________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyarmandir उद्देशक 7. व्याख्याप्रज्ञप्तिः कन्निए णमंत! एगपत्तए किंगजीवे, पंचेच निरवसेसं भाणि यव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते / त्तिरशतक उद्देशः७८ // 942 // (सूत्र 415) 11-7 // | // 941 // 50] हे भगवन् ! एक पांदडावाळी कणिका शुं एक जीववाली छे के अनेक जीववाळी छ ? [उ०] हे गौतम ! बधु पूर्व | ताप्रमाणे कहे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 15 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 946 eHims hire % उद्देशक 8. नलिणे णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे!, एवं चेव निरवसेसं जाय अणंतक्खुत्तो / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति (सूत्रं 416) // 11-8 // [प्र०] हे भगवन् ! एकपत्रवाळु नलिन (कमलविशेष) शुं एकजीववाळु छ के अनेकजीववाळु छ ? [उ.] हे गौतम ! ए बधं पूर्व प्रमाणे (उ० 1 01) 'यावत सर्व जीवो अनंतबार उत्पन्न थया छ' त्यांसुधी कहे. हे भगवन् / ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. // 415 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. C % For Private and Personal Use Only