________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra wwwkobarth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie हा११शतके उद्देशान 10.7 // विद्धावित्ता जाव एवं वयासी-भण जाया!कि देमो किं पयच्छामो सेसं जहा जमालिस्स तहेव जाव तएण से महन्धले हैं म्याख्या अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतियं सामाइयमाझ्याइं चोइस पुब्वाई अहिज्जति अ० 2 बहूहिं चउत्थजाव। प्रवतिः विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि पुन्नाई दुवालस वासाई सामन्नपरियागं पाउणति यहु० मामि॥१००७॥ याए सलेहणाए सहि भत्ताई अणसणाए आलोइयपडिकते ममाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्दं चंदिमसुरिय जहा अम्मडो जाव बंभलोए कप्पे देवताए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगतियाण देवाण दस सागरोवमाई ठिती पहा पणत्ता, तत्थ णं महबलस्सवि दस सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता, से णं तुम सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागदारोवमाई दिब्वाइं भोगभोगाइं मुंजमाणे विहरित्ता ताओ चेव देवलोगाओ आउखएण 3 अणंतरं चयं चइत्ता| हेव वाणियगाम नगरे सेहिकुलं सिपुत्तत्ताए पञ्चायाए // (सूत्र 431 ) // | 'हे पुत्र ! एक दिवस पण तारी राज्यलक्ष्मीने जोवा अमे इच्छीए छीए,' त्यारे ते महाबल कुमार मातापिताना वचनने अनु। सरीने चूप रह्यो. पछी ते बल राजाए कौटुंबिक पुरुषोने बोलान्या -इत्यादि शिवभद्रनी पेठे राज्याभिषेक जाणवो, यावत् राज्या- | मिषेक कयों, अने हाथ जोडीने महावल कुमारने जय अने विजयवडे वधावी यावद् आ प्रमाणे कg-हे पुत्र ! कहे के तने झुं दहए, तने शुं आपीए,' इत्यादि बाकीनुं वधुं जमालिनी पेठे जाण; यावत् त्यार पछी ते महाबल अनगार धर्मघोष अनगारनी पासे सामायिकादि चउद पूर्वोने भणे छ, भणीने घणा चतुर्थ भक्त, यावद् विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावित करीने संपूर्ण बार वर्ष | श्रमण पर्यायने पाळे छे, पाळीने मासिक संलेखनावडे निराहारपणे साठ भक्तोने बीतावी, आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने * For Private and Personal Use Only