________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गोयमा महिडीए जाव महसोक्खे, से णं सत्य बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणंजाब विहरति केमहसोक्खे, एवं महडिए जाव एवं महासोक्खे सके देविंदे देवराया। सेवं भंते ! सेवं मंतेत्ति / / (सूत्रं 407) // 10-6 // १०शतके व्याख्या II [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्रनी सुधर्मा नामे सभा क्या कही छ ? [उ०] हे गौतम ! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मेरु || उद्देशा प्रवातिः पर्वतनी दक्षिणे आ रत्नप्रभापृथिवीना (बहु सम अने रमणीय भूमिभागनी उंचे घणा कोटाकोटि योजन दूर सौधर्म नामे देवलोकने | 1923 // // 923 // 11 विषे) इत्यादि रायपसेणीय' सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत पांच अवतंसक विमानो कराळे, ते आ प्रमाणे-अशोकावतसक, यावत बच्चे सौधर्मावतंसक छे. ते सौधर्मावतंसक नामे महा विमाननी लंबाई अने पहोळाई साडा चार लाख योजन के. शक्रतुं प्रमाण, उपपात (उपज), अभिषेक, अलंकार अने अचनिका (पूजा)-इत्यादि यावत् आत्मरक्षको सूर्याम देवनी पेठे जाणवा, तेनी स्थिति (आयुष) वे सागरोपमनी छे. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र केवी महाऋद्धिवाळो छे. केवा महासुखवाळो छ ? [उ०] हे गौतम! ते महाऋद्धिवाळो यावत् महासुखवाळो बत्रीश लाख विमानोनो स्वामी थइने यावद् विहरे छे, ए प्रमाणे महाऋद्धिवाळो अने महासुखवाळो ते देवेन्द्र देवराज शक्र छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे के.)॥ 40 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती स्त्रना 10 मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only