________________ Shahawan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagersun Gyarmandie |2|११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः 940 // उद्देशक 5. नालिए णं भंते ! एगपत्ता किं एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं कुंभिउद्देसगवरावया निरवसेसा भाणियब्वा / सेव भंते ! सेवं भंते त्ति // (सूत्रं 413) / / 11- // [म.] हे भगवन् ! एकपादडावाळो नाडिक [वनस्पतिविशेष शृं एक जीववाळो छ के अनेकजीवयाळो छे' [उ] हे गौतम!11दशा-३ ||940 // कुंभिक उद्देशकनी [उ०४ सू० 1] वधी वक्तव्यता अहीं कहेवी. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज हे. // 413 / / भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना 11 मां शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 6 पउमे ण भंते ! एगपत्ता किं एगजीवे अणेगजीवे?, उप्पलुद्देसगवत्तब्वया निरवसेसा भाणियब्वा / सेव भंते! सेवं भंते! त्ति / / (सूच 414) // 11-6 // [प्र.] हे भगवन् एक पांदडावाळं पद्म शुं एक जीवबाळु होय के अनेक जीपचालु होय ? [उ.] हे गौतम ! उत्पल उद्देशकमां (उ०१०) कह्या प्रमाण पधुं कहे, हे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ते एमज छे. // 414 / / भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना 11 मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only