________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या ACTERN // 969 // [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केटलो मोटो कह्यो 31 [उ.] हे गौतम ! 'आ मनुष्यक्षेत्र लंबाइ अने पहोळाइमां पीस्ताळीश लाख योजन के'-इत्यादि जेम स्कंदकना अधिकारमा कह्यु छ तेम जाणवू, यावत् ते परिधियुक्त छे. ते काले ते-समये दस महधिक ११शतके का देवो पूर्वनी पेठे ते मनुष्य लोकनी चारे बाजु वींटाइने उभा रहे. तेनी नीचे मोटी आठ दिकुमारीओ आठ बलिपिंडने लेडने मानु-II उद्देशार. पोत्तर पर्वतनी चारे दिशामा अने चारे विदिशामा बाह्याभिमुख उभी रहे अने ते आठ बलि पिंडने लइने एकज साथे मानुपीचर // 969 // पर्वतनी बाहेरनी दिशामा फेंके, तो हे गौतम ! तेमांनो कोई पण एक देव ते आठ लिपिंडोने पृथिवी उपर पड्या पहेलां शीघ्र संहरवा समर्थ छे. हे गौतम! ते देवो उत्कृष्ट, यावद् त्वरितदेवगतिथी लोकना अंतमा उभा रही असत् कल्पना बडे एक देव पूर्व दिशा तरफ जाय, एक देव दक्षिणपूर्व तरफ जाय, अने ए प्रमाणे यावत् एक देव पूर्व तरफ जाय, वळी एक देव ऊर्व दिशा तरफ जाय, अने एक देव अधोदिशा तरफ जायते काले-ते समये लाख वर्षना आयुषवाळा एक बालकनो जन्म थाय, पछी ना माता-1 पिता मरण पामे तोपण ते देवो अलोकना अन्तने प्राप्त करी शकता नथी-इत्यादि पूर्वे कहेलु. अहीं कहेवू. यावत् बि०] हे भगवन् ! ते देवोनुं गमन करायेलु क्षेत्र बहु के के नहि ममन करायेलुं क्षत्र बहु छ ? [30] हे गौतम ! तेओर्नु गमन करायेलु क्षेत्र बहु नथी, पण नहि गमन करायेलु क्षेत्र बहु के. ममन करायेला क्षेत्र करतां नहि गमन करायेलु क्षेत्र अनन्तगुण के, अने नहि गमन करायेला | क्षेत्र करतां गमन करायेलुं क्षेत्र अनंतमे भागे के. हे गौतम ! अलोक एटलो मोटो कह्यो छे. // 421 // भते गं लोगस्स ! पगमि आगासपएसे जे पगिदियपएसा जाव पचिंदियपएसा अणिदियपपसा अन्नमनबद्धा अन्नमन्नपुट्टा जाब अन्नमन्नसमभरघडताए चिट्ठति, त्धि णं भंते ! अन्नमन्नस्स किंचि आवाहं वा For Private and Personal Use Only