________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्ति 95011 वार 950 // अरणिने घसे छे, घसीने अग्नि पाडे छ, पाडीने अग्रिने सळगावे छे, पछी तेमा समिधना काष्ठोने नांखी ते अधिने प्रज्वलित कर छ / अने अमिनी दक्षिण बाजुए आ सात वस्तुओ मुके छे ते आ प्रमाणे -"1 सकथा (उपकरणविशेष), 2 बल्कल, 3 दीप, 4 शय्याना उपकरण, 5 कमंडल, 6 दंड अने 7 आत्मा (पोते). ए सीने एकठा करे छे" पछी मध, घी अने चोखा बडे अमिमां होम करे छे होम करीने चरु-बलि तैयार करे छे, अने बलिथी वैश्वदेवनी पूजा करे छे, त्यारबाद अतिथिनी पूजा करी ते शिव राजर्षि पोते आहार कर छे. ली तए णं से सिवे रायरिसी दोचं छट्टक्स्वमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ट| क्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोकहइ आयावण०२ एवं जहा पदमपारणगं नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति 2 दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेस तं चेव आहारमाहारेइ, तए ण से सिवरायरिसी तचं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरति, तए ण से सिवे रायरिसी सेस तं चेव नवरं पचच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेस तं चेव जाव आहारमाहारेह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्खमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरह, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्टक्वमणं एवं तं चेव नवरं उत्तरदिसं पोक्खेह उत्सराए दिसाए बेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेस तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेह // (मूत्रं 417) // त्यारवाद ते शिवराजर्षि फरीवार छ? तप करीने विहरे छे, पछी ते शिवराजर्षि आतापनाभूमिथी उतरीच कलतुं वस्त्र पहेरे छे, +964--SCRk For Private and Personal Use Only