________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * |१०शतके // 9.3 // FOcte भंते! एवं बुचह चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररणो तायत्तीसगा देवा 21, एवं खलु सामहत्थी! तेणं व्याख्या कालेण तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे 2 भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था बन्नओ, तत्थ णं कायंप्रति | दीए नयरीए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा परिवसन्ति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा|| उरेशान उबलद्धपुण्णपाचा जाव विहरंति तए णं ते तायत्तीस सहाया गाहावई समणोवासया पुयि उग्गा उग्गविहारी 31 // 903 // KIसंविग्गा मंविग्गविहारी भवित्ता तओ पच्छा पासस्थविहारी ओसन्ना ओसनविहारी कुसीला कुसीलविहारी अहा छंदा अहाछंदविहारी बहई बासाई समणोवासगपरियागं पाउणंति 2 अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूमैति अत्ताणं झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणमणाए छेदेति 2 तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकना कालमासे कालं किच्चा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तायत्तीसगदेवत्ताए उववन्ना, [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इन्द्र चमरने त्रायविंशक देवो छ ? [उ०] हा, चमरेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के असुरकुमारना इंद्र चमरने त्रायस्त्रिंशक देवो के ? [उ०] हे श्यामहस्ती! ते वायखिशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबूद्वीपमां, भारतवर्षमा काकंदी नामे नगरी हती, वर्णन. ते काकंदी नगरीमा परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ रहेता हता, जेओ धनिक, यावत् अपरिभूत (जेनो पराभव न थइ शके एवा समर्थ) हता, जीवाजीक्ने जाणनारा, अने पुण्य पापना ज्ञाता तेओ यावद् विहरे छे. त्यारपछी ते परस्पर सहाय करनारा 6 तेत्रीश श्रमणोपासक गृहपतिओ पूर्व उग्र, उपविहारी (उग्रचर्यावाळा) संविग्न अने संविमविहारी इता, पण पाछळी पासस्था, पास *SHAHN5 For Private and Personal Use Only