________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 15 उदेश व्याख्याप्राप्ति // 927 // ACC+ तेण भंते ! जीवा समए 2 अवहीरमाणा 2 केवतिकालेण अवहीरंति', गोयमा / तेणं असंखेजा समए 2 | अवहीरमाणा 2 असंखजाहिं उस्सपि,णिओसप्पिणीहिं अवहीरंति,नो चेचणं अपहिया सिया 3 / तेसि णं भंते ! ११शतके | जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता!, गोयमा। जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं 4 ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा, गोयमा! नो अबंधगा, IS927 // | बंधए वा बंधगा वा एवं जाय अंतराइयस्स, नवरं आउयस्स पुच्छा गोषमा!बंधए वा अबंधए वा बंधगा वा अबंधगा वा अहवा बंधए य अबंधए य अहवा बंधए य अबंधगा य अहवा पंधगा य अबंधए य अहवा बंधगा य अपंधगा य 8 एते अह भंगा 5 / [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो समये समये काढवामां आवे तो केटले काले ते पूरा काढी शकाय ? [उ.] हे गौतम ! साजो ते जीवो समये समये असंख्य काढवामां आवे, अने ते असंख्य उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काल सुधी काढवामां आवे तो पण लाते पूरा काढी शकाय नहीं. [प्र०] हे भगवन् ! उत्पलना जीवोनी केटली मोटी शरीरावगाहना कही छे ? [उ.] हे मौतम ! जघ न्य-ओछामा ओछी-अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली, अने उत्कृष्ट कइंक अधिक हजार योजन होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं ज्ञानावरणीय कर्मना बंधक के के अबंधक छ' [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानारणीय कर्मना अबंधक नथी, पण बन्धक छे. अथवा एक जीव बंधक छ अने अनेक जीवो पण बंधक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतरायकर्म संबंधे पण जाण. [म.] परन्तु आयुषकर्मना संबंधे प्रश्न करतो. (हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो आयुषकर्मना बंधक के के अबंधक के ) [उ.] हे गौतम!१(उत्प For Private and Personal Use Only