________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति 872 // कारणथी चालतुं होय त्यां सुधी ते चलित नथी, पण अचलित छ; यावत् निर्जरातुं होय त्यां मुधी ते निर्जरायु नथी पण अनिर्जरित छ" ए प्रमाणे विचार करे छे. विचार करीने ते जमालि अनगार श्रमण निग्रंथोने बोलावे छे, बोलावीने तेणे आ प्रमाणे कयु-'हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवंत महावीर जे आ प्रमाणे कई छे, यावत् प्ररूपे छे के-खरेखर ए प्रमाणे "चालतुं ने चलित कहेवाय" उरेशा इत्यादि, पूर्ववत् सर्व कहे, यावत निर्जरातुं होय ते निजेरित नथी, पण अनिर्जरित छ.' ज्यारे जमालि अनगार ए प्रमाणे कहेता // 872 // हता, यावत प्ररूपणा करता हता, त्यारे केटलाएक श्रमण निर्ग्रन्थो ए वातने श्रद्धापूर्वक मानता हता, तेनी प्रतीति करता हता, रुचि करता हता; अने केटलाक श्रमण निग्रन्थो ए बात मानता न होता, तथा तेनी प्रतीति अने रुचि करता न होता. तेमां जे श्रमण | निग्रंथो ते जमालि अनगारना आ मन्तव्यनी श्रद्धा करता हता. प्रतीति करता हता अने रुचि करता हता तेओ ते जमालि अनगा| रने आश्रयी विहार करे छे. अने जे श्रमण निग्रंथो जमालि अनगारना ए मन्तव्यमां श्रद्धा करता न होता, प्रतीति करता न होता अने रुचि करता न होता तेओ जमालि अनगारनी पासेथी कोष्ठक चैत्य थकी बहार नीकळे छ, अने बहार नीकळीने अनुक्रमे विचरता, एक गामथी बीजे गाम विहार करता ज्यां चंपा नगरी छे, ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण 12 भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करे छे, करीने बांदे छ नमे छे, अने वांदी-नमीने श्रमण भगवंत महावीरनी निश्राए विहार करे छे. // 386 // तए णं से जमाली अणगारे अन्नया कयावि ताओ रोगायंकाओ विष्पमुक्के हढे तुढे जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्वमह२ पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेच C4 % 4% For Private and Personal Use Only