________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रजाति // 971 // सोनार. // 97 // SHARE अने ते परस्पर एक बीजाने कांड पण आबाधा वा व्यावाधा करता नथी [उ.] हे गौतम ! जेम श्रृंगारना आकार सहित सुन्दर हूँ वेषवाळी अने संगीतादिने विषे निपुणताचाळी कोई एक नर्तकी होय अने ते सेंकडो अथवा लाखो माणसोथी भरेला रंगस्थानमा हाबवीन प्रकारना नाट्यमांन कोइ एक प्रकारनं नाय देखाडे तो हे गौतम! ते प्रेक्षको शुं ते नर्तकीने अनिमेष दृष्टिथी चोतरफ जुए हा, भगवन् ! जुए. तो हे गौतम! ते प्रेक्षकोनी दृष्टियो शु ते नर्तकीने विषे चारे बाजुथी पडेली होय छे ? हा, पडेली होय छे. हे गौतम ! प्रेक्षकोनी ते दृष्टिओ ते नर्तकीने काइ पण आवाधा वा व्यायाधा उत्पन्न करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे ? हे भगवन ! ए अर्थ योग्य नथी. अथवा ते नर्तकी ते प्रेक्षकोनी दृष्टिओने कंड पण आपाधा के व्यावाधा उत्पन्न करे अथवा तेना | अवयवनोद करे? ए अर्थ यथार्थ नथी. अथवा ते दृष्टिओ परस्पर एक बीजी दृष्टिोने काइपण आवाधा के व्याबाधा उत्पन्न करे, अथवा तेना अवयवनो छेद करे ? ए अर्थ यथार्थ नथी. अर्थात् न करे, ते हेतुथी एम कडेवाय छे के पूर्वोक्त यावत् अवयवनो छेद करता नथी.॥ 422 // लोगस्स णं भंते ! एगमि आगासपएसे जहन्नपए जीवपएमाणं उकोसपए जीवपएसाणं सब्वजीवाण य कयरे 2 जाब विसेसाहिया वा?, गोयमा! सब्वत्थोवा लोगस्स पगंमि आगासपएसे जहन्नपण जीवपएसा, सव्वजीवा असंखजगुणा, उक्कोसपए जीवपएसा विसेसाहिया, सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति // (सूत्रं 423) // एकारससयस्स दसमोउदमो समत्तो // 11-10 // [H0] हे भगवन् ! लोकना एक आकाशप्रदेशमा जगन्यपदे रहेला जीवप्रदेशो, उत्कृष्टपदे रहेला जीवप्रदेशो अने सर्व जीवोमां SALUTEKARE For Private and Personal Use Only