________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राज्ञप्तिः // 896 // सेवं भंतेत्ति / ( सूत्र 400)10 / 2 / / का जो ते भिक्षु कोइ एक अकृत्यस्थानने सेवीने अने ते अकृत्य स्थान- आलोचन तथा प्रतिक्रमण कर्या विना काल करे तो तेने १०शसके आराधना यती नथी, परन्तु जोते ते अकृत्यस्थाननु आलोचन अने प्रतिक्रमण करीने काल करे तो तने आराधना थाय छे. वळी उशार कदाच कोइ भिक्षुए अकृत्यस्थान प्रतिसेवन कर्य होय, पछी तेना मनमा एम विचार थाय के 'हुं मारा अंतकालना समये ते अक | मा८९६॥ त्यस्थान- आलोचन करीश, यावत तपरूप प्रायश्चित्तनो स्वीकार करीश,' स्यारपछी ते भिक्षु ते अकृत्यस्थान- आलोचन के प्रति-15 क्रमण कर्या विना मरण पामे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते भिक्षु ते अकृत्यस्थानने आलोचन अने प्रतिक्रमण करी काल * करे तो तेने आराधना थाय छेवळी कोइ भिककोई एक अकृत्यस्थाननं प्रतिसेवन करी पछी मनमा एम विचारे के, 'जो श्रमणो पासको पण मरणसमये काल करीने कोइ एक देवलोका देवपणे उत्पन्न थाय छे, तो शुं हुं अणपत्रिकदेवपणुं पण नहि पामुं,' एम विचारीने ते अकृत्यस्थानन आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या विना जो काल करे तो तेने आराधना थती नथी, अने जो ते अकृत्यस्था पद नने आलोची तथा प्रतिक्रमी पछी काल करे तो तेने आराधना थाय छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे, (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.)॥ 400 // भगवत् मुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना 10 मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो, *** ** For Private and Personal Use Only