________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या 118 // तंजहा-रोहिणी नवमिया हिरी पुप्फवती, तत्थ णं एगमेगा, सेसं तं चेव, एवं महापुरिसस्सवि / अतिकायस्स णं पुच्छा, अजो! चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता, तंजहा-भुयंगा भुयंगवती महाकच्छा फुडा, तत्थ णं, सेसं तं चेच, एवं महाकायस्सवि | गीयरहस्म णं भंते! पुच्छा, अजो चत्तारि अग्गमहिसी पन्नत्ता,तंजहा-सुघोसा विमला IIतक सुस्मरा सरस्सई, तत्थ पं०, सेस तं चेव, एवं गीयजसस्सवि, सव्वेसिं एएसिं जहा कालस्स, नवरं मरिस-1 उरेशान नामियाओ रायहाणीओ सीहामणाणि य, सेसं ते चेव / 11CH प्र०] हे भगवन् ! किंनरेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही के ? [उ.] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे| अवतंसा, केतुमती, रतिसेना अने रतिप्रिया. तेओनां एक एकनो परिवार बमेरे पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे किंपुरुषेन्द्र संबंधे| पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! सत्पुरुपेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही छे 1 [उ०] हे आर्य / तेने चार पट्टराणीओ कही छे. ते आ| प्रमाणे रोहिणी, नवमिका, ही अने पुष्पवती. तेमां एक एकनो परिवार वगेरे बर्षा पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महापुरुपेन्द्र संबन्धे | पण जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! अतिकायेन्द्रने केटली पट्टराणीओ कही ? [उ०] हे आयें। तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-भुजंगा, भुजगवती, महाकच्छा अने स्फुटा. तेमा एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणवु. ए प्रमाणे महाकायेन्द्र संबन्धे पण जाणवू, [म.] हे भगवान् ! गीतरतीन्द्रने केटली पट्टराणीओ होय छे ? [10] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ होय छे. ते आ प्रमाणे-सुघोषा, विमला. सुस्वरा अने सरस्वती. तेमा एक एकनो परिवार वगेरे बधु पूर्वनी पेठे जाणवू, ए प्रमाणे | गीतयश इन्द्र संबन्धे पण समजबु, आ सर्व इन्द्रोने बाकीनुं सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू परन्तु विशेष ए छे के, राजधानीओ अने 1404 For Private and Personal Use Only