________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रतिः // 1.11 // *११शतके उद्देशा१२ 3 // 1011 // | वार्तालाप थयो-'हेआर्य! देवलोकमां देवोनी केटला काल सुधी स्थिति कहीं छे? त्यार बाद देवस्थिति संबन्धे सत्य हकीकत जाणनार | ऋषिभद्रपुत्रे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे ह्यु-'हे आर्य! देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी कही छे, त्यार पछी एकसमय अधिक, बे समय अधिक यावद् दश समय अधिक, संख्यात समयाधिक, अने असंख्य समयाधिक करतां उत्कृष्ट तेत्रीश सामरोपमनी स्थिति कही छे. त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय के ( अर्थात् तेनाथी उपरनी स्थितिना देवो अने देवलोको नथी.) त्यार पछी ए प्रमाणे कहेता, यावत् एम प्ररूपणा करता ते श्रमणोपासको ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकना आ अर्थनी श्रद्धा करता नथी, प्रतीति करता नथी अने रुचि करता नथी. ए अर्थनी श्रद्धा, प्रतीति अने रुचि नहि करता तेओ जे दिशाथी | आव्या हृता तेज दिशा तरफ पाछा गया. // 433 // तेणं कालेणं 2 समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ / तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्टतुट्ठा एवं जहा तुगिउद्देसए जाव पज्जुवासंति / तए गं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महति धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ / तए णं ते समणो. वासयासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा निसम्म हट्टतुट्ठा उट्टाए उद्देइ उ०२ समणं भगवं महावीरं बंदन्ति नममन्ति 2 एवं बदासी-एवं खलु भंते ! इसिभद्दपुत्त समणोवासए अम्हं एवं आइक्खह जाव परूवेइ-देवलोएणं अज्जो देवाणं दस वाससहस्साई जहन्नेणं ठिती पन्नत्ता तेण परं समयाहिया जाव तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, से कहमेयं भंते ! एवं ?, अजोत्ति समणे भगवं महाचीरे ते समणोवासए एवं For Private and Personal Use Only