________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गतिरागतिं कजइ ?, मोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गणाई उक्कोसेणं अणंताई भवग्गहणाई, कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता उकोसेणं अणंतं कालं-रुकालं, पवयं कालं सेवेजा एवइयं कालं गतिरागतिं कजइ, भ्याख्या प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव उत्पलपणे कालथी क्यांसुधी रहे ! [उ.] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त सुधी अने प्रश्नतिः | उद्देशन उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव पृथिवीकायिकमां आवे, अने फरीथी पाछो उत्पलमां // 13 // 934 // माआवे-ए प्रमाणे केटलो काळ सेवे-केटला काळ सुधी गमनागमन करे ? [उ०] हे गौल्म! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव अने, त उत्कृष्टथी असंख्यात भव सुधी गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्महत, अने उत्कृष्ट थी असंख्यकालः पटलो काल| सेवे-लेटलो काल गमनागमन करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव अप्कायिकपणे उपजे अने फरीथी ते पाछो उत्पलमां]k आव. ए प्रमाणे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] पूर्व प्रमाणे जाणवू. जेम पृथिवीना जीव संबन्धे (सू० 3) कयुतेम यावत् वायुना जीव सुधी कहे. [प्र.] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव वनस्पतिमा आवे, अने ते फरीथी उत्पलमा आवे ए प्रमाणे केटलो काल सेवे-केटलो काल गमनागमन करे ? [उ०] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी वे भव, अने उत्कृष्टथी अनंत भव सुधी | गमनागमन करे, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी अनंत काल-वनस्पतिकाल पर्यन्त; एटलो काळ सेवेएटलो काल गमनागमन करे. से गं भंते ! उप्पलजीवे बेइंदियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवइयं कालं सेवेला केवइयं कालं गतिरा-18 13गति कन्जद, गोयमा! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवन्गणाई उकासेणं संखेजाई भवग्गहणाई, कालादेसणं जह-17 For Private and Personal Use Only