________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रजाप्तिः // 961 // ११शतके उद्देश:१० // 962 // |पन्नत्ते, संजहा-सोहम्मकप्पउडलोगखेत्तलोए जाव अच्चुयउडलोए गेवेजविमाणउडलोए अणुत्तरविमाण इसिं| पम्भारपुढविउडलोगखेत्तलोए / अहोलोगखेत्तलोए णं भंते। किंसंठिए पन्नत्ते', गोयमा! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते / (प्र०] राजगृह नगरमां (गौतम) यावद् आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! लोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! हा लोक चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-१ द्रव्यलोक, 2 क्षेत्रलोक, 3 काललोक अने 4 मावलोक. [H0] हे भगवन् ! क्षेत्र लोक केटला प्रकारनोरह्यो के ? [उ०] हे गौतम !त्रण प्रकारनो करो छे. ते आ प्रमाणे-१ अधोलोकक्षेत्रलोक, तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक अने 3 ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक. [प्र०] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो को छे ? [उ०] हे गौतम ! सात प्रकारनो कह्यो छे. ते आ प्रमाणे-१ रत्नप्रभापृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक, यावत् 7 अधःसप्तमपृथिवीअधोलोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् / तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कयो के ? [उ०] हे गौतम! असंख्य प्रकारको कह्यो छ, ते आ प्रमाणे-जंबुद्धीपतियग्लोकक्षेत्रलोक, यावत् स्वयंभूरमणसमुद्रतिर्यग्लोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक केटला प्रकारनो कह्यो छे ? (उ०] हे गौतम ! पंदर प्रकारनो कया छ, ते आ प्रमाणे-१ सौधर्मकल्पऊवलोकक्षेत्रलोक, यावद् 12 अच्युतकल्पऊलोकक्षेत्रलोक, 13 ग्रेवेयकविमानललोकक्षेत्रलोक, 14 अनुत्तरविमानऊलोकक्षेत्रलोक अने 15 ईषत्प्राग्भारपृथिव ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक. [प्र.] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छे ? [उ०] हे गौतम! अधोलोक त्रापाने आकारे के. तिरियलोयखेत्सलोए पं भंते! किंसंठिए पन्नत्त?, गोयमा! झल्लरिसंठिए पन्नत्ते / उड्ढलोयखेत्तलोयपुच्छा | उड्ढमुइंगाकारसंठिए पन्नत्ते / लोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते!, गोयमा! सुपट्टगसंठिए लोए पन्नत्ते, तंजहा KESAKACTECE % For Private and Personal Use Only