________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः // 978 // |११५तके उदेशर // 978 // ROCESS | काल ए केटला प्रकारे छे ? [उ.] अद्धाकाल अनेक प्रकारनो कयो छे; समयरूपे, आवलिकारूपे, अने यावद् उत्सार्पणीरूपे. हे मुदर्शन ! कालना वे भाग करवा छतां ज्यारे तेना बे भाग न ज थइ शके ते काल समयरूपे समय कहेवाय छे. असंख्येय समयोनो समुदाय मळवाथी एक आवलिका थाय छे. संख्यात आवलिकानो (एक उच्छ्वास) थाय छे-इत्यादि बधु शालि उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावत् सागरोपमना प्रमाण सुधी जाणवू. [प्र०) हे भगवन् ! ए पल्योपम अने सागरोपमरूपर्नु सु प्रयोजन छ ? [उ०] हे हा सुदर्शन! ए पल्मोपम अने सागरोपम बडे नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य तथा देवानां आयुषोनु माप करवामां आवे छे.॥४२६॥ नेरइयाणं भंते! केवयं कालं ठिई पन्नत्ता, एवं ठिहपदं निरवसेम भाणियव्वं जाव अजहन्नमणुकोसेणं | तेत्तीसं सागरोबमाई ठिती पन्नत्ता / / (सूत्रं 424) / [प्र.] हे भगवन् ! नरयिकोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधीनी कहीं ! [उ०] अहीं संपूर्ण स्थितिपद कहे, याचद् (पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध देवोनी) उत्कृष्ट नहि अने जघन्य नहि एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही हे त्यां मुधी जाणवू. // 427 // __ अस्थि णं भंते ! गएसिं पलिओवमसागरोचमाणं खएति वा अवचयेति वा ?, हता अस्थि, से केणटेणं | भंते ! एवं बुच्चइ अस्थि ण एएसि णे पलिओवममागरोवमाण जाव अवचयेति वा ? / एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणागपुरे नाम नगरे होत्था वन्नओ, सहसंबवणे उजाणे वन्नओ, तत्थ णं हथिणागपुरे नगरे बले नाम राया होत्या वन्नओ, तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नाम देवी होत्था सुकुमाल बन्नओ जाव विहरइ / तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाई तसि तारिसगसि वासघरंमि अभितरओ सचित्तकम्मे बाहि CAC4%C4 For Private and Personal Use Only