________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या ११शतके उद्देश१. // 970 // // 970 // बाबाहं वा उप्पायति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणढे सहढे, से केणडेणं भंते ! एवं बुच्चइ लोगस्स णं एगमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाब चिट्ठति णधि णं भंते ! अनमन्नस्स किंचि आवाहं वा जाव करेंति ?, गो. यमा ! से जहानामए नहिया सिया भिंगारागारचारुवेमा जाव कलिया रंगट्ठाणंसि जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसह विहस्स नहस्स अन्नयरं नट्टविहिं उवदंसेज्जा, से नूर्ण गोयमा! ते पेच्छगा तं नहियं अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समता समभिलोएंति ?, हंता समभिलोएंति, ताओ णं गोयमा! दिट्ठीओ तसि नहियसि सब्बओ समंता संनिवडियाओ', हंता संनिवडियाओ, अस्थिणंगोयमा! ताओ दिट्टीओ तीसे नहियाए किंचिवि आवाहं वा बाबाहं वा उपाएति छविच्छेदं वा करेंति !, णो तिणहे समढे, अहवामा नदिया तासिं दिहीणं किंचि आवाहं वा वाबाई वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेइ ?, णो तिणट्टे समहे, ताओ वा दिट्टीओ अन्नमनाए दिट्ठीए किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति छविच्छेदं वा करेन्ति !, णो तिणढे समढे, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुचहतं चेव जाव छविच्छेदं वा करेंति // (सूत्रं 422) / [म.] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, यावत् पंचेन्द्रियना प्रदेशो अने अनिन्द्रि | यना प्रदेशो छे ते शुं बधा परस्पर बद्ध छ, अन्योन्य स्पृष्ट छे, यावद् अन्योन्य संबद्ध छ ? वळी हे भगवन् ! ते बधा परस्पर एक बीजाने कांइ पण आत्राधा (पीडा) व्याबाधा (विशेष पीडा) उत्पन्न करे, तथा अवयवनो छेद करे। [उ०] हे गौतम! ए अर्थ यथार्थ है नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के लोकना एक आकाशप्रदेशमा जे एकेन्द्रियना प्रदेशो यावत् रहे छे, For Private and Personal Use Only