________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उरेका प्राप्ति // 1070 // // 17 KIME निष्पत्तिकाळ छे, तेनाथी आनप्राणपुद्गळनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छ, तेनाथी मनःपुद्गलपरिवर्तनो निप्पत्तिकाल अनन्तगुण छे, तेनाथी वचनपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ अनन्तगुण छे, अने तेनाथी वैक्रियपुद्गलपरिवर्तनो निष्पचिकाळ अनन्तगुण छे. // 447 // एएसि णं भंते! ओसलियपोग्गलपरियट्टाणं जाव आणापाणुपोग्गलपरियाण य कयरे 2 हिंतो जाव विसेसाहिया बा?, गोयमा सव्वत्थमेवा वेउब्वियपो० वइपो० परि० अणंतगुणा मणपोग्गलप. अणत आणापाणुपोग्गल. अनंतगुणा ओरालियपो. अणंतगुणा तेयापो. अणंत कम्मपोग्गल. अणतगुणा / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति भगवं जाव विहराइ ( सूत्र 448) // 12-4 // 1 [प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिकपुद्गलपरिवर्त, यावद्-आनप्राणपुद्गलपरिवर्त-एओमां परस्पर कया पुद्गलपरिवर्त कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे! [उ.] हे गौतम ! सौथी थोडा वैक्रियपुद्गलपरिवतों छे, तेनाथी अनन्तगुणा बचनपुद्गलपरिवों छे, तेनाथी अनन्तगुणा मनःपुद्गलपरिवों छे, तेनाथी अनन्तगुणा आनप्राणपुद्गलपरिवर्तो छ, तेनाथी अनन्तगुण औदारिकपुद्गलपरिवर्तो छ, तेनाथी अनन्तगुणा तेजसपुद्गलपरिवों छे, अने तेनाथी अनन्तगुण कार्मणपुद्गलपरिवर्तो छे. 'हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छ, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे'-एम कही यावद्-भगवान् गौतम विहरे छे. // 448 / / भगवन सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना 12 मां शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only