________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्रज्ञप्तिः / // 939 // | रमा हे भगवन् ! शुं पलाशवृक्षना जीवो कृष्णलेश्यावाला, नीललेश्यावाळा के कापोतलेश्यावाळा होय 1 [उ०] हे गौतम ! ते कृष्ण लेश्यावाळा, नीललझ्यावाळा के कापोतलेश्यावाळा होय, ए प्रमाणे छब्बीश भांगा कहेवा. बाकी बधुं पूर्वनी पेठे जाणवू, है भगवन् / ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 411 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा श्रीजा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. ११शतके | उद्देशः४ // 939 / / उद्देशक 4. कुंभिए णं भंते ! जीवे एगपत्ता किं एगजीचे अणेगजीवे ?, एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणियब्वे, नवरं ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुतं उकोसेणं वासपहुत्तं, सेसं तं चेव / सेवं भते / सेवं भंतेत्ति / / (सू०४:२)॥११-४॥ [प्र०] हे भगवन् ! एक पांदडावाळो कुंभिकं [वनस्पतिविशेप झुं एक जीववालो होय के अनेकजीवाळो होय ? [उ.] हे गौतम! ए प्रमाणे पलाशोद्देशकमां कह्या प्रमाणे बधुं कहे, परन्तु विशेष ए छे के कुंभिकनी स्थिति (आयु) जघन्यथी अंतर्मुहूते, अने उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व-के वर्षथी नव वर्ष-सुधीनी होय छे. बाकी बधं पूर्व कया प्रमाणे जाण. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भग| वन् ! ते एमज छे. // 412 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना 11 मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal use only