________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्याप्रज्ञप्तिः 962 // हेट्ठा विच्छिन्न मज्झे संखित्ते जहा मत्तममए पढमुद्देसए जाव अंतं करेंति / अलोए ण भंते ! किंसंठिए पन्नत्ते, गोयमा!झुसिरगोलसंठिए पन्नत्त / अहेलोगखेत्तलोए ण भंते ! किं जीवा जीवदेसाजीवपएसा एवं जहा इंदा 5 दिसा तहेव निरवसेस भाणि यवं जाव अद्धासमए / तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! किं जीवा ?, पवं चेच, एवं | उड्डलोयखेत्तलोएवि, नवरं अरूवी छब्धिहा, अद्धासमओ नत्थि।। | (प्र०] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छे ? [30] हे गौतम / ते झालरने आकार ले. [प्र०] हे भगवन् ! ऊचलोकक्षेत्रलोक केवा आकार छ / [उ.] हे गौतम! उभा मृदंगने आकारे छ. [प्र०] हे भगवन् ! लोक केवा आकारे संस्थित छे? [30] हे गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठकने आकारे संस्थित छे, ते आ प्रमाणे-"नीचे पहोळो, मध्यभागमा संक्षित-संकीर्ण"-इत्यादि सातमा शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे कहेवू. (ते लोकने उत्पन्न ज्ञान दर्शनने धारण करनारा केवलज्ञानी जाणे छे अने त्यार पछी सिद्ध थाय छे) यावद् 'सर्व दुःखोनो अन्त कर छे'. [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केवा आकारे कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! | अलोक पोला गोळाने आकार कह्यो छे. [प्र.] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक झुं जीवरूप छ, जीवदेशरूप छ, जीवप्रदेशरूप छे | इत्यादि / [30] हे गौतम ! जेम एन्द्री दिशा संबन्धे का छे ते प्रमाणे सर्व अहिं जाणवू. यावद् अद्धासमय (काल) रूप छे'. | [] हे भगवन् ! तिर्यग्लोक शु जीवरूप छे इत्यादि / [उ.] पूर्ववत् जाणवू. ए प्रमाण ऊचलोकक्षेत्रलोक संबन्धे पण जाणवू; परन्तु विशेष ए छे के ऊर्ध्वलोकमा अरूपी द्रव्य छ प्रकारे छे, कारण के त्या अद्धा समय नथी. लोए णे भंते ! किं जीवा जहा वितियसए अस्थिउद्देमए लोगागास, नवरं अरूवी सत्तवि जाव अहम्मस्थि-12 For Private and Personal Use Only