________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir प्रातिः 11881 // लांतककल्पमा यावद् उत्पन्न थयो. // 389 // जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउखएणं जाव कहिं उववन्जिहिइ ?, गोयमा! चत्तारि पंच 9 शतके |तिरिक्खजोणिगमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियहित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति जाव अंतं काहेति / उमेश सेवं भंते सेवं भंते ! त्ति // (सू० 390) // जमाली समत्तो॥९॥ 33 // / / 881 // है। [प्र०] हे भगवान् ! ते जमालि नामे देव देवपणाथी, देवलोकथी, पोताना आयुषनो क्षय थया चाद यावत् क्या उत्पन्न थशे ? काउ.] हे गौतम ! तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, अने देवना चार पांच भवो करी-एटलो संसार भमी-त्यार पछी ते सिद्ध थशे, यावत सर्वत्र दुःखोनो नाश करशे. हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमजले. (एम कही भगवंत गौतम ! यावत् विहरे छे.) // 390 // भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ९मा शतकमा ६ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. KAMANAKACHARACA उद्देशक 7 तेणं कालेणं तेणं समा रायगिहे जाव एवं वयासी-पुरिसे ण भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिस हणइ नो पुरिसं हणइ?, गोयमा ! पुरिसंपि हणइ नोपुरिसेवि हणति, सेकेणद्वेणं भंते ! एवं बुच पुरिमपि हणइ नोपुरिसेवि हणह, गोयमा ! तस्स णं एवं-भवइ एवं खलु अहं एग पुरिसं हणामि, से गां एगं पुरिस हणमाणे अणेगाटू जीवा हणइ, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुचड़ पुरिमपि हणइ नोपुरिसेवि हणति / पुरिसे ण भंते ! आसं हणमाणे For Private and Personal Use Only