________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir ११शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः // 944 // उद्देश:९ // 944 // Sansar दिसापोक्बियतावसत्ताए पचहत्ता, पब्बहावि यणं ममाणे अयमेधारूवं अभिग्गह अभिगिहिस्सामि-कप्पइ मे जावजीवा छटुंछट्टेणं अनिक्वित्तेणं दिमाचकवालेणं तवोकम्मेण उड्डे बाहाओ पगिज्झिय 2 जाव विहरितएत्तिकद्द, एवं संपेहेनि / / ___हवे कोई एक दिवसे शिवराजाने पूर्वरात्रिना पाइला भागमा राज्यकारभारनो विचार करता आ आयो अध्यवसाय-संकल्प | उत्पन्न थयो के मारा पूर्व पुण्यकर्मोनो प्रभाव छे, इत्यादि तामलि तापमनी पेठे कहे, जे पावन ई पुत्रोवडे, पशुओवडे, राज्यबडे, राष्ट्र पर | वढे बलबडे, वाहनवडे, कोशवडे कोष्ठागारवडे, पुरवडे अने अन्तःपुरवडे वृद्धि पा, छ. बळी पुष्फळ धन, कनक, रब याचन सारभूत द्रव्यवडे अतिशय अत्यंत वृद्धि पाएं छु तो अ॒ हवे हुं मारा पूर्व पुण्यकर्मोना फलरूप एकान्त मुखने भोगवतो ज विहाँ ? ते माटे ज्यांसुधी हु हिरण्यथी वृद्धि पामु छु, यावत् पूर्वे कन्या प्रमाणे वृद्धि पामुं हुं ज्यांसुधी सामंत राजाओ मारे तावे छे, त्यांसुधी मारे काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान थये छते घणी लोढीओ, लोहना कडाया कडछा अने त्रांबाना बीना तापमना उपकरणोने घडावीने शिवभद्र कुमारने राज्यमा स्थापीने घणी लोढीओ, लोहना कडायां, कडछा अने त्रांचाना तापसना उपकरणो लइने, जे आ गंगाने कांठे वानप्रस्थ तापसो रहे छे, ते आ प्रकारे-अग्निहोत्री, पोतिक-वख धारण करनारा-इत्यादि'उबवाह सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावतजेओ काष्ठधी शरीरने तपावता विचरे छे, ते तापसोमां जे तापसो दिशाप्रोक्षक (पाणी वडे दिशाने पूजी फल पुष्पादि ग्रहण करनारा) छे, तेओनी पासे मारे मुंड थइने दिक्प्रोक्षकतापसपणे प्रव्रज्या अंगीकार करवी श्रेय छे, प्रव्रज्या ग्रहण करीने हु आ आवा प्रका रनो अभिग्रह ग्रहण करीश. ते आ प्रकारे-यावजीव निरंतर छ? छट्ट करवायी दिक्चक्रवाल तपकर्म बडे उंचा हाथ राखीने रहे मने कल्पे-ए प्रमाणे ते शिवराजा विचारे छे. For Private and Personal Use Only