________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म्बाख्या-1 प्राप्ति // 993 // का ११शतके उद्देशार. // 16 // कायस्स पएसा नो आगासत्यिकाये आगासस्थिकायस्म देसे आगासस्थिकायस्सपएसा अद्धासमए सेस तं | चेव // अलोप ण भंते ! कि जीवा? एवं जहा अस्थिकायउद्देसए अलोयागासे तहेव निवसेस जाव अणंतभागुणे / / अहेलोगखेत्तलोगस्स ण भंते ! एगमि आगामपएसे किं जीवा जीवदेसाजीवप्पएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा?, गोपमा! नो जीवा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीवदेमावि अजीवपएसावि, जे जीवदेमा ते नियमा एगिदियदेमा 1 अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे 2 अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियाण य देसा 3 एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणिंदिसु जाव अहवा एगिदियदेमा य अणिदियाण य देसा य, जे जीवपएमा ते नियमा एगिदियपएसा 1 अहवा एगिदियपएमा य बंदियस्म पएमा 2 अहवा एगिदियपपसा य बेई दियाण य पएसा एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिंदिएसु, अणिदिएसु तियभंगो. जे अरूबी अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रूवी अजीवा य अरूवी अजीवा य, रूबी तहेव, जे अरूवी अजीवा ते पंचविहापण्णत्ता, तंजहा-नो धम्मस्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे 1 धम्मस्थिकायस्म पएसे 2 एवं अहम्मस्थिकायस्मवि 4 अद्धासमए 5 / / [प्र.] हे भगवन् ! लोक शुं जीव के इत्यादि ? [उ०] बीजा शतकना अस्तिउद्देशकमां लोकाकाशने विषे का छे ते प्रमाणे अहिं जाणवू. परन्तु विशेष एछे के अहिं अरूपी सात प्रकारे जाणवा, यावद् 4 'अधर्मास्तिकायना प्रदेशो, 5 नोआकाशास्तिकायरूप. आकाशास्तिकायनो देश, 6 आकाशास्तिकायना प्रदेशो अने 7 अद्धासमय. बाकी पूर्व कह्या प्रमणे जाणवू. [म०] हे भगवन् ! अलोक शुं जीव छे इत्यादि ? [उ.] जेम अस्तिकायउद्देशकमां अलोकाकाशने विषे कयुं छे ते प्रमाणे मधुं अहीं जाणवू, यावत् ते %ACCIRCLX For Private and Personal Use Only