________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १०वके उशा७ // 924 // उद्देशक 7 व्याख्या कहिनं भंते ! उत्तरिल्लाणं पगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे नाम दीवे पन्नत्ते, एवं जहा जीवाभिगमे तहेव प्रजाति: |निरवसेसं जाव सुद्धदंतदीवात्ति, एए अट्ठावासं उद्देसगा भाणियव्वा / सेवं भंते! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति / 1924 // 4 // (सूत्रं 408)|10-34 // दसम सयं ममतं // 10 // [प्र०] हे भगवन् ! उत्तरमा रहेनारा एकोरुक मनुष्योना एकोरुक नामे द्वीप कये स्थळे को छ ? [10] हे गौतम का जीवाभिगमात्रमा कया प्रमाणे सर्व द्विपो संबन्धे यावत शुद्धदंतद्वीप सुधी कहे. ए प्रमणे प्रत्येक द्वीप संबन्धे एक एक उद्देशक कहेबो. एम अख्यावीश उद्देशको कहेवा. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज . (एम कही भगवान् गौतम यावत् विहरे छे.) / / 458 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 10 मा शतकमां सादमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. COMMON CUMULATED TO MAKE C HA NYETI Column TRIMER MILITEIT) TUO CORTARTU ETOILEKUT ) Canal // इति श्रीमद्भयदेवाचार्यवृत्तियुतं दशमंशतकं समाप्तम् // berumal entrenar.. MENTIRAIT) Costume) ETIKETTE) TRAILA URTE) ESTUMISTO ULERTE MULTETE STATEKTED Tunes TM FINNS For Private and Personal Use Only