________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie व्याख्या- // 46 // HTRA बहारना देशोमा विहार करवाने इच्छु छु.' त्यारे श्रमण मगवान् महावीरे जमालि अनगारनी आ वातनो आदर न कयों, स्वीकार | न कों, परन्तु मौन रखा. त्यार पछी ते जमालि अनगारे श्रमण भगवंत महावीरने बीजी वार, बीजी बार पण एप्रमाणे कछु के-है।०९बके | भगवान् ! तमारी अनुमतिथी हुं पांचसो साधु साथे यावत् विहार करवाने इच्छु छु.' पछी श्रमण भगवान् महावीरे जमालि अन उशा गारनी आवातनो बीजी वार, श्रीजी चार पण आदर न कर्यो, यावत् मौन रह्या. त्यारबाद जमालि अनगार श्रमण भगवंत महावीरने III<a वांदे , नमे छे. वांदीने-नमीने श्रमण भगवंत महावीर पासेथी अने बहुशाल नामे चैत्यथी नीकळे छे, नीकळीने पांचसो साधुओनी साथे बहारना देशोमां विहार करे छे. तेणं कालेणं लेणं समएणं सावत्थीनाम णधरी होत्था वन्नओ, कोट्ठए चेइए चन्नओ, जाव वणसंडस्स, तेण: कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था बनओ पुन्नभद्दे चेहए बन्नओ, जाव पुढविशिलाबद्दओ। तए ण से | जमाली अणगारे अन्नया कयाइ पंचहि अणगारसरहिं सद्धिं संपरिबुडे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामंदृहज्जमाणे जेणेवसावत्थी नरीय जेणेव कोट्टए चेहए तेणेव उबागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हति अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरह।तरण समणे भगवं महावीरे अन्नया कपावि पुष्वाणुपुचि चरमाणे जाव सुहं सुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपानगरी जेणेव पुनभद्दे चेहए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हति अहा०२ संजमेणं वसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ / / ते काले अने ते समये श्रावस्ती नामे नगरी हती. वर्णन. त्यां कोष्ठक नामे चैत्य हतुं. वर्णन यावत् वनखंड मुधी जाण, ते 8 For Private and Personal use only