________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रक्षप्तिः // 949 // ११शतके उद्देशा // 949 // X 4 पक्खिबह समिहाकट्ठाइं पक्विवित्ता अग्गि उज्जालेइ अग्गि उल्लालेत्ता-'अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे / तं०-सकहं वक्कलं ठाणं. सिन्जाभंडं कमंडलं // 70 // दंडदारूं तहा पाणं, अहे ताई समादहे / / महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणित्ता चळं साहेह, चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वह स्महदेवं करेत्ता अतिहिपूर्य करेइ अतिहिपूर्य करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति, त्यारवाद प्रथम छट्ठ तपना पारणाना दिवसे ते शिव राजर्षि आतापना भूमिथी नीचे आवे छे, नीचे आवीने चालकलना वस्त्र पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, त्या आवी किढिन (वांसजें पात्र) अने कावडने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी पूर्व दिशाने प्रोक्षितकरी 'पूर्व दिशाना सोम महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थएला शिव राजर्पित रक्षण करो, अने पूर्व दिशमा रहेला कंद, मूल, छाल, पांदडा, पुष्प, फल, बीज अने हरित-लीली बनस्पतिने लेवानी अनुज्ञा आपो-एम कही ते शिव राजर्षि पूर्व दिशा तरफ जाय हे, जइने त्यां रहेला कंद, यावत्-लीली वनस्पतिने ग्रहण करीने पोतानी कावड भरे छे. त्यार पछी. दर्भ, कुश, समिध-काष्ठ अने झाडनी शाखाने मरडी पांदडाओने ले छ; लेईने ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, आवीने कावडने नीचे मूके के, मूकीने वेदिकाने प्रमार्जित करे छ पछी वेदिकाने (छाण पाणीवडे) लीपी शुद्ध करे छे. त्यारबाद डाभ भने कलशने हाथमां लइ ज्यां गंगा | महानदी छे, त्यां आवीने गंगा महानदीमा प्रवेश करे छे, प्रवेश करी डुबकी मारे छे, जलक्रीडा करे छ, अने स्नान करे छ, पछी आचमन करी चोक्खा थइ-परम पवित्र थइ देवता अने पितृ कार्य करी डाम अने पाणीनो कलश हाथमा लइ गंगा महानदीथी | बहार नीकळीने ज्यां पोतानी झुपडी छे, त्यां आवे छे आवीने डाम, कुश अने वालुका बडे वेदिने बनावे छे, बनावी मथनकाष्ठवडे %A3%ERe-% For Private and Personal Use Only