________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir ११शतके HA+% वयासी-एवं खलु वेवाणुप्पिया! पभावती पियट्टयाए पियं निवेदेंमो पियं भे भवउ / तए णं से बले राया || | अंगपडियारियाणं अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्ठ जाव धारायणीव जावरोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं / / मउडवलं जहामालियं ओमोय दलयति सेतं रययामयं विमलसलिलपुन्न भिंगारं च गिण्हइ गिणिहत्ता मत्थए उद्देशान धोवइ मत्थए धोवित्ता विउलं जीवियारिहंदलयति पीइदाणं पीइदाणं दयित्ता मक्कारेति सम्माणे ति ॥(सूत्र 428) / // 995 // त्यार बाद ते प्रभावती देवीनी सेवा करनार दासीओए तेने प्रसव थयेलो जाणी ज्यां चल राजा छे त्यां आबी हाथ जोडी यावत् बल राजाने जय अने विजयथी वधावीने आ प्रमाणे को-'हे देवानुप्रिया ए प्रमाणे खरेखर प्रभावती देवीनी प्रीति माटे| आ (पुत्रजन्मरूप) प्रिय निवेदन करीए छीए, अने ते आपने प्रिय थाओ.' त्यार बाद ते बल राजा शरीरनी शुश्रूषा करनार दासीओ पसेथी ए वात सांभळी अवधारीने हर्षित अने संतुष्ट थइ यावद् मेघनी धाराथी सिंचायला कवकना पुष्पनी पेठे यावद् रोमांचित थइ ते अंगरक्षिका दासीओने मुकुट सिवाय पहेरेल सर्व अलंकार आपे के. आपीने ते राजा श्वेत रजतमय अने निर्मल पाणीथी भरेला कलशने लइ ते दासीओना मस्तक धुए छ, मस्तकने धोइने तेओने जीविकाने उचित घणुं प्रीतिदान आपी सत्कार अने सन्मान करी विसर्जित करे छे.॥४२८॥ तएणं से बले राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेह महावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हत्थि४ाणापुरे नयरे चारगसोहण करेह चारग. 2 माणुम्माणबढणं करेह मा 2 हथिणापुर नगरं सम्भितरबाहिरियं | आसियसंमजिओवलितं जाव करेह कारवेह करेत्ता य कारवेत्ता य यसहस्सं वा चकसहस्सं वा पूपामहामहि-II ANCHORRORSHAN For Private and Personal Use Only