीर ए प्रमाणे कहे छे, यावत् प्ररूपे छ के-छट्ठ छट्ठना तपने निरंतर करता शिवराजर्षि पूर्व कह्या प्रमाणे यावत् पोताना उपकरणो मूकीने हस्तिनापुर नामना नगरमां शृंगाटक यावत् बीना मार्गोमां प प्रमाणे कई छ-यावत् सात द्वीपसमुद्रो छे, बीजा नथी. त्यारवाद ते शिवराजर्षिनी पासे ए बात सामळीने अवधारीने घणा माणसो एम कहे छ-'शिवराजर्षि जे|| . For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ११शत व्याख्या प्रज्ञाप्तिः // 957 // उद्देशा९ // 957 // ॐ कहे छे के मात्र सात द्वीप समुद्रो छे' ते मिथ्या छे, यावत् श्रमण भगवान महावीर ए प्रमाणे कहे छ के-हे आयुष्मन् श्रमण ! जंबूपद्र | द्वीपादि + पो अने लवणादि समुद्रो एक सरखा आकारे छे-इत्यादि पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू, यावन् असंख्याता द्वीप-समुद्रो कह्या छे. ताणं से सिवे रायरिसी बहुजणस्स अंतिय एयमट्ट सोचा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिा भेदम मावन्ने कलुससमावन्ने जाए याचि होत्या, नए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स संकियस्स कंखियस्स जाच कलुससमावन्नस्स से विभंगे अन्नाणे बिप्पामेव परिवडिप, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्म अयमेयारूवे अन्भस्थिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी आगासगएणं चकर्ण जाव सहसंबवणे उजाणे अहापडिरूवं जाव विहरह, तं महाफल ज्वरलु तहारूवाणं अरहताणं भगबताणं नामगोयस्स जहा उवबाइए जाव गहणयाए, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि जाव पज्जु. वासामि, एवं णे इहभवे य परभवे य जाब भविस्सइत्तिक एवं संपेहेति // त्यार बाद ते शिवराजर्षि घणा माणसो पासेथी ए वातने सांभळीने अने अवधारीने शंकित कांक्षित, संदिग्ध, अनिश्चित अने कलुषित भावने प्राप्त थया, अने शंकित, कांक्षित, संदिग्ब, अनिश्चित अने कलुषित भावने प्राप्त थयेला शिवराजर्षिन विभंग नामे अज्ञान तरतज नाश पाम्युं. त्यार पछी ते शिवराजर्षिने आवा प्रकारनो आ संकल्प यावत् उत्पन्न थयो-"ए प्रमाणे श्रमण भगवान् महावीर धर्मनी आदि करनारा, तीर्थकर, यावत् सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी छेअने तेओ आकाशमा चालता धर्मचक्रवडे यावत् सहस्राम्रवन: नामे उद्यानमा यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करी यावद् विहरे छे. तो तेवा प्रकारना अरिहंत भगवंतोना नामगोत्रनुं श्रवण करवू ते महा Far Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Avadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः 958 उद्देशा // 958 // फळवा- छ, तो अभिगमन बंदनादि माटे तो शु कहे ?-इत्यादि औपपातिक मूत्रमा कमा प्रमाणे जाणवू, यावत् एक आर्य धार्मिक 3 सुवचन- श्रवण करवू माहा फलवाहुं छे, तो तेना विपुल अर्थन अवधारण करवा माटे तो शु कहे, ? तेथी हुँ श्रयण भगवान महा वीरनी पासे जाउं, बांदु अने नमु, यावत् तेओनी पर्युपासना करुं, ए मने आ भवमा अने परभवमां यावत् श्रेयने माटे थशे" गम विचारे छे. ला एवं २त्ता जेणेव तावसासह तेणेव उवागच्छद तेणव उवागकिछत्ता तावमावसहं अणुप्पविसतिर सत्ता सुबहुं लोहीलोहकडाह जाव किढिणसंकातिगं च गेण्हा गेण्हित्ता ताबसावमहाओ पडिनिक्वमति ताव. परिवडियविम्भंगे हस्थिणागपुरं नगरं मज्झमज्झणं निग्गच्छद निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उजाणे जेणेव कसमणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपया| हिणं करेइ वंदति नौमति बंदित्ता नमंसित्ता नचासन्ने नाइदूरे [अन्यायम् 7000] जाव पंजलिउडे पज्जुवासइ, तए णं समणे भगवं महावीरे सिवस्म रायरिसिस्स तीसे य महतिमहालियाए जाच आणाए आराहए भवह, ताणं से सिवे रायरिसी समगस्म भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा निमम्म जहा खंदओ जाब उत्तरपुरच्छिम दिसिभागं अवकमइ 2 सुबहुं लोहीलोहकडाह जाव किढिणसंकातिग एगते एडेइ ए.२ मयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति मयमे०२ समणं भगवं महावीरं एवं जहेब उस भदत्ते तहेव पब्बइओ तहेव इकारस अंगाई | अहिज्जति तहेव मव्वं जाव सब्वदुक्म्वप्पहीणे // सूत्रं 418) // For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie +-2% ए प्रमाणे विचार करी ज्यां तापसोनो मठ छे त्यां आवे छे. आवी तापसोना मठमा प्रवेश करी घणी लोढी, लोढाना कडाया व्याख्या-1k यावत् कावड वगेरे उपकरणोने लेइ तापसोना आश्रमथी नीकळे छे. नीकळीने विभंगवानरहित ते शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगरनी बच्चो ११शतके प्रज्ञप्तिः | बच थईने ज्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान छे, ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवान महावीरने त्रण उद्देशा९ // 959 // // 959 // वार प्रदक्षिणा करीने वांदे छे अने नमे छे. वांदी अने नमीने तेजओथी बहु नजीक नहीं अने बहुदर नहीं तेम उभा रही यावत् हाथ जोडी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवंत महावीरनी उपासना करे छ. त्यार बाद ते शिवराजपिने अने मोटामा मोटी पर्षदने श्रमण भग | बंत महावीर धर्म वीर धर्मकथा कहे छे. अने यावत् ते शिवराजर्षि आजाना आराधक थाय छे. पछी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवान् | महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी अने अवधारी स्कंदकना प्रकरणमा कह्या प्रमाणे यावत् ईशान कोण तरफ जहधणी लोढी, लीढाना कडाया यावत् कावड वगेरे तापसोचित उपकरणोने एकांत जग्याए मूके छे. मूकीने पोतानी मेळे पंच मुष्टि लोच करी, श्रमण भगवंत महावीर पासे ऋषभदत्तनी पेठे प्रव्रज्यानो स्वीकार कर छे, अने ते प्रमाणे अग्यार अंगोन अध्ययन करे छ, तथा एज प्रमाणे | यावत् ते शिवराजर्षि सर्व दुःखथी मुक्त थाय छे. // 418 // भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह नमसह वदिता नमंसित्ता एवं बयासी-जीवाण मंते ! | सिममाणा कयरंमि संघयणे सिज्झति !, गोयमा! वयरोसभणारायसंघयणे सिझंति एवं जहेव उववाइए नहेव संघयणं मंठाणं उच्च आउयं च परिवसणा, एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियब्बा जाव अब्बाबाट |सोक्खं अणुहवं (हुंती) ति सामया सिद्धा / सेवं भंते!:त्ति // ( सूत्रं 419) सिवो समत्तो।। 11-9 // 444* For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 960 // 'हे भगवन् ! एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छ अने नमे छे, बांदी अने नमीने भगवंत गौतमे आ |प्रमाणे पूछ्यु-[३०] हे भगवन् ! सिद्ध थता जीवो कया संघयणमां सिद्ध थाय ? [उ०] हे मौतम ! जीवो वजऋषभनाराच संघयणमां सिद्ध थाय"-इत्यादि औषपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे "संघयण, संस्थान, उंचाइ, आयुष, परिवसना (वास)"-अने ए प्रमाणे आखी सिद्धिंगडिका कहेवी; यावत् अव्यावाध (दुःखरहित) शाश्वत सुखने सिद्धो अनुभवे छे. 'हे भगवन् ! ते एमजके, हे भगवन् ! ते मएमज छे' एम कही यावद् विहरे छे. / / 419 / / भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देश:१० // 910 // HTIONARA - KARNAERRORAKHARA उद्देशक 10. रायगिहे जाव एवं बयासी-कतिविहे गं भंते ! लोग पन्नत्ते, गोयमा चउबिहे लोग पन्नत्ते, तंजहा-दब्बलोए खेत्तलोए काललोए भावलोए / खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पण्णते?, गोषमा ! तिविहे पन्नत्ते, तंजहाअहोलोयखेत्तलोए 1 तिरियलोयखेत्तलोए 2 उडलोयखेत्तलोए / अहोलोयखेत्सलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते , गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोग जाव अहेसत्तमापुढविअहोलोयखेत्तलोग। तिरियलोयखेत्तलोए पां भंते! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा! असंखेजविहे पन्नत्ते, तंजहा-जंबुद्दीवे तिरियखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए / उड्ढलोगखेत्तलोग णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते , गोयमा ! पन्नरस विहे For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रजाप्तिः // 961 // ११शतके उद्देश:१० // 962 // |पन्नत्ते, संजहा-सोहम्मकप्पउडलोगखेत्तलोए जाव अच्चुयउडलोए गेवेजविमाणउडलोए अणुत्तरविमाण इसिं| पम्भारपुढविउडलोगखेत्तलोए / अहोलोगखेत्तलोए णं भंते। किंसंठिए पन्नत्ते', गोयमा! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते / (प्र०] राजगृह नगरमां (गौतम) यावद् आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! लोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! हा लोक चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-१ द्रव्यलोक, 2 क्षेत्रलोक, 3 काललोक अने 4 मावलोक. [H0] हे भगवन् ! क्षेत्र लोक केटला प्रकारनोरह्यो के ? [उ०] हे गौतम !त्रण प्रकारनो करो छे. ते आ प्रमाणे-१ अधोलोकक्षेत्रलोक, तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक अने 3 ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक. [प्र०] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो को छे ? [उ०] हे गौतम ! सात प्रकारनो कह्यो छे. ते आ प्रमाणे-१ रत्नप्रभापृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक, यावत् 7 अधःसप्तमपृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् / तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कयो के ? [उ०] हे गौतम! असंख्य प्रकारको कह्यो छ, ते आ प्रमाणे-जंबुद्धीपतियग्लोकक्षेत्रलोक, यावत् स्वयंभूरमणसमुद्रतिर्यग्लोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? (उ०] हे गौतम ! पंदर प्रकारनो कया छ, ते आ प्रमाणे-१ सौधर्मकल्पऊवलोकक्षेत्रलोक, यावद् 12 अच्युतकल्पऊलोकक्षेत्रलोक, 13 ग्रेवेयकविमानललोकक्षेत्रलोक, 14 अनुत्तरविमानऊलोकक्षेत्रलोक अने 15 ईषत्प्राग्भारपृथिव ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छे ? [उ०] हे गौतम! अधोलोक त्रापाने आकारे के. तिरियलोयखेत्सलोए पं भंते! किंसंठिए पन्नत्त?, गोयमा! झल्लरिसंठिए पन्नत्ते / उड्ढलोयखेत्तलोयपुच्छा | उड्ढमुइंगाकारसंठिए पन्नत्ते / लोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते!, गोयमा! सुपट्टगसंठिए लोए पन्नत्ते, तंजहा KESAKACTECE % For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्याप्रज्ञप्तिः 962 // हेट्ठा विच्छिन्न मज्झे संखित्ते जहा मत्तममए पढमुद्देसए जाव अंतं करेंति / अलोए ण भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते, गोयमा!झुसिरगोलसंठिए पन्नत्त / अहेलोगखेत्तलोए ण भंते ! किं जीवा जीवदेसाजीवपएसा एवं जहा इंदा 5 दिसा तहेव निरवसेस भाणि यवं जाव अद्धासमए / तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! किं जीवा ?, पवं चेच, एवं | उड्डलोयखेत्तलोएवि, नवरं अरूवी छब्धिहा, अद्धासमओ नत्थि।। | (प्र०] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छे ? [30] हे गौतम / ते झालरने आकार ले. [प्र०] हे भगवन् ! ऊचलोकक्षेत्रलोक केवा आकार छ / [उ.] हे गौतम! उभा मृदंगने आकारे छ. [प्र०] हे भगवन् ! लोक केवा आकारे संस्थित छे? [30] हे गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठकने आकारे संस्थित छे, ते आ प्रमाणे-"नीचे पहोळो, मध्यभागमा संक्षित-संकीर्ण"-इत्यादि सातमा शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे कहेवू. (ते लोकने उत्पन्न ज्ञान दर्शनने धारण करनारा केवलज्ञानी जाणे छे अने त्यार पछी सिद्ध थाय छे) यावद् 'सर्व दुःखोनो अन्त कर छे'. [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केवा आकारे कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! | अलोक पोला गोळाने आकार कह्यो छे. [प्र.] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक झुं जीवरूप छ, जीवदेशरूप छ, जीवप्रदेशरूप छे | इत्यादि / [30] हे गौतम ! जेम एन्द्री दिशा संबन्धे का छे ते प्रमाणे सर्व अहिं जाणवू. यावद् अद्धासमय (काल) रूप छे'. | [] हे भगवन् ! तिर्यग्लोक शु जीवरूप छे इत्यादि / [उ.] पूर्ववत् जाणवू. ए प्रमाण ऊचलोकक्षेत्रलोक संबन्धे पण जाणवू; परन्तु विशेष ए छे के ऊर्ध्वलोकमा अरूपी द्रव्य छ प्रकारे छे, कारण के त्या अद्धा समय नथी. लोए णे भंते ! किं जीवा जहा वितियसए अस्थिउद्देमए लोगागास, नवरं अरूवी सत्तवि जाव अहम्मस्थि-12 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म्बाख्या-1 प्राप्ति // 993 // का ११शतके उद्देशार. // 16 // कायस्स पएसा नो आगासत्यिकाये आगासस्थिकायस्म देसे आगासस्थिकायस्सपएसा अद्धासमए सेस तं | चेव // अलोप ण भंते ! कि जीवा? एवं जहा अस्थिकायउद्देसए अलोयागासे तहेव निवसेस जाव अणंतभागुणे / / अहेलोगखेत्तलोगस्स ण भंते ! एगमि आगामपएसे किं जीवा जीवदेसाजीवप्पएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा?, गोपमा! नो जीवा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीवदेमावि अजीवपएसावि, जे जीवदेमा ते नियमा एगिदियदेमा 1 अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे 2 अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा 3 एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणिंदिसु जाव अहवा एगिदियदेमा य अणिदियाण य देसा य, जे जीवपएमा ते नियमा एगिदियपएसा 1 अहवा एगिदियपएमा य बंदियस्म पएमा 2 अहवा एगिदियपपसा य बेई दियाण य पएसा एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिंदिएसु, अणिदिएसु तियभंगो. जे अरूबी अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रूवी अजीवा य अरूवी अजीवा य, रूबी तहेव, जे अरूवी अजीवा ते पंचविहापण्णत्ता, तंजहा-नो धम्मस्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे 1 धम्मस्थिकायस्म पएसे 2 एवं अहम्मस्थिकायस्मवि 4 अद्धासमए 5 / / [प्र.] हे भगवन् ! लोक शुं जीव के इत्यादि ? [उ०] बीजा शतकना अस्तिउद्देशकमां लोकाकाशने विषे का छे ते प्रमाणे अहिं जाणवू. परन्तु विशेष एछे के अहिं अरूपी सात प्रकारे जाणवा, यावद् 4 'अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, 5 नोआकाशास्तिकायरूप. आकाशास्तिकायनो देश, 6 आकाशास्तिकायना प्रदेशो अने 7 अद्धासमय. बाकी पूर्व कह्या प्रमणे जाणवू. [म०] हे भगवन् ! अलोक शुं जीव छे इत्यादि ? [उ.] जेम अस्तिकायउद्देशकमां अलोकाकाशने विषे कयुं छे ते प्रमाणे मधुं अहीं जाणवू, यावत् ते %ACCIRCLX For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir E(सर्वाकाशना) 'अनन्तमा भाग न्यून छे'. [प्र.] हे भगवन ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमां शु१जीबी २जीवना देशो 3 अजीवो, 4 अजीवोना देश अने 5 अजीवना प्रदेशोछे ? [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदशो,51 व्याख्याप्रजाप्तिः15 18 अजीबो, अजीवना देशो अने अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना देशो छे ते अवश्य 1 एकेन्द्रियजीवोना देशोछ 2 अथवा उद्देशन 1934 एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवनो देश छे, 3 अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. प प्रमाणे | // 964 // मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पो यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अन अनिन्द्रियोना देशो' छ, तथा त्यां जे जीवना प्रदशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छ, 1 अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय है जीवना प्रदेशो छ, अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदशो अने बेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय अने | अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण भांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीबो छे ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअ. हाजीव अने अरूपिअजीव. ते मां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाण जाणवा. अने जे अरूपिअजीवो छे ते पांच प्रकारना कह्या के. ते आ प्रमाणे-१६ नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, 2 धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे 4 अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू. अने 5 अद्धा समय, तिरियलोगखेत्तलोगस्स यां भंते ! एगंमि आगामपएसे किं जीवा, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, पवं उडलोगखत्तस्सवि. नवरं अद्धासमओ नस्थि, अरूवी चउब्विहा / लोगस्स जहा अहेलोगखत्तलोगस्म गमि आगामपएसे || अलोगस्म ण भंत! एगमि आगासपएसे पुच्छा, गोयमा! ना जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते मब्वागासस्स अणंतभागूणे // दबओणं अहेलोगवत्तलोग अणंताई जीव FRite* For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |११शतके व्याख्याप्रशतिः // 965 // ॐARKsh दव्वाई अणंताई अजीवदम्बाई अर्णता जीवाजीवदव्या एवं तिरियलोयखेत्तलोएवि, एवं उडलोयखेत्तलोएवि, दवओ णं अलोए णेवस्थि जीवदवा नेवत्थि अजीवदव्वा नेबत्थि जीवाजीवदव्वा एगे अजीवदव्वदेसे जाव सव्वागासअणतभागूणे / कालओण अहेलोयखेत्तलोए न कयाइ नासि जाव निचे एवं जाव अहोलोगे / भावओ उद्देश:१. णं अहेलोगखेत्तलोग अणंता बन्नपज्जया जहा खदए जाव अणंता अगुरुयलहुयपजवा एवं जाव लोग, भावओण| // 965 // अलोए नेवस्थि वनपजवा जाव नेवधि अगुफलहुयपजवा एगे अजीयदबदेस जाव अणतभागणे (सूत्रं 420) / [4] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमां शुं जीयो छे ? इत्यादि [30] जेम अधोलोकक्षेत्रलोकना संबन्धे, कहा तेम अहीं बधुं जाणवू. ए प्रमाणे ऊथ्यलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशने विषे पण जाणवं, परन्तु विशेष छे के, त्यां | अद्धासमय नथी, माटे अरूपी चार प्रकारना छ, लोकना एक आकश प्रदेशमा अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा जेमते कजु ले तेम जाण. [प.] हे भगवन् ! अलोकना एक आकाश प्रदेश संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! त्यां 'जीयो नथी, जीव देशो नथी'-इत्यादि पूर्वनी पठे (सू. 14) कहे,, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणोथी संयुक्त छे अने सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून के. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यर्थी अधोलोकक्षेत्रलोकमां अनन्त जीव द्रव्यो छे, अनंत अजीव द्रव्यो छे अने अनंत जीवाजीव द्रव्यो छे. ए प्रमाणे तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकमां तथा ऊर्चलोकक्षेत्रलोकमां पण जाणवू. द्रव्यथी अलोकमां जीव द्रव्यो नथी, अजीच द्रव्यो नथी अने जीवाजीवद्रव्यो नथी, पण एक अजीबद्रव्यनो देश, यावत् सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. कालथी अधोलोकक्षेत्रलोक कोइ दिवस न हृतो एम नथी, यावत् नित्य छे. ए प्रमणे यावत् अलोक जाणवो. भावधी अधोलोकक्षेत्रलोकमां 'अनंत वर्ण पर्यवो CHERRACRORIES 45HE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति // 966 // ११शतके उद्देशा१. // 966 // SAKCIS-CA 12-इत्यादि जेम स्कंदकना अधिकारमा कयु छ तेम जाणवू, यावद् अनंत अगुरुलघुपर्ययो छे. ए प्रमाणे यावत् लोक सुधी जाणवू. भाषथी अलोकमां वर्णपर्यवो नथी, यावत् अगुरुलघुपर्यवो नथी, पण एक अजीवद्रव्यनो देश छे अने ते सर्वाकाशना अनंतमा टू भागे न्यून छे. / / 420 // ग लोए ण भंते। केमहालए पन्नत्ते?, गोयमा! अयन्नं जवुद्दीवे 2 सचदीवा० जाव परिक्खेवेणं, तेग कालेज | तेणं समपर्ण छ देवा महिड्डीया जाव महेसक्खाजबुद्दीवे 2 मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिविवतात्ताणं चिट्ठज्जा, अहे ण चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स 2 च उसुवि |दिसामु बहियाभिमुहीओ ठिचा ते चत्तारि बलिपिंडे जमगसमगं बहिगाभिमुहे पक्खिवेजा पभू णं गोयमा ! | ताओ पगमेगे देवे ते चत्तारि पलिपिंडे धरणितलमसंपत्त बिप्पामेव पडिसाहरित्तए, ते ण गोयमा ! देवा ताए उकिट्ठाए जाव देवगईए एगे देवे पुरच्छाभिमुहे पयाते एवं दाहिणाभिमुहे एवं पञ्चत्वाभिमुहे एवं उत्तराभिमुहे |एवं उडाभि० एगे अहोभिमुहे पयाए, तेणं कालेणं तेण ममरण वाससहस्साउए दारण पयाए, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, णो चेव ते देवा लोगत संपाउणति, तए णं तस्स दारगस्म आउए पहीणे भवति, णो चेव णं जाव संपाउणंति, नए ण तस्म दारगस्स अद्विमिंजा पहीणा भवंति णो चेव णं ते देवा लोगतं संपाउणंति, ना गं तस्म दारगस्म आसत्तमेवि कुलबसे पहीणे भवति णो चेच ण ते देवा लोगतं भामंपाउणंति, तए णं तस्म दारगस्म नामगोपवि पहीणे भवति यो चेवण ते देवा लोगतं संपाउणति, तेसिणं | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | भंते ! देवाणं किं गए वहुए अगए बहुगी, गोयमा गए बहुए, नो अगए बहुए, गयाउ से अगए असंखेजहभागे व्याख्या|अगयाउ से गए असंखेजगुणे, लोए ण गोधमा! पमहालए पन्नत्त / ११शतके प्राप्तिः [उ.] हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम! आ जंबूद्वीप नामे द्वीप सर्व द्वीपो अने समुद्रोनी अभ्य- उद्देशा१. 1967 // 14 तर छ, यावत् परिधि युक्त छे. ते काले-ते समये महर्धिक अने यावत् महासुखवाळा छ देवो जंबूद्वीपमा मेरुपर्वतने विपे मेरुपर्वतनी || चूलिकाने चारे तरफ वींटाइने उभा रहे, अने नीचे मोटी चार दिककुमारीओ चार बलिपिंडने ग्रहण करीने जंबूद्वीपनी चारे दिशामां बहार मुख राखीने उभी रहे, पछी तेओ ने चार बलिपिंडने एक साथे बाहेर फेंके, तोपण हे गौतम ! तेमांनो एक एक देव ते चार बलिपिडने पृथिवी उपर पडया पहेलां शीघ्र ग्रहण करवा समर्थ छ. हे गौतम! एवी गतिवाळा ते देवोमांथी एक देव उत्कृष्ट यावद् / त्वरित देवमतिबडे पूर्व दिशा तरफ गयो, ए प्रमाणे एक दक्षिण दिशा तरफ गयो, ए प्रमाणे एक पश्चिम दिशामां, एक उचर दिशामां, एक ऊर्ध्व दिशामा अने एक देव अधोदिशामां गयो. हवे ते काले, ते समये हजार वर्षना आयुषवाळो एक बाळक उत्पन्न थियो, त्यारपछी ते बाळकना मातापिता मरण पाम्या, तोपण नेटला वखत मुधी पण ने गएला देवो लोकना अंतने प्राप्त करी शकता|४ नथी. त्यारबाद ते बाळकनुं आयुष क्षीण थयु-पूरूं थयु, तोपण ते देवो लोकान्तने प्राप्त करी शकता नथी. पछी ते बाळकना अस्थि अने मजा नाश पाम्या, तोपण ते देवो लोकना अंतने पामी शकता नथी, त्यारबाद सात पेढी सुधी तेना कुलवंश नष्ट थया, तोपण ते देवो लोकांतने प्राप्त करी शकता नथी. पछी ते बाळकनुं नामगोत्र पण नष्ट थयु तोपण ते देवो लोकना अंतने पामी शकता नथी. II जो एमकेतो हे भगवन ! ते देवोए ओळगेलो मार्ग घणो छ के ओळंग्या विनानो मार्ग धणो छेउ० हे गौतम ! ते | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके उद्देश१० // 968 // देवो वडे ओळंगायेल-गमन करायेल-क्षेत्र वधारे छे, पण नहि ओळंगायेलु-नाहि गमन करायेलु क्षेत्र वधारे नथी. गमन करायेला क्षेत्रथी नहि गमन करायेलु क्षेत्र असंख्यातमा भागे छे. अने नहि गमन करायेला क्षेत्रथी गमन करायेलं क्षेत्र असंख्यात गुण छे. व्याख्या / हे गौतम! लोक केटलो मोटो को छे, प्रज्ञप्तिः // 968 // अलोए भंते : केमहालए पन्नत्त?, गोयमा! अयन्नं समयखेत्त पणयालीस जोयणसयसहस्साई आयामवि- पाखंभेण जहा बदए जाव परिक्ववेण, तेग कालेण तेण समएणं दस देवा महिड्डिया तहेव जाव संपरिक्वित्तार्ण संचिट्ठज्जा, अहे थे अट्ट दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ अट्ट बलिपिंडे गहाय माणुसुत्तरस्स पब्वयस्स च उसुवि दिसासु चउमुवि विदिसासु बहियाभिमुहीओ ठिचा अट्ट बलिपिंडे गहाच माणुसुत्तरस्स पब्वयस्स जमगसमगं बहियाभिमुहीओ पक्षिवेजा, पभू णं गोयमा! तओ एगमेगे देवे ते अह वलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए, ते ण गोयमा! देवा ताए उचिहाए जाव देवगईए लोगसि ठिच्चा असम्भावपट्टवणाए एगे देवे पुरच्छाभिमुहे पयाए एगे देवे दाहिणपुरच्छाभिमुहे पयाए एवं जाव उत्तरपुरच्छाभिमुहे एगे देवे उड्डाभिमुहे एगे। | देवे अहोभिमहे पयाए, तेणं कालेण तेणं समएणं वाससयसहस्साउए दारण पयाए, तए णं तस्स दारगस्म अम्मा-12 पियरो पहीणा भवंति नो चेवणं ते देवा अलोयंत संपाउणति, तं चेव०, तेसिणं देवाणं किं गए बहुए अगए| बहुए ?, गोयमा! नो गए बहुए, अगए बहुए, गधाउ से अगएं अणंतगुणे अगयाउ से गए अणंतभागे, अलोग काणं गोपमा! महालए पन्नत्ते / / (सूचं 421) / SCRECRk For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या ACTERN // 969 // [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केटलो मोटो कह्यो 31 [उ.] हे गौतम ! 'आ मनुष्यक्षेत्र लंबाइ अने पहोळाइमां पीस्ताळीश लाख योजन के'-इत्यादि जेम स्कंदकना अधिकारमा कह्यु छ तेम जाणवू, यावत् ते परिधियुक्त छे. ते काले ते-समये दस महधिक ११शतके का देवो पूर्वनी पेठे ते मनुष्य लोकनी चारे बाजु वींटाइने उभा रहे. तेनी नीचे मोटी आठ दिकुमारीओ आठ बलिपिंडने लेडने मानु-II उद्देशार. पोत्तर पर्वतनी चारे दिशामा अने चारे विदिशामा बाह्याभिमुख उभी रहे अने ते आठ बलि पिंडने लइने एकज साथे मानुपीचर // 969 // पर्वतनी बाहेरनी दिशामा फेंके, तो हे गौतम ! तेमांनो कोई पण एक देव ते आठ लिपिंडोने पृथिवी उपर पड्या पहेलां शीघ्र संहरवा समर्थ छे. हे गौतम! ते देवो उत्कृष्ट, यावद् त्वरितदेवगतिथी लोकना अंतमा उभा रही असत् कल्पना बडे एक देव पूर्व दिशा तरफ जाय, एक देव दक्षिणपूर्व तरफ जाय, अने ए प्रमाणे यावत् एक देव पूर्व तरफ जाय, वळी एक देव ऊर्व दिशा तरफ जाय, अने एक देव अधोदिशा तरफ जायते काले-ते समये लाख वर्षना आयुषवाळा एक बालकनो जन्म थाय, पछी ना माता-1 पिता मरण पामे तोपण ते देवो अलोकना अन्तने प्राप्त करी शकता नथी-इत्यादि पूर्वे कहेलु. अहीं कहेवू. यावत् बि०] हे भगवन् ! ते देवोनुं गमन करायेलु क्षेत्र बहु के के नहि ममन करायेलुं क्षत्र बहु छ ? [30] हे गौतम ! तेओर्नु गमन करायेलु क्षेत्र बहु नथी, पण नहि गमन करायेलु क्षेत्र बहु के. ममन करायेला क्षेत्र करतां नहि गमन करायेलु क्षेत्र अनन्तगुण के, अने नहि गमन करायेला | क्षेत्र करतां गमन करायेलुं क्षेत्र अनंतमे भागे के. हे गौतम ! अलोक एटलो मोटो कह्यो छे. // 421 // भते गं लोगस्स ! पगमि आगासपएसे जे पगिदियपएसा जाव पचिंदियपएसा अणिदियपपसा अन्नमनबद्धा अन्नमन्नपुट्टा जाब अन्नमन्नसमभरघडताए चिट्ठति, त्धि णं भंते ! अन्नमन्नस्स किंचि आवाहं वा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या ११शतके उद्देश१. // 970 // // 970 // बाबाहं वा उप्पायति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणढे सहढे, से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ लोगस्स णं एगमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाब चिट्ठति णधि णं भंते ! अनमन्नस्स किंचि आवाहं वा जाव करेंति ?, गो. यमा ! से जहानामए नहिया सिया भिंगारागारचारुवेमा जाव कलिया रंगट्ठाणंसि जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसह विहस्स नहस्स अन्नयरं नट्टविहिं उवदंसेज्जा, से नूर्ण गोयमा! ते पेच्छगा तं नहियं अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समता समभिलोएंति ?, हंता समभिलोएंति, ताओ णं गोयमा! दिट्ठीओ तसि नहियसि सब्बओ समंता संनिवडियाओ', हंता संनिवडियाओ, अस्थिणंगोयमा! ताओ दिट्टीओ तीसे नहियाए किंचिवि आवाहं वा बाबाहं वा उपाएति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणहे समढे, अहवामा नदिया तासिं दिहीणं किंचि आवाहं वा वाबाई वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेइ ?, णो तिणट्टे समहे, ताओ वा दिट्टीओ अन्नमनाए दिट्ठीए किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेन्ति !, णो तिणढे समढे, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुचहतं चेव जाव छविच्छेदं वा करेंति // (सूत्रं 422) / [म.] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, यावत् पंचेन्द्रियना प्रदेशो अने अनिन्द्रि | यना प्रदेशो छे ते शुं बधा परस्पर बद्ध छ, अन्योन्य स्पृष्ट छे, यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? वळी हे भगवन् ! ते बधा परस्पर एक बीजाने कांइ पण आत्राधा (पीडा) व्याबाधा (विशेष पीडा) उत्पन्न करे, तथा अवयवनो छेद करे। [उ०] हे गौतम! ए अर्थ यथार्थ है नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रियना प्रदेशो यावत् रहे छे, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रजाति // 971 // सोनार. // 97 // SHARE अने ते परस्पर एक बीजाने कांड पण आबाधा वा व्यावाधा करता नथी [उ.] हे गौतम ! जेम श्रृंगारना आकार सहित सुन्दर हूँ वेषवाळी अने संगीतादिने विषे निपुणताचाळी कोई एक नर्तकी होय अने ते सेंकडो अथवा लाखो माणसोथी भरेला रंगस्थानमा हाबवीन प्रकारना नाट्यमांन कोइ एक प्रकारनं नाय देखाडे तो हे गौतम! ते प्रेक्षको शुं ते नर्तकीने अनिमेष दृष्टिथी चोतरफ जुए हा, भगवन् ! जुए. तो हे गौतम! ते प्रेक्षकोनी दृष्टियो शु ते नर्तकीने विषे चारे बाजुथी पडेली होय छे ? हा, पडेली होय छे. हे गौतम ! प्रेक्षकोनी ते दृष्टिओ ते नर्तकीने काइ पण आवाधा वा व्यायाधा उत्पन्न करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे ? हे भगवन ! ए अर्थ योग्य नथी. अथवा ते नर्तकी ते प्रेक्षकोनी दृष्टिओने कंड पण आपाधा के व्यावाधा उत्पन्न करे अथवा तेना | अवयवनोद करे? ए अर्थ यथार्थ नथी. अथवा ते दृष्टिओ परस्पर एक बीजी दृष्टिोने काइपण आवाधा के व्याबाधा उत्पन्न करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे ? ए अर्थ यथार्थ नथी. अर्थात् न करे, ते हेतुथी एम कडेवाय छे के पूर्वोक्त यावत् अवयवनो छेद करता नथी.॥ 422 // लोगस्स णं भंते ! एगमि आगासपएसे जहन्नपए जीवपएमाणं उकोसपए जीवपएसाणं सब्वजीवाण य कयरे 2 जाब विसेसाहिया वा?, गोयमा! सब्वत्थोवा लोगस्स पगंमि आगासपएसे जहन्नपण जीवपएसा, सव्वजीवा असंखजगुणा, उक्कोसपए जीवपएसा विसेसाहिया, सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति // (सूत्रं 423) // एकारससयस्स दसमोउदमो समत्तो // 11-10 // [H0] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जगन्यपदे रहेला जीवप्रदेशो, उत्कृष्टपदे रहेला जीवप्रदेशो अने सर्व जीवोमां SALUTEKARE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः 972 // alकोण कोना करता यावद् विशेषाधिक छे! [उ.] हे गौतम ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जघन्य पदे रहेला जीवप्रदेशो सौथी 51 थोडा छे, तेना करतां सर्व जीव असंख्यात मुण छे, अने ते करतां पण उत्कृष्ट पदे रहेला जीवप्रदेश विशेषाधिक हे. हे भगवन् ! लते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, एम कही (भगवान् गौतम) यावद् विहरे ने.॥ 423 // ११शतके भगवत् मुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना 11 मा शतकमां दसमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देश:११ // 972 // उद्देशक 11. तेणं कालेणं तेण समएणं वाणियगामे नाम नगरे होत्था वन्नओ, दूतिपलासे चेइए वन्नओ, जाव पुढ विसिलापट्टओ, तत्थ णं वाणियगामे नगरे सुदंसणे नाम सेट्ठी परिवसई अड्डे जाव. अपरिभूए समणोवासए अभिगयजी वाजीवे जाव विहरइ, सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुबासइ, तएणं से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लढे ममाणे हट्ठतुट्ठ पहाए कय जाव पायच्छित्ते सब्बालंकारविभूसिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ साओ गिहाओ पडिनिक्वमित्ता सकोरेंटमल्लदामेण छत्तेणं धरिजमाणेण पायविहारचारेणं महया पुरिसवग्गुरापरिक्खिते वाणियगाम नगरं मज्झमज्झेण निग्गच्छद निग्गच्छित्ता जेणेव दूतिपलासे चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्तासमण भगवं महावीर पंचबिहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति, तं०-सञ्चित्तागं दब्वाणं जहा उस भदत्तो जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुबासइतिए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेहिस्स तीसे यमहतिम . C For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्याप्रशतिः // 973 // F - K महालयाए जाब आराहए भवह। तए ण से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म। सोचा निसम्म हट्ठतुट्ठ० उट्ठाए उढेइ २त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमसित्ता गवं वधासी-कई विहे||१तके णं भंते! काले पन्नत्त, सुदंसणा! चउबिहे काले पन्नत्ते, तंजहा-पमाणकाले१ अहाउनिब्बत्तिकाले२ मरणकाले | उद्देश:११ | 3 अदाकाले 4, से किं तं पमाणकाले?, 2 दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-दिवसप्पमाणकाले 1 राइप्पमाणकाले य२,18 // 973 // चउपोरिसिए दिवसे चउपोरिसिया राई भवई उकोमिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, सू० 421) ते काले, ते समये वाणिज्यग्राम नामे नगर हतुं. वर्णन. तिपलाशक चैत्य हतुं. वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. ते वाणिज्यग्राम नगरमा सुदर्शन नामे शेठ रहेतो हतो ते आढथ-धनिक, यावत् अपरिभूत-कोइथी पराभव न पामे तेवो, जीवा जीव तस्वनो जाणनार श्रमणोपासक हतो. त्यां महावीरस्वामी समवसर्या. यावत् पर्षद्-जनसमुदाये पर्युपासना करे छे. त्यार बाद महावीर स्वामी आब्यानी आवात मांभळी सुदर्शनशेठ हर्षित अने संतुष्ट थया, अने स्नान करी, बलिकर्म यावत् मंगलरूप प्रायश्चित्त करी, सर्व अलंकारथी विभूषित थइ, पोताना घेरथी बहारनीकळे थे, बहार नीकळीने माथे धारण कराता कोरंटकपुष्पनी माळावाळा छत्र सहित पगे चालीने घणा मनुष्योना समुदायरूप वागुरा-बन्धनधी विंटायेला ते सुदर्शन शेठ वाणिज्यग्राम नगरनी बच्चोयच थईने नीकळे छे. नीकळीने ज्यां तिपलाश चैत्य छे, अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर ने त्यां आवे छे, आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे है। पांच प्रकारना अभिगमवढे जाय छे, ते अभिगमो आ प्रमाणे छ- 'सचित्त द्रव्योनो त्याग करचों-इत्यादि जेम ऋषभदत्तना प्रक For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie प्रज्ञप्तिः | ११शतके उद्देशः११ // 97 | रणमां का तेम अहीं जाणवं, यावत ते सुदर्शन शेठ त्रण प्रकारनी पर्युपासना वडे पर्युपासे छे. त्यार पछी श्रमण भगवंत महायाख्या-15वीरे ते सुदर्शन शेठने अने ते मोटामा मोटी सभाने धर्मकथा कही, यावत् ते सुदर्शन शेठ आराधक थाय छे. त्यार पछी सुदर्शन |शेठ श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळी अने अवधारी हर्षित अने संतुष्ट थइ उभा थाय छे, उभा थइने श्रमण भगवंत महा-४ // 974|| वीरने त्रण चार प्रदक्षिणा करी, यावद् नमस्कार करी तेणे आ प्रमाणे पूछ्यु-[प्र.] हे भगवन् ! काल केटला प्रकारनो कझो छ / [उ०] हे सुदर्शन ! काल चार प्रकारनो को छे ते आ प्रमाणे-१ प्रमाणकाल 2 यथायुनिर्वतकाल, 3 मरणकाल, अने 4 अद्धाकाल. [प्र०] हे भगवन् ! प्रमाणकाल केटला प्रकारे छे? [उ०] प्रमाणकाल वे प्रकारनो कयो छे ते आ प्रमाणे-दिवसप्रमाणकाल | अने रात्रीपमाणकाल, अर्थात चार पौरुषीना-प्रहरन दिवस थाय छ, अने चार पौरुषीनी रात्री थाय छे. अने उत्कृष्ट-मोटामा मोटी साडा चार मुहूर्तनी पौरुषी दिवसनी, अने रात्रीनी थाय छे. तथा जघन्य-न्हानामा हानी पौरुषी दिवस अने रात्रिनी त्रण मुहर्तनी थाय छे. // 424 // जदा णं भंते! उक्कोमिया अपंचममुहत्ता दिवमस्स वा राईए वा पोरिसी भवति तदा ण कति | भागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परि 2 जहनिया तिमुहुत्ता दिवमस्स वा राईए वा पोरिसी भवति !, जदा णं जहन्निया तिमुहुत्ता दिवमस्म वा राईण वा पोरिसी भवति तदा णं कति भागमुहुत्तभागेणं परिवड्डमाणी 2 उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवह 1, सुदंसणा! जदाण उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्म वाराईएवा पोरिसी भवह तदा ण बावीससयभागमुहुत्तभागेण परिहायमाणी परि०२ जहनिया तिमु. NAGAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie प्राप्तिः // 975 // RECRUABAR हुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, जदा णं जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ | तयाणं बावीससयभागमुहुत्तभागेण परिवडमाणी परि०२उकोसिया अपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वापोरिसी, ११सके भवति / कदा णं भंते! उक्कोसिआ अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसीभवह ? कदा वा जहनिया उद्देशा११ तिमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ?, सुदंसणा! जदा णं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जह-18||९७५॥ निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ तदाणं उक्कोसिया अपंचममुहुत्ता दिवसम्स पोरिसी भवह जहनिया तिमुहुत्ता राइए पोरिसी भवह, जया ण उकोसिया अट्ठारसमुहुत्तिा राई भवति जहन्निए दुवालममुहत्ते दिवसे भवट्ट | तदा उक्कोसिया अपंचमुहुत्ता राईए पोरिसी भवह जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ / / | [.] हे भगवन् ! ज्यारे दिवसे के रात्रीए साडा चार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय छे त्यारे ते मुहूर्तना केटला भाग घटती घटती दिवसे अने रात्रीए त्रण मुहूर्तनी जघन्य पौरुषी थाय ? अने ज्यारे दिवसे के रात्रीए त्रण मुहूर्तनी न्हानामां न्हानी पौरुषी | होय छे त्यारे ते मुहूर्तना केटला भाग वधती वधती दिवस अने रात्रीनी साटाचार मुहर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी धाय ? [उ०] हे सुदर्शन !: ज्यारे दिवसे अन रात्रीए साडाचार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय छे त्यारे ते मुहूर्तना एकसो बावीशमा भाग जेटली घटती घटती दिवस अने रात्रीनी जघन्य त्रण मुहूर्तनी पोरुषी थाय छ, अने ज्यारे दिवसे अने रात्रीए ऋण मुहर्तनी जघन्य पौरुषी होय छे त्यारे 2 | मुहूर्तना एकसो बावीशमा भाग जेटली वधती वधती दिवसे अने रात्रीए साडाचारमुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! क्यारे दिवसे अने रात्रीए साडाचार मुहूर्तनी उत्कृष्ट पौरुषी होय, अने क्यारे दिबसे अने रात्रीए त्रण मुहूर्तनी जघन्य पौरुषी For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Avadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie व्याख्या-18 | होय ? [उ०] हे सुदर्शन ! ज्यारे अढारमुहूर्तनो मोटो दिवस होय अने बार मुहूर्तनी न्हानी रात्री होय त्यारे साडाचार मुहूर्तनी | 18| दिवसनी उत्कृष्ट पौरुषी होय छे, अने रात्रीनी त्रण मुहूर्तनी जघन्य पौरुषी होय छे. तथा ज्यारे अढारमुहूर्तनी मोटी रात्री होय अने शतके प्रचप्तिः |बार मुहर्तनो न्हानो दिवस होय त्यारे साडा चार मुहूर्तनी रात्रिनो उत्कृष्ट पौरुषी होय छे, अने व्रण मुहूर्तनी दिवसनी जघन्य 8 नदेशारर // 976 // पौरुषी होय छे. // 17 // ___ कदा णं भंते ! उक्कोसा अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवह जहनिया दुवालसमुहुत्ता राई भवही कदा वा उक्कोसिया, अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सुदंसणा:आसाढपुन्निमाए उक्कासए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, पोसस्स पुन्निमाए ण उकोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवह जहन्ना दुवालसमुहुत्ते दिवसे भड़॥ अत्थि णं भंते ! दिवसा य राईओ य समा चेव भवन्ति !, हंता! अत्थि, कदा णं भंते ! दिवसा य राईओय समा चेव भवन्ति, सुदंसणा! चित्तासोयपुन्निमासु णं, पत्थ णं दिवसा य राईओ य समा चेव भवन्ति, पन्नरसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ता राई भवइ चउभागमुहुत्तभागूणा चउमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवह, सेत्तं पमाणकाले / / (सूत्र 425) / [प्र०] हे भगवन् ! अढार मुहूर्तनो मोटो दिवस, अने बार मुहूतनी न्हानी रात्री क्यारे होय ? तथा अढार मुहूर्तनी मोटी रात्री अने बार मुहूर्तनो न्हानो दिवस क्यारे होय ? [20] हे सुदर्शन ! आषाढपूर्णिमाने विषे अढार मुहूर्तनो मोटो दिवस होय छे, अन बार है. 12ii मुहूर्तनी न्हानी रात्री होय छे. तथा पोषमासनी पूर्णिमाने समये अढार मुहूर्तनी मोटी रात्री अने बार मुहूर्तनो न्हानो दिवस होय छे. / For Prvate and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie प्राप्तिः // 977 // 4% % [[प्र.] हे भगवान् ! दिवस अने रात्री ए बन्ने सरखां होय ! [उ.] हा, होय. [प्र०] क्यारे (दिवस अने रात्री) सरखां होय ? उ०] हे सुदर्शन ! ज्यारे चैत्री पूनम अने आसो मासनी पूनम होय त्यारे दिवस अने रात्री ए बन्ने सरखां होय छे. त्यारे पंदर |११शतके | मुहूर्तनी रात्री होय . अने रात्रीनी मुहूर्तना चोथा भागे न्यून चार मुहूर्तनी पौरुषीहोय छे. ए प्रमाणे प्रमाणकाल को. // 4255 उद्देशार से किं तं अहाउनिब्वत्तिकाले?, अहा०२ जन्न जेणं नेहएण वा तिरिक्वजोणिएण वा मणुस्सेण वा देवेण ||977 // वा अहाउयं निव्वत्तियं सेत्तं पालेमाणे अहाउनिध्यत्तिकाले। से किं तं मरणकाले 1, 2 जीवो वा मरीराओ सरीरं वा जीवाओ, सेत्तं मरणकाले // से किं तं अद्धाकाले?, अद्वा० 2 अणेगविहे पन्नत्त, से ण समयट्ठयाए आवलियट्ठयाए जाब उस्सप्पिणीहयाए / एस णं सुदंसणा! अद्धा दोहारच्छेदेणं छिजमाणी जाहे विभागं नो हब्वमाग च्छह सेत्तं ममए, समयट्ठयाए असंखेजाणं समयाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलियनि पवुच्चइ, Baa संखेजाओ आवलियाओ जहा सालिउद्देसए जाव सागरोवमस्स उ एगस्स भवे परिमाणं / एएहि णं भंते ! पलि. ओवमसागरोवमेहिं किं पयोयणं?, सुदंमणा! एएहिं पलिओवमसागरोवमेहि नेरदयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाणं आउयाई मविखंति // (सू. 426) // [प्र०) हे भगवन् ! यथायुनिवृत्तिकाल केवा प्रकारेकहेलो के ? [उ०] जे कोइ नैरयिक, तियंचयोनिक, मनुष्य के देवे पोते | जेवं आयुष्य बांध्यु नेते प्रकारे तेनुं पालन करे ते यथायुनितिकाल कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! मरणकाल ए शुं छे / [उ.] (ज्यारे) शरीरथी जीवनो अथवा जीवथी शरीरनो वियोग थाय (त्यारे) ते मरणकाल कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! अद्धा CHECROCCIENCE%C5% For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः // 978 // |११५तके उदेशर // 978 // ROCESS | काल ए केटला प्रकारे छे ? [उ.] अद्धाकाल अनेक प्रकारनो कयो छे; समयरूपे, आवलिकारूपे, अने यावद् उत्सार्पणीरूपे. हे मुदर्शन ! कालना वे भाग करवा छतां ज्यारे तेना बे भाग न ज थइ शके ते काल समयरूपे समय कहेवाय छे. असंख्येय समयोनो समुदाय मळवाथी एक आवलिका थाय छे. संख्यात आवलिकानो (एक उच्छ्वास) थाय छे-इत्यादि बधु शालि उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत् सागरोपमना प्रमाण सुधी जाणवू. [प्र०) हे भगवन् ! ए पल्योपम अने सागरोपमरूपर्नु सु प्रयोजन छ ? [उ०] हे हा सुदर्शन! ए पल्मोपम अने सागरोपम बडे नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य तथा देवानां आयुषोनु माप करवामां आवे छे.॥४२६॥ नेरइयाणं भंते! केवयं कालं ठिई पन्नत्ता, एवं ठिहपदं निरवसेम भाणियव्वं जाव अजहन्नमणुकोसेणं | तेत्तीसं सागरोबमाई ठिती पन्नत्ता / / (सूत्रं 424) / [प्र.] हे भगवन् ! नरयिकोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधीनी कहीं ! [उ०] अहीं संपूर्ण स्थितिपद कहे, याचद् (पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध देवोनी) उत्कृष्ट नहि अने जघन्य नहि एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही हे त्यां मुधी जाणवू. // 427 // __ अस्थि णं भंते ! गएसिं पलिओवमसागरोचमाणं खएति वा अवचयेति वा ?, हता अस्थि, से केणटेणं | भंते ! एवं बुच्चइ अस्थि ण एएसि णे पलिओवममागरोवमाण जाव अवचयेति वा ? / एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणागपुरे नाम नगरे होत्था वन्नओ, सहसंबवणे उजाणे वन्नओ, तत्थ णं हथिणागपुरे नगरे बले नाम राया होत्या वन्नओ, तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नाम देवी होत्था सुकुमाल बन्नओ जाव विहरइ / तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाई तसि तारिसगसि वासघरंमि अभितरओ सचित्तकम्मे बाहि CAC4%C4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie म्या है| रओ दूमियघट्ठमडे विचित्तउल्लोयचिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे बहुसमसुविभत्सदेसभाए पंचवन्नसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुकधूनमघमघंतगंधुधुयाभिरामे सुगंधिवरगंधिए गंधव ११शतके प्रतिः 15 वटिभृग तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि सालिंगणवहिए उभओ विब्योयणे दुहओ उन्नए मज्झेणयगंभीरे गंगापुलि-18| उद्देशान // 979 // णवालुयउद्दालसालिसए उवचियखोमिवदुगुल्लपपडिच्छन्ने सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगरू- // 979 // यबूग्णवणीयतूलफासे सुगंधवरकुसुम चुन्नसयणोक्यारकलिए अद्धरत्तकालसमसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी 2 अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगलं मस्सिरीय महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा / / [प्र०] हे भगवन् ! ए पाल्योपम तथा सागरोपमनो क्षय के अपचय थाय छे ? [उ.] हा, थाय . [प्र०] हे भगवन् ! एम |शा हेतुथी कहो छो के पल्योपम अने सागरोपमनो यावत् अपचय थाय छ ? [उ०] हे सुदर्शन ! ए प्रमाणे खरेखर ते काले, ते समये हस्तिनागपुर नामे नगर हतुं. वर्णन. त्यां सहस्त्राप्रवन नामे उद्यान हतुं. वर्णन. ते हस्तिनागपुर नगरमा बल नामे राजा हतो. वर्णन. ते बल राजाने प्रभावती नामे राणी हती. तेना हाथ पग सुकुमाल हता-इत्यादि वर्णन जाणवू. यावत् ते विहरती हती. त्यार बाद अन्य कोइपण दिवसे तेवा प्रकारना, अंदर चित्रवाळा, बहारथी घोळेला, घसेला अने सुंबाळा करेला, जेनो उपरनो भाग विविध चित्रयुक्त अने नीचेनो भाग सुशोभित के एवा, मणि अने रखना प्रकाशथी अंधकाररहित, बहु समान अने सुविभक्त मागवाला, मुकेला पांच वर्णना सरस अने सुगंधी पुष्पपुंजना उपचार बडे युक्त, उत्तम कालागुरु, कीन्दरु अने तुरुष्क-शिलारसना धूपथी चोतरफ फेलायेला सुगधना उद्भचथी सुंदर, सुगंधि पदार्थोथी सुवासित थयेला, सुगंधि द्रव्यनी गुटिका जेवा ते वासघरमा तकीयास MACHAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie ११चतके नद्देशन // 980 // 980 हित, माथे अने पगे ओशीकावाळी, बने बाजुए उंची, वचमां नमेली अने विशाल, गंगाना किनारानी रेतीनी रेताल सरखी | | (अत्यंत कोमल), भरेला क्षौमिक-रेशमी दुकूलना पट्टथी आच्छादित, रजखाणथी (उडती धूळने अटकावनार वस्खथी) ढंकायेली, व्याख्या प्रजातिः दरतांशुक-मच्छरदानी सहीत, मुरम्य, आजिनक (एक जातनुं चामडानु कोमळ वख), रू, बरु, माखण अने आकडाना रूना समान | स्पर्शवाळी, सुगंधि उत्तम पुष्पो चूर्ण, अने वीजा शयनोपचारथी युक्त एवी शय्यामां कंडक सुती अने जागती निद्रा लेती लेती प्रभावती देवी अर्धरात्रीना समये आ एवा प्रकारना उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलकारक अने शोभा युक्त महाखमने जोड़ने जागी. हाररययवीरमागरससंककिरणदगरयरययमहासेलपंडुरतरोकरमणिजपेच्छणिज्ज घिरलट्ठपउट्ठवट्टपीवरसुसि| लिट्टविसिट्ठतिक्खदादाविडंबियमुहं परिकम्मियजच्चकमलकोमलमाइयसोभंतलट्ठउर्ल्ड रत्तुप्पलपत्तम उपसुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगतावियावत्तायंतवदृतडिविमलसरिसनयणं विसालपीवरोकं पडिपुन्नविमलखधं मिउविसयसुहमलक्वणपसस्थविच्छिन्नकेसरसडोवसोभियं अमियमुनिम्मियसुजायअप्फोडियंलगूलं मोमं सोमाकारं लीलायतं जमायत नहयलाओ ओवयमाणं निययययणमतिवयंत सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। तए णं सा पभावती देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव सस्सिरीयं महासुविणं पासित्ता णं पडिवुद्धा समाणी हट्टतुट्ठ जाव हियया धाराहयकलंबपुष्फगंपिव समूससियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हति ओगिण्हित्ता सयणिजाओ अन्भुटेड सयणिज्जाओ अन् द्वेत्ता अतुरियमचवलमसंभताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रन्नो सय णिज्जे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता बलं रामं ताहिं इटाहिं कताहि पियाहिं मणुनाहिं मणमाहिं ओरा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ११शत उरेशन 1981 // + लाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मस्सिरीयाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलबमाणी बास्या- KI पडिबोहेति पडिवोहेत्ता बलेणं रन्ना अन्भणुन्नाया ममाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तसि भद्दासणंसि णिसीयति |णिसीयित्ता आसस्था वीसत्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव संलवमाणी२ एवं बयासी#Rent मोतीना हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चंद्रना किरण, पाणीना विंदु अने रूपाना मोटा पर्वत जेवा धोळा, विशाळ, रमणीय अने दर्शनीय, स्थिर अने सुंदर प्रकोष्ठवाळा, गोळ, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट अने तीक्ष्ण दाढोबड़े फाडेला मुखवाळा, संस्कारित उत्तम कमलना जेवा कोमल, प्रमाणयुक्त अने अत्यन्त सुशोभित ओष्ठवाळा, राता कमलना पत्रनी जेम अत्यंत कोमळ ताल अने जीभवाळा, मूषामां में रहेला, अनीथी तपावेल अने आवर्त करता उत्तम सुवर्णना समान वर्णवाळी गोळ अने विजळीना जेवी निर्मळ आंखवाळा, विशाल * अने पुष्टजंघावाळा, संपूर्ण अने विपुल स्कंधवाळा, कोमल, विशद-स्पष्ट, सूक्ष्म, अने प्रशस्त, लक्षणवाळी विस्तीर्ण कसरानी छटाथी सुशोभित, उंचा करेला, सारीरीते नीचे नमावेला, मुन्दर अने पृथिवी उपर पछाडेल पूछडाथी युक्त, सौम्य, सौम्य आकरवाळा | लीला करता, बगासां खाता अने आकाश थकी उतरी पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने खममा जोइ ते प्रभावती देवी जागी. त्यार बाद ते प्रभावती देवी आ आबा प्रकारना उदार यावत् शोभावाळा महास्वमने जोइने जागी अने हर्षित तथा संतुष्ट हृदयवाळी थई, यावत् मेघनी धारथी विकसित थयेला कंदचकना पुष्पनी पेठे रोमांचित थयेली (प्रभावती देवी) ते खमनु स्मरण करे छ, सरण करीने पोतना शयनथी उठी त्वराविनानी, चपलतारहित, संभ्रमविना, विलंबरहितपणे राजईससमान गतिवडे ज्यां बलराजानु शयनगृह छ त्यां आवे छे, आवीने इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज, मनगमती, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगल्य सौन्दर्ययुक्त, मित, ला For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | मधुर अने मंजुल-कोमल वाणीवडे बोलती 2 ते बल राजाने जगाले छे. त्यारवाद ते बलाजानी अनुमतिथी विचित्र मणि अने रवानी रचना बडे विचित्र भद्रासनमां से छे. मुखासनमां बेठेली स्वस्थ जने शान्त थएली ते प्रभावती देवीए इष्ट, प्रिय, यावत् ११तके मातिमधुर वाणीथी बोलतां 2 आ प्रमाणे कधु बार IR82 एवं बलु अहं देवाणु प्पिया! अज तसि तारिसगंसि सणिज्जंसि सालिंगणतं व जाच नियगवणम D // 982 // इवयंत सीहं सुविणे पासित्ता गं पडिबुद्धा, तणं देवाणुप्पिया! एयरस ओरालस्स जाव महासुविणस्स के मन्न कल्लाणे फलवित्तिविससे भविस्सइ ?, तए णं से बले राया पभावईए देवीए अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हयहियये धाराहयनी- वसुरभिकुसुमचंचुमालइयतणुयजसवियरोमकूवे तं सुविणं ओगिण्हइ ओगिणिहत्ता ईहं पविसह ईहं पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुब्वएणं बुद्धिविनाणेणं तस्स सुविणस्स अस्थोग्गहणं करेह तस्म 2 ता पभावई देविं ताहिं इटाहि कंताहिं जाव मंगल्लाहि मियमहुरसस्सिा संलवमाणे 9 एवं बयासी| ओराले गं तुमे देवी ! सुषिणे दिढे कल्लाणे णं तुमे जाव सस्सिरीए ण तुमे देवी ! सुविणे दिवे आरोगतुहिदीहाउ-1* कल्लाणमंगल्लकारण णं तुमे देवी! सुविणे दिट्टे अत्यलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणुप्पिए / पुत्तलाभो देवा. गुप्पिए! रजलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! णवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण राईदियाणं विकताणं अम्हं कुलकेउं कुलपब्वयं कुलवडेंसयं कुलतिलगं कुलकित्तिकरं कुलनंदिकरं कुलजसकर कुलाधार कुल पायवं कुलविबद्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीण पडिपुन्नपंचिंदियसरीरं जाव मसिसोमाकारं कंत पियदसणं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie पास्पा-1 प्रवातिः 1983 // उदेशान 98 // सुरूवं देवकुमारसमप्पभे दारगं पयाहिसि // हे देवानुप्रिय ! ए प्रमाणे खरेखर में आजे ते तेवा प्रकारनी अने तकीयावाली शय्यामां (सुतां जागतां) इत्यादि पूर्वोक्त जाणवू, | यावत् मारा पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने वम मां जोइने जागी . तो हे देवानुप्रिय ! ए उदार यावत् महास्वमर्नु बीजु शृं | कल्याणकारक फल अथवा वृत्तिविशेष थशे ? त्यार पछी ते बल राजा प्रभवती देवी पासेथी आवात सांभळी, अवधारी हर्षित, तुष्ट, यवत् अल्हादायुक्त हृदयवालो थयो, मेघनी धाराथी विकसित थवेला सुगंधि कदंब पुष्पनी पेठे जेनुं शरीर रोमांचित थयेलं हे अने* जेनी रोमराजी उभी थयेली छे, एवो बलराजा ते स्वमनो अवग्रह-सामान्य विचार-करे छ, पछी ते स्वमसंबन्धी ईहा (विशेष विचार) करे छे. तेम करीने पोताना स्वाभाविक, मतिपूर्वक बुद्धिविज्ञानथी ते स्वमना फलनो निश्चय करे छे. पछी इष्ट, कांत, यावत् मंगल युक्त, तथा मित, मधुर अने शोभायुक्त वाणीथी संलाप करता 2 ते बल राजाए आ प्रमाणे कधू-हे देवी ! तमे उदार बम जोयु है, हे देवी ! तमे कल्याणकारक स्वम जोयं छे, यावत् हे देवी ! तमे शोभायुक्त स्वप्न जोयु छ, तथा हे देवी! तमे आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष, कल्याण अने मंगलकारक स्वप्न जोयु के, हे देवानुप्रिय ! तेथी अर्थनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! भोगनो लाभ थशे, | हे देवानुप्रिये ! पुत्रनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! राज्यनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! खरेखर तमे नव मास संपूर्ण थया बाद साडा सात दिवस वित्या पछी आपणा कुलमा ध्वजसमान, कुलमां दीवासमान, कुलमां पर्वतसमान, कुलमां शेखरसमान, कुलमां तिलकसमान, कुलनी कीर्ति करनार, कुलने आनंद आपनार, कुलनो जश करनार, कुलना आधारभूत, कुलमां वृक्षसमान, कुलनी वृद्धिकरनार, सुकुमाल हाथपगवाळा, खोडरहित अने संपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीरवाला, शक्त् चंद्रसमान सौम्यआकारवाळा, प्रिय, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir 11 जेनुं दर्शन प्रिय के एवा, सुन्दररूपबाळा, अने देवकुमार जेवी कांतिवाग पुत्रने जन्म आपो. पाख्या न सेऽवि यणं दारण उम्मुक्कबालभावे विनायपरिणयमित्ते जोवणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विकंते वित्थिन्न-5 माxि विउलबलवाहणे रजवई राया भविस्सह, तं उराले ण तुमे जाव सुमिणे दिहे आरोग्गतुट्टि जाव मंगल्लकारए गं देशा Read तुमे देवी! सुविणे दिदृत्ति का पभावतिं देविं ताहिं इटाहिं जाव वग्गृहि दोबंपि तचंपि अणुहति / तए णं सा // 9 // पभावती देवी बलस्स रनोअंतियं एयमटुं सोचा निसम्म हतुह० करयल जाब एवं बयासी-एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणुप्पिया! अबितहमेयं देवाणुप्पिया! असंदिद्धमेयं देइच्छियमेयं देवाणुप्पिया!पडिच्छियमेयं देवाणुपिया! इच्छियपडिच्छियमेयं देवाणुप्पिया। से जहेयं तुझे बदहत्ति कहुत सुविणं सम्म पडिच्छह पडिपिछत्सा बलेणं रसा अम्भणुमाया समाणी णाणामणिरयणभत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अन्भुढेह अन्भुत्ता अतुरियमचवल | जाव गतीए जेणेव सए सणिज्जे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि निसीयति निसीहत्ता एवं बयासी-मा मे से उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुविणे अन्नेहिं पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्सइत्ति कटु देवगुरुजणसंबद्धाहिं पसस्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुविणजागरियं पडिजागरमाणी 2 विहरति। ____ अने ते बालक पोतानुं बालकपणुं मूकी, विज्ञ अने परिणत-मोटो थईने युवावखाने पामी शूर, बीर, पराक्रमी, विस्तीर्ण अने विपुल बल तथा वाहनवाळो, राज्यनो धणी राजा थशे. हे देवी! तमे उदार स्वप्न जोयुं चे, हे देवी ! तमे आरोग्य, तुष्टि अने यावत मंगलकारक स्वप्न जोयुं छे'-एम कही ते बल राजा इष्ट यावद् मधुर वाणीर्थी प्रभावती देवीनी बीजी वार अने त्रीजी वार एP For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शत उदेशन // 985 // प्रमाणे प्रशंसा करे . त्यार बाद ते प्रभावती देवी बल राजानी पासेथी ए पूर्वोक्त बात सांभळीने, अवधारीने हर्षवाळी अने संतुष्ट द्र माल्या- थइ हाथ जोडी आ प्रमाणे बोली-'हे देवानुप्रिय ! तमे जे कहो छो ते एज प्रमाणे छे, हे देवानुप्रिय! तेज प्रमाणे के, हे देवानुप्रिय ! प्रवतिः सत्य छे, हे देवानुप्रिय ! ए संदेहरहित छे, हे देवानुप्रिय ! मने इच्छित छे, हे देवानुप्रिय! ए में स्वीकारेल , हे देवानुप्रिय ! // 985 // ए मने इच्छित अने स्वीकृत के एम कही स्वप्ननो सारी रीते स्वीकार करे छे, स्वीकार करीने बल राजानी अनुमतिथी अनेक जातना मणि अने रवनी रचना बडे विचित्र एवा भद्रासमथी उठेने, उटीने त्वरा विना, चपलतारहित यावद् गति वडे (ते प्रभावती देवी) ज्यां पोतानी शय्या छे त्यां आवी भय्या उपर बेसे के, बेसी ने तेणे आ प्रमाणे का-'आ मारु उत्तम, प्रधान अने मंगलरूप स्वप्न ताबीजा पापस्वप्नोथी न हणाओं' एम कहीने ते प्रभावती देवी देव अने गुरुसंबन्धी, प्रशस्त, मंगलरूप अने धार्मिक कथाओबडे स्वप्न जागरण करती करती विहरे छे. ___ ताणं से बले राया कोडुंबियपुरिसे सहावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अन्न सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्तसुइयसंमजिओबलित्तं सुगंधवरपंचवन्नपुप्फोवयारकलियं कालागुरुपव| रकुंदुरुक जाव गंधवहिभूयं करेह य करावेह य करेत्ता करावेत्ता सीहामणं रएह सीहासणं रयावेसा ममेत जाव पञ्चप्पिणह, तए णं ते कोडंबिय जाव पडिसुणेत्ता विप्पामेव सबिसेसं बाहिरियं उबट्ठाणसालं जाव पञ्चप्पिणंति, तए णं से बले राया पचूसकालसमयंसि सयणिज्जाओ अब्भुइ सयणिज्जाओ अन्भुढेत्ता पायपीढाओ पचोरुहइ पायपीढाओ पचोरुहिता जेणेव अढणसाला तेणेव उवागच्छति अदृणसाले अणुपविसइ जहा उपचाइए तहेब CAKC For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्या दक देशर 986 // // 986 // अहणसाला तहेव मजणघरे जाव ससिव्वपियदसणे नरवई मजणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ताजेणेव वाहिरिया उवट्ठाणमाला तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरच्छाभिमुहे निमीयइ निसीहत्ता अपणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवस्थपचुत्थुयाई सिद्धत्थगकयमंगलोवयाराई रयावेइ रयावेत्ता अपणो अदूरसामंते णाणामगिरयणमंडियं अहियपेच्छणिजं महग्धवरपट्टणुग्गयं सहपदृयहुभत्तिसयचित्तताणं ईहामियउसमजावभत्तिचित्तं अभितरियं जवणियं अंछावेइ अंछावेत्ता नाणामणिरयण भत्तिचित्ते अच्छ-18 रयमउयमसूरगोच्छग सेयवस्थपञ्चुत्थुयं अंगसुहफासुयं सुमाग्यं पभावतीए देवीए भद्दासणं रयावेई रयावेत्ता कोडंबियपुरिसे सद्दावेद सहावेत्ता एवं वयासी त्यार बाद ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कधु-हे देवानुप्रियो ! आजे तमे जल्दी बहारनी उपस्थानशा| लाने सविशेषपणे गंधोदकवडे छांटी, वाळी अने छाणथी लीपीने साफ सरो. तथा सुगंधी अने उत्तम पांच वर्णना पुष्पोथी शणगारो, वळी उत्तम कालागुरु अने कींदरुना धूपथी यावद् गंधवर्तिभूत-सुगंधी गटिका समान करो, करावो, अने त्यारपछी त्या सिंहासन मृकाबो, सिंहासन मूकावीने आ मारी आज्ञा यावद पाछी आपो.' त्यार चाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञानो स्वीकार करी तुरतज सविशेषपणे बहारनी उपस्थानशालाने साफ करीने यावत् आज्ञा पाछी आपे थे. त्यार बाद ते बल राजा प्रातःकाल समये पोतानी शय्याथी उठीने पादपीठथी उतरी ज्या व्यायामशाळा छे त्यां आवे छे. आवीने व्यायामशाळामा प्रवेश करे छे, त्यार पछी ते स्नानगृहमां जाय छे. व्यायामशाला अने स्नानगृहनुं वर्णन औपपातिक सूत्रमा कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् चंद्रनी पेठे जेनु दर्शन प्रिय छे एवो | H For Private and Personal Use Only
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________________ Shahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie प्राप्तिः // 987 // ते बल नरपति स्नानगृहथी बहार नीकळे छे, बहार नीकळीने ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आबीने पूर्व दिशा है। # सन्मुख उत्तम सिंहासनमा बेसे छे. त्यार बाद पोतानाथी उत्तरपूर्वदिशामां-ईशान कोणमां धोठा बखथी आच्छादित अने सरसव के बडे जेनो मंगलोपचार करेलो छ एषा आठ भद्रासनो मूकावे छे. त्यार बाद पोतानाथी थोडे दूर अनेक प्रकारना मणि अने रत्नथी उभार मुशोभित, अधिक दर्शनीय, कीमती, मोटा शहरमा बनेली, सूक्ष्म स्तरना सेंकडो कारागरोवाळा विचित्रताणावाळी, तथा ईहामृग अने | // 987 // | बळद वगेरेनी कारीगरीथी विचित्र एवी अंदरनी जवनिकाने-पडदाने खसेडे छे, खसेडीने (जवनिकानी अंदर) अनेक प्रकारना मणि अने रत्नोनी रचना वडे विचित्र, गादी अने कोमळ गालममूरीयाथी ढंकायेलु, श्वेत वस्त्रवडे आच्छादित, शरीरने सुखकर स्पर्शवाळु तथा दासुकोमळ ए, एक भद्रासन प्रभावती देवी माटे मूकावे . त्यार पछी ते बल रजाए कौटुंबिक पुरुषोने चोलाबी आ प्रमाणे का- 5 खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंगमहानिमित्तसुत्तत्वधारए विविहसत्यकुसले सुविणल क्वणपाढए | सद्दावेह, तए ते कोडेबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता बलस्म रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमह पडिनिक्खमित्ता सिग्धं तुरिय चवलं चंड वेडयं हत्यिणपुर नगरं मज्झमज्झणं जेणेव तेर्सि सुविणलक्वणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए सदाति / ताण ते सुविणलक्षणपाढगाबलस्स रन्नो कोडुबियपुरिसेहिं सहाविया समाणा हहतुट्ठ• पहाया कय जाव सरीरा सिद्धस्थगहरियालियाकयमंगलनुदाणा सरहिं 2 गिहेहितो निग्गच्छति स. 2 हथिणापुर नगरं मझमझेण जेणेव वलस्स रन्नो भवणवरवडेंसए तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसगपडिदुवारंसि एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता जेणेव बाहि. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या // 988 +ACH 4- रिया उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता करयल बलराय जएणं विजएणं बद्धाति / तए पण मुविणलक्खणपाढगा बलेणं रना बंदियपूयसकारियसंमाणिया समाणा पत्तयं 2 पुवन्नत्थेसु भद्दामणेसुध निसीयंति, तए णं से बले राया पभावति देवि जवणियंतरियं ठावेह ठावेत्ता पुप्फफलपडिपुन्नहत्थे परेणं विणएणं उद्देशन IPIते सुविणलक्खणपाढए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी अन्न तमि तारिसगंसि वासघरंसि | PIReen 18 जाव सीहं मुविणे पासित्ता ण पडिबुद्धा _ 'हे देवानुप्रियो / तमे शीघ्र जाभो, अने अष्टांग महानिमित्तना सूत्र अने अर्थन धारण करनारा, अने विविध शास्त्रमा कुशल एवा स्वमना लक्षण पाठकोने बोलावो.' त्यार बाद ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् आज्ञानो स्वीकार करीने बल राजानी पासेथी नीकळे के; नीकळीने सत्वर, चपलपणे, अपाटाबंध अने वेगसहित हस्तिनापुर नगरनी वचोवच ज्या स्वभलक्षणपाठकोना घरो छ, त्यो जइने स्वमलक्षणपाठकोने बोलावे . ज्यारे ते बल राजाना कौटुंबिक पुरुषोए ते स्वमलक्षणपाठकोने बोलाव्या त्यारे तेओ प्रसन्न थया, तुष्ट थया अने स्वान करी बलिकर्म करी यावत् शरीरने अलंकृत करी, मस्तके सर्षप अने लीली धरोनु मंगल करी पोत पोताना घेरथी | नीकळे छ, नीकळीने हस्तिनागपुर नगरनी बच्चे थइ ज्यां बल राजा उत्तम महालय छे, त्यां आवे छे, त्यां आवीने श्रेष्ठ महालयना | द्वार पासे ते स्वमपाठको एकठा थाय छे, एकठ थइने ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवी हाथ जोडी बल राजाने जय अने विजयथी वधावे छे. त्यार बाद ते बल राजाए वांदेला, पूजेला, सत्कारेला अने सम्मानित करेला ते स्वमलक्षणपाठको पूर्व | गोठवेला भद्रासनो उपर बेसे छे. त्यार पछी ते बलराजा प्रभावती देवीने जवनिकानी-पडदानी अंदर केसाडे छे. त्यार बाद पुष्प अने 44 %ESS. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नाम ११शतके उशा११ // 989 // // 981 फलथी परिपूर्ण हस्तवाला ते बल राजाए अतिशय विनयपूर्वक ते स्वप्नलक्षणपाठकोने आ प्रमाणे कर्जा-'हे देवनुप्रियो ! ए प्रमाणे माख्या- खरेखर आजे प्रभावती देवी ते तेत्रा प्रकारना वासगृहमां यावत् स्वप्नमां सिंहने जोइने जागेली छे, तण्णं देवाणुप्पिया! यस्स ओरालस्स जाव के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिबिसेसे भविस्सह ?, तर णं सुविणलक्खणपाडगा यलस्स रन्नो अंतियं एपमटुं सोचा निसम्म हह तुहतं सुविणं ओगिण्हइ. 2 ईहं अणुप्पविसह अणुप्पविसित्ता तस्स मुविणस्स अत्थोगहणं करेइ तस्म० 2 त्ता अनमनेणं सद्धिं संचालेंति 2 तस्स सुविणस्स लहा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगगट्ठा बलस्स रन्नो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उ० 2 एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सुविणसत्थंसि यायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा बावत्तरि सव्वसुविणा विट्ठा, // तो हे देवानुप्रियो ! आ उदार एवा स्वप्ननुं यावद चीजु कयुं कल्याणरूप फल अने वृत्तिविशेष थशे. त्यार पछी ते स्वप्नलक्षणपाठको बल राजानी पासेथी ए वात सांभळी तथा अवधारी खुश अने संतुष्ट थई ते स्वप्न संचन्थे सामान्य विचार करे छे, सामान्य विचार करी तेनो विशेष विचार करे , अने पछी ते स्वप्नना अर्थनो निश्चय करे छे, अने त्यार बाद ते परस्पर साथे विचारणा करे छे. त्यार पछी ने स्वप्नना अर्थने स्वयं जाणी, बीजा पासेथी ग्रहण करी, ते संबन्धी शंकाने पूछी, अर्थनो निश्चय 18करी अने स्वप्नना अर्थने अवगत करी बल राजानी आगळ स्वमशास्त्रोनो उच्चार करतो तेओए आ प्रमाणे कछु-हे देवानुप्रिय! ए * प्रमाणे खरेखर अमारा स्वमशास्त्रमा बेताळीच सामान्य स्वमो, अने त्रीश महास्वमो मळीने कुल बहोंनेर जातना स्वमो कहेला छे. MEROLOGY For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie तत्य गं देवाणुप्पिया / तित्थगरमायरो वा चक्कवहिमायरो वा तित्थगरंसि वा चकवहिसि वा गम्भ बक्कममाव्याख्या सि एएमि तीसाए महासुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासिचाणं पडिबुझंति, तंजहा-गयवसहसीहअभि के प्रतिः संयदामससिदिणयरं झयं कुंभ। पउमसरसागरविमाणभवणरयणुच्चयसिहिं च 14 // 1 // वासुदेवमायरो वा देशात 990|| वासुदेवंसि गम्भं वकममाणमि एएस चोदसण्हं महासुविणाण अन्नपरे सत्त महासुविणे पासिसाणं पडिबुझंति, M990 // बलदेवमायरो वा बलदेवसि गम्भं बक्कममाणसि एएसि चोद्दसण्हं महासविणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे |पासित्ता णं पडिबुज्झति, मंडलियमायरो वा मंडलियसि गम्भ वचममाणसि एतेसि ण चउदसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं पगं महासुविणं पासित्ता ण पडिबुज्झन्ति, इमे य णं देवाणुप्पिया! पभावतीएदेवीए एगे महासुविणे दिहे, तं ओराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे जाव आरोग्गतुट्ट जाव मंगल्लकारण ण दवाणु प्पिया ! पभावतीए देवीए सुविणे दिहे, अत्यलाभो देवाणुप्पिण! भोग० पुत्त. रजलाभो देवाणुप्पिए !, एवं द खलु देवाणुप्पिए! पभावती देवी नवण्हं मासाण बहुपडिपुन्नाणं जाव वीतिकंताणं तुम्हं कुलकेउं जाव पयाहिति सेऽवियण दारण उम्मुक्कबालभावे जाव रजबई राया भविस्सइअणगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं देवाणुप्पिया! ६पभावतीए दबीग सुविणे दिले जाव-आरोग्ग तुहि हीहाउअ कलाण. जावदितु / / तेमां हे देवानुप्रिय ! तीर्थकरनी माताओ के चक्रवर्तिनी माताओ ज्यारे तीर्थकर के चक्रवर्ती गर्भमां आधीने उपजे त्यारे ए श्रीश महास्वप्नोमाथी आ चौद स्वप्नीने जोइने जागे छे, ते चौद स्वप्नो आ प्रमाणे -"1 हाथी, 2 बलद, 2 सिंह, 4 लक्ष्मीनो C+ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रतिः // 99 // ११शतके उद्देशा११ श॥९९१॥ अभिषेक, 5 पुष्पमाळा, 6 चंद्र, 7 सूरज, 8 ध्वजा, 9 कुंभ, 10 पद्मसरोवर, 11 समुद्र, 12 विमान अथवा भवन, 13 रखनो | ढगलो अने 14 अग्नि" बळी वासुदेवनी माताओ ज्यारे वासुदेव गर्भमां आवे त्यारे ए चौद महास्वप्नोमांना कोइ पण सात महास्वप्नो जोइने जागे छे. तथा बलदेवनी माताओ ज्यारे बलदेव गर्भमा प्रवेश करे त्यारे ए चौद,महास्वप्नोमांना कोइ पण चार महा सरकार स्वप्नोने जोइने जागे छे. मांडलिक राजानी माताओ ज्यारे मांडलिक राज गर्भमा प्रवेश करे त्यारे ए चौद महास्वप्नोमांना कोई एक महास्वम जोइने जागे छे. तो हे देवानुप्रिय ! आ प्रभावती देवीए एक महास्वप्न जोयुं छे, हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवीए उदार स्वप्न जोयु ले, यावत् आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगल करनार स्वप्न जो छे. तेथी हे देवगनुप्रिय! तमने अर्थलाभ थशे, भोगलाभ थशे, पुत्रलाभ थशे अने राज्यलाभ थशे. तथा हे देवानुप्रिय ! ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवी नव मात संपूर्ण थया पछी अने साडा सात दिवस वित्या पछी तमारा कुलमां ध्वज समान एवा यावत् पुत्रनो जन्म आपशे. अने ते पुत्र पण बाल्यावस्था मूकी मोटो थशे त्यारे ते यावाद् राज्यनो पति राजा थशे, अथवा भावितात्मा साधु थशे. तेथी हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवीए उदार स्वप्न जोयु छे. यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष तथा कल्याण करनार स्वप्न जोयुं छे. तए ण से बले राया सुविण लक्खणपाढगाणं अंतिए एयमढें सोचा निसम्म हट्टतुट्ट करयल जाव कटु ते सुवि. णलक्खणपाढगे एवं बयासी-एवमेयं देवाणुप्पिया ! जाव से जहेयं तुम्भे वदहत्तिकटुतं सुविणं सम्म पडिच्छइ तं. त्ता सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असणपाखाइममाइमपुप्फवस्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेति संमाणेति से सकारेत्ता संमाणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीहदाणं दलयति 2 विपुलं र पडिवसन्जेति पडिविसज्जत्ता सीहासणाओ SARASWAS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या २१वके प्रशतिः ९९शा अन्भुट्ठह सी० अन्भुटेत्ता जेणेष पभावती देवी तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्ता पभावती देवीं ताहिं इटाहिं का | कंताहिं जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं बयासी-एवं खलु देवा णुप्पिया सुविणसत्थंसि पायालीसं सुविणा तीसं महासुविणा बावत्तरि सव्वसुविणा दिहा, तत्य णं देवाणुप्पिए! तित्थगरमायरो वा चकवधिमायरो वा तं चेव जाव अन्नयरं एर्ग महासुविण पासित्ता णं पडिबुझंति, इमे य गं तुम देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिवे तं उदेश // 992 // ओराले तुमे देवी! सुविणे दिवे जाव रजवई राया भविस्सह अणगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं तुमे देवी ! सुत्रिणे दिवे जाब दिटेत्तिकट्ठ पभावति देवि ताहिं इहाहिं कंताहिं जाव दोचं पि तपि अणुबूहह, त्यार बाद ते बलराजा स्वप्नलक्षणपाठको पासेथी र चातने सांभळी अने अवधारी हर्षित, अने संतुष्ट थयो, अने हाथ जोडी | याद तेणे स्वप्नलक्षणपाठकोने आ प्रमाणे का'-'हे देवानुप्रियो ! आए प्रमाणे छे के, यावत् जे तमे कहो छो-एम कही ते स्वप्नोनो सारी रीते स्वीकार करे . त्यार वाद स्वप्नलक्षणपाठकोने पुष्कळ अशन, पान, खादिम, पुष्प, वख, गंध, माला अने अलंकारो वडे सत्कार करे छ, सन्मान करे , तेम करीने जीवीकाने उचित घणु प्रीतिदान आपे के अने प्रीतिदान आपीने ते स्वप्नलक्षणपाठकोने रजा आपे छे. त्यार पछी पोताना सिंहासनथी उठे छे, उठीने ज्या प्रभावती देवी छे त्या आवी प्रभावती देवीने | तेणे ते प्रकारनी इष्ट, मनोहर यावत् मधुर वाणीवडे संलाप करता करता आ प्रमाणे बघु-हे देवानुप्रिये ! ए प्रमाणे खरेखर खप्न| शाखमां ताळीश साधारण स्वप्नो, अने त्रीश महास्वप्नो तथा वधा मळीने बहोंनेर स्वप्नो देखाच्या छे. तेमां हे देवानुप्रिये! तीर्थ करनी माताओ के चक्रवर्तिनी माताओ-इत्यादि पूर्ववत् कहेवं, यावत् कोइ एक महास्वप्नने जोइने जागे छे. हे देवानुप्रिये ! तमे आ| FACARAK For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir I के उदेशा११ // 993 // हा एक महास्वप्न जोयुं छे, हे देवी! तमे उदार स्वप्न जोयु छ, यावद् ते राज्यनो पति राजा थशे के भावितात्मा अनगार थशे. हे पाख्या / देवि ! तमे उदार स्वप्न जोयुं हे, यावत् मंगलकर स्वप्न जोयुं छे, एम कही प्रभावती देवीनी ते प्रकारनी इष्ट, कांत, प्रिय एवी पतिः IP यावद् मधुर वाणीवडे वे वार अने प्रण बार पण प्रशंसा करे छे. 1993 // तए णं सा पभावती देवी बलस्स रनो अंतिय एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्टकरयलजाव एवं वयासी-एयमेयं देवाणुप्पिया! जाव त सुविणं सम्म पडिच्छति तं सुविणं सम्म पडिच्छित्ता बलेणं रन्ना अन्भणुनाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्त जाव अन्मुद्वेति अतुरियमचलजावगतीण जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता सयं भवणमणुपविट्ठा / तए णं सा पभावती देवी व्हाया कयवलिकम्मा जाय सम्बालंकारविभूसिया तं गम्भं णाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं उउभयमाणसुहेहिं भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं जं तस्स गन्मस्स हियं मितं पत्थं गम्भपो सणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पहरिकसुहाए मणोणुकूलाए विहारभूमीए पसत्यदोहला संपुन्नदोहला सम्माणियदोहला अवमाणियदोहला पोच्छिन्नदोहला ववणीयदोहला वषगयरोगमोहभयपरिसासा तं गम्भ मुहंमहेणं परिवहति / तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाण राईदियाणं वीतिताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुन्नपंचिंदियसरीरं लक्वणवंजणगुणोववेयं जाच ससिसो-माकार कंतं पियवसणं सुरूवं वारयं पयापा। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie ATM प्रातिः // 994 // ११तके उदेशन // 994 // त्यार बाद ते प्रभावती देवी बल राजानी पासेथी ए वातने सांभळीने अवधारीने हर्षवाळी, अने संतुष्ट थइ यावत् हाथ जोडी आ प्रमाणे बोली-'हे देवानुप्रिय! ए ए प्रमाणे ज में यावद् एम कही यावत् ते स्वप्नने सारी रीते ग्रहण करे . त्यार पछी बल राजानी अनुमतिथी अनेक प्रकारना मणी अने रखनी कारीगरीथी युक्त तथा विचित्र एवा ते भद्रासनधी उठी त्वरारहित, अचपलपणे यावत् हंससमानगति वडे ज्यां पोतानुं भवन छे त्यां आवी तेणे पोताना भवनमा प्रवेश कयों. त्यार बाद ते प्रभावती देवी स्नान करी, बलिकर्म-देवपूजा करी, यावत् सर्व अलंकारथी विभूषित थइ ते गर्भने अतिशीत नहि, अतिउष्ण नहि, अति तिक्त नहि, अतिकटु नहि, अति तुरा नहि, अतिखाटां नहि, अने अतिमधुर नहि एवा. तथा दरेक ऋतुमा भोगवतां सुखकारक एवा भोजन, आच्छादन गंध अने माला वडे ते गर्भने हितकर, मित, पथ्य अने पोषणरूप छे तेवा आहारने योग्य देश अने योग्य कळे ग्रहण करती, तथा पवित्र अने कोमळ शयन अने आसनबडे एकान्तमा सुखरूप अने मनमे अनुकूल एवी विहारभूमिबडे प्रशस्त दोहदवाळी, संपूर्ण दोहदवाळी, सन्मानित दोहदवाळी, जेनो दोहद तिरस्कार पाम्यो नथी एवी, दोहदरहित, दर थयेला दोहदवाळी, तथा रोग, मोह, भय अने परित्रास रहित ते गर्भने सुखपूर्वक धारण करे छे. त्यार बाद ते प्रभावती देवीए नव मास पूर्ण थया पछी अने साडा सात दिवस वीत्या पछी मुकुमालहाथ-पगवाळा अने दोपरहित प्रतिपूर्णपंचेन्द्रिय युक्त शरीरवाळा, तथा लक्षण, व्यंजन अने| गुणथी युक्त, यावत् चंद्रसमानसौम्य आकारवाळा, कांत, प्रियदर्शन अने मुंदर रूपवाळा पुत्रने जन्म आप्यो. तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पभावर्ति देविं पसूर्य जाणेता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छन्ति तेणेव उवागच्छित्ता करयल जाव बलं रायं जयेणं विजएणं बद्धाति जपणं विजएणं बद्धावेत्ता एवं For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir ११शतके HA+% वयासी-एवं खलु वेवाणुप्पिया! पभावती पियट्टयाए पियं निवेदेंमो पियं भे भवउ / तए णं से बले राया || | अंगपडियारियाणं अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्ठ जाव धारायणीव जावरोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं / / मउडवलं जहामालियं ओमोय दलयति सेतं रययामयं विमलसलिलपुन्न भिंगारं च गिण्हइ गिणिहत्ता मत्थए उद्देशान धोवइ मत्थए धोवित्ता विउलं जीवियारिहंदलयति पीइदाणं पीइदाणं दयित्ता मक्कारेति सम्माणे ति ॥(सूत्र 428) / // 995 // त्यार बाद ते प्रभावती देवीनी सेवा करनार दासीओए तेने प्रसव थयेलो जाणी ज्यां चल राजा छे त्यां आबी हाथ जोडी यावत् बल राजाने जय अने विजयथी वधावीने आ प्रमाणे को-'हे देवानुप्रिया ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवीनी प्रीति माटे| आ (पुत्रजन्मरूप) प्रिय निवेदन करीए छीए, अने ते आपने प्रिय थाओ.' त्यार बाद ते बल राजा शरीरनी शुश्रूषा करनार दासीओ पसेथी ए वात सांभळी अवधारीने हर्षित अने संतुष्ट थइ यावद् मेघनी धाराथी सिंचायला कवकना पुष्पनी पेठे यावद् रोमांचित थइ ते अंगरक्षिका दासीओने मुकुट सिवाय पहेरेल सर्व अलंकार आपे के. आपीने ते राजा श्वेत रजतमय अने निर्मल पाणीथी भरेला कलशने लइ ते दासीओना मस्तक धुए छ, मस्तकने धोइने तेओने जीविकाने उचित घणुं प्रीतिदान आपी सत्कार अने सन्मान करी विसर्जित करे छे.॥४२८॥ तएणं से बले राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेह महावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हत्थि४ाणापुरे नयरे चारगसोहण करेह चारग. 2 माणुम्माणबढणं करेह मा 2 हथिणापुर नगरं सम्भितरबाहिरियं | आसियसंमजिओवलितं जाव करेह कारवेह करेत्ता य कारवेत्ता य यसहस्सं वा चकसहस्सं वा पूपामहामहि-II ANCHORRORSHAN For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उद्देशान // 996 // मसकार वा उस्सवेह 2 ममेतमाणत्तियं पञ्चप्पिणह, तए णं ते कोडुबियपुरिसा बलेण रना एवं वुत्ता. जाव पञ्च पिणंति / तए णं से बल्ले राया जेणेव अदृणसाला तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छित्ता तं चेव जाव मज्जप्रतिभा प्राणघराओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता उस्सुक्कं उक्कर उक्किट्ठ अदिलं अमिल्नं अभडप्पवेसं अदंडकाडाँडमं अधरिमं गणियावरनाइजकलियं अणेगतालाचराणुचरियं अणुयमुइंग अमिलायमल्लदामं पमुइयपकोलियं सपुरैजणजाणवयं दसदिवसे ठिहवडियं करोति / तए से बले राया दसाहियाए ठिइवडिवाए बद्दमाणीए सईए य साह| स्सिए य सयसाहस्सिए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य सए य सयसाहस्सिए य लंभे पडिच्छेमाणे पडिच्छावेमाणे एवं विहरइ / तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेइ तइए दिवसे चंद सूरदसणियं करेह छठे दिवसे जागरियं करेइ एक्कारसमे दिवसे वीतिकते निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे संपत्ते वारसाहदिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइम उवक्खडार्विति उ०२ जहासिवोजाव खत्तिएय आमंतेति आ. है 2 तओ पच्छा पहाया कय० तं चेव जाव सकारेंति सम्माणतिर तस्सेव मित्तणातिजाव राईण य खत्तियाण य पुरओ अज्जयपज्जयपिउपज्जयागयं बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुबद्धणकर अयमेयारूवं | गोन्नं गुणनिष्फन्नं नामधेज करेंति-जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रन्नो पुत्ते पभावतीए देवीए अत्तए तं होउ णं अम्हं एयस्स दारगस्त नामधेज्ज महन्वले, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज करेंति महब्बलेत्ति / त्यार बाद ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कयु-'देवानुप्रिय ! तमे शीघ्र हस्तिनापुर नगरमां केदीओने For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रतिः W मुक्त करो, मुक्त करीने मान (माप) अने उन्मानने (तोलाने) वधारो; त्यार बाद हस्तिनागपुर नगरनी बहार अने अंदरना भागमा छंटकाव करो, साफ करो, संमार्जित करो, अने लीपो; तेम करी अने करावीने सहस्र यूपोनो अने सहस्र चक्रोनो पूजा, महामहिमा I| ११तके अने सत्कार करो, ए प्रमाणे करी मारी आ आज्ञा पाछी आपो. त्यार बाद ते बल राजाना कहेवा प्रमाणे करी ते कौटुंबिक पुरुषो 51 उशा११ | तेनी आज्ञा पाछी आपे के. त्यार पछी ते बल राजा ज्या व्यायामशाला छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने-इत्यादि पूर्ववत् कहे. यावद् // 997 // खानगृहथी बहार नीकळी जकात रहित, कररहित, प्रधान, (विक्रयनो निषेध करेलो होवाथी) आपला योग्य वस्तु रहित, मापया योग्य वस्तुरहित, मेयरहित, सुभटना प्रवेशरहित, दंड तथा कुदंडरहित, (ऋण मुक्त करेलु होबाथी) अधरिमयुक्त-देवारहित, उत्तम गणिकाओ अने नाटकीयाओथी युक्त, अनेक तालानुचरो वडे युक्त, निरंतर वागतां मृदंगोसहित, साजा पुष्योनी माला युक्त, प्रमोद सहित, अने क्रीडा युक्त एवी स्थितिपतिता-पुत्रजन्ममहोत्सव पुर अने देशना लोको साथे मळीने दस दिवस सुधी करे छे. त्यार बाद दस दिवस मुधी स्थिति पतिता-उत्सव चालु हतो त्यारे ते बल राजा सो रूपियाना, हजार रूपियाना अने लाख रूपियाना खर्चबाळा भागो, दानो अने द्रव्यना अमुक भागोने देतो अने देवरावतो तथा सो रूपियाना, हजार रूपियाना तथा लाख रूपियाना लाभने मेळवतो, मेळवावतो ए प्रमाणे रहे छे. त्यार बाद ते छोकराना मातापिता प्रथम दिवसे स्थितिपतिता-कुलनी मर्यादा प्रमाणे | क्रिया करे छेत्रीजे दिवसे चंद्र अने सूर्यनुं दर्शन करावे छे, छढे दिवसे धर्मजागरण करे हे अने अग्यारमो दिवस वीत्या बाद अशुचि जातकर्म करवा निवृत्त थया पछी बारमे दिवसे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने खादिम पदार्थोने तैयार करावे , अने जेम शिव राजा संबन्धे काम क्षत्रियोने आमंत्रे छे. त्यार पछी स्नान तथा बलिकर्म करी इत्यादि पूर्वोक्त यावत् सत्कार अने सन्मान For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पारूपा महतिः // 998 // देशात // 998 // करी सेज मित्र, ज्ञाति यावत् राजन्य अने क्षत्रियोनी समक्ष अर्या-पिता, पर्या-पितामह अने पिताना पण पितामहथी, पणा पुरुपीनी परंपराधी वधेलु, कुलने योग्य, कुलने उचित अने कुलरूपसंतानतुने वधारनार आ आका प्रकारनु, गुणयुक्त अने गुणनिष्पत्र नाम पाडे छे. जेथी अमारो आ छोकरो बल राजानो पुत्र अने प्रभावति देवीनो आत्मज छे, माटे ते अमारा आ पुत्रनुं नाम 'महा| बल' हो. त्यार बाद ते छोकराना माता पिता तेनुं 'महाबल' एवं नाम करे के. ___तए णं से महब्बले दारए पंचधाईपरिग्गहिए, तंजहा-खीरधाईए एवं जहा दढपइन्ने जाव निवाय. निवाघायंसि सुहंसुहेणं परिवति / तए णं तस्स महम्बलस्म दारगस्स अम्मापियरो अणुपुब्वेणं ठितिवडियं वा चंडसूरदंसावणिंय वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामण वा पयर्चकामणं वाजेमाणं वा पिंडवद्धणं वा पन्जपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छरपडिलेहण वा चोलोयणगं च उवणयणं च अनाणि य यहूणि गम्भाधाणजम्मणमादियाई कोउयाई करेंति / तए णतं महन्थल कुमारं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासगं जाणित्ता सोभणसि तिहिकरणमुहुरासि एवं जहा दढप्पइन्नो जाव अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्या। तए तं महब्बलं कुमार उम्मु8 कमालभावं जाव अलं भोगममत्थं विजाणित्ता अम्मापियरो अट्ट पासायव.मए करेंति 2 अन्भुग्गयमूसिपप&ाहसिएइव वन्नओ जहा रायप्पलेणइन्जे जाच पडिरूबे, तेसिणं पासायवडेंसगाणं बहमज्झदेसभागे पत्थ णं महेगं भवणं करेंति अणेगखंभसयंसंनिविटुं वन्नओ जहा रायप्पसेणइज्जे पेच्छाघरमंडवंसि जाव पडिरूवे (सूत्रं 429 // ) त्यार पछी ते महाबल मामे पुत्रनुं पांच धावो वडे पालन करायं. ते पांच घावो आ प्रमाणे शे-धीरधात्री, ए प्रमाणे बधुं दृढ SAKSEASE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir + माख्याप्रसिः 1999 // प्रतिज्ञानी पेठे जाणवू. यावत् ते कमार वायुरहित अने निर्व्याघात-अडचणरहित स्थानमा अत्यंत सुखपूर्वक वृद्धि पामे छ, पछी ते || | महाबलना मातापिताए जन्मना दिवसथी मांडी अनुक्रमे स्थितिपतिता, सूर्यचंद्रनुं दर्शन, धर्मजागरण, नामकरण, भांखोडीया चालवू, पगे चालवू, जमाडवू, कोलीआ वधारवा, बोलाव, कान विधाक्वा, वर्षगांठ करवी, चूडा-शिखा रखावी, उपनयन-शीखवतुं ए8 उशारर वर्धा अने एशिवाय बीजा धणा गर्भाधान, जन्म वगेरे कौतुको करे के. त्यार पछी ते महाबल कुमारने तेना मातापिता आठ वरसथी // 999 // अधिक उमरनो जाणी प्रशस्त तिथि, करण, नक्षत्र अने महूर्तमां (कलाचार्य पासे भणवा मोकले छे)-इत्यादि ए प्रमाणे पधुं दृढप्रतिबनी पेठे कहेवू, यावत् ते महाबल कुमार विषयोपभोगने समर्थ थयो. त्यार बाद ते महाबल कुमारनो बालभाव व्यतीत थयो | जाणी, यावद् तेन विषयोपभोगने योग्य जाणी तेना माता पिता तेने माटे आठ श्रेष्ठ प्रासादो तैयार करावे छे, ते प्रासादो अतिशय | उंचा अने (घेत वर्णना होवाथी) जाणे हसता होयनी-इत्यादि वर्णन राजप्रश्नीयसूत्रमा कहा प्रमाणे जाणवू, यावत् ते प्रासादो अत्यंत BI सुंदर थे, ते प्रासादोना बरावर मध्यभागमा एक मोटुं भवन तैयार करावे छे, ते भवन सेंकडो थामला उपर रहेलुं बे-इत्यादि वर्णन राजप्रश्नीय सत्रमा कडा प्रमाणे प्रेक्षागृह अने मंडपना वर्णननी पेठे जणावं, यावत् ते सुन्दर हतुं // 429 / / तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अन्नया कयावि सोभणंसि तिहिकरणदिवमनक्खत्तमुहुत्तसि पहायं कयवलिकम्मं कयकोउयमंगलपाय सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणगण्हाणगीयवाइयपसाहणटुंगतिलगकंकणअविहववहुउवणीयं मंगलसुजपिएहि य वरकोउपमंगलोवयारकयसंतिकम्मं सरिसयाण सरित्तयाण सरिब्बयाणं सरिसलावरूवजोव्वणगुणोववेयाण विणीयाण कयकोउयमंगलपायच्छित्ताण सरिसरहिं रायकुलेहितो आणि. कडक 5 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Maa Jan Aradhana Kendra Acharya Se Klasagarsun Gyarmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 1000 | उदेश११ // 1000 // ल्लियाण अढण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गिहाविसु। त्यार पछी वीजा कोइ एक दिवसे शुभ तिथि, करण, दिनस नक्षत्र अने मुहूर्तमा जेणे स्नान, बलिकर्म-पूजा, रक्षा आदि कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित कयु के एत्रा महाबल कुमारने सर्व अलंकारथी विभूषित करी अने सधवा स्त्रीओए करेला अभ्यंजन-विलेपन, स्नान, गीत, वादित्र, मंडन, आठ अंगमां तिलक अने कंकण पहेरावी मंगल अने अशीर्वादपूर्वक उत्तम रथा वगेरे कौतुकरूप अने सरसव वगेरे मंगलरूप उपचार बडे शांतिकर्म करी, योग्य, समानत्वचावाळी, समान उमरवाळी, समान लावण्य, रूप, यौवन अने गुणथी युक्त, विनीत, जेणे कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित करेलु के एवी समान राजकुलथी आणेली एवी, उत्तम, राजानी आठ श्रेष्ठ कन्याओर्नु एक दिवसे पाणिग्रहण कराव्यु. तएणं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाणं दलयंतित -अट्ठ हिरन्नकोडीओ अह सुक्न्नकोडीओ अट्ट मउडे मउडप्पवरे अट्ट कुंडल. जुए कुंडलजुयप्पवरे अट्ट हारे हारप्पवरे अट्ट अद्धहारे अद्धहारप्पवरे अट्ट एगावलीओ एगावलिप्पवराओ एवं मुत्तावलीओ एवं कणगावलीओ एवं रयणावलीओ अट्ट कडगजोए कडगजोयप्पबरे एवं तुडियजोए अट्ठ खोमजुयलाई बोमजुपलप्पबराई एवं बडगजुयलाई एवं पजुयलाई एवं दुगुल्लजुयलाई अट्ट सिरीओ अह हिरीओ एवं घिईओ कित्तीओ बुद्धीओ लच्छीओ अट्ट नंदाई अट्ठ भद्दाइं अg तले तलप्पवरे मवरपणामए णियगवरभवणकेऊ अट्ठ भए प्रयापदरे अट्ट वये वयप्पवरे दसगोसाहस्सिएणं वएणं अट्ठ नाडगाइं नाडगप्पवराई बत्तीसबदेणं नाडएणं अट्ठ आसे आसप्पवरे सब्बरयणामए सिरिघरपडिरूवए अह For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie पापा है|११शतके 51 उदेश:११ 10.1 // // 1001 हत्थी हथिप्पवरे सब्वरयणामए सिरिघरपडिरूवए अट्ठ जाणाई जाणप्पथराई अट्ट जुगाई जुगप्पवराई एवं सिवि| याओ एवं संदमाणीओ एवं गिल्लीओ चिल्लीओ अg वियडजाणाई बियडजाणप्पवराई अट्ट रहे पारिजाणिए अट्ठ रहे संगामिए अट्ठ आसे आसप्पवरे अट्ट हत्थी हस्थिप्पवरे अट्ठ गामे गामप्पवरे दसकुलसाहस्सिएणं गामेण ! ___त्यार पछी ते महाबल कुमारना माता पिता एवा प्रकारनु आ प्रीतिदान आपे छ, ते आ प्रमाणे आठ कोटि हिरण्य,आठ क्रोड सोनैया, मुकुटोमां उत्तम एवा आठ मुकुट, कुंडलयुगलमा उत्तम एवी आठ कुंडलनी जोडी, हारोमा उत्तम एवा आठ हार, अर्धहारमां श्रेष्ठ एवा आठ अर्धहार, एकसरा हारमा उत्तम एवा आठ एकसरा हार, एज प्रमाणे मुक्तावलीओ, कनकावलीओ अने रत्ना वलीओ जाणवी कडा युगलमा उत्तम एवा आठ कहानी जोडी, ए प्रमाणे तुडिय-बाजुबंधनी जोडी, रेशमी वस्त्र युगलमा उत्तम एवा आठ रेशमी वस्त्रनी जोडी, ए प्रमाणे सूतराउ बननी जोडीओमा उत्तम एवी आठस्तराउ वखनी ओडीओ, ए प्रमाणे टसरनी जोडीओ, पट्टयुगलो, दुकूलघुगलो, आठ श्री, आठ हो, ए प्रमाणे धी, कीर्ति, बुद्धि, अने लक्ष्मी देवोओनी प्रतिमा जाणवी. आठ नंदो, आठ भद्रो, ताडमां उत्तम एवा आठ तालवृक्ष-र सर्वरत्नमय जाणवा. पोताना भवनना केतु-चिह्वरूप धजमां उत्तम एवा | आठ बजो. दस हजार गायोर्नु एक वज-गोकुल थाय छे, तेवा गोकुलमा उत्तम एवा आठ गोकुलो, नाटकोमा उत्तम अने बत्रीश माणसोथी भजवी शकाय एका आठ नाटको,घोडाओमा उत्तम एवा आठ घोडा,आ बघुरखमय जाणवू.मांडागार समान हाथीओमां उत्तम एका आठ रत्नमय हाथीओ, भांडागार समान सर्वरत्नमय यानोमां श्रेष्ठ एवा आठ यानो, युग्यमा उत्तम आठ युग्यो (अमुक जातना वाहनो) ए प्रमाणे शिविका, स्पदंमानिका ए प्रमाणे गिल्ली,(हाथीनी उपरनी अंबाडी), थिल्लिओ (घोडाना आडा पलाणो), %C44 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir EKA ११सके देशार 1002 // विकट यानोमां ( उघाडा वाहनोमां ) प्रधान एवा आठ विकट यानो, आठ पारिवानिक (क्रीडाना ) रथो, संग्रामने योग्य एवा आठ रथो, अश्वोमा उत्तम एका आठ अश्व, हाथीओभा उत्तम एवा आठ हाथीओ, ग्रामोमां उत्तम एवा आठ गामो जेमा दस हजार व्याख्या प्रतिकुलो रहे ते एक गाम कहेवायचे. // 1002 // अह दासे दासप्पबरे एवं चेव दासीओ एवं किंकरे एवं कंचुइज्जे एवं वरिसधरे एवं महत्तरए अट्ठ सोवनिए ओलंषणदीवे अट्ठ रुप्पामए ओलंबणदीवे अट्ठ सुवन्नरुपामए ओलंबणदीवे अट्ठ सोवन्निए उकंचणदीवे एवं चेव रतिनिवि अट्ट सोवनिए थाले अट्ट रुप्पमए थाले अट्ट सुवन्नरुप्पमए थाले अट्ट सोवनियाओ पत्तीओ 3 अट्ट सोचनियाई थासयाई 3 अट्ट सोवन्नियाई मंगलाई 3 अट्ट सोवनियाओ तलियाओ अह सोचनियाओ कावहआओ अट्ट सोवन्निग अवएडए अट्ट सोवधियाओ अवयकाओ अट्ट सोवष्णिए पायपीढग 3 अट्ट सोचनियाओ भिसियाओ अट्ट सोवनियाओ करोडियाओ अट्ट सोवन्निए पल्लंके अट्ट सोवनियाओ पडिसेन्जाओ अट्ट हंसासणाई अट्ट कोचासणाई एवं गरुलासणाई उन्नयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरामणाई अट्ट पउमासणाई अढ दिसासोवस्थियासणाई अट्ट तेल्लसमुग्गे जहा रायपसेणइज्जे जाव अट्ट सरिसवसमुग्गे अदुखुजाओ जहा उबवाइए जाब अट्ठ पारिसीओ अट्ट छत्ते अट्ठ छत्तधारीओ चेडीओ अट्ठ चामराओ अट्ट चामरधारीओ चेडीओ अढ तालियंटे अढ तालियंटधा- रीओ चेडीओ अट्ठ करोडियाधारीओ चेडीओ अट्ठ खीरधातीओ जाव अट्ठ अंकधातीओ अट्ठ अंगमदियाओ अह उम्मदियाओ अट्ठ पहावियाओ अट्ठ पसाहियाओ अट्ठ वन्नगपेसीओ अट्ठ चुन्नग KHA +% +5 + + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir |११शव पेसीओ अट्ठ कोडागारीओ अह दवकारीओ अट्ठ उवस्थाणियाओ अट्ठ नाइडजाओ अट्ठ कोडुंबिणीओ अट्ठ महाग्याल्याणसिणीओ अट्ठभंडागारिणीओ अट्ठ अज्झाधारिणीओ अदु पुप्फाधारणीओ अट्ठ पाणिधारणीओ अट्ठ पलिकारीओ प्रवामिः अदुसेजाकारीओ अट्ट अभि तरियाओ पडिहारीओ अष्टु बाहिरियाओ पडिहारीओ अट्ठ मालाकारीओ अट्ठ पेस-18| उद्देशा११ // 1003 // रीओ अन्नं वा सुबहु हि- रन्नं वा सुदन्नं वा कसं वा दूसं वा विउलधणकणगजावसंतसारमावएनं अलाहि जाव १०.शा | आसत्तमाओ कुलवंमाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं / तए णं से महब्बले कुमारे एगमेगाए | भजाए गगमेग हिरनकोडैि दलपति पगमेगं सुचन्नकोडिं दलयति गगमेग मउडं मउडप्पवरं दलपति एवं ने चेव सव्वं जाव एगमेगं पेसण कारिं दलयति अन्न धा सुबहु हिरन वा जाच परिभाएउं, तए णं से महन्यले कुमारे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली जाब विहरति / (मूत्र 430) // दासोमा उत्तम एवा आठ दासो, एज प्रमाणे दासीओ ए प्रमाणे किंकरो, प प्रमाणे कंचुकिओ, ए प्रमाणे वर्षघरो, (अंतःपुरना | रक्षक खोजाओ) ए प्रमाणे महत्तरको (वडाओ), आठ सोनाना, आठ रुपाना तथा आठ सोना-रुपाना अवलंबन दीपो [हांडीओ]] | आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना-रुपाना उत्कंचनदीपो [दंडयुक्त दीवाओ], ए प्रमाणे त्रणे जातना पंजरदीपो-फानसो, आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना-रुपाना थाळो, आठ सोनानी आठ रुपानी अने आठ सोना-रुपानी पात्रीओ, (नाना 4 पात्रो), ए प्रमाणे त्रणे जातना आठ स्थासको तासको, आठ मल्लको-चपणीया, आठ तलिका-रकेपीओ, आठ कलाचिका-चमचा, आठ तावेथाओ, आठ तवीश्रो, आठ पादपीठ-(पम मकवाना बाजोठ), आठ मिसिका-(अमुक प्रकारना आसनो), आठ करोटिका For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या १९श्व // 1.04 // + (अमुक जातना पात्रो, लोटा अथवा कचोला), आठ पलंग, आठ प्रतिशय्या (ढोयणी प्रमुख नानी बीजी भय्याओ), आठ इंसासनो, आठ क्रौंचासनो,ए प्रमाणे गरुडासनो,उंचा आसनो,नीचा आसनोदीर्घासनो, मद्रासनो,पक्षासनो,मकरासनो,आठ पगासनो,आठ दिक्स्व. स्तिकासनो,आठ तेलना डाबडा-इत्यादिबधुं राजप्रश्नीय सूत्रमा कह्या प्रमाणे कडेवू,यावद् आठ सरसवना डाबडा, आठ कुब्ज दासीओ उद्देश:११ इत्यादि बधु औपपातिक सूत्रमा कह्या प्रमाणे कहेवू, यावत् आठ पारसिक देशनी दासोओ; आठ छत्री, आठ छत्र धरनारी दासीओ. IN9.0 // आठ चायरो, आठ चामर धरनारी दासीओ, आठ पंखा, आठ पंखा वीं जनारी दासीओ, आठ करोटिका-तांबूलना करंडिया-ने धारण करनारी दासीओ, आठ क्षीरधात्रीओ ( दूध पानारी धावो), यावद् आठ अंकयात्रीओ (खोळामा रमाडनारी धावो) आठ अंगमर्मिकाओ,-शरीर- अल्प मर्दन करनारी दासीओ आठ उन्मर्दिकाओ ( अधिक मर्दन करनारी दासीओ), आठ स्नान करावनारी दासीओ, आठ अलंकार पहेरावनारीओ, आठ चंदन घसनारीओ, आठ तांबूल चूर्ण पोसनारीओ, आठ कोष्ठागारनुं रक्षण करनारी, आठ परिहास करनारी, आठ सभामा पासे रहेनारी, आठ नाटक करनारीओ, आठ कौटुंबिकीओ-साथे जनारी दासीओ,आठ रसोइ करनारी, आठ भांडागारनु रक्षण करनारी, आठ मालपो, आठ पुष्प धारण करनारी, आठ पाणी लावनारी आठ बलि करनारी, आठ पथारी तैयार करनारी, आठ अंदरनी अने आठ बहारनी बहारनी प्रतिहारीओ, आठ माला करनारीओ, आठ पेषण करनारी, अने ए शिवाय बीजं घणुं हिरण्य, सुवर्ण, कांसं, वस्त्र तथा विपुल धन, कनक, यावत् विद्यमान सारभूत धन आप्यु. जे सात पेढी सुधी इच्छापूर्वक आपवा अने भोगववाने परिपूर्ण हतुं. त्यार बाद ते महाबल कुमार दरेक खीने एक एक हिरण्यकोटि, एक एक सुवर्णकोटि अने मुकुटोमा उत्तम एक एक मुकुट आपे छे. ए प्रमाणे पूर्वोक्त सर्व वस्तुओ एक एक आपे के, यावद एक एक 45- + 4 + + + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके प्रहसि पोषण करनारी दासी तथा बीजं पण घणुं हिरण्य यावद् बहेंची आपे छे. त्यार पछी ते महाबल कुमार उत्तम प्रासादमां उपर बेसी जमालिनी पेठे यावद् विहरे छे. // 430 // पाल्पा तेणं कालेणं 2 विमलस्स अरहो पओप्पए धम्मघोसे नामं अणगारे जाइसंपन्ने बन्नओ जहा केसिसामिस्सा उपचार // 1005 // जाव पंचहि अणगारसरहिं सद्धिं संपरिखुडे पुवाणुपुन्धि चरमाणे गामाणुगामं दूतिनमाणे जेणेव हस्थिणागपुरे 4 // 10.5 // नगरे जेणेव सहसंबवणे उजाणे तेणेव उवागच्छह 2 अहापडिलवं उग्गहं ओगिण्हति २संजमेणं तवसा अप्पाण | भावेमाणे विहरति / तए णं हस्थिणापुरे नगरेसिंघाडगतिय जाव परिसा पज्जुवासह / तए णं तस्स महब्बलस्म कुमारस्स तं महया जणसई वा जणवूह वा एवं जहा जमाली तहेब चिंता तहेव कंचुहजपुरिस सहावेति, कंचुहज्जपुरिसोवि तहेव अक्खाति, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्म आगमणगहियविणिच्छए करयलजाब निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया! विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे सेस तं व जाव मोऽवि तहेव रहवरेण निग्गच्छति, धम्मकहा जहा केसिसामिस्स, सोधि तहब अम्मापियरो आपुच्छह, नवरं धम्मघोसस्म *अणगारस्स अंतिय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए तहेब वुत्तपडिवुत्तथा नवरं हमाओ य ते जाया | 4] विउलगयकुलबालियाओ कला० सेस तं चेव जाव ताहे अकामाई चेव महन्बलकुमारं एवं बयासी४ ते काले ते समये विमलनाथ तीर्थकरना प्रपौत्र-प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार हता, ते जातिसंपन्न हता-इत्यादि वर्णन केशी I#खामीनी पेठे जाणा, यावत् तेओ पांचसो साधुना परिवारनी साथै अनुक्रमे एक गामी बीजे गाम विहार करता ज्यां हस्तिनागपुर Sekck For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie मा | नामे नगर के, अने ज्यां सहस्राप्रवन नामे उपान छे, त्यां आवे छे, आवीने यथा योग्य अवग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपबडे 18 आत्माने भावित करता यावद् विहरे छे, ते समये हस्तिनागपुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक-[वगेरे मार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम प्रशिकहे छे इत्यादि ] यावत् परिषद् उपासना करे छे. त्यार बाद ते महाबल कुमार घणा माणसोना शब्दने, जनना कोलाहलने सांभळी Inte. ए प्रमाणे यावत् जमालिनी पेठे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार कंचुकी पुरुषने बोलावे में, अने कंचुकी पुरुष पण तेज प्रमाणे | कड़े छे, परन्तु एटलो विशेष के के ते कंचुकी धर्मघोष मुनिना आममननो निश्चय जाणीने हाथ जोडीने यावद् नीकळे छे. ए प्रमाणे | हे देवानुप्रिय ! विमलनाथ अरिहंतना प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार अहीं आव्या चे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् ते महा| बल कुमार पण उत्तम रथमां बेसीने वांदवा नीकळे के. धर्मकथा केशिवामिनी पेठे जाणवी. महाबल कुमार पण ते प्रमाणे माता| पितानी रजा मागे छे, परन्तु ते 'धर्मघोष अनगारनी पासे दीक्षा लइ अगारथी-गृहबासथकी अनगारिकपणुं लेवाने इच्छु छु' एम | कहे -इत्यादि उक्त अने प्रत्युक्ति ते प्रमाणे ( जमालिना चरितमां वर्णव्या प्रमाणे ) जाणवी. परन्तु हे पुत्र ! [आ तारी स्त्रीओ] विपुल एवा राजकुलमा उत्पन्न थयेली चालाओ छ, वळी ते कलाओमां कुशल छे-इत्यादि वर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् मातापिताए इच्छा विना ते महाबल कुमारने आ प्रमाणे कघु तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रजसिरिं पासित्तए, ताण से महम्बले कुमारे अम्मापियराण वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठति / तए णं से बले राया कोडंबियपुरिसे सहावेह एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणिययोजाव अभिसिंचति करयलपरिग्गहिय महम्बलं कुमारं जएण विजएणं वदावें ति जएणं विजएणं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra wwwkobarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie हा११शतके उद्देशान 10.7 // विद्धावित्ता जाव एवं वयासी-भण जाया!कि देमो किं पयच्छामो सेसं जहा जमालिस्स तहेव जाव तएण से महन्धले हैं म्याख्या अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाझ्याइं चोइस पुब्वाई अहिज्जति अ० 2 बहूहिं चउत्थजाव। प्रवतिः विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि पुन्नाई दुवालस वासाई सामन्नपरियागं पाउणति यहु० मामि॥१००७॥ याए सलेहणाए सहि भत्ताई अणसणाए आलोइयपडिकते ममाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्दं चंदिमसुरिय जहा अम्मडो जाव बंभलोए कप्पे देवताए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगतियाण देवाण दस सागरोवमाई ठिती पहा पणत्ता, तत्थ णं महबलस्सवि दस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, से णं तुम सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागदारोवमाई दिब्वाइं भोगभोगाइं मुंजमाणे विहरित्ता ताओ चेव देवलोगाओ आउखएण 3 अणंतरं चयं चइत्ता| हेव वाणियगाम नगरे सेहिकुलं सिपुत्तत्ताए पञ्चायाए // (सूत्र 431 ) // | 'हे पुत्र ! एक दिवस पण तारी राज्यलक्ष्मीने जोवा अमे इच्छीए छीए,' त्यारे ते महाबल कुमार मातापिताना वचनने अनु। सरीने चूप रह्यो. पछी ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलान्या -इत्यादि शिवभद्रनी पेठे राज्याभिषेक जाणवो, यावत् राज्या- | मिषेक कयों, अने हाथ जोडीने महावल कुमारने जय अने विजयवडे वधावी यावद् आ प्रमाणे कg-हे पुत्र ! कहे के तने झुं दहए, तने शुं आपीए,' इत्यादि बाकीनुं वधुं जमालिनी पेठे जाण; यावत् त्यार पछी ते महाबल अनगार धर्मघोष अनगारनी पासे सामायिकादि चउद पूर्वोने भणे छ, भणीने घणा चतुर्थ भक्त, यावद् विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावित करीने संपूर्ण बार वर्ष | श्रमण पर्यायने पाळे छे, पाळीने मासिक संलेखनावडे निराहारपणे साठ भक्तोने बीतावी, आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने * For Private and Personal Use Only
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________________ Shri ahova Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie 4 प्राप्त थइ मरण समये काल करी ऊर्ध्व लोकमां चंद्र अमे यंनी उपर बहु दूर अंबडनी पेठे यावत् ब्रह्मलोक कल्पमा देवपणे उत्पन्न व्याख्या थयो. त्यां केटलाक देवोनी स्थिति दस सागरोपमनी कहेली छे. तेमां महाबल देवनी पण दस सागरोपमनी स्थिति कहेली छे. हे ११शतके प्रवतिः | सुदर्शन! तुं ते ब्रह्मलोक कल्पमां दस सागरोपम सुधी दिव्य अने भोग्य एवा भोगोने भोगवी ते देवलोकथी आयुषनो, भवनो उद्देश११ 11008 // अने स्थितिनो क्षय थया पछी तुरतज च्यवी अहींज वाणिज्यग्राम नामना नगरमां श्रेष्टिना कुलमा पुत्रपणे उत्पन्न थयो 2. // 431 // |4|1008 6 ताणं तुमे सुदंसणा! उम्मुक्कवालभावेणं विनायपरिणयमेत्तणं जोवणगमणुप्पत्तणं तहारूवाण थेराण अं. |तियं केबलिपन्नत्ते धम्मे निसते, सेऽविध धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए तं सुटु ण तुम सुदसणा! इदार्णि |पकरेसि / से तेणद्वेणं सुदंसणा! एवं बुचइ-अस्थि ण एतेसिं पलिओवमसागरोवमा स्खयेति वा अवचयेति वा, तए गं तस्म सुदंसणस्स सेहिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म सुभेण अज्झव| साणेण सुभेण परिणामेण लेमाहिं विसुज्झमाणीहि तयावरणिज्जाणं कम्माणं वओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवे. मणं करेमाणस्स सन्नीपुब्वे समुप्पन्ने गयमहूँ सम्म अभिसमेति, तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेणं भगवया महा. वीरेणं संभारियपुब्वभवे दुगुणाणीयसढासंवेगे आणंदसुपुन्ननयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आ०२ वं. नमंत्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते !जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिकहु उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ सेसं जहा उसमदत्तस्स जाव मब्बदुश्वप्पहीणे, नवरं चोइस पुटवाई अहिजइ बहुपडिपुन्नाई दुवालस वासाई मामअपरियाग पाउणइ, सेसं तं चेव / सेवं भंते ! सेवं भंते / / (सूत्र 432) / महम्बलो समत्तो // 11-11 / / %BERecract For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रणाम 1009 // त्यार बाद हे सुदर्शन ! बालपणाने बीतावी विज्ञ अने मोटो थइ, यौवनने प्राप्त थइ ते तेवा प्रकारना स्थविरोनी पासे केवलिए। | कहेलो धर्म सांभळ्यो, अने ते धर्म पण तने इच्छित अने स्वीकृत थयो, तथा तेना उपर तने अभिरुचि थइ. हे सुदर्शन ! हाल तुं जे *११शतके करे छे ते सारं करे . तेमाटे हे सुदर्शन ! एम कहेवाय छे के ए पल्योपम अने सागरोपमनो क्षय अने अपचय थाय छे. त्यार बाद पापाचारपाना उद्देशा११ | श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी ते सुदर्शन शेठने शुभ अध्यवसायवडे, शुभ परिणामवडे अने विशुद्ध // 1009 // लेश्याओयी तदावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषणा करतां संज्ञिरूप पूर्व जन्मनु स्मरण उत्पन्न थयु अने तेथी भगवंते कहेला आ अर्थने सारी रीते जाणे छे. त्यार बाद ते सुदर्शन शेठने श्रमण भगवंत महावीरे पूर्वभव संभारेलो होवाथी बेवडी श्रद्धा अने संवेग उत्पन्न थयो, तेनां लोचन आनंदाश्रुथी परिपूर्ण थया, अने तेणे श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार आदक्षिण प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमीने आ प्रमाणे कयु-'हे भगवन् ! तमे जे कहो छो ते एज प्रमाणे शे-यावत् एम कही ते सुदशन शेठ उत्तरपूर्व ( ईशान ) दिशा तरफ गया. बाकी मधुं ऋषभदत्तनी पेठे जाणवु, यावत् ते सुदर्शन शेठ सर्व दुःखथी रहित थया. परन्तु विशेष ए छे के ते पूरां चौद पूर्वो भणे छे, अने संपूर्ण चार बरस मुधी श्रमणपर्यायने पाळे मे. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे | जाणवु हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे -एम कही यावद् विहरे छे. // 432 // भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा अगीयारमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 4 RSS % 94% E For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११वतके व्याख्या | उद्देश:१३ // 1010 // उद्देशक 12. तेण कालेणर आलभिया नाम नगरी होत्या, वन्नओ, संखवणे चेइए, बन्नओ, तत्थ णं आलभियाए नगरीए प्रज्ञप्ति बहवे इसिभद्दपुत्तपामोक्खा समणोवासया परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरति / // 1.10 // तएणं तेसिं समणोवासयाणं अन्नया कयावि एगयओ सहियाणं समुवागयाणं संनिविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेया मारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पजित्था-देवलोगेसु णं अजो! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता 1, तए ण से इसिभइपुत्ते समणोवासए देवद्वितीगहियढे ते समणोवासए एवं बयासी-देवलोएसु णं अजो। देवाणं जहणेणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णता, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव दससमयाहिया संखेजसमयाहिय | असंखेजसमयाहिया उक्कोसेण तेत्तीस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य / तए णं ते समणोवासया इसिभहपुत्तस्स समणोवासगस्स एवमाइक्रवमाणस जाब एवं परूवेमाणस्स एयमई नो सद्दहंति नो पत्तियंति नो रोयति एयमढें असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोएमाणा जामेव दिसं पाउम्भूया तामेव दिसि पडिगया (सूत्रं 433) / 4 ते काले-ते समये आलमिका नामे नगरी हती. वर्णन. शंखचन नामे चैत्य हतुं. वर्णन. ते आलभिका नगरीमा ऋषिभद्रपुत्र | प्रमुख घणा श्रमणोपासको-श्रावको रहेता हता. तेओ धनिक यावद् कोइथी पराभव न पामे तेवा अने जीवा-जीव तत्चने जाणनारा | हता. त्यार बाद बीजा कोइ एक दिवसे एकत्र मळेला, आवेला, एकठा थयेला अने बेठेला ते श्रमणोपासकोनो आ आवा प्रकारनो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रतिः // 1.11 // *११शतके उद्देशा१२ 3 // 1011 // | वार्तालाप थयो-'हेआर्य! देवलोकमां देवोनी केटला काल सुधी स्थिति कहीं छे? त्यार बाद देवस्थिति संबन्धे सत्य हकीकत जाणनार | ऋषिभद्रपुत्रे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे ह्यु-'हे आर्य! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी कही छे, त्यार पछी एकसमय अधिक, बे समय अधिक यावद् दश समय अधिक, संख्यात समयाधिक, अने असंख्य समयाधिक करतां उत्कृष्ट तेत्रीश सामरोपमनी स्थिति कही छे. त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय के ( अर्थात् तेनाथी उपरनी स्थितिना देवो अने देवलोको नथी.) त्यार पछी ए प्रमाणे कहेता, यावत् एम प्ररूपणा करता ते श्रमणोपासको ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकना आ अर्थनी श्रद्धा करता नथी, प्रतीति करता नथी अने रुचि करता नथी. ए अर्थनी श्रद्धा, प्रतीति अने रुचि नहि करता तेओ जे दिशाथी | आव्या हृता तेज दिशा तरफ पाछा गया. // 433 // तेणं कालेणं 2 समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ / तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्टतुट्ठा एवं जहा तुगिउद्देसए जाव पज्जुवासंति / तए गं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महति धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ / तए णं ते समणो. वासयासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा निसम्म हट्टतुट्ठा उट्टाए उद्देइ उ०२ समणं भगवं महावीरं बंदन्ति नममन्ति 2 एवं बदासी-एवं खलु भंते ! इसिभद्दपुत्त समणोवासए अम्हं एवं आइक्खह जाव परूवेइ-देवलोएणं अज्जो देवाणं दस वाससहस्साई जहन्नेणं ठिती पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जाव तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, से कहमेयं भंते ! एवं ?, अजोत्ति समणे भगवं महाचीरे ते समणोवासए एवं For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रति // 1.1 // ISRO CA |वयासी-जन्नं अजो। इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुझं एवं आइक्खह जाव परूवेइ-देवलोगेसु णं अजो। देवाणं जहनेणं दस वाससहस्साई लिई पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जाब तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, सच्चे गं १९शतके एसमहे।तए णं ते समणोवासगासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म समणं भगवं महा- उदेश:१९ वीरं चंदन्ति नमंसन्ति 2 जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति र इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वंदंति X // 1.12 // | नमसंति 2 एयमट्ठ संमं विणएणं भुजोर खाति / तए णं समणावामया पसिणाई पुच्छंति पु०२ अट्ठाई परियादे यति अ०२ समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति वं०२ जामेव दिसंपाउन्भूया तामेव दिसंपडिगया (सूत्रं 434) / ते काले-ते समये श्रमण भगवंत महावीर यावत् समवसर्या, यावत् परिषद तेमनी उपासना करे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको [ श्री महावीरस्वामी आध्यानी ] आ वात सांभळी, हर्षित अने संतुष्ट थया-इत्यादि तुंगिक उद्देशकनी पेठे जाणवू, यावत् | तेओ पर्युपासना करे के. त्यार पछी श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा अत्यन्त मोटी ते पर्षदने धर्मकथा कही. यावत् तेओ आज्ञाना आराधक थया. त्यार पछी ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेवी धर्मने सांभळी, अत्रधारी, हर्षित अने IP | संतुष्ट थया, अने प्रयलथी उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने बांदी अने नमीने आ प्रमाणे कगुं-'हे भगवन् ! ए प्रमाणे खरेखर | ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक अमने ए प्रमाणे कई वे, यावत् प्ररूपे छे के, हे आर्य ! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी कही छे, अने ते पछी समयाधिक यावद् उत्कृष्टस्थिति [ तेत्रीश सागरोपमनी कही छे ], अने पछी देवो अने देवलोक ब्यु. च्छिन्न थाय छे, तो हे नगवन् ! ते ए प्रमाणे केवीरीते होय? [उ०] 'हे आर्यो' ! एम कही श्रमण भगवंत महावीरेते श्रमणोपासकोने से For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie 109 आ प्रमाणे कर्म्यु-'हे जायों! ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक जे तमने आ प्रमाणे कहे के, यावत् प्ररूपे ले के, देवलोकोमा देवोनी जघन्य पाल्पा- स्थिति दस हजार वर्षनी छे, अने ते पछी समयाधिक करता-इत्यादि कहे यावत् त्यार पछी देवो अने देवलोको ब्युच्छिन्न थाय P११शक्के अति . ए वात साची के. हे आर्यो ! 9 पण एज प्रमाणे कहुं , यावत् प्रपुंछ के देवलोकमां देवोनी स्थिति जघन्य दस हजार वर्षनी उमेशन // 10 // छे-इत्यादि पूर्वोक्त कहे, यावर त्यार वाद देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छ, र अर्थ सत्य छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महारवीनी पासेथी ए वात सांभळी अने अवधारी श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमीज्यां ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे, आवीने ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकने चांदी तथा नमी ए अर्थने ( सत्य वातने न मानवारूप अपराधने ) मारी रीते द विनयपूर्वक वारंवार खमावे . त्यार बाद ते श्रमणोपासको तेने प्रश्नो पूछे छे, अने पूछी अर्थने ग्रहण करे के, ग्रहण करी श्रमण | भगवंत महावीरने चांदी नमी जे दिशाथकी आव्या हवा, पाछा तेज दिशा तरफ गया. // 434 / / भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह णमंसह 20 2 एवं क्यासी-पभू णं भंते ! इसिभइपुत्ते समाणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिय मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए?, गोयमा! णो तिणढे समहे, गोयमा! इसिभहपुत्ते समणोवासए बहहिं सीलब्वयगुणवयवेरमणपचक्खाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तबोकम्मेहिं अपाणंभावेमाणे बहुई वासाई समणोवासगपरियागं पाउहिति व०२ मासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेहिति मा०२ सढि भत्ताई अणसणाई छेदेहिति 2 आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किचा सोह-18 Mम्मे कप्पे अरुणामे विमाणे देवत्ताए उववजिहिति, तत्थ ण अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिती RAKAS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie 11 उदेशर 101 / / // 1.14 // SURES पपणत्ता, तत्थ णं इसिभइपुत्तस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिती भविस्संति।से णं भंते इसिभहपुत्ते देवे तातो देवलोगाओ आउक्खएणं भव० ठिहक्खएणं जाव कहिं उववजिहिति?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिझिहिति जाव अंतं काहेति / सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति भगवं गोषमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ (सूत्रं 435) / [प्र०] 'हे भगवन् ! ए प्रमाणे कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने बांदी अने नमस्कार करी आ प्रमाणे कधु-'हे | भगवन् ! श्रमणोपासक ऋषिमद्रपुत्र आप देवानुप्रियनी पासे दीक्षा लइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने लेवाने समर्थ छ / [[उ.] हे गौतम! आ अर्थ यथार्थ नथी; पण हे गौतम ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र घणा शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत प्रत्याख्यान | अने पौषधोपवासो वडे तथा यथायोग्य स्वीकारेल तपकर्म वडे आत्माने भावित करतो घणां वरसो सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पाळी, मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवी, साठ भक्तो निराहारपणे बीताबी आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधिने प्राप्त थह मरण समये काल करी सौधर्मकल्पमा अरुणाभम नामे विमानमा देवपणे उत्पन्न थशे. त्यां केटलाक देवोनी चार पल्योपमनी स्थिति कही छे; तेमां ऋषिभद्रपुत्र देवनी पण चार पल्योपमनी स्थिति हो [अ०] हे भगवन् पछी ते ऋषिभद्रपुत्र देव ते देवलोकथी आयुषनो क्षय थया पछी, भवनो क्षय थया पछी, अने स्थितिनो क्षय थया बाद यावत् क्या उत्पन्न यशे? [उ०] हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमा सिद्धिपद पामशे, यावत् सर्व दुःखोनो अन्त-नाश करशे. हे भगवन् / ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमब-एम कही भगवान् मौतम यावत् आत्माने भावित करता विहरे छे. // 435 // तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेझ्याओ पडिनिक्स्व For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पाण्या- उद्देश:१२ // 1011 // 1015 // मह पदिनिक्वमित्ता पहिया. जणवयविहारं विहरह / तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्था, वनओ, तत्थ णं संखवणे णाम चेहए होत्या, वन्नओ, तस्स णं संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वायए परिवसति रिउब्वेदजजुरवेदजावनएसुसुपरिनिहिए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उठं पाहाओ जाव आयावेमाणे विहरतिातएणं तस्स पोग्गलस्स छडूंछट्टेणं जाव आयावेमाणस्स पगतिभड्याए जहासिवस्स जाव विभंगे नामं अन्नाणे समुप्पन्ने, से गं तेणं विभंगेणं अनाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठितिं जाणति पासति / तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अपमेयारूवे अब्भस्थिए जाव समुप्पजिस्था-अस्थि णं मम अइसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, देवलोएमु णं देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाय [उकोसेणं] असंखेजसमयाहिया उकोसेणं दससागरोबमाई ठिती पन्नता, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, एवं संपेहेति एवं 2 आयावणभूमीओ पचोरुहह आ० 2 तिदंडकुंडिया जाब घाउरत्ताओ य गेण्डा गे०२.जेणेब आलभिया णगरी जेणेव परिब्वायगावसहे तेणेव उवागच्छह उव.२ भंडनिक्खेवं करेति | भं.२ आलभियाए नगरीए सिंघाडग जाव पहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खह जाब परूवेह-अस्थि ण देवाणुपिया! | ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुष्पन्ने, देवलोएसुणं देवाणं जहनेणं दसवाससहस्साई तहेव जाव वोच्छिना देवा य दवेलोगा य / तए णं आलभियाए नगरीए एएणं अभिलावेणं जहा सिवस्स तं चेव से कहमेयं मन्ने एवं ?, सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया, भगवं गोयमे तहेब भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसई निसामेह तहेव बहुजण FACHAR CCES+5+ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir क्षणं इस बाससहरण परं बोच्छिन्ना देवा या अने शंखवन नाम वैत्वा वर्णन. उद्देश 1.16 // // 1.16 // * का सई निसामेत्ता तहेव सव्वं भाणियब्वं जाव अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमि| देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं बस बाससहस्साह ठिती पण्णत्ता, तेण पर समयाहिया दुसमयाहिया जाव उको सेणं तेत्तीस सागरोदमाई ठित्ती पनत्ता,तेण परं बोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य।। ___त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीर अन्य कोइ दिवसे आलमिका नगरीथी अने शंखवन नामे चैत्ययी नीकळी बहारना देशोमां | विचरे के. [प्र०] ते काले-ते समये आलमिका नामे नगरी हती. वर्णन. त्यां शंखवन नामे चैत्य हतुं. वर्णन. ते शंखवन चैत्यनी थोडे दूर पुद्गल नामे परिव्राजक रहे तो हतो. ते ऋग्वेद, यजुर्वेद अने यावत् वीजा ब्राह्मण संबन्धी नयोमा कुशल हतो. ते निरंतर छद्र छनो तप करवापूर्वक उंचा हाथ राखीने यावत् आतापना लेतो हतो. त्यार पाद ते पुद्गल परिव्राजकने निरन्तर छ? छट्ठना तप करवापूर्वक यावद् आतापना लेता प्रकृतिनी सरलताथी शिव परिव्राजकनी पेठे यावद् विभंग नामे ज्ञान उत्पन्न थयुं, अने ते उत्पन्न थयेला विमंगज्ञानवडे ब्रह्मलोककल्पमा रहेला देवोनी स्थिति जाणे छे अने जुए छे. पछी ते पुदल परिव्राजकने आवा प्रकारनो आ | संकल्प यावद् उत्पन्न भयो-'मने अतिशयवाछं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छे, देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी छे, अने पछी एक समय अधिक, वे समय अधिक, यावद् असंख्य समय अधिक करता उत्कृष्टथी दस सागरोपमनी स्थिति कही छे. त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय -एम विचार करे छे, विचारीने आतापनाभूमियी नीचे उतरी त्रिदंड, इंडिका, यावद् भगवां वस्त्रोने ग्रहण करी ज्यां आलमिका नगरी छे, अने ज्यां तापसोना आश्रमो छेत्यां आवे छे, आवीने पोताना उपकरणो 4) मूकी आलमिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक, यावद् वीजा मागोमां एक बीजाने ए प्रमाणे कहे के, याव प्ररूपेत् छे–'हे देवानुप्रिय ! कर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie मने अतिशयवाछं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु के, अने देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी के-इत्यादि पू. व्याख्यावोक्त कहे, त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय छे.' त्यार वाद 'आलमिका नगरीमा'-ए अभिलापथी जेम शिव राजर्षि शासन हा उद्देशान // 1017 // 5 माटे पूर्वे कयु [श० 11 उ०९०८] तेम अहीं कहेवु, यावद् ए प्रमाणे केवी रीते होय? हवे महावीरस्वामी समवसर्या अने 151 दयावत् परिषद् वांदीने विसर्जित थइ. भगवान् गौतम तेज प्रमाणे भिक्षाचर्या माटे नीकळ्या अने तेओ घणा माणसोनो शब्द सांभळे छे-इत्यादि पधुं पूर्ववत् कहे, यावद् हे गौतम ! हुं पण ए प्रमाणे कहुं छु, बोल छु, यावत् प्ररूपे छु के देवलोकमां देवोनी जवन्य स्थिति दस हजार वर्षनी कही , अने त्यार पछी एक ससयाधिक, द्विसमयाधिक यावत् उत्कृष्टथी तेत्रीश सागरोपम स्थिति कही | छे, अने त्यार बाद देवो अने देवलोको ब्युच्छिन्न थाय छे. अस्थि णं भंते ! सोहम्मे कप्पे दबाई सवन्नाइंपि अबनाइपि तहेब जाब हंता अस्थि, एवं ईसाणेवि, एवं | जाव अच्चुए, एवं गेवेन्जविमाणेसु अरत्तणुविमाणेसुवि, ईसिपम्भाराएवि जाब हं ता अस्थि, तए ण सा महतिमहालिया जाव पडिगया, तए णं आलंभियाए नगरीए सिंघाडगतिय० अवसेस जहा सिवस्स जाव सव्वदुक. खप्पहीणे नवरं तिदंडकुंडियं जाव धाउरत्तवस्थपरिहिए परिवडियविम्भंगे आलंभियं नगरं मज्झनिग्गच्छति जाव उत्तरपुरच्छिम दिसीभार्ग अवक्कमति अ०१तिदंडकुंडियं च जहा खंदओ जाब पब्बइओ सेस जहा सिवस्स जाव अव्वाबाहं सोक्खं अणुभवंति सासयं सिद्धा / सेवं भंते ! 2 त्ति // (सूत्रं 436) // 11-12 // एक्कारसंमं सयं समतं // 11-12 // EARSte For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande AN व्याख्या प्रवतिः // 1.18 |११शतके | उद्देश:१२ 1018 // RECSAKAL [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्मकल्पमा वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो छे ?-इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! हा, छे. प्रमाणे यावद् ईशान देवलोकमां पण जाणवू. ते प्रमाणे यावद् अच्युतमा, ग्रैवेयकविमानमां, अनुत्तरविमानमां अने ईपत्यागभारा पृथिवीमा (सिद्धशिलामां ) पण वर्णसहित अने वर्णरहित द्रव्यो छे. त्यार बाद ते अत्यन्त मोटी परिषद् यावद् विसर्जित थई. पछी आलभिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक-विगेरे मार्गोमा घणा माणसोने एम कहे के इत्यादि शिव राजर्षिनी पेठे कडेवु, यावत् ते सर्व दुःखथी रहित थया. परन्तु विशेष ए के के, त्रिदंड, कुंडिका यावद् मेरुथी रंगेला वस्त्रने पहेरी विभंगज्ञान रहित थयेलो ते पुद्गल परिव्राजक आलभिका नगरीनी बच्चे थईने नीकळे छे. नीकळीने यावद् उत्तरपूर्व (ईशान ) दिशा तरफ जइ स्कंदकनी पेठे ते पुद्रल परिवाजक त्रिदंड, कुंडिका यावद् मूकी प्रव्रजित थाय छे. बाकी बधु शिवराजर्षिनी पेठे यावद् 'सिद्धो अन्यानाध अने शाश्वत सुखने अनुभवे जे त्यांसुधी जाणवं. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'-एम कही यावद् भगवान् गौतम विहरे छे. // 436 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना 11 मा शतकमां बारमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. // इति एकादश सयं समत्तं // + 4 + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शतक 12. ( उद्देशक 1 लो.) माख्या |१२शतके दा संखे 1 जयंति 2 पुढवि 3 पोग्गल 4 अइवाय 5 राहु 6 लोगे य 7 / नागे य 8 देव 9 आया 10 बारमम-18 उदेश सए दसुद्देसा // 1 // 1015 // [उद्देशक संग्रह-] 1 शंख, 2 जयंती, 3 पृथिवी, 4 पुद्गल, 5 अतिपात 6 राहु, 7 लोक, 8 नाग, 9 देव अने 10 आत्माFI विषयो संबन्धे दश उद्देशको बारमा शतकमां कहेवामां आवशे... तेणं कालेणं 2 मावस्थीनाम नगरी होत्था बन्नओ, कोहए चेइए वन्नओ, तत्थ णं मावधीप नगरीए / बहवे संखप्पामोक्वा समणोवामगा परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विह 12 रंति, तस्स णं संखम्म समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था सुकुमाल जाव सुरूवा समणोवासिया अ-18 भिगयजीवा 2 जाव विहरह, नत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्वलीनाम समणोवासए परिवसई अड्डे अभिगयजाब बिहरह, तेणं कालेणं 2 सामी समोमढे परिसा निग्गया जाब पज्जुवा०, तए णं ते समणोवासगा इमीसे जहा आलभियाए जाच पज्जुवासह, तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाण तीसे य महति० धम्मकहा जाव परिसा पडिगया, तए ण ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा | निसम्म हडतुह० समण भ० म०० नवन. पसिणाई पुच्छति प० अट्ठाई परियादियंति अ०२ उड्डाए उठेति For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir - - उ०२ समणस्स भ० महा. अंतियाओ कोडयाओ चेइयाओ पडिनि०प०२ जेणेव सावत्थी नगरी तेणेव पहा रेत्य गमणाए / (सूत्रं 137) // व्याख्या १२शतके प्रजाति ते काले, ते समये श्रावस्ती नामनी नगरी हती. वर्णन. कोष्टक नामे चैत्य हतुं. वर्णन. ते श्रावस्ती नगरीमा शंखप्रमुख घणा 18 उद्देशा // 1.20 // श्रमणोपासको रहेता हना,तेओ धनिक यावद् अपरि भूत-कोइथी पराभव न पामे तेवा अने जीवाजीव तत्चने जागनाराहता.ते शंख 1020 // 8 नामना श्रमणोपासकने उत्पला नामे स्त्री हती, ते सुकुमाल हाथपगवाळी, यावत् सुरूपा अने जीवाजीव तत्वने जाणनारी श्रमणोपासिका | यावद् विहरती हती. ते श्रावस्ती नगरीमा पुष्कली नामे श्रमणोपासक रहेतो हतो, ते धनिक अने जीवाजीव तच्चनो ज्ञाता हतो. ते है काले, ते समये त्यां महावीरस्वामी समवसर्या, परिषद् वांदवाने नीकळी, यावत् ते पर्युपासना करे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको 8 भगवंत आव्यानी आ बात सांभळी आलमिका नगरीना श्रावकोनी पेठे यावत् पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते अत्यंत मोटी सभाने धर्मकथा कही, यावत् सभा पाछी गई. पछी ते श्रमणोपासकोए श्रमण भगवंत म. हावीर पासेथी धर्म सांभळी, अवधारी हर्षित अने संतुष्ट थई श्रमण भगवंत महावीरने बांद्या अने नमन क'; वांदीने, नमीने प्रश्नो | पूछया, प्रश्नो पूछीने तेना अर्थो ग्रहण कर्या, अर्थी ग्रहण करी अने उभा थई श्रमण भगवंत महावीर पासेथी अने कोष्ठक नामे चैत्य५ थी नीकळीने तेओए श्रावस्ती नगरी तरफ जवानो विचार कर्यो. .. 437 / / तए णं से संखे ममणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी-तुझे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं शाखाहम साइमं उवक्खडावेह, नए णं अम्हे तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १२शसके उद्देशा 1021 // परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा पक्खिय पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो, तए णं ते समणोवासगा संखस्म समणोवासगस्स एयमट्ट विणएणं पडिमुणंति, तए णं तस्स संखस्स समणोवामगस्स अयमेयारूवे अन्भस्थिए व्याख्या प्रयतिः जाव समुप्पजिस्था-नो खलु मे सेयतं विउलं असणं जाव माइम आसाएमाणस्स 4 पक्खियं पोसह पडिजाग११०२१॥ रमाणस्स विहरित्तए, सेयं स्खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुकमणिसुवनस्स ववगयमालाव. नगविलेवणस्स निक्खित्तसत्यमुसलस्स एगस्स अविइयस्स दम्भसंथारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्म विहरित्तएत्तिकहु एवं संपेहेतिरजेणेव सावस्था नगरी जेणेव मए गिहे जेणेव उप्पला समणोवासिया तेणेव उवा० 2 उप्पलं समणोवासियं आपुच्छइ 2 जेणेव पोसहसाला तेणेच उबागच्छद पोसह सालं अणुपविसइ 2 पोसहसालं पमन्जइ पो०२ उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ उ०२ दन्भसंधारगं संथरति दन्भ.२ दम्भसंथारगं दुरूहह दु.२ पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाच पक्खियं पोसह पडिजागरमाणे विहरति, पछी ते शंख नामे श्रमणोपासके ए बधा श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कडं के हे देवानुप्रियो! तमे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयर करावो. पछी आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता, विशेष खाद लेता, परस्पर देता अने खाता पाक्षिक पोषधर्नु अनुपालन करता विहरीशु. त्यार पछी ने श्रमणोपासकोए शंख नामना श्रमणोपास क वचन विनयपूर्वक स्वीकार्य. त्यार बाद ते शंख नामे श्रमणोपासकने आवा प्रकारनो आ संकल्य यावद् उत्पन्न थयो-'अशन, है यावत् स्वादिम आहारनो आखाद लेता, विस्वाद लेता, परस्पर आपता अने खाता पाक्षिक पोषघने ग्रहण करीने रहेQमने श्रेयस्कर RAKASAASABASS SA- SANSAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir माख्याप्राप्तिः // 1.2 // १२वतके उद्देश // 1020 नथी, पण मारी पोषधशालामा ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि अने सुवर्णनो त्याग करी माला, उद्वर्तन अने विलेपनने छोडी शस्त्र अने मुसल विगेरेने मूकीने तथा डामना संथारा सहित मारे एकलाने-बीजानी सहाय शिवाय-पोषधनो स्वीकार करी विहर श्रेय छे.' एम विचार करी, श्रावस्ती नगरीमा ज्यां पोतार्नु घर , अने ज्यां उत्पला श्रमणोपासिका रहे छे, त्यां आवी उत्वला श्रमणोपासिकाने पूछी, ज्यां पौषधशाला छे त्यां जइ, पोषधशालामा प्रवेश करी, पोषधशालाने प्रमार्जी निहार अने पेशाब करवानी जग्याने प्रतिलेही-तपासीने डामनो संथारो पाथरी तेना उपर बेठो, बेसीने पोषधशालामा पोषधग्रहण करी ब्रह्मचर्यपूर्वक यावत् पाक्षिक पोषधर्नु पालन करे छे. ___ तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साई गिहाई तेणेव उवाग०२विपुलं असणं पाणं खाइम | साइम उवक्खडावेंति उ० 2 अन्नमन्ने सदाति अ० 2 एवं वधासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असणपाणखाइमसाइमे उबक्खडाबिए,संखे य गं समणोवासए नो हव्यमागकछह, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं संवं समणोवासगं सहावेत्तए / तए णं से पोक्वली ममणोबासए ते समणोवासए एवं बयासी-अच्छन्तु णं तुझे देवाणुप्पिया! सुनिवुया वीसत्या अहन्नं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्तिकटु तेसिं ममणोवासगाणं अंतियाओ पडिनिक्खमति प०२ सावत्थीए नगरीए मझमझेण जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे तेणेव उवाग०२ संखस्स समणोवासगस्म गिहं अणुपवि? / तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलि समणोवासयं एजमाणं पासह पा०२ हट्टतुट्ठ आसणाओ अ भुढेइ अ०२त्ता सत्तट्ट पपाइं अणुगच्छद 2 पोक्वलिं समणो. For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie 44G व्याख्या १२शसके उद्देशन // 1.23 // 11023 / वासगं वंदति नमंसति वं० न० आसणेणं उवनिमंतेइ आ० 2 एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं?,तए णं से पोक्खली समणोवासए उप्पलं समणोचासियं एवं वयासी-कहिन्नं देवाणुप्पिए / संखे समणोवासए १,लए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्स्वलं समणोवासयं एवं दयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी जाब विहरह। त्यार बाद ते श्रमणोपासकोए श्रावस्ती नगरीमा पोतपोताने घेर जइ, पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावी परस्पर एक वीजानेबोलावी आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो ! आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावेलो छे, पण ते शंख श्रमणोपासक जलदी आव्या नहि, माटे हे देवानुप्रियो ! आपणे शंख श्रमणोपासकने बोलावया श्रेयस्कर छे. त्यारवाद ते पुष्फली नामना श्रमणोपासके ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो! तमे शांतिपूर्वक विसामो ल्यो,अने हुं शंख श्रमणोपासकने बोलावूछु एम कही श्रमणोपासकोनी पासेथी नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्य भागमा ज्यां शंख श्रमणोपासकनु घर छे,त्यां जइ तेणे शंख श्रमणोपासकना घरमा प्रवेश कयों. पछी ते [ शंख श्रावकनी पत्नी ] उत्पला श्रमणोपासिका ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आवतो जोइ, हर्षित अन संतुष्ट थई पोताना आसनथी उठी सात आठ पगला तेनी सामेजइ पुष्कलि श्रमणोपासकने वांदी अने नमी आसनवडे उपनिमंत्रण कर्या बाद आ प्रमाणे बोली-'हे देनानुप्रिय! कहो, के तमारा आगमननु झुं प्रयोजन छे? त्यारे ते पुष्कलि श्रमणोपासिकाने आ प्रमणे का'-'हे देवानुप्रिये शंख श्रमगोपासक क्यां छे? त्यार बाद ते उत्पला श्रमणोपासिकाए ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रिय! खरेखर शंख शंखा श्रमणोदासक पोषधशालामां पोषध ग्रहण करी ब्रह्मचारी थइने यावद् विहरे छे.' SARAN For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie १२शतके देश // 1.24 // * 102 CHARCH तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला जेणेव संखे समणोबासए तेणेव उवागकछह 2 गमणागमणाए पडिकमा ग०२ संखं समणोवासगं बंदति नमसति वं.न०एवं क्यासी-एवं बलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असणजाब साइमे उवक्खडाविए तं गच्छामो ण देवाणुप्पिया! तं विउलं असणे जाव साइमं आसाएमाणा जाब पडिजागरमाणा विहरामो, तए णं से सखे ममणोवासए पोक्खलिं समणोबासगं एवं बयासी-णो खलु कप्पह देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं पाणं खाइम साइम आसाएमाणस्स जाव पडिजागरमाणस्स विहरितए, कप्पह मे पोसहमालाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए, तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुम्भे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा जाब बिहरह / त्यार बाद ते पुष्कलि श्रमणोपासके ज्यां पोषधशाला छे, अने ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आबी, गमनागमनने (जता आवतां कोइ जीवनी हिंसा करी होय तेने) प्रतिक्रमी शंख श्रमणोपासकने चांदी अने नमीने तेने आ प्रमाणे को-'हे देवानुप्रियाए प्रमाणे खरेखर अमे घणो अशन, यावत्-स्वादिम आहार तैयार कराव्यो छे, तो हे देवानुप्रिय ! आपणे जइए, अने पुष्कळअशन, यावत्स्वादिम आहारनो आस्वाद लेतायावत-पोषधनु पालन करता विहरीए.त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके ते पुष्कलि श्रपणोपासकने आ प्रमाणे कडं-'हे देवानुप्रिय ! पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् पोषधनु पालन करी विहरखुमने योग्य नथी, मने तो पोषधशालामा पोषधयुक्त थइने यावत् -विहरवु योग्य छे. माटे हे देवानुप्रिय ! तमे इच्छा प्रमाणे घणा अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावद् विहरो.' 45 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir व्याख्या १शतके उशार 1.25 // // 1025 // तएणं से पोक्खली समणोवासगे संखस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ रत्ता सावस्थि नगरिं मझमज्झेणं जेणेव ते समणोवासगा तेणेव उवागच्छद 2 ते समणोवामए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए जाब विहरइ, त छदेण देवाणुप्पिया तुझे बिउले असणपाणखाइमसाइमे जाब विहरह, संखे णं समणोवासए नो हव्वमागच्छद / तए ण ते ममणोवासगा ते विउले असणपाणम्वाइममाइमे आसाएमाणा जाब विहरंति / तए णं तस्स संखस्स समणोचासगस्म पुब्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजिस्था-सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते समण भगवं महावीरं वंदित्ता नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तएत्तिकहु एवं संपेहेति एवं 2 कल्लं जाव जलते पोसहसालाओ पडिनिक्वमति प० 2 सुद्धप्पबेसाई मंगल्लाई वस्थाई पवर परिहिए सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमति सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता पादविहारचारेणं सावत्थि नगरि मज्झमजमेण जाब पज्जुवासति, अभिगमो नस्थि। त्यारवाद ते पुष्कलि श्रमणोपासक शंख श्रमणोपासकनी पासेयी पोषधशालामांथी बहार नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमा ज्या ते श्रमणोपासको के त्या आव्यो, अने त्या आवी ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर शंख श्रमणोपासक पोषधशालामा पोषध ग्रहण करीने यावद् विहरे छे. [ तेणे कयु के-] 'हे देवानुप्रियो ! तमे इच्छा मुजब घणा अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् विहरो, शंख श्रमणोपासक तो शीघ्र नहि आवे.' त्यारवाद ते For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १२शतके उद्देशन 1025 // | श्रमणोपासको ते विपुल अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने आस्वादता यावद्-विहरे छे. त्यारबाद मध्य रात्रिना समये बाख्या ट्र धर्म जागरण करता ते शंख श्रमणोपासकने आवाप्रकारनो आ विचार यावत् उत्पन्न थयो-'आवती काले यावत् सूर्य उगवाना समय प्रवतिः श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी यावत् पर्युपासना करी त्यांची पाछा आवीने पाक्षिक पोषध पारवो श्रेयस्कर छ,-एम विचार // 1.16 // करे छे, एम विचारी आवती काले यावत सूर्योदय समये पोषधशालाथी पहार नीकळी शुद्ध, बहार जवा योग्य तथा मंगलरूप वस्त्रो उत्तम रीते पहेरी पोताना घरथी बहार नीकळी पगे चाली श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमां थइने जाय छे, यावत् पर्युपासना करे छ, अहिं [पोषधयुक्त होवाथी] तेने अभिगमो नथी. ताण ते समणोवासगा कल्लं पादु० जाव जलते पहाया कयबलिकम्मा जाब सरीरा सएहिं सरहिं गेहे हितो पडिनियमति माहि२ एगयओ मिलायति एगयओ२ सेसं जहा पढम जाव पज्जुवासंति / तए ण समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे या धम्मकहा जाव आणाप आराहए भवति / तए ण ते ममणोवासगा ममणस्म भगवओ महावीरस्म अतियं धम्म सोचा निमम्म हट्टतुट्टा उट्ठाए उट्टेति उ०२ समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति ०२त्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति 2 संखं समणोवासयं एवं वयासी-तुम देवाणुप्पिया: हिज्जा अम्हेहिं अप्पणा चेव एवं वयासी-तुम्हे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं जाव विहरिस्सामो, तए णं तुम पोसहसालाए जाव विहरिए, तं सुटु णं तुम देवाणुप्पिया! अम्हं हीलसि, अजोत्ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी-माणं! अजो तुझे संख समणोवामगं होलह निंदह खिंसह WHABCN RASACA For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir है गरहह अवमन्नह, संखे णं समणोवासए पियधम्मे चेव दधम्मे व सुदक्खुजागरियं जागरिए (सू० 438) // त्यार बाद [पूर्वे कहेला] ते श्रमणोपासको आवती काले यावत् सूर्योदय समये स्नान करी, बलिफर्म करी यावत् शरीरने अलं- १वके व्याख्याप्रति 18] कृत करी पोत पोताना घरथी नीकळी एक स्थळे मेगा थाय छे, एक स्थळे भेगा थइने-इत्यादि बधु प्रथम निर्गमवत् जाणवु यावद | 81 उद्देशान Rel (भगवंत महावीरनी पासे जइ) तेमनी पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते समानेर धर्मकथा कही, यावत् 'ते आज्ञाना आराधक थाय छे' त्यां सुधी जाणवु त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी, हृष्ट अने तुष्ट थया, अने उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आव्या; आवीने शंख श्रमणोपासकने तेओए एम कयु के-'हे देवानुप्रिय! तमे गइ काले अमने एम कडं हतुं के, 'हे देवानुप्रियो। तमे पुष्कळ अशनादि आहारने तैयार करावो, यावद्-आपणे विहरीशुं, त्यार बाद तमे पोषधशालामां यावद् विहर्या, तो हे देवानुप्रिय! | तमे अमारी ठीक हीलना (हांसी) करी.' पछी 'हे आर्यो।' एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे का-'हे आर्यों!' तमे शंख श्रमणोपासकनी हीलना, निंदा, खिंसना, गहां अने अवमानना न करो, कारण के ते शंख श्रमणोपासक धर्मने विषे प्रीतिवाळो अने दृढतावाळो के, तथा तेणे [ प्रमाद अने निद्राना त्यागथी] सुदृष्टि-झानीनुं जागरण करेल . 438 // मंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भ. महा. व. न. 2 एवं क्यासी-कहबिहा गंमते ! जागरिया पण्णत्ता', | गोयमा तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा-बुद्धजागरिया अबुद्धजागरिया सुदक्खुजागरिया, से केण एवं बु. तिषिहा जागरिया पण्णसा, तंजहा-बुद्धजा.१ अबुद्धजा०२ सुदक्खु. 31, गोयमा ! जे इमे अरिहंता -CCIM + %EX For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir पाल्पा- प्राप्ति भगवंता उप्पन्ननाणदंसणधरा जहा खंदए जाव सबन्नू सव्वदरिसी एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति, जे इमे अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिण जाव गुत्तभचारी एए गं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति, जे १२शतके इमे समणोषासगा अभिगयजीवाजीवा जाव विहरन्ति एते णं सुदक्खुजागरियं जागरिंति, से तेंणद्वेणं गोयमा! उद्देशार |एवं बुचा तिविहा जागरिया जाव सुदक्खुजागरिया (सूत्रं 469) // 1028 प्रि०] 'भगवन् !ए प्रमाणे कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने बांदे छे, नमे के, बांदी अने नमी तेणे आ प्रमाणे को-'हे भगवन् ! जागरिका केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम! जागरिका त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-१ बुद्धजागरिका, 2 अबुद्धजागरिका अने 3 सुदर्शनजागरिका. [40] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जागरिका व्रण प्रकारनी छे, ते आ प्रमाणे-बुद्धजामरिका, अबुद्धजागरिका अने सुदर्शनजागरिका' 1 [उ.] हे गौतम ! जे उत्पन्न थयेला ज्ञान अने दर्शनना धारण करनारा आ अरिहंत भगवंतो डे-इत्यादि स्कंदकना अधिकारमा कह्या प्रमाणे सर्वज्ञ अने सर्वदर्षी हे-ए युद्धो (केवलज्ञानवडे) बुद्धजागरिका जागे के. जे आ भगवंत अनगारो ईयर्यासमितियुक्त, भाषासमितियुक्त अने यावत् गुप्त ब्रह्मचारी छे, तेओ (केवलज्ञानी नहि होवाथी) अबुद्ध के अने तेओ अबुद्धजागरिका जागे छे. तथा जे आ श्रमणोपासको जीवाजीवने जाण-12 नारा छे, यावत् तेओ (सम्यग्दर्शनी होवाथी) सुदर्शनजामरिका जागे छे. माटे ते हेतुथी हे गौतम! ए प्रमाणे काहे के जाग-१ रिका त्रण प्रकारनी छे, यावत् सुदर्शनजागरिका के. // 439 // तए णं से संखे समणोवासए समण भ० महावीरं वदह नम०२ एवं बयासी-कोहवसट्टे णं भंते! जीवे | For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १२शतके किंबंधइ किं पकरेति किं चिणाति किं उचिणाति ?, संखा! कोहवसद्दे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगमस्या- डीओ सिदिलबंधणबद्धाओ एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्म जाच अणुपरियहह / माणवसट्टे णं भंते! प्रयास जीवे एवं चेव, एवं मायावसद्देवि, एवं लोभवसद्देवि जाव अणुपरियहइ / तए ण ते समणोवासगा समणस्स भग P1029 // // 1029 // ओ महावीरस्स अतियं एयमढे सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउम्विग्गा ममणं भगवं महावीरं वं. नमं० 2 जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवा०२ संखं समणोवासगं 0 न० २त्ता पयमढें संमं विणएणं भुजो रखामेति ।नए णं ते समणोबासगा सेस जहा आलभियाए जाव पडिगया, भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं लामहावीरं वंदह नमंसह 2 एवं वयासी-पभू णं भंते ! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतियं सेसं जहा इसि भरपुत्तस्स जाव अंतं काहेति / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाब विहर (सूत्रं 440) // 12-1 // / [प्र०] त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी आ प्रमाणे कधु-हे भगवन् ! 'क्रोधने वश होवाथी हैपीडित थयेलो जीव शंगांचे, शंकरे, शेनो चय करे अने शेनो उपचय करे ? [उ. हे शंख क्रोधने व यवायी पीडित थयेलो जीव आयुष सिवायनी सात कर्मप्रकृतिओ शिथिल बन्धनथी बांधेली होय तो कठिन बन्धनवाळी करे-इत्यादि सर्व प्रथम शतकमां कोला संवररहित अनगारनी पेठे जाणवू, यावत् ते [संबररहित साधु ] संसारमा ममे छे. [प्र०] हे भगवन् ! मानने वश थवाथी | पीडित थयेलो जीव बांधे-त्यादि प्रश्न. [उ.] पूर्वे कसा प्रमाणे जाणवू, अने एव प्रमाणे मायाने वश यवायी पीडित श्येला अने लोभने पशवायी पीडित भयेला जीव संबन्धे पण जाणतु यावत् ते संसारमा ममे .त्यार माद ने श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीर पासेथी ए. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शत प्रमाणे चात सांभळी, अबधारी भय पाम्या, त्रास पाम्या, बसित यया अने संसारना भयथी उद्विग्न थया. तथा तेओ श्रमण भगवंत महावीरने | बांदी, नमी ज्यां शंख श्रमणोपासक के त्यां जा शंख श्रमणोपासकने वांदी, नमी ए (अविनयरूप) अर्थने सारी रीते विनयपूर्वक भास्पा- | वारंवार खमावे छे. त्यार बाद ते श्रमणोपासको यावत् पाछा गया. तेनो बाकी रहेलो वृत्तांत आलमिकाना श्रमणोपासकोनी पेठे प्रजाति:181 जाणवो. [प्र.] 'भगवान् ! एम कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे कमु-हे भगवन् ! ते शंख // 1.3001 श्रमणोपासक आप देवानुप्रियनी पासे प्रव्रज्या लेवाने समर्थ छ ? [उ०] बाकी वर्षा ऋषिभद्रपुत्रनी पेठे जाणवु. यावत्-ते सर्व दुःखोनो अन्त करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छ, एम कही विहरे छे. / / 440 // ___ भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 12 मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशार 1030 // SANSKELKA उद्देशक 2. तेणं कालेणं 2 कोसंयी नाम नगरी होत्था चन्नओ,चंदोवतरणे चेहए वन्नओ, तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते सयाणीयस्स रनो पुत्ते चेडगस्स रन्नो नत्तुए मिगावतीप देवीए अत्तए जयंतीए समणोवा| सियाए भत्तिजइ उदायणे नामं राया होत्या वन्नओ, तत्थ ण कोसंबीए नयरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा सया णीयस्स रनो भज्जा चेडगस्स रन्नो धूपा उदायणस्स रन्नो माया जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नाम देवी होस्था वन्नओ सुकुमालजावसुरूवा समणोवासिया जाब विहरह, तस्य जे कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande रनो धूया सयाणीयस्स रन्नो भगिणी उदायणस्स रन्नो पिउच्छा मिगावतीए देवीए नणंदा वेसालीसावयाणं अरभाल्या- ताणं पुम्वसिज्जायरी जयंती नाम समणोवासिया होत्था सुकुमाल जाव सुरूवा अभिगय जाब वि० (सूत्रं ४४१)मा १२शतके प्रशतिः aai उद्देशार | ते काले, ते समये कौशांबी नामे नगरी हती. वर्णन. चन्द्रावतरण चैत्य हतुं. वर्णन. ते कौशांबी नगरीमां सहस्त्रानीक राजानो|8 11031 // 1031 // | पौत्र, शतानीक राजानो पुत्र, चेटक राजानी पुत्रीनो पुत्र, मृगावती देवीनो पुत्र, अने जयंती श्रमणोपासिकानो भत्रीजो उदायन नामे राजा हतो. वर्णन. ते कौशांची नगरीमां सहस्रानीक राजाना पुत्रनी पत्नी, शतानीक राजानी पत्नी, चेटक राजानी पुत्री, उदायन | राजानी माता अने जयंती श्रमणोपासिकानी भोजाइ मृगावती नामे देवी हती. सुकुमाल हाथपगवाळी-इत्यादि वर्णन जाणवू, यावत् & सुरूपवाळी अने श्रमणोपासिका हती. वळी ते कौशांबी नगरीमा जयंती नामे श्रमणोपासिका हती, जे सहस्रानीक राजानी पुत्री, शतानीक राजानी भगिनी, उदायन राजानी कोइ, मृगावती देवीनी नणंद अने श्रमण भगवंत महावीरना साधुओनी प्रथम शय्यातर | (वसति आपनार ) हती. ते सुकमाल, यावत् सुरूपा अने जीवाजीवने जाणनारी यावद् विहरती हती.॥ 441 // तेणं कालणं तेणं समएणसामी समोसढे जाव परिसा पज्जुबासह। तए णं से उदायणे राया इमीसे कहाए लखेट्ट समाणे हद्वेतुढे कोडंपिययपुरिसे सहावेह को०२ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! कोसंविं नगरि सम्भि| तरवाहिरियं एवं जहा कूणिओ तहेव सम्वं जाव पज्जुवासए। तए णंसा जयंती ममणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हहतुहा जेणेव मियावती देवी तेणेव उवा०२ मियावती देवीं एवं बयासी-एवं जहानवमसए उसभदत्तो जाव भविस्सह / तए णं मा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव पडिसुणेति / तए णं S RSS EURS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रति 13 CREEN १२वतके उद्देशार १.३सा सा मियावती देवी कोडुचियपुरिसे सहावेइ को०२ एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुकरणजुत्तजोइयजाव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठबह जाव उवट्ठति जाव पचप्पिणंति तए ण सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं व्हाया कयवलिकम्मा जाप मरीरा बहहिं खुजाहिं जाव अंतेउराओ निग्गच्छति अ०२ जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उ०१ जाव रूढा / तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी नियगपरियालगा जहा उसभदत्तो जाव धम्मियाओ जाणप्पवराओ पचोकहह / तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं बहूहिँ खुजाहिं जहा देवागंदा जाव बं० नम० उदायणं रायं पुरओ कहु उितिया चेव जाव पज्जुवासइ / तए ण ममणे भगवं महा० उदा. यणस्स रन्नो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहा. जाव धम्म० परिसा पडिगया उदा यणे पडिगए मियावती देवीवि पडिगया (सूत्रं 442) / PI ते काले, ते समये महावीर स्वामी समवसर्या, यावत् पर्षद पर्युपासना करे छे. त्यार बाद ते उदायन राजा आ (श्रमण भगा। | वंत महावीर पधायांनी) वात सांभळी हृष्ट तुष्ट थयो, अने तेणे कौटुंचिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्रज &ाकौशांबी नगरीने बहार अने अंदर साफ करावो'-इत्यादि बधुं कूणिक राजानी पेठे कहेवू', यावत्-ते पर्युपासना करे छे, त्यार वाद। (श्रमण भगवंत महावीर पधार्यानी) आ वात सांभळी ते जयंती श्रमणोपासिका हृष्ट अने तुष्ट थइ, अने ज्या मृगावती देवी छे त्यां आवी तेणे मृगावती देवीने आ प्रमाणे का-ए प्रमाणे नवम शतकमां ऋषभदचना प्रकरणमां कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् [ श्रमण जामा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या- सप्रति // 1033 // १२शसके उद्देशार % भगवंत महावीरनुं दर्शन आपणा कल्याण माटे] थशे. त्यार बाद जैम देवानंदाए ऋषभदत्तना वचननो स्वीकार कर्यो तेम मगावती | देवीए ते जयंती श्रमणोपासिकाना वचननो स्वीकार कयों, स्यार पछी ते मृगावती देवीए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कधु-हे देवानुप्रियो ! वेगवाळु, जोतरसहित यावत् धार्मिक श्रेष्ट यान जोडीने जलदी हाजर करो,' यावत् ते कौटुबिक पुरुषो यावत् | हाजर करे छ, अने तेनी आज्ञा पाछी आपेले. त्यार बाद ते मृमावती देवी ते जयंती श्रमणोपासिकानी साथे स्वान करी, बलिकर्म-16 पूजा करी, यावत्-शरीरने शणगारी घणी कुन्ज दासीओ साथे यावत् अंतःपुरथी बहार नीकळे छ, नीकळी ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे, अने ज्यां धार्मिक श्रेष्ठ वाहन तैयार उभं छे. त्यां आवी यावत् ते वाहन उपर चढी. त्यार बाद जयंती श्रमणोपासिकानी साथे धार्मिक श्रेष्ठ यान पर चडेली ते मृगावती देवी पोताना परिवारयुक्त ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे यावत्-ते धार्मिक श्रेष्ठ वाहनधी नीचे उतरे छे. पछी जयंती श्रमणोपासिकानी साथे ते मगावती देवी धणी कुब्ज दासीओना परिवार सहित देवानंदानी पेठे यावद् बांदी, नमी उदायन राजाने आगळ करी त्यांज रहीनेज यावद् पयुपासना करे ने. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन गजाने, मृगावती देवीने, जयंती श्रमणोपासिकाने अने ते अत्यन्त मोटी परिषदने यावद् धर्मोपदेश कर्यो, यावद परिषद् पाछी गइ, उदायन राजा अने मृगावती देवी पण पाछा गया. / / 442 // नए ण सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंलियं धम्मं सोचा निसम्म हतुहा इसमर्ण भ. महावीरं वन.२ एवं वयासी-कहिन भंते ! जीवा गरुयत्तं हब्वमागच्छन्ति, जयंती! पाणाइवारण जाव मिच्छादसणमल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हवं. एवं जहा परमसए जाब वीयीवयंति / भवसिद्धियत्तण भते। ARNESS CA For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति // 1034 // जीवाणं किं सभावओ परिणामओ, जयंती! सभावओ, नो परिणामओ। सब्वेऽविणं भंते! भवसिद्धिया जीवा |सिज्झिस्संति?, हंता! जयंती! सब्वेविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति / जइ भंते! सव्वे भवसिद्धिया जीवा१शतके सिज्झिस्संति तम्हा णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सह, णी तिगट्ठ समढे, से केणं खाइएणं अटेणं भंते ! एवं बुच्चइसब्वेविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति नो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ!, जयंती! र० से जहानामए सब्वागाससेढी सिया अणादीया अणवदेग्गा परित्ता परिवुडा सा णं परमाणुपोग्गलमत्तेहिं खंडेहिं समये 2 अवहीरमाणीर अणताहि ओसप्पिणीअवमप्पिणीहि अवहीरंति नो चेव णं अबहिया सिया, से तेणटेणं जयंती! एवं बुञ्चह सव्वेविणं भवसि द्धिया जीवा सिज्झिस्संति नो चेवणं भवसिद्धि अविरहिए लोए भविस्सइ॥ त्यार बाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी दृष्ट अने तुष्ट थइ, श्रमण भगबंत महावीरने चांदी, नमी आ प्रमाणे बोली के-[प्र०] हे भगवन् ! जीवो शाथी गुरुत्व-भारेपणु पामे ? [उ.] हे जयंती ! जीवो प्राणातिपातथी-जीवहिंसाथी यवद् मिथ्यादर्शनशल्यथी, ए प्रमाणे खरेखर जीवो भारेकर्मीषणुं प्राप्त करे . ए प्रमाणे जेम प्रथम शतकमां कयु छ तेम जाणवु, यावत् तेओ मोक्षे जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोनुं भवसिद्धिकपणु खभावथी छे के परिणामथी छे ? [उ०] हे जयंती ! भवसिद्धिक जीवो स्वभावथी छे, पण परिणामथी नथी. [प्र०) हे भगवन् ! सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे ? [उ०] हे जयंती ! हा, सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे. [प्र०] हे भगवन् ! जो सर्वे भवसिद्धिको सिद्ध थशे तो आ लोक भवसिद्धिक जीवो रहित थशे ? [उ.] ते अर्थ यथार्थ नथी, अर्थात् बधा भवसिद्धिको सिद्ध थाय तोपण भवसिद्धिक विनानो लोक *%%AKKARNAGAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir दा व्याख्याअप्रप्तिः / 11035 // उद्देशान // 1035 // | नहिं थाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे तमे शा हेतुथी कहो छो के 'बधाय पण भवसिद्धिको सिद्ध थशे, अने लोक भवसिद्धिक जीवोथी रहित नहीं थाय' 1 [उ.] हे जयंती जेमके सर्वांकाशनी श्रेणी होय, ते अनादि, अनंत, बन्ने बाजुए परिमित अने बीजी | | श्रेणीओथी परिघृत होय, तेमांथी समये समये एक परमाणु पुद्गलमात्रखंडो काढतां काढतां अनन्त उत्सर्पिणी अने अनन्त अवस. पिणी सुधी काढीए तोपण ते श्रेणि खाली थाय नहीं; ते प्रमाणे हे जयंती! हेतुथी एम कहेवाय छे के, बधाय भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे, तो पण लोक भवसिद्धिक जीवो विनानो थशे नहि. सुत्तत्तं भंते ! साह जागरियत्त साह, जयंती ! अत्येगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साह अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साह, से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ अत्धेगइयाणं जाव साह , जयंतीजे इमे जीवा अहम्मिथा अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्मपलज्जमाणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहूर्ण पाणभूयजीवसत्ताणं दुक्खणयाए जोयणयाए जाव परियावणयाए बदति, एएणं जीवासुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं बातदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एएसि जीवाणं सुत्तत्तं साहू, जयंती। जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति गएसिण जीवाणं जागरियत्त साह, एपण जीवा जागरा समाणा वहणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणियाए वहति, ते णं जीवा जागरमाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एए ण जीवा जागरमाणा 36+SHESARice For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie व्याख्याप्राप्ति // 10 // 6 // १शतके उशार 1031 Santoshi धम्मजागरियाण अप्पाणं जागरइसारो भवति, एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू, से तेणद्वेण जयंती ! एवं वुचह अस्धेगव्याणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अल्धेगइयाणं जीवाणं जागस्यित्तं साहू // [प्र.] हे भगवन् ! सुतेलापणु सारं के जागरितत्त्व-जागेलापणु सारूं ? [उ०] हे जयंती केटलाक जीवोनुं सूनेलापणु सारूं, अने केटलाक जीवोर्नु जागेलापणु सारं. [प्र०] हे भवगन् ! शा हेतुथी तमे एम कहो छो के 'केटलाक जीवोर्नु खतेलापणु सारूं| अने केटलाक जीवोनुं जागेलापणु साम! [उ.] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक, अधर्मने अनुसरनारा जेने अधर्म प्रिय के एवा, अधर्म कहेनारा, अधर्मने ज जोनारा, अधर्ममा आसक्त, अधर्माचरण करनारा अने अधर्मथीज आजीविकाने करता विहरे छे, ए| जीवोन सतेलापणु सारुं छे. जो ए जीवो सूतेला होय तो बहु प्राणोना, भूतोना, जीवोना तथा सचोना दुःख माटे, शोक माटे, यावत्-परिताप माटे थता नथी, वळी जो ए जीवो सूतेला होय तो पोताने, बीजाने के चनेने यणी अधार्मिक संयोजना बडे जोडनारा होता नथी, माटे ए जीवोन सूतेलापणु सारुं छे. तथा हे जयंती !जे आ जीवो धार्मिक अने धर्मानुसारी के, यावत्-धर्मवडे आजी विका करता विहरे छे, ए जीवोनुं जागेलापणु सारं छे जो ए जीवो जागता होय तो ते घणा प्राणीओना यावत्-सत्चोना अदुःख (सुख ) माटे यावत्-अपरिताप (शान्ति ) माटे बर्ते छे, वळी ते जीवो जागता होय तो पोताने, परने अने बनेने घणी धार्मिक | संयोजना (क्रिया ) साथे जोडनारा थाय थे, तथा ए जीवो जागता होय तो धर्मजागरिकाबढे पोताने जागृत राखे हे, माटे ए जीवोनुं जागेलापणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती! एम कईबाय ले के, केटलाक जीवोनु तेलापणु सारं अने केटलाक जीवाचें | जागेलापणु सारुं छे. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir बलियत्तं भंते! साहू दुबलियत्तं साह ?, जयंती! अत्यगइयाणं जीवाणं यलियस साहू अत्यंगइयाणं जीवाणं दुबलियत्तं साहू, से केणटेणं भंते ! एवं बुचह जाच माहू!, जयंती!जे इमे जीवा अहम्मिया जाब विहरंति एएसि १२श्तके प्रतिः जाणंजीवाणं दुबलि यत्तं साहू, एए णं जीवा एवं जहा सुत्तस्स तहा दुबलियस्स बत्तब्वया भाणियब्बा, बलियस्स हा उद्देशार 37 // जहा जागरस्स तहा भाणियब्वं जाव संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं घलियत्त साहु, से तेणटेणं जयंती! 1037 // एवं बुच्चहतं चेव जाब साहू। [प्र०] हे भगवन् ! सबलपणु सारं के दुर्बलपणु सारं ? [उ०] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं सबलपणु सारुं अने केटलाक | जीवोनु दुर्बलपणु सालं. [प्र.] हे भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, 'केटलाक जीवोनुं सबलपणु सारुं अने केटलाक | जीवोर्नु दुर्बलपशु सारं' ! [उ०) हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक छे, अने यावत् अधर्मवडे आजीविका करता विहरे के, ए | जीवोन दुर्बल पणु सारूं, जो ए जीवो दुबला होय तो कोइ जीवना दुःख माटे थता नथी-इत्यादि 'सतेला'नी पेटे दुर्बलपणानी वक्तव्यता कहेवी, अने 'जागता'नी पेठे सवलपणानी वक्तव्यता कडेवी; यावत्-धार्मिक क्रिया-संयोजनावडे जोडनारा थाय छे, माटे ए जीवोनू बलवानपणु सारं छे, ते हेतुथी हे जयंती ! एम कहेवाय छ के-इत्यादि केटलाक जीवोनुं बलवानपणु अने केटलाक जीवोनुं दुलपणु सारु छे. दक्खत्तं भंते ! साहू आलसियत्तं साह , जयंती ! अत्यंगतियाण जीवाणं वक्वत्तं साह अत्यंगतियाणं|| जीवाणं आलसियतं साह, से केणद्वेणं भंते / एवं बुच्चइ तं चेव जाप साहू, जयंती! जे हमे जीवा महम्मिया CAN-SCRECR-54-5555 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie जाब विहरंति एएसिणं जीवाणं अलसियत्तं साह, एए णं जीवा अलसा समाणा नो बहूणं जहा सुत्ता तहा अलसा व्याख्या भाणियब्बा, जहा जागरा तहा दक्खा भाणियव्वा जाव संजोएत्तारो भवंति, एएणं जीवा दक्खा समाणा बहुर्हि १श्ववके प्रवति आयरियवेयावचेहिं जाव उवजझाय- थेर० तबस्सि: गिलाणवेया. सेहवे. कुलवेया. गणवेया० संघवेयाव. | उद्देवार // 1.38 // साहम्मियवेयावच्चेहिं अत्ताणं संजोएत्तारो भवंति, एएसिणं जीवाणं दक्वत्तं साहू, से तेण?णं तं चेव जाव साहू / / 18 // 10 // सोइंदियवसद्दे णं भंते ! जीवे किं बंधह, एवं जहा कोहवस तहेब जाव अणुपरियह एवं चक्खिदियवसद्देवि, एवं जाव फासिदियवसद्दे जाव अणुपरियगृहातए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुहा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पवाया जाव सब्वदुबप्पहीणा / सेवं भंते!. ४२त्ति // (सूत्र 443) / / 12-2 // [प्र०] हे भगवन् ! दक्षपणु-उद्यमीपणु सारं के आलसुपणु सारं १[उ.] हे जयंती ! केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारं अने केटलाक जीवोनुं आलसुपणु सारं. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो-इत्यादि तेज प्रमाणे कडेवु . [उ.] हे जयंती! जे आजीबो अधार्मिक (अधर्मानुसारी) यावद् विहरे छे, ए जीवोन आळसुपणु सारुके. ए जीवो जो आळसु होय तो घणा जीवोना दुःख माटे धता नथी-इत्यादि बधु 'सतेला'नी पेठे कहेवु, तथा 'जागेला'नी पेठे दक्ष-उद्यमी जाणवा, यावत्-[ धार्मिक प्रवृत्तिओ साथे] जोडनारा थाय से, बळी ए जीवो दश्व होय तो आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष (नव दीक्षित) कुल, | गण, संघ, अने साधर्मिकना घणा वैधावच-सेवा-साये आत्माने जोडनारा थाय थे. तेथीए जीवोर्नु दक्षपणु सार्क के. माटे हे जयंती! ASHRA For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie है|१२शत व्याख्याबप्रति // 1039 // मी उद्देश ते हेतुथी एम कहुं छु-इत्यादि तेज प्रमाणे कहे, यावत् केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारुं छे. [प्र०] हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियने वश थवाथी पीडित धयेलो जीव शुं बांधे ? [उ०] हे जयंती ! जेम क्रोधने वश थयेला जीव संबन्धे कंधु तेम अहीं पण जाणवं, यावत् | ते संसारमा भमे के. ए प्रमाणे चक्षुइन्द्रियने वश थयेला अने यावत् स्पर्शेन्यिवश थयेला जीव संबन्धे पण जाणवू, यावत् ते संसारमा भमे छे. त्यारबाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीर पासेवी ए बात सांभळी, हृदयमा अवधारी, हर्षवाळी अने संतुष्ट थई-इत्यादि (चाकी) बधु देवानंदानी पेठे जाणवू, यावत् तेणे प्रवज्या ग्रहण करी अने सर्व दुःखथी मुक्त थई. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् / ते ए प्रमाणे के. // 443 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणी श्रीमत्त भगवतीमूत्रना 12 मा शतकमा वीजा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. // 1039 // FACHAR उद्देशक 3. रायगिहे जाव एवं वयासी-कह णं भंते ! पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहापढमा दोचा जाव सत्तमा / पढमा णं भंते ! पुढवी किंनामा किंगोता पण्णत्ता!, गोयमा! घम्मा नामेणं रयणप्पभा गोत्तणं एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरहयउद्देसओ सोचेव निरवसेसो भाणियब्बो जाव अप्पाबहुगंति। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति // (सूत्रं 444) // [प्र. राजगृह नगरमा ( भगवान् गौतमे) यावद् आ प्रमाण पूछ्यु-हे भगवन् ! केटली पृथिवीओ कही है ? [उ.] हे For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir बास्या 4 गौतम ! सात पृथिवीओ कही है, ते आ प्रमाणे-प्रथमा, द्वितीया यावत्-सप्तमी. [म.] हे भगवन् ! प्रथम पृथिवी कया नामवाळी // 8 अने कया गोत्रवाळी कही छे / [उ०] हे गौतम ! प्रथम पृथिवी नाम 'धम्मा छे अने गोत्र रत्नप्रभा २-ए प्रमाणे 'जीवाभिगम' ६१वतके सूत्रमा प्रथम नैरयिक उद्देशक कयो छे ते बधो यावद्-अल्पबहुत्व सूधी अहिं कद्देवो. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे, हे भगवन् ! ते उद्देशा ॥२०१०॥ाए प्रमाणे हे.॥४४४ // 8 // 1040 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत भीमद् भगवतीस्त्रना 12 मा शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 8. रायगिहे जाव एवं वयासी-दोभंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहनंति एगयओ साहण्णित्ता किं भवति?, गोयमा! दुप्पएसिए खंधे भवइ, से भिजमाणे दुहा कन्जर एगयओ परमाणुपोग्गले पगयओ परमाणुपोग्गले भवइ / तिन्नि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति 2 किं भवति', गोयमा! तिपएसिए खंधे भवति, से | भिजमाणे दुहावि तिहावि कजइ, दुहा कत्रमाणे एगपओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ, तिहार कब्जमाणे तिणि परमाणुपोग्गला भवंति / चत्तारि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नंति जाव पुच्छा, गोयमा ! चउपएसिए खंधे भवइ, से भिन्नमाणे दुहावि तिहावि चउहावि कजर, दुहा कब्रमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ, अहवा दो दुपएसिया खंधा भवति, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, चउहा कजमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला भवंति / SEARCREASEACHECKROO For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandie १२शव व्याख्याप्रज्ञप्तिः उदेश // 10415 1042 // [प्र.] राजगृह नगरमां यावद्-आ प्रमाणे पूछयु-हे भगवन् ! वे परमाणुओ एकरूपे एकठा थाय, अने एकरूपे एकठा थइने पछी तेनु शुं थाय ! [उ०] दे गौतन! तेनो द्विप्रदेशिक स्कंध थाय, अने जो तेनो मेद थाय तो तेना वे विभाग थाय-एक तरफ |एक परमाणुपुद्गल रहे, अने वीजी तरफ एक (चीजो) परमाणुपुद्गल रहे. [प्र.] हे भगवन् ! त्रण परमाणुपुद्गलो एकरूपे एकठा थाय ! अने एकठा थईने तेनु शु थाय ? [उ०] हे गौतम! तेनो त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेनो भेद-वियोग थाय तो तेना वे के त्रण विभाग थाय, जो वे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, अने बीजी तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध रहे. तथा जो तेना त्रण विभाग थाय तो त्रण परमाणुपुद्गल रहे. [म०] हे भगवन् ! चार परमाणुपुद्गलो एकरूपे एकठा थाय ?-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! चतुष्पदेशिक स्कंध थाय, अने जो ते स्कंधनो भेद थाय तो तेना , त्रण अने चार भाग थाय. जो वे भाग थाय तो एक * तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध रहे. अथवा वे द्विप्रदेशिक स्कंध रहे. जो त्रण भाग थाय तो एक तरफ बे छुटा परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध रहे. जो चार भाग थाय तो जूदा चार परमाणुपुद्गल रहे. 21 पंच भंते! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! पंचपएसिए खंधे भवह,से मिजमाणे दुहावि तिहावि चउहावि *पंचहावि कजइ, दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ दुपए. सिए स्वंधे भवति एगयो तिपासिए खंधे भवइ, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगपओ तिप्पए| सिए खंधे भवति अहवा एगपओ परमाणुपोग्गले एगयओ दो दुपएसिया बंधा भवंति, चउहा कन्जमाणे एगपओ तिनि परमाणुपोग्गला एगयओ दुप्पएसिप खंधे भवति, पंचहा कन्जमाणे पंच परमाणुपोग्गला भवंति / उन्भते! द For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः 1-644 1.42 परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! छप्पएसिए खंधे भवइ, से भिजमाणे दुहावि तिहावि जाव छविहावि कजइ, दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ पंचपएसिप खंधे भवद अहवा एगयओ दुप्पणसिए बंधे एग-7 यो चउपएसिए खंधे भवइ अहवा दो तिपएसिया खंधा भवइ, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला १२शतके गगयओ चउपगसिप खंधे भवइ अहवा एगवओ परमाणुपोग्गले एगयओदुपएलिए खंधे एगयओ तिपएसिए खंधे| PRA उद्देश भवइ अहवा तिन्नि दुपएसिया खंधा भवन्ति चउहा कजमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ तिपएसिए खंघे भवइ अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला भवंति एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा भवंति, पंचहा कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएसिए खंधे भवति, छहा कजमाणे छ परमाणुपोग्गला भवंति / [प्र.] हे भगवन् ! पांच परमाणुओ एकरूपे एकठा थाय ? [अने पछी शुं थाय ?] इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पंचप्रदेशिक स्कंध थाय. जो ते मेदाय तो तेना बे, वण, चार अने पांच विभाग थाय. जो तेनावे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणु पुद्गल अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय.जो तेना त्रण विभाग थाय तो एक तरफ वे परमाणुगलो अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ जुदा जुदा चे द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना चार विभाग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय, जो तेना पांच विभाग थाय तो जुदा पांच परमाणुओ थाय [म०] हे भगवन् ! छ परमाणुपुद्गलो संवन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पदनदेशिक स्कंध थाय. जो तेनो भेद थाय तो तेना बे, त्रण, चार पांच के छ विभाग थाय. जो तेना के For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः 1043 // SN SHRESTHA भाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कंध थाय, अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध है। अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय, अथवा बे त्रिप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना त्रण भाग थाय तो एक तरफ जुदा १२शतके जुदा बे परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक द्विग्र-18 उद्देशः४ देशिक स्कंध अने त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा ऋण द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना चार भाग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण 5 // 1043 // परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ वे परमाणुयुद्गलो अने एक तरफ द्विप्रदेशिक वे स्कंधो थाय, जो तेना पांच भाग थाय तो एक तरफ चार परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना छ भाग थाय तो जुदा जुदा छ परमाणुपुद्गगलो थाय, सत्त भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! सत्तपासिए खधे भवइ, से भिन्जमाणे दुहावि जाव सत्तहावि कजइ, दुहा कलमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ छप्पपसिए बंधे भवइ अहवा एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ एगयओ पंचपसिए खंधे भवइ अहवाएगयओ तिप्पएसिए एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ, तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ चउपएसिए खंधे भवइ अहवाएगयओ परमाणु पगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति एगयओ तिपएसिए खंधे भवति, चउहा कज़माणे पगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ चड़प्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएसिए SISTER- HESAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir EI वंधे एगयओ तिपएसिए खंधे भवह अहवा एगग्रओ परमाणु० एगयओ तिन्नि दुपएसिया खंधा भवंति, पंचहा। कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयो तिपएसिए खधे भवह अहवा एगपओ तिनि परमाणु / व्याख्या प्रज्ञप्तिः एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कज्जमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएसिए खधे उमर .10 // भवइ, सत्तहा कज्जमाणे सत्त परमाणुपोग्गला भवंति। IRo0 [म.] हे भगवन् ! सात परमाणुपुद्गलो संबन्धे प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! सप्तप्रदेशिक स्कंध थाय. जो तेना विभाग थाय तो | सावे, अण, यावत् सात विमाग थाय के. जो ने विभाग थाप तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ छप्रदेशिक स्कंध | थाय. अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय, अथवा एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. जो देना त्रण भाग थाय तो एक तरफ के परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक अने चतुष्प्रदेभिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ के त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. जो 4 तेना चार भाग थाय तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ वे पर. माणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक रकंधो थाय. जो तेना पांच विभाग थाय तो जुदा चार परमणुपुद्गलो, अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ चे द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. जो तेना छ भाग थाय तो एक तरफ जुदा पांच For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ली परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय. तथा जो तेना सात भाग थाय तो जुदा जुदा सात परमाणुपुद्गलो थाय. व्याख्यात अट्ट भंते ! परमाणुपोग्गला पुच्छा, गोयमा! अट्ठपएसिए बंधे भवह जाव दुहा कजमाणे एगयओ परमाणु १२शतके एगयओ सत्तपएसिए बंधे भवइ अहवा एगयओदुपपसिए खंधे एगपओ उप्पएसिए ग्बंधे भवइ अहवा एमयओ|8उदेश 11.45 // |तिपासिए एगयओ पंचपएसिए खंधे भवद अहवा दो चउप्पएसिया खंधा भवंति, तिहा कबमाणे पगयओदो // 1045// परमाणु एगयओ छप्पएसिए वंधे भवइ अहया गयओ परमाणु० एगयओ दुप्पएसिए खंधे पगयओपंचपएसिए खंधे भवई अहवा एगपपओ रमाणु एगयओ तिपएसिए बंधे एगयओ चउपएसिए खधे भवह अहवा एगयओ18| | दो दुपएसिया खंधा एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवद अहवा एगयी दुपएसिए खंधे एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति, चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ पंचपएसिए बंधे भवति अहवा पगयओ दोन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहबा एगयओ दो परमाणु एगयओदोतिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० एगय ओ दो दुपएसिया खंधा एगयओ तिपएसिप खंधे भवति अहया चत्तारि दुपएसिया खंधा भवंति, पंचहा कजमाणे एगपओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ चउप्पएमिए बंधे भवति अहवाएगयओ तिन्नि परमाणु एगयओ दुपएसिए पगयओतिपएसिए खंधे भवति अहवा एगयो दो परमाणु० एगयओ तिमि दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कजमाणे एगयओ पंच परमाणु० एगयओ तिपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु एगयओ दो दुपएसिया खंधा भवइ, सत्तहा कब्जमाणे SXEKAR For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिा 1.46 // CA5 एगयओछ परमाणुरोग्गला पगयओ दुपएसिए खंधे भवइ अदुहा कन्जमाणे अट्ठ परमाणुपोग्गला भवंति // [प्र०] हे भगवन् ! आठ परमाणुपुरलो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! आठ प्रदेशनो एक स्कंध थाय. (जो तेना विभाग थाय तो दे, त्रण, चार, पांच, छ, सात के आठ विभाग थाय.) यावत् तेना ने विभाग आया तो एक तरफ एक परमाणुपुरल अने १२शतके उदेशात एक तरफ सात प्रदेशनो एक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ के प्रदेशोनो एक स्कंध अने एक तरफ छ प्रदेशनो एक स्कंध थाय * 1046 // ने. अथवा एक तरफ त्रण प्रदेशनो एक स्कंध अने एक तरफ पांच प्रदेशनो एक स्कंध थाय ने. अथवा चार चार प्रदेशना वे स्कंध | थाय छे. जो तेना त्रण विभाग थाय तो एक तरफ जुदा के परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ छ प्रदेशनो एक कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचादेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक 4aa परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक कंध अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ ये द्विप्रदेशिक स्कयो / अने एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रादेशिक स्कंध अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. जो तेना चार विभग थाय तो एक तरफ जुदा त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ पांच प्रदेशनो एक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ जुदा व परमाणु पुगलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक चार प्रदेशनो स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ के परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ ये त्रिप्रदेशिक स्कंधो क्षय छे अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ बे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक त्रिप्र. देशिक एक स्कंध थाय छे अथवा चार द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय छे. तेना पांच विभाग थाय तो एक तरफ जुदा चार परमाणुपुइलो, अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक Kastotram For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun yarmandie व्याख्याप्राप्ति // 1047 // * त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो धाय छे. जो तेना छ विभाग थाय तो एक तरफ जुदा पांच परमाणुपगलो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुपुद्रलो १शतके अने एक तरफ ने द्विप्रदेशिक स्कंधो थाय. छे. जो तेना सात विभाग थाय तो तो एक तरफ जुदा छ परमाणुपुद्रलो अने एक | 131 उद्देशा | तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध थाय छे. जो तेना आठ विभाग थाय तो जुदाजुदा आठ परमाणुपुगलो थाय छे. 1047 // गोयमा! जाव नवविहा कजंति. दुहा कत्रमाणे एगयओ परमाणु० एगयओ अट्ठपएसिए खंधे भवति, एवं एकेक संचारेंतेहिं जाब अहवा एगयओ चउप्पएसिए खंधे एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति, तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला पगयओ सत्तपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ परमाणु एगगओ दुपएमिण एगयओ छप्पणसिए खंध भवह अहवा एगयओ परमाणु पगयओ तिपणसिए खंधे एगयओ पंचपएमिए खंधे भवह अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दो चउप्पएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दुपएमिए खंधे गगयओ तिपएसिए खंधे एगयओ चउपएमिए खंधे भवद अहवा तिन्नि तिपएमिग खंधा भवंति, चउहा कन्जमाणे एगयओ तिम्नि परमाणु० एगयओ छप्पएमिए खंधे भवइ अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ दुपएसिए खंधे एगयो पंचपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ तिपएसिए खधे एगयओ घउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दो दुपएमिया खंधा एगयओ चउप्पएसिए संघ भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ वो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया * * * For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie खंधा एगयओ तिपएसिए खंधे भवति, पंचहा कजमाणे एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ पंचपएसिए खंधे | भवह अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु. पगयओ दुपएसिए. एगयओ चउप्पएसिप खंधे भवह अहवा एगयओ व्याख्या तिनि परमाणु एगयओ दो तिपएसिया बंधा भवंति अहवाएगयओ दो परमाणुपोग्गला एगयओ दो दुपएसिया | प्रज्ञप्तिः Fउवा खंधा एगयओ तिपासिए खंध भवइ अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ चत्तारि दुपएसिया खंधा भवति, छहा | // 1048 // // 1048 कजमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला एगयओ चउप्पएसिए खधे भवह अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एग-६ यओ दुप्पएसिए एगयओ निप्पएमिए खंधे भवति अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु एगयो तिनि दुप्पएसिया खंधा भवंति, सत्तहा कन्जमाणे एगयओ छ परमाणु, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ पंच परमाणु पगयओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, अट्टहा कजमाणे एगयओ सत्त परमाणु० एगयओ दुपएसिए खधे भवति, नवहा कन्जमाणे नव परमाणुपोग्गला भवति // | [40] हे भगवन् ! नव परमाणुयुगलो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! नवप्रदेशनो एक स्कंध थाय छ; अने जो तेना विभाग * | करवामां आवे तो (चे, त्रण, चार, पांच, छ, सात, आठ के) यावत् नव विभाग थाय छे. तेना जो वे विभाग थाय तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक अष्टप्रदेशिक स्कंध थाय छे. ए प्रमाणे एक एकनो संचार करवो; यावत्-अथवा एक तरफ एक चार प्रदेशनो स्कंध अने एक तरफ पांचप्रदेशनो स्कंध थाय छे. जो तेना त्रण भाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुकागलो, अने एक तरफ एक सप्तप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध, अने एक For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie १शतके PARXKI+ | तरफ छप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध, अने एक तरफ पंचादेशिक स्कंध थायर व्याख्या Pछे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ वे चतुष्पदेशिक स्कंधो थाय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध, II प्रवतिः | एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ चतुष्प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा त्रण त्रिप्रदेशिक म्कंधो थाय रे. नेना चार भाग 4 1049 // | थाय तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ छप्रदेशनो एक स्कंधथाय . अथवा एक तरफ वे परमाणुपद्लो एक तरफ 1049 | एक द्विप्रदेशिक अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्रलो, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चारप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु पृगल, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो, अने एक तरफ चतु. प्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्रल, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ ये त्रिप्रदेशिक स्कंधो ★याय छे. अथवा एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध थाय छे. पांच भाग थाय तो एक तरफ जुदा चार परमाणुओ अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कंध धाय छेअथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चतुष्पदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक त्रण परमाणुगलो अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कंधो थाय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्रलो, एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कंधो अने एक त्रिप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अथवा एक तरफ मा एक परमाणुपुरल अने एक तरफ चार द्विप्रदेशिक स्कंधो धाय छे. जो तेना छ भाग करवामां आवे तो एक तरफ पांच परमाणप गलो अने एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुपुद्गलो, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कंधो होय छे. जो तेना सात For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir १२शतके भाग करवामां आवे तो एक तरफ छ परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ पांच परमाव्याख्या कापुद्गलो अने एक तरफ के द्विप्रदेशिक स्कंधो होय छे. आठ भाग करवामां आवे तो एक तरफ सात परमाणुओ अने एक तरफ प्राप्तिः द्विप्रदेशिक एक स्कंध, होय छे जो तेना नव भग करवामां आवे तो जुदा नव परमाणुभो होय छे. उरेशान // 1-5011 बस भंले परमाणुपोग्गला! जाव दहा कजमाणे गगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ नवपएसिए खंधे भव ||105at अहवा एगयओ दुपए सिए खंधे एगयो अदु पएसिप खंधे भवह एवं एकेक संचारेयव्वंति जाव अहवा दो पंच पएमिया खंधा भवंति, तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणु गयओ अट्टपएमिए बंध भवा अहवा एगपओ परमाणु पगयओ दुपएमिए. एगयओ सत्तपएसिप खंध भवड अहवा एगयओ परमाणु• एगयओ तिपामिए खधे भवा एगयओ छप्पएसिए बंधे भवद अहवा एगयओ परमाणु. एगयओ चउप्पएसिए एगयओ पंचपएसिए खंधे भवति अहया एगयओ दुपएसिए स्वधे गगयओ दो चउपासिया बंधा भवंति अहवा एगपओ दो तिपासिया खंधा एगयओ चउप्पएमिए खंधे भवड, चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणु एगयओ सत्तपरमिए खंधे भवद अहवा एगयओ दो परमाणु० एगयओ दुपसि० गगयओ छप्पएसिए बंधे भवद अहवा एगयओदो परमाणु० गयओ तिप्पएमिए बंधे पगगओ पंचपएसिए खघे भवति अहवा एगयओदो परमाणु एगयओ | दो चउप्पएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० गय ओ दुपएसिए एगयओ तिपएसिए एगयओ चउपासिए खंधे भवति अहवा एगयो परमाणु पगयओ तिन्नि तिपसिया बंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie व्याख्या प्रक्षतिः १२शतके // 15 // ASE SHARE दुपएसिया खंधा एगयओ चउपएसिप खधे भवति अहवा गगयओ दो दुपएसिया बंधा एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति, पंचहा कत्रमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला एगयओ छपएसिए खंधे भवइ अहवा एगयओ | तिन्नि परमाणु० गगयओदुपएसिए बंधे एगयओ पंचपएसिए खंधे भवद अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु० एगयओ 181 उदेशा तिपएसिए स्वंधे एगयओ चउपएसिए खंघे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ दुपएसिए खधे. एग- 1.51 / पओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु- एगयओ तिन्नि दुपएसियाः एगयओ तिपएमिए खधे भवति अहया पंच दुपएसिया खंधा भवंति, छहा कज्जमाणे एगपओ पंच परमाणु० एगयओ पंचपएसिए वंधे भवति अहवा एगगओ चत्तारि परमाणु एगयओ दुपएमिए एगयओ चउपएसिए खधे भवति अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु एगयओ दो तिपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ तिन्नि परमाणु गगयओ दो दुपएसिया खधा० एगयओ तिपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगपओ चत्तारि दुपएमिया खंधा भवंति, मत्तहा कन्जमाणे एगयओ छ परमाणु एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ पंच परमाणु एगयओ दुपएसिए एगयओ तिपएसिए खधे भवति अहवा एगयओ चत्तारि परमाणु० एगयओ तिन्नि दुपएसिया खंधा भवंति, अट्टहा कन्जमाणे एगयओ सत्त परमाणु० एगयो तिपएसिए वंधे भवति अहवा एगयओ छ परमाणु० एगयओ वो दुपएसिया खंधा भवंति, नवहा कज्जमाणे एगयओ अट्ट परमाणु० एगयओ दुपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ छ परमाणु० एगपओ दो दुपएसिया खंधा भवंति, वसहा कज्जमाणे 3%845 For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |वस परमाणुपोग्गला भवति / [प्र०] हे भगवान ! दस परमाणुजो संबन्धे प्रश्न. [30] (नेनो एक दसप्रदेशिक स्कंध थाय छे. अने जो तेना विभाग कर-13 भावामां आवे तो बेत्रण, चार, पांच. छ. सात, आठ, नव अने दश विभाग थाय छे.) यावत् वे भाग करवामां आवे तो एकतरफामा अवाप्तिः ॥१.५शा एक परमाणु अने एक तरफ नव प्रदेशनो एक स्कंध याय छे. अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ अष्टप्रदेशिक एक IPTION Xo स्कंध होय छे. पप्रमाणे एक पकनो संचार करतो यावत-अथवा वे पंचप्रदेशिक किंधो थाय छे. ओ तेना प्रण विभाग करवामां 18 आवे तो एक तरफ बे परमाणुपुद्गलो अन एक तरफ एक आठ प्रदेशनो स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कंध, अने एक तरफ सप्तप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपद्रल, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक छ प्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ एक चतुष्पदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ पंचप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे चतुष्प्रदेशिक स्कंधो होय छे. अथवा एक तरफ बे त्रिप्रदेशिक स्कंधो अने एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय छे. तेना चार विभाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ | सप्तप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्रलो, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कट अने एक तरफ छप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कंध अने एक पंचप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ बे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ वे चतुष्पदेशिक स्कन्धो होय छ. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक % + का For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या नवतिः // 1053 // + CAME + ( 4E स्कंध, एक तरफ त्रिप्रदेशिक स्कंध, अने एक चतुष्पदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ त्रण त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ पक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय . ४१२शतके उद्देशा अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ ऋण त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ चे द्विप्रदेशिक स्कन्धो| अने एक तरफ चे त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय . तेना पांच विभाग करवामां आवे तो एक तरफ चार परमाणुपुद्गल अने एक तरफ एक छप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुगलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुओ, एक तरफ बेद्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ बे परमाणुपुद्गलो, एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ परमाणुपुद्गल, एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा पांच द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. तेना छ विभाग करवामां आवे तो एक तरफ जूदा पांच परमाणुओ अने एक तरफ एक पंचप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ चारपरमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध तथा एक तरफ एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा | काएक तरफ चार परमाणुपुद्गलो, अने एक तरफ वे त्रिप्रदेशिक स्कन्धो होय के. अथवा एक तरफ त्रण परमाणुपुद्गलो, एक तरफ बे| द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ के परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ चार द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय वे. तेमा सात विभाग करवामां आवे तो एक तरफ छ परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक चतुःप्रदेशिक स्कन्ध होय छे, For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie माख्या-1 १२शतके प्राप्ति // 1.54 // उदेश 105 // अथवा एक तरफ पांच परमाणुओ अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध तथा एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ चार परमाणुओ, अने एक तरफ त्रण द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय . तेना आठ विभाग करवामां आवे तो एक तरफ सात (जूदा) परमाणुओ अने एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ छ परमाणुओ, अने एक तरफ वे द्विप्रदेशिक स्कन्धो होय . तेना नव विभाग करवामां आवे तो एक तरफ आठ परमाणु अने एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध होय . अने जो | तेना दश विभाग करवामां आवे तो जुदा दश परमाणुओ थाय छे. संखेजा भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति गयओ साहणित्ता किं भवति ?, गोयमा! संखेजपएसिए खंधे भवनि, से भिजमाणे दुहावि जाव दसहावि संखेज्जहावि कजंति, दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओ संखेजपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ संखेजपएसिए खंधे भवति एवं अहवा एगयओ तिपएसिए एगयओ सं० खंधे भवति एवं जाव अहवा एगयओ दमपएसिए खंधे एगयओ सखेजपएसिए खंधे भवति अहवा दो संखेजपएसिया खंधा भवंति. तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणु० एगयओ संखेजपएसिएखंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए खंधे एगयओ संखेजपएसिए खंधे भवति जहवा एगयओ परमाणु० एगयओ तिपएसिए खधे० एगयओ संखेजपएसिए खंधे भवइ एवं जाव अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दसपएसिए खधे० एगयओ संखेजपएसिए खंधे भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दुपएसिए० एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति एवं NAGARCANCH For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir का वास्या SHAREL जाब अहवा एगयओ दसपएसिए. एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा तिन्नि संखेनपएसिया खंधा है। भवंति, चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणु एगयओ संखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ दो परमाणु ४१शतके उदेशात एगयओ दुपएमिएएगयओ संखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ दो परमाणु एगयओ तिप्पएसिया एगयओ पया संखेजपपसिए भवति एवं आव अहवा एगयओ दोपरमाणु० एगयो दसपएसिए एगयओ संखेजपएसिए भवति अहवा एगयओ दो परमाणु. एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति जाब अहवा एगयओ परमाणु पगयओ दमपएसिए एगयओ दो संखेजपएसिया खंधा भवंति अहवा पुगयओ परमाणु एगयओ तिन्नि संखेजपसिया खंधा भवंति अहवा एगयओ दुपएमिए एगयओ तिन्नि संखेजपएसिया भवति जाव अहवा एगयओ दसपएसिए गगयओ तिन्नि संखेजपएसिया भवंति अहवा चत्तारि संखेजपासियाभवंति एवं पएणं कमेणं पंचगसंजोगोवि भाणियव्यो जाच | नवगसंजोगो, दसहा कत्रमाणे एगयो नव परमाणु० एगयओ संखेजपपसिए भवति अहवा एगयओ अट्ट पर-14 माणु० एगयओ दुपएसिए एगयओ संखेजपणसिग खंधे भवति, एएणं कमेणं एकेको पू० जाव अहवा एगयओ दसपएसिए गगयओ नब संखेजपएसिया भवंति अहवा दस मखेजपएसिया खंधा भवंति संखेनहा कन्जमाणे संखेजा परमाणुपोग्गला भवंति / [प्र.] हे भगवन् ! संख्याता परमाणुओ एक साथे मळे अने एक साथे मळीने तेनु शु थाय ? [30] हे गौतम ! तेनो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie + व्याख्यासंख्याता प्रदेशनो स्कन्ध थाय. जो तेनो मेद विभाग थाय तो तेना बे, यावत् दस के संख्याता विभाग थाय. जो तेना चे भाम| PI १श्चत प्रजाप्तिा करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणुपुद्गल अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध थाय के अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिका उदेवा // 1.56 // &aa स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कंध थाय 3. अथवा एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्या-Ch०५६॥ तप्रदेशिक स्कन्ध याय छे. ए प्रमाणे यावद् एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ संख्यातादेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा वे संख्यानप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. तेना प्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुओ अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक | स्कन्ध होय के, अथवा एक तरफ एक परमाणपुगल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपद्रल, एक तरफ एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे यावत्-अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ दश प्रदशिक स्कन्ध अने एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे यावत् -अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने में संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय . अथवा त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय के. तेना चार भाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुषुगलो, अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ बे परमाणुओ, एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, नगर + र For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie उदेश 1057 // अने एक संख्यातादेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे याबद्-अथवा एक तरफ वे परमाणुओ, एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने १२शतके एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ वे परमाणुओ अने एक तरफ वे संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणुगल, एक द्विप्रादेशिक स्कन्ध अने व संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छ. ए प्रमाणे यावद् अथवा 41050 / एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने वे संख्यातादेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक परमाणुपुद्गल अने त्रण संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने त्रण संख्यातादेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे यावद्-अथवा एक तरफ एक दश प्रदेशिक स्कन्ध अन एक तरफ त्रण मंख्यानप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा चार संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे ए क्रमथी पंचसंयोग पण कडेलो; यावत् नव संयोग मुधी कहे. तेना दश विभाग करवामां आवे तो एक तरफ नत्र परमाणुपुद्रलो, एक तरफ एक संख्यातादेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ आठ परमाणु पुगलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कंध अने एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ आठ परमाणुपद्गलो, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक म्कन्ध अने एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए क्रमवढे एक एकनी संख्या वधारवी, यावत् -अथवा एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ नव संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय जे, अथवा दश संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय . जो तेना संख्यात भागो करवामां आवे तो संख्याता परमाणुपुद्रलो, थाय छे. 4aa असंखेज्जा भंते ! परमाणुपोग्गला पगयओ साहणंति एगयओ साहषिणता किं भवति, गोयमा! असं खेजपएमिण खंधे भवति, से भिन्जमाणे दुहावि जाव दसहावि संखेजहावि असंखेजहावि कज्जा, दुहा कब्रमाणे For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रबप्तिा // 1.58 // स्वतके | उपकार 5 // 15 ACAMANCHESTER एगयओ परमाणु० एगयओ असंखेजपएसिए भवति जाव अहवा एगयओ दसपएसिए एगयओ असंखिजपएसिए भवति अहवा एगयओ संखेजपएसिए बंधे एगयओ असंखेजपएसिए बंधे भवति अहवा दो भसंखेजपएसिया खंधा भवंति, तिहा कन्जमाणे एगपओ दो परमाणु० एगयओ अमखेज्वपएसिए भवति अहवा एगयओ परमाणु० एगयओ दुपएसिए एगयओ असंखेजपएसिप भवति जाब अहवा पगयओ परमाणु० एगयओ दसपएसिए एगयओ असंखेजपएसिए भवति अहवा एगे परमाणु एगे संखेजपणसिए एगे असंखेनपासिए भवति अहवा एगे परमाणु यएगओ दो असंखेन्जपएसिया खंधा भवंति अहवा एगे दुपएसिए एगयओ दो असंखेजपएसिया भवंति एवं जाव अहवा एगे संखेजपएमिए भवति एगयओ दो असंखेजपएसिया बंधा भवंति अहवा तिनि असंखिजपएसिया भवंति, चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणु. पग. असंखेजपएसिए भवति एवं चउक्कगसंजोगो जाव दमगसंजोगो एए जहेव मंखेजपएसियस्स नवरं असंखेजग एग अहिगं भाणियन्वं जाच अहवा दस अमंखेजपएसिया बंधा भवंति, संखेजहा कज़माणे एगयओ संखेज्जा परमाणुपोग्गला एगयओ असंखेजपएसिए बंधे भवति अहवा एगयओ संखेना दुपएसिया बंधा एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति एवं जाव अहवा गगयओ संखेना दसपासिया खंधा एगयओ असंखेजपएमिए खंधे भवति अहवा एगयओ संखिज्जा मंखिजपसिया बंधा एगयओ असंखिजपएएसि खंघे भवति अहवा संखेना असंखेजपएसिया खंधा भवंति, असंखिज्जहा कजमाणे असंखेजा परमाणुपोग्गला भवंति / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बाया // 1.59 // RECENSUS [प्र०] हे भगवन् ! असंख्याता परमाणुपुनलो एकठा मळे, अने पछी तेनुं शुं थाय ? [उ.] हे मौमत ! तेनो असंख्यातप्रदेशिक ||१२शतके स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग करीए तो वे, यावत् दस, संख्याता के असंख्याता विभाग थाय. जो वे विभाग करवामां आवे तो उद्देश एक तरफ एक परमाणुपुगल अने एक तरफ असंख्यातादेशिक स्कंध होय . यावद्-अथवा एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक 1055 // तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध | होम छे. अथवा चे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय . जो तेना त्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ | असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावद्-अथवा एक तरफ परमाणुपुद्गल, एक तरफ दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ ए परमाणु, अने एक तरफ बे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ चे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. ए प्रमाणे यावद्--अथवा एक तरफ संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो होय के. अथवा त्रण असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्धो होय . जो तेना चार। भाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, यावद् दशकसंयोग जाणवो. अने ए सर्वे संख्यातप्रदेशिकनी पेठे जाणवू, परन्तु एक 'असंख्यात' शब्द अधिक कहेवो. यावद्-अथवा दश असंख्यातादेशिक स्कन्धो होय छे. जो संख्याता विभाग करवामां आवे तो एक तरफ संख्याता परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ असंख्यातप्रदेशात्मक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ असंख्यात For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir व्याख्या प्राप्तिा // 1.60 // प्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ए प्रमाणे यावद्-अथवा एक तरफ संख्याता दशप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक असंख्यप्रदेशात्मक स्कन्ध होय .181 अथवा संख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धी होय छे. जो तेना असंख्य विभाग करवामां आवे तो असंख्य परमाणुपुद्गलो थाय छे. | उवा 41060 // अणता गं भंते ! परमाणुपोग्गला जाब किं भवंति ?, गोयमा ! अणंतपएसिए बंधे भवति, से भिजमाणे दुहावि तिहावि जाव दसहावि संस्विवहा असंखिजहा अर्णतहावि कजइ, दुहा कलमाणे एगयओ परमाणुपो. ग्गले एगयओ अणंतपएसिए खंधे जाव अहवा दो अणंतपएमिया खंधा भवंति, तिहा कन्जमाणे एगयको दो परमाणु० एगयओ अणंतपएसिए भवति अहबा एग. परमाणु० एग. दुपएसिए एग• अणंतपएमिए भवति जाव अहवा एग. परमाणु० एग. असंखेजपएमिए एग. अणंतपएसिए भवति अहवा पग परमाणु• एग. दो अणतपएसिया भवंति अहवा एग. दुपएसिए एग दो अणतपएसिया भवंति एवं जाब अहवा गगयओ दसएपसिए एगयओ दो अर्णनपएसिया खंधा भवंति अहवा एग• संखेजपदे गयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति अहवा एग. असंखेजपएसिए खंधे एगयओदो अणंतपएसिया बंधा भवंति अहवा तिनि अगंतपएमिया खंधा भवति, चउहा कन्जमाणे एग. तिन्नि परमाणु एगयओ अणंतपपसिए भवति एवं चउक्कसंजोगो जाव असंखेजगसंजोगो, गते सब्वे जहेब असंखेज्जाणं भणिया तहेव अर्णताणवि भाणियब्वा नवरं एक अर्णतगं अन्भहियं भाणियब्वं जाच अहवा पगयओ संखेन्जा संखिजपएमिया खंधा एम० अर्णएपएसिया भवंति अहवा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir माला उद्देश // 10 // 1 // ABESEX पग संखेजा असंखेजपएमिया खंधा एग. अणंतपएसिए संधे भवति अहवा मंखिजा अणंतपएसिया खंधा भवंति, असंखेजहा कन्जमाणे एगयओ असंखज्जा परमाणु एग. अणंतपएमिए खंधे भवद अहवा एंगयओ श तक अमंखिजा दुपएसिया खंधा एग. अणंतपएसिए भवनि जाव अहवा एग० असंखेजा मग्विजपएमिया एग०1४ 1-110 अणंतपएसिए भवति अहवा एग. असंग्विजा असंखिजपएसिया खंधा एग. अणंतपएसिा भवनि अहवा अमंखवा अणंतपएसिया खंधा भवंति अणंतहा कन्जमाणे अणंता परमाणुपोग्गला भवंति // (सूत्रं 445) // हे भगवन् ! अनन्त परमाणुपुद्गलो एकठा थाय अने एकठा थया पछी तेनु शु थाय ? उ.] हे गौतम! तेनो अन-131 न्तप्रदेशात्मक स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग थाय तो , त्रण, यावत् दश, संग्ख्यात, असंख्यात अने अनन्त विभाग थाय. बेर | विभाग करवामां आवे तो एक तरफ परमाणुपुद्गल अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय हे. यावद्-अथवा वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना प्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ वे परमाणुपुरलो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय के. अथवा एकतरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. यावत्| अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ एक परमाणु, अने एक तरफ रेअनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक | | तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय . ए प्रमाणे यावत्-अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्त प्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अथवा + + + + For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir R एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना चार भाग करवामां आवे के प्राप्ति तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय के.ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, याक्द्-संख्यातसंयोग उडेकर 1.2 // कडेवो. एबधा संयोगो असंख्यातनी पेठे अनन्तने पण कडेवा; परन्तु एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहेचो; यावद्-अथवा एक तरफ // 1.12 // संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एकतरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संरूपाता असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा संख्याता अनंतप्रदेशिक स्कन्धो होय के. जो तेना असंख्याता विभाग करीए तो एक तरफ असंख्यात परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्त प्रदेशिक स्कंध होय छे, यावद्-अथवा एक तरफ असंख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय . अथवा एक तरफ असंख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो | अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय जे. अथवा असंख्याता अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना अनन्त विभाग करII वामां आवे तो अनन्त परमाणपदलो थाय छे. / / 445 // एएमि गं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं साहणणाभेदाणुवाएणं अणताणता पोग्गलपरियट्टा समणुगंतब्बा भवंतीति मकवाया?, हंता गोयमा! एएसिणं परमाणुपोग्गलाणं साहणणा जाव मकवाया // कहबिहे ण भंते! पोग्गलपरियहे पण्णते?, गोयमा! सत्तविहा पो. परि पणत्ता, तंजहा-ओरालियपो. परि० बेउब्विय. तेयापो० कम्मापो० मणपो० परियट्टे वइपोग्गलपरियट्टे आणापाणुपोग्गलपरिअट्टे / नेरझ्याण भंते ! कतिविहे | Ec AAT For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पोग्गलपरियहे पण्णत्ते!, गोयमा! सत्तविहे पोग्गलपरियट्टे पण्णत्ते, तंजहा-ओरालियपो. वेउब्वियपोग्गलप-है। HTTरियहे जाब आणापाणुपोग्गलपरियहे एवं जाव वेमाणियाणं / एगमेगस्म णं मंते ! नेरहयस्स केवइया ओरालि- १२शतक Bायपोग्गलपरिया अतीया ?, अपंता, केवइया पुरेक्खडा', कस्सह अस्थि कस्मह नस्थि जस्सत्थि जहन्नेणं पको // 1-40 ताउद्देश 1.30 वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्ञा वा अणता बा। एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केव. तिया ओरालियपोग्गला, एवं चेव, एवं जाव वेमाणियस्साएगमेगस्सगं भंते नेहयस्स केवतिया बेउब्धियपोग्गल परियडा अतीया?, अणंता, एवं जहेब ओरालियपोग्गलपरियहा तहेव बेडम्बियपोग्गलपरियहावि भाणियव्या, एवं जाव वेमाणियस्स आणापाणुपोग्गलपरियडा, एते एगत्तिया मत्त दंडगा भवंति। नेरहयाणं भंते ! केवतिया ओ० पोग्गल परियडा अतीता', गोयमा! अनंता, केवड्या पुरेक्खडा?, अणंता, एवं जाव वेमा. णियाण, एवं वेउब्बियपोग्गलपरियवावि एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियहा वेमाणियाणं, एवं एए पोहत्तिया | सत्त चउव्वीसतिदंडगा / / हे भगवन् ! ए परमाणुपुद्गलोना संयोग अने भेदना संबंधथी अनन्तानत पुगपरिवतों जाणवा योग्य ले माटे कसा ? [[उ.] हा, गौतम ! संयोग अने मेदना योगथी ए परमाणुपुद्रलोना अनंतानंत पुद्गलपरिवों जाणवा योग्य छ माटे का छे. [प्र०] हे भगवन् ! पुदलपरिवर्तो केटला प्रकारना कहा छ? [30] हे गौतम ! पुद्रलपरिवर्तो सात प्रकारना कसा छे, ते आ प्रमाणे-१|| 4 औदारिकपुद्गलपरिवर्त, 2 वैक्रियपुगलपरिवर्त, 3 तैजसपुद्गलपरिवर्त, 4 कार्मणपुद्गलपरिवर्त, 5 मनपुदलपरिवर्त, 6 वचनपुद्रलपरिवर्त | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahaven Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie व्याख्याप्राप्ति // 1.6 / १२शतके उका 10490 अने 7 आनप्राणपुद्गलपवर्त. [प्र०] हे भगवम् ! नैरयिकोने केटला प्रकारका पुद्गलपरिवतों कया छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओने | सात पुगलपरिवतों क्या छे, ते आ प्रयाणे-१ औदारिकपुद्रलपरिवर्त, रक्रियपुद्गलपरिचत, यावद् 7 आनप्राणपुद्गलपरिवर्त. ए | प्रमाणे वावद-चैमानिको सुधी जाणवु [प्र.) हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने कंटला औदारिकपुद्गलपरिवों अतीत-थया छ ? [उ०] हे मौतम ! अनन्त थया छे. [प्र.] कटला थनारा छे ? [उ०] कोइने थवाना होय छे अने कोइने नयी; जेने थवाना है | तेने जघन्यथी एक, चे के त्रण थाना छे अने उत्कृष्टथी संख्याता, असंख्याता के अनन्ता थवाना होय छे [प्र.] हे भगवन् ! एक एक अमरकुमारने केटला औदारिकपुद्गलपरिवों यया छ ? [30] ए प्रमाणे-उपर कक्षा प्रमाणे जाणवु, ए प्रमाणे यावद् | वैमानिक सुधी जाणवु [प्र.] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने केटला वक्रियपुद्गळपरिवर्तो धया छ। [10] अनन्ता थया छे. ए | प्रमाणे जेम औदारिकपुद्गलपरिवर्त संबन्धे का तेम कियपुद्गलपरावर्त संबन्धे पण जाणवु यावद् वैमानिक सुधी कहे. ए प्रमाणे यावद् आनाणपुद्गलपरिवर्त संवन्धे पण जाणवु . ए प्रमाण एक एकने आश्रयी सात दंडको थाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोने केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छ ? [उ.] हे गौतम ! अनन्ता थया छे. (प्र०] केटला औदारिकपुद्गलपरिवतों थवाना छ ? [उ.] अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिको मुधी जाणवू. ए रीते वैक्रियपुद्गलपरिवर्ती, यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवतों संबन्धे पण यावत् वैमानिको सुधी जाणवू एम (मात पुद्गलपरिवर्त संबन्धे ) बहुवचनने आश्रयी सात दंडको (नैरयिकादि) चोवीश दंडके कहेवा. . एगमेगस्स णं भत्ते! नेरदयस्म नेर० केवतिया ओरालियपोग्गलपरिया अतीता?, नस्थि एकोवि, SEARCINE For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie अतिः // 10 // 5 // केवतिया पुरेक्वहा?, नत्यि एकोवि, एगमेमस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरिया एवं घेव एवं जाव थणियकुमारत्ते जहा असुरकुमारत्ते। एगमेगस्स णं भंते ! नेरड्यस्स81१२शतके पुरविकाइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता?, अणंता, केवतिया पुरेवडा?, कस्सह अस्थि कस्सह दाउरे नस्थि जस्माथि नस्स जहन्नेणं एको वा दो चा तिन्नि वा उक्कोसेण संखेना या अमखेजा वा अणता वा एवं जाव // 1.15 // मणुस्सत्ते, वाणमंतग्जोइसियवेमाणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते। गमेगस्म णं भंते! असुरकुमारस्म नेरइयत्ते केवतिया अतीया ओरालियपोग्गलपरिया एवं जहा नेरइयस्म बत्तब्वया भणिया तहा असुरकुमारस्सवि भाणियचा जाव घेमाणिक, एवं जाव धणियकुमारस्स, एवं पुदविकाइस्मवि, गचं जाव वेमाणियस्स, मवेमि एको गमो / पगमंगम्स णं भंते / नेयम्स नेर० केवबेउ०पोग्गलपरियहा अतीया?, अणना, केवतिया पुरेक्खडा?, पकोत्तरिया जाब अणंता, एवं जाव थणियकुमारत्ते, पुढवीकाइयत्त पुच्छा, नथि एकोवि, केवतिया पुरेक्खडा, नत्थि एकोवि, एवं जत्थ वेरब्वियमरीरं अस्थि तत्व गगुत्तरिओजन्य नत्थि तस्थ जहा पुढविकाइयत्तेतहा भाणियवं, जाव वेमाणियस्म बेमाणियत्ते। तेयापोग्गलपरियहा कम्मापोग्गलपरियट्टा य सब्वस्थ एकोसरिया भाणियचा, मण पोग्गलपरियहा सब्वेसु पंचिंदिसु एगोत्तरिया, विगलिदिएसुनस्थि, बइपोग्गलपरियहा एवं चेव, नवरं पगिदिएम नस्थि भाणियबा / आणापाणुपोग्गलपरिया सब्वस्थ एकोत्तरिया जाव वेमाणियस्स बेमाणियत्ते। 1 [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने नैगयिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो अतीत-थया छे उ०] तेओने रखकर For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 11 शतक एक पण औदारिकपुद्गलपरिवर्त थयो नथी. (म.] केटला औदारिक पुद्गलपरिवर्ती श्वाना छ ? [उ०] नेओने एक पण थवानो प्राप्ति निधी. [H0] हे भगवन्! एक एक नैरयिकने असुरकुमारपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवतों थया छ ? [30] उपर कह्या प्रमाणे काउदेश // 1.66 // जाणा,ए प्रमाणे जेम असुरकृमारपणामां कई तेम यावत् स्तनितकुमारपणामां पण जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरपिकने 1066 / / पृथिवीकारपणामां केटला औदारिकपुद्गल परिवर्तो थया छ [उ०] अनन्ता थया छे. [प] केटला थवाना छे ! [उ०] कोइने थवाना छे अने कोइने थवाना नथी, जेने थवाना छे तेने जघन्यथी एक, वे के त्रण थवाना छे, अने उत्कृष्टथी संख्याता, असंख्याता के अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावत् मनुष्यपणामां पण जाणवु. तथा वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिकपणामां जेम असुर| कुमारपणामां को तेम जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! एक एक असुरकुमारने नरयिकपणामां केटला औदारिकपूद्गलपरिचतों अतीत| थया छे / [उ.] जेम नैरयिकनी वक्तव्यता कही तेम असुरकुमारनी पण वक्तव्यता कहेवी.ए प्रमणे यावद्-वैमानिकपणामां कहे. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमार सुधी कहेवुए प्रमाणे पृथिवीथी आरंभी यावद् वैमानिकमृधी बधाोने पक गम-पाठ कहेवो. (प्र०]] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने नैरयिकपणामां केटला वैक्रियपुद्गलपरिवों थया छ ? [30] अनन्ता थया छे. [प्र०] केटला 2 थवाना छे ? [उ०] हे गौतम ! एकथी मांडीने यावद् अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारपणामां जाणवू. (प्र०)18 पृथिवीकायिकपणामा प्रश्न.-एक एक नैरयिकने पृथिवीकापिकपणामां वैक्रियपुद्गलपरिवर्तो केटला थया के ? (3) एक पण नथी. (प्र०) केटला थवाना ? (उ०) एक पण नथी. ए प्रमाणे जे जीवोने चैक्रियशरीर छे तेओने एकादि पुद्गलपरावतों जाणवा, अने | जेओने चैक्रियशरीर नथी तेओने पृथिवीकायिकपणामां कांके तेम कहेवु, यावद् वैमानिकने वैमानिकपणामां कहे, तेजसपुद्गल CBSEARCH For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Maha Jain Aadhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir व्यास्यावाति 1067 है परिवतों अने कार्मणपुद्गलपरिवर्ती सर्वत्र एकथी मांडीने अनन्तसुधी कडेवा. मनःपुद्गलपरिचर्चा वधा पंचेन्द्रियोमा एकथी आरंभी #I(अनन्त सुधी) कहेवा. ते (मनःपुद्गलपरिवतों विकलेन्द्रियोमा नथी. वचनपुद्गलपरिवों पण ए प्रमाणे जाणवा; परन्तु श तके | विशेष ए छे के ते एकेन्द्रिय जीवोमां नथी. श्वासोच्चामपुद्गलपरिवतों बधा जीवोमां पकथी मांडीने वधारे जाणवा; यावद् उका 12 // 1067 वैमानिकने वैमानिकपणामां कहेवु. Paa नेरइयाण भंते! नेरहयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गल परियहा अतीया?, नथि एकोवि, केवइया 4 पुरेक्वहा !, नथि एकोवि, एवं जाव धणियकुमारत्ते, पुढविकाइयत्त पुच्छा, गोयमा ! अणंता, केवइया पुरेक्व डा?, अणना, गवं जाव मणुस्सत्ते, वाणमंतरजोइसियवेमाणियत्ते जहा नेरइयत्ते एवं जाव वेमाणियस्म वेमाणि गत्ते, एवं मत्तचि पोग्गलपरियहा भाणियब्वा, जस्थ अस्थि तत्थ अतीपावि पुरेक्खडावि अणता भाणियब्बा, 8| जय नस्थि तस्य दोवि नत्थि भाणियब्या जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते केवतिया आणापाशुपोग्गलपरिया | अतीया, अर्णता, केवतिया पुरेवडा?, अणता (सूत्रं 146) (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोने नैरयिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवों व्यतीत घया छ ? (उ.) एक पण व्यतीत थयेल नथी. (प्र०) केटला थवाना के ? (उ०) एक पण थवानो नथी. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारपणामां जाणवू. (प्र०) पृथिवीकायिकपणामा प्रश्न. ( नैरयिकोने पृथिवीकायिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवों व्यतीत थया छे ?) (उ०) अनन्ता व्यतीत थया छे. (प्र०) केटला थवाना छे ? (उ०) अनन्ता थवाना के.ए प्रमाणे यावत्-मनुष्यपणामां जाणवू. तथा जेम नैरयिक CHECK For Private and Personal use only
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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande tes पापणामां का तेम वानव्यन्तर, ज्योतिष्क अने वैमानिकपणामा कहेतु . ए प्रमाणे यावत् वैमानिकने वैमानिकपणामां कहेवु. ए व्याख्या . TA प्राप्ति रीते माते पुद्ग परिवों कहेवा; ज्या होय छे त्यां अतीत-थयेला अने पुरस्कृत-भावी पण अनन्ता कोवा, अने 'ज्यां नयी त्यांET // 1.680 अतीत अने मावी बने पण नथी-' एम कहे. यावद्-[प्र०] वैमानिकोने त्रैमानिकपणामां केटला आनप्राणपुद्गलपरिवर्तो थयेका 1.46 में! [उ०] अनन्ता धयेला . [प्र.] केटला बचाना है। [30] अनन्ता थवाना के. // 446 // से केणगुण भंते / एवं बुषा-ओरालियपोग्गलपरियहा ओ.?, गोयमा! जणं जीवेणं ओरालियमरीरे बट्टा माणेणं ओरालियसरीरपयोगाई दबाई ओरालियसरीरत्ताए गहियाई बाई पुडाई कडाई पट्टवियाई निविहार अभिनिविट्ठाई अभिममन्नागया परियाइयाई परिणामियाई निजिन्नाई निसिरियाई निसिहाई भवंति से तेणटेणं गोयमा! एवं बुचर ओरालियपोग्गलपरियट्टे ओरा०२, एवं वेउब्वियपोग्गलपरिगहेवि, नवरं बेउब्बियसरीरे पहमाणेणं वेउब्बियमरीरपयोगाई सेसं तं चेच सव्वं एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियहे, नवरं आणापाणुपयो गाई मन्बदम्बाई आणापाणत्ताए सेसं तं व // ओरालियपोग्गलपरियहे णं भंते ! केवइकालस्स निब्बत्तिनइ ?, गोषमा! अगंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं पतिकालस्स निव्वत्तिजइ, एवं वेडब्धियपोग्गलपरियझेवि, एवं जाव आणापाणुगोग्गलपरियडेवि // पयस्स भंते ! भोरालियपोग्गलपरियहनिम्वत्सणाकालस्म बेउवियपो ग्गला जाप आणुपाणुपोग्गलपरियहनिम्वत्तणाकालस्स कयर कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सम्वत्थोवे कम्मग्गपोग्गलपरियदृनिव्वत्तणाकाले तेयापोग्गलपरियनिव्वत्तणाकाले अर्णनगुणे ओरालियपोग्गल . For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir 1 SULT 1019 // | परियडू अणंतगुणे आणापाशुपोग्गल अणंतगुणे मणपोग्गल० अणंतगुणे वइपो० अर्णतगुणे बेउब्बियपो० परिपाल्वा यहनिव्वत्तणाकाले अणंतगुणे ( सूत्रं 447) // प्राप्ति र क्षा [प्र.) हे भगक्न! 'औदारिकपुदमलपरिवर्त औदारिकपुदगलपरिवर्त-एम शा हेतथी कहेलावले [उ गौतम! औदा- रिकशरीरमां वर्तता जीवे औदारिकशरीरने योग्य द्रव्यो औदारिकशरीरपणे ग्रहण करेला, स्पर्शेलां के, करेला छे, स्थिर करेलां छे, स्थापन करेलां छे, अभिनिविष्ट-सर्वथा लागेला छे, सर्वधा प्राप्त धयेला छे, सर्व अवयवचडे ग्रहण करायेला छे, परिणाम पामेला छे, निर्जरायेलां छे, जीवप्रदेशधी नीकळेला छे, अने जीवप्रदेशथी जूदा थयेला छे, माटे ते हेतुथी हे गौतम ! एम 'औदारिकपुद्गलपरिवर्त औदारिकपुद्गलपरिवर्त' कहेबाय छे. ए प्रमाणे बैंक्रियपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. परन्तु विशेष ए के, वैक्रियशरीरमांडू वर्तता जीवे वैक्रियशरीरने योग्य पुद्गलो कहेवां, बाकी बधुं तेज प्रमाणे कहेवु. ए प्रमाणे यावद् आनप्राणपुद्गलपरिवर्त सुधी जाणवू / विशेष ए के के, त्यां 'आनप्राणयोग्य सर्व द्रव्यो आनप्राणपणे ब्रह्मां ' इत्यादि कहेg, बाकी वर्षा पूर्वनी पेठेज जाणवु [प्र०] हे भगवन् ! औदारिकपुद्गलपरिवर्त केटला काळे नीपजे ! [उ०] हे गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणीवडे-एटला काळे-औदारिकपुद्गलपरिवर्त नीपजे. ए प्रमाणे वैक्रियपुद्गलपरिचर्त पण जाणवो. ए प्रमाणे यावद आनप्राणपुद्गलपरिवर्त पण जाणवो. [40] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्तना निप्पत्तिकाळमां, वैक्रियपुद्गलपरिवर्त निष्पत्तिकाळमां, यावद्-आनप्राणपुद्गलप६ रिवर्तना निष्पत्तिकाळमां कयो काळ कोनाथी (अल्प), यावत् विशेषाधिक के ? [30] हे गौतम ! सर्वथी थोडो कार्मणपुद्गलपरि-12 वर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण तैजसपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुत्गलपरिवर्तनो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उरेका प्राप्ति // 1070 // // 17 KIME निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी आनप्राणपुद्गळनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छ, तेनाथी मनःपुद्गलपरिवर्तनो निप्पत्तिकाल अनन्तगुण छे, तेनाथी वचनपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छे, अने तेनाथी वैक्रियपुद्गलपरिवर्तनो निष्पचिकाळ अनन्तगुण छे. // 447 // एएसि णं भंते! ओसलियपोग्गलपरियट्टाणं जाव आणापाणुपोग्गलपरियाण य कयरे 2 हिंतो जाव विसेसाहिया बा?, गोयमा सव्वत्थमेवा वेउब्वियपो० वइपो० परि० अणंतगुणा मणपोग्गलप. अणत आणापाणुपोग्गल. अनंतगुणा ओरालियपो. अणंतगुणा तेयापो. अणंत कम्मपोग्गल. अणतगुणा / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति भगवं जाव विहराइ ( सूत्र 448) // 12-4 // 1 [प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्त, यावद्-आनप्राणपुद्गलपरिवर्त-एओमां परस्पर कया पुद्गलपरिवर्त कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे! [उ.] हे गौतम ! सौथी थोडा वैक्रियपुद्गलपरिवतों छे, तेनाथी अनन्तगुणा बचनपुद्गलपरिवों छे, तेनाथी अनन्तगुणा मनःपुद्गलपरिवों छे, तेनाथी अनन्तगुणा आनप्राणपुद्गलपरिवर्तो छ, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुद्गलपरिवर्तो छ, तेनाथी अनन्तगुणा तेजसपुद्गलपरिवों छे, अने तेनाथी अनन्तगुण कार्मणपुद्गलपरिवर्तो छे. 'हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छ, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे'-एम कही यावद्-भगवान् गौतम विहरे छे. // 448 / / भगवन सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना 12 मां शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie MEREKATARIKAR // धर्मदासगणीप्रणीता // * श्रीउपदेशमाला " टीका-सिद्धर्षिगणि पत्राकारे, लेजर कागळ किंमत रु. 3--- लखो-पंडित हीरालाल हंसराज जामनगर. PRAKASHAN For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie THEUTETTU MUTTA OSTRESUJETAPIC E LA MARTURILE CATEGIE DE इति श्रीमद्भगवतीसूत्रे चतुर्थो भागः समाप्तः / / For Private and Personal Use Only
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