________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir E(सर्वाकाशना) 'अनन्तमा भाग न्यून छे'. [प्र.] हे भगवन ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमां शु१जीबी २जीवना देशो 3 अजीवो, 4 अजीवोना देश अने 5 अजीवना प्रदेशोछे ? [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदशो,51 व्याख्याप्रजाप्तिः15 18 अजीबो, अजीवना देशो अने अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना देशो छे ते अवश्य 1 एकेन्द्रियजीवोना देशोछ 2 अथवा उद्देशन 1934 एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवनो देश छे, 3 अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. प प्रमाणे | // 964 // मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पो यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अन अनिन्द्रियोना देशो' छ, तथा त्यां जे जीवना प्रदशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छ, 1 अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय है जीवना प्रदेशो छ, अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदशो अने बेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय अने | अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण भांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीबो छे ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअ. हाजीव अने अरूपिअजीव. ते मां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाण जाणवा. अने जे अरूपिअजीवो छे ते पांच प्रकारना कह्या के. ते आ प्रमाणे-१६ नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, 2 धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे 4 अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू. अने 5 अद्धा समय, तिरियलोगखेत्तलोगस्स यां भंते ! एगंमि आगामपएसे किं जीवा, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, पवं उडलोगखत्तस्सवि. नवरं अद्धासमओ नस्थि, अरूवी चउब्विहा / लोगस्स जहा अहेलोगखत्तलोगस्म गमि आगामपएसे || अलोगस्म ण भंत! एगमि आगासपएसे पुच्छा, गोयमा! ना जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते मब्वागासस्स अणंतभागूणे // दबओणं अहेलोगवत्तलोग अणंताई जीव FRite* For Private and Personal Use Only