________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande 9 शतके उदेशा // 8717 वयासी-जनं देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खद जाव परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए तं चेव पाल्या- सव्वं जाव णिजरिजमाणे अणिजिन्ने / तए णं जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेप्राणस्स प्राप्ति अस्धेगइया समणा निग्गंथा एयम8 सद्दहं ति पत्तियति रोयति अत्थेगहया समणा निग्गंधा एयमर्दु णो सद्दहति Mo71 // हि, तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमटुं सद्दहति 3 ते णं जमालिं चेव अणगारं उब | संपज्जित्ताणं विहरंति, तत्थ णं जे ते समणा णिग्गंधा जमालिस्स अणगारस्स एयमझे णो सद्दति णो पत्तियंति ४ाणो रोयंति ते गं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओकोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति 2 पुब्याणुपुर्दिव चरमाणे गामाणुगाम दूह. जेणेव चपानयरी जेणेव पुन्नभद्दे चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद 2 त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति २त्ता बंदह णमंसद२ समर्ण भगवं महावीरं उपसंपज्जित्ता णं विहरति / / (सूत्रं 386) // / त्यार पछी ते श्रमण निर्ग्रन्थोए जमालि अनगारने एम कहु के-'देवानुप्रियने पाटे शय्यासंस्तारक को नथी, पण कराय छे'. | त्यार पछी ते जमालि अनगारने आ आवा प्रकारनो संकल्प उत्पन्न भयो के-"श्रमण भगवंत महावीर जे ए प्रमाणे कडे छे, यावत् प्ररूपे छे के, चालतुं होय ते चाल्यू कद्देवाय, उदीरात होय ते उदीरायुं कहेवाय, यावत् निर्जरातुं होय ते निर्जराघु कहेवाय, ते मिथ्या छे. कारण के आ प्रत्यक्ष देखाय छे के, शय्या संस्तारक करातो होय त्या सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्या सुधी ते पथरायो नथी जे कारणथी आ शय्या-संस्तारक करातो होय त्यां सुधी ते करायो नथी, पथरातो होय त्यां सुधी ते पथरायेलो नथी; ते For Private and Personal Use Only