________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie | उद्देशः किया छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओने त्रण समुद्घातो कया के, ते आ प्रमाणे-बेदनासमुदघात, कपायसमुद्घात अने मारणांतिकस. व्याख्या-लामुद्घात. [प्र०] हे भगवन् ! ते [ उत्पलना] जीवो मारणांतिक समुद्घात बडे समवा ( समुद्घातने प्राप्त ) थइने मरे, के अस-13 प्रज्ञप्तिः |११शतके महत (समुद्घातने प्राप्त थया शिवाय) मरे ? [उ०] हे गौतम ! ते समवहत थइने पण मरे अने असमवहत थइने पण मरे // 937|| [[10] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो मरीने तरत क्या जाय?-क्यां उत्पन्न थाय ? शुं नैरथिकोमा उत्पन्न थाय, तिर्यचयोनीकोमां| // 937 // उत्पन्न थाय, मनुष्योमा उत्पन्न थाय के के देवोमां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! प्रजापना सूत्रना व्य-क्रांतिपदमा उद्वर्तना| प्रकरणमां वनस्पतिकायिकोने कह्या प्रमाणे अहीं पण कहे प्र०] हे भगवन् ! सर्व प्राणो भूतो, सर्व जीवो अने सर्व सच्चो उत्पलना | मूलपणे, कंदपणे, नालपणे, पांददापणे, केसरपणे, कणिकापणे अने थिभुग (पांदडार्नु उत्पत्ति स्थान ) पणे पूर्व उत्पन्न थया ? [उ.] हा, गौतम! जीवो अनेकवार अथवा अनन्तबार पूर्व उत्पन्न थया लेहे भगवन् ! ते एमज छे. हे भगवन् ! ने पमजले.॥४०९।। भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगतीसूचना 11 मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक 2. सालुए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे?, गोयमा! एगजीवे एवं उप्पलु देगसवत्तव्यया अपरिसेसा भाणियब्बा जाब अणं तखुत्तो, नवरं सरीरोगाणा जहन्नणं अंगुलम्स असंखेजहभागं उकोसेणं धणुपुहुत्तं, 18 सेसं तं चेव / सेवं मंते ! सेवं भंतेत्ति / / (सूत्र 41.)11-2 // For Private and Personal Use Only