________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्या 9 शतके उद्देशा // 850 // 850 // उपसर्गोने सहबाने तुं समर्थ नथी. माटे हे पुत्र ! अमे तारो वियोग एक क्षण पण इच्छता नथी; तेथी ज्यांसुधी अमे जीविए त्यांसुधी तुं रहे अने अमारा कालगत थया पछी यावत् तुं दीक्षा लेजे'. / तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी-तहाविणं तं अम्मताओ! जन्नं तुझे मम एवं चयह-एवं खलु जाया ! निग्गंथे पाययणे सच्चे अणुत्तरे केवले तं चेव जाव पब्बडहिसि, एवं खलु 4 अम्मताओ! निग्गंधे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाण इहलोगपडियदाण परलोगपरंमुहाण विसयति सियाणं दुरणुचरे पागयजणस्स, धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्यं किंचिवि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुझेहिं अभणुनाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए / तए ण जमालिं वत्तियकुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहहि य आ. घवणाहि य पन्नवणाहि य 4 आघवेत्तए वा जाव विन्नवेत्तए वा ताहे अकामए चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमन्नित्था // (सूत्रं 384) // / त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता ! तमे मने जे ए प्रमाणे कधु के-हे पुत्र ! निग्रंथप्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वीतीय ने-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं दीक्षा लेजे. ते ठीक छे, पण हे माता-पिता ! ए प्रमाणे खरेखर निर्ग्रन्थ प्रवचन क्लीव-मन्दशक्तिवाळा, कायर अने हलका पुरुषोने, तथा आ लोकमां | आसक्त, परलोकथी पराङ्मुख एवा विषयनी कृष्णाबाळा सामान्य पुरुषोने (तेनुं अनुपालन) दुष्कर के पण धीर, निश्चित अने प्रय -C444 4 + For Private and Personal Use Only