________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |११शतके व्याख्याप्रशतिः // 965 // ॐARKsh दव्वाई अणंताई अजीवदम्बाई अर्णता जीवाजीवदव्या एवं तिरियलोयखेत्तलोएवि, एवं उडलोयखेत्तलोएवि, दवओ णं अलोए णेवस्थि जीवदवा नेवत्थि अजीवदव्वा नेबत्थि जीवाजीवदव्वा एगे अजीवदव्वदेसे जाव सव्वागासअणतभागूणे / कालओण अहेलोयखेत्तलोए न कयाइ नासि जाव निचे एवं जाव अहोलोगे / भावओ उद्देश:१. णं अहेलोगखेत्तलोग अणंता बन्नपज्जया जहा खदए जाव अणंता अगुरुयलहुयपजवा एवं जाव लोग, भावओण| // 965 // अलोए नेवस्थि वनपजवा जाव नेवधि अगुफलहुयपजवा एगे अजीयदबदेस जाव अणतभागणे (सूत्रं 420) / [4] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमां शुं जीयो छे ? इत्यादि [30] जेम अधोलोकक्षेत्रलोकना संबन्धे, कहा तेम अहीं बधुं जाणवू. ए प्रमाणे ऊथ्यलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशने विषे पण जाणवं, परन्तु विशेष छे के, त्यां | अद्धासमय नथी, माटे अरूपी चार प्रकारना छ, लोकना एक आकश प्रदेशमा अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा जेमते कजु ले तेम जाण. [प.] हे भगवन् ! अलोकना एक आकाश प्रदेश संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! त्यां 'जीयो नथी, जीव देशो नथी'-इत्यादि पूर्वनी पठे (सू. 14) कहे,, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणोथी संयुक्त छे अने सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून के. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यर्थी अधोलोकक्षेत्रलोकमां अनन्त जीव द्रव्यो छे, अनंत अजीव द्रव्यो छे अने अनंत जीवाजीव द्रव्यो छे. ए प्रमाणे तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकमां तथा ऊर्चलोकक्षेत्रलोकमां पण जाणवू. द्रव्यथी अलोकमां जीव द्रव्यो नथी, अजीच द्रव्यो नथी अने जीवाजीवद्रव्यो नथी, पण एक अजीबद्रव्यनो देश, यावत् सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. कालथी अधोलोकक्षेत्रलोक कोइ दिवस न हृतो एम नथी, यावत् नित्य छे. ए प्रमणे यावत् अलोक जाणवो. भावधी अधोलोकक्षेत्रलोकमां 'अनंत वर्ण पर्यवो CHERRACRORIES 45HE For Private and Personal Use Only