________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie 44G व्याख्या १२शसके उद्देशन // 1.23 // 11023 / वासगं वंदति नमंसति वं० न० आसणेणं उवनिमंतेइ आ० 2 एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं?,तए णं से पोक्खली समणोवासए उप्पलं समणोचासियं एवं वयासी-कहिन्नं देवाणुप्पिए / संखे समणोवासए १,लए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्स्वलं समणोवासयं एवं दयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी जाब विहरह। त्यार बाद ते श्रमणोपासकोए श्रावस्ती नगरीमा पोतपोताने घेर जइ, पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावी परस्पर एक वीजानेबोलावी आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो ! आपणे पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने तैयार करावेलो छे, पण ते शंख श्रमणोपासक जलदी आव्या नहि, माटे हे देवानुप्रियो ! आपणे शंख श्रमणोपासकने बोलावया श्रेयस्कर छे. त्यारवाद ते पुष्फली नामना श्रमणोपासके ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कधु-'हे देवानुप्रियो! तमे शांतिपूर्वक विसामो ल्यो,अने हुं शंख श्रमणोपासकने बोलावूछु एम कही श्रमणोपासकोनी पासेथी नीकळी श्रावस्ती नगरीना मध्य भागमा ज्यां शंख श्रमणोपासकनु घर छे,त्यां जइ तेणे शंख श्रमणोपासकना घरमा प्रवेश कयों. पछी ते [ शंख श्रावकनी पत्नी ] उत्पला श्रमणोपासिका ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आवतो जोइ, हर्षित अन संतुष्ट थई पोताना आसनथी उठी सात आठ पगला तेनी सामेजइ पुष्कलि श्रमणोपासकने वांदी अने नमी आसनवडे उपनिमंत्रण कर्या बाद आ प्रमाणे बोली-'हे देनानुप्रिय! कहो, के तमारा आगमननु झुं प्रयोजन छे? त्यारे ते पुष्कलि श्रमणोपासिकाने आ प्रमणे का'-'हे देवानुप्रिये शंख श्रमगोपासक क्यां छे? त्यार बाद ते उत्पला श्रमणोपासिकाए ते पुष्कलि श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रिय! खरेखर शंख शंखा श्रमणोदासक पोषधशालामां पोषध ग्रहण करी ब्रह्मचारी थइने यावद् विहरे छे.' SARAN For Private and Personal Use Only