________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पाख्याप्रधति // 936 // K कया पदार्थनो आहार करे ? [उ.] हे गौतम ! ते जीवो द्रव्यथी अनन्तप्रदेशिक द्रव्योनो आहार करे, इत्यादि सर्व आहारक जद्देश| कमां वनस्पतिकायिकोनो आहार कयो छे ते प्रमाणे यावत 'तेओ सर्वात्मना-सर्व प्रदेशोए आहार करे छ,' त्यां सुधी कहे, परन्तु एटलो विशेष छे के तेओ अवश्य छए दिशीनो आहार करे छे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. | उमेश तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वासस ला॥९३६॥ हस्माई 30 तेसिणं भंते! जीवाणं कति समुग्घाया पण्णसा?, गोयमा ! तओ समुग्घाया पण्णत्ता, तंजहावेदणासमुग्घाए कसायस. मारणंतियस. 31 / ते ण भंते ! जीवा मारणंतियम मुग्धारण किं समोहया मरंति अममोहया मरंति !, गोयमा ! समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति 32 / ते ण भंते! जीवा अणंतरं उब्यद्वित्ता कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति किं नेरइएसु उववज्जति तिरिक्खजोणिएसु उवव० एवं जहा वकंतीए उव्वदृणाए | वणस्महकाइयाण तहा 'भाणियव्यं / अह भंते! सब्बपाणा सव्वभूया सध्यजीवा सब्यसत्ता उप्पलमलत्ताएx उप्पलकंदत्ताए उप्पलनालत्ताए उप्पलपत्तत्ताए उप्पलकेसरत्ताए उप्पलकन्नियत्ताए उपलथिभुगत्ताए उवचन-। पुवा ?, हंता गोयमा! अति अदुवा अणंतक्खुत्तो / सेवं भंते ! सेवं भंते / त्ति३३ / / ( सूत्र 401) // | उप्पलु हेसए // 11-1 // | [म.] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधी कही के ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी दस हजार वर्षनी स्थिति कही . [म.] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवोने केटला समुद्घातो कह्या छ ? [उ०] हे -4943 S. ST For Private and Personal Use Only