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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir पछी श्रमण भगवान महावीरे 'हे जमालि!' गम कहीने ते जमालि अनगारने आ प्रमाणे कयु के-'हे जमालि ! मारे घणा* म्याख्या- श्रमण निग्रंथ शिष्यो छमस्य छे, तेओ मारी पेठे आ प्रश्नोनो उत्तर आपवा समर्थ छे, पण जेम तुं कहे छे तेम 'हुं सर्वज्ञ अने जिन [४ाएं एवी भाषा तेओ बोलता नथी. हे जमालि! लोक शाश्वत हे, कारण के 'लोक कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि लोक नथी' | उद्देवा // 875 // एम नथी, अने 'कदापि लोक नहि हशे' पम पण नथी. परन्तु लोक हतो, छे अने हशे. ते ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अध्यय, 11875 // अवस्थित अने नित्य हे. वळी हे जमालि ! लोक अशाश्वत पण हे, कारण के अवसर्पिणी थइने उत्सर्पिणी थाय छे. उत्सर्पिणी थइने अवसर्पिणी थाय छे. हे जमालि ! जीव शाश्वत छे, कारण के ते 'कदापि न हतो' एम नथी, 'कदापि नथीं' एम नथी अने, 'कदापि नहि हशे' एम पण नथी, जीव यावद् नित्य के. वळी हे जमालि ! जीव अशाश्वत पण छे, कारण के नैरयिक थइने तियंचयोनिक थाय छे, तियंचयोनिक थइने मनुष्य थाय छे, अने मनुष्य थइने देव थाय छे. तए णं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओमहावीरस्स एवमाइखमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयम१ णो सद्दहह णो पत्तिएइ णो रोएइ एयम४ असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोचपि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवकमइ दोचंपि आयाए अवक्कमित्ता बहूहि असम्भावुन्भावणाहिं मिच्छत्ताभि|णिवेसेहि य अप्पाणंच परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणे बुप्पाएमाणे बहूयाई वासाइं सामनपरियगो पाउणइ 2 | अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेइ अ०२ तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति 2 तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते कालमांसे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितिएसु देवकिब्धिसिएसु देवेसुदेवकिब्विसियत्ताए। CS4%A8+ 5 Far Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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