________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रति १.शुतके | उद्देशा३ // 893 // C त्तमसए पढमोहेसए जाव से णं उस्सुत्तमेद रीयति, से तेणटेणं जाव संपराइया किरिया कन्जइ / संवुडस्स ण व्याख्या- भंते! अणगारस्स अवीयीपंथे ठिचा पुरओ रूवाइं निज्झायमाणस्स जाब तस्स णं भंते! किं ईरियावहिया किरिया कजा, पुच्छा, गोयमा! संवुड० जाब तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइनो संपराइया किरिया कजइ, से 893 // केण?णं भंते ! एवं बुचइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहासुत्तमेव रीयति से तेण?णं जाव नो संपराइया किरिया कजइ / / (सूत्र. 396) // [प्र०] राजगृह नगरमां यावत् (गौतम) ए प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! वीचिमार्गमां-कषायभावमा-हीने आगळ रहेलां रूपोने जोता, पाछळना रूपोने देखता, पढखेना रूपोने अवलोकता,ऊंचेना रूपोने आलोकता अने नीचेना रूपोने अबलोकता संवृत (संवतरयुक्त) अनगारने शुं ऐपिथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे? [उ.] हे गौतम ! वीचिमार्गमां (कषायभावमां) रहीने यावत् रूपोने जोता संकृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया न लागे, पण सांपरायिकी क्रिया लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के संवृत अनगारने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ क्षीण थया होय तेने ऐपिथिकी क्रिया लागे-इत्यादि सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत् 'ते संवृत अनगार सूत्र विरुद्ध वर्ते छे' त्यांसुधी कहे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे छे. [म.] हे भगवन् ! अवीचिमा मां-अकषायभावमां-रहीने आगळना रूपोने जोता, यावत् अवलोकता संघृत अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे। [उ०] हे गौतम ! यावत् अकषायभावमा रहीने आगळ रूपोने जोता यावत् ते संवृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया REDIT-645453 For Private and Personal Use Only