________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 960 // 'हे भगवन् ! एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छ अने नमे छे, बांदी अने नमीने भगवंत गौतमे आ |प्रमाणे पूछ्यु-[३०] हे भगवन् ! सिद्ध थता जीवो कया संघयणमां सिद्ध थाय ? [उ०] हे मौतम ! जीवो वजऋषभनाराच संघयणमां सिद्ध थाय"-इत्यादि औषपातिकसूत्रमा कह्या प्रमाणे "संघयण, संस्थान, उंचाइ, आयुष, परिवसना (वास)"-अने ए प्रमाणे आखी सिद्धिंगडिका कहेवी; यावत् अव्यावाध (दुःखरहित) शाश्वत सुखने सिद्धो अनुभवे छे. 'हे भगवन् ! ते एमजके, हे भगवन् ! ते मएमज छे' एम कही यावद् विहरे छे. / / 419 / / भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देश:१० // 910 // HTIONARA - KARNAERRORAKHARA उद्देशक 10. रायगिहे जाव एवं बयासी-कतिविहे गं भंते ! लोग पन्नत्ते, गोयमा चउबिहे लोग पन्नत्ते, तंजहा-दब्बलोए खेत्तलोए काललोए भावलोए / खेत्तलोए णं भंते ! कतिविहे पण्णते?, गोषमा ! तिविहे पन्नत्ते, तंजहाअहोलोयखेत्तलोए 1 तिरियलोयखेत्तलोए 2 उडलोयखेत्तलोए / अहोलोयखेत्सलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते , गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोग जाव अहेसत्तमापुढविअहोलोयखेत्तलोग। तिरियलोयखेत्तलोए पां भंते! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा! असंखेजविहे पन्नत्ते, तंजहा-जंबुद्दीवे तिरियखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए / उड्ढलोगखेत्तलोग णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते , गोयमा ! पन्नरस विहे For Private and Personal Use Only