________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * लागे, पण सांपरायिकी क्रिया न लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के ते अनगारने ऐपिथिकी क्रिया | व्याख्या | लागे पण सांपरायिकी किया न लागे ? (उ०Jहे गौतम! 'जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ श्रीण थया छे तेने ऐपिथिकी|१०शसके प्रचाप्तिः क्रिया लागे छे-इत्यादि जेम सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमा (उ०१.०१८.) का छे तेम अहीं पण यावत् 'ते अनगार सूत्रा- उमेशा // 894 // | नुसारे वर्ते छ' त्यांसुधी कहे, हे गौतम! ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागती नथी. // 396 // // 894 // __कइविहा ण भंते ! जोणी पन्नत्ता, गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तंजहा-सीया उसिणा सीतोसिणा, एवं जोणीपयं निरवसेसं भाणियब्वं / / (सूत्रं 397) [प्र०] हे भगवन् ! योनि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! योनि त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, एउष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं समग्र योनिपद कहेवू. // 397 / / कतिविहाणं भंते। वेयणा पन्नत्ता, गोयमा!तिविहा वेयणा पन्नत्ता, संजहा-सीया उसिणा सीओसिणा, एवं वेयणापयं निरवसेसं भाणियव्वं जाब नेरइया भंते! कि दुक्खं वेदणं वेदेति सुहं वेयणं वेयंति अदुवममुह वेयणं वयंति?, गोयमा ! दुश्खपि वेयण वेयंति सुहंपि वेयणं वेयंति अदुक्खमसुहंपि वेषणं वेति / / (ऋत्रं 398) [प्र०] हे भगवन् ! वेदना केटला प्रकारनी कही छ ? [उ.] हे गौतम ! वेदना प्रण पकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-शीत, &aa उष्ण अने शीतोष्ण. ए प्रमाणे अहीं संपूर्ण वेदनापद कहे. यावत्-[प्र०] 'हे भगवन् ! नरयिको शु दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, सुखपूर्वक वेदना वेदे छे के सुख-दुःख शिवाय वेदना वेदे छे! [उ०] हे गौतम नैरयिको दुःखपूर्वक वेदना वेदे छे, मुखपूर्वक *% % For Private and Personal Use Only