Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबंगसुत्ताणि [खण्ड..] ओवाइयं * रायपसेणियं जीवाजीवाभिगमे वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक युवाचार्य महाप्रज्ञ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में निम्गथं पावयणं उवंगसुत्ताणि (खण्ड १) ओवाइयं • रायपसेणियं • जीवाजीवाभिगमे याचना प्रमुख : आचार्य तुलसी संपादक: युवाचार्य महाप्रज्ञ प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, आर्थिक सहयोग : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम सम्बत् २०४४ (दीपावली) ई० १९८७ पृष्ठांक :८०० मूल्य ४००/ मुद्रक : मित्र परिषद् कलकत्ता के आर्थिक सौजन्य से स्थापित जैन विश्व भारती प्रेस, लाडनूं (राजस्थान) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ On the occasion of Acārya Tulsi Amrit Mahotsava Year Niggantbam Parayanan UVANGA SUTTANI IV (PART 1) OVĀIYAM, RĀYAPASEŅIYAM . JĪVĀJIVÄBHIGAME (Original Text Critically Edited) Vācana-pramukha : ĀCĀRYA TULSI Editor YUVĀCĀRYA MAHĀPRAJNA Publisher : JAIN VISHVA BHARATI LADNUN (RAJASTHAN) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Publisher : JAIN VISHYA BHARATI Ladnun-341 306 Managing Editor : Shrichand Rampuria, By Munificence : Shri Ramlal Hansraj Golchha Viratnagar (Nepal) Year of Publication: Vikram Samvat 2044 (Dipāvali 1987 A.D. Pages : 800 Price i 400/ Printers JAIN VISHYA BHARATI PRESS, [Established through the financial co-operation of Mitra Parishad, Calcutta) Ladnup (Rajasthan) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोधपूर्णसम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे। संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ । मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया। अत: मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है: संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ पाठ-संशोधन सहयोगी : मुनि सुदर्शन " मुनि मधुकर " मुनि हीरालाल शब्दकोश : संविभाग हमारा धर्म है। जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूं कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । प्राचार्य तुलसी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदवख ते, प्राणा- पहानो जणि जस्त निच्चं । सच्चपनोगे पवरासयस्स, भिक्खुल्स तस्स पणिहाणपुरुवं ॥ विलोडियं arregद्धमेव, लक्षं सुलद्ध वणीयमच्छं । सज्झाय-सज्माण रयस्स निच्छं, जयस्स तस्स पणिहाण पुष्वं ॥ पवाहिया जेण सुयस्त धारा, गणे समस्ये मम माणसे वि । जो हेउभूम्रो स्स पत्रायणस्स, कालुस्स तस्स पणिहाणपुरुषं ॥ समर्पण जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम प्रधान था । सत्य योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । पाया जिसने आगम-दोहन कर कर, प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रत सद्ध्यान लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से । जिसने श्रुत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय आगम संपादन एवं प्रकाशन की योजना इस प्रकार है१. आगम-मुत्त ग्रंथमाला.. -मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुती करण। २. आगम अनुसंधान ग्रन्थमाला---मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला --आगमो के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४, आगम-कथा ग्रन्थमाला--आगमों से संबंधित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला -आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । ६. आगमों के केवल हिंदी अनुवाद के संस्करण । प्रथम आगम-सुत्त ग्रन्थमाला । निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि (२) आयरो तह आयारचूला (३) निसीहज्झयणं (४) उववाइयं (२) समवाओ (६) अंगसुत्ताणि (खं० १)-इसमें आचाराग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग-ये चार अंग समाहित हैं। (७) अंगसुत्ताणि (खं० २)--इसमें पंचम अंग भगवती प्रकाशित है। (८) अंगसुत्ताणि (खं०३).--इसमें ज्ञाताधर्मकया, उपासकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपा तक. दशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। (8) नवसुत्ताणि (ख० ५)---इसमें आवस्सयं, दसवेआलियं' उत्तरज्झयणाणि, नंदी, ___ अणुओगदाराई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहज्झयण-ये नौ आगम ग्रन्थ हैं। उक्त में से प्रथम पांच ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हए हैं एवं अंतिम चार अन्य जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं। द्वितीय आगम अनुसंधान ग्रन्यमाला में निम्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं 1) दसवेवालियं Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और २) (३) ठाणं (४) समवाओ (५) सूयगडो (भाग १ और भाग २) उक्त में से प्रथम दो ग्रन्थ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुए हैं और अंतिम तीन ग्रन्थ जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुए हैं। दसवेआलियं का द्वितीय संस्करण भी जन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा प्रकाशित हुया है। तीसरी आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला में निम्न दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन । (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । चौथी आगम-कथा ग्रन्यमाला में अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हो पाया है। पांचवीं वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला में दो ग्रन्थ निकल चुके हैं(१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० १) (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्मप्रज्ञप्ति खं० २) छठी ग्रन्थमाला में केवल आगम हिंदी अनुवाद ग्रन्थमाला के संस्करण के रूप में एक 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' अन्य का प्रकाशन हुआ है। उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन (मूल पाठ मात्र) गुटकों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं। प्रस्तुत प्रकाशन उवंगसुत्ताणि, खंड १ मे (१) ओवाइयं (२) रायपसेणियं और (३) जीवाजीवाभिगमे--..इन तीन उपांग आगमों का पाठान्तर सहित मूलपाठ मुद्रित है। साथ ही साथ इन तीनों उपांगों की संयुक्त शब्दसूची भी अन्त में संलग्न कर दी गई है। भूमिका में इन ग्रन्थों का संक्षेप में परिचय प्राप्त है, अत: यहां इस विषय पर प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। आगम प्रकाशन कार्य की योजना में निम्न महानुभावों का सहयोग रहा(१) सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदालालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगो)। (२) रामलालजी हंसराजजी गोलछा, विराटनगर । (३) स्व. जयचंदलालजी गोठी, सरदारशहर । (४) रामपुरिया चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकत्ता। (५) बेगराज भंवरलाल चोरडिया चेरिटेबल ट्रस्ट । इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हुआ है । इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। यह ग्रन्थ जैन विश्व भारती के निजी मुद्रमालय में मुद्रित होकर प्रकाशित हो रहा है । मुद्रणालय के स्थापन में मित्र-परिषद्, कलकता के आर्थिक सहयोग का सौजन्य रहा, जिसके लिए उक्त Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्था को अनेक धन्यवाद । यह ग्रन्थ आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित हो रहा है । आगम-संपादन के विविध आयामों के वाचना- प्रमुख हैं आचार्यश्री तुलसी और प्रधान संपादक तथा विवेक हैं युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी । इस कार्य में अनेक साधु-साध्वी सहयोगी रहे हैं। ገ इस तरह अथक परिश्रम के द्वारा प्रस्तुत इस ग्रन्थ के प्रकाशन का सुयोग पाकर जैन विश्व भारती अत्यंत कृतज्ञ है । जैन विश्व भारती १६-११-८७ लाडनूं ( राज० ) श्रीचंद रामपुरिया कुलपति Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रस्तुत पुस्तक में तीन ग्रन्थ हैं--ओवाइयं, रायपमेणियं और जीवाजीवाभिगमे । प्रोवाइयं औपपातिकका पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। यह सूत्र वर्णनकोश है। इसलिए अन्य आगमों में स्थान-स्थान पर 'जहा ओववाइए' इस प्रकार का समर्पण-वचन मिलता है। उन आगमों के व्याख्याकारों द्वारा अपने व्याख्या-ग्रन्थों में अवतरित पाठ तथा कहीं-कही समर्पण-सूत्रों के पाठ औपपातिक के स्वीकृत पाठ में नहीं मिलते हैं। वे पाठ वाचनान्तर में प्राप्त हैं। समर्पण-वचन पढ़ने वालों के लिए यह एक समस्या बन जाती है। प्रस्तुत आगम का पाठ आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर ही नहीं, किन्तु अन्य आगमों व व्याख्या-ग्रन्थों में प्राप्त अवतरणों व समर्पणों के आधार पर भी निर्धारित होना चाहिए था। किन्त समग्र अवतरणों व समर्पणों का संकलन हए बिना वैसा करना संभव नहीं। इस विषय में कुछ संकलन हमने किया हैभगवई ७१७५ एवं जहा ओववाइए जाव ७.१७६ एवं जहा उववाइए (दो बार) ७१६६ जहा कूणिओ जाव पायच्छिते ६।१५७ "जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे !" "एवं जहा ओववाइए जाव ति विहाए"। १५८ "जहा ओववाइए जाव सत्यवाह" । "जहा ओदवाइए जाव पत्तियकुंडग्गामे" । ६१६२ ओववाइए परिसा यण्णओ तहा भाणियब्वं । ६।२०४ "जहा ओववाइए जाव गगणतलमणुलिहती"। "एवं जहा ओबवाइए तहेव भाणियन्वं"। २०४ जहा मोववाइए जाव महापुरिस" २०८ जहा ओववाइए जाव अभिनंदता २०६ एवं जहा ओववाइए कपिओ जाव निग्गच्छइ १११५६ जहा ओववाइए १९६१ जहा ओववाइए कूणियस्स ११३८५ जहा ओववाइए जाव गहणयाए Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११८८,१६८ ११११३८ ११११५४ ११११५६ ११।१५६ ११११६६ १२१३२ १३३१०७ १४११०७ १४.११० १५६१८६ १५११८६ २५१५६६ २५२५७० २५॥५७१ एवं जहेव ओववाइए तहेव जहा ओक्वाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणधरे एवं जहा दढप इण्णस्स एवं जहा दढपइण्णे जहा ओववाइए जहा अम्मडो जाव बंभलोए एवं जहा कणिओ तहेव सव्व जहा कुणिओ ओववाइए जाव पज्जुवासइ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया एवं जहा ओववाइए दढप्पइण्णवत्तब्धया एवं जहा ओववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं जहा ओक्वाइए जाव सुद्धेसणिए जहा ओववाइए जाव लहाहारे जहा ओक्वाइए जाव सव्वगाय भगवई वृत्ति पत्र ७ पत्र ११ पत्र ३१७ पत्र ३१८ पत्र ३१६ पत्र ४६२ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४६३ पत्र ४७६ पत्र ४७६ पत्र ४८१ पत्र ४८२ पत्र ५१६ पत्र ५२० पत्र ५२१ औपपातिकात् सव्याख्यानोऽत्र दृश्यः औषपातिकवद्वाच्या "एवं जहा उववाइए" त्ति तत्र चेदं सूत्रमेवम् "एवं जहा उववाइए जाव" इत्यनेनेदं सूचितम् "जहा चेव उवबाइए" ति तत्र चैवमिदं सूत्रम् "जहा उववाइए" ति तत्र चेदं सूत्रमेवं लेशतः "जहा उबवाइए" ति तदेव ले शतो दय॑ते "एवं जहा उक्वाइए" तत्र चैतदेवं सूत्रम् जहा उबवाइए" ति चेदमेवं सूत्रम् "जहा उववाइए परिसावन्नओ" ति यथा कौणिकस्यौपपातिके "जहा उववाइए" ति एवं चैतत्तत्र "जहा उववाइए" ति अनेन यत्सुचितं तदिदम् "जहा उववाइए" ति करणादिदं दश्यम "एवं जहा उववाइए"त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदम "जहा उववाइए" इत्येतस्मादतिदेशादिदं दश्यम् "एवं जहा उववाइए" इत्येतत्करणादिदं दृश्यम् "एवं जहेवे" त्यादि एवम्' अनतरशतेनाभिलापेन यथोपपातिके सिद्धानधिकृत्य संहननायुक्तं तथैवेहापि वाक्यपद्धतिरोपपातिकप्रसिद्धाऽध्येता पत्र ५२१ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र ५४२ 'जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे"त्ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो........ पत्र ५४५ "जहा दढपइन्ने" ति यर्थापपातिके दढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चवम पत्र ५४५ "एवं जहा दढपइन्नो' इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् पत्र ५४८ ''जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् पत्र ५४६ "जहा अम्मडो" ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः पत्र ५६३ "एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशन दृश्यम्पत्र ५६३ "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् पत्र ६६६ नावं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाम्मडपरिव्राजककथानक इति । पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ 'जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् पत्र ६२४ "जहा उववाइए" ति अनेनेदं सूचितम् ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकनन्थोत्रावसरे वाच्यः--- विवागसुयं १३ . जहा दढपइण्णे २।१।३६ बहा दढपइण्णे २१० जहा दढपइण्णे रायपसेणियं असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए क्त्तव्वया भोववाइयगमेणं नेया सू०६८८ एगदिसाए जहा उपवाइए जाव अप्पेगतिया रायपसेणिय वृत्ति सम्प्रत्यस्या नगर्या वर्णकमाह- (यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं) पृ० ८ यावच्छन्दकरणात् "स दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते” इत्याद्यौपपातिकग्रन्थप्रसिद्ध वर्णकपरिग्रहः अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया। पृ० २७ यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चौपपातिकानुसारेण ताव द्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् पृ० ३० यावच्छब्दकरणात् "आइकरे तित्थगरे" इत्यादिक: समस्तोपि औपपातिकग्रन्थ प्रसिद्धो भगवतद्वर्णको वाच्यः, स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमीपपातिक ग्रन्थादवसेयः पृ० ३६ बहवे उग्गा भोगा इत्याद्यौपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभतिका परिणत्पर्युपासीना अवतिष्ठते Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पृ० ११६ "एवं जहा उपवाइए तहा भाणियवं" इति एवं यथा औपपातिके अन्थे तथा वक्तव्यम् । तच्च एवं पृ० २८८ इत्यादिरूपा धर्मकथाऔपपातिकग्रन्थादवसेया जंबुद्दीवपण्णत्ती २१६५ एवं जाव णिग्गच्छद जहा ओवधाइए जाव आउल बोलबहुलं २२८३ एवं जहा ओधवाइए सच्चेव अणगारवष्णओ जाव उडढं जाण ३३१७८ एवं ओववाइयगमेणं जाव तस्स जंबुद्दीवपण्णत्ती वृत्ति शा० ०० पत्र १४ "वष्णओ" त्ति ऋद्धस्तिमितसमृद्धा इत्यादि औपपातिकोपाङ्गप्रसिद्ध: समस्तोपि वर्ण को द्रष्टव्यः चिरातीतमित्यादिर्वग कस्तत्परिक्षेपि बनवण्डवर्णकसहितऔपपातिकतोऽवसेयः "वणओ" त्ति अन राजा "मयामिवन्तमहन्ते" स्थादिको राज्ञाश्च "सुकु. मालपाणिपाये' त्यादिको वर्णक: प्रथमोपाङ्गप्रसिद्धोऽभिधातव्यः यथा च समवसरणवर्णकं तथीपपातिकथादवसे यं "तए णं मिहिलाए णयरीए सिंघाडगे" त्यादिक "जाव" पंजलिउडा पज्जवासंती" ति पर्यन्तमोपपातिकगतमवगन्तव्यम् ......... एवोपाङ्गादवगन्तव्यमिति शा. वृ० पत्र १४३ "यथोपपातिके" एवं यथा प्रथमोपाङ्गे ............ निपात:, औपपातिक गमश्चार्य शा. वृ० पत्र १५४ यथोपपातिके सर्वोऽणगारवर्णकस्तथाऽत्रापि वाच्यः शा. वृ० पत्र १५५ कियद्यावदित्याह-ऊर्ध्वजानुनी येषां ते ऊर्वजानव: ..........."अत्र यावत्पद संग्राह्यः "अप्पेगइया दोमासपरिआया" इत्यादिक: औपपातिकग्रन्थो विस्तर भयान्न लिखित इत्यवसेयम् शा० ३० पत्र २६४ एवमुक्तक्रमेण औषपातिकगमेन-प्रथमोपाङ्गगतपाठेन तावद् वक्तव्यं यावत्तस्य राज्ञः पुरतो महाश्वाः शा. वृ० पत्र ३२५ वृक्षवर्णन प्रथमोपाङ्गतो ऽवसेयम् सूरपण्णत्ती वृत्ति यावच्छब्देनीपपातिकग्रन्थ प्रतिपादितः समस्तोपि वर्णक: आइन्मजणसमूहा" इत्या दिको द्रष्टव्य: पत्र २ तस्यापि चैत्यस्य वर्णको वक्तव्यः स चौपपातिकग्रन्थादवसेयः पत्र २ तस्य राज्ञः तस्याश्च देव्या औपपातिकमन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्य: पत्र २ समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिक ग्रन्थादवसेयम् पत्र ३ "बहवे उगा भोगा" इत्याद्यापपातिकभन्यो वक्तम पत्र अत्र यावच्छन्दादिदमौषपातिकग्रन्थोक्तं द्रष्टव्यम् Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रपण्णत्ती हस्तलिखित वृत्ति पत्र थू पत्र ५ पत्र ५ पत्र ५ पत्र ६ उबंगा १११४१ २४१३ दसाओ १०१२ १०।१४-१६ दसा. हस्त. वृत्ति वृत्ति पत्र ११ औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धः समस्तोपि वर्णको द्रष्टव्यः स च ग्रन्थगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिका दवसेयः औपपातिकग्रन्थोक्तो वेदितव्यः तस्य राज्ञस्तस्याश्च देव्या औपपातिक ग्रन्थोक्तो वर्णकोऽभिधातव्यः समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादव सेयम् "बहवे उग्गा भोगा" इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तं सर्वमवसेयम् जहा दढपण्णी जहा दढपणो सू० ३२ सू० ३३ सू० ३६ सू० ४० 2 रावण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सको रेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उक्वाइयगमेणं नेयब्वं जाव पज्जु वासइ द० ५५ ह०वृ० पत्र ११ द० ५२६ वृ० पत्र ११ द० १०।२ ह०वृ० पत्र २५ " तस्य वर्णको यथा औपपातिकनाम्नि ग्रन्थेऽभिहितस्तथा" द० १०१२ ह०वृ० पत्र २५ विस्तरव्याख्या तूपपातिकानुसारेण वाच्या द० १०१३ ह०वृ० पत्र २५ आदिकरः यावत्करणात् " मोपपातिक ग्रंथादवसे यः -- पातिकग्रन्थप्रतिपादितः समस्तोपि वर्णको वाच्यः स चेह ग्रंथगौरवभयान्न लिख्यते केवलं तत एवोपपातिकादवसेयः । दसा. ५३४ चैत्यवर्णको भणितव्यः सोप्यौपपातिकग्रन्थादवसेयः औपपातिकोक्तं पाठसिद्धं सर्वमवसेयं......... द० १०।६ ह्०वृ० पत्र २६ जावत्ति यावत्करणात जणवूहेइ वा उग्गा भोगा - इत्याद्योपपातिकग्रन्थोक्तम् — द० १०।१४.१६ ह०वृ०पत्र २८ उववातियगमेणीति औपपातिकग्रंथोक्तकौणिक वंदन गमनप्रकारेणायमपि निर्गतः ५० १० २१ ह०वृ० पत्र २६ इहावसरे धर्म्मकथा औपपातिकोक्ता भणितव्या अन्य आगमों में ओवाइयं के सूत्र : ओवाइयं भगवई 'समस्तो औपपातिक ग्रन्थप्रसिद्धो केवल २५।५५६-५६३ २५/५६४-५६८ २५।५७६-५७६ २५५८२-५६८ राय० जंबु ० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सू० ४४ सू०६४ ओवाइयं भगवई राय जंबु० सू० ४३ २५१६००-६१२ २५२६१३.६१८ ६।२०४ सू० ४६-५५ ३।१७८ सू० ६५ ३१९७९ समर्पण सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार औपपातिक में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं :जाव-उदए जाव भीगे (११७) एवं जाव— अपडिविरया एवं जाव (१६१) सेसं तं चेव--परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव (१५७) एवं-एवं उवज्झायाणं थेराणं (१६) अभिलावेणं-एवं एएणं अभिलावेणं (७३) एवं तं चेव-सगडं वा एवं तं चेव भाणियन्वं जाव णण्णत्थ गंगामटियाए (१२३) भाणियध्वं—एवं चेव पसत्यं भाणियव्वं (४०) ____ कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्यो जाव सिविय (१०) णेयव्वं-- त चेव पसत्थं णेयत्वं । एवं चेव वइविणओ वि एएहि पएहि चेव णेयच्यो (४०) शब्दान्तर और रूपान्तर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग-सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा-शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र १ कुंकड "मुसुंदि °मुसंढि °वंक चक्क भत्त कीला °खीला तुरग दरिसणिज्जा दरिसणीया (क, ख) कालागरु कालागुरु कहग कहक (क, ख, म) निकुरंबभूए °णिउरंबभुए (ख) दरिसणिज्जा दरसणिज्जा गुलइय गुलुइय গলি अभंतर (क) बाहिर बहिर णीवेहि णितेहि कुक्कुड हत्त तुरंग morrorrrrxxx ururu Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ 'हलधर' "हलहर' भुयगीसर अकरंड्य' *च्छर गुप्फे 'वीणं जया 44 आयावाया परवाया ओमोयरिया बारसभत्ते चउद्दस' (ग) सोलस चउमासिए 'भोइत्ति दव्वाभि एतस्स 'पउत्ते उसण्ण' भूयईसर (क, ख, ग) अकरंदु (क, ख) 'थर 'गोफे 'पीडेणं (क, ख) जदा (क) आदावाया परवादा अवमोयरिया बारसमभत्ते बारसमेभत्ते चोहसम (क, ख) घोद्दसमे सोलसम सोलसमे' घउम्मासिए 'भोईत्ति दवमि इंतस्स 'पजुत्ते घोसण्ण (क, ग) (ग) दसणावरणीय "बीती "तोयवट्ठ (क) 'पण्णिय वहस्सती (ग) 'किरीडधारी (ख) महाफलं (क, ख, ग) गतगता (क) पच्चोरुभंति (ग) पाडिएक्कपाडिएक्काई(ख) पतोद-लट्टि पयोत्त-सद्धि ETEEEEEEEEEEEEEEEEEntrates दरिसणावरणिज्ज "वीची तोयपट्ठ 'वण्णिय विहस्सती "तिरीडधारी महप्फलं गयगया पच्चोरुहति पाडियक्कपाडियक्काई पोय-लदि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुइंग अभिगेहि अभंगेहि 'मिसिमिसंत 'मिसमिसंत' (ग) 'सुसिलिट्ठ 'सुसलिट्ठ (क, ग) 'वीइयंगे 'वीजियंगे कूवग्गाहा कूतुयग्याहा 'तुरगाणं 'तुरंगाणं सखिखिणी सकिंकिणी "मुदंग भट्टित्तं भट्टत्तं 'कोंच (ग, वृ) वइर वज्ज (ख) "णिघस 'निकस' वेयणिज्ज वेदणिज्ज (क, म) से जे सेज्जे (क, ख) से जाओ सेज्जाओ (क, ख) 'उरियामो पुरियामओ कुक्कुइया कोकुइया (ख, ग) 'अहव्वण 'अथव्वण' (क, ख, ग) अलाउ लाउ चरिमेहि चरमेहि 'वेंटिया वंटिया भूइ (क, ख, ग) अणगारा अणकारा (क, ग) १७० तेल्ला तिल्ल (क); तेल (ख) वय वइ (क, ख, ग) गा.१ पइट्रिया पत्तिट्टिया (क, ख) प्रति-परिचय (क) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधंया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदन चन्द जी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ४० तथा पृष्ठ ८० है। प्रत्येक पत्र ११॥1 इंच लम्बा तथा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में ४ से १३ तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४६ तक अक्षर हैं। पत्र के चारों ओर सूक्ष्माक्षरों में टीका लिखी हुई है। प्रति सुन्दर, कलात्मक तथा पठित मालूम होती है। प्रति के अंत में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है :--- इति श्री उवबाईसूत्रं समाप्तं ॥ ग्रन्थ ११६७ ।।छ।। संवत् १६२३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ दिने । आगरा नगरे। पातिसाह श्री अकबर जलालदीन राज्य प्रवर्त्तमाने ॥ श्री बृहत् खरतर गच्छालंकार श्री पूज्यराज श्री ६ जिनरि.घसूरिविजयराज्ये पंडित श्रीलव्धिवर्द्धन 90550 0 0 0 0 0 V XNur99 l vvvv ale lasaitallissésztasalas 149x ,, १६५ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिभिरुपपातिका नाम उपांगं लिखापितं ॥छ॥ वाच्यमानं चिरं नद्यात् ॥ शुभं भवतु लेखकवाचकयो: ! श्री (ख) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र ५६ तथा पृष्ठ ११८ है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा ४॥ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में पाठ की ७ से 8 तक पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। पाठ के ऊपर-नीचे दोनों ओर राजस्थानी भाषा का अर्थ है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति श्री उवाई उपांग पढ़म समत्तं ।। ग्रंथाग्रं १२२५॥॥छ। ॥श्री।। ।। संवत् १६६५ वर्षे पोष मासे शुक्लपक्षे सप्तमी तिथौ श्री सोमवारे । श्री श्री विक्रम नगरे। महाराजाधिराज महाराजा श्री रायसिंहजी विजयराजे पं० कर्मसिंह लिपीकृता॥छ।। (ग) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से श्री मदन चन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पत्र १०॥ इंच लम्बा तथा ४१, इंच चौड़ा है। प्रत्येक पंक्ति में १५ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४६ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति के अन्त में है...उवाईयं समत्तं ।। ग्रन्थान १२०० शुभमस्तु ।।छ। श्री। लिखा है किन्तु संवत नहीं दिया है। पर पत्र, अक्षर तथा चित्रों के आधार से यह प्रति १७ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (व) हस्तलिखित वृत्ति की प्रतिः यह 'श्रीचन्द गणेशदास गर्धया पुस्तकालय', सरदारशहर से श्री मदनचन्दजी गोठी द्वारा प्राप्त है। इसकी पत्र संख्या ७५ तथा पृष्ठ १५० हैं। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५५ से ६० तक अक्षर हैं । प्रति १०। इंच लम्बी तथा ४। इंच चौड़ी है। प्रति शुद्ध तथा स्पष्ट है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ।। लेखकपाठकयोश्च भद्र भवतु ॥छ।। संवत् १९६६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि भोमे लिखितं ।।छ।। श्रीः ।। यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ।। तादृशं लिखितं मया ।। यदि शुद्धमशुद्धं वा । मम दोषो न दीयते।। छ ।छ। (वृ०पा०) वृत्ति-सम्मत पाठान्तर कुछ विशेष-हस्तलिखित वृत्ति तथा मुद्रित वृत्ति में वाचनान्तर पाठ सदृश नहीं है। हमने मुल आधार हस्तलिखित वृत्ति को माना है। रायपसेणियं प्रस्तुत सूत्र का पाठ-निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वृत्ति के आधार पर किया गया है। सूर्याभ के प्रकरण में जीवा जीवाभिगम और दृढप्रतिज्ञ के प्रकरण में औपातिक सूत्र का भी उपयोग किया है। वृत्तिकार ने स्थान-स्थान पर वाचनाभेद की प्रचुरता का उल्लेख किया है। वृत्तिकाल में पाठभेद की समस्या उग्र थी, उत्तरकाल में वह उनतर हो गई। फिर भी हमने उपलब्ध साधन सामग्री का सूक्ष्मेक्षिकया प्रयोग कर पाठ निर्धारण किया है। अधिकार की भाषा मे कोई नहीं कह सकता कि यह पाठ-निर्धारण सर्वात्मना त्रुटि रहित है, किन्तु इतना कहा जा सकता है कि इस कार्य में तटस्थता और धुति का सर्वात्मना उपयोग किया गया है। प्रस्तुत सूत्र की पाठपूर्ति अत्यन्त श्रम साध्य हुई है। पाठपूति से सूत्र का शरीर बृहत हुआ है। साथ-ही-साथ पाठ-बोध की सुगमता और कथावस्तु की सरसता बढ़ी है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ शब्दान्तर और रूपांतर व्याकरण और आर्ष-प्रयोग सिद्ध शब्दान्तर एवं रूपान्तर भाषा शास्त्रीय अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं; इसलिए उन्हें पाठान्तर से पृथक् रखा है। सूत्र संख्या ८ 33 "} " " 33 18 37 ܕܕ 33 " 13 12 " 12 2) " " " " ور 39 13 " 12 33 27 21 ८ € १० १२ १३ १५ १५ २४ ३७ ३७ ४० ४८ ५६ ५६ ६६ ७१ ७५ ७६ ७७ ११८ ११८ १२४ १२६ १३० १३५ १३७ १५४ मउड "धेयं गाइ कट्टाए पठ्ठे णाइय हंत अभिवंद आयंस मिउ पासाईए अतीव तिसोवाण' महालणं free विरचिय वायाणं ओणमंति मउ "टाणं मत्थए जएणं विजएणं बहुमो दार "कवेल्लुयाओ संकलाओ पगंठगा साए पहाए फ्एसे मतुड "धेज्जं णादि ओकिट्टाए वट्ठे (खग); मट्ठ जातिय ( क,ख,ग,घ,च, छ) हंद अभिवंदते मातंस मउ पासातीए अतीत तिसोमाण महालए महि विरतिय वाइयाणं वाययाणं तोनमंति मिल "ताणं मत्थते जतेणं विजतेणं बहुगीओ बहुगीतो वार बार ( क,ख,ग,च) "कवेलुयातो संखलाओ (छ) (घ,च) (क, ख, ग ) (क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, च) (ख,ग,घ) (क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, च) ( क,ख,ग,छ) ( (घ) (क,घ) ( क्वचित् ) (क,च, छ) क, ख, ग, घ ) (क, ख, ग, घ ) ( क, ख, ग, घ ) ( च, छ ) ( क,ख,ग,च, छ; ( क, ख, ग, घ ) ( क्वचित् ) पकंठगा (घ, च) साते पहाते पतेसे (क, ख, ग, घ, च, छ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ १७३ १७३ २१ 'बिटा २४५ चरियासु चलियासु ६६५ १५६ सम्वोउय सव्वोउत° (क,ख,ग,ध) पिणद्ध विनद्ध (घ) तिठाण तित्थाण. (क,ख,ग,घ,च,छ) आईणग आदीणग (क,ख,ग,घ) उड्ढे उद्घ (क) 'वेइया वेतिया (क,ख,ग,घ,च,छ) १९७ फलएसु °फलतेसु (क,ख,ग,घ,च,छ) तमओ तगो (क); ततो (छ) २२८ बेंटा क,ख,ग,छ; बेठा (च) सुविरइ-रयत्ताणे सुइरइ-रइत्ताणे (क,ख,ग,घ,छ) २६२ कडुच्छुयं कडुच्छ्यं (क,ख,ग,ध) (क,ख,ग) पीय पील (क,ख,ग) ६८३ विद वंद (घ) ६८७ 'पूहे (क,ख,ग) 'परिभाइत्ता परिभागेत्ता (क,ख,ग,घ,च,छ) कोट्ठयाओ कोट्ठाओ (क,घ) ७२० अगिलाए अइलाए (क,च) अओ अयो (क,ख,ग); अय° (घ) भिच्चा ७६० किसिए कसिए (क,ख,ग,घ,छ) वाउकायस्स बाउयागस्स (क,ख,ग,घ,च,छ) ७८७ भिक्खुयाण भिछुयाणं (घ, च) , ७६१ प्पभोगेण प्पयोगेण प्रति-परिचय (क) यह प्रति सरदारशहर 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' से प्राप्त है। इसके ४६ पत्र तथा ९८ पृष्ठ है। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर है यह प्रति वि० सं०१६७१ की लिखी हई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त है...-- नमो जिणाणं जियभवाणं णमोसुय देवयाए भगवईए णमो पण्णत्तीए भगवईए णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्स शोभए । छ : रायपसेण इयं समत्तं । छ । ग्रंथा २०७६ समथितमिदं सूत्र छ संवत् १६७१ वर्षे भाद्रवा सुदि ११ । आगे भी पष्पिका है पर उस पर हड़ताल फेरी हुई है। (ख), (ग) पत्र क्रमशः ५५, ६१ । ये दोनों प्रति 'क' प्रति के सदश ही हैं। (घ) यह प्रति यति कनकचन्दजी पाली (मारवाड़) की है। इसके पत्र ५४ व पृष्ठ १०८ हैं। ७५४ भेच्चा ७७१ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच व चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४६-४८ अक्षर हैं । यह प्रति वि०म० १५६६ की लिखी हुई है। प्रति के अन्त में निम्न पुष्पिका है छ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः श्री संघस्य च ।। सं. १५६६ वर्षे चैत्र सुदि २ तिथौ अद्येह श्रीमदणहिल्लपत्तने श्री बृहतुखरतरगच्छे श्रीवर्धमानसूनिसंताने श्री जिनभद्रसुरिपट्टानुक्रमेण श्री जिनहंससुरिराज्ये वाचनाचार्यजयाकारगणिशिष्य वा० धर्मविलासणिवाचनार्थ भ० वस्तुपालभार्यया लीली श्रावकया। पुत्ररत्न भ० सालिगपुमुखपरिवार स श्रीकया सू श्रेयार्थ च लेखितं श्री राजप्रश्नीयोपांग। ब) यह प्रति पूनमचन्द बुद्धमल दुधोडिया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है। इस प्रति के ४२ पत्र तथा ८४ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १२ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ५४ तक अक्षर हैं। प्रथम दो पत्रों में २ चित्र हैं। लिपि सुन्दर पर अशुद्धि बहुल है। यह प्रति अनुमानित सोलहवीं शताब्दि की है। यह प्रति भी उपरोक्त दुधोड़िया, छापर (राजस्थान) के संग्रह से प्राप्त है इस प्रति के पत्र ४१ व पृष्ठ ८२ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५७ से ६० अक्षर हैं। लिपि साधारण पर शुद्ध है। अन्त में लिखा है-लिपि सं० १६६५ वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी शुक्र बब्बेरकपुरे पं० लब्धि कल्लोलगणिनालेखि । (a) यह प्रति 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' सरदारशहर से प्राप्त है । इसके ५२ पत्र तथा १०४ पृष्ठ हैं ! प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०॥ इंच तथा चौड़ाई ४।। इंच है। प्रत्येक पत्र में १७ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६५ से ७० तक अक्षर हैं । यह प्रति वि० सं० १६०५ में लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त हैं इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिका समथिता ॥ समाप्तमिति । प्रत्यक्षरगणनया ग्रन्थाग्रं ॥छ।। ।।छ। प्रत्यक्षर गणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितं । सप्तत्रिशत्शतान्यत्र । श्लोकानां सर्व संख्यया: ।। ग्रन्थाग्रं श्लोक ३७०० ॥छ।। श्री ॥ संवत् १६०५ वर्षे श्रावण सुदि १३ भौमे पतन वास्तव्यं ।। पं० रद्रासुजिगनाथ लिखितं ।। शुभं भवतु ।। जीवाजीवाभिगमे प्रस्तुत सूत्र का पाठ निर्णय हस्तलिखित आदर्शों तथा वत्ति के आधार पर किया गया है। मलयगिरि की वृत्ति प्राचीन आदर्श के आधार पर निर्मित है इसीलिए ताडपत्रीय आदर्श और वत्ति का पाठ समान चलता है। इस विषय में ३१२१८, ४५७, ५७८, ८२६ सूत्र तथा इनके पाद टिप्पण द्रष्ट व्यं है । अर्वाचीन आदों में पाठ का इतना बड़ा अन्तर मिलता है यह बहुत ही विमर्शनीय और अन्वेषणीय है। जीवाजीवाभिगम के आदर्शों में पाठ की एक समानता नहीं रही है इसकी सूचना जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के वत्तिकार शान्तिचन्द्र ने भी दी है। १. जम्बुद्वीपप्राप्ति वृत्ति पत्र १०८ अत्र चाधिकारे जीवाभिगमसूत्रादर्श क्वचिदधिकपदम् अपि दृश्यते तत्तु वृत्तावत्याख्यातं स्वयं पर्यालोच्यमानमपि न नार्थप्रदमिति न लिखितं, तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं, तमन्तरेण सम्यक पाठशुद्धैरपि कर्तुमशक्यत्वादिति । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ उपाध्याय शान्तिचन्द्र ने कल्पवृक्ष के विवरण का पाठ जीवाजीवाभिगम से उद्धृत किया है । चतुर्थ कल्पवृक्ष के स्वरूप वर्णन में उन्होंने 'कणग निगरण' पाठ उद्धृत किया है । उसका अर्थ किया है सुवर्ण राशि । जीवाजीवाभिगम की वृत्ति में 'कणग निगरण' पाठ व्याख्यात है - "कनकस्थ निगरणं कनकनिगरणं गालितं कनकमिति भावः । लिपि परिवर्तन के कारण पाठ परिवर्तन हुआ है। आदर्शो में 'कूडागारट्ठ' पाठ मिलता है। मुद्रित तथा हस्तलिखित वृत्ति में भी ' कूटागाराद्यानि ' पाठ उपलब्ध होता है । जीवाजीयाभिगम की वृत्ति में यह व्याख्यात नहीं है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति में इसकी व्याख्या मिलती है-" कूटाकारेण शिखराकृत्यायानि"" आचार्य मलयगिरि ने आदर्शगत पाठभेद का स्वयं उल्लेख किया है। वृत्तिकार ने जिन गाथाओं को अन्यत्र कहकर उद्धृत किया है। अर्वाचीन आदशों में वे गाथाएं मूल पाठ में समाविष्ट हो गई । " वृति में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका का उल्लेख मिलता है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के व्याख्याकार मलयगिरि के उत्तरवर्ती ही हैं। इसलिए यह उल्लेख प्रक्षिप्त है अथवा मलयगिरि के सामने उसकी कोई प्राचीन व्याख्या रही है यह अन्वेषण का विषय है । कहीं-कहीं वृत्ति में भी कुछ विमर्शनीय लगता है । 'सिरिवच्छ' पाठ की व्याख्या वृतिकार ने 'श्रीवृक्ष' की है । प्रकरण की दृष्टि से 'श्रीवत्स होना चाहिए। टीकाकार और मलयगिरि के सामने पाठभेद तथा अर्थभेद की जटिलता रही है और मूल व्याख्याकारों के समय में इस विषय में कुछ चर्चाएं भी होती रही हैं। इस विषय में वृत्ति का एक उल्लेख बहुत ही ऐतिहासिक महत्त्व का है । वृत्तिकार ने लिखा है कि यह सूत्र विचित्र अभिप्राय वाला होने के कारण दुर्लक्ष्य है। इसकी व्याख्या सम्यक् सम्प्रदाय के आधार पर ही ज्ञातव्य है । सूत्र १. जम्बूद्वीप वृ० प० १०२ – “कनकनिकरः सुवर्ण राशिः ।" २. जीवाजीवाभिगम वृ० प० २६७ ॥ ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति वृ० प० १०७ देखें जीवाजीवाभिगम ३५६४ का पादटिप्पण । ४. (क) जीवाजीवाभिगम वू० प ३२१ "इह बहुषा सूत्रेषु पाठभेदाः परमेतावानेव सर्वत्राप्यर्थी नार्थ मेदान्तरमित्येतद्व्याख्यानुसारेण सर्वेप्यनुगन्तव्या न मोग्धव्यमिति ।" (ख) जीवा० वृ० प० ३७६ इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सुत्राणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथाऽवस्थितवाथनामेदप्रतिपत्यर्थंगलितसूत्रोद्धरणार्थं चैवं सुगमान्यपि विद्रियन्ते । 1 ५. जीवा वृ०प० ३३१, ३३३, ३३४ तथा ३८२०, ८३०, ८३४, ८३७ के पादटिप्पण ब्रष्टव्य हैं ६. जीवाभिगम वृ०प० ३८२ क्वचित्तिहादीनां वर्णनं दृश्यते तद् बहुषु पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षितं अवश्यं चेत्तद्वयाख्यानेन प्रयोजनं तर्हि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तब् व्याख्यानस्य कृतत्वात् । ७. जीवा जीवाभिगम वृ०प० २७१- 6 'श्रीवृक्षेणांकितं - लामिछतम् वृक्षो येषां ते श्री वृक्षलाञ्छित वक्षस: " 1 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ के अभिप्राय को जाने बिना मनमाने ढंग से व्याख्या करना उनकी अवहेलना करना है ।" सूत्र की आशातना या अवहेलना न हो इस दृष्टिकोण ने पाठ और अर्थ की परम्परा को सुरक्षित रखने में काफी योग दिया है फिर भी बुद्धि की तरतमता और लिपिप्रमाद के कारण पाठ और अर्थ में परिवर्तन हुआ है । पाठ को विवित्रता के कारण हमें भी पाठ के निर्धारण में काफी श्रम करना पड़ा है । पाठान्तर और उनके टिप्पणों से उसका अंकन किया जा सकता है । 'ता' संकेतित प्रति संक्षिप्त पाठप्रधान है, जैसे ९:४१ सूत्र से "ताई भंते कि पुडाई आहारैति अपु गोयमा पुट्ठा णो अपु । आंगा णी अणोगा अनंतर नवरं अणूई पि आ बायराई पिआ उड्ढं वि इ आदि पिइ सविस अविस आणुपुवि णो अणापुवि आच्छद्दि वाघातं पसिय तिदिसि क । नो वण्णतो काला नी गंध सु २ सोनो फासहो कि पौराणं विपरिणामेत्ता अपुव्व वण्ण गुण ष्क उप्पाएत्ता आतसरीर खेत्तांगाडे पोग्गले सवप्पणत्ताए आहारमाहारंति" । 4 लिपि - दोष के कारण “किं तिदिसि के स्थान में "कतिदिसि " पाठान्तर नहीं लिया है, वहां पाठ बहुत संक्षिप्त है । शब्दान्तर और रूपान्तर १।१ जिणवखायं 12 23 શ 21 " १६ ११२१ १२६ १/७२ अणुवी रोएमाणा संघयण सण्णाओ जोगे कोहसाए कण्हलेस्सा आणपा छीरविरालिया 'ता' का अनेक जगह जिणखायं अणुवीतियं रोतमाणा संघतण सण्णाती जोगुवोगे कोहका किण्हलस्सा (ग, ट) (ट) आणपाण छिरविरालिया ( क ) छिरिविरालिया ( ख ) जिणखातं १. जीवाजीवाभिगम वृ०५० ४५० - "सूत्राणि मूनि विचित्राभिप्रायतया दुर्लक्ष्याणीति सम्यक्संप्रदायादवसातम्यानि, सम्प्रवायश्च यथोक्तस्वरूप इति न काचिदनुपपत्तिः न च सूत्राभिप्रायमज्ञात्वा अनुपपत्तिरुद्भावनीया, महाशातनायोगतो महानर्थप्रसक्तेः सूत्रकृतो हि भगवन्तो महीयांसः प्रमाणीकृताश्च महीयस्तरस्तस्कालर्वात भिरन्यै विद्वद्भिस्ततो न तत्सूत्रेषु ननागप्यनुपपत्तिः केवलं सम्प्रदायावसाये यत्नो विषेयः ये तु सूत्राभिप्रायनज्ञात्वा यथा कथञ्चिदनुपपत्तिमुद्भावयन्ते ते महतो महीयस श्राशातयन्तीति दीर्घ तर संसारभाजः, आह् च टीकाकारः "एवं विचित्राणि सूत्राणि सम्यक्संप्रदायादवसेयानीत्यविज्ञाय तदभिनायं नानुपपत्तिचोदना कार्या, महाशातनायोगतो महानर्थप्रसंगादिति" एवं च ये सम्प्रति दुष्षमानुभावतः प्रवचनस्योपप्लवाय धूमकेतव इवोत्थिताः सकलकाल सुकराम्यवच्छिन्नसुविधिमार्गानुष्ठातृ सुविहितताधुषु मत्सरिगस्तेऽपि वृद्धपरम्परायातिसम्प्रदायादवसेयं सूत्राभिप्रायमपास्योत्सूत्रं प्ररूपवतो नहाशातनाभाज. प्रतिपत्तव्या अपकर्ण यितव्याश्च दूरतस्तत्यवेदिभिरिति कृतं प्रसङ्गेन" । (ar) (क, ख ) (ता) (ता) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ थीह ११७३ १११०० १।१०१ १।११६ २०५६ २१६० २०७४ २०६२ २।२४१ २११४६ तहप्पगारा दुआगइया आहारो पलिओदमाई अब्भहियाई फुफुअग्गि वासपुहत्तं एतासि वणस्सति जोयण आवबहुले अबाधाए जे णं इम असीउत्तरं अडहत्तरे किण्हपुड बाहल्लेणं केरिसगा ३१५ ३१६ ३१४८ ३१७३ (ता) ३१७७ ३१७७ ३०० ३२६४ ३३६६ ३१११८ ३३११८ ३३११६ छिरियविरालिया (ग,ट); छीरवीराली (ता) थिभु तहप्पकारा (क,ख,ग,ट) दुयागतिया आधारो (ता) पलितोवमाई (क,ख,ग,ट) अब्भधियाई फुफअग्गि (क); पुफअग्गि वासपुधत्तं (क); वासपुहुत्तं एतेसि (क,ख,ग,ट); एगासि (ता) वणप्फई (क,ख,ग) जोतण अवबहुले (क); आवबहुले आबाधाए (क,ख,ट) जेणिमं आसीउत्तरे अडसत्तरी (ग); अठ्ठत्तरे (ता) किण्णपुड (क,ग.) पाहलेणं (ता) केरिसता (क,ख,ग) फुडिग* (ता) (मवृ) उसुणवेदणिज्जेसु विरइय (क,ग,ट) एकाहं (ख,ग,ट) तत्थ (क,ख,ग,ट); यत्थ जंबूणतमया (क); जणतामया (ग,ट,ता) ओवारियलयण (क,ख,ग,ट,त्रि;) उवकारिवलयणे थंभुगमय (क,ग) धूमवडियाओ उधितिय (क,ख); उविश्य बादालोस बातालीसं केतिलासे (ख); कइलासे (ग,ट,त्रि) इऊयाल (क); ऊयाल (ख,ता;) इगुयालं (ग) फुडित स्फुटित' उसिणवेदणिज्जेसु विरचिय एमा एत्थ जंबूणदमया ज्वगारियालयणे ३१२३४ ३१३२३ ३।३७१ ३३३७२ ३२४१२ ३१५६३ ३३७३३ ३१७५० ३१७४८ ३१७६४ खं भुम्गय धूवडियाओ ओविय बापालीसं (ता) केलासे एगुणयालं Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७६८ ३८२६ ३१८३८११३ ३१८४० ३।८४१ ३१८४१ ३।८४१ ३१८६० ३।८७७ ३९४६ ३१६६८ ३ १००७ ३।१००७ ३११००७ ५।३७ ५।५४ ५।५८ हा११ ६१२८ ६।१३१ इगयालीसं ट्ठणं मनुस्सा कयाइ बलाहका बादरे विज्जुकारे बादरे थणियस नदीओइ वा णिहोति वा सुपकखोयरसे इ खोदवरणं खोदसरिसं हेपि सहेट्ठिल्लं सव्वोवरिल्लं सम्बभितरिल्लं. णिओदा offreestar 'णिओदजीवा अगाइए सकसाई ओहिणी २८ एयाली सं (क, ख, ट); इतालीसं एएट्ठेणं माणूसाणं कदायी बलाहता वातरे विज्जुतारे वातरे थणितस दे गंदीति वा णिधयोति वा सुपिक्कखोत रसेति खोयवरणं खोतोसरिसं हट्ठिपि ( गट, ता ); हिट्ठपि सव्वमयं सपरिल्लं सन्वन्तरं णिओता ●णिगोदजीवा 'णिओयजीवावि अणादीए सकसादी rafrieणी अधिदंसणि एगयालीसं (ग) (arr) (ग, त्रि) (ar) (ता) (ता) ( ता ) (ar) (ar) (ता) (क, ख, ग, ट, त्रि) (ता) (त्रि) (ar) (क,ख,ट) (ar) ( ता ) (क, ख, ग, ट, त्रि) (क, ख, ग, ट, त्रि) प्रति परिचय (क) ( मूलपाठ) पत्र ६४ संवत् १५७५ ( हस्तलिखित) यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गवैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र १४ व पृष्ठ १८८ हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ५३-५६ तक अक्षर हैं। इसकी लम्बाई १३ इंच व चौड़ाई ५ इंच है। यह अति सुन्दर लिखी हुई है। अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है- संवत् १५७५ वर्षे आश्विनमासे कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भृगुवासरे पत्तननगरमध्ये मोढजातीय जोशी वीट्ठलसुत लटकणलिखितम् |छ । यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयते ॥ १ ॥ शुभं लेखक-पाठकयोः कल्याणवस्तु छ । छ । श्री । श्री । छ ग्रं० ५२०० (ar) (ar) (ग,त्रि) (ता) भवतु, (ख) ( मूलपाठ) पत्र ८० यह प्रति पूर्वलिखित सरदारशहर की है। इसके पत्र ८० व पृष्ठ १६० हैं । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ६१ करीब अक्षर है । इसकी लम्बाई १२ इंच व चौड़ाई ४ इंच है। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रति' प्राचीन है व बहुत जीर्ण है, अन्त में लिपि संवत् नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए। (ग) (मूलपाठ) पत्र ६० सचित्र यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया पुस्तकालय की है। इसके पत्र १० व पृष्ठ १८० हैं। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां है और प्रत्येक पंक्ति में ६३ करीब अक्षर लिखे हुए हैं। इसकी लम्बाई ११॥ इंच व चौडाई ४॥ इंच है। प्रति के आदि पत्र में तीर्थकर देव की प्रतिमा का सुनहरी स्याही में सुन्दर चित्र है । प्रति बहुत सुंदर लिखी हुई है। प्रति' के मध्य 'बाबडी' व उसके मध्य लाल बिन्दु हैं। इस प्रति के अन्त में पुष्पिका व लिपि संवत नहीं है परन्तु अनुमानतः १६ वीं शताब्दी की होनी चाहिए यह प्रति ताडपत्रीय प्रति' व टीका से प्रायः मेल खाती है। 'ता' ताडपत्रीय फोटो प्रिन्ट (जैसलमेर भण्डार) यह प्रति टीका से प्रायः मिलती है। इसमें तीसरी 'प्रतिपत्ति' के १०५ सूत्र से ११५ सूत्र तक के पत्र नहीं हैं। (ट) (टब्बा) लिपि संवत् १८०० यह प्रति संघीय ग्रन्थालय लाडनूं की है। यह प्रति कालूगणी द्वारा पठित (पारायणकृत) है व उनके द्वारा स्थान-स्थान पर पाठ संशोधन भी किया हुआ है । जीवाजीवामिगम टीका (हस्तलिखित) यह प्रति 'श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधैया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र २५० व पृष्ठ ५०० हैं। प्रत्येक पत्र में पंक्ति १५ अक्षर ६५ करीब है। लम्बाई १०४४३ लिपि सं० १७१७, प्रति की लिपि सुन्दर है। सहयोगानुमति जैन-परंपरा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्विगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गये थे, वे इस लंबी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गये हैं। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयत्न भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, गवेषणापूर्ण, तटस्थदृष्टिसमन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारंभ हुआ। हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन हैं। हमारी इम प्रवृत्ति में अध्यापन-कार्य के अनेक अंग हैं --पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन, तुलनात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है। यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है। मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनूं। प्रस्तुत ग्रन्थ के ओवाइयं तथा रायपसेणियं के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी तथा जीवाजीवाभिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी और मुनि हीरा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लालजी ने श्रम और निष्ठापूर्वक योग दिया है। जीवाजीवामिगमे के पाठ सम्पादन में मुनि छत्रमल जी, मनि बालचंदजी, मुनि हंसराजजी और मुनि मणिलाल जी का भी सहयोग रहा है। ओवाइयं की शब्द सुची मूनि श्रीचन्दजी तथा रायपसेणियं और जीवाजीवाभिगमे की भूनि हीरालालजी ने तैयार की है। प्रफ संशोधन के कार्य में मुनि सुदर्शनजी, मुनि हीरालालजी और साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी व समणी कुसुम प्रज्ञा का सहयोग रहा है। ओवाइयं तथा रायपसेणियं का ग्रन्थ-परिमाण मुनि मोहन लालजी "आमेट" ने तैयार किया है। इस ग्रन्थ के प्रथम दो परिशिष्ट मुनि हीरालालजी ने तैयार किए है। पाठ के पुननिरीक्षण के समय भी मुनि हीरालालजी विशेषतः संलग्न रहे हैं। कार्य-निष्पत्ति में इनके योग का मूल्यांकन करते हए में इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता आगमविद और आगम संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचंदजी गोठी को इस अवसर पर विस्मत नहीं किया जा सकता। यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। __ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया/कुलपति-जैन विश्व भारती/प्रारंभ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं । आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प और प्रयत्नशील है। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर वे अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। जैन विश्व भरती के अध्यक्ष खेमचन्दजी सेठिया और मंत्री श्रीचन्द बैंगाणी का भी योग रहा है । संपादकीय और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद जैन विश्व भारती के अन्तर्गत अनेकान्त शोधपीठ के डायरेक्टर नथमल टांटिया ने तैयार किया है। एक लक्ष्य के लिये समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहार पूति मात्र है। वास्तव में यह हम सबका पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। -~-युवाचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली अक्षय तृतीया १ मई, १९८७ नई दिल्ली Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रस्तुत पुस्तक का नाम उवंगसुताणि है। इसमें बारह उपांगों का पाठान्तर तथा संक्षिप्तपाठ सहित मूलपाठ है । इसके दो खण्ड हैं । थम खण्ड में तीन उपांग हैं: -- १. ओवाइयं २. रायपसेणियं ३. जीवाजीवाभिगमे । द्वितीय खंड में नौ उपांग हैं १. पण्णवणा ५. निरावलियाओं | कप्पियाओं ] ८. पुप्फ चूलियाओ २. जंबुद्दीवपण्णत्ती ३. चंदपण्णत्ती ६. कप्पवडिसियाओ ७. पुष्फियाओ ६. वहिदाओ प्राचीन व्यवस्था के अनुसार आगम के दो वर्गीकरण मिलते हैं । १. अंगप्रविष्ट २. अंगबाह्य उपांग नाम का वर्गीकरण प्राचीनकाल में नहीं था । नन्दीसूत्र में उपांग का उल्लेख नहीं है । उससे पहले के किसी आगम में उपांग को कोई चर्चा नहीं है । तत्वार्थभाष्य में उपांग का प्रयोग मिलता है । उपलब्ध प्रयोगों में सम्भवतः यह सर्वाधिक प्राचीन है ।" अंग और उपांग की संबन्ध योजना तत्वार्थभाष्य में उपांग शब्द का उल्लेख है, किन्तु उसमें अंगों और उपांगों का सम्वन्ध चर्चित नहीं है । इसकी चर्चा जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति तथा निरथावलिका के वृत्तिकार श्रीचन्द्रसूरि द्वारा रचित सुखबोधा सामाचारी नामक ग्रन्थ में मिलती है ।" जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की वृत्ति के अनुसार अंगों और उपांगों की सम्बन्ध-योजना इस प्रकार है: अंग आचारांग सुत्रकृतांग स्थानांग समवायांग भगवती उपग पपातिक राजप्रश्वीय जीवाजीवाभिगम प्रज्ञापना जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १. तत्त्वार्थ भाष्य १/ २० : तस्य च महाविषयत्वात्तरितानर्थानधिकृत्य प्रकरण सामन्यपेक्ष मंगोपांगनानात्वम् । २. सुखबोधा सामाचारी, पृष्ठ ३४ । ४. सुरपण्णत्ती Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत दृष्टिवाद चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति निरयावलिका [कल्पिका ] कल्पावतसिका पुष्पिका पुष्पचूलिका वृष्णिदशा' १. ओवाइयं नाम बोध प्रस्तुत आगम का नाम ओवाइयं [औपपातिक] है। इस का मुख्य प्रतिपाद्य उपपात है। समवसरण इसका प्रासंगिक विषय है। मुख्य प्रतिपाद्य के आधार पर प्रस्तुत सूत्र का नाम 'ओवाइयं किया गया है। इसका संस्कृत रूप औषपातिक होता है। प्राकृत नियम के अनुसार दकार का लोप करने पर 'ओववाइय' का 'ओवाइय' रूप बन गया। नंदी सुत्र में यही नाम उपलब्ध होता है। विषय-वस्तु औपपातिक का मुख्य विषय पुनर्जन्म है । उपपात के प्रकरण में अमुक प्रकार के आचरण से अमुक प्रकार का आगामी उपपात होता है, यही विषय चचित है। उपोद्घात प्रकरण में अनेक वर्णक हैं—नगरी वर्णक, चैत्य वर्णक, उद्यान वर्णक, राज वर्णक आदि-आदि । इन वर्णकों से प्रस्तुत सूत्र वर्णक सूत्र बन गया । इन्हीं वर्णकों के कारण अनेक समर्पणों में इसका उपयोग हुआ है। व्याख्या ग्रंथ औपपातिक का प्रथम व्याख्या ग्रन्थ नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरिकृत वत्ति है। उसके प्रारम्भिक प्रलोक से यह ज्ञात होता है कि अभयदेवसूरि को इस वृत्ति से पूर्व कोई अन्य वृत्ति प्राप्त नहीं थी। उन्होंने अन्य ग्रन्थों का अवलोकन कर इसका निर्माण किया था। स्वयं उन्होंने लिखा है श्रीबद्ध मानमानम्य, प्रायोऽन्यग्रन्थवीक्षिता । औपपातिकशास्त्रस्य, व्याख्या काचिद्विधीयते ।। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों पर पूर्वज आचार्यों के अभिमतों का उल्लेख भी किया है१. स्नानाद्वा पाण्डुरीभून गात्रा इति वृद्धा: [वृत्ति, पृ० १७१] । २. चर्णिकारस्त्वाह | वृत्ति १०२२४॥ ३. अस्य च वृद्धोक्तस्त्राधिकृतगाथाविवरणस्यार्थं भावार्थः । वृत्ति, पृ० २२५] १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्र १,२ । २. नन्दी, सूत्र ७६ । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह वृत्ति न बहुत विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । इसके मध्यम आकार में विवेचनीय स्थल अधिकांशतया व्याख्यात हैं।' प्रस्तुत सूत्र में वाचनान्तरों की बहुलता है। वतिकार ने प्रथम सूत्र की व्याख्या में लिखा है.इस सूत्र में बहुत वाचनाभेद है। जो वृद्धिगम्य होगा उसकी मैं व्याख्या करुंगा।' सम्भवतः इतने वाचनान्तर किसी अन्य सूत्र में प्राप्त नहीं हैं। यदि वृत्तिकार ने इनका संकलन नही किया होता तो ये लुप्त हो जाते। __वृत्ति के अन्त में त्रिश्लोकी प्रशस्ति है : उसमें वृत्तिकार ने अपने गुरु श्री जिनेश्वरसूरि, चन्द्रकुल तथा रचनास्थल--अहिलपाटकनगर और वृत्ति के संशोधक द्रोणाचार्य का उल्लेख किया है चन्द्रकुल-विपुल-भूतल-गुगप्रवर-वर्धमानकल्पतरोः । कुसुमोपमस्य सूरेः, गुणसौरभ-भरित-भवनस्य ॥११॥ निस्सम्बन्धविहारस्य सर्वदा श्रीजिनेश्वराह्वस्य । शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृता वृत्तिः।।२।। अणहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ।।३।। इसका दूसरा व्याख्या-ग्रन्थ स्तबक है । यह विक्रम की अठारहवीं शती का है। इसके कर्ता संभवतः धर्मसी मुनि हैं। २. रायपसेणियं नाम बोध प्रस्तुत सूत्र का नाम रायपसेणियं' है। पं० बेचरदास दोशी ने प्रस्तुत सूत्र का नाम 'रायपसेणइयं' रखा है। उन्होंने सिद्धसेनगणी द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनकीय' और मुनि चन्द्रसूरि द्वारा उल्लिखित 'राजप्रसेनजित' को इसका आधार माना है। प्रस्तुत सुत्र का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख नंदी सूत्र में मिलता है। वहां इसका नाम 'रायपसेणिय' है। नंदी की चणि और उसकी हरिभद्रसूरि तथा आचार्य मलयगिरि कृत वृत्तियों में इसकी व्याख्या नहीं है । आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत सूत्र के विवरण में 'राजप्रश्नीय' नाम का उल्लेख किया है। राजा प्रदेशी ने केशीस्वामी से प्रश्न पूछे थे। प्रस्तुत सूत्र में उनका वर्णन है । अतः इसका नाम 'राजप्रश्नीय' है। १. औपपातिक, वृत्ति, पृ० २ : इह च बहवो वाचनाभेदा दृश्यन्ते, तेषु च यमेवावभोरस्यामहे तमेव व्याख्यास्यामः। २. रायपसेण इयं, प्रवेशक, पृ० ६,७ । ३. नंदी, सू० ७७। ४. (क) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० १: अथ कस्माद् इदमुपाङ्गं राजप्रश्नीयाभिधानमिति ? उच्यते, इह प्रदेशिनामा राजा भगवतः केशिकुमारश्रमणस्य समीपे यान् जीवविषयान् प्रश्नानकार्षीत, यानि च तस्मै केशिकुमारश्रमणो गणभृत् व्याकरणानि ध्याकृतवान् । (ख) रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २ राजप्रश्नेषु भवं राजप्रश्नीयम् । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-वर्णन की दृष्टि से मलयगिरि की व्याख्या उचित है और उसके आधार पर उनके द्वारा स्वीकृत नाम भी अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु शब्दशास्त्रीय दृष्टि से उनके द्वारा स्वीकृत नाम समालोच्य है। पं० बेचरदासजी ने उसकी समालोचना की है। उनका तर्क है-- 'प्रश्न शब्द का प्राकृत रूप 'पण्ह' और 'पसिण' होता है, किन्तु पसेण' नहीं होता। उच्चारण शास्त्र की वैज्ञानिक रीति से 'पसिण' तक का परिवर्तन ही उचित नहीं लगता है। प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से भी पसेण' रूप घटित नहीं होता। इसे आर्ष रूप मान तो फिर शुद्धाशुद्ध प्रयोग की मर्यादा ही टूट जाएगी।" पण्डितजी का तर्क बसवान् है फिर भी अमीमांस्य नहीं है । हमारी दृष्टि के अनुसार [१] 'पसेणिय' का मूल रूप 'पसिणिय' [सं० प्रश्नित] है। इकार का एकार होना उच्चारण शास्त्र की दृष्टि से असंगत नहीं है। यह परिवर्तन अनेक स्थानों में मिलता है। उदाहरण के लिए कुछ शब्द यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं:पिहणीणं पेहुणेणं णिव्वाणं णेन्वाणं {सं० निर्वाणमा णिन्ती व्वुती [सं० निर्वृत्तिः] तिगिच्छियं तेगिछियं [सं० चिकित्सितम्] बिटा बेंटा [सं० वृत्तम्] [सं० द्वि] तिकालं तेकालं [सं० त्रिकालम्] [२] भागम-सूत्रों तथा प्राचीन ग्रन्थों में ‘रायपसेणिय' पाठ उपलब्ध है। 'रायपसेणइय' पाठकहीं भी उपलब्ध नहीं है। नंदी सूत्र में रायपसेणिय' नाम मिलता है। इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। पाक्षिक सूत्र में भी रायप्पसेणिय' पाठ मिलता है। पाक्षिक सूत्र के अवचूरिकार ने भी इसका संस्कृत रूप 'राजप्रनियं' किया है।' [३] प्रसेनजित् का प्राकृत रूप पसेणइय' बनता है। स्थानांग में पांचवें कुलफर का नाम 'पसेणइय' है। अन्यत्र भी अनेक स्थलों में यह मिलता है। प्रस्तुत सूत्र का विषयवस्तु यदि राजा प्रसेनजित् से संबद्ध होता तो इसका नाम 'रायपसेण इयं' होता. किन्तु इसकी विषयवस्तु राजा पएसी से संबद्ध है। इस दृष्टि से भी रायपसेणइय' नाम संगत नहीं है। दीघनिकाय में पायासी राजा प्रसेनजित् के सामंत रूप में उल्लिखित है। किन्तु प्रस्तुत सत्र में राजा प्रसेनजित का कोई उल्लेख नहीं है। अतः रायपसेणइयं नाम का कोई आधार प्राप्त नहीं होता। १. रायपसेणइयं, प्रवेशक, पृ०६ २. पाक्षिक सूत्रम्, पृ०७६ ३. पाक्षिक सूत्रम्, अवचूरि, १० ७७ राजःप्रवेशि नाम्नः प्रश्नानि, तान्यधिकृत्य कृतमध्ययनम्-राजप्रश्नि यम् । ४. ठाणं, १६२ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयवस्तु के आधारपर रायपएसियं' नाम की कल्पना की जा सकती है। किन्तु इसका कोई प्राचीन आधार प्राप्त नहीं है। राजा प्रदेशो के प्रश्न प्रस्तुत सूत्र की रचना के आधार रहे हैं, इसलिए इसका नाम 'रायपसेणिय' ही होना चाहिए। व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत सूत्र के व्याख्या-ग्रंथ दी हैं.---[१] वृत्ति और [२] स्तबक [टब्बा, बालावबोध ] । बत्ति संस्कृत में लिखित है और स्तबक गुजराती मिश्रित राजस्थानी में । वृत्ति के लेखक सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मलयगिरि हैं और स्तबककार हैं पार्श्वचन्द्रगणी [ १६ वी शती और मुनि धर्मसिंह (१८ वीं शती] । स्तबक संक्षिप्त अनुवाद ग्रन्थ है । प्रस्तुत सुत्र के रहस्यों को स्पष्ट करने वाला व्याख्या ग्रन्थ वास्तव में वृत्ति ही है । वृत्तिकार ने सूत्र के सब विषयों को स्पष्ट नहीं किया है, फिर भी उन्होंने अनेक स्थलों में अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएं दी हैं। वत्तिकार को वृत्ति-निर्माण में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई पाठ-भेद की थी। इसका उन्होंने स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है। वर्तमान कठिनाइयों के आधार पर वृत्ति दो भागों में विभक्त हो गई । पूर्वभाग में वृतिकार ने सुगमपदों की पोशाख्या की है। उत्तरभाग में केवल विषमपदों की व्याख्या की है। अतएव पूर्वभाग की व्याख्या विस्तृत और उत्तरभाग की संक्षिप्त है । पूर्वभाग को विस्तृत व्याख्या के उन्होंने दो हेतु बतलाए हैं--- १. विषय की नवीनता २. पाठ-भेद की प्रचुरता उत्तरभाग की संक्षिप्त व्याख्या के भी तीन हेतु बतलाए हैं१. पाठ की सुगमता २. पूर्व व्याख्यातपदों की पुनरावृत्ति ३. पाठ-भेद की अल्पता। वत्तिकार ने लौकिक विषयों को लौकिक कला के निष्णात व्यक्तियों से जानने का अनुरोध किया है। राजप्रश्नीय और जीवाभिगम में अनेक स्थलों पर प्रकरण की समानता है। दोनों के व्याख्याकार आचार्य मलयगिरि हैं । इसलिए उनके समप्रकरणों की वृत्ति में भी प्रचुर समानता है। बत्तिकार को जीवाभिगम की मूल टीका प्राप्त थी । उसका वृत्तिकार ने प्रस्तुत वृत्ति में स्थान-स्थान १. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २०४, २४१, २५६ २. रायपसेणिय वृत्ति, पृ० २३६ : इह प्राक्तनो ग्रन्थः प्रायोऽपूर्वः भूयानपि च पुस्तकेषु वाचनाभेदस्ततो माऽभूत् शिष्याणां सम्मोह इति क्वापि सुगमोऽपि यथावस्थितवाचनामप्रदर्शनार्थ लिखित, इत ऊध्वं । प्रायः सुगमः प्राग्व्याख्यातस्वरूपश्च न च वाचना-भेदोऽप्यतिबादर इति स्वयं परिभावनोयः, विषमपदण्याख्या तु विधास्यते इति । ३. वही, पृ० १४५ : एते नर्तनविषयः अभिनयविधयश्च नाट्यकुशलेम्यो वेदितव्यः। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर उल्लेख किया है। एक स्थान पर जीवाभिगम-णि का भी उल्लेख किया है। वृत्ति का ग्रन्थ परिमाण तीन हजार सात सौ श्लोक है: प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । सप्तत्रिशच्छतान्यत्र श्लोकानां सर्वसंख्यया ।। १. (क) रायपसेणियवृत्ति पृ० १०० आह च जीवाभिगममूलठीकाकृत्-विजयदूष्यं वस्त्रविशेषः इति । (ख) वही, पृ० १५८ आह च जीवाभिगममूलटीकाकारः अर्गलाप्रासादा यत्रार्गला नियम्पन्ते इति । जीवाभिगममुलटीकाकारेण-... आवर्तनपीठिका योन्द्रकीलको भवति इति । (ग) वही, पृ० १५६ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् ---कूटो माड़भागः उच्छयः शिखरम् इति । आह च ---जीवाभिगममूलटीकाकृत्-अंकमयाः पक्षास्तदेकदेशभूता एवं पक्ष बाहवोऽपि अष्टव्या इति। (घ) वही, पृ० १६० उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण ओहाडणी हारग्रहणं ? महत् क्षुल्लकं च पुंछनी इति । (च) वही, पृ० १६१ ___ आह च जीवाभिगममूलटीकाकृत् - नैषिकी निषीदनस्थानम् इति ! (छ) वही, पृ० १६८ आह च जीवाभिगममूलटीकारः प्रकण्ठो पीठविशेषी इति । (ज) वही, पृ० १६६ उक्तं च जीवाभिगममूलटोकायाम् ---प्रासादावतंसको प्रासादविशेषौ इति । (झ) वही, पृ० १७६ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम्- मनोगुलिका नाम पीठिका" इति । (ट) वही, पृ० १७७ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकाकारेण-हयकण्ठौ-हयकण्ठप्रमाणो रत्नविशेषौ एवं सर्वेऽपि कण्ठा वाच्या इति। (8) वही, पृ० १८० उक्तं च जीवाभिगममूलटाकायाम् --तैलसमुद्गको सुगन्धितेलापारौ ! (३) वही, पृ० १८६ जीवाभिगममूलटीकायामपि ४६ ---"उप्पित्थं श्वासयुक्तम्" इति । (8) वही, पृ० १६५ उक्तं च जीवाभिगममूलटीकायाम् दगमण्डपाः स्फाटिका मण्डपा इति । (त) वही, पृ० २२६ जीवाभिगममूलटीकाकारः-"बिब्बोयणा-उपधानकान्युच्यन्ते" इति । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति के प्रारंभ में वृत्तिकार ने भगवान् महावीर को नमस्कार किया है और गुरु के आदेश से राजप्रश्नीय सूत्र के विवरण की सूचना दी है:... प्रणमत-बीरजिनेश्वरचरणयुगं परमपाटलच्छायम् । अधरीकृतमतवासवमुकुटस्थितरलरुचिचक्रम् ॥ राजप्रश्नीयमहं, विवृणोमि यथाऽगमं गुरुनियोगात् । तत्र च शक्तिमशक्ति, गुरवो जानन्ति का चिन्ता !|१|| वृत्ति की परिसमाप्ति में वृत्तिकार ने गुरु को विजयकामना और पाठक की ज्ञानकामना की है-- अधरीकृतचिन्तामणि-कल्पलता-कामधेनुमाहात्म्याः । विजयन्तां गुरुपादाः विमलीकृतशिष्यमतिविभवाः । राजप्रश्नीयमिदं गम्भीरार्थ विवृण्वता कुशलं । यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती। ३. जोवाजीवाभिगमे नामबोध प्रस्तुत आगम का नाम जीवाजीवाभिगमे है। इसमें जीव और अजीव इन दो मुलभुत तत्त्वों का प्रतिपादन है। इसलिए इसका नाम जीवाजीवाभिममे रखा गया है। इसमें नो प्रतिपत्तियां [प्रकरण] हैं। इनमें जीवों के संख्यापरक वर्गीकरण किए गए हैं। 'संसारीजीव के दो प्रकार...स और स्थावर। संसारीजीव के तीन प्रकार ---स्त्री, पुरुष और नपुंसक। संसारीजीव के चार प्रकार ने रयिक, तिर्यञ्च, मनूष्य और देव । संसारीजीव के पांच प्रकार ---एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय. त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । संसारीजीव के छह प्रकार---पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक वनस्पति कायिक और सकायिक। संसारीजीव के सात प्रकार--नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव और देवी। संसारीजीव के आठ प्रकार-प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नै रयिक, प्रथम समय तिर्यञ्च, अप्रथम समय तिर्यञ्च । प्रथम समय मनुष्य, अप्रथम समय मनुष्य प्रथम समय देव, अप्रथम समय देव । संसारीजीव के नौ प्रकार -पृथ्वी काधिक, अपकाधिक, तेजस्कायिक वाधकायिक, वनस्पति कायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । ९. संसारीजोव के दस प्रकार---प्रथम समय एकेन्द्रिय, अप्रथम समय एकेन्द्रिय प्रथम समय द्वीन्द्रिय, अप्रथम समय द्रीन्द्रिय । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव प्रथम समय त्रीन्द्रिय अप्रथम समय त्रीन्द्रिय प्रथम समय चतुरिन्द्रिय, अप्रथम समय चतुरिन्द्रिय प्रथम समय पञ्चेन्द्रिय, अप्रथम समय पञ्चेन्द्रिय । नौवीं प्रतिपत्ति के आठवें सूत्र से अन्त तक सर्व जीवाभिगम का निरुपण किया गया है। वह वर्गीकरण भिन्न दृष्टि से किया गया है, उदाहरणस्वरूप – जीव के दो प्रकार सिद्ध और असिद्ध । जीव के तीन प्रकार सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सभ्यमिध्यादृष्टि । प्रस्तुत आगम में अवान्तर विषय विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इसमें भारतीय समाज और जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है । स्थापत्य कला की दृष्टि से पद्मव रवेदिका और विजयद्वार का वर्णन बहुत महत्त्वपूर्ण है ! प्रस्तुत आगम मे आदेशों का संकलन मिलता है। एक विषय में स्थविरों के अनेक मत थे । मत के लिए आदेश शब्द का प्रयोग किया गया है । प्रस्तुत आगम उत्तरवर्ती ग्रन्थ है । इसलिए इसमें स्थविरों के अनेक मतों का संकलन मिलता है । वृत्तिकार ने आदेश का अर्थ प्रकार किया है । " तात्पर्यार्थ में अनेक मतों का संकलन भी सिद्ध होता है । जीवा० २ /२० में चार आदेशों का संकलन है । २/४८ में पांच आदेश उपलब्ध हैं । वृत्तिकार ने लिखा है कि पांच आदेशों में कौन सा आदेश समीचीन है, इसका निर्णय अतिशय ज्ञानी ही कर सकते हैं । सूत्रकार स्थविरों के समय में दे अतिशयज्ञानी उपलब्ध नहीं थे इसलिए सूत्रकार ने इस विषय में कोई निर्णय नहीं किया, केवल उपलब्ध आदेशों का संकलन कर दिया । ' रचनाकार प्रस्तुत आगम की रचना स्थविरों ने की है। इसका आगम के प्रारंभ में स्पष्ट निर्देश है । व्याख्या ग्रन्थ प्रस्तुत आगम की दो व्याख्याएं उपलब्ध हैं एक आचार्य हरिभद्रकृत और दूसरी आचार्य मलयगिरिकृत | आचार्य हरिभद्रकृत टीका संक्षिप्त है, मलयगिरिकृत टीका बहुत विस्तृत है । मलयगिरि ने अपनी वृत्ति में 'इतिवृद्धाः' तथा मूलटीका, मूलटीकाकार और चूर्णि का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है । १. जीवजीवाभिगम वृ० प० ५३ "आदेश शब्द इह प्रकारवाची" आबेसोत्ति पगारो "इतिवचनात्, एकेन प्रकारेण, एक प्रकारमधिकृत्येतिभावार्थ: " २. वही वृ० प० ५६ "अमीषां च पञ्चानामादेशानामन्यतमादेशसमीचीनतानिर्णयोऽतिशय ज्ञानिभिः सर्वोत्कृष्ट श्रुतलब्धि-संपन्नैर्वा कर्तुं शक्यते, ते च सूत्रकृतप्रतिपत्तिकाले नासीरन्निति सूत्रकृम्न निर्णयं कृतवानिति" । ३. जीवाजीवाभिगमे १/१ - - ' इह खलु जिणमयं जिणाणु मयं जिणाणुलोमं जिणप्पणीतं जिनपरूवियं जिणक्खायं जिणाणु चिष्णं जिणपण्णत्तं जिनदेसियं जिणपसत्यं अणुवीर तं सद्दहमाणा तं परियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवन्तो जीवाजीवाभिगमे णामज्झयणं पण्णवसु" । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'इतिवृद्धाः इयं च व्याख्या मूलटीकानुसारेण कृता।' "उक्तञ्च मूलटीकायाम्"।' "आह च मूलटीकाकृत्" "ताइच मुलटीकाकृता वैविक्त्येन न व्याख्याता इति संप्रदायादवसेयाः"५ "मूलटीकाकारणाव्याख्यानात्" "माह च मूलटीकाकारः".-"उक्तं चुणी" "आह च मूलटीकाकारः"----"उक्तञ्च मूलटीकाकारेण" ।' उक्तं मूलटीकायाम् "आह च मूलटीकाकार: "उक्तं च मूलटीकायाम्"" "आह च मूलटीकाकारः “आह च मुलटीकाकारः"" "उक्तं च मूलटीकायां" "उक्तं च मूलटीकाकारेण"१५ "आह च मूलटीकाकार:"-"णिकास्त्वेवमाह"१६ "आह च मूलटीकाकारः"-"आह च चूर्णिकृत्"" "सक्तं च मूलटीकायां"--"जीवाभिगम मूलटोकायां"१८ "आह च मूलटीकाकारोपि"-"आह च चूणिकृत्"१९ "तथा चाह मूलटीकाकारः३० "आह च मूलचूर्णिकृत्"२१ "मूलटीकाकारोप्याह"चूर्णिकारोप्याह"२२ "आह चूर्णिकृत्"२१ "तथा चाह मूलटीकाकारः"१९ "आह च चूणिकृत्"२५ “उक्तं चूणौ "आह च मूलटीकाकार:"१७ “आह चूणिकृत् आह च टीकाकार:२८ "भूलटीकाकारेणापि"२९ 'आह च मूलटीकाकार" १. वृ० प० २७ ६. वृ० ५० १४१ १७. ३०प० २१०।। २. वृ० प० ६४ १०, ११. वृ० ५० १४२ १८. वृ०प० २१४ ३. वृ० १० १०६ १२.३० ५० २७७ १६.३०प० ३२१ ४. वृ० ५० १२२ १३. वृ०प०१४ २०. ० ० ३५४ ५, ६. वृ० ५० १३६ १४. वृ०प० २०४ २१. ३०५० ३६६ ७. वृ० प०१३७ १५. वृ०५० २०५ २२. व० ५० ३७० ८. वृ० ५० १८० १६. वृ० ५० २०९ २३. ५० ५० ३८४ २४. वृ०५०४३८ २५. ३० प० ४४१ २६. वृ० प० ४४२ २७.० ५० ४४४ २८.३०प० ४५० २६. ५० ५० ४५२ ३०.३०प० ४५७ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूर्ति इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता । इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तरहस्य पकडने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है । विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण-भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्षमानता ही पाई है। इनकी कार्यः क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको मैं आशीर्वाद देता है कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो। अपने शिष्य-साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यग् रूप से सम्पन्न हो सका है, इसका मुझे परम हर्ष है । आचार्य तुलसी अक्षय तृतीय, १ मई १९८७ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली नई दिल्ली Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The present volume consists of three agamas-Oväiyam, Rāyapaseṇiyam and Jīvājīvābhigame. EDITORIAL OVAIYAM The text of Aupapātika sutra has been constituted on the basis of the manuscripts and the vrati. The references to different ancient versions in this sūtra are in abundance. It is a repository of descriptions. That is why we find at various places the instruction-jaha ovaväte (as in Ovaváia), referring to similar describers of the other agamas Neither the commentaries of those agamas nor their authentic texts of the latter contain the describers accepted in the Aupopatika. Those describers, however, are available in other versions. It poses a problem for those who study the describers. The text of this Agama must be determined not only on the basis of adarsas and vriti but also on the basis of the describers available in the agamic commentaries and the texts of the other agamas. But it is difficult to do so without the compilation of the totality of describers. Some of the describers are as follows: Bhagavai : 7/175 evam jaha ovaväe jäva 7/176 evam jahä uvavâie, evath jaha uvavāie 7/196 jaha kupio java payacchitte 9/157: "jaha ovaväie java egabhimuhe" "evam jaha ovaväje jäva tivihäe" 9/158 "jaha ovaväie java satthavaha" "jaha ovavšie java khattiyakupḍaggǎme" 9/162 ovavâie parisă vappao taha bhāniyavvath 9/204: "jaha ovaväie java gaganatalamanulihant!" "evam jahā ovavšie taheva bhāniyavvam" 9/204 jaha ovaväie java mahāpurisa 9/208 jahi ovaväje java abhinandată 9/209 evath jaha ovaväie kupio java piggacchai 11/59 jaha ovavāie 11/61 jaha ovaväie küpiyassa 11/85 jaha ovaväie java gahanaya Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *સ્ 11/88 198 evath jaheva ovavšie taheva 11/138 jaha ovava je taheva atlapasälä taheva majjapaghare 11/154 evam jaha dadhapainpassa 11/156: evam jaha dadhapaiņņe 11/159 jaba ovavāie 11/169 jaha ammado jāva bambhaloe 12/32: evarh jaha künio taheva savvam 13/107 jaha küpio ovaväje jāva pajjuvāsai 14/107 evam jaha ovavšie jāva ārābagā 14/110 evam jahá ovaväje ammadassa vattavvays 15/186 evam jaha ovavāie dadhappaippavattavvaya 15/189 evam jahā ovavāie jāva savvadukkhāpamantam 25/569 jaha ovaväje jāva suddhesapie 25/570 jaha ovavāie jāva lühāhāre 25/571 jaha ovavšie jäva savvagaya : Bhagavai Vrtti: patra 7 aupapātikāt savyākhyāno'tra drsyab 11: aupapatikavadvācyā 317: "evam jahä uvaväie" tti tatra cedam sūtramevam......... 318: "evah jaha uvavāie jāva" ityanenedamh sucitam......... ,, 319: "jaha ceva uvavāie" tti tatra caivamidaṁ sūtram......... ,,462 "jaha uvaväie" tti tatra cedath sütramevam lesatab. ,, 463: "jahā uvavãie" tti tadeva lesato darŝyate......... ,,463 "evah jaha uvaväje" tatra caitadevam sûtram......... ., 463 "jaba uvavâie" tti cedamevam sütram..... ,, 463: "jahā uvavāie parisavannao" tti yathā kaunikasyaupapatike ,, 476: "jahā uvavāie" tti evam caitattatra...... ,,479 "jaha uvavaje" tti anena yatsucitam tadidam...... 481: "jaha uvaväie" ttı karapadidam dṛśyam...... 482: "evam jahā uvavāie" tti anena yatsûcitam tadidam...... 519 "jahā uvavälie" ityetasmädatideśâdidam dṛśyam...... 520: "evam jaha uvaváie" ityetatkaranãdidaṁ dṛśyam...... 521 "evath jaheve" tyādi "evam", anantaradarsitenäbhiläpena yathaupa patike siddhanadhikitya samihananadyuktam tathaivehäpi...... väkyapaddhatiraupapätikaprasiddha'dhyetā...... 33 ,,521 ,542 "jaha uvavšie taheva altapasālā taheva majjapaghare" tti yathau. papatike'ṭṭapasālā vyatikaro...... 545 "jaha daḍhapainne" tti yathaupapatike drdhapratijño'dhītastatha' yam vaktavyaḥ taccaivam...... ,, 545 "evam jaha dad hapainno" ityanena yatsucitam tadevam drsyam...... .. 548 "jaha uvavãie" ityanena yatsucitam 549 jahā ammado" tti yathaupapatike ammado'dhitastatha"yamiha vacyab د. >> Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ q patra 563 : "evam jahā uvayāle jāva årāhaga" tti iha yavatkaraņādidamarthato tra 563 : "exana arsyam.. diná yatsūc ,, 563: "evam jabe" tyādinā yatsūcitam...... „696 : "evam jahä uvavõie” ityādi bhāvitamevāmmadaparivrăjakakatha naka iti ,,924 : "ja hā uvaväie" tti anenedarí súcitam...... ,,924 : "jahă uvavaje" tti anenedam sūcitam ..... , 924 : "jaha uvavaje" tti anenedam sūcitam...... Jñátävytti „ 2: "varņakagrantho’trāvasare vācyab...... Vivāgasuyam 1/1/70 : jahā dadhapainne 2/1/36 : jaha dadhapainne 2/10/1 : jaha dadhapainde Rayapaseniyam sätra 3,4 : asoyavarapäyave pudbavisilapattae vattavvayā ovaväiyagamepam neya 688 : egadisāe jahå uvavõie jāva appegatiyā Rāyapaseniya vrut page 3 : sampratyasyā nagaryā varpakamāha-(Here Aupapătika has not been mentioned) ,, 8: yāvacchabdakararāt "saddje kittie nde sacchatte" ityädyaupapätika granthaprasiddhavarộnakaparigrahan ,, 10 : aśokayarapâdapasya pệthivišitāpatakasya ca vaktavyatā aupapātika granthānusāreņa jõeya , 27 : yāvacchabdakaraņādrājavarnako devīvarpakah samavasaranam caupapātikānusāreņa tāvadvaktavyaṁ yāvatsamaya sarapan samāp tam „30 : yāvacchabaakaraņāt "ājkare titthagare" ityādikaḥ samastopi aupapātikagranthaprasiddho bhagavadvarnako vācyaḥ, sa cātiga riyāniti na likhyate, kevalamaupapātikagranthādavaseyaḥ » 39 : babave uggă bhogā ityādyaupapātikagranthoktam sarvamavasatay yam yavat samagrāpi rājaprabhștikā parişatparyupāsinä avatişthate „116 : "evam jahā uvayāie tahā bhāņiyavvan" iti evaṁ yathā aupapâtike granthe tathā vaktavyam. tacca evam ,,288 : ityadirüpå dharmakıthāaupapätikagranthāda vaseyä Jambuddivapannatti 2165: evam jāva niggacchai jahi ovavâie jāva āulabolabahulam 2/83 : evam jahâ ovavāje sacceva añagāravannao jāva uddhañjāņu 3/178 : evam ovayāiyagamepan jāva tassa Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jambudditapannatti Viti : Sā. Vr. patra 14 : "vannao" tti rddhastimit asamțddhā ityādi aupapātikopāngaprasiddhaḥ samasto’pi varrako drastavyaḥ cirātītamityādirvarņakastatpariksepi vanakhandavarna kasahitaaupapātikato'vaseyah "vannao" tti atra räjño "mahayāhimavantamahante" tyādikorājñāśca “sukumā)apāņīpāye" tyādikovarnakaḥ prathamopangaprasiddho'bhidhātavyah yathā ca sa mavasaraṇavarna kan tathaupapātikagranthādavaseyam "tae nam mihilāe naya. ie singhādage” tyadikan “jāva' pañjaliudā pajjuvāsanti' ti paryant amaupapātikagatamavagantavyam... evo pārgādavagantavyamiti „,143 : "yathaupapātike" evaṁ yathā prathamopāüge... nipātah, aupa pātikagamaścāyam ,,154 : yathaupapätike sarvo nagäravarnakastathä'träpi vacyah 155 : kiyadyāvadityāha-ürdhvan jānuni yeşām te urdhvajānavaḥ..... atra yāvatpadasaṁgrāhyah "appegaiyā domāsapariāyā” ityādikaḥ aupa pātikagrantho vistarabhayānna likhita ityavaseyam ..264 : evamuktakramera aupapātikagamena prathamopāngagatapāthena tävad vaktavyam yāyattasya räjñaḥ purato mahāśvāḥ „, 325 : výkşavarnanam prathamopāngato'vaseyam Surapannatti Vri patra 2 : "yāvacchabdenaupapātikagranthaprasipāditah samasto'pí varnakah äinnajanasamühā” ityadiko drasta vyah ., 2: tasyāpi caityasya varnako vaktavyah sa caupapätikagranthädava seyah 2: tasya rājñaḥ tasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidh.. tavyah „ 2: samavasaraṇavarnanam ca bhagavata aupapātikagranthādavaseyam ,, 3: "bahave uggā bhogā” ityādya upapātikagranthovaktam „ 3:atra yāvacchabdadidamaupapātikagranthoktam drastavyam Candrapannatri (Ms. Vrtti) patra 5 : aupapātikagranthaprasiddhaḥ samasto'pi varnako drastavyah sa ca granthagauravabhayānna likhyate kevalamitata evaupapātikādava seyaḥ „ 5: aupapātikagranthokto veditavyaḥ „ 5: tasya rājñastasyāśca devyā aupapātikagranthokto var ako'bhidhä tavyah . 5: samavasara navarnanam ca bhagavata aupapātikagranthädavaseyam ,, 6: "bahave uggá bhoga" iyādyaupapātikagranthoktam sarvamava seyam Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Uvanga 1/141 jaha dadhapainpo 2/13 jaha dadhapainoo Dasão 10/2 rayavannao evah jaha ovavätie java ceilaņāe 10/14-19 sakorentamalladamepam chattepamh dharijjamapetam uvavalyagameņam neyavvath jāva pajjuvásai...... Dasă. (Ms. Vrtti) Vitti patra 11 aupapatikagranthapratipaditab samasto'pi varṇako väcyaḥ sa ceha granthagauravabhayanna likhyate kevalah tata evaupapatik davaseyab. Dasa, 5/4 D. 5/5, Ms. Vrtti patra 11: caityavarpako bhapitavyab sopyaupapātikagranthadavaseyab D. 5/6, Ms. Vittipatra 11: aupapatikoktam pathasiddhath sarvamavaseyamh...... D. 10/2, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/2, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/3, Ms. Vrttipatra 25: D. 10/6, Ms. Vrttipatra 26: D: 10/14-19, Ms. Vittipatra 28: .. D. 10/21, Ms. Vrttipatra 29: 55 "tasya varpako yatha aupapatikanāmnigranthe'bhihitastatha" 33 YX 33 vistaravy khya tüpapatikánusäreņa vācyā...... adikarab yavatkaranät... samasto aupapātikagranthaprasiddho... kevalamaupapätikagranthädavaseyab... Sutras of Oviyarh in other agamas: Ovaiyam Bhagaval Sutra 32 25/559-563 33 25/564-568 36 25/576-579 40 25/582-598 43 44 64 .5 "> javatti yavatkaranät janavühei vä......ugga bhoga......ityādyaupapatikagranthoktam uvavatiyagameṇīti aupapatikagranthoktakauņikavandanagamanaprakarepäуamapi nirgataḥ ihavasare dharmmakatha aupapätikokta bhabitavya 25/600-612 25/613-618 9/204 Raya. Sū. 49-55 Jambu, 3/178 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 java: evam java: sesam tam ceva : evam : abhilaveṇath: evam tam ceva : The Describer sûtras The Describer sutras take several concise forms in the Aupapātika. These are: bhāpiyavvam: Пeyavvamh: Sutra 1 1 1 35 "" 33 65 66 Variant words and forms The variant words and forms as approved by Grammar and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint. Hence they have been distinguished from the variant readings and are given below: 33 35 39 37 3 རྞ ེམསྶརྒྱུཥརྣ ན རྟན 1 1 2 2 4 5 5 6 6 636699 13 19 3, 19 19 19 udae java jhine (117) apadiviraya evam java (161) paralogassa ärahaga sesam tam ceva (157) evam uvajjhāyānam theraṇam (16) evam cepam abhilavenam (73) sagadam va evar tamh ceva bhāpiyavvath jāva pappattha gangamattiyle (123) evam ceva pasattham bhāniyavvam (40) kandamanto eesim vannao bhāniyavvo java siviya (10). tam ceva pasatthar peyavvamh. evam ceva vaiviņao vi echith pachith ceva peyavvo. (40) kukkuda "musundhi" Y vamka "bhatta °kilä" turaga darisanijja kā garu "kabaga nikurambabhüle darisanijjā gulaiya abbhintara bähira nivehim "haladhara "hapue bhuyagisara" akaranduya °ccharu kunkada musandhi" *vakka hatta "khla *turanga darisaplya 3/180 3/179 kāļāguru "kahaka* "piurambabhüc darasanijjā guluiya abbhantara bahira nitehim "halahara *hapue bhuyalsara akaranduya "tharu (kha) (ka, kha) (ga) (ka) (ka, kha) (ka) (ka, kha) (ka) (ka, kha, ga) (kha) (ka, kha) (ka) (ka) (ga) (ka) (vf) (ka) (ka, kha, ga (ka, kha) (vt) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sutra 19 ,, 19 21 26 26 31 >> 32 *** در 99 31 39 13 93 34 " 40 43 33 43 43 44 46 "" 93 "" "" "7 ور 33 35 32 "" t, $2 52 52 » 58 59 ***** 32 *******888888 " "" 46 », 63 49 50 ,, 63 63 63 64 64 64 67 ,, 68 » 71 gupphe "vidhenam jaya āyāvāyā paravaya omoyarıya barasabhatte cauddasa soiasa caumāsie 'bhoitti davyabhi entassa *pautte usanna° rel darisapavarapijja °vici toyapattham vapniya vihassat! tirldadhart mahapphalam gayagaya paccoruhanti "susilittha" *vliyange küvaggaha "turaganath sakhinkhiçi "gophe" "pidhe nam jadä *muinga bhaṭṭittam *konca ǎdāvāyā paravādā avamoyariyā barasamabhatte barasamebhatte coddasama" coddasame solasama solasame caummāsie "bhoitti davvabhi intassa pajutte osanna ruy! damhsapavarapiya padiyakkapāḍiyakkājṁ pāḍiekkapāḍiekkäim paoya-lajthith patoda-laṭṭhim payotta-latthim abbhithgehim "misimisanta" *viti "toyavattham "pappiya" vahassati kirldadhari mahāphalaṁ gatagată paccorubhanti abbamgehith mismisanta "susalittha 'vijiyange kütuyaggähä *turang pam sakinkinl *mudanga bhaṭṭattam kufica ga) (ka, kha) (ka) (ga) (ga) (VT) (ka) (ga) (ka, kha) (ga) (ka, kha) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (ka, ga) (ga) (kha) (ga) (ka) (ga) (ga) (kha) (ka, kha, ga) (ka) (ga) (kha) (ka) (ga) (ka) (ga) (ka, ga) (ka) (ga) (ka) (ka) (ga) (ka) (82, VT) Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , 170 » 175 vaya vaio vaira vajja (kha) nighasa Pnikasao (kha) veyaņijjam vedaniijam (ka, ga) se je sejje (ka, kha) se jão sejjão (ka kha) Puriyão puriyão (ka, ga) kukkuiyā kokuivä (kha, ga) Pahavvana Pathayvana (ka, kha, ga) alāuo lău carimehim caramehim (ka) ventiya ovañțiyå (kha) bhu ° Ꮟhuf° (ka, kha ga) anagara aņakāra (ka, ga) tellà Stillao (ka) telao (kha) (ka, kha, ga) „ 195 gå. 1, paisthiya pattitthiya (ka, kha) Description of the Manuscripts () This was obtained from Gadhaiya Library, Sardarshahar, through Shri Madanchandji Gauthi. It contains 40 leaves and 80 pages. Each leaf is 11-3/4" long and 4-1/2" wide. There are 4 to 13 lines in each leaf, each line containing 40 to 46 letters. Commentary is inscribed in very small letters in the margin on all sides. The manuscript is beautiful, artistic and appears to have been used and read. The following eulogy is given at the end of the COPY "iti śrt uvaváīsūtram samăptam. grantha 1167. cha. Samvat 1623 varse phalguna sudi 3 dine. Agra nagare. pâtisäha śri Akbara Jalaludina rājya pravartamāne. sri vịhat kharataragacchāļankāra śri pujyarăja śri 6 Jinasinghasūrivijayarājye pandita śri Labdhivardhanamunibhirupapātikā nāma upāngam likhāpitam. cha. vācyamaniam ciram nandyāt. śubham bhavatu lekhakavācakayoh. śri.” () This manuscript was also obtained through Shri Madanchandji Ganthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 59 leaves and 118 pages. Each page is 10-1/4" long and 4-1/2" wide. There are 7 to 9 lines in each leaf and each line contains 40 to 45 letters. The upper and lower margins of the page contain the translation of the text in Rajasthani language. The following eulogy by the scribe appears at the end of the manuscript "Śrī uväl upăngam padhamam samattam. granthägram 1225. cha. ßri. Saṁvat 1665 varse pausa māse śuklapakşe saptami tithau śrī so maväsare. Śri śri vikrama nagare mahārājādhiraja mahārājā śri rayasinghji vijayaraje pandita karmasinghena lipīkstā. cha.” Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Yε (T) This manuscript was also obtained through Sri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. Each page contains 26 leaves and 52 pages. Each page is 10-1/2" long and 4-1/2" wide. Each page contains 15 lines with 46 to 48 letters in each line. The manuscript concludes with"uvaiyam samattam, granthagra 1200, Subhamastu cha. fri," but the year is not mentioned therein. Looking at its leaves, letters and illustrations, the copy must be belonging to the 17th century. (T) This manuscript of the vṛtti was obtained through Shri Madanchandji Gauthi from Gadhaiya Library, Sardarshahar. It has 75 leaves and 150 pages. Each leaf contains 13 lines with 55 to 60 letters in cach line. The size of the leaf is 10-1/4"x4-1/4". The manuscript is revised and clear. In the eulogy the following is inscribed-"Subham bhavatu, kalyāṇamastu. lekhakapāthakayośca bhadram bhavatu, cha. samvat 1996 varse Märgashrga sudi 1, bhaume likhitam, cha sri yadrom pustake drstvä, tädṛśum likhitam mayayadi buddhamaluddham vá, mama dogo na diyatell cha, cha. (..) Variant readings based on the Vitti There are no identical readings of different versions in the special manuscript of the vrti and the printed vṛtti. We have taken the manuscript vrti as authoritative. Rayapaseniyam The text of this sütra has been determined on the basis of manuscripts and the Vrtl. Jiväjiväbhigama and Aupapätika-sutras have also been used for determining the texts of the Süryabha and the Drdhapratifña chapters respectively. The commentator has mentioned the abundance of variant readings in different versions at every step. At the time of composing the commentary it posed a serious problem, but in later times it assumed still more serious dimensions. Even then we have revised the text by analysing the available material very minutely. None can claim that the revision of this text is totally flawless but this much can be asserted that we have maintained utmost neutrality and patience in our attempt to perform the task. The construction of the text of this sutra has exacted vast labour, and resulted in the enlargement of the body of the sutra, as also in the intelligibility of the text and the tastefulness of the subject-matter. Variant words and forms The variant words and forms as approved by grammatical rules and holy usage in Agamas are important from the linguistic standpoint, so they have been distinguished from the variant readings and are given below Sutra No. 8 mauda matuḍa (ka) Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dheyam (ka) na; ukitthae patthe naiya hanta abhivandae ayarisao miuo pāsāie ativa tisovāņa mahalatenam venāņiehim viraciya ovāyānam 75 oņamanti mau °țānam matthae jaenam vijaeņam dheijam ņādio (ka, kha, ga, ca) okitthāe (cha) vatthe (kha, ga) Imaţthe (ca) ņātiya (ka, kha, ga, gha, ca cha) handa (ca) abhivandate (cha) ätansa (gha, ca) mauo (ka, kha, ga) pāsātie (ka, kha ga, gha) atīta (ca) tisomånao (ka, kha, ga, ca) mahalaenam (kha, ga, gha) vemānitehim (ka, kha, ga, gha) viratiya (ka, kha, ga, ca) vãiyāņam (ka, kha, ga, cha) yāyayānam (gha) ton amanti (ka, gha) miu (kvacit) tåņam (ka, ca, cha) matthate (ka, kha, ga, gha) jatenaṁ vijatenam (ka, kha, ga, gha) bahugio (ka, kha, ga, gha) bahugito (ca, cha) (vāra (ka, kha, ga, ca, cha) bāra (gha) okaveluyāto (ka, kha, ga, gha) sankhalão (kvacit) pakanthagā (gha, ca) sāle pahāte patese (ka, kha, ga, gha, ca, cha) savvoutao (ka, kha, ga, gha) vinaddha (gha) titthāna (ka, kha,ga,gha, ca, cha) ādinaga (ka, kha, ga, gha) uddham (ka) 'vetiyā (ka, kha, ga, gha, ca, cha) ophalatesu (ka, kha, ga, gha, ca, cha) 118 124 bahuio 129 dārao 130 135 137 "kavelluyao sarkalão paganthagā sãe pahāe paese 154 159 173 173 185 189 197 197 savyouyao pinaddha tithāņa āīnaga udoham Oveiya phalaesu Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 219 tato pilao 6 687 706 720 aoo 760 tao tago (ka) (cha) 228 binţă benţă (ka kha, ga, cha) bethā (ca) 245 suvirai-rayattäge suirai-raittape (ka, kha, ga, gha, cha) 292 kaducchuyam kaducchayam (ka, kba, ga, gha) 654 cariyāsu caliyāsu (ka, kha, ga) 664 piya (ka, kha, ga) ovinda vandao (gha) yühe pühe (ka, kha, ga) oparjbhäittă paribhägettă (ka, kha, ga, gha, ca, cha) kotthayão kotthão (ka, gha) agilāe aile (ka, ca) 754 ayoo (ka, kha, ga) aya (gha) 755 bhiccă bheccā (gha) kisie kasie (ka,kha, ga,gha, cha) > 771 vāukāyassa vāuyāgassa (ka, kha, ga, gha, ca, cha) » 787 bhikkhuyāṇam bhichuyānam (gha, ca) , 791 oppaogena oppayogena (gha) Description of the Manuscript () This manuscript was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 49 leaves and 98 pages. Each leaf is 10-1/2 x 4-1/2”, with 13 lines in each leaf and 50-55 letters in each line. It was scribed in V.S 1671 and the following is its colophon : "namo jiņapam jiyabhayāņam namosuya devayae bhagavale namo pannattie bhagavale namo bhagavao arahao pasassa passe supasse passavanīņabhoe. cha. Räyapasenaiyam samattañ. cha. granthāgram 2079 samarthitamidan sutram. cha. samyat 1671 varse bhādravă sudi 11" This colophon runs still further, but this faint portion is coloured with yellow. (a) They contajn 55 and 61 leaves respectively. (T) Both of them are similar to the manuscript (#). (9) This manuscript belongs to Yati Kana kachandji of Pali (Marwar). Its size is 10' x 41'. It contains 54 leaves and 108 pages, with 13 lines in each page and 46 to 48 letters in each line. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ It was scribed in V.S 1566. The following colophon is appended at the end of the manuscript : "cha. Subhamh bhavatu lekhake-pathakayoḥ śr sanghasya ca. sarhvat 1566 varse caitra sudi 2 tithau adyeha śrimadaṇahillapattane śrī vṛhat-kharataragacche Vardhaminastrisantäne śrī jinabhadrasüripaṭṭānukrameņa TI jinahamsasürirajye väcanacharyajayakaragaṇisisya vacanacharyajayakaraganiśisya vä. dharma-viläsaganivacanärthamh bha. vastupälabharyaya lili ravikaya. Putraratna bha, såliga pumukhaparivära saśrikaya sufreyärtham ca lekhitath śri Rajaprasiyopångam. This manuscript was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Rajasthan). Each leaf is 12"x5". There are 42 leaves and 84 pages in this copy, with 15 lines in each page and 48 to 54 letters in each line. Two illustrations are given in the first two pages. The script is beautiful but abounds in mistakes. Approximately it belongs to the sixteenth century. () This manuscript also was obtained from the collection of Punamchand Buddhamal Dudheria of Chhapar (Raj) It contains 41 leaves and 82 pages, with 15 lines in cach page and 57 to 60 letters in each line. The script is ordinarily fair but flawless, It ends with the following colophon-"lipi samhvat 1665 varse kärtika mase śukla pakse saptami sukre Babberakapure pandita Labdhikallolagaşină lekhi." () It was obtained from Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. Its size is 10"x4". It contains 52 leaves and 104 pages, with 17 lines in each page and 65 to 70 letters in each line. This manuscript was scribed in V.S. 1605 and ends with the following colophon: "iti malayagiriviracita rajapraśniyopangavṛttika samarthita, samäptam iti. pratyakṣaragapanaya ranthagram. cha, cha. pratyakṣaragaṇanato granthamanath viniscitam. saptatrithsatśatányatra. Slokánäṁ sarvasath khyayah, cha, granthagram loka 3700, cha. śrl. samhvat 1605 varse śrävana sudi 13, bhaume Subham pattana västavyam, pandita Rudrasuta Jiganatha likhitam. bhavatu. JIVAJIVABHIGAME The text of this sutra has been revised on the basis of manuscripts and its vetti. The vrti by Malayagiri is based on old ddarfo, hence the texts of palm. leaf and the vṛttl are identical. The surras 3/218, 457, 578, 826 together with their footnotes may be consulted in this connection. A great variety of readings in the relatively later editions provides ample room for deliberation and research. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The fact regarding the dissimilarity of readings in the manuscripts of Jivājīvābhigama has also been pointed out by Santicandra, the commentator of Jambúdvīpaprajñapti. Upādhyāya Sānticandra has quoted the text about the description of the Kalpavrk$a from Jivājīyābhigama. In describing the fourth Kalpavrkşa he has quoted the reading “Kanaga-nigaruņa' which he explains as 'the heap of gold.'1 In the Vriti of Jivajivabhigama the term 'Kanaganigaranam' has been explained as Kanakasya nigaranam, kanaka-nigaranan, gâlitar, kanakamiti bhavah2. The change in script has led to change in reading. We find the reading "Kūdāgāratha' in some manuscripts. In the printed editions as well as the hand-written copy we find the reading Kúțăgărădyani'. It has not been explained in the Vrtti of Jīvājivābhigama. Of course, it has been explained in the Vruti of "Jumbūdvipaprajñapti"--"Kūjākårena--sikharākstyádhyāni.'' Acarya Malayagiri has bimself mentioned the variant readings of the manuscripts. The verses, which the commentator quotes from other sources, have been inciuded in the original text in comparatively recent manuscripts.5 In the Vriti we find the mention of the commentary on Jambüdvīpa-prajñapti. The commentators Oj Jambūdvipa-prajnapti definitely belong to a period later than that of Malayagiri. Hence it is a matter worthy of investigation whether this mention is an interpolation or whether Malayagiri had really got with him some old cominentary of Jambūdvipa-prajñapti. At some places the vrtti contains a lot of matter worth deliberation. The commentator has explained the term "Siri vacchu as śrivrksa. Looking to the context it should be frivatsa.? 01. 1. Jambūdvipaprajñapti Vrtti. p. 108 : atra cădhikare jiväbhigamasutradarse kvacidadhikapadam api drśyate tattu vsttavatyäkbyátam svayam paryalocyamanamapi na narthapradamiti na likhitam, ten tat sampradayada Vagantayyam, tamantarena samyak päthaśudáherapi kartumaśakyatvaditi. 1. Jambüdvipa Vr. patra 102: kagakanikarah suvarnaraših. 2. Jāvājivābhigama, V. p. 267. 3. Jambüdvipaprajñapti Vr. p. 107: See the footnote of Jiväjivābhigama, 3/594. 4. (a) Ibid. Vr. p. 321 : iba bahudhá sútresu păthabhedah parametāvāneva sarvaträpyartho nárthabhedāntaramitye tadvyakhyanusårena sarvepyanugantavyā na mogghavyamiti. (b) Ibid, Vr. p. 376 : "iha büyän pustakosu văcacäbhedo galitādi ca säträni bahusu pustakesu tato yatha. vasthitaväcanabhedapratipattyartham galitasütroddharaṇārtham caivam sugamanyapi vivriyante. 5. Ibid, Vštti p. 331, 333, 334, 334; 3/820, 830, 834, 837: The footnotes are worth seeing. 6. jīvābhigama, Vitti p. 382 : kvacit simhādīnām varnanam drśyate tad bahuşu pustakesu na drstamityupekşitam, avaš. yam cattadvyākhyāaena prayojadam tarhi Jam ūdvipaprajñapli tikā paribhāvaniyả tatra savistaram tadvyākhyānasya kftatvät. 7. Ibid., vftti p. 271 : "Srivękşeņāåkitan-lāåcaita víkş) yeşim te s-ivfkşalā ichita vakşasah." Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ The original commentator and Malayagiri had before them the intricacies of variant readings and different expositions and in the times of later commentators also such discussions were often held. In this connection, a topic mentioned in the vṛtti is of historical importance. The commentator writes that this sūtra is obscure on account of the peculiarity of aim and purpose. It can be explained only on the basis of the right tradition and solid ground. It is sheer repudiation of the surra if it is explained carelessly and whimsically. Due care had been taken that the sutra may not be repudiated or wrongly interpreted. Consequently, attempt was made to preserve the text and its meaning. Even then due to variation in intelligence and scribe's carelessness discrepancies in readings and expositions have taken place. On account of the variant readings we had to take great pains in arriving at the correct text. The reader can estimate the labour involved by the variant readings and notes thereon appended in the edition. The manuscript marked "ta" is an abridged version of the text, eg. the following sutra 1/41-tim bhante kith pudâith härenti apu goyama puṭṭhā no apu. og no apogā avantaro pavarath apûith pi a bayaraith pia uddhamh vi i adith pii savisae no avisae äpupuvvih po apãpupuvvim äcchaddi vāghātaṁ pa siya tidisi ska. no vappato kala ni gandhato su 2 rasato no phāsaho tesim poră. path vipariņāmettä apuvva vadna guna ska uppäettä ätasarīra khettogadhe poggale savvappaṇattãe ähäramähärenti," ×× Due to the flaw in script the reading like koridisim (ka) has found place in place of kihtidisim. We have not accepted the readings of the a manuscript in many places, because they are too much abridged. Variant words and forms 1/1 Jinakkayam anuvli roemānā sanghayapa Jipakhayam Jinakhatam apuvitiyam rotamānā sanghatana 1/14 1. Ibid., Vitti p. 450: süträni hyamuni viciträbhiprayatay darlaksyäniti samyaksampradayädavasätavyāni, sam pradayaśca yathoktasvarüpa iti na kacidanupapattiḥ, na ca süträbhiprāyamajñātva anupapattirudbhavaniya, mahāśatanayogato maha'narthaprasakteb, sütrakrto hi bhagavanto mahtyänsaḥ pramānīkṛtāśca mahiyastaraistatkälavarttibhiranyairvidvadbhistato na tatsūtreşu manāgapyanapapattib, kevala sampradayavasaye yatoo vidheyab, ye tu sütcäbhiprāyamajñāvā yathakathañcidanupapattimudbhavayante te mahato mahiyasa äsatayantiti dirghatarasamsärabhajaḥ, äha ca tikākāraḥ-"evam vicitraņi sūtraņi samyaksampradayadavaseyänityavijñāya tadabhiprāyam nanupapatticodana käryä, mahāśātanayogato maha'narthaprasangăditi" evam ca ye samprati duşşamänubhavataḥ pravacanasyopaplavaya dhümaketava ivotthitaḥ sakalakalasukarāvyavacchinnas uvidhimärgānusthätṛsuvihitasådhusu matsaripaste'pi vṛddhaparamparăyatasampradayadavaseyam süträbhiprayamapäsyotsitram prarüpayanto mahasatanābḥājaḥ pratipattavya apakarpayitavyāsca düratastattvavedibhiriti krtam prasangena". (kha) (tä) (ka, kha) (tä) (ta) Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 sanno joguvaoge kohakase kanhalessä ānapāņuo cbīraviraliya (ka) (ka) (ka) 1!19 1/21 1/26 1/72 (ga, ţa) (k) (kha) (ga, ta) (ta) (ka) (ka, kha, ga, ţa) (ga) 1/73 1/100 1/101 1/119 2/59 2160 2/74 thihū tahappagara duāgaiya ahāro paliovamaim abbbahiyaim phumphuaggi (tā) (ka, kha, ga, ta) (ga) 2192 vāsapuhattam 2/241 etāsi (ka) (ga) (ka) (ga, ļa) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka, kha, ga) (ka) (ka) 2/149 3/5 sannāto joguvatoge kohakasāte kiphasessä ānapāņa chiravirajiya chirivirāliyā chirivaviralia chīravitāli thibhu tahappakārā duyagatiya adhäro palitovamāim abbhadhiyāim phumphaaggi pumphaaggi vāsapudhattam vāsapuhuttam etesi egāsi vaņapphai jotana ayabahule āvabah ule ābādhe jenimam asiuttare adasatiari atthuttare kindapuda pāhalenam kerisata phudigao sphutitao usunavedanijjesu viraiya ekāhan tattha yattha jambūnatamaya iambūnatāmaya vaņassatio joyanao āvabahule 316 3/33 (ka, kha, ta) (tā) 3/48 3/73 3/77 abādhāe je pam imam asīuttaram adahattare (tā) (ga) (ta) (ka, ga) (tā) 3177 3/80 3/94 3/96 kinhapuda bāballenam kerisagā phudita (ka, kha, ga) 3/118 3/118 3/119 3/234 usiqavedanijjesu viraciya egāham ettha (ma, vr) (tā) (ka, ga, ta) (kha, ga, ta) (ka, kha, ga, ta) (tā) (ka) (ga, ta, tâ) 3/323 jambūņadamaya Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3/371 3/372 3/412 3/593 3/733 3/750 3/748 3/794 3/798 3/829 3/838/13 3/840 3/841 3/841 3/841 3/860 3/877 3/949 3/998 3/1007 3/1007 3/1007 5137 5/54 5/58 9/11 9/28 9/131 uvagariyālayape khambhuggaya dhuvadhadiyão oviya" bäyälisam bāyālīsam kejäse egupayalam egayällsam tepatthepam manussāņam "E piodā °niodajīvā *piodajivā ovariyalayane uvakäriyalayane thambhuggaya dhumadhadiyão apáje sakāsāi ohidamsani uvvitiya uvviiya bādālīsam bätällsam ketiläse kailāse iūyalam üyalam iguyālam eyālīsam cgayallsam italisam eenatthepam manūsāņam kayaj balahaka bädare vijjukare vätare vijjutăre badare thaniyasadde vätare thanitasadde nadi oi va pihiti vā supakkakhoyarasei khodavarannam panditi va nidhayoti vā supikkakhot araseti khoyavaranpam khotodasarisam khodasarisath hetthimpi kaday! balāhată savvahe!!himayam savvahetthillam savvovarillam savvupparillam savvabbhimtarillam savvabbhantaram hatthimpi hitthampi njotā 'nigodajīvā "nioyajlvavi apadle sakasādi avadhidarhsani odhidatsapi Description of the Manuscript () Original text: leaves 94; samvat 1575; Hand-written. (ka, kha, ga, ta, tri) (tā) (ka, ga) (ka, kha) (ka, kha) (ga) (tä) (tā) (kha) (ga, ta, tri) (ka) (kha, tā) (ga) (ka, kha, ta) (ga) (tā) (ga, tri) (t) (tā) (ta) (tä) (tā) (ta) (ta) (ka, kha, ga, ta, tri) (tā) (ga, la, tā) (tri) (tā) (ka, kha, (a) (tä) (tä) (ka, kha, ga, ta, tri) TB F (ka, kha, ga, fa, tri) (ta) (tā) (ga, tri) (tā) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 This Ms. belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaia Library, Sardarshahar. It contains 94 leaves and 188 pages with 15 lines in each page and 53-56 letters in each line. Its size is 13" x 5". It is beautifully scribed. The following is the eulogy at the end :-- "Sarhvat 1575 varse äśvinamäse kṛṣṇapakṣe trayodaśyamh tithau bhrguvisare pattananagaramadhye modhajatiya Jost vitthalasuta latakanalikhitam. yad sam pustake drstam, tädṛśath likhitam maya/yadi śuddhamaśuddham va mama doso na diyate /1/ Subham bhavatu lekhaka-pathakayoh kalyanamastu. cha. cha. śrī śrī. cha. granthagra 5200. () Original text: leaves 80. This Ms. belongs to Sardarshahar mentioned above. It contains 80 leaves and 160 pages, with 15 lines in each page and nearly 61 letters in each line. Its size. 12" x 44". The Ms. is very old and tattered. The scribing year is not mentioned at the end, but most probably it must belong to the 16th century. (T) Original text: leaves 90. Illustrated. It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 90 leaves and 180 pages with 15 lines in each page and about 63 words per line. Its size is 114x4. On the first page there is beautiful illustration in golden ink of the image of the Tirthankaradeva. It is very beautifully scribed. In the centre there is bavaḍī and in the middle of that there is a red circular spot. There is no puspika and scribing year at the end of the ms, but most probably it belongs to the 16th century. It almost tallies with the palmleaf manuscript and the commentary. (87) Palmleaf photo-print of Jaisalmer Bhandāra. This copy mostly tellies with the commentary. It does not contain the pages containing the sutras 105-115 of the third pratipatti. (z) za Scribing year 1800. It belongs to the Order's Library, Ladnun. It had been thoroughly studied by Acarya Kälūganī (the eighth pontiff) and the text had been corrected by him at various places. Jīvājīvābhigama tīkā (Hand-written) It belongs to Shrichand Ganeshdas Gadhaiya Library, Sardarshahar. It contains 250 leaves, and 500 pages with 15 lines per page and about 65 letters per line. Its size is 10" x 4-1/4". The scribing year is samvat 1717. The script Is very beautiful. Acknowledgements Jainisam has a long tradition of councils held for compiling the texts of the Agamas. Ere 1500 years from today there had been four councils on Agama. After Devarddhigani no well-planned Agim council was held. The Agamas Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ compiled at that time fell into disorder during this long internal. So a wellorganised council was the need of the hour to revise the Āgamas again. Acārya Tulsī tried his best for a general consensus on Agama-editing but it could not materialise. Lastly it was decided that if our editing of Agamas is research-oriented, unbiased and punctilious, it will be universally accepted. On this consideration we started our work of holding the council for critically editing the Agamas. Acāryasri Tulsi is the chief of this vacanã. Vacană means "teaching”, that comprises so many activities like search of the correct text, translation, critical and comparative study, and so on. In all these activities the active cooperation, guidance and encouragement from the Acāryasri is always available to us. It was our forte for undertaking such onerous task. Instead of expressing my gratitude to the Acāryasri and thereby feeling relieved from the burden of his gratefulness, I feel it better to require more energy through his blessings and become heavier for taking up the next assignment. In editing the texts of Ovõiyam and Rāyapaseniyam of this book Muni Sudarshan, Muni Madhukara, Muni Hiralal and in editing the text of jivājīvābhigame Muni Sudarshan & Muni Hiralal have worked with diligence and perseverance. Muni Chatramal, Muni Balchand, Muni Hansraj and Muni Manilal have also lent remarkable cooperation is editing the text of Jivājīvābhigame. Word index of Oväiyam has been prepared by Muni Shrichand and that of Rāyapaseniyam and Jivājīvābhigame by Muni Hiralal. Muni Sudarshan, Muni Hiralal and Sādhvi Siddhaprajñā, and Samaņi Kusumaprajñā actively cooperated in correcting the proofs of the book. The general get-up of Ovãiyam and Rāyapaseniyam has been prepared by Muni Mohanlal "Amet". The first two indexes have been prepared by Muni Hiralal. In the revision of the text also he was remarkably helpful. While evaluating their cooperation in the accomplishment of this assignment 1 express my gratefulness to all of them. The services of Late Madanchand Gauthi, who had a deep insight into the Agamas and who helped me in editing the text of the Agamas, cannot be forgotten at this stage. If he had been alive, he would have been very happy at this achievemnt, Shri Shrichand Rampuria, Kulapati, Jain Vishva Bharati and the Managing Editor of Agama Literature, has been actively involved in the Agama work from the very beginning. He is fully-determined and working hard to reach the Agama literature to the laymen. Having relieved himself of his well-set Advocate's job he has been devoting most of his time to the Agama programme. Shri Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Khemchand Sethia, President and Shri Shrichand Bengani, Secretary of Jain Vishva Bharti have also actively cooperated in this task. The English rendering of the Editorial and the Introduction were done under the supervision of Dr. N. Tatia and Dr. V. P. Jain by Shri R.S. Soni & Samaņis Chinmayaprājñā and Ujjvalaprajñā have also been actively associated with it. It is simple formality to mention the names of those proceeding in the same direction with the same speed for a common goal. Really it is a sacred duty for us and we have all fulfilled it. -Yuvācārya Mahāprajña Adhyātma Sadhana Kendra, Mebrauði, Delhi. Akşaya Tstiya, Ist May, 1987. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The present book is Uvangasuttani. It contains the original text of twelve Upāngas with variant readings and abbreviated texts. It has two parts. The first part contains three Agamas (1) Oviyam, (2) Rāyapaseniyam and (3) Jivājīvâbhigame. The second part contains nine agamas : (1) Pannavana, (2) Jambuddivapannatli, (3) Candapannatti, (4) Surapannati, (5) Nirayāvaliyao (Kappiyao), (6) Kappavadisiydo (7) Pupphiyão, (8) Pupphacüliyão, (9) Vanhidasão. In the ancient tradition we find the following two classifications of the āgamas : (1) Arigapravişğa and (2) Angabahya. There was no such categorisation as Upanga in the old tradition. Nandisätra bears no mention of any Upanga. In any older agama too, Upānga has not been mentioned. The Tattvärthabháşya uses this word for the first time, which is the earliest in the available texts." Relation between Anga and Upanga Tattvārthasūtra mentions the word Upanga, but it does not indicate any relationship between them. We find it mentioned in the vrti of Jambūdvīpaprajñapti and the Sukhabodha Sāmācāri at page 34, composed by Shrichandra Sūri, the commentator of Nirayāvalika. According to Jambūdvipaprajñapti, the interrelationship between angas and upängas is shown as under :Anga Upanga Acárāöga -Aupapātika Sūtraktärga -Rájapraśniya Sthânẵnga -Jivajtvábhigama Samavāyanga -Prajiapana Bhagavati --Jambūdvipaprajtapti Jñatādharmakatha -Candraprajāapti Upåsakadaśă -Suryaprajšapti AntakȚddaśa -Nirayāvalika( Kalpika) Anuttaropapātikadasă --Kalpāvatansika 1. Tattvārthabhāsya, 1/20 : tasya ca mahāvisayatvättăastanarthanadhikstya prakaranasamăptya peksamangopădgan&nātvam. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Praśnavyākarapa -Puspika Vipāka śruta - Puşpacủlika Dşstivāda -Vrşpidašā! 1. Ovaiyam Nomenclature The present agama is called Ovõiyam (Aupapātikā). Its main theme is udapāta. Samavasarana is its incidental treatment. On the basis of the main theme treated herein, it is known as Ovãiyam (Skt. Aupapāt ika). On deleting Jetters "va” as per the Prakrit Grammar Rule, we get ovāiyam form in place of ovavăiyam. We come across the same name in the Nandisutra. Subject-Matter The main theme enunciated in the Aupapātika is 'rebirth, that so and so upapăta (instantaneous rebirth) takes place because of such and such conduct. The exordium consists of many types of descriptions of town, monastery, garden, king etc. The present sūtra has come to be known as a Varņaka (describer) sūtra because of these descriptions and has been used in various epilogues for this reason. Commentaries The first commentary of the Aupapātika is the vitti by Abhayadeva Sūri, the commentator of the nine agamas. The introductory verse shows that Abhayadeva Súri had got no other earlier vpiti in front of him. He composed this vrtti with the help of other texts. He himself mention : Śrīvarddhamānamānamya prāyo'nyagranthaviksitā / aupapātikaśāstrasya vyakhyā kācidvidhīyate 11 The commentator has mentioned the views of the foregoing åcāryas at - several places. 1. Snānādvă pāņdurībhūtagătrā iti vrddhāb/(Vștti p. 171) 2. cūrņikārastvāha/(Vịtti p. 224) 3. asya ca vfddhoktasyādhik tagāthavivaranasyärtham bhāvarthah/ (Vrtti p. 225) This commentary is neither too elaborate not too abridged. Its medium size contains most of the points worth discussing. The Oväiyam contains numerous variant readings. Abhayadeva has des. cribed the first sūtra thus-"This sūtra is abundant in variant readings. I shall deal with only what is intelligible."3 Most probably such variant readings do 1. Jambüdvipaprajñapti, Sänticandriya Yrtti, patra 1, 2. 2. Nandīsūtra, 76. 3. Aupapātika, yrtti, page 2: jha ca bahavo vācapabhedā drśyadio, teşu ca yamevāvabhotsyåmahe tameva vyākhyāsyāmah. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ not appear in any other sūtra. If the commentator had not compiled them, they would have passed into oblivion. The commentary ends with an eulogy in three verses, in which the commentator mentions the names of his guru-Shri Jineśvara Süri, of the Candra lineage, and the place of composition- Anahilapā takanagar and Droņācārya who revised the Vštti: candrakula-vipula-bhūtala-yugapravara-vardhamānakalpataron / kusumopamasya süreh gusasaurabha-bharita-bhavanasya !! nissambandhavihārasya sarvada śrljineśvarahvasya / šişyeņābhayadevākhyasūripeyam kştā vsttih | anahilapāțakanagare śrímaddroņākhyasūrimukhyena / panditagupena guravatpriyeņa samsodhitā ceyam Il The second commentary on the Ovaiya is 'Stabaka', which was probably composed by Muri Dhamasi and belongs to the eighteenth century of the Vikram era 2. Rayapaseniyam Nomenclature This sutra is called Rāyapaseniyam. Pt. Bechardas Doshi has named it as Rayapasenaiyam, stating that it is based on the 'Rajaprasenakiya' referred to by Siddhasenagani and Rajaprasenajita referred to by Muni Candrasuri.1 The earliest mention of this sūtra is found in Nandisútra, under the name Rāyapaseniya. The name has not been explained in the Nandi cūrni and its commentaries by Haribhadrasūri and Acātya Malayagiri who has named it as Rājapraśniya' while dealing with it. King Pradeśī had asked some questions to Kesisvámi. The present sūtra contains replies to the questions and hence the name 'Rajapraśniya'.3 From the point of view of treatment of the subject-matter, Malayagiri's commentary is quite in order and the name does not sound awkward or improper on that account. But lexicographically the name is open to criticism, specially by Pt. Bechardas who contends that --"the word 'praśna' takes the forms 'punha' and 'pasina' in Prakrit, and not the form 'pasena'. There is no form as 'pasena' according to Prakrit grammar. If we recognise it 1. Răyapasenaiyam, praveśaka, Page 6 & 7. 2. Nandi, sūtra 77. 3. (a) Rāyapasenya vftti, page 1 : atba kasmäd idam upangam rajaprašolyābhidhanamiti? ucyate, iha pradesinamā rājä bhagavataḥ keśikumāraśramanasya samipe yan jivavisayan praśnánakārşit, yāni ca tasmai kesikumāraśramanoganabhri vyākaranäni vyäkfiavān. (b) Rāyapaseniya Vğiti, page 2: rājaprašnesu bhavam rājapraśniyam, Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ as an authoritative form (årsa), all rules about the correct or wrong usage of words in Prakrit would have been set to naught." Pt. Bechardas's contention may be valid, but it is not irrefutable. In our view (1) The original form of 'paseniya' is ‘pasiniya' (Skt. praśnita). In pronunciation , assumption of the form 'i' by fe is quite consistent. We find such departure elsewhere too. For example :-- pihuniņam pehunenam (Desi) nivvānam nevyāpam (Skt. nirvānam) nivvuti nevvuti (Skt. nirvęttih) tigicchiyam tegicchiyam (Skt. cikitsitam) binţā bentā (Skt. vịttam) bi be (Skt. dyi) tikālam tekālam (Skt. trikalam) (2) In the Agama-sútras and old scriptures we find the text as rāyapaseniya'. The usage 'rāyapasepaiya' is not available anywhere. In the Nandisutra we come across 'rāyapaseņiya' as mentioned earlier. In 'Pākṣika sūtra' too, fráyappaseniya' occurs. The composer of the avacũri of Päksika sūtra gives its Sanskrit form as 'rājapraśniyam'. (3) Prasenajit takes the form 'pasepaiya' in Prakrit In the Sthânănga sätra the fifth kulakara is named as 'pasepaiya'.' This form is avajlable at various other places too. If the subject matter of the present sūtra had been related to King Prasenajit, the name could have been "Rāyapasenajyam". But in fact the subject matter relates to King Paesi; hence the form "rāyapasepaiya" is not compatible. In the Dighani kāya King Pāyāsí is mentioned as a feudal lord to Prasenajit. But here we find no mention of King Prasenajit. Therefore the usage 'Rāyapaseņaiyam' has no basis. From the point of view of the subject matter we may conjecture about the name "Rāyapaesiyam', but there is no basis for such a conjecture. King Pradesi's quei ses form the basis of the composition of the sutra in question. Therefore its name must be 'Rāyapaseniya' and none else. Commentaries Its two commentaries are named as (i) vsiti, and (ii) stabaka tabbā or 1. Råyapasenaiyam, pravesaka, page 6. 2. Päksikasütram, page 76. 3. Pāksikasūtram Avacüri, page 77: Rājñab pradesi nämnab praśnāni, tänyadhiktya kytam adhyayanam--rājapraśniyam. 4. Thāpam, 7/62 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ bālāvabodha). The former is in Sanskrit while the latter is in the admixture of Rajasthani and Gujarati. Výtti was composed by the renowned annotator Ācārya Malayagiri while the stabaka was written jointly by Pārsvacandragapi (16th Century) and Muni Dharmasingh (18th Century). Stabaka is a short piece of translation but viti is the real commentary which ciarifies the underlying meaning of the sutra. Although the writi has not been able to explain the whole theme, yet the commentator has provided valuable information at various places. The author had to face many obstacles in writing the vriti, the most difficult of them being the variations in text. He has mentioned this difficulty at several places. To surmount these obstacies the yoti has been bifurcated in two parts: (i) The first part : for commentary of intelligible words, and (ii) the later part : for commentary of technical terms. Thus the first part is quite extensive, while the later part is brief. The causes of detailed treatment in the first part are twofold: (a) Novelty of the subject matter. (b) Abundance of variant readings. Likewise the later part has been treated in brief due to the following reasons: (a) Intelligibility of the text. (b) Repetition of the terms already explained. (c) Small number of variant readings.? The commentator desires us to learn the mundane topics from the experts of that art.Both Rājapraśniya and Jivābhigama bear identical topics at various places. Acārya Malayagiri is the commentator of both of them. That is why the topics of the commentaries are largely identical. The commentator had obviously got the original commentary of Jivābhigama, which fact has been mentioned time and again in this commentary. 1. Rayapaseniya Vetti, p. 204,241,259. 2. Rayapaseniya Vrtti, page 239 : iba prāktano granthaḥ prāyo'pūrvah bhūyidapi ca pustakesu vācapabhedastato mā'bhūt sisyānām sammoha iti kväpi sugamo'pi yathavasthitavācanākramapradarśanartham likhita. ita ürdhvam tu prāyaḥ sugamah prāgvyakhyātasvarūpasca na ca vācanabhedo pyatibādara iti svayam paribhāvanīyaḥ, vişamapadavyakhya tu vidhäsyate ita. 3. Ibid., page 145: ete nartanavidhayah abhinayavidhayaśca națyakusalebhyo veditavyäh. 4. (a) Ibid, page 100 āba ca jīvābhigamamülaţikäkrt vijayadāsyam vastraviśesah iti. (b) Ibid, page 158: äha ca jivăbhigamamülaţikākārah argalāprāsāda yaträrgala niyamyante iti, Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EE At one stage Jiväbhigama carpi has also been mentioned. Vrtti contains 3700 Slokas : pratyakṣaragapanãto granthamanamh vinifcitam / saptatrithsacchatänyatra ślokanām sarvasathkhyaya // At the very outset, the commentator remembers Lord Mahavira reverentially and with guru's permission proceeds with the commentary on the Rajaprasnya sutra :---- pragamata virajinesvaracaranayugarh paramapātalacchiyam / adharikṛtanatavāsavamukutasthitaratnarucicakram // rajapraśnlyamahami vivrpomi yatha'gamamh guruniyogat / tatra ca śaktimalaktith guravo jananti kā cinta // At the end, the commentator prays for the victory of his preceptor as also attainment of knowledge for the reader - adharikitacintamani-kalpalatā-kämadhenu-mähätmyäḥ / vijayantah gurupädäb vimalikṛtasısyamativibhavaḥ // rajapraśnlyamidam gambhirärthath vivrovata kuśalam / yadavapi malayagiriņā sädhujanastena bhavatu kṛt? 1 jivabhigamamalaṭīkākāreņa-avarttanapithika yatrendrakilako bhavatiti. (c) Ibid, page 159: Aha ca jivabhigamamülatikákṛt-kūto maḍabhāgaḥ ucchayab sikharam iti. Aha ca-jlvabhigamamülaṇlkäkṛt-ankamayaḥ pakṣästadekadeśabhätä evam paksa bahavo'pi drstavya iti. (d) Ibid, p. 160: uktañca jivābhigamamulaţīkākārepa ohädapi haragrahapam ? mahat kşullakam ca puñchan?' iti. (e) Ibid, p. 161: aha ca jtvabhigamamülatıkākṛt-naisedbiki nişldanasthanam iti. (f) Ibid. p. 168: aha ca jtvabhigamamülaṭikākāraḥ-prakapthau pithavideşi it. (g) Isid, p. 169: ukta ca jtvabhigamamülatikāyām-prāsādāvatamsakau prāsādavišeṣauit. (h) Ibid, p. 176: uktan ca jivabhigamam@latikäyäm-manogulikā nāma pithika iti. (i) Ibid, p. 177: ukta ca vabhigamamlatikkarega-hayakanthau-hayakanthapramāņau evam sarve'pi kanṭhā vācya iti. (i) lbik, p. 180: ukta ca jtvabhigamamülaṭīkāyām-tallasamudgakau sugandhitaifädhārau. (k) Ibid, p. 189: jtvābhigamamlaşıkäyämapi (46)-uppittham Svasayuktam iti. (1) Ibid, p. 195: uktañ ca jivabhigamamülatikäyäm-dagamandapab-sphātikā (m) Ibid, p. 226: manḍapa iti. jivabhigamamülajskākāraḥ-bibboyana-upadhanakanyucyante iti, ratoavis:au Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ED JIVĀJĪVĀBHIGAME Nomenclature The agama under review is Jiväjlväbhigame. Jiva and ajiva-the two basic tattvas have been dealt with herein, hence it has been named as Jivājīvā. bhigama. It contains nine chapters in which the sentient beings have been numerically classified : 1. Two kinds of mundane beings-mobile and immobile. 2. Three kinds of mundane beings-woman, man and eunuch. 3. Four kinds of mundane beings-hellish-beings, animals, men and gods. 4. Five kind of mundane beings-one-sensed, two-sensed, three-sensed, foursensed and five-sensed. 5. Six kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, airbodied, vegetation-bodied and mobile-bodied beings. 6. Seven kinds of mundane beings-hellish, male animals, female animals, men, women, gods and goddesses. 7. Eight kinds of mundane beings-first time heilish, second time hellish, first time animal, second time animal, first time man, second time man, first time god, second time god. 8. Nine kinds of mundane beings-earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, airbodied, vegetation-bodied, two-sensed, threesensed, four-sensed and five-sensed. 9. Ten kinds of mundane beings-one time one-sensed, second time one-sensed, one time two-sensed, second time two-sensed, one time three-sensed, second time threesensed, one time four-sensed, second time four-sensed, first time five-sensed, second time five-sensed. The whole of Jiväbhigama has been dealt with upto the end of the eighth sutra of the ninth pratipattt. This classification is based on various other criteria, c.g., two kinds of sentient beings-emancipated (siddhu) and nonemancipated (asiddha). A sentient being has three other categories too-one possessing right vision, perverted vision and right-cum-perverted vision. In this agama secondary subjects are available in abundance, which provide detailed information about Indian society and life. From the architectural point of view the description of 'padmavara' (lotus) altar and 'vijayadvāra' (gate of victory) is very important. The &gama is a compilation of various ddefas (view-points). The sthaviras Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ held divergent views on single topics. The word adeśa was used for a viewpoint. This agama is supplementary in nature. Hence it embodies various view-points of the sthaviras. The commentator uses adeśa in the sense of "kinds". In essence the compilation of various viewpoints is clearly proved. In Jiväjivabhigame, 2/20, we find four adeśas whereas in 2/48 there are five. The commentator is of the view that only the extraordinarily gifted persons can pass a judgment as to which of five alesas is proper. There were no such gifted persons during the period of the sthaviras, hence the commentator has obviously abstained from expressing his own views on the subject. He has simply compiled the available adelas. The sthaviras are the authors of this agama. This is clearly indicated at the beginning of the agama." Commentaries Two commentaries are available on this sūtra-one by Acarya Haribhadra, and the other by Acarya Malayagiri. The former is concise whereas the latter is quite cloborate. Malayagiri's vṛtti contains the ascription "iti vṛddhāḥ" as well as the mention of the original text, the commentator and the curni at several places: £ " "iti vṛddhab 'iyam ca vyakhya mülaṭīkānusärena kṛtā "uktafica mülaṭīkāyām" "aha ca mülaṭikäkit *tai ca mulaṭīkākṛtä vaiviktyena na vyakhyātā iti sampradayādavaseyāḥ** 'mülatkäkäreṇāvyākhyānāt aha ca malaṭkākāraḥuktam cürpau 'àha ca mulat!kükärab-uktam mülaṭīkākārena' 1. Jiväjivabhigama, Vrtti p. 53: "adeśa sabda iha prakāravāci"-adesotti pagaro'iti vacanãt, ekenaprakāreņa, ekaprakāramadhikrtyetibhāvārthab". 2. Ibid., p. 59: amişăm ca pañcānāmādeśānāmanyatamādeśasamīcīnatānirṇayo'tiśayajñānibhiḥ sarvotkṛṣṭaśruta labdhisampannairvā kartum sakyate te ca sūtrakṛtpratipattikāle nāsīranniti sūtrakṛona nirnayam kṛtavāniti”. 3. Jiväjivabhigame, 1/1: "iha khalu jinamayam jinanumayam jipanulomam jigappagitam jinaparūviyam jipakkhāyam Jānucinoam jipapagpatam jinadesiyam jinapasatthen apuvli tam saddahamāņā tam pattiyamāṇā tam pattiyamanā tam roemana thera bhagavanti jīvājivābhigamne pāmajjbayanam panavaimsu". 4. Vrtti, p. 27 5. D. 64 6. p. 109 7. p. 122 "1 " 8. 9. 10. 11. " " 33 p. 136 p. 136 p. 137 p. 180 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fuktar mūlaţikāyam' ‘äha ca mulațīkākäraḥ2 fuktam ca mülatīkāyām" 'âha ca mūlaţikäkāraḥ'i *aha ca mulaţikākärah ‘uktañca múlatikāyām" ‘uktañca mülaţikēkārena" 'äha ca mülaţikäkārah', 'cūrņikăstvevamāha's *äha ca mulațīkākārah' "aha ca cúrnikȚt": ‘uktanca mülaţikāyām', 'Jīvābhigama mülaţikāyām 10 'äha ca mulaţikākāro'pi'. 'āna ca cürņiksto!1 ‘tathā cāna mūlatīkākārah:12 'äha ca mülacūrni krt 13 'mülatīkåkāro'pyāha......cũrņikäro'pyāhald 'ha cūrņikst'5 'tathä сāha mülatīkākāraḥ 18 ‘äha ca cürņikrt'17 ‘uktañ cūļņau’18 ‘äha ca mülatīkākaraḥ’is ‘āha cūrņikft áha ca tīkākāraḥ 20 ‘mūlațīkākāreņāpi 21 'ha ca mülatīkākāraḥ:22 Fulfilling the assignment The credit of editing this text goes to a great extent to Yuvācārya Maháprajña, because the work has been accomplished through his perseverance day and night, otherwise this onerous task was difficult to be finalised He is basically inclined towards yoga. Therefore it is easy for him to maintain his equipoise (concentration). Not only that, being engrossed in the study of the Agamas in a routine manner he has developed a keen intellect in grasping the inner mysteries of things. The credit of his intellectual development goes to his humbleness, diligence and total surrender to his preceptor. He has been displaying such inclination since childhood. Since he came over to me, this 1. VȚtti, p. 141 12. Vrtti, p. 354 2. p. 142 13. P. 369 3. p. 142 14. , p. 370 4. , p. 277 15: „ p. 384 5. , p. 186 16. . 438 6., p. 204 17. , p. 441 7. , P 205 18. p. 442 8. , p. 209 19., p. 444 9., p. 210 20., p. 450 10., p. 214 21. , p. 452 11. p. 321 22. . p. 457 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ learning has been gradually increasing. I am quite satisfied with his capacity to work and his dutifulness. Seve.al other saints have cooperated in revising the text of this agama. heartily bless them and wish that their work-born capacity should develop all the more. My joy knows no bounds to see that the gigantic task of text revision has been successfully brought to completion through the cooperation of my disciples -the monks and nuns of the order. Adhyatma Sadhana Kendra, Mehrauli-New Delhi, Akşaya Tṛtlyā, 1st May, 1987. -Acarya Tulsi Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवानीवाभिगमे पढमा दुविहपडिवत्ती सूत्र १४३ पृ० २१५ से २३७ उक्खेव-पदं १, अजीवाभिगम-पदं ३, जीवाभिगम-पदं ६, पुढविका इय-पदं १३, आउकाइय-पदं ६३, वणस्सइकाइय-पदं ६६, तेउकाइय-पदं ७६, वाउकाइय-पदं ८०, बेइंदिय-पदं ८४, तेइंदिय-पर्द ८८, चरिदिय-पदं ८६, नेरइय-पदं ६२, तिरिक्खजोणिय-पदं १७, मणुस्स-पदं १२६, देव-पदं १३५ । दोच्चा तिविहपडिवत्ती सू० १५१ पृ० २३८ से २५६ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती सू० ११३८ पृ०२५७ से ४७३ नेरइयउद्देसओ बीओ ७६, नेरइय उद्देसओ तइओ १२८, तिरिक्खजोणियउद्देसओ पढमो १३०, तिरिवखजोणिय उद्देसओ बीओ १८३, विसुद्धलेस्स-पदं २०४, मणुस्साधिगारो Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२, देवाधिकारो २३०, दीवस मुद्दवत्तध्वयाधिकारो २५७, विजयदाराधिकारी २९९, विजयाए रायहाणीए अधिकारो ३५१, विजयदेवाधिगारो ४३६, वेजयंतादि-अधिगारो ५६६, जंबुद्दीवाधिगारो ५७१, जंबुद्दीवे चंदसूरादि-अधिगारो ७०३, लवणसमुद्दाधिगारो ७०४, घायइसंडदीवाधिगारो ७६६, कालोदसमुद्दाधिगारो ८१०, पुक्खरवरदीवाधिगारो ८२१, मणुस्सखेत्ताधिगारो ८३५, जोइसमंडलाधिगारो ८३८, माणुस्सोत्तरपवताधिगारो ८३६, चंदादीणं उक्वन्नाधिगारो ८४२, पुक्खरोदसमुद्दाधिगारो ८४८, वरुणवरदीवाधिगारो ८५६, वरुणोदसमुहाधिगारो ८५६, खीरवरदीवाधिगारो ८६२, खीरवरसमुदाधिगारो ९६२, घयवरदीवाधिगारो ८६८, घयोदसमुद्दाधिगारो ६७१, खोदवरदीवाधिगारो ९७४, खोदोदसमुद्दाधिगारो ८७७, गंदिस्सरवरदीवाधिगारो ८८०, णंदिस्सरोदसमुद्दाधिगारो १२५, अरुणादिदीवस मुद्दाधिगारो ६२७, दीवसमुद्दपरिमाणाधि गारो ६५३, लवणादिसमुद्द-उदयरसाधिगारो ६५५, समुहेसु जीवाधिगारो १६५, दीवसमुद्दाणं नामधेज्जादिअधिगारो ६७२, इंदियविसयाधिगारो ६७६, देवगति-पदं ९८८, देवविगुठवणा-पदं ६६०, जोइसउद्देसओ REE, वेमाणियउद्देसओ पढमो १०३८, वेमाणियउहेसमो बीयो १०५७ चउत्थी पंचविहपडिवत्ती सू० २५ पृ० ४७४ से ४७६ पंचमी छब्धिहपडिवत्ती सू० ६० पृ० ४७७ से ४८७ छट्ठी सत्तविहडिवत्ती सू० १२ पृ० ४८८ से ४८६ सप्तमी अविहपडिवत्ती पृ० ४६० से ४६१ अट्ठमो नवविहपडिवत्ती पृ० ४९२ नबमी वसविहडिवती पृ० ४६३ से ५१५ सू० २३ स० २९३ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत-निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठ-पूर्ति के द्योतक हैं। पाठ-पूर्ति के प्रारम्भ में भरे बिन्दु और समापन्न में रिक्त बिन्दु ० का संकेत किया गया है । देखे, पृष्ठ ८, सू ८ ' ' यह दो या उससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है। ० पाठ में संलग्न दिया गया एक बिन्दु अपूर्ण पाठ होने का सूचक है। देखें, पृष्ठ ३, पाठान्तर १२, पृ० ११६. सूत्र १४२ [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिह्न आदशों में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें, पृ० २२, सूत्र ३२ x क्रोस पाठ नहीं होने का द्योतक है। देखें, पृ० १ पाठान्तर ६ जाव आदि पर जो अंक है वे पूर्ति आधार स्थल के द्योतक है। जैसे-पृ०६, पाठान्तर १५ पृ० १०२ सूत्र ६६ पाठान्तर का अंक ६ पृ० ६७, सूत्र ४५, पाठान्तर का अंक ५ पृ० ११५, सूत्र १३६, पाठान्तर का अंक १४ पृ० ११६, सूत्र १४२, पाठान्तर का अंक २ पृ० १२५, सुत्र १२६, पादटिप्पणांक १,२,३ आदि सं० पा० संक्षिप्त पाठ नाघु० नायाधम्मकहाओ वृत्ति जं० पुवृ० जंबुद्दीवपण्णत्ती पुण्यसागरीयवृत्ति , शावृ० ॥ ॥ शान्तिचन्द्रीयवृत्ति " होवृ० , , हीरविजयवृत्ति राय० वृ० रायपसेणियं वृत्ति राय० सू० रायपसेणियं सूत्र मो०सू० मोवाइयं सूत्र उत्त० उत्तरज्झयणाणि भ० भगवती पण्ण. पण्णवणा जी० जीवा जीवाजीवाभिगमे जंबु० जंबू० जंबुद्दीवपणती पाहा. पण्हावागरणं Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती उक्खेव पदं १. इह खलु जिणमयं जिणाणुमयं जिणाणुलोमं जिणप्पणीतं जिणपरूवियं जिणवखायं जिणाचिण्णं जिणपण्णत्तं जिणदेसियं जिणपसत्थं अणुवीइ तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा' थेरा भगवंतो जीवाजीवाभिगमं णामज्झयणं पण्णवइंसू ॥ २. से कि तं जीवाजीवाभिगमे ? जीवाजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--जीवाभिगमे य अजीवाभिगमे य ॥ अजीवाभिगम-पदं ३. से किं तं अजीवाभिगमे ? अजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा---रूविअजीवाभिगमे य अरूविअजीवाभिगमे य । ४. से कि तं अरूविअजीवाभिगमे ? अरूविअजीवाभिगमे दसविहे पण्णत्ते, तं जहाधम्मत्थिकाए “धम्मस्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासस्थिकाए आगासस्थिकायस्स देसे आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए° । सेत्तं अरूविअजीवाभिगमे ॥ ५. से किं तं रूविअजीवाभिगमे ? रूविअजीवाभिगमे चउविहे पण्णत्ते, तं जहाखंधा खंधदेसा खंधप्पएसा परमाणुपोग्गला । ते समासओ पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा१. नमो उसभादियाणं चउवीसाए तित्थगराणं २. ४ (ख); जिणाणलोमं जिणदिहियं (ता)। (क, ख, ग); नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं ३. जिणखायं (ख); जिणखातं जिणाणुभासियं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए (ता)। सव्वसाहूणं नमो उसभादियाणं चउवीसाए ४. अणुवीतियं (क, ख); अणुपुटवीए (ग, ट)। तित्थगराणं (ट); हारिभद्रीयवृत्ती मलयगिरि- ५. रोतमाणा (ता)। वृत्तौ च पाठान्तरे लिखितं सूत्रं नास्ति विव- ६. णाम अज्झयणं (ता)। तम, ताडपत्रीयप्रतावपि एतत् नास्ति लिखितम, ७. पण्णविसु (ख)। अतः प्रतीयते इदमस्ति अर्वाचीनम् । स्तबक- ८. सं० पा०-एवं जहा पुण्णवणाए जाव सेत्तं । प्रतौ नमस्कारसुत्रमपि लिखितं दृश्यते । एतत् ६. सेतं (क, ख, ग, ता)। अर्वाचीनतरं संभाव्यते । २१५ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ जीवाजीवाभिगमे वण्णपरिणया गंधपरिणया रसपरिणया फासपरिणया संठाणपरिणया। 'जे वण्णपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-कालवण्णपरिणता नीलवण्णपरिणता लोहियवण्णपरिणता हालिद्दवण्णपरिणता सुक्किलवण्णपरिणता। जे गंधपरिणता ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुब्भिगंधपरिणता य दुठिभगंधपरिणता य ! जे रसपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा–तित्तरसपरिणता कडुयरसपरिणता कसायरसपरिणता अंबिल रसपरिणता महुररसपरिणता। जे फासपरिणता ते अट्टविहा पण्णत्ता, तं जहा-कक्खडफासपरिणता मउयफासपरिणता गरुयफासपरिणता लहुयफासपरिणता सीयफासपरिणता उसिणफासपरिणता निद्धफासपरिणता लुक्खफासपरिणता। जे संठाणपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा--परिमंडलसंठाणपरिणता वट्टसंठाणपरिणता तंससंठाणपरिणता चउरंससंठाणपरिणता आयतसंठाणपरिणता"। एवं ते जहा पण्णवणाए। सेत्तं रूविअजीदाभिगमे । सेत्तं अजीवाभिगमे ।। जीवाभिगम-पदं ६. से किं तं जीवाभिगमे ? जीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा--संसारसमावण्णजीवाभिगमेय असंसारसमावण्णजीवाभिगमे य। ७. से कि तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे ? असंसारसमावण्णजीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणंतरसिद्धासंसारसमावग्णजीवाभिगमे य परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे य॥ ८. से कि तं अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे ? अणंतरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे पण्णरसदिहे पण्णत्ते, तं जहा–तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्धा सयंबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धवोहियसिद्धा इत्थीलिंग सिद्धा पुरिसलिंगसिद्धा नपुंसकलिंगसिद्धा सलिंगसिद्धा अण्णलिंगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा एगसिद्धा अणेगसिद्धा । सेत्तं अणंतरसिद्धा ।। ६. मे किं तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे ? परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा-अपढमसमयसिद्धा-दुसमयसिद्धा जाव अणंतसमयसिद्धा। से तं परंपरसिद्धासंसारसमावण्णजीवाभिगमे । सेत्तं असंसारसमावण्णजीवाभिगमे ।। १०. से किं तं संसारसमावण्णजीवाभिगमे ? संसारसमावण्णएसु णं जीवेसु इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जति, तं जहा--- १. एगे एवमाहंसु-दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पप्णत्ता । २. एगे एवमाहंसु-तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। ३. एगे एवमाहंसु--चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। १. एतावान् पाठः आदर्शेषु नास्ति, किन्तु ३. समावण्णगजीवाभिगमे (क, ख, ग, ८) प्रज्ञापनातः (१।४) पूरितोस्ति । सर्वत्र। २. पण्ण० ११४-६ ४. सं० पा०--तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ पढमा दुविहडिवत्ती ४. एगे एवमाहंमु-पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। ५. “एगे एवमाहंसु-छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णतः । ६. एगे एवमाहंसु-सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। ७. एगे एवमाहंसु-अट्टविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता । ८. एगे एवमाहंसु-नवविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता! ६. एगे एवमाहंसू.----दस विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। ११. तत्थ णं जेते' एवमाहंसु 'दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंमु तं जहा-तसा चेव थावरा चेव ।। १२. से कि तं थावरा ? थावरा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया आउकाइया वणस्सइकाइया । पुढविकाइय-पदं १३. से कि तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य ।। १४. से कि तं सुहुमपुढविकाइया ? सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णता, तं जहापज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । संगहणीगाहा सरीरोगाहण-संघयण'-संठाणकसाय तह य हुँति सण्णाओ। लेसिदिय-समुग्घाओ, सण्णी वेए य पज्जत्ती ॥१॥ दिट्ठी दंसणनाणे, जोगुवओगे तहा किमाहारे।। उववाय-ठिई समुग्धाय-चवण-गइरागई चेव ।।२।। १५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णता. तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । १६. तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंगुलासंखेज्जइभाग', उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं ।। १७ तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा कि संघयणा पण्णता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणा" पण्णत्ता ।। १८. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किं संठिया पणत्ता ? गोयमा ! मसूरचंदसंठिया पण्णत्ता ।। १६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा–कोहकसाए' माणकसाए मायाकसाए लोहकसाए । १. मं० पा०—एएणं अभिलावेणं जाव दसविहा। ६. अंगुलस्स असं° (ट, ता) उभयत्रापि । २. जे (ग)। ७. छेवट्ठ (क, ख, ग, ट); सेवट्ट '(ता)। ३. संधतण (ता)। ८. मसूरगचंद (ट); मसुराचंदा (ता) । ४. सण्णातो (क)। ६. कोहकसाते (क)। ५. जोगुवतोगे (क)। १०. मायकसाए (ग) Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जीवाजीवाभिगमे २०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सण्णाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चित्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा' भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा ॥ २१. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तिण्णि' लेस्साओ पण्णत्ताओ तं जहा-कण्हलेस्सा' नीललेस्सा काउलेस्सा ।।। २२. तेसि णं भंते ! जीवाणं क इ इंदियाई पण्णत्ताई ? गोयमा ! एगे फासिदिएँ पण्णत्ते ॥ २३. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ समुग्धाया पण्णता ? गोयमा ! तओं समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा-~-वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्घाए मारणं तियसमुग्घाए । २४. ते णं भंते ! जीवा किं सण्णी असण्णी ? गोयमा ! नो सण्णी, असण्णी ।। २५. ते णं भंते ! जीवा किं इत्थिवेया पुरिसवेया णपसगवेया ? गोयमा ! णो इत्थिवेया णो पुरिसवेया, णपुंसगवेया॥ २६. तेसिणं भंते ! जीवाणं कई पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि पज्जत्तीओ पण्णत्ताओ, त जहा--आहारपज्जत्ती सरीरपज्जत्ती इंदियपज्जत्ती आणपाणपज्जत्ती ।। २७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--आहारअपज्जत्ती जाव आणापाणुअपज्जत्ती ।। २८. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी? गोयमा ! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी ॥ २९. ते णं भंते ! जीवा किं चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदसणी केवलदसणी ? गोयमा ! नो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, नो ओहिदसणी नो केवलदसणी ।। ३०. ते णं भंते ! जीवा कि नाणी अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी, नियमा दुअण्णाणी, तं जहा-मइअण्णाणी सुयअण्णाणी' य॥ ३१. ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी वइजोगी" कायजोगी ? गोयमा ! नो मणजोगी. नो वडजोगी. कायजोगी। ३२. ते णं भंते ! जीवा किं सागारोव उत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि।। ३३. ते णं भंते ! जीवा किमाहारमाहारेंति ? गोयमा! दवओ अणंतपएसियाई दव्वाई, खेत्तओ असंखेज्जपएसोगाढाइं, कालओ अण्णयरसमयट्टिइयाई, भावओ वण्णमंताई १.सं० पा०—आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा । पज्जत्तीओ ४ पढमाओ। अपज्जत्तीओ वि २. तओ (क, ख)। एताए चउक्को। ३. किण्ह (ग, ट)। ७. आणपाण' (ट)। ४. फासिदिते (क)। ८. सम्ममिच्छा' (ग); सम्मामिच्छ (ट)। ५. ततो (ग)। ६. सुति (ता)। ६. २६, २७ सूत्रद्वयस्थाने 'ता' संकेतितादर्श १०. बय" (ट)। इत्थं संक्षिप्तपाठोस्ति-तेसि णं भंते कति Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २१९ गंधमंताई रसमंताई फासमंताई।। ३४. जाई भावओ वण्णमंताई आहारेति ताई कि एगवण्णाई आहारेंति ? दुवण्णाई आहारेति ? तिवण्णाइं आहारेति ? चउवण्णाई आहारेति ? पंचवण्णाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाइंपि दुवण्णाइंपि तिवण्णाइंपि चउवण्णाइंपि पंचवण्णाइपि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालाइंपि आहारति जाव सुक्किलाइंपि आहारेति ॥ ३५. जाई वण्णओ कालाई आहारेति ताई कि एगगुणकालाई आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई आहारति ? गोयमा ! एगगुणकालाइंपि आहारति जाव अणंतगुणकालाइंपि आहारेति । एवं जाव सूक्किलाई ॥ ३६. जाई भावओ गंधमंताई आहारेति ताई कि एगगंधाइं आहारेंति ? दुगंधाई आहारेंति ? गोयमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगगंधाइंपि आहारति दुगंधाइंपि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च सुब्भिगंधाइंपि आहारति दुब्भिगंधाइंपि आहारेति ॥ ३७. जाइं गंधओ सुब्भिगंधाइं आहारेति ताई कि एगगुणसुब्भिगंधाई आहारेति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई आहारेंति ? गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाइंपि आहारेति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाइंपि आहारेति । एवं दुब्भिगंधाइंपि ॥ ३८. रसा जहा वण्णा ।। ३९. जाई भावओ फासमंताई आहारेंति ताई कि एगफासाइं आहारेंति जाव अट्ठफासाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च नो एगफासाइं आहारेति नो दुफासाइं आहारेंति नो तिफासाइं आहरेंति, च उफासाई आहारेति पंचफासाइंपि जाव अट्ठफासाइंपि आहारति, विहाणमगण पडुच्च कक्खडाईपि आहारेंति जाव लुक्खाइंपि आहारेति ।। ४०. जाई फासओ कक्खडाई आहारति ताई कि एगगुणकक्खडाइं आहारति जाव अणंतगुणकक्खडाई आहारेति ? गोयमा ! एगगुणकक्खडाइंपि आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाइंपि आहारैति । एवं जाव लुक्खा णेयव्वा ।। ४१. ताई भंते ! किं पुट्ठाइं आहारेंति ? अपुट्ठाई आहारेति ? गोयमा ! पुट्ठाई आहारेति नो अपुढाई आहारेति ॥ ४२. ताई भंते ! किं ओगाढाई आहारेंति ? अणोगाढाई आहारेंति ? गोयमा ! ओगाढाई आहारेति, नो अणोगाढाई आहारति ॥ ४३. ताइं भंते ! किमणंतरोगाढाइं आहारेंति ? परंपरोगाढाई आहारति ? गोयमा ! अणंतरोगाढाई आहारेंति, नो परंपरोगाढाई आहारेति । ४४. ताई भंते ! किं अणूई आहारेंति ? वायराइं आहारेंति ? गोयमा ! अणूइंपि आहारेति, बायराइंपि आहारेति ॥ १. कालाई पि (क, ख, ग, ट); कालवण्णाई दर्श एवं पाठ संक्षेपोस्ति-एवं गंधरसेसु वि। (पण्ण० २८७)। ४. 'ता' आदर्श अत्र पाठसंक्षेप:--विधाणमग्गणं २. एवं पंच वि वण्णा (ता)। कक्खडाई सब्वाई जाव अणंतगुणलुक्खाई। ३.३६,३७,३८ सूत्रत्रयस्य स्थाने 'ता' संकेतिता Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० जीवाजीवाभिगमे ४५. ताई भंते ! कि उड्ढे आहारेंति ? अहे आहारेंति ? तिरियं आहारेंति ? गोयमा ! उड्ढेपि आहारेति, अहेवि आहारति, तिरियपि आहारेति ।। ४६. ताई भंते ! किं आदि आहारेंति ? मज्झे आहारेंति ? पज्जवसाणे आहारेंति ? गोयमा ! आदिपि आहारेंति, मझेवि आहारेंति, पज्जवसाणेवि आहारेंति ॥ ४७. ताई भंते ! किं सविसए आहारेंति ? अविसए आहारेंति ? गोयमा ! सविसए आहारेंति, नो अविसए आहारेति ॥ ४८. ताई भंते ! किं आणुपुब्बि आहारेंति ? अणाणपुलिव आहारेंति ? गोयमा ! आणव्वि आहारति, नो अणाणुपुर्दिव आहारति ।। ४६. ताई भंते ! किं तिदिसि आहारेंति ? चउदिसिं आहारेंति ? पंचदिसि आहारेंति ? छद्दिसि आहारति ? मोयमा ! निवाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि ॥ ५०. ओसण्णकारणं' पडुच्च वण्णओ कालाई नीलाई जाव सुक्किलाई, गंधओ सुब्भिगंधाई दुब्भिगंधाई, रसओ 'तित्त जाव महुराई", फासओ कक्खड-मउय जाव निद्धलुक्खाई, तेसि पोराणे वणगुणे जाव फासगुणे विप्परिणामइत्ता परिपीलइत्ता परिसाडइत्ता परिविद्धंसइत्ता अण्णे अपुबे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे उप्पाइत्ता आयसरीरखेत्तोगाढे पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति ।। ५१. ते णं भंते ! जीवा कओहितो उववज्जति ?--कि नेरइएहितो उववज्जति तिरिक्ख-मणस्स-देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, मणुस्सेहितो उववजंति, नो देवेहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजोणियपज्जत्तापज्जत्तेहितो असंखेज्जवासाउयवज्जे हितो उववज्जति, मणुस्से हितो अकम्मभूमग-असंखेज्जवासाउयवज्जे हितो उववज्जति, वक्कंतीउववाओ भाणियन्वो ।। ५२. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं', उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ॥ ५३. ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहया मरंति ? असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहयावि मरंति, असमोहयावि मरंति ।। ५४. ते" णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्व द्वित्ता कहिं गच्छंति ? कहि उववज्जति ?-- कि ने रइएसु उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति? मणुस्सेसु उववज्जति ? देवेसु उववज्जति ? गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, १. उस्सन्त (क,ख)। ८. पण्ण' ६८२-८४ । २. सुरभि (ग,ट)। ६. "मुहुत्ते (द)। ३. जाव तित्त महुराई (ख,ग,ट)। १०. सम्मोहतादि (क)। ४ विपरिणामतित्ता (क) । ११. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठसंक्षे५. जाव (क,ख,ग,ट)। पोस्ति--तेणं भंते अणंतरं उच्च गो जहा ६. ओघाएत्ता (क)। उववातो। ७. आतसरीरतोगाढे (क,ख,ग,ट)। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहाडिवत्ती २२१ मणुस्सेसु उववज्जंति, णो देवेसु उववज्जति ॥ ५५. जइ तिरिक्खजोणिएस उववज्जति किं एगिदिएस उववज्जति जाव पंचिदिएसु उववज्जति ? गोयमा ! एगिदिएसु उववज्जंति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, असंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तएसु उववज्जति, मणुस्सेसु अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु पज्जत्तापज्जत्तएस उववज्जति ।। ५६. ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! से तं सुहमपुढविकाइया ।। ५७. से कि तं बायरपुढविकाइया ? बायरपुढविकाझ्या दुविहा पण्णत्ता, तं जहासण्हबायरपुढविक्काइया य खरबायरपुढविक्काइया य॥ ५८. से किं तं सहबायरपुढविक्काइया? सहबायरपुढविक्काइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-कण्हमत्तिया', भेओ' जहा पण्णवणाए जाव-ते समासओ दविहा पण्णता. तं जहा~पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । 'तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसतसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति--जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा । से त्तं खरबादरपुढविकाइया" ॥ ५६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए, तं चेव सव्वं, णवरं-- चत्तारि लेसाओ, अवसेसं जहा" सुहमपुढविक्काइयाणं, आहारो' णियमा छद्दिसिं । उववाओ तिरिक्खजोणिय-मणुस्सदेवेहितो, देवेहि जाव सोहम्मेसाणेहितो। ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ ६०. ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं कि समोहया मरंति ? असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहयावि मरंति, असमोहयावि मरंति ॥ ६१. ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति ?--कि नेरइएसु उववज्जति ? पुच्छा। गोयमा नो नेरइएसु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति मणुस्सेसु उववज्जति, नो देवेसु उववज्जति 'तं चेव' जाव' असंखेज्जवासाउयवज्जेहिंतो उववज्जति ॥ ६२. ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुगतिया तिआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो! से तं वायरपुढविक्काइया । से तं १. मट्टिया (क,ग,ट)। स्था वा सूरकते य ज्जाव तत्थ णिमा। २. भेतोसि (क,ख) ततो से (ग); भेउ से ४. जी. १२१६-२१ । (ट)। ५. जी० ११२२-५० । ३. असो चिन्हात्तिः पाठः प्रज्ञापना (१।२०) ६. आहारो जाव (क,ख,ग,ट)। सूत्राधारेण स्वीकृतोस्ति । प्रस्तुतसूत्रस्य मलय- ७. तधेव (क) तहेव (ख)। गिरीयवृत्ती असो व्याख्यातोस्ति, 'ता' आदर्श अस्य संक्षेपो लभ्यते-खर बा फा पुढवी य Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ जीवाजीवाभिगमे पुढविकाइया ॥ आउकाइय-पदं ६३. से कि त आउक्काइया? आउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---सुहुमआउक्काइया' य बायरआउक्काइया य । सुहुमआउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-- पज्जत्ता य अपज्जत्ता य॥ ६४. तेसि' णं भंते ! जीवाणं कई सरीरया पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पणत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । जहेव सुहुमपुढविक्काइयाणं, णवरं-थिबुगसंठिया पण्णत्ता, सेसं तं चेव जाव' दुगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं सुहमआउक्काइया ।। ६५. से किं तं वायरआउक्काइया ? बायरआउक्काइया अणेग विहा पण्णत्ता, तं जहा-ओसा हिमे 'महिया करए हरतणुए सुद्धोदए सीतोदए उसिणोदए खारोदए खट्टोदए अंविलोदए लवणोदए वरुणोदए खीरोदए घओदए खोतोदए रसोदए जे यावरणे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, तं चेव सव्वं, णवरं--थिबुगसंठिया, चत्तारि लेसाओ, आहरो नियमा छद्दिसिं, उबवाओ तिरिक्खजोणियमणस्स-देवेहितो, ठिती जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई, सेसं तं चेव जहा वायरपुढविकाइया जाव' दुगतिया तिआगतिआ, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! सेत्तं बायरआउक्काइया । सेत्तं आउक्काइया । वणस्सइकाइय-पदं । ६६. से किं तं वणस्सइकाइया ? वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-- सूहमवणस्सइकाइया य वायरवणस्सइकाइया य ।। ६७. से कि तं सुहमवणस्सइकाइया ? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य तहेव, णवरं-अणित्थंथसंठिया, दुगतिया दुआगतिया, अपरित्ता अणंता, अवसेसं जहा पुढविक्काइयाणं 1 से तं सुहुमवणस्सइकाइया ।। ६८. से किं तं बायरवणस्सइकाइया ? वायरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया य साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया य॥ ६६. से" कि तं पत्तेयसरीरबायरवणस्स इकाइया ? पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया १. सुहम (क)। ६. x (म)। २. एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठो- ७. जी० ११५६-६१ । स्ति--जहा सुहमपुढची तहा सव्वं गवरं थिबुग- ८.६६,६७ सूत्रयोः स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठीसंठितासरीरा। स्ति--सुहमवणस्सति णाणत्तं णाणासंठिता ३. जी०१।१६-५६ परित्ता अणंता! ४. एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' आदर्श एवं पाठोस्ति ६. अनियतसंस्थानसंस्थितानि (मव)। बादरआउक्काइया णं सत्तवाससहस्सा सेसं १०.६६-७२ सूत्र चतुष्टयस्य स्थाने 'ता' आदर्श पुढविसरिसं। एतावान् पाठोस्ति पत्तेय दुवालस जाव तिल५. सं० पा०—हिमे जाव जे! संकुलिया बहुएहि तिलेहि सेत्तं पत्तेयसरीरबाद Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहवित्ती दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा १. रुक्ख। २. गुच्छा ३. गुम्मा ४. लताय ५. वल्ली य ६. पव्वगा चेव । ७. तण ८. वलय ६. हरिय १०. ओसहि ११. जलरुह १२. कुहणा य बोधव्वा ॥ १ ॥ ७०. से कि तं रुक्खा ? रुक्खा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - एगट्टिया य बहुबीया य || ७१. से किं तं एमट्टिया ? एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-निबंब जंबु कोसंब, साल अंकोल्ल पीलु सेलू य । जाव' पुण्णाग जागरुक्खे, सीवणि तहा असोगे य ॥ जे यावणे तपगारा । एतेसि णं मूलावि असंखेज्जजीविया, एवं कंदा खंधा तया साला पवाला | पत्ता पत्तेयजीवा । पुप्फाई अणेगजीवाई । फला एगट्टिया । सेत्तं एगट्टिया || ७२. .से कि तं बहुवीया ? बहुवीया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - अत्थिय तेंदुयउंबर- कविट्ठे आमलग-फणस - दाडिम-णग्गोह-काउंबरीय तिलय-लउय- लोद्धे धवे । जे यावणे तपगारा । एतेसि णं मूलावि असंखेज्जजीविया जाव' फला वहुवीयगा । सेत्तं बहुबीयगा । सेत्तं रुक्खा । एवं जहा पण्णवणाए तहा भाणियव्वं, जाव' जे यावण्णे तगारा । सेत्तं कुणा । नाणाविहसंठाणा, रुक्खाणं एगजीविया पत्ता | खंधोवि एगजीवो, ताल -सरल-नालिएरीणं ॥ १ ॥ 'जह सगल सरिसवाणं, सिलेसमिस्साण वट्टिया वट्टी । पत्तेयसरीराणं, तह होंति सरीरसंघाया ॥२॥ जह वा तिलपप्पडिया, बहुएहि तिलेहि संहिता संती । पत्तेयसरीराणं तह होंति सरीरसंघाया" ॥३॥ सेत्तं पत्तेयसरी वायरवणस्स इकाइया || ७३. से किं तं साहारण सरीरबायरवणस्सइकाइया ? साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - आलुए", मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि सिस्सिरिलि, किट्टिया', छिरिया, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वज्जकंदे, सूरणकंदे, खेलूडे', भट्टमोत्था, पिंडहलिद्दा, लोही", णीहू थीहू" अस्सकण्णी, सीहकण्णी सीउंढी, मुसंढी । जे रवण । मलयगिरिवृत्तौ च ७०-७२ सूत्रत्रयस्य स्थाने एवं भेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए जह वा तिलसंकुलिया' इति पाठो व्याख्यातोस्ति । १. पण १।३५ । २. जी० ११७१ । ३. पण ११३७-४७ ४. जह सगलसरिसवाणं पत्तेयसरीराणं गाहा २ जह वा तिलसक्कुलिया गाहा ३ ( क, ख, ग ) | ५. तुलना --- भग० ७३६६ उत्त० ३६/६७-६६ । | २२३ ६. किट्टिका (मव ) । ७. छिरविरालिया (क); (ख); छिरियविरालिया विराली (ता) | ८. खल्लूडो ( क ) ; खल्लूडे (ट); खेल्लड (ता) । ६. किमिरासि भद्द' (क, ख, ग, ट) 1 १०. लोहीरी (क,ग); लोहरी (ट) ! ११. भुि ( क ) ; थोहू घुहा (ता ) 1 छिरिविरालिया (गट ) ; छीर Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जीवाजीवाभिगमे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पप्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य' । 'तत्थ ण जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमति-जत्थ एगो तत्थ सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, सिय अणंता ७४. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरमा पण्णत्ता, तं जहा--'ओरालिए तेयए कम्मए, तहेव जहा बायरपुढविकाइयाणं, णवरंमरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगूलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेग जोयणसहस्सं, सरीरंगा अणित्थंथसंठिया, ठिती जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दसवाससहस्साइं जाव दुगइया तिआगइया, अपरित्ता' अणता पण्णत्ता । सेत्तं वायरवणस्सइकाइया। ‘सेत्तं वणस्सइकाइया" । सेत्तं थावरा।। ७५. से कि तं तसा ? तसा तिविहा पण्णत्ता, त जहां---तेउक्काइया वाउक्काइया ओराला तसा ॥ तेउकाइय-पदं ७६. से किं तं तेउक्काइया? तेउवकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-- सुहुमतेउक्काइया य वायरतेउक्काइया य॥ ७७. से किं तं सुहुमतेउवकाइया ? सुहुमतेउवाइया जहा सुहुमपुढविवकाइया, नवरं - सरीरगा सूइकलावसंठिया, एगगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, सेसं तं चेव । सेत्तं सुहुमतेउक्काइया । ७८. से कि तं बादरतेउक्काइया? बादरतेउवकाइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा --इंगाले" 'जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी णिग्याए संघरिस१. अतोग्रे 'ता' प्रतो एवं पाठसंक्षेपो विद्यते- ७. सूयि (क,ता)। णाणत णाणासंठिता ठिति दससहस्सा ओगाहणा सातिरेगं जोयणसहस्सं अपरित्ता १. प्रस्तुतालापके 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यतेअणंता जाव सेत्तं थावरा। बादरतेउभेदो णाणत्तं ठिति तिणि राति२. प्रयुक्तादर्शेषु चिन्हाङ्कितपाठस्य संकेतो नास्ति ।। दियाओ। मलयगिरीयवृत्ती 'जाव सिय संखेज्जा' इति १०. सं० पा०-प्रयुक्तादर्शषु पाठसंक्षेपः एवमस्तिसंक्षिप्तपाठमादृत्य 'जाव' पदस्य पूतिनिर्दिष्टा इंगाले जाले (जाला-ख) मुम्मुरे जाव सूरकंतस्ति । मणिनिस्सिए, जे यावन्ने तय्पगारा ते समासओ ३. ओरालिते तेयते कम्मते (क)। दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्ज४. परित्ता (ग,ट)। तगा य। मलय गिरीयवत्तौ पाठसंक्षेपस्य ५. x (क,ख,ग)। पद्धतिभिन्नास्ति-इंगाले जाव तत्थ नियमा। ६. तसा पाणा (क ख,ग,ट); हारिभद्रीय-मलय अस्य आधारेणैव प्रज्ञापनामनुसृत्य पाठः पूरिगिरीयवत्त्योरपि पाणा' इति पदं व्याख्यातं तोस्ति। नास्ति। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२५ समुट्टिए सुरकंतमणिणि स्सिए । जे यावणे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एएसि णं दण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंम्बेज्जा ॥ ७६. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा! तओ सरीरगा पणत्ता, तं जहा--ओरालिए तेयए कम्मए । सेसं तं चेव । सरीरगा सूइकलावसंठिया । तिषिण लेस्सा । ठिती जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाइं । तिरियमणस्सेहिंतो उववाओ। सेसं तं चेव जाव एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता। सेत्तं वादरते उक्काइया । सेत्तं तेउक्काइया ॥ वाउकाइय-पदं ८०. से कि तं वाउक्काइया? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा--सुहुमवाटक्काइया य वायरवाउक्काइया य । सुहुमवाउक्काइया जहा' तेउक्काइया, णवरसरीरगा पडागसंठिया । एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखिज्जा । सेत्तं सुहमवाउक्काइया ।। ८१. से कि तं वादरवाउक्काइया ? बादरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा --पाईणवाते पडीणवाते दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउभामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संबटटगवाए घणवाए तणवाए सूद्धवाए। जे यावणे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगाय: तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा तेणं असंपत्ता । तत्थ णं जेते पज्जत्तमा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति --जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा ।।। ८२. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा... ओरालिए वेउन्विए तेयए कम्मए । सरीरगा पडागसंठिया । चत्तारि समुग्धाया-~वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए वेडब्वियसमुग्धाए । आहारो णिवाघाएणं छद्दिसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसि सिय पंचदिसि । १. जी० १६७७ । ४. पातीणवाते (क)। २. प्रस्तुतालापकेषु 'ता' प्रती पाठसंक्षपो विद्यते- ५. अतोग्रे आदर्शेषु पाठसंक्षेपोस्ति । मलयगिरिणा सुहमवाउ जहा सुहमतेउ णाणत्तं पडागसं 'बादरवाउकाइया वि एवं चेव नवरं भेदो जहा आहारो णिवाचाते ६ वाघा सिय ३-६ । पण्णवणाए' इति पाठानुसारिव्याख्या कृतास्ति बादरवाउभेदो णाणत एवं चेव ट्रिती सह उ तथा पूर्णपाठोपि तत्र उल्लिखितः । अस्माभिः णिव्वाधातेणं ६ वाघातं य ३-६ ना सरीरगा ४ स मूले स्वीकृत:। समुधाता वि ४ । ६. अतोनन्तरं ११६,१७ सूत्रयोः सूचकं 'सेसं तं ३, जी० ११७७ । चेव' इति पाठो युज्यते । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ उववाओ देवमणुयनेरइएसु' णत्थि । ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साइं | सेसं तं चैव एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! सेत्तं बायरवा उक्काइया । सेत्तं वाउवकाइया ॥ ५३. से किं तं ओराला तसा ? ओराला तसा चउव्विहा पण्णत्ता, इंदिया इंदिया चउरिदिया पंचेंदिया || asar - पर्व ८४. से कि तं बेइंदिया ? बेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जाव' समुहलिक्खा, जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा १. ५१ सूत्रे 'जीवा कओहितो उववज्जंति ?" इति आगमनात्मक उपपातः सूचितोस्ति । ५४ सूत्रे 'जीवा अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छति ?” इति उद्वर्तनानन्तरं जायमान उपपातः सूचितः । पूर्वसंकेते पंचमी विभक्तिः तथा द्वितीयसंकेते सप्तमीविभक्तिः संगतास्ति । अत्र पूर्वसंकेतः नास्ति उल्लिखितः केवलं द्वितीय एव । तत्रापि व्यतिक्रमोस्ति । अयं पाठः स्थिति पाठस्य पश्चाद् उपयुक्तो स्ति । २. तसा पाणा (क, ख, ग, ट) । ३. पण० ११४६ ४. ओगाहणा ( क, ख, ग ) ५. सेवट्ट (क); सेवट्टसंघतणि ( ख, ग, ट, ता) | जीवाजीवाभिगमे पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य || ८५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा । तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए || ८६. तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंगुलासंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वारसजोयणाई, छेवट्टसंघयणा', हुडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिष्णि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्धाया-- वेयणा कसाया मारणंतिया, नोसण्णी असण्णी, नपुंसगवेयगा, पंच पज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सम्मद्दिट्ठीविमिच्छादिट्ठीवि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी, णो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, गो ओहिदंसणी, णो केवलदंसणी ॥ } -- कसा ४ ८७. ते णं भंते! जीवा किं णाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! णाणीवि अण्णाणीवि । जे गाणी ते नियमा दुण्णाणी, तं जहा -- आभिणिबोहियणाणी य सुयणाणी य । जे अण्णाणी ते नियमा दुअण्णाणी - मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य । तो मणजोगी, वइजोगी कायजोगी । सागाव उत्तावि अणागारोवउत्तावि । आहारो नियमा छद्दिसि । उववाओ 'तिरियमणुस्से सु नेरइयदेवअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु" । ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वारस ६. 'ता' प्रतौ भिन्ना पाठरचना दृश्यते--व सष्णा ४ लेस्सा ३ इंदि २ समुद्घाता ३ असण्णि णपुंसवेदा पज्जत्ति ना ट्टीती वास १२ सम्म feat विमिच्छा णो सम्मामि गाणीवि अण्णाणी वि दो वे जियमा णो मण वइजोगी वि कायजोगी व सागारी अजागा किमाहारमाहारैति जहा बादरपुढवीणं उदवातो णिरयदेवअसंखेज्जाउनवज्जो दुआ गतिया दुर्गातिया परिता असंखे | तं जहा जहा --! - पुलाकिमिया पण्णत्ता, तं जहा --- ७. इदं आगमनात्मकोपपात सूत्रमस्ति, तेनात्र पञ्चमी विभक्तिर्युज्यते । अत्र लिपिप्रमादात् अथवा संक्षिप्तीकरण प्रमादात् विभक्तेविपर्ययो जात: । वृत्तौ व्याख्यातः पाठः समीचीनोस्ति--- Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती संवच्छराणि । समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति । कहिं गच्छति ? नेरइयदेव असंखेज्जवासाउयवज्जेसु गच्छति । दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा | सेत्तं बेइंदिया || तेइंदिय-पदं ८८. से किं तं तेइंदिया ? तेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता', तं जहा - ओवइया' रोहिणिया जाव हत्थि सोंडा, जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा ---पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तहेव जहा बेइंदियाणं, णवरं सरीरोगाहणा उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई, तिणि इंदिया, ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपण्णराईदियाई, सेसं तहेव दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं तेइंदिया ॥ चरिदिय-पदं ८. से' किं तं चउरिदिया ? चउरिदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं 'जहा -- अंधिया पत्तिया' जाव' गोमयीडा, जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जगा य ॥ ६०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता तं चैव गवरं - सरीरोगाहणा उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, इंदियाई चत्तारि, चक्खु दंसणी' अचक्खुदंसणी, ठिई उवकोसेणं छम्मासा | सेसं जहा तेइंदियाणं जाव असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं चरदिया ! ६१. से किं तं पंचेंदिया ? पंचेदिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - णेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ॥ नेरइय-पदं ६२. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा - रयणप्पभापुढविनेरइया जाव" अहेसत्तमपुढविनेरइया" । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा या || ९३. तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा 'उपपातो देवनारका सङ्ख्यातवर्षायुष्कवर्जेभ्यः शेषतिर्यग्मनुष्येभ्यः । प्राकृतव्याकरण १।१३६ 'पञ्चम्यास्तृतीया च' इति पञ्चमीस्थाने सप्तमी विभक्तिरपि जायते । यदि एवं स्वीक्रियते ? तदा नास्ति लिपित्रमादः, किन्तु सूत्रकारेणापि केषुचिच्च सप्तम्याः प्रयोगः कृतः । २२७ १. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यतेतेंदिया वि एवं चेव णाणतं गाउता ३ अउणपण रातिदिया द्विती इंदिया ३ । २. मलयगिरिवृत्ती अतोग्रे 'भेदो जहा पण्णवणाए' इति पाठो व्याख्यातोस्ति । ३. उवइया (क, ट ); वेयविया ( ख ) ; उव्वदिया ( ग ) ! ४. पण्ण० ११५० । ५. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रतौ पाठसंक्षेपो विद्यते - चउरिदिया वि एवं चैव जाव नव जाती कुल ते चेव ओगाहणा ४ ठिति मासा ६ । ६. पुत्तिया ( ख, ग, ट ) | ७. पण्ण० ११५१ । ८. जीवि (क, ग ) 1 ६. जीवि (क, ग ) । १०. पण्ण० ११५३ । ११. तमतम पुढवी (ग); तमतमापुढवी (ट) | Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ पण्णत्ता, तं जहा - वेडव्विए तेयए कम्मए ॥ ६४. सिणं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणेणं 'अंगुलस्स असंखेज्जइभागं", उक्कोसेणं पंचधणुसयाई । तत्थ गंजासा उत्तरवेजव्विया सा जहणणेणं 'अंगुलस्स संखेज्जइभागं" उक्कोसेणं धणुसहस्सं || ६५. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयगाणं' असंघयणी - वट्टी णेव छिरा व पहारू णेव संघयणमत्थि । जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमगुण्णा अमणामा ते तेसि संघातत्ताए' परिणमति ॥ ९६. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- भवध रणिज्जा य उत्तरवेडव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया । तत्थ णं जेते उत्तरवे उब्विया तेवि इंडसंठिया पण्णत्ता । चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिष्णि लेसाओ, पंचइंदिया', चत्तारि समुग्धाया आइल्ला, सण्णीवि, असण्णीवि, नपुंसगवैया", 'छप्पज्जत्तीओ छ अपज्जतीओ',' तिविहा दिट्ठी, तिष्णि दंसणा णाणीवि अण्णाणीवि, जे पाणी ते नियमा तिष्णाणी, तं जहा -- आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी । जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दुअण्णाणी अत्येगइया तिअण्णाणी, जे य दुअण्णाणी ते नियमा मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य, जे तिअण्णाणी ते नियमा मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य विभंगणाणी य, तिविहे जोगे, दुविहे उवओगे, छद्दिस आहारो, ओसण्णकारणं' पडुच्च वष्णओ कालाई जाव" सब्वप्पणयाए आहारमाहारेंति, उववाओ तिरियमणुस्सेस", ठिती जहणेणं दसवास सहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, दुविहा मरंति, उब्वट्टणा भाणियव्वा जओ आगया, गवरि समुच्छि मेसु " पडिसेहो, दुगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! से तं नेरइया || तिरिक्त जोणिय-पदं ६७. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोगिया य ॥ ६८. से किं तं समुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोगिया ? संमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोगिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जलयरा थलयरा बहयरा ॥ १. अंगुलअसंखेज्जइभागं (क, ख, ट, ता, वृ); अंगुल असंखेज्जो भागो ( ग ) २. अंगुल असंखेज्जइभागं ( मन्) | ३. संघतणाणं (ग)। ४. असंघतणी ( ख, ग, तर ) । ५. संघतणत्ताए (ता) | ६. पंचेंदिया ( ख, ग, ट) । ७. वेदका (क, ख, ग ); 'वेदगा ( ट ) | रु. पर्याप्तिद्वारे पञ्चपर्याप्तयः पञ्चापर्याप्तयः जीवाजीवाभिगमे (मवृ) । 2. ओसन्नं कारणं (ग, ट) 1 १०. पण्ण० २८/२० ११. अत्र पञ्चमी स्थाने सप्तमी । वृत्तिः - उपपातो यथा व्युत्क्रान्तिपदे प्रज्ञापनायां तथा वक्तव्यः, पर्याप्तपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्मनुष्येभ्यो ऽसङ्ख्यातवर्षायुष्कवर्जेभ्यो वक्तव्यः । १२. संमुच्छि तेसु ( ग ) । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २२६ ६६. से' किं तं जलयरा ? जलयरा पंचविहा पणत्ता, तं जहा- मच्छगा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा॥ १००. से किं तं मच्छा ? एवं जहा पण्णवणाए जाव" जे यावण्णे तहप्पगारा', ते समासओ दुविहा पण्णता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥ १०१. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । सरीरोगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छेवट्टसंघयणी, हंडसंठिया, चत्तारि कसाया, सण्णाओवि, लेसाओ तिण्णि, इंदिया पंच, समग्घाया तिण्णि, गो सण्णी असण्णी, पसगवेया, पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच, दो दिट्ठीओ, दो दंसणा, दो नाणा, दो अण्णाणा, दुविहे जोगे, दुविहे उवओगे, आहारो छद्दिसिं, उववाओ तिरियमणस्सेहितो, नो देवेहितो नो नेरइएहितो, तिरिएहितो असंखज्जवासाउयवज्जेहितो, 'अकम्मभूमगअंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जसु मणुस्सेसु, ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। मारणंतियसमुग्घाएणं दुविहावि मरंति, अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं ? नेरइएसुवि तिरिक्खजोणिएसुवि मणुस्से मुवि देवेसुवि, नेरइएसु रयणप्पहाए, सेसेसु पडिसेहो । तिरिएसु सव्वेसू उववज्जति संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउएसुवि चउप्पएसु पक्खीसुवि । मणुस्सेसु सव्वेसु कम्मभुमिएसु, नो अकम्मभूमिएसु, अंतरदीवएसुवि संखेज्जवासाउएसुवि असंखेज्जवासाउएसुवि पज्जत्तएसुवि अपज्जत्तएसुवि । देवेसु जाव वाणमंतरा, च उगइया दुआगइया', परित्ता असंखेज्जा पणत्ता। से तं जलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।। १०२. से किं तं थलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।। १०३. से किं तं चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचंदियतिरिक्खजोणिया ? चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउविहा पण्णत्ता, तं जहा---एगखुरा दुखुरा 'गंडी१. प्रस्तुतालापकस्य 'ता' प्रती पाठसंक्षेपो विद्यते--- जल । से किं तं जज भेदो जाव सुसुमारा एगागारा २. पण्ण० १२५६-६० पष्णता ते समासतो तं पज्ज अपज्ज तेसि णं ३. तहप्पकारा (क, ख, ग, ट)। भंते कति सरीरा ३ ओगाहा आहारे य जधा ४. सेवट्ट (क, ख, ग)। बेइंदियाणं उववातो जधा पुढ वरं देवा ण ५. अत्र आदर्शष मिश्रित: पाठो वर्तते ----पूर्वः पाठः उववज्जति ठिती पुव्वकोडी समोहता वि मर पञ्चम्यन्तः उत्तरवर्ती च सप्तम्यन्तः वत्ती एवं जस कहि गच्छं कि णेरइओ चतुसुवि जति व्याख्यातोस्ति-उपपातो यथा व्युत्क्रान्तिपदे रह कि रयण यातो रयणप्प गो सक्कर जाव तथा वक्तव्यः, तिर्थम्मनुष्येभ्योऽसङ्ख्यात वर्षाणो अधेसत्तमा पुढवीणेरइएसु उवव तिरिक्ख- युष्कवर्जेभ्यो वाच्यः, द्रष्टव्यं जीवा० ११८७ मणुय देवेसु मणुस्सेसु अंतरदीवेसु उव देवेसु सूत्रस्य पादटिप्पणम् । जाव वाणसंतोसुउव णो जोति णो वेमा दुबाग- ६. दुयागतिया (ग)। तिया चतुगतिया परित्ता असंखे समणाउसो सेतं ७. संमूच्छिमजलचर (मवृ) । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जीवाजीवाभिगमे पया सणप्फया" जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता तं जहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । 'तओ सरीरगा, ओगाहणा जहण्णणं अंगुलस्स असंखज्जइभाग, उक्कोसेणं गाउयपुहत्त', ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासीइवाससहस्साइं, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता"। सेत्तं चउप्पयथलयरसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १०४. से किं तं थलयरपरिसप्पसंमुच्छिमा ? थलयरपरिसप्पसंमुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--उरपरिसप्पसंमुच्छिमा भुयपरिसप्पसमुच्छिमा ।। १०५. से किं तं उरपरिसप्पसंमुच्छिमा ? उरपरिसप्पसंमुच्छिमा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा-अही अयगरा आसालिया महोरगा।। १०६. से कि तं अही ? अही दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-दव्वीकरा य मउलिणो य ।। १०७. से कि तं दव्वीकरा ? दव्वीकरा अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा--आसीविसा जाव' सेत्तं दव्वीकरा ॥ १०८. से कि तं मउलिणो ? मउलिणो अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा--दिव्वा गोणसा जाव से तं मउलिणो। सेत्तं अही। १०६. से कि तं अयगरा? अयगरा एगागारा पण्णता। से तं अयगरा ॥ ११०. से किं तं आसालिया ? आसालिया जहाँ पण्णवणाए। से तं आसालिया । १११. से किं तं महोरगा ? महोरगा जहां पण्णवणाए । से तं महोरगा । जे यावणे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य, तं चेव, णवरि–सरीरोगाहणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणपुहत्तं । ठिती जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेवणं वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा । से तं उरपरिसप्पा ॥ ११२. से किं तं भुयपरिसप्पसंमुच्छिमथलयरा"? भुयपरिसप्पसंमुच्छिमथलयरा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा- गोहा" णउला जाव" जे यावणे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । सरीरोगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । ठिती" उक्कोसेणं वायालीसं वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव" चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता। से तं भुयपरिसप्प१. मंडीपता सणप्पता (ग)। ८. पण ० १७३ । २. पण्ण० १६६३-६६ । ९. पण्ण० ११७४। ३. पुहुत्तं (क, ट); पहुत्तं (ग) १०. उरग (ख, ग, ट)। ४. तेसि णं भंते कति सरीराओ जहा जलचर- ११. भयग' (ग,ट)। संमुच्छिमा तहेव णाणत्तं ओगाहा गाउतवुधत्तं १२. गाहा (ग) । ट्रिती चउरासीति वाससह (ता)। १३. पण्ण० ११७५ । ५. उरग (ग, ट)। १४. स्थितिजघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् (मव) । ६. पण्ण० १७० । १५. जी० १११०१। ७. पण्ण० ११७१। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहवित्ती संमुच्छिमा । से तं थलयरा ॥ ११३. से किं तं खयरा ? खयरा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा ' -चम्मपक्खी लोमपक्खी समुग्गपक्खी विततपक्खी || ११४. से किं तं चम्मपक्खी ? चम्मपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - वग्गुली जाव' जे यावणे तहष्पगारा से तं चम्मपक्खी ॥ ११५. से किं तं लोमपक्खी ? लोमपक्खी अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा- ढंका जाब' जे यावण्णे तहप्पगारा । से तं लोमपक्खी ॥ ११६. से किं तं समुग्गपक्खी ? समुग्गपक्खी एगागारा पण्णत्ता जहा पण्णवणाए । एवं विततपक्खी जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा --- पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य णाणत्तं सरीरोगाहणा' जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कणं धत्तं । ती उक्कोसेणं बावतर वाससहस्साई, सेसं जहा जलयराणं जाव' चउगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं खयरसं मुच्छिम तिरिक्खजोणिया । से तं समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्ख जोणिया || ११७. से किं तं गब्भवक्कं तियपंचेंदियतिरिक्खजोगिया ? गब्भवक्कतियपंचेंद्रियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- जलयरा थलयरा खहयरा ॥ ११८. से किं तं जलयरा ? जलयरा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-मच्छा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा । सव्वेसि भेदो भाणियन्वो तहेव जहा पण्णवणाए जाव' जे यावण्णे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥ पण्णत्ता, ११. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि सरीरंगा तं जहा - ओरालिए वेउब्विए तेयए कम्मए । सरीरोगाहणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छव्विहसंघयणी पण्णत्ता, तं जहा - वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी नारायसंघयणी अद्धनारायसंघयणी कीलियासंघयणी छेवट्टसंघयणी" । छव्विहसंठिया" पण्णत्ता, तं जहा - समचउरंससंठिया णग्गोहपरिमंडले साति खुज्जे वामणे हुंडे, 'चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, छ लेस्साओ”, पंच इंदिया, १. अतो 'ते समासओ' इति पर्यन्तः पाठः मलयगिरिणा 'भेदो जहा पण्णवणाए' इति संक्षिप्तरूपेण स्वीकृत्य व्याख्यातः । २. पण्ण० १।७७ । ३. पण्ण० १।७८ । ४. पण्ण० १७६ ५. पण्ण० ११८० 1 ६. तथा चात्र क्वचित्पुस्तकान्तरेऽवगाहनास्थित्योर्यथाक्रमं सङ्ग्रहणिगाथे २३१ जो हसाउत तत्तो य जोयणपुहत्तं । दोपि धणुपुहतं संमुच्छिम वियगपक्खीणं ॥ १॥ संमुच्छ पुव्वकोडी चउरासीई भवे सहस्साइं । तेवण्णा बायाला बावत्तरिमेव पक्खीणं ॥२॥ ७. ठिती जहणेणं अंतोमुहुत्तं ( ट ) । ८. जी० १११०१ । ६. पण्ण० ११५६-६० । १०. सेवट्ट (क, ग, ट) 1 ११. कि संठिता (ता) | १२. कसा ४, सण्णा ४, लेस्सा ६ ( क, ख, ग, ट, ar) ! Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ जीवाजीवाभिगमे पंच समुग्घाया आइल्ला, सण्णी नो असण्णी, तिविहवेया', छपज्जत्तीओ छअपज्जत्तीओ, दिट्ठी तिविहावि, तिष्णि दसणा, णाणीवि अण्णाणीवि --जे पाणी ते अत्थेगइया दुण्णाणी अत्थेगइया तिण्णाणी', जे दुण्णाणी ते नियमा आभिगिबोहियणाणी य सुयणाणी य, जे तिण्णाणी ते नियमा आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी य, एवं अण्णाणीवि, जोगे तिविहे, उवओगे दुविहे, 'आहारो छद्दिसिं", 'उबवाओ नेरइएहिं जाव' अहेसत्तमा, तिरिक्खजोणिएसु सव्वेसु असंखेज्जवासालयवज्जेस, मणुस्सेस अकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउयवज्जेसु, देवेसु जाव सहस्सारो", ठिती जहण्णणं अंतोमुत्तं उक्कोसेणं पुवकोडी, दुविहावि मरंति, अणंतरं उव्वट्टित्ता 'नेरइएसु जाव अहेसत्तमा, तिरिक्खजोणिएसु, मणुस्सेसु सब्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारो", च उगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं जलयरा ।। १२०. से किं तं थलयरा ? थलयरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-च उप्पया य परिसप्पा य॥ १२१.से कि तं चउप्पया? चउप्पया चउब्विहा पुण्णत्ता, तं जहा---एगखरा सो चेव भेदो जावजे यावण्ण तहप्पगारा, ते समासओ विहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जतगा य अपज्जत्तगा य । चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं, ठिती जहण्णेणं अंतोम हुत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाइं, णवरं-- उव्वद्वित्ता नेरइएस् च उत्थपुढवि ताव गच्छंति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखिज्जा पण्णत्ता । से तं च उप्पया॥ १२२. से किं तं परिसप्पा ? परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य ।। १२३. से किं तं उरपरिसप्पा ? उरपरिसप्पा तहेव आसालियवज्जो भेदो भाणियवो । सरीरा चत्तारि । ओगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्ज इभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं । ठिती जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, उध्वट्टित्ता नेरइएसु जाव पंचम पुढवि ताव गच्छंति, तिरिक्खमणुस्सेसु सव्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारो, सेसं जहा जलयराणं जाव च उगतिया च उआगतिया, परिता असंखेज्जा । से तं उरपरिसप्पा ॥ ८. जो० १११०३; स्थल परगर्भव्युत्क्रान्तिकानां भदोपदर्शक सूत्रं यथा संमूच्छिमस्थलचराणां १. तिविहा वेता वि (क); तिविह वेता (ख); तिविधा वेदादि (ट); विविधवेदापि (म)। २. तिणाणि (क, ख)। ३. आधारो जधा बेदियाणं (ता)। ४. अत्र केष चित्पदेषु पञ्चमी केषचिच्च पञ्च म्यर्थे सप्तमी। ५. द्रष्टव्यं प्रज्ञापनाया: ६.८८ सूत्रम् । ६. उववा असंखेज्जवासाउयवज्जो जाव सहस्सारो चतुसुवि गतीसु (ता)। ७. जाव सहस्सारा ताव गच्छति (ता)। ६. जी० १४१०५-१०६, १११; नवरमत्रासालिका न वक्तव्या, सा हि समूच्छिमैव न गर्भव्युतक्रान्तिका, तथा महोरगसूत्रे 'जोयणसयंपि जोयणसयपुहुत्तियावि जोयण सहस्सं पि' इत्येतदधिकं वक्तव्यं, शरीरादिद्वारकदम्बकसूत्रं तु सर्वत्रापि गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचराणामिव, नवरमवगाहनास्थित्युद्वर्तनासु नानात्वम् (मवृ)। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती १२४. से किं तं भुयपरिसप्पा ? भुयपरिसप्पा भेदो तहेव, चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं । ठिती जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा, णवरं-दोच्चं पुढवि गच्छंति । से तं भुयपरिसप्पा । से तं थलयरा ॥ १२५. से कि तं खहयरा ? खहयरा चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा--चम्मपक्खी तहेव' भेदो, ओगाहणा' जहणणं अंगुलम्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं, ठिती जहण्णणं अंतोम हत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो, सेसं जहा जलयराणं, णवर-...तच्च पुढविं गच्छंति जाव से तं खयरगब्भवक्कतियपंचेदियतिरिक्खजोणिया। से तं तिरिक्खजोणिया ।। मणुस्स-पदं १२६. से किं तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णता, तं जहा-समुच्छिममणुस्सा य गब्भवतियमणुस्सा य ।। १२७. कहि णं भंते ! समुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतो मगुस्सखेत्ते जाव' अंतोमुहुत्ताच्या चेव कालं करेंति ।। १२८. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिणि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेवए कम्मए । 'संघयण-संठाण-कसाय-सण्णा-लेसा जहा" बेइंदियाण, इंदिया पंच, समुग्घाया तिष्णि, असण्णी, णपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिदिदंसण-अण्णाण-जोग-उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहां बेइंदियाणं, उववातो नेरइय-देव-तेउ-वाउ-असंखाउवज्जो, अंतोमहत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं गच्छंति ? णेरइय-देव-असंखेज्जाउवज्जेसु, दुआगतिया दुगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता समणाउसो' ! से तं समुच्छिममणुस्सा ।। १. जी. ११११३-११६ । पण्णवणाए तहा निरवसेस भाणियव्वं जाव २. क्वचित्पुस्तकान्तरेऽवगाहनास्थित्योर्यथाक्रम छउमत्था य केवली य' इति पाठो विद्यते। संग्रहणिगाथे-- ६. पण्ण. १९८४ । जोयणसहस्स छग्गाउयाइ तत्तो य जोयणसहस्स। ७. जी० ११८७ । गाउयपुहत्त भुयगे धणुयपुहत्तं च पक्खीसु ॥ १॥ ८. जी० १२२८-३२। गब्भमि पुवकोडी तिण्णि य पलिओवमाई ९. जी० ११८८ । परमा। १०. असौ स्वीकृतपाठः 'ता' संकेतितादर्शस्य मलयउरभयग पुवकोडी पलिय असंखेज्जभागो गिरीयवृत्तेश्चाधारण गृहीतोस्ति। तयोः या क्वचित् साधारणो भेदोपि दृश्यते--- ३. नवरं जाव (क, ख, ग, ट); मलयगिरीय- ता:-कति सरि ३ जधा पूढविका संघतण बत्तो यावत् इति पदं व्याख्यातं नास्ति । संठाण कसा सण्णा लेसा जधा बेंदियाणं इंदिया ४. जी० ११११६। पंच समुग्धा ३ असणि गपुंस भवे पज्जत्तीओ ४ ५. अतोने क, ख, ग, ट' आदर्शषु 'भेदो जहा दिदि अण्णाण जोग अयोगा जता पुढविका Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जीवाजीवाभिगमे १२९. से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा ? गम्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा · कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। ‘एवं मणुस्सभेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए जाव' छउमत्था य केवली य" । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ।। १३०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णता ? गोयमा! पंच सरीरमा पण्णत्ता, तं जहा--ओरालिए जाव' कम्मए । सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई । 'छच्चेव संघयणी, छच्चेव संठिया" ॥ १३१. ते णं भंते ! जीवा किं कोहकसाई जाव लोभकसाई ? अकसाई ? गोयमा ! सव्वेवि । आधारो जधा दियाण उववातो वि र देव यते संक्षिप्तपाठस्य वाचना स्वीकृतवाचनातो तेउ वाउ असंखेज्जा उवज्जो अंतोमुहुत्तं ठिति भिन्नास्ति। संक्षिप्त वाचनायां प्रज्ञापनायाः समोहता वि असमोमरन्ति कहिं ग र देवा समर्पणमस्ति, तत्र च संहननसंस्थानादिद्वाराणि असखेज्जाउवज्जेसु दुआगतिया दुगतिया परि नव विद्यन्ते । असं सेतं समू। १. पण्ण० ११८४-१२७ । मलयगिरीयवृत्तिः--तेसि णं भंते ! शरीराणि २. जाव अघक्खातो छ उमत्था य केवली य (ता)। श्रीणि औदारिकतैजसकार्मणानि, अवगाहना ३. पण्ण० १२।१। जघन्यतः उत्कर्षतश्चानुलासंख्येयभागप्रमाणा, ४. छव्विसंघयणा छव्विहसठिता (ख); छबिहमंहननसंस्थानकषायलेश्याद्वाराणि संघयणा छस्संढाणा (ट); एवं गभ पंचेंदियद्वीन्द्रियाणां, इन्द्रियद्वारे पञ्चेन्द्रियाणि, सज्ञि- तिरियगमओ संघयणं संठाणं छविधं (ता)। द्वारवेदद्वारे अपि द्वीन्द्रियवत, पर्याप्तिद्वारे ५. अतः 'उवबज्जति' पर्यन्तं 'ता' प्रतौ पाठभेदः उपर्याप्तयः पञ्च, दृष्टिदर्शनज्ञानयोगोपयोग- एवमस्ति--कोहकसाई ४ कसायी जाव द्वाराणि (यथा) पृथिवीकायिकानां, आहारो अकसायीवि कि आहारसण्णोवयुत्ता ४ यथा द्वीन्द्रियाणां, उपपातो ने रयिकदेवतेजोवा- पोसण्णोक्सुता जाव णोसण्णोवयुत्तावि कि यवसयातवर्षायुष्कवर्जेभ्यः, स्थितिर्जघन्यत कण्हलेस्सा ७ जाव अलेसावि कि सोतिदियोवउत्कर्षतोऽप्यन्तर्मुहुर्तप्रमाणा, नवरं जघन्यपदा. युत्ता ५ णोइंदियोवयुत्ता जाव णोइंदियोवयुदुस्कृष्टमधिकं वेदितव्यम्, मारणान्तिकसमुद्- तावि सत्त समुद्धाता सण्णीवि असण्णीवि घातेन समवहता अपि म्रियन्ते असमवहताश्च, जोसण्णी णोअसण्णीवि किं इत्थी वेदा ३ जाव अनन्तरमुढत्य नरयिकदेवासङ्ख्येयवर्षायुष्क- अवेदगावि पज्जत्ती ५ अपज्जत्तीओ ५ दिदी ३ वर्जेषु शेषेषु स्थानेषूत्पद्यन्ते, अत एव गत्यागति- नाणीवि अण्णा णाणा ५ अण्णाणा ३ भयणाए द्वारे द्वयागतिका द्विगतिकास्तिर्यग्मनुष्यगत्यपे- कि मणजोगि ३ अजोगि ४ उवयोग २ आधारो क्षया, 'परीत्ता' प्रत्येक शरीरिणोऽसयेया:, जहा बदियार्ण उववातो अधेसत्तम तेउ वाउ प्रज्ञप्ताः हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ! उपसंहार- असंखाउवज्जेहिं ठिती ३ पलि समोहा अस माह--'सेत्तं समुच्छिममणुस्सा'। मरंति तेणं भंते अणंतरं उव्व कहिं ग निरंतर शेषेषु आदर्शषु संक्षिप्त: पाठो विद्यते, स च जाव सव्वठसिद्धे उववज्जति । १२५ सूत्रस्य पादटिप्पणे निर्दिष्टोस्ति । प्रती पाणि यथा Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ पढमा दुविहपडिवत्ती १३२. ते णं भंते ! जीवा कि आहारसण्णोवउत्ता जाव नोसण्णोवउत्ता ? गोयमा ! सब्वेवि' ॥ १३३. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा जाव अलेसा ? गोयमा ! सव्वेवि | सोईदियोवउत्ता जाव नोइंदियोवउत्तावि, सत्त समुग्धाया, तं जहा -- वेयणासमुग्धाए जाव' केवलसमुग्धाए । सण्णीवि' नोसण्णी-नोअसण्णीवि, इत्थिवेयावि जाव अवेयावि, 'पंच पज्जत्ती पंच अपज्जत्ती" तिविहावि दिट्टी, चत्तारि दंसणा णाणीवि अण्णाणीवि- जे पाणी ते अगतिया दुणाणी अत्थेगतिया तिणाणी अत्थेगतिया चउणाणी अत्येतिया एगणाणी जे दुणाणी ते नियमा आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी य, जे तिण्णाणी ते आभिणिवोहियपाणी सुयणाणी ओहिणाणी य, अहवा आभिणिवोहियणाणी सुयनाणी मणपज्जवणाणी य, जे चरणाणी ते णियमा आभिणिवोहियणाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी य, जे एगणाणी ते नियमा केवलनाणी, एवं अण्णाणीवि दुअण्णाणी तिअण्णाणी | मणजोगीव वइकायजोगीवि अजोगीवि । दुविहे उवओगे । आहारो छद्दिसि 'उववाओ अहेसत्तम-तेजवाउ -असंखेज्जवासाउयवज्जेहि" । ठिती जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई । दुविहावि मरति । उव्वट्टित्ता नेरइयाइसु जाव अणुत्तरोववाइएसु, अत्थेगतिया सिज्झंति' 'बुज्झति मुच्चति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं" अंत करेंति ॥ १३४. ते णं भंते! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचगतिया चउआगतिया, परित्ता संखेज्जा पण्णत्ता । सेत्तं मणुस्सा ॥ देव-पदं १३५. से कि तं देवा ? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा -- भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया । ' एवं भेदो भाणियव्दो जहा पण्णवणाए" । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । तेसि णं तओ सरीरगा - वेउब्विए तेयए कम्मए । ओगाहणा दुविहा- भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जासा भवधारपिज्जा सा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ । तत्य णं जासा १. सव्वेति ( क ) सर्वत्र । २. पष्ण० ३६।१ । ३. सण्णी असण्णीवि (क) 1 ४. पंच पज्जती ( क ) ; पंच पज्जत्तापज्जत्तीओ ( ख, ग ); पर्याप्तिद्वारे पञ्च पर्याप्तयः पञ्चापर्याप्तयः भाषामनः पर्याप्त्योरेकत्वेन विवक्षणात् (मवृ) | ५. स्वीकृतपाठस्याधारभूमिरस्ति 'ता' प्रतिः मलयगिरीयावृत्तिश्च । शेषेषु आदर्शषु विस्तृतः पाठो वर्तते – उववातो नेरइएहि अधेसत्तमवज्जेहि तिरिक्खजोगिएहिं तेउवाउअसंखेज्जवासाउअ वज्जेहि मणुस्सेहि अकम्मभूमग अंतरदीवगअसंखेज्जवासा उयवज्जेहि देवेहि सव्वेहिं । ६. सं० पा० सिज्यंति जाव अंतं । ७. पण्ण० ११३०-१३७ । ८. चिन्हाङ्कितपाठः वृत्त्याधारेण स्वीकृतः । आदर्शषु पाठसंक्षेप: भिन्नप्रकारेण वर्तते----से किं तं भवणवासी २ दसविहा पण्णत्ता तं जहा असुरा जाव थणिया सेत्तं भवणवासी । से कि तं वाणमंतरा २ देवभेदो भाणियव्वो (सव्वो भाणियोग, ट) जाव (क, ख, ग, ट ) ; भेदो जाव सव्वत्ति (ता) | Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जीवाजीवाभिगमे उत्तरवेउव्विया सा जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा' छण्हं संघयणाणं असंघयणी-णेवट्ठी णेव छिरा णेव हारू। जे पोग्गला इट्ठा कता 'पिया सुभा मणुण्णा मणामा" ते तेसि सरीरसंघायत्ताए परिणमंति ॥ १३६. किंसंठिया ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं समचउरंससंठिया पण्णत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता। चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णा, छ लेस्साओ, पंच इंदिया, पंच समुग्धाया, सण्णीवि असण्णीवि, इत्थिवेदावि पुरिसवेदावि नो नपुंसगवेया, 'पज्जतीओ अपज्जत्तीओ" पंच, दिट्ठी तिण्णि, तिणि दंसणा, णाणीवि अण्णाणीवि-जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी, अण्णाणी भयणाए, दुविहे उवओगे, तिविहे जोगे, आहारों णियमा छद्दिसिं, ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ हालिहसुक्किलाई जाव' आहारमाहारे ति, उववाओ तिरियमणुस्सेसु', ठिती जहण्णणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, दुविहावि मरंति, 'उव्वट्टित्ता नो नेरइएसु गच्छंति, तिरियमणुस्सेसु जहासंभवं', नो देवेसु गच्छंति, दुगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं देवा । से तं पंचेंदिया। सेत्तं ओराला तसा" ॥ १३७. थावरस्स" णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता ॥ १३८. तसस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ।। १. एतत् पदं 'तेसि णं भंते जीवाणं सरीरा किं- परि असं पसत्थे ओस्सण्णकारणं वण्णत्तो संघयणी पण्णत्ता' एतस्य पाठस्य सूचकमस्ति । हालिह सूकिलाग सुब्भि रसतो अंब महराई 'ता' प्रतौ अस्य पदस्य स्थाने एवं पाठोस्ति फास मउय लहुय णिढण्हाणि जाव आहार'किसघयणी'। माहारैति उववातो जहा रतियाणं ठिती वि २. ण्हारू नेव संघयणमत्थि (क, ख, ग, ट)। पण्णत्ता समणाउसो सेत्तं देवा सेत्तं तसा । ३. क, ख, ग, ट' आदर्शषु अस्य पदचतुष्टयस्य ७. पण्ण० २८।२६। __स्थाने 'जाव' इति पदं दृश्यते । ८. पञ्चमी स्थाने सप्तमी विभक्तिः । ४. x (क, ख, ट)। ६. अनन्तरमुदत्य पृथिव्यम्बुवनस्पतिकायिकगर्भ५. पज्जत्तापज्जत्तीओ (क, ख, ग); पज्जत्ती व्युत्क्रान्तिकसङ्ख्यातवर्षायुष्कतिर्यपञ्चेन्द्रिय अपज्जत्तीओ (ट); पज्जत्तीओ ५ अपज्ज मनुष्येषु गच्छन्ति न शेषजीवस्थानेषु (ता)। (मव)। ६. अतः 'ता' प्रती भिन्नः पाठो दृश्यते.-आहारो १०. तसा पाणा (क, ख, ग, ट) । जहा नेरइयाणं ठिती वि। तेणं भंते जीवा ११. 'ता' प्रतौ १३७, १३८ सूत्रे नैव विद्यते । मारणंतिय स समोअसमोह दोवि अणंतदव्वा क, ख, ग, ट' आदर्शेषु अतः १४१ सुत्रपर्यन्तं तेउ वाउ विगलंदिय संमुच्छिम वज्जेहि रइय ससूत्र पूर्व विद्यते, तदनन्तरं च स्थावरबज्जे देववज्जे सेसेवि असंखाउवज्जे पज्जत्तएसु सूत्रमस्ति । उव तेणं भंते जीवा कति दुआगतीया दुगतीया Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमा दुविहपडिवत्ती २३७ १३६. थावरे' णं भंते ! थावरेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा, ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो॥ १४०. तसे णं भंते ! तसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं--असंखेज्जाओ उस्स प्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। १४१. थावरस्स एं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहा तससंचिढणाए । १४२. तसस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ।।। १४३. एएसि णं भंते ! तसाणं थावराण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसा, थावरा अणंतगुणा। से तं दुविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। १. अत: १४१ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रतौ वाचनाभेदो विद्यते-थावरेणं भंते थावरे ति कालतो केवच्चिरं होति गो जह अंतोमु उक्को वणस्सति कालो तसस्स संचिट्ठणा पुढविकालो थावरस्सतरं पुढविकालो तसस्संतरं वणस्सतिकालो। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमासु 'तिविहा संसारसमावणगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु, 'तं जहा"-इत्थी पुरिसा णपुंसगा !! २. से किं तं इत्थीओ ? इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तिरिक्खजोणित्थीओ मणस्सित्थीओ देविस्थीओ।। ३. से कि तं तिरिक्खजोणित्थीओ ? तिरिक्खजोणित्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-जलयरीओ थलयरीओ खहयरीओ'। ४. से किं तं जलयरीओ ? जलयरीओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- मच्छीओ जाव" संसुमारीओ। से तं जलयरीओ।। ५. से किं तं थलयरीओ ? थलयरीओ दुविहाओ पणत्ताओ, तं जहा---चउप्पईओ य परिसप्पीओ य॥ ६. से किं तं चउप्पईओ ? चउप्पईओ चउन्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एगखुरीओ जाव" सणप्फईओ। से तं च उप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीओ।। ७. से किं तं परिसप्पीओ ? परिसप्पीओ दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-उरपरिसप्पीओ'य भयपरिसप्पीओ" य ।। ८. से कि तं उरपरिसप्पीओ ? उरपरिसप्पीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाअहीओ अयगरीओ महोरगीओ य । सेत्तं उरपरिसप्पीओ।। ६. से किं तं भयपरिसप्पीओ ? भयपरिसप्पीओ अणेगविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा -गोहीओ णउलीओ सेधाओ सल्लीओ सरडीओ सरंधीओ 'साराओ खाराओ" पवलाइ१. X (क, ख)। ८. सरिवीओ (क); सरंवीओ (ख); सरंथीओ २. माणु (क, ख)। (ग); प्रज्ञापनायां (११७६) भुजपरिसर्पा३. अतोग्ने तिर्यग्योनिस्त्रियः सम्बन्धी आलापकः लापके 'सरंडा' इति पदमस्ति । प्रश्नव्याकरणे ___ 'ता' प्रती वृत्तौ च नास्ति । च ‘सरंब' इति पदमस्ति, तस्य पाठान्तरे ४. जी० ११६८। 'सरंग' इति दृश्यते । ५. जी० १३१०२। ६. सावाओ खराओ (क, ख); सावाओ ६. उरगपरि' (क, ग, ट)। खाराओ (ग); भावाओ वासाओ खाराओ ७. भुयगपरि' (क, ग, ८)! २३८ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २३६ याओ' चउप्पाइयाओ' मूसियाओ मुगुंसियाओ' घरोलियाओ जाहियाओ' छीरविरालियाओ । सेत्तं भयपरिसप्पीओ।। १०. से किं तं खहयरीओ ? खयरीओ चउन्विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- चम्मपक्खीओ जाव* विततपक्खीओ । सेत्तं खयरीओ। सेत्तं तिरिक्खजोणित्थीओ।। ११. से किं तं मणुस्सित्थियाओ? मणुस्सि त्थियाओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहाकम्मभूमियाओ अकम्मभूमियाओ अंतरदीवियाओ ॥ १२. से कि तं अंतरदीवियाओ ? अंतरदीवियाओ अट्ठावीसइ विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-एगूरुइयाओ आभासियाओ जाव' सुद्धदंताओ । सेत्तं अंतरदीवियाओ॥ १३. से किं तं अकम्मभूमियाओ ? अकम्मभूमियाओ तीसतिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंचसु हेमवए सु पंचसु एरण्णवएसु पंचसु हरिवासेसु पंचसु रम्मगवासेसु पंचसु देवकुरासु पंचसु उत्तरकुरासु । सेत्तं अकम्मभूमियाओ! १४. से किं तं कम्मभूमियाओ ? कम्मभूमियाओ पण्णरस विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंचसु भरहेसु पंचसु एरवएस पंचसु महा विदेहेसु । सेत्तं कम्मभूमगमणुस्सित्थीओ। सेत्तं मणुस्सित्थीओ।। १५. से किं तं देवित्थियाओ? देवित्थियाओ चउविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- भवणवासिदेवित्थियाओ वाण मंतरदेवित्थियाओ जोइसियदेवित्थियाओ वेमाणियदेवित्थियाओ १६. से किं तं भवणवासिदेवित्थियाओ ? भवणवासिदेवित्थियाओ दस विहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ जाव" थणियकुमारभवणवासिदेवित्थियाओ। से तं भवणवासिदेवित्थयाओ। १७. से कि तं वाणमंतरदेवित्थियाओ ? वाणमंतरदेवित्थियाओ अद्वविहाओ पण्णताओ, तं जहा-पिसायवाणमंतरदेवित्थियाओ जाव गंधव्ववाणमंतरदेवित्थयाओ। से तं वाणमंतरदेवित्थियाओ॥ १८. से किं तं जोइसियदेवित्थियाओ ? जोइसियदेवित्थियाओ पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—चंदविमाणजोइसियदेवित्थियाओ सुर-गह-नवखत्त-ताराविमाणजोइसिय१. पवणाइयाओ (ग); पवण्णाईयाओ (ट (पण्हा० १।८) । २. वाउप्पइय (पण्हा० ११८); प्रश्नव्याकरण- ७. जी० ११११३-११६ । वृत्तौ वातोत्पत्तिका' इति व्याख्यातमस्ति । ८. अतोग्ने मनुष्यस्त्रीसम्बन्धी आलापक: 'ता' प्रती ३. मुगुसियाओ (बा, ख); मुंगुसियाओ (ग); वृत्तौ च नास्ति । मुगसियाओ (ट); मंगुस (पण ० १७६) ६. पण्ण० १८६ । ४. घेरोलियाओ (2) ! १०. अतोने देवस्त्रीसम्बन्धी आलापक: 'ता' प्रती ५. गोहियाओ जोहियाओ (क); गोहियाओ वृत्तौ च नास्ति। जाहियाओ (ख, ग, ट)। ११. पण० १११३१ । ६. थिरावलियाओ (क): थिरी विरालियाओ १२. पण २१४५ । (स); छिरविरालियाओ (ग, ट); छोरल Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जीवाजीवाभिगमे देवित्थियाओ। सेत्तं जोइसियदेवित्थियाओ। १६. से कि तं वेमाणियदेवित्थियाओ ? वेमाणियदेवित्थियाओ दुविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- सोहम्मकप्पवेमाणियदेवित्यियाओ ईसाणकप्पवेमाणियदेवित्थियाओ। सेत्तं वेमाणियदेवित्थियाओ।। २०. इत्थीण भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! एगेणं आदेसेणं-- जहणणं अंतोमुहत्तं, लक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाइं । एक्केणं आदेसेणं-जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं नव पलिओवमाई। एगेणं आदेसेणं-जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं । एगेणं आदेसेणं-जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पन्नासं पलिओवमाई ।। २१. तिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ।। २२. जलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी ।। २३. च उप्पयथलयरतिरिक्खजोणित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहा तिरिक्खजोणित्थीओ ।। २४. उरपरिसप्पथलयरतिरिक्ख जोणिस्थीणं' भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं' पुन्चकोडी। एवं भुयपरिसप्पतिरिक्खजोणित्थीओ' ॥ २५. एवं खयरतिरिक्खित्थीणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओक्मस्स असंखेज्जइभागो॥ २६. मस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुब्बकोडी ।। २७. कम्मभूमयमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई । धम्मचरणं पडुच्च जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। २८. भरहेरवयकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ।। २६. पुब्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ।। ३०. अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! १. उरग० (क, ख, ग, घ)। २. उक्कस्सं (क, ख)। ४. उक्कस्सेणं (क, ख) प्रायः सर्वत्र । ३. भुयगपरिसप्पि० (क, ग, ट); भुयपरिसप्पि Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४१ जम्मणं पड़च्च जहण्णणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्ज इभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुन्यकोडी। ३१. हेमवएरण्णवए जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमं । संहरणं पडुच्च जहणणं अंतोम हत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी॥ ३२. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सिस्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णणं देसूणाई दो पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं । संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी ॥ ३३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा । जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयाई, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ३४. अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सित्थीण भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणयं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं । संहरणं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी॥ ३५. देवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाई ।। ३६. भवणवासिदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपंचमाइं पलिओवमाई।। ३७. एवं असुरकुमारभवणवासिदेवित्थियाए, नागकुमारभवणवासिदेवित्थियाए जहणेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणाई पलिओवमाइं । एवं सेसाणवि जाव थणियकुमारीण। ३८. वाणमंतरीणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं' अद्धपलिओवमं ।। ३६. 'जोइसियदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा" ! जहण्णणं अट्रभागपलिओवम', उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं ॥ ४०. चंदविमाणजोइसियदेवित्थीणं जहणेणं चउभागपलिओवम, उक्कोसेणं 'तं चेव ॥ १. "कुमाराणं (क)। २. उक्कस्सं (क)1 ३. जोतिसीणं (क)। ४. पलिओक्मभट्रभाग (ग, ट); मलयगिरि- वृत्तावपि 'अष्टभागपल्योपम' इति व्याख्यात मस्ति । ५. "देवित्थियाए (क, ख, ग, ट) चन्द्रविमान वासिज्योतिष्कस्त्रीणाम् (म)। ६. जी० २।३९ । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४१. सूरिविमाणजो इसियदेवित्थीणं' जहणेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपओिवमं पंचहि वाससए हिमब्भहियं || ४२. गहविमाणजोइसियदेवित्थोणं अपलिओai || जहणणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं २४२ ४३. क्खत विमाण जोइसियदेवित्थीणं जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं सातिरेगं ॥ ४४. ताराविमाणजोइसियदेवित्थीगं जहण्णेणं अट्टभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं ॥ ४५. वेमाणियदेवित्थीण' जहणेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओमाई ॥ ४६. सोहम्मकप्पवेमाणियदेवित्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं पलिओवमं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाई || ४७. ईसाणदेवित्थीणं जहणेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं णव पतिओवमाई || ४८. इत्थी णं भंते ! इत्यित्ति कालओ केवच्चिरं' होइ ? गोयमा ! एक्केणादेसेण – जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियं । एक्केणादेसेण -- जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पनिओवमाइं पुव्वाकोडीपुहत्तभाई' | एक्केणादेसेण - जहणेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं चउद्दस पलिओ माई पुव को डिपुहत्तमब्भहियाई । एक्केणादेसेण- जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं पलिओ मस पुव्व कोडी पुहत्तमब्भहियं । एक्केणादेसेण- जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं पलिश्रवमपुहत्तं पुब्वकोडी पुहत्तमब्भहियं ॥ ४६. तिरिखखजोणित्थी णं भंते! तिरिक्खजोणित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओ माई पुव्यकोडी पुहत्तमन्भहियाई ॥ ५०. जलयरीए जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहतं ॥ ५१. 'चउप्पयथलयरीए जहा ओहियाए" || ५२. उरपरिसप्पि - भुयपरिसप्पित्थीणं' जहा जलयरीणं ॥ ५३. खहयरीए' जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वको डिपुहत्तमब्भहियं ॥ ५४. मणुस्सित्थी णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च १. "देविया (क, ख, ग, ट); सूर्यविमानवासिज्योतिष्क देवीनाम् ( मवृ ) | २. देवित्थियाए (क, ख, ग, ट); ताराविमानज्योतिष्कदेवीनाम् (मवृ) 1 ३. देविया (क, ख, ग, ट); वैमानिकदेवस्त्रीणाम् (मवृ) | ४. किच्चिरं ( ग ) । ५. पुहुत्त (क, ग ) । ६. चउप्पदधलय र तिरिक्खी जधा ओहिता तिरिक्खी (क, ख, ग, ट) 1 ७. उरगपरिसप्पि (क, ख, ग, ८) । ८. भूयग (क, ख, ग, ट) । ६. हरि (क); खयरि ( ख, ग, ट ) | Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४३ जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियाई। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ५५. एवं कम्मभूमियावि भरहेरवयावि', णवरं-खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं देसूणपुव्वकोडिमब्भहियाई । धम्मचरणं पडुच्च जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी॥ ५६. पुव्वविदेह-अवरविदेहित्थीणं खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुब्बकोडी॥ ५७. अकम्मभूमिकमणुस्सित्थी' णं भंते ! अकम्मभूमिकमणुस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। संहरणं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई देसूणाए पुव्बकोडीए अब्भहियाई ॥ ५८. हेमवएरण्णवए अकम्मभूमिकमणुस्सित्थी णं भंते ! हेमवएरण्णवए अकम्मभूमिकमणुस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडच्च जहणणं देसूणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमं । संहरणं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमं देसूणाए पुवकोडीए अभहियं ॥ ५६. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भंते ! हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई दो पलिओवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगाई, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई । संहरणं पडुच्च जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो पलिओवमाई देसूणपुव्वकोडिमब्भहियाई॥ ६०. उत्तरकुरुदेवकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी' णं भंते ! उत्तरकुरुदेवकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? मोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्रेणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगाइं, उक्कोसेणं तिण्णि पलि ओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई देसूणाए पुवकोडीए अब्भहियाई ॥ ६१. अंतरदीवाकम्मभूमिगमणुस्सित्थी' णं भंते ! अंतरदीवाकम्मभूमिगमणस्सिस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जम्मणं पडच्च जहण्णणं देसणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं । संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं देसूणाए पुवकोडीए अब्भहियं ॥ १. भरतेर (ग, ट)। ६. साहरणं (क, ख, ग)। २. कोडीअमहियाई (क, ख, ट)। ७. 'देवकुरूणं (ग, ट)। ३. अकम्मभूमक (ग); अकम्मभूमिग (ट)। ८. अब्भधियाई (ग)। ४. साहरणं (क, ख, ग)। ६. भूमग (क); भूमक (ख, ग, ट)। ५. पलितोवमाइं (क, ख, ग, ट)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ६२. देवित्थी णं भंते ! देवित्थित्ति कालओ, 'जच्चेव संचिट्टणा " || ६३. इत्थीणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोण अनंतं कालं - वणस्सइकालो ॥ ६४. एवं सव्वासि तिरिक्खित्थीणं ॥ ६५. मणुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं 'एक्कं समयं,” उक्कोसेणं अनंतं कालं -- जाव अवड्ढपोग्गलपरिय देणं । एवं जाव' पुव्यविदेह अवरविदेहियाओ || ६६. अम्मभूमिगमणुस्सित्थीणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं दसवास सहस्साई अंतोमुहुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो । संहरणं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो । एवं जाव' अंतरदीवियाओ ॥ जीवाजीवाभिगमे ६७. देवित्थियाणं सव्वासि जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ॥ ६८. एयासि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थियाणं मणुस्सित्थियाणं 'देवित्थियाण य कतरा कतराहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओं' मणुस्सित्थियाओ, तिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, देवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ ! ६६. एयासि णं भंते! तिरिक्खजोणित्थियाणं -- जलयरीणं थलयरीणं खहयरीण य कतरा कतराहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ खह्यरतिरिक्खिजोणित्थियाओ, थलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ | ७०. एयासि णं भंते! मणुस्सित्थीणं कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाण य कतरा कतराहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवाओ अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ, ३. देवकुरुउत्तरकुरुअ कम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ५. हरिवासरम्मगवास अकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ ७. हेमवएरण्णवयअकम्मभूमिग सिथियाओ दोवितुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ६. भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ११ पुग्वविदेह अवर विदेह कम्म भूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ || ७१. एयासि णं भंते! देवित्थियाणं - भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीण" मणिणीय कतरा कतराहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवाओ वेमाणियदेवित्थियाओ, २. भवणवासिदेवित्थियाओ असंखेज्ज १. 'सेव संचिणा भाणियत्वा' तदेवावस्थानं वक्तव्यम् (भवु ) | २. समयं ( क ) : समओ (ख, ट ) । ३. जी० २।५५ । ४. जी० २।५८-६० ५. देवित्थियाणं (क, ख, ग, ट) 1 ६. सव्वत्योवा ( क ग ) । ७. जोइसियाणं (क, ख ) 1 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४५ गुणाओ, ३. वाणमंतरदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, ४. जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ॥ ७२. एयासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थियाणं-जलयरीणं थलयरीणं खयरीण, मणुस्सित्थियाणं-कम्मभूमियाणं अकम्मभुमियाणं अंतरदीवियाणं, देवित्थियाणं-भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीण य कतरा कतराहिंतो अप्पा वा वहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवाओ अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ, ३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ' संखेज्जगुणाओ, ५. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ ७. हेमवएरण्णवयअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ६. भरहेरवयकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, ११. पुव्व विदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ, १२. वेमाणियदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १३. भवणवासिदेवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १४. खहयरतिरिक्खजोणित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, १५. थलयरतिरिक्खिजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १६. जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १७. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ, १८. जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ।। ७३. इत्थिवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णण सागरोवमस्स दिवड्ढो सत्तभागों' पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ। पण्णरस वाससयाई अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती कम्मणिसेओ।। ७४. इत्थिवेदे णं भंते ! किंपगारे पण्णत्ते ? गोयमा ! फुफुअग्गिसमाणे पण्णत्ते सेत्तं इत्थियाओ।। ७५. से किं तं पुरिसा? पुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-तिरिक्खजोणियपुरिसा मणुस्सपुरिसा देवपुरिसा॥ ७६. से किं तं तिरिक्खजोणियपुरिसा ? तिरिक्खजोणियपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा थलयरा खयरा । इत्थिभेदो भाणियन्वो जाव' खयरा । सेत्तं खयरा। सेत्तं तिरिक्खजोणियपुरिसा॥ __७७. से किं तं मणुस्सपुरिसा ? मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। सेत्तं मणुस्सपुरिसा ।। ७८. से किं तं देवपुरिसा? देवपुरिसा चउब्विहा पणत्ता, तं जहा-इत्थीभेदो भाणियन्वो १. ४ (क, ख, ग) सर्वत्र । ५. अस्मिन् सूत्रे पूर्वसूत्रवत् इत्थिभेदो भाणियब्वो' २. "भाओं (क, ख, ग, ट)। इति सूचना नास्ति कृता तथापि मनुष्यवर्णन३. फुफ (क); पुंफ (ग); फुस्फुकाग्निसमान;, कृते द्रष्टव्यानि जी० २०१२-१४ सूत्राणि । ___फुम्फुकशब्दो देशीत्वात्कारीषवचन: (मवृ)। ६. जी० २॥ १६-१६ । ४. जी० २१४-१०। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ "जाव सव्वट्टसिद्धा" || ७६. पुरिसस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुसं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ॥ तिरिक्खजोणियपुरिसाणं मणुस्सपुरिसाणं जा चेव इत्थीगं ठिती सा चेव ८०. भाणियव्वा' ।। ८१. देवपुरिसाणवि जाव सव्वट्टसिद्धाणं ति ताव ठिती जहा पण्णवणाए तहा भाणियव्वा ॥ ८२. पुरिसे णं भंते ! पुरिसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमस्य पुहत्तं सातिरेगं ॥ ८३. तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओ माई पुब्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई । एवं तहेव संचिणा जहा इत्थीण जाव" खह्य र तिरिक्खजोणियपुरिसस्स संचिणा ॥ ८४. मणुस्सपुरिसाणं भंते! कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्को सेणं तिष्णि पलिओ माई पुव्वको डिपुहत्तमब्भहियाई । धम्मचरणं पडुच्च जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्यकोडी ॥ ८५. एवं सव्वत्थ जाव' पुब्वविदेह - अवरविदेह - कम्मभूमगमणुस्सपुरिसाणं । अकस्म भूमगमणुस्सपुरिसाणं जहा अम्मभूमिकमणुस्सित्थीणं" जाव' अंतरदीवगाणं | जच्चेव ठती सच्चेव संचिणा जाव सव्वट्टसिद्ध गाणं ॥ जीवाजीवाभिगमे ८६. पुरिसस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || ८७. तिरिक्खजोणियपुरिसाणं" जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं जाव खहयरतिरिवखजोणियपुरिसागं || ८. मणुरसपुरिसाणं" भंते ! केवतियं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो | धम्मचरणं पडुच्च जहणेणं एक्कं १. मलयगिरिवृत्ती 'जाव अणुत्तरोववाइया' इति पाठ उट्टङ्कितोस्ति तथा यावत्पदेनात्र सनत्कुमारादारभ्य कल्पोपपन्नदेवानां कल्पातीतदेवानां च ग्रहणं जायते । २. जी० २ । २१-३४ । ३. पण ० ४ । मलयगिरिणा कस्याश्चिद् विस्तृतवाचनाया आधारेण व्याख्या कृता उपलब्धसूत्रं च पाठान्तररूपेण उल्लिखितम् - क्वचिदेवं सूत्रपाठ: - 'देवपुरिसाण ठिई जहा पण्णवणाए fore तहा भाणियव्वा' ! ४. तं चैव ( ग ) । ५. जी० २। ५०-५३ । ६. जी० २ । ५५,५६ । ७. भूमक (क,ग); भूमग" (ट) । ८. जी० २ । ५७-६१ । ६. जी० २ । ८१ । १०. अस्य सूत्रस्य स्थाने वृत्तौ निम्नलिखितं सूत्रं व्याख्यातमस्ति जं तिरिक्खजोणित्थीणमंत रं तं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं ( मवृ ) । ११. अस्य सुत्रस्य स्थाने वृत्तौ निम्नलिखितं सूत्रं व्याख्यातमस्ति - जं मणुस्स इत्थीणमन्तरं तं मणुस्सपुरिसाणं (मवृ) । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४७ समय, उक्कोसेणं 'अणंतं कालं'-अणंताओ उस्सप्पिणीओ जाव अवड्ढपोग्गलपरियटें देसूणं॥ ८६. कम्मभूमकाणं जाव' विदेहो जाव' धम्मचरणे एक्को समओ, सेसं जहित्थीणं जाव अंतरदीवकाणं॥ ६०. देवपुरिसाणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ६१. भवणवासिदेवपुरिसाणं ताव जाव सहस्सारो जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १२. आणतदेवपुरिसाणं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं वासपुहत्तं', उक्कोसेणं वणस्स तिकालो। एवं जाव गेवेज्जदेवपुरिसस्सवि ।। ६३. अणुत्तरोववातियदेवपुरिसस्स जहण्णेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई सागरोवमाइं साइरेगाई॥ १४. अप्पाबहुयाणि, जहेवित्थीणं जाव'-- १५. एतेसि णं भंते ! देवपुरिसाणं-भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियागं वेमाणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा वेमाणियदेवपुरिसा २. भवणवइदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ।। ६६. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियपुरिसाणं-जलयराणं थलयराणं खयराणं, मणस्सपूरिसाणं-कम्मभूमगाणं अकम्मभमगाणं अंतरदीवगाणं, देवपरिसाणं-भवणवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं सोधम्माणं जाव सव्वट्ठसिद्धगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा ३. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि' संखेज्जगुणा ५. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा ७. हेमवतहेरण्णक्तवासअकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा ६. भरहेरवतवासकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा १. वनस्पतिकाल : (मवृ): संखे ज ति संखे । मणु पु जघा मणुयीणं एतेसि २. जी०२। ५५, ५६ ॥ णं भंते देव पु भवण जाव वेमाणि कत सव्व३. जी० २।८८॥ स्थोवा अणुत्तरोववातिया देव पुरिसा उवरिमं ४. जी० २। ६६ । गे संखे मज्झिम गे सं हेट्ठिम गे अच्चुए कप्पे ५. पुधत्तं (क); पुहुत्तं (ग, ट) । देवपु सं जावणते सं सहस्सारो असं महासू असं ६. अस्मिन् यावत्पदे स्त्रीणामल्पबहुत्वानां समाहारः लंतए असं बंभलोए असं माहिदे असं खहचर कृतोस्ति । तत्कृते द्रष्टव्यानि इमानि सूत्राणि- पचि असं थल सं जल सं वाण सं जोति संखे। जी०२। ६८-७० । 'ता' प्रतौ एतेषां पञ्चाना- __ मलयगिरिवृत्तावपि पूर्णः पाठो व्याख्यातोस्ति । मपि अल्पबहुत्वानां पाठे भिन्ना वाचना ७. भूमकाणं (क, ख)। दृश्यते--एतेसि णं भंते तिरिक्खजोणियपुरिसाणं ८. अकम्मभूमा (ख, ग)। मणु देवपु कतरे क सव्वत्थोवा मणुस्स पू तिरी १. सर्वत्र--तुल्या इति गम्यम् । असं देवपुरि संखे । पुच्छा सव्वत्थोवा खह थल Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ जीवाजीवाभिगमे दोवि संखेज्जगुणा ११. पुव्वविदेह-अवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा १२. अणुत्तरोववातियदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा १३. उवरिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा १४. मज्झिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा १५. हेट्रिमगेविज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा १६. अच्चुयकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणतकप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा २० सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २४. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा जाव माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २५. सणंकुमारकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा । २६. ईसाणकप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २७. सोधम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा ! २८. भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसा असंखेज्जगुणा ३०. थलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ३१. जलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ३२. वाणमंतरदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ३३. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ।। ६७. पूरिसवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्टिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ट संवच्छराणि, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दसवाससयाइं अवाहा अबाहणिया कम्मट्टिती कम्मणिसेओ।। १८. पुरिसवेदे णं भंते ! किंपकारे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'दवग्गिजालसमाणे पण्णत्ते । सेत्तं पुरिसा ।। . से किं तं नपुंसगा' ? नपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-नेरइयनपुंसगा तिरिक्खजोणियनपुंसगा मणुस्सजोणियनपुंसगा। १००. से किं तं नेरइयनपुंसगा ? नेरइयनपुंसगा सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा-- रयणप्पभापुढविनेरइयनपुंसगा सक्करप्पभापुढविनेरइयनपुंसगा जाव अधेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा। १०१. से किं तं तिरिक्खजोणियनपुंसगा? तिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा--एगिदियतिरिक्वजोणियनपुंसगा बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा तेइंदियतिरिक्ख. जोणियनपुंसगा चरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा ।। १०२. से कि तं एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा? एगिदियतिरिक्खजोणियनपंसगा पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सतिकाइया । से तं एगिदियतिरिक्खजोणियनपंसगा। १०३. से किं तं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा? बेइंदियतिरिक्खजोणियनसगा अणेगविधा पण्णत्ता । से तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया। एवं तेइंदियावि, चउरिदियावि ।। १. वणदवग्गि (क, ख, ग, ट)। इति पदानन्तरं तद्यथा--पुलाकिमिया इत्यादि २. दवग्गिजालसमाणोय (ता)। पूर्ववत्तावद्वक्तव्यं यावच्चतुरिन्द्रियभेदपरि३. णपुसगा (क, ख, ता)। समाप्तिः' इति व्याख्यातमस्ति, अनेन प्रतीयते ४. अणेगविधा (क, ग)। वृत्तिकारस्य सम्मुखे कश्चिद् विस्तृतपाठादर्श : ५. प्रयुक्तपाठादर्शषु द्वीन्द्रियादीनां भेदा न सन्ति आसीत । साक्षात् लिखिताः। मलयगिरिवृत्तौ प्रज्ञप्ता Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २४९ १०४. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा? पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहाजलयरा थलयरा खहयरा ॥ १०५. से किं तं जलयरा ? जलयरा सो चेव 'इत्थिभेदो आसालियसहितो" भाणियव्वो। से तं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनसगा ॥ १०६. से किं तं मणुस्सनपुंसगा? मणुस्सनपुंसगा तिविधा पण्णत्ता, तं जहा--- कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। भेदो॥ १०७. नपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ।। १०८. नेरइयनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोक्माई 'सव्वेसिं ठिती भाणियन्वा जाव अधेसत्तमापुढविनेरइया ॥ १०६. तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी॥ ११०. एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साई॥ १११. पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई। सम्वेसिं एगिदियनपंसगाणं ठिती भाणियव्वा ।। ११२. 'बेइंदियतेइंदियचउरिंदियनपुंसगाणं ठिती भाणितव्वा ।। ११३. पंचिंदियतिरिक्खिजोणियनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । एवं जलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगचउप्पदथलयर-उरगपरिसप्पभुयगपरिसप्प-खहयरतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स सव्वेसिं जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी ।। १. पुव्वतभेदो आसालियवज्जितो (ग); मलयगि- बावीसा तमतमा वावीस तेत्तीस । मलयगिरिणा रिवृत्तौ खिचराश्च' अतोने एते च प्राग्वत्स 'विशेषचिन्तायां' इति उल्लेखपूर्वक विस्तृतप्रभेदा वक्तव्याः' इत्येव व्याख्यातमस्ति । 'ता' वाचना व्याख्यातास्ति। प्रती पाठसंक्षेपो विद्यते। ४. जी० १। ६५, ७४. ७६, ८२। 'ता' प्रती २. अतोने क, ख, ग' आदर्शेषु एते वर्णा : विस्तृतवाचना दृश्यते-पुढिवि एवं विधा आउ लिखिता दृश्यन्ते ल त ला ५ ह्रा। 'ट' प्रती पंस ग्रा तेउ ३ रातिदिया वाउ ३ बास सह 'जाव भाणियब्वों' इति पाठोस्ति। 'ता' प्रती वण दस वास सह । मलयगिरिवृत्तावपि विस्तृत पाठसंक्षेपो विद्यते। मलयगिरिणा एतेपि प्राग्व- वाचना व्याख्यातास्ति । त्सप्रभेदा वक्तव्याः' इति व्याख्यातम् । ५. 'ता' प्रतौ एवं पाठो विद्यते-~बेंदि वार वासा ३. 'ता' प्रत्तौ विस्तृतवाचना दृश्यते-- रतणाए तेंदि अउणपण्णं राति चतु छम्मास । मलयजहं दस वा उक्को सागरं सक्कर ३ वालु गिरिणापि इत्थमेव व्याख्यातम् ।। ३ या पंक ग्रा द धूम द दग्रा तमाए सत्तदस Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जीवाजीवाभिगमे ११४. मणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी॥ ११५. कम्मभूमगभरहेरवय-पुवविदेह-अवरविदेहमणुस्सनसगस्सवि तहेव ।। ११६. अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च 'जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं"! साहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं देसृणा पुन्वकोडी। एवं जाव अंतरदीवगाणं ॥ ११७. नपुंसए णं भंते ! नपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। ११८. जरइयनपुंसए' णं भंते ! णेरइयनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। एवं पुढवीए ठिती भाणियव्वा ।। ११६. तिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते ! तिरिक्खजोणियनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।। १२०. एवं एगिदियनपुंसगस्स वणस्सतिकाइयस्सवि एवमेव । सेसाणं जहण्णणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोया ।। १२१. बेइंदियतेइंदियचरिदियनपुंसगाण य जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं ॥ १२२. 'पंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणियनपुसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडिपहत्तं । एवं जलयरतिरिक्खचउप्पदथलचरउरपरिसप्पभुयपरिसप्पमहोरगाणवि ॥ १२३. मणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! मणुस्सनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिर होइ ? खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं पुवकोडिपुहत्तं । धम्मचरणं पडुच्च जहणेणं एक्क समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। एवं कम्मभूमगभरहेरवयपुव्वविदेहअवरविदेहेसुवि भाणियव्वं ।। १२४. अकम्मभूमगमणुस्सनपुंसए णं भंते ! अकम्मभूमगमणुस्सनसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं मुहत्तपुहत्तं । साहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं सव्वेसि जाव १. जहण्णेणवि उक्को अंतो मु (ता)! एगिदिणसए पुढवि आउ वा जणय पुढवि२. तरुकालो (क, ख, ग, ट)। कालो वणस्सतीणं वण कालो पिगलाण संखेज्ज३. 'ता' प्रतो अस्य सुत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेप कालं । एवमस्ति..-णेरइयाणं जधा ठिती। ६. एवं जाव खहचर (ता)। ४. पण्ण० ४१४-२२। ७. ४ (क, ख, ग, द)। ५. 'ता' प्रती द्वीन्द्रियादिपर्यन्तं एवं पाठोस्ति Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २५१ अंतरदीवगाणं ॥ १२५. नपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सा तिरेगं । १२६. रइयनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो' । १२७. रयणप्पभापुढवीनेरइयनपुंसगस्स जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं सव्वेसि जाव' अधेसत्तमा ।। १२८. तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरगं ।। १२६. एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं ।। १३०. पुढविआउतेउवाऊणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो॥ १३१. 'वणस्सतिकाइयाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज कालं जाव असंखेज्जा लोया"। बेइंदियादीण जाव खहयराणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १३२. मणुस्सनपुंसगस्स खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं अणतं कालं जाव अवड्ढपोग्गलपरियट्टदेसूणं । एवं कम्मभूमकस्सवि भरतेरवतस्स पुव्वविदेहअवरविदेहकस्सवि ॥ १३३. अकम्मभूमकमणुस्सनपुंसगस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। संहरणं पड़च्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं जाव अंतरदीवगत्ति ॥ १३४. एतेसि णं भंते ! णेरइयनपुंसगाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं मणुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो' 'अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सनपुंसगा २. नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३. तिरिक्खजोणियनसगा अणतगुणा ।। १३५. एतेसि णं भंते ! नेरइयनपुंसगाणं-रयणप्पहापुढविणेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविणेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो" 'अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा ६. छदपुढविणेरइनपंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्चपुढविणेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ।। १३६. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं--एगिदियतिरिक्खजोणिय१. तरुकालो (क, ख, ग, ट)। ५. सं० पा.---कतरेहितो जाव विसेसाहिया । २. जी० २१११६ । ६. x (ग, ट, ता)। ३. वणस्सतीणं पुढविकालो (ता) ७. सं० पा०---कतरेहितो जाव विसेसाहिया । ४. सेसाणं बेइंदियादीणं (क, ख, ग, ट)। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जीवाजीवाभिगमे नपुंसगाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं, बेइंदियतेइंदियचरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलयराणं खहयराण य कतरे कतरेहितो' 'अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! १. सव्वत्थोवा खयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा २. थलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा ३. जलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा ४. चतुरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ५. तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ६. बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विमेसाहिया ७. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ८. पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपंसगा विसेसाहिया ६. 'आऊ विसेसाहिया १०. वाऊ विसेसाहिया" ११. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ १३७. एतेसि णं भंते ! मणुस्सनपुंसगाणं-कम्मभूमिनपुंसगाणं अकम्मभूमिनपुंसगाणं अंतरदीवगनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा!१. सव्वत्थोवा अंतरदीवगअकम्मभूमगमणस्सनपुंसगा ११. देवकुरु उत्तरकुरुअकम्मभ्रमगा दोवि संखेज्जगुणा एवं जाव पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमगा दोवि संखेज्जगुणा ॥ १३८. एतेसि णं भंते ! रइयनपंसगाणं-रयगप्पभापुढविनेरइयनपंसगाणं जाव अधेसत्तमापुढविणेरइयनपुंसगाणं, तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं--एगिदियतिरिक्खजोणियाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं बेइंदियतेइंदियचतुरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलयराणं खह्यराणं, मणुस्सनपुंसगाणं-कम्मभूमिगाणं अकम्मभूमिगाणं अंतरदीवगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अधेसत्तमपुढविणेरइयनपुंसगा ६. छट्ठपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्चपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७. अंतरदीवगमणुस्सनर्पसगा असंखेज्जगुणा १७. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा जाव पुवविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा १८. रयणप्पभापुढवि रइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १६. खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा २०. थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा २१. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा २२. चतुरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २३. तेइंदियतिरिक्खजोणियनपंसगा विसेसाहिया २४. बेइंदियतिरिक्खजोणियनपंसगा विसेसाहिया २५. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा २६. पूढविकाइयएगिदियतिरिक्खिजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २७. आउक्काइयतिरिक्खिजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २८. वाउकाइयतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया २६. वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनसगा अणंतगुणा ॥ १३६. नपुंसगवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवतियं कालं बंधठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेण ऊणगा, १. सं. पा.--कतरेहितो जाव विसेसाहिया। २. एवं आउवाउ (क, ख, ग, ट)। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २५३ उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, 'दोण्णि य वाससहस्साइं" अबाधा, अबाणिया कम्मठिती कम्मणिसेगो।। १४०, नपुंसगवेदे णं भंते ! किंपगारे पण्णत्ते ? गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पण्णत्ते समणाउसो ! से तं नपुंसगा ! १४१. एतासि णं भंते ! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २, इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अणंतगुणा ।। १४२. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनसगा अणतगुणा ।। १४३. एतासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं मणुस्सपुरिसाणं मणुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सपुरिसा २. मणुस्सित्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. मणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा !! १४४. एतासि णं भंते ! देवित्थीणं देवपुरिसाणं गैरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जेरइयनपुसमा २. देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३. देवित्थीओ संखेज्जगुणाओ।। १४५. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं, मणुस्सित्थीणं मणुस्सपुरिसाणं मणुरसनपुंसगाणं, देवित्थीणं देवपुरिसाणं रइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिय वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा मणुस्सपरिसा २. मणुस्सित्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. मणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४. गेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ५. तिरिक्खजोणियपुरिसा असंखेज्जगुणा ६ तिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७. देवपुरिसा संखेज्जगुणा' ८. देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ॥ . . १४६. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं-जलयरीणं थलयरीणं खयरीणं, तिरिक्खजोणियपरिसाणं-जलयराणं थलयराणं खहयराणं, तिरिक्खजोणियनपंसगाणंएगिदियतिरिक्खजोणियनपुसगाणं पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनसगाणं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं चरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं-जलयराणं थलय राणं खयराणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा खयरतिरिक्खजोणियपुरिसा २. खहयरतिरिक्खजोणि त्थियाओ संखेज्जगुणाओ ३. थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ४. थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५. जलयरतिरिक्ख१. वीस य वास सया (ता) 1 सर्वत्र । २. एतेसि (क, ख, ग, ट); एगासि (ता) ३. असंखेज्जगुणा (क, ख, ट) Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जीवाजीवाभिगमे जोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६. जलयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७. खहयरपंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ८. थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा १. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा संखेज्जगुणा १०. चउरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ११. तेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया १२. बेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया १३. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा १४. पुढविकाइयनसगा विसेसाहिया १५. आउक्काइयनपुंसगा विसेसाहिया १६. वाउक्काइयनपुंसगा विसेसाहिया १७. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा ।। १४७. एतासि णं भंते ! मणुस्सित्थीणं--कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं, मणस्सपुरिसाणं--कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, मणुस्सनपुंसगाणंकम्मभूमगाणं' अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! २. अंतरदीवगा मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपूरिसा य एते णं दोण्णिा वि तुल्ला सव्वत्थोवा ६. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा एते णं दोणिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १०. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा य एते णं दोणिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १४. हेमवतहेरणवतअकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसा य दोण्णिवि तुल्ला संखेज्जगुणा १६. भरहेरवतकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा १८. भरहेरवतकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि संखेज्जगुणाओ। २०. पुव्व विदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा २२. पुव्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओं दोवि संखेज्जगुणाओ २३. अंतरदीवगमणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा २५. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणस्सनपुंसगा दोविं संखेज्जगुणा २७. 'हरिवास रम्मगवासअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा २६. हेमवतहेरण्णवतअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा ३१. भरहेरवतकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा" ३३. पुवविदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा ।। १४८. एतासि णं भंते ! देवित्थीणं--भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीणं, देवपुरिसाणं-भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं, सोधम्मकाणं जाव गेवेज्जकाणं अणुत्तरोववातियाणं, णेरइयनपुंसगाणं-रयणप्पभापुढविणेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! १. सव्वत्थोवा अणुत्तरोववातियदेवपुरिसा ८. उवरिमगेवेज्जदेवपुरिसा संखेज्जगुणा 'तहेव जाव आणते" कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा, ६. अहेसत्तमाए पुढवीए णेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १०. छट्ठीए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ११. सहस्सारे कप्पे देवपूरिसा असंखेज्जगुणा १२. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १३. पंचमाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १४. लंतए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १५. चउत्थीए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा १६. बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १७. तच्चाए १. कम्मभूमिकाणं (क); कम्मभूमाणं (ग)। ३. मज्झिम मे सं हेट्ठिम गे अच्चते कदे पुरि सं २. एवं तहेव जाव (क, ख, ग, ट)। जाव आणते (ता)। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोच्चा तिविहपडिवत्ती २५५ पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा १८. माहिदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा १६. सणंकुमारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २०. दोच्चाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा २१. ईसाणे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा २२. ईसाणे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २३. सोधम्मे कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा २४. सोधम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २५. भवणवासिदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ २७. इमीसे रयणप्पभापुढवीए नेरइया असंखज्जगुणा २८ वाणमंतरदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा २६. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ३०. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ३१. जोतिसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ॥ १४६. एतासि णं भंते ! तिरिक्खजोणित्थीणं- जलयरीणं थलयरीणं खयरीणं, तिरिक्खजोणियपुरिसाणं-जलय राणं थलयराणं खयराणं, तिरिक्खजोणियपुरिसाणं--- जलयराणं थलयराणं खयराणं, तिरिक्खजिोणयनपुंसगाणं एगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं -पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं जाव वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं बेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं तेइंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं चरिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगाणं -- जलयराणं थलयराणं खहराणं, मणुस्सित्थीणं-कम्मभूमियाणं अकम्मभूमियाणं अंतरदीवियाणं, मगुस्सपुरिसाणं-कम्मभूमगाणं अक्रम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, मणुस्सनपुंसगाणं-कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं, देविस्थीणं -भवणवासिणीणं वाणमंतरीणं जोतिसिणीणं वेमाणिणीणं, देवपुरिसाणं-भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं वेमाणियाणं, सोधम्मकाणं जाव गेवेज्जकाणं अणुत्तरोववातियाणं, नेरइयनपुंसगाणं-रयणप्पभापुढविनेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढविणे रइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! २. अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य, एते णं दोवि तुल्ला सव्वत्थोवा, ६. देवकुरुउत्तरकुरुअकम्मभूमगमणुस्सित्थीओ पुरिसा य, एते णं दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा । एवं १०. हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ । एवं १४. हेमवतहेरण्णवय १६. भरहेरवयकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा' दोवि संखेज्जगुणा १८. भरहेरवतकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दोवि संखेज्जगुणाओ २०. पुब्ब विदेहअवरविदेहकम्मभूमगमणुस्सपुरिसा दोवि संखेज्जगुणा २२. पुय्वविदेहअवरविदेहकम्मभूमिगमणुस्सित्थियाओ दोवि संखेज्जगुणाओ २३. अणुत्तरोववातियदेवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३०. उवरिमगेवेज्जा देवपुरिसा संखेज्जगुणा जाव आणते कप्पे देवपुरिसा संखेज्जगुणा ३१. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३२. छट्ठीए पुढवीए नेरइयनसगा असंखेज्जगुणा ३३. सहस्सारे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३४. महासुक्के कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३५. पंचमाए पुढबीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३६. लंतए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३७. चउत्थीए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ३८. बंभलोए कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ३६. तच्चाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४०. माहिंदे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ४१. सणंकुमारे १. हेरवयवासकम्म (क, ग, ट)। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जीवाजीवाभिगमे कप्पे देवपुरिसा असंखेज्ज्गुणा' ४२. दोच्चाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ४३ अंतरदीवगअकम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा असंखेज्जगुणा ५३. देवकुरुउत्तरकुरुअ कम्मभूमगमणुस्सनपुंसगा दोवि संखेज्जगुणा । एवं जाव' विदेहत्ति ५४. ईसाणे कप्ये देवपुरिसा असंखेज्जगुणा ५५. ईसाणे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५६. सोधम्मे कप्पे देवपूरिसा संखेज्जगुणा ५७. सोहम्मे कप्पे देवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ५८. भवणवासिदेवपूरिसा असंखेज्जगुणा ५६. भवणवासिदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६०. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा ६१. खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६२. खयरतिरिक्खजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६३. थलयरतिरिक्खजोणिय पुरिसा संखेज्जगुणा ६४. थलयरतिरिवखजोणित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६५. जलयरतिरिक्खजोणियपुरिसा संखेज्जगुणा ६६. जलयरतिरिक्खजोणि त्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६७. वाणमंतरदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ६८. वाणमंतरदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ६६. जोतिसियदेवपुरिसा संखेज्जगुणा ७०. जोतिसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ७१. खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा' असंखेज्जगुणा ७२. थलयरनपुंसगा संखेज्जगुणा ७३. जलयरनपुंसगा संखेज्जगुणा ७४. चतुरिदियनपुंसगा विसेसाहिया ७५. तेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया ७६. बेइंदियनपुंसगा विसेसाहिया ७७. तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा असंखेज्जगुणा ७८. पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपंसगा विसेसाहिया ७. आउक्कादयगिटियतिक्षित ७६. आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियन पुंसगा विसेसाहिया ८०. वाउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा विसेसाहिया ८१. वणस्सतिकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा अणंतगुणा।।। १५०. इत्थीणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! एगेणं आएसेणं जहा पुदि भणियं । एवं पुरिसस्सवि नपुंसगस्सवि। संचिट्ठणा पुणरवि तिण्हंपि जहा पुवि भणिया । अंतरंपि तिण्हंपि जहा' पुवि भणियं तहा नेयव्वं ।।। १५१. तिरिक्खजोणि त्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिगुणाओ तिरूवाहियाओ, मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसेहितो सत्तावीसतिगुणाओ सत्तावीसतिरूवाहियाओ, देवित्थियाओ देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसइरूवाहियाओ। सेत्तं तिविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ।। संगहणी गाहा तिविहेसु होइ भेओ, ठिई य संचिट्ठणंतरप्पबई वेदाण य बंधठिती, वेओ तह किंपगारो उ" ॥१॥ १. संखेज्जगुणा (क, ख, ग, ता)। २. देवकूरूत्तरकुर्वकर्मभूमकहरिवर्षरम्यकवर्षा- कर्मभूमकहैमवतहरण्यवताकर्मभूमकभरतैरवतकर्मभूमकपूर्व विदेहापरविदेहकर्मभूमकमनुष्यनपुंसका यथोत्तरं संखेयगुणाः (मव)। ३. नपंसा (ग)। ४. वणप्फइ (क, ख, ग) । ५. जी० २।२०-४७; ७६-८१, १०७-११६ । ६. जी० २१४८-६२, ८२-८५; ११७-१२२ । ७. जी० २०६३-६७; ८६-६३; १२४-१३३ । ८. तहप्पबहुं (क)। ६. किंपगारे य (ट, ता)। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमाहंसु 'चउविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसू. तं जहानेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ॥ २. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा- पढमापुढविनेर झ्या दोच्चापुढविनेरइया तच्चापुढविनेरइया चउत्थापुढवीनेरइया पंचमापुढवीनेरदया हट्टापुढविनेरइया सत्तमापुढवीनेरइया ।। ३. पढमा णं भंते ! पुढवी किनामा किंगोता पण्णत्ता ? गोयमा ! घम्मा णामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं ॥ ४. दोच्चा णं भंते ! पुढवी किनामा किंगोत्ता पण्णत्ता ? गोयमा ! वंसा णामेणं, सक्करप्पभा गोत्तेणं । एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा, णामाणि इमाणि सेला तच्चा अंजणा चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवती सत्तमा जाव' तमतमा गोत्तेणं पण्णत्ता ॥ ५. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी केवतिया वाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! इमा गं रयणप्पभापुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं वाहल्लेणं पण्णत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अणुगंतव्वा आसीतं वत्तीसं, अट्ठावीसं तहेव' वीसं च । अट्ठारस सोलसगं, अठ्ठत्तरमेव हिट्ठिमिया ॥१॥ ६. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी कतिविधा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-खरकंडे पंकबहुले कंडे आववहुले' कंडे ।। १. पढमपु' (क, ख, ट)। घम्मा वंसा सेला अंजण रिट्रा भरा य माघ२. पण० ११५३। वती। ३. 'ता' प्रतो अस्यालापकस्य पाठ एवमस्ति- सत्तण्हं पुढवीणं एए नामा उजावया ॥१॥ एवं घम्मा वंसा सेला अंजणरिद्रा मघा य रयणा सक्कर वालुय पंका धमा तमा तममाघवती। सत्तण्डं पुढवीणं एते णामा मुणे तमाय। तव्वा जाव सत्तमा माधवती णामेणं तमतमा __ सत्तण्हं पुढवीणं एए गोता मणे भव्या ।।२।। गोत्तेणं पण्णता। मलयगिरिवृत्ती पाठान्तरस्य ४. जोतण" (क)। उल्लेखोस्ति–अत्र केषुचित्पुस्तकेषु संग्रहणि ५. च होति (ता, मवृ)। माथे ६. अवबहुले (क); आदबहुले (ता)। २५७ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ जीवाजीवाभिगमे ७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे कति विधे पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस विधे पण्णत्ते, तं जहा--१. रयणे २. वइरे ३. वेरुलिए ४. लोहितवखे ५. मसारगल्ले ६. हंसगब्भे ७. पूलए ८. सोयंधिए ६. जोतिरसे १०. अंजणे ११. अंजणपुलए १२. रयते १३. जातरूवे १४. अंके १५. फलिहे १६. रिठे कंडे ॥ ८. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते । एवं जाव रिठे।। ६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुले कंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते ॥ १०. एवं आवबहुले कंडे कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते ॥ ११. सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी कतिविधा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता । एवं जाव अहेसत्तमा ।।। १२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पण्णता? गोयमा ! तीसं णिरयावाससयसहस्सा' पण्णत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा, इमा गाहा अणुगंतव्वा तीसा य पण्णवीसा, पण्णरस दसेव तिण्णि य हवंति। पंचूणसयसहस्सं, पंचेव अणुत्तरा णरगा ॥१॥ जाव अहसत्तमाए पंच अणुत्तरा महतिमहालया महागरगा पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अपतिट्ठाणे ॥ १३. अत्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे घणोदधीति वा घणवातेति वा तणुवातेति वा ओवासंतरेति वा ? हंता अस्थि । एवं जाव अहेसत्तमाए । १४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलसजोयणसहस्साई वाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं जाव रिठे । १६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकबहुले कंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! चउरासीतिजोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए आवबहुले' कंडे केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असीतिजोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? १. रतणकडे (क, ग); रयणकंडे (ख, ट); जावधेसत्तमाए णं भंते केवति णिरयावाससतस रयणामए कंडे (ता)। गो पंचदिसि पंच अणुत्तरा महमहालया महा२. अतोग्ने 'ता' प्रती भिन्नः पाठोस्ति णिरया पंतं काले महाकाले रोरुए महारोरुए तीसा य पण्णवीसा पण्णवीसा पण्णरस दसेव अप्पतिट्ठाणे गाम पंचमे। ___ सतसहस्साई। ३. आउबहुले (ख, ट, ता) । तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अणत्तरा णरता ।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती २५६ गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवाते केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई वाहल्लेणं पण्णत्ते। एवं तणुवातेवि ओवासंतरेवि" ।। २०. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदही केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते ।। २१. सक्करप्पभाए पुढवीए घणवाते केवतिए वाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई वाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं तणुवातेवि, ओवासंतरेवि। जहा सक्करप्पभाए पुढवीए एवं जाव अधेसत्तमाए । २२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सवाहल्लाए खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणीए अस्थि दवाई वातो काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किलाई, गंधतो सुरभिगंधाई दुब्भिगंधाई, रसतो तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराई, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहु-सीत-उसिण-णिद्ध-लुक्खाइं, संठाणतो परिमंडल-बट्ट-तंस-चउरंसआययसंठाणपरिणयाई अण्णमण्णवद्वाई अण्णमण्णपुट्ठाई अण्णमण्णओगाढाइं अण्णमण्णसिणेहपडिबधाई अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति ? हंता अत्थि ॥ २३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडस्स सोलसजोयणसहस्सवाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स अत्थि दव्वाइं जाव' ? हंता अस्थि ।। २४. इमीसे' णं भंते ! रयपणभाए पुढवीए रयणनामगस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव जाव ? हंता अत्थि । एवं जाव रिट्ठस्स ॥ २५. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पंकवहुलस्स कंडस्स चउरासीतिजोयणसहस्सवाहल्लस्स खत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव । एवं आवबहुलस्सवि असीतिजोयणसहस्सबाहल्लस्स।। २६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पडवीए घणोदधिस्स वीसं जोयणसहस्सवाहल्लस्स खेत्तच्छेएण तहेव । एवं घणवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्सवाहल्लस्स तहेव । 'तणुवातस्स ओवासंतरस्सवि तं चेव"।। २७. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए वत्तीसुत्तरजोयणसतसहस्सवाहल्लाए खेतच्छेएण छिज्जमाणीए अस्थि दव्वाइं वणतो जाव अण्णमण्णघडताए चिट्ठंति ? हंता अत्थि। एवं घणोदहिस्स वीसजोयणसहस्सबाहल्लस, घगवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्सबाहल्लस्स, एवं जाव ओवासंतरस्स । जहा सक्करप्पभाए एवं जाव अहेसत्तमाए॥ २८. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किंसंठिता पत्ता ? गोयमा ! झल्लरि १. तणवाते एवं चेव इमीगे र ओवासंतरे के बाहल्ले असंखेज्जाइंजोयण सह वाह पं (ता)। २. वण्णतो काल जाव परिणयाइं (क, ख, ग, ट)। ३. 'ता' प्रतो अस्य सूत्रस्य पाठसंक्षेप एवमस्ति.... एवं रतणादीणं जाव रिठेत्ति । ४. 'ता' प्रतौ अत्र पाठभेदो विद्यते-तणुवातोवासंतराणं असंखोयण सह बाहरूलेणं जस्स जे पमाणं तस्स तं भाणितब्बं । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० संठिता पण्णत्ता ॥ २६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णत्ते ॥ ३०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते । एवं जाव रिट्ठे । एवं पंकवहुलेवि । एवं आवबहुलेवि, दधीवि, घणवावि, तणुवाएवि, ओवासंतरेवि - सव्वे झल्लरिसंठिता पण्णत्ता || ३१. सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! झल्लरिसंठिता जीवाजीवाभिगमे पण्णत्ता ॥ ३२. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए घणोदधी किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! झल्लरिसंठिते पण्णत्ते । एवं जाव ओवासंतरे । जहा सक्करप्पभाए वत्तव्वया एवं जाव असत्तमा एवि ॥ ३३. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतिय अबाधाए लोयंते पण्णत्ते ? गोयमा ! दुवालसहि जोयणेहिं अवाधाएं' लोयंते पण्णत्ते । एवं दाहि जिल्लातो पच्चत्थिमिल्लातो उत्तरिल्लातो ॥ ३४. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए पुरथिमिल्लातो चरिमंतातो केवतियं अबाधाए लोयंते पणते ? गोयमा ! तिभागूणेहिं तेरसहि जोयणेहि अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं चउद्दिसिपि ॥ ३५. वालुयप्पभाए णं भंते ! पुढवीए पुरत्थिमिल्लातो पुच्छा । गोयमा ! सतिभागेहिं तेरसहिं जोयणेहि अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं चउद्दिसिपि ॥ ३६. एवं सव्वासि चउसुवि दिसासु पुच्छितव्वं - पंकप्पभाए चोद्दसह जोयणेहि Care लोयंते पण । पंचमाए' तिभागुणेहि पण्णरसहिं जोयणेहि अवाधाए लोयंते पण्णत्ते । छट्टीए सतिभागेहिं पण्णरसहिं जोयणेहिं अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । सत्तमीए सोलसहि जोयणेहि अबाधाए लोयंते पण्णत्ते । एवं जाव उत्तरिल्लातो ॥ ३७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - घणोदधिवलए घणवातवलए तणुवातवलए | ३८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए दाहिणिल्ले चरिमंते कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविधे पण्णत्ते, तं जहा - घणोदधिवलए घणवायवलए तणुवायवलए | एवं जाव उत्तरिल्ले । एवं सव्वासि जाव अधेसत्तमाए उत्तरिल्ले ॥ ३९. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छ जोयणाणि वाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १. आबाधाए (क, ख, ८) । २. 'ता' प्रती अस्य सूत्रस्य स्थाने एवं पठोस्ति - चतुत्थीए चोद्दसहि आबाधाए पंचमाए तिभागूणेहि पण्णरसहिं जो कछट्टीए सतिभागे हिं पण्णरसहिं जो ष्क सत्तमीए सोलस चतुद्दिसि 1 ३. धूमप्पभाए (क, ट ) 1 ४. 'ता' प्रती अस्य सूत्रस्य स्थाने एवं पाठोस्ति--- एवं चतुद्दिसि । एवं सेसाण वि पुढ । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४०. सक्करप्पभाए' पुढवीए धणोदधिवलए केवतियं वाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सतिभागाइं छजोयणाई वाहल्लेणं पण्णत्ते ।। ४१. वालुयप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! तिभागूणाई सत्त जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं एतेणं अभिलावेणं-पंकप्पभाए सत्त जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते। धूमप्पभाए सतिभागाई सत्त जोयणाई। तमप्पभाए तिभागूणाई अट्ठ जोयणाई। तमतमप्पभाए अट्ठ जोयणाई॥ ४२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धपंचमाइं जोयणाई बाहल्लेणं ।। ४३. सक्करप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! कोसूणाई पंच जोयणाई बाहल्लेणं । एवं एतेणं अभिलावेणं--वालुयप्पभाए पंच जोयणाई बाहल्लेणं'। पंकप्पभाए सक्कोसाइं पंच जोयणाई बाहल्लेणं । धूमप्पभाए अद्धछट्ठाइं जोयणाई बाहल्लेणं । तमप्पभाए कोसूणाई छ जोयणाई बाहल्लेणं । अहेसत्तमाए छ जोयणाई बाहल्लेणं ।। ४४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवायवलए केवतियं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छक्कोसेणं बाहल्लेणं पण्णत्ते । एवं एतेणं अभिलावेणं-सक्करप्पभाए सतिभागे छक्कोसे बाहल्लेणं'। वालुयप्पभाए तिभागूणे सत्त कोसं वाहल्लेणं । पंकप्पभाए पुढवीए सत्त कोसं बाहल्लेणं । धूमप्पभाए सतिभागे सत्त कोसे बाहल्लेणं । तमप्पभाए तिभागूणे अट्ठ कोसे बाहल्लेणं । अधेसत्तमाए पुढवीए अट्ठ कोसे बाहल्लेणं ।। ४५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलयस्स छज्जोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स अस्थि दव्वाइं वण्णतो काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्किलाई जाव ? हंता अस्थि ।। ४६. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुडवीए घणोदधिवलयस्स सतिभागछजोयणवाहल्लस्स खेत्तच्छेदेणं छिज्जमाणस्स जाव ? हंता अत्थि । एवं जाव अधेसत्तमाए जं जस्स बाहल्लं ।। ४७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलयस्स अद्धपंचमजोयणबाहल्लस्स खेत्तच्छेदेणं छिज्जमाणस्स जाव? हंता अस्थि । एवं जाव अहेसत्तमाए जं जस्स बाहल्लं । एवं तणवायवलयस्सवि जाव अधेसत्तमाए जं जस्स वाहल्लं ।। ४८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए किसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते पण्णत्ते, 'जे णं इमं रयणप्पभं पुढवि सव्वतो संपरिक्खिवित्ताणं चिटठति ।। ४६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलए किंसंठिते पण्णते ? गोयमा ! वट्टे वलयागार संठाणसंठिते पण्णत्ते, जे णं इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए १. 'ता' प्रती सूत्रद्वयस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति- ३. क्वचिद् ‘बाहल्लेणं पण्णते' इति विद्यते (क, दोच्चए सतिभागाइंछ तच्चाए तिभागणाणि । ख, ग, ट)। सत्त चउत्थीए सत्त पंचमाए सतिभागाई ४. जी० ३१२२ । सत्तजोयणाई छट्ठी तिभागूणाई अटु सत्तमाए ५. जे णिमं (ता)। अट्ट जो! ६. सं० पा०-वलयागारे तहेव जाव जे। २. बाहल्लेणं पण्णताई (क, ग) सर्वत्र ! Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जीवाजीवाभिगमे घणोदधिवलयं सव्वतो समंता संपरिक्खिवित्ताणं चिटइ। एवं जाव अहेसत्तमाए घणवातवलए ॥ ५०. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणवातवलए किसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! बट्टे वलयागारसंठाणसंठिए पण्णत्ते', जे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलयं सक्तो समंता संपरिविखवित्ताणं चिट्ठइ । एवं जाव अधेसत्तमाए तणुवातवलए ।। ५१. इमा गं भंते ! रयणप्पभा पुढवी केवनियं आयाम-विक्खंभेणं ? 'केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते । एवं जाव अधेसत्तमा ।। ५२. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी अंते य मझे य सव्वत्थ समा वाहल्लेणं पण्णत्ता ? हंता गोयमा ! इमा ण रयणप्पभा पुढवी अंते य मज्झे य सव्वत्थ समा वाहल्लेणं । एवं जाव अधेसत्तमा ।। ५३. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा ? सव्वजीवा उववण्णा ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुव्वा, नो चेव णं सव्वजीवा उववण्णा । 'एवं जाव अहेसत्तमाए" || ५४. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी राव्यजीवेहि विजढपुव्वा ? सब्वजीवेहि विजढा ? गोयमा ! इमा णं रयणप्पभा पुढवी सब्वजीवेहिं विजढपुटवा, नो चेव णं सव्वजीवविजढा । एवं जाव अधेसत्तमा ।। ५५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सब्वपोग्गला पविठ्ठपुव्वा ? सव्वपोग्गला पविट्ठा ? गोयमा ! इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए सब्बपोग्गला पविट्ठपुव्वा, नो चेव ण सव्वपोग्गला पविट्ठा । एवं जाव अधेसत्तमाए । ५६. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी सव्वपोग्गलेहि विजढपुव्वा ? सव्वपोग्गला विजढा ? गोयमा ! इमा णं रयणपभा पुढवी सब्धपोग्गले हिं विजढपुव्वा, नो चेव णं सव्वपोग्गलेहिं विजढा । एवं जाय अधेसत्तमा ।। ५७. ३मा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी कि सासता ? असासता ? गोयमा ! सिय सासता, सिय असासता ।। ५८. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सिय सासता सिंय असासता ? गोयमा ! दवट्टयाए सासता, वण्णपज्जवेहि गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहि असासता । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति ---सिय सासता", सिय असासता। एवं जाव अधेसत्तमा । ५६. इमा णं भंते । रयणप्पभा पुढवी कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! न कयाइ" १. जाव (क, ख, ग, ट)। ४. अधःसप्तम्यां पृथिव्याम् [मवृ] । २. x (क,ख, ग, ट) । ५. सासया (ग, ट, ता)। ३. एवं जाव अहेमत्तमाए पुढवीए (ग, ट); ६. तं चेव जाव (क, ख, ग, ट) ! जावतमा (); “अब सप्तम्या: (मवृ)। ७. कदायि (क,ख, ता) । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्वि पडिवत्ती २६३ ण आसि, ण कयाइ' णत्थि, ण कयाइ' ण भविस्सति । भुवि च भवइ य भविस्सति य धुवा णियया सासया अक्खया अव्वया अवट्टिता णिच्चा । एवं जाव अधेसत्तमा' ॥ ६०. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए 'रयणस्स ' कंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ" हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाएं' अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं tataणसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते || ६१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए 'रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लातो चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं अवाधाएं अंतरे पण्णत्ते ॥ ६२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ' रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लाओ चरिमंताओ वइरस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोमा ! दो जोयणसहस्साइं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । 'एवं कंडे-कंडे दो दो आलावगा जा' रिट्ठस्स कंडस हेट्ठिल्ले चरिमंते सोलस जोयणसहस्साइं अवाधाए अंतरे पण्णत्ते" ॥ ६३. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए 'रयणस्स कंडस्स" उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंकबहुलस कंडस्स उवरिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोमा ! सोलस जोयणसहस्साई अवाधाए अंतरे पण्णत्ते । हेट्ठिल्ले" चरिमंते एक्कं १,२. कतायि ( क, ख ) । ३. अतोये 'क, ख, ग, ट' आदर्शेषु सूत्रद्वयं उपलभ्यते इमीसे णं भंते! रयणम्पभाए पुढबीए उवरिल्लातो चरिमंतातो हेट्ठिल्ले चरिमंते एस केवति अबाधाएं अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! असिउत्तरं जोयणसतसहस्स अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । इमीसे णं भंते! रयण पु उवरिल्लातो चरिमंतातो खरस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णते ? गोमा ! सोलस जोयणसहस्साई अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । 'ता' प्रती नंतद् विद्यते मलयगिरिवृत्तावपि नास्ति व्याख्यातम् । वृत्तिकृता पाठभेदसूचनापि नास्ति कृता । स्यादस्य अर्वाचीनत्वं अथवा वृत्तिकृता नैष वाचनाभेदः समुपलब्धः । एतत् सूत्रद्वयं नावश्यकं प्रतीयते, अस्य विषयः ६२, ६३ सूत्रयोः प्रतिपादितोस्ति । तत् सूत्रद्वयस्वीकारे पौनरुक्त्यमेव भवेत् । ४. रयणामयस्स ( ता ) 1 ५. उवरिल्लातो चरिमंताओ रयणस्स कंडस्स (क, ख, ग, ट) ६. आबाधाए (क, ता ) प्रायः सर्वत्र । ७. x ( क, ख, ग, ट ) ; (ar) 1 ८. x ( क, ख, ग, ट ) 1 ६. जी० ३१७ । १०. एवं जाव रिट्ठस्स उवरिल्ले पण्णरस जोयणसहस्साई हैट्ठिल्ले चरिमंते सोलस जोयणसहस्साई (क, ख, ग, ट ) 1 ११. x ( क, ख, ग, ट) । रयणामयस्स कंडस्स १२. अत: सूत्रस्य पूर्तिपर्यन्तं मलयगिरिवृत्ती त्रयाणां सुत्राणां पूर्णपाठस्य संकेतो व्याख्या च विद्यते, तदनुसारेण पाठसंरचना इत्यं भवति - इमीसे णं भंते ! रयणस्पभाए पुढवीए रयणकंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ पंक बहुलस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं अबाधाए केवतियं अंतरे पष्णते ? गोयमा ! एक जोयणसयसहस्सं । इमीसे णं मंते ! रण पाए पुढवीए रयणकंडस्स उवरिल्लातो चरिमंताओ आवबहुलस्स कंडस्स उवरिल्ले Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जोगनसयसहस्सं! आवबहुलस्स उवरिल्ले एक्के जोयणसयसहस्सं, हेदिल्ले चरिमंते नसी उत्तरं जोयणसयसहस्स। 'घणोदहिस्स उवरिल्ले असि उत्तरजोयणसयसहस्सं, हेदिले" चरिमते दो जोयणसयसहस्साई॥ ६४. इमोसे" णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवातस्स उवरिल्ले चरिमंते दो सोपणतपसहस्साई, हेदिल्ले चरिमते असंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई ।। ६५. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवातस्स उवरिल्ले चरिमंते असंमाईजोषणसयसहस्साई अवाधाए अंतरे, हेढिल्लेवि असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई । एवं ओबासंतरेवि ।। ६६. दोच्चाए' णं भंते ! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं केवतियं अवाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! बत्तीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ६७. दोच्चाए" घणोदधिस्सुवरिल्ले चरिमंते एवं चेव, हेट्ठिल्ले चरिमंते बावण्णुत्तरं जाय:सतसहस्सं । घणतणुवातोवासंतराणं जहा रयणाए। ६६. सच्चाए उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेट्ठिल्ले चरिमंते अट्ठावीसुत्तरं जोयणसत. सहरमं अवाधार अंतरे पण्णत्ते। घणोदधिस्स उवरिल्ले चरिमंते एवं चेव, हेछिल्ले करिने, एस णं अबाधाए केवतियं अंतरे स्वीकृता । संक्षिप्तवाचना एवमस्ति-- र ? योयमा ! एक जोयणसयसहस्सं । सक्करप्प पु उवरि घणोदधिस्स हेदिल्ले गले भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयण- चरिमंते बावष्णुत्तरं जोयणसयसहस्सं अबाकंडल्स उवरिल्लातो चरिमंताओ आवबहुलस्स धाए । घणवातस्स असंखेज्जाइं जोयणसयसहहेदिल्ले चरिमते, एस णं केवतियं अबाधाए स्साइं पण्णता। एवं जाव उवासंतरस्सवि अंतरे पणन ? गोयमा ! असी उत्तरं जोयण- जावधेसत्तमाए, णवरं जीसे जं बाहल्लं तेण सयनहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते। घणोदधी संबंधेतब्वो बुद्धीए । सक्करप्पभाए १. सहस्स आबाधाए अं (ता)। अणुसारेणं घणोदहिसहिताणं इमं पमाणं । २. अ.सी उत्तरे (ता)। तच्चाए गं भंते ! अडयालीसुत्तरं जोयणसतस३. सहस्सं आबाधाए अंतर पं (ता)। हस्सं । पंकप्पभाए पुढवीए चत्तालीसुत्तरं ४. घगोदधिस्सुवरिमे एवं चेव हेट्ठिमे (ता)। जोयणसतसहस्सं । धूमप्पभाए पु अद्रुतीसुत्तरं ५. 'ता' प्रती अस्य अग्रिमसूत्रस्य च स्थाने एवं जोयणसतसहस्सं । तमाए पुढवीए छत्तीसुत्तरं पाठोस्ति-घणवातस्सुवरिमं एवं चेव हेट्ठिल्ले जोयणसतसहस्सं । अधेसत्तमाए पुडवीए अट्ठाअसंखेज्जाइं जोयणस तणवातोवासंतराण वीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं जाव अधेसत्तमाए हेट्रिम उवरिम असंखेज्जाई जो। गं (अधेसत्तमाए एस णं-ट) भंते ! पुढवीए ६. सक्करप्पभाए (क, ख, ग, ट)। उरिल्लातो चरिमंतातो उवासंत रस्स हेट्रिल्ले ७.६७-७२ सूत्रागा स्थाने क, ख, ग, ट' आदर्शषु चरिमंते केवतियं अबाधाए अंतरे पणते ? गंक्षिपनपाठाति, अथवाधोटलतापि विद्यते । गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साई - iiiii वाचनास्ति, अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती अडयालीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जधा रयणाए ॥ ६६. चउत्थीए हेट्ठिल्लातो उवरिल्ले वीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पणते । घणोदधिस्स उवरिल्ले एवं चेव, हेट्ठिल्ले चत्तालीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जहा रयणाए || ७०. पंचमाए उवरिल्लातो हेट्ठिल्ले अट्ठारसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्सुवरिल्ले एवं चैव हेट्ठिमे अट्टतीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जधा रयणाए । ७१. छट्टीए उवरिमातो हेट्ठिमं सोलसुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाएं अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्स उवरिमं एवं चेव, हेट्ठिल्ले छत्तीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जहा रयणाए || ७२. सत्तमाए हेट्ठल्लातो उवरिल्ले अट्टुत्तरं जोयणसतसहस्सं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते । घणोदधिस्स उवरिमं एवं चेव, हेट्टिमं अट्ठावीसुत्तरं जोयणसतसहस्सं । सेसं जहा I रयणाए || ७३. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? विसेसाहिया ? संखेज्जगुणा ? वित्थारेण' कि तुल्ला ? विसेसहीणा ? संखेज्जगुणहीणा ? गोमा ! इमाणं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय बाहुल्लेणं नो तुल्ला, विसेसाहिया, नो संखेज्जगुणा | वित्थारेण नो तुल्ला, विसेसहीणा, नो संखेज्जगुणहीणा ॥ ७४. दोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्च पुढव पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? एवं चेव भाणितव्वं । एवं तच्चा चउत्थी पंचमी छुट्टी ॥ २६५ ७५. छट्टी णं भंते ! पुढवी सत्तमं पुढव पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला ? विसेसाहिया ? संखेज्जगुणा ? एवं चैव भाणियव्वं । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ॥ नेरइयउद्देसओ बीओ ७६. कइ णं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रयण पभा जाव असत्तमा ॥ ७७. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्त रजोयणसयस हस्सबाहल्लाए उर्वार hari ओगाहिता द्वा केवइयं वज्जित्ता मज्झे केवतिए केवतिया निरयावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयस हस्सबाहल्लाए उवरि एवं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठावि एगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता मज्झे अडहत्तरे' जोयणस्यसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्साई भवतित्तिमक्खाया । ते णं णरगा अंतो वट्टा वाहि चउरंसा जाव' असुभा गरएसु वेयणा, एवं एएवं अभिलावेण उवजुंजिऊण' भाणियव्वं ठाणप्पयाणुसारेणं । जत्थ जं बाहल्लं जत्थ जतिया वा नरयावाससयसहस्सा जाव आहेसत्तमाए पुढवीए । अहसत्तमाए मज्झिमं केवतिए कति अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता एवं पुच्छितव्वं वागरेयव्वंपि तहेव । छट्ठी१. वित्थरेणं ( ता ) । २. अडसत्तरी ( ग ) ; अट्ठत्तरे (ता) | ३. रयावास सतसहस्सा (ता) | ४. पण० २१२१-२७ । ५. उववज्जिऊण ( ख, ग ) । (क, ट ) ; उवउंजिऊण Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे सत्तमासु काऊअगणिवण्णाभा भाणियव्वा ॥ ७८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका किसंठिया पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा --आवलियपविट्ठा य आवलियवाहिरा य । तत्थ णं जेते आवलियपविट्ठा ते ति विहा पण्णत्ता, तं जहा-बट्टा तंसा चउरंसा। तत्थ णं जेते आवलियबाहिरा ते णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, तं जहा-अयको?संठिता' पिटुपयणगसंठिता' कंडसंठिता लोहीसंठिता कडाहसंठिता थालीसंठिता पिहड्गसंठिता किण्हसंठिता' उडवसंठिता मुरवसंठिता मुयंगसंठिता नंदिमुयंगसंठिता आलिंगकसंठिता सुघोससंठिता दद्दरयसंठिता पणवसंठिता पडहसंठिता भेरिसंठिता झल्लरीसंठिता कुत्तुंवकसंठिता नालिसंठिता । एवं जाव तमाए। ७६. अहेसत्तमाए' णं भंते ! पुढवीए णरका किंसंठिता पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--बट्टे य तंसा य ।। ८०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केवतियं पाहल्लेणं पण्णता ? गोयमा ! तिण्णि जोयणसहस्साई, वाहल्लेणं पण्णता, तं जहा-'हेट्ठा घणा सहस्स", मज्झे झुसिरा सहस्सं, उप्पि संकुइया सहस्सं । एवं जाव अहेसत्तमाए । ८१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केवतियं आयामविक्खंभेणं ? केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य । तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं, जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता ! तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई आयामविक्खं भेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता ! एवं जाव तमाए । ८२. अहेसत्तमाए" णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संखेज्ज१. नरगा (ट, ता)। पडहग झल्लरि भेरीकुत्तुंबग नाडि संठाणा ।। २. कोट्ठग (ता)। (मवृ) ! ३. पिट्ठयपणग० (ग); पिट्ठपणय० (ट); ४. किण्णपुडसं० (क, ग); किमियडसं० (ख); अतोने 'ता' प्रती संग्रहणीगाथे स्तः ! मलय- किमिपुडसं० (ट)। गिरिवृत्तावपि ते उद्धृते विद्यते । गाथा- ५. 'ख, ग, ट' आदर्शषु केषाञ्चित् पदानां अयको? पिट्ठपयणग कंदू लोही कहाड संठाणा। व्यत्ययो दृश्यते ।। थाली पिहङग किण्ह उडम य मुरवे मुतिगे य॥ ६. पंचमी छट्ठी (ता)। नंदिमुतिगे आलिगु सुघोसे दद्दरे य पणो य । ७. 'ता' प्रती अत्र पाठसंक्षेप:-तमतमाए दुविहा पडहा भेरी झलरि धत्तुवा णालि संठाणा ॥ पंतं वट्टे य तंसा य । ८. पाहलेणं (ता)। अयकोपिटुपयणग कंडूलोही कडाह संठाणा। .. हेट्रिल्ले चरिमंते घणं सहस्सं (क, ख); थाली पिहडग किण्ह (ग) उडए मुरवे मुयंगे हेटल्लि घणो सहस्सं ()। १०. तमतमाए (ता)। नंदिमुइंगे आलिंग सुघोसे दद्दरे य पणवे य । य।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विपडिवत्ती २६७ वित्थडे य असंखेज्ज वित्थडा य । तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से णं एक्कं जोयणसय सहस्स' आयाम विक्खंभेणं, तिणि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साई दोणि य सत्तावीसे जोयणसए तिणि कोसे य अट्ठावीस च धणुसतं तेरस य अंगुलाई अर्द्धगुलयं च किंचिविसेसाधिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई आयाम विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ॥ ८३. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरया केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोमा ! काला कालोभासा' गंभीरलोमहरिसा' भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वणं पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए || ८४. इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका केरिसया गंधेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुणमडेति' वा 'मज्जारमडेति वा मणुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा " आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमति वा विगमडेति' वा दीवियमडेति वा मयकुहिय - विण'- कुणिमवावण्णदुरभिगंधे" 'असुइविली विगय" - बीभच्छदरिसणिज्जे किमिजाला उलसंसते भवेयारूवे सिया ? जो इणट्ठे समट्ठे । गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा एत्तो अणिट्ठतरका वेव अकंततरका चेव" "अप्पियतरका चेव अमणुण्णतरका चेव अमणामतरका चेव गंधेणं पण्णत्ता । एवं जाव असत्तमाए पुढवीए ॥ ८५. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए गरया केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए असिपत्तेइ वा खुरपत्तेइ वा कलंबचीरियापत्तेइ वा सत्तग्गेइ" वा कुंग्गेइ वा तोमरग्गेति वा नारायग्गेति वा सूलग्गेति वा लउलगोति वा भिडिमालग्गेति वा सूचिकलावेति वा विच्छुकंटएति वा कवियच्छति वा " इंगालेति वा जालेति वा मुम्मुरेति वा अच्चिति वा अलाएति वा सुद्धागणीइ व भवे एयारूवे सिया ? णो तिणट्ठे समट्ठे । गोमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा एत्तो अणिट्टतरका चेव जाव अमणामतरका चेव फासे गं पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए ॥ ८६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! १. अतो 'ता' प्रती 'जंबुद्दीवपमाणे' इति पाठो स्ति । २. १०. दुब्भिगंधे (क, ख, ग ) 1 ११. असुर्य (क, ग ); असुईविगत (ता) । , सहसा (क, गट ) जोयणाई १२ किमियजालाउल संसंत्ते असुइदिलीणविगयवीभच्छदरिसणिज्जे ( क, ख, ग, ट) 1 १३. सं० पा० अकंततरंगा चेव जाव अमणामत (ar) ! ३. जाव (क, ग, ट ) ; जोयणाई (ता) । ४. कालावभासा (क, गट ) | ५. हरिणा (ता) | ६. साग (ता) । ७. महिसम मज्जारम (ता) | ८. विगडमडेति (क, ख, ट) 1 ६. चिरविट्ट (क, ख, ग, ट) 1 रंगा । १४. सत्तिअग्गेति (ता) | १५. कवियच्छति वा विच्छुकंटेति वा (क,गट); कवियच्छति वा विच्चुयकंटेति वा (ख); विच्चुयडक्केति वा (ता), वृश्चिकदंश: (मवृ) । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ जीवाजीवाभिगमे अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वभंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूवसंठाणसंठिते' वट्टे रथचक्कवालसंठाणसंठिते वट्टे पुक्खरकणियासंठाणसंठिते वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिते एक्कं जोयणसतसहस्सं आयामविक्खंभेणं जाव' किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए 'महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महाणुभागे जाव इणामेव-इणामेवत्तिकटु इमं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हब्वमागच्छेज्जा । से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरिताए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाएं जइणाए' छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतिवयमाणे-वीतिवयमाणे जहण्णणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासेणं वीतिवएज्जा--अत्थेगतिए वीतिवएज्जा अत्थेगतिए नो वीतिवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभाए. पुढवीए णरगा पण्णत्ता । एवं जाव अधेसत्तमाए, णवरं-अधेसत्तमाए अत्थेगतियं नरगं वीतिवएज्जा, अत्थेगइए नरगे" नो वीतिवएज्जा ।। ७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा किमया पण्णता ? गोयमा ! सव्ववइरामया पण्णत्ता । तत्थ णं नरएसु बहवे जीवा य पोग्गला य अवक्कमति विउक्कमंति चयंति उववज्जति । सासता णं ते णरगा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहि असासया । एवं जाव अहेसत्तमाए" ॥ ८८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कतोहितो उववज्जति-कि असण्णीहितो उववज्जति ? सरीसिवेहितो उववज्जति ? पक्खीहितो उववज्जति ? चउप्पएहितो उववज्जति ? उरगेहितो उववज्जति ? इत्थियाहितो उववज्जति ? मच्छमणुएहितो उववज्जति ? गोयमा ! असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहितोवि उववज्जति । 'एवं एतेणं अभिलावणं इमा गाथा घोसेयव्वा'"-- असण्णी खलु पढम, दोच्चं च सरीसिवा ततिय पक्खी । सीहा जंति चउत्थि, उरगा पुण पंचमि जंति ॥१॥ छट्टि च इत्थियाओ, मच्छा मणुया य सतमि जति । 'एसो खलु उववातो, नेरइयाणं तु नातव्वो ॥२॥ १. जंबु जाव किंचविसेसपरिक्खेणं (ता)। ७. x (क, ख, ग, ट); 'छकया' निपुणया, २. तेल्लापूत (क, ख, ग)। वातोद्भूतस्य दिगन्तव्यापिनो रजस इव या ३. ठाणं ॥२४८ । गति सा उद्धृता तया, अन्ये त्वाहुः-उद्धतया ४. सं० पा.-महिड्ढीए जाव महाणभागे । अस्य दातिशयेनेति (म) ! प्रतिर्मलयगिरिवृत्तेः पाठमाश्रित्य कृतास्ति । तत्र ८. अत्थेग इयं नरग (क, ग)। 'महेसक्खे' इति पदस्य 'महासोक्खे, महासक्खे' . किंमता (क); किम्मया (ता)। इति पाठान्तरद्वयं विद्यते । १०. अहेसत्तमा (क, ट, मवृ)। ५. x (म)। ११. सेसासु इमाए गाधाए णातव्वा (ता); सेसासु ६. अन्ये तु जितया विपक्षजेतुत्वेनेति ब्याचक्षते । इमाए गाहाए अणुगंतव्वा (मव)। (म)। १२. ४ (क, ख, ग, ट, म)। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्वा चउविहपडिवत्ती २६९ 'जाव अधेसत्तमाए" पुढवीए नेरइया णो असण्णीहितो उववज्जति जाव णो इत्थियाहिंतो उववज्जति, मच्छमणुस्सेहितो उववज्जति ।। ८६. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया एक्कसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववज्जति । एवं जाव अधेसत्तमाए । ६०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए गेरइया समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा केवतिकालेणं अवहिता सिता ? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिता सिता जाव अधेसत्तमा ।।। ११. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा--भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं सत्त धणई तिणि य रयणीओ छच्च अंगुलाई। तत्थ णं जासा उत्तरवे उब्विया सा जहणणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। दोच्चाए भवधारणिज्जे जहण्णओ अंगुलासंखेज्जभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जातो रयणीओ, उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धण्इं एक्का रयणी । तच्चाए भवधारणिज्जे एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी, उत्तरवेउब्विया बावट्टि धणूइं दोण्णि रयणीओ। चउत्थीए भवधारगिज्जे बावट्ठि धणूई दोण्णि य रयणीओ, उत्तरवेउविया पणवीसं धणुसयं । पंचमीए भवधारगिज्जे पणवीसं धणुसयं, उत्तरवेउब्विया अड्ढाइज्जाई धणुसयाई। छट्ठाए भवधारणिज्जा अड्ढाइज्जाई धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया पंचधणुसयाई। सत्तमाए भवधारणिज्जा पंचधणुसयाई, उत्तरवेउविए धणुसहस्सं ॥ ___२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइयाणं सरीरया किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी--णेवट्ठी व छिरा णवि हारू। जे पोग्गला अणिट्ठा' 'अर्कता अप्पिया असुहा अमणुण्णा अमणामा, ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए परिणमंति । एवं जाव अधेसत्तमाए । ६३. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरा किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- भवधारणिज्जा य उत्तरवेउन्विया य। तत्थ गं जेते भवधारणिज्जा ते हंडसंठिया पण्णता, तत्थ णं जेते उत्तरवेउब्विया तेवि हुंडसंठिता पण्णत्ता। - १. संक्षेपार्थ सङग्रहगाथया सूचितोसो विषयः। अन्यथा सप्त आलापका अत्र भवन्ति । मलय- गिरिवत्तौ द्वयोरालापकयोनिर्देशोपि लभ्यते । तेनैव कारणेन 'जाव अधेसत्तमाए' इत्यादि पाठांत्र दृश्यते । नत्वत्र द्विरुक्ते: कल्पना कार्या। २. केवतिया केवतिकालेणं। (ता) ३. 'ता' प्रतीतः पाठसंक्षेपोस्ति, यथा--- उत्तरवे दुगुणं एवं दुगुणा दुगुणं जावधेस भवधा पंच धणुसया उत्तरवे धणुसहस्सं । ४. मुट्ठीए (ख, ग, ट)। ५. म्हारू जेब संघयणमत्थि (क, ख, ग,ट)। १.सं० पा०-अणिट्टा जाव अमणामा । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे एवं जाव अहेसत्तमाए॥ ६४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए परइयाणं सरीरगा केरिसगावणेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! काला कालोभासा जाव' परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता । एवं जाव अहेसत्तमाए॥ ६५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया गंधेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए अहिमडेइ वा तं चेव जाव' अहेसत्तमाए ॥ १६. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया फासेणं पण्णता? गोयमा ! फुडितच्छविविच्छविया खरफरुस-झाम-झुसिरा फासेणं पण्णत्ता। एवं जाव अधेसत्तर ६७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइयाणं के रिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति ? गोयमा ! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति । एवं जाव अहेसत्तमाए। 'एवं आहारस्सवि सत्तसुवि" ।। १८. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढत्रीए नेरइयाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! एक्का काउलेसा पण्णत्ता । एवं सक्करप्पभाएवि ।। ६६. वालुयप्पभाए पुच्छा । दो लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- नीललेसा काउलेसा य । 'ते बहुतरगा जे काउलसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा ॥ १००. पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पण्णत्ता॥ १०१. धूमप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! दो लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य । ते बहुतरका जे नीललेस्सा, ते थोवतरका जे किण्हलेसा ।। १०२. तमाए पुच्छा । गोयमा ! एक्का किण्हलेस्सा । अधेसत्तमाए एक्का परम किण्हलेस्सा ॥ १०३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सम्म दिट्ठी? मिच्छदिट्ठी ? सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि । एवं जाव अहेसत्तमाए॥ १०४. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया कि नाणी ? अण्णाणी ? गोयमा ! णाणीवि अण्णाणीवि । जे गाणी ते णियमा तिण्णाणी, तं जहा-आभिणिबोधिय१. केरिसता (क, ख, ग)। सूचनापि कृता-इह पुस्तकेषु बहुधाऽन्यथा २. जी० ३८४ पाठो दृश्यते, अत एव वाचनाभेदपि समग्रो ३. जी० ३१८४। दर्शयितुं न शक्यते, केवलं बहुपु पुस्तकेषु ४. फुडिग (ता); स्फटित (मव) । योऽविसंवादी पाठस्तत्प्रतिपत्त्यर्थं सुगमान्यप्य५. सत्तण्हवि (क, ग, ट); णेरइयाणं केरिसया . क्षराणि संस्कारमात्रेण विवियन्तेऽन्यथा सर्वमेतपोग्गला आहारताए परिणमंति गो जे पो दुतानार्थ सूत्रमिनि । अणिट्ठा फ्रा ते तेसिं आधा एंरि जाव धे स ६. तत्थ णं जे काउलेस्सा ते बहुत रका जे णील(ता) । मलयगिरिवृत्तावपि 'ता' प्रत्यनुसारी- लेस्सा ते थोवतरका (ग, ट)। पाठो व्याख्यातोस्ति । वृत्तिकृता ततोग्रे पाठभेद Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तल्या चउब्विहपडिवत्ती २७१ णाणी सुयणाणी अवधिणाणी। 'जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी अत्थेगइया तिअण्णाणी, जे दुअण्णाणी ते णियमा मतिअण्णाणी य सुयअण्णाणी य, जे तिअण्णाणी ते नियमा मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणीवि । सेसा णं गाणीवि अण्णाणीवि तिण्णि जाव अधेसत्तमाए" ॥ १०५. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए कि मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी ? तिण्णि वि । एवं जाव अहेसत्तमाए । १०६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सागरोवउत्ता? अणागारोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अणागारोव उत्तावि । एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए ।। १०७. इमीसे' णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति-पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अद्धटुंगाउयाई, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई। सक्करप्पभाए जहण्णणं तिण्णि गाउयाई, उक्कोसेणं अट्ठाई। एवं अद्धद्धगाउयं परिहायति जाव अधेसत्तमाए जहणणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं गाउयं ।। १०८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति समुग्घाता पण्णता? गोयमा ! चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा-वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्दियसमुग्घाए । एवं जाव अहेसत्तमाए । १०६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपटवणाए सब्योदधी वा सव्यपोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा णो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा ! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरं ति ! एवं जाव अधेसत्तमाए । ११०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउवित्तए ? पुहत्तंपि पभू विउवित्तए ? गोयमा ! एगत्तंपि पभू विउवित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एग महं मोग्गररूवं वा मुसुढिरूवं वा, एवं मोगर-मुसुंढि-करवत-असि-सत्ती-हल-गता-मुसल-चक्का। णाराय-कुंत-तोमर-सूल-लउड-भिंडमाला य । जाव भिडमालरूवं वा पडत्तं विउज्वेमाणा मोगररूवाणि वा जाव भिडमालरूवाणि वा ताई संखेज्जाई णो असंखेज्जाई संबद्धाई नो असंबद्धाइं सरिसाई नो असरिसाई विउव्वंति, विउव्वित्ता अण्णमण्णस्स कायं अभिहणमाणा'-अभिहणमाणा अयणं उदीरेंति--- उज्जलं १. जे अण्णाणि ते अत्थे २,३ भयणाए । सेसासु मुसुंढिकरवत्त' इत्यादीनि पदानि सन्ति । मलय णाणा अण्णाण तिणि ३ णियमा (ता)। गिरिणा संग्रहणिगाथायाः पाठान्त ररूपेण मलयगिरिवृत्ती शर्करप्रभायाः आलापको उल्लेख: कृतोस्ति-अत्र संग्रहणिगाथा व्याख्यातोस्ति । स च वाचनान्तरगतः प्रतीयते। क्वचित्पुस्तकेषु२. एतत् सूत्रं वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम् । मुग्गरमुसूढिकरकयअसिसत्ति हलं गयामुसल३. अद्धगाउयाई (क, ख, ग, ट)। चक्का । ४. पुहुत्तंपि (ग, ट)। नारायकृततोमरसूललउडभिडिमाला य॥ ५. अतोने 'ग' प्रतौ मलयगिरिवृत्तौ च 'एवं ६. अभिभवमाणा (ट)। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ जीवाजीवाभिगमे विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं फरुसं निठुरं चंडं तिव्वं दुक्खं दुग्गं दुरहियासं । एवं जाव धूमप्पभाए पुढवीए॥ १११. छट्ठसत्तमासु णं पुढवीसु नेरइया बहू' महंताई लोहियकुंथुरूवाइं वइरामयतुंडाई गोमयकीडसमाणाई विउव्वंति, विउन्वित्ता अण्णमण्णस्स कार्य समतुरंगेमाणा-समतुरंगेमाणा खायमाणा-खायमाणा सयपोरागकिमिया विव 'चालेमाणा-चालेमाणा" अंतो-अंतो अणुप्पविसमाणा-अणुप्पविसमाणा वेदणं उदीरेंति--उज्जलं जाव दुरहियासं ॥ ११२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया कि सीतवेदणं वेदेति ? उसिणवेदणं वेदेति ? सीओसिणवेदणं वेदेति ? गोयमा ! णो सीयं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेति, नो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं जाव वालुयप्पभाए । ११३. पंकप्पभाए पुच्छा । गोयमा! सीयंपि वेदणं वेदेति, उसिणंपि वेदणं वेदेति, नो सीओसिणवेदणं वेदेति। ते बहुतरगा जे उसिणं वेदणं वेदेति, ते थोवतरगा जे सीतं वेदणं वेदेति ॥ ११४. धूमप्पभाए पुच्छा । गोयमा ! सीतंपि वेदणं वेदेति, उसिणंपि वेदणं वेदेति, णो सीओसिणवेदणं वेदेति । ते बहतरगा जे सीतवेदणं वेदेति, ते थोवतरका जे उसिणवेदणं वेदेति ॥ ११५. तमाए पुच्छा । गोयमा ! सीयं वेदणं वेदेति, नो उसिणं वेदणं वेदेति, नो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । एवं अहेसत्तमाए, गबरं-परमसीयं ।। ११६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया केरिसयं णिरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! ते णं तत्थ णिच्चं भीता 'णिच्चं छुहिया" “णिच्चं तत्था णिच्चं तसिता णिच्चं उब्विग्गा णिच्वं उपप्पुआ णिच्चं परममसुभमउलमणुबद्धं निरयभवं पच्चणुभवमाणा विहरंति । एवं जाव अधेसत्तमाए ॥ ११७. अहेसत्तमाए णं पुढवीए पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणरगा पण्णत्ता, तं जहा-काले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पतिट्ठाणे। तत्थ इमे पंच महापुरिसा अणुत्तरेहि दंडसमादाणेहिं कालमासे कालं किच्चा अप्पतिढाणे गरए रइयताएं उववण्णा, तं जहा-रामे जमदग्गिपुत्ते 'दाढाऊलेच्छतिपुत्ते", वसू उवरिचरे, 'सुभूमे कोरव्वे", बंभदत्ते चुलणिसुते"1 ते णं तत्थ वेदणं वेदेति--उज्जलं विउलं जाव" १. पभू (क, ख); पहू (ट)। स्तबके 'दाढादाल छातीसुत अपर नाम दत्त२. वइरामइतुं (ग)। लक्ष्मीनो पुत्र' इति विद्यते वृत्तिस्तबकयो३. दालेमाणा २ (क, ख, ग)। राधारेण 'दाढादाले छातीसुते' तथा स्तबक४. वेदणं अप्पयरा उण्हजोणिया (क)। निर्दिष्ट-विकल्पानुसारेण 'दत्ते लच्छीपुत्ते' इति ५. मलयगिरिवृत्तो एतत्पदद्वयं व्याख्यातं नास्ति। पाठो निष्पद्यते । ६.x(क) १०.x(ता)। ७. महानेरइयत्ताए (ता)। ११. अतोने 'क, ख, ट' प्रतिषु एष अतिरिक्तः ८. जमदग्गिसुते सुभोम्मे कोरव्या (ता); जम- पाठो वर्तते ते णं तत्थ नेरइया जाया काला दग्गिसुते (म)। कालोभासा जाव परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता। ६. दढाऊ लच्छाईपुत्ते (क); मलयगिरिवृत्ती १२. जी० ३।११० । 'दाढादालः छातीमुतः' इति विवृतमस्ति । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउग्विपडिवत्ती दुरहियासं ॥ ११८. उणिवेदणिज्जेसु' णं भंते ! णरएसु णेरइया केरिसयं उसिणवेदणं पच्चणुब्भवमाणा विहरति ? गोयमा ! से जहाणामए - कम्मारदारए सिता -- तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय- पास-पिट्ठतरोरुपरिणए घर्णानिचियविधे -दु-मुट्ठिय-समाय निचिय गायगत्ते उरस्सवल समण्णागए तलजमलजुयलवाहू लंघण-पवण-जवण- पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पट्ठे कुसले मेहावी निउणसिप्पो गए एवं महं अर्यापिडं उदगवारगसमाणं महाय तं ताविय - ताविय कोट्टियकोटि जाएगा वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं अद्धमासं साहणेज्जा", से णं तं सीतं सीतीभूतं अओमएणं संडासएणं' गहाय असम्भावपटूवणाएं उसिणवेदणिज्जेसु णरएसु पक्खिवेज्जा, से णं तं उम्मिसियणिमिसियंतरेणं पुणरवि पच्चुद्ध रिस्सामित्तिकट्टु पविरायमेव पासेज्जा पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा णो चेव णं संचारति अविरायं वा अविलीणं वा अविद्धत्थं वा पुणरवि पच्चुद्धरित्तए । से जहा वा मत्तमातंगे दुपाए" कुंजरे सद्विहायणे पढमस रयकालसमयंसि वा चरम निदाघकालसमयसि वा उण्हाभिहए तहाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झूसिए" पिवासिए नुब्बले किलते एक्कं महं पुक्खरिणिं पासेज्जा - चाउक्कोणं समतीरं अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीर-सीतलजलं संछष्णवत्तभिसमुणाल " बहुउप्पल" कुमुद णलिण-सुभग- सोगंधिय-पुंडरीय १. उसुणवेदणिज्जेसु (ता) 1 २. x (क, ख, ग, ट ) | ३. पिट्ठत रोरसंघाटापरिणए ( क, ख, ग, घ ) । अतो 'ता' प्रती अत्येषु आदर्शेषु च पाठस्य क्रमभेदः क्वचित् क्वचित् शब्दभेदोपि विद्यते— तलजमलजुयल बाहुघण णिचितवलितपवट्टगालिखंधे मुट्ठियसमायणिचितयंत गणे उरस्सबल समण्णागते लंघणपवणजइणवायामणसमत्थे छेए दक्खे कुमले नेहावी णिउणे णिउणसिप्पोवगते ( तर ); लंघणपवणजइणवायामणसमत्थे ( मद्दणसमत्थे -- ग ) तलजमलजुयल (जुगलबाहु -- ग ) फलिहणिभ - बाहू चतवयि बंधे (वट्टपालिबंधे ---, खट्टवालिबंधे – ग ) चम्मेदुगदुहणमुट्ठियमाणचितत्तगत्ते ( कयगत्तेक, ख, ट) छेए दक पट्ठे कुसले महावी णिउणे ( णिउणे मेहावी - क, ख, ग, ट ) उपोगए । ४. पत्तट्ठे (अणु० ४१६; राय० सू० १२) | २७३ ५. वारसमाणं (क, ख, ग, ट); दगवारा सामाणं (ता) | ६. कोट्टिय उभिदिय-उभिदिय चुष्णिय-चुण्णिय (क, ख, ग, ट ) । ७. साहणेज्जा ( क ) । ८. संदंसणं ( ग ) | ६. अभावणा (क); असम्भावणय° ( ख ) 1 १०. दये ( ग ) ; दुपए ( ट ) ; दुबाए ( ता ) । ११. झुम्झिए (ख, ट, ता ); भिज्जिए (मवृपा ) | १२. संछष्णपउमपत्त (क, ख, ग, द, ता); सर्वेष्वपि आदर्शषु पउम' इति पदं विद्यते, किन्तु मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यतमिदम् । नायाधम्मक हाओ (१३/१७) तथा रायपसेणइय ( सू० १७४ ) सूत्रेपि नैतत्पदं उपलभ्यते । १३. 'ता' प्रती अयं पाठः किञ्चिद् भेदेन दृश्यते— बहुउप्पलपउम कुमुदणलिणसुभगसोगंधिय अरविदकोवणतसतपत्तसहस्स पत्तयप्फुसि केस रोबचितं । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जीवाजीवाभिगमे सयपत्त-सहस्सपत्त-केसर-फुल्लोवचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमल' अच्छविमलसलिलपुण्ण परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं' अणेगसउणगणमिहुणय-विरचिय-सदुन्नइयमहुरसरनाइयं तं पासइ, पासित्ता तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हपि पविणेज्जा तण्हपि पविणेज्जा खहपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा'णिदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रति वा धिति वा मतिं वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए 'संकसमाणे-संकसमाणे" सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा ! असब्भावपट्ठवणाए उसिणवेदणिज्जेहिंतो णरएहितो णेरइए उव्वट्टिए समाणे जाई इमाइं मणुस्सलोयंसि भवंति, तं जहा"गोलियालिछाणि वा सोडियालिंछाणि वा भंडियालिछाणि वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा भुसागणीति वा णलागणीति वा अयागराणि वा तंवागराणि वा तउयागराणि वा सीसागराणि वा रुप्पागराणि वा सुवण्णागराणि वा" 'इट्टावाएति वा कुंभारावाएति वा कवेल्लुयावाएति वा लोहारंवरिसेति वा जंतवाडचुल्लीति वा-तत्ताइं समजोतिभूयाई" फुल्लकिसुयसमाणाई" 'उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणाई जालासहस्साई पमुच्चमाणाई १५ इंगालसहस्साइं पविक्खिरमाणाई" अंतो-अंतो हुहुयमाणाई चिट्ठति ताई पासइ, पासित्ता १. ४ (ता)। ११. वा हिरण्णागराणि वा (क, ख, ग, ट); 'ता' २. अच्छविमलसलीलपच्छपुण्णं (क, ख); अच्छ- प्रति मुक्त्वा सर्वेषु आदर्शेषु एष पाठो विद्यते; विमलपच्छसलीलपुण्णं (ता)। मलयगिरिवृत्तौ च व्याख्यातोप्यस्ति, किन्तु ३. परिभमंतमच्छ (ता)। नावश्यकोयं प्रतिभाति । ठाणं (१०) ४. विरइय (क, ग, ट)। रायपसेणइय (सू० ७७४) सूत्रेपि 'हिरण्णा५. 'ता' प्रतौ 'सदुन्नइयमहरसरनाइयं' इति पाठो गर' मिति पदं नैव दृश्यते । नास्ति । रायपसेणइय (सू० १७४) सूत्रेपि १२. कुंभागराणि वा भुसागणि वा इट्टायागणि वा एष पाठो नैव दृश्यते। कवेल्लुयागणि वा (क, ग, ट); कुंभाराणि वा ६. x (ता)। इट्टायागणि वा कवेल्लुयागणि वा (ख)। ७. संकासायमीणे २ (ता)। ठाणं (१०) सूत्रे 'कुंभारावाएति वा ८. एवमेव (ट, ता)। कवेल्लुआवाएति वा इट्टावाएति वा' इति ६. x (ता)। स्वीकृतपाठसंवादी पाठो लभ्यते । १०. अतः पुरोवर्ती पाठः 'ता' प्रति मलयगिरि- १३. समज्जोति (क, ग)। विवरणं च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु भिन्न क्रमो १४. फुलकेसुसमाणाई (ता); किसुकफुल्लसमाणाई वर्तते, यथा-अयागराणि वा तउयागराणि (ठाणं ८।१०) । वा सीसागराणि वा रुप्पागराणि वा हिरण्णा- १५. उक्कासहस्साई पमंचमाणाई जालासहस्साई राणि वा सवण्णागराणि वा कुंभागराणि वा विणिमयमाणाई (ता, मव)। सुसागणी वा इट्टायागणी वा कवेलुयागणी वा १६. पविक्खरमाणाई (क, ख, ग, ट)। लोहारंबरेसि वा जंतूवाउचुल्ली वा हंडिय- १७. जुहुयमाणाई (क, ग); हुहूआयमाणाई लिच्छाणि वा सोंडियलिच्छाणि णलागणीति (ता); क्वचित 'अंतो अंतो सुहृयहुयासणा' वा तिलागणीति वा तुसागणीति वा । ठाणं इति पाठः (म)। (८।१०) सूत्रेपि क्रमभेदो दृश्यते । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती २७५ ताई ओगाहइ ओगाहिता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तहपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरपि पविणेज्जा दाहपि पविणेज्जा णिद्दाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रति वा धिई वा मति' वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, भवेयारूवे सिया ? णो इणट्ठे समट्ठे, गोयमा ! उसिणवेदणिज्जेसु णरएसु नेरइया एत्तो अणितरियं चेव उसिणवेदणं पच्चणुभवमाणा विहति ॥ ११. सीयवेदणिज्जेसुणं भंते ! गरएसु णेरइया केरिसयं सीयवेदणं पञ्चणुब्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! से जहाणामए कम्मारदारए सिया तरुणे जुगवं वलवं जाव' णिउणसिप्पोवगते एवं महं अयपिंड दगवारसमाणं गहाय तावियन्ताविय कोट्टिय- कोट्टिय जाएगा' वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं मासं साहणेज्जा, से णं तं उसिणं उसिणभूतं अयमणं संडास एवं गाय असम्भावपट्टवणाए सीयवेदणिज्जेसु णरएसु पक्खिवेज्जा, से तं उम्मिसियनिमिसियंतरेण पुणरवि पच्चुद्ध रिस्सामीति कट्टु पविरायमेव पासेज्जा "पविलीणमेव पासेज्जा पविद्धत्थमेव पासेज्जा" णो चेव णं संचाएज्जा पुणरवि पच्चुद्धरितए । से जहाणामए मत्तमायंगे "दुपाए कुंजरे सद्विहायणे पढमसरयकालसमयंसि वा चरम निदाघकालसमयंसि वा उहाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए आउरे झुसिए पिवासिए दुब्बले किलते एक्कं महं पुक्खरिधि पासेज्जा - चाउवकोणं समतीरं अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीर - सीतलजलं संछष्णपत्तभिसमुणालं बहुउप्पल कुमुद णलिण-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीयमहापुंडरीय सयपत्त- सहस्तपत्त - केसर- फुल्लोवचियं छप्पयपरिभुज्जमाणकमलं अच्छविमलसलिल पुण्णं परिहत्थभमंतमच्छकच्छभं अणेगसउणगणमिहुणय- विचरिय सदुन्नइयमहरसरनाइयं तं पासइ, पासित तं ओगाहइ, ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हंपि पविणेज्जा तहपि पविणेज्जा खुपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दापि पविणेज्जा गिद्दा एज्ज वा पयलाएज्ज वा सति वा रति वा धिति वा मति वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, एवामेव गोयमा ! असम्भावपट्टवणाए सीतवेदणेहिंतो णरहितो नेरइए उन्वट्टिए समाणे जाई इमाई इहं माणूस्सलोए हवंति, तं जहा'हिमाणि वा हिमपुंजाणि वा हिमपडलाणि वा हिमकूडाणि वा सीयाणि वा सीयपुंजाणि वा सीयपडलाणि वा सीयकूडाणि वा तुसाराणि वा तुसारपुंजाणि वा तुसारपडलाणि वा सारकूडाणि वा ताई पासति, पासित्ता ताई ओगाहति, ओगाहित्ता से णं तत्थ सीतंपि १. अहं (क, ख, ट ) 1 २. जी० ३।११६ । ३. एका ( ख, ग, ट ) | ४. हणेज्जा (क, ट, ता); संहणेज्जा ( ख, ग ) । ५. सं० पा० - तं चेव णं जाव णो । ६. सं० पा० – तहेव जाव सायासोक्खबहुले । ७ x (ता; पूर्वस्मिन् सूत्रे 'इहं' इति पदं नास्ति 'मणुस्सलोयसि' इति पदमस्ति । अत्र 'ता' प्रति मुक्त्वा सर्वेषु आदशेषु 'इहं माणुस्सलोए' इति पाठो लभ्यते । ८. हिमपुंजाणि वा हिमपडलाणि वा हिमपडलपुंजाणि वा तुसाराणि वा तुसारपुंजाणि वा हिमकुंडाणि हिमकुंडपुंजाणि सीयाणि वा ४ (क, ख, ग, ट) हिमाणि वा हिमपुंजाणि वा हिमकुंडाणि वा हिमपडलाणि वा सीताणि वासी ४ तुसाराणि वा तुसार ४ ( ता ) ; स्वीकृत पाठ : मलयगिरिवृत्त्यनुसारी विद्यते, किन्तु तुपारसम्बन्धी पाठस्तत्र नास्ति व्याख्यातः स च 'ता' प्रत्यनुसारी वर्तते । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ जीवाजीवाभिगमे पविणेज्जा तव्हंपि पविणेज्जा खुहंपि पविणेज्जा जरंपि पविणेज्जा दाहंपि पविणेज्जा निदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा' 'सतिं वा रति वा धिति वा मतिं वा उवलभेज्जा, उसिणे उसिणभूए संकसमाणे-संकसमाणे सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा, गोयमा ! सीयवेय णिज्जेसु नरएसु नेरइया एत्तो अणितरियं चेव सीतवेदणं पच्चणुभवमाणा विहरंति ॥ १२०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणवि उक्कोसेणवि ठिती भाणितव्वा जाव अधेसत्तमाए । १२१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रइया अणंतरं उवट्टिय' कहिंगच्छंति ? कहिं उववज्जति ? -कि नेरइएसु उववज्जति ? कि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति एवं उब्वट्टणा माणितव्वा जहा वक्कंतीए तहा इहवि जाव अहेसत्तमाए । १२२. इमीसे' णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफास पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिठे जाव' अमणामं । एवं जाव अहेसत्तमाए । १२३. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसय आउफासं पच्चणभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणि→ जाव अमणामं । एवं जाव अहेसत्तमाए एवं जाव वणप्फतिफासं अधेसत्तमाए पुढवीए । १२४. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहतियाबाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु ? हंता गोयमा ! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं° सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु ।। १२५. दोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा। हंता गोयमा ! दोच्चा णं पुढवी' 'तच्चं पुढवि पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं. सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु । एवं एएणं अभिलावेणं जाव छट्ठिया पुढवी अहेसत्तमं पुढविं पणिहाय सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु ॥ १२६. इमीसे" णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु जे पुढविक्काइया १. सं०प०-पयलाएज्ज वा जाव उसिणे। ५. 'ता' प्रतो अतः पूर्व १२६ सूत्रं विद्यते । २. 'ता' प्रती विस्तृत: पाठोस्ति। मलयगिरि- पाठरचनायामपि भेदोस्ति--इमीसे गं भंते ! वत्तावपि तथैव व्याख्यातोस्ति। 'ता' प्रतिगतः रयणप्पणेरगपरिसामंतेसु जे बादरपुढविक्काइया पाठ:--जहं दस वा उक्को साग । दोच्चाए ज जाव वणस्सकाइया। तेसि णं भंते ! जीवा ए उ ३। तच्चा ज ३७। चउ उ १०७ । महाकम्मतरा च्चेव महासवतरा चेव महाबेदणपंच उ १७ ज १०। छट्ठी उ२२ ज १७ ॥ तराच्चेव। हंता गोयमा! इमीसे णं जाव सत्त ३३ । क्वचिद् जहा पण्णवणाए ठिइपदे महावेदणतरा च्चेव जाव अहेसत्तमाए। (मवृपा)। ६. जी० ३१६२। ३. 'ता' प्रती किञ्चिदधिक: पाठोस्ति-उव्व किं ७. सब्वखुड्डिया (ट)। र ४ गोयमा ! णो र तिरि मण णो दे .सं० पा०-पणिहाय जाव सव्वक्खडिया। एगिदिय विगिलिय असंखाउवज्ज । ६. सं० पा०—पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया। ४. पण०६९६,१००। १०. मलयगिरिणा प्रस्तुत सूत्रं १२७ सूत्रानन्तरं Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती २७७ · जाव वणफतिकाइया, ते णं भंते ! जीवा महाकम्मतरा चेव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चैव महावेयणतरा चैव ? हंता गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए निरयपरिसामंतेसु "जे पुढविवकाइया जाव वणप्फतिकाइया ते णं जीवा महाकम्मतरा चैव महाकिरियतरा चेव महाआसवतरा चैव महावेदणतरा चेव । एवं जाव अधेसत्तमा । १२७. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए नरयावासस्यसहस्सेसु इक्aमिक्कसि निरयावासंसि सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुब्वा ? हंता गोयमा ! असति अदुवा अतत । एवं जाव अहसत्तमाए पुढवीए, णवरं - ' जत्थ जत्तिया परगा " 1 संग्रहणीगाहा पुढवीं ओगाहिता, नरगा संठाणमेव बाहलं । fararपरिक्खेवे, वण्णो गंधो य फासो य ॥१॥ तेसि महालयत्तं, उवमा देवेण होइ कायव्वा । जीवा य योग्गला वक्कमंति तह सासया निरया ||२|| उववायपरीमाणं, अवहारुच्चत्तमेव संघयणं । संठाणवण्णगंधे, फासे ऊसासमाहारे ॥३॥ लेसा दिट्ठी नाणे, जोगुवओगे तहा समुग्धाए । तत्तोय खुप्पिवासा, विउब्वणा वेयणा य भए || ४| उवाओ पुरिसाण, ओवम्मं वेयणाए दुविहाए । ठिइ उव्वट्टण पुढवी, उववाओ सव्वजीवाणं || ५ || des उद्देओ तइओ ५२८. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पोग्गल परिणाम पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिट्ठे जाव' अमणामं । एवं जाव असत्तमाए । ' एवं वेदणापरिणामं ले सपरिणामं णामपरिणामं गोत्तपरिणामं अरतिपरिणाम भयपरिणामं सोगपरिणामं खुहापरिणामं पिवासापरिणामं वाहिपरिणामं उस्सासपरिणाम अणुतावपरिणामं कोवपरिणामं माणपरिणामं मायापरिणामं लोहपरिणामं आहारसण्णापरिणामं भय सण्णापरिणामं मेहुणसण्णापरिणामं परिग्गहसण्णापरिणाम" । संग्रहणीगाहा - पोगलपरिणामे वेयणा य लेसा य नाम गोए य । अरई भए य सोगे, खुहा पिवासा य वाही य ॥१॥ पाठान्तररूपेण उल्लिखितं क्वचिदिदमपि रयणप्पभाए उद्देशकान्ते सूत्रं दृश्यते-- इमीसे गं भंते! पुढवीए निरयपरिसामंते सु... | सङ्ग्रहगाथास्वपि अस्य सूत्रस्य संकेतो नैवास्ति कृतः । द्रष्टव्यं पञ्चम्याः गाथायाः अन्त्यं चरणद्वयम् । १. सं० पा० तं चैव जाव महावेदणतरा । २. जहिं जत्तिया णिरयावासा (ता) : ३. जी० ३९२ । ४. एवं नेयव्वं (क, ख, ग, ट) ! Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ जीवाजीवाभिगमे उस्सासे अणुतावे', कोहे माणे य मायलोभे य । चत्तारि य सण्णाओ, नेरइयाणं तु परिणामं ॥२॥ १२६. एत्थ किर अतिवयंती', नरवसभा केसवा जलचरा य । रायाणो मंडलिया, जे य महारंभकोडंबी ॥१॥ भिन्नमुहत्तो नरएसु, तिरियमणुएसु होंति" चत्तारि। देवेसु अद्धमासो, उक्कोस विउव्वणा भणिया ॥२॥ 'जे पोग्गला अणिट्ठा, नियमा सो तेसि होई आहारो। संठाणं तु अणिठं, नियमा हुंडं तु नायव्वं ॥३॥ असुभा विउव्वणा खलु, नेरइयाणं तु होइ सव्वेसि । वेउव्वियं सरीरं, असंघयण हुंडसंठाणं ॥४॥ अस्साओ उववण्णो, अस्साओ चेव चयइ निरयभवं ।। सव्वपुढवीसु जीवो, सव्वेसु ठिइविसेसेसुं ।।५। उववाएण व सायं, नेरइओ देवकम्मुणा वावि । अज्झवसाणनिमित्तं, अहवा कम्माणुभावेणं ।।६।। 'नेरइयाणुप्पाओ', उक्कोसं पंचजोयणसयाई"। दुक्खेणभियाणं, वेयणसयसंपगाढाणं ।।७।। अच्छिनिमीलियमेत्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुवद्धं । न रए नेरइयाणं, अहोनिसं पच्चमाणाणं ।।८।। तेयाकम्मसरीरा', सुहमसरीरा य जे अपज्जत्ता। जीवेण मुक्कमेत्ता, वच्चंति सहस्ससो भेयं ॥६॥ एत्थ य भिन्नमुहुत्तो, पोग्गल असुहा य होइ अस्साओ। उववाओ उप्पाओ, अच्छि सरीरा उ बोद्धव्वा ।।१०।। से तं नेरइया ।। १. अणुभावे (क, ट)। ७. 'ता' प्रति मलय गिरिविवरणं च मुक्त्वा अन्येष २. मतिवगंती (ता)। आदर्शेषु ग्तेयाकम्मसरीरा' एषा गाथा अतः ३. होति तिरियमणुएसु (ता)। पूर्व विद्यते। ४. होति (ता)। ८. नेरइयाणुप्पाओ गाउय उक्कोस पंच जोयण५. 'ता' प्रति मलयगिरिविवरणं च मुक्त्वा अन्येष सयाई (मवृपा) आदर्शष द्वयोर्गाथयो व्यत्ययः तदगतचरणयोश्च ९. तेता (क)। व्यत्ययो दृश्यते-- १०. अतोने क, ख, ग, ट' रांकेतितादर्शेषु एका असुभा विउवणा खलु, नेरइयाणं तु होइ सब्वेसि । अतिरिक्ता गाथा लभ्यतेसंठाणं पि य तेसि नियमा हुंडं तु नायव्वं । अतिसीतं अतिउण्हं, अतितिण्हा अतिखहा जे पोग्गला अणिवा नियमा सो तेसि होइ आहारो। अतिभयं वा। वेउन्वितं सरीरं असंघयण हुंड संठाणं ।। निरए नेरइयाणं, दुक्खसयाई अविस्सामं ॥ ६. वचइ (क, ख, ग); जहति (ट)। मलयगिरिवत्तौ नास्ति व्याख्याता । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २७६ तिरिक्खजोणिय उद्देसओ पढमो १३०. से किं तं तिरिक्खजोणिया? तिरिक्खजोणिया पंचविधा पण्णत्ता, तं जहाएगिदियतिरिक्खजोणिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिदियतिरिक्खजोणिया पंचिदियतिरिक्खजोणिया य ।। १३१. से किं तं एगिदियतिरिक्खजोणिया ? एगिदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा--पुढिवकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया।। १३२. से किं तं पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिया? पुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–सुहुमपुढ विकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया य॥ १३३, से कि तं सुहुमपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया ? सुहुमपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तसुहुमपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तसुहुभपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया। से तं सुहुमा ॥ १३४. से कि तं वादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया ? वादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया दविता पण्णला. तं जहा-पज्जत्तबादरपढविकाइयागिदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तबादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया। से तं बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिया । से तं पुढविकाइयएगिदिया। १३५. से किं तं आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिया ? आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिया दुबिहा पण्णत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव आउकायभेदो। एवं जाव वणस्सतिकाइया । से तं वणस्सइकायएगिदियतिरिक्खजोणिया ॥ १३६. से कि तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया ? बेइंदियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगबेइंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगबेइंदियतिरिक्खजोणिया। से तं बेइंदियतिरिक्खजोणिया । एवं जाव चउरिदिया ।। १३७. से किं तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- जलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । १३८. से किं तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गन्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य॥ १३६. से किं तं समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगसंमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसंमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।। १४०. से कि तं गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? गब्भवक्कं तियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगगब्भवतियजलयर Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० जीवाजीवाभिगमे पंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से तं गब्भवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ।। १४१. से कि तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? थलयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया दुविधा पण्णत्ता, तं जहाच उप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४२. से किं तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संमुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियचउम्पयथलयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया य, जहेव जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। सेत्तं चउप्पदथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४३. से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया भयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिया'। १४४. से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-जहेब जलयराणं तहेव चउक्कतो भेदो। एवं भयपरिसप्पाणवि भाणितव्वं । से तं भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया । से तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ॥ १४५. से किं तं खयरपंचें दियतिरिक्खजोणिया ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य १४६. से किं तं समुच्छिमखयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्तगसंमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया अपज्जत्तगसमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य। एवं गब्भवतियावि जाव पज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि अपज्जत्तगगब्भवक्कंतियावि ॥ १४७. खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविधे जोणिसंगहे पण्णते ? गोयमा ! तिविहे जोगिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडया पोयया संमुच्छिमा ॥ १४८. अंडया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा णपुंसगा।। १४६. पोतया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थी पुरिसा गपुंसगा। तत्थ णं जेते संमच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा। १५०. तेसिणं भंते ! जीवाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेसाओ १. १४०-१४५ एतेषां सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ २. उरग (ग)। मलयगिरिविवरणे च संक्षिप्तपाठो विद्यते--- ३. भुयग' (ग)। एवं चतुपदा उरयं भुय प पक्खीवि (ता); ४. पक्खीणं (ता); पक्षिणां भदन्त ! (मव) । एवं चतुष्पदा उर:परिसर्पा भुजपरिसर्पाः ५. एएसि (ट); एतेषां (मवृ) । पक्षिणश्च प्रत्येकं चतुष्प्रकारा वक्तव्याः (मवृ) । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहडिवत्ती २८१ पण्णत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा' जाव सुक्कलेसा ॥ १५१. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी ? मिच्छट्ठिी ? सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि ॥ १५२. ते णं भंते ! जीवा किं णाणी ? अण्णाणी? गोयमा ! 'णाणीवि अण्णाणीवि--तिणि णाणाइं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए । १५३. ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी ? गोयमा ! तिविधावि ॥ १५४. ते णं भंते ! जीवा कि सागारोव उत्ता? अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोव उत्तावि अणागारोवउत्तावि॥ १५५. ते णं भंते ! जीवा कओ उववज्जति ?--कि नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? पुच्छा। गोयमा! असंखेज्जवासाउयअकम्मभूमगअंतरदीवगवज्जेहिंतो उववज्जति ।। १५६. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं ।। १५७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाता पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा-वेदणासमुन्धाए जाव तेयासमुग्धाए । १५८. ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहता मरंति ? असमोहता मरंति ? गोयमा ! समोहतावि मरंति असमोहतावि मरंति ॥ १५६. ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उज्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति?किं नेरइएसु उववज्जति ? तिरिक्खजोगिएसु उववज्जति ? पुच्छा। गोयमा ! एवं उव्वट्टणा भाणियव्वा जहा" वक्कंतीए तहेव ।। १६०. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति जातीकुलको डिजोणीपमुहसयसहस्सा पणता? गोयमा ! वारस जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा ।। संगहणी गाहा जोणीसंगहलेस्सादिट्ठी नाणे य जोग उवओगे। उववायठिईसमुग्घाय चयणं जातीकुलविधी उ ॥११॥ १. 'ता' प्रती अतः १५८ सूत्रपर्यन्तं संक्षिप्त- ३. भतणाते (ख) । अतोने 'क, ख' प्रत्योः अतिपाठोस्ति----कहादि ६ दिठीओ ३ णाणा रिक्तः पाठोस्ति-दुविहेसु गम्भवक्कंतिताणं । भयणाए अण्णाणा ३ भयणाए जोगो ३ उव- ' प्रतौ च स एवमस्ति-दुविधा समुच्छिम योगो २ ते णं भंते ! कतो उवव जधा दुविधा गब्भवक्कंतिताणं। सु । जहं अंतो मु। उक्कोसं पलित असंखे- ४. पण्ण० ३६।१। ज्जति ताउ धणु समुग्घाता ५। ते णं भंते ! ५. पण्ण० ६।१०५-१०६ । मारणंतिय किं समो असं दोसु वि मरंति। ६. 'ता' प्रति मुक्त्वा अन्येषु आदर्शषु एषा ते णं भंते ! अणंतर चयं च जहा दुविधेसु । सङ्ग्रहणी गाथा नोपलभ्यते। मलयगिरिवृत्ती २. दुविहा वि (मवृ)। असो व्याख्यातास्ति। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जीवाजीवाभिगमे १६१. भयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविधे जोणीसंगहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे जोगीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडया' पोयया' संमुच्छिमा। एवं जहा खयराणं तहेव, णाणत्तं-जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुन्वकोडी, उव्वट्टित्ता दोच्चं पुढवि गच्छंति, णव जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं, सेसं तहेव ॥ १६२. उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! पुच्छा। जहेव भुयपरिसप्पाणं तहेव, णवरं--ठिती जहण्णेणं अंतोमहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी, उव्वट्टिता जाव पंचमि पढवि गच्छंति, दस जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा ॥ १६३. चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ! गोयमा ! दुविधे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-पोयया' य संमच्छिमा य॥ १६४. पोयया तिविधा पण्णत्ता, तं जहा--इत्थी पुरिसा णपुंसगा। तत्थ णं जेते संमच्छिमा ते सव्वे णसगा। १६५. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ? सेसं जहा पक्खीणं, णाणत्तं-ठिती जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तिणिपलिओवमाई। उव्वट्टित्ता चउत्थि पुढवि गच्छंति, दस जातीकुलकोडी॥ १६६. जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। जहा भुयपरिसप्पाणं, णवरंउव्वट्टित्ता जाव अधेसतमि पुढविं, अद्धतेरस जातीकुलकोडीजोणीपमुह 'सयसहस्सा पण्णत्ता ।। १६७. चउरिदियाणं भंते ! कति जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! नव जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा समक्खाया ॥ १६८. तेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा ! अट्ठ जातीकुल 'कोडीजोणीपमुहसयसहस्सा १. अंडगा (ग); अंडका (ट)। वक्तव्यः स्यादिति । २. पोयगा (क, ट)। ४. जराउया (क, ख, ग, ट)। ३. जराउया (क, ख, ग, ट); ठाणं (३१३६,३६, ५. 'ता' प्रती अत्र भिन्ना वाचना दश्यते-- ४२,४५) सूत्रेषु क्रमशः मत्स्यानां पक्षिणां जलचराणां जोणी सं तिविहे अद्धतेरसजाती उरःपरिसर्पाणां भुजपरिसाणां च अण्डज- कु जो जतो उववज्जति सो ततो उववज्जति पोतज-सम्मूच्छिमरूपेण विविधत्वं प्रज्ञापित- उणि जाव सहस्सारो गरएसु पक्खी तच्चातो मस्ति, एवं चतुष्पदथलचराणां त्रिविधत्वं चतुप्पद चउत्थि उरगा पंचमीतो मच्छा सत्तनास्ति तत्र प्रज्ञापितम् । अत्र विवक्षा भेद एव मीतो। मलयगिरिवृत्तावपि ऊवं यावत् कारणम् । मलयगिरिणापि एतस्यैव सूचना सहस्रारः इति लभ्यते । कृतास्ति-इह येऽण्डजव्यतिरिक्ता गर्भव्युत्क्रा- ६. सं० पा०—जातीकुलकोडीजोणीपमुह जाव न्तास्ते सर्वे जरायुजा अजरायजा वा पोतजा पगणत्ता। इति विवक्षितमतोत्र द्विविधो यथोक्तस्वरूपी ७. जोणीपमूहसयमहस्सा जाव (क, ग, ट); योनिसङ्ग्रह उक्तः, अन्यथा गवादीनां जरायुज- जोणीपमुह जाव (ख)। त्वात् तृतीयोपि जरायुलक्षणो योनिसङ्ग्रहो ८. सं० पा०--जातीकुल जाव समक्खाया। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २८३ समक्खाया ।। १६६. बेइंदियाणं भंते ! कइ जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पुच्छा ! गोयमा! सत्त जातीकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा समक्खाया। १७०. कइ णं भंते ! 'गधंगा? कइ णं भंते ! गंधंगसया" पण्णता ? गोयमा ! सत्त गंधंगा सत्त गंधगसया पण्णत्ता ।। १७१. कइ णं भंते ! पुप्फजातीकुलकोडोजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस पुप्फजातीकुल कोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा-चत्तारि 'जलजा णं चत्तारि थलजाणं चत्तारि 'महारुक्खाणं चत्तारि महागुम्मियाणं" ।। १७२. कति णं भंते ! वल्लीओ? कति वल्लिसता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वल्लीओ चत्तारि वल्लीसता पण्णत्ता ।। १७३, कति णं भंते ! लताओ? कति लतासता पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठ लताओ अट्ट लतासता पण्णत्ता॥ १७४. कति णं भंते ! हरियकाया ? कति हरियकायसया पण्णता? गोयमा ! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पण्णत्ता । फलसहस्सं च बेंटवद्धाणं फलसहस्सं च गालवद्धाणं । ते' सव्वे हरितकायमेव समोयरंति। ते एवं समणुगम्ममाणा-समणुगम्ममाणा समणुगाहिज्जमाणा-समणुगाहिज्जमाणा समणुपेहिज्जमाणा'-समणुपेहिज्जमाणा समणुचिंतिज्जमाणा'-समणुचितिज्जमाणा एएसु चेव दोसु काएसु समोयरंति, तं जहा-तसकाए चेव थावरकाए चेव । एवमेव सपुव्वावरेणं आजीवदिळंतेणं चउरासीति जातीकुल कोडीजोणीपमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खाया ॥ १७५. अस्थि णं भंते ! विमाणाई 'अच्चीणि अच्चियावत्ताई अच्चिप्पभाई अच्चिकताई अच्चिवण्णाई अच्चिलेस्साई अच्चिज्झयाई अच्चिसिंगाइं अच्चिसिट्ठाई अच्चिकूडाई अच्चुत्तरवडिसगाई ? हंता अस्थि ॥ १७६. ते णं भंते ! विमाणा केमहालता पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं तिण्णोवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स १. गंधगा पण्णत्ता कइणं भंते गंधगसया (क, ख, महावृक्षाणां (मवृ)। ग, ट); गंधा गंधगसता (ता); क्वचिद् ४. तेवि (मव)। गन्धा इति पाठस्तत्र पदैकदेशे पदसमुदायो- ५,६,७. एवं समणु (क, ख, ग, ट)। पचाराद् गन्धा इति गन्धाङ्गानीति द्रष्टव्यम् ८. आजीवियदि० (क, ट); आजीविदि० (ग); (म)। आजीविवदि० (ता) । २. जलयराणं चत्तारि थलयराणं (क, ट); ६. अचिकिट्रीणि (ता)। लिपिकाराणां प्रमादेन 'जलयाणं थलयाणं' १०. सोत्थीणि सोत्थियावत्ताई सोत्थियपभाई इति पदयोः स्थाने 'जलयराणं थलयराणं' इति सोत्थियकताई सोत्थियवण्णाई सोत्यियलेस्साई पाठविपर्ययोः जातः इति सम्भाव्यते । सोथिसिंगाई (सिंगाराइंग, ट); सोस्थि३. महारुक्खियाणं' (क, ख, ग); गुम्मियाण कूडाइं (कूडाइं-क, ख) सोसिट्ठाई (ट); महागुल्मिकादीनां जात्यादीनां, चत्वारि सोत्थुत्तरडिसगाई (क, ख, ग, ट); 'ता' Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ जीवाजीवाभिगमे एगे विक्कमे सिता। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए" चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धयाए जइणाए छेयाए° दिव्वाए देवगतीए वीतीक्यमाणे-वीतीवयमाणे जहणणं' एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा--अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतिय विमाणं नो वीतीवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो !! १७७. अत्थि णं भंते ! विमाणाई 'सोत्थीणि सोत्थियावत्ताई सोत्थियपभाई सोत्थियकताई सोत्थियवण्णाई सोत्थियलेसाई सोत्थियज्झयाई सोथिसिंगाई सोस्थिकडाई सोत्थिसिट्ठाई सोत्थुत्तरवळिसगाई ? हंता अत्थि ।। १७८. ते णं भंते ! विमाणा केमहालता पण्णत्ता ? गोयमा ! •"जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं पंच ओवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता! •से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धृयाए जडणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जहण्णणं एकाहं वा दुयाह वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा-अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेमतियं विमाण नो वीतीवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो!! १७१. अत्थि ण भंते ! विमाणाई कामाई कामावत्ताईकामप्पभाई कामकंताई कामवण्णाई कामलेस्साई कामज्झयाई कामसिंगाई कामकूडाई कामसिट्ठाई कामुत्तरवडिसयाई? हंता अत्थि ॥ १८०. ते णं भंते ! विमाणा केमहालया पण्णत्ता ? गोयमा ! • जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाई सत्त ओवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता । से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जहण्णणं एकाहं वा दुयाह वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा-अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं विमाणं नो वीतीवएज्जा, एमहालता णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! १८१. अस्थि णं भंते ! विमाणाई विजयाइं वेजयंताई जयंताई अपराजिताई ? हंता अत्थि ।। प्रतौ वृत्तिद्वये च अचिरादीनां विमानानां ५. X (क, ख, ग, ट)। त्रीणि अवकाशान्तराणि तथा स्वस्तिकादीनां ६. अच्चीणि अच्चियावत्ताई तहेव जाव अच्चुत्तपंच अवकाशान्तराणि लभ्यन्ते, अन्येषु प्रयुक्ता- रडिसगाई (क, ख, ग, ट)। दर्शषु स्वस्तिकादीनां त्रीणि तथा अचिरादीनां ७. सं० पा०-एवं जहा अच्चीणि णवरं एवतिपंच अवकाशान्तराणि लभ्यन्ते । प्राचीनतमा याई पंच ओवासंतराई। हारिभद्रीयवृत्तिमाश्रित्य तदनुसारी पाठ एव ८. सं० पा०.-सेसं तं चेव । स्वीकृतः । ६. सं० पा०—कामावत्ताई जाव कामुत्तरवडि१. सं० पा०—तुरियाए जाव दिव्वाए। सयाई। २. जाव (क, ख, ग, ट)। १०. सं० पा०-जहा अच्चीणि णवरं सत्त ३. अत्थेगतिते (ग)। ओवासंतराइं विक्कमे सेसं तहेव । ४. अत्थेमतिया (ग)। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्हिडिवत्ती २८५ १८२. . ते णं भंते ! विमाणा के महालता पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिए णं सूरिए उदेति ras च सूरिए अत्थमेति एवइयाई नव ओवासंतराई "अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता । सेणं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिन्धाए उद्धयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे वीतीवयमाणे जहण्णेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे वीतीवएज्जा', नो चेत्र णं ते विमाणे वीईवएज्जा, एमहालयाण विमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! 11 तिरिखखजोणिय उद्देसओ बीओ १८३. कतिविहा णं भंते! संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! छव्विहा 'संसारसमावण्णगा जीवा" पण्णत्ता, तं जहा -- पुढविकाइया जाव तसकाइया ॥ १८४. से कि तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया 'पण्णवणाए पदं निरवसेस' जाव सव्वदुसिद्धा देवा" || १८५. कतिविधा णं भंते ! पुढवी पण्णत्ता ? गोयमा छव्विहा पुढवी पण्णत्ता, तं जहा - सहपुढवी सुद्धपुढवी वालुयापुढवी मणोसिलापुढवी सक्करापुढवी खरपुढवी ॥ १८६. सहपुढवीणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एवं वाससहस्से || १८७. सुद्धपुढवीपुच्छा' । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस वाससहसाई ॥ १. सं० पा० - सेसं तं चेव । २. x (मवृ) 1 ३. निरवयव (ता) | ४. दुविहा पन्नत्ता तं सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया । से किं तं सुहुम पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता तं पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमपुढविक्काइया । से किं तं बादरपुढविक्काइया २ दुविहा पन्नत्ता तं जहां पज्जत्तगा य अपज्जतगा य एवं जहा पण्णवणाए । सन्हा सत्तविहा पन्नत्ता । खरा अणेगविहा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा से तं बादरपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइया । एवं चैव जइ पण्णवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया | एवं जत्थे को तत्थ सिय संखिज्जा सिय असंखिज्जासित अनंता । से तं बादरवणस्स इकाइया । से तं वणष्कइकाइया से किं तं तसकाइया विहा पन्नत्ता तं बेइंदिया तेइंदिया चउरि 1 दिया पंचिदिया । से किं तं बेइंदिया अणेगविहा पन्नत्ता । एवं जहेव पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं ति जाव सव्वट्टसिद्धगा देवा । सेतं अणुत्तरोववाइया । से तं देवा । सेतं पंचिदिया । से त्तं तसकाइया ( क, ख, गट ) ; इत्यादि प्रज्ञापनागतं प्रथमं प्रज्ञापनापदं निरवशेषं वक्तव्यं यावदन्तिमं से तं देवा' इति पदम् (मव्) | ५. १८७-१९१ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतो एका सङ्ग्रहणीगाथा लभ्यते— सहाय सुद्ध वालुय, मणोसिला सक्करा य खरपुढवी । एक्कं वारस चोट्स सोलस अट्ठारस बावीसा || मलयगिरिवृत्तावपि 'ता' प्रत्यनुसारि विवरणं दृश्यते-- एवमनेनाभिलापेन शेषाणामपि पृथिवीनामनया गाथया उत्कृष्टमनुगन्तव्यं, तामेव गाथामाह 1 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ जीवाजीवाभिगमे १८८. वालुयापुढवीपुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चोद्द वाससहस्साई ॥ १८६. मणोसिलापुढवीपुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सोलस वाससहस्साइं ॥ १६०. सक्करापुढवीपुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहृत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस वाससहस्साई ॥ १६१. खरपुढवीपुच्छा । गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं ।। १९२. नेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! 'जहणेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई । ठितीपदं सव्वं भाणियव्वं जाव' सब्वट्ठसिद्धदेवत्ति " | १६३. जीवे णं भंते ! जीवेत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं ॥ १४. पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! सव्वद्धं । एवं जाव तसकाइए || १६५. पडुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स पिल्लेवा सिता ? गोयमा ! जहण्णपदे असंखेज्जा हि उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं, उक्कोसपदेवि असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहि-जहण्णपदातो उक्कोसपर असंखेज्जगुणा । एवं जाव पडुप्पन्न वाउक्काइया ॥ १६६. पडुप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते ! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता ? गोयमा ! पडुप्पन्नवणप्फइकाइया जहण्णपदे अपदा उक्कोसपदेवि अपदा -- पडुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं for निल्लेवा ॥ १९७. पडुप्पन्नतसकाइया णं भंते ! 'केवतिकालस्स निल्लेवा सिया ? गोयमा ! पडुप्पन्नतसकाइया” जहृण्णपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स), उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपुहत्तस्स - जहष्णपदा" उक्कोसपदे विसेसाहिया || १. पण्ण० ४ । २. चतुव्वीसा दंडणं जाव सव्वट्ठेति (ता, भवृ ) । ३. सम्वद्धा (क, ता) । अतो 'ता' प्रती भिन्नवाचनागतः पाठोस्ति-कार्यद्विती जहा तव्वं इमेहि पदेहिं - जीवगतिदियकाए जाव सुहुम बादरा । सव्वं अपरिसेसे तं उवरिल्लं णत्थि । मलयगिरिवृत्ती द्वे सङ्ग्रहगाथे अत्र उपलभ्येते गइ इंदिए य काए जोगे वेए कसाव लेसा य । सम्मत्तनाणदंसणसंजय उवओगआहारे ॥ १ ॥ भागपरित्तपज्जत्तम सण्णी भवइत्थि चरिमेय । एएसि तु पयाणं कायठिई होइ नायव्वा ||२|| ४. उक्कोसपदे (क, ख, ग, ट) । ५. पुच्छा (क, ख, ग, ट) । ६. सस्स पुहत्तस्स (क, ट ); सागरोवमसहस्सपुहत्तस्स ( ख ); सतसहस्सपुधत्तस्स (ता) । ७. जघण्णपदातो (ता) | Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २८७ अविसुद्धलेस्स-पदं १९८. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं' अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो इणठे समझें। १६६. अविसुद्धलेस्से' णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो इणठे समझें ।। २००. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो इणठे समझें ।। २०१. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समझें ॥ २०२. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समठे ।। २०३. अविसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? गोयमा ! नो तिणठे समठे॥ विसुद्धलेस्स-पदं २०४. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ।। २०५. "विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहतेणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ २०६. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ।। २०७. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतेणं अप्पाणणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ।। २०८. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ २०६. विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहतासमोहतेणं अप्पागणं विसुद्धलेस्सं देवं देवि अणगारं जाणति-पासति ? हंता जाणति-पासति ॥ १. असमोहएणं (क, ट)। णो तिण ६ विसुद्धले समोह विसुद्धलेसं देवं देवि २. ४ (ख, ट, ता)। अण जाणति पासति । हता जाणति पासति । ३. 'ता' प्रती अतः भिन्ना वाचना दृश्यते-- एवं विसुद्धलेसा असमोहतेणं दोवि जाणति असमोहते णं भंते! अणगारे असमोहतेणं पासति । समोहतेणं दोवि जाणति । समोहअप्पाणेणं विसुद्धलेस। समोहतेणं अविसुद्धलेस तासमोहतेणं दोवि जाणति पासति । एवं ३ अविसुद्धलेस समोह विसुद्धलेस्सा । समोहतेणं जाणति छपण जाणति एवं बारस आलावगा। विसद्धलेसं दे ४ णो तिण । अविसुद्धलेसे नं ४. सं० पा०-जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा भंते ! समोहतासमोहतेणं अविसुद्धलेसं दे णो एवं विसुद्धलेस्सेण वि छ आलावगा भाणितव्वा इ ५ अविसु समोहतासमोहतेणं विसुद्धलेसं जाव विसुद्धलेस्से । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ जीवाजीवाभिगमे २१०. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति एवं भासें ति एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ' पकरेति, तं जहा-सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च । जं समयं सम्मत्तकिरियं पक रेति, तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति । जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति, तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति । सम्मत्तकिरियापकरणताए मिच्छत्तकिरियं पकरेति । मिच्छत्तकिरियापकरणताए सम्मत्तकिरियं पक रेति । एवं खलू एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा-सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च ।। २११. से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जण्णं ते अण्ण उत्थिया एवमाइक्खंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवंति–एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति तहेव जाव सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च।। जेते एवमासू, तं णं मिच्छा । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरेति, तं जहा-सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा। जं समयं सम्मत्तकिरियं पक रेति, णो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेति । जं समय मिच्छत्तकिरियं पक रेति, नो तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेति । सम्मत्तकिरियापकरणयाए नो मिच्छत्तकिरियं पकरेति । मिच्छत्तकिरियापकरणयाए णो सम्मत्त किरियं पकरेति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरेति, तं जहा--सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा ॥ मणुस्साधिगारो २१२. से किं तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–संमुच्छिममणुस्सा य गन्भवतियमणुस्सा य ।। २१३. से किं तं संमुच्छिममणुस्सा ? संमुच्छिममणुस्सा एगागारा पण्णत्ता ॥ २१४. कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते जहा पण्णवणाए जाव' अंतोमुत्तद्धाउया चेव कालं पकरेंति । सेत्तं समुच्छिममणुस्सा ॥ २१५. से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा ? गम्भवक्कंतियमणुस्सा तिविधा पण्ण ता, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। २१६. से किं तं अंतरदीवगा ? अंतरदीवगा अट्ठावीसतिविधा' पण्णत्ता, तं जहा १. कित्तियामओ (ता)। २. कहमेतं (ख); कधमेतं (ता)। ३. तं चेव सव्वं उच्चारेयव्वं (ता)। ४. अस्यां तृतीयप्रतिपत्ती तिर्यग्योन्यधिकारे द्वितीयोद्देशकः समाप्तः (मवृ)। ५. पण्ण ० ११८४ 1 द्रष्टव्यं अस्यैव सूत्रस्य प्रथम प्रतिपत्तेः १२७ सूत्रम् । ६. अट्ठावीसविहा (क, ट)। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्हिडिवत्ती water' आभासिता साणिया गंगूलिया' हथकण्णा' गयकण्णा गोकण्णा सक्कुलिकण्णा आयंसमुहा में ढहा अयोमुहा गोमुहा आसमुहा हत्थिमुहा सीहमुहा वग्घमुहा आसकण्णा सोहकण्णा अण्णा कृष्णपाउरणा उक्कामुहा मेहमुहा विज्जुमुहा विज्जुदंता धणदंता लट्ठदंता गूढदंता सुद्धदंता ॥ २१७. कहिणं भंते! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं' एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'उत्तरपुरत्थि मिल्लाओ चरिमंताओ" लवणसमुद्दे तिण्णि जोयणसयाई ओगहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते - तिष्णि जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं णव एगूणपणे" जोयणसए किंचि विसेसेण परिक्खेवेणं । सेणं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं च वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते । 'वण्णतो पउमवरवेइया-वणसंडाणं जाव तत्थ गं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति" सयंति चिट्ठेति णिसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कोलंति मोहंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहति || २१८. एगोरुयदीवस्स णं भंते ! केरिसए आगार भावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! १. एगुरूया ( ट ) | २. गंगोली ( क, ख, ग, ट ) ; गंगोलिया ( ठाणं ४१३२१) । ३. कण्णगाव (क, ख, ग, ट ); ह्न इति चतुः संख्यासूको वर्णोति । अग्रिमपदेष्वपि एष दृश्यते । २८६ 0 ४. आतंस (ट) ; आस (ता) | ५. एगूरु (क, ख, ता ); एकूरुय (ट) । ६. पुरथिमिल्लातो चरिमंतातो उत्तरपुरत्थि मे णं (ar) 1 ७. य अउणावणे ( ता ) ! ८. चिम्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'ता' प्रति मलयगिरिवृत्ति च मुक्त्वा अन्येषु आदर्शेषु विस्तृतः पाठोस्ति साणं परमवरवेदिया अद्ध (केषुचिद् आदर्शेषु 'अट्ट' इति पदं लिखितमस्ति --- तदशुद्धम् ) जोयणाई उड्दं उच्चत्तेणं पंच धणुसयाई विक्खंभेण एगोरुयदीवं समंता परिवखेवेणं पण्णत्ता । तीसे णं परमवरवेदियाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया गिम्मा एवं वेतियावण्णओ जहा रायसेन इए तहा भाणियव्वो । सा णं पउभवरखेतिया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता । सेणं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवाल विक्खभेणं वेतियासमेणं परिवखेवेणं पण्णत्ते से णं वणसंडे किन्हे किण्होभासे, एवं जहा रायपसेणइयवणसंडवण्णओ तहेव निरवसेसं भाणियच्वं तणा गंध फासो सद्दो तणाणं वावीओ उप्पायपव्वया पुढविसिलापट्टगा य भाणितव्वा जाव तत्थ णं बहवे वाणमंत देवाय देवीओ य आसयंति जाव विहरति । रायपसेणइयसूत्रे एतत् प्रकरणं १८६ - २०१ सूत्रेषु लभ्यते । मलयगिरिणा अस्यैव सूत्रस्य प्रकरणदर्शनार्थं सूचितम् - तत्र पद्मववेदिकावर्णको वनपण्डवर्णश्च वक्ष्यमाणजम्बूद्वीपजगत्युपरिपद्मव श्वेदिक वन षण्डवर्णकवद् भावनीयः । स च तृतीयप्रतिपत्तौ देवाधिकारे प्रथमोद्देशके वर्तते । सं०पा० – आसयति जाव विहरति । Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जीवाजीवाभिगमे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेति वा', उत्तरकुरुगमो १. अतोग्रे वाचनाद्वयं लभ्यते ताडपत्रीयादर्श वृत्तिद्वये च एको रुकवक्तव्यता अत्र संक्षिप्तास्ति उत्तरकुरुवक्तव्यताये (प्रतिपत्ति ३१५७८-६३१) समर्पितास्ति । शेषादर्शषु अत्र पूर्णः पाठोस्ति उत्तरकुरुप्रकरणे च संक्षिप्तः । तद्वक्तव्यता एकोहकवक्तव्यताये समर्पितास्ति । 'ता' प्रतेवतिद्वयस्याधारण पूर्ववतिसूत्रवत् संक्षिप्तवाचनात्र स्वीकृतास्ति । विस्तृतवाचनायां प्रस्तुतसूत्रे पाठसमर्पण मेवमस्ति-- एवं सयणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ बहवे एगोरुयदीवया मणुस्सा य मणुस्सीओ य आसयंति जाव विहरति । एगोश्यदीवेणं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहिं २ बहवे उद्दालका मोद्दालका कोहालका कतमाला णट्रमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणा उसो ! कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला भूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहि य पुप्फेहि य अच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अतीव-अतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिठ्ठति । एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ रुक्खा बहवे हेरुयालवणा भेरुयालवणा मेरुयालवणा सेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्तपण्णवणा पूयफलिबणा खजूरिवणा णालिएरिवणा कुसविकुसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे मं तत्थ बहवे तिलया लवया नग्गोहा जाव रायरुक्खा णंदिरुक्खा कुस विकसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे गं तत्थ बहूओ पउमलयाओ नागलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ एवं लयावष्णओ जहा उववाइए जाव पडिरूवाओ। एगोरुयदीवे णं तत्थ बहवे सेरियागुम्मा जाव महाजातिगुम्मा । ते णं गुम्मा दसवण्णं कुसुमं कुसुमेंति जेणं वायविहुयग्गसाला एगोरुयदीवस्स बहुसमरमणिज्जभूमिभागं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति । एगोरुयदीवे णं तत्थ बहुओ वणराईओ पष्णताओ। ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव रम्माओ महामेहणिगुरुंबभूताओ जाव महंती गंधद्धणि मुयंताओ पासादीयाओ। एगोरुयदीवे तत्थ बहवे मत्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से चंदप्पभ-मणिसिलाग-दरसीध-पवरवारुणि-सुजातफल-पत्त-पुष्फ-चोय-णिज्जाससार-बहुदव्व जत्तीसंभार-कालसंधियासवा महमेरग-रिट्राभ-दुद्धजाति-पसन्न-तेल्लग-सताउखजू रमुद्दियासार-कविसायण-सुपक्कखोयरसवरसुरा-वण्ण - रसगंधफरिसत्त-बलवीरियपरिणामा मज्जविधी य बहुप्पगारा तहेव ते मत्तंगयावि दुमगणा अणेगबहविविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहिं पुण्णा विव विसट्टति कुसविकुस विसुद्धरुक्खमूला जाव चिठ्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ बहवे भिगंगा णाम दुमगणा पण्णता समणाउसो ! जहा से वारगघडकरगकलसकारिपयंचाणिउल्लंकवद्धणिसुपइटुकविट्ठपारीचसभिंगारक रोडिसरंगपरगपत्ता घोसगाणल्लग बलियअवपदकगवालकाविचित्तवटकमणिवट्टकसिप्पिरवोरपिणया कंचणमणि रयणभत्तिविचित्सा भाजणविही बहप्पगारा तहेव ते भिगंगयावि दुमगणा अणेगबहविविहवीससापरिणताए भाजणविहीए उववेया फलेहिं पुण्णावि विसति कुसविकुस जाव चिट्ठति ! एगुरुयदीवे गं तत्थ ५ बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से आलिंगपणवपडहदद्दरकरडिडिडिमभंभातहोरंभकणियखरमुहिमुयंगसंखियपरिल्लयपध्वगापरिवायणिवंसवेणुवीणा सुघोसगविपचिमहतिकच्छविरिकिसतकतलतालकंसालतालकसंपउत्ता आतोज्जविधी य णिउणगंधव Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती २९१ समयकुसलेहि फंदिया तिढाणकरणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससापरिणयाए ततघणझुसिराए चउम्विहाए आतोज्जविहीए उववेया फलेहि पुण्णा विव विसटति कुसविकुस जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ बहवे दीवसिहा पाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से संझाविरागसमए नवणिहिपतिणेवदीवियाचक्कवाल विदे पभ्यवट्रिपलित्तणेहिं वणिउज्जालियतिमिरमदए कणगणिगर कुसुमियपारिजायघणप्पगासे कंचणमणि रयणविमलमहरिहतवाणिज्जुज्जलविचित्तदंडाहिं दीवियाहिं सहसापज्जालिऊसवियणिद्धतेयदिप्पंतविमलगहगणसमप्पहाहि विति मिरक रसूरपसरिउज्जोवचिल्लियाहिं जालाओज्जलपहसियाभिरामाहिं सोभमाणे तहेव ते दीवसिहावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया फलेहि कुसविकुस जाव चिट्ठति । ए गुरुयदीवे णं तत्थ ५ बहवे जोइसिया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से अचिरुग्गयसरयसूरमंडलपडत उक्कासहस्सदिप्यंत विज्जुज्जलयवहनिद्धमजालियनिद्धतधोयतत्ततवणिज्जकिं सुयासोगजवासुपण कुसुमविम उलियजमणिरयणकिरणजच्चहिंगुलुयनियररूवाइरेगरूवा तहेव ते जोति सियावि दुमगणा अणेगबहुविविह्वीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदातवलेस्सा कडा इव ठाणठिया अन्नमन्नसमोगाढाहि लेस्साहि साए पभाए सपदेसे सवओ समंता ओभासंति उज्जोवेति पभासें ति कुस विकुसवि जाव चिट्ठति । एगुरुयदीवे णं तत्थ ५ बहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदः ममालुज्जललेसा भासंतमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलिए विरल्लियविचित्तमलसिरिसमुदयणगल्भे गंथिमवेढिगपूरिम संघाइमेणं मलले छेयासि प्पियविभागरइएण सव्वतो चेव समणुबढे पविरललंबतविप्पइट्रेहि पंचवणेहि कुसमदामेहि सोभमाणे वणमालकतन्मए चेव दिप्पमाणे तहेव ते चित्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मल्लविहीए उववेया कुसविकुसवि जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्य ५ बहवे चित्तरसा णाम दुमराणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से सुगंधवरकलमसालितंदूलविसिटुणिरुवहतदुद्धरद्धे सारयषयगुडखंडमहमेलिए अतिरसे परमणे होज्ज उत्तमवण्णगंधमते रगणो जहा वा वि चक्कवट्टिस्स होज्ज णि उणेहिं सूयपुरिसेहिं सज्जिए चउरकप्पसेयसित्ते इव ओदणे कलमसालिणिव्वत्तिए विपक्के सवप्फमि उविसयसगलसित्थे अणेगसालणगसंजुत्ते अहवा पडिपुण्णदश्ववक्खडे सूसक्कए वण्णगंधरसफरिसजुत्तबलविरियपरिणामे इंदियबलवद्धणे खप्पिवासमहणे पहाणगुलकडियखंडम नछंडिधोवणीएव्व मोयगे सण्हस मियगन्भे हवेज्ज परम इटुगसंजुत्ते तहेव ते चित्तरसावि मगमा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए भोजणविहीए उववेया कुसविकूसवि जाब चिठ्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बर्वे मणियंगा णाम दुमगणा पण्णता समणाउसो ! जहा से हारहारबेट्टणगमउडकुंडलवासुत्तगहेमजालमणिजालकणगजालगसुत्तगउच्चितियक डगखुड्डियएगावालिकंठसुत्तमगरगउरत्थगेबेज्जसेणिगुत्तगचूलागणिकणगतिलग फुल्लग सिद्धत्थियकण्णवालिससिसूरउसभचवक गतलभंगयतुडियहत्थमालगवलक्ख दीगारमालिया चंदसूरमालिया हरिसयकेयूरवलयपालंबअंगुलेज्जगकंचीमेहलाकलावपयरकपायजाल घंटिय खिखिणिरयणोरुजालच्छडियबरणे उरचलणमालिया कणगणिगरमालिया कंचणमणिरयणभत्तिचित्तध्व भूसणविधी बहुप्पगारा तहेव ते मणियंगावि दुमगणा अणेगबहुविविहन Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जीवाजीवाभिगमे वीससापरिणताए भूसणविहीए उववेया कुसविकुस जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे गेहागारा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पागारट्टालगचरियदारगोपुरपासायाकासतलमंडवएगसालगविसालगतिसालगच उसाल गगभघरमोहणघरवलभिघरचित्तसालगमालियभत्तिघरबट्टतसचउरंसणंदियावत्तसंठियायतपंडुरतलमुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागविब्भमसेलद्धसेलसंठियकूडागारेड्ढसुविहिकोट्ठगअणेगघरसरणलेणआवणविडंगजालवंदणिजजूहअपवरककवोतालिचंदसालियरूवविभत्तिकलिता भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारावि दुमगणा अणेगबहुविविधवीससापरिणयाए सुहारुहाणा सुहोत्ताराप सुहनिक्खमणप्पवेसाए दद्दरसोपाणपंतिकलिताए पइरिक्काए सुहविहाराए मणाणुकूलाए भवणविहीए उववेया कुसविकुसावे जाव चिट्ठति । एगोरुयदीवे तत्थ ५ बहवे अणिगणा णामं दुमगणा पण्णता समणाउसो ! जहा से आइणगखोमतगयकंबलदुगुल्लकोसेज्जकाल मिगपट्टचीणंसुयवतत्तावरणातवारवाणगपच्छुन्नाभरणचित्तसहिणगकल्लाणगभिंगमेहलकज्जल बहुवण्णरत्तपीतसुक्किलमक्खयमितलोमहप्फरल्लगअवरतरा सिंधुउसभदामिलवंगकलिंगनलिणतंतुमयभत्तिचित्ता वत्थविही बहुप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणुगता वण्ण रागकलिता तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए उववेया कुस विकुस जाब चिट्ठति ।। एगोरुयदीवे णं भंते ! दीवे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडायारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणया अणुवमतरसोमचाररूवा भोगुत्तमा भोगलक्ख गधरा भोगसस्सिरीया सुजायसव्वंगसुदरंगा सुपइडियकुम्मचारचलणा रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालकोमलतला नगणगरमगरचक्ककहरंकलक्खणंकियचलणा अणुपुव्वसुहायंगुलिया उण्णयतणुतंबणिद्ध णक्खा संठियसुसलिट्ठगूढगुप्फा एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणपुव्वजंघा सामुग्गणिमग्गगूढजाणू गतससणसुजातसण्णिभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलासितगति सुजातवरतुरगगुज्झदेसा आइण्णहतोव्व णिरुवलेवा पमुइयवरतुरगसीहअइरेगवट्टियव डी सोहयसोणिदभूसलदप्पणगिरितवरकणगच्छरुसरिसवरवइरवलितमज्भा उज्जुयसमसंहितसुजातजच्चतणुकसिणणिद्वआदेज्जलडहसुकमालभ उयरमणिज्जरोमराईगंगावत्तयपयाहिणावत्ततरंगभंगुर रविकिरणतरुणबोधियआकोसायंतपउमगंभीरविगडणाभा झसविहगसुजातपीणकुच्छी झसोदरा सुइकरणा पम्हवियडणाभा सण्णयपासा संगतपासा सुदरपासा सुजातपासा मितमाइयपीण रइयपासा अकरुंड्यकणगरुयगनिम्मलसुजातनिरुवह्यदेहधारी पसत्थवत्तीसलक्खणधरा कणगसिलातलुज्जलपसत्थसमतल उवचियविच्छिण्णपिहुलबच्छा सिरिवच्छंकियवच्छा पुरवरफलिहवट्टियभुया भुयगीस रविपुलभोगआयाणफलिहउच्छूढदीहबाहू जुगसन्निभपीणरतियपीवरपउट्ठसंठियउववियघणथिरसुबद्धसुसलिट्ठपध्वसंधी रत्ततलोव इतमउयमंसलपसत्थलक्खणसुजायअच्छिद्दजालपाणी पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुलीया तंबतलिणसुतिरुइणिद्धणक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणि लेहा चंदसरसंखचक्क दिसासोवत्थियपाणिलेहा अणेगवरलक्खणुत्तमपसत्थसुविरइयपाणिलेहा वरमहिसवराहसोहसइ लउसभणागवरविउलउन्नतमइंदखंधा चउरंगुलमुप्पमाणकंबुसरिसगीदा अवठितसुविभत्तसुजातचित्तमंसू मंसलसंठियपसत्थसद्ल विपुलहणुया ओतवितसिलप्पवालबिबफलसन्निभाहरोठा पंडरससिसगल विमलनिम्मलसंखदधिषणगोखीर फेणदगरयमूणालियाधवलदंतसेढी अखंडदंता अफडियदंता अविरलदंता सुसिणिद्धदंता सुजातदंता एगदंतसे ढिव्व अगदंता हेतवहनिद्धतधोततत्ततवणिज्जरततलतालुजीहा गरुलायतउज्जुतंगणासा अवदालियपोंडरीकणयणा कोकासितधवलपत्तलच्छा Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विहपडिवत्ती आणमिचावरुइल किण्हपूराइयसंठिय संगतभयतसुजाततणूकसिणनिद्धभूमया अल्लीणप्पमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोल देसभागा अभिरुग्गयबालचंद संठियपसत्यविच्छिन्नसमणिडाला उडुवतिपडिपुण्णसोमवदणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्णय कूडागा रणिभपिंडिय सिरा हृतवह्निर्द्धतधोततत्ततवणिज्ज के संत केराभूमी सामलिपोंडघणणिचियछोडियामिउविसयपसत्थ सुहुम लवखसुगंधसुंदर भुयमोयगभिगणील कज्जल पहट्टभम रगणिणिद्धणिकुरूंबनिचियकुचियपयाहिणावत्तमुद्धसिरया लक्खणर्वजण गुणववेया सुजायसुविभत्तसंगतंगा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिख्वा । ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिधोसा सीहस्सरा सीहघोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा मुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा छायाउज्जोतियंगमंगा वज्जरिसभनारायसंघयणा समचउरंससठाणसंठिया सिणद्धछवी णिरायंका उत्तमपसत्य अइसेसनिरुवमतणू जल्ल मलकलंक सेयरयदो सर्वाज्जियसरीरा निरुवमलेवा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कत्रोतपरिणामा सउणीपोसपिट्ठत रोरुपरिणता विग्गहिय उन्नयकुच्छी पउप्पलसरिसगंधणिस्सास सुरभिवयणा अट्ठधणुसयऊसिया तेसि मणुयाणं चउसट्टी पिट्टिकरंडगा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं मणुया गतिभहगा पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणुको हमाणमायालोभा मिउमद्दवसंअलीणा भद्दगा विणीया अपिच्छा असंनिहिसंचिया अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! पण्णा तेसि णं भंते ! मणुयाणं केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ? गोयमा ! चउत्थभत्तस्स आहारट्ठे समुपज्जति । एगोरुयमणुईणं भंते ! केरिसए आगारभाव पडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओं णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता अच्चतविसप्पमाणपरमसूमाल कुम्मसंठितविसिद्धचलणा उज्जुमउयपीवर निरंतरपुट्ठसुसाहत चलणंगुलीओ अच्चुण्णयरतियतलिणित बसुतिषिद्धणखा रोमरहियवट्टलसंठियअजहण्णप सत्थल क्खणअकोप्पजं घजुतला सुम्मिय सुगूढजाणुमंसल सुबद्धसंधी कयलिक्खंभातिरेगसंठियणिव्वणसूमालमउयकोमलअविरल संहत सुजात वट्टपीव रणिरंतरोरू अट्ठावयवीचि (दीवि-क) पट्टसं ठियपसत्थविच्छिन्नपिहुलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणित विसाल मंसल सुबद्धजहणवरधरणीओ वज्जविराइयपसत्थलक्खणनिरोदरा विविलियतगुणमियम ज्झिमा मो उज्जुयसमसंहितजच्चतणुक सिणणिद्ध आदेज्जल डहसुविभत्त सुजात सोभंत रुइल रम णिज्ज रोम राई गंगावत्तय याहिणावत्ततरंगभंगुर र विकिरणतरुणबोधियआकोसाइंतप उमगंभीर विगडणाभी अणुब्भडपसत्थ पोणकुच्छी सण्णयपासा सगयपासा सुजायपासा मियमाईयपीण रइयपासा अकरुंडय कणगरुयगनिम्मलसुजायणिरुवगात लट्ठी कंत्रणकलसाय माणसमसंहियसुजातलट्ठचूचुयआमेलगजमलजुगलवट्टिय - अच्चुण्णय रतियसंठियपयोधराओ भुजंग अणुपुव्वतणु यगोपुच्छ वट्टसमस हियणमियआइज्जललियवाहा तंवणहा मंसलग्महत्या पोवरकोमलवरंगुलीओ विद्धपाणिलेहा रविस सिसंखचक्क सोत्थियविभत्तसुविरतियपाणिलेहा पीणुण्णय कक्खवक्खवत्थिष्पदेसा पडिपुण्णगलकवोला चउरंगुल सुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा मंसलसंठियपसत्थहणुगा दालिमपुप्फप्पगःसपीवरपलंबकुंचियवगधरा सुंदरोत्तरोट्ठा दधिदगरयचंदकुंदवासंतिम उलअच्छि विमलदसणा रत्तुप्पलपत्तमउयसूमालतालुजीहा कणयरमउलअकुडिल अब्भुग्गयउज्जुतुंगणासा सारयणव कमलकुमुद कुवलयविम उलदल णिग रस रसलक्खणअं कियकंतणयणा पत्तलधवलायततंबलोयणाओ आणामितचावरुइल किण्हन्भ राइसठियसंगतआययसुजाय २६३ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जीवाजीवाभिगमे तणुकसिणणिद्धभुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमटरमाणिज्जगंडलेहा चउरंसपसत्थसमणिडाला कोमुतिरयणिकरविमलपडिपुण्णसोम्मवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुडिलसुसिणिद्धदीहसिरया छत्तज्झयजूवथूभदामिणिकमंडलुकलसवाविसोत्थियपडागजवमच्छकुम्मरहवरमगरसुकथालअंकुसअट्ठावयवीईसुपइट्ठकमऊरसिरियाभिसेयतोरण मेइणि उदधिवरभवणगिरिवरआयसललियगय . उसभसीहचमरउत्तमपसत्यवत्तीगलक्खणधरीओ हंससरिसगईओ कोइलमहरगिरसूस राओ कताओ सव्वस्स अणुमयाओ ववगयवलिपलियवंगदुव्वण्णवाहीदोभग्गसोगमुक्का उच्चत्तेण य नराणथोवूणमूसियाओ सम्भावसिंगारचारुवेसा संगतहसियभणियचेट्ठियविलाससलावणिउणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथणजहणवयणक रचरणणयणलावण्णवण्णरूवजोवणविलासकलिया नंदणवण विवरचारिणीउव्व अच्छराओ अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाइतातो दरिसणिज्जातो अभिरुवाओ पडिरूवाओ। तासि णं भंते ! मणुईण केवतिकालस्स आहारछे समुप्पज्जति ! गोयमा ! च उत्थभत्तस्स आहार? समुप्पज्जति । ते णं भंते ! मणुया किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! पुढविपुष्फफलाहारा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए अस्साए पश्णते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेति वा खंडेति वा सक्कराति वा मच्छंडियाति वा भिसकंदेतिवा पप्पडमांततेति वा पुप्फउत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा अकोसिताति वा विजताति वा महाविजयाइ वा पायसोवमाइ वा उवमाइ वा अणोवमाइ वा चउरक्के गोखीरे चउठाणपरिणए गुडखंडमच्छंडिउवणीए मंदग्गिकढिए वण्णणं उववेए जाव फासेणं, भवेतारूदे सिता ? नो इणट्टे समझें । तीसे णं पुढवीए एत्तो इयराए चेव जाव मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते ।। तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए अस्साए पण्णत्ते? गोयमा! से जहानामए रणो चाउरंतचक्रवट्टिस्स कल्लाणे पवरभायणे सतसहस्सनिष्फन्ने वरुण उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फारोणं उववेए अस्सायणिज्जे वीसायणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे बीहणिज्जे भयणिज्जे सविदियगातपल्हायणिज्जे भवेतारूवे सिता? जो तिणठे समठे । तसि ण पुप्फफलाणं एत्तो इतराए चेव जाव अस्साए णं पण्णत्ते । ते णं भंते ! मणुया तमाहारेत्ता कहि वसहि उवेति ? गोयमा ! रुक्खगेहालता णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं भंते ! रुक्खा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! कूडागारसंठिता पेच्छाघरसंठिता छत्तागारसंठिता झयसंठिया थूभसंठिया तोरणसंठिया गोपुरवेतियपालगसंठिया अट्टालगसंठिया पासायसंठिया हम्मितलसंठिया गवक्खसंठिया वालग्गपोतियसंठिया अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासणविसिट्रसंठाणसंठिया सुभसीतलच्छाया णं ते दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! अत्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे गेहाति गेहाययणाति वा? णो तिणठे समझें ! रुक्खगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे २ गामाति वा गराति वा जाव सन्निवेसाति वा ? यो तिणठे समठे। जहच्छियकामगामिणो णं ते मणयगणा पणत्ता समणाउसो! अत्थि णं भंते ! एमरुयदीवे असीति वा मसीइ वा विवणीइ वा पणीइ वा वाणिज्जाइ वा ? नो तिणठे समठे। ववगयअसिमसिकिसिविवणिवणिज्जा णं ते मणयगणा पण्णता समणाउसो ! Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चलम्बिहपडिवत्ती २६५ अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे हिरण्णेति वा सुवण्णेति वा कंसेति वा दूसेति वा मणीति वा मूत्तिएति वा विपलधणकणगरतणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालसंतसारसावएज्जे वा? हता अस्थि । णो चेव ण तेसि मणयाणं तिव्वे ममत्तिभावे समुप्पज्जति । अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे रायाति वा जुवरायाति वा ईसरेति वा तलवरेइ वा मांडबिएति वा कोडबिएति वा इन्भेति वा सेट्टीति वा सेणावतीति वा सत्थवाहेति वा? णो तिणटठे समटठे। ववगयइडिहसक्कारा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगूरुयदीवे २ दासाइ वा पेसाइ वा सिस्साइ वा भयगाइ वा भाइल्लगाइ वा कम्मगराइ वा भोगपुरिसाइ वा ? नो इणछे समठे। ववगयआभिओगिया णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो! अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे माताति वा पियाति वा भायाति वा भइणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा ध्याइ वा सुण्हाति वा? हंता अन्थि । नो वेव णं तेसि णं मणयाणं तिब्वे पेज्जबंधणे समुप्पज्जति, पयणपेज्जबंधणा गं ते मण्यगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते । एगोरुयदीवे अरीति वा वेरियाति वा घायगाति वा वहगाति वा पडिणीइ वा पच्चमित्ताति बा ? णो इणठे समझें । ववयगयवेराणुबंधा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते । एगोरुयदीवे मित्ताति वा वतंसाति वा घडिताति वा सहीति वा सुहियाति वा महाभागाति वा संगतियाति वा ? नो तिणठे समझें। ववगतपेम्मा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणउसो! अत्थि णं भंते एगोरुयदीवे आवाहाति वा विवाहाति वा जन्नाति वा सद्धाति वा थालियाकाति वा चोलोवणतणाति वा सीमंतोवणतणाइ वा पितिपिडनिवेयणाई वा? णो इणठू सम। ववगयभावाहविवाहजन्नसद्धथालिपागचोलोवणतणसीमंतोवणतणपितिपिंडनिवेदणा णं ते मण्यगणा पण्णत्ता समणाउसो। अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे २ इंदमहाइ वा रुद्दमहाइ वा खंदमहाइ वा सिवमहाइ वा वेसमणमहाइ वा मुगुदमहाइ वा नागमहाइ वा जक्खमहाइ वा भूतमहाइ वा कूवमहाइ वा तलागणदिमहाइ वा दहमहाइ वा पन्वयमहाइ वा चेइयमहाइ वा रुक्खंसियणमहाइ वा धूभमहाइ वा ? णो इणठे समठे । ववगयमहामहिमा णं ते मणुयगणा पण्णता समणाउसो ! अस्थि ण भंते एगोरुयदीवे दीवे नडपिच्छाइ वा णट्टपेच्छाइ वा मल्लपेच्छाइ वा मुट्टियपेच्छाइ वा विडंबगपेच्छाइ वा कहगपेच्छाइ वा पबगपेच्छाइ वा अक्खाइगपेच्छाइ वा लासगपिच्छाइ वा लखपे० मंखपे० तूप इल्लपे० तुंबवीणपेच्छाइ वा मागहमेच्छाइ वा कावपे० जल्लपि० कहयापेच्छाइ वा ? णो इणछे समझें । ववगयकोउहल्ला णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीचे सगडाइ वा रहाइ वा जाणाइ वा जुगाइ वा गिल्लीइ वा पिल्लीइ वा थिल्लीइ वा पवहणाइ वा सीयाइवा संदमाणियाइ वा ? णो तिणठे समठे। पादचारविहारिणो णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे आसाइ वा हत्थीइ वा उट्टाइ वा गोणाइ वा महिसाइ वा खराइ वा अबीइ वा एलगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति । अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे गोवीइ वा महिसीइ वा उट्टीइ वा अयाइ वा एलगाइ वा ? हंता Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ जीवाजीवाभिगमे अस्थि । नो चेव णं तेसि मणयाणं परिभोगत्ताए हवामागच्छति । अस्थि णं भंते एगुरुयदीवे दीवे सीहाइ वा वग्घाइ वा दीवियाइ वा अच्छाइ वा परस्सराइ वा सियालाइ वा विडालाइ वा सुणगाइ वा कोलसुणगाइ वा कोकंतियाइ वा ससगाइ वा चित्तलाइ वा चिल्ललगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं ते अश्णमण्णस्स तेसि वा मण्याणं किंचि आवाहं वा पवाहं वा उप्पायंति छविच्छेयं वा करेंति ! पगइभद्दगा ण ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि गं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे सालीइ वा वीहीइ वा गोहुमाइ वा उक्खूइ बा जवाइ वा तिलाइ वा? हंता अस्थि । नो चेव गं ते सि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति । अस्थि णं भंते एगोरुयदीवे दीवे गत्ताइ वा दरीइ वा पाइ वा घंसीइ वा भिगूइ वा उवाएइ वा विसमेइ वा विजलेइ वा धूलीइ वा रेणूइ वा पंकेइ वा चलणीइ वा ? भो इणठे समठे। एगूरुयदीवे णं दीवे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगरुयदीवे दीवे खाणूई वा कंटएइ वा हीरएइ वा सक्कराइ वा तणपत्तक यवराइ वा असुई वा पूईआति वा दुब्भिगंधाइ वा अचोक्खाइ रा ? णो इणद्वै समठे। बवगयखाणुकंटकहीरसक्करतणकयवरअसुइपूइयदुभिगंधमचोक्खवज्जिए णं एगोरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे दंसाइ वा मसगाइ वा पिसुगाइ वा जूबाइ वा लिक्खाइ वा ढिकुणाइ वा ? णो तिणछे समझें । ववगयदसमसगपिसुतजूतलिक्खढिकुणपरिवज्जिए णं एगुरुयदीवे पण्णत्ते समणाउसो ! अत्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे अहीइ वा अयगराइ वा महोरगाइ वा ? हंता अस्थि । नो चेव णं ते अन्तमन्नस्स तेसि वा मयाणं किंचि आवाहं वा पवाहं वा छविच्छेयं वा पकरेति । पगइभद्दमा णं ते वालगणा पण्णता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे गहदंडाइ वा गहमुसलाइ वा गहगज्जियाई वा गहजुद्धाइ वा गहसंघाडगाइ वा गहअवसव्वाइ वा अब्भाइ वा अब्भरुक्खाइ वा संझाइ वा गंधव्वनगराइ वा गज्जियाइ वा विज्जुयाइ वा उक्कापायाइ वा दिसादाहाइ वा निग्घाताइवा पंसुविट्ठीति वा जूवागाइ वा जक्खालित्ताइ वा धूमियाइ वा महियाइ वा रउग्घायाइ वा चंदोवरागाइ वा सूरोवरागाइ वा चंदपरिवेसाइ वा सूरपरिवेसाइ वा पडिचंदाइ वा पडिसुराइ वा इंदधणूइ वा उदगमच्छाइ वा अमोहाइ वा कविहसियाइ वा पाईणवायाइ वा पहीणवायाइ वा जाव सुद्धवायाइ वा गामदाहाइ वा नगरदाहाइ वा जाव सण्णिवेसदाहाइ वा पाणक्खयजणक्खयकुलक्खयधणक्खयवसणभूतमणारियाइ वा ? णो इणछे समठे। अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे डिबाइ वा डमराइ वा कलहाइ वा बोलाइ वा खाराइ वा वेराइ वा विरुद्धरज्जाइ वा? जो इणठे समठे। ववर्याडबडमरकलहबोलखारवेरविरुद्धरज्जविवज्जिया णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो! अस्थि ण भते ! एगुरुयदीवे दीवे महाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपहाणाइ वा महारुधिरपडणाइ वा नागवाणाइ वा खेणवाणाइ वा तामसवाणाइ वा दुभूइयाइ वा कुलरोगाइ वा गाम रोगाइ वा णगररोगाइ वा मंडल रोगाइ वा सीसवेयणाइ वा अच्छिवेयणाइ वा कण्णवेयणाइ वा नक्खवेयणाइ वा णक्कवेयणाइ वा दंतवेयणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ वा जराइ वा दाहाइ वा कच्छुइ वा कुटाइ वा दगोवराइ वा अरिसाइ वा अजीरगाइ वा भगंदलाइ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती तव्वो जाव मणुस्साणं अणुसज्जणा णाणत्तं - अदूधणुसयऊसित्ता, चोउट्ठि पिट्टिकरंडगा, एगुणासीति रातिदियाई अणुपालेति, ठिती जहणणेणं पलिओ मस्स असंखेज्जतिभागं पलिओ मस्स असंखेज्जतिभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं || २१६. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपुरथिमिल्लेणं" लवणसमुदं तिष्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं आभासियमणुस्साणं आभासियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगूरुयान' || वाइंदग्गहाइ वा खंदग्गहाई वा कुमारग्गहाइ वा नागग्गहाइ वा जक्खग्गहाइ वा भूयग्गहाइ वा उब्वेवग्गहाइ वा धणुग्गहाइ वा एगाहियाइ वा बेयाहियाइ वा तेयाहियाइ वा चात्यगाहियाइ वा हिययसूलाइ वा मत्यगसुलाइ वा पाससुलाइ वा कुच्छिसुलाइ वा जोणिसूलाइ वा गाममारोह वा जाव सन्निवेसमारोह वा पाणक्य जाव वसणभूतमणायरिय वा ? णो इणट्ठे समट्ठे । ववगयरोगायंका णं ते मणूयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! अस्थि णं भंते ! एगुरुयदीवे दीवे अइवासाइ वा मंदवासाइ वा सुवुट्टीय वा मंदबुद्वीय वा उदवाहाइ वा पवाहा वा दगुब्भेयाइ वा दगुप्पीलाइ वा गामवाहाइ वा जाव सन्निवेसवाहाइ वा पाणवखय जाव वसणभूतमणारियाद वा ? णो इणट्ठे समट्ठे ! ववगयदगोवह्वा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! २६७ अस्थि णं भंते! एगुरुयदीवे अयागराइ वा तंबागराइ वा सीसागराइ वा सुवण्णागराइ वा रयणागराइ वा वइरागराई वा वसुहाराइ वा हिरण्णवासाइ वा सुवण्णवासाइ वा रयणवासाइ वा वइरवासाइ वा आभरणवासाइ वा पत्तवासाइ वा पुष्कवासाइ वा फलवासाइ वा बीयवासाइ वा गंधवासाइ वा मल्लवासाइ वा वण्णवासाइ वा चुण्णवासाइ वा खीरखुट्टीति वा रयणवट्ठीति वा सुवण्णवट्टीति वा तहेव जाव चुण्णवुट्टीति वा सुकालाइ वा दुक्कालाइ वा सुभिक्खाइ वा दुभिक्खाइ वा अप्पग्घाइ वा महग्घाइ वा कयाइ वा विक्कयाइ वा अणिहीइ वा संचयाइ वा निधीइ वा निहाणाइ वा चिरपोराणाइ वा पहीणसामियाइ वा पहीणसेउयाइ वा पहीणगोत्तागराई जाई इमाई गामागरण गरखेड कब्बडम बदोण मुहपट्टणाम मसंवाहसन्निवे सेसु सिंघाडगतिगच उक्कचच्चरच उम्मुह महापहपहेसु नगरनिद्धमणसुसाणगिरिकंदर संति सेलोवद्वाणभवणगिहेसु सन्निविखत्ताई चिट्ठति ? णो इणट्ठे समट्ठे । एगुरुयदीवे णं भंते ! दीवे मणुवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहनेणं पलिओोवमस्स असंखेज्जइभागं असंखेज्जतिभागेणं ऊणगं उनकोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागं । ते णं भंते! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छेति कहि उववज्जंति ? गोयमा ! ते णं मा छम्मासावसेसाज्या मिहुणयाई पसवंति अउणासीइं राईदियाई मिहुणाई सारक्खति संगोवंति य, सारविखत्ता २ उस्ससित्ता निस्ससित्ता कासिता छीतित्ता अक्किट्टा अव्वहिया अपरियाविया सुहसणं कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति देवलोगपरिग्गहिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! १. दाहिणपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख, ग, ट) २. या निरवसेसं सव्वं ( क, ख, ग, ट ) | Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जीवाजीवाभिगमे २२०. कहिणं भंते ! दाहिणिल्लाणं गंगोलियमणुस्साणं 'णंगोलियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते" ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चुल्ल हिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'पच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपच्च थिमिल्लेणं" लवणसमई तिणि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णंगोलियमणुस्साणं णंगोलियदीवे णाम दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगुरुयाणं । २२१. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं वेसाणिय दीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं चुल्ल हिमवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपच्वत्थि मिल्लेणं" लवणसमुई तिष्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं वेसाणियमणुस्साणं वेसाणियदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा एगूरुयाणं ।। २२२. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणुस्साणं हयकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! एगूरुयदीवस्स 'पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपुरथिमिल्लेणं लवणसमई चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं हयकण्णमणस्साणं हयकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते-चत्तारि जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं बारस 'पण्ण? जोयणसया" किंचिविसेसाहिया' परिक्खेवेणं, सेसं जहा एगूरुयाणं ।। २२३. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं गयकण्णमणुस्साणं गयकण्णदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! आभासियदीवस्स 'पुरथिमिल्लाओ चरिमं ताओ दाहिणपुरत्थिमिल्लेणं" लवणसमुदं चत्तारि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं गयकण्णमणुस्साणं गयकण्णदीवे णाम दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ॥ २२४. एवं गोकण्णाण वि-- 'गंगूलियदीवस्स पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ दाहिणपच्चत्थिमेणं लवणसमुई चत्तारि जोयणसयाई ओगाहिता, एत्थ णं गोकण्णमणुस्साणं गोकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ।। २२५. सक्कुलिकण्णाणं --'वेसाणियदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरपच्चत्थिमेणं" लवणसमुदं चत्तारि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं सक्कुलिकण्णमणुस्साणं सक्कुलिकण्णदीवे णामं दीवे पण्णत्ते । सेसं जहा हयकण्णाणं ।। १. “क, ख, ग, ट" आदर्थेषु 'वेसाणिय' सूत्रानन्तरं ७. किंत्रिविसेसूणा (क, ख, ग, ट) । ‘णंगोलिय' सूत्रं विद्यते। ८. से गं एगाए पउमवरवेइयाए अवसेसं (क, ख, २. पुच्छा (क, ख, ग, ८)। अग्रिमसूत्रेष्वपि । ग,ट)। ३.५. उत्तरपूरस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख, ६. दाहिणपुरस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख. ग, ट)। ग, ट)। ४. दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ (क, ख, १०. वेसाणियदीवस्स दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ ग, ट)। चरिमंताओ (क, ख, ग, ट)। ६. जोयणमया पन्नट्ठा (क, ख, ग) ; पेंसट्ठी ११. गंगोलियदीवस्स उत्तरपच्चथिमिल्लाओ जोयणसया (ट)। चरिमंताओ (क, ख, ग, ट)। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती २६९ २२६. एवं एएणं अभिलावेणं आवंसमुहादीणं लवणसमुहं पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता, पंच जोयणसयाई आयाम-विक्खं भेणं । आसमुहादीणं छ जोयणसयाई। आसकण्णादीणं सत्तजोधणसयाई । उक्कामुहादीणं अट्ठ जोयणसयाई। घणदंताणं नव जोयणसयाई। संगहणीगाहा पढममि तिण्णि उ सया, सेसाण सतुत्तरा नव उ जाव। ओगाहण - विक्खंभं दीवाणं परिरयं वोच्छं।।१।। १. क, ख, ग, ट' आदर्शषु अतो भिन्ना वाचना लभ्यते----आयंसमुहाणं पुच्छा हयकण्णदीवस्स उत्तरपुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पंच जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं आयंसमुहमणस्साणं आयंसमुहदीवे नाम दीवे पण्णत्ते पंच जोयण सयाई आयाम-विक्खंभेण । आसमुहाईणं छ सया। आसकमाईणं सत्त । उक्कामुहाईणं अटू । घणदंताईणं जाव नव जोयणसयाई। २. अत्र तिस्त्रो वाचना लभ्यते । तत्र वत्तिगता वाचना मुले स्वीकृता। द्वितीया ताडपत्रीयादर्शवाचना, सा चैवम् एगरुयपरिक्खेवो, नव चेव सताइं अउणापण्णाई। बारस पाणदाई, हयकण्णाणं परिक्खेओ ॥१॥ पण्ण रसेक्कासीया, आदसमूहाण परिरयो होति । अट्ठारस्स सत्तणउया आसमुहाणं परिक्खेवो ॥२॥ वावीसं तेराई, परिरयो होति आसकण्णाणं । पणुवीस अउणतीसा, उक्कामुहाणं परिक्खे वो ॥३॥ दो चचेव सहस्साई, अद्वैव सता हवंति पणताला। घणदंतदीवस्स तु, विसेसाधिओ परिक्खेली ॥४॥ अट्ठमया चोवट्ठा, संखातीता य पलियभागा तु। उच्चत्तं पिट्टकरंडगा या आउंच सब्वे सिं ॥५॥ पढ़मंमि तिणि तु राता, सेसाण च उत्तरं णव उ जाव । ओगाहण विक्खंभ, दीवाणं परिरयं वोच्छं ।।६।। पढमचउक्कस्स परिरयो, विततचउक्कस्स परिरयो अहितो। सोलेहिं तिहिं जोयण सतेहिं एमेव सेसाणं ।।७।। ततीया शेषादर्शवाचना विद्यते--- एगुरुयपरिक्खेवो, नव चेव सयाई अउणपन्नाई। वारस पन्नट्ठाई, हयकण्णाण परिक्खेवो ।।१।। आयंसमुहाईणं पन्नरसेकासीए जायणसए किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। एवं एतेणं कमेणं उध्वज्जिय २ जयव्वा । चतारि २ एगप्पमाणा णाणत्तं ओगाहे विक्खंभे परिक्खेवे। पढम वितिय ततिय चउकाणं ओग्गहो विक्खंभो परिवखेवो य भणिओ चउत्थे चउक्के छ जोयणसथाई आयामविक्खंभेणं अट्ठार सत्ताणउए जोयणसए परिक्खेवेणं । पंचमचउक्के सत्त जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं वावीसं तेरसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं । छट्टचउक्के अटू जोयणसयाई आधामविक्खभेणं पणवीसं अगुणत्तीसे जोयणसते परिक्खेवेणं । सत्तमचउक्के गव जोयणसयाई आयाम Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे पढमचउक्कपरिरया, विइयचउक्कस्स परिरओ अहिओ। सोलेहि तिहिं उ जोयणएहिं एमेव सेसाण ॥२॥ एगोरुय परिवखेवो, नव चेव सयाइ अउणपण्णाई। वारस पण्णट्ठाई, हयकण्णाण परिक्खेवो ॥३॥ पण्णरसेक्कासीया, आयंसमुहाणं परिरओ होइ। अट्ठारस सत्तण उया, आसमुहाण परिक्खेवो ॥४॥ बावीसं तेराई, परिक्खेवो होइ आसकण्णाणं ।। पणुवीस अउणतीसा, उक्कामुहपरिरओ होइ ।।५।। दो चेव सहस्साई, अद्वैव सया हवंति पणयाला। घणदंतहीवाणं, विसेसमहिओ परिक्खेवो ।।६।। २२७. कहिं णं भंते ! उत्तरिल्लाणं एगूरुयमणुस्साणं एगुरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वासधरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ 'लवणसमुदं तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं एगूरुयमणुस्साणं एगुरुयदीवे णाम दीवे पत्ते । तहेव' उत्तरेण विभासा भाणितव्वा । से तं अंतरदीवगा" ॥ २२८. से' किं तं अकम्मभूमगमणुस्सा? अकम्मभूमगमणुस्सा तीसविधा पण्णत्ता, तं जहा-पंचहिं हेमवएहिं "पंचहि हिरण्णवरहिं पंचहि हरिवासेहिं पंचहिं रम्मगवासेहिं पंचहि देवकुरूहि पंचहिं उत्तरकुरूहिं । सेत्तं अकम्मभूमगा। २२६. से किं तं कम्मभूमगा? कम्मभूमगा पण्णरसविधा पण्णत्ता, तं जहा-पंचहि भरहेहि पंचहिं एरवएहिं पंचहिं महाविदेहेहिं । ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआरिया मिलेच्छा। एवं जहा पण्णवणापदे जाव' सेत्तं आरिया । सेत्तं गब्भवक्कंतिया । सेत्तं मणुस्सा ।। पब्बतसमं णेयवा उत्तरेणं विभासा भाणितन्या विक्खंभेणं दो जोयणसहस्साइं अठ्ठपण्णत्ताले जोयणसए परिक्खेवेणं । जस्स य जो विक्खभो, ओगाहो तस्स तत्तिओ चेव। पढम पीयाण परिरतो ऊणो सेसाण अहिओ ।।१।। सेसा जहा एगुरुयदीवस्स जाव सुद्धदंतदीवे । देवलोगपरिगहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो। १. जी० ३१२१८-२२६ । २. एवं जहा दाहिणिल्लाणं तहा उत्तरिल्लाणं भाणितव्वं पवरं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स विदिसासु एवं जाव सुद्धदंतदीवेत्ति जाव सेत्तं अंतरदीवगा (क, ख, ग, ट); तहेव सिहरि ३. २२८, २२६ सूत्रयोः स्थाने ताडपत्रीयादर्श भिन्ना वाचना दृश्यते--से किं तं अकम्मभू २ तीसतिविधा पं। कम्म भू पण्णरसविधा ते समानतो दुविधा आरिगा मिल जहा पण्णवणाए पदो जाब अहक्खातचरिय सेत्तं मणुस्सं । ४. सं. पा.--एवं जहा पण्णवमापदे जाव पंचहि । ५ आयरिया (क,ट)। ६. पण्ण० ११८८-१२६ । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउग्विहपडिवत्ती ३०१ देवाधिकारो २३० से' किं तं देवा ? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया बेमाणिया ।। २३१. से किं तं भवणवासी? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता। 'जहा पण्णवणापदे देवाणं भेदो तहा भाणियव्वो जाव सव्वट्ठसिद्धगा" ।। २३२. कहि णं भंते ! भवणवासिदेवाणं भवणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! भवणवासी देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए, एवं जहा पण्णवणाए जाव' भवणा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं सत्त भवणकोडीओ बावतरि भवणावाससयसहस्सा भवंतित्तिमक्खाता। तत्थ णं बहवे भवणवासी देवा परिवसंति-असुरा नाग सुवण्णा य जहा पण्णवणाए जाव' विहरंति ॥ २३३. कहि णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता ? पुच्छा। एवं जहा पण्णवणाठाणपदे जाव' विहरंति ।। २३४. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं असुरकुमारदेवाणं भवणा पुच्छा । एवं जहा ठाणपदे जाव चमरे, एत्थ असुर कुमारिंदे असुरकुमारराया परिवसति जाव' विहरति । २३५. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समिता चंडा जाया । अभितरिया समिता, मज्झिमिया" चंडा, बाहिरिया जाया ॥ २३६. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति 'देवसाहस्सीओ पण्णत्तओ१२ ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णताओ? वाहिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए चउवीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झि मियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसाहस्सीओ पण्णताओ वाहिरियाए परिसाए वत्तीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ १. २३०, २३१ सूत्रयोः स्थाने ताडपत्रीयादर्श (ता)। एवं पाठभेदोस्ति-से किं तं देवा चतुविधा ५. पण्ण० २।३० । तं भवण एक जधा पण्णवणा पदे देवभेदो जाव ६. पण्ण० २१३१ । सव्वदृसिद्धो। ७. तत्थ (क, ख, ग, ८); यत्थ (ता)। २.तं जहा असुरकुमार जहा पण्णवणापदे देवाणं ६. पण्ण. २०३२। भेदो तहा भाणितन्वो जाव अणुतराववाइया ६. महताहतण दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे पंचविधा पण्णत्ता, तं जहा विजयवेजयंत जाव विहरति । उववात समुग्धात संठाणा य भाणिसम्वट्ठसिद्धगा । सेत्तं अणुत्तरोववाइया (क, ख, तवा (ता)। ग,ट)। १०. असुररण्णो (क, ख, ट, ता)। ३. पण्ण० २।३०। ११. मज्झे (क, ख, ग)। ४, भवंति भवणवणतो जहा ठाणपदे जाव १२. देवसहस्सा पण्णत्ता (ता)। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जीवाजीवाभिगमे २३७. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णता ? वाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए अद्भुट्ठा' देविसया पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिण्णि देविसया पण्णत्ता, वाहिरियाए अड्ढा इज्जा देविसया पण्णत्ता ।। २३८. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? मज्झिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? अभितरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवतियं काल ठिती पण्णता? वाहिरियाए परिसाए देवीण केवतिय काल ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झि मियाए परिसाए देवाणं दो पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं दिवडढं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं दिवड्ढं पलिओवमं ठिती पणत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता'। २३६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति--चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं अहा-समिया चंडा जाया। अभितरिया समिया मज्झिमिया चंडा बाहिरिया जाया ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अभितरपरिसा देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, णो अव्वा हिता। मज्झिमपरिसा देवा वाहिता हव्वमागच्छंति, अन्याहितावि ! बाहिरपरिसा देवा अव्वाहिता हन्दमागच्छंति । अदुत्तरं च णं गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया अण्णयरेसु उच्चावएसु कज्ज-कोडंबेसु समुप्पन्नेसु अभितरियाए परिसाए सद्धि सम्मुइ-संपुच्छणावहुले विहरइ, मज्झिमियाए परिसाए सद्धि पयं पवंचेमाणे-पवंचेमाणे विहरति, बाहिरियाए परिसाए सद्धि पयं पचंडेमाणे-पचंडेमाणे विहरति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-चमरस्स णं असुरिंदस्स १. अढाइज्जा (त्रि, मव)। २. अदधदा (त्रि, मव। मलयगिरिबत्ती 'अर्धततीयानि त्रीणि अर्धचतर्थानि' अनेन क्रमेण व्याख्यातमस्ति । हस्तलिखितवृत्तेः त्रिपाठयां प्रतावपिवृत्त्यनुसारी पाठः उपलब्धः । किन्तु मलयगिरिवृत्ती द्वय सङ्गहणीगाथे उद्धृते स्तः, तत्रापि स्वीकृतपाठस्य संवादित्वं लभ्यते-- चउवीसा अट्ठवीसा बत्तीसससस्स देवचम रस्स । अद्भुट्ठातिण्णि तहा अड्ढाइज्जा य देविसया ॥१॥ प्रस्तुताधिकारस्य २४२ सुत्रेपि 'अपंचमा चत्तारि अद्भुट्ठा' एष क्रमो विद्यते, अनेनापि स्वीकृतपाठस्य पूष्टिर्जायते । भगवती (बत्ति पत्र २०२) वृत्ती असुरेन्द्रस्य देवीशतानि स्वीकृतपाठक्रमेण उपलभ्यते--तथा देवीशतानि क्रमेणाध्यूष्टानि त्रीणि साढ़ें च द्वे इति । ३. इह भूयान् वाचनाभेद इति यथाऽवस्थितसूत्रे पाठनिर्णयार्थे सुगममपि सूत्रमक्षरसंस्कारमात्रेण विवियते (मद)। ४. सद्धं (ता)। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती असुरकुमाररण्णो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ---समिया चंडा जाया । अभितरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया ।। २४०. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवणा पण्णता? जहा ठाणपदे जाव बली, एत्थ वइरोणिदे वइरोयण राया परिवसति जाव' विहरति ।। २४१. बलिस्स णं भंते ! वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो कति परिसाओ पण्णताओ? गोयमा ! तिण्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--समिया चंडा जाया । अभितरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, वाहिरिया जाया । २४२. वलिस्स णं भंते ! वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो अभितरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसहस्सा पणत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पणत्ता ? गोयमा ! वलिस्सणं वइरोयणि दस्स वइरोयणरणो अभितरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अद्भुट्ठा देविसया पण्णत्ता ।। २४३. वलिस्स ठितीए पुच्छा जाव वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! बलिस्स णं वइरोर्याणदस्स वइरोयण रण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्धट्ट पलिओवमा ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिण्णि पलिओवमाई.ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं अड्ढाइज्जाइं पलिओवमाई ठिती पण्णता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं दिवढं पलिओवम ठिती पण्णत्ता । सेसं जहा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररणो॥ २४४. कहि णं भंते ! नागकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता? जहा ठाणपदे जाव दाहिणिल्लावि पुच्छियव्वा जाव धरणे, इत्थ नागकुमारिदे नागकुमारराया परिवसति जाव' विहरति ।। २४५. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णताओ? गोयमा ! तिणि परिसाओ, ताओ चेव जहा चमरस्स ।। २४६. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पण्णत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवीसया पण्णत्ता? गोयमा ! धरणस्स गं नागकुमारिदस्स नागकुमाररणो अभितरियाए परिसाए सट्टि देवसहस्साई, मज्झिमियाए परिसाए सत्तरि देवसहस्साई, वाहिरिया ए असीतिदेवसहस्साई, अभितरियाए परिसाए पण्णत्तरं देविसतं पण्णत्तं, मझिभियाए परिसाए पण्णासं देविसतं पण्णत्तं, बाहिरियाए परिसाए पणवीसं देविसतं पण्णत्तं ।। २४७. धरणस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमार रण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? मझिमियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? १. पण्ण० २१३३ । २. पण्ण० २१३४,३५। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जीवाजीवाभिगमे बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? अभितरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता ? बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं सातिरेगं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झि मियाए परिसाए देवीणं सातिरेगं च उन्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं चउभागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो जहा चमरस्स ॥ २४८. कहि णं भंते ! उत्तरिल्लाणं नागकुमाराण भवणा पण्णत्ता? जहा ठाणपदे जाव' विहरति ॥ २४६ भूयाणंदस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररणो अभितरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णताओ ? वाहिरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? अभितरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? मज्झिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोयमा ! भूयाणंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररणो अभितरियाए परिसाए पन्नासं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए सटि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए परिसाए सत्तरि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, अभितरियाए परिसाए 'दो पणवीसं देविसया" पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए दो देवीसया पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए पण्णत्तरं देविसयं पण्णत्तं ॥ २५०. भूयाणंदस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता जाव वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! भूताणंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं देसूणं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवाणं साइरेगं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवमं ठिती पणत्ता. अभितरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं देसणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवीणं साइरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता। अत्थो जहा चमरस्स ! अवसेसाणं वेणुदेवादीणं महाघोसपज्जवसाणाणं ठाणपदवत्तव्वया णिरवयवा' भाणियव्वा, परिसाओ जहा धरण-aian दाहिणिल्लाणं जहा धरणस्स उत्तरिल्लाणं जहा भूताणंदस्स । परिमाणंपि ठितीवि ॥ २५१. कहि णं भंते ! वाणमंतराणं देवाणं 'भोमेज्जा णगरा" पण्णत्ता ? जहा ठाण१. पण्ण० २।३६ । ५. जी० ३।२४६,२४७ ॥ २. पणुवीसा दो देविसता (ता)। ६. जी० ३।२४८,२४६ । ३. x (मवृ) । ७. भवणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४, पण्ण० २।३७-४०। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विपडिवत्ती पदे जाव' विहति ॥ २५२. कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं भोमेज्जा नगरा पण्णत्ता ? जहा ठाणपदे जाव विहरति, काल महाकाला य तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाव' विहरति ॥ २५३. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं पिसायकुमाराणं जाव विहरंति, काले य एत्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महिड्डिए जाव' विहरति ॥ २५४. कालस्स णं भंते! पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तिष्णि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-ईसा तुडिया दढरहा । अभितरिया ईसा, मज्झिमिया तुडिया, बाहिरिया दढरहा || २५५. कालस्स मं भंते! पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरपरिसाए कति देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? गोमा ! कालस्स णं पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए अट्ट देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरिया परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, अब्भितरियाए परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं, 'एवं तिसुवि" ॥ २५६. कालस्स णं भंते ! पिसायकुमाररिदस्स पिसायकुमाररण्णो अब्भितरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? मज्झिमिया परिसाए देवाणं केवतिय कालं ठिती पण्णत्ता ? बाहिरियाए परिसाए देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता जाव बाहिरिया परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! कालस्स णं पिसायकुमारिदस्स पिसायकुमाररण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओदमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमिया परिसाए देवाणं देणं अद्धपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, अब्भंतरियाए परिसाए देवीणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं भागपलिओ मंठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं देणं चउब्भागपलिओव ठिती पण्णत्ता, 'अट्ठो जो चेव चमरस्स । एवं उत्तरिल्लस्सवि, एवं गिरंतरं जाव' गीयजसस्स ॥ २५७. कहि णं भंते! जोतिसियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! जोतिसिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तणउए जोयणसते उड्ढं उप्पतित्ता दसुत्तरजोयणसय १. पण्ण० २१४१ 1 २. पण ० २।४२ । ३. पण्ण० २।४३ । ४. कुमार रायस्स ( ट ) | ५. मज्भिमियाए परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं ३०५ बाहिरियाए परिसाए एवं देविसतं पण्णत्तं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. पण्ण. २।४५। ७. एवं सोलसहविवंतरिदाणं ( ता ) । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ जीवाजीवाभिगमे वाहल्ले', एत्थ णं जोतिसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोतिसियविमाणावाससतसहस्गा भवंतीतिमक्खायं । ते णं विमाणा अद्धक विटकसंठाणसंठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिम-सूरिया य, एत्थ णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो परिवसंति महिडिढया जाव' विहरंति ॥ २५८. चंदस्स' णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरणो कति परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तिणि परिसाओ पण्णताओ, तं जहा -तुंबा तुडिया पव्वा । अभितरिया तुवा, मज्झिमिया तुडिया, वाहिरिया पव्वा । सेसं जहा कालस्स परिमाणं, ठितीवि । अट्ठो जहा चमरस्स । एवं सूरस्स वि !! __ दीवसमुद्दवत्तवयाधिकारो २५६. कहि णं भंते ! दीवसमुद्दा ? केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा ? केमहालया णं भंते ! दीवसमुद्दा ? किंसंठिया णं भंते ! दीवसमुद्दा ? किमाकारभावपडोयारा णं भंते ! दीवसमुद्दा पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एकविधिविधाणा वित्थरतो" अणेगविधिविधाणा दुगुणादुगुणे पडुप्पाएमाणा-पडप्पाएमाणा पवित्थरमाणा-पवित्थरमाणा ओभासमाणवीचीया वहुउप्पल-पउम-कुमुद-गलिण-सुभग-सोगंधिय'पोंडरीय-महापोंडरीय-सतपत्त-सहस्सपत्त-पप्फुल्ल केसरोवचिता पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता सयंभुरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोग असंखेज्जा दीवसमुद्दा पणत्ता समणाउसो !! २६०. तत्थ णं अयं जंबुट्टीवे णाम दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सन्वन्भंतरए सव्वखड्डाए बट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिते, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिते, बट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिते, बट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिते, एक्कं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसते तिणि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्धंगुलकं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते । १. दसूत्तरे जोयणसए बाहल्लेणं (क); दसुत्तरसए णं भने ! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो कइ. जोयबाहल्लेणं (ग); दसुत्तरं जोयणसयं परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! तिष्णि बाहोणं (ट); दसुत्तरसए जोयणसए (त्रि)। परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-तुंबा तुडिया २. पण ०२१४८ पेच्चा, अभितरिया तुंबा, मज्झिमिया तुडिया, ३. 'ता' प्रती पूर्व चन्द्रमसः पर्वन्तिरूपकं सूत्रमस्ति, बाहिरिया पेच्चा! सेसं जहा कालस्स, अट्टो जह नदनन्तरं च सूर्यस्य, यथा----चंदस्स णं भंते ! चमरस्स। चंदस्सपि एवं चेव । मलयगिरिपुच्छा गो ततो पं तं तुंबा तुडिता पव्वा, वृत्ती आदर्शलब्ध एव पाठः उद्धृतोस्ति । अभितरिया तुंबा, एवं एताओ वि णेतव्वाओ ४. वित्थारओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। सेमं तहेव देविपमाणं ठिती य जधा बंतरिंदाणं। ५. अरविंद कोवणत (ता)। एवं सूरस्स वि । एष एव क्रमः अस्माभिरा- ६. अस्सि तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा दतः । स्थानाङ्गे ३१५५,१५७ सूत्रयोरयमेव सयंभरमणपज्जवसाणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। क्रमो दश्यते ! 'ता' प्रते: पाठभेदो निर्दिष्ट एव ७. अभितरिए (क, ख, त्रि);अभित रए (ग); शेपादशेष प्रस्तुतक्रमस्य व्यत्ययोस्ति---सूरस्स अब्भंतरए (ट)। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ३०७ से ण एक्काए जगतीए सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते ।। २६१. सा णं जगती अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले वारस जोयणाई विवखंभेणं, मज्झे अटू जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पिं चत्तारि जोयणाई विवखंभेणं, मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उपि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्ववइरामई अच्छा सहा लण्हा घट्ठा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरिया' सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । २६२. साणं जगती एक्केणं जालकडएणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । से णं जालकडए अद्धजोयणं उड्ढ़ उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्खंभेणं, सब्वरयणामए अच्छे सण्हे जाव पडिरूवे ! २६३. तीसे णं जगतीए उपि वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पण्णत्ता, सा णं पउमवरवेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं', जगतीसमिया परिवखवेणं 'सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा" ।। २६४. तीसे णं परमवरवेइयाए अयमेयारूवे वणणावासे पण्णत्ते, तं जहा-वारागया नेमा' रिटुरमया पइटाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया" फलगा 'लोहितक्ख. मईओ सूईओ वइ रामया संधी' नाणामणिमया कलेवरा" नाणामणिमया" कलेवरसंघाडा जाणामणिमया रूवा नाणामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उरिछणीओ सव्वसेयरययामए छादणे ।। २६५, साणं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं 'एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं विखिणिजालेणंग मेगेणं घंटाजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कणगजालेणं गमेगेणं रयणजालेणं एगमेगेणं पउमजालेणं'१७ सव्वतो समंता संपरिविखत्ता । ते णं जाला" सवणिज्जलंबूसगा” सुवण्णपयरगमंडिया" णाणामणिरयणविविहहारद्ध१. उप्पं (ता)। १२. कडेवरा (क, ख,); कणे (ता)। २. वित्थिण्णा (ता)। १३. ४ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। ३. सस्सिरीया (क, ग); गस्सिरिया (ट, ता)। १४. एगमेगेणं खिखिणिजालेणं एवं घंटाजालेणं ४. जी. ३१२६११ जाव मणिजालेणं एगमेगेणं पउमवरजालेणं, ५. पयुमवरवेइया (ता)। सन्वरयणामएणं (क, ख, ग, ट, त्रि); ६. विक्खं घेणं सव्वरयणामई (क ख,ग,ट,त्रि) । एगमेगेणं गवक्खजालेणं एएणं अभिलावेणं ७. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि) खिखिणि जा घंटा जा रयत जा जातरूव जा ८. इमे एतारुवे (ता)। मणि जा मुत्ता जा रतण जा सव्व रयण जा ६. जेम्मा (क, ख, ग, ट, ता) । एगमेगेणं पयुमवरजालेणं (ता)। १५. परिक्खित्ता (म)। १७. "रुप्पमया (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. दामा (मपा)! ११. वइरामया संधी लोहितवखमइओ सुईआ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १८. पतरामंडिया (ता)। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ जीवाजीवाभिगमे हारउवसोभितसमुदया ईसि अण्णमण्णमसंपत्ता पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वाएहिं मंदायंमंदायं एज्जमाणा'-एज्जमाणा पलंबमाणा'-पलबमाणा पझंझमाणा-पझंझमाणा तेणं ओरालेणं मणुण्णणं मणोहरेणं" कण्णमणणेव्वुतिकरेणं सद्देणं सव्वतो समंता आपूरेमाणाआपूरेमाणा सिरीए अतीव' उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ २६६. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किण्णरसंघाडा किंपुरिससंघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाड़ा' सव्वरयणामया 'अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा" । २६७. तीसे' णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे हयपतीओ तहेव जाव पडिरूवाओ । एवं हयवीहीओ जाव पडिरूवाओ। एवं हयमिहुणाई जाव पडिरूवाई॥ २६८. तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे पउमलयाओ नागलयाओ, एवं असोग-चंपग-चूय"-वण-वासंतिय-अतिमुत्तग-कंद-सामलयाओ णिच्चं" कुसुमियाओ णिच्चं माइयाओ" णिच्चं लवइयाओ णिच्च थवइयाओ णिच्चं गुल इयाओ" णिचं गोच्छियाओ णिच्चं जमलियाओ णिच्च जुवलियाओ णिच्चं विणमियाओ पिच्चं पणमियाओ णिच्चं सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरीओ णिच्चं कुसूमिय-माइयलवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय- जमलिय- जुवलिय- विण मिय - पणमिय - सुविभत्त-पिंडि". मंजरि-व.संगधरीओ सब्वरयणाम ईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ" ॥ १. अतोने क, ख, ट' आदर्गेषु एवं पाठभेदोस्ति ११. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु पाठसंक्षेप एव --एतिया वेतिया कंपिता खोभिया चालिया मस्ति-निच्चं कुसुमियाओ जाव सुविभत्तफंदिया घट्टिया उदीरिया एतेसि उरालेणं । पिडिमंजरिवडिसगधरीओ। २. एईज्जमाणा (ता)। १२. मउलियाओ (मव) । ३. कंपिज्जमाणा २ लंबमाणा (ग, त्रि)। १३. 'गुम्मियाओ' इति गुल्मिताः (मवृ)। ४. झंझमाणा २ सद्दायमाणा २ (ग); पयंपमाणा १४. पेंडि" (ता); मलयगिरिणा पडि' इति पदं २ पवित्थरमाणा (ता); पझंझमाणा २ व्याख्यातम्-प्रतिविशिष्टो मञ्जरीरूपो सद्दायमाणा २ (त्रि)! योवतंसकस्तद्धराः। रायपसेणइयवृत्तावपि ५. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। (पृ. १५) एतदेव व्याख्यातमस्ति । औपपा६. अतीव २ (ता)। तिकवृत्तौ (पृ. १४) अभयदेवसूरिणा पिण्ड्यो ७. वसह (त्रि)। लुम्व्यः इति व्याख्यातम् । ८. अच्छा जाव पडिरूवा (ता, मव)। १५. मउलिय (मवृ)। ६. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रती मलयगिरिवृत्तौ १६. पडि (मव)। च पाठसंक्षेपोस्ति–एवं पंतीओ वि विधीओ वि १७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष एक मिधुणा वि । अतिरिक्तं सूत्रं विद्यते-तीसे णं पउमवरवेइ१०.४ (मवृ); उत्तरकुरुप्रकरणे (पत्र २६४) याए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहि बहवे अक्खय मलयगिरिणा 'चूत' इति पदं स्वीकृतमस्ति । सोत्थिया पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ३०६ २६६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया-पउमवरवेश्या ? गोयमा ! पउमवरवेइयाए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहि वेदियासु वेदियावाहासु' वेदियापुंडतरेसु खंभेसु खंभवाहासु खंभसीसेसु खंभडतरेसु सूईसु सुईमुहेसु सूईफलएसु सुईपुडतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु बहूइं उप्पलाई पउमाइं जाव सहस्सपत्ताई सव्वरयणामयाई अच्छाई सण्हाइं लण्हाई घटाई मट्ठाई णीरयाई णिम्मलाई निप्पकाई निक्कंकडच्छायाई सप्पभाई समिरीयाई सउज्जोयाइं पासादीयाई दरिसणिज्जाइं अभिरूवाइं पडिरूवाई महता वासिक्कच्छत्तसमाणाई' पण्णत्ताई समणाउसो ! से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-पउमवरवेदिया-पउमवरवेदिया। २७०. पउमवरवेइया णं भंते ! कि सासया? असासया ? गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया ॥ २७१. से केणठेणं भंते ! एवं वच्चइ-सिय सासया? सिय असासया? गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहि फासपज्जवेहिं असासया । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ --सिय सासया, सिय असासया ॥ २७२ पउमवरवेइया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होति ? गोयमा ! ण कयावि णासि ए कयावि णत्थि ण कयावि न भविस्सति । भुवि च भवति य भविस्सति य धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवटिया णिच्चा पउमवरवेदिया । २७३. तीसे णं जगतीए उप्पि 'पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वणसंडे पण्णत्ते-देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेण, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नोलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे णिद्धे गिद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरवभूए । रायपसेणइय १६६ सूत्रानन्तरमपि एतद् ५. बाहिं पउमवरवेइयाए (क, ख, ग, ट, त्रि)। नास्ति। ६. एगं महं (क, ख, ग, ट, त्रि)। हास वेदियासीसफलएस (क, ख, ग, ट, ७. अतः परवर्ती २७६ सूत्रपर्यन्तः पाठः 'ता' प्रति त्रि); तथा रायपसेणइय (१९७) सूत्रे 'वेइय- मलयगिरिवत्ति च उपजीव्य स्वीकृतः। शेषेष फलएसु' इति पाठोस्ति । प्रयुक्तादर्शेषु 'जाव' पदसमर्पितः संक्षिप्त२. एतत्पदं मलयगिरिवृत्तौ व्याख्यातं नास्ति । पाठोस्ति, सोपि च नैव सङ्गतो दृश्यते । स रायपसेण इय (१६७) सूत्रे अतः परं 'पक्खपु. चैवम् –जाव अणेगसगडरहजागजुगपरिमोयणे डंतरेसु' इत्यपि पाठो विद्यते । सुरम्मे पासातीए सण्हे लण्हे घट्टे मछे नीरए ३. च्छतसमयाइं (क, ख, ग, त्रि); "छत्तसामा- निप्पं के निम्मले निक्कंकडच्छाए सप्पभे समिणाई (द, ता)। रीए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे ४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु अतिरिक्तः पडिरूवे। पाठो लभ्यते –अत्तरं च गोयमा! पउमवरवेइ- ८. घणकडितडच्छाए (क, ख, ग, ट, त्रि): याए सासते नामधेज्जे पण्णते। जन कयावि मलयगिरिवत्तो 'घणकडितडच्छाए' इति पाठो णासि जाव निच्चे। व्याख्यातोस्ति। घणकडियकडच्छाए' इति Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे २७४. ते' णं पायवा मूलमंतो' कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमतो फलमंतो बीयमंतो अणुपुब्ब-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणया एक्कखंधी' अणेगसाह-प्पसाह-विडिमा अणेगनरवाम-सुप्पसारिय-अगेज्झ-घण-विउल-बद्ध विट्ट ? " खंधा अच्छिद्दपत्ता' अविरलपत्ता अबाईगपत्ता अणईइपत्ता निय-जरढ-पंडुपत्ता णवहरिय-भिसंत-पत्त भारंधयार - गंभीरदरिसणिज्जा उवविणिग्गय-णव-तरुण-पत्त-पल्लवकोमल उज्जलचलंतकिसलय-सूमालपवाल-सोहियवरंकुरग्गसिहरा णिच्चं कुसुमिया णिच्चं माइया णिच्चं लवइया णिच्चे थवइया णिच्चं गुलइया णिच्चं गोच्छिया णिच्च जमलिया णिच्चं जुवलिया गिच्चं विणगिया णिच्चं पणमिया णिच्चं सुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरा णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुवलिय- विण मिय पणहियसुविभत्त-पिडि-मंजरि-वडेंसगधरा !! २७५. सुय-वरहिण-मयणसाल-कोइल-कोरक -भिंगारग-कोंडलग- जीवंजीवग-नंदीमूहकविल-पिंगलक्ख-कारंडक-चक्क वाय-कलहंस-सारस-अणेगसउमगणमिहुणविरश्यसदुण्णइयमहरसरणाइया सुरम्मा संपिडियदरियभमरमहुयरिपहकर-परिलितमत्तछप्पयकुसमासवलोलमहरगुमगुमंत-गुजंतदेसभागा अभितरपुप्फफला वाहिरपत्तच्छण्णा' पत्तेहि य परफेहि य औच्छन्न-पलिच्छन्ना 'निरोया अकंटया साउफला" निद्धफला जाणाविहगुच्छ-गुम्म-मंडवगसोहिया विचित्तसुहके उबहुला वावी-पुक्खरिणी-दीहियासु य सुनिवेसियरम्मजालघरगा॥ २७६. पिंडिम-णीहारिमं सुगंधि सुह-सुरभिमणहरं च महया गंधणि मुयंता सुहसे उकेउवहुला 'अणेगसगड-रह-जाण-जुग्ग-सीया-संदमाणियपडिमोयणा सुरम्मा पासापाठान्तररूपेणास्ति व्याख्यात:-~-इह शरीरस्य ४. मलयांगरिवृत्ती 'वृत्तस्कन्धाः' तथा रायपसेशमध्यभागे कटिस्ततोन्यस्यापि मध्यभाग: कटिरिव इयवृत्तावपि (पृ० १३) 'वत्तस्कन्धा:' इत्येव कटिरित्युच्यते, कटिस्तटमिव कटितटं घना व्याख्यातमस्ति किन्तु औपपातिकवत्तौ 'बद्धः अन्यान्य शाखानुप्रवेशतो निविडा कटितटे- स्कन्धः' इति विवृतमस्ति । 'ता' प्रतावपि मध्यभागे छाया यस्य स घनकटितटच्छायः, मध्य- तथैव पाठोस्ति । द्रष्टव्यं औपपातिकस्य भागे निबिडतरच्छाय इत्यर्थः, क्वचित्पाठः पञ्चमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । 'घनव डियकडच्छाए' इति, तश्रायमर्थ:-कटः ५ अतः पूर्व 'ता' प्रती अयं पाठोस्ति ते गं सजातोस्येति कटितः कटान्तरेणोपरि आवत साल! पाईणपडिणआयता उदीणदाहिणइत्यर्थः कटितश्चासौकट श्च कटितकट: घना- वित्थिण्णा उण्णतणतं विप्पहाइयतोलंबपलंबलंनिबिडा कटितकटस्येवाधोभूमो छाया यस्य स बसाहप्पसाहविडिमा। घनकटितकटच्छायः। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः शांति- ६.४(ता)। चन्द्रीयवृत्तौ (पत्र २८) हीरविजयवृत्तौ (पत्र ७. कोरंग (ता) । १२) चापि उक्तपाठद्वयमपि व्याख्यातं दृश्यते । ८. 'कारण्डः कारण्डव:' एतौ द्वावपि समानार्थको १. द्रष्टव्यं औपपातिकस्य पञ्चमसूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. पत्तोच्छण्णा (ता)। २. मूलवंतो (ता)। १०. साउफला अकंडगा (ता) ! ३. एग खंधी अणेगसाला (ता)। ११. अणेगरह (म)। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती दीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।।। २७७. तस्स णं वणसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहानामए-- आलिंगपुक्खरेति वा मुइंगपुक्खरेति वा सरतले ति वा करतलेति वा 'चंदमंइलेति वा सूरमंडलेति वा आयसमंडलेति वा" उभचम्मेति वा उसभचम्मेति वा वराहचम्मेति वा सोहचम्मेति वा वग्घचम्मेति वा विगचम्मेति वा दीवियचम्मेति वा अगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड-पच्चावड-सेढी-पसेढी-सोत्थिय-सोवत्थिय-पूसमाण-वद्धमाणग-मच्छंडक'मकरंडक-जारमार" फुल्लाबलि-पउमपत्त- सागरतरंग - वासंतिलय - पउमलयभत्तिचित्तेहि सच्छाएहिं समिरीएहि सउज्जोएहि नाणाविहपंचवण्णेहि 'मणीहि य तणेहि य” उवसोहिए, तं जहा--किण्डेहिं जाव सक्किलेहि।।। २७८. तत्थ णं जेते किण्हामणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-जीमूतेति वा अंजणेति वा खंजणेति वा 'कज्जलेति वा मसीति वा मसीगलियाति' वा गवले ति वा गवलगुलियाति वा भमरेति वा भमरावलियाति वा भमरपतंगयसारेति वा जंबूफलेति वा अदारिद्रुति वा परपुछेति वा गएति वा गयकलभेति वा कण्हसप्पेइ वा कण्हकेसरेइ वा आगासथिग्मलेति वा कण्हासोएति वा किण्हकणवीरेइ वा कण्हबंधजीवेति वा', भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! णो तिणढे समठे, 'ते णं कण्हा मणी य तणा य" इत्तो इट्ठतराए चेव कततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णता॥ २७६. तत्थ" णं जेते णीलगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहानामए-भिगेति वा भिंगपत्तेति वा चासेति वा चासपिच्छेति वा सुएति वा सूयपिच्छेति वा पीलीति वा णीलीभेदेति वा गीलीगुलियाति वा सामाएति वा उच्चंतएति वा वणराईड वा हलधरवसणेइ वा मोरग्गीवाति वा पारेवयगीवाति वा अयसिकुसुमेति वा वाणकस्मेति वा अंजणकेसिगाकुसुमेति वा णीलुप्पलेति वा णीलासोएति वा णीलकणवीरेति वा णीलबंधजीवेति वा, भवे एयारूवे सिया ? जो इणठे समठे, 'ते णं गीलगा मणी य तणा य'" एत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव" •पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए १. आयममंडलेति वा चंदमंडलेति वा सूरमंडलेति ६. तेसि ण कण्हाणं तणाण मणीण य (क. ख. वा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ग, ट, त्रि)। १०. पण्णत्ता समणाउसो (ता) । २. पडिमेढि (ता)। ३. मारंडा जारा मारा (ता)। ११. २७६,२८०,२८२ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती ४. तहि च मणीहि य (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) भिन्ना वाचना विद्यते-णीला जहा णील५. गुलियानि (क, ख, ग, ट, त्रि); क्वचिद् लेस्साए, लोहिता जधा तेउलेस्साए, सुक्किला 'मसी इति मगी गुलिया इति दे' ति न दृश्यते जहा सुक्कलेस्साए, २८१ मूत्रं लिखितं नास्ति। १२. अत ऊद्धवं क्वचित्-इंदनीले इ वा महानीलेइ (मवृ)। वा मरगतेइ वा' (म)। ६. "पत्तगय (त्रि)। १३. तेसि णं णीलगाणं तणाणं मणीण य (क, ख, ७. कणियारेति (क, ख) । ग, ट त्रि)। ८. जधा कण्हस्साए जाव (ता)। १४. सं० पा०-चेव जाव वण्णणं । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ चेव' वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २८०. तत्थ णं जेते लोहितगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए - ससक रुहिरेति वा उरभरुहिरेति वा 'वराहरुहिरेति वा मणुस्सरुहिरेति वा " महिसरुहिरेति वा वालिदगोवएति वा बालदिवागरेति वा संझब्भरागेति वा गंजद्धरागेति वा 'जासुयण कुसुमेति वा पालियायकुसुमेति वा ", जातिहिंगुलुएति वा सिलप्पवालेति वा पवालंकुरेति वा लोहितक्खमणीति वा लक्खारसएति वा किमिरागरत्तकंवलेइ' वा चपरासी वा रत्तुप्पलेति वा रत्तासोगेति वा रक्तकणवीरेति वा रत्तबंधुजीवेति वा, भवे एयावे सिया ? नो तिणट्ठे समट्ठे, 'ते णं लोहितगा मणी य तणा य एत्तो इट्टतराए चेव' 'कंततराए चैव पियतराए चेव मणुण्णगतराए चेव मणामतराए चेव' वण्णेणं पण्णत्ता || २८१. तत्थ णं जेते हालिद्दगा मणी य तणा य, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पृष्णसे, से जहाणामए - चंपए वा चंपगच्छलीइ वा चंपकभेदेइ वा हलिद्दाति वा हलिद्दाभेदेति वा वा हलिद्दागुलियति वा हरियालेति वा हरियालभेदेति वा हरियालगुलियाति वा चिउरेति वा चिउरंगरागेति वा 'वरकणगेति वा" वरकणगनिघसेति वा वरपुरिसवसणेति वा 'अल्लकुसुमेति वा " चंपाकुसुमेइ वा कुहंडियाकुसुमेति वा 'कोरंटकदामेइ वा " asaडाकुसुमेति वा घोसाडिया कुसुमेति वा सुवण्णजूहिया कुसुमेति वा सुहिरण्णयाकुसुमेइ वा वीयगकुसुमेति" वा पीयासोएति वा पीयकणवीरेति वा पीयबंधुजीवेति वा भवे एयावे सिया ? तो इणट्ठे समट्ठे, ते णं हालिद्दा मणी य तणा य एतो इट्ठतराए चेव कंततराए चैव पियतराए चैव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव' वण्णेणं पण्णत्ता ॥ २८२. तत्थ णं जेते सुक्किलगा मणी य तणाय, तेसि णं इमेतारूवे वण्णावासे पण्णत्ते से जहानामए - अंकेति वा संखेति वा चंदेति वा कुमुदेति" वा दगरएति" वा 'दहिघणेति वा खीरेति वा खीरपुरेति वा" हंसावलीति वा कोंचावलीति वा हारावलीति वा वलायावलीति वा चंदावलीति वा सारइयबलाहएति वा धंतधोयरुप्पपट्टेइ वा सालिपिट्ठरासीति वा कुंदपुप्फरासीति वा कुमुयरासीति वा सुक्कछिवाडीति वा पेहुण मिजाति वा भिसेति १. नररुहिरेति वा वराहरुहिरेति वा (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. चिन्हाङ्कितः पाठः क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु 'ची पिठरासीइ वा' इति पाठानन्तरं विद्यते । ३. किमिरागेइ वा रत्तकंबलेइ (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. तेसि णं लोहितगाणं तणाण य मणीण य (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. सं० पा० - चेव जाव वण्णेणं । ६. X (मवृ) ७. वा सुवणसिप्पिएति वा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. x (क, ख, ट ) ; सल्लकुसुमेइ वा ( ग ) ; जीवाजीवाभिगमे सेल्ल इकुसुमेइ वा (त्रि ) । ९. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. तडउडा ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ११. कोरंटवरमल्लदामेति वा बीयग ट, त्रि) । १२. सं० पा० - चेव जाव वण्णेणं । १३. कुंदेति ( क, ख, ग, ट) । १४. उदक-दयरय ( राय० सू० २९); दगे इ वा दगरए इ ( पण्ण० १७।१२८ ) | १५. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । (क, ख, ग, Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउचिहपडिवत्ती वा मिणालियाति वा गयदंतेति वा लवंगदलेति वा पोंडरीयदलेति वा "सिंदुवारवरमल्लदामेति वा सेतासोएति वा सेयकणवीरेति वा सेयबंधुजीवेति वा, भवे एयारूवे सिया? णो तिणठे समझें, 'ते णं सुक्किला मा य तणा य" एत्तो इट्ठतराए चेव' कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव वण्णेणं पण्णत्ता॥ २८३. तेसि णं भंते ! मणीण य तणाय य केरिसए गंधे पण्णत्ते ? से जहाणामए--- कोटपुडाण वा 'पत्तपुडाण वा चोयपुडाण वा" तगरपुडाण वा एलापुडाण वा' 'चंपापुडाण वा दमणापुडाण वा कुंकुमपुडाण वा चंदणपुडाण वा उसीरपुडाण वा मरुयापुडाण वा जातिपुडाण वा जहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा पहाणमल्लियापुडाण वा केतकिपूडाण वा पाडलिपुडाण वा सोमालियापुडाण वा वासपुडाण वा कप्पूरपुडाण वा" अणुवायंसि उभिज्जमाणाण वा णिभिज्जमाणाण वा कोट्टेज्जमाणाण वा रुचिज्जमाणाण वा उक्किरिज्जमाणाण वा विक्खरिज्जमाणाण' वा 'परिभुज्जमाणाण वा. भंडाओ वा भंडं साहरिज्जमाणाणं ओराला मणुण्णा मणहरा" घाणभणणिव्वुतिकरा सव्वतो समंता गंधा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया? णो तिणठे समठे, 'ते णं मणी य तणा य' एत्तो इट्टतराए चेव" 'कंततराए चेव पियतराए चेव मणुण्णतराए चेव मणामतराए चेव गंधेणं पण्णत्ता॥ २८४. तेसि णं भंते ! मणोण य तणाण य केरिसए फासे पण्णत्ते ? से जहाणामएआईणेति वा रूएति वा बूरेति वा णवणीतेति वा हंसगब्भतूली ति" वा सिरीसकुसुमणिचएति वा बालकुमुदपत्तरासीति५ वा, भवे एतारूवे सिया? णो तिणठे समठे, ते ण (ता)। १. x (मवृ)। २. तेसि णं सूविकलाण तणाण मणीण य (क, ख, ८. अयं पेषणार्थेदेशीधातु विद्यते । रायपसेण इय ___ग, ट, त्रि)। सूत्रे (३०) भंजिज्जमाणाण' इति पाठो ३. सं० पा०-चेव जाव वण्णेणं । लभ्यते, किन्तु 'श्लक्ष्णखण्डीक्रियमाणानाम' ४. X(मवृ)। इति विवृतमस्ति उभयत्रापि एकेनैव वत्ति५. वा चोयगपुडाण वा (मवृ) । कारण मलयगिरिणा, एतेन सम्भाव्यते वृत्ति६. वा अगुरुपुडाण वा लवंगपुडाण वा (राय सू० कारस्य सम्मुखे रायपसेणइयसूत्रेपि 'रुचिज्ज माणाण' इति पाठ: आसीत् । ७. हिरिमेर (किरिमेर-ग,त्रि) पृडाण वा चंदण- ६. विकिरिज्ज (त्रि)। पुडाण वा कुंकुमपुडाण वा उसीरपुडाण वा १०. परिभज्जमाणाण वा परियाभाइज्जमाणाण वा चंपयपुडाण वा मरुषगपुडाण वा दमणगपुडाण ठाणातो वा ठाणं संकामिज्जमाणाण वा (ता); वा जातिपुडाण वा जूहियापुडाण वा मल्लिया- परिभाइज्जमाणाण (मवपा)! पुडाण वा णोमल्लियपुडाण वा वासंतिपुडाण ११. X (क, ख, ग, ट, त्रि)! वा केयइपुडाण वा कप्तरपुडाण वा पालि- १२. तेसि ण तणाणं मणीण य (क, ख, ग, ट,त्रि) । पुडाण वा (क, ख, ग, ट, त्रि); जातिपुडाण १३. सं० पा०-- चेव जाव वण्णेणं । वा जूहियापुडाण वा मल्लियापुडाण वा १४. हंसगन्भेति (ता)। मलियापु वासंतिपु दमणापु मरुतापुडाण वा १५. बालकुसुमपत्तरासीति (ट, मवृपा)। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जीवाजीवाभिगमे मणीय तणो यतो इट्टतराए चेव' 'कंततराए चैव पियतराए चेव मणुष्णतराए चेव मणामतराए चेव फासेणं पण्णत्ता ॥ २८५ तेसि णं भंते ! 'मणीण य तणाण य" पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहि वाएहि मंदा मंदाय एइयाणं वेश्याणं कंपियाणं' चालियाणं 'फंदियाणं घट्टिया " खोभियाणं उदीरिया केरिए सद्दे पण्णत्ते ? से जहाणामए - सिवियाए वा संदमाणीयाए वा रहवरस्स वा सछत्तस्स सज्झयस्स संघटयस्स सपडागस्स सतोरणवरस्त समंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपेरं तपरिखित्तस्स हेमवय-चित्तविचित्त-तेणिस-कणगनिज्जुत्तदाख्यागस्स सुपिणद्धारकमंडलधुरागस्स' कालायस सुकयणे मिजंतकम्मरस आइण्णवरतुरगसुसंप उत्तस्स कुसल रछेयसार हिमुपरिगहितस्स सरसतबत्तीसतोणमंडितस्स" सकंकंडवडेंसगस्स सचावसरपहरणावरण हरिय-जोहजुद्धसज्जस्स रायंगणंसि वा अंतेपुरंसि" वा रम्भंसि वा मणिकोट्टितसि अभिक्खणं अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स ओराला मणुण्णा मणहरा कामणणिव्वुतिकरा सव्वतो समता सद्दा अभिणिस्संवति", भवे एताख्वे सिया ? गोति ट्ठे समट्ठे से जहाणामए - वेयालियाए वीणाए उत्तरमंदामुच्छिताए अंके सुपइट्टियाए 'कुसल रणारिसुसंपग्गहिताए चंदणसारनिम्मियकोणपरिघट्टियाए" पच्चूसकालसम मंद-मंद एइयाए वेड्याए कंपियाए चालियाए फंदियाए घट्टियाए खोभियाए उदीरियाए ओराला मणुष्णा मणहरा कण्णमणणिव्युतिकरा सव्वतो समंता सदा अभिणिस्सर्वति, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणट्ठे समट्ठे से जहाणामए - किष्णराण वा किपुरिसाण वा महोरगाण वा गंधव्वाण वा भहसालवणगयाण वा नंदणवणगयाण वा सोमणसवणगयाण वा पंडगवणगयाण वा महाहिमवंत मलय-मंदरगिरि-गुहसमण्णागयाण वा एगतो" सहि१०. बत्तीसतारणमंडितस्स (क, त्रि); 'बत्तीसतोरणपरिमंडितस्स (ता); अत्र तोण' स्थान 'तोरण' इति पदं लिपिदोषेण जातमस्ति । ११. रायतेपुरंसि (ता) । १. सं० पा० - चैव जाव फासेणं । २. तणाणं (क, ख, ग, ट, त्रि); मलयगिरिणात्र केवलं 'तृणानां' इति उल्लिखितम् उपसंहारवाक्यस्य व्याख्यायां ‘मणीनां तृणानां च शब्दः इत्युल्लिखितमस्ति तत्रापि 'मणीनां' इति युज्यते । ३. कंपियाण खाभियाण ( क, ख, ग, ट, त्रि); १३. अभिणिस्समंति (मवृ) । x ( ता ) ! ४. घट्टिताणं फंडिताणं (ता) । ५. x ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. x ( ख, ग, ता ) 1 ७. x ( क, ख, ग, ट, त्रि ) ८. सुविसुद्धचक्क मंडलधूरागस्स (क, ख, ट ) ; x (ता) । १२. 'माणस्स वा नियट्टिज्जमाणस्स वा परूढवरतुरंगस्स चंडवे गाइटुस्स (क, ख, ग, ट त्रि ) । (ar); अभिनिस्सरन्ति १४. चंदणसारको परिचट्टियाए कुसलणरणारि संपग्गहियाए ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १५. पदोसपच्चूसकालसमयंसि (क, ख, ग, ट, त्रि) : पुव्वरत्ताव रत्तकालसम यंसि (मवृपा, राय० सू० १७३) । १६. हिमवंत ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. कालायसमुतमिवंत कम्मस्स सुसंविद्धचत्रक- १७. एगतओ (ता) | मंडलधुरातस्स (ता ) 1 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपाडिवत्ती ताणं 'संमुहागयाणं समुपविट्ठाणं' संनिविट्ठाणं” पमुदियपक्कीलियाणं गीयरति-गंधव्वहरिसियमणाणं गज्जं पज्जं कत्थं गेयं पयवद्धं पायवद्धं 'उक्खित्तायं पवत्तायं” मंदायं रोचियावसाणं सत्तम रसमण्णागयं अरासुसंपउत्तं 'एक्कारसालंकारं छहोसविप्पमुक्कं" अटुगुणोववेयं गुंजावं ककुहरोवगूढं रत्तं तिट्ठाणकरणसुद्धं सकुहरगुंजंतवंस-तंती-तल-ताललय-गहसूसंपत्तं मधुरं समं सलालियं मणोहरं मउयरिभियपयसंचारं सुरति सुणति बरचारुरूत्रं दिव्वं नर्से सज्ज गेयं पगीयाण', भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! एवंभूए सिया ।। २८६. तस्स णं वणसंडस्स तत्थ-तत्य देसे तहि-तहिं वहुईओ खड्डा-खुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ भरसरपंतियाओ बिलपतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकलाओ"समतीराओ२ वइ रामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ 'सुवण-सुब्भ-रययवालुयाओ वेरुलियमणिफालियपडल-पच्चोयडाओ" सुहोयारसुउत्ताराओ णाणामणितित्थ-सुवद्धाओ चाउकोणाओ आणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिस-मुणालाओ वहुउप्पल-कुमुद-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-सयपत्तसहस्सपत्त-फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ १. मरिणस पारणं (ट)। रययामयाओं सुओगार-सुउत्ताराओ णाणामणि२. समवगताणं सणिसणाणं सणिवेताणं (ता)। रयणतित्थ वद्धाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण३. उक्खित्तपवत्तयं (क, ट); उक्वित्तायंपयुत्तायं सीतब्भरियरमणियालुयाओ वेरुलियमणिरतणपसत्तायं (ता); उक्खित्तायं पायत्तायं (राय० फलिहपडलपच्चोअद्धाओ चातुक्कोणाओ समती राओ अणुपुव्वसुयातवप्पगंभीरसीतलजल४. छद्दोसविप्पमुक्क एक्कारसगुणालंकारं (क, ख, संच्छष्णपयुमपत्तभिसमुणालातो पउमकुमुदणग, ट, त्रि) । लिणसुभगसोगंधियअरविंदको वणतसयपत्तसहस्स५. 'ता' प्रती मलय गिरिविवरणे च एप पाठो पत्तफूल्लकेमरोवचिताओ अच्छविमलसलिलनंव दृश्यते । शेषादशेषु विद्यते, रायपसेणइय पुण्णाओ परिहत्यभमतमच्छच्छप्पदअणेगम उणगवृत्तौ (पृ० १३१) व्याख्यातोस्ति । गुंजा+ गमिधुणविचरियमदुषण इयतमधुरणादिता अप्पेअवंक - गुंजावंक। गतियाओ आसवोदगाओ अप्पे खारोदगाओ ६. सुरभि (क, ग) लिपिदोषण तकारस्थाने अप्पे घतोदगाओ अप्पे खोतोदगातो य अमतरसभकारो जात: इति प्रतीयते । ममरसोदगाओ अप्पे पगतीए उदगरसेणं पं ७. संगीताणं (ता)। पत्तेयं २ फ्युमवरवेइयाए परि पत्तेयं २ ८. हंता (ख, ता)। वणसंडपरि पासादिक! है. वहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); बहुवीआ (ता)। १२. क, ख, ग, ट, त्रि' एतेष आदर्णेष एष पाठः १०. सरसरपंतीओ बिलपंतीओ (क, ख, ग, ट, अग्ने 'चाउकोणाओं इति पाठानन्तरं विद्यते । १३. वेरुलियमणिफालियपडलपच्चोयडाओ सूवण्ण११. 'ता' प्रती अता भिन्ना वाचना लभ्यते-- सुभरययमणिवालुयाओ (क, ख, ग, ट, त्रि) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे परिहत्थभमंत मच्छकच्छभ-अणेगसउणमिहुण पविचरिय-सदुष्णइयमहुरसरणाइयाओ' पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवे दियापरिक्खित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ अप्पेगतियाओ आसवोदाओ अप्पेगतियाओ वारुणोदाओ अप्पेगतियाओ खीरोदाओ अप्पेगतियाओ धओदाओ अध्येगतियाओ खोदोदाओ अप्पेगतियाओ अमयरससमरसोदाओ अप्पेगतियाओ 'पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ताओ" पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओं ॥ २८७. तासि णं खुड्डा खुड्डियाणं वावीणं जाव विलपतियाणं 'पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि" तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा -- वइरामया नेमा रिट्ठामया पतिद्वाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा' लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी णाणामणिमया अवलवणा अवलंबणवाहाओ पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ || २८८. तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं 'तोरणे पण्णत्ते । तेणं तोरणा नाणामणिमया णाणामणिमएसु खंभेसु उवणिविदुसण्णिविट्ठा विविहमुत्ततरोवचिया' विविहतारारूवोवचिया, ईहामिय उसभ तुरंग-पर-मगर- विहग वालग - किण्णर- रुरु- सरभचमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय वइरवे दियापरिगताभिरामा विज्जाहरजमलजुयल जंतजुताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिक्षमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयण लेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २८६. तेसि णं तोरणाणं उप्पि अट्ठट्ठ मंगलगा पण्णत्ता, तं जहा- सोत्थियसिरिवच्छ दियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव" पडिरूवा ॥ ३१६ २६०. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हालिचामरज्झया सुक्किलचामरत्झया अच्छा सहा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयालगंधीया सुरूवा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ २६१. तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा 'पउम - णलिण- सुभग- सोगंधिय-पोंडरीय महापोंडरीय सतपत्त - सहस्स १. मलयगिरिणा प्रस्तुतप्रकरणं 'सदुष्णइयमहुरसरणाइयाओ' इति पाठो नैव व्याख्यातः 'ता' प्रती एष पाठो विद्यते । वृत्तिकृता ३।११८ सूत्रे [वृत्ति पत्र १२३ ] एष व्याख्यात:; ३।८५७ सूत्रे [वृत्ति पत्र ३५०] चैष उद्धृतः । २. अमृतरसेन स्वाभाविकेन प्रज्ञप्ताः (मवृ) | ३. तत्थ तत्थ देते तहि तहिं जाव बहवे (क, ख, म, ट, त्रि); रायपसेणइयसूत्रे ( १७५) पि स्वीकृतपाठस्य संवादी पाठो विद्यते । ४. तिसोमाण' (ता, राय० सू० १७५ ) । ५. जेम्मा (क, ख, ता); जिम्मा ( ग ट ) | ६. फलहा (ता ) । ७. तोरणा पण्णत्ता (क, ख, ग, टत्रि ) । ८. विविहमुत्तरोविया (मवृ); विविहमुत्तंतररूवोवचिया (राय० सू० २० ) । ६. अतांचे रायपसेणइय सूत्रे ( २० ) इति पाठोस्ति -- घंटावलिचलियमहुरमणहरसरा ।' १०. उपि बहवे ( क, ख, ग, ट, त्रि); उवरि (ar) I ११. जी० ३।२६१ । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती पत्तहत्थगा" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६२. तासि णं खट्टाखडियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे उप्पायपव्वया णियइपव्वया' जगतीपव्वयगा दारुपव्वयगा दगमंडवगा दगमंचका दगमालगा दगपासायगा ऊसडा खुड्डा खडहडगा 'अंदोलगा पक्खंदोलगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। २६३. तेसु णं उप्पायपव्वतेसु जाव पक्खंदोलएसु बहूई हंसासणाई कोंचासणाई गरूलासणाई उण्णयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाई सीहासणाई पउमासणाइं दिसासोवत्थियासणाई सब्वरयणामयाइं अच्छाई जाव पडि रूवाई॥ २६४. तास णं वणसंडस्स तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे आलिघरगा मालिघरगा कय लिघरगा लयाघरगा अच्छण घरगा पेच्छणघरमा मज्जणघरगा पसाहणघरगा गब्भधरगा मोहण घरगा 'सालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधव्वघरगा" आयंसघरगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।। २६५. तेसु णं आलिघरएसु जाव आयंसघरएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाई अच्छाई जाव पडिरूवाई।। २६६. तस्स णं वण संडस्स तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहढे जाईमंडवगा जहियामंडवगा" मल्लियामंडवगा णोमालियामंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयमंडवगा" सूरिल्लिमंडवगा तंवोलीमंडवगा मुद्दियामंडवगा णागलयामंडवगा अतिमुत्तमंडवगा अप्फोतामंडवगा मालुयामंडवगा साम्लयामंडवगा" सव्वरयणामया" अच्छा जाव पडिरूवा ॥ २६७. तेसु णं जातीमंडवएसु जाव सामलयामंडवएसु बहवे पुढविसिलापट्टगा५ पण्णत्ता, तं जहा अप्पेगतिया" हंसासणसंठिता जाव" अप्पेगतिया दिसासोवत्थियासण१. जाव सयसहस्सवत्तहत्थगा (क, ख, ग, ८, १०. जातिमंडवा (ता)। त्रि); पउमहकुमुदहणलिणसुभगसोगंधिगह ११. जूधियामंडवा (ता) । पोंडरीयहसयपत्तहसहस्सपत्तहसतसहस्सपत्त - १२. दधिवासुया (क, ख, ग)। हत्थगा (ता)। १३. x (ता, मव); ३१८५७ सूत्र एष पाठः 'ता' २. णीयपव्वया (ता); णिययपव्वया (मवृपा)। प्रत्तौ च विद्यते । ३. उस रदगा (क, ख); ओसरया (ता)। १४. णिच्चं कुसुमिया णिच्चं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. खुल्ला (ग); X (ता); खुडमुड्डगा (राय० १५. पुढविसिल्लापट्टा (ता)। सू० १५०) । १६. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)! ५. खडखडगा (ट, मव); खरखडया (ता);X १७. 'क, ख, ग, ट, त्रि' संकेतितादर्शष पूर्णः (राय सू० १८०)। पाठोस्ति । तत्र 'रसभासणसंठिया' इत्यपि ६. अंडोला पक्खंडोला (ता)। दश्यते । मलयगिरिणा २६३ सूत्र एष पाठो ७. उसभासणाई, सीहा (क, ख, ग, ट, त्रि)। नैव व्याख्यातः; प्रस्तुतसूत्रस्य विवरणे स ८. मोहघग्गा (क)। उद्धृतः। ६.४ (ता)। रायपसेणइय सूत्रे (१८१) नास्ति स्वीकृतः । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ जीवाजीवाभिगमे संठिता । 'अण्णे च बहवे पुढविसिलापट्टगा" वरसयणासणविसिद्धसंठाणसंठिया' पण्णत्ता समाउसो ! आईणग-रूप-र-णवणीत तूलफासा' सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा ! तत्थ ं वे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसमंत संयंति चिट्ठेति किसीयंति तुयदृति रमंति नलति कोलंनि मोहति, पुरा पोराणाण सुचिण्णाणं सुपरक्कताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पञ्चणुभवमाणा विहरति ॥ २६८. ती गं जगतीए उपि पउमवर वेदियाए अंतो" एत्थ णं 'महं एगे" वणसंडे पणते-देमुणाई दो जोयणाई विवखंभेणं जगतीसमए' परिक्खेवेणं", किण्हे किण्होमासे 'वणवणओ तणस विहूणो यव्वो । तत्थ णं वहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति जयंति चिट्ठेति णिनीयंति तुयट्टति रमंति ललति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिमा सुपरकंताणं सुभाणं काणं" कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेस पञ्चगुब्भवमाणाविहरति ॥ ११२ विजय दाराधिकारो २६. जंबुद्दीवस्य णं भंते ! दीवस्स कति दारा" पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजये वैजयंते जयंते अपराजिते || ३००. कहि णं भंते! जंबुद्रीवरम दीवस्स विजये नामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जीवेदी मंदरस्स पव्वयरस गुरत्थिमेणं पणयालीस जोयणसहरसाई अवाधार जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरते लवणसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीताए महानदीए उप्पि, एत्थ जंबुद्दीवर दीवम्स विजये णामं दारे पण्णत्ते--अटु जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेए वरकणगथूभियागे ईहामिय-उसभ-तुरगनर-मगर-विहग बालग- किण्णर-रुरु-सरभ चमर-कुंजर वणलय पउमलयभत्तिचित्ते संभुग्ग १८५ सूत्रस्य विवरणे स उद्धृतोस्ति, किन्तु गङ्ग्रहाथातो ज्ञायते 'उसभासणाई' इति पाठ: नास्ति प्रस्तुतोत्र । सा च एवमस्ति -- हंमेकोंच गरुडे उष्णय पणए य दीह भद्देय । पक मरे परमे सीह दिसासोत्थिवारस मे ॥ १ ॥ ( जी० वृत्ति पत्र २०० राय० वृत्ति पृ० १९६) । १. 'ता' प्रती अतः 'समणाउसो' पर्यन्तं एवं पाठोस्ति - अप्पे विसिवरसयणसंठाणसंठिया | २. तत्थ बह (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. मांसल सुघुटु विसिठाणसंठिया ( मवृपा) । ४. तुलफासा मउया (क, ख, ग, घ, ट, त्रि); तूलफासा रतंसुगसंबुता सुरंमा (ता) | ५. तुपट्टति हसंति (ना) । ६. किहुंति अभिमंति (ता) | ७. तो परमवरवेइयाए ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ८. एगे महं (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ९. वेइयासमए ( क, ख, ग, ट, त्रि); २७३ सूत्रानुसारेण अत्रापि 'जगतीसमए' इति 'ता' प्रतिगतः पाठः स्वीकृत: ' वेइयासमए' इत्यपि पाठे नाथं भेदोस्ति, उभयत्रापि परिक्षेपस्य साम्यमस्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तावपि ( १|१४ ) अयमेव पाठो लभ्यते । १०. अतोग्रे 'ता' प्रती पाठसंक्षेपोस्ति तं चैव निरवयवं तणसद्दवज्जो जाव अंतरा विहरति । ११. कंताणं (क, ख, ग ट ) ; कंताणं कडाणं (fx): १२. वृत्तिकृता उद्धृतः पाठः एवमस्ति वणसंडतो सवज्जो जाव विहरति । १३. दुवारा (ता) | Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती तवइरवेदियापरिगताभिरा में विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालिणीए वगसह सकलिए भिसमाणे भिडिभसमाणे चक्खुल्लोयणलेसे मुहफासे सस्सिरीयरूवे । 'वष्णो दारस्स तस्सिमो होइ" तं जहा-वइरामया नेमा रिट्ठामया पतिद्वारा वेरुलियामया खंभा जायरूवोवचिय-पवरपंचवणमणिग्यण-कोट्टिमतले हंसगब्भमाए एलुए गोमेज्जमए इंदरखीले लोहितखमईओ दारचेडाओ जोतिरसामए उत्तरंगे वेरुलियामया कवाडा लोहितक्खमईओ सूईओ वइराम या संधी णाणामणिमया समुग्गगा 'वइसमया अग्गला" अग्गलपासाया वदरामई आवतणपेढिया अंकुत्तरपासए पिरंतरितघणकवाडे भितीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पण्णा तिणि होति गोमाणसिया तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलट्रियसालभंजिया वइरामए कडे रययामए उस्सेहे सव्वतवणिज्जमए उल्लोए णाणामणिग्यणजालपंजर - मणिवंसग लोहितक्खपडिवंसगरयतभोमे अंकामया पक्खा पखवाहाओ जोतिरसामग्रा वसा बंसकवेल्लुयाओ य रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाऽडणीओ वइगमईओ उवरिपुछणीओ सव्वसेतरययामए छादणे अंकमयकणगड-तवणिज्जभियाए मेते 'संखतलविमल गिम्मलदधिधण-गोखीर-फेण-रययणिगरप्पगासे तिलगरयण चदचित्ते" गाणामणिमयदामाल किए अंतो वहिं च सण्हे तवणिज्जवालयापत्थडे सुहफासे सरिसरीयसवे पासादीप दरिसणिज्जे अभिस्वे पडिरूवे ।। ३०१. विजयस्स णं दारम्स उभओ पासिं दुहओ' णिसीहियाए दो-दो वंदणकलसपरिवाडीओ पण त्ताओ। ते णं वंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा" प उमुष्पलपिहाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता महिदकुंभसमाणा पणत्ता समणाउसो।। ३०२. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहिआए दो दो णागदंतपरिवाडीओ । ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल-गवक्खजाल-खि ख्रिणीघंटाजालपरिविखत्ता अभागता अणिसिट्टा तिरियं सुसंपरयहिता" अहेपपणगद्धरूवा पण्णगद्धसंठाणसंठिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता गयदंतसमागा पण्णत्ता समगाउसो! तेसु णं णागदंतएसु वहवे 'किण्हसुत्तवा वग्धारितमल्लदामकलावा" जाव" सुविकल १. वण्णाओ दारस्स रीयरूवे (क); वाओ ६. तविणज्जरुइलबालुगापत्थडे (क, ख, ग, ट, ता, दारस्स (ख, ग, ट, त्रि); वणो दाररस तस्स बि)। होति (ता) ७. सुहप्फासे (क) २. दारवेडाओ (ग); दारवेढाओ (ट); द्वारपिण्डौ ८. पास (ता)। (म); द्वारपिण्ड्यो (ज० वृत्ति पत्र ४८) . दुधाओ (ता)। ३. वरामईयो अग्गलाओ (क, ख, त्रि); वइरा- १०. आवद्ध (क, ग)। मई अग्गला (ग)। ११. सुसंपरिगृहीताः (म)। ४. अंकुत्तरपासके (ट); अंकुतरपामगा (ता); १२. सव्वरयणामया (क, ख, ग, ट, त्रि)! अंकुत्तरपामगे (त्रि)। १३. किण्हसुत्तबद्धवग्धारिया (क, ख, ग, ट, ता ५. संखतनविमलनिम्मलदधियणगोखीरफेपरयय - त्रि)! नियरप्पगासद्धचंदचित्ते (ता, मवृक्षा) ! १४. राय० मु० १३२॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० जीवाजीवाभिगमे सुत्तबद्धा वग्घारियमल्ल दामकलावा । ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा' सुवण्णपतरगमंडिता' णाणामणि रयण-विविधहारद्धहारउबसोभितसमुदया जाव' सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिठ्ठति। तेसि णं णागदंतगाणं उरि अण्णाओ दो दो णागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं णागदंतगा मुत्ताजालंतरुसिय' 'हेमजाल-गवक्खजाल-खिखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गता अभिणिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्ग हित्ता अहेपण्णगद्धरूवा पण्णगद्धसंठाणसंठिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो! तेसु णं णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु वहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ । ताओ णं धूवघडीओ कालागरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क-धूवमघमघेतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणण्णणं मणहरेणं घाणमणविव्व इकरेणं गंधेणं 'ते पएसे" सब्वतो समता आपरेमाणीओ आपूरेमाणीओ 'सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओ-उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ३०३. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो दो सालभंजियापरिवाडीओ पण्णत्ताओ।ताओ णं सालभंजियाओ लील द्विताओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकिताओ जाणाविहरागवसणाओं णाणामल्ल पिणद्धाओ मुट्ठीगेज्झसुमज्झाओ आमेलगजमलजुयलवट्टियअन्भुण्णयपीणरचियसंठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिदुविसयपसत्थलक्खण-संवेल्लितग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपादवसमुद्विताओ वामहत्थगहितग्गसालाओ ईसि अद्धच्छिकडक्खचेट्ठिएहि लूसेमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहि अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ" इब, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमनिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोएमाणीओ विज्जुघणमिरिय-" सूरदिपंततेय-अहिययरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ १. लंबूसा (ता)। सुमज्झा आमेलगजमलजुयलवट्टियअब्भुण्णय२. पितरमंडिता (ता)। पीणरइयसंठियपओहराओ। रायपसेणइयवृत्ती ३. जी० ३।२६५ । (पृ० १६५) एष एव स्वीकृतपाठसंवादी क्रमो ४. उप्पि (ता)। लभ्यते। ५. सं० पा०-मत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव ६. मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती 'अइंतिर्यग्व___ समणाउसो !! लितं' इति व्याख्यातमस्ति । रायपसेण इय ६. तपएसे (क, ख, ग, ट); तप्पएसे (त्रि)। वृत्तौ (पृ० १६६) 'अर्ध-तिर्यग्वलितं' इति ७. अतीव अतीव सिरीए (क, ख, ग, ट, त्रि)। लिखितं लभ्यते । व्याख्यानुसारेण तत्रापि 'अड्डे' ८. नाणागारवसणाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)! इति पदं युज्यते । एतद् देशीभाषापदं अतोने मलयगिरिवृत्तो केचित् पाठा: भिन्न- विद्यते, 'आडो' इति भाषायाम् । क्रमेण व्याख्याताः सन्ति--रत्तावंगाओ असिय- १०. पिज्जमाणीओ (ग); खिज्जेमाणीओ (ता); केसीओ मिदुविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लितग्ग- विज्जमाणीओ (क्व)। सिरयाओ णाणामल्लपिणद्धाओ मुट्ठीगेझ- ११. "मरीचि (क, ख, ग, ट); "मिरीयि (ता)। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउम्विहपडिवत्ती अभिरुवाओ पडिरूवाओ 'तेयसा अतीव - अतीव उवसोभेमाणीओ - उवसोभेमाणीओ चिट्ठति" ! ३०४. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहतो णिसीहियाए दो-दो जालकडगा पण्णत्ता । ते णं जालकडगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३०५. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो-दो घंटाओ' पण्णताओ। तासि णं घंटाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा----जंबूणयामईओ' घंटाओ वइरामईओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासा तवणिज्जमईओ संकलाओ रययामईओ रज्जओ। ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ 'सीहस्सराओ दुंदुहिस्सराओ णंदिस्सराओ पंदिघोसाओ" मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरघोसाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं कण्णमणनिव्वुइकरेण सद्देण ते पदेसे सव्वतो समंता आपूरेभाणीओ-आपूरेमाणीओ सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणीओ - उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ३०६. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीधियाए दो-दो वणमालाओ' पण्णत्ताओ। ताओ णं वणमालाओ णाणादुम-लय-किसलय-पल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाण-सोभंतसस्सिरीयाओ 'पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ" || ___ ३०७. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासि दुहओ णिसीहियाए दो-दो पगंठगा" पण्णत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, दो जोयणाई वाहल्लेणं, सव्ववइरामया" अच्छा जाव पडिरूवा । तेसि णं पगंठगाणं 'उरि पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते णं पासायवडें सगा चत्तारि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसित-पहसिताविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धयविजयवेजयंती १. (ता, मवृ); प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती 'पासाईयाओ ७. वणमालापरिवाडीओ (क, ख, ग, ट, त्रि, इत्यादि विशेषणचतुष्टयं प्राग्वत्' इत्येव राय सू० १३६) । लभ्यते । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि (पत्र ५२) ८. छप्पयपरिभुज्जमाणकमल (क, ख, ग, ट, त्रि); 'प्रासादीया इत्यादिपदचतुष्टय प्राग्वत् । राय- 'कमल' इति पदं वृत्तो नास्ति व्याख्यातम् । पसेणइय सूत्रस्य वृत्तौ (पृ० १६६) 'अभिरू- रायपसेणइय (१३६) सूत्रपि नैतत्पदं बाओ चिट्ठति इति प्राग्वत्' ।। लभ्यते। २. घंटापरिवाडीओ (क, ख, ग, ट, त्रि, राय०६. पासाइयायो ४ ते पदेसे ओराले जाव गंधेणं सू० १३५) आपूरेमाणीओ २ जाव चिट्ठति (क, ख, ग, ३. जंबूणतामईओ (क, ख, ग, ता); जंबूणद- ट, त्रि); णिच्च कुसुमिआओ जाव वडेंसगमईओ (त्रि)। धरीओ सब्बरयणामईओ अच्छाओ जाव पडि४. घंटापासगा (क, ख, ग, ट, त्रि)। रूवाओ (ता)। ५. गंदिस्सराओ णंदिघोसाओ सीहस्सराओ सीह- १०. पाअंठा (ता) सर्वत्र । घोसाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. सव्वरयणामया (ता)। ६. सुस्सरणिग्घोसाओ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ जीवाजीवाभिगमे पडाग-च्छत्तातिछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणुलिहंत सिहरा' जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकणगथूभियागा वियसियसयवत्त-पोंडरीय-तिलकरयणद्धचंदचित्ता' अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ३०८. तेसि णं पासायवडेंसगाणं उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सामलयाभत्तिचित्ता सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३०६. तेसि' णं पासायवडेंसगाणं पत्तेयं-पत्तेयं अंतो वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए-आलिंगपुक्खरेति वा जाव' मणीहिं उवसोभिए। मणीण वण्णो गंधो फासो य नेयन्वो ॥ ___३१०. 'तेसि णं वहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ।। ३११. तासि णं मणिपेढियाणं उवरि पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते"। तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवेवण्णावासे पण्णत्ते. तं जहा—'रययामया सीहा सोवणिया पादा तवणिज्जमया चक्कलागणाणामणिमयाइं पायसीसगाई" जंबूणयमयाइं गत्ताई वइरामया संधी नाणामणिमए वेच्चे"। ते णं सीहासणा ईहामिय-उसभ"-'तुरग-णर-मगर - विहगवालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता ससारसारोवचियविविह १. गगणतलमभिलंघमाणसिहरा (क, ख, ग, ट, ८. अट्ठ' (क); एतद् अशुद्ध प्रतिभाति । त्रि); गगणतलमणुलंधमाणसिहरा (ता.)। ६. चिन्हाङ्किताठस्य स्थाने मलय गिरिवृत्ती तेसि २. सूत्रे चात्र विभक्तिलोपः प्राकृतत्वात् (मव)। णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहमज्झ३. अतोने आदर्शेषु णाणामणिमया दामालंकिया' देसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते' एष इति पाठो लभ्यते । वृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसो। पाठो व्याख्यातोस्ति । जम्बूद्वीपवृत्तावपि (पत्र रायपसेणइयवत्तावपि (पृ० १७०) नास्ति ५५) एवमेव व्याख्यातोस्ति । किन्तु रायव्याख्यातः । मुद्रितवृत्त्योरसो केनापि प्रक्षिप्तः । पसेणियवृत्ती (पृ० ६८) । मणिपीठिका सूत्रा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृत्तित्रयेसो व्याख्यातो दृश्यते । नन्तरं सिंहासनसूत्रं विद्यते । ४. तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडगा (क, ख, ८, १०. इमेतारूवे (ता)। त्रि); तवणिज्जमयवालुयापत्थडगा (ग); ११. तवणिज्जमया चक्कला (चक्कवाला-ग, ट, तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडा (ता)। त्रि) रयतामया सीहा सोवणिया पादा (क, ५. जी० ३।२६८ ! मलयगिरिवृत्तौ अतिमुत्तगलय- ख, ग, ट, त्रि); चक्कवाला (ता)। भत्तिचित्ता कुंदलयभत्तिचित्ता सामलयत्ति- १२. पायपीढगाई (क, ख, ग, ट, त्रि); पायपोढा चित्ता' एतावान् पाठो नैव दृश्यते । ६. एतत् सूत्रं 'क, ख, ग, ट' आदर्शषु नैव १३. विच्चे (क, ख, त्रि); वच्चे (ग)। दृश्यते। १४. सं० पा०-ईहामियउसभ जाव पउमलयभत्ति७. जी० ३।२७७-२८४॥ चित्ता। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउठिवहपडिवत्ती ३२३ मणिरयणपायपीढा अत्थरग'-मिउमसूरग'-नवतयकुसंत-लिच्च'-[लिंब ?] केसर-पच्चुत्थताभिरामा 'आईणग-रूय-बूर-णवनीत-तूलफासा सुविरचितरयत्ताणा ओयवियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छयणा रत्तंसुयसंवुया सुरम्मा" पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ३१२. तेसि णं सीहासणाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं विजयदूसे पण्णत्ते। ते णं विजयदूसा सेया संखंक'-कुंद - दगरय - अमतमहियफेणपुंजसन्निकासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३१३. तेसि णं विजयदूसाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं वइरामया अंकुसा पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु अंकुसेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुंभिक्का मुत्तादामा पण्णत्ता। ते णं कुंभिक्का मुत्तादामा अण्णेहिं चउहिं 'कुंभिक्केहिं मुत्तादामेहिं तदद्धच्चप्पमाणमेत्तेहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपयरगमंडिया जाव' सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति ॥ ३१४. तेसिणं पासायवडेंसगाणं उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा पण्णत्ता सोत्थिय तधेव जाव" छत्ताइछत्ता॥ ३१५. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो तोरणा पण्णत्ता । 'वण्णओ जाव" सहस्सपत्तहत्थगा। १. अच्छरग (क, ख, ग, त्रि)। शीलानि इति व्याख्यातमस्ति अनेन अर्थसा२. मलयमसूरय (ता)। दृश्यं प्रतीयते । लिच्च' इति पदं लिपिकाराणां ३. लिक्ख (ता); रायपसेणइयसूत्रे (सू० ३७) प्रसादत एव जातमस्ति । अस्य पदस्य द्वौ पाठभेदो लभ्येते-'लिक्ख ४. सीहकेसर (क, ख, ग, ट, त्रि); क्वचित (क); लिन्य (ख, ग, घ, च, छ); ज्ञाता- सिंहकेशरेति (म)। धर्मकथायां (११११८) अस्य पदस्य 'लिव्व' ५. ओयवियखोमदुगुल्लपट्रपरिच्छयणा (दगल्लइति पाठभेदो विद्यते। जीवाजीवाभिगमे पडिच्छयणा---त्रि) सुविरचित रयत्ताणा रत्तं। ३.३११) मूलपाठे 'लिच्च' इति पदं विद्यते सुयसंवुया सुरम्मा आईणगख्यबूरणवणीततूलपाठान्तरे च लिक्ख' इति पदमस्ति । एतैः फासा मउया (क, ख, ग, ट, त्रि); आईणगपाठभेदैर्जायते 'लिव्व' इति पाठस्य 'लिच्च रूयवरतूलफासा रत्तंसुयसंवुता सुरम्मा (ता)। इति रूपे परिवर्तनं जातम। वत्तिकारर्यथा- ६. संख (ग, ट, त्रि, मव)। यथा पाठो लब्धस्तथा-तथा व्याख्यातः- ७. तदद्भुच्चप्पमाणमेत्तेहिं अद्धकुंभिक्के हिं मुत्तानायाधम्मकहाओ (वृत्ति पत्र १७) लिम्बो दामेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। तददृच्चत्तपबालोरभ्रस्योर्णायुक्ता कृत्तिः । जीवाजीवाभिगमे माणमेत्तेहिं (ता, राय० सू० ४०) । वित्ति पत्र २१०) लिच्चानि नमनशीलानि ८. जी० ३१२६५ । च केशराणि । रायपसेण इयवृत्तौ (पृ० ६६) ६. 'ता' मलयगिरिवृत्तौ च एतत्सूत्रं नैव लभ्यते । लिम्बानि कोमलानि नमनशीलानि च १०. जी० ३१२८९-२९१ । केशराणि मध्ये यस्य मसूरकस्य तत् नवत्व- ११. जी० ३१२८५-२६१ । क्कुशान्तलिम्बकेशरम् । रायपसेणइयवृत्ती १२. ते णं तोरणा गाणामणिमया तहेव जाव अट्ठकोमलानि, जीवाजीवाभिगमस्य वृत्ती नमन- मंगलगा झया छत्तातिछत्ता (क, ख, ग, ट,त्रि)। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ३१६. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सालभंजियाओ पण्णत्ताओ । वण्णओ' || ३१७. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो जागदंतगा पण्णत्ता । 'णागदंतावण्णओ उafरमणागदंता णत्थि " || ३२४ ३१८. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो 'हयसंघाडा दो-दो गयसंघाडा एवं परकिष्णर- किंपुरिस - महोरग-गंधव्व-उसभसंघाडा" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा । दो-दो पउमलयाओ जाव' पडिरुवाओ || ३१६. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो दो दिसासोवत्थिया' पण्णत्ता सव्वरयणामय " अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२०. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो वंदणकलसा पण्णत्ता । वण्णओ" ॥ ३२१. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो भिंगारगा पण्णत्ता वरकमलपइद्वाणा जाव" महता महता मत्तगयमहामुहागितिसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ३२२. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो आयंसगा" पण्णत्ता । तेसि णं आयंसगाणं अय मेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - तवणिज्जमया पयंठगा" वेरुलियमया छरुहा" वइरामया वरंगा " णाणामणिमया वलक्खा अंकमया मंडला अणोग्घसियनिम्मलाए छायाए समणुबद्धा" चंदमंडल पडिणिकासा महता महता अद्धकायसमाणा" पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ १. जी० ३।३०३ । जहेव णं हेट्ठा तहेव (क, ख, गट, त्रि) । २. जी० ३।३०२ । ३. ते णं णागदंतगा मुत्ताजालतरुसिया तहेव । तेसु णं णागदंत एस बहवे किन्हे सुत्तवट्टवग़घारित मल्ल दामकलावा जाव चिट्ठेति (क, ख, ग, ट, त्रि) स्वीकृतपाठो मलयगिरिवृत्तों व्याख्यातोस्ति । 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एष नैव लभ्यते । प्रस्तुतप्रतिपत्तेः ३०२ सूत्रस्य 'उवसोभमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति' इति पर्यवसानः पाठोत्र ग्रहणीय: 'तेसि णं णागदंतगाणं उर्वार' इत्यादिआलापको नात्र विवक्षितोस्ति । ४. हयसंधाडा जाव उसभसंघाडा पण्णत्ता (क, ख, गट, त्रि) । ५. अतः परं रायपसेणइयसूत्रे संक्षिप्तपाठस्य स्थाने चत्वारि सूत्राणि (१४२ - १४५) कृतानि सन्ति । ६. जी० ३।२६७ । ७. जी० ३३२६८ । ८. एतत्सूत्रं 'क, ख' प्रत्यो मलयगिरिवृत्ती च नैव लभ्यते । e. अक्खयसोत्थिया (ग, ट, त्रि) । १०. सव्वजंबूणयामया (ता) । ११. ते णं चंदणकलसा वरकमलपइद्वाणा तहेव सव्वरयणामया जाव पडिरूवा समणाउसो ! (क, ख, ग, ट, त्रि) । १२. जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिवा (क, ख, ग, ट, त्रि) । १३. आतंसगा ( क, ख, ग ); बदंसगा (ता, त्रि ) । १४. पाअंठगा (ता) | १५. आवरुहा ( ग ) ; थरुहा (ता ) थेरुहा (त्रि ) ; वृत्ती व्याख्यानात् पूर्वं उद्धृते पाठे 'थंभया' इति पदं दृश्यते । रायपसेणइयवृत्ती ( पृ० १७३ ) 'वेरुलियमया छरुहा इति व्याख्यातमेव नास्ति । १६. वारगा (क, ख, ग ) ; वारंगा (ट, ता ) ; वारसगा (त्रि ) । १७. सव्वतो चेव समणुबद्धा (क, ख, ग, ट, त्रि ) । १८. सामाणा (ता) । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्दिहपडिवत्ती ३२५ ३२३. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो 'वइरणाभा थाला पण्णत्ता"। तेणं थाला अच्छ-तिच्छडिय-सालितंदुल-नहसंदट्ठ-पडिपुण्णा' इव' चिट्ठति सव्वजंबूणदमया अच्छा जाव पडिरूवा महता-महता रहचक्कसमाणा पण्णत्ता समणाउसो !! ३२४. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो पातीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं पातीओ अच्छोदय-पडिहत्थाओ णाणाविहस्स' फलहरितगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिट्ठति सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ महया-महया गोकलिंजगचक्कसमाणाओ' पण्णत्ताओ समणाउसो !॥ ___३२५. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सुपतिट्ठगा पण्णत्ता। ते णं सुपतिट्ठगा 'सुसव्वोस हिपडिपुण्णा णाणाविहस्स य पसाधणभंडस्स बहुपडिपुण्णा इव चिट्ठति" सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२६. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो मणोगुलियाओ" पण्णत्ताओ। 'ताओ णं मणोगुलियाओ सव्ववेरुलियामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ" । तासु णं मणोगुलिया बहवे सुवण्णरुप्पामया फलगा पण्णत्ता। तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलएसु वहवे वइरामया णागदंतगा पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया" पण्णत्ता । तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वायकरगा पण्णत्ता । 'ते णं वायकरगा" किण्हसत्तसिक्कग-गवच्छिया, णील सुत्तसिक्कग-गवच्छिया लोहियसुत्तसिक्कग-गवच्छिया, हालिद्दसूत्तसिक्कग-गवच्छिया सुक्किलसुत्तसिक्कग-गवच्छिया सव्ववेरुलियामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२७. तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो-दो चित्ता रयणकरंडगा पण्णत्ता, से जहाणामएरणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चित्ते रयणकरंडए वेरुलियमणि-फालियपडल-पच्चोयडे साए पभाए ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासइ उज्जोवेइ तावेइ पभासेइ, एवामेव तेवि चित्ता रयणकरंडगा साए पभाए ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासेंति उज्जोवेंति ताति पभासेति॥ ३२८. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो हयकंठा गयकंठा नरकंठा किण्णरकंठा १. वइरणाभे थाले पण्णत्ते (त्रि) । ६. णाणाविहपसाहणगभंडविरचिया सव्वोसधि२. बहुपडिपुण्णा (क, ख, ग, ट)। पडिपुण्णा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. विव (क, ट)। १०. मणगुलियाओ (ता)। ४. जंबूणतमया (क); जंबूणतामया (ग, ८, ११. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ____ता)। १२. सिक्का (ता)। ५. वाधीओ (ता)। १३. ४ (ता)। ६. नाणाविधपंचवष्णस्स (क, ख, ग, ट, ता, १४. रयणकरंडगा पण्णता वेरुलियपडलपच्चोयडा त्रि) । (क, ख, ग, ट, त्रि); रतणकरंडा वेरुलिय ७.गोलिंगचक्क (क, ख, ता); गोकलिंगचक्क' जाव (ता)। (ट)। १५. पभासेंति सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा २ ५. पट्टा (ता)। चिट्ठति (ता)। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ जीवाजीवाभिगमे किंपुरिसकंठा महोरगकंठा गंधव्वकंठा उसभकंठा पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३२६. 'तेसि णं तोरणाणं पुरतो" दो-दो पुप्फचंगेरीओ, एवं मल्ल-'चुण्ण-गंधवत्थाभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ लोमहत्थचंगेरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ।। ३३०. तेसिणं तोरणाणं पुरतो दो-दो पुप्फपडलाइं जाव लोमहत्थपडलाई सन्वरयणामयाइं अच्छाइं जाव पडिरूवाई ।। __३३१. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो सीहासणाई पण्णत्ताइ । 'तेसि णं सीहासणाणं वण्णओ जावदामा । ३३२. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो रुप्पच्छदा' छत्ता पण्णत्ता। ते णं छत्ता वेरुलियविमलदंडा जंबूणयकण्णिका वइरसंधी मुत्ताजालपरिगता अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा ददरमलयसुगंधी सव्वोउअसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा । ३३३. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो चामराओ पण्णत्ताओ। ताओ णं चामराओ 'चंदप्पभ-वइर-वेरुलियनानामणिरयणखचियचित्तदंडाओ" 'सुहुमरयतदीहवालाओ संखंककुंद-दगरय - अमयमहियफेणपुंजसण्णिकासाओ" सव्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३३४. तेसि णं तोरणाणं पुरतो दो-दो तेल्लसमुग्गा कोट्ठसमुग्गा पत्तसमुग्गा चोयसमुग्गा तगरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा" मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३३५. विजये णं दारे अट्ठसतं चक्कज्झयाणं, एवं मिगज्झयाणं गरुडज्झयाणं ऋच्छज्झयाणं छत्तज्झयाणं पिच्छज्झयाणं सउणिज्झयाणं सीहज्झयाणं उसभज्झयाणं, अटुसतं सेयाणं १. तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकंठएसु (क, ख, ८. चंदागारोवमा वट्टा (क, ग, ट, त्रि); चंदा___ ग, ट, त्रि)। गारोवमा छत्ता (ख, ता); चन्द्रमण्डलवद्वृत्ता२. गंध चुण्ण (क, ख, ग, ट, त्रि); वण्ण चुण्ण नीति भावः (मवृ)। ___ गंध (ता)। ९. नाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्ज३. 'ता' प्रतो प्रस्तुतसूत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति लविचित्तदंडाओ चिल्लिआओ (क, ख, ग, ट, –एवं पडलगा वि दो दो। वत्तावपि एवमेव त्रि); चंदप्पभवइरवेरुलियणाणामणिरयणव्याख्यातं दृश्यते । ओवितचित्तदंडाओ (ता)। ४. जी० ३११-३१३। १०. संखंककुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसण्णिकासाओ ५. तेसि णं सीहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे सुहुमरयतदीहवालाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पण्णत्ते तहेव जाव पासादीया ४ (क, ख, ग, ११. हिंगूल्य' (ता)। ट, त्रि); वणओ निरवयवो (ता)। १२. विग (ता); मुद्रित वृत्तौ (पत्र २१५) 'मृग६. रुप्पच्छया (ग, ट, त्रि); रुप्पमया (राय० गरुडरुरुकच्छत्र' इति पाठो दश्यते, किन्तु हस्त__ सू० १५६)। लिखितवृत्त्यादर्श 'रुरुक' स्थाने 'ऋच्छ' इति७, वेरुलियभिमंतविमलदंडा (क, ख, ग, ट, त्रि)। पदं प्राप्तमस्ति । रायपसेणइयसूत्रस्य (द्रष्टव्यं Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३२७ चउविसाणाणं णागवरकेऊणं ! एवामेव सपुत्वावरेणं विजयदारे असीयं केउसहस्सं भवतित्ति मक्खायं ।। ३३६. विजये णं दारे णव भोमा पण्णत्ता । तेसि णं भोमाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता जाव' मणीणं फासो॥ ३३७. तेसि णं भोमाणं उप्पि उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सामलया भत्तिचित्ता सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३३८. तेसि णं भोमाणं वहुमज्झदेसभाए जेसे पंचमे भोमे', तस्स णं भोमस्स वहुमज्झदेसभाए', एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते। सीहासणवण्णओ विजयदूसे अंकुसे जाव'दामा चिट्ठति ॥ ३३६. तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसहस्साणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ।। ३४०. तस्स णं सीहासणस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं अग्ममहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणा पण्णत्ता। ३४१. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स अभितरियाए परिसाए अट्ठण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठ भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ३४२. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स मज्झिमियाए परिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ॥ ३४३. तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स बाहिरियाए परिसाए बारसण्हं देवसाहस्सीणं बारस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ३४४. तस्स णं सीहासणस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सत्तण्हं अणियाहिवतीणं सत्त भद्दासणा पण्णत्ता ।। ३४५. तस्स णं सीहासणस्स 'पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्च त्थिमेणं उत्तरेणं, एत्थ गं" विजयस्स देवस्स सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भदासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। 'तं जहा-पुरथिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, एवं चउसुवि जाव उत्तरेणं चत्तारि १६२ सूत्रस्य पादटिप्पणम्) हस्तलिखितवृत्ता- एत्थ णं महं एमा मणिपेढिया पण्णत्ता जोयण वपि 'ऋच्छ' इति पदं दृश्यते । जम्बूद्वीप- आयाम-विक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ६०) 'विग इति पदं मणीमयी अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं ब्याख्यातमस्ति । मणिपेढियाए उप्पि महं एगे सीहासणे प १. आसीयं (क, ख, ग, ता)। वण्णओ विजयदूसे अंकुसे कुंभिक्के सु जाव २. भोम्मा (ता) सर्वत्र। सिरीए अतीव २१ ३. जी० ३।२७५-२८४ । ७. जी० ३१३११। ४. जी. ३२६८। ८. विजयदूसे जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. भोम्मे (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)! ६. जी० ३।३११-३१३ । ६. अतोने 'ता' प्रतो भिन्ना वाचना दृश्यते- १०. सव्वतो समंता (ता, मव) । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ साहसीओ" । 'अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणे पण्णत्ते" || ३४६. विजयस्स णं दारस्स उवरिमागारे सोलसविहेहि रतणेहि उवसोभिते, * जहा -- रयणेहिं वइरेहिं वेरुलिएहिं जाव' रिट्ठेहि ॥ ३४७. विजयस्स णं दारस्स उपि अट्ठट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तं जहा -- सोत्थियसिरिवच्छ जाव' दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३४८. विजयस्स' णं दारस्स उप्पि बहवे कण्हचामरज्झया जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ जीवाजीवाभिगमे ३४९. विजयस्स" णं दारस्स उप्पि बहवे छत्तातिछत्ता तहेव ॥ ३५०. से केणट्ठणं भंते! एवं बुच्चति - विजए णं दारे विजए णं दारे ? गोमा ! विजए णं दारे विजए णाम देवे 'महिड्ढीए महज्जुतीए" महाबले महायसे मक्खे महाणुभावे" पलिओ मट्टितीए परिवसति" । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिमाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणिया हिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए असि च बहूणं 'विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं" देवाणं देवीण य आहेवच्च" "पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा - ईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनदृ-गीय - वाइय-तंती - तल-ताल-तुडिय- घण-मुइंग- पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोग भोगाई भुजमाणे विहरइ । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - विजए दारे विजए दारे । १. x (ता, मवृ ) | २. भद्दासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); अवसेसेसु णं भोम्मेसु बहुमज्यसभाए पत्तेयं २ सीहासणे पं वण्णओ णवरं परिवारो णत्थि ( ता ) ; अवशेषेषु प्रत्येकं प्रत्येकं सिंहासनमपरिवारं सामानिकादिदेव योग्य भद्रासनरूपपरिवाररहितं प्रज्ञप्तम् (मवृ ) । ३. उवरिमागार (क, ग, त्रि); उत्तिमा (ख, z, ar) i १०. जी० ३।२६० ४. उवसोभिता (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५. जी० ३।७ । १२. जी० ३।२६१ । ६. उपि बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि); उवरि १३. सं० पा० - महज्जुतीए जाव महाणुभावे । १४. महासोक्ख (मवृपा ) 1 ता) 1 ७. अतो 'ता' प्रतौ भिन्ना वाचनास्ति जाव सतसहस्स पत्त हत्थगा । ८. जी० ३१२८६ ६,११. ३४८, ३४६ सुत्रे मलयगिरिणा नैव व्याख्याते । शांतिचन्द्रसूरिणा जम्बूदीपप्रज्ञप्ति वृत्ती ( पत्र ६२ ) एतस्मिन् विषये एवं टीकितम् - विजयस्स णं दारस्स उपि बहवे किण्हचामरज्झया जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिख्वा । विजयस्स णं दारस्स उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता तहेव' 'विजयस्स णं दारस्स उप्पि बहने किण्हचामरज्भया' इत्यादि सूत्र - पाठ: जीवाभिगमसूत्रवह्वादशेषु दृष्टत्वाल्लिखितोस्ति स च पूर्ववद् व्याख्येयः, वृत्तौ तु केनापि हेतुना व्याख्यातो नास्तीति । १५. × (मवृ) । १६. परिवसति महिड्ढीए का हारविरायतावच्छे जाव दसदिसाओ उज्जोवे ( ता ) 1 १७ वाणमंतराणं ( ता ) । १८. सं० पा० आहेवच्चं जाव दिव्वाई । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३२६ अदुत्तरं च णं गोयमा ! विजयस्स णं दारस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते-जं ण कयाइ णासि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, 'भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे णियए सासए अक्खए° अवट्ठिए णिच्चे" ।। विजयाए रायहाणीए अधिकारो ३५१. कहि णं भंते ! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवतित्ता अण्ण मि जंबुट्टीवे दीवे वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता-वारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पण्णत्ता।। ___३५२. सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे 'सक्कोसाइं छ" जोयणाई विक्खंभेणं, उप्पि तिष्णि सद्धकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मुले विच्छिण्णे मझे संखित्ते उप्पि तणुए बाहिं वट्टे अंतो चउरंसे गोपुच्छसंठाणसंठिते सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे ।। ___३५३. से णं पागारे णाणाविहपंचवर्णेहिं कविसीसएहिं उवसोभिए, तं जहा-किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं । ते णं कविसीसका अद्धकोसं आयामेणं, पंचधणुसताइं विक्खंभेणं, देसोणमद्धकोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३५४. विजयाए णं रायहाणीए एगमेगाए बाहाए पणुवीसं-पणुवीसं दारसतं भवतीति मक्खायं । ते णं दारा वावटुिं जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं', तावतियं चेव पवेसेणं, सेता वरकणगथूभियागा 'वण्णओ जाव' वणमालाओ। ३५५. तेसि णं दाराणं उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो-दो पगंठगा पण्णत्ता। ते गं पगंठगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जे य कोसे बाहल्लेणं पण्णता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसि णं पगंठगाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता ! ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीसं जोयणाई १. सं० पा० --भविस्सइ जाव अवदिए । २. चिह्नाङ्कितः पाठः 'ता' प्रती मलयगिरिवृत्तौ च नैव लभ्यते । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ६३) एतस्य सूत्रस्य विषये एवं टिप्पणी कृतास्ति-एतत् सूत्रं वृत्तावदृष्टव्याख्यानमपि जीवाभिगमसूत्रबहादशेष दृष्टस्वाल्लिखितमस्तीति । ३. छ सकोसाई (क, ख, ट, ता) ! ४. देसूर्ण अद्ध (क, ख, ट, ता)। ५. आयामविक्खंभेणं (क, ख, ट, ता)। ६. जी० ३।३००-३०६ । ७. ईहामिय तहेव जहा विजए दारे जाव तवणिज्ज वालुगपत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सरूवा पासादीया ४ तेसि णं दाराणं उभयो पासिं दुहओ णिसीहियाए दो-दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ तहेव भाणियन्वं जाव वणमालाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जे य कोसे आयाम-विक्खंभेणं,' अब्भुग्गयमूसित-पहसिया विव वण्णओ उल्लोगा सीहासणाइं जाव' मुत्तादामा सेसं इमाए गाहाए अणुगंतव्वं, तं जहा तोरण मंगलया सालभंजिया णागदंतएसु दामाइं । संघाडं पंति वीधी मिधुण लता सोत्थिया चेव ॥१॥ वंदणकलसा भिंगारगा य आदसगा य थाला। पातीओ य सुपतिट्ठा मगोगुलिया वातकरगा य ॥२॥ चित्ता रयणकरंडा हयगय णरकंठका य। चंगेरी पडला सीहासण छत्त चामरा उवरि भोमा य ।।३।। एवामेव सपुव्वावरेणं विजयाए रायहाणीए एगमेगे दारे असीतं-असीतं केउसहस्सं भवतीति मक्खायं ॥ ३५६. 'तेसि णं दाराणं पुरओ" सत्तरस-सत्तरस भोमा पण्णत्ता। तेसि णं भोमाणं 'भूमिभागा उल्लोया य भाणियन्वा” 'तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जेते नवमनवमा भोमा, तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता । सीहासणवण्णओ जाव' दामा जहा हेट्ठा । एत्थ णं अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणा' पुण्णत्ता ।। ३५७. तेसि णं दाराणं उवरिमागारा सोलसविधेहिं रयणेहिं उवसोभिया तं चेव जाव छत्ताइछत्ता। एवामेव पुत्वावरेण विजयाए रायहाणीए पंच दारसता भवंतीति मक्खाया"। ३५८. विजयाए णं रायहाणीए चउद्दिसिं पंच-पंच जोयणसताइं अवाहाए, एत्थ णं चत्तारि वणसंडा पण्णता, तं जहा~-'असोगवणे सत्तिवण्णवणे चंपगवणे चूतवणे"। 'पव्वेण असोगवण, दाहिणतो होइ सत्तिवण्णवणं । ___ अवरेणं चंपगवणं, चूयवणं उत्तरे पासे ॥१|| १. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' संकेतितादर्शेष पाठ- ७. जी० ३।३४६-३४६ । संक्षेपस्य भिन्ना पद्धति रस्ति, सा चैवं विद्यते- ८. चिन्हांकितपाठस्थाने 'ता' प्रती एवं पाठोस्ति सेसं तं चेव जाव समुग्गया णवरं बहुवयणं ----तेसि गं भोम्माणं अंतो बहुसमर तेसि णं भाणितव्वं । विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे। भोमाणं बहुमज्झदेसभाए। जेते णवमा-णवमा दारे असयं सेयाणं चउविसाणाणं णागवर- भोम्मा तेएसिणं भोम्मा । बहुमज्झ पत्तेयं २ केऊणं। मणिपेढिया सीहासरिठेहि। तेसि णं दाराणं २. जी० ३१३०७-३३५ । उप्पि अट्ठमंगलगा सतसहस्सपत्तहत्थगा । ३. विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे दारे (क, ख, ६. पुरस्थिमेणं दाहि पच्च उत्त (ता)।। ग, ट, ता, त्रि) १०. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु गाथायाः स्थाने ४. जी. ३१३३६-३३७! उल्लोया य पउमलया- एष पाठो लभ्यते--पुरस्थिमेणं असोगवणे भत्तिचित्ता (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। दाहिणेण सत्तवण्णवणे पच्चत्थिमेणं चंपगवणे ५. जी० ३१३३८-३४५ । उत्तरेणं चूतवणे । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ पुग्वेण ६. भदासणा (क, ख, ग, ट, त्रि)! असोगवणं इत्यादिरूपा गाथा पाठसिद्धा।' Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्हिडिवत्ती ते णं वणसंडा साइरेगाई दुवालस जोयणसहस्साइं आयामेणं, पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता - पत्तेयं पत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किण्हा किण्होभासा वणसंडवण्णओ भाणियो जाव' वहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति णिसीदंति तुयट्ठेति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कम्माणं कडाणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति || ३५. तेसि ं वणसंडाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते पासावडेंसगा बावट्ठ जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम विक्खंभेणं, अब्भुग्गतमू सिय-पहसिया विव 'तहेव जाव" अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता, उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता भाणियव्वा । तेसि णं पासायवडेंसगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता वण्णावासो सपरिवारा। सिणं पासावडेंसगाणं उप्पि बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता । तत्थ णं चत्तारि देवा महिढीया जाव' पलिओवमट्टितीया परिवसंति, तं जहा - असोए सत्तिवण्णे' चंपए चूते । ते णं तत्थ 'साणं- साणं वणसंडाणं, साणं-सानं पासायवडेंसयाणं," साणं- साणं सामाणियाणं, साणं- साणं अग्गमहिसीणं, साणं- साणं परिमाणं, साणं- साणं आयरक्खदेवाणं आहेवच्च जाव विहरति ॥ ३६०. विजयाए णं रायहाणीए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव पंचवणेहमणीहि उवसोभिए तणसद्दविहणे जाव देवा य देवीओ य आसयति जाव' विहरति । ३६१. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महं उवगारियालय पण्णत्ते-वारस जोयणसयाई आयाम विक्खंभेणं, तिणि जोयणसहस्साई सत्तय पंचाणउते जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वजंबूयामए अच्छे जाव पडिरूवे || ३६२. से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खिते । पउमवरवेइयाए वण्णओ, वणसंडवण्णओ जाव" विहरति । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवालविक्खंभेणं उवगारियालयणसमे परिक्खेवेणं ॥ ३६३. तस्स णं उवगारियालयणस्स चउद्दिसि चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । इत्येव लभ्यते । ताडपत्रादर्शेपि एषा गाथा उपलब्धास्ति । राय पसेणइयवृत्ती ( पृ० १०३ ) एषा गाथा संग्रहणीगाथात्वेन निर्दिष्टास्ति । प्रस्तुतागमादर्शेषु यः पाठोत्र पाठान्तररूपेण उतोस्ति स तत्र मूलपाठे विद्यते । १. अतोग्रे 'ता' प्रतौ च पाठसंक्षेपोस्ति- किण्हा २ जाव आसयंति । २. जी० ३।२७५-२६७ 1 ३. वण्णम (ता) | जी० ३।३०७-३०६ । ३३१ ४. जी० ३।३५० । ५. सत्तवण्णे (क, ख, त्रि ) । ६. बहुवचनं प्राकृतत्वात्, प्राकृते हि वचनव्यत्ययो भवतीति (मवृ) | ७. जी० ३।३५० । ८. जी० ३।२७७-२८४,२८६-२६७ । ६. ओवारिय (क, ख, ग, ट, त्रि); उवकारिय (ar) 1 १०. जी० ३।२६३-२६७ ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ जीवाजीवाभिगमे वण्णओ तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता । वण्णओ॥ ३६४. तस्स णं उवगारियालयणस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव 'मणीणं फासो" । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे मूलपासायव.सए पण्णत्ते । से णं [मूल ?] पासायवडेंसए 'वावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसियप्पहसिते तहेव । तस्स गं [मूल ?] पासायवडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणिफासे उल्लोए"। ३६५. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता। सा च 'एग जोयणमायामविक्खंभेणं, अद्धजोयणं" बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ३६३. तीसे णं मणिपेढियाए उरि महं एगे सीहासणे पण्णत्ते । एवं सीहासणवण्णओ सपरिवारो॥ ३६७. तस्स" णं पासायवडेंसगस्स उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ३६८. से णं [मूल ?] पासायवडेंसए अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहि पासायव.सएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते । ते णं पासायवडेंसगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धसोलसजोयणाइं अद्धकोसं च आयाम-विक्खंभेणं, अब्भग्गतमूसियपहसिया विव तहेव" । तेसि णं पासायव.सयाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया । तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सीहासणं पण्णत्तं, वण्णओ" । तेसिं परिवारभूता भद्दासणा पण्णत्ता। तेसि णं अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ३६६. ते णं पासायव.सका अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायव.सएहि सव्वतो समंता संपरिक्खिता। ते णं पासायवडेंसका 'अद्धसोलसजोयणाई अद्धकोसं च" उड्ढे उच्चत्तेणं, देसूणाई अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसियपहसिया विव १. जी० ३१२८७ (ता)। २. छत्तातिछत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३१ ७. दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं जोयणं (क, २८८-२६१ । __ ख, )। ३. मणीहि उवसोभिते मणिवण्णओ गंधरसफासो ८. सव्वतो समंता मणिमयी (ता)। (क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३१२७७-२८४। ६. जी. ३१३३८-३४५ ।। ४. अत्र 'मूल' पदं लिपिदोषेण प्रमादेण वा त्रुटितं १०. एतत् सूत्रं 'ता, प्रतौ च नोपलभ्यते । प्रतीयते । प्रासादावतंसकात् पूर्व सर्वत्रापि ११. जी० ॥३०७-३०६ । मूलप्रासादावतंसकः इति पाठ उपयुक्तोस्ति। १२. जी० ३।३११-३१३। सिंहासनवर्णनं च प्रागवत् राजप्रश्नीयसूत्रे (२०४,२०५) पि 'मूलपासाय- केवलमत्रापि सिंहासनमपरिवारं वक्तव्यम् वडेंसगे' इति पाठो लभ्यते । (म)! ५. जी० ३३०७,३०८ । १३. पण्णरसजोयणणि अड्ढातिज्जे य कोसे (ता)। ६. अद्धतेवदि जोयणाणि अद्धविक्खंभेणं जावुल्लोआ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चविहपडिवत्ती तहेव'। तेसि णं पासायवडेंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पउमासणा पण्णत्ता । तेसि णं पासायवडेंसगाणं अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। ३७०. ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहि चाहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसका देसूणाई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, देसूणाई चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं अब्भुग्गतमूसियपहसिया विव भूमिभागा उल्लोया भद्दासणाई उरि मंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ ३७१. ते' णं पासायवडेंसगा अण्णेहि चउहि तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, देसूणाई दो जोयणाई आयाम-विक्खं भेण अब्भुग्गयमूसियपहसिया विव भूमिभागा उल्लोया पउमासणाई उवरिं मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता ।। ३७२. तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पण्णत्ता--अद्धत्तेरसजोयणाई आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं, णव जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भग्गयसुकयवइरवेदियातोरणवररइयसालभंजिया-सुसिलिट्ठ'-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिय-पसत्थवेरुलियविमलखंभा णाणामणिकणगरयणख इय-उज्जलबहुसमसुविभत्तभूमिभागा' 'ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहगवालग-किण्ण र-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा' भिभिसमाणा' चक्खलोयणलेसा सहफासा सस्सिरीयरूवा" कंचणमणिरयणथूभियागा नाणाविहपंचवण्णघंटापडागपरिमंडितग्गसिहरा धवला मिरीइकवचं विणिम्मुयंती लाउल्लोइयमहिया गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितला उवचियवंदणकलसा वंदणघडसुकयतोरण-पडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिता कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधवट्टिभूया अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया' अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १. जी० ३१३०७-३०६ । रमणीयश्च भूमिभागो यस्यां सा (मवृ)। २. आदर्शषु एतत् सूत्रनै व लभ्यते । वृत्तिकारेणापि ५. थंभुग्गय (क, ग)। अस्य उल्लेख: कृतोस्ति- तदेवं चतस्रः ६. 'माणी (ग, त्रि)। प्रासादावतंसकपरिपाट्यो भवन्ति, क्वचित्तिन ७. माणी (ग, त्रि)। एव दृश्यन्ते न चतुर्थो । वृत्तौ एतद् व्याख्यात- १. ईहामिगउसभउरग जाव सस्सिरीयरूवा (ता)। मस्ति ! ६. दिव्वतुडियमधुरसहसंणिणाझ्या सुरम्मा सव्व३. रायपसेणइय (सु० ३२) सूत्रे सुसिलिट्ट" रयणामई (क, ख, ट); दिव्वतुडियमधुरसद्दइति वाक्यं स्वतन्त्रमस्ति । संपणाइया सुरम्मा सव्वरयणामई (ग, त्रि); ४. सुविभत्तचित्तरमणिज्जकुट्टिमतला (क, ख, दिव्वउडियसद्द संणिणाइया सव्वरयणामई (ता)। ग, ट, त्रि); सुविभक्तो निचितो-निविडो Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जीवाजीवाभिगमे ३७३. तीसे णं सोहम्माए सभाए तिदिसिं तओ दारा पण्णता, तं जहा-पुरथिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । ते णं दारा पत्तेयं-पत्तेयं दो-दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, एग जोयणं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा 'दारवण्णओ जाव' वणमालाओ" ॥ ३७४. तेसिणं दाराणं पुरओ 'पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते" ते णं मुहमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं, 'छजोयणाई सक्कोसाइं" विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसंनिविट्ठा जाव' उल्लोया भूमिभागवण्णओ ।। ३७५. तेसि णं मुहमंडवाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं अट्ठमंगलगा 'झया छत्ताइछत्ता" ३७६. तेसि णं मुहमंडवाणं पुरओ ‘पत्तेयं-पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते" ते णं पेच्छाघरमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं', 'छ जोयणाइं सक्कोसाइं विक्खंभेणं, साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं जाव" मणीणं फासो॥ ३७७. तेसि णं बहमज्झदेसभाए पत्तयं-पत्तेयं 'वइरामए अक्खाडगे पण्णत्ते"। तेसि ण वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणमेगं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३७८. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं 'सीहासणे पण्णत्ते२। सीहासणवण्णओ" सपरिवारो"। ३७६. तेसिणं पेच्छाघरमंडवाणं उप्पि अट्टमंगलगा झया छत्तातिछत्ता॥ ३८०. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ 'पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता५ । ताओ णं मणिपेढियाओ दो-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ १. जी० ३१३००-३०६ । ___ प्रतौ पूर्ववतिसूत्रे 'जाव सतसहस्सपत्तहत्थगा' २. जाव वणमालादारवण्णओ (क, ख, ग, ट, इति पाठसमाहारोस्ति । त्रि)। ८. तिदिसि तो पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता (क, ख, ३. अतः पूर्व आदर्शेषु एक अतिरिक्तसूत्रं दृश्यते- ट)। तेसि णं दाराणं उप्पि बहवे अट्ठमंगला उझ्या ६.सं० पा.-आयामेणं जाव दो। छत्ताइछत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); तेसि णं १०. जी. ३३३७०-३७४,३०८,२७७-२८४ । दाराणं उप्पि भट्टमंगला जाव सतसहस्सपत्त- ११. वइरामया अक्खाडगा पण्णत्ता (क, ख,ट); हत्था सम्वरयणामया अच्छा जाव पडि वइराम या अक्खवाडगा पण्णत्ता (ग, त्रि)। (ता)। १२. सीहासणा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. तिदिसि तओ महमंडवा पण्णत्ता (क, ख, ग, १३. जी० ३१३०६-३१३, ३३६-३४५। ट, त्रि)। १४. जाव दामा अपरिवारा (क, ख, ट); जाव ५. छ सकोसाइं जोयणाई (ता)। दामा सपरिवारो (ग, त्रि); जाव दामा ६. जी. ३१३७२,३७३, ३०८, २७७-२८४ । (ता)। ७. पण्णत्ता सोत्थिय जाव मच्छ (ग,त्रि); पण्णत्ता १५. तिदिसिं तो मणिपेढियाओं पण्णत्ताओ (क, तं जहा सोत्थिय जाव मच्छ (मवृ); ता' ख, ग, ८, त्रि)। . . . Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ तच्चा चउन्विहपडिवती अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ३८१. तासि णं मणिपेढियाणं उम्पि पत्तेयं-पत्तेयं 'चेइयथभे पणत्ते"। ते ण चेइयथूभा 'दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, सातिरेगाई दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं',' सेया संखंक-कुंद-दगरय-अमयमहियफेणपुंजसणिकासा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।। ३८२. तेसि णं चेइयथूभाणं उप्पि अट्ठमंगलगा बहुकिण्हचामरझया' छत्तातिछत्ता॥ ३८३. तेसि णं चेतियथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ३८४. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चत्तारि जिणपडिमाओ जिणस्सेहपमाणमेत्ताओ' पलियंकणिसण्णाओं थूभाभिमुहीओ चिट्ठति,' तं जहा-उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेण, ।। ३८५. तेसि णं चेइयथूभाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ दो-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ ३८६. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चेइयरुक्खे पण्णत्ते, ते णं चेइयरुक्खा अट्ठजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उव्वेहेणं, दो जोयणाई खंधी, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, छजोयणाई विडिमा, वहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं", साइरेगाई अजोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ता। ३८७. तेसि णं चेइयरुक्खाणं अयमेतारूवे वण्णावासे पण्णते, तं जहा---'वइरामयमूलरययसुपति हितविडिमा" रिटामयकंद वेरुलियरुइल-खंधा सुजातवरजातरूवपढमगविसालसाला नाणामणि रयणविविधसाहप्पसाह - वेरुलियपत्त- तवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्तमउय १. चेइयथूभा पण्णता (क, ख, ग, ट, ता, त्रि, प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तो 'सापि चार्द्ध योजनं म)। विष्कम्भेण' इति व्याख्यातम्, किन्तु एतत् २. साइरेगाई दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं दो सम्यग् न प्रतीयते। रायपसेणइय (सू० २२७ जोयणाई आयामविक्खं भेणं (ता, मवृ)। वृत्ति पृ० २१६) 'अष्टो योजनानि विष्कम्भेण' ३. झया पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 इति व्याख्यातमस्ति तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति४. मणिपीढियाणं (त्रि)। वृत्तावपि (पत्र ३३२) 'अष्टौ योजनानि ५. मेत्तीओ (ता)। आयामविष्कम्भाभ्यां' इति व्याख्यातं दृश्यते, ६. संपनियंक' (ता)। अत: 'अट्ट जोयणाई' इति पाठः एव समी७. सन्निविट्ठाओ चिट्ठति (क, ग, त्रि); चीनोस्ति। सन्निखित्ताओ चिट्ठति (ख, ट, राय० सू० १०. विक्खंभेणं (ता, मवृ)। २२५)। ११. वइरामयमूला रययसुपतिट्ठिता विडिमा (क, ८. पुरओ तिदिसि (क, ख, ग, ट, त्रि)। ख, ग, ट, त्रि)। ६. अद्धजोयणाई (क, ग, ट, त्रि) ! मलयगिरिणा १२. रिट्ठामयविउलकंद (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै सुकुमालपवालपल्लववरंकुरधरा विचित्तमणि रयणसुरभिकुसुमफलभरणमियसाला सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया अधियं णयणमणणिव्युतिकरा अमयरससमरसफला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ३८८. ते णं चेइयरुक्खा अण्णेहिं वहूहिं तिलय-लवय-छत्तोवग-सिरीस-सत्तिवण्णदहिवण्ण-लोद्ध-धव-चंदण-[अज्जुण ? ] -नीव-कुडय-कर्यब-पणस-ताल-तमाल-पियाल-पियंगपारावय-रायरुक्ख-नंदिरुक्षेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता॥ ३८६. ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा 'कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला मूलमंतो" कंदमंतो जाव' सुरम्मा ॥ ३६०. ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा अण्णाहिं बहूहिं पउमलयाहिं जाव सामलयाहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ। ३६१. तेसि णं चेइयरुक्खाणं उप्पि' अट्ठमंगलगा 'झया छत्तातिछत्ता ॥ ३९२. तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ 'पत्तेयं-पत्तेयं मणिपढिया पण्णत्ता । ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ३६३. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते। ते णं महिंदज्झया अट्ठमाई जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विखंभेणं, वइरामय-वट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्टमट्ठसुपतिट्ठिता विसिट्ठा अणेगवर-पंचवण्णकुडभीसहस्स-परिमंडियाभिरामा वा उद्धृय विजयवेजयंतीपडाग-छत्तातिछत्तकलिया तुंगा गगणतलमणलिहंतसिहरा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ३६४. तेसि णं महिंदज्झयाणं उप्पि अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता। ३६५. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरओ 'पत्तेयं-पत्तेयं णंदा पुक्खरिणी पण्णत्ता । ताओ णं पूक्खरिणीओ अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं 'छ जोयणाई सक्कोसाइं विक्खंभेणं, दस१. जंबूणयरत्तमउयसुकुमालवालपल्लवसोभंतवरं . ५. मूलवंतो (क, ख, ग, ट, त्रि)। कुरग्गसिहरा (क,ख,ग,ट,त्रि); जंबूणय रत्तम- ६. जी० ३१२७४-२७६ । उयसुकुमालकोमलपवालपल्लववरंकुरधरा (ता); ७. जी० ३।२६८ । क्वचित्पाठः 'जंबूणयरत्तमउयसुकुमालकोमल- ८. जी० ३।२६८। पल्लवंकरग्गसिहरा' (मव) । ६. उप्पि बहवे (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. समिरीया (ख)। १०. जाव हत्यगा (ता); जाव सहस्सपत्तहत्थगा ३. ५८३ सूत्रे अज्जूणा' इति पदं दृश्यते । औप- सव्वरयणामया जाव पडिरूवा (मव) । पातिकेपि (सूत्र ६) 'चंदणेहिं अज्जुहि' इति ११. तिदिसि तओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पाठो लभ्यते । १२. गगणतलमभिलंघमाणसिहरा (क, ख, ग, ट, ४. 'ता' प्रतो 'बहुहिं तिलएहि लवएहि' इत्यादीनि ता, त्रि)। सर्वाणि वृक्षवाचकानि पदानि तृतीया बहुवच- १३. तिदिसि तमओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। नान्तानि दृश्यन्ते । १४. छ सकोसाई जोयणाई (ता)। Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती जोयणाई उब्वेहेणं, अच्छाओ सण्हाओ पुक्खरिणीवण्णओ, पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ' | ३६६. तासि णं णंदाणं पुक्खरिणीणं तिदिसि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तेसि णं तिसोवाणपडिव गाणं 'वण्णओ, तोरणा भाणियव्वा जाव' छत्तातिच्छत्ता " ॥ ३६७. सभाए णं सुहम्माए छ मणोगुलिया साहस्सीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- पुरत्थमेणं दो साहसीओ, पञ्चत्थिमेणं दो साहस्सीओ, दाहिणेणं एगा साहस्सी, उत्तरेणं एगा साहस्सी । तासु णं मणोगुलियासु बहवे सुवण्णरुपामया फलगः पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया णागदंतगा पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएस नागदंत बहवे कि सुत्तवद्धा वग्धारितमल्लदामकलावा जाव सुक्किलसुत्तबद्धा वग्घारित - मल्लदामकलावा । वे णं दामा तवणिज्जलंबूसगा जाव' चिट्ठति ॥ ३३७ ३६८. सभाए णं सुहम्माए छ गोमाणसीसाहस्सीओ' पण्णत्ताओ, तं जहा - पुरत्थिमेणं दो साहसीओ, एवं पच्चत्थिमेणवि, दाहिणेणं सहस्सं एवं उत्तरेणवि । तासु णं गोमाणसीसु बहवे सुवण्णरुपामया फलगा पण्णत्ता" । तेसु णं सुवण्णरुप्पामएसु फलगेसु बहवे वइरामया नागदंतगा पण्णत्ता' । तेसु णं वइरामएसु नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता । तेसु णं रययामासु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं धूवघडियाओ कालागरु-पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघम घें तगंधुद्धयाभिरामाओ जाव घाणमणणिव्वुइकरेण गंधेणं ते पएसे सव्वतो समंता आपूरेमाणीओ आपूरेमाणीओ सिरीए अतीव अतीव उवसोमाणीओ-उवसोभेमाणीओ चिट्ठति ॥ ३६६. सभाएं णं सुधम्माए अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" मणीणं फासो उल्लोए पउमलयाभत्तिचित्ते जाव" सव्वतवणिज्जमए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ४०० तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'महं एगा १२ मणिपेढिया पण्णत्ता । सा णं मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम विक्खंभेणं जोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ १. जी० ३।२८६ । वण्णओ जाव पडिरूवाओ (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. जी० ३।२८७-२६० । ३. पुरतो पत्तेयं पत्तेयं तोरणे पं वण्णओ (ता) : ४. गुलिकासहस्राणि (मवृ); मुद्रितवृत्ती 'मनो' इति कोष्ठके मुद्रितमस्ति, किन्तु हस्तलिखितवृत्तिषु 'गुलिका' इत्येव पदमस्ति । ५. जी० ३१३०२ । ६. गोमाणसिया साहस्सीओ (ता, राय० सू० २३६) । ७. सं० पा० - पण्णत्ता जाव तेसु । ८. जी० ३।३०२ । ६. 'ता' प्रतौ एतस्य सुत्रस्य स्थाने सूत्रद्वयं लभ्यते - सभाए जं सुहम्माए उल्लोया य पउमलताभत्तिचित्ता जाव सामल सव्वतवणिज्जमए जाव पडि । सभाए णं सु अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव मणि । मलयगिरिवृत्तावपि सूत्रद्वयसंकेतो दृश्यते-- 'सभाए णं सुहम्माए' इत्यादि उल्लोकवर्णनं 'सभाए णं सुहम्माए' इत्यादि भूमिभागवर्णनं च प्राग्वत् । १०. जी० ३।२७७-२८४ । ११. जी० ३१३०८ । १२. एगा महं (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४०१. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं 'महं एगे" माणवए गाम चेइयखंभे पण्णत्ते-अट्ठमाइं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उन्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, 'छकोडीए छलसे" छविग्गहिते वइरामयवट्टलट्ठसंठिय-सुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपतिट्ठिते एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव' पडिरूवे ॥ ४०२. तस्स णं माणवकस्स चेतियखंभस्स उरि छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठावि छक्कोसे वज्जेत्ता, मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्ण रुप्पमया फलगा पण्णत्ता । तेसु णं सुवण्णरुप्पमएसु फलएसु वहवे वइरामया गागदंता पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता । तेसु णं रययामयसिक्कएसु वहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गका पण्णत्ता । तेसु णं वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु वहुयाओं जिण-सकहाओ संनिक्खित्ताओ चिठ्ठति, जाओणं विजयस्स देवस्स अण्णसिं च बहुणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ बंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पज्जुवासणिज्जाओ। ४०३. माणवगस्स णं चेतियखंभस्स उरि अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। ४०४. तस्स णं माणवकस्स चेतियखंभस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं 'महं एगा" मणिपेढिया पण्णत्ता । सा णं मणिपेढिया 'जोयणं आयाम-विक्खं भेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं" सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ ४०५. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं 'महं एगे सीहासणे पण्णत्ते सपरिवारे"। ४०६. तस्स णं माणवगस्स चेतियखंभस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ४०७. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते। तस्स णं देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-नाणामणिमया पडिपादा, सोवणिया पादा, नाणामणिमया पायसीसा, जंबूणयमयाई गत्ताई, वइरामया संधी, णाणामणिमए वेच्चे, रययामई तूली, लोहियक्खमया बिब्बोयणा, तवणिज्जमई गंडोबहाणिया । से णं देवसयणिज्जे सालिंगणवट्टिए" उभओ बिब्बोयणे दुहओ उण्णए मज्भे णय१. x (क, ख, ग, ट, त्रि, राय० सू० २३९) । अद्धजोयणं' इति संवादिपाठो लभ्यते । स्वीकृत२. छअंसे छकोडीए (ता)। पाठस्याधारोस्ति 'ता' प्रतिवृत्तिश्च । ३. जी० ३।३६३, ३६४ । ८. एगं महं सीहासणपण्णत्ते सीहासणवण्णो ४. बर्वे (क, ख, ग, ट, त्रि)। (क, ख, ग, ट, त्रि) जी० ३।३३८-३४५ । ५. तायो (ता, राय० सु० २४०) । ६. विच्चे (क, ख, ग); तिच्चे (ट); चिच्चे ६. एगा महं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाह- १०. क, ख, ग, ८, त्रि' आदर्शषु ‘सालिंगणवट्टिए' ल्लेणं (क, ख, ग, ट, त्रि); अस्या एय प्रति- इति पदं 'मझे णयगंभीरे' इति वाक्यानन्तर. पत्तेः ३९२ सूत्रे तथा ४०६ सूत्रेपि 'जोयणं, मस्ति । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती गंभीरे गंगापुलिणवालुया-उद्धालसालिसए 'ओयवियखोमदुगुल्लपट्ट' पडिच्छयणे आइणगरूत-बूर-णवणीयतूलफासे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुते सुरम्मे" पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ॥ ४०८. तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महं' एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-जोयणमेगं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ४०६. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि 'एत्थ णं" 'खुड्डए महिंदज्झए" पण्णत्ते । ‘पमाणं वण्णओ” जो महिंदज्झयस्स" ।। ४१०. तस्स णं खडुमहिंदज्झयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स महं एगे चोप्पालं" नाम पहरणकोसे पण्णत्ते–'सव्ववइरामए अच्छे जाद पडिरूवे"। तत्थ णं विजयस्स देवस्स बहवे फलिहरयणपामोक्खा पहरणरयणा संनिक्खित्ता चिट्ठति --उज्जला सुणिसिया, सुतिक्खधारा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। ४११. तीसे णं सभाए सुहम्माए उप्पि बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। ४१२. समाए णं सुधम्माए उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं 'महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते-अद्धतेरस जोयणाई 'आयामेणं, छ जोयणाई सकोसाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं जाव गोमाणसिया वत्तव्वया जा चेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्या" तहेव दारा मुहमंडवा पेच्छाधरमंडवा झया थूभा चेइयरुक्खा महिंदज्झया णंदाओ पुक्खरिणीओ 'सुधम्मासरिसप्पमाणं मणगुलिया दामा गोमाणसी५४ धूवघडियाओ" तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणि'फासो । ४१३. तस्सणं सिद्धायतणस्स वहमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता--दो जोयगाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव १. ओतवित (ता)। (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. पडिछायणे (ख)। ६. खुड्डागमहिंद (ता)। ३. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कित- १०. चुपाले (क, ख, ८); चुप्पालए (ग, त्रि); पाठस्य क्रम भेदो दृश्यते –सुविरइयरयत्ताणे चोप्पालए (ता)। ओयवियखोमदुगुल्लपट्ट-पडिच्छयणे रत्तंय- ११. ४ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। संवृते सुरम्मे आइणग-रून-बूर-णवणीय-तूल- १२. 'क, ख, ग, ट, वि' आदर्शषु प्रायः सर्वत्र ‘एगे फासे । मह' इति पाठो लिखितांस्ति। ४. महई (त्रि)। १३. जी० ३१३७२-३६६ । ५. एग महं (क, ख, ग, ट, त्रि)! १४. तओ य मुधम्माए जहा पमाणं मणगुलियाणं ६. खुड्डागमहिंदझए (ता)। (त्रि)। ७. जी. ३।३६३,३६४ । १५. धूमघडियाओ (क, ख)। ८. अद्धदमाई जोयणाई उड्ढे उच्चतेणं अद्धकोसं १६. तं चेव सभाए, सुधम्माए वत्तव्वता सच्चेव उन्हेणं अद्धकोसं विक्खंणं वेरुलियामयवट- णिरवयवा पमाणादीया जाव गोमाणसियाओ लट्ठसंठिते तहेव जाव मंगला झया छसातिछत्ता (ता)। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० जीवाजीवाभिगमे पडिरूवा ।। ४१४. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए पण्णत्ते-दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, साइरेगाई दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, सव्वर यणामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ४१५. तत्थ णं देवच्छंदए अटुसतं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमेत्ताणं संणिखित्तं चिट्ठइ । तासि णं जिणपडिमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-तवणिज्जमया हत्थतल-पायतला,' अंकामयाई णक्खाई अंतोलोहियक्खपरिसेयाई, 'कणगामया पादा, कणगामया गोष्फा, कणगामईओ जंघाओ, कणगामया जाण, कणगामया ऊरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ, तवणिज्जमईओ णाभीओ, रिट्टामईओ रोमराईओ, तवणिज्जमया चूचुया', तवणिज्जमया सिरिवच्छा 'कणगमईओ बाहाओ, कणगमईओ पासाओ, कणगमईओ गीवाओ, रिट्टामए मंसू" सिलप्पवालमया ओढा, फालियामया' दंता तवणिज्जमईओ जीहाओ, तवणिज्जमया तालुया, कणगमईओ णासियाओ', अंतोलोहितक्खपरिसेयाओ, अंकामयाणि अच्छीणि अंतोलोहितवखपरिसेयाई रिट्ठामईओ ताराओ रिट्ठामयाइं अच्छिपत्ताई, रिट्ठामईओ भमुहाओ, कणगामया कवोला, कणगामया सवणा, कणगामयणिडालपट्टियाओ," वइरामईओ सीसघडीओ तवणिज्जमईओ केसंतकेसभूमीओ" रिट्ठामया उवरिमुद्धजा॥ ४१६. तासि णं जिणपडिमाणं पिटुओ पत्तेयं-पत्तेयं छत्तधारपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुंदेंदुप्पगासाई" सकोरेंटमल्लदामधवलाइं आतपत्ताई" सलील धारेमाणीओ"-धारेमाणीओ चिट्ठति ॥ ४१७. तासि णं जिणपडिमाणं उभओ पासिं 'दो-दो५ चामरधारपडिमाओ १. x (क, ख, ग)। व्याख्यातः। २. चिन्हितः पाठः प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ राय- प. तारगाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पसेणइयसूत्रस्य वृत्तावपि (पृ० २३०) व्या- ६. सवणा अंतोलोहियक्खपरि (ता)। ख्यातो नास्ति । १०. "णिडालवट्टा (क, ख, ग, ट); 'णिडाला वट्टा ३. चुच्चुया (क, ग, त्रि); चुचुया (ख,ट)। (त्रि)। ४. चिन्हितः पाठः प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती रायपसे- ११. केसंतभूमीओ (ता)। णइयसूत्रे (सू० २५४) तद्वृत्तावपि नास्ति १२. हिम रययकुंदेंदुसप्पकासाइं (क, ख, ग, ट, व्याख्यातः। त्रि); हिमरयतकुमुदकुदेंदुसष्णिकासाई (ता)। ५. फलिहामया (क, ख, ग, त्रि)। १३. मायावत्ताई (क)। ६. णासाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. ओहारेमाणीओ २ (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' प्रतिषु पुलगमईओ १५. पत्तेयं-पत्तेयं (क, ख, ग, ट, त्रि); प्रस्तुतवृत्ती दिदीओं' इति पाठोस्ति । 'ता' प्रती स्ट्रिामईओ रायपसेणइयवृत्ती (पृ. २३२) च द्वे द्वे' इति ताराओं' इति पाठानन्तरं 'पुलगमईओ' इति व्याख्यातमस्ति । ताडपत्रीयादर्श दो दो' पदं लभ्यते । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तो रायपसेणइय- इति पाठ: उपलब्धोस्ति, तेनैष पाठः भूले सूत्रे (सू० २५४) तवृत्तावपि नास्ति स्वीकृतः । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती पण्णत्ताओ । ताओ णं चामरधारपडिमाओ 'चंदप्पह-वइर-वेरुलिय-नाणामणिरयणखचितचित्तदंडाओ" सुहम रयतदीहवालाओ संखंक-कुंद-दगरय-अमतमथितफेणपुंजसण्णिकासाओ धवलाओ चामराओ 'गहाय सलील वीजेमाणीओ" चिठ्ठति ।। ४१८. तासि णं जिणपडिमाणं पुरओ दो-दो नागपडिमाओ, दो-दो जक्खपडिमाओ, दो-दो भूतपडिमाओ, दो-दो कुंडधारपडिमाओं संनिक्खित्ताओ चिट्ठति-सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। ४१६ तत्थ णं देवच्छंदए जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसतं घंटाणं अट्ठसतं वंदणकलसाणं अट्ठसतं भिंगारगाणं एवं आयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपतिट्ठकाणं मणगुलियाणं वातकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं ह्यकंठगाणं "गयकंठगाणं नरकंठगाणं किण्ण रकंठगाणं किंपुरिसकंठगाणं महोरगकंठगाणं गंधव्वकंठगाणं उसभकंठगाणं, पुप्फचंगेरीणं एवं मल्ल-चण्ण-गंध-वत्थाभरणचंगेरीण सिद्धत्थचंगेरीणं लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं सीहासणाणं छत्ताणं चामराणं, तेल्लसमुग्गाणं कोट्ठसमुग्गाणं पत्तसमुरगाणं चोयसमुग्गाणं तगरसमुग्गाणं एलासमुग्गाणं हरियालसमुग्गाणं हिंगुलयसमुग्गाणं मणोसिलासमुग्गाणं अंजणसमुग्गाणं, अट्ठसयं झयाणं, अट्ठसयं धूवकडुच्छ्याणं संनिक्खित्तं चिट्ठति ॥ ४२०. तस्स णं सिद्धायतणरस उष्पि बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। १. चंदप्पभवइरवेरुलियणाणामणिकणगरयण दर्शषु 'तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो असतं' विमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडाओ एवं पाठो लभ्यते। चिल्लियाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. अतोग्रे 'ता' प्रतौ संग्रहणीगाथाद्वयं लभ्यते-- २. एष पाठः क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्गेषु 'संखक- चंदणकलसा भिंगारा, चेव होंति थालाओ। कुंद' इति पाठानन्तरं विद्यते। पातीओ सुपतिढा, मणगुलिया वातकरगा य ॥१२॥ ३. सलील ओहारेमाणीओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। चित्ता रयणकरंडा, हयगयणरकंठका य चंगेरी॥ वृत्ती चाम गणि गृहीत्वा सलील वीजयन्त्यः' पडला सीहासण छत्त, चामरा समुग्गग झया य ॥२॥ इति व्याख्यातमस्ति । 'ता' प्रतावपि वृत्ति- दत्तावपि एतद् गाथाद्वयं उल्लिखितमस्ति, अत्र संवादी पाठोस्ति । ततः स एव मूले स्वीकृतः। सङ्ग्रहणी गाथा४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एतावान् चंदणकलसा भिंगारगा य, आयंसगा य थाला य । अतिरिक्तः पाठो लभ्यते--'विणओणयाओ पाईओ सुपइट्ठा, मणगुलिया वायकरगाय ॥१॥ पायवडियाओ पंजलीउडाओ' । एतत् पाठान्तरं चित्ता रयणकरंडा, हयगयणरकंठगा य चंगेरी। 'ता' प्रती नास्ति उपलब्धम् । वृत्तौ राय- पडला सीहासण छत्त चामरा समुग्गय झया य ॥२॥ पसेण इय (सू० २५७) सूत्रे तद् वृत्तावपि- ७. सं० पा०-हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं नास्ति। पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थगचंगेरीणं पुफ्फ५. 'ता' प्रतौ 'तत्य णं देवच्छंदए असतं' इति पडलगाणं अदुसयं तेल्लसमुग्गाणं जाव धूवकडुपाठोस्ति, वृत्तौ च तस्मिन् देवच्छन्दके जिन च्छयाणं। प्रतिमानां पुरतोऽष्टशतं' इति व्याख्यातमस्ति । ८. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु अतिरिक्तः वृत्तिव्याख्यानुसारी पाठ एव स्वीकृतः । शेषा- पाठी लभ्यते-उत्तिमागारा सोलसविहेहि Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ जीवाजीवाभिगमे ४२१. तस्स णं सिद्धायतणस्स णं उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा उववायसभा पण्णत्ता 'जहा सुधम्मा तहेव जाव गोभाणसीओ उक्वायसभाए वि दारा मुहमंडवा उल्लोए भुमिभागे तहेव जाव' मणिफासो" ! __४२२. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, पत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं, सन्बाणिमाई अच्छा जाव पडिरूवा ।। ४२३. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एस्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णत्ते । तस्स णं देवसयणिज्जस्स वण्णाओ' ।। ४२४. उववाय सभाए णं उप्पि अट्ठट्टमंगलगा झगा छत्तातिछत्ता ।। ४२५. तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे हा पण्णत्ते। से गं हराए 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं, छ जोयणाई सक्कोसाइं विवखंभेणं, दस जोयणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे वग्णओ जहेव णंदाणं पुक्खरिणीण जाव" तोरणवण्णओ ।।। ४२६. तस्स णं हरयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा अभिसेयसभा पण्णत्ता जहा सभासुधम्मा तं चेव निरवसेसं जाव गोमाणसीओ भूमिभाए उल्लोए तहेव ।। ४२७. तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।। ४२८. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे सीहासणे पण्णत्ते सीहासणवण्णओ' अपरिवारों॥ ४२६. तत्थ णं विजयस्स देवस्स सुहू अभिसेकभंडे" संनिक्खित्ते चिट्ठति ।। ४३०. अभिसेयसभाए उणि 'अट्टमंगलगा झया छत्तातिछत्ता" ॥ ४३१. तीसे णं अभिसेयसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा अलंकारियसभा रयणेहि उबसोभिया तं जहा रयणेहिं जाव तोरण वण्णओ (ता) । रिठेहिं । ७. जी० ३।३७२-३६६ । १. जी० ३।३७२-३६६ । 5. जी० ३।३११-३१३ ॥ २. पमाण जहा सधम्मसभाए जाव वणगा ६. परिवारो (क., ग); सपरिवार (ता); सपरि वारो (त्रि); वृत्तिकृता अपरिवारो' इति ३. जी० ३।४०७ । पाठ एव व्याख्यातोस्ति ----सिंहासनवर्णकः ४. छत्तातिछत्ता जाव उत्तिमागारा (क, ख, ग, प्राग्वत्, नवरमत्र परिवारभूतानि भद्रासनानि ___ट, त्रि)। न वक्तव्यानि। ५. जी० ३१३६५,३६६ । १०. अभिसेक्के भंडे (ख, ग, ता, त्रि)। ६. आयाम विक्खं भणं उब्वेधो वण्णओ जहा ११. अटुटुमंगलए जाव उत्तिमागारा सोलसविधेहि गंदाए पुक्खरणीए से गाए पयुमवणसंड रयणेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि); अट्टमं जाव वण्णओ जाव सयंति । तस्स णं हरतस्स तिदिसि हत्थया (ता)। ततो तिसोमा तेसि शं तिसो पुरतो पत्तेय Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती .४३ पण्णत्ता, अभिसेयसभा वतव्वया 'जाव' सीहासणं अपरिवारं ।' ४३२ तत्थ णं विजयस्स देवस्स सुबहू अलंकारिए भंडे संनिक्खित्ते चिट्ठति ॥ ४३३. अलंकारियसभाए उप्पि अट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता ॥ ४३४. तीसे णं अलंकारियसभाए उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं महं एगा बवसायसभा पण्णत्ता, अभिसेयसभा वत्तव्वया जाव सीहासणं अपरिवार ॥ ४३५. तत्थ णं विजयस्स देवस्स महं एगे पोत्थयरयणे संनिक्खित्ते चिट्टति । तस्स णं पोत्थयरयणस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णते, तं जहा-रिट्ठमईओ कंबियाओ तवणिज्जमए दोरे ‘णाणामणिमए गंठी अंकमयाई पत्ताई" वेरुलियमए लिप्पासणे तवणिज्जमई संकला रिट्ठामए छादणे रिट्ठामई मसी, वइरामई लेहणी 'रिटामयाइं अक्खराइं" धम्मिए लेक्खे ॥ ४३६. ववसायसभाए णं उप्पि अमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ।। ४३७. तीसे" णं ववसायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं महं एगे बलिपीढे पण्णत्ते-दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे ॥ ४३८. तस्स णं बलिपीढस्स उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं महं एगा गंदापुक्खरिणी पण्णत्ता, जं चेव माणं" हरयस्स, तं चेव सव्वं ।। विजयदेवाधिगारो ४३६. तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए" विजयदेवत्ताए उववण्णे ॥ १. जी० ३।४२६-४२८ । १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु ४३७, ४३८ २. भाणियन्वा जाव गोमाणसीओ मणिपेढियाओ सूत्रयोः क्रमभेदः पाठभेदश्च वर्तते-तीसे णं जहा अभिसेयसभाए उपि सीहासणं (क, ख, ववसायसभाए णं उत्तरपुरस्थि मेणं एत्थ णं एगा ग, ट, त्रि)। महं नंदा पुक्खरिणी पण्णता । जं चेव पमाणं ३. सपरिवारे (ता)। हरयस्स तं चेव सव्वं । तीसे पं नंदाए पुक्ख४. सपरिवार (क); सपरिवारो (ता)। रिणीए उत्तरपुरस्थिमेणं, एत्थ णं एगे महा ५. कंबियाओ रयतामयाई पत्तकाई रिट्ठामयाई बलिपेढे पण्णत्ते दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं अक्खराई (क, ख, ग, ट, त्रि) । जोयणं बाहल्लेणं सव्वरयतामए अच्छे जाव ६. रजतमयः (वृ)। पडिरूवे। 'ता' प्रतौ अनयोर्द्वयोः सूत्रयोः ७. पाणामणिमए गंठी (क, ख, ग, ट, त्रि); स्थाने एकमेव सूत्रमस्ति-तीसे णं यवसायअंकमयाइं पत्तगाई जाणामणिमए गंठी सभाए उत्तरपुरस्थिमेणं, एस्थ णं बलिपेढे णाम (ता) पेठे पं दो जोयणाई आयामवि जोयणं बा सव्व१. लिवासणे (ख, ता)। रतणामए अच्छे पडि । ६. छंदणे (क, ग, ट, ता)। १३. जी० ३१४२५ । १०. x (क, ख, ग. ट, त्रि) । १४. बोंदीए (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. सत्ये (क, ख, ग, ट त्रि) । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ जीवाजीवाभिगमे ४४०. तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति [तं जहा- आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए ‘आणापाणुपज्जत्तीए भासमणपज्जत्तीए"]॥ - ४४१. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-'कि मे पुब्बि करणिज्जं ? किं मे पच्छा करणिज्ज ? कि मे पुव्वि सेयं ? किं मे पच्छा सेयं" ? कि में 'पुविपि पच्छावि" हिताए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए" आणगामियत्ताए भविस्सति ।। ४४२. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा विजयस्स देवस्स इमं एतारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं समभिजाणित्ता जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विजयं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, बद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणप्पियाणं विजयाए रायहाणीए सिद्धायतणंसि अट्ठसतं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहपमाणमेत्ताणं संनिक्खित्तं चिट्ठति, सभाए सुधम्माए माणवए चेतियखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु वहओ जिण-सकहाओ सन्निक्खित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं देवाणुप्पियाणं अण्णेसि च बहूर्ण विजयरायहाणिवत्थव्वाण देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ पूयणिज्जाओ माणणिज्जाओ सक्कारणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पज्जुवासणिज्जाओ। एतण्णं देवाणप्पियाणं पुब्धि करणिज्ज, एतण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा करणिज्जं, एतण्णं देवाणुप्पियाणं व्वि सेयं, एतण्णं देवाणुप्पियाणं पच्छा सेयं, एतण्णं देवाणुप्पियाणं पुविपि पच्छावि" •हिताए सुहाए खमाए णिस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति ॥ ४४३. तए णं से विजए देवे तेसि सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयम; सोच्चा णिसम्म हतु- चित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाण' हियए देवसयणिज्जाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता देवदूसं" परिहेइ, परिहेत्ता देवसयणिज्जाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता उववायसभाओ पुरथिमेणं दारेणं' णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव १. आणापाणपज्जत्तीए भासामणपज्जत्तीए ७. जाणित्ता (क, ख, ग, ट, त्रि); अतोग्रे 'ता' (क, ख, ग, ट, त्रि) । कोष्ठकान्तरवर्ती पाठः प्रतो अतिरिक्त: पाठो दश्यते हतद्रचित्तमाणंव्याख्यांश: प्रतीयते । दिता णंदिता पीतिमणा परमसोमणसिता हरि२. किं मे पुवि सेयं किं मे पच्छा सेयं कि मे सवसविसप्पमाणहितया । पुब्वि करणिज्जं कि मे पच्छा करणिज्ज (क, ८. बहुवीओ (ता)। ख, ग, ट, त्रि)। ६. x (ता)। ३. पुव्वि वा पच्छा वा (क,ख,ग,ट,ता,त्रि)। १०. सं० पा०-पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए। ४. खेमाए (त्रि)। ११. भविस्सतीति कट्ठ महया महया जयजय सई ५. णिस्सेसाए (क, ख, ग, त, ता); णिस्सेसयाते पउंजति (क,ख,ग,ट,त्रि)! (त्रि) १२. सं० पा०-हतुटु जाव हियए। ६. भविस्सतीति कट्ठ एवं संपेहेति (क, ख, ग, १३. दिव्वं देवदूसजुयलं (क,ख,ग,ट,त्रि) । ट, त्रि)। १४. पुरथिमिल्लेणं (ता)। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्धिहपडिवत्ती हरए तेणेव उवागच्छति, हरयं अणुपदाहिणं करेमाणे-करेमाणे पुरथिमेणं तोरणेणं अणप्पविसति, अणुप्प विसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहिता हरयं ओगाहति, ओगाहित्ता' जलमज्जणं करेति, करेत्ता जलकिडं करेति, करेत्ता आयंते चोखे परमसूइभूते हरयाओ पच्चुत्तरति, पच्चुत्तरित्ता जेणामेव अभिसेयसभा तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पदाहिणं करेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सोहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ४४४. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिओगिए देवे सद्दावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विजयम्स देवस्स महत्थं महग्धं महरिहं विपुलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेह ।। - ४४५. तए णं ते आभिओगिया देवा सामाणियपरिसोववण्णेहिं देवेहिं एवं वत्ता समाणा हद्वतुटु'- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट एवं देवा ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति', समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं णिसिरंति, तं जहा-रयणाणं जाव' रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडंति, परिसाडित्ता अहासहमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता दोच्चंपि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवणियाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पामयाणं कलसाणं, अट्ठसहस्सं मणिमयाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णरुप्पामयाणं, अट्ठसहस्सं सुवण्णमणिमयाणं, अट्ठसहस्सं रुप्पामणिमयाणं, अट्टसहस्सं सुवण्णरुप्पामणिमयाणं, अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं भिगाराणं, एवंआयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपतिट्ठकाणं मणगुलियाणं वातकरगाणं, चित्ताणं रयणकरंडगाणं, पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थगचंगेरीणं, पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थगपडलगाणं, सीहासणाणं छत्ताणं चामराण', तेल्लसमूग्गाणं जाव अंजणसमुरगाण झयाणं, असहस्र ध्रुवकडुच्छ्याणं विउच्वंति, विउव्वित्ता 'ते साभाविए य विउब्बिए य कलसे य जाव धवकडुच्छुए य गेण्हंति, गेण्हित्ता विजयातो रायहाणीतो पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता" ताए उक्किट्ठाए 'तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्धाए उधुयाए जइणाए छेयाए° दिव्वाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं वीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव खीरोदे समुद्दे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता खीरोदगं गिण्हंति, गिण्हित्ता जाइं तत्थ उप्पलाई जाव' सहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोदे समुद्दे तेणेव उवा१. ओगाहित्ता जलावगाहणं करेति २ ता (क,ख, ६. चामराणं अवपडगाणं बट्टकाणं तवसिप्पाणं __ गट,त्रि)। खोरगाणं पीणगाणं (क,ख,ग,ट,त्रि) । २. सं० पा०--हटतुटु जाव हियया । ७. गेव्हंति (ता); चिन्हाङ्कितः पाठो वृतौ ३. समोहणंति (क,ख,ग,ट,त्रि)। व्याख्यातो नास्ति । ४. जी० ३१७।४। ८. सं० पा०-उक्किट्टाए जाव दिवाए। ५. रुप्पमयाणं (क,ख,ग,ट,त्रि) सर्वत्र । ६. जी. ३१२८६ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जीवाजीवाभिगमे गच्छंति, उवागच्छित्ता पुक्खरोदगं गेण्हंति, गेव्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाब सहस्सपत्ताई ताई गिंति, गिव्हित्ता जेणेव समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाइं वासाई जेणेव मागधवरदामपभासाई तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्योदगं गिण्हति गिव्हित्ता तित्थ - मट्टियं हंति हित्ता जेणेव गंगा-सिंधु-रत्ता-'रत्तवतीओ महानदीओ" तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सरितोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्टियं गेण्हंति, गेव्हित्ता जेणेव चुल्लहिमवंत - सिरिवासधरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता 'सव्वतुवरे' सव्वपुप्फे सव्वगंधे सव्वमल्ले” सव्वोसहि सिद्धत्थए य गिव्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पउमद्दह-पुंडरीया' तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेव्हंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव हेमवय- हेरण्णवयाई" वासाई जेणेव रोहियरोहितंस - सुवण कूल रुपकूलाओ महानदीओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेव्हंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्टियं गेण्हंति, गेम्हित्ता जेणेव 'सद्दावाति-वियडावाति"ववेतढपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोस हिसिद्धत्थए य हंति, गेण्हित्ता जेणेव महाहिमवंत - रुप्पि - वासधरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता "सव्वतुवरे जाव सव्वोसहि सिद्धत्थए य गेण्हंति, गेहिता जेणेव महापउमद्दह- महापुंडरीयदहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेव्हंति, गेव्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई " • जाव सहरसपत्ताई ताई गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव 'हरिवास - रम्मगवासाई"" जेणेव हरि"हरिकंत नरकंत-नारिकंताओ महानदीओ" तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं हंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्टियं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव 'गंधावाति- मालवंतपरियागा"वट्टवेयड्ढपव्वया तेणेव उवागच्छंति, उवागिच्छत्ता "सव्वतुवरे जाव सव्वोस हिसिद्धत्थए य गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव णिसह नीलवंत - वासहरपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे" "जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेव्हंति, गेव्हित्ता जेणेव तिगिच्छिदह" - केस रिहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गेहंति, गेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई " "जाव १. रत्तवती सलिला (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. सलिलोदक ( राय० सू० २७६ ) । ३. उभओड (क, ख, गट, त्रि); उभयं तड (ता) 1 ४. सव्वतयरे ( राय०सू० २७६ ); 'तुवर, तूवर : 'इति शब्दद्वयमपि दृश्यते । ५. 'क,ख,ग,ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कितपाठस्य पुरतः प्रत्येकपदस्याग्रे यकारो विद्यते, यथा 'सव्वतूवरे य' इत्यादि ! ६. दहा दहा (ता) | ७. एरण (क, ख, गट, त्रि ) । ८. सद्दावइमालवंतपरियागा ( क, ख, ग, ट, त्रि); स्वीकृतपाठः वृत्त्यनुसारी वर्तते । द्रष्टव्यं ठाणं ४ ३०७ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ६. सं० पा० सव्वपुष्फे तं चैव १०. सं० पा०—उप्पलाई तं चैव । ११. हरिवास रम्मावासाई ( क, ख ); हरिवासे रम्मावासेति (ग,त्रि) । १२. x (क, ख, गट, त्रि) । १३. सलिलाओ ( क, ख, ग, ट,त्रि ) । १४. विडावतिगंधावति ( क, ख, ग, ट, त्रि) । १५. सं० पा० -- सव्वपुप्फे त चैव । १६. सं० पा० -- सव्वतुवरे य तहेव । १७. तिगिछिदह (क) 1 १५. सं० पा० – उप्पलाई तं चैव । Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउम्विहपडिवती ३४७ सहस्सपत्ताई ताइं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव पुव्वविदेहावर विदेहवासाई जेणेव सीया-सीओयाओ महाण ईओ "तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता उभयतडमट्रियं गेण्हंति, गेण्हिता जेणेव सव्वचक्कवट्टिविजया जेणेव सव्वमागहवरदामपभासाई तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तित्थोदगं गिव्हंति, गिण्हित्ता तित्थमट्टिय गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्ववक्खा रपव्वता तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सम्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव सव्वंतरणदीओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सलिलोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता' 'उभयतडमट्टियं गेव्हिंति, गेण्हित्ता जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव भइसालवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सम्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता सव्वतुवरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदामं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतुवरे जाव सम्वोसहिसिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचंदणं दिव्वं च सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधिए गंधे गेण्हंति, गेण्हित्ता एगतो मिलति', मिलित्ता जंबुद्दीवस्स पुरस्थिमिल्लेणं दारेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए' 'तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्याए उद्धृयाए जइणाए छेयाए° दिवाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमझेणं बीईवयमाणा-वीईवयमाणा जेणेव विजया रायहाणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विजयं रायहाणि अणुप्पयाहिणं करेमाणा-करेमाणा जेणेव अभिसेयसभा जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटट जएणं विजएणं वद्धावेंति. वद्धावेत्ता विजयस्स देवस्स तं महत्थं महाचं महरिहं विपुलं अभिसेयं उवति ।। ४४६. तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ, तिणि परिसाओ सत्त अणिया सत्त अणियाहिवई सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे विजयरायधाणिवत्थव्वगा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहिं उत्तरवेउन्विएहि य वरकमलपतिट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपडिपुण्णेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठगुणेहिं पउमुप्पल विधाणेहिं सुकुमालकरतलपरिग्गहिएहि अट्ठसहस्सेणं । सोवणियाणं कलसाणं रूप्पामयाणं मणिमयाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहि सव्वपुप्फेहिं सव्वगंधेहिं सव्वमल्लेहि सव्वोसहिसिद्धत्थएहि य सन्विड्डीए सव्वजुतीए सव्ववलेणं सव्वसमुदएणं सब्वायरेणं १. सं० पा०-जहा गईओ। २. सं० पा०--तित्थाई तहेव जहेव । ३. सं० पा०—गेण्हित्ता तं चेव । ४. मेलति (क,ख) ५. सं० पा०-उक्किदाए जाव दिव्वाए। ६ "चच्चातेहिं (क,ख,ग,त्रि)। ७. करतलसुकुमालकोमलपरिग्गहिएहि (क,ख,ग, ट,त्रि)। ८. अट्ठसतेणं (क,ख,ग,ट)। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जीवाजीवाभिगमे सबविभूतीए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं' सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं' सव्वदिव्वतुडियसद्दसणिणाएणं' महया इड्ढीए मया जुतीए महया वलेणं महया समुदएणं महया वरतुरियजमगसमगपडुप्पवादितरवेणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्ल रि-खरमुहि-हुडक्क-मुरव-मुइंगदुंदुहि-णिग्घोसनादितरवेणं महया-महया इंदाभिसेगेणं अभिसिंचंति ॥ - ४४७. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स महया-महया इंदाभिसेगंसि वट्टमाणंसि अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णच्चोदगं णातिमट्टियं पविरल फुसियं रयरेण विणासणं दिव्वं सुरभि गंधोदगवासं वासंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णिहतरयं णट्टरयं भट्टरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि सभितरवाहिरियं आसियसम्मज्जितोवलित्तं सित्तसुइसम्मट्ठ-रत्यंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि णाणाविहरागोसियझय-पडागतिपडागमंडितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि लाउल्लोइयमहियं गोसीस-सरसरतचंदण-दद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि उवचियवंदणकलसं वंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि आसत्तोसत्तविपूलवट्टवग्धारितमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलितं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तरुक्क-धवडझंत-मघमघेतगंधद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधगधियं गंधवट्टिभूयं करेंति, 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं-रयणवासं पुप्फवासं मल्ल वासं गंधवासं चुण्णवासं वत्थवासं आभरणवासं", अप्पेगइया देवा हिरणविधि भाएंति, ‘एवं-सुवण्णविधि रयणविधि पुप्फविधि मल्लविधिं गंधविधि चुण्ण विधि वत्थविधिं आभरण विधि", अप्पे१. सव्वसंभमेणं सब्बोरोहेणं सम्बगाडएहिं (क, ख, हाणि (क, ख, ग, ट, त्रि); महियं करेंति ग, ट, त्रि); x (ता) । अप्पे (ता)! २. अलंकारविभूसाए (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. वत्तो एष आलापकः 'करेंति' इत्यन्तिमपदेन ३. सव्वदिव्वतुडियणिणाएणं (क, ख, ग, द, त्रि) व्याख्यातः तथा अग्रिमालापकः 'अप्पेगतिया सब्बतुडियसद्द (ता)। देवा बंदण' इति पृथग् व्याख्यातः ! ४. "तुडियजमग (क, ख, ट, त्रि), 'तूर्य' शब्दस्य १०. रयणवासं वइरवासं (क, ख, ग, ट, त्रि)। 'तुरं, तूरिय' इति प्रयोगद्वयं लभ्यत रकारस्य ११. अप्येकका देवा हिरण्यवर्ष वर्षन्ति, अप्येककाः डकारो भवतीति 'तुडिय' मपि लभ्यते । प्रायः सुवर्णवर्षमप्येकका आभरणवर्ष पुष्पवर्षमप्येकका बहुषु स्थानेषु 'तुडिय' मिति पाठो लभ्यते, माल्यवर्षमप्येककाश्चूर्णवर्ष वस्त्रवर्ष वर्षन्ति वृत्तौ च त्रुटितमिति । अत्र ताडपत्रीयादर्श रिय' इति पदं प्राप्तं तेनात्र तत् स्वीकृतम्। १२. रयणविधि वइरविधि (क, ख, ग, ट, त्रि) । (मवृ)। ५. णिग्धोससंनिनादित रवेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। द्रष्टव्यं रायपसेणइय २८१ सूत्रस्य पाद६. आसित (क, ख, ग, ट, त्रि); आसीत (ता)। टिप्पणम् । ७. णाणाविहरागरंजियऊसियभयविजयवेजयंती (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 १३. एवं सुवर्ण रत्नाभरणपुष्पमाल्यगन्धचूर्णवस्त्र८. महियं करेंति अप्पेगतिया देवा विजयं राय- विधिभाजनमपि भावनीयम् (मव) । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चविपडिवत्ती ३४६ गतिया देवा दुतं विधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा विलंबितं णट्टविहि उवदंसेति अप्पेगतिया देवा दुतविलंवितं णाम णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा अंचियं णट्टविधि उवदति अप्पेगतिया देवा रिभितं णट्टविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा अंचितरिभितं णट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभडं पट्टविधि उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा भसोलं विधि उवदति, अपेगतिया देवा आरभडभसोलं णट्टविधि उवदंसेंति अप्पेगतिया देवा 'उप्पायनिवायपसतं संकुचिय - पसारियं रियारियं भंत संभंत" णाम णट्टविधि उवदंसंति, अप्पेगतिया' देवा चउग्विधं वाइयं' वादेति, तं जहा - ततं विततं घणं झुसिरं, अप्पेगतिया देवा उव्विधं गेयं गायंति, तं जहा - 'उक्खित्तं पवत्तं" मंदायं रोइयावसाणं, अप्पेगतिया देवा चविधं अभियं अभिणयंति, तं जहा --- दिट्ठेतियं 'पाडिसुयं सामन्नतोविणिवातियं" लोगमज्झावसाणियं अप्पेगतिया देवा पीणंति, अप्पेगतिया देवा तंडवेति अप्पेगतिया देवा लासेंति अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणंति तंडवेंति लासेंति बुक्कारेंति, अप्पेगलिया देवा अप्फोडेंति" अप्पेगतिया देवा वग्गंति अप्पेगतिया देवा तिवति छिदंति अप्पेगतिया देवा अप्फोर्डेति वग्गंति तिवंति छिदंति अप्पेगतिया देवा हेसि करें ति अप्पेगतिया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया देवा रहघणघणाइयं करेंति अप्पेगतिया देवा हयहेसियं करेंति, हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, रहघणघणाइयं करेंति, 'अप्पेगतिया देवा उच्छलेंति', अप्पैगतिया देवा पोच्छलेति' अप्पेगतिया देवा उक्किट्ठि करेंति अप्पेगतिया देवा उच्छलेंति पोच्छलेंति उक्किट्ठ करेंति", अप्पेगतिया देवा सोहनादं नदति अप्पेगतिया देवा पाददद्दरयं करेंति अप्पेगतिया देवा भूमिचवेडं दलयंति", 'अप्पेगतिया देवा सीहनादं पाददद्दरयं भूमिचवेडं दलयंति"" अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति, अप्पैगतिया देवा थुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा थक्कारेंति", "अप्पेगतिया देवा नामाई साहेति " 'अप्पेगतिया देवा हक्कारेंति थुक्कारेंति थक्कारेंति नामाई साहेति "", १. द्वात्रिंशतो नाट्यविधीनां मध्ये काश्चन नाट्यविधीनुपन्यस्यति ( मवृ ) | २. उप्पनणिवतपयत्तं संकुचितपसारियरेयारयितं भंगसंभंग (ता) | ३. क, ख, ग, ट, आदर्शेषु वाद्य-गेयसम्बन्धिनो आलापको 'द्रुतनाट्यविधेः पूर्वं विद्येते । रायपसेणइय ( सू० २८१) सुपि एवमेव विद्यते । ४. पेज्ज (ता) । ५. उक्त्तियं पवत्तयं ( क, ख, ग, ट, त्रि) ६. पातियं सामंतोवणिवातियं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ भिन्नयाचनायाः पाठो व्याख्यातोस्ति । द्रष्टव्यं वृत्ति पत्र २४७ २४८ । रायसेणयसूत्रे (२८१ ) पि पदानां व्यत्ययो दृश्यते । ८. उच्छोलेति (क, ख, ग, ट त्रि ) अग्रेपि एवमेव । ६. पच्छोलेंति (क, ख, ग, ट, त्रि) अग्रेपि एवमेव ! १०. चिन्हाङ्कितः पाठः वृत्तौ नास्ति व्याख्यात: 1 ११ अतोये 'अप्पेगतिया देवा महता महता सद्दे वेंति' इति पाठो वृत्तो व्याख्यातास्ति । १२. अप्येकका देवाश्चत्वार्यपि सिंहनादादीनि कुर्वन्ति (मवृ) । १३. थक्कारेंति अप्पेगतिया देवा पुक्कारेंति ( क, ख, गट, त्रि) । १४ X (मबू ) । १५. अध्येकका स्त्रीण्यप्येतानि कुर्वन्ति ( मवृ ) । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० जीवाजीवाभिगमे अप्पेगतिया देवा ओवयंति', अप्पेगतिया देवा उप्पयंति', अप्पेगतिया देवा परिवयंति, अप्पेगतिया देवा ओवयंति उप्पयंति परिवयंति, अप्पेगतिया देवा जलंति, अप्पेगतिया देवा तवंति, अप्पेगतिया देवा पतवंति, अप्पेगतिया देवा जलंति तवंति पतवंति, अप्पेगइया देवा गज्जति, अप्पेगइया देवा विज्जुयायंति, अप्पे गइया देवा वासं वासंति, अप्पेगइया देवा गज्जति विज्जुयायंति वासं वासंति, 'अप्पेगतिया देवा देवसन्निवायं करेंति", अप्पेगतिया देवा देवुक्कलियं करेंति, अप्पेगइया देवा देवकहकहं करेंति, अप्पेगतिया देवा देवदुहदुहगं करेंति, 'अप्पेगतिया देवा देवसन्निवायं देवउक्कलियं देवकहकहं देवदुहदुहगं करेंति", 'अप्पेगतिया देवा देवुज्जोयं करेंति, अप्पेगतिया देवा विज्जुयारं करेंति'", अप्पेगतिया देवा चेलुक्खेवं करति, अप्पेगतिया देवा देवुज्जोयं विज्जुयारं चेलुदखेवं करेंति, अप्पेगतिया देवा उप्पलहत्थगता जाव सहस्सपत्तहत्थगता वंदणकलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छयहत्थगता हतुटु'- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया विजयाए रायहाणीए सव्वतो समंता आधावंति परिधावति ॥ ४४८ तए णं तं विजयं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गम हिसीओ सपरिवाराओ जाव सोलसआयरक्खदेवसाहस्सीओ, अण्णे य वहवे विजयरायहाणीवत्थव्वा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं वरकमलपतिट्ठाणेहिं जाव अट्ठसहस्सेणं' सोवण्णियाणं कलसाणं तं चेव जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदगेहि सव्वमट्रियाहिं सव्वतुवरेहि सव्वपुप्फेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव निग्घोसना इयरवेणं महया-मया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति, अभिसिचित्ता पत्तेयं-पत्तेयं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासि - जय-जय नंदा ! जय-जय भद्दा ! जय-जय नंदा भई ते, अजियं जिणाहि, जियं पालयाहि, अजितं जिणाहि सत्तुपक्खं, जितं पालयाहि मित्तपक्खं, जियमझे वसाहि तं देव ! निरुवसरगं, इंदो इव देवाणं, चंदो इव ताराणं चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, भरहो इव मणुयाणं, वहूणि पलिओवमाई बहूणि सागरोवमाणि बहणि पलिओवम-सागरोवमाणि चउण्डं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स देवस्स विजयाए रायहाणीए, अण्णेसिं च बहूणं विजयरायहाणिवत्थव्वाणं वाणमंतराणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव" आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहराहित्ति कट्ठ महता-महता सद्देणं जय-जय सद्दे पउंजंति ।। ४४६. तए णं से विजए देवे महया-मया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं १. उप्पयंति (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. सं० पा.–हद्वतुट्ठा जाब हरिसवसविसप्प२. णिवयंति (क, ख, ग, ट, त्रि)। माणहियया। ३. x (मवृ)। ८. जी०३१४४६ । ४. अप्येककास्त्रीण्यप्येतानि कुर्वन्ति (मव)। ६. अट्ठसतेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. x (मवृ)। १०. जी० ३.३५० । ६. सहस्सपत्तघंटाहत्थगता (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चरविहपडिवत्ती ३५१ अणुप्पयाहिणीकरेमाणे-अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरथिमेणं दारेणं अणुप विसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसणे ॥ ४५०. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स 'आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणे ति" ।। ४५१. तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपति, अलि पित्ता' नासाणीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिमजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंत कम्म आगासफलिहसमप्प अहतं दिव्वं देवदूसजुयलं णियंसेइ, णियंसेत्ता हारं पिणि इ, पिणिद्धत्ता अद्धहारं पिणिद्धेइ, पिणिद्धत्ता एकालि' पिणिद्धेति, पिणिवेत्ता एवं एतेणं अभिलावेणं मुत्तावलि कणगावलि रयणावलि कडगाई तुडियाई अंगयाइं केयूराइं दसमुद्दियाणंतक' कुंडलाइं चूडामणि चित्तरयणसंकर्ड' मउडं पिणिद्धेइ, पिणिद्धत्ता 'गंथिमवेढिम-पूरिम-संघाइमेणं च उविहेणं मल्लेणं कप्परुक्खयं पिव अप्पाणं अलंकियविभूसितं करेति, करेत्ता दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गाताई भुकुंडेति, भुकुंडेत्ता दिव्वं च सुमणदामं पिणिद्धेति ।। ४५२. तए ण से विजए देवे केसालंकारेणं वत्थालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं च उम्विहेणं अलंकारेणं अलंकिते विभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुठेइ, अब्भुठेत्ता" अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ववसायसभं १. सामाणियपरिसोबवण्णगा देवा आभिओगिए देवे सुरिणा अस्य व्याख्या एवं कृतास्ति--भक सदाति २ एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणु- डंति-उद्धृलयन्ति (हस्तलिखितवृत्तिपत्र प्पिया! विजयस्स देवस्स आलंकारियं भंडं ३०२)। प्रस्तुतसूत्रादशेषु लिपिदोषेणास्य उवणेह तेणेव ते आलंकारियं भंडं जाव पदस्य अन्यथात्वं जातमिति सम्भाव्यते । उवट्ठति (क, ख, ग, ट, त्रि)! भगवतीवृत्तौ (पत्र ४७७) वाचनान्तरपाटस्य २. अणुलिपित्ता तयणंतरं च ण (क,ख,ग,ट,त्रि)। विवरणे 'भुकुंडेंति त्ति उलयन्ति' इति ३. वायगेझ (क, ख); 'वाववज्झ (ट, त्रि)। लभ्यते। ४. सरिसप्पभं (क, ख, ट, त्रि)। ६. दिव्वं सुमणदाम पिणिधेति २ दद्दरमलयसुगंध५. एवं एकावलि (क, ख, ग, ट, त्रि)। गंधिए य गंधे पिणिधेइ २ गंथिमवेढिमपूरिम६. दसमुद्दियाणंतकं कडिसूत्तकं वेअच्छिसुत्तगं घातिमेणं चतुग्विघेणं म. (ता) अस्या अग्रिम मुरवि कंठमुरवि पालंबं (क, ख, ग, , त्रि); पत्रं नोपलभ्यते । दिव्वं सुमणदामं पिणिधेइ । दसमुद्दियाणंताई कडिसुतं (ता)। तए णं से विजए देवे मंथिमवेढिमपूरिमसंघाइ७. चित्तं रतणसंकुडुक्कडं (ता)। मेणं चउब्धिहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव ८. सुकुडेति (क, ख); सुकडेति (ग, ट); अप्पाणं अलंकिय विभूसियं करेइ, करेत्ता पडिसुक्किडेति (त्रि); एतत्रदं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः पुण्णालंकारे सीहासणाओ अब्भुट्टेइ (मवृ) । (३१२१०) सूत्रस्याधारेण स्वीकृतः, हीरविजय Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ जीवाणीवाभिगमे अणुप्पदाहिणीकरेमाणे-अणुप्पदाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ।। ४५३. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा पोत्थयरयणं उवणेति ।। ४५४. तए णं से विजए देवे पोत्थयरयणं गेहति, गेण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयति, मुएत्ता पोत्थयरयणं विहाडेति, विहाडेत्ता पोत्थय रयणं वाएति, वाएत्ता धम्मियं ववसायं 'ववसइ, ववसइत्ता" पोत्थयरयणं पडिणिक्खिवेइ, पडिणिक्खिवेत्ता सीहासणाओ अब्भठेति, अब्भुट्ठत्ता ववसायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गंदं पुक्खरिणि अणुप्पयाहिणीकरेमाणेअणुप्पयाहिणीक रेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोपाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता हत्थं पादं पक्खालेति, पक्खालेत्ता एगं महं सेतं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं भिगारं गिण्हति, गिणिहत्ता जाई तत्थ उप्पलाइं पउमाइं जाव' सहस्सपत्ताई ताइं गिण्हति, गिण्हित्ता गंदातो पुक्खरिणीतो पच्चुत्तरेइ, पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥ ४५५. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ जाव' अण्णे य वहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य अप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया विजयं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो अणुगच्छंति ॥ ४५६. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स बहवे आभिओगिया देवा देवीओ य वंदणकलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छ्यहत्थगता विजयं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो अणुगच्छति ॥ ४५७. तए णं से विजए देवे चहि सामाणियसाहस्सीहिं जाव अण्णेहि य बहूहि वाणमंतरेहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिवडे सव्विड्ढीए सन्वजुतीए जाव णिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव सिद्धायतणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सिद्धायतणं अगुप्पयाहिणीकरेमाणे-अणुप्पयाहिणी करेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुप विसित्ता 'आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवच्छंदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता जिणपडिमाओ पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए व्हावेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गाताई अणुलिपइ, अणुलिपित्ता जिणपडिमाणं अहयाई देवदूसजुयलाई" णियंसेइ, णियंसेत्ता अग्गेहिं वरेहिं 'गंधेहिं मल्लेहि य" अच्चेति, अच्चेत्ता पुप्फारुणं मल्लारुहणं १. पगिण्हति पगिणिहत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। हाणेति २ ता दिवाए सुरभिगंधकासाइए २. जी० ३१२८६। गाताई लहेति २ ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं ३. जी० ३।४४६ । गाताई अणुलिपति २ त्ता जिणपडिमाणं ४. जेणेव देवच्छेदए तेणेव उवागच्छति २ ता अहयाई सेताई दिब्वाइं देवदूसजुयलाइं (क, आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेति २त्ता ख, ग, ट त्रि)। लोमहत्थगं गेण्हति २ ता जिणपडिमाको लोम- ५. पुप्फेहिं गंधेहि मल्लेहि चुणेहिं (ता)। हत्थएणं पमज्जति २ ता सुरभिणा गंधोदएणं Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चविहपडिवत्ती ३५३ वण्णारहणं चुण्णारुहणं गंधारुहणं आभरणारहणं करेति, करेत्ता' जिणपडिमाणं पुरतो अच्छेहि सण्हेहिं रययामएहिं अच्छरसा-तंदुलेहि अट्ठमंगलए आलिहति', आलिहित्ता 'कयग्गाहग्ग हितकरतलपभट्ठविमुक्केणं दसवण्णणं कुसुमेणं" पुप्फपुंजोक्यारकलितं" करेति, करेत्ता चंदप्पभवइरवेरुलियविमलदंडं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु-पवरकंदुरुक्क-तुरुक्क-धूवगंधुत्तमाणुविद्धं धूमवट्टि विणिम्मुयंतं वेरुलियामयं कडुच्छ्यं पग्गहित्त पयतो धूवं दाऊण जिणवराणं 'सत्तट्ठ पदाणि ओसरति, ओसरित्ता दसंगुलिं अंजलिं करिय मत्थयम्मि य पयतो अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं 'अत्थजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहि महावित्तेहिं" संथुणइ, संथुणित्ता" वामं जाणु अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिवाडेई' तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलं सि णमेइ, णमेत्ता ईसि पच्चुण्णमति, पच्चुण्णमित्ता कडयतुडियथंभियाओ भुयाओ साहरति", साहरित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए 'अंजलि कटु एवं वयासी- णमोत्थु णं अरहंताणं 'भगवंताणं आदिगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगणाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मणायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं अपडियवरणाणदंसणधराणं विअट्टच्छउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सवण्णूणं सव्वदरिसीणं सिवं अयलं अरुअं अणंतं अक्खयं अव्वाबाहं अपुणरावित्ति सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता ४५८. जेणेव सिद्धायणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता दिव्वाए" दगधाराए" अब्भुक्ख ति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं" दलयति, १. करेत्ता आसत्तोसत्तविउलबट्टवग्धारितमल्लदाम- १. णीहट्ट (क, ख, ग, ता)। कलावं करेति करेत्ता (क, ख, ग, ८, त्रि)। १०.णिवाएति (ता)। २. अच्छरस-तन्दुला:, पूर्वपदस्य दीर्घान्तता ११. पडिसाहरति (क, ख, ग, ट, त्रि)। प्राकृतत्वात् (मवृ) । १२. भगवंताणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं ३. आलिहति तं जहा सोस्थियसिरिवच्छ जाव तिकट्ट (क, ख, ग, ट, त्रि)। एवं प्रणिपतिदप्पण अट्ठमंगलए आलिहति (क, ख, ग, ट, ___ दण्डकं पठित्वा 'वंदइ नमसइ' इति (मव)। त्रि)। १३. रायपसेणइयसुत्ते (सू० २६३) 'उवागच्छित्ता' ४. विप्पमुक्केहिं दसद्धवणेहि कुसुमेहिं सव्वतो इति पदानन्तरं 'लोमहत्थगं परामुसइ, परामसमंता (ता)। सित्ता सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभागं लोम५. मुक्क पुप्फ (क, ख, ग, ट, त्रि) । हत्थेणं पमज्जति, पमज्जित्ता' इति पाठोस्ति । ६. पयत्तेणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। प्रस्तुतसूत्रस्यादर्शषु एष नोपलभ्यते, वृत्तावपि ७. महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहिं अत्थजुत्तेहि (ता)। नास्ति व्याख्यातः। ८. अट्ठसविसुद्धगंथजुत्तेहि महावित्तेहिं अत्थ- १४. उदग° (क, ख, ग, ट, त्रि)। जुत्तेहिं अपुणरुत्तेहि संधुणइ २ त्ता सत्तट्ट पयाई १५. पंचंगुलितलेणं मंडलं आलिहति आलिहित्ता ओसरति ओसरिता (क, ख, ग, ट, त्रि)। चच्चए (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे दलइत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दल इत्ता ४५६. जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दल इत्ता पुप्फारुहणं जाव' आभरणारुहणं करेति, करेत्ता आसत्तोसत्तविपुलवट्टवग्घारितमल्लदामकलावं करेति, करेत्ता कयग्गाहग्गहित- करतलपब्भट्टविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फ पुंजोक्यारकलितं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४६०. जेणेव 'दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स" मुहमंडवस्स वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामसित्ता बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थगेणं प्रमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेति, अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहति, आलिहित्ता कयग्गाह गहियकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुष्फपुंजोवयारकलितं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता- ४६१. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामु सित्ता दारचेडीओ य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमजित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं 'चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारहणं करेइ, करेता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपन्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुष्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता-- ४६२. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला' खंभपंती तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता खंभे य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दल इत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारहण करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपन्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति दलइत्ता--- ४६३. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तं चेव सव्वं भाणियव्वं १. मुक्कपुप्फ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. पंचंगुलितलेणं (क, ख, म, ट, त्रि)। २. दारविग्गओ (क, ख, ट) सर्वत्र । ७. सं० पा०-कयग्गाह जाव धूवं । ३. जी० ३१४५५। ८. सं० पा०—गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए ४. सं० पा०कयग्गाहग्गहित जाव पुंजोवयार. दलयति आसत्तोसत्तकयग्गाह धूवं । कलितं । ६. उत्तरिल्लाणं (ग, ट)। ५. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती जाव' दारस्स अच्चणिया ॥ ४६४. जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति तं चेव ॥ ४६५. जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभागे जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता अक्खाडगं च मणिपेढियं च सीहासणं च लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अन्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं' 'जाव आभरणारहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवणेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलइत्ता-- ४६६. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, दारच्चणिया ।। ४६७. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तहेव ॥ ४६८. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति तहेव ॥ ४६९. जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ तहेव ॥ - ४७०. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयथू में तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता चेइयथभं च मणिपेढियं च लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दल यइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४७१. जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिणपडिमाए आलोए पणामं करेइ, करेत्ता 'जाव' नमसित्ता ॥ ४७२. जेणेव" उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, १. जी. ३.४६१ । १०. लोमहत्थगं गेण्हति २ त्ता तं चेव सव्वं जं २. जी० ३।४६१ । जिणपडिमाणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं ३. सं० पा०-पुप्फाहणं जाव ध्रुवं । संपत्तागं वंदति णमंसति (क, ख, ग, ट, त्रि)! ४,६,७. जी० ३१४६१ ११.४७२-४७४ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' ५. जी. ३.४६२ आदर्शेषु एवं पाठसंक्षेपोस्ति-एवं उत्तरिल्लाए ८. चैत्यस्तम्भः (म)। वि एवं पुरथिमिल्लाए वि एवं दाहिणिल्लाए ६. जी० ३१४५७ । वि। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ उवागच्छित्ता जाव नमसित्ता ॥ ४७३. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव नमसित्ता ॥ ४७४. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव नमसित्ता || ४७५. जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे, दारविही' ॥ ४७६. जेणेव दाहिणिल्ले महिंदज्झए, दारविहीं ॥ ४७७. जेणेव दाहिणिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता 'तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य" सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खड, अब्भुविखत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्त विउलवट्टबग्घारियमल्ल दामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहग्गहियकरतलपब्भट्टविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयति, दलइत्ता ४७८. सिद्धायत अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेणेव १,२. जी० ३।४६१ । ३. वेतियाय तिसोमाणपडिरूवए य तोरणे य ( क, ख, ग, ट, त्रि) । जीवाजीवाभिगमे ४. ४७८- ५१५ एतेषां सूत्राणां स्थाने आदर्शेषु वृत्तौ च पाठसंक्षेपो लभ्यते - सिद्धायतणं अणुप्पयाहिणं करेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति २ त्ता तहेव महिदज्भया चेतियारुक्खे चेतियथूभे पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जिणपडिमा उत्तरिल्ला पुरथिमिल्ला दक्खि जिल्ला पेच्छाघरमंडवस्सवि तहेव जहा दविखणिल्लस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे जाव दक्खिणिल्ला णं खंभपंती मुहमंडवस्सवि तिष्हं दाराणं अच्चणिया भणिऊणं दक्खिणिल्ला णं संभपंती उत्तरे दारे पुरच्छिमे दारे सेसं तेणेव कमेण जाव पुरथिमिल्ला णंदापुक्खरिणी जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव पहारेत्थ गमणाए (क, ख, ग, ट, त्रि); सिद्धायतणं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरणी तेव उवाग २ वेइयासु य तोरणेसु य तिसोमाणअच्चणियं करेति जच्चेव णिग्गच्छमाणस्स दाहिणदहादीणं पज्जवसाणा सच्चेव समाणस्सवि णंदापुक्खरआदीया उत्तरिल्लादारावसाणा जातव्वा तं पुक्खरणी महिदभया चेतिया चेतियथूभो पच्चत्थि पडिमा उत्तर पुर दाहिणापडिमा पेच्छा धरमं मुहमं उत्तरे दारे दारविधी जाव धूवं दहति २ जेणेव पुरत्थिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति एस वि दारादि जाव पुक्खरणावसाणा गातव्वा तं पुरिमे दारे मुह पे थू दाहिणा पडिमा पच्च उत्तर पुरथिमि जिण रुक्खो महिंदा पुक्खरणी (ता); सिद्धायतनमनुप्रदक्षिणीकृत्य यत्रैवोत्तरा नन्दापुष्करिणी स तत्रोपा गच्छति, उपागत्य पूर्ववत्सर्वं करोति कृत्वा चौत्तराहे माहेन्द्रध्वजे तदनन्तरमोत्तराहे चैत्यवृक्षे तत औत्तराहे चैत्यस्तूपे ततः पश्चिमोत्तरपूर्वदक्षिणजिनप्रतिमासु पूर्ववत्सर्वा वक्तव्या. तदनन्तरमोत्तराहे प्रेक्षागृह मण्डपे समागच्छति, तत्र दाक्षिणात्ये प्रेक्षागृहमण्डपे पूर्ववत्सर्वं वक्तव्यं तत उत्तरद्वारेण विनिर्गत्योत्तराहे मुखमण्डपे समागच्छति, तत्रापि दाक्षिणात्य मण्डपवत्सर्वं कृत्वोत्तरद्वारेण विनिर्गत्य सिद्धायतनस्य पूर्वद्वारे समागच्छति, तत्राचेनिकां पूर्ववत्कृत्वा पूर्वस्य मुखमण्डपस्य दक्षिणोत्तरपूर्वद्वारेषु Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विहपडिवत्ती उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं चेव ॥ ४७६. जेणेव उत्तरिल्ले महिंदज्झए' ! ४८०. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयरुक्खे' ।। ४८१. जेणेव उत्तरिल्ले चेइयथूभे॥ ४८२. जेणेव पच्चथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चथिमिल्ला जिणपडिमा || ४८३. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा'। ४८४. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा । ४८५. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा। ४८६. जेणेव उत्तरिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तहेव जहाँ दक्खिणिल्लस्स ॥ ४८७. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चस्थिमिल्ले दारे" ।। ४८८. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे॥ ४८६. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे" ।। ४६०. जेणेव उत्तरिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपंती ॥ ४६१. जेणेव उत्तरिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ॥ ४६२. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ले दारे" । ४६३. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे"। ४६४. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे" ।। ४६५. जेणेव उत्तरिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ला खंभपती ।। ४६६. जेणेव सिद्धायतणस्स उत्तरिल्ले दारे"॥ ४६७. जेणेव सिद्धायतणस्स पुरथिमिल्ले दारे ।। ४६८. जेणेव पुरथिमिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" । क्रमेणोक्तरूपां पूजां विधाय पूर्वद्वारेण विनिर्गत्य पूर्वप्रेक्षामण्डपे समागत्य पूर्ववदर्चनिकां करोति ततः पूर्वप्रकारेणव क्रमेण चैत्यस्तूपजिनप्रतिमाचत्यवृक्षमाहेन्द्रध्वजनन्दापुष्करिणीनाम् (म)। विषयावबोधस्य सौविध्यार्थ एष संक्षिप्तः पाठः पृथक-पृथक सूत्ररूपेण समायोजितोस्ति । १. जी० ३१४७७ । १३. जी० ३।४६२ । २. जी० ३१४७६ । १४. जी० ३।४६०। ३. जी० ३।४७५ । १५,१६,१७. जी० ३१४६१। ४. जी. ३१४७०। १८. जी० ३१४६२ । ५,६,७,८. जी. ३४७१ । १६,२०. जी० ३।४५६ । ६. जी० ३।४६५। २१. जी० ३१४६०। १०,११,१२. जी० ३१४६१ । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ ४६६. जेणेव पुरत्थिमिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे ॥ ५००. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ला खंभपती' ।। ५०१. जेणेव पुरथिमिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे ॥ ५०२. जेणेव पुरत्थिमिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरत्थिमिल्ले दारें ॥ ५०३. जेणेव पुरथिमिल्ले पेच्छाघरमंडवे जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघर मंडवस्स वहुमज्झदेसभाए जेणेव वइरामए अक्खाडए जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणें ॥ ५०४. जेणेव पुरत्थिमिल्लस्स पेच्छाघर मंडवस्स दाहिणिल्ले दारे ।। ५०५. जेणेव पुरथिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पच्चत्थिमिल्ला खंभपती' ॥ ५०६. जेणेव पुरत्थिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स उत्तरिल्ले दारे' ।। ५०७. जेणेव पुरत्थिमिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे ॥ ५०८. जेणेव पुरत्थिमिल्ले चेइयथूभे ।। 11 ५०६. जेणेव दाहिणिल्ला मणिपेढिया जेणेव दाहिणिल्ला जिणपडिमा " ॥ ५१०. जेणेव पच्चत्थिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पच्चत्थिमिल्ला जिणपडिमा " ५११. जेणेव उत्तरिल्ला मणिपेढिया जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमा " ।। ५१२. जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा " | ५१३. जेणेव पुरत्थिमिल्ले चेइयरुवखे " || ५१४. जेणेव पुरथिमिल्ले महिंदज्झए " || ५१५. जेणेव पुरथिमिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव " धूवं दलयइ, दलइत्ता - ५१६. जेणेव " सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थि १. जी० ३।४६१ । २. जी० ३।४६२ । ३४. जी० ३।४६१ | ५. जी० ३।४६५ । ६. जी० ३।४६१ । ७. जी० ३।४६२ । ८, ६. जी० ३।४६१ । १०. जी० ३।४७० । ११-१४ जी० ३।४७१ १५. जी० ३१४७५ । १६. जी० ३१४७६ | १७. जी० ३।४७७ । १८. प्रस्तुतसूत्रस्य पाठः 'ता' प्रतिमनुसृत्य स्वीकृतीस्ति । वृत्तावपि प्राय: एवमेव व्याख्यातोस्ति । रायसेइयवृत्तावपि प्रायोस्य संवादित्वं जीवाजीवाभिगमे दृश्यते । शेषप्रयुक्तादर्शेषु पाठभेदबाहुल्य मस्ति तच्चैवम् - तते णं तस्स विजयस्स चत्तारि सामाणियसाहसीओ एयप्पभिति जाव सब्दिड्ढीए जाव णाइयरवेण जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति २ त्ता । तए णं सभं सुधम्मं अप्पयाहिणीकरेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति २ आलोए जिणसकहाणं प्रणामं करेति २ जेणेव मणिपेढिया तेणेव उवागच्छति २ त्ता जेणेव माणवयचेतियखंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवागच्छति २ लोमहत्ययं गेहति २ वइरामए गोलवट्टस मुग्गए लोमहत्यएण पमज्जइ २ वइरामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडेति २त्ता जिणसकहाओ लोमहत्थएवं पमज्जति २ त्ता सुरभिणा गंधोदणं तिसत्तखुत्तो जिणसकहाओ पक्खा Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा उविहपडिवत्ती ३५६ मिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव' मणिपढिया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता आलोए जिणसकहाणं पणामं करेति, करेत्ता जेणेव माणवर चेतियखंभे जेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता वइरामए गोलवसमग्गए गेण्हइ, गेण्हित्ता विहाडेइ, विहाडेत्ता 'जिणसकहाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता लोमहत्थगं परामसइ, परामुसित्ता जिणसकहाओ" लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भक्खइ, अब्भक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपति, अणुलिपित्ता 'अग्गेहि वरेहि गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चत्ता" धूवं दहति, दहित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमग्गएसु पक्खिवइ, पक्खि वित्ता 'वइरामए गोलवट्टसमुग्गए पडिपिधेइ, पडिपिधेत्ता" वइरामए गोलवट्टसमग्गए पडिणिक्खिवइ, पडिणिक्खिवित्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेता 'लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता" माणवकं चेतियखंभं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता 'पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ, करेत्ता कयग्गाहरग हितकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दसवण्णणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ, करेत्ता धूवं दलयइ, दलइत्ता" ५१७. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव तहेव दारच्चणिया ।। लेति २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपइ २ सभाए सुधम्माए बहुमज्झदेसभाए तं चेव । ता अग्गहि वरेहि गंधेहि मल्लेहि य अच्चिणति जेणेव सीहासणे तेणेव तहेव दारच्चणिता। २ ता धूवं दल यति २ ता वइरामएसु गोल- जेणेव देवसणिज्जे तं चेव जेणेव खड्डागे वसमुग्गए पडिणिविखवति २ ता पुप्फाहणं महिंदज्झए तं चेव जेणेव पहरणकोसे चोप्पाले जाब आभरणारुहणं करेइ २ ता माणवकं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता पत्तेयं २ चेतियखंभ लोमहत्थएणं पमज्जति २ दिवाए पहरणाई लोमहत्थएणं पमज्जति, पमज्जित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ २त्ता सरसेणं गोसीस- सरसणं गोसीसचंदणेणं तहेव सव्वं । चंदणेणं चच्चए दलयति २ पुप्फारुहर्ण जाव वृत्तिव्याख्या एवमस्ति-सिंहासनप्रदेशे समाआसत्तोसत्त कयम्गाह धूवं दलयति ! गत्य सिंहासनस्य लोमहस्तकेन प्रमार्जनादिरूपां १. जे णं सा (ता) पूर्ववदर्च निकां करोति, कृत्वा यत्र मणिपीठिका २.x (मव) । यत्र च देवशयनीयं तत्रोपागत्य मणिपीठिकाया ३. अच्चिणति २ (ता)। देवशयनीयस्य च प्राग्वदर्च निकां करोति तत ४. x (मवृ) । उक्तप्रकारेणैव क्षुल्लकेन्द्रध्वजपूजां करोति ५. ४ (मवृ) । कृत्वा च यत्र चोप्पालको नाम प्रहरणकोशस्तत्र ६. पुष्पाद्यारोपणं धूपदानं च करोति (म)। समागत्य लोमहस्तेन परिघरत्नप्रमुखाणिप्रहरण७. ५१७-५२१ सुत्राणां पाठ: वृत्तिमनुसृत्य स्वी- रत्नानि प्रमार्जयति, प्रमाज्योंदकधारयाऽभ्युक्षणं कृतोस्ति । “क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष सुधर्म- चन्दनचर्चा पुष्पाद्यारोपणं धूपदानं करोति, सभाया बहुमध्यदेशभागसूत्रस्य पश्चात् कृत्वा सभाया: सुधर्माया बहमध्यदेशभागेचंनिकां सिंहासन-देवशयनीय • क्षुल्लकमहेन्द्रध्वज - पूर्ववत्करोति, कृत्वा । प्रहरणकोशसूत्राणि विद्यन्ते, यथा--जेणेव रायपसेणइयवत्तावपि अस्याः संवादित्वं Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जीवाजीवाभिगमे ५१८. जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता'। ५१६. जेणेव मणिपेढिया जेणेव खुड्डागमहिंदज्झए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५२०. जेणेव पहरणकोसे चोप्पाले तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता फलिहरयणपामोक्खाइं पहरणरयणाइं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीस चंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आभरणारुहणं करेति, करेत्ता आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेति, करेत्ता कयग्गाहरगयिकरतलपब्भट्ठविमुक्केणं दस-द्ववण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दल इत्ता ५२१. जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता'-- ५२२. जेणेव सभाए सुहम्माए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्तादृश्यते । प्रस्तुतागमे बहुषु स्थानेषु वृत्ति- ८. जी० ३१४६५ । व्याख्यायां ताडपत्रीयप्रती अर्वाचीनादर्शभ्यः १,२. जी. ३४६५ । महान् वाचनाभेदो दृश्यते । ३. जी. ३१४५८ । ४. ५२२-५५३ सूत्राणां संक्षिप्तपाठस्य स्वतन्त्रसूत्रविन्यासो मूलपाठे कृतोस्ति । अनेन विषयावबोधस्य जटिलता निराकृताभूत । संक्षिप्तपाठ एवमस्ति-सेसंपि दक्खिणदारं आदिकाउं तहेव यवं जाव पुरथिमिल्ला गंदापुक्खरिणी । सव्वाणं सभाणं जहा सुधम्माए सभाए तहा अच्चणिया उववायसभाए णवरि देवसयणिज्जस्स अच्चणिया । सेसासु सीहासणाण अच्चणिया 1 हरयस्स जहा गंदाए पुक्खरिणीए अच्चणिया । ववसायसभाए पत्थयरयणं लोम दिवाए उदगधाराए सरसणं गोसीसचंदणेणं अलिपति अग्गेहिं वरेहि गंधेहि य मल्लेहि य अच्चिति २ त्ता लोमहत्थएणं पमज्जति जाव धूवं दलयति सेसं तं चेव गंदाए जहा हरयस्स तहा। एतेषां सूत्राणां वृत्तिव्याख्यानमित्थं वर्तते—सभाया: सुधर्माया दक्षिणद्वारे समागत्याचनिको पूर्ववत्करोति, ततो दक्षिणद्वारे विनिर्गच्छति, इत ऊर्वं यथैव सिद्धायतनान्निष्क्रामतो दक्षिणद्वारादिका दक्षिणनन्दापुष्करिणी पर्यवसाना पुनरपि प्रविशत उत्तरनन्दापुष्करिणीप्रभृतिका उत्तरान्ता ततो द्वितीयं वारं निष्कामत: पूर्वद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानाचंनिका वक्तव्या तथैव सुधर्माया: सभाया अप्यन्यनातिरिक्ता द्रष्टव्या ततः पूर्वनन्दापुष्करिण्या अर्चनिकां कृत्वोपपातसभां पूर्वद्वारेग प्रविशति, प्रविश्य च मणिपीठिकाया देवशयनीयस्य तदनन्तरं बहमध्यदेशभागे प्राग्वदनिका विदधाति, ततो दक्षिणद्वारेण समागत्य तस्यार्च निकां कुरुते, अत ऊर्ध्वमत्रापि सिद्धायतनबद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानार्चनिका वक्तव्या तत: पूर्वनन्दापुष्करिणीतोऽपक्रम्य ह्रदे समागत्य पूर्ववत्तोरणार्च निकां करोति, कृत्वा पूर्वद्वारेणाभिषेकसभायां प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकायाः सिंहासनस्याभिषेकभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च पूर्ववदर्च निकां क्रमेण करोति, तदनन्तरमत्रापि सिद्धायतनवद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसानाऽर्च निका वक्तव्या, तत: पूर्वनन्दापुष्करिणीत: पूर्वद्वारेणालंकारसभां पूर्वद्वारार्च निका पुरस्सरं प्रविशति, प्रविश्य मणिपीठिकाया सिंहासनस्य अलंकारभाण्डस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेण पूर्ववदर्च निकां करोति, ततोत्रापि सिद्धायतनवद्दक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिका वाच्याः ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतः पूर्वद्वारेण Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ५२३. सभं सुहम्मं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता'-- ५२४. जेणेव सभाए सुहम्माए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'--- ५२५. जेणेव सभाए सुहम्माए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता'--- ५२६. जेणेव उववायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता उववायसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्प विसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव देवसयणिज्जे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ५२७. जेणेव उववायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५२८. जेणेव उववायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता ५२६. उववायसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५३०. जेणेव उववायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता५३१. जेणेव उववायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ५३२. जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता तोरणे य तिसोवाणपडिरूवए य सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता" ५३३. जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ५३४. जेणेव सुबह अभिसेयभंडे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता-~५३५. जेणेव अभिसेयसभाए वहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता"-- ५३६. जेणेव अभिसेयसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"-- ५३७. अभिसेयसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदापुक्खरिणी तेणेव व्यवसायसभां प्रविशति, प्रविश्य पुस्तक रत्नं लोमहस्तकेन प्रमृज्योदकधारयाऽभ्युक्ष्य चन्दनेन चर्चयित्वा वरगन्धमाल्यरचयित्वा पुष्पाधारोपणं धूपदानं च करोति, तदनन्तरं मणिपीठिकाया: सिंहासनस्य बहुमध्यदेशभागस्य च क्रमेणाचनिकां करोति, तदनन्तरमत्रापि सिद्धायतनवदृक्षिणद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणो पर्यवसानार्चनिका वक्तव्य ।। ताडपत्रीयादर्श किञ्चित् पाठ उपलब्धोस्ति, किञ्चित् पाठः तत्पत्रानुपलब्धी अनुपलब्धोस्ति । उपलब्धपाठः प्रायो वृत्तिसंवादी वर्तते । ५. जी० ३४५६-४७७ । ७. जी० ३१४७८-४९५ । १. जी. ३१४७८-४६५ 1 ८. जी० ३१४६६ २. जी० ३।४६६ : ६. जी० ३१४६७-५१५॥ ३. जी० ३१४९७-५१५ । १०. जी० ३१४७७ । ४. जो० ३।४६५। ११,१२. जी० ३२४६५। ५. जी० ३१४५८ । १३. जी० ३४५८। ६. जी० ३१४५६-४७७ । १४. जी० ३४५६-४७७ । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ उवागच्छइ, उवागच्छित्ता' ५३८. जेणेव अभिसेयसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता -- ५३६. जेणेव अभिसेयसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता'५४०. जेणेव अलंकारियसभा तेणेव ज्वागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियसभ पुरथिमिल्लेणं दारेण अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ॥ ५४१. जेणेव सुबहू अलंकारियभंडे तेणेव उवागच्छति, वागच्छित्ता' ५४२. जेणेव अलंकारियसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता'--- ५४३. जेणेव अलकारियसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता -- ५४४. अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरमाणे जेणेव उत्तरिल्ला गंदा पुक्खरिणी तेव उवागच्छति, उवागछित्ता' ५४५. जेणेव अलंकारियसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता - ५४६. जेणेव अलंकारियसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ५४७. जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता ववसायसभं पुरत्थि - मिल्लेणं दारेण अणुष्पविसति अणुष्पविसित्ता जेणेव पोत्थयरयणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता लोमहत्थगं परामुसति, परामुसित्ता पोत्थयरयणं लोमहत्थगेणं पमज्जति, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयति, दलइत्ता अग्गेहि वरेहि गंधेहि मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चेत्ता पुप्फारुहणं जाव आभ राहणं" ॥ १३ ५४८. जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता - ५४६. जेणेव ववसायसभाए बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"५५०. जेर्णव ववसायसभाए दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"५५१. ववसायसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे जेणेव उत्तरिल्ला णंदापुक्खरिणी तेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता" ॥ ५५२. जेणेव ववसायसभाए उत्तरिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता"_ ५५३. जेणेव ववसायसभाए पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता " १. जी० ३३४७८-४६५ २. जी० ३।४६६ ॥ जीवाजीवाभिगमे ३. जी० ३।४६७-५१५ । ४,५. जी० ३।४६५ | ६. जी० ३।४५८ । ७. जी० ३।४५६-४७७ । ८, जी० ३।४७८-४६५ ६. जी० ३।४६६ १०. जी० ३।४६७-५१५ । ११,१२. जी० ३१४६५ १३. जी० ३।४५८ । १४. जी० ३।४५६-४७७ । १५. जी० ३।४७८-४६५ । १६. जी० ३।४६६ । १७. जी० ३।४६७-५१५ । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती ३६३ ५५४. 'जेणेव बलिपीढे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता बलिपीढस्स बहुमज्झदेसभागं दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खति, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचगुलितल दलयति, दत्ता कयग्गा हग्ग हियक रतलपब्भदुविमुक्केणं दसद्धवण्णेणं कुसुमेणं पुप्फपुंजोवयारकलियं करेति, करेत्ता धूवं दलयति, दलइता आभिओगिए देवे" सहावेति, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विजयाए रायहाणीए सिघाडगेसु' तिएसु चउक्सु चच्चरे चउम्महेसु महापहपहेसु' पामारेसु अट्टालएसु चरियासु दारेसु गोपुरेसु तोरणे आरामेसु उज्जाणेसु काणणेसु वणेसु वणसंडेसु वणराईसु अच्चणियं करेह, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पियह" ॥ ५५५. तते णं ते आभिओगिया' देवा विजएणं देवेणं एवं वृत्ता समाणा" हट्टतुटु'● चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवो ! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुर्णेति पडिसुणेत्ता विजयाए रायहाणीए सिंघाडगेसु जाव वणराईसु अच्चणियं करेति, करेत्ता जेणेव विजए देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता' विजयं देवं करतलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि ' 'कट्टु एयमाणत्तियं पच्चष्पिणंति ॥ ५५६. 'तए णं से विजए देवे बलिपीढे वलिविसज्जणं करेति, करेत्ता जेणेव उत्तरपुरथिमिल्ला णंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उदागच्छित्ता 'उत्तरपुरत्थिमिल्लं नंद पुक्खरिणि अणुपया हिणीकरेमाणे" पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्ता हत्थपायं पक्खालेति, पक्खालेत्ता" गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरति पच्चुत्तरिता 'जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव १. जेणेव बलिपीढं तेणेव उवागच्छति रत्ता आभिओगे देवे (क, ख, ग, ट, त्रि); जेणेव बलिपेढे दारविधी जाव धूवं डहत्ति बलिविसज्जजं करेति २ अभियोग्गे देवे (ता); ततः पूर्वनन्दापुष्करिणीतो बलिपीठे समागत्य तस्य बहुमध्यदेश भागे पूर्ववदर्चनिकां करोति, कृत्वा चोत्तरपूर्वस्यां नन्दापुष्करिण्यां समागत्य तस्यास्तोरणेषु पूर्ववदर्चनिकां कृत्वाभियोगिकान् देवान् (म ) 1 २. 'क, ख, ग, त्रि' आदर्शेषु सिघाडगेसु य' एवं प्रतिपदानन्तरं यकारो विद्यते । ३. महापहपहेसु य पासासु य ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ४. तोरणेसु य वावसु य पुक्खरिणीसु य जाव विलपतिगाय (क. ख, ग, ट, त्रि) । ५. पागारेसु अट्टालएसु तरियासु दारेसु गोपुरेसु आरामेसु उज्जाणेसु काणणे वणेसु वणसंडे वनराई सिंघाडग तिथ जाव पथेसु अच्चणियं करेध २ तमाणत्तियं पच्च ( ता ) 1 ६. अभिओग्गा (ता) । ७. समाणा जाव (क, ख, ग, ट, त्रि); अत्र 'जाव' पदस्य विपर्यासो जात: अथवा 'हट्टतुट्ठा' इति पदस्य अनपेक्षितो लेखो जातः । ८. सं० पा०-- हट्टतुट्ठा करतल जाव कट्टु एवं देवोत्ति जाव पडणेत्ता । ६. सं० पा०-- उवागच्छित्ता जाव कट्टु | १०. नंद पु (ता) । ११. तए णं से विजए देवे तेसि णं आभियोगियाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा जिसम्म हट्टतुट्ठचित्तमादिय जाव यहियए जेणेव णंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति २त्ता पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं जाव हत्थपायं पक्खालेति २ त्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए (क, ख, ग, ट, त्रि) Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे पहारेत्थ गमणाए" ॥ ५५७. तए णं से विजए देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं' 'चउहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणियाहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसेहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं° अण्णेहि य वहहिं विजयरायहाणीवत्थव्वेहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव' दुंदुहिनिग्घोसणाइयरवेणं 'विजयाए रायहाणीए मझमज्झणं" जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सभं सुहम्मं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुप्पविसति, अणुप्पविसित्ता जेणेव मणिपेढिया जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ५५८. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति ॥ ५५६. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पुरथिमेणं पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति । ५६०. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स दाहिणपुरथिमेणं अभितरियाए परिसाए अट्ट देवसाहस्सीओ पत्तेयं-पत्तेयं 'पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति । एवं दक्खिणेणं मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ जाव णिसीदंति । दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ पत्तेयं-पत्तेयं जाव णिसीदंति । ५६१. तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पच्चत्थिमेणं सत्त अणिया हिवती पत्तेयं-पत्तेयं जाव णिसीयंति ।। ५६२. तए ण तस्स विजयस्स देवस्स पुरथिमेणं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ पत्तेयं-पत्तेयं पुवणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीदंति, तं जहापुरत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ', 'दाहिणेणं चत्तारि साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ, उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ। ते णं आयरक्खा सन्नद्ध-बद्ध-वम्मियकवया उप्पीलियसरासणपट्रिया पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरचिधपट्टा गहियाउहपहरणा, ति-णयाई ति-संधीणि वइरामयकोडीणि धणूइं अभिगिज्झ परियाइयकंडकलावा णीलपाणिणो पीयपाणिणो रत्तपाणिणो चावपाणिणो चारूपाणिणो चम्मपाणिणो 'दंडपाणिणो खरगपाणिणो" पासपाणिणो णील-पीय-रत्त-चाव-चारु-चम्म-दंड-खग्ग-पासधरा आयरक्खा रक्खोवगा गृत्ता गुत्तपालिता जुत्ता जुत्तपालिता पत्तेयं-पत्तेयं समयतो विणयतो किंकरभूता विव चिट्ठति ॥ ५६३. तए णं से विजए देवे चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अगमहिसीणं १. ४ (ता, मत्)। ८. खग्गपाणिणो दंडपाणिणो (क, ख, ग, ट, २. सं० पा...--सामाणियसाहस्सीहि जाव अण्णेहि।। त्रि)। ३. जी. ३.४४६ । ६. 'तए णं से विजए' इत्यादि सुप्रतीतं यावद्विजय४. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । देववक्तव्यतापरिसमाप्तिः, इति वृत्तिगतसंकेता५. सं० पा०-पत्तेयं जाव णिसीयंति । धारेण तथा रायपसेणइयसूत्रस्य वृत्तः (पृ० ६. सं० पा०-साहस्सीओ जाव उत्तरेणं । २७१) आधारेण एतत् सूत्रं स्वीकृतम्। अस्य ७. पिणद्धगेवेज्जबद्धआविद्ध (क, ख, ग, ट, त्रि) । पूर्ति: जी० ३।३५०। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवा चउव्हिडिवत्ती ३६५ सपरिवाराणं तिन्हं परिमाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं विजयस्स गं दारस्स विजयाए रायहाणीए, अण्णेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं' देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महह्यायनदृ-गीय-वाइय-तंती- तल-ताल-तुडियघ- मुइंग पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ ॥ ५६४. विजयस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता ॥ ५६५. विजयस्स णं भंते ! देवस्स सामाणियाणं देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोमा ! एगं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता | एमहिड्ढीए एमहज्जुतीए एमहब्बले एमहायसे महासोक्खे एमहाणुभागे विजए देवे विजए देवे ! वैजयंतादि-अधिगारो ५६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बुद्दी दी मंदरम्स व्वयस्स दक्खिणेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अवाधाए जंबुद्दीवे दीवे दाहिणपेरते लवणसमुद्ददाहिणद्धस्स उत्तरेण, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयं णामं दारे पण्णत्ते - अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सच्चेव सव्वा वत्तव्वता जाव' दारे ॥ ५६७. कहि णं भंते! रायहाणी दाहिणे णं जाव' वैजयंते देवे वेजयंते देवे || ५६८. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्चयस्स पच्चत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई जंबुद्दीवे दीवे पच्चत्थिमपेरते लवणसमुद्दपच्चत्थिमद्धस्स पुरत्थिमेणं सीओदाए महानदीए उप्पि, एत्थ जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते णामं दारे पण्णत्ते । तं चैव से पमाणं जयंते देवे पच्चत्थिमे से रायहाणी जान एमहिड्ढीए || ५६६. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स अपराइए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! मंदरस्स उत्तरेण पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे उत्तरपेरते लवणसमुद्दस्त उत्तरद्धस्स दाहिणेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे अपराइए णामं दारे पण्णत्ते तं चेव पाणं । रायहाणी उत्तरेणं जाव अपराइए देवे । चउहवि अण्णमि जंबुद्दीवे ॥ ५७०. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! अउणासीति जोयणसहस्साई बावण्णं च जोयणाई देसूणं च अजोय दारस य दारस्स य अवाधाए अंतरे पण्णत्ते ॥ जंबुद्दीवाधिगारो ५७१. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दे पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ॥ ५७२. ते णं भंते! किं जंबुद्दीचे दीवे ? 'लवणे समुद्दे" ? गोयमा ! ते जंबुद्दीवे दीवे, १. अतः परं 'वाणमंतराणं' इति पदं अध्याहार्यम् । २. जी० ३।२६६-३५० । ३. णिच्चे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. जी० ४।३५१-५६५ । ५. लवणसमुद्दे (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ न खलु ते लवणे समुद्दे ॥ ५७३. लवणस्स णं भंते ! समुहस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ॥ ५७४. ते णं भंते ! कि लवणे समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! लवणे णं ते समुद्दे, न खलु ते जंबुद्दीवे दीवे ॥ ५७५. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे जीवा उद्दाइत्ता- उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति' ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति || ५७६. लवणे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता- उद्दाइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति ? गोमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ॥ जीवाजीवाभिगमे ५७७. से केणट्ठेनं भंते ! एवं वच्चति - जंबुद्दीवे दीवे' ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं णीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स ववखारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा णाम कुरा पण्णत्ता - पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठय बायाले जोयणसते दोणिय एक्कोणवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं । तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरस्थि - मिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, तेवण्णं जोयणसहस्साई आयामेणं, तीसे धणुपट्ठ दाहिणेणं सट्ठि जोणसहस्साइं चत्तारि य अट्ठारसुत्तरे जोयणसते दुवालस य एकूणवीसतिभाए जोयणस्स परिवखेवणं पण्णत्ता ॥ ५७८. उत्तरकुराए णं भंते! कुराए केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोमा ! से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' तणाणं मणीण य वण्णो गंधी फासो होय भाणितव्व ॥ ५७६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ तत्थ देसे तहि तहि बहुईओ खुड्डा खुड्डीयाओ १. पचायति (ट) | २. अस्य निगमनं ७०२ सूत्रे वर्तते । ३. जी० ३।२७७-२८५ । 'जाव' इति पदादग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' सकेतितादर्शेषु उत्तरकुरु वक्तव्यताया: संक्षिप्तः पाठोस्ति, विशदवर्णनाथं च एकोरुकद्वीपवक्तव्यतायं समर्पितोस्ति, यथा-एवं एक्को रुदी ववत्तव्वया जाव देवलोकपरिग्गहा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! णवरि इमं णाणत्तं - छधणुसहस्समूसिता दोछप्पन्ना पिटूकरंडसता अट्टमभत्तस्स आहारट्ठ समुष्पज्जति तिष्मि पलिओ माई सूणाई पलिओ मस्सासंखेज्जाइभागेण ऊणगाई जहष्णेणं तिणि पलिओवमाइं उक्कोसेणं एकूणपण्णराइंदियाई अणुपालणा, सेसं जहा एगरूयाणं । उत्तरकुराए गं कुराए छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जति, तं जहा -- म्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेयाली से सणिच्चारी । द्रष्टव्यं ३३२१८ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । अर्वाचीनादर्शेषु उत्तरकुरुवक्तव्यता संक्षिप्तास्ति, एको रुकवतव्यता च विस्तृतास्ति । ताडपत्रीयादर्श, हारिभद्रीयवृत्तौ मलयगिरिवृत्तौ च एकोरुक वक्तव्यता संक्षिप्तास्ति, उत्तरकुरुवक्तव्यता च विस्तृतास्ति । अस्माभिः प्राचीनादर्शस्य वृत्त्योश्चाधारेण उत्तरकुरुवक्तव्यताया विस्तृतपाठः समादृतः । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चविहपडिवत्ती वावीओ जाव' विलपंतियाओ, तिसोवाणपडिरूवगा, तोरणा, पव्वयगा, पव्वयगेसु आसणाई, घरगा, घरएसु आसणाई, मंडवगा, मंडवएसु पुढविसिलापट्टगा। तत्थ णं वहवे उत्तरकुरा मणुस्सा मणुस्सीओ य आसयंति सयंति चिळंति णिसीयंति तुयटृति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरवकताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फल वित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणा विहरंति' । ५८०. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहने सेरियागुम्मा' *णोमालियागुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोज्जगुम्मा बीयगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जायगुम्मा सिंदुवारगुम्मा जातिगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहियागुम्मा मल्लियागुम्मा वासंतियागुम्मा बत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगस्थिगुम्मा मगदंतियागुम्मा चंपकगुम्मा जातिगुम्मा णवणीइयागुम्मा कुंदगुम्मा महाजाइगुम्मा । ते णं गुम्मा दसद्धवण्णं कुसुमं कुसुमंति जेण कुराए बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे वायविहुयग्गसालेहिं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए सिरीए अईव उवसोभेमाणे चिट्ठइ ।। ५८१. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्य देसे तहिं-तहिं बहवे रुक्खा हेरुयालवणा' भेरुयालवणा मेरुयालवणा सालवणा सरलवणा सत्तदण्णवणा पूयफलिवणा खजूरिवणा णालिएरिवणा कस-विकस-विसद्धरुक्खमला मलमतो कंदमंतो जाव' अणेगसगड-रह-जाण. जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियपडिमोयणा सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, पत्तेहि य पुप्फहि य' अच्छण्ण-पडिच्छण्णा सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणाउवसोभेमाणा चिट्ठति ।। ५८२. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे उद्दालका कोद्दालका मोद्दालका कतमाला णट्टमाला वट्टमाला दंतमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला णाम दुमगणा पण्णत्ता समाणाउसो ! कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिठेति ॥ ५८३. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे तिलया लउया छत्तोवा सिरीसा सत्तिवण्णा लोद्धा धवा चंदणा अज्जुणा णीवा कुडया कदंबा फणसा साला तमाला पियाला पियंगू पारेवया रायरुक्खा गंदिरुक्खा कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ।। ____ ५८४. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहूओ पउमलयाओ णागलयाओ १. जी० ३१२८६ । जातिगुल्माः इति विद्यते। २. अस्मिन् सूत्रे समाविष्टानामनेकसूत्राणां पूर्ति- ४. सेरुतालवणाई हेरुतालवणाई (जंबू ० २।६)। स्थलावबोधार्थं द्रष्टव्यं जी० ३१२८६-२६७। ५. जी० ३१२७४-२७६ । ३. सं० पा०--सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा। ६. य फले हि य (जंबू० २।८) । वृत्तौ अन्तिमं पदं महाकुन्दगुल्माः' इति विद्यते, ७. ३८८ सूत्रे पियाल' इति पदं दृश्यते । अत्र वत्तिकृता तिस्रः गाथा: उद्धसाः सन्ति, तत्रापि वृत्तावपि प्रियाला' इति विद्यते, किन्तु ताडपत्रीअन्तिमं पदं 'महाकु' इति विद्यते, किन्तु जम्बू- यादर्श पियया' इति पदमस्ति । औपपातिके द्वीपप्रज्ञप्तौ (२०१०); भगवत्यां (२२१५); (सूत्र ६) पिपियएहि' इति पदं लभ्यते । प्रज्ञापनायां (११३८) च अन्तिमं पदं महा Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ जीवाजीवाभिगमे असोगलयाओ चंपगलयाओ चूयलयाओ वणलयाओ वासंतिकलयाओ अइमुत्तकलयाओ कुंदलयाओ सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव' वडिसयधराओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥ __ ५८५. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहूओ वणराईओ पण्णत्ताओ। ताओ णं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव अणेगसगड़-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियपडिमोयणाओ सुरम्माओ पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। ५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे मत्तंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से चंदप्पभ-मगिसिलाग-वरसीधु-वरवारूणि-सुजातपत्त-पुप्फफल-चोय-णिज्जाससार-बहुदव्वजुत्तसंभार-कालसंधियासवा महु-मेरग-रिट्ठाभ'-दुद्धजातिपसन्न-तेल्लग-सताउ- खज्जूरमुद्दियासार- काविसायण- सुपक्कखोयरसवरसुरा- वण्णरसगंधफरिसजुत्त-बलवीरियपरिणामा मज्जविही बहुप्पगारा तहेव ते मत्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए मज्जविहीए उववेया फलेहि पुण्णा वीसंदंति कुस विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥१॥ ५८७. उत्तरकुराए पं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे भिंगंगया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से करग-घडग-कलस-कक्करि-पायंचणि-उदंक-वद्धणिसुपइट्टग-विदुर-पारी-चसग-भिंगार-करोडि-सरग-परग- पत्ती- थाल-मल्लग- चवलिय'- दगवारक-विचित्तवट्टक-मणिवट्टक-सुत्तिचारुपिणया कंचण-मणि-रयणभत्तिचित्ता भाजणविधी बहुप्पगारा तहेव ते भिगंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए भाजणविधीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥२॥ ५८८. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे तुडियंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से आलिंग-मुइंग-पणव-पडह-दद्दरग-करडि-डिडिम-भंभाहोरंभ-कणिय-खरमुहि-मगुंद-संखिय-पिरली-वच्चग- परिवाइणि- वंस- वेणु- सुघोस- विपंचि महति-कच्छभि-रगसिगा तल-ताल-कंसताल-सुसंपउत्ता आतोज्जविधी [बहुप्पगारा ?] णिउण-गंधव्वसमयकुसलेहि फंदिया तिढाणसुद्धा तहेव ते तुडियंगयावि दुमगणा अणेगबहविविधवीससापरिणयाए तत-वितत-घण-झुसिराए चउव्विहाए आतोज्जविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ।।३।। ५८६. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे दीवसिहा णाम दुमगणा १. जी० ३१२६८ । ६. उववेया फलेहिं पुण्णाविव विसीति (जंबू० २. जी० ३।२७५,२७६ । वृत्ति पत्र १०२)। ३. 'रिदुरत्नवर्णाभा' रिष्ठा या शास्त्रान्तरे जम्बू- ७. मलयगिरिणा पूर्ववर्तिसूत्रद्वये 'मज्जविही फलकालिकेति प्रसिद्धा (मव) २८६० सूत्रे भाजणविहीं' इति पदद्वयं न व्याख्यातम्, प्रस्तुत'जंबूफलकालिया' इति विशेषणं दृश्यते । सूत्रे 'बहुप्पगारा' इति पदं न व्याख्यातम्, किंतु ४. विसटेंति (मवृपा)। रचनाक्रमेण 'आतोज्जविही' बहप्पगारा इति ५. चवलिअ अवमद (जम्बू० वृत्ति पत्र १००)। पाठः सङ्गतो भवति । Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती पण्णत्ता समगाउसो ! जहा से संझाविरागसमए नवणिहिपतिणो दीविया-चक्कवालविदे पभूयट्टिपलितणहे धगि उज्जालिए तिमिरमदए कणगणिगरण'-कुसुमितपारिजातकवणप्पगासे कंचनमणिरयण-विमल महरिहविचित्तदंडाहि दीवियाहिं सहसापज्जालि उस्सप्पियणिद्धतेय-दिपंतविमल गहगासमप्पहाहिं नितिमिरकरसूर-पसरिउज्जोय-चिल्लियाहिं जालुज्जलपहसियाभिसमाहिं सोभेभाणा तहेव ते दीवसिहावि दुभगणा अणेगबहुविविहवीससापरिण. याए उज्जोयविधी उबवेवा कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥४॥ ५६०. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ- देसे तहि-तहिं वहवे जोतिसिया णाम दुमगणा पण्णत्ता समणा उसो ! जहा से अचिरुग्गयसरयसूरमंडल-पडंत उक्कासहस्स-दिप्पंतविज्जुउज्जलहुयवहनिद्धमजलिय - निद्धतधोयतत्ततवणिज्ज - किं सुयासोयजासुयणकुसुमविमउलिय पुंज-मणिरयणकिण-जच्चहिंगुलुयणिगररूबाइ रेगरूवा तहेव ते जोतिसियावि दुमगणा अणेगवहुविविहवीससापरिणयाए उज्जोयविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिति ।।५।। ५६१. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे चित्तंगा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पेच्छाघरे विचित्ते रम्मे वरकुसुमदाममालुज्जले भासंतमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए विरल्लियविचित्तमल्ल-सिरिसमुदयप्पगब्भे गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमेणं मल्लेणं छेयसिप्पिय-विभागरण सवतो चेव समणबद्धे पविरल-लंबंत-विप्पइटद्धि पंचवण्णेहि कुसुमदामेहि सोभमाणे वणमालकतग्गए चेव दिपमाणे तहेव ते चित्तंगयावि दुमगणा अणेगबहुविविहबीस सापरिणयाए मल्लविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति !!६॥ ५९२. उत्तरकुसए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे चित्तरसा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से सुगंधवर कलमसालितंदुल-विसिदृणिरुवहतदुद्धरद्धे सारयघयगुड-खंड-महुमेलिए अलिरसे परमाणे होज्ज उत्तमवण्णगंधमंते, रणो जहा वा चक्कवट्टिस्स होज्ज णिउणेहि सूयपुरिसेहि सज्जिए चउरकप्पसेयसित्ते इव ओदणे कलमसालिणिव्वत्तिए विपक्के सबप्फ-मिउ-विसय-सगलसित्थे अणेगसाल णय संजुत्ते अहवा पडिपुण्णदव्व्वक्खडे सुसक्कए वण्णगंधरसफरिसजुत्त-वल विरियपरिणामे इंदियवलपुटिवद्धणे खुप्पिवासमहणे पहाणगुलक ढियखंडमच्छंडियोवणीएव्व मोयगे सहसमियगब्भे पण्णतें तहेव ते चित्तरसा१. कनकनिकर:-सुवर्ण राशिः (जंवू० वृत्ति पत्र ४. उववेया सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदातवलेस्सा कूडा इव ठाणठिया अन्नमन्नसमोगाढाहिं २. महरिहतवणिज जुज्जलविचित्त' --तपनीयं लेस्साहिं साए पभाए सपदेसे सव्वओ समंता सुवर्णविशेषस्तेनोज्ज्वला-दीक्षाः (जम्बू० ओभासंति उज्जोवंति पभासेंति । वृत्ति पत्र १०२) । एतत् पाठान्तरं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती (पत्र ३. निर्धमज्वलितोज्वलहावह' इति संस्कृतरूपस्य १०३) व्याख्यातमस्ति, एकोरुकप्रकरणे च प्राकृते व्यत्ययोस्ति, मलयांगरिणा लिखित- प्रस्तुतसूत्रादर्शेष्वपि लभ्यते। मिदम्-सूत्रे च पदन्यासव्यत्ययः प्राकृत- ५. हवेज्ज परमेट्ठगसंजुत्ते (जंबू० वृत्ति पत्र १०४)। त्वात् । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे वि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणयाए भोजणविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥७॥ ५६३. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे मणियंगा नाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से हारद्धहार-वेढणग-म उड-कुंडल-वामुत्तगहेमजाल-मणिजालकणगजालग-सुत्तग-ओवियकडग'-खुड्डियएगावलि-कंठसुत्त-मगरिग-उरत्थगेवेज्ज-सोणिसुत्तगचूलामणि-कणगतिलग-फुल्लग-सिद्धत्थय-कण्णवालि-ससि - सूर-उसभ -चक्कग - तलभंगयतुडिय-हत्थ-मालग-हरिसय-केयूर-वलय-पालव - अंगुलेज्जग- वलक्ख-दीणारमालिया-कंचीमेहला-कलाव- पयरग- पारिहेरग-पायजाल'- घंटिया-खिखिणि- रयणोरुजाल'- वरणेउर - चलणमालिया-कणगणिगलमालिया-कंचणमणि रयणभत्तिचित्ता भुसणविधी वहुप्पगारा, तहेव ते मणियंगावि दुमगणा अणेगवहुविविहवीससापरिणताए भूसणविहीए उववेया कुसविकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ।।८।। ५६४. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे गेहागारा नाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से पागारट्टालग-चरिय-दार-गोपुर-पासायाकासतल-मंडवएगसालग-बिसालग-तिसालग-च उसालग-गब्भघर- मोहणघर- वलभिघर-चित्तसालमालय - भत्तिघर-वट्टतंसचउरंसणंदियावत्तसंठिया पंडुरतल मुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरअद्धमागहविब्भम-सेलद्धसेलसुट्ठिय-कूडागारड्ढ'- सुविहिकोढग-अणेगघर-सरण-लेण-आवणा विडंग-जालवंद-णिज्जूह-अपवरक-चंदसालियरूवविभत्तिकलिता भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारावि दुमगणा अणेगवहुविविधवीससापरिणयाए सुहारुहण-सुहोत्ताराए सुहनिक्खमणप्पवेसाए दद्दरसोपाणपंतिकलिताए पइरिक्क-सुहविहाराए' मणोणुकूलाएं भवणविहीए उववेया कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥६॥ ५६५. उत्तरकुराए णं कुराए तत्थ-तत्य देसे तहि-तहिं बहवे अणिगणा णामं दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो ! जहा से आइणग-खोम-तणुय-कंवल-दुगुल्ल-कोसेज्ज-काल मिगपट्ट१. उब्वितिय' (क, ख); उब्विइय" (ग); जायते, अर्थदृष्ट्यापि सुसङ्गतोयं प्रतिभाति । उच्चितिय' (ट); उर्वीकटकं (हस्त० ७. सर्वत्र स्त्रीत्वनिर्देश: प्राकृतत्वात् (मव)। वृत्ति)। ८. आदर्शेषु एकोरुकप्रकरणे 'मणोणुकूलाए' इति २.दीनारमालिका चन्द्रमालिका सूर्यमालिका पाठो लभ्यते । मलयगिरिवृत्तेरुपलब्धादर्शषु (जंबू० वृत्तिपत्र १०६)। एष पाठो व्याख्यातो नैव प्राप्यते, किन्तु जम्बू३. पादोज्ज्वलं (मवृ) । द्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती (पत्र १०७) प्रस्तुतसूत्राला४. जाल खुड्डिअ (जंबू० वृत्ति पत्र १०६)। पकानां वृत्तिरुद्धतास्ति, तत्र एष पाठो व्याख्या५. सेल अद्धसेलसंठिय (जंबू० वृत्तिपत्र १०६)। तोस्ति, तेनात्र चायं मूले स्वीकृतः । ६. आदर्शषु कूडागार?' इति पदं लभ्यते, हस्तलि- ६. मलयगिरिवृत्तेरुपलब्धादशेषु एतत् पदं व्याख्यातं खितवृत्तिद्वये मुद्रितवृत्तौ चापि तथैव तदस्ति, नैव लभ्यते । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (१०७) किन्तु जम्बूद्धीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र १०७)कूटा- प्रस्तुतसूत्रसंवादिपाठव्याख्यायां एतत व्याख्याकारेण-शिखराकृत्याढ्यानि इति व्याख्यात- तमस्ति--तनु:-शरीरं सुखस्पर्शतया लातिमस्ति, तेन कूडागारड्ढ' इति पाठस्य अवबोधो अणुगृह्णाति तनुलं-तनुसुखादि कम्बलः प्रतीतः Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती अंसुय-चीणंसुय-पट्टा आभरणचित्त-सहिणग'-कल्लाणग-भिगिणील-कज्जलबहुवण्ण- रत्त-पीतसुक्किल-सक्क य-मिगलोमहेमप्प-रल्लग-अवरुत्तर-सिंधु-उसभ-दामिल-वंग-कलिंग- नलिणतंतुमयभत्तिचित्ता वत्थविही बहप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणग्गता वण्णरागकलिता तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेगबहुविविहवीससापरिणताए वत्थविधीए उववेया कुस-विकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति ॥१०॥ ___५६६. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ते णं मणुया अतीव सोमचारुरूवा भोगुत्तमगयलक्खणा भोगसस्सिरीया सुजायसव्वंगसुंदरंगा सुपति ट्ठिय-कुम्मचारुचलणा रत्तुप्पलपत्त-मउयसुकुमालकोमलतला नग-नगरमगर-सागर-चक्कंकहरंक लक्खणंकियचलणा अणुपुव्वसुसाहतंगुलीया उण्णय-तणु-तंबणिद्धणखा' संठिय-सुसिलिट्ठ-गूढगुप्फा एणी-कुरुविंद-वत्त-वट्टाणुपुव्वजंघा समुग्ग-णिमग्गगूढजाणू गयससण-सुजात-सण्णिभोरू वरवारणमत्त'-तुल्लविक्कम-विलासितगती पमुइयवरतुरग-सीहवरवट्टियकडी वरतुरग-सुजातगुज्झदेसा" आइण्णहयव्व णिरुवलेवा साहयसोणंद-मसल-दप्पण-णिगरितवरकणगच्छरुसरिस-बरवइरवलितमज्झा 'उज्जय-समसंहित-सुजात-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सुकुमाल-मउय-रमणिज्जरोमराई गंगावत्तय-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रविकिरणतरुणबोधिय- आकोसायंतपउम- गंभीरवियडणाभा 'तणुअकम्बल' इति पाठे तु तन्तुकः-सूक्ष्मोर्णा- धिकपदमपि दृश्यते तत्तु वृत्तावव्याख्यातं स्वयं कम्बलः । पर्यालोच्यमानमपि च नार्थप्रदमिति न लिखितं, १. अतः परं मलयगिरि वृत्ती 'गंभीर नेहल गयाल' तेन तत् सम्प्रदायादवगन्तव्यं, तमन्तरेण सम्यक् एतानि श्रीणि पदानि व्याख्यातानि दृश्यन्ते- पाठशुद्धेरपि कर्तुमशक्यत्वादिति । गम्भीराणि-निपूणशिल्पिनिष्पादिततयाऽलब्ध- २. चक्क---अंकहर--अंक-चक्कंकहरंक। स्वरूपमध्यानि 'नेहल' ति स्नेहलानि-स्निग्धानि ३. °णक्खा (जंबू० वृत्तिपत्र ११०; पण्ह० ४७) । 'गयालानि' उद्वेल्यमानानि परिधीयमानानि ४. प्रश्नव्याकरणस्य (४७) मूलपाठे 'णिसम्म' वा गर्जयन्ति । अस्य विवरणस्य अनन्तरमेव इति पदम्, तस्य पाठान्तरे णिमग्ग' इति पदवृत्तिकता लिखितं-शेष सम्प्रदायादवसातव्यं, मस्ति। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती (पत्र ११०) तमन्तरेण सम्यक् पाठशुद्धरपि कर्तुमशक्यत्वात् 'णिसमग' पदस्य पाठान्तरत्वेन उल्लेखोस्ति। जम्बूद्वीपवृत्तिकृता शान्ति चन्द्रसूरिणा 'सहिणग' ५. श्वशन:-शुण्डादण्डः । इति पदानन्तरं प्राप्तस्य पाठस्य व्याख्या कृता- ६. सुजातशब्दस्य विशेषणस्यापि सतः परनिपातः स्ति । तदर्शनेन ज्ञायते भिंगि णील कज्जल' प्राकृतत्वात् (म)। एतेषां पदानामेव विपर्यस्त पाठः 'गंभीर नेहल ७. मत्तशब्दस्य विशेष्यात्परनिपातः प्राकृतत्वात गयाल' इति जात: प्रमादः लिपिदोषेण, मलय- (मव)। गिरिणा तथाविध एव आदर्शः उपलब्धः । ८. क्वचित्पुनरेवं पाठः पमुइयवरतुरगसीहाइरेगजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती जीवाभिगमवृत्तेरविवृतः वट्टियकडी' (मवृ); प्रश्नव्याकरणस्य (४७) पाठो विवृतोस्ति । अस्य पाठस्य विषये शान्ति- मूले अयमेव पाठः स्वीकृतः । तत्र नास्ति पाठाचन्द्रसूरिणा स्वयं टिप्पणी कृता--अत्र चाधिकारे न्तरं किञ्चित्।। जीवाभिगमसूत्रादर्श क्वचित्-क्वचित् किञ्चिद- १. पसत्यवस्तुरगगुज्झदेसा (मवपा) । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ जीवाजीवाभिगमे झस-विहग-सुजातपीणकुच्छी शसोदरा सुइकरणा" सण्णयपासा' संगतपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइय-पीणरइयपासा अकरंडयकणगरुयगनिम्मल-सजाय-निरुवहयदेहधारी कणगसिलातलुज्जल-पसत्थ-समतल-उवचिय-विच्छिण्ण-पिहुलवच्छा सिरिवच्छंकियवच्छा 'जुगसन्निभपीणरतियपीवरपउट्ठ-संठियसुसिलिविसिट्ठघणथि रसुवद्धसंधी पुरवर फलिहवट्रियभया' भयगीसरविपुलभोग-आयाणफलिह उच्छूढ-दीहवाहू 'रत्ततलोवइत-मउयमंसल-सुजाय-अच्छिद्दजालपाणी'' पीवरकोमल वरंगुलीया' आतंव-तलिण-सुचि-रुइर-णिद्धणक्खा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा 'चंद-सूर-संख-चक्क-दिसासोवत्थिय-पाणिलेहा" अणेगवरलक्खणुत्तम-पसत्थ-सुविरइयपाणिलेहा वरमहिस-वराह-सीह-सदूल-उसभ-णागवर-पडिपुन्नविउलखंधा चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिरागोवा मसलसंठिय-पसत्थ-सद्लविपुलहणुया अवद्वित-सुविभत्त-चित्तमंसू ओयविय सिलप्पवाल-विवफल-सन्निभाहरोहा पंडुरससिसगल-विमलनिम्मलसंख-गोखीरफेणकुंद-दगरयमुणालिया-धवलदंतसेढी अखंडदंता अप्फुडियदंता सुजातदंता अविरलदंता एगदंतसे दिव्व अणेगदंता हुतवहनिद्धंतधोततत्ततवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहा गरुलायतउज्जुतुंगणासा कोकासित-धवलपत्तलच्छा विप्फालियपुंडरीयनयणा' आणामियचावरुइल १. मलयगिरिवृत्ती चिन्हाङ्कितपाठो व्यत्ययेन एव स्वीकृतः । लभ्यते-झसविहगसुजातपीणकुच्छी झसोदरा ३. जुगसन्निभपीणरइयपउट्ठसंठियोवचियघणथिर - सुइकरणा गंगावत्तयपयाहिणावत्ततरंगभंगुरर- सुबद्धसुनिगूढ पव्वसंधी (मवृपा)। विकिरणतरुणवोधियआकोसायंतपउमगंभीरवि- ४. मलयगिरिणा असो पाठः पूर्ववर्तिपाठेन सह यडणाभा उज्जुयसमसहितसुजातजच्चतणुकसि- समस्ती कृतः, तेन पूर्ववर्तिपाठः भुजविशेषणं णणिद्धआदेज्जलहसुकुमालमउयरमणिज्जरोम- जातः । अभयदेवसूरिणा प्रश्नव्याकरण (४७) राई । प्रस्तुतसूत्रस्यैव योगलिकस्त्रीवर्णने वृत्तौ 'जुगसन्निभ०' इति पाठः स्वतंत्ररूपेण स्वीकृतपाठक्रमो दृश्यते, प्रश्नव्याकरणपि (४७) व्याख्यातः । स एव क्रमोस्माभिरनुसतः । स्वीकृतपाठसंवादिक्रमो विद्यते, एकोरुकप्रकरणे ५. रत्ततलोवइयमंसलसुजायपसत्थलक्खणअच्छिहप्रस्तुतसूत्रादर्शष्वपि एष एव क्रमोस्ति । जालपाणी (मवृपा) । २. अतः पूर्व आदर्शेषु पम्हवियडणाभा' इति पाठो- ६. पीवरवट्टियसुजायकोमलवरंगुलीया (मवृपा) । स्ति मलयगिरिणा तस्य पाठान्तररूपेण उल्लेखः ७. रविससिसंखवरचक्कसोत्थियविभत्तसुविरइयकृत:-..क्वचिद पम्हवियडनाभा' । प्रश्नव्याक- पाणिरेहा (मवृपा)। रणे (४१७) गंगावत्तय'० इति पाठस्य वृत्ति- ८. सुचिरइय० (म); सम्भाव्यते वृत्तिकृता 'सूचिकृता बाहुल्येन अपाठः सूचितः, तेन तत्र स रइय' इति पाठो लब्धः तेन तथा व्याख्यात:पाठान्तररूपेण स्वीकृतः, अत्र च प्रस्तुतसूत्र- शुचयः—पवित्रा रचिताः स्वकर्मणा । किन्तु वत्तिकृता पम्हवियडनाभा' इति पाठ: पाठान्तर- अर्थमीमांसया 'सुविरइय' इति पाठ एव सङ्गत्वेन सूचितः । एतौ हावपि पाठी नाभिवर्णन- तोस्ति । वत्तिकृता रविससि' इति पाठान्तरे परौ विद्येते, तयोरेक एव पाठः स्वीकार्योस्ति, सुविरचिता--सुष्ठकृता इति व्याख्यातम् । सच वत्तिमनुमत्य अत्र 'गंगावत्तय इति पाठ ६. अवदालियपोंडरीयनयणा (मवपा)। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउञ्चिहपडिवत्ती तणु-कसिण-निद्धभुया" अल्लीण-प्पमाणजुत्त-सवणा सुसवणा पीण-मंसल-कवोल-देसभागा निव्वण-सम-लट्ठ-मट्ठ-चंदद्धसमनिडाला उडवतिपडि पुष्णसोमवदणा घणणिचियसुवद्धलक्खगुण्णयकूडागारणिभ-पिडियसिरा छत्तामारुत्तमंगदेसा दाडिमपुरफपगास-तवणिज्जसरिसनिम्मल-सुजाय-केसंतकेसभूमी सामलिवोंडघणणिचियछोडिय-मिउविसयपसत्थसूहमलक्षणसुगंधसुंदर- भुयमोयगभिंगि - णील- कज्जल- पहलुभमरगणणिद्ध- णिकुम्वनिचिय- कुंचियपयाहिणावत्त-मुद्धसिरया लक्खणवंजणगुणोववेया सुजायसुविभत्तसुरूवगा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ ५६७. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहेलागुणजुत्ताओ' 'अइकंत-विसप्पमाण-पउमसूमाल-कुम्मसंठित- विसिट्ठचलणा" उज्जु-मउय - पीवर-पुट्ठ-साहयंगुलीओ उण्णय-रतिय-तलिणतंव-सुइ-णिद्धणखा रोमरहिय-बट्ट-लट्ठसंठिय-अजहण्णपसत्थलक्खणजंघजयला 'समिम्मिय-सगढजाण मंसलसवद्धसंधी५ कयलीखंभातिरेगसंठिय-णिव्वण-सकमालमउय-कोमल-अविरल-सम-संहत-सुजात-वट्ट-पीवर-णिरंतरोरू अट्ठावयवीचिपट्टसंठिय"पसत्थ-विच्छिण्ण-पिहुलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणितविसाल-मंसलसुबद्धजहणवरधारणीओ 'वज्जविराइय-पसत्थलक्खणनिरोदरा तिवलिवलिय-तणुणमियमज्झिआओ उज्जुय-सम१. क्वचित्पाठ:-'आणामियचारुरुचिलकिण्हब्भ- ६. अइविमल (मव) अर्थसमीक्षया 'अविरल' इति राईसंठियसंगयआययसुजायभुमया' । क्वचित्- पदमेव सुसङ्गतमस्ति । पुनरेवं पाठः ---'आणामियचावरुइलकिण्हन्भरा- ७. मलयगिरिणा पट्रमठिय' इति पाठो व्याख्यातः इतणुकसिणनिद्धभुमया' (मवृ)। -पट्टवत्-शिलापट्टकादिवत् संस्थिता पट्ट२. महिला (जंबु० २।१४) । संस्थिता । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेः हीरविजयवृत्ती ३. कंतविसय मिउसुकुमालकुम्मसंठियविसिटुचलणा (हस्तलिखित पत्र १०२) 'पटुः इति पाठो (ग) ; अइतविसप्पमाणमउयसूमालकुम्म- व्याख्यातोस्ति-- अष्टापदस्य द्यूतविशेषस्य संठियविसिट्ठचलणा (जंबु० २११४)। बीचय इव वीचयस्तरङ्गाकारा रेखाम्तत्प्रधान४. "लक्खणअकोपजघजुयला (जंबु०२।१४) ! पृष्ठमिव पृष्ठं फलकं अष्टापदवीचिफलक ५ चिन्हाङ्कितः पाठः प्रश्नव्याकरणं (४८) तत्संस्थिता। प्रश्नव्याकरण (४८) वृत्ती अनुसत्य स्वीकृतः । एकोहकप्रकरणे आदर्शष्वपि 'अट्ठावयवीचिपट्ठसंठिय' इति पाठो व्याख्याएप एव पाठो लभ्यते । तत्र प्रश्नव्याकरणे तोस्ति-अप्टापदस्य छुतविशेषस्य वीचय इव विद्यमानमपि पसत्थ' इति पदं तास्ति । वीचयस्तरंगाकारा रेखास्तत्प्रधानं पृष्ठमिव सम्भाव्यते मलयगिरिणा-'सुनिम्मियसुगूढ- पृष्ठं फलकं अष्टापदवीचिपृष्ठं तत्संस्थिता जाणुमंडलसुबद्धा' इत्येव पाठो लब्धः, तेन तथा तत्संस्थाना। एकोहकप्रकरणे प्रस्तुतसूत्रादर्शषु व्याख्यातः । किन्तु अर्थसमीक्षया नासो संगच्छते । 'अट्ठावयवीचिपट्टसंठिय' इति पाठो लभ्यते । 'मंडल' शब्दस्यापि नास्ति काचित् सार्थकता। अत्र स एव आदृतः । 'मंसलसुबद्धसंधी' इत्यस्य परिवर्तितोल्लेखः ८. तिवलिविणीय (म)। 'मंडलसुबद्धा' इति प्रतीयते । द्रष्टव्यं जंबुद्दीव- ६. मलयगिरिणा चिन्हाङ्कितः पाठः समासपूर्वक पण्णत्ती २।१४। व्याख्यातः । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ जीवाजीवाभिगमे संहित- जच्चतणु-कसिण- णिद्ध-आदेज्ज-लडह-सुविभत्त सुजात सोभंत - रुइल - रमणिज्जरोमराई गंगावत्तय-पयाहिणावत्त-तरंगभंगुर रविकिरणतरुणबोधिय-आकोसायं तप उम-गंभीरवियडणाभा अणुब्भड -पसत्य-पीनकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजायपासा मितमाइयपीणरइयपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल सुजाय णिरुवयगातलट्ठी कंचणकलससुप्पमाण-सम-संहित- सुजात लट्ठचूचुयआमेलग-जमलजुगल- वट्टिय- अब्भुण्णय रतिय संठियपयोधराओ भुजंगअणुपुब्वतणुय'- गोपुच्छवट्टसम-संहिय णमिय आएज्ज-ललियवाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था पीवर कोमलवरंगुलीआ गिद्धपाणिलेहा रवि-ससि संख-चक्क-सोत्थिय-विभत्तसुविरइयपाणि लेहा पीणुण्णय कक्ख-वक्ख-वत्थिप्पदेसा पडिपुण्णगलकवोला चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा मंसल - संठिय-पसत्यहणुया दाडिमपुप्फप्पगास - पीवरपवराधरा सुंदरोतरोट्ठा दधिदगरयचंदकुंदवासंतिम उलधवल अच्छि विमलदसणा रत्तुप्पलरत्त-मउयसूमालतालुजीहा कणइरमउल' - अब्भुग्गय उज्जुतुंगणासा सारयणवकमलकुमुदकुवलयविमुक्कदलणिगरसरिस - लक्खणअंकियणयणा पत्तल -चवलायंत' तंबलोयणाओ आणामितचावरुइलकिण्हब्भराइसंठिय-संगत-आयय-सुजात तणु-कसिण-गिद्धभमुया अल्लीण- पमाणजुत्त-सवणा पी - मट्ट-रमणिज्जगंडलेहा चउरंस-पसत्थ-समणिडाला कोमुइरयणिकर-विमलपडिपुण्णसोमवयणा छत्तुन्नयउत्तिमंगा कुडिल सुसिणिद्ध दीहसिरया छत्त- ज्झय-जूव - थूभ - दामिणिकमंडलु - कलस-वावि - सोत्थिय पडाग जव-मच्छ - कुम्म रहबर-मगर -सुक' थाल-अंकुस - अट्ठावय-सुपइट्ठक-मऊर' - सिरिदामाभिसेय - तोरण-मेइणि उदधि-वरभवण'- गिरि-वरआयंसललियगय उसभ-सीह - चामर- उत्तमपसत्यबत्तीस लक्खणधरीओ हंससरिसगतीओ कोइलमहुरगिरास्सराओ' कंताओ सव्वस्त अणुमयाओ ववगतवलिपलिया वंग-दुव्वण्ण-वाही दोभग्गसोगमुक्काओ 'उच्चत्तेण य नराण थोवूणमूसियाओ"" सभावसिंगारचारुवेसा" संगय-गय वृत्ती ( पत्र ११४ ) अस्यैव अनुसरणं कृतम् । प्रश्नव्याकरण ( ४1८) वृत्तौ निरोदरा' इत्यन्तः पाठः स्वतंत्ररूपेण व्याख्यातः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेहरिविजयवृत्ती पुण्यसागरवृत्ती च प्रश्नव्याकरणवृत्तितुल्या व्याख्यातास्ति । ( पत्र ११५ ) १. अणुपुव्वतणुय (मवृ) | २. अतो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ 'अकुडिल' इति पदं व्याख्यातमस्ति । ३. पत्तलधवल (जम्बू वृत्तिपत्र ११५ ) । ४. मगरज्भय ( जम्बू ० वृत्तिपत्र ११६; पण्हा० ४(८) । ५. अंक ( पव्हा० ४१८ ) ; अङ्कः – चन्द्रबिम्बासर्वतश्यामावयवः क्वचिदङ्कस्थाने शुक इति दृश्यते (जंबू ० वृत्तिपत्र ११६) । ६. अमर ( पण्हा ० ४ ८ ) ; मयूरः अमरो वा (पण्डा० वृत्ति ) । ७. सिरियाभिसेय ( पण्हा ० ४ ८ ); श्रियोभिषेको लक्ष्म्या अभिषेक: (जंबू ० वृत्तिपत्र ११६ ) । ८. पवरभवण (पण्हा० ४८ ) | ६. कोयल महुयरिगिराओ ( पहा० ४८ ) ; एष पाठ: स्वाभाविक: प्रतिभाति । स्वीकृतपाठः केनापि कारणेन परिवर्तित इवाभाति । प्रश्नव्याकरणानुसारेण यदि पाठ: परिकल्प्यत तदा 'कोइल महरिसुस्सराओ' इति पाठो निष्पद्यते । १०. चिन्हाङ्कितपाठः मलयगिरिवृत्तौ नास्ति व्याख्यातः । प्रश्नव्याकरणे (४८) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ ( पत्र ११६) तथा एकोरुकप्रकरणे सर्वादर्शेषु एष उपलभ्यते । ११. सिंगारागार चारुवेसा ( पण्हा० ४1८ ) ; बहुषु आगमेषु एष एव पाठ: उपलभ्यते । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७५ तम्चा चउब्विहडिवत्ती हसिय-भणिय-चेद्रिय-विलास-संलाव-णि उणजुत्तोवयारकुसला सुंदरथण-जहण-वयण-करचरण-णयण-लावणा-वण्ण-रूव'-जोव्वण-विलासकलिया नंदणवणचारिणीओन्व' अच्छराओ' अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ। ५६८. ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा' नंदिस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा' मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सरणिग्घोसा पउमुप्पलगंधसरिसनीसाससुरभिवयणा छवी णिरातंक-उत्तमपसत्थअइसेस-निरुवमतणू जल्ल-मल-कलंक-सेय-रय-दोसज्जियसरीर-निरुवलेवा छायाउज्जोइयंगमंगा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोतपरिणामा सउणिपोस-पिळंतरोरुपरिणता विग्ग हिय-उन्नयकुच्छी वज्जरिसभनारायसंघयणा समचउरंससंठाणसंठिया छधणुसहस्समूसिया । तेसि मणयाणं दोछप्पन्नपिट्टिकरंडगसता पण्णत्ता समणाउसो ! ते णं मणुया पगतिभद्दगा पगति उवसंता पगतिपयणकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपण्णा अल्लीणा भद्दगा विणीया अप्पिच्छा असंनिहिसंचया' अचंडा विडिमंतरपरिवसणा जहिच्छियकामगामिणो य ते मणु यगणा पण्णत्ता समणाउसो !।। ५६६. तेसि णं भंते ! मणुयाणं केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति ? गोयमा ! अट्ठमभत्तस्स आहारठे समुप्पज्जति ॥ ६००. ते णं भंते ! मणुया किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! पुढवीपुप्फफलाहारा ते मण्यगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ६०१. तीसे णं भंते ! पुढवीए केरिसए आसाए पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए गुलेति वा 'खंडेति वा“ सक्कराति वा 'मच्छंडियाति वा" पप्पडमोयएति वा भिसकंदेति" वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाति वा महाविजयाति वा उवमाति वा अणोवमाति वा चाउरक्के वा गोक्खीरे खंडगुलमच्छंडिउवणीए" पयत्तमंदग्गिकढिए वण्णेणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते भवेयारूवे सिया ? नो तिणठे समठे, तीसे णं पुढवीए एत्तो इट्टतराए चेव कंततराए चेव पियतराए चेव 'मणुण्णतराए चेव" मणामतराए चेव आसाए णं पण्णत्ते ।। १. एतत्पदं मलगगिरिवृत्ती नास्ति व्याख्यातम् । ७. वृत्तौ क्वचित् मनुजगणाः क्वचित् मनुजाः २. नंदनवणविवरचारिणीओव्व (पण्हा० ४१८) 1 इति प्रकारद्वयेन व्याख्यातमस्ति । ३. अच्छराओ उत्तरकुरुमानुसच्छराओ (पण्हा० ८. x (म)। ४८)। ६.४ (ता)। ४. अतोने वृत्ती चतुर्णा पदानां एष व्याख्या- १०. भिसकंडएति (ता)। क्रमोस्ति-एवं सिंहस्वरा दुन्दुभिस्वरा नन्दि- ११. "उववेते (ता)। स्वराः, नन्द्या इच घोषः-अनुनादो येषां ते १२. वृत्तो 'पयत्त' इति पदं व्याख्यातं नास्ति । नन्दीघोषाः । ३१६८६ सूत्रे प्रयत्नेन मन्दाग्निना क्वथितम्' ५. सीहणिग्धोसा (ता)। इति व्याख्यातमस्ति (वृत्ति पत्र ३५३)। ६. अणिहिसंचया (ता)। १३. वृत्तौ नास्ति व्याख्यातः। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ६०२. तेसि णं भंते ! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए' पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहाणामए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स कल्लाणे भोयणे सतसहस्सनिष्फल्ने वण्णे उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसाइणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे विहणिज्जे सव्विदियगातपल्हाय णिज्जे, भवेयारूवे सिया ? णो तिणट्ठे समट्ठे, तेसि णं पुप्फफलाणं एत्तो इट्ठतराए चेव जाव मणामतराए चैत्र आसाए गं पण ॥ ३७६ ६०३. ते णं भंते! मणुया तमाहारमाहारिता कहि वर्साह उवेंति ? गोयमा ! रुक्खहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६०४. ते णं भंते ! रुक्खा कि संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! अप्पेगा कूडागारसंठिया अप्पेगा पेच्छाघरसंठिया अप्पेगा छत्तसंठिया अप्पेगा झयसंठिया अप्पेगा थूभसंठिया अप्पेगा तोरणसंठिया अप्पेगा गोपुरसंठिया अप्पेगा वेश्यसंठिया अप्पेगा चोप्पालसंठिया अप्पेगा अट्टालगसंठिया अप्पेगा वीहिसंठिया अप्पेगा पासायसंठिया अप्पेगा हम्मियतलसंठिया अप्पेगा गवक्खसंठिया अप्पेगा वालग्गपोतियसंठिया अप्पेगा वलभीसंठिया अप्पेगा वरभवणविठाणसंठिया सुहसीयलच्छाया णं ते दुमगणाणता सणासो ! ॥ ६०५. अस्थि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए गेहाणि वा हाययणाणि वा ? णो तिट्ठे समट्ठे, स्वखगेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समजाउसो ! | ६०६. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए मामाति वा गगराति वा जाव सन्निवेसाति वा ? णो तिणट्ठे समट्ठे, जहिच्छिय कामगामिणो णं तं मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! || ६०७. अस्थि णं भंते ! उतरकुराए कुराए असीति वा मसीति वा किसीति वा "विवणीति वा " पीति वा वाणिज्जाति वा ? नो तिमट्ठे समट्ठे, ववगयअसिम सिकिसिविणिपणिवाणिज्जा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समगाउसो ! ॥ ६०५. अस्थि णं भंते! उत्तरकुराए कुरए हिरण्णेति वा सुवण्णति वा कंसेति वा दूसेति १. अस्सादे (ता) | इत्यस्य स्थान 'जं नेच्छिअकामगामिणी' इति २ एकोरुकप्रकरण आदर्शपु 'जहिच्छियकामगामिणो' इति पाठोस्ति । वृत्तिकृता मलयगिरिणात्र 'जं नच्छियकामगामिणो इति पाठो व्याख्यातोस्ति यद्यस्मान्नच्छित कामगामिनः न इच्छित - इच्छाविपयीकृत नेच्छितं नायं नत्र किन्तु नशब्द इत्यत्रानादेशाभावो यथा नैके द्वेपस्य पर्याया' इत्यत्र, नेच्छितं -- इच्छाया अविषयीकृतं कामंस्वेच्छया गच्छन्तीत्येवंशीला नेच्छितकामगामिनः । शान्तिचन्द्रसूरिणा जम्बूद्रीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ ( पत्र १२२ ) अस्य पाठस्य समर्थनं कृतम् — जीवाभिगमे तु ' जहेच्छिअकामगामिणो ' पाठ । ६. (मवृ), जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तः पुण्यसागरवृत्त एष पाठी व्याख्यातस्ति' विवणित्ति' विपणिरिति हट्टापजीविनः । ४. प्रस्तुत प्रकरण 'सुवर्ण कांस्य दृष्य' पदत्रयस्य प्रयोगः कथं संभवेत् ? उपाध्यायशान्तिचन्द्रेण प्रश्नः समुपहांकित: तस्य समाधानमपि कृतम् घटितं सुवर्णं तथा ताम्रत्रपुसंयोगजं कांस्य तथा तन्तुमन्तानसम्भवं दूष्यं तत्र कथं सम्भवेयुः ? शिल्पिप्रयोगजन्यत्वात् तेषां न च तान्यत्रातीतोत्सर्पिणीसत्कनिधानगतानि संभवतीति वाच्यं सादिसपर्यवसित प्रयोगबन्धस्या Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती वा मणिमोत्तियसंखसिलप्पवालसंतसारसावएज्जेति वा ? हंता अत्थि, णो चेव णं तेसिं मणयाणं तिब्वे ममत्तभावे समुप्पज्जति ।। ६०६. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुर:ए रायाति वा जुवरायाति वा ईसरेति वा तलवरेइ वा कोडविएति वा माडंविएति वा इन्भेति वा सेट्ठीति वा सेणावतीति वा सत्थवाहेति वा ? णो तिणठे समठे, ववगयइड्ढिसक्कारा पं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो।। ६१०. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए दासेति वा पेसेति वा सिस्सेति वा भयगेति वा भाइल्लगेति वा कम्मारएति वा ? नो तिणठे समठे, ववगतआभिओगिया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !! .६११. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए माताति वा पियाति वा भायाति वा भइणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा सुण्हा ति वा ? हंता अत्थि, नो चेव णं तेसि णं मणुयाणं तिब्वे पेज्जबंधणे समुप्पज्जति, पयणुपेज्जबंधणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! । ६१२. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए अरीति वा वेरीति' वा घातकेति वा वहकेति वा पडिणीति वा पच्चामित्तेति वा ? णो तिणठे समठे, ववगतवेराणुबंधा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणा उसो ! ॥ ६१३. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए मित्तेति वा वयंसेति' वा सहीति वा सुहिएति वा संगतिएति वा ? णो तिणठे समठे, ववगतनेहाणुरागा ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। ६१४. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए आवाहाति वा वीवाहाति वा जन्नाति वा सवाति व! थालिपाकाति वा पितिपिंडनिवेदणाति वा 'चूलोवणयणाति वा सीमतोवणयणाति वा" ? णो तिणठे समठे, ववगतआवाहवीवाहजन्नसद्धथालिपागपितिपिंड निवेदणचलोवणयणसीमंतोवणयणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६१५. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए इंदमहाति वा खंदमहाति वा सहमहाति' वा सिवमहाति वा वेसमणमहाति वा णागमहाति वा 'जक्खमहाति वा भूतमहाति वा मुगुंद सङख्येकालस्थित रसम्भवात, एगोरुगोत्तरकुरु- सूत्रयोरेतदालापकस्याकथनप्रसङ्गात्, उच्यते- राहणप्रवृत्त क्रीडाप्रवृत्तदेवप्रयोगात् तानि सम्भवन्तीति सम्भाव्यत, (वृत्ति पत्र १२२)। प्रस्तुतप्रश्नस्य एतत् समाधान स्वाभाविक भवति-वर्ण के कानिचितपदानि प्रवाहपातीन्यपि भवन्ति । १. वेरिएति (जंबु०२।२८) । २. वयंसाइ वा णायएइ वा घाडिएइ वा (जंबु० २६) । ३. सडढाति (ता)। ४. मितपिंडणिवेतणाति (मवृ) । ५. ४ (जंबु० २१३०); क्वचित् "सीमंतुण्णयणाई । वृत्तौ एतस्य पाठस्यानुसारिणी व्याख्या वर्तते-सीमन्तोन्नयनातीति वा, सीमन्तोन्नयन -गर्भस्थापनम् । ६. वृत्ती एतत्सूत्रं प्रेक्षासूत्रानन्तरं व्याख्यातमस्ति । ७. भ६० (ता)। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ जीवाजीवाभिगमे महाति वा" कूवमहाति वा तलागमहाति वा णदिमहाति वा दहमहाति वा पन्वयमहाति वा 'रुक्खमहाति वा चेइय महाति वा थूभमहाति वा ? णो तिणठे समझें, ववगतमहामहिमा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१६. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए णडपेच्छाति वा णट्टपेच्छाति वा जल्लपेच्छाति वा मल्लपेच्छाति वा मुट्ठियपेच्छाति वा वेलंवगपेच्छाति वा कहगपेच्छाति वा पवगपेच्छाति वा लासगपेच्छाति वा अक्खाइगपेच्छाति वा लंखपेच्छाति वा मंखपेच्छाति वा तूणइल्लपेच्छाति वा 'तुंबवीणपेच्छाति वा कावपेच्छाति वा" मागहपेच्छाति वा ? णो तिणठे समठे, ववगतकोउहल्लाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। ६१७. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सगडाति वा रहाति वा जाणाति वा जुग्गाति वा गिल्लीति वा थिल्लीति वा सीयाति वा संदमाणियाति वा ? णो तिणठे समठे, पादचारविहारिणों णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ ६१८. अस्थि णं भंते ! उत्तरकराए कराए आसाति वा हत्थीति वा उदाति वा गोणाति वा महिसाति वा खराति वा घोडाति वा अजाति वा एलाति वा ? हंता अस्थि, नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हबमागच्छंति ॥ ६१६. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गावीति वा महिसीति वा उट्रीति वा अयाति वा एलिगाति वा ? हंता अस्थि, नो चेव णं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति ।। ६२०. अत्थि गं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सीहाति वा वग्याति वा विगाति वा दीविगाति वा अच्छाति वा परस्सराति वा सियालाति वा विडालाति वा सुणगाति वा कोलसुणगाति वा कोतियाति वा ससगाति वा 'चित्तलाति वा" चिल्ललगाति वा ? हंता अत्थि, नो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसिं वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेद वा करेंति, पगतिभद्दगाणं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६२१. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए सालीति वा वीहीति वा गोधमाति वा जवाति वा तिलाति वा उक्खूति का? हंता अस्थि, नो चेव णं तेसि मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति ॥ ६२२. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए खाणूति वा 'कंटएति वा हीरएति वा सक्कराति वा तणकयवराति वा पत्तकयवराति वा असुईति वा पूइयाति वा दुब्भिगंधाति वा अचोक्खाति वा ? णो तिणटठे समटठे, 'ववगयखाण-कंटक-हीर-सक्कर-तणकयवरपत्तकयवर-असुई-पूइय-दुब्भिगंधमचोक्खपरिवज्जिया"णं उत्तरकुरा पण्णत्ता समणाउसो!।। १. भूतजक्ख (ता)। ७. ४ (मवृ)। २. रुक्खावेतियथूभचेतियमहाति वा (ता)। ८. पगतिभद्दा (ता)। ३. तुंववीणिसूत (ता)। ६. जवजवाति (ता) ४. व्यपगतकोतुकाः (मव) । १०. कंडएति वा तणकयवरेति वा पत्तकयरेति वा ५. पादविहारचारिणः (मव) । ६. विरालाति (ता)। ११. ववगतखाणुकंडकतणकयवरपत्तकयवरा णं (ता)। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चविहपडिवत्ती ३७६ ६२३. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गड्डाति वा दरीति वा घसीति' वा भिगृति वा विसमेति वा धुलीति वा पंकेति वा चलणीति चा? णो तिणठे समझें, उत्तरकुराए णं कुराए वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणाउसो ! ।। ६२४. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए दंसाति वा मसगाति वा 'ढिकुणाति वा" 'जूवाति वा लिक्खाति वा” ? णो तिणठे समठे, ववगतोवद्दवा णं उत्तरकुरा पण्णत्ता समणाउसो ! ६२५. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए अहीति वा अंयगराति वा 'महोरगाति वा" ? हंता अस्थि, नो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसि वा मणुयाणं किंचि आवाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा करेंति, पगइभद्दगा णं ते वालगणा पण्णता समणाउसो ६२६. अस्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए गहदंडाति वा गहमुसलाति वा गहगज्जिताति वा गहजुद्धाति वा गहसंघाडगाति वा गहअवसव्वाति वा अब्भाति वा अब्भरुक्खाति वा संझाति वा गंधवनगराति वा गज्जिताति वा विज्जुताति वा उक्कापाताति वा दिसादाहाति वा णिग्याताति वा पंसुविट्ठीति वा जूवगाति वा जक्खालित्ताति वा धूमियाति वा महियाति वा रउग्घाताति वा चंदोवरागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिवेसाति वा सूरपरिवेसाति वा पडिचंदाति वा पडिसूराति वा इंदधणूति वा उदगमच्छाति वा कविहसियाति वा अमोहाति वा पाईणवायाति वा पडीणवायाति वा जाव' सुद्धवाताति वा गामदाहाति वा नगरदाहाति वा जाव सण्णिवेसदाहाति वा पाणक्खय-भूतक्खय-कुलक्खयाति वा ? णो तिणठे समठे।। ६२७. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए डिवाति वा डमराति वा कलहाति वा वोलाति वा खाराति वा वेराति वा महाजुद्धाति वा महासंगामाति वा 'महासन्नाहाति वा" महापुरिसनिपडणाति वा महासत्थनिपडणाति वा ववगतडिव-डमर-कलह-वोल-खार-वेरा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !॥ ६२८. अत्थि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए दुब्भूयाति" वा कुलरोगाति वा गामरोगाति वा णगररोगाति वा मंडलरोगाति वा 'पंडुरोगाति वा पोट्टरोगाति वा 'सिरोवेदणाति वा अच्छिवेदणाति वा कण्णवेदणाति वा नखवेदणाति वा दंतवेदणाति वा 'कासाति १. घंसाति (क, ख, ग, ट त्रि)। ६. पूर्ववर्तिसूत्रेषु यथा कारणं प्रतिपादितमस्ति २. डंसाइ (ता) । तथात्रनास्ति । वृत्ती अस्ति कारणं प्रदशितम् ३. ढिकुणाति वा पिसुगाति वा (ता) क्वचित् .-केषाञ्चिदनर्थ हेततया केषाञ्चित्स्वरूपतश्च पिश्गा इति वा' इति पाट: (म) । तत्र तेषामसम्भवात् । ४. x (ता)। १०. पोल (ता)। ५. ४ (ता)। ११. ४ (ता)। ६. 'ता' प्रतौ एतत्सूत्रं नोपलभ्यते । जम्बूद्वीप- १२. वा महारुहिरणिपडणाति वा (ता)। प्रज्ञप्तावपि नेतत्सूत्रमुपलब्धमस्ति । १३. दुब्भगगाति (ता) । ७. जी० ११८१ । १४. मलयगिरिणा नैते पदे व्याख्याते । ८. ठाणं २।६९० । १५. सीसवेयणादि वा कण्णवे दन्त गख (ता)। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० जीवाजीवाभिगमे वा सासाति वा सोसाति वा जराति वा दाहाति वा कच्छूति वा खसराति वा कुट्टाति वा अरिसाति वा अजीरगाति वा भगंदलाति वा इंदग्गहाति वा खंदग्गहाति वा कुमारग्गहाति वा णागग्गहाति वा जक्खग्गहाति वा भूतग्गहाति वा धणुग्गहाति वा उध्वेगाति वा एगाहियाति वा बेयाहियाति वा तेयाहियाति वा चाउत्थगायिाति वा हिययसूलाति वा मत्थगसूलाति वा पाससूलाति वा कुच्छिसूलाति वा जोणिसूलाति वा" गाममारीति वा जाव सन्निवेसमारीति वा पाणक्खयाति वा जणक्खयाति वा धणक्खयाति वा कुलक्खयाति वा वसणभूतमणारियाति वा ? णो तिणठे समठे, ववगतरोगातका णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!॥ ६२६. तेसि णं भंते मणुया णं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं देसूणाई तिण्णि पलिओवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागेणं ऊणगाणि, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई ॥ ६३०. ते गं भंते ! मणुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति? गोयमा ! ते णं मणुया छम्मासावसेसाउया जुयलगं पसवंति, पसवित्ता एगूणपण्णं' राई. दियाइं अणुपालेंति, अणुपालेत्ता' कासित्ता छीइत्ता जंभाइत्ता अविकट्ठा अव्व हित्ता अपरियाविया कालमासे कालं किच्चा देवलोएस उववज्जंति। देवलोगपरिगहिया णं ते मणयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। ६३१. उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए कतिविधा मणुया अणुसज्जति ? गोयमा ! छन्विहा मणुया अणुसज्जति तं जहा-पउमगंधा मियगंधा अममा तेतली सहा सणिचरा। गाधाओ भाणितव्वाओ एवं उसु जीवा धणुपट्टे, भूमी गुम्मा य हेरु उद्दाला। तिलग लया वणराई, रुक्खा मणुया य आहारो ॥१॥ गेहा गामा य असी, हिरण्ण राया य दास माया य । अरि वेरिए य मित्ते, विवाह मह णट्ट सगडा य॥२॥ आसा गाओ सीहा, साली खाणू य गहुदंसाही । गहजुद्धरोगट्ठिई, उव्वट्टणा य अणुसज्जणा चेव ॥३॥ ६३२. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पण्णता? गोयमा ! नीलवंतस्स वासधरपव्वयस्स 'दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ" अट्ठचोत्तीसे जोयण१. खंदग्गहाति वा कुमारग्गहाति वा जक्ख भूत ४. पम्हगंधा (भ० ६।१३५, जंबू० २।४६)। आगमधणुग्गहाति वा दम्वेवाति वा एगाहियाति वा साहित्ये प्रायः पद्मशब्दस्य 'पम्ह' इति रूपं बेयाहि चाउत्थगा कासाति वा सासाति वा लभ्यते, किन्तु वस्तुतः 'पउम, पम्म, पोम्म' सोस जरा दाहा कच्छू कोढा डउ अरा अरिसा इति रूपाणि संगच्छन्ते । अत्र ताडपत्रीयप्रती भगंदलहितासुलाति वा मत्था जोणि पास 'पउम' इति रूपं उल्लेखनीयमस्ति । कुच्छिसू (ता)। ५. साणिचारि (ता)। २. एकुणुपण्णं (ता)। ६. गद्ददंसा य अहि (ता)! ३. तओ पच्छा ओससित्ता वा नीससित्ता वा (ता)। ७. दाहिणणं (क ,ख, ग, त्रि) । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउबिहपडिवत्ती ३५१ सते चत्तारि य सत्तभागे जोयणस्स अबाधाए सीताए महाणदीए 'पुरथिम-पच्चत्थिमेणं" उभओ कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए जमगा णाम दुवे पव्वता पण्णत्ता--एगमेगं जोयणसहस्सं उड्दं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसताणि उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसहस्सं 'आयामविक्खंभेण मज्झे अट्ठमाई जोयणसताई 'आयाम-विक्खं भेणं", उरि पंचजोयणसयाई 'आयाम-विक्खंभेणं", मूले तिण्णि जोयणसहस्साइं एगं च बावळं जोयणसतं किंचिवि. सेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता, मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिणि य बावत्तरे जोयणसते किचिविसेसाहिए' परिक्खेवेणं पण्णत्ता, उरि 'एग जोयणसहस्सं पंच य" एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ता, मूले विच्छिण्णा', मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकणगामया अच्छा जाव' पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं प उमवरवेइयापरिविखत्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ" ॥ ६३३. तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता, वण्णओ जाव" आसयंति।। ६३४. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पण्णत्ता । ते ण पासायवडेंसगा वावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तण एकत्तीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, अब्भुम्गतमूसित-पहसिता वण्णओ 'उल्लोए भूमीभागो, मणिपेढिया दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सीहासणं विजयदुसे अंकुसा दामा णं च मुणेतव्वे विधी जाव'२-- ६३५. तेसि णं सीहासणाणं अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं जमगाणं देवाणं पत्तयं-पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, परिवारो वत्तव्वो॥ ६३६. तेसि णं पासायवडेंसगाणं उप्पि अट्ठमंगलगा जाव" सहस्सपत्तहत्थगा। १. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि) । संस्थानं तेन संस्थिती, परस्परं सदशसंस्थाना२. विक्खंभेणं (ता); विष्कम्भत: (मवृ); जम्बू- वित्यर्थः अथवा यमका नाम शनिविशेषास्ततद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तौ (पत्र ३१६) आयाम-विष्कम्भ' संस्थानसंस्थितो, संस्थानं चानयोर्म लत: प्रारम्य इति पदद्वयमपि व्याख्यातमस्ति-मूले योजन- संक्षिप्त-संक्षिप्तप्रमाणत्वेन गोपुच्छस्येव सहस्रमायामविष्कम्भाभ्यां वृत्ताकारत्वात् । बोध्यम् । ३. विक्खंभेणं (ता,मवृ)] ६. जी० ३।२६१ । ४. विक्खंभेणं (ता,मवृ)। १०. वण्णो दोण्हषि । जी० ३१२६३-२६७ । ५. किंचिविसेसूणे (ट, ता)। ११. जी. ३१२७७-२६७ । ६. पन्नरम (क,ख,ग,ट, त्रि)। १२. जी० ३१३०७-३१३ । ७. वित्थिण्णा (ग, ता) । १३. जी० ३।३४०-३४५। ८. जबगसंठाणसंठिया (ख): जाव चंगेरिसं० १४. जी० ३२८६-२६१ (ट); जमतसं (ता); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती १५. भूमीभागा उल्लोगा दो जोयणाई मणिपेढियाओ (पत्र ३१६) एतत् पाठान्तरमेव व्याख्यात- बरसीहासणा सपरिवारा जाव जमगा चिठंति मस्ति--यमकौ-यमलजातौ भ्रातरी तयोर्यत- (क,ख,ग,ट, त्रि), सतसहस्स' (ता)। -- - - -- Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ जीवाजीवाभिगमे ६३७. से केणद्वेण भंते ! एवं वच्चति-जमगा पव्वता? जमगा पव्वता ? गोयमा ! जमगपव्वतेसुणं खुड्डा-खुड्डियासु जाव' विलपंतियासु बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताई जमगप्पभाईजमगागाराई जमगवण्णाईजागवण्णाभाई',जमगा य एत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्टितीया परिवसंति । ते णं तत्थ पत्तेयं-पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव' सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जमगपव्वताणं जमगाण य रायहाणीणं, अण्णेसि च वहणं वाणमंतरागं देवाण य देवीण य आहेवच्चं" •पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणा' पालेमाणा विहरति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं-वुच्चति जमगा पव्वता जमगा पब्वता। 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव णिच्चा"। ६३८. कहि णं भंते ! जमगाणं देवाणं जमगाओ नाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! जमगपव्वयाणं उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ णाम रायहाणीओ पण्णताओ-'वारस जोयणसहस्साई जहा विजयस्स जाव" एमहिड्ढिया जमगा देवा जमगा देवा ॥ __६३६. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए नीलवंतइहे णामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! जमगपव्वयाणं 'दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ५ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते चत्तारि सत्तभागा जोयणस्स अवाहाए सीताए महागाईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए नीलवंतदहे नाम दहे पण्णत्ते-उत्तरदक्खिणायते पाईणपडीणविच्छिण्णे एगं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसताई विखंभेणं, दस जोयणाइं उन्हेणं, अच्छे सण्हे रययामयकले जाव' अणेगसउणगणमिथुणपविचरिय-सद्दुण्णइयमहुरसरणाइयए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, उभओ पासिं दोहि य पउमवरवेइयाहिं वणसंडेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ"॥ ६४०. नीलवंतद्दहस्स णं दहस्स तत्थ-तत्थ 'देसे तहि-तहिं बहवे तिसोमाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ" ॥ १. जमगेसु णं पव्वतेसु तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं १०. सं० पा०-आहेवच्चं जाव पालेमाणा । बहुईओ खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ जाव ११. ४ (ता, मवृ)। बिलपंतियाओ तासु णं (क,ख,ग,ट,त्रि)। १२. जी० ३।३५५-५६५ । २. जी० ३१२८६ । १३. विजयरायहाणिसरिसियाओ एम्माहिडढीया ३. बहुगाई (ता)। जमगा जाव विहरंति (ता)। ४. जी० ३।२८६ । १४. गेलमंतबहे (ता)। ५. x (ता)। १५. दाहिणेणं (क,ख,ग,ट,त्रि) । ६. ४ (क,ख,ग,ट,त्रि)। १६. जी० ३।२८६ । x(क,ख,ग,ट,त्रि)। १७. जी. ३१२६५-२६७ । ८. जी० ३।३५० । १८. जी० ३।२८७ ९. जी० ३१३५०। s Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चम्विहडिवत्ती ३८३ ६४१. तेसि णं तिसोमाणपडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे पण्णत्ते, वण्णओ" || ६४२. तस्स णं नीलवंतद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं 'महं एगे" पउमे पण्णत्तेजोयणं आयाम-विक्खंभेणं', अद्धजोयणं वाहल्लेणं, दस जोयणाइं उन्हेणं, दो कोसे ऊसिते जलंतातो. सातिरेगाइं दसजोयणाई सम्वग्गेणं पण्णत्ते।। ६४३. तस्स ण प उमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहावइरामए मूले रिटामए कंदे वेरुलियामए नाले वेरुलियामया वाहिरपत्ता जंबूणयमया अभितरपत्ता तवणिज्जमया केसरा कणगमई कणिया नाणामणिमया पुक्खरस्थिभुया॥ ६४४. सा णं कण्णिया अद्धजोयणं आयाम-विक्खंभेणं', कोसं वाहल्लेणं, 'सव्वप्पणा कणगमई"अच्छा जाव' पडिरूवा ।। ६४५. तीसे णं कण्णियाए उरि बहुसमरमणिज्जे "भूमिभागे जाव' मणीणं वण्णो गंधो फासो ॥ ६४६. तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते-कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूर्ण कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविठं वण्णओ जाव" दिव्वतुडियसहसंपणाइए अच्छे जाव पडिरूवे ।। ६४७. तस्स णं भवणस्स तिदिसिं ततो दारा पण्णत्ता, तं जहा-पुरस्थिमेणं दाहिणणं उत्तरेणं । ते णं दारा पंचधणुमयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं धणुसताई विखंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा दारवण्णओ जाव" वणमालाओ। ६४८. तस्स" णं भवणस्स उल्लोओ अंतो बहुसमरमणिज्जो भूमिभागो जाव" मणीणं वण्णो गंधो फासो॥ ६४६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता-पंचधणुसयाई आयाम-विक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाइं धणुसताइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ।। १. जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता .जी. ३१२६१ । खण्णओ भाणियध्वो जाव तोरणत्ति (क,ख,ग, ६. जी. ३२२७७-२८४ । ट,त्रि); जी० ३।२८८-२६१ । १०. देसभाए पण्णत्ते जाव मणीहि (क,ख,ग,ट, २. णेलवंत (ता)। त्रि)। ३. एगे महं (क,ख,ग,ट,त्रि); महेगे (ता)। ११. जी० ३१३७२। ४. विखंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं १२. जी. ३१३००.३०६ । (क,ख,ग,ट,त्रि)। १३. 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु अस्य सुत्रस्य स्थाने ५. पूक्खलत्थिरया (क); पुक्खलत्यिभया (ख, एवं वाचनाभेदो दृश्यते- तस्स णं भवणस्स ट); पुक्खरुत्थिरता (ग,त्रि); पुक्खलत्यिभा अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पप्णत्ते से (ता)। जहानामए-----आलिंगपुक्ख रेति वा जाव मणीणं ६. विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं (क, वण्णओ। ख,ग,ट,त्रि)। १४. जी० ॥२७७-२८५ । ७. सव्वकणगामई (क,ख,ग,ट,ता)। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ जीवाजीवाभिगमे ६५०. तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि', एत्थ णं महं एगे देवसयणिज्जे पण्णते, सयणिज्जवण्णओ। ६५१. तस्स' णं भवणस्स उप्पि अट्ठमंगलगा जाव' सहस्सपत्तहत्थगा ।। ६५२. से णं पउमे अण्णणं अट्ठसतेणं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्ताणं पउमाणं सव्वतो समता संपरिक्खित्ते ।। ६५३. ते णं पउमा अद्ध जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं वाहल्लेणं, दस जोय णाई उब्वेहेणं, कोसं ऊसिया जलताओ, साइरेगाइं दस जोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ताई ।। ६५४. तेसि णं पउमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा- वइरामया मूल। जाव" कणगामईओ कणियाओ णाणामणिमया पूक्ख रत्थिभुगा ।। ६५५. ताओ णं कणियाओ कोसं आयाम-विक्खंभेणं', अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ।। ६५६. तासि णं कण्णियाणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जाव मणीणं वण्णो गंधो फासो ।। ६५७. तस्स णं पउमस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं 'नीलवंतस्स नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो" चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । 'एतेणं सव्वो परिवारो पउमाणं भाणितव्वो" ॥ ६५८. से णं पउमे अण्णेहि तिहि पउमपरिक्खेवेहि सन्वतो समंता संपरिक्खित्ते, तं जहा-अभितरेणं" मज्झिमेणं वाहिरएणं । अभित रए पउमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। मज्झिमए पउमपरिक्खेवे चत्तालीसं पउमसयसाहरसीओ पण्णत्ताओ। वाहिरए पउमपरिक्खेवे अडयालीसं पउभसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। एवमेव" सपुवावरेणं एगा पउमकोडी वीसं च पउमसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं"। ६५६. से" केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-णीलवंतहहे ? णीलवंतद्दहे ? गोयमा ! १. उरि (क,ख,ग,ट,त्रि)। १०. पउमवरपरिक्खेवेहि (ग,त्रि)। २. देवसयणिज्जस्स वणओ (क,ख,ग,ट,त्रि); ११. अब्भंत रए गं (ता)। जी० ३।४०७ । १२. अभिंतरए णं (क,ख,ग,ट)। ३. क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु एतत् सूत्रं नैव दृश्यते। १३. एवामेव (क,ख,त्रि)। ४. जी. ३२२८६-२६१ । १४. मक्खाया (क,ख,ग,ट,त्रि) । ५. जी. ३१६४३ । १५. ६५६, ६६० सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' ६. विक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं (क, आदर्शषु संक्षिप्तपाठो विद्यते, यथा-से केणख.ग,ट,त्रि)। ठेणं भंते ! एवं वुच्चति णीलवंतहहे दहे ? ७. जी० ३१२७७-२८४। गोयमा! णीलवंतबहे गं तत्थ तत्थ जाई ८. नीलवंतदहस्स कुमारस्स (क,ख,ग,ट,त्रि)। उप्पलाई जाव सतसहस्सपत्ताई णीलवंतप्पभाई ९. एवं सम्वो परिवारो नवरि पउमाणं भाणितध्वो णीलवंतहकुमारे य सो चेव गमो जाव (क,ख,ग,ट,त्रि) एवं पउमेहिं परिवारो णीलवंतद्दहे २। जावातरक्खाणं (ता); जी० ३१३४०-३४५ । वृत्तौ प्रथमसूत्रे 'महद्धिकः इत्यादि यमकदेव Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपरिवत्ती ३८५ गीलवंतहहे णं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहूई' उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं नीलवंतप्पभाई नीलवंतागाराई नीलवंतवण्णाइं नीलवंतवण्णाभाई नीलवंते एत्थ नागकुमारिंदे नागकुमारराया महिड्ढिए जाव' पलिओवमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं नीलवंतहहस्स नीलवंताए य रायहाणीए अण्णेसिं च बहूर्ण वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहरति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-णीलवंतद्दहे, पीलवंतद्दहे ।। ६६० कहि णं भंते ! णीलवंतस्स नागकुमाररिंदस्स नागकुमाररण्णो नीलवंता नाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! नीलवंतद्दहस्मुत्तरेणं अण्णमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साई जहा' विजयस्स ।। ६६१. नीलवंतद्दहस्स णं पुरथिम-पच्चत्थिमेणं दस-दस जोयणाई अबाधाए, एत्थ णं दस-दस कंचणगपव्वता पण्णत्ता। ते णं कंचणगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसंपणवीसं जोयणाई उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तर जोयणाई विक्खं भेणं', उवरि पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, मूले तिण्णि सोलसूत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए' परिक्खेवणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किंचिविसेसणे परिक्खेवेणं, उवरि एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे' परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उपि तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ॥ ६६२. तेसि णं कंचणगपव्वताणं उप्पि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णता 'जाव" आसयंति ६६३. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पासायव.सए पण्णत्ते–'सड्ढवावद्धि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, मणिपेढिया दोजोयणिया सीहासणा सपरिवारा॥ ६६४. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-कंचणगपव्वता? कंचणगपवता? गोयमा! कंचणगेसु णं पव्वतेसु तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वावीसु उप्पलाइं जाव कंचणगवण्णाभाई कंचणगा य एत्थ देवा महिड्ढीया जाव"विहरंति । से तेणठेणं॥ वन्निरवशेषं वक्तव्यं यावद् विहरति' इति संक्षेपः १. किंचिविसेसाहिए (क,ख,ग,ट,वि) । सूचितोस्ति । १०. जी० ३१२६३-२६७ । १. जाव (क,ख,ट); जाइं (ग,त्रि)। ११. जी० ३१२७७-२६७ । २. जी० ३१३५० । १२. ससदं जाव विहरंति (ता) : यावत्तणानां ३. जी. ३१३५१-५६५। मणीनां च शब्दवर्णन मिति (मवृ) । ४, पणूवीसं (क, ख, ता)। १३. जहा जमिगासु तहा जाव अट्ठो (ता) : जी० ५. आयामविक्खंभेणं (क,ख,ग,ट,त्रि)। ३६६३४-६३६। ६. सोल (क,ग) : सोले (ख,ट,त्रि) । १४. जी. ३१६३७ ७. किंचिविसेसूणे (ता)। १५. कंचणप्पभाई कंचगा यत्थ दो देवा महिडढीया ८. किंचिविसेसाहिए (क,ख,ग,ट,त्रि)। जाव पलि परिवसति । ते णं तत्थ पत्तेयं २ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ जीवाजीवाभिगमे ६६५. 'रायहाणीओ वि तहेव' उत्तरेणं विजयरायहाणिसरिसियाओ अण्णं मि जंबुद्दीवे॥ ६६६. कहिणं भंते ! उत्तरकुराए कुराए उत्तरकुरुद्दहे नामं दहे पण्णत्ते ? गोयमा ! नीलवंत दहस्स 'दाहिणिल्लाओ चरिमंतओ" अट्ठचोत्तीसे जोयणसते, ‘एवं सो चेव गमो तव्वो जो गीलवंतद्दहस्स, सव्वेसि सरिसको दहसरिनामा य देवा, सव्वेसि पुरथिमपच्चस्थिमेणं कंचणगपव्वता दस-दस एकप्पमाणा उत्तरेणं रायहाणीओ अण्णंमि जंबुद्दीवे"। ६६७. 'कहि णं भंते । चंदद्दहे एरावणद्दहे मालवंतद्दहे, एवं एक्केक्को णेयव्वो"। चउण्हं सामाणिदेवसाहस्सीणं कंचणगप, कंचणियरायहाणीण य अण्णेसिं च बहुणं वाणमंत राणं दे २ से तेणठेणं (ता)। १. जी० ३१३५१-५६३ ।। २. उत्तरेणं कंचणगाणं कंचणियाओ रायहाणीओ अण्णंमि जंबुद्दीवे तहेव सव्वं भाणितव्वं (क,ख, ग, ट, त्रि); काञ्चनिकाश्च राजधान्यो यमिकाराजधानीवद् वक्तव्याः (भव) 1 ३. दाहिणेणं (क,ख,ग,ट,त्रि) । ४. जी० ३१६३६-६६५।। ५. चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अबाहाए सीयाए महा बहुमज्झ जहा लवंतद्दहस्स तहेव सव्वं जाव अट्ठो। उत्तरकुरुद्दहस्स णं तत्थ जाव सतसहस्सपत्ताई उत्तरकुरुद्दहप्पभाई उत्तरकुरु तत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव पलितो। से णं तत्थ च उण्हं सामाणि उत्तरकुरुद्दहस्स उत्तरकुराए य रायहाणीए जाव विहरति से तेणटठेणं जाव रायहाणी उत्तरेणं । उत्तरकुरुद्दहस्स णं पूरथिम्पच्चत्थिमेणं दस २ जोयणाई दस २ कंचणयप जहेवितरे तहेव जावड्ढो रायहाणीओ य (ता); वृत्तावपि अस्य संवादी पाठो व्याख्यातोस्ति । ६. कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे चंदद्दहे णार्म दहे पण्णत्ते ? उत्तरकुरुद्दहस्स दाहि चरिमं अटुचोत्तीसे जावेत्थ णं चंद(हे णामं दहे पं जहेव णेलवंतद्दहस्स तहेव सव्वं (ता) अतोने पाठः त्रुटितोस्ति । 'कहिणं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्र सुगम, भगवानाह-गौतम ! उत्तरकुरुहृदस्य दाक्षिणात्याच्चरमान्तादार दक्षिणस्यां दिशि अप्टी चतुस्त्रिशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान् योजनस्याबाधया कृत्वेति शेषः शीताया महानद्या बहुमध्यदेशभागे 'अत्र' अस्मिन्नवकाशे उत्तरकुरुषु कुरुषु चन्द्रह्रदो नामहृदः प्रज्ञप्तः अस्यापि नीलवह्रदस्येवायामविष्कम्भोद्वेधपद्मवरवेदिकावनषण्डत्रिसोपानप्रतिरूपकतोरणमूलभूतमहापद्माष्टशतपद्मपरिवारपद्मशेषपद्मपरिक्षेपत्रयवक्तव्यता वक्तव्या, नामान्वर्थसूत्रमपि तथंव, नवरं यस्मादुत्पलादीनि 'चन्द्रहदप्रभाणि' चन्द्रहदाकाराणि चन्द्रवर्णानि चन्द्रनामा च देवस्तत्र परिवसति तस्माच्चन्द्रहदाभोत्पलादियोगाच्चन्द्रदेवस्वामिकत्वाच्च चन्द्रहद इति, चन्द्राराजधानीवक्तव्यता काञ्चनपर्वतवक्तव्यता च राजधानीपर्यवसाना प्राग्वत् । साम्प्रतमरावतहृदवक्तव्यतामाह--- 'कहि णं भंते' इत्यादिप्रश्नसूत्र पाठसिद्ध, निर्वचनमाह-गौतम ! चन्द्र हृदस्यदाक्षिणात्याच्चरमान्तादर्वाग् दक्षिणस्यां दिशि अष्टी चतुस्विशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान् योजनस्याबाधया कृत्वेतिशेष: शीताया महानद्या बहुमध्यदेशभागे 'अत्र' एतस्मिन्नवकाशे ऐरावत हदो नामहृदः प्रज्ञप्तः, अस्यापि नीलवन्नाम्नो हृदस्येवायामविष्कम्भादिवक्तव्यता परिक्षेपपर्यवसाना वक्तव्या, अन्वर्थसूत्र Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउम्विहपडिवत्ती ३२७ ६६८. कहि णं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जंबू-सुदंसणाए जंबूपेढे नाम पेढे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरथिमेणं नीलवंतस्स वासधरपव्वतस्स दाहिणणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमादणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं सोताए महाणदीए पुरथिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पण्णत्तेपंचजोयणसताई आयाम-विक्खंभेणं, पण्णरस एक्कासीते जोयणसते किंनिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए वारस जोयणाई वाहल्लेणं, तदाणंतरं च णं माताए-माताए पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सब्वेसु चरमतेसु दो कोसे वाहल्लेणं, सव्वजंवूणयामए अच्छे जाव पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खत्ते, वण्णओ दोण्हवि ॥ ६६६. तस्स णं जंबूपेढस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । तं चेव जाव तोरणा जाव' छत्तातिछत्ता। ६७०. तस्स णं जंबूपेढस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेति वा जाव' मणीणं फासो ॥ ६७१. तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता-अट्ठ जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, मणिमई अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ६७२. तीसे णं मणिपेढियाए उरि, एत्थ णं महं जंवू सुदंसणा पण्णत्ता-अजोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धजोयणं उब्वेहेणं, दो जोयणाई खंधे, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, छ जोयणाई विडिमा, बहुमाझदेसभाए अट्ट जोयणाई विक्खं भेणं, सातिरेगाइं अटू जोयणाई मपि तथैव, नवरं यस्मादुत्पलादीनि ऐरावतहदप्रभाणि, ऐरावतो नाम हस्ती तद्वर्णानि च ऐरावतश्च नामा तत्र देवः परिवसति तेन ऐरावत हद इति, ऐरावताराजधानी विजयराजधानीवत काञ्चनकपर्वतवक्तव्यतापर्यवसाना तथैव । अधुना माल्यवन्नाम ह्रदवक्तव्यतामाह'कहि णं भंते' इत्यादि सुगम, भगवानाहगौतम ! ऐरावत हृदस्य दाक्षिणात्याच्चरमान्तादगि दक्षिणस्यां दिशि अष्टी चतूस्त्रिशानि योजनशतानि चतुरश्च सप्तभागान् योजनस्य अबाधया कृत्वेति शेषः शीताया महानद्या बहमध्यदेशभागे 'अत्र' एतस्मिन्नवकाशे उत्तर- कुरुषु कुरुषु माल्यवन्नामा ह्रदः प्रज्ञप्तः, स च नीलवदुह्रदवदायामविष्कम्भादिना तावद्वक्तव्यो यावत्पद्मवक्तव्यतापरिसमाप्तिः, नामान्वर्थ सुत्रमपि तथैव यस्मादुत्पलादीनि माल्यवदहृदप्रभाणि' माल्यवहदाकाराणि, माल्यवन्नामा वक्षस्कारपर्वतस्तद्वर्णानि-तद्वर्णाभानि माल्यवन्नामा च तत्र देवः परिवसति तेन माल्यवहद इति, माल्यवतीराजधानी विजयाराजधानीवद्वक्तव्या काञ्चनकपर्वत वत.व्यतावसाना प्राग्वत् (म)। १. वृत्तौ एतत्पदं व्याख्यातं नास्ति। २. बाहल्लेणं पण्णत्ते (क,ख,ग,ट,त्रि) । ३. जी० ३।२८७-२६१ । ४. छत्ता (ख); चत्तारि छत्ता (त्रि)। ५. जी० ३।२७७-२८४,२८६-२६७; यावच्च बहवो वानमन्तरा देवा देव्यश्चासते शेरते यावद विहरन्ति (म)। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८य जीवाजीवाभिगमे सव्वग्गेणं पण्णत्ता, वइरायमूल' - रययसुपतिट्ठियविडिमा', रिट्ठामयकंद' - वेरुलियरुइरखंधा सुजायवरजायख्वप ढमगविसालसाला नाणामणिरयणाविविहसाहप्पसाह-वेरुलियपत्ततवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्त मउयसुकुमालपवालपल्लवं कुरधरा' विचित्तमणिरयणसुर हिकुसुमफलभर' -नमियसाला' सच्छाया सप्पभा सस्सिरीया सउज्जोया अहियं मणोनिव्वुइकरी' पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ६७३. जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसि चत्तारि साला पण्णत्ता, तं जहा -- पुरत्थिमेणं दक्खिणं पच्चत्थि मेणं उत्तरेणं । तत्थ णं जेसे पुरथिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते-- एगं को आयामेणं, अद्धको विक्खंभेणं सुणं कोसं उड़ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठ, वण्णओ जाव भवणस्स दारं तं चेव, पमाणं पंचधणुसताई उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाई विक्खंभेण जाव' वणमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधणुसतिया देवसय णिज्जं भाणियव्वं । तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसर पण्णत्ते - कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धको आयाम - विक्खंभेणं, अन्भुग्गयमूसियपहसिया, अंतो वहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, उल्लोया" । तस्स णं वहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए सीहासणं सपवारं भाणियव्वं" । तत्थ णं जेसे पच्चत्थिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए, पण्णत्ते, तं चैव पमाणं सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं । तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले साले, एत्थ णं महंगे पासावडेंसए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं ॥ ६७४. तत्थ णं जेसे ‘उवरिल्ले विडिमम्गसाले "", एत्थ णं महं एगे सिद्धायतणे पण्णत्ते १. वइरामया मूला (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. अतो 'ख' प्रती एवं चेतियरुखखवण्णओ जाव पाडवा' इति संक्षिप्तः पाठोस्ति, 'क, गट, त्रि' आदर्शेषु 'एवं चेतियरुवखवण्णओ जाव सव्वौ' इति पाठो लिखितोस्ति, विस्तृत वर्णनपरः पाठोपि, अतो ज्ञायते तेषु संक्षिप्तवाचनायाः सम्मिश्रणं जातम् । ३. रिट्ठमयविउलकंदा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. अपरे सौर्वाणक्यो मूलशाखाः प्रशाखाः रजतमय्य इत्यूचुः (मवु ) | ५. क्वचित्पाठ:-- 'जंबूणय रत्तम उयसुकुमालकोमलपल्लवंकुरग्गसिहरा' अन्ये तु 'जम्बूनदमया अग्रप्रवाला अङ्कुरापरपर्याया राजता' इत्याहुः (मवृ) 1 ६. 'कुसुमाफलभार (क, ख, ग, ट) । ७. वृत्तौ अस्य व्याख्यानानन्तरं सपादं संग्रहगाथा द्वयं लिखितमस्ति तद्यथा मूला वइरमया से कंदो खंधो य रिट्ठवेरुलिभो । सोणिय साहप्पसाह तह जायरूवा य ॥ १ ॥ विडिमा रययवे रुलियपत्ततव णिज्जपत्तबिटा य । पल्लव अग्गपवाला जंबूणयरायया तीसे ॥२॥ रयणमयापुप्फफला । ८. मणोनिव्वुइकरा (ग, ट); चैत्यवृक्षवर्णने ( ३।३८४) 'णयणमगणिव्वुतिकरा अभयरससमर सफला' इति पाठो दृश्यते । ६. जी० ३१६४६-६५१ । १०. जी० ३।३०७ - ३०६ । ११. जी० ३।३१०-३१३,३३६-३४४, ३१४ । १२. उवरिमविडिमग्गसाले (क, ख ); उवरिमे विडिमे (ग, त्रि); वृत्ती 'जम्ब्वाः सुदर्शनाया उपरिविडिमाया बहुमध्यदेसभागे सिद्धायतनम्' इतिव्याख्यातमस्ति । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती ( पत्र ३३३ ) प्रस्तुतागमपाठस्यार्थः उद्धृतोस्ति — 'उपरितनविडिमाशालायामित्यध्याहार्यं Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३८६ कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूर्ण कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविठे, वण्णाओ' तिदिसि तओ दारा पंचधणुसता अड्ढाइज्जधणुसयविक्खंभा, 'मणिपेढिया पंचधणुसतिया॥ ६७५. 'तीसे णं मणिपेढियाए उप्पि, एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए पण्णत्ते, पंचधणुसथाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाइं पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे॥ ६७६. तत्थ ण देवच्छंदए अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेधप्पमाणाणं, एवं सव्वा सिद्धायतणवत्तव्वया भाणियव्वा जाव' धूवकडुच्छुया ।। ६७७. तस्स ण सिद्धायतणस्स उवरिं अट्ठट्ठमंगलया जाव सहस्सपत्तहत्थगा ।। ६७८. जंबू णं सुदंसणा मूले वारसहिं पउम्वरवेइयाहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता', वण्णओं ॥ ६७६. जंबू णं सुदंसणा अण्णेणं अट्ठसतेणं जंबूणं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता ! ताओ णं जंबूओ चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, कोसं उब्वेहेणं, जोयणं खंधो, कोसं विक्खंभेणं, तिणि जोयणाई विडिमा, वहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, सातिरेगाइं चत्तारि जोयणाई सम्बग्गेणं, वइरामयमूल-रययसुपइट्टियविडिमा, रुक्खवण्णओ। ६८०. जंबूए णं सुंदसणाए अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं, एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ"। एवं जंबू परिवारो जीवाभिगमे तथा दर्शनात्' । अनेनापि जोयणं उड्ढे उच्चतेणं, पंचधणुसताई विखंस्वीकृतपाठस्य पुष्टिर्जायते । भेणं। १. जी० ३१४१२, ४१३ । ७. जी० ३१२६३-२७२ । २. पंचधणसयाई आयामवि अढाइज्जा बाहर.खंधी (ता। (ता)। ६. सो चेव चेतिय रुक्खण्णओ (क, ख, ग, ट, त्रि); ३. देवच्छंदओ पंचधगुसतविक्खंभो सातिरेगपंच- जी० ३३८७ । धणु स उच्चत्त (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. अतोने क, ख, ग,ट, त्रि' आदर्शष एवं विस्ततः ४. जी० ३१४१४-४१६ । पाठो विद्यते-जंबूए सुदंसणाए पुरस्थिमेणं ५. एतत् सूत्र क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष नैव एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं अम्गमहि लभ्यते, तेषु पूर्वसूत्रवर्ति धूवकडुच्छ्या ' इति सीणं जंबूओ पण्णत्ताओ। एवं परिवारो सव्वो पदानन्तरं 'उत्तिमागारा सोलसविधेहिं रयणेहिं णायवो जंबूए जाव आयरक्खाणं । वृत्तौ पूर्ण: उवेए तहेब चेव (ग, त्रि)' इति पाठो विद्यते, पाठो व्याख्यातोस्ति -- पूर्वस्यां चतसृणामग्रम४२० सूत्रेपि असो पाठान्तरत्वेन निदिष्टोस्ति, हिषीणां योग्यानि चतस्रो, महाजम्ब्वा दक्षिणवृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः । पूर्वस्यामभ्यन्तरपर्षदोऽष्टानां देवसहस्राणां ६. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष अतिरिक्तः योग्यान्यष्टौ जम्बूसहस्राणि, दक्षिणस्यां मध्यपाठो दृश्यते--ताओणं पउमवरवेइयाओ अद्ध- मपर्षदो दशानां देवसहस्राणां योग्यानि दश Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जीवाजीवाभिगमे जाव' आयरक्खाणं॥ ६८१. जंबू णं सुदंसणा तिहिं सइएहि वणसंडेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, त जहा-'अब्भंतरएणं मज्झिमेणं बाहिरेणं" ६८२ जंबूए णं सुदंसणाए पुरित्थिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते पुरथिमभवणसरिसे भाणियव्वे जाव' सयणिज्ज। एवं दाहिणणं पच्चत्यिमेणं उत्तरेणं ॥ ६८३. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तर-पुरथिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्थ णं महं चत्तारि गंदापुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुदा कुमुदप्पभा। ताओ णं गंदाओ पूक्खरिणीओ कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विश्खंभेणं, पंचधणुसयाई उव्वेहेण 'वष्णओ' पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ। ६८४. तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ जाव तोरणा"। ६८५. तासि णं णंदापुक्खरिणीणं वहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायव.सए पण्णत्ते-कोसप्पमाणे अद्धकोसं विक्खभो सो चेव वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं ।। ६८६. एवं दक्षिण-पुरत्थिभेण वि पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता चत्तारि गंदा जम्बुसहस्राणि, दक्षिणापरस्यां वाह्यपर्षदो ७. जी. ३१२८६ । द्वादश देवसहस्राणां योग्यानि द्वादश जम्बू- ८. जी. ३१२८७-२६१ । सहस्त्राणि, अपरस्यां सप्तानामनीकाधिपतीनां ६. अच्छाओ सहाओ लण्हाओ घटाओ मट्ठाओ योग्यानि राप्त महा जम्ब्वः, ततः सर्वासु विक्षुणिप्पंकाओ णीरयाओ जाव पडिरूवाओ वण्णओ पोडशानामारक्षदेवराहस्राणां योग्यानि षोडश भाणियन्वो जाव तोरणत्ति (क, ख, ग, ट, जम्बूसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । त्रि)। १. जं० ४११५१ १०.६८६-६८८ एतेषां त्रयाणां सूत्राणां स्थाने २. जोयणसइएहिं (क, ख, ग, ट, त्रि); ताडपत्रीयादर्श भिन्नः पाठोस्ति--जंबूए णं सु x (ता); शतिकै:-योजनशतप्रमाणः (म, दाहिणपुरथिमेणं पढमं वणसंडं पण्णासं जोयजंबू० वृत्ति पत्र ३३४) । गाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि गंदा पु पं ३. पढमेण दोच्चेणं तच्चेणं (क ख, ग, ट, त्रि)। त उप्पलगुम्मा गलिणा उप्पला उप्पलाइय । ४. पुरथिमिल्ले भवण" (क, ख, ग, ट, त्रि)। उत्तरपुरिमाणं सरिसिलीओ पासायवडेंसा सीहा ५. जी० ३१६७३ । सपरिवारो एवं दाहिणपच्चत्थि भिगा भिंगि६. ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च अन: किञ्चिद् विस्ततः णिभा च्चेव अंजणा कज्जलपभाच्चेव । सोच्चेव पाठो दश्यते---उवरि अट्रमंगलया जंबूए णं विही जाव सीहासणा सपरिवारा। उत्तरपुर पढमवणसंडदाहिणणं ओगाहिता एत्थ णं भवणे पढमं वण पण्णासं जोयणाई ओ ४ णंदाओ तहेब जाव सथणिज्जे पच्चस्थि मेणं वि उत्तरेण सिरिकता सिरिचंदा सिरिणिलया चेव सिरिवि जंबूए णं सुदंसणाए भवणा तारिसा चेव महिता तहेव जाव सपरि। वृत्तौ एतानि तेसुवि देवसयणिज्जा। सूत्राणि एवं व्याख्यातानि सन्ति–तासा Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ३६१ पुक्खरिणीओ उप्पलगुम्मा नलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला । तं चेव पमाणं तहेब पासायव.सगो तप्पमाणो॥ ६८७. एवं दक्खिण-पच्चत्थिमेणवि पण्णासं जोयणाई, नवरं भिगा भिंगणिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा। सेसं तं चेव । ६८. जंबुए णं सुदंसणाए उत्तर-पच्चत्थिमेणं पढम वणसंडं पण्णासं जोयणाई ओगाहित्ता, एत्य णं चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा--'सिरिकता सिरिचंदा, सिरिणिलया चेव सिरिमहिया" तं चेव पमाणं तहेव पासायवडेंसओ ।। ६८६. जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं उत्तर-पुरथिमिल्लस्स' पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं, एत्थ गं महं एगे कूडे पण्णत्ते-अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं 'दो जोयणाई उव्वेहेणं", मूले अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं, मज्झे छ' जोयणाई विक्खंभेणं, उरि चत्तारि जोयणाई विक्खं भेणं, मूले सातिरेगाइं पणुवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं मज्झे सातिरेगाइं अट्ठारस जोयणाई परिक्खेवेणं, उरि सातिरेगाई बारस जोयपाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पि तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव" पडिरूवे । से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य बणसंडेण सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, पुष्करिणीनां वहमध्यदेशभागेऽत्र महानेकः ३. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष चिन्हाडितः पाठः प्रासादावतंसक: प्रज्ञप्त:, सच जम्बूवृक्षदक्षिण- नैव लभ्यते, वृत्तावपि नास्ति व्याख्यातः। पश्चिमशाखाभाविप्रासादवत प्रमाणादिना केवलं ताडपत्रीयादर्श एवासी विद्यते । जम्बूवक्तव्यो यावत् सहस्सपत्तहत्थगा' इति पदं द्वीपप्रज्ञप्त्यामेष (४:१५६) पाठः उपसर्वत्रापि च सिंहासनमनादतदेवस्य सपरि लब्धोस्ति तदवत्तौ (पत्र ३३५) व्याख्यातोपि वारम् । एवं दक्षिणपूर्वस्यां दक्षिणापरस्या- वर्तते। मुत्तरापरस्यां च प्रत्येकं वक्तव्यं, नवरं नन्दा- ४, ५,७, ८. बारस अटू सत्ततीसं पणुवीसं (क, पुष्करिणीनामनानात्वं, तच्चेदं- दक्षिणपूर्वस्यां ख, ग, ट, त्रि); जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तावपि पूर्वादिक्रमेण उत्पलगुल्मा नलिना उत्पला (पत्र ३३५) स्वीकृतानि पदानि व्याख्यातानि उत्पलोज्ज्वला, दक्षिणपूर्वस्यां भूला भृङ्ग सन्ति, पाठान्त रगतानि पदानि मतान्तरत्वेन निभा अञ्जना कज्जलप्रभा, अपरोत्तरस्यां परिशितानि सन्ति-जिनभद्रगणिक्षमाश्रमश्रीकान्ता श्रीचन्द्रा श्रीनिलया श्रीमहिता, णस्तु अठ्ठसहकडसरिसा सवे जंबणयामया उक्तञ्च भणिया' इत्यस्यां गाथायामृषभकूटसमत्वेन पउमा पउमप्पभा चेव, कुमुयाकुमुयप्पभा। भणितत्वात् द्वादश योजनानि अष्टो मध्ये उप्पलगुम्मा नलिणा, उप्पला उप्पलुज्जला ॥१॥ चेत्यूचे, तत्त्वं तु बहुश्रुतगम्यम्।। भिगा भिंगनिभा चेव, अंजणा कज्जलप्पभा। ६. आयामविक्खंभेण (क, ख, ग, ट, त्रि); वृत्तसिरिकता सिरिचंदा, सिरिनिलया चेव सिरि- खेन य एव आयामः स एव विष्कम्भ इति महिया ॥२॥ (जम्बू० वृत्ति पत्र ३३५) । १. सिरिकता सिरिमहिया, सिरिचंदा चेव तह ६. उरि (ता)। य सिरिणिलया (क, ख, ग, ट, त्रि)! १०. जी० ३१२६१ । २. पुरथिमेणं (त्रि)। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ जीवाजीवाभिगमै दोण्हवि वण्णओ॥ ६९०. तस्स णं कूडस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव' मणीणं तणाय य सहो । ६६१. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स वहुमज्झदेसभाए 'एगं सिद्धायतणंकोसप्पमाणं सव्वा सिद्धायतणवत्तव्वया" ॥ ६६२. जंवूए णं सुदंसणाए पुरथिमिल्लस्स' भवणस्स दाहिणेणं, दाहिण-पुरस्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, 'तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च"॥ ६६३. जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पुरत्थिमेणं, दाहिण-पुरस्थिमिल्लस्स पासायव.सगस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६४. जंबूए णं सुदंसणाए दाहिणिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं', दाहिण-पच्चस्थि मिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६५. जंबूए णं सुदंसणाए पच्चथिमिल्लस्स भवणस्स दाहिणेणं, दाहिण-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स उत्तरेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चैव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६६. जंबूए णं सुदंसणाए पच्च थिमिल्लस्स भवणस्स उत्तरेणं, उत्तर-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स दाहिणेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६७. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पच्चत्थिमेणं, उत्तर-पच्चत्थिमिल्लस्स पासायव.सगस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, तं चेव पमाणं सिद्धायतणं च ॥ ६६८. जंबूए णं सुदंसणाए उत्तरिल्लस्स भवणस्स पुरथिमेणं, उत्तर-पुरथिमिल्लस्स पासायवडेंसगस्स पच्च स्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे कूडे पण्णत्ते, 'तं चेव पमाणं तहेव सिद्धायतणं॥ १. जी० ३१२६३-२६७ । २. जी० ३।२७७-२८५ । ३. सिद्धायतणे जम्बुसिद्धायणसरिसे जाव धूब___ कडुच्छुए (ता, मवृ); जी० ३३६५४-६७७ । ४. पुरथिमस्स (क, ख, ग, त्रि) । ५. जेच्चेव उत्तरपुरथिमिल्लकूडसिद्धायतण___ वत्तव्वता सव्वे विहि पि (ता)। ६. परतो (ख, ग, त्रि, मवृ)। ७. तधेव जाव सिद्धायणे जाव कडुच्छुए जाव अट्ठमं (ता)। अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु सूत्रद्वयमुपलभ्यते जंबू णं सुदंसणा अण्णेहिं बहूहि तिलएहि लउएहिं जाव रायरुक्खेहि हिंगुरुक्खेहि जाव सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता । जंबूए णं सुदंसणाए उरि बहवे अट्ठट्ठमगलगा पण्णत्ता, तं जहा-सोत्थियसिरिवच्छ किण्हा चामरज्भया जाव छत्तातिच्छत्ता । ताडपत्रीयादर्श एक सूत्रमुपलभ्यतेजंबूए णं सुदंसणाए उरि अट्ठट्ठमंगलगा जाव Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती ६६६. जंबूए णं सुदंसणाए दुवालस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहासुदंसणा अमोहा य सुप्पबुद्ध जसोधरा । विदेहजंबू सोमणसा, णियया णिच्चमंडिया ॥ १ ॥ सुभद्दा य विसाला य, सुजाया सुमणा वि य । सुदंसणाए जंबूए नामधेज्जा दुवालस' ॥२॥ ७००. सेकेणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ -- जंबू सुदंसणा ? गोयमा ! जंबूए णं सुदंसture 'जंबूदीवाहिवती अणाढिते णाम" 'देवे महिड्ढीए जाव पलिओदमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं जंबूदीवस्स* जंबूए सुदंसणाए अणाढियाते य रायधाणीए जाव' विहरति 'सेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चतिजंबू सुदंसणा " || ७०१. कहि णं भंते ! अणाढियस्स देवस्स 'अणाढिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे । एवं जहा विजयस्स देवस्स जाव' समत्ता वत्तव्वया रायधाणीए, एमहिड्डी " || ७०२. अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे 'उत्तरकुराए कुराए" तत्थ - तत्थ देसे तर्हि तहि बहवे जंबूरुक्खा जंबूवणा जंबूसंडा" णिच्चं कुसुमिया जाव" वडेंसगधरा" । से तेणट्ठेनं गोयमा ! एवं बुच्चइ - जंबुद्दीवे दीवे । 'अदुत्तरं च णं गोयमा ! जंबुद्दीवस्स सासते णामधेज्जे पण्णत्ते – जण्ण कयावि णासि जाव" णिच्चे" || जंबुद्दीचे चंदसुरादि-अधिगारो ७०३. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कति चंदा पभासिसु वा पभासेति वा पभासिस्संति सयसहस्सपत्तहत्यगा । प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्तौ नेतत् सूत्रद्वयमपि व्याख्यातमस्ति । जम्बूवृक्षः अन्यैः जम्बूवृक्षैः परिवृतोस्ति तेन नैष पाठोऽपेक्षितोस्ति । जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ती 'अट्ठमंगलगा' इति सूत्रं जम्ब्वा द्वादश नामानन्तरं व्याख्यातमस्ति । १. ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च नाम्नां भेदः क्रमभेदश्च दृश्यते- सुदंसणा अमोहाय सुप्पबुद्धा जसोधरा । भद्दा य सुभद्दा य सुयाता सुमणा तिय ॥ १॥ विदेहा बंधु सोमणसा णितिया णिच्चमंडिया । सुदंसणाए जवए, एते णामा दुवालसा ||२|| (ar) 1 सुदर्शना अमोघा सुप्रबुद्धा यशोधरा सुभद्रा विशाला सुजाता सुमनाः विदेहजम्बू सोमनस्या नियता नित्यमण्डिता ( मवृ) १९३ णं अट्ठमंगलगा' इति पाठो विद्यते । ३. अणाढिए णाम जंबूदीवाहिपदि (ता) | ४. x (ता) । ५. जी० ३।३५० ६. x ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. जी० ३।३५१-५६५ । ८. जंबुद्दीवाहिपतिस्स अणाढिया णाम रायहाणी पं जंबूएस उत्तरेणं तिरियमसंखे जहा विजया (ता) । ६. X ( क, ख, ग, ट, त्रि) | १०. जम्बूवणसंडा (क, ख, ग, ट, त्रि) । ११. जी० ३।२७४ । १२. सिरीए अतीव उवसोभेमाणा २ चिट्ठेति (क, ख, ग. त्रि) । १३. जी० ३१३५० । २. अतः परं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती (४१५८) 'जंबूए १४ x (ता, मवृ ) । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ जीवाजीवाभिगमे वा ? कति सूरिया तविसु' वा तवंति वा तविस्संति वा ? कति नक्खत्ता जोयं जोइंसु वा जयंति वा जोइस्सति वा ? कति महग्गहा चारं चरिसु वा चरंति वा चरिस्संति वा ? कति तारागणको डाकोडीओ सोभिसु' वा सोभंति वा सोभिस्संतिवा ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, छावत्तरं गहसतं चारं चरिसु वा चरंति वा चरिस्संति वा एवं सतसहस्सं, तेत्तीसं 'खलु भवे सहस्साई " । वय सया पन्नासा तारागण कोडकोडीणं * ॥१॥ सोभ वा सोभति वा सोभिस्संति वा ॥ लवणसमुद्दाधिगारो ७०४. जंबुद्दीवं' दीवं लवणे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिविखत्ताणं चिट्ठति ॥ ७०५. लवणे णं भंते! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते' नो विसमचक्कवाल संठिते" || ७०६. लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिथं चक्कवालविक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविक्खभेणं, 'पन्न रस जोयणसयसहस्साई एगा सीइसहस्साई सयमेगोणचत्तालीसे"" किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं"" । से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समता संपरिविखत्ते चिट्ठइ, दोहवि वणओ । सा गं परमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढ उच्चत्तेणं पंच धणुसयविक्खंभेणं लवणसमुदसमिया परिक्खेवेणं सेसं तहेव" । से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई जाव" विहरs || ७०७. लवणस्स णं भंते ! समुद्दस्स कति दारा पण्णत्ता ? 'गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजए वैजयंते जयंते अपराजिते "" ॥ ७०८. कहि णं भंते । लवणसमुद्दस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणसमुद्दस्स पुरत्थिमपेरते धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीओदाए " महानदीए १. तवइंसु (ता) | २. चरिति (क, ख, ढ, त्रि) 1 ३. केवतियाओ ( ख, ग, ट, त्रि) ४. सोमंसु (क, ता); सोहंस (त्रि) 1 ५. एगं च (क, ख, ग, ट, त्रि) | (ट) 1 ८. जंबुद्दीवं णाम ( क, ख, ग, ट, त्रि) । C. समचक्कवालयं (ता) | १०. विसमचक्कवालयं ( ता ) | ६. च सहस्साई ( ता ) 1 १३. जी० ३।२६३-२७२ । ७. कोडिकोडीणं (क, ख, ग ); कोडाकोडीणं १४. जी० ३।२७३ - २६८ । १५. जंबुद्दीवविजयसरिसे ( ता ) । १६. सीताए । ११. छ सय सहस्साइं सयं च चत्तालं ( ता ) । १२. किंचिविसे साहिए लवणोदक्षिणो परिक्खेवेणं (ख, ग, ट, त्रि) । चक्कवाल Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवती ३६५ उप्पि, एत्थ णं ल वणस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, जंबुद्दीव विजयसरिसे जाव' अट्ठमंगलगा। ७०६. से केण ठेणं भंते ! एवं उच्चति-विजए दारे, विजए दारे ? जो अट्ठो' जंबुद्दीवगस्स ।। ७१०. कहि णं भंते ! लवणगस्स विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स दारस्स पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे अण्णंमि लवणसमुद्दे वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पण्णत्ता, जंबुद्दीवगसरिसा वत्तव्वया ।। ७११ कहि णं भंते ! लवणसम इस्स वेजयंते नाम दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणसमुद्दे दाहिण पेरंते धातइसंडदीवस्स दाहिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं वेजयंते णामं दारे पण्णत्ते, सेसं तं चेव सव्वं ।।। ७१२. एवं जयंते वि तस्स वि रायहाणी पच्चरिथमेणं ।। ७१३. कहि णं भंते ! लवणसमुदस्स अपराजिते तहेव रायहाणी वि उत्तरेणं अपराजितस्स दारस्स अण्णं मि लवणे जहा विजयरायहाणि-गमो उड्ढं उच्चत्तं तहा ॥ ७१४. लवणस्स णं भंते ! समुहस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए" अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! “तिण्णि जोयणसतसहस्साई पंचाणउई सहस्साई दोण्णि य असीते १. जी. ३१३००-३४६ । २. बत्ती अत्र किञ्चिद विस्ततः पाठो व्याख्यानोस्ति-अष्टौ योजनान्यु मूच्चस्त्वेन । एवं जम्बूद्वीपगतविजयद्वारसदशमेतदपि वक्तव्यं यावद्बहन्यष्टावष्टौ मङ्गलकानि याबहवः सहस्रपत्रहस्तका: । ग, ट, त्रि' आदर्शेषु अतः प्रारभ्य ७१० सूत्रपर्यन्तं भिन्ना वाचना विद्यते, यथा-अटु जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं एवं तं चेव सन् जहा जंबुद्दीवस्स विजयसरिसेवि रायहाणी पुरथिमेणं अण्ण मि लवणसमुद्दे । ३. जी०३:३५०। ४. जी० ३ । ३५१-५६५॥ | ५. एवं वेजतंतं पि अप्पणिज्जेणं गमेणं लवणस्स दाहिणेण रायहाणी (का, ख, ता)। ६. ७१२,७१३ सूत्रयोः स्थाने 'ग, ट, त्रि' आद शेष पाठभेदो लभ्यते--एवं जयंतेवि, णवरिसियाए महाणदीए उपि भाणियव्वे । एवं अप- राजितेवि, गवरं-दिसीभागो भाणियव्यो । वत्ती एते द्वेपि सूत्रे किञ्चिद् विस्तते विद्यते--कहि णं भंते! इत्यादि, क्व भदन्त ! लवणसमुद्रस्य जयन्तं द्वारं प्रज्ञप्तं ? भगवानाह-गोतम! लवणसमुद्रस्य पश्चिमपर्यन्ते धातकीखण्डपश्चिमाद्धस्य पूर्वतः शीताया महानद्या उपरि लवणस्य समुद्रस्य जयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तद्वक्तव्यतापि विजयद्वारवद् वक्तव्या, नवरं राजधानी जयन्तद्वारस्य पश्चिमभागे वक्तव्या। अपराजितद्वारप्रतिपादनार्थमाह-कहिणं भंते ! इत्यादि क्व भदन्त! लवणस्य समुद्रस्यापराजितं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं? भगवानाह-गौतम ! लवणसमुद्रस्योत्तरपयन्ते धातकीखण्डद्वीपोत्तरार्द्धस्य दक्षिणतोत्र लवणस्य समुद्रस्यापराजितं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं । एतद्वक्तव्यताऽपि विजयद्वारवन्निरवशेषा वक्तव्या, नवरं राजधानी अपराजितद्वारस्योत्तरतोऽव सातव्या। ७. आवाधाए (ख, ग, ट, ता)। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जोयणसते कोसं च दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्त"। ७१५. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा ? हंता पुट्ठा ॥ ७१६. ते णं भंते ! किं लवणे समुद्दे ? धायइसंडे दीवे ? गोयमा! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे ॥ __७१७. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा लवणं समुहं पट्टा ? हंता पुदा ॥ ७१८. ते णं भंते ! किं धायइसंडे दीवे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे ॥ ७१६. लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता'- उद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायं ति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति ।। ७२०. धायइसंडे णं भंते ! जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायति । ७२१. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-लवणे समुद्दे ? लवणे समुद्दे ? गोयमा ! 'लवणसणं समस्स" उदगे आविले रहले' लोणे लिंदे' खारए कडए अपज्जे बहणं चउप्प-मिय-पसु-पक्खि-सिरीसवाणं, नण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं, सुट्टिए" एत्थ" लवणाहिवई देवे महिड्ढीए महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महाणभावे पलिओवमट्टिईए । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव लवणसमुहस्स सुट्ठियाए रायहाणीए अण्णे सिं जाव" विहरइ । से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे, लवणे णं समुद्दे । अदुत्तरं च णं गोयमा ! लवणे समुद्दे सासए जाव णिच्चे। ७२२. लवणे णं भंते ! समुद्दे कति चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा ? एवं पंचण्हवि" पुच्छा ! गोयमा ! लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चत्तारि सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, बारसुत्तरं नक्खत्तसयं जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, तिण्णि बावणा महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, दुष्णि सयसहस्सा सत्तट्टि च सहस्सा नव य सया तारागणकोडकोडीणं" सोभं सोभिसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।। १. तिण्णव सतसहस्सा, पंचाणउति भवे सहस्साइं। ५. आइले (ता)। दो जोयणसत असिता, कोसं दारंतरे लवणे ॥१॥ ६. रइले काले (ग, त्रि)। जाव अबाधाए अंतरे पणत्ते (क, ख, ग, ट, ७. लंदरे (ग); लोहे (ता)। त्रि,)। ८. अप्पेज्जे (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. सं० पा०-लवणस्स णं पएसा धायइसंडं दीवं ६. दुपयचउप्पय (क, ख, ग, ट, त्रि);x (ता)। पढ़ा तहेव जहा जंबूदीवे धायइसंडेवि सोच्चेव १०. सुत्थिए (क, ख); सोत्थिए (ग, त्रि)। गमो। ११. जत्थ (ता)। ३. सं० पा०-उद्दाइत्ता सो चेव विही, एवं धाय- १२. जी. ३ । ३५० । इसंडेवि । १३. जी० ३ 1 ७०३। ४. लवणे णं समुद्दे (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. कोडिकोडीणं (ख, ग, ट, त्रि) Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या बउबिहपरिवत्ती ७२३. कम्हा णं भंते ! लवणे समुद्दे चाउद्दसटुमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु' अतिरेग-अतिरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चउद्दिसि वाहिरिल्लाओ वेइयंताओ लवणसमुदं" पंचाणउति-पंचाणउति जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि 'महइमहालया महालिंजरसंठाणसंठिया" महापायाला पण्णत्ता, तं जहा --वलयामुहे केयुए" जयए' ईसरे । ते णं महापाताला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, 'मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसतसहस्सं विक्खंभेणं, उवरिं मुहमूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं" ।। ७२४. तेसि णं महापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणसतवाहल्ला सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तत्थ णं वहवे जीवा पोग्गला य अवक्कमंति" विउक्कमंति चयंति उववज्जति" सासया णं ते कुड्डा दबट्टयाए, वण्णपज्जवेहिं गंधपज्जवेहि रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहि असासया । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढीया जाव पलिओवम द्वितीया परिवसंति, तं जहा--काले महाकाले लंबे पभंजणे ॥ ७२५. तेसि णं महापायालाणं 'पत्तेयं-पत्तेयं" तओ तिभागा पण्णत्ता, तं जहाहेटिल्ले तिभागे मज्झिल्ले" तिभागे उवरिल्ले तिभागे । ते णं तिभागा तेत्तीसं जोयणसहस्साई तिणि य 'तेत्तीसे जोयणसते"५ जोयणतिभागं च बाहल्लेणं पण्णत्ता । तत्थ णं जेसे हेछिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए संचिति । तत्थ गं जेसे मज्झिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए य आउकाए य संचिट्ठति । तत्थ णं जेसे उवरिल्ले तिभागे, एत्थ णं आउकाए संचिट्ठति ।। ७२६. अदुत्तरं च णं गोयमा ! लवणसमुद्दे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं बहवे खुड्डालि १. पुण्णिमासिणीसु (क, ख, ग, त्रि) 1 २. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स चउद्दिसिं लवणं समुदं (ता, मवृ)। ३. महालिंजरसंअणसंठिया महइमहालया (क, ख, ग, ट, त्रि); महारंजरसंठाणसंठिया (मय ४. केतूए (क, ख, ग, ट); केयूएः (त्रि); केयूप (म)। ५. जूवे (क, ख, ग, ८, त्रि); यूपः (मवृ)। ६. उप्पि (ता)। ७. ४ (क, ख)। ८. बाहल्ला पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. सव्व रयणामया (म)। १०. जी. ३१२६१1 ११. वक्कमति (ख, ट, ता)। १२. उवचयंति (ग, त्रि); उपचीयन्ते (म); भगवत्यामपि (२३११३) 'उववज्जति' इति पदं दृश्यते । अभयदेवमूरिणा तवृत्तावपि 'वक्कमति' इत्यादिपदचतुष्टयस्य सम्यग व्याख्या कृतास्ति—'वक्कमंति' उत्पद्यन्ते 'विउक्कमंति' विनश्यन्ति, एतदेव व्यत्ययेनाह --च्यवन्ते चेति उत्पद्यन्ते चेति (वृत्ति पत्र १४२)1 मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वृत्ती उक्तपदचतुष्टयस्य या व्याख्या कृता सा सम्यग न प्रतिभाति-'अपक्रान्ति' गच्छन्ति 'व्यूतकामन्ति' उत्पद्यन्ते जीवा इति सामाद गम्यम्, जीवानामेवोत्पत्तिधर्मकतया प्रसिद्धत्वात 'चीयन्ते' चयमुपगच्छन्ति 'उपचीयन्ते' उपचयमायान्ति । 'व्युत्क्रामन्ति' इति पदस्य उत्पद्यन्ते इत्यर्थो न सङ्गच्छते। १३. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. मज्झिमिल्ले (ट); मज्झिले (ता)। १५. सते तेत्तीसे (ता)। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ जीवाजीवाभिगमे जरसंठाणसंठिया खुड्डापायाला' पण्णत्ता। ते णं खुड्डापाताला एगमेगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खं भेणं, मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसहस्सं विक्खं भेणं, उप्पि मुहमूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं ।। ७२७. तेसि णं खुड्डापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणवाहल्ला' सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ णं वहवे जीवा पोरगला य' 'अवक्कमति विउक्कमति चयंति उववज्जति । सासया णं ते कुड्डा दवट्ठयाए, वण्णपज्जवेहि गंधपज्जवेहिं रसपउजवेहि फासपज्जवेहि असासया, पत्तेयं-पत्तेय अद्धपलिओवमद्वितीयाहिं देवताहि परिग्गहिया ।। ७२८. तेसि णं खडापातालाणं 'पत्तेयं-पत्तेयं तओ तिभागा पण्णत्ता, तं जहा--- हेदिल्ले तिभागे मज्झिल्ले तिभागे उवरिल्ले तिभागे। ते णं तिभागा तिणि तेत्तीसे जोयणसते-जोयणसते जोयणतिभागं च बाहल्लेणं पण्णत्ता। तत्थ णं जेसे हेडिल्ले तिभागे, एत्थ णं वाउकाए संचिट्ठति, मझिल्ले तिभागे वाउआए आउयाए य संचिट्ठति, उवरिल्ले आउकाए संचिट्ठति । एवामेव सपुव्वावरेणं लवणसमुद्दे सत्त पायालसहस्सा अट्ठ य चुलसीता पातालसता भवंतीति मक्खाया ।। ७२६. तेसि णं 'खुड्डापातालाणं महापातालाण य" हेट्टिममज्झिमिलेसु तिभागेसु वहवे ओराला वाया संसेयंति संमुच्छंति 'एयंति वेयंति" चलंति 'घट्टति खुब्भंति फंदति उदीरेंति' तं तं भावं परिणमंति । जया णं तेसिं खुड्डापातालाणं महापातालाण य हेछिल्लमज्झिल्लेसु तिभागेसु वहवे ओराला वाया जाव तं तं भावं परिणमंति, तया णं से उदए उण्णामिज्जई। जया णं तेसिं खुड्डापायालाणं महापायालाण य हेढिल्ल मज्झिल्लेसु तिभागेसु नो वहवे ओराला जाव तं तं भावं न परिणमंति, तया णं से उदए नो उण्णामिज्जइ। अंतरावि य णं ते वाया उदीरेंति, अंतरावि य णं से उदगे उग्णामिज्जइ। अंतरावि य णं ते वाया नो उदीरेंति, अंतरावि य णं से उदगे णो उण्णामिज्जइ । एवं खलु गोयमा ! लवणे समुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु अइरेग-अइरेगं वड्ढति वा हायति वा ।। ७३०, लवणे णं भंते ! समुद्दे तीसाए मुहत्ताणं कतिखुतो अतिरेगं-अतिरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेग-अतिरेगं वड्ढति वा हायति वा ॥ ७३१. से केपट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहत्ताणं दुक्खत्तो अइरेग-अइरेग वड्ढइ वा हायइ वा ? गोयमा ! उद्धमंतेसु पायालेसु वड्ढइ आपूरतेसु पायालेसु हायइ । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेग-अइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा ।। १. पायालकलसा (क, ख, ग, त्रि, मव)। ट, त्रि)। २. दसजोयणाई बाहरूलेण पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, ६. कालिका (ता)। त्रि); दश दश योजनानि बाहल्यतः (मव)। ७. x (मव)। ३. सं० पा०-पोग्गला य जाव असासयावि। ८. कंपति खुब्भंति घट्टति फंदति (क, ख, ग, ट, ४. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। त्रि) ५. महापातालाणं खुड्डगपातालाण य (क, ख, ग, ६. उण्णाहिज्जति (क, ख, ग, ता) सर्वत्र । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ७३२. लवणसिहा गं भंते ! केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं' केवतियं अइरेग-अइरेगं वड्ढति वा हायति वा ? गोयमा ! लवण सिहाणं 'सव्वत्थ समा" दस जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, देसूर्ण अद्धजोयणं अतिरेग-अतिरेग वड्ढति वा हायति वा ।। ७३३. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स 'कति भागसाहस्सोओ" अभितरियं वेलं धरंति ? कति नागसाहस्सीओ वाहिरियं वेलं धरंति ? कति नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धरंति ? गोयमा ! लवणसमुदस्स बायालीसं' णागसाहम्सीओ अभितरियं वेलं धरंति, बावरि णागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धरंति, सढि णागसाहस्सीओ अग्गोदयं धरंति । एवमेव" सपुवावरेणं एगाणागसतसाहस्सी चोवतरि' च णागसहस्सा भवंतीति मक्खाया ।। ७३४. कति णं भंते ! वेलंधरणागरायाणो पण्णता? गोयमा ! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पण्णता, तं जहा- गोभे" सिवए संखे मणोसिलए"। ७३५. एतेसि णं भंते ! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वता पण्णता? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-गोथूभे दोभासे संखे दगसीमे ॥ ७३६. कहि णं भंते ! गोथूभरस वेलंधरणागरायस्स" गोथूभे णामं आवासपब्बते पण्णते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं लवणसमुई वायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स" गोथूभे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते । सत्तरसएक्कवीसाई जोयणसताई उड्ढे उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसते कोसं च उध्वेधेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते आयाम-विक्खंभेणं", मज्झे सत्त तेवीसे जोयणसते आयाम-विवखंभेणं उवरि चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयाम-विवखंभेणं, मले तिग्णि जोयणसहस्साई दोणि य बत्तीसुत्तरे" जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साई दोणि य छलसीते" जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, उरि एगं जोयणसहस्सं तिणि य ईयाले जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिपणे मज्झे संखित्ते उपि तणए गोपच्छसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ" ॥ ७३७. गोथूभस्स" णं आवासपव्वतस्स उरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते १. विक्खंभेणं (ता) सर्वत्र । ११. गोथुम्भे (ता)। २. लवणसिहाए (क, ग)। १२. मणोसिलाए (ठाणं ४१३३०)। ३. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)! १३. उदयभासे (क, ख, ट); दगभासे (ग, त्रि)। ४. केवतिया नागसहस्सा (ता) सर्वत्र । १४. भूगिदस्स भुयगरण्णो (ता) मर्वत्र । ५. धरेति (ता) सर्वत्र । १५. भुयगिदस्स भयमरण्णो (ता, मवृ) ! ६. बादालीसं (ता)। १६. विक्खंभेणं (ता, म)। ७. एवामेव (ता)। १७. बत्तीसे (ता)। ८. लवणस मुद्दे एगा (ता)। १८. चुलसीते (ट)। ६. बावत्तरि (क, ख, ग, ट) अशुद्धमस्ति । १९. जी० ३३२६३-२६७ ! १०. वेलंधरा णागराया (क, ख, ग, ट, त्रि); २०. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रतो भिन्नपाठो वेणधर (ता)। लभ्यते-भूमिभागो ससद्दो जावासयंति । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जाव' आसयति । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झ देसभाए, एत्थ णं एगे महं पासायवडेंस बावट्ठ जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेणं तं चैव पमाणं अद्ध आयामविक्खभेणं वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं ॥ ७३८. से केणट्ठेणं भंते ! एवं बुच्चइ -- गोथूभे आवासपव्वए ? गोथूभे आवासपव्वए ? गोयमा ! गोथूभे णं आवासपव्वते 'खुड्डा खुड्डियासु जाव विलपतियासु बहूई उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं गोथूभप्पभाई गोथूभागाराई गोथूभवण्णाई गोथूभवण्णाभाई", गोथूभे य एत्थ * देवें' महिड्ढीए जाव पलिओवमट्टितीए परिवसति । से णं तत्थ चउन्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वतस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति - गोथूभे आवासपव्वते, गोथूभे आवासपव्वते 'जाव णिच्चे " ॥ ७३६. रायहा णिपुच्छा । गोयमा ! गोथूभस्स आवासपव्वतस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवइत्ता अण्णंमि लवणसमुद्दे 'बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता जहा ' विजया ॥ ४०० ७४०. कहि णं भंते! सिवगस्स वेलंधरणाग रायस्स" दओभासणामे आवासपव्वते पणते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं" लवणसमुद्दं वायालीसं जोयणसहस्साई ओगा हित्ता, एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासे णामं आवासपव्वते पण्णसे । 'जहा गोथूभो जाव सीहासणं सपरिवार"" । ७४१. से केणट्ठेणं भंते ! एव बुच्चइ - - दओभासे आवासपव्वते ? दओभासे आवासपव्वते " ? गोयमा ! दओभासे णं आवासपव्वते लवणसमुद्दे अजोय णिए खेत्ते 'दगं सव्वतो समंता"" ओभासेति उज्जोवेति तावेति" पभासेति । 'सिवए एत्थ देवे महिड्ढीए उवर बहुसमरमणिज्जो बहुमज्झदेसभाए पासायवडेंसओ विजय मूलपासायसरिसो जाव सोहासगं सपरिवारं । १. जी० ३।२७७-२९७ २. जी० ३।३०७-३१३, ३३६-३४६ । ३. तत्थ २ देसे तर्हि २ बहुओ खड्डाखुड्डियाओ जाव गोथूभवण्णाई बहूई उप्पलाई तहेव जाव (क, ख, ग, ट, त्रि); बहुवीओ खुड्डाखुड्डीओ जाव बिल तासु णं खड्डा जाव बिल बहुगाई उप्पलाई जाव पत्ताई गोथूभप्पभाई ३ ( ता) | ४. तत्थ (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 ५. भूयंति भुयगराया (ता, मवृ) | ६. रायहाणीए अण्णेसि च व गोथुभरायहाणि वत्थवाणा वाणमन्त ( ता ) | ७. जी० ३।३५० । ८. ( ता ) 1 ६. जी० ३।३५१-५६५ । १०. तं चैव पमाणं तहेव सव्वं (क, ख, ग, ट, fa) I ११. भु २ ( तर ) । १२. दाहिणेणं ( ता ) । १३. जी० ३।७३६,७३७ । १४. तं चैव पमाणं जं गोथुभस्स गवरि सव्वअंकामए अच्छे जाव पडिवे जाव (क, ख, ग, ट, त्रि ) । १५. अट्ठो भाणियच्वो (क, ख, ग, ट, त्रि); अट्ठो पुच्छा (ता) । १६ सव्वतो समंता दर्ग (ता) । १७. तवति (क, ख, ग, त्रि) 1 Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या घउम्विहाडिवत्ती ४०१ जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दओभासस्स सेसं तं चेव" ।। ७४२. कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं वायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्वते 'पण्णत्ते । गोथूभगमो जाब' सीहासणं सपरिवारं" ।। ७४३. 'से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ-संखे आवासपन्वते ? संखे आवासपव्वते ? गोयमा ! संखे आवासपव्वते" 'खुड्डा-खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई संखप्पभाई संखागाराई" संखवण्णाइं संखवण्णाभाई संखे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव* विहरति । से तेणठेणं ॥ ७४४. 'रायहाणी संखपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं विजयारायहाणी गमो"। ७४५. कहि णं भंते ! मणोसिलकस्स" वेलंधरणागरायस्स दगसीमे" णाम आवासपव्वते पण्णते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स दगसीमे णामं आवासपव्वते पण्णत्ते । 'गोथूभगमेणं जाव" सीहासणं सपरिवारं॥ _७४६. से" केणठे भंते ! एवं वुच्चइ–दगसीमे आवासपव्वते ? दगसीमे आवासपव्वते ? गोयमा ! दगसीमे गं आवासपव्वते सीतासीतोदाणं महाणदीणं सोता तत्थ गता ततो पडिहता पडिणियत्तंति, मणोसिलए य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव" विहरति, से तेणठेणं ॥ १. जी. ३७३८, ७३६ । संखस्स आवासपव्वयस्स संखा नाम रायहाणी २. सिवए यत्थ भुर्याग दे जाव पलिओवमट्टिईए तं चेव पमाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। परिवसति से णं तत्थ चउण्हं सा दओभासस्स १०. मणोसिलतस्स (ता)। य आवास पं सिवियाए रा अण्णेसिं च ब ११. उदगसीमए (क, ख, ग, त्रि)। रायहाणि सिविया दओभासस्स दाहिणणं १२. जी० ३२७३६,७३७ । अण्णमि लवणे तहेवा (ता, मव) । १३.तं चेव पमाणं णवरि सव्व फलिहामए अच्छे ३. जी० ३१७३६, ७३७ ।। जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. तं चेव पमाणं नवरं सवरयणामए अच्छे से १४. अस्य सुत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद णं एगाए पउमवरवदियाए एगेण य वणसंडेणं शेषु एवं पाठभेदोस्ति–अट्ठो गोयमा ! दगजाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। सीमंते णं आवासपन्वते सीतासीतोदगाणं ५. अट्ठो (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) । महाणदीणं तत्थ गंता सोए पडिहम्मति । से ६. संखाभाइ (म)। तेणठेणं नाव णिच्चे मणोसिलए एत्थ देवे ७. बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बहूई उप्पलाई महिड्ढीए जाव से णं तस्थ चउण्हं सामाणिय __ संखाभाई (क, ख, ग, ट, त्रि)। जाव विहरति । ८. जी० ३३५०। १५. जी० ३१३५०। ६. जी. ३१३५०-५६५ । रायहाणीए पच्चस्थिमेणं Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ७४७. मणोसिला' रायहाणी ? दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतितत्ता अण्णंम लवणे तहेब' । संग्रहणीगाहा ४०२ कणगंकरययफालियमया' य वेलंधराणमावासा । अणुवेलंधरराईण पव्वया होंति रयणमया ॥ १ ॥ ७४८. कइ णं भंते! अणुवेलंधरनागरायाणों पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि अणुवेलंधरणागरायाणो पण्णत्ता, तं जहा- कक्कोडए कद्दमए केलासे अरुणप्पभे || ७४८. एतेसि णं भंते ! चउन्हं अणुवेलंधरणागराईणं' कति आवासपव्वया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वया पण्णत्ता, तं जहा -- कक्कोडए विज्जुप्पभे' केलासे अरुणप्प || ७५०. कहि णं भंते ! कक्कोडगस्स अणुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए णाम आवासपव्वते पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं लवणसमुद्द बायालीसं' जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं' कक्कोडगयस्स नागरायस्स कक्कोडए णाम आवासपव्वते पण्णत्ते--सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसताई तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स, वरि - सव्वरयणामए अच्छे जाव निरवसेसं जाव सीहासणं सपरिवारं । अट्ठो" से बहूई उप्पलाई कक्कोडप्पभाई, सेसं तं चेव, " णवरि - कक्कोडगपव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं एवं तं चैव सव्वं ॥ ७५१. कद्दमस्सवि सो चेव गमओ" अपरिसेसिओ, णवरि - दाहिणपुरत्थिमेणं आवासो विज्जुप्पभा रायहाणी दाहिणपुरत्थि मेणं ॥ ७५२. केलासे वि" एवं " चेव, णवरि- दाहिणपच्चत्थिमेणं केलासावि रायहाणी ताए चेव दिसाए ॥ १. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद षु एवं पाठभेदोस्ति — कहि णं भंते ! मणोसिलगरस बेलंधरणाग रायस्स मणोसिला णाम रायहाणी ? गोयमा ! दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरि अण्णंम लवणे एत्थ णं मणोसिलया णाम रायहाणी पण्णत्ता तं चेव पाणं जाव मणोसिलाए देवे । २. जी० ३।३४६-५६३ । ३. फालिहमया (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. अणुवेलंधर रायाणो (ग, मवृ); अणुवेलंधर नारायाणी (ता) । ५. रायाणं ( ग ) । ६. कद्दमए (क, ख, ग, ट, त्रि); ( ता ) ; स्थानाङ्गे (४८३३१) इति पाठो विद्यते । विज्जुजिब्भे 'विज्जुप्पभे' ७. के तिलासे ( ख ) ; कइलासे (ग, ट, त्रि) । ८. बातालीस (ता) | ६. अतः परं ७५१ सूत्रपर्यन्त 'ता' प्रतौ एतावानेव पाठो लभ्यते – गोथूभगमो रायहाणि कक्कोडगस्स उत्तरपुरत्थि अण्णं लवणस तधेव एवं सव्वे विदिसासु अट्टो अप्पणिज्जगवणाई रायहाणीओ अप्प पुणो विदिसासु । १०. जी० ३।७३६,७३७ । ११. इदं पदं से केणट्ठेणं भंते' इति सूत्रस्य सूचक मस्ति । १२. जी० ३।७३८, ७३६ । १३. जी० ३।७३६-७३९ । १४. कइलासे (क, ख, ग, ट, त्रि) । १५. जी० ३।७३६-७३६ । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउबिहपडिवत्ती ४०३ ७५३. अरुणप्पभेवि' उत्तरपच्चस्थिमेणं रायहाणीवि ताए चेव दिसाए। चत्तारि वि एगप्पमाणा सन्वरयणामया य ।।। ७५४. कहि णं भंते ! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे" बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते-बारसजोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साई नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे' परिक्खेवणं, जंबूदीवंतेणं अद्धेकूणणउति जोयणाई चत्तालीसं च पंचाणउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलताओ लवणसमुई तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वणसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ" दोण्हवि ॥ ७५५. गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो' बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहानामए---आलिंगपुक्खरेइ वा जाव' आसयंति ॥ ७५६. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं सूट्रियस्स लवणाहिवइस्स महं एगे अइक्कीलावासे नाम भोमेज्जविहारे पण्णत्ते-बावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं अणेगखंभसतसन्निविठे, 'भवणवण्णओ भाणियव्वो॥ ७५७. अइक्कीलावासस्स णं भोमेज्जविहारस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव" मणीणं फासो।। ७५८. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पण्णत्ता। सा णं मणिपेढिया जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, अद्धजोयणं वाहल्लेणं. सवमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।। ७५६. तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं देवसयणिज्जे पण्णत्ते, वण्णओ" । उप्पि५ अट्ठमंगलगा॥ ७६०. से केणछेणं भंते ! एवं वुच्चति-'गोयमदीवे ? गोयमदीवे ? गोयमा ! १. जी० ३१७३६-७३६ । पडिरूवे उल्लोगो (ता) | २. जंबद्दीवस्स २ पच्चथिमिल्लातो वेइयंतातो ११. जी० ३।२७७-२८४ । __ लवणसमुई पच्चत्थिमेणं (ता)। १२,१३. दो जोयणाई, जोयणं (क,ख,ग,ट,त्रि); ३. विसेसोणे (क); विसेसाहिए (ख, ग, ट, प्रस्तुत प्रतिपत्ती ४०६ सूत्रेपि मणिपीठिका त्रि)। वर्णने 'जोयणं आयामविक्खंभेणे, अद्धजोयणं ४. अद्धकोण° (ग)। बाहल्लेणं' इति पाठो दृश्यते । ५. पंचणउति (क, ख, ग, ट, त्रि)। १४. जी. ३१४०७। ६. तहेव (क, ख, ग, ट, त्रि)। १५. 'तस्य भौमेयविहारस्य उपरि' इत्यर्थः । ७. जी० ३१२६३-२६७ । १६. गोतमद्वीपो नाम द्वीपः (मव); अतः परं ८. उपरि (मवृ)। 'क, ख, ग, , त्रि' आदर्शषु पाठ भेदो ६. जी. ३।२७७-२६७ । विद्यते-तत्थ २ देसे तहिं २ बहूई उप्पलाई १०. जी० ३६४६-६४७; वण्णओ अच्छे जाव जाव गोयमप्पभाई से एएणठेणं गोयमा जाव Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ जीवाजीवाभिगमे गोयमदीवस्स णं दीवस्स सासते णामधेज्जे पण्णते ण कयावि णासि ण कयावि णत्थि ण कयावि ण भविस्सति, भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्टिए णिच्चे । सुट्टिए य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमद्वितीए परिवसति । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोयमदीवस्स सुवियाए रायहाणीए अण्णेसिं च वहणं वाणमंतराणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं जाव' विहरति । से तेणठेणं गोयमा! एवं बुच्चति--गोयमदीवे, गोयमदीवे॥ - ७६१. कहि' णं भंते ! सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स सुट्ठिया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! गोयमदीवस्स पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे जाव अण्णमि लवणसमुद्दे वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एवं तहेव सव्वं जयव्वं जाव सुत्थिए देवे॥ ७६२. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पणत्ता ? गोयमा ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स" पुरथिमेणं लवणसमुह वारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता–'वारस जोयणसहस्साई आयाम-विक्खं भेणं, सेसं तं चेव जहा गोतमदीवस्स परिक्खेवो"। जंबुद्दीवंतेणं अद्धकोणणउइं जोयणाईचत्तालीसं पंचाणउति भागे जोयणस्स ऊसिया जलताओ, लवण समतेणं दो कोसे ऊसिता जलंताओ। पउमवरवेइया. पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ते. दोण्डवि वण्णओ। 'भमिभागा तस्स बहमज्झदेसभागे पासादवडेंसगा विजयमलपासादसरिसया जाव' सीहासणा सपरिवारा॥ ७६३. 'से केणठेणं भंते ! एवं बच्चइ--चंददीवा ? चंददीवा ?" गोयमा ! 'बहस खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं चंदप्पभाई चंदागाराई णिच्चे। विजयसरिसा। वतिकृता मलयगिरिणापि अस्य पाठान्तरस्य ४. जी० ३१३५१-५६५ । उल्लेख: कृतः-पुस्तकान्तरेषु पुनरेवं पाठ:-- ५. जंबुद्दीवस्स दीवस्स (ता)। 'गोयमदीवे णं दीवे तत्थ तहिं तहिं बहुई उप्प- ६. जी० ३१७५४ ।। लाइं जाव सहस्सपत्ताई गोयमप्पभाई गोयम- ७. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु चिन्हाङ्कितः पाठः वन्नाइंगोयमवण्णाभाई' इति, एवं प्राग्वद भाव- 'जलंताओ' इति पदानन्तरं विद्यते । नीयः । पूर्ववर्तिसूत्रेषु पर्वतानां अन्वर्थनामानि ८. जी० ३।२६३-२६७ । निर्दिष्टानि सन्ति, तेषामनुसरणत एव अन्वर्थ- ६.जी. ३१२७७-२६७,३६४-३६७ । नामवाचकः पाठो लभ्यते वाचनान्तरे, अर्वाची- १०. बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जोइसिया देवा नादर्शषु एष एवं उपलब्धोस्ति । किन्तु ताड- आसयंति । तेसि णं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पत्रीयादर्श मलयगिरिवृत्तौ च अन्वर्थनाम- पासायवडेंसगा बावढि जोयणाई बहुमज्झवाचकः पाठो नास्ति सम्मतः ! मणिपेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा १. अणाढियाए (ता)। सपरिवारा भाणियब्वा तहेव (क, ख, ग, ट, २. जी० ३१३५०। त्रि)। ३. 'ता' प्रती अस्य सुत्रस्य स्थाने पाठसंक्षेपोस्ति- ११ अटो / गोयमदीवस्स पच्चत्थिमेणं अण्णम्मि लवणे Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विहपडिवत्ती ४०५ चंदवण्णाइं चंदवण्णाभाई, चंदा य एत्थ देवा'' महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । ते ण तत्थ पत्तेयं-पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव चंददीवाणं चंदाण य रम्यहाणीणं अण्णेसि च वहणं जोतिसियाणं देवाणं देवीण य आहेबच्चं जाव' विहरंति । से तेणठेणं गोयमा! चंदद्दीवा जाव' णिच्चा ।। ७६४. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंदाओ नाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चंददीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता 'अण्णंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तं चेव पमाणं जाव एमहिड्ढीया चंदा देवा चंदा देवा"। ७६५. कहिणं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सूराण सूरदीवा णामं दीवा पण्णता? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, तं चेव उच्चत्तं आयाम-विक्खंभेणं परिक्खेवो वेदिया वणसंडा भूमिभागा जाव आसयंति, पासायवडेंसगाणं तं चेव पमाणं, मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा, अट्ठो उप्पलाइं सूरप्पभाई सूरा एत्थ देवा जाव रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णमि जंबुट्टीवे दीवे सेसं तं चेव जाव" सूरा देवा ।। ७६६. कहिणं भंते ! अभितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता ? १. चंदद्दीवेसु णं २ तत्थ ३ खुड्डा खुड्डियासु बहुयाई ओगाहित्ता' इति पदानन्तरं विजया राजउप्पलाई चंदप्पभाई ३ चंद एत्थ जोतिसिंदा धानी सदश्यो वक्तव्ये' इति सूचितमस्ति । जोतिसियरायाणो (ता)। ६. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रती च संक्षिप्तपाठो २. जी. ३१३५०। दृश्यते--कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सुराणं ३. जी० ३१३५० । सुरदी २ गो जंबु पच्चत्थि जाव णाणत्तं सुरप्प४. जी० ३५१-५६५ । भाई ३ रायहाणीओ वि पच्चत्थिमेणं । ५. विजयसरिसियाओ (ता); मलयगिरिवृत्ती ७. जी० ३।७६२-७६४ ।। ८.७६६-७७५ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती संक्षिप्तपाठोस्ति ----कहि णं भंते ! अभितरलावणगाणं चंदहीवा दीवा पं गो जंबुद्दीवस्स २ पुर लवणं बारस जो एत्थ अभितरला जेच्चेव जंबुद्दीवाणं चंदाणं गमो सोच्चेव नाणत्तं रायहाणीओ तेसि सताणं दीवाणं पुरत्थि अण्णम्मि लवणे बारस जो विजयरायहाणिसरिसाओ । कहिणं भंते ! अभितरलावणगाणं सुराणं सूरद्दी ते चेव गवरं जंबूडीवस्स पच्चत्थि मेणं रायहाणीओवि पच्चस्थिमेण अण्णं मि लवणे विजयसरिसीओ। कहिणं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंदद्दी गो लवणसमुदस्स पुरथिमिल्लातो वेइयंतागो लवणसमु पच्चरिथमेणं बारसजोयणसहस्स ओगा एत्थ णं बाहिरिलाणं चंदाणं चंदद्दीवा णाम दीवा पं जंबुद्दीवचंद वत्तव्वता वरं धातइसंडं दीवंतेणं अद्धकजण लवणतेणं दो कोसे ऊसिते रायहाणी सताणं पुर लवणे चेव । कहि णं भंते ! बाहिरला सूराणं सूरद्दीवा णामं दीवा पं जव चंदाणं तधेव णवरं पच्चत्थिमेणं । कहि णं भंते ! धातइसंडाणं चंदाणं चंदद्दीवा णाम दीवा पं गो धातइसंडपुर वेइयंतातो कालोयणं समुदं बारस जो ओगा एस्थ णं धातइसंडाणं चंदाण चंद्दद्दीवा णामं दीवा पं जंबुद्दीवगचंदसरिसा णवरं सव्वतो समंता दो कोसे ऊसिता जलंगातो रायहाणीओ सयाणं दी पुरथि अण्णम्मि धातइ । एवं सुराणवि पच्चत्थिमेणं धातइसंदा तो कालोद समुहं बारसजो ओगाहिता सम्बतो समंता दो कोसे Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं अभितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा गामं दीवा पण्णत्ता, जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, णवरि-रायहाणीओ अण्णंमि लवणे, सेसं तं चेव ॥ ७६७. एवं अभितरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साई तहेव सव्वं जाव' रायहाणीओ॥ ७६८. कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णता? गोयमा ! लवणस्स समुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुई पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं वाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता-बारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, धायइसंडदीवंतेणं अद्धकोणणवति जोयणाई चत्तालीसं च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिता जलंताओ, लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिता पउमवरवेइया वणसंडा बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा, सो चेव अट्ठो रायहाणीओ सगाणं' दीवाणं पुरस्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमूहे वीईवइत्ता अण्णं मि लवणसमुद्दे तहेव सव्वं ।। ७६६. कहिं णं भंते ! बाहिरलावणगाणं सूरा णं सूरदीवा णाम दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणसमुद्दपच्च स्थिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुदं पुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं धायतिसंडदीवतेणं अद्धकूणणउति जोयणाइं चत्तालीसं च पंचनउतिभागे जोयणस्स, लवणसमदंतेणं दो कोसे ऊसिया, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चस्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे लवणे चेव बारस जोयणा तहेव सव्वं भाणियन्वं। ७७०. कहिणं भंते ! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! धायइसंडस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयं णं समदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं धायइसंडदीवगाण चंदाण चंददीवा णाम दीवा पण्णत्ता, सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, बारस जोयणसहस्साई तहेव विक्खंभ परिक्खेवो, भूमिभागो पासायवडिसया मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अट्ठो तहेव, ऊसिते जलंतातो तं चेव सव्वं रायहाणीओ सुरदीवाणं पच्चस्थिमेणं अण्णंमि धातइसंडे जाव महिडिढया सूरा। कालोयणं चंदाणं कालोयणं समुद्दस्स पुरथिमिल्लातो वेइयंताओ कालोयणं समझ पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता एत्थ णं कालोयणगाणं तं चेव जहा धात इसंडगाणं रायहाणीओ सयाणं दीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जे अण्णंमि कालोयणे जाव महिडडीया चंदा देवा। सुरावि एवं चेव नवरं कालोयणस्स पच्चथिमिल्लातो वेइयंताओ कालोयणं समुदं पुरथिमेणं बारसजोयणसह ओगा रायहाणीओ सूरद्दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णमि कालोयणे । एवं जहा धायइसंडाणं तहा दीवेसु जहा कालेयणकाण तहा समुद्देसु दीविच्चकाणं दीवेसु रायहाणीओ सामुद्दकाणं समुद्देसु जाव सुरद्दीवा समुदाणं । १. जी० ३७६५ । ३. साणं (क, ख)1 २. एतत् पदं से केणोणं भंते !' इति सूत्रस्य ४. जी० ३७६२-७६४ । सूचकमस्ति । ५. जी० ३७६५ । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ४०७ रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पुरथिमेणं अण्णं मि धाय इसंडे दीवे, सेसं तं' चेव ।। ७७१. एवं सूरदीवावि, नवरंधायइसंडस्स दीवस्स पच्चथिमिल्लातो वेदियंताओ कालोयं णं समुदं वारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ सूराणं दीवाणं पच्चस्थिमेणं अण्णं मि धायइसंडे दीवे सव्वं तहेव ।। ७७२. कहि णं भंते ! कालोयगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! कालोयसमुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयण्णं समुदं पच्चत्थिमेण बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कालोयगचंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरस्थिमेणं अण्णमि कालोयसमहे वारस जोयणसहस्साई तं चेव सव्वं जाव चंदा देवा. चंदा देवा। ७७३. एवं सूराणवि, णवरं--कालोयरस पच्च थिमिल्लातो वेदियंतातो कालोयसमुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णमि कालोयसमुद्दे तहेव सव्वं ।। ७७४. एवं पुक्खरवरगाणं चंदाणं पुक्खरवरस्स दीवस्स पुरिथिमिल्लाओ वेदियंताओ १. जी० ३।७६२-७६४ ॥ ४. कालोयणसमुद्दे (क, ख, ग, ट,); कालोयग२. जी० ३१७६५ । समुद्दे (त्रि) ३. जी. ३१७६२-७६४ । ५. जी० ३७६५ ।। ६. अतः ७७५ सूत्रस्य 'सरिणामएणु' इति पाठपर्यन्तं वृत्तौ स्पष्टं व्याख्यातमस्ति, यथा--एवं पुष्करवरद्वीपगतानां चन्द्राणां पुष्करवरद्वीपस्य पूर्वस्माद्वेदिकान्तात्पुष्क रोदसमुद्रं द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य द्वीपा वक्तव्याः राजधान्य: स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिमदिशि तिर्यमसलय यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुष्करवरद्वीपे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह, पुष्करवरद्वीपगतसूर्याणां द्वीपाः पुष्करवर द्वीपस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तात्पुष्करवरसमुद्रं द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य प्रतिपत्तव्याः, राजघान्यः पुनः स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिम दिशि तिर्यगसङ्घय यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुण्करवरद्वीपे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य, पुष्करवरसमुद्रगतचन्द्रसत्कचन्द्रद्वीपा: पुष्करवरसमुद्रस्य पूर्वस्माद्वेदिकान्तात्पश्चिम दिशि द्वादश योजनसहस्राण्यदगाह्य प्रतिपत्तव्या:, राजधान्यः स्वकीयानां द्वीपानां पूर्वदिशि तिर्यगसङ्खये यान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्यान्यस्मिन् पुष्करवरसमुद्रे द्वादश योजनसहस्रेभ्यः परतः, पुष्करवरसमुद्रगतसूर्यसत्कसूर्यद्वीपा: पुष्करवरसमुद्रस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तावतो द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्म, राजधान्य: पुन: स्वकीयानां द्वीपानां पश्चिम दिशि तिर्यगसङ्ख्येयान द्वीपसमुद्रान् व्यतिद्रज्यान्यस्मिन् पुष्करोदसमुद्रे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य प्रतिपत्तव्याः । एवं शेषद्वीपगतानामपि चन्द्राणां चन्द्रद्वीपगतात्पूर्वस्माद्वेदिकान्तादनन्तरे समुद्रे द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्य वक्तव्याः, सूर्याणां सूर्यद्वीपाः स्वस्वद्वीपगतात्पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तादनन्तरे समुद्रे, राजधान्यश्चन्द्राणामात्मीयचन्द्रद्वीपेभ्यः पूर्वदिशि अन्यस्मिन् सदृशनामके २ द्वीपे सूर्याणामप्यात्मीयसूर्यद्वीपेभ्यः पश्चिमदिशि तस्मिन्नेव सदशनामकेऽन्यस्मिन द्वीपे, द्वादश योजनसहस्रेभ्यः परतः, शेषसमुद्रगतानां तु चन्द्राणां चन्द्रद्वीपाः स्वस्वसमुद्रस्य पूर्वस्मादिकान्तात्पश्चिमदिशि द्वादश योजनसहस्राण्यवगाह्म, सूर्याणां तु स्वस्वसमुद्रस्य पश्चिमान्ताद्वेदिकान्तात्पूर्वदिशि द्वादशः योजनसहस्राण्यवगाह, चन्द्राणां राजधान्यः स्वस्वद्वीपानां पूर्वदिशि अन्यस्मिन् सदृशनामके समुद्रे, सूर्याणां राजधान्यः Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे पुक्खरसमुद्द बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंददीवा, अण्णंमि पुक्खरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' | ७७५. एवं सूराणवि दीवा पुक्ख रवरदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोद समुदं वारस जोयणसहस्साई ओगाहिता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दीविल्ल गाणं दीवे, समुद्दगाणं समुद्दे चेव, एगाणं अब्भिंतरपासे एगाणं बाहिरपासे रायहाणीओ दीविल्लमाणं दीवेसु समुद्दगाणं समुद्देसु सरिणामएसु इमे णामा अणुगंतव्वासंग्रहणीगाहा 805 जंबुद्दीवे' लवणे, धायइ - कालोद - पुक्खरे वरुणे । खीर-धय खोय' - गंदी. अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ १ ॥ आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल - तिलए य पुढवि- णिहि रयणे । वासहर - दह-नईओ, विजया वक्खार - कप्पिदा ||२|| कुरु- मंदर-मावासा, कूडा णक्खत्त चंद सूरा य । एवं भाणियव्वं ॥ ७७६. कहि णं भंते! देवद्दोवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! adhara' पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुदं वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदी गाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, सच्चेव वत्तव्वया जाव' अट्ठो । राहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवदीत्रं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहिता, एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ || ७७७. कहि णं भंते! देवद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता गोयमा ! देवदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुदं वारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं सुराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता, तधेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थमेणं देवदीवं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं ॥ ७७८. कहिं णं भंते! देवसमुद्दगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? स्वस्वद्वीपानां पश्चिमदिशि केवलमग्रेतनशेषद्वीपसमुद्रगतानां चन्द्रसूर्याणां राजधान्योऽन्यस्मिन् सदृशनामके द्वीपे समुद्रे वाऽग्रेतने वा पश्चात्तने वा प्रतिपत्तव्या नात्रेतन एवान्यथाऽनवस्थाप्रसक्तः । गाथाश्च तत्र नैव व्याख्याताः सन्ति, केवलं एतच्च देवद्वीपादर्वाक् सूर्यवराभासं यावद्' इति सङ्केत विहितः । १. जी० ३१७६२-७६४ । २. अनुयोगद्वारे (१८५) गाथाचतुष्कं दृश्यते । ३. इक्खुंवरो य ( ख, ग, त्रि) । ४. कुर (क, ख, ग, ट, त्रि); पुर ( ख ) । ५. अतः ७७७ सूत्रपर्यन्तं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदषु विद्यमानः पाठः पूर्वक्रमानुसारी नास्ति पूर्तिस्थलावलोकनेन एतत् स्पष्टं ज्ञातुं शक्यम्, तेन आदर्शवत पाठोत्रपाठान्तररूपेण स्वीकृत: -- देवोदं समुदं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता तेणेव कमेण पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवद्दीवं समुद्दे असंखेज्जाई जोयणसहस्साई ओगाहिता एत्य णं देवदीवगाणं चंदाणं वंदाओ णामं रायहाणीओ सेसं तं चैव देवदीवचंदा देवा । एवं सुराणवि णवरं पच्चत्थि मिल्लाओ वेदियंताओ पच्चत्थिमेणं च भाणितव्वा तंमि चेव समुद्दे । ६. जी० ३१७७०, ७६२-७६४ ॥ ७. जी० ३।७७६ | ८. ७७८७७९ सूत्रयोः स्थाने 'ता' प्रतौ एवं पाठभेदोस्ति — कहि णं भंते ! देवसमुद्दाणं चंदाणं Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा बउब्धिहपडिवत्ती गोयमा ! देवोदगस्स समुहगस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ देवोदगं समुदं पच्चत्थिमेणं वारस जोयणसहस्साई तेणेव कमेणं जाव रायहागीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवोदगं समुई असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवोदगाणं चंदाणं चंदाओ णाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं चेव सव्वं ।। ७७६. एवं सूराणवि, गवरि - देवोदगस्स पच्चथिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदगसमुई पुरथिमेणं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता रायहाणीओ सगाणं-सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवोदगं समुद्दे असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई ॥ ७८०. एवं नाग-जवख-भूत-सयंभूरमणगाणवि एवं चेव दीविच्चगाणं दीवेसु रायहाणीओ सामुद्दगाणं समुद्देसु । ७८१. अत्थि ण भंते ! लवण समुद्दे वेलंधराति वा णागराया 'अग्धाति वा खन्नाति वा" सिंहाति वा विजातीति' वा हासवुड्ढीति वा ? हंता अत्थि ।। ___१८२. जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे अस्थि वेलंधराति वा णागराया अग्धाति वा खन्नाति वा सिंहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा तहा णं वाहिरएसुवि समुद्देसु अस्थि वेलंधराइ वा णागराया अरघाति वा खन्नाति ना सीहाति वा विजातीति वा हासवडहीति वा? णो तिणठे समठे ।। ७८३. लवणे णं भंते ! समुद्दे कि ऊसितोदगे ? पत्थडोदगे ? खुभियजले ? अखुचंदहीवा नाम दीवा देवसमई पच्चस्थिमेणं सयंभरमणस पच्चस्थिमिल्लातो बेदियंताओ बारस जोयणसह ओगा एत्य गं जावट्ठो- रायहाणीओ सकाणं सकाणं दीवाणं पच्चत्थिरायधाणीओ चंददीवाणं पच्चत्थिमेणं देवरा मुहूं मिल्लाणं सयंभुरणोदं समुदं असंखेज्जा सेसं तं असं । एवं विवज्जासं सूराणं एवं पातिव्वा- चेव । कहि णं भंते ! सयंभूरमणसमुद्दकाणं णाति । चंदाणं , सयंभरमणस्स समुहस्स पुरथिमिल्लाओ १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्गेषु अस्य सूत्रस्य स्थाने वेतियंतातो सयंभरमण समुई पच्चरिथमेणं विस्तृतः पाठोस्ति, स छ स्वयम्भूरमण समुद्रस्य बारस जायणसहस्साई ओगाहित्ता, सेसं तं चैव । पृथक पाठव्यवस्थानात सञ्जातः । मलयांगरि एवं सूराणवि, सयंभुरमणस्स पच्चथिमिल्लाओ णापि अत्र पाठभेदानां उल्लेस: कृत: सयंभुरमणोदं समुद्द पुरथिमेणं बारस जोयणबहधा सूत्रेषु पाठभेदा: परमेतावानेव सर्वत्रा सहस्साई ओगाहित्ता रायहाणोओ सगाणं प्यों नार्थभेदान्तरमित्येतद्वयाख्यानुसारेण सर्वे दीवाणं पुरथिमेणं म्यंभुरमणं समुदं अमंखेज्जाई ऽप्यनुगन्तव्या न मोग्धव्यमिति । आदर्शवति जोयणसहस्साई ओगाहित्ता, एस्थ णं सयंभुरमण पाठभेदः एवमस्ति ....एवं णागे जक्खे भूतेवि जाव सूरादेवा । च उण्हं दीवसमुद्दाणं । कहि णं भंते ! सयंभू- २. आहाइ वा (ता)। रमणदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा ३. विज्जातीति (क, ख, ग, ट, त्रि); विजयाति पण्णत्ता ? सयंभुरमणस्स दीवस्स पुरथिमि- (ता) । ल्लातो वेतियंतातो सयंभुरमणोदगं समुदं बारस ४. हस्स (क. ट, ता); हास" (ग); हस्ववृद्धी जोयणसहस्साई तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं जलस्येति गम्यते (मव) । पुरथिमेणं सयंभुरमणोदगं समुदं पुरथिमेणं ५. क, ट, त्रि' आदर्शषु प्रश्नचतुष्टयेपि 'कि' असंखेज्जाई जोयण तं चेव, एवं सूराणवि, पदस्य प्रयोगो दृश्यते । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ४१० भियजले ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे; खुभियजले, नो अक्खुभिजले || ७८४. जहा णं भंते ! लवणे समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे, खुभियजले, नो अक्खुभिजले तहाणं बाहिरगा समुद्दा किं ऊसितोदगा ? पत्थडोदगा ? खुभियजला ? अभिजला ? गोयमा ! बाहिरगा समुद्दा नो ऊसितोदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला अक्खुभियजला; पुण्णा पुण्णप्पमाणा 'वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा" समभरघडत्ताए चिट्ठति ॥ ७८५. अत्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति ? संमुच्छंति ? वासं वासंति ? हंता अस्थि ॥ ७८६. जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति, संमुच्छंति, वासं वासंति, तहाणं बाहिरएसुवि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति ? संमुच्छति ? वासं वासंति ? जो तिणट्ठे समट्ठे ॥ ७८७. सेकेणट्ठे भंते ! एवं वच्चति वाहिरगा णं समुद्दा पुष्णा पुण्णप्पमाणा बोल माणा वट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति ? गोयमा ! वाहिरएसु णं समुद्देसु and उदगजोणिया जीवा पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववज्जंति', से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - बाहिरगां णं समुद्दा पुष्णा पुण्णप्पमाणा जाव समभरघडत्ताए चिट्ठेति । ७८८. लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं उब्वेह - परिवुड्ढीए' पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओ पासि' पंचाणउति-पदेसे गंता पदेसं उब्वेह परिवुड्ढीए पण्णत्ते, पंचाणउति - बालग्गाई गंता वालग्गं उव्वेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते, पंचाणउति लिक्खाओ गंता लिक्खं उब्वेह - परिवुड्ढीए पण्णत्ते, 'जूया - जव' जवमज्झे अंगुल - विहत्थि - रयणी-कुच्छी-धणुगाउय-जोयण - जोयणसत-जोयणसहस्साइं गंता जोयणसहस्सं उब्वेह परिवुड्ढीए पण्णत्ते ॥ ७८६. लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं उस्सेह - परिवुड्ढीए पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओपास पंचाणउति-पदेसे गंता सोलसपएसे उस्सेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते । 'पंचाणउति-वालग्गाइं गंता सोलस वालग्गाई उस्सेह-परिवुड्ढीए पण्णत्ते । एवं " जाव पंचाणउति- जोयणसहस्साइं गंता सोलस जोयणसहस्साई उस्सेध - परिवुड्ढीए पण्णत्ते ॥ १. वोसट्टमाणा वालट्टामाणा (ता, मवृ) ; भगवत्यां ( १।३१३, ३।१४८, ६।१५६ ) 'बोलट्टमाण वोसट्टमाण' अयमेव पदक्रमो दृश्यते । २. केणं खाइयणं अट्ठे णं (ता) । ३. उवचयंति (ग, त्रि); उपचीयन्ते मायान्ति (मवृ) । द्रष्टव्यं जी० सूत्रस्य पादटिप्पणम् ४. उवेध (ता) सर्वत्र उपचय ३१७२४ ५. परिवड्ढीए (क, ख, ग, ता, त्रि) । ६. पास ( ता ) 1 ७. पंचाणउति २ (ग, ट, ता, त्रि) 1 ८. जवाओ (क, ग, त्रि) जाओ (ता); x (मवृ) । ६. पीतत्थी (ख, ता) । १०. लवणस्स णं समुद्दस्स एएणेव कमेणं (क, ख, गट, त्रि) । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ४११ ७६०. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए गोतित्थे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओपासिं पंचाणउति जोयणसहस्साई गोतित्थे पण्णत्ते ॥ ७६१. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणस्स णं समुदस्स दस जोयणसहस्साइं गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते ।। ७६२. लवणस्स णं भंते ! समुदस्स केमहालए उदगमाले पण्णत्ते ? गोयमा ! दस जोयणसहस्साई उदगमाले पण्णत्ते॥ ७६३. लवणे णं भंते ! समद्दे किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! गोतित्थसंठिते नावासंठिते' सिप्पिसंपुडसंठिते अस्सखंधसंठिते' वल भिसंठिते वट्टे वलयागारसंठिते पण्णत्ते ।। ७६४. लवणे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं ? केवतियं उन्हेणं ? केवतियं उस्सेहेणं ? केवतियं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खं भेणं, पण्णरस जोयणसतसहस्साई एकासीति च सहस्साइं सतं च एगुणयालं' किंचिविसेसूर्ण परिवखेवेणं, एग जोयणसहस्सं उव्येधेणं, सोलस जोयणसहस्साई उस्सेहेणं, सत्तरस जोयणसहस्साई सव्वग्गेणं पण्णत्ते ।। ७६५. जइ णं भंते ! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, पण्णरस जोयणसतसहस्साई एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचि विसेसूणं परिक्खेवेणं, एग जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साई उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साई सव्वग्गेणं पण्णत्ते, कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति ? नो उप्पीले ति ? नो चेव णं एक्कोदगं करेति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहता चक्कवट्टी वलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगति-पयणकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । चुल्ल हिमवंत-सिहरिसु वासहरपव्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। १. णावासंठाणसंठिए (ग, त्रि)। २. आसखंध (क,ख, ग, ट, त्रि)। ३. इऊयालं (क); ऊयालं (ख, ता); इगुयालं (ग)। ४. जम्हा (ता)। ५. x (ता, मव)। ६. x (मवृ)। ७. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्ना वाचना विद्यते । तस्यां गङ्गासिन्ध्वादि नदीनां द्रहाणां मन्दरपर्वतस्य च यथास्थानं पाठभेदा विद्यन्ते । ते च यथास्थानं दर्शयिष्यामः । अत्र यथा-गंगासिंधु रत्तारत्तवईसु सलिलासु देवया महिड्ढीयाओ जाव पलिओवमट्टितीओ परिवसंति, तासि णं लवणसमुद्दे जाव नो चेव णं एगोदगं करेति। ८. जी० ३१३४२ । Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ जीवाजीवाभिगमे 'हेमवत-हेरण्णवतेसु" वासेसु मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुट्टीव दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति'। सद्दावति-विय डावतिसु वट्टवेयड्ढपव्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । महाहिमवंत-रुप्पिसु वासहरपब्वतेसु देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति। हरिवास-रम्मयवासेसु मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदगं करेति । गंधावति-मालवंतपरियाएसु वट्टवेयड्ढपन्वतेसु देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पोलेति, नो चेवणं एगोदगं करेति। णिसढ-नीलवंतेसु वासवरपव्वतेसु देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एगोदग करेति'। पुव्व विदेहावरविदेहेसु वाससु अरहता चक्कवट्टी वलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाहरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीले ति, नो चेव णं एगोदगं करेति'। देवकुरु-उत्तरकुरुसु मणुया पगतिभद्दगा जाव विणीता, तेसि णं पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुहीवं दीवं नो ओवोलेति, नो उणीले ति, नो चेव णं एगोदगं करेति। जंवूए य सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे जंबुद्दीवाहिवती महिड्ढीए जाव पलिओवमद्वितीए परिवस ति, तस्स पणिहाए लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णं एकोदगं करेति। अत्तरं च णं गोयमा ! लोगट्टिती लोगाणुभावे जण्णं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति, नो उप्पीलेति, नो चेव णमेगोदगं करेति ॥ १. हेमवएरणवा(सु (क, ख, ट); हेमवतरण- महिड्ढीयाओ तासि पणिहाए । वतेसु (ग. त्रि); हेमवतएरण ° (ता)। ४. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एवं पाठ२. अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष एवं पाठ- भेदोस्ति-सीयासीओदगासु सलिलासु देवता भेदोस्ति-रोहियारोहितससुवण्णकूलरुप्पकूला- महिड्ढीया। सु सलिलासु देवयाओ महिड्ढीयाओ तासि ५. अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठपणिहाए । दोस्ति----मंदरे पन्वते देवता महिडढीया । ३. अतोने क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठ- ६. तृतीयप्रतिपत्तावेष मन्दरोद्वेशकः समाप्तः भेदोस्ति--सव्वाओ दहदेवयाओ भाणियव्वा (मव)। पउमद्दहतिगिच्छिकेसरिदहावसाणेसु देवा Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्चा चउविहपडिवत्ती ४१३ धायइसंडदीवाधिगारो ७६६. लवणसमुई धायइसंडे णामं दीवे वट्टे वलयागारमंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं' चिट्ठति ॥ ७६७. धायइसंडे णं भंते ! दीवे किं समचकावालसंठिते ? विसमचकवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते ।। ७६८. धायइसंडे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! चत्तारि जोयणसतसहस्साई चक्कवास विक्वंभेण, इगयालीस जोगणसतसहस्साई दसजोयगसहस्साई' व य एगठे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्वेणं पण्णत्ते । से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वणसंडेणं सन्न तो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। ७६६. धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पणत्ता ? गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता. तं जहा-विजए वेजयंते जयंते अपराजिए । ८००, कहि णं भते! धायइसंडस्स दीवस विजए णामं दारे पणत्ते ? गोयमा ! धाय इसंडदीवपुरथिमपेरंते कालोयसमुपरमिद्धरस' पच्चत्थिमेणं सीयाए महाणदीर उप्पि, एत्थ णं धाय इसंडदीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते । तं चेव पमाणं. रायहाणीओ अण्णंमि धायइसंडे दीवे । सा वत्तब्वया भाणियव्वा ॥ १. संपरिखिवित्तागं (ट, ता)। २. एयालीसं (क, ख, ८); एगयालीसं (ग); इंतालीसं (ता)। ३. दस य सहस्साई (ता, मवृ)। ४. अतोग्रे 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष 'दीवसमिया परिक्खेवेण' इति पाठोपि विद्यते । वृत्ती नेष व्याख्यातोस्ति । ताडपत्रीयादर्शपि नास्ति । असौ स्वतः प्राप्ताओं विद्यते। जी० २६३-२६७ । ५. कालोयणसमुद्द(क, ख, ट, ता)। ६. अतः परं ताडपत्रीयादशैं भिन्नः पाठोस्ति'जंबुद्दीवविजयसरिसे णवरं रायहाणी तिरियमसं अण्णम्मि धातइसंडे दीवे', अतश्च ८०७ सूत्रपर्यन्त पाठः त्रुटितोस्ति । मलयगिरिवृत्ती किञ्चित् पाठभेदेन सह चत्वार्यपि सूत्राणि पूर्णरूपेण व्याख्यातानि सन्ति- तच्च जम्बूद्वीपविजयद्वारवदविशेषण वेदितव्य, नवरमत्र राजधानी अन्यस्मिन् धातकीषण्डे द्वीपे वक्तव्या। 'कहि णं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं सुगम, भगवानाह-गौतम ! धातकीपण्डद्वीपदक्षिणपर्यन्ते कालोदसमृद्रदक्षिणार्द्धस्योत्तरतोऽत्र धातकीषण्डस्य द्वीपस्य-वैजयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बूद्वीपवैजयन्तद्वारवदविशेषेण वक्तव्यं, नवरमत्रापि राजधानी अन्यस्मिन् धातकीषण्डद्वीपे । कहिणं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्रं गतार्थ, भगवानाह.. गौतम ! धातकीषण्डद्वीपपश्चिमपर्यन्ते कालोदसमुद्रपश्चिमाद्धस्य पूर्वत: शीतोदाया महानद्या उपर्यत्र धातकीषण्डस्स दीपस्य जयन्तं नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बूद्वीपजयन्तद्वारवद्वक्तव्यं, नवरं राजधानी अन्यस्मिन धातकीपण्डे द्वीपे ।। 'कहि णं भंते !' इत्यादि, प्रश्नसूत्रं सुगम भगवानाह--- गौतम ! धातकीपण्डद्वीपोत्तराद्ध पर्यन्ते कालेदसमुद्रोत्तरार्द्धस्य [मुद्रितवृत्ती-- 'दक्षिणार्द्धस्य' इतिमुद्रितमस्ति दक्षिणतोऽत्र धातकीपण्डस्य द्वीपस्यापजित नाम द्वारं प्रज्ञप्तं, तदपि जम्बुद्वीपगतापराजितद्वारबद्वक्तव्यं, नवरं राजधानी अन्यस्मिन् धातकीपण्डे द्वीपे ।। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ ८०१. एवं चत्तारिवि दारा भाणियव्वा' || ८०२. धायइडस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दस जोयणसय सहस्साइं सत्तावीसं च जोयणसहस्साइं सत्तपणती से जोयणसए तिष्णि य कोसे दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८०३. धायइडस्स णं भंते ! दीवस्स पदेसा कालोयं समुद्दं पुट्टा ? हंता पुट्ठा ॥ ८०४. ते णं भंते! किं धायइसंडे दीवे ? कालोए समुद्दे ? गोयमा ! ते धायइसंडे, नो खलु ते कालोए समुद्दे ॥ ८०५. एवं कालोयस्सवि' || ८०६. धायइसंडे दीवे जीवा उद्दाइत्ता- उद्दाइत्ता कालोए समुद्दे पच्चायंति ? गोयमा ! अत्थेगतिया पञ्चायति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति ॥ ८०७. एवं कालोएवि अत्थेगतिया पच्चायंति अत्थेगतिया णो पच्चायति ॥ ८०८. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चति - धायइसंडे दीवे ? धायइसंडे दीवे ? गोमा ! धायइसंडे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तर्हि तर्हि पएसे बहवे धायइरुक्खा 'धायइवणा धायइसंडा" णिच्चं कुसुमिया जाव' वडेंसगधरा' । श्रायइ-महाधायइरुक्खेसु यत्थ सुदंसणपियदसणा दुवे देवा महिड्डिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति से एएणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - धायइसंडे दीवे । अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव णिच्चे ॥ 1 जीवाजीवाभिगमे ८०. धायइसंडे णं भंते! दीवे कति चंदा पभासिसु वा पभासेति वा पभासिस्संति वा ? कति सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा ? कई महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा ? कइ णक्खत्ता जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा ? कइ तारागण कोडाकोडीओ सोभिसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ? गोयमा ! बारस चंदा भासिसु वा पभासेति वा पभासिस्संति वा एवं चउवीस' ससिरविणो णक्खत्तसता य तिण्णि छत्तीसा । एगं च गहसहस्सं, छप्पन्नं धायईसंडे || १ || 'अट्ठेव सथसहस्सा, तिष्णि सहस्साइं सत्त य सयाई” । धायसंडे दीवे, तारागणकोडकोडी " ॥२॥ सोभि वा सोभति वा सोभिस्संति वा ॥ १. जी० ३।२६२-५६६ । २. जी० ३१५७३, ५७४ । ३. धात संडा धातइवणा (ता); बहवो धातकीarest बहूनि धातकीवनानि (मवु ) । जम्बूद्वीपप्रकरणे (३१७०२ ) वनानन्तरं षण्डस्य प्रतिपादनमस्ति । ४. जी० ३।२७४ । ५. उवसोभेमाणा २ चिट्ठेति (क, ख, ग, ट,त्रि ) । ६. जी० ३।३५० ७. जी० ३१३४८ ८. मलयगिरिवृत्ती एते गाथे किञ्चित् पाठभेदेन उद्धस्त : बारस चंदा सूरा नक्खत्तस्या य तिन्नि छत्तीसा | एगं च गृहसहस्सं छप्पन्नं धायसंडे ||१|| अट्ठेव सयसहस्सा तिन्नि सहस्सा य सत्त य सया उ धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीओ ॥२॥ ६. अट्ठ सतसहस्सा तिष्णि य सहस्सा सत्त य सया (ar) 1 १०. कोडिकोडी (क, ग ) ; ° कोडाकोडीणं ( ट ) । Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्दिहपडिवत्ती ४१५ कालोदसमुद्दाधिगारो ८१०. धायइसंड णं दीवं कालोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ ॥ ८११. कालोदे णं भंते ! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ॥ ८१२. कालोदे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ट जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, एकाणउति जोयणसयसहस्साई सत्तरि च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णते। से णं एमगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं वणसंडेणं सवओ समता संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ'। __ ८१३. कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए वेजयंते जयंते अपराजिए। ८१४. कहि णं भंते ! कालोदस्स समुहस्स विजए णामं दारे पण्णते ? गोयमा ! कालोदसमुद्दपुरथिमपेरते पुक्ख रवरदीवपुरस्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीतोदाए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं कालोदस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते । 'जंबुद्दीवगविजयसरिसा' णवरं-रायहाणीओ पुरथिमेणं तिरियमसंखेज्जाई जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता अण्णंमि कालोदे समुद्दे जहा लवणे तहा चत्तारि रायहाणीओ समुदनामेसु ॥ ८१५. कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं आवाहाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'बावीसं सयसहस्सा वाणउति च सहस्सा छच्च छयाले जोयणसते १. जी० ३।२६३-२६७ । २. कालोदे समुद्दे पुर° (वि)। ३. जी० ३।३००-५६३ । ४. जी० ३७११-७१३ । ५. चिन्हाङ्कितः पाठः ताडपत्रीयादाधारण स्वीकृतः । जी० ३८००,८०१ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तः पाठः । वृत्तौ च तत्र चत्वारि सूत्राणि व्याख्यातानि सन्ति । अत्रापि वृत्तिकृता चत्वार्येव सूत्राणि व्याख्यातानि आदर्शष्वपि चतुर्गा सूत्राणां पाठोस्ति, किन्तु प्राक्तनं क्रममनुसृत्य संक्षिप्तपाठ एव स्वीकृतः । 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेष एवं पाठोस्ति-अठेव जोयणाई तं चेव पमाणं जाव रायहाणीओ। कहि णं भंते ! कालोयस्स समुहस्स वेजयंते णाम दारे पण्णते? गोयमा ! कालोयसमूहस्स दक्षिणपेरते पुक्खरवरदीवस्स दक्खिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं कालोयसमुदस्स वेजयंते नामं दारे पण्णत्ते । कहि णं भंते ! कालोयसमुदस्स जयंते नामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा! कालोयसमुदस्स पच्चत्थिमपेरंते पुक्खरवरदीवस्स पच्चरिथमद्धस्स पुरथिमेणं सीताए महाणदीए उप्पि, एत्थ णं जयंते नामं दारे घण्माते । कहिणं भंते ! अपराजिए नाम दारे पण्णत्त ? गोयमा! कालोयसमुद्दस्स उत्तरद्धपेरंते पुक्खरवरदीवोतरद्धस्स दाहिणओ, एत्थ णं कालोयसमुहस्स अपराजिए णामं दारे पण्णत्ते सेसं तं चेव । ६. केवतियं २ (त्रि)। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ तिणि य कोसा" दारस्स य दारस्स य आवाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ८१६. कालोदस्स णं भंते ! समुहस्स पएसा पुक्खरवरदीवं पुट्ठा ? तहेव' ।। ८१७. एवं पुक्खरवरदीवस्सवि' ।। १८. कालोदे णं भंते ! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ता- उद्दाइत्ता तहेव भाणियव्वं ॥ ८१६ सेकेणट्ठे भंते! एवं बुच्चति कालोए समुद्दे ? कालोए समुद्दे ? गोमा ! कालोयस्स णं समुदस्स उदके आसले' मासले पेसले 'कालए मासरासिवण्णाभे" पगतीए उदगरसे पण्णत्ते । काल-महाकाला य दो' देवा महिढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! जाव' णिच्चे || ८२. कालोए णं भंते ! समुद्दे कति चंदा पभासिसु वा पुच्छा । गोयमा ! कालोए णं समुद्दे वायालीसं चंदा पभासिसु वा 'पभासेति वा पद्मासिस्संति वा, बायालीसं सूरिया विसु वा तवंति वा विस्संति वा, एवं णक्खत्तसहस्सं छावतरं णक्खत्तसतं जोगं जोइंसु वा जयंति वा जोइस्संति वा, तिष्णि महग्गहा सहस्सा छन्च सता छण्णउया चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्सति वा, अट्ठावीस सयसहस्सा वारस य सहस्सा नव य सया पन्नासा तारागण कोड कोडी " सोभ सोभिसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा । पुखरवर दीवाधिगारो ८२१. कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ॥ ८२२. 'पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा "" ! समचक्कवालसंठिते", नो विसमचक्कवालसंठिते || १. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने एका गाथा उपलभ्यते— बावीस सय सहस्सा बाणउति खलु भवे सहस्साई छच्च सया छायाला दारंतर तिष्णि कोसा य ॥ १॥ २. जी० ३।७१५, ७१६ ३. जी० ३।७१७, ७१८ ४. जी० ३।७१६, ७२० ५. आयले (ता) । ६. धोकारालए मसिरासिवण्णाभे (ता) | ७. उदगरसे णं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. दुवे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. जी० ३।३५० । १०. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु गाथात्रयमुपलभ्यते । वृत्तिकृता एता गाथा 'अन्यत्राप्युक्तम्' इत्युलेखपूर्वकं वृत्तौ उद्धृता सन्ति । अनेन सम्भाव्यते एतासां गाथानां अर्वाचीनादशेषु जीवाजीवाभिगमे वृत्ति रचनादुत्तरकाले प्रक्षेपो जातः । ताश्च एवं विद्यन्ते- वायालीसं चंदा, बायालीसं च दिणयरा दित्ता । कालोदधिम्मि एते चरंति संबद्धलेसागा ॥ १ ॥ क्खत्ताण सहस्सं एगं छावत्तरं च सतमण्णं । छच्च सता छण्णउया महागहा तिष्णि य सहस्सा ||२|| अट्ठावीस कालोदहिम्मि बारस य सयसहस्साई । नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥ ३॥ मूलपाठे 'अट्ठावीस सयसहस्सा' 'बारस य सहस्सा' इत्युपलभ्यते, किन्तु प्रस्तुतगाथाया 'बारस य सबसहस्साई' मूलपाठपद्धत्या नास्ति समीचीनं अथवा छन्दोदृष्ट्या एवं संक्षेपीकरणं स्यात् । ११. तहेव जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । १२. संठाणसंठिते ( क, ख, ग, ट, त्रि) अग्रेपि । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४१७ ८२३. पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसतसहस्साई चक्कवाल विक्ख भेणं, एगा जोयणकोडी वाण उति ‘च सयसहस्साई अउणाणउति च सहस्सा अट्ट य सया च उणउया परिक्खेवेणं पण्णत्ते" । से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण य वणसंडेण सव्वओ समता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ'। __ ८२४. पुक्खरवरस्स णं भंते ! दीवस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - विजए वेजयंते जयंते अपराजिते ।। ८२५. कहिणं भंते ! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णते? गोयमा ! पुक्खरवरदीवपुरथिमपेरते पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खरवरदीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, तं चेव सव्वं ।। ८२६. एवं चत्तारिवि दारा॥ ८२७. पुक्खरवरस्स णं भंते ! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! 'अडतालीसं जोयणसयसहस्साई बावीसं च सहस्साइं चत्तारि य अकृणत्तरे जोयणसते दाररस य दारस्स य अवाशा ८२८. पदेसा दोण्हवि पुट्ठा, जीवा दोसुवि भाणियव्वा'। १. खलु अउणोणउति भवे सहस्सातिं अट्ठ सया लभ्यते, किन्तु मलयगिरिवृत्तौ 'जम्बूद्वीप चउणया परिरओ पुक्ख रवरस्स (क, ख, ग); विजयद्वारवदविशेषेण वक्तव्यम्' इति सूचितखलु सयसहस्सा अउणाणउइं भवे सहस्साई मस्ति तेन नैष पाठः सङ्गच्छते। ताडपत्रीयाअट्ट सया च उणउया य परिरए पुक्खरवरस्स दर्शलब्धपाठेनापि नास्य सङ्गतिविद्यते । (2); खलु भवे सहस्साई अट्ठ सया चउणउया 'सीतासीतोदानदी ने उपरि ते द्वार जाणवा य परिरओ पुक्खरवरस्स (त्रि)। पूर्व परे' इति स्तबकेनापि नास्य सङ्गति रस्ति । २. जी० ३।२६५-२६७ । तेनासौ पाठान्तरे स्वीकृतः। ३. 'ता' प्रतौ ८२५,८२६ सूत्रयोः स्थाने संक्षिप्त: ७.चिन्हाकृितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पाठो विद्यते-जहा धातइसंडस्स सोच्चेव आदर्शषु एका गाथा विद्यते-- गमो रायहाणीओ पुक्खरवरेसु। एवं दारेसु अउयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। चउसुवि। अगुणसरा य चउरो दारंतर पुक्खरवरस्स ४. अतः परं मलयगिरिवृत्ती एवं व्याख्यातमस्ति सहस्साई ॥१॥ - तत्र जम्बूद्वीपविजयद्वारवदविशेषेण वक्तव्यं, ८. अस्य सुत्रस्य स्थाने ता' प्रती एवं पाठमवरं राजधानी अन्यस्मिन् पुष्करवरद्वीपे भेदोस्ति-पदेसा पुटा आलाकमा । जीवा वक्तव्या। एवं वैजयन्तादिसुत्राण्यपि भावनी- उद्दाइता दो आलावगा। मलयगिरिवृत्ती यानि, सर्वत्र राजधानी अन्यस्मिन् पुष्करवर- सूत्राणां सङ्केतः कृतोस्ति-पुक्खरवरदीवस्स द्वीपे। णं भंते ! दीवस्स पएसा पुक्खरवरसमुई ५. जी० ३१३००-५६६ । पुट्ठा इत्यादि सूत्रचतुष्टयं प्राग्वत् । ६. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु 'सीया- १. जी. ३१५७१-५७६ । सीओदा णत्थि भाणितव्वा' इति पाठो Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ जीवाजीवाभिगमे ८२६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-पुक्खरवरदीवे-पुक्खरवरदीवे? गोयमा ! पुक्खरवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं पदेसे बहवे पउमरुक्खा पउमवणा पउमसंडा पिच्चं कुसुमिया जाव' वडेंसगधरा पउम-महाप उमरुबखेसु एत्थ णं पउम-पुंडरीया णामं दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेण गोयमा ! एवं वुच्चति-- पुक्ख रवरदीवे जाव निच्चे ॥ ८३०. पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवइया चंदा पभासिसु वा एवं पुच्छा। 'गोयमा ! पुक्खरवरेणं दीवे चोयाल चंदसयं पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोयालं चेव सूरियाण सतं तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, चत्तारि वत्तीसा नक्खत्तसहस्सा जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा बारस महग्गहसहस्सा छच्च सता बावत्तरा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा छण्णउति सयसहस्सा चत्तालीसं सहस्सा चत्तारि सया तारागणकोडकोडीण सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।। ८३१. पुक्खरवरदीवस्स णं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं माणुसुत्तरे नाम पव्वते पण्णत्ते -बट्टे वलयागारसंठाणसंठिते, जे णं पुक्ख रवरं दीवं दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठति, तं जहा---अभितरपुक्खरद्धं च वाहिरपुक्खरद्धं च ।। ८३२. अभितरपुक्खरद्धे णं भंते ! केवतियं चक्कवाल विक्खंभेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ट जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, 'एक्का जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोणि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते"। ८३३. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-अभितरपुक्खरद्धे ? अभितरपुक्खरद्धे? गोयमा ! अभितरपुक्खरद्धेणं माणुसुत्तरेण पव्वतेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। से एएणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-अभितरपुक्खरद्धे । अदुत्तरं च णं जाव णिच्चे ॥ १. जी० ३।२७४ । कोडीणं ॥३॥ २. चिट्ठति (क, ख, ग, ट, त्रि) । मलयगिरिणा 'उक्तं चंवरूपं परिमाणमन्य३. एएणद्वेणं (ग, त्रि, मवृ)। त्रापि' इत्युल्लेखपूर्वक स्ववृत्तौ तदेव गाथात्रय४. जी० ३१३५० । मुद्धृतम्, तत्र तृतीयगाथायाः तृतीयचरणं ५. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' समीचीनमस्ति, यथा-चत्तारिं च सयाई। __ आदर्गेषु गाथात्रयं विद्यते आदर्शेषु अस्मिन् चरणे अक्षराधिक्यं वर्तते । चोयालं चंदसयं चउयालं चेव सूरियाण सयं । ६. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पुक्खरवरदीवंमि चरंति एते पभासेंता ।।१।। आदर्शष एका गाथा विद्यतेचतारि सहस्साई बत्तीसं चेव होति णक्खत्ता। कोडी बायालीसा तीसं दोष्णि य सया अगुणवण्णा। छच्च सया बावत्तर महग्गया बारस सहस्सा ॥२॥ पुक्खरअद्धपरिरओ एवं से मणुस्सखेत्तस्स ॥११॥ छण्णउइ सयसहस्सा चत्तालीसं भवे सहस्साई। ७. जी. ३,३५० । चत्तारि सया पुक्लरवरे उ तारागणकोड Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४१६ ८३४. अभितरपुक्खरद्धे णं भंते ! केवतिया चंदा पभासिसु वा पुच्छा । गोयमा ! 'अभितरपुक्खरद्धे णं दीवे वावत्तरि चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, वावरिं सूरिया तविसु वा तवंति वा तविस्संति वा, दो सोलणक्खत्तसहस्सा जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा, छम्महरगहसहस्सा ति ण्णि य सया छत्तीसा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, अडतालीसं सयसहस्सा वावीसं च सहस्सा दोणि य सया तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा" ।। मणुस्सखेत्ताधिगारो ८३५. मणस्सखेते' णं भंते ! केवतियं आयाम-विक्खं भेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयाम-विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी' 'वायालीस च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोण्णि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिवखेवेणं पण्णत्ते ।। ८३६. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-मणुस्सखेत्ते ? मणुस्सखेत्ते ? गोयमा ! मणुस्सखेत्ते णं तिविधा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा । से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-- मणुस्सखेत्ते, मणुस्सखेत्ते। अदुत्तरं च णं गोयमा ! मणुस्सखेत्तस्स सासए णामधेज्जे जाव' णिच्चे ॥ ८३७. मणुस्सखेत्ते णं भंते ! कति चंदा पभासिसु वा पुच्छा"। 'मणुस्सखेत्ते बत्तीसं चंदसयं पभासिसु वा पभासें ति वा पभासिस्संति वा, बत्तीसं सूरिया सयं तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, तिण्णि णक्खत्तसहस्सा छच्च सता छण्णउया जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा, एक्कारस सहस्सा छच्च सया सोला महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, अट्ठासीतं सयसहस्सा चत्तालीसं च सहस्सा सत्त य सता तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ॥ १. सा चेव पुच्छा जाव तारागणकोडकोडीओ ५. सं० पाo-~जोयणकोडी जाव अभितर(क, ख, ग, ट, त्रि) । पक्खरद्धपरिरओ से भाणियब्वो जाव अउण२. चिह्नाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' पण्णे (क, ख, ग, ट, त्रि); जोयणकोडी ___ आदर्शषु गाथात्रयं विद्यते-- जाव अभंतरपुक्खरद्धस्स (ता)। बावरि च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरा दित्ता। ६. जी० ३१३५० पुक्खरवरदीवड्ढे चरति एते पभासेंता ॥१॥ ७. कइ सूरा तवइंसु वा ३ (क, ख, ग, ट, त्रि)। तिन्नि सया छत्तीसा छच्च सहस्सा महरगहाणं तु। ८. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि णक्वत्ताणं तु भवे सोलाइ दुवे सहस्साई ॥२॥ आदर्शषु गाथात्रयं विद्यतेअडयालसयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। बत्तीसं चंदसयं बत्तीसं चेव सरियाण सयं । दो य सय पक्खरद्धे तारागण कोडिकोडीणं ॥३॥ सयलं मणस्सलोयं चरेंति एते पभासेंता ॥१॥ मलयगिरिणा 'उक्तं चैवंरूपं परिमाणमन्यत्रापि' एक्कारस य सहस्सा छप्पिय सोला महग्गहाणं तु। इत्युल्लेखपूर्वकं तदेव गाथात्रयमुद्धतम् । छच्च सया छण्ण उया णक्खत्ता तिणि य सहस्सा ।। ३. समयखेत्ते (क, ख, ग, ट, त्रि)! अडसीइ सयसहस्सा चत्तालीस सहस्स मणयलोगंमि । ४. चक्रवाल (ता) अपि । सत्त य सता अणूणा तारागणकोडकोडीणं ॥३॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० जोइस मंडलाधिगारो एसो तारापिंडो, सव्वसमासेण मणुयलोगंमि । बहिया पुण ताराओ, जिणेहि भणिया असंखेज्जा ॥१॥ एवइयं तारग्गं, जं भणियं माणुसंमि लोगंमि । चारं कलंबु यापुप्फसंठिय जोइसं चरइ ||२|| रविससिगहनक्खत्ता, एवइया आहिया मणुयलोए । जेसि नामागोतं, न पागया पण वहिति ॥३॥ छावट्ठि पिडगाई, चंदाइच्चाणं मणुयलोगंमि । दो चंदा दो सूरा, होंति एक्केक्क पिडए || ४ || छाट्ठ पिडगाई, नक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छप्पन्नं नक्खत्ता, होंति एक्केक्कए पिडए ||५|| छाट्ठि पिडगाई, महग्गहाणं तु मणुयलोगंमि । छावत्तरं गहसयं, होइ य एक्केक्कए पिडए || ६ || चत्तारिय' पंतीओ, चंदाइच्चाण मणुयलोगंमि । छावट्टी -छावट्टी य होंति य एक्केक्किया पंती ॥७॥ छप्पन्नं पंतीओ, नवखत्ताणं तु मणुयलोगंमि । छावट्टी- छावट्ठी य, होंति य एक्केक्किया पंती ॥८॥ छावत्तरं गहाणं, पंतिसयं होइ मणुयलोगंमि । छावट्टी- छावट्टी य, होंति एक्केक्किया पंती ॥ ६ ॥ ते मेरुमणुचरंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे । अणवद्वितेहि जोगेहि, चंदा सूरा गहगणा य ॥ १० ॥ नक्खत्ततारगाणं, अवट्टिया मंडला मुणेयव्वा । तेवि य पयाहिणावत्तमेव मेरुं अणुचरंति' ॥११॥ गियर दिrयराणं, उड्ढे व अहे व संकमो नत्थि । मंडल संकमणं पुण, 'सम्भंतरवाहिरं तिरिए " ॥ १२ ॥ रयणियर दिणयराणं, नवखत्ताणं महग्गहाणं च । चारविसेसेण भवे, सुहदुक्खविही मणुस्साणं ॥१३॥ तेसि पविसंताणं, तावक्खेत्तं तु वड्ढए नियमा । तेणेव कमेण पुणो, परिहायश निवखमंताणं ॥ १४ ॥ मलयगिरिणा 'उक्त चैवरूपं परिमाणमन्यत्रापि' त्रि); मेरुमणुरिती (ट, ता) 1 इत्युल्लेख पूर्वकं तदेव गाथात्रयमुद्धृतम् । तत्र ३. अणुरिति (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) । तृतीया गाथा किञ्चिद् भिन्नपाठा वर्तते४. य (क, ख, ग, ट, ता, त्रि) अग्रेपि । अट्ठासीयं लक्खा चत्तालीसं च तह सहस्साइं । ५. अब्भिरबाहिर तिरिए (क, ख, ग, ट, त्रि); सत्त सया य अणूणा तारागण कोडकोडीणं ॥ १॥ १. तु (ता) 1 अन्तरवाहिरितिरियं (ता) | २. मेरुमणुपरिता (क, ख ); मेरुपरियडता (ग, ६. मणूसाणं (ता) | ८३८. जीवाजीवाभिगमे Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउस्विहपडिवत्ती ४२१ तेसि कलंबुयापुप्फसंठिया होइ तावखेत्तपहा' । अंतो य संकुया' बाहिं वित्थडा चंदसूराणं ।।१५।। 'केणं वड्ढति" चंदो ? परिहाणी केण होइ चंदस्स ? कालो वा जोण्हो वा, केणणुभावेण चंदस्स ? ॥१६॥ किण्हं राहुविमाणं, निच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमप्पत्तं, हेट्ठा चंदस्स तं चरइ ।।१७।। वावटि-बाढि, दिवसे-दिवसे उ सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्ढइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥१८॥ पन्नरसइभागेण य, चंदं पन्नरसमेव 'तं वरई"। पन्नरसइभागेण य, 'पुणोवि तं चैवतिक्कमइ” ||१६।। एवं बड्ढइ चंदो, परिहाणी एव' होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हा वा, तेणणुभावेण चंदस्स ॥२०॥ अंतो मणस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा य उववण्णा। पंचविहा जोइसिया, 'चंदा सूरा" गहगणा य॥२१॥ तेण परं जे सेसा, चंदाइच्चगहतारनक्खत्ता। नत्थि गई नवि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥२२॥ दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा य ॥२३॥ 'दो दो जंबुद्दीवे, ससिसूरा दुगुणिया, भवे लवणे । लावणिगा" य तिगुणिया, ससिसूरा धायईसंडे ॥२४॥ धायइसंडप्पभिति, उद्दिट्टा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया, अणंत राणतरे खेते ॥२५।। रिक्खग्गहतारग्गं, दीवसमुद्देसु इच्छसी नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं", रिक्खग्गहतारयग्गं तु ॥२६॥ चंदातो सूरस्स य, सूरा चंदस्स अंतरं होइ । पन्नास सहस्साइं. जोयणाणं अणणाई ॥२७॥ सूरस्स य सूरस्स य, ससिणो ससिणो य अंतरं होइ। बहियाओ माणुसनगस्स जोयणाणं सयसहस्सं ॥२८॥ १. तावखेत्तमुहा (ता)। ७. चंदसुरा (क, ता)। २. संकुता (क, ख, ता); संकडा (ग, त्रि); ८. एगे जंबुद्दीवे दुगुणा लवणे चउगुणा होंति लावसंकुटा (ट)। णगा (क,ख,ग,ट,त्रि); एते जंबुद्दीवे दुगुणा ३. केण पचड्ढेति (क, ख) । लवणे चउगुणा होति लावणगा (ता)। एवं ४. आवरति (क, ख, ग, त्रि)! जंबुद्दीवे दुगुणा लवणे चउग्गुणा होति (मवृपा) ५. तेणेव कमेण वक्कमइ (क, ख, ग, ट, त्रि)! ६. जदिच्छसे (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. तेव (ता)। १०. उवणीतं (ता)। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ सूरतरिया चंदा, चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता । चित्तंतरले सागा, सुहलेसा 'मंदलेसा ॥२६॥ अट्ठासीइं च गहा, अट्ठावीसं च होंति नक्खत्ता । एगससी परिवारो, एत्तो ताराण वोच्छामि ||३०|| छावहिस्सा, नव चैव सयाई पंचसयराई । एससी परिवारो, तारागणकोडकोडीणं ॥ ३१ ॥ वहियाओ' माणुस नगस्स, 'चंदसूराणवट्टिया जोगा" । चंदा अभिइजुत्ता, सूरा पुण होंति पुसेहिं ॥ ३२ ॥ माणुसुत्तरपव्वताधिगारो ८३६. माणुसुत्तरे णं भंते ! पव्वते केवतियं उड्ढे उच्चत्ते ? केवतियं उब्वेहेणं ? केवतियं मूले विक्खंभेणं ? केवतियं मज्झे विवखंभेणं ? केवतियं उवरि विक्खभेणं ? safar अंतो गिरिपरिरएणं ? केवतियं वाहि गिरिपरिरएणं ? केवतियं मज्झे गिरिपरिरएणं ? केवतियं उवरि गिरिपरिरएणं ? गोयमा ! माणुसुत्तरे णं पव्वते 'सत्तरस एक्कवीसाई जोयणसयाई" उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोस च उब्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खभेणं, मज्झे सत्ततेवी से जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचउवी से जोयणसते विक्खभेणं, 'एगा जोयणकोडी वायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई दोणिय अउणापणे जोयणसते किंचिविसेसाहिए अंतोगिरिपरि रएणं, एगा जोयणकोडी वायालीसं च सतसहस्साइं छत्तीसं च सहस्साई सत्त चोइसोत्तरे जोयणसते वाह गिरिपरिरएणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साई चोत्तीसं च सहस्सा 'अट्ट य तेवीसुत्तरे” जोयणसते मज्झे गिरिपरिरएणं, एगा जोयणकोडी वायालीसं च सय सहस्साई बत्तीसं च सहस्साइं नव य वत्ती से जोयणसते उवरि गिरिपरिरएणं, मूले विच्छिण्णे" मज्झे संखित् उप्प तए अंतो सण्हे मज्झे उदग्गे बाहि दरिसणिज्जे ईसि" सण्णिसण्णे सीहणिसाई अवड्ढजव"-रासिसंठाणसंठिते सव्वजंबूणयामए अच्छे सण्हे जाव" पडिरूवे । उभओपासि १. मंदलेसागा (क, ख, ग, त्रि) । २. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु सूर्यप्रज्ञप्ती (१६/२२) च एषा गाथा २६ गाथाया अनन्तरं विद्यते । ३. अवट्टिया तेया (मवृपा ) | ४. अभीइजुत्ता (त्रि ) 1 ५. सिहरे (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ६. उप्पि (ता) । ७. सत्तर सेक्कवीसजोयणसते (ता) | ८. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु चिन्हाङ्कितपाठे एवं पाठभेदो दृश्यते--अंती गिरिपरिरएणं एगा जोयणकोडी बयालीस च सयसहस्साई जीवाजीवाभिगमे तीसं च सहस्साई दोणि य अउणापण्णे जोणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं । अग्रे स्थानत्रयेपि बाहि गिरिपरिरएणं. मज्झे गिरिपरिरणं, उवरि गिरिपरिरएण' इति पाठा आदौ विद्यन्ते, स्थानत्रयेपि प्रतिपाद्यस्यान्ते पूर्ववत् 'परिक्लेवेणं' इति पाठोस्ति । ६. अट्ठतेवी से (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. वित्थणे (क, ग, ता ) । ११. इसि ( ट ता ) + १२. अवद्धजव (क, गट ) 1 १३. जी० ३।२६१ । १४. उभओपासं (ता) | Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ४२३ दोहि पउमवरवे दियाहिं दोहि य वणसंडेहि सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, वण्णओ' दोण्हवि ।। ८४०. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-माणु सुत्तरे पव्वते ? माणुसुत्तरे पव्यते ? गोयमा ! माणुसुत्तरस्स णं पव्वतस्स अंतो मणुस्सा" उम्पि सुवण्णा, वाहि देवा। अदुत्तरं च णं गोयमा ! माणुसुत्तरं पव्वतं मणुस्सा ण कयाइ वीतिवइंसु वा वीतिवयंति वा वीतिवइस्संति वा णण्णत्थ चारणण' वा विज्जाहरेण वा देवकम्मुणा वा। से तेण→णं गोयमा ! एवं वुच्चति-माणुसुत्तरे पव्वते, माणुसुत्तरे पव्वते । अदुत्तरं च णं जाव' णिच्चे ।। ८४१, जावं च ण माणुसुत्तरे पव्वते तावं च णं अस्सिं लोए ति पवुच्चति । जावं च णं वासाति वा वासधरपन्वताति वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं गेहाइ वा गेहाव (य? ) णाति वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं गामाति वा जाव' सन्निवेसाति" वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा" चारणा विज्जाहरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मणुया पगतिभद्दगा" पगतिविणीया पगतिउवसंता पगति-पयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विणीता तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । १. जी० ३१२६३-२६८ । १२. अरहताति वा (ता)। २. मणुया (क, ख, ग, ट, त्रि)। १३. वासुदेवा पडिवासुदेवा (ग)। ३. कदायी (ता)। १४. सं० पा०-पगतिभद्दगा जाव विणीता। ४. चारणेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि) अन्यत्र चारणेन १५. अतः परं 'चंदोवरागाति' आलापकात्पूर्व क्रमपञ्चम्यर्थे तृतीया प्राकृतत्वात् 'चारणात्' द्वयं विद्यते, ताडपत्रीयादर्शस्य वृत्तेश्च एक: (मवृ)। क्रमोस्ति, द्वितीयश्च अर्वाचीनादर्शानाम् । ५. विज्जाहरणेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)! अस्माभिर्वृत्त्यनुसारिक्रमो मूले स्वीकृतः, अर्वा६. वावि (क, ख, ग, ट, त्रि)। चीनादर्शानां क्रमभेद: पाठभेदश्च एवं विद्यते७. जी ३१३५०। जावं च णं समयाति वा आवलियाति वा ८. वासधराति (क, ख, ग, ट, त्रि)। आणापाणति वा थोवाइ वा लवाइ वा मुहत्ताइ ६. प्रस्तुतसूत्रस्य ३६०५ सूत्रे हाययणाणि' वा दिवसाति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा इति पाठो लभ्यते । वतावपि एष एव व्याख्या- मासाति वा उदूति वा अयणाति वा संवच्छतोस्ति । अत्रापि वृत्तिकृता स्वीकृतपाठ एव राति वा जुगाति वा वाससताति वा वाससहव्याख्यातः---गृहायतनानीति वा तत्र गृहाणि स्साति वा वाससयसहस्साति वा पुब्बंगाति वा प्रतीतानि गृहायतनानीति-गृहेष्वागमनानि । पुव्बाति वा तुडियंगाति वा, एवं पुटवे तुडिए गेहावणाति (क, ख, ग, ट); गेहावतणाति अडडे अबवे हुहुए उप्पले पउमे गलिणे अत्थ(ता)। भगवत्यां (६७६) 'गेहावणा' इति णिउरे अउते णउते पउते चूलिया सीसपहेलिया पाठः स्वीकृतोस्ति। जाव य सीसपहेलियंगेति वा सीसपहेलियाति १०. ठाणं १३६०। वा पलिओवमेति वा सागरोवमेति वा ओसप्पि११. रायहाणीति (क, ख, ग, ट, त्रि)। णीति वा उस्सप्पिणीति वा तावं च णं अस्सि Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ जीवाजीवाभिगमे जावं च णं वहवे ओराला बलाहका' संसेयंति संमुच्छंति वासं वासंति तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति ! जावं च णं 'वादरे विज्जुकारे वादरे थणियसद्दे तावं च णं अस्सि लोएत्ति पच्चति । जावं च णं वायरे अगणिकाए तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवच्चति । जावं च णं आगराति वा 'नदीओइ वा णिहीति वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति जावं च ण समयाति वा आवलियाति वा आणापाणति वा थोवाइवा लवाइ वा महत्ताइ वा दिवसाति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उदति वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा बाससताति वा वाससहस्साति वा वाससयसहस्साति वा पुवंगाति वा पुवाति वा तुडियंगाति वा, एवं पुवे तुडिए अडडे अववे हूहुए उप्पले पउमे गलिणे अत्थणिउरे अउते 'गउते पउते" चूलिया सीसपहेलिया जाव य सीसपहेलियंगेति वा सीसपहेलिपच्चति ! जावं च णं बादरे विजुकारे बादरे ताङ्ग, चतुरशीतिः प्रयुताङ्गशतसहस्राणि एक धणियस तावं च णं अस्सि जावं च णं बहवे प्रयुतं, चतुरणीतिः प्रयुतशतसहस्राणि एक नयुओराला बलाहका संसेयंति संमच्छंति वासं ताङ्ग, चतुरशीतिन युतशतसहस्राणि कि चूलिवासंति तावं च णं अस्सि लोएत्ति जावं च णं काङ्गम्। किन्तु एतद् वाचनान्तरं प्रतीयते। बापरे तेउकाए तावं च णं अस्सि लोए जावं अनुयोगद्वारसूत्रस्य चूणिकारेण वत्तिकाराभ्यां च णं आग राति वा नदीओइ वा णिहीति वा हरिभद्र-मलधारिहेमचन्द्रसूषिभ्यां च पूर्व तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च 'नयूतं' ततश्च 'प्रयुतं' निर्दिष्टमस्ति-ण उत्तंगे णं अगडाति वा दीति वा तावं च णं अस्सि सुण्णसतं पंचहियं ततो चतु अट्ठ सत्त सुण्णं लोए । सत्त सुणं सत्त सुग्ण दो अटू पण नव पण दो १. वलाहता (ता) ति चउ ति नव सत्त ति नव सत्त ति नव २. वातरे विज्जूतारे वातरे थगितसद्दे (ता); दो ति दो नव नव ति ति सुष्ण दो पण चउ बादरे थणियसद्दे बादरे विज्जुकारे (मवृ) । नव छ नव पण छ पण दो य ठवेज्जा २१. ३. णंदीति वा णिधयोति वा (ता)। णउते सुण्णसतं दसायिं ततो छ पण अट्ठ पण ४. अत्र ताडपत्रीयादर्श गाथा चतुष्टयं लभ्यते- चतु गव ति णव अट्ठ चतु सुन्नं अट्ठ ति ति समयावलि आणापाण, थोवा य खणा लवा मुहुत्ता य। अट्ठ चतु छ अट्ठ सत्त छ अट्ठ सत्त छ छ पण अहोरत्त पक्खमासा, उद् य अयणा य बोद्धव्वा ॥१॥ पण ति पण पण अट्ठ सुष्ण सत्त नव ति ति संवच्छरा जुवा खलु, वाससया खलु भवे सहस्सा य । चतु एक्को छ चतु अट्ठ पण एक्को दोणि य तत्तो य सतसहस्सा, पुव्वंगा चेव बोदवा ॥२॥ ठवेज्जा २२. पउतंगे पण्ण र सुसरं सुण्णसतं ततो पुवे तुडिए अडडे, अबवे हहय उप्पले पउमे। चतु सुण्ण णव एक्को पण चउ एक्को णव सुग्णं लिणे अत्थणिपूरे, अउते पउते य णउते य ।।२।। एक्को एक्को छ णव ति सुष्णं छ चतु छ सुण्ण चूलिय सीसपहेल्लिय, पलितोवम सागरोवमे च्चेव । सुष्ण णव सुण्ण सुण्ण एक्को छ सत्त अट्ठ णव ओसप्पिणि उस्सपिणि, परियदृद्धा य तव्वा ॥४॥ चतु अद्ध एकको पण पण ति पण चतु सुग्ण जाव सव्वद्धाति वा । छ सत्त सुण्ण एक्को ति एक्को अट्ट एग च ५. पउते य णउते य (ता); पउते णउते (त्रि); ठवेज्जा २३ पउते वीसुत्तरं सुण्णसतं ततो छ मलयगिरिणापि प्रयुतानन्तरं नयुतं ध्यास्या- ति णव णव पण णव एक्को ति ति सत्त दो तम--चतुरणीतिर युतशतराहस्राणि एक प्रय- ति सत्त छ दो चतु पण छ पण सत्त चतु दो Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउम्बिहपडिबत्ती ४२५ याति वा पलिओवमेति वा सागरोवमेति वा ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा तावं च णं अस्मि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं चंदोवरागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिएसाति वा सूरपरिएसाति वा पडिचंदाति वा पडिसूराति वा इंदधणूइ वा उदगमच्छेइ वा 'अमोहाइ वा" कपिसिताणि वा तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति । जावं च णं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं अभिगमण-निग्गमण-बुढि-णिवुड्ढि-अणवट्ठियसंठाणसंठिती आघविज्जति तावं च णं अस्सि लोएत्ति पवुच्चति ।। चंदादीणं उववन्नाधिगारो ८४२. अंतो णं भंते ! 'माणुसुत्तरस्स पव्वतस्स" जे चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उड्ढोववण्णगा' ? कप्पोववण्णगा? विमाणोववण्णगा? चारोववष्णगा? चारद्वितीया ? गतिरतिया ? गतिसमावण्गा ? गोयमा ! ते णं देवा गो उड्ढोववण्णगा, णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा, चारोववण्णगा, जो चारद्वितीया, गतिरतिया गतिसमावण्णगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सितेहि तावखेत्तेहि, साहस्सियाहिं 'बाहिरियाहिं वेउव्वियाहि परिसाहिं महयाहयनट्ट-गीत-वादिततंती-तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादितरवेणं 'दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा मया उक्किट्ठसीहणायवोलकलकलरवेणं 'पक्खभितमहासमुद्दरवभूतं पिव करेमाणा" अच्छं पव्वय रायं पदाहिणावत्तमंडलचारं' मेरुं अणुपरियडंति ।। ८४३. 'तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चवति" से कहमिदाणिं पकरेंति ? गोयमा ! ताहे" चत्तारि पंच वा" सामाणिया देवा तं ठाणं" उवसंपज्जित्ताणं विहरंति णव पण णव अट्ठ ति पण पण ति अट्ट गव तद्वत्संस्थिताः कलम्बुयापुष्पसंस्थिताः (वृत्ति सुण्णं अटु सत्त अट्ट ति सुण्णं एक्को सुण्णं ति पत्र ३३९) । दो पण एक्क च ठवेज्जा २४ (चूणि पृष्ठ ५. वेउब्वियाहिं बाहिराहि (जं ७।५५) । ३६, ४०) । हारिभद्रीयवृत्ति (पृष्ठ ५५, ६. X (क, ख, ग, ट, त्रि) । ५६)। मलधारिहेमचन्द्रवृत्ति (पत्र ६१) ७. उक्किट्टसीहणायबोलकलकलसद्देणं (क, ख, ग, एतस्मिन् विषये अनुयोगद्वारसूत्रमधिकृतमस्ति, ट, त्रि): उक्किट्ठिसीहणायबोलकलरवेणं (ता)। तेन तन्मतमेव स्वीकृतम् ॥ ८. विपुलाइ भोगमोगाइं भुंजमाणा (क, ख, ग, १. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि, मव)। ट, त्रि); 'पक्खुभित' एतत्पदं वृत्ती व्याख्यातं २. मणुस्सखेत्तस्स (क, ख, ग, ट, त्रि) । नास्ति । ३. 'ता' प्रतौ उववष्णगा' स्थाने सर्वत्रापि "उव- ६. 'मंडलयार (क, ख, ग, ट, त्रि) । वण्णा' इति पाठो विद्यते । मलयगिरिवत्तावपि १०. जया णं भंते तेसि देवाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। एवमेव । ११. चयति (क, ख, ट, ता, त्रि) । ४. उड्ढमुहकलंबुयपुष्फ (क,ख,ग,ट,त्रि); वृत्तौ १२. जाव (क, ख, ट, मवृ)। नालिकापुष्पसंस्थानसंस्थितैः' इति व्याख्यात- १३. ४ (क, ख, ग, ट, ता, त्रि)। मस्ति, नात्र पाठभेदः आशंकनीयः । ३८३८ १४. देवाः समुदितीभूय (म)। सूत्रस्य पञ्चदश्या माथाया व्याख्यायां अस्य १५. इंदट्टाणं (ता)। स्पष्टता दृश्यते-कलम्बुयापुष्पं-नालिकापुष्प - -- -- Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ जीवाजीवाभिगमे 'जाव एत्थ अण्णे" इंदे उववण्णे भवति ।। ८४४. इंदट्ठाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहिते उववातेणं? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ॥ ८४५. बहिया' णं भंते ! 'माणु सुत्तरस्स पव्वतस्स" जे चंदिमसूरियगहणवखत्ततारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उड्ढोववण्णमा ? कप्पोववागा ? विमाणोक्वण्णगा ? चारोववण्णगा ? चारद्वितीया ? गतिरतिया ? गतिसमावण्णगा? गोयमा ! ते णं देवा णो उड्ढोववण्णगा', णो कप्पोववण्णगा. विमाणोववष्णगा, णो चारोववण्णगा, चारद्वितीया, णो गतिरतिया, णो गतिसमावण्णगा, पक्किट्टगसंठाणसंठितेहि जोयणसतसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहि य वाहिराहि परिसाहि महताहतनट्ट-गीत-वादित - तंती-तलताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्टसीहणायवोलकलकलरवेणं पक्खुभितमहासमुहरवभूतं पिव करेमाणा सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदायवलेस्सा चित्तंतरलेसा 'अण्णमण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडा इव ठाणट्टिता" ते पदेसे सव्वतो समंता ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पभासेंति ।। ८४६. 'तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे'' इंदे चवति से कहमिदाणि पकरेंति ? गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवति ।। ८४७. इंदवाणे णं भंते ! केवतियं कालं विरहओ उववातेणं ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा ।। १. जावत्थण्णे (क, ख, ता)। मेययोर्वैषम्यं संपद्येत अतो धक्रेति विशेषणं, २. बाहिरया (क, ख); बाहिया (ग); बाहि- वक्रता चान्तः संकीर्णा बहिश्च विस्तीर्णेत्येवं रिया (ट, त्रि)। रूपेणावसातव्या न पुनर्यथा कथंचिदपीति, यत्तु ३. मणुस्सखेत्तस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)। सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे 'पक्किट्टसंठाणे' ति पाठः ४. उड़ढोववण्णा तिरियोववण्णा (ता)। श्रीमलयगिरिणा गम्यान्तरमकृत्वैव व्याख्यातसूत्र५. पक्किट्ठग (क, ख, ट, त्रि); 'इष्टा' शब्दे पक्वपदस्य प्रयोजनं सम्यग् न विद्मः। ष्टस्यानुष्ट्रेष्टा, संदष्टे (हेमशब्दानुशासन । ६. वेउब्वियाहिं परिसाहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८।२।३४) सूत्रे वजितत्वात् 'ष्टस्य ठो' न ७. सं० पा०—महताहनट्टगीयवादितरवेणं दिव्वाई जातः । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेहीरविजयवृत्तौ 'वकि- भोगभोगाइं भंजमाणा । आदर्शेष अत्र संक्षिप्तदृग' इति पाठो व्याख्यातोस्ति तथा सूर्यप्रज्ञप्ते- पाठोस्ति, विस्तृतः पाठो वृत्याधारेण स्वीवृत्तौ (पत्र २८२) मलयगिरिणा पक्किट्ट' पदं कृत: । व्याख्यातं तस्य समालोचनापि कृतास्ति--वका ८. सुहलेस्सा सीयलेस्सा (क, ख, ग, ट, त्रि)। विषमा या इष्टका लोकप्रतीता तत्संस्थानेन ६. कूडा इव ठाणहिता अण्णोष्णसमोगाढाहि संस्थितानि अयं भावः इष्टका हि चतुरस्रापि लेसाहिं (क, ख, ग, ट, त्रि) । विष्कम्भापेक्षया दैर्घ्यण प्रायः पादाधिका भवति। १०. जया णं भंते ! तेसि देवाणं (क, ख, ग, , सा च संस्थानतः समैव स्यात् प्रकाश्यक्षेत्र तु त्रि)! वलयाकारेण संस्थितं सदविभक्तमतउपमोप- ११. जाब (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहपडिवत्ती ४२७ पुक्खरोवसमुद्दाधिगारो ८४८. पुक्खरवरणं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते' 'सव्वतो समंता" संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति ।। ___ ८४६. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे कि समचक्कवालसंठिते ? विसमचक्कवालसंठिते ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते, णो विसमचक्कवालसंठिते ।। ८५०. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविखंभेणं, संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते । 'से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं, वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ" ।। ८५१. पुक्खरोदस्स णं समुदस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, 'तहेव सव्वं पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमपेरंते वरुणवरदीवपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्ख रोदस्स विजए नाम दारे पण्णत्ते । एवं' सेसाणवि" ॥ ८५२. दारंतरंमि संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।। ८५३. पदेसा जीवा य तहेव ।। ८५४. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-पुक्खरोदे समुद्दे ? पुक्खरोदे समुद्दे ? गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे पत्थेजच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगतीए उदगरसे पण्णते । सिरिधर-सिरिप्पभा यत्य दो देवा" महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से एतेणठेणं जाव२ णिच्चे। ८५५. पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे कति* चंदा पभासिसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा ? संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव" संखेज्जा तारागणकोडकीडीओ" सोभं सोभेसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा ।। वरुणवरदोवाधिगारो ८५६. 'पुक्खरोदण्णं समुई" 'वरुणवरे णामं दीवे" वट्टे 'जधेव पुक्खरोदसमुद्दस्स १. सं पा० --वलपागारसंठाणसंठिते जाव संपरि- ६. पच्छे (ख, ट) ! क्खिताणं। १०. उदगरसे गं (क, ख, ग, ट, ता त्रि)। २. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्गेषु एतत् सूत्रं नोल्लि- ११. देवा जाव (ग, त्रि) । खितमस्ति । १२. जी. ३५० । ३. जोयणसहस्साई (ता) अग्रेपि एवमेव । १३. केवतिया (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. ४ (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३।२६५-२६७ ! १४. जी० ३१७२२ । ५. जी० ३१७०७, ७०८ । १५. कोडीकोडीओ (क); कोडाकोडीओ (ख, ६. जी० ३१७०८-७१३।। ग, ट, त्रि)। ७. विजयादितधेवसव्वं रायहाणीओवि सरिणामएसु १६. पुक्खरोदे णं समुद्दे (त्रि)। समुद्देसु (ता); मलयगिरिवृत्तौ चत्वार्यपि १७. वारुणिवरे णाम दीवेणं संपरि (क); वारुणिसुत्राणि पूर्ण रूपेण व्याख्यातानि सन्ति । वरे" (ख); वरुणवरेणं दीवेणं संपरि(ग, त्रि)। ८. जी० ३।७१५-७२० । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ जीवाजीवाभिगमे तधा सव्वं"। ८५७. 'से केणठेणं भंते ! एवं वच्चइ-वरुणवरे दीवे? वरुणवरे दीवे ? गोयमा !" वरुणवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहि वहुईओ' खुड्डा-खुड्डियाओ जाव' विलपंतियाओ अच्छाओ जाव' सददुण्ण इयमहरसरनाइयाओ वारुणिवरोदगपडिहत्थाओ पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओं पासादीयाओ दरिस णिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ। 'तिसोमाण-तोरणा। तासु णं खुड्डा-खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पातपव्वया जाव पक्खंदोलगा सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसु ण उप्पायपव्वएसु जाव पक्खंदोलएमु वहूई हसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाइं सव्वफालियामयाइं अच्छाइं जाव पडिरूवाइं। वरुणवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे आलिघरगा जाव कुसुमघरगा सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसु णं आलिघरएसु जाव कुसुमघरएसु बहूई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाई सव्वफालियामयाइं अच्छाई जाव पडिरूवाई। वरुणवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहिं वहवे जातिमंडवगा जाव सामलतामंडवगा सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसृ णं जातिमंडवएसु जाव सामलतामंडवएसु वहवे पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता, तं जहा-अप्पेगतिया हंसासणसं ठिता जाव अप्पेगतिया वरसयण विसिट्ठसंठाणसंठिता सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा। तत्थ णं वहवे वाणमंतरा देवा जावविहरंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति---वरुणवरे दीवे, वरुणवरे दीवे । वरुण-वरुणप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव' पलिओवमद्वितीया परिवसंति'" ।। ८५८. जोतिसं संखेज्ज"॥ १. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्गापु किञ्चिद् विस्तृतः १. जी० ३।३५० । पाठोस्ति----वलयागारे जाब चिट्ठति, तहेव १०. चिन्हाङ्कितपाठस्थाने 'क,ख,ग,टत्रि' आदर्शेष समचक्कवालसंटिते केवतियं चक्कवालविक्खं सङ्क्षिप्तपाठोस्ति–तासु ण खुड्डा-खुड्डियासु भेणं ? केवइयं परिक्लेवेणं पण्णता ? गोयमा! जाब बिलपंति यासु बहवे उप्पायपस्वता जाव संखिज्जाई जायणरायसहरसाइं चक्कवालदिक्खं- खडहडमा सवफलियामया अच्छा तहेव भेणं संखेज्जाइं जोयणसतसहस्साई परिको वेणं वरुणवरुणप्पभा य एत्थ दो देवा महिड्ढीया पण्णत्ते, पउमवरवेदियाबणसंडवगणओ। दारं- परिवराति । से तेणठेणं जाव णिच्चे। 'ता' तरं पदेसा जीवा तहेव सव्वं । जी० ३१८४८- प्रते: पाठो मूले स्वीकृतः । ८५३ वृत्तौ विस्तृत: पाठो लिखितोस्ति, सूचितं वृत्ति२. अट्टो (ता)। कृता---एतत्सर्वं प्राग्वद् व्याख्येयं, नवरं ३. बहुओ (क, ख, ग, ट, त्रि)। पुस्तकेष्वन्यथान्यथा पाठ इति यथावस्थितपाठ४. जी. ३१२८६ । प्रतिपत्त्यर्थं सुत्रमपि लिखितमस्ति । ५. जी० ३।२८६ । ११. सव्वं संखेज्जगेणं जाव तारागण कोडिकोडीओ ६. वारुणोदग° (क,ख,ट,ता)। (क,ख,ग); सव्वं संखेज्जगुणं जाव तारागण७. जी० ३।२६५-२६७ । कोडाकोडीओ (ट); संखिज्जकेण नायध्वं ८. जी० ३१२८७-२६७ ॥ (त्रि); जी० ३१८५५ । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्हिडिवत्ती वरुणोदसमुद्दाधिगारो ८५ε- वरुणवरण्णं दीवं वरुणोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागार' संठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । 'पुक्खरोदवत्तव्वता जाव जीवोववातो" ॥ ८६०. ‘से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ - - वरुणोदे समुद्दे ? वरुणोदे समुद्दे" ? गोयमा ! वरुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए-- चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाई वा वरसीति वा वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुप्फासवेइ वा 'फलासवेइ वा बोयासवेइ वा * मधूति वा मे एति वा जातिप्पसन्नाइ वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणेइ सुपकखोयरसे' वा' अट्ठपिट्टणिट्टिताइ वा 'जंबूफल कालियाइ वा वरपसण्णाइ वा " उक्कोसमदपत्ता आसला मासला पेसला ईसि ओट्ठावलंविणी ईसि तंवच्छिकरणी ईसि वोच्छेदकडई वण्णेणं उववेता गंधेणं उववेता रसेणं उववेता फासेणं उववेता आसादणिज्जा वीसादणिज्जा दीवणिज्जा दप्पणिज्जा" मयणिज्जा विहणिज्जा सव्विदियगातपल्हायपिज्जा, भवेताख्वे सिया ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । वरुणोदस्स णं समुहस्स उदए १. सं० पा० -- वलयागार जाव चिट्ठति । २. समचक्क विरामचक्कवि तहेव सव्यं भाणियव्वं विपरित संखिज्जाई जायणसहस्साई दारंतरं च पउमवर वणसडे पएसा जीवा (क, ख, ग, ट, त्रि); यथैव पुष्करोदसमुद्रस्य वक्तव्यता तथैवास्यापि यावज्जीवोपपातसूत्र. द्वयम् (मवृ); जी० ३२८४६-८५३ । ३. अट्ठो ( क, ख, ग, ता, त्रि) । ४. वारुणोदस्स (क, ग, ट, ता, त्रि) । ५. मणिस लागाई (ता) 1 ६. चोयासवेइ वा फलासवेइ वा (क, ख, ग, ट त्रि ) । ७. वा अरिट्ठेति वा (ता) । ८. • सुपिक्कखांत रसेति (ता) | है. अतः परं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्ना वाचना दृश्यते - प्रभूतसंभारचित्ता पोसमाससतभिसवजोत विता ( जोगवट्ठला - क जोत दिया - ट ) निरुहूतविसिदिन्नकालोवयारा सुधावा (सुधाता - ग, त्रि) उक्कोसग अट्टपट्टपुट्टा मुरवइंतवर क्रिमं दिष्णकद्दमा कापसन्ना अच्छा वरवारुणी अतिरसा जंबूफल पुटुवम्ना सुजाता ईसिउट्टावलंबिणी ४२६ अहिमधुरपेज्जा ईसीसिरत्तणेता ( ईसोरतपत्ता --- क) कोमलकवोलकरणी जाव आसादिता विसंती अणिहुलाव करणहरिसपीतिजपणी संतत (संत सतत - क) बिम्बोहावविभ मविलासवेल्लहलगमणकरणी विरणमधियसत्तजणणी य होति संगाम देसकाले कयरणरसमद ( कयरणसमर -क कायरणरसमर--ट) पसरकरणी कढियाणविज्जुयतिहिययाण मउयकरणीय होति उववेसिता समाणी गति खलावेति य सलमिवि सुभावप्पालिया समरभग्गवणो सहयारसुरभि रसदीविया सुगंधा आसायणिज्जा विस्तायणिज्जा पीणणिज्जा दप्पणिज्जा मय णिज्जा सर्विवदियगातपव्हायणिज्जा आसला मासला पेसला वण्णेण उववेया गंधेणं उववेया रसेणं उदवेया फार्मेणं उववेया, भवे एयारूवे सिया ? गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे, वारुणोदस्स णं समुदस्स उदए एतो इट्ठतरे जाव उदए अस्साए णं पण्णत्तं । तत्थ णं वारुणिवारुणकंता देवा महिड्ढीया जाव परिवसंति से एएणट्ठेणं जाव णिच्चे । १० वरपसन्ना जंबूफलका लिया (ता) | ११. x (मबु ) | Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० जीवाजीवाभिगमे एतो इट्ठतराए चेव जाव' मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते । वारुणि वारुणिकंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - वरुणोदे समुद्दे, वरुणोदे समुद्दे ॥ ८६१ 'जोतिसं संखेज्ज" ॥ खोरवरदीवाधिगारो ८६२. वरुणोदणं समुदं खीरवरे णामं दीवे वट्टे' 'वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिविखत्ताणं' चिट्ठति । तधेव' जाव --- ८६३. 'से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चति - खीरवरे दीवे ? खीरवरे दीवे ? गोयमा ! खीरवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तर्हि तहिं बहुईओ खुड्डा - खुड्डियाओ जाव विलपतियाओ अच्छाओ जाव सद्गुणइय महुरसरनाइयाओ खीरोदगपडिहत्थाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ" पव्वतगा, पव्वतएसु आसणा, घरहा, घरएसु आसणा, मंडवा, मंडवसु पुढविसिलापट्टगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा | पंडरग - पुप्फदंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति से तेणट्ठेणं ॥ ८६४. जोतिसं' संखेज्जं ॥ खोरवरसमुद्दाधिगारो ८६५. खीर वरण्णं दीवं खीरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । तधेव" जाव- ८६६. से" केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चति - खीरोदे समुद्दे ? खीरोदे समुद्दे ? गोयमा ! १. जी० ३।६०१ । २. सव्वं जोइससंखिज्जकेण नायव्वं ( क, ख, ग, ट, त्रि); जी० ३।८५५ । ३. वारुणोदं णं (क, ख, गट, ता); वारुणवरणं (त्रि) 1 ४. सं० पा०--बट्टे जाव चिट्ठति । २८६-२६७ । ८. जोतिसं सव्वं (क, ख, ग, ट, त्रि.) ; जी० ३१८५५ । ६. सं० पा०-- वट्टे जाव चिट्ठति । १०. समचक्कवाल संठिते तो विसमचक्कवालसंठिते संखेज्जाई जोयणस विक्खभपरिवखेवो तहेव सव्वं (क, ख, गट, त्रि); जी० ३।८४६-८५३ | ५. सव्वं संखेज्जगं विक्खंभे य परिक्खेवो य (क, ११ एतस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति---अट्ठो, गोयमा ! खीरोयस्स णं समुद्दस्स उदगं से जहाणामए - सुउसुहीमा रुपण अज्जुणतण (तरुणक) सरसपत्तकोमल - अस्थिगत्तणग्गपोंडग व रुच्छुचारिणीणं लवंगपतपुप्फपल्लव कक्कोलग सफल रुक्खबहुगुच्छ गुम्मक लि तमलट्ठिमधुपयुरपिप्पलीफलिस व लिवर विवरचा रिणीण अप्पोदगपीतस इरससमभूमिभागणिभयसुहोसियाणं सुपोसित सुहात रोगपरिवज्जिताणं णिरुवहत सरीराणं ( सरीरिणंग, त्रि) कालप्पसविणीणं बितियततियसम ( साम ख, गट, त्रि); जी० ३२८४६-८५३ । ६. अट्ठो । बहुओ खुड्डा वावीओ जाव सरसरपंतियाओ खीरोदयपsिहत्थाओ पासातीयाओ ४ (क, ख, ग, ट, त्रि); अट्ठो वावीओ खीरोदगप हत्थाओ रयतामईओ ( ता ) | ७. तासु णं खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उपायपब्वयगा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा पंडरग - पुष्पदंता (पुष्करदंता – क. ग. त्रि) एत्थ दो देवा महिड्डीया जाव परिवति । से तेणट्ठेणं जाव णिच्चे (क, ख, ग, ८, त्रि); जी० ३३८५७, Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ४३१ खीरोदस्स णं समुदस्स उदए से जहानामए-रष्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चाउरके गोक्खीरे खंडगुलमच्छंडियोवणीते पयत्तमंदग्गिसुक ढिए वण्णणं उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे 'वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्विदयगातपल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया? गोयमा ! णो इणठे समठे, खीरोदस्स णं समुदस्स उदए एत्तो इद्रुतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते । विमल-विमलप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ॥ ८६७. 'जोतिसं संखेज्ज"। घयवरदीवाधिगारो ८६८. खीरोदण्णं समुई घयवरे णाम दीवे बट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिति जाव"---- ८६६. से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति-घयवरे दीवे ? घयवरे दीवे ? गोयमा ! घयवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहि वहुईओ खुड्डा-खुडियाओ जाव विहरंति, णवरंघयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादी सव्वकणगमया, कणग-कणगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ।। ८७०. जोतिसं संखेज्ज ॥ घयोदसमुद्दाधिगारो ८७१. घयवरणं दीवं धयोदे णाम समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता ग,त्रि) प्पभूताणं अंजणवरगवलबलयजलधरज- च्चंजणरिट्रभमरपभूयसमप्पभाणं कंडदोहणाणं वद्धत्थीपत्थताणं रूढाणं मधुमासकाले संगहिते होज्ज चातुरक्केव होज्ज तासि खीरं मधुर- रसबिवगच्छबहुदव्वसंपउत्ते पयत्तमंदग्गिसुकढिते आउत्तखंडगुडमच्छंडितोववेते रणो चाउरतचकवट्टिस्स। उवदविते आसायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिज्जे जाव सविदियगातपल्हातणिज्जे जाव वणेणं उचिते जाव फासेणं, भवे एयारूवे सिया? णो इणठे समटठे, खीरोदस्स णं से उदए एत्तो इट्ठयराए चेव जाव आसाएणं पण ते। विमल विमलप्पभा एत्थ दो देवा महिढीया जाव परिवसंति, से तेणठेणं । १. सं० पा०-आसादणिज्जे जाव इट्टत राए चेव आसादे। २. संखेज्ज चंदा जाव तारा (क,ख,ग,ट,त्रि); जी० ३१८५५ । ३. सं० पा०-वलयागारसंठाणसंठिते जाव चिट्ठति । ४. अत: ८६६, ८७० सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट, वि' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति-समचक्कवाल नो विसम संखेज्जविसमपरि पदेसा जाव अट्रो, गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्व-तत्थ बहवे खुड्डा-खुड्डीओ वावीओ जाव घयोदगपडिहत्थाओ उपायपव्वयगा जाव खडहडगा सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा, कणयकणयप्पभा एत्थ दो देवा महिड्ढीया चंदा संखेज्जा। ५. जी. ३.८४६-८५३ । ६. जी. ३१८५७; २८६-२६७ ! ७. जी. ३१८५५ । ८. सं० पा० --बट्टे जाव चिट्ठति । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति' जाव' - ८७२. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वृच्चति - घयोदे समुद्दे ? घयोदे समुद्दे ? गोयमा ! घयोदस्स णं समुद्दस्स उदए जहानामए – सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे सुकढिते उद्दा [ण ? ] सज्जवीसंदिते विस्संते 'सल्लइ - कण्णिया रपुप्फवण्णा भे" वण्णे उववेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते, आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिंहणिज्जे सव्विदियगात पल्हायणिज्जे, भवेतारूत्रे सिया ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे, घयोदस्स णं समुहस्स उदए एतो इतराए चेव जाव' मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते ! कंत-सुकंता यत्थ दो देवा महिड्डिया जान पलिओ मद्वितीया परिवसंति । से तेणट्ठेणं ॥ ८७३. चंदादी धेव ॥ खोदवरदीवाधिगारो ८७४. घयोदणं समुद्दं खोदवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव े ८७५ सेकेणट्ठे भंते ! एवं वृच्चति - खोदवरे दीवे ? खोदवरे दीवे ? गोयमा ! खोदवरे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहि तहि वहुईओ खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ जाव विहरति, १. अतः ८७२, ८७३ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति - समचक्क तहेव दारपदेसा जीवा य अट्टो गोयमा ! घयोदस्स णं समुदस्स उदए से जहां जवग्ग फुल्लसल्ल विमुकुल कण्णिया रसरसवसुविबुद्धको रेंटदा - मपिडिततरस्स निद्धगुणते यदोवियनि रुवहयविसिसुंदरत रस्स सुजायदहिमहियतद्दिवसगहियनवणीपवणावियसुक्कड्डियद्दाव ( उदार-ट) सज्जवीसंदियस्त अहियं पीवरसुरहिगंधमणहरमहुरपरिणामदरिसणिज्जस्स पत्थनिम्मलसुहोव भोगस्स सरयकालंमि होज्ज गोधतवरस्स मंड, भवे एतारूवे सिया ?, णो तिणट्ठे समट्ठे, गोयमा ! घतोदस्स णं समुद्दस्स एतो इट्ठतरे जाव अस्साएणं पण्णत्ते कंतसुकंता एत्थ दो देवा महिढीया जाव परिवसंति सेसं तं चैव तारागणकोडीकोडीओ । २. जी० ३१८४६-८५३ । ३. उद्दाव (क, ख, ग, ट,त्रि ) ; उद्दा (ता ) ; अद्वार:स्थानान्तरेष्वद्याप्यसङ्क्रामितः (मवृ) ; देशीनाममालायां उद्दाणं -- चुल्ली। एष अर्थः सङ्गतोस्ति । जीवाजीवाभिगमे ४. अल्लग कणियारपुरफवण्णे (ता) । ५. सं० पा० - आसादणिज्जे जाव पल्हायणिज्जे । ६. जी० ३३६०० । ७. जी० ३१८५५ । ८. इमानि ८७४-८७६ सूत्राणि वृत्याधारेण स्वीकृतानि । 'ता' प्रतेः पाठसंक्षेप एवमस्ति - प्रतोदणं समुदं खोतवरे णामं दीवे जावट्ठो खोतोदगडहत्याओ वावीओ जाव संयंति नवरं पव्वतगादी सव्ववेरुलियामया अच्छा जाव पsि सुप्पभमहप्पभा यत्थ दो चंदादी संखेज्जा | 'क, ख, ग, ट, त्रि' प्रतीनां पाठसंक्षेपःघतोदण्णं समुद्दं खोदवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारे जाव चिट्ठति तहेब जाव अट्ठो, खोतवरे दीवे तत्थ - २ देसे -२ तहि २ खुड्डावावीओ खोदोदगपsिहत्थाओ उत्पातपव्वतता सब्ववेरुलियामया जाव पडिरूवा, सुप्पभमहत्पभा य दो देवा महिड्ढीया जाव परिवसंति से एतेणं सव्वं जोतिसं तं चैव जाव जाव तारा । ६. जी० ३३८४६-८५३ । Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तल्या उम्बिहपरिवत्ती णवरं-खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वतगादी सव्ववेरुलियामया। सुप्पभ-महप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । से तेणठेणं ॥ ८७६. चंदादी संखेज्जा खोदोदसमुद्दाधिगारो ८७७. खोदवरणं' दीवं खोदोदे णामं समुद्दे वट्टे' 'वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिद्रति जाव-- ____८७८. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चति-खोदोदे समुद्दे ? खोदोदे समुद्दे ? गोयमा ! खोदोदस्स णं समुदस्स उदए से जहानामए--उच्छृणं जच्चाणं बरपुंडगाणं हरिताभाग भेरुंडुच्छ्रण वा कालपोराणं हरितालपिंजराणं अवणीतमूलाणं 'तिभागणिव्वादितवाडाणं' गंठिपरिसोधिताणं खोदरसे होज्ज वत्थपरिपूते चाउज्जातगसुवासिते अधियपत्थे लहुए वण्णेणं उबवेते गंधेणं उववेते रसेणं उववेते फासेणं उववेते आसादणिज्जे वीसादणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे बिहणिज्जे सव्विदियागातपल्हायणिज्जे, भवेतारूवे सिया ? गोयमा ! णो इणठे समठे, खोदोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इद्रुतराए चेव जाव मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते । पुण्ण-पुण्णप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव १. जी० ३।८५७; २८६-२६७ ॥ होज्जा वत्थपरिपूए चाउज्जात गसुवासिते २. जी. ३१८५५ । अहियपत्थे लहुके वणोश्वेते तहेव, भवे एया३. एतेषां ८७७-८७६ त्रयाणां सूत्राणां स्थाने रूवे सिया ? णो तिणठे समठे, खोयरसस्स 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु इत्यं वाचना भेदो णं समुदस्स उदए एत्तो इद्रुतराए चेव जाव दश्यते-खोयवरण्णं दीवं खोदोदे नाम आसाएणं पण्णत्ते । पुण्णभद्दमाणिभद्दा य इत्थ समुद्दे बट्टे वलया' जाव संखेज्जाई दुवे देवा जाव परिवसंति, सेसं तहेव, जोइसं जोयणसत परिक्खेवेणं जाव अठे, गोयमा ! संखेज्जं चंदा । वृत्तिकृतापि पाठभेदस्य सूचना खोदोदस्स पं समुहस्स उदए जहा से कृतास्ति-इह प्रविरलपुस्तकेऽन्यथापि पाठो आसलमासलपसत्थे वीसंतनिद्धसुकुमालभूमिभागे दृश्यते सोप्येतदनुसारेण व्याख्येयो, बहुषु तु सुच्छिन्ने सुकट्ठलढविसिट्टनिरुवहयाजीयवाविते पुस्तकेषु न दृष्ट इति न लिखितः (वृत्ति पत्र सुकासज (ग-क,ट) पयत्तनिउणपरिकम्मअणपालियसबद्धि बद्धाणं सुजाताणं लवणतणदो- ४. सं० पा०-वटटे जाव चिति । सवज्जियागं णयायपरिवट्टियाणं निम्मातसुंद- ५. जी० ३१८४६-८५३ ! राणं रसेणं परिणयमउपीणपोरभंगुरसुजायमधुर- ६. हरितानाम् (म) । रसपुष्फविरइयाण उवद्दवविवज्जियाणं सीय- ७. भेरण्डेसूणां (मव) । परिफासियाणं अभिणवभग्गाणं (अभिणवभि- ८. अमणीत (ता)। ग्गाणं-क; अभिणवतग्गाणं-ग, त्रि) १.त्रिभागनिर्वाटित वाटानाम् (म) । अमलियाणं तिभायणिच्छोडियवाडगाणं अवणी- १०. गंधिपरिसोधिताणं तिभागणिवादितवाडाणं तमूलाणं गठिपरिसोहिताणं कुसलणरकप्पियाणं (ता)। उच्छृणं (उच्ढाणं-ट) जाव पोंडयाणं ११. सं० पा.---उववेते जाव सविदियगातपल्हायबलवगणरजतजंतपरिगालितमेताणं खोयरसे णिज्जे। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे 1 पलिओवमद्वितीया परिवसंति से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - खोदोदे समुद्दे, खोदोदे मुद्दे ॥ ८७. चंदादीण जधा पुक्ख रोदस्स' ॥ ૪૪ दिस्सरवरदीवाधिगारो ८०. खोदोदण्णं समुदं णंदिस्सरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । 'पुव्वक्कमेणं जाव' जीवोववातो" ।। ८१. सेकेणट्ठणं भंते ! एवं वच्चति - णंदिस्सरवरे दीवे ? गंदिस्सरवरे दीवे ? गोयमा ? मंदिरसरवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तहि तर्हि वहुईओ खुड्डा खुड्डियाओ वावीओ जाव' विहति, णवरं - खोदोदगपडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जा पडवा || ८२. अदुत्तरं च णं गोयमा ! मंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसि चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजणगपव्वता पण्णत्ता, तं जहा - पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं" । ते गं अंजणगपव्वता चतुरासीति जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चतेणं, ए जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मुले साइरेगाई दसजोयणसहस्साई विवखभेणं, धरणियले दसजोयणसहस्साइं आयाम' - विक्खंभेणं, तदाणंतर" मायाए-मायाए" परिहायमाणा- परिहायमाणा उर्वार" एगं" जोयणसहस्सं आयाम - विक्खभेणं, मूले एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते किंचिविसेसाहिए" परिक्खेवेणं, धरणियले एक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते देसूणे" परिक्खेवेणं, उवरि" तिष्णि जोयणसहस्साइं एक च बावट्टं जोयणसतं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं", मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्प तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वंजणमया" अच्छा जाव पडिरुवा, पत्तेयं-पत्तेयं परमवरवेदियापरिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ" 11 १. जी० ३१८५५ । २. जी० ३१८४६-५५३ । ३. तहेव जाव परिक्खेवो । पउमवर वणसंडपरिदारा दारंतरप्पदेसे जीवा तहेव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-से केणट्ठेणं भंते ! गोयमा ! देसे -२ बहुओ खुड्डा वावीओ जाव बिलपतियाओ खोदोदगपsिहत्थाओं उप्पायपव्वेगा सब्ववइरामया अच्छा जाव पडिवा । ५. जी० ३१८५७ 1 ६. मंदिस्सरवरदीवचक्क वाल विक्खंभबहुमज्भदेसभागे एत्य णं चउद्दिसि चत्तारि अंजणयपव्वता पण्णत्ता ( क, ख, ग, ट त्रि ) । ७. एगमेगं (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. x ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ६. x ( ता ) । १०. ततोणंतरं ( क, ख, ग ) एत्तोनंतरं (त्रि ) | ११. मायाए पदेसपरिहाणीए ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । १२. उप्पि (ता) । एगमेगं (क, ख, ग, ट, त्रि) । १३. एकैकं (भट्ट) | १४. X (ता) । १५. किचिविसे साहियायं ( ता ) | १६. किचिविसेसूणा (ता) । १७. सिहरितले (क, ग, त्रि); सिहरतले ( ट ) ; उप (ता) । १८. परिक्खेवेणं प ( ग ) । १६. सव्वंजणामया (क, ग, ता,त्रि ) । २०. जी० ३।२६३ - २६७ । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चम्विहाडिवत्ती ८८३. तेसि णं अंजणगपव्वयाणं उरि पत्तेयं-पत्तेयं बहुसमरमणिज्जो भूमिभागो 'पण्णत्तो, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव' विहरंति" ॥ ८८४. तेसि णं बहसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं सिद्धायतणे पण्णत्ते। ते णं सिद्धायतणा एगमेगं' जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, वावत्तरि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसतसंनिविट्ठा, वण्णओं ॥ ८८५. तेसि णं सिद्धायतणाणं पत्तेयं-पत्तेयं च उद्दिसिं चत्तारि दारा पण्णता, 'तं जहा-पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । पुरथिमेणं देवदारे, दाहिणेणं असुरदारे, पच्चत्थिमेणं णागद्दारे, उत्तरेणं सुवण्णदारे । तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा- देवे असुरे णागे सुवणे"! ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं सेता वरकणगथूभियागा, वण्णओ॥ ८८६. तेसि णं दाराणं उभयतो पासिं दुहतो णिसीधियाए सोलस-सोलस वंदणकलसा पण्णत्ता, एवं णेतव्वं जाव' सोलस वणमालाओ ।। ८८७. तेसि" णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पण्णत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, सोइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसंनिविट्ठा, वण्णओ" ॥ ८८८. तेसि णं मुहमंडवाणं पत्तेयं-पत्तेयं तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं जाव वणमालाओ उल्लोगो १. उप्पि (ता)। णाई उड्ढे उच्चत्तेणं वण्णओ। २. जी. ३१२७७-२६७। तेसि णं मुहमंडवाणं चउद्दिसिं चत्तारि दारा ३. ससदं जावासयंति (ता)। पण्णत्ता, ते णं दारा सोलस जोयणाई उडढं ४. एग (ता)। उच्चत्तणं अट्ठ जोयणाई विखंभेणं तावतियं ५. जी० ३१३७२ । चेव पवेसेणं सेसं तं चेव जाव वणमालाओ। ६. देवदारे असुरदारे णागदारे सुवण्णदारे (क,ख, एवं पेच्छाघरमंडवादि, तं चेव पमाणं जं मूह___ग, ट, त्रि)। मंडवाणं, दारावि तहेव णवरि बहुमज्झदेसे ७.X (ता)। पेच्छाघरमंडवाणं अक्खाडगा मणिपेठियाओ ८. क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु, ८८६ सूत्रपर्यन्तं अट्ठजोयणप्पमाणाओ सीहासणा अपरिवारा 'वण्णओ जाव वणमाला' इत्येव पाठो विद्यते । जाव दामा थूभाई चउद्दिसि तहेव वरि जाव वणमालाओ (ता); जी० ३१३०० । सोलसजोयणप्पमाणा सातिरेगाइं सोलस जोय६. जी० ३३०१-३०६ । णाई उच्चा सेसं तहेव जाव जिणपडिमाओ। १०. ८८७-८६८ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' चेइयरुक्खा तहेव चउद्दिसि तं चेव पमाणं जहा आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-तेसि णं दाराणं विजयाए रायहाणीए णवरि मणिपेढियाए चउद्दिसि चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता, ते णं सोलसजीयणप्पमाणाओ। महमंडवा एगमेगं जोयणसतं आयामेण पण्णासं ११. जी० ३।३७२। जोयणाई विक्खंभेणं साइरेगाइं सोलस जोय- १२. जी. ३।३७३-३७५ । Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ भूमिभागो उप्पि अट्ठमंगलगा ॥ ८८. सिणं मुहमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडवे पण्णत्ते । मुहमंडवमाणतो वत्तव्वता जाव' भूमिभागो ।। ८०. सिणं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं अक्खा पण्णत्ते || ८६१. तेसि णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता | ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || ८२. तासि गं मणिपेढियाणं उप्पि सीहासणा विजयद्सा अंकुसा दामा, उप्पि अट्टमंगला ॥ ८३. तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता । ताओ गं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सम्बमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ जीवाजीवाभिगमे ८४. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चेतियथूभे पण्णत्ते । ते णं चेतियथूभा सोलस जोयणाई आयाम विक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, संखंक-कुंद-दगरय-अमयम हियफेणपुंजसण्णिकासा अच्छा जाव पडिख्वा । उप्पि अमंगलगा जाव सहस्सपत्तहत्थगा ॥ ८५. तेसि णं चेतियथूभाणं पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ट जोयणाई आयाम विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ || ८६. तासि णं मणिपेढयाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि जिणपडिमाओ जिणस्सेधप्पमाणमेत्तीओ सव्वरयणामईओ संपलियंक निसण्णाओ थूभाभिमुहीओ चिट्ठति, तं जहा --उसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिसेणा ॥ ८७. तेसि णं चेतियथूभाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयाम - विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ ॥ ८८. तासि णं मणिपेढिया णं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं चेतियरुक्खे पण्णत्ते । ते णं चेतियरुक्खा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, पमाणं वण्णावासो* य जहा विजयस्स जाव अट्ठमंगलगा १. जी० ३१८८७, ८८८ २. जी० ३।३७८, ६७६ ३. वण्णामासो (ता); 'ते सिणमयमेयारूवे वण्णाबासे पण्णत्ते' इत्यादि चैत्यवृक्षवर्णनं विजयराजधानीगत चैत्यवृक्षवद् भावनीयं यावल्लतावर्णनमिति । 'तेसि ण' मित्यादि तेषां चैत्यवृक्षाणामुपरि अष्टावष्टौ मङ्गलकानि बहवः कृष्णचाम रध्वजा इत्यादि तावद् यावत् सहस्रपत्रहस्तकाः सर्वरत्नमया अच्छा यावत्प्रतिरूपाः (मवृ) 1 ४. जी० ३१३८६-३८६ । Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती ४३७ ८६६. तेसिणं चेतियरुक्खाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपेढियाओ अट्ठ जोयगाई आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ १००. तासि णं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं-पत्तेयं महिंदज्झए पण्णत्ते । ते णं महिंदज्झया सट्टि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, जोयणं उव्वेधेणं, जोयणं विक्खंभेणं, वइरामय जाव' अट्ठमंगलगा ॥ ०१. तेसि णं महिंदज्झयाणं पुरतो पत्तेयं-पत्तेयं णंदा पुक्खरणी पण्णत्ता । ताओ णं गंदाओ पुक्खरणीओ एगमेगं जोयणसतं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, दस जोयणाई उव्वेधेणं अच्छाओ' जाव तोरणा ।। ९०२. तेसु' णं सिद्धायतणेसु पत्तेयं-पत्तेयं अडतालीसं मणोगुलियासाहस्सीओ' १. ८६६-६०१ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' पुष्करिणीनां नामान्यपि स्वीकृतपाठाद् भिन्नानि आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति-तेसि णं चेइय- पाठान्त रसदशानि दृश्यते । असौ च वाचनारुक्खाणं चउद्दिसि चत्तारि मणिपेढियाओ भेदोवगन्तव्यः । अट्ठजोयणविक्खंभाओ चउजोयणबाहल्लाओ ६. मलयगिरिणा गुलिका, मनोगुलिका' इति सूत्रमहिंदज्झ्या चउसद्धिजोयणच्चा जोयणोववेधा द्वयं व्याख्यातम्-'तेस ण' मित्यादि तेष जोयणविक्खंभा सेसं तं चेव । एवं चउद्दिसिं सिद्धायतनेषु प्रत्येक-प्रत्येकमष्टचत्वारिंशत चत्तारि गंदापुक्खरिणीओ, णवरि खोयरस- गुलिकासहस्राणि गुलिका:-पीठिका अभिपडिपुण्णाओ जोयणसतं आयामेणं पन्नासं जोय- धीयन्ते, ताश्च मनोगुलिकापेक्षया प्रमाणत: णाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उज्वेधणं सेसं तं क्षुल्लास्तासां सहस्राणि गुलिकासहस्राणि चेव। प्रज्ञप्तानि, तद्यथा---पूर्वस्यां दिसि षोडश २. जी० ३१३६३,३६४ । सहस्राणि पश्चिमायां षोडशसहस्राणि दक्षिण३. मलयगिरिवृत्ती अत्र एतत् सूचितमस्ति- स्यामष्टौ सहस्राणि उत्तरस्यामष्टो 'अच्छाओ सण्हाओ रययमयकूलाओ' इत्यादि सहस्राणि । 'तासु णं गुलियासुबहवे सुवण्णपुष्करिणीवर्णनं जगत्युपरिपुष्करिणीवद् वक्तव्यं रुप्पामया फलगा पन्नत्ता' इत्यादि बिजयदेवनवरं 'खोदरसपडिपुग्णाओं' इति वक्तव्यम् । राजधानीगतसुधम्मसिभायामिव वक्तव्यं यावद्या४. जी० ३।३९५,३६६ ।। मवर्णनम् ।। ५. अत्र वृत्तिकृता पाठान्तरस्य सूचना कृतास्ति- 'तेसु ण' मित्यादि, तेषु सिद्धायतनेषु प्रत्येक इदमन्यदधिकं पुस्तकान्तरे दृश्यते....'तासि गं प्रत्येकमष्टचत्वारिंशत् मनोगुलिका सहस्राणि पुक्खरिणीणं चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडा प्रज्ञप्तानि, गुलिकापेक्षया प्रमाणतो महतीतराः, पण्णता, तं जहा ...पुरच्छिमेणं दाहिणेणं पच्च- तद्यथा---पूर्वस्यां दिशि षोडश सहस्राणि, थिमेणं उत्तरेणं पश्चिमायां षोडशसहस्राणि, दक्षिणस्यामष्टो 'पूवेण असोगवणं दाहिणतो होइ सत्तपण्णवणं । सहस्राणि, उत्तरस्यामष्टी सहस्राणि, एतास्वपि अवरेण चंपगवणं चूयवणं उत्तरे पासे ॥१॥' फलकनागदन्तकमाल्यदामवर्णनं प्राग्वत । वृत्तिकृता मूचितौ पाठभेदी (जी० ३१९१०) अस्यामेव प्रतिपत्तो ३६५ सूत्रे वृत्तिकता केवलं स्थानाङ्गेपि (४.३३६-३४३) उपलभ्येते तथा 'गुलिका' सूत्रमेव व्याख्यातमस्ति । ६०२-६०६ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै पण्णत्ताओ, तं जहा--पुरत्थिमेणं सोलस्स साहस्सीओ, पच्चत्थिमेणं सोलस साहस्सीओ, दाहिणणं अट्ठ साहस्सीओ, उत्तरेणं अट्ठ साहस्सीओ। तासु णं मणोगुलियासु वहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा जहा विजयारायहाणीओ।। ६०३. तेसु णं सिद्धायतणेसु पत्तेयं-पत्तेयं अडतालीसं गोमाणसियासाहस्सीओ' पण्णत्ताओ तधेव', णवरं-धूवघडियाओ।।। ६०४. तेसि णं सिद्धायतणाणं उल्लोया पउमलयाभत्तिचित्ता जाव' सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा ॥ ९०५. तेसि णं सिद्धायतणाणं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे सद्दवज्ज'। ६०६. तेसि णं बहसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णताओ। ताओ णं मणिपेढियाओ सोलस जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं, अट्र जोयणाई वाहल्लेणं, सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। १०७. तासि णं मणिपेढियाणं उम्पि पत्तेय-पत्तेयं देवच्छंदए पण्णत्ते। ते णं देवच्छंदगा सोलस जोयणाई आयाम-विक्खंभेण, सातिरेगाइं सोलस जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥ ६०८. तेसु णं देवच्छंदएसु पत्तेयं-पत्तेयं अट्ठसयं जिणपडिमाणं तधेव जाव अट्ठसतं धूवकडुच्छुगाणं ॥ ६.०६. तेसि णं सिद्धायतणाणं उप्पि अट्ठमंगलगा। ६१०. तत्थ णं जेसे पुरथिमिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चतुद्दिसि चत्तारि णंदाओ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु एवं पाठभदोस्ति-मणोगुलियाणं गोमाणसीण य अडयालीस-२ सहस्साई पुरथिमेणवि सोलस पच्चत्थिमेणवि सोलस दाहिणेणवि अटु उत्तरेणवि अट्ट साहस्सीओ तहेव सेस उल्लोया भूमिभागा जाव बहमझदेसभागे मणिपेढिया सोलस जोयणा आयाम-विक्खंभेणं अट्र जोयणाई बाहल्लेणं। ७. मणगुलिया (ता)। १. मणुगुलियासु (ता)। २. जी० ३१३६७। ३. मणुगुलिया (ता)। ४. जी. ३३६८ । ५. जी० ३१३०८। ६. जी० ३।२७५-२०४।। ७.६०७-६०६ सूत्राणां स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु एवं पाठ भेदोस्ति–तासि णं मणि पीढियाणं उप्पि देवच्छंदगा सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं सातिरेगाई सोलस जोयणाई उड्दं उच्चत्तेण सव्वरयणा अट्ठसय जिणपडिमाणं सव्वो सो चेव गमो जहेव वेमाणियसिद्धायतणस्स। ८. जी. ३१४१५.४१६ । ६.जी० ३२८६-२६१ । १०.६१०-६१३ सूत्राणां स्थाने 'क, ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेष एवं पाठभेदोस्ति–तत्थ णं जेसे पुरच्छिमिल्ले अंजणपब्बते तस्स णं चउहिसि चत्तारि गंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-पंदुत्तरा य गंदा पाणंदा णदिवद्धणा। ताओ अंदापूक्खरिणीओ एगमेगं जोयणसतसहस्सं आयामविखंभेणं दस जोयणाइं उब्वेहेणं अच्छाओ सहाओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेदिया पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता तत्थ तत्थ जाव सोवाण (सोमाण Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती ४३६ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ-णंदिसेणा अमोहा य गोथूभा' य सुदंसणा। ताओ णं पुक्खरणीओ एग जोयणसतसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, परिरओ य दस जोयणाई उव्वेधेणं, अच्छाओ, वण्णओ' 'णवरं-वट्टाओ समतीराओ खोदोदगपडिपुण्णाओ" पत्तेयं-पत्तेयं वेइय-वणसंडपरिक्खित्ताओ', वण्णओ'। ११. तासि णं पुक्खरणीणं वहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं दधिमुहे पव्वते पण्णत्ते । ते णं दधिमुहा पव्वता चउ४ि' जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उब्वेधेणं, सब्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिता दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा, पत्तेयं-पत्तयं पउमवरवेदियापरिक्खित्ता, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता. वण्णओ' ६१२. तेसि णं दधिमुहाणं पव्वताणं उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे" पण्णत्ते ।। १३. तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं-पत्तेयं सिद्धायतणे पण्णत्ते । सच्चेव अंजणगसिद्धायतणवत्तव्वता जाव" अट्ठमंगलगा ।। ___६१४. तत्थ" णं जेसे दाहिणिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चद्दिसि चत्तारि णंदाओ -क) पडिरूवगा तोरणा । तासि णं पुक्खरि- प्रतौ 'बेइयवणसंड वण्णओ' इति पाठान्तरं णीणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं दहिमुह- वट्टाओ समतीराओ एस विसेसो' इति पाठो पव्वए पण्णत्ते, ते णं दहिमुहपव्वया चउसट्ठि लभ्यते । जोयणसहस्साई उड्ढे उच्चत्तेणं, एग जोयण- ५. अतः परं वृत्तिकृता पाठान्तरं सूचितम्सहस्सं उन्हेणं, सव्वत्थ समा पल्लगसंठाण- अत्रापीदमन्यदधिकं पुस्तकान्तरे दृश्यते-- संठिता दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्क- 'तासि णं पुक्खरणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसि तीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसए चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा–पुरच्छिपरिक्खेवेणं पण्णता-सव्वरयणामया अच्छा __ मेणं दाहिणेणं अवरेणं उत्तरेणं, पुवेणं असोगजाव पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइया वणं जाव चूयवणं उत्तरे पासे एवं शेषाञ्जनवणसंडधण्णओ बहुसम जाव आसयंति पर्वतसम्बन्धिनीनामपि नन्दापष्करिणीनां सयति । सिद्धायतणं तं चेव पमाणं अंजण वाच्यम् । पव्वएस सच्चेव वत्तन्वया हिरवसेसं भाणियब्बं ६. जी० ३।२६५-२६७ । जाव उपि अटुट्ठमंगलगा। ७. एगसट्ठि (ता)। १. गोत्थुभा (ता)। ८. सव्व रयणामया (ठाणं ४१३४०)। २. त्रीणि योजनशतसहस्राणि षोडश सहस्राणि १. जी० ३१२६३-२६६ । देशते सप्तविंशत्यधिके त्रीणि गव्यूतानि १०. जी० ३१२७७-२६७; तस्य सशब्दवर्णनं तावद अष्टाविशं धनुःशतं त्रयोदशाङ्गुलानि अर्धा- वक्तव्यं यावद् बहवो 'देवा देवीओ य आसयंति गुलं च किञ्चिद् विशेषाधिक परिक्षेपेण सयंति जाव विहरंति' (मवृ)। प्रज्ञप्ताः (म)। ११. जी. ३।८८४-६०६ ।। ३. जी० ३१२८६ । १२. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्णेषु ४. चिन्हाडितपाठो वृत्त्याधारेण स्वीकृतः 'ता' एवं पाठभेदोस्ति-तत्य णं जेसे दक्खिणिल्ले Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० जीवाजीवाभिवमे पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ–णंदुत्तरा य णंदा, आणंदा णदिवद्धणा । 'सेसं तहेव" ॥ ६१५. तत्थ णं' जेसे पच्चथिमिल्ले अंजणगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि णंदाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ--भद्दा य विसाला य कुमुदा पुंडरिंगिणी । 'सेसं तहेव" ॥ ६१६. तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले अंजणगपवते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि णदाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ-विजया वेजयंती, जयंती अपराजिया। 'सेसं तहेव ॥ ___११७. तत्थ" णं वहवे भवणवति-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया देवा तिहिं चाउमासिएहिं पज्जोसवणाए य अट्टविहाओ य महिमाओ करेंति । अण्णेसु य बहूसु जिणजम्मणनिक्खमण-णाणुप्पादपरिणेव्वाणमादिएसु देवकज्जेसु य देवसमितीसु य 'देवसमवाएसु य देवसमुदएसु य" समुवागता समाणा पमुदितपक्कीलिता अट्ठाहियारूवाओ" महामहिमाओ करेमाणा सुहंसुहेणं विहरंति ॥ ६१८. अदुत्तरं च णं गोयमा ! णंदिस्सरवरे दीवे चक्कवाल विक्खंभेणं बहुमज्झदेस अंजणपन्वते तस्स णं च उद्दिसि चत्तारि ७. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि, आदर्थेषु णंदाओ पुक्खरणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-- एवं पाठभेदोस्ति-तत्थ णं बहवे भवणवइभद्दा य विसाला य, कुमुया पुंडरिंगिणी तं चेव वाणमंतरजोतिसियवेमाणिया देवा चाउमासियपमाणं तहेव दधिमुहा पव्वया सं चेव पमाणं पाडिवएसु संवच्छरिएसु वा अण्णेसु बहसु जाव सिद्धायतणा। जिणजम्मणणिक्खमणणाणुप्पत्तिपरिणिवाण१. जेच्चेव पुरिमं जेणेव वि दधिमुहा सिद्धायतण- मादिएसु य देवकज्जेसु य देवसमुदएसु य देव विही सा इवि (ता); जी० ३।६१०-६१३ ! समवाएस य देवपओयणेस य एमंतओ सहिता २. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्श समुवागता समाणा पमुदितपक्कीलिया अट्ठा एवं पाठभेदोस्ति---तत्थ णं जेसे पच्चत्थि- हितारूवाओ महामहिमाओ करेमाणा पालेमिल्ले अंजणपन्वए तस्स ण चउदिसि चत्तारि माणा महसुहेणं विहरति । गंदापुक्खरणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- ८. या (ता) अग्रे सर्वत्रापि । णंदिसेणा अमोहा य, गोत्थूभा य सुदंसणा। तं ६. देवसमुदएसु य देवसमवाएसु य (ता)। चेव सव्वं भाणियव्वं जाव सिद्धायतणा। १०. आगता (मव)। ३. चंदा (ता)। ११. अट्ठाहियाओ य (ता)। ४. सच्चेव पुक्खरणीपमाणाइ विही जाव दधि- १२. 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु रतिकरपर्वतालापको मुहाणं (ता); जी० ३१६१०-६१३ । नैव विद्यते । मलयगिरिणापि सूचितमिदम् ५. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शषु ~रतिकरपर्वतचतुष्टयवक्तव्यता केषुचित् एवं पाठभेदोस्ति-तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले पुस्तकेषु सर्वथा न दृश्यते । ताडपत्रीयादर्श अंजणपन्वते तस्त ण चउद्दिसि चत्तारि णंदा- मलयगिरिवृत्ती च रतिकरपर्वतालापक उपपुक्खरणीओ तं जहा--विजया जयंती जयंती लब्धोस्ति । स्थानाङ्गेपि (४।३४४-३४८) अपराजिया । सेसं तहेक जाव सिद्वायतणा नन्दीश्वरवरद्वीपवर्णने एष आलापक उपलभ्यते। सम्वा चेइयवण्णणा णातव्वा । दिगम्बरसाहित्येपि एष उपलभ्यते (जैनेन्द्र६. सच्चेव विही (ता); जी० ३१९१०-११३ 1 सिद्धान्त-कोश, भाग ३, पृष्ठ ५०३)। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्या चउम्बिहपडिवत्ती ४४१ भाए चउसु विदिसासु चत्तारि रतिकरपव्वता' पण्णत्ता, तं जहा-उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरपब्बते, दाहिणपुरस्थिमिल्ले रतिकरपवते, दाहिणपच्चथिमिल्ले रतिकरपठवते, उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरपब्वते । ते णं रतिकरपव्वता 'दस जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एग जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, [दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाइं उव्वेहेणं ?] सव्वत्थ समा झल्लरिसंठाणसंठिया दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, एक्कत्तीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।। १६. तत्थ' णं जेसे उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरपवते, तस्स णं चउद्दिसि ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा णंदुत्तरा गंदा उत्तरकुरा देवकुरा । कण्हाए कण्हराईए रामाए रामरक्खियाए । २०. तत्थ णं जेसे दाहिणपुरथिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्कस्स देविंदस्स देवरणो चउण्हमग्गम हिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा सुमणा सोमणसा अच्चिमाली मणोरमा । पउमाए सिवाए सचीए अंजूए । १. रतिकरगपवता (ता, ठाणे ४१३४४) सर्वत्र । एस्थ णं सक्कस्स दे ३ च उण्ठं अग्गमहिसीणं २. ताडपत्रीयादर्श चिन्हाडितपाठस्थाने केवलं चत्तारि रायहाणीओ पंतं चंदप्पभा सुरप्पभा 'पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं' पाठोस्ति । सुंकप्पभा सुलसप्पभा। पयुमाए सिवाए सईए चिह्नाङ्कितः पाठो मलयगिरिवृत्त्यनुसारी अंजुए। तत्थ णं जेसे दाहिणपच्चस्थिमिल्ले वर्तते । एतौ द्वावपि पाठौ वाचनानन्तरगतो रतिकरगपन्वते, तस्स णं चतु एत्थ णं सक्कस्स विद्येते अथवा केनापि कारणेन विपर्यस्तो देव चउपहं अग्गमहि चत्तारि रायहाणीओ पं सजाती। कोष्ठकवर्तिपाठः स्थानाङ्गानुसारी तं णिम्मला पंवेवण्णा कलहंसा धतरद्रा। वर्तते, स एवात्र युक्तोस्ति। दशमे स्थानेपि अमलाए अच्छराए नवमियाए रोहिणीए । तत्थ अस्य संवादी पाठो दृश्यते--दस जोयणसह- णं जेसे उत्तरपच्च रति तस्स णं चउद्दिसि स्साई उड्ढ़ उच्चत्तेणं, दस गाउयसयाई उव्वे- एत्थ णं ईसाणस्स दे ३ चउण्हं असाम४ रायहेणं (१०१४३)। दिगम्बरग्रन्थेष्वपि उच्च- हाणीओ पं तं अट्ठा सिद्धत्था य सव्वभूता ताया उद्वेधस्य च एतदेव प्रमाणं लभ्यते णिरामणी। कण्हाए कण्हराईए रामाए रामर(जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ३, पृष्ट ५०३) । क्खिताए । तत्थ णं जेसे उत्तरपुर र तस्स णं ३. ११६-१२२ सूत्राणां पाठो वृत्त्याधारण चउद्दिसि एत्थ णं ईसा चउण्डं अगम चत्तारि स्वीकृतः । स्थानाक्षेपि (४१३४५-३४८) अस्य रायहाणीओ पंतं वरदा वरदत्ता य गोत्थभा संवादी पाठो लभ्यते । ताडपत्रीयादशेत्र भिन्ना य सुदंसणा । वसूए वसुमित्ताए वसुंधराए । वाचना दृश्यते--तत्थ गं जेसे दाहिणिल्ले ४. समणा (ठाणं ४१३४६) । पुरथिमिल्ले रतिकरगपब्वते, तस्स णं चउहिसि Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे २१. तत्थ णं जैसे दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसि सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमगमहिसीणं जंबुद्दीवप्यमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -- ४४२ भूता भूतवडेंसा गोथूभा सुदंसणा । अमलाए अच्छराए णवमियाए रोहिणीए । २२. तत्थ णं जेसे उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो च उण्हमगमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहा --- रयणा रतणुच्चया सव्वरतणा रतणसंचया । वसू वसुगुत्ता' वसुमित्ताए वसुंधराए ॥ २३. केलास - हरिवाहणा यत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमद्वितीया परिवति । सेट्ठेणं 'जाव' णिच्चे" || २४. जोतिस संखेज्ज" || iferसरोदसमुद्दाधिगारो २५. मंदिस्सरवर दीवं मंदिस्सरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ । जच्चेव खोदोदसमुहस्स वत्तव्वता' सच्चेव इहं पि अट्टसाहिया । सुमण - सोमणसा यत्थ दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति । २६. चंदादि संखेज्जा | अरुणादिदोवसमुद्दाधिगारो २७. मंदिरसरोदणं' समुद्द अरुणे णामं दीवे वट्टे, खोदवरदीचं वत्तव्वता" अट्ठसहिता १. 'ता' व्रतौ एतत्पदमनुपलब्धमस्ति, मलयगिरिवृत्तौ 'वसुप्राप्ताया:' इति पदोल्लेखो मुद्रितवृत्तौ हस्तलिखितवृतित्रयेपि विद्यते किन्तु स्थानाङ्ग भगवत्योः सन्दर्भे ज्ञायते एतत्पदं समीचीनं नास्ति । अत्र 'वसुगुत्ताए' इति पदं युज्यते । द्रष्टव्यं ठाणं ४१३४८८१२६ २० १०१९६ ) । वृत्तिकृता यादृशः पाठो लब्धस्तादृश एव उल्लिखितः । २. कइलास (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. जौ० ३।३५० । ४. दिस्सरवरे दीवे २ ( ता ) 1 ५. जी० ३८५५ ६. १२५, ९२६ सूत्रयोः स्थाने आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति 'क, ख, ग, ट, त्रि' दिस्सरवरणं दीवं गंदीसरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव सव्वं तहेव अट्ठो जो खोदोदगस्स जाव सुमणसोमणसभद्दा यत्थ दो देवा महिड्ढीया जाव परिवर्तति सेसं तहेव जाव तारगं ! ७. सं० पा०-- वट्टे जाव चिट्ठति । ८. जी० ३८७७-८७६ । ६. मंदिस्सरवरोदं णं ( ता ) ; ९२७ - ६५४ सूत्राणां स्थाने अस्माभिः 'ता' प्रते वृत्तेश्वाधारेण पाठः स्वीकृतः । अन्यादर्शगताः पाठाः पाठान्तररूपेण गृहीताः सन्ति, ते सूत्राङ्कानुसारेण यथास्थानं परिलक्षितव्या:-- गंदीस रोदं समुद्दे अरुणे णामं मंदीसरोदं समुदं अरुणे णामं दीवे वट्टे वलयागार जाव संपरिक्खित्ता णं चिट्ठति । अरुणे Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउम्विहपडिवत्ती साइहं च, णव -- पव्वतगादी सव्ववइरामया । असोग-वीतसोगा यत्थ दो देवा || ९२८. अरुणष्णं दीवं अरुणोदे णामं समुद्दे वट्टे, खोदोदसरिसो' गमो सुभद्द-सुमणभद्दा यत्थ दो देवा | २६. अरुणोदण्णं * समुद्दे अरुणवरे णामं दीवे वट्टे, सोच्चेव गमों, णवरंअरुणवरभद्द-अरुणवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा || ३०. अरुणवरणं' दीव अरुणवरोदे णामं समुद्दे वट्टे जाव चिट्ठति । तधेव", णवरं -- अरुणवर-अरुण महावरा यत्थ दो देवा ॥ ३१. अरुणवरोदणं' समुदं अरुणवरोभासे णामं दीवे वट्टे जाव चिट्ठति । खोददीवगम', गवरं - अरुणवरोभासभद्द - अरुणवरोभास महाभद्दा यत्थ दो देवा || ε३२. अरुणवरोभासण्णं" दीवं अरुणवरोभासे णामं समुद्दे वट्टे, सच्चेव खोदोदसमुद्दवत्तवता", णवरं - अरुणवरोभासवर - अरुणवरीभासमहावरा यत्थ दो देवा ॥ ३३. कुंडले " दीवे कुंडले समुद्दे", कुंडलवरे दीवे कुंडलवरे समुद्दे, कुंडलवरोभासे दीवे णं भंते ! दीवे किं समचक्कवालसंठिते विसमचक्कवालसंठिए ? गोयमा ! समचक्कवालसंठिते नो विसमचक्कवालसंठिते, केवतिथं चक्कवालसंठिते ? संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई चक्कवालविवखंभेणं संखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पउमवरवणसंडदारा दारंतराय तहेच संखेज्जाई जोयणसतसहस्साई दारंतरं जाव अट्टो, बावीओ खोतोदगपडिहत्थाओ उत्पातपव्ययका सव्ववइरामया अच्छा, असोग वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया जाव परिवति से तेण० जाव संखेज्जं सव्वं ! ४४३ १०. जी० ३।८७४-८७६ । १. वृत्तौ 'नवरमत्र वाप्यादयः क्षीरो (क्षोदो) दक परिपूर्णाः' इति उल्लिखितमस्ति, किन्तु एतत् पूर्व प्रतिपादितमेव द्रष्टव्यं जी० ३३८७५ | २. अरुणपण दीव अरुणोदे णामं समुद्दे तस्स वि तहेव परिक्खेवो अट्ठो खोतोदगे गवरि सुभद्द सुमणभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया सेसं तहेव । ३. जी० ३१८७७-८७६ । ४. अरुणोदनं समुद्द अरुणवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाण तव संखेज्जगं सव्वं जाव अट्ठो खोयोदगपडिहत्थाओं उप्पायपव्वतया सव्ववइरामया अच्छा, अरुणवरभद्द अरुणवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिढीया । ५. जी० ३३८७४-८७६ १ ६. एवं अरुणवरोदेवि समुद्दे जाव देवा अरुणवरअरुणमहावरा य एत्थ दो देवा सेसं तहेव || ७. जी० ३१८७७-८७६ ८. अरुणवरोदण्णं समुद्द अरुणवरावभासे णामं दीवे वट्टे जाव देवा अरुणवरावभासभद्दारुणवरावभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा महिढीया । ६. जी० ३१८७४-८७६ । १०. एवं अरुणवरावभासे समुद्दे जवरि देवा अरुणवरावभासवरारुणवरावभासमहावरा एत्थ दो देवा महिढीया । ११. जी० ३६७७-८७६ । १२. कुंडले दीवे कुंडलभद्दकुंडलमहाभद्दा ( कुंड कुंडलभद्दा - क) दो देवा महिड्ढीया । कुंडलोटे समुद्दे चक्खुसुभचवखुकंता एत्थ दो देवा म० । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरभद्दकुंडलवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिढीया, कुंडलवरोदे समुद्दे कुंडलवर महाकुंडलवरा एत्थ दो देवा म० | कुंडलवरावभासे दीवे कुंडलवरावभासभद्दकुंडलवरावभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे कुंडलवरोभासे समुद्दे, एताई नामाई । देवा - कुंडले दीवे 'कुंडलभद्द - कुंडल महाभद्दा" यत्थ दो देवा । कुंडले समुद्दे चक्खुसुभचक्खुकता यत्थ दो देवा । कुंडलवरे दीवे कुंडलवरभद्दकुंडलवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा । कुंडलवरे समुद्दे कुंडलवर - कुंडल महावरा यत्थ दो देवा । कुंडलवरोभासे दीवे कुंडलवरोभासभद्द- कुंडलवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । कुंडलवरोभासे समुद्दे कुंडलवरोभासवर - कुंडल व रोभासमहावरा यत्थ दो देवा ।। ३४. एवं रुपए दीवे रुयए समुद्दे, रुयगवरे दीवे रुयगवरे समुद्दे, रुयगवरोभासे' दीवे रुयrवरोभासे समुद्दे, ताओ चैव वत्तव्वताओ', गवरं - रुयए दीवे सव्वट्ट-मणोरमा यत्थ दो देवा । रुपए समुद्दे सुमण- सोमणसा यत्थ दो देवा । रुयगवरे दीवे रुयगवरभद्दरुयगवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा । रुयगवरे समुद्दे रुयगवर - रुयगवरमहावरा यत्थ दो देवा । रुयगवरोभासे दीवे रुयगवरोभासभद्द-रुयगवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । रुयगवरोभासे समुद्दे रुयगवरोभासवर रुयगव रोभासमहावरा यत्थ दो देवा ॥ ३५. हारे दीवे हारे समुद्दे, हारवरे दीवे हारवरे समुद्दे, हारवरोभासे दीवे हारवरो ४४४ कुंडलवरोभासोदे समुद्दे कुंडलवरोभासवर कुंडलवरोभासमहावरा एत्थ दो देवा म० जाव पलिओ मद्वितीया परिवसंति । १३. एवं कुण्डलो द्वीपः कुण्डलः समुद्रश्च त्रिप्रत्यवतारो वक्तव्यः (मवृ) । चक्कवाल १. कुंडल - कुंडलभद्दा (ता) | २. कुंडलवरोभासं णं समुदं रुचगे णामं दीवे वट्टे वलया जाव चिट्ठति, किं समचक्क विसमचक्कवाल ? गोयमा ! समचक्कवाल तो विसमचक्क वालसंठिते, केवतियं चक्कवाल पण्णत्ते ? सव्वट्ट मणोरमा एत्थ दो देवा सेसं तहेव । रुयगोदे नामं समुद्दे जहा खोतोदे समुद्दे संखेज्जाई जोयण सतसहस्साई संखेज्जाई जोयणसतसहस्साइं परिवखेवेणं दारा दारंतरपि संखेज्जाई जोतिसंपि सव्वं संखेज्जं भाणियव्वं अट्ठोवि जहेव खोदोदस्स नवरि सुमणसोमणसा एत्थ दो देवा महिढीया तव रुगाओ माढत्तं असंखेज्जं विवखंभा परिक्लेवो दारा दारंतरं च जोइस च सव्वं असंखेज्जं भाणियव्वं । रुयगोदण्णं समुद्द रुगवरं णं दीवे वट्टे रुयगवरभद्दयगवर महाभद्दा एत्थ दो देवा रुपगवरोदे रुयगवररुयगवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । रुयगवरावभासे दीवे रुयगवरावभासभरुययवराव भास महाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । रुगवरावभासे समुद्दे रुयगवरावभासवररुयगवरावभास महावरा एत्थ । ३. रुयगवरी भासवरे (ता) | ४. रुयगवरोभासवरे (ता) 1 ५. जी० ३८७४-८७६ ६. अस्यानन्तरं वृत्तिकृता एका टिप्पणी कृतास्ति --- एतावता ग्रन्थेन यदन्यत्र पठ्यतेजंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोय पुक्खरे वरुणे । खीरघयखोयनंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे || १॥ इति तद्भावितम् । अत ऊ वं तु यानि लोके शङ्खध्वज कलशश्रीवत्सादीनि शुभानि नामानि तन्नामानो द्वीपसमुद्राः प्रत्येतव्याः, सर्वेपि च त्रिप्रत्यवताराः, अपान्तराले च भुजगवरः कुशवर: कौञ्चवर इति । द्रष्टव्यं प्रस्तुतागमस्य ३१७७५ सूत्रं तथा अनुयोगद्वारस्य १८५ सूत्रम् । ७. ६३५-६३७ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु एवं पाठो विद्यते - हारद्दीवे हारभद्दहारमहाभद्दा एत्थ । हारसमुद्दे हारवरहारवरमहावरा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । हारवरे दीवे हारवरभहारवरमहाभद्दा एत्थ दो देवा महिड्दीया । हारवरोए समुद्दे हारवरहारवर Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती ४४५ भासे समुद्दे, ताओ च्चेव वत्तव्वताओ, गवरं-हारे दीवे हारभद्द-हारमहाभद्दा यस्थ दो देवा। हारे समुद्दे हारवर-हारमहावरा यत्थ दो देवा । हारवरे दीवे हारवरभद्द-हारवरमहाभद्दा यत्थ दो देवा । हारवरे समुद्दे हारवर-हारवरमहावरा यत्थ दो देवा । हारवरोभासे दीवे हारवरोभासभद्द-हारवरोभासमहाभद्दा यत्थ दो देवा । हारवरोभासे समुद्दे हारवरोभासवरहारवरोभासमहावरा यत्थ दो देवा ।। ____६३६. एवं सेसाभरणाणवि' तिपडोयारो भेदो भाणियव्वो जाव कणगरयणमुत्तावली॥ ६३७. एवं वत्थादीणं सव्वेसिं तिपडोयारं। वत्थं--आयिणादि, गंधा-कोद्वादि, उप्पलादीणि वि तिपडोयारं, तिलगादीण वि रुक्खाणं, पुढवादीगं छत्तीसाए पदाणं तिपडोयारं, णिधीणं वि तिपडोयारं, चोद्दसण्हं रयणाणं तिपडोयारं चुल्ल हिमवंतादीणं वासधरपव्वताणं, पउमादीणं' सोलसण्हं दहाणं, गंगासिंधुआदीणं महाणदीणं अंतरणदीण य. कच्छादीण वि वत्तीसण्हं विजयाणं, मालवंतादीणं चउण्हं वक्खारपव्वयाणं, सोहम्मादीणं दुवालसहं कप्पाणं, सक्कादीगं दसण्हं इंदाणं, 'देवकुर-उत्तरकुराणं, मंदरस्स, आवासाणं", चुल्ल हिमवंतादीणं वारसण्हं कूडाणं, कत्तियादीणं अट्ठावीसण्हं णक्खत्ताणं, चंदसुराणं, सव्वेसिं तिपडोयारं जाव सूरद्दीवे ॥ ९३८. 'सूरवरोभासण्णं' समुद्दे" देवे गाम दीवे वट्टे जाव चिट्ठति । तधेव णवरंमहावरा एत्थ । हारवराभासे दीवे हारवराव- आदर्शषु एवं पाठो विद्यते—देवदीवे दीवे दो भासभद्दहारवरावभासमहाभद्दा एत्थ । हार- देवा महिड्ढीया देवभड्देवमहाभद्दा एत्थ वरावभासोए समुद्दे हारवरावभासवरहार- देवोदे समुद्दे देववरदेवमहावरा एत्थ जाव वरावभासमहावरा एत्थ । एवं सव्वेवि तिपडो- सयंभूरमणे दीवे सयंभुरमणभद्दसयंभूरमणमहायारा तव्वा जाव सूरवरोभासोए समुद्दे, भद्दा एत्थ दो देवा महिड्ढीया । सयंभुरमणण्णं दीवेसु भहनामा वरनामा होति उदहीसु, जाव दीवं सयंभुरमणोदे नामं समुद्दे वट्टे वलया पच्छिमभावं च खोतवरादीसु सयंभूरमणपज्ज जाव असंखेज्जाई जोयणसतसहस्साई परिवखेतेसु वावीओ खोओदगपडिहत्थाओ पव्वयका य वेणं जाव अट्ठो, गोयमा ! सयंभुरभणोदए सव्ववइरामया। उदए अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे १. णाणिवि (ता)। पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते, सयंभुरमणवरसयं२. कणगणितजालग (ता) । भुरमणमहावरा इत्थ दो देवा महिढीया. सेसं ३. पयुमादीणं (तः)। तहेव जाव असंखेज्जाओ तारामणकोडिकोडीओ ४. देवकुरउत्तरकुरमंदिरेस गेरइयादीसु क आवा सोभेस वा ३ । सेसु (ता); वृत्तौ ‘णेरइयादीसु' इति पाठो ६. सूरणं दीवं (ता)। नास्ति व्याख्यातः । अनुयोगद्वारेऽपि ७. जी० ३।८४६-८५१; ६५२। मलयगिरिणा (१८१४) 'कुरु-मंदर आवासा' इति पाठो वृत्तौ देवे गं भंते ! दीवे' इति सूत्रमुल्लिखितं विद्यते । अस्मिन्नपि रइय' पदस्य सङ्ग्रहो ततश्चैका टिप्पणी कृता-इदं तु सूत्रं बहुषु नास्ति, तेनास्माभिर्मले न स्वीकृतः। पुस्तकेषु न दृश्यते केषुचित् 'तहेव' इत्यतिदेश ५.६३५-६५२ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' इति लिखितम्। Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ६३६. कहि णं भंते ! देवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! देवदीवपुरथिमपेरते देवसमुद्दपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, पमाणं वण्णओ य भाणियव्वो जाव' विहरति ।। ९४०. कहि णं भंते ! विजयस्स देवस्स विजया णामं रायहाणी पण्णत्ता ? गोयमा ! विजयस्स दारस्स पच्चत्थिमेणं देवदीयं तिरियमसंखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया णामं रायहाणी पण्णत्ता जाव' एमहाणुभागे विजए देवे, विजए देवे।। ६४१. एवं वेजयंत-जयंत-अपराइतादी, अट्ठो॥ ९४२. जोतिसं सव्वं जहा' रुयगदीवस्स गवरं-देवभद्द-देवमहाभद्दा यत्थ दो देवा ।। ६.४३. देवण्णं दीवं देवोदे णामं समुद्दे वट्टे जाव चिट्ठति जाव'--- ९४४. कहि गं भंते ! देवोदस्स समुदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! देवसमुद्दपुरस्थिमपेरंते णागदीवपुरस्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं देवोदस्स समुद्दस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते जाव विहरति । रायहाणी विजयदारस्स पच्चत्थिमेणं देवसमुदं तिरियमसंखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं जाव एम्महिड्ढीए विजए देवे ।। ६४५. जहा देवदीवे तहा णागदीवे, जहा देवसमुद्दे तहा णागसमुद्दे ।। ६४६. एवं [जाव" ? ] सयंभुरमणसमुद्दे णवर--सयंभुरमणस्स उदए जहा पुक्खरोदस्स । सयंभुरमणे पदेसा ण भण्णंति, जीवाणं उववातो ण भण्णति ।। ६४७. देवे' णागे 'जक्खे भूते" सयंभुरमणे एक्केक्के च्चेव भाणितव्वे तिपडोगारं ८. वृत्तिकृता 'देवद्वीपस्य द्वारसङ्ख्यासम्बन्धिसूत्र- समुद्रा वक्तव्याः नवरं- यक्षे द्वीपे यक्षभद्रयक्षमपि व्याख्यातम् । महाभद्री देवी, यक्षे समुद्रे यक्षवरयक्षमहावरो, १. जी० ३।३००-३५० । भूते द्वीपे भूतभद्रभूतमहाभद्री, भूते समुद्रे भूत२. जी. ३१३५१-५६५ । बरमहाभूतवरौ । ततश्च स्वयम्भूरमणस्य ३. द्रष्टव्यं जी. ३१६५२ । व्याख्यानं विद्यते-स्वयम्भूरमणे द्वीपे स्वयम्भू४. जी० ३१८४६-८५१९५२ । रमण भद्र स्वयम्भूरमणमहाभद्री स्वयम्भूरमणे ५. वृत्तौ विजयद्वारवक्तव्यतानन्तरं एवं व्याख्यात- समुद्रे स्वयम्भूवर-स्वयंभूमहावरी। मस्ति-~~-एवं वैजयन्तजयन्तापराजितद्वारवक्त- ८. सतंभु (ता)। ना नालाय . मलयगिरिणा 'देवे नागे' इत्यादि तथा चाह देववरदेवमहावरौ देवी, शेषं तथैव यथा देवो इत्युल्लेखपूर्वकं उद्धृतं मूलटीका-णिव्याख्यानद्वीपः । किन्तु ताडपत्रीयादर्श अस्या व्याख्यायाः मपि समुद्धृतम्---तथा चाह 'देवे नागे जक्खे भूए पाठो नैव दृश्यते । य सयंभूरमणे अ एक्केके भाणियव्वो।' मूल६ नबरं---नागे द्वीपे नागभद्रनागमहाभद्री, यथा टीकाकारोप्याह--'देवादयोन्त्या एकाकारा'। देवः समुद्रः तथा नागः समुद्रः, नवरं-नाग इति, चर्णिकारोप्याह- देवे नागे जक्खे भूए समुद्रे नागवरनागमहावरी (मवृ)। य सयंभूरमणे एतेन्तिमाः पञ्च एकैकाः प्रति पत्तव्याः । ७. वृत्ती अतः पूर्व यक्ष-भूतसंज्ञक द्वीपद्वयं समुद्र- १०. णाते (ता)। द्वयं च व्याख्यातमस्ति--एवं यक्षादयोपि द्वीप- ११. भूते जक्खे (ता)। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती णस्थि ॥ ___६४८. गंदिस्सरादीणं सयंभुरमणपज्जवसाणाणं' अट्ट[चिताए?'] बावीओ खोतोदगपडिहत्थाओ उप्पातपव्वतगादी सव्ववइरामया ॥ ___१४६. ‘णंदिस्सरादीणं भूतपज्जवसाणाणं समुदाणं अट्ठ [चिंताए ?'] खोदसरिसं उदगं" सयंभुरमणसमुदस्स पुक्खरोदसरिसं ।। ६५०. अरुणादीया [दीव? ]समुद्दा तिपडोयारा जाव सूरा, सेसा पंच एगभेया--देवे दीवे देवे समुद्दे, नागे दीवे नागे समुद्दे, जखे दीवे जक्खे समुद्दे, भूते दीवे भूते समुद्दे, सयंभुरमणे दीवे सयंभुरमणे समुद्दे ।। ५१. देवे दीवे देवभद्द-देवमहाभद्दा देवा, देवे समुद्दे देववर-देवमहावरा देवा ! एवं जाव' सयंभुरमणे समुद्दे सयंभुवर-सयंभुमहावरा देवा ।। ६५२. रुयगादीणं दीवसमुद्दाणं विक्खंभ-परिक्खेव-दारंतरजोतिसं च असंखेज्ज ।। दीवसमुद्दपरिमाणाधिगारो ९५३. केवतिया णं भंते ! जंबुद्दीवा दीवा पण्णता ? गोयमा ! असंखेज्जा जंबुद्दीवा दीवा पण्णत्ता। एवं जाव चंदसरा असंखेज्जा। ५४. केवतिया णं भंते ! देवा दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे देवदीवे पण्णत्ते । दस वि एगागारा पण्णत्ता ।। लवणादिसमुद्द-उदयरसाधिगारो ६५५. 'लवणस्सणं भंते ! समुदस्स उदए" केरिसए आसादेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! खारे कडुए" जाव" णण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं ।। १. सयंभुरमणं जाव अवसाणाणं (ता)। एगे देवे दीवे पण्णत्ते एगे देवोदे समुद्दे २. अन्वर्थचिन्तायाम् (मवृ)। पण्णत्ते, एवं णागे जक्खे भूते जाव एगे सयं३. अन्वर्थचिन्तायाम् (मवृ) । भूरमणे दीवे एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेज्जेणं ४. खोदोदगादीणं सयंभरमणावसाणाणं समुदाणं पण्णत्ते। अट्टि खोतोदसरिसं उदगं (ता)। ८. कति (मवृ)। ५. गाते (ता)। ९. ६५५-९६२ सूत्राणां स्थाने यथावकाशं 'क,ख, ६. द्रष्टव्यं ६४६ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । ग, ट, त्रि' गताः पाठभेदा: परिभावनीयाः, ७. ६५३,९५४ सूत्रयो: स्थाने क, ख, ग,ट, त्रि' यथा-लवणस्स णं भंते ! समुहस्स उदए आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति-केवइया णं भंते ! केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवा दीवा णामधेज्जेहिं पण्णता? लवणस्य उदए आइले रइले लिदे लवणे कड़ए गोयमा! असंखेज्जा जंबुद्दीवा २ नामधेज्जेहि अपेज्जे बहूणं दुपयचउप्पयमिगपसुपक्खिसरिसपष्णता, केवतिया णं भंते ! लवणसमुद्दा २ वाणं, णण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं । पण्णता ? गोयमा ! असंखेज्जा लवणसमुद्दा १०. लवणे णं भते ! (ता) । नामधेज्जेहि पण्णत्ता, एवं धायतिसंडावि, एवं ११. खडुए (ता)। जाव असंखेज्जा सूरदीवा नामधेज्जेहि य। १२. जी० ३।७२१ । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ जीवाजीवाभिगमे ६५६. कालोयस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! आसले मासले जाव' पगतीए उदगरसे गं पण्णत्ते ॥ ५७. पुक्खरोदस्स णं पुच्छा। गोयमा ! पुक्खरोदस्स उदए अच्छे पत्थे जाव' पगतीए उदगरसे णं पण्णत्ते ॥ ५८. वरुणोदस्स' णं भंते ! समुदस्स केरिसए अस्सादे णं पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहानामए चंदप्पभाति वा जहा हट्ठा ।। ५६. खीरोदस्स' णं पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए रण्णो चाउरतचक्कवट्टिस्स चाउरक्के गोक्खीरे जाव एतो इट्टतराए । ६६०. घयोदस्स' णं पुच्छा। गोयमा ! जहाणामते सारइयस्स गोघयवरस्स मंडे जाव" एत्तो मणामतराए चेव आसादे णं पण्णत्ते ॥ ६१. खोतोदस्स" णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए आसाए णं पण्णत्ते ? गोयमा ! से जहानामए उच्छूणं जाव" एत्तो इट्टतराए ।। १. कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स उदए केरिसए ७ खीरोदस्स णं भंते ! उदए केरिसए अस्साएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! पेसले आसले अस्साएणं पण्णते ? गोयमा ! से जहाणामएमासले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए रत्नो चाउरंतचक्रवट्टिस्स चाउरक्के गोखीरे उदगरसेणं पण्णते। पयत्तमंदग्गिसूकढिते आउत्तखंडमच्छंडितोववेते २. जी. ३१८१६ । वण्णेणं उववेते जाव फासेण उववेए, भवे ३. पुक्खरोदगस्स णं भंते ! समुदस्स उदए एयारूवे सिया? णो तिणछे समझें, गोयमा ! केरिसए अस्साएणं पण्णते ? गोयमा! अच्छे खीरोयरस एत्तो इट्ट जाव अस्साएणं पण्णत्ते । जच्चे तणुए फालियवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं ८. जी० ३१८६६ । पण्णते। ६. घतोदस्स णं से जहाणामए सारतिकस्स ४. जी० ३१८५४॥ गोघयवरस्स मंडे सल्लइकपिणयारपुप्फवण्णाभे ५. वरुणोदस्स णं भंते ! गोयमा! से जहाणामए-- सुकढित उदारसज्झवीसंदिते वण्णेणं उववेते पत्तासवेति वा चोयासवेति वा खज्जूरसारेति जाव फासेण य उववेए भवे एयारूवे सिया? वा मुद्दियासारेति वा सुपक्कखोतरसेति वा जो तिणठे समठे, इत्तो इट्टयरो। मेरएति वा काविसायणेति वा चंदप्पभाति वा १०. जी. ३८७२। मणसिलाति (मणिसलागाति–क, ख, ट) ११. खोदोदस्स से जहाणामए उच्छृण जच्चपुंडकाण वा वरसीधूति वा पक्रवारुणीति वा हरियालपिंडराणं भेडाच्छण वा कालपोराणं अपिट्टपरिणिट्टिताति वा जंबूफलकालिया तिभागनिवाडियवाडगाणं बलवगणरजतपरिवरप्पसण्णा उक्कोसमद्दप्पत्ता ईसिउढावलंबिणी गालियमित्ताणं जे य रसे होज्जा वत्थपरिपूए ईसितंबच्छिकरणी ईसिवोच्छेयकरणी आसला चाउज्जातगसुवासिते अहियपत्थे लहुए वणेणं मासला पेसला वष्णेणं उववेता जाव णो उववेए जाव भवेयारूवे सिया? नो तिणटठे तिणठे समठे, वारुणोदए इत्तो इट्टतरए चेव समठे एत्तो इट्टयरा। जाव अस्साएणं प०। १२. जी० ३१८७८ । ६. जी० ३१८६०। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउठिवहपडिवत्ती ४४६ ६६२. जहा' खोतो तहा सेसा वि । सयंभुरमणस्स जहा पुक्खरोदस्स ॥ ६६३. कति णं भंते ! समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा-लवणे वरुणोदे खीरोदे धयोदे ॥ ६४. कति गं भंते ! समुद्दा पगतीए उदगरसा पण्णता ? गोयमा ! तओ समुद्दा पगतीए उदगरसा पण्णत्ता, तं जहा-कालोए' पुक्खरोदे सयंभुरमणे । अवसेसा समुद्दा उस्सण्णं खोतरसा पण्णत्ता ।। समुद्देसु जीवाधिगारो ६६५. कति' णं भंते ! समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा-लवणे कालोए' सयंभुरमणे । अवसेसा समुद्दा अप्पमच्छकच्छभाइण्णा । ‘णो च्चेव ण णिम्मच्छकच्छभा" पण्णत्ता समणाउसों ! 11 ६६६. लवणे णं भंते ! समुद्दे कति मच्छजातिकुलकोडिजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णता ? गोयमा ! सत्त मच्छजातिकुल कोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता॥ ६६७. कालोए णं नव ॥ ६६८. सयंभुरमणे पुच्छा अद्धतेरस मच्छजातिकुलकोडीजोणीपमुहसतसहस्सा पण्णत्ता।। ६६६. लवणे णं भते! समुद्दे मच्छाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं पंच जोयणसयाई ॥ ९७०. कालोए णं सत्त जोयणसताई।। ९७१. सयंभूरमणे जोयणसहस्सं॥ दीवसमुहाणं नामधेज्जादि अधिगारो ६७२. केवतिया णं भंते ! दीवस मुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावतिया लोगे सुभा गामा सुभा वण्णा सुभा गंधा सुभा रसा सुभा फासा एवतिया दीवसमुद्दा नामधेज्जेहिं पण्णत्ता॥ ९७३. केवतिया णं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता ? गोयमा! जावतिया अड्ढाइज्जाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया एवतिया दीवसमुद्दा उद्धारेणं पण्णता ॥ ६७४. दीवसमुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा आउपरिणामा जीवपरिणामा पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढविपरिणामावि आउपरिणामावि जीवपरिणामावि पोग्गल१. एवं सेसगाणवि समूहाणं भेदो जाव ६. अवसेसाणं (ता) । सयंभुरमणस्स, णवरि अच्छे जच्चे पत्थे जहा . x (क,ख,ग,ट,त्रि) ; कच्छभाइण्णा (ता)। पुक्खरोदस्स । ८. x (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. कालोयणे (ता)। ६. जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जति उक्कोसेणं दस ३. पण्णत्ता समणाउसो (क, ख, ग, ट, त्रि) जोयणसताई (क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. एतत् सूत्र 'ता' प्रतौ ६७१ सूत्रस्य अनन्तरं १०. उद्धारसमएणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। विद्यते। ११. उद्धारसमएणं (क, ख, ग, ८, त्रि)। ५. कावोयणे (ता)। Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० परिणामावि || ७५. दीवसमुद्देसु णं भंते ! सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता' उबवण्णपुब्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुत्तो ॥ इंदियविसयाधिगारो ७६. कतिविहे भंते! इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियसिए पोग्गल परिणामे पण्णत्ते, तं जहा -सोतिदियविसए जाव फासिंदियविसए || ७७. सोति दिवस णं भंते ! पोग्गलपरिणामे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य || ६७८. चक्खिदिपुच्छा' । गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- सुरूवपरिणामे य दुरूवपरिणामे य ।। ७६. घाणिदयपुच्छा । गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुब्भिगंधपरिणामे य गंधपरिणामे ॥ ८०. रसपरिणामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सुरसपरिणामे य दुरसपरिणामे य ॥ ८१. फासपरिणामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य ॥ ε८२. से नूणं भंते ! 'उच्चावसु सद्दपरिणामेसु" उच्चावएतु रूवपरिणामेसु एवं गंधपरिणामेसु रसपरिणामेसु फासपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया ? हंता गोयमा ! 'उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु " परिणममाणा पोग्गला परिणमंतित्ति वत्तव्वं सिया || जीवाजीवाभिगमे ६८ ३. से गूणं भंते ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति दुब्भिसद्दा पोग्गला सुभिसत्ता परिणमति ? हंता गोयमा ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुभिद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमति ॥ ८४. से णू भंते! सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति ? दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! || ८५. एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमति ? दुब्भिगंधा पोग्गला सुभिगंधत्ताए परिणमति ? हंता गोयमा ! || ६८६. एवं सुरसा दूरसत्ताए ? हंता गोयमा ! ॥ १८७ एवं सुफासा दुफासत्ताए ? हंता गोयमा ! || १. सम्बत्ता पुढविका इयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । २. ६७८ ६८१ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठभेदोस्ति - एवं चक्खिदिविसयादिए हिवि सुरूवपरिणामे य दुरूपरिणामे य। एवं सुरभिगंधपरिणामे य दुरभिगंधपरिणामे य, एवं सुरसपरिणामे य दूरसरिणामे य । एवं सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य । ३. उच्चावएहि सद्दपरिणामेहि (ता) | ४. उच्चावहि सद्दपरिणामेहि (ता) । ५. ६८४-६८७ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति एवं रूवगंध रस फासे अप्पणी अभिलावेणं दो-दो आलावगा | वृत्तावपि इत्थमेव व्याख्यातमस्ति एवं रूपरसगन्धस्पर्शेष्वप्यात्मीयात्मीयाभिलापेन द्वौ द्वावालापको वक्तव्यौ । Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५१ तच्चा चम्विहडिवत्ती देवगति-पदं ६८८. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव' महाणुभागे पुव्वा मेव पोग्गलं खिवित्ता' पभू तमेव' अणुपरियट्टित्ताणं गिरिहत्तए ? हंता पभू ।। ६८६. से केणठेणं भंते ! एवं बच्चति---देवे णं महिड्ढीए जाव 'महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं" गिण्हित्तए ? गोयमा ! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्बामेव सिग्घगती भक्त्तिा तओ पच्छा मंदगती भवति, देवे णं' 'पुव्बंपि पच्छावि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव । से लेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति--- 'देवे णं महिड्ढीए जाव महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए । देवविगुन्वणा-पदं ___६६०. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता बालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू गढित्तए" ? णो इणठे समठे। ____६६१. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता वालं" छेत्ता भेत्ता पभू गढित्तए ? णो इणठे समठे ।। ६२. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू गढित्तए ? णो इणठे समझें ।। ६६३. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे वाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं ३ छेत्ता भेत्ता पभू गढित्तए ? हंता पभू । तं चेव णं गठि" छउमत्थे मणूसे" ण जाणति ण पासति, एसुहमं च णं गढेज्जा ।। ___६१४. देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे वाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्नए" वा ? णो इणठे समठे ।। ९६५. • देवे णं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे वाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता १. जी० ३१३५० । १३. पुव्वामेव बाल (क, ख, ग, ट, त्रि) । २. खक्तिा (त्रि)। १४. संधि (ख, ता, त्रि)। ३. तामेव (ता) । १५. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४.४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। १६. एवं सुहुमं (क, ख, ग): सुहुमं (ता); वृत्ती ५. णं महिड्ढोए जाव महाणु भागे (क, ख, ग, ट, ‘एवं खलु' इति व्याख्यातमस्ति, किन्तु एमहिड्ढीया' इति पाठवत् 'एसुहम' इति ६, पुचि वा पच्छा वा (ता)। पाठो युज्यते । ७. जाव एवं (क, ख, ग, ट, त्रि) i १७. हासी (क)। ८. बाहिरिए (क, ख) । १८. सं पा... एवं चत्तारिवि गमा, पदम बिइयभंगेसू ६. पुवामेव बालं (क,ख, ग, ट, त्रि)। अपरियाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, १०. गहित्तए (ग,त्रि) सर्वत्र । सेसं तहेव (क, ख, ग, ट, त्रि); तेच्चेव ११. पुवामेव बालं (क, ख, ग, ट, त्रि) । आलावता ह्व जाव हंता पभू (ता)। १२. पुन्वामेव बालं (क, ख, ग, ट, त्रि)। त्रि)! Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ जीवाजीवाभिगमे बालं छेत्ता भेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा हस्सीकरित्तए वा ? णो इणठे समठे। ६६६. देवे गं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वालं अच्छेत्ता अभेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्तए वा? णो इणठे समझें ।। ___६६७. देवे गं भंते ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे वाहिरए पोग्गले परियाइत्ता बालं छेत्ता भेत्ता पभू दीहीकरित्तए वा ह्रस्सीकरित्तए वा ? हंता पभू । तं चेव णं गंठि' छउमत्थे मणूसे ण जाणति ण पासति, एसुहुमं च णं दीहीकरेज्ज वा ह्रस्सीकरेज्ज वा ॥ जोइस-उद्देसओ ६६८. अत्थि णं भंते ! चंदिम-सूरियाणं हेट्ठिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? उपिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? हंता अत्थि ॥ से केपटठेणं भंते ! एवं वच्चति--अस्थि ण 'चंदिम-सरियाणं जाव उम्पिपि तारारूवा अणुपि तुल्ला वि" ? गोयमा ! जहा जहा णं तेसिं देवाणं तव-नियम-'बंभचेराई उस्सियाई" भवंति तहा तहा णं तेसि देवाणं एवं पण्णायति अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-अत्थि णं चंदिम-सूरियाणं जाव उप्पिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ।। * १०००. एगमेगस्स णं भंते ! चंदिम-सूरियस्स केवतिया णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो ? केवतिया महरगहा परिवारो पण्णत्तो? केवतिया तारागणकोडिकोडीओ परिवारो पण्णत्तो ? गोयमा ! एगमेगस्स णं चंदिम-सूरियस्स 'अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो पण्णत्तो, अट्ठासीति महग्गहा परिवारो पण्णत्तो", गाहा–छावटि सहस्साइं, णव य सताइं पंच सयराई। ___एगससीपरिवारो, तारागणकोडकोडीणं ॥१॥ १००१. जंबूदीवे गं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स* केवतियं अवाहाए जोतिसं चारं चरति ? गोयमा ! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति ।। १००२. लोगंताओ भंते ! केवतियं अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कारस १. संधि (क.ख) : 'तं च णं सिद्धि' मिति, तां हस्वीकरणसिद्धि दीर्धीकरणसिद्धि वा (मवृ)। २. हट्ठिपि (ग, ट, ता); हिट्ठपि (त्रि)। ३. उच्चारणा (ता)। ४, बंभचेरवासाई उवकडाई उस्सियाई (क, ग,) द. वि):बंभचेरवासाई उस्सियाई (ख); बंभचेराणुसिताणि (ता)। ५. कोडिकोडिसया (ता)। ६. वृत्तिकृता वाचनाभेदस्य सूचना कृतास्ति-- इह भूयान् पुस्तकेषु वाचनाभेदो गलितानि च सूत्राणि बहुषु पुस्तकेषु ततो यथावस्थितवाचना भेदप्रतिपत्यर्थ गलितसूत्रोद्धरणार्थ चैवं सुगमा- यपि विवियन्ते । ७. चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एका गाथा विद्यतेअट्टासीति च गहा अट्ठावीसं च होइ नक्खत्ता। एगससीपरिवारो एत्तो ताराण वोच्छामि ॥१॥ ५. अतः परं क, ख, ग, ट, पि' आदर्गेषु भिन्ना वाचना दृश्यते-पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ केवतिय अबाधाए जोतिसं चारं चरंति ? गोयमा! एकारसहि एक्कवीसेहि जोयणसएहिं अबाधाए जोतिसं चारं चरति, एवं दविखणिललाओ पच्चथिमिल्लाओ उत्तरिल्लाओ एक्का रसहि एककवीसेहिं जोयण जाव चारं चरति । ६. चारं वच्चति (ता)। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउबिहपडिवत्ती एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पण्णत्ते ।। १००३. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए वहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेद्विल्ले तारारूवे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए सूरविमाणे चारं चरति ? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? 'गोयमा ! सत्त णउते जोयणसते अवाहाए" हेदिल्ले तारारूवे चारं चरति, 'अट्ठ जोयणसताई" अवाहाए सूरविमाणे चारं चरति, 'अट्ठ असीते जोयणसते" अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, नव जोयणसयाई अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चार चरति । १००४. हेदिल्लाओ" णं भंते ! तारारूवाओ केवतियं अवाहाए सूरविमाणे चारं चरति ? केवइयं अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? गोयमा ! दसहिं जोयणेहि अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, णउतीए जोयणेहि अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति, दसुत्तरे जोयणसते अबाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चार चरति ।। १००५. सुरविमाणाओ णं भंते ! केवतियं अवाहाए चंदविमाणे चारं चरति ? केवतियं अवाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चारं चरति ? गोयमा ! असीए" जोयणेहिं अवाहाए चंदविमाणे चारं चरति, जोयणसए" अवाहाए उवरिल्ले" तारारूवे चारं चरति ।। १००६. चंदविमाणाओ णं भंते ! केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति ? गोयमा" ! वीसाए जोयणेहिं अवाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति एवामेव" सपुवावरेणं दसुत्तरजोयणसतबाहल्ले" तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसए 'जोतिसे चारं चरति" ॥ १००७. जंबूदीवे णं भंते ! दीवे कयरे णक्खत्ते सबभितरिल्ल चारं चरति ? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं" चारं चरति ? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरति ? १. चारं (ता) एतद्वयमपि अशुद्धं प्रतिभाति । १०. सव्वोपरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. सन्वहेट्ठिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ११. सव्व उवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. सव्वउवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि) । १२. गोयमा सूरविमाणाओ णं (क,ख, ग, ट, त्रि)। ४. गोयमा इमीसे णं रयणंप्पभाए पुदवीए १३. असीतीए (ता)। बहुसमरणि सहि णउएहि जोयणसतेहिं १४. एगंमि जोयणसते (ता)। अबाहाए जोतिस (क, ख, ग, ट, त्रि)। १५. सव्वोवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५. अहिं जोयणसतेहिं (क, ख, ग, ट, त्रि)! १६. गोयमा ! चंदविमाणाओ णं (क,ख,ग,ट,त्रि.)। ६. अट्टहि असीएहिं जोयणसतेहिं (क, ख, ग, ट, १७. वृत्ती अतः सूत्रपर्यवसानं पाठो नैव व्याख्यातः। त्रि)। १८. दसुत्तरसत जोयणबाहल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. सब्बहेट्ठिमिल्लाओ (क, ख, ग, ट, त्रि)! १६. पण्णत्ते (क, ख, ग, ट, त्रि)। ८. सब्व उवरिल्ले (क, ख, ग, ट, त्रि)। २०. सव्वम्भंतरयं (ता)। ६. गोयमा ! सव्वहेट्ठिल्लाओ णं (क, ख, ग, ट, २१. सव्वबाहिरियं (ता)। त्रि)। २२. सब्बुप्परियं (ता)। Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ जीवाजीवाभिगमे कयरे नक्खत्ते सव्वहेछिल्लं' चारं चरति ? गोयमा' ! अभिइनक्खत्ते' सवभितरिल्लं चारं चरति, मूले णक्खत्ते सव्ववाहिरिल्लं चारं चरति, साती णक्खत्ते सव्वोवरिल्लं चारं चरति, भरणीणक्खत्ते सव्वहेटिल्लं चारं चरति ।। १०१८, चंदविमाणे णं भंते ! सिंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! अद्धकविटुगसंठाणसंठिते सव्वफालियामए अब्भुगतमूसितपहसिते वणओ ।। १००६. 'एवं सूरविमाणेवि नक्खत्तविमाणेवि गहविमाणे वि ताराविमाणेवि"। १०१०. चंदविमाणे णं भंते ! केवतियं आयाम-विक्खं भेणं ? केवतियं परिक्खेवेणं ? केवतियं वाहल्लेणं पणते ? गोयमा ! छप्पन्ने एगसट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिवखेवेणं, अट्ठावीसं एगसट्टिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पण्णत्ते॥ १०११. 'सुरविमाणस्सवि सच्चेव" पुच्छा। गोयमा ! अडयालीसं एगसटिभागे" जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसद्विभागेर जोयणस्स वाहल्लेणं पण्णत्ते । १०१२. 'एवं गहविमाणेवि'' अद्धजोयणं आयाम-विक्खं भेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिवखवेणं, कोसं वाहल्लेणं पण्णत्ते ॥ १०१३. 'णक्खत्तविभाणे णं" कोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सबिसेसं परिक्खेवेणं, अद्धकोसं वाहल्लेणं पण्णत्ते ।। १०१४. 'ताराविमाणे णं अद्धकोसं आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिवखेवेणं, पंचधणुसयाई वाहल्लेणं पणते ।। १०१५. चंदविमाणपण भंते ! कति देवसहस्सा परिवहति ? गोयमा ! सोलस देव १. सव्वहेट्ठिमयं (ता)। ८,६. एगट्ठिभाए (ता)। २. गोयमा जंबूदीवे णं दीवे (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०. सूरविमाणे (ता)। ३. अभीइ (ग, त्रि)। ११,१२. एगट्ठिभाए (ता)। ४. सब्बभंतरं (ता)। १३. गहवि केवतियं आ पुच्छा गो (ता); वृत्ती ५. सन्दुपरिल्ल (क, ख, ट)। अतः त्रीण्यपि सूत्राणि पूर्णानि व्याख्यातानि ६. जी० ३।३०७ । सन्ति । ७. एवं पंचवि जाव ताराविमाणे (ता); अतोग्रे १४. णक्खत्तंपि पुच्छा गो (ता)। 'फ,ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु “रावं अविट्ठ- १५. तारापि पुच्छा गो (ता)। ठाणसठिता' एतावान् अतिरिक्तः पाठो विद्यते। १६. चंदविमाणे (ता); क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्नः पाठः उपलभ्यते--चंदविमाणे णं भंते ! कति देवसाहस्तीओ परिवहति? गीयमा ! चंदविमाणरस णं पुरच्चिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं (सप्पभाणं-~क,ग,ट) संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउटुवट्टपीयरसुसिलिट्ठविसिद्धतिक्खदादाविडंबितमुहाणं रत्तप्पलपत्तमउयसुमालतालुजीहाणं मधुगुलियपिंगलक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसयपसत्थसुहालक्खविच्छिण्णकेसरसडे सोभिताणं कमितललियपुलितधवलगवितगतीणं उस्सियसुणिम्भिमाजीअप्सडियनगलाणं बरामयणखाणं वदरामयदंताणं वयरामयदाढाणं (वयरामय Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहडिवत्ती ४५५ दाढाणं तवणिज्जखराणं--त्रि) तवणिज्जजीहाणं तवाणज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसूजोतिताणं कामगमाणं पीतिगमाण मणोगमाण मणोरमाणं मणोहराणे अमीयगतीणं अमियबलबीरियपूरिसकारपरक्कमाणं महता अप्फोडियसीहनाइयबोलकलयलरवेणं (गंभीरगुलगुलाइयरवेणं---ख; हयहसियकिलकिलाइयरवेणं---त्रि) महरेण मणहरेण य पूरेंता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरूवधारीणं देवाणं पुरच्छिमिल्लं बाहं परिवहति ।। चंदविमाणस्स ण दक्खिणण सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिषणगोखीरफेणरययगियरप्पभासाणं वइरामयकुंभजुयलमुद्वितपीदरवरबइरसोडवियदित्तसुरत्तपउमप्पकासाण अब्भुषणयमुहाणं (गुणाणं-त्रि) तवणिज्जविसालचंचलचलंतचवलकण्णविमलुज्जलाणं मधुवण्णभिसंतणिद्धपिंगलपत्तलतिवण्णमणिरयणलोयणाणं अभगतमउलमल्लियाणं धवलसरिसमंठितणिव्वणदढमसिण [कसिण -~जं० ४१७७१ फालियामयसुजायदंतमुसलोवमोभिताणं कंचणकोमीपविट्ठदंतम्गविमल मणिर यणरुइरपेरंतचित्तरूवगविरायिताणं तवणिज्जविसालतिलगपमुहरिमंडिताणं गाणामणिरयणगुलियगेवेज्जबद्धगलयवरभूसणाणं वेरुलियविचित्तदंडणिम्मलवइरामयतिवखल?अंकुसकुंभजुयलंत रोडियाणं तवणिज्जसुबद्धकच्छदप्पियबलुद्ध राणं जंबूणयविमल घणमंडल व इरामयलालाललियतालणाणामणि रयणघंटपासगरयतामयरज्जूबद्धलंबितघंटाजुयलमहुरस रमणहराणं अल्लीपमाणजुत्तवट्टियसुजातलवखणपसत्थरमणिज्जवालगत्तपरिणाणं ओयवियपडिपण्णम्मचलालहविक्कमाणं अंकामयणखाणं तवणिज्जतालूयाण तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोतियाणं कामकमाणं पीतिकमाणं मणोगमाणं मणोरमाण मणोहराणं अमियगतीणं अमियबलवीरियपरिसकारपरक्कामाण महया गंभीरगुल गूलाइयरवेण महरेण मणहरेणं पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ गयरूवधारीण देवाणं दक्खिणिल्लं बाहं परिवहति । __चंदविमाणस्स णं पच्चत्थिमेणं सेताणं सुभगाणं सुप्पभाणं कमियललियपुलित चलचवलककूदसालीणं सण्णयपासाणं संगयपासाशं सुजायपासाणं मियमाइतपीणर इतपासाण झसविहगसुजातकुच्छीण पसत्यणिद्धमधुगुलितभिसंतपिंगलक्खाण विसाल पीवरोरुपडिपुण्ण विपुलखधाण वट्टपडिपुण्णविपुलकवोलकलिताणं ईसि आणय (आयय---त्रि) वसणोवट्ठाणं घणणिचितसुबद्धलक्खणुण्णतचंकमितललितपुलियचक्कवाल चवलगवितगतीणं पीकरोरुट्टिय (वट्टियपीवर- क,ख,ट; पीवरवट्टिय-ग) सुसंठितकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपसत्थरमणिज्जवालगंडाण समखुरवालधाणाणं समलिहिततिक्खा (तिक्खग्गगुप्प..-.-ट) सिंगाणं तणुसुहुमसुजातणिद्धलोमच्छविधराणं उवचितमंसलविसालपडिपुण्णखंधपमुहपुंडराणं वेरुलियभिसंत कडक्खसुणिरिक्खणाणं जुत्तप्पमाणप्पधाणलक्ख णपसत्थरमणिज्जगम्गरगलसोभिताणं घग्घरगसुबद्धकण्ठपरिमंडियाणं नाणामणिकणगरयण वाटवेयच्छगसुकयरतियमालियाणं वरघंटागलगलियसोभंतसस्सिरीयाणं पउमुप्पलसगलसुरभिमालाविभूसिताणं वइरखुराणं विविधखाणं फालियामयदंताणं तवणिज्जजीहाण तवणिज्जतालुयाणं तणिज्जजोत्तगसुजोत्तियाणं कामकमाणं पीतिकमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमितगतीणं अमियबलवीरियपुरिसयारपरक्कमाणं महया गंभीरगज्जियरवेणं मधुरेणं मणहरेण य पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ वसभरूवधारीगं देवाणं पच्चथिमिल्लं बाहं परिवहति । चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं जच्चाणंतरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं घणणिचितसुबद्धलक्षण यताचंकमियललियपुलियचलचवलचंचलगतीणं लंघणवग्गणधावण Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ जीवाजीवाभिगमे सहस्सा परिवहंति, तं जहा-पुरथिमेणं दाहिणणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं । पुरथिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, दाहिणेणं' गयरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, पच्चत्थिमेणं वसभरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहंति, उत्तरेणं आसरूवधारीणं देवाणं चत्तारि देवसहस्सा परिवहति ।। १०१६. सूरस्सवि' एमेव ।। १०१७. गहविमाणे णं भंते ! कति देवसहस्सा परिवहंति ? गोयमा ! अट्ठ देवसहस्सा, रूवा चंदे तधेव, णवरं-दो दो ॥ १०१८. णक्खत्तविमाणं णं चत्तारि सहस्सा, दिसाए एक्केक्काए सहस्सा ।। १०१६. ताराविमाणं णं दो सहस्सा पुरथिमेणं पंच सया, दिसाए-दिसाए पंच-पंच सता ।। १०२०. एतेसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो धारणतिवइजइसिविखतगईणं सग्णतपासाणं संगतपासाणं सुजायपासाणं मितमायितपीणरइयपासाणं झसविहगसुजातकुच्छीणं पीणपीवरवट्टितसुसंठित कडीणं ओलंबपलबलक्खणपसत्थरमणिज्जवालगंडाणं तणुसुहमसुजायणिद्धलोमच्छविधराणं मिउविसयपसत्थसुहमलक्खणविकिण्णकेसरवालिधराणं (पालिधराणं--क, ख, ट; बालधराणं-त्रि) ललियस विलासगतिलाडवरभूसणाणं मुहमंडगोचूलचमरथासगपरिमंडियकडीण तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोतियाणं कामगाणं पीतिगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमितगतीणं अमियबलवीरियपूरिसयारपरक्कमाणं महया हयहेसियकिलकिलाइयरवेणं महरेणं मणहरेण य पूरता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ यरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । मलयगिरिणा अस्य पाठस्थ सूचना कृतास्ति तथा अस्यार्थावलोकनाय जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीकाया नामोल्लेखः कृतः-...क्वचित्सिहादीनां वर्णन दृश्यते तद्बहष पुस्तकेषु न दृष्टमित्युपेक्षितं, अवश्यं चेत्तयाख्यानेन प्रयोजनं तर्हि जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिटीका परिभावनीया, तत्र सविस्तरं तयाख्यानस्य कृतत्वात् । किन्तु आदर्शषु उपलब्धः पाठः जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिपाठात् बहुषु स्थानेषु भिन्नोस्ति, उपलब्धा जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिटीकापि आचार्यमलयगिरे रुत्तरकालीनास्ति, तेनैव भेदोसौ दश्यते । १. दाधिणेणं (ता)। २. देवसधस्सा (ता)। ३. १०१६-१०१६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्नः पठोस्ति ---एवं सूरविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति पुवकमेणं । एवं गहविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा! अटु देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा--सीहरूवधारीणं दो देवाणं साहस्सीओ पुरस्थिमिल्ल बाहं परिवहंति, गयस्वधारीणं दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं, दो देवाणं साहस्सीओ उसभरूवधारीणं पच्चत्थिमं, दो देवसाहस्सीओ तुरग रूवधारीणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति । एवं णक्खत्तविमाणस्सवि पुच्छा, गोयमा ! चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहति, तं जहा-सीहरूवधारीणं देवाणं एग्गा देवसाहस्सी पुरथिमिल्लं बाहं, एव चउद्दिसिपि । एवं तारगाणवि, गरि दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा सीहरूवधारीणं देवाण पंचदेवसता पुरथिमिल्लं बाहं परिवहंति एवं चउद्दिसिपि । Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहडिवत्ती ४५७ 'अप्पगती वा? सिग्घगती वा" ? गोयमा ! चंदेहितो सूरा सिग्धगती, सूरेहितो गहा सिग्घगती, गहेहितो णक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहितो 'तारा सिग्घगती, सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारारूवा' । १०२१. एतेसि णं भंते ! चंदिम जाव तारारूवाणं कयरे कयरेहितो अपिडिया वा? महिडिढया वा ? गोयमा ! तारास्वेहितो णक्खता महिढीया, णक्खत्तेहितो गहा महिड्ढीया, गहेहितो सूरा महिड्ढीया, सूरेहितो चंदा महिड्ढीया, सव्वपिड्ढिया तारारूवा, सव्वमहिड्ढीया चंदा ।। १०२२. जंबूदीवे णं भंते ! दीवे तारारूवस्स य तारारूवस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहा---'वाघाइमे य निव्वाघाइमे य"। तत्थ णं जेसे णिव्याघातिमे से जहणणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं दो गाउयाइं 'तारारूवस्स य तारारूवरस य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । तत्थ णं जेसे वाघातिमे से जहण्णेणं दोणि य छावठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साई दोण्णि य वायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारुवस्स य अवाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ १०२३. चंदस्स णं भंते ! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गम हिसीओ पण्णताओ? गोयमा! चत्तारि अगमहिसीओ पणत्ताओ, तं जहा-चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देविसहस्सा परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ततो एगमेगा देवी अण्णाई चत्तारि-चत्तारि देविसहस्साई परिवार विउवित्तए । एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देविसहस्सा पण्णत्ता । से तं तुडियं ॥ १०२४. प्रभू णं भंते ! चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएण सद्धि दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए ? णो तिणठे समठे ॥ १०२५. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे१ सभाए सुधम्माए माणवर्गसि चेतियखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिणसकहाओ सण्णि खित्ताओ चिट्ठति, जाओगं चंदस्स जोतिसिदस्स जोतिस रणो अण्णेसिं १. सिग्धगती वा मंदगती वा (क, ख, ग, ट त्रि)। कमिति (मवृ)। २. ताराओ सिग्घतरियाओ (ता)। ७. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्गेषु पूर्वं व्याघातिमस्य ३. तारा (ता)। ततश्च निाशतिमस्य पाठो विद्यते । ४. ताराहिंतो (ता)। ८. x (ता)। ५. सच्चप्पढ़िया (क, ख, ग, त्रि)। ६. बाताले (ता)। ६. क्वचित्सर्वत्र वाघाइए निवाघाइए' इति १०. सीहासगंसि सोहासणवरगते (ता)। पाठस्तत्र व्याघातो-यथोक्तरूपोऽस्यास्तीति ११. विमाणे चंदाए रायहाणीए (जं० ७:१८३) । व्याघातिकम, 'अतोऽनेकस्वरा' दिति मत्वर्थीय १२. खंभे (ता)। इकप्रत्ययः, व्याघातिकान्निर्गतं निर्व्याधाति- १३. ताओ (ता)। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પૂ जीवाजीवाभिगमे च बहूणं जोतिसियाणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव' पज्जुवासणिज्जाओ, 'तासि पणिहाए" नो पभू चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंसह विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासांसि जाव भुजमाणे विहरित्तए । से एएगट्ठेणं' गोयमा ! एवं बुच्चति-नो पभू चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासणंसि डिएसद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरितए । T 'पभूणं गोयमा" ! चंदे जोतिसिदे जोतिसराया चंदवडेंस विमाणे सभाए सुधम्माए चंदसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं जाव' सोलसह आयरक्खदेवसाहस्सीहि अहं वहिं जोतिसिएहि देवहि देवीहि य सद्धि संपुरिवडे महयाहय णट्ट-गीय-वाइय-तंतीतल-ताल-तुडिय घण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरित्तए, 'केवलं परियारणिड्ढीए" नो चेव णं मेहुणवत्तियं || १०२६. सूरस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अम्गमहिसोओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सूरप्पभा आयवाभा" अच्चिमाली पभंकरा | 'एवं अवसेसं जहा चंदस्स, णर्वार - सूरवडेंस विमाणे सूरंसि सीहाससि । तहेव सव्वेसि महाईणं चत्तारि अग्गमहिसीओ, तं जहा - विजया वेजयंती जयंती अपराजिया, तेसि पि तहेव " || १०२७. चंदविमाणे णं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता' ? गोयमा ! जहणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ॥ १०२८. देवीणं जहणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अमहिये || १०२. सुरविमाणे देवाणं जहणेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वास सहसमन्भहियं ॥ १०३०. देवीणं जहणेणं चउम्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अपओिवमं पंचहि वाससहिमन्भहियं || १०३१. गहविमाणे देवाणं जहणणेणं चउब्भागपलिओदम, उक्कोसेणं पलिओवमं ॥ १०३२. देवीणं जहणणेणं, चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं ॥ १०३३. णक्खत्तविमाणे देवाणं जहणणेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्ध १. जी० ३।४०२ । २. ताओ पणिधाओ (ता) | ३. तेणट्ठेणं (ता) । ४. अदुत्तरं च णं गोयमा पभु (क, ख, ग, ट त्रि ) । ५. जी० ३।३५० ६. वृत्ती एष पाठी व्याख्यातो नास्ति । 'क, ख, गट, त्रि आदर्शषु केवलं परियारतुडिएण सद्धि भोगभोगाई बुद्धीए' इति पाठो विद्यते । भगवत्यां (१०/६९ ) स्वीकृत पाठस्य संवादी पाठो लभ्यते केवलं परियारिड्ढीए । ७. आतावा (ता) दोसिणाभा ( ठाणं ४ १७६) । चिन्हाङ्कितपाठस्य स्थाने 'ता' प्रतौ वृतो च भिन्ना वाचना दृश्यते - जहा चंदे तधेव जाव णो मेहुणवत्तियं सूरवडेंसए विमाणे सुरे सीहासणे एस विसेसो । ९. अतः १०३६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु संक्षिप्ता वाचना विद्यते एवं जहा दिलीप तहा भाणियव्वा जाव तारणं । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ४५६ पलिओवमं ।। १०३४. देवीणं जहण्णेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउब्भागपलिओवमं ॥ १०३५. ताराविमाणे देवाणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउठभागपलिओवमं ॥ १०३६. देवीणं जहणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं !! १०३७. एतेसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयना ! चंदिमसूरिया एते णं दोण्णिवि तुल्ला सव्वत्थोवा, णक्खत्ता संग्वेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, ताराओ संखेज्जगुणाओ। वेमाणियउद्देसओ पढमो १०३८. कहि णं भंते ! वेमाणियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता! कहि णं भंते ! वेमाणिया देवा परिवसंति' ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उडढं चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं वहूइंजोयणाई वहूइंजोयणसताई बहई जोयणसहस्साइं वहइं जोयणसयसहस्साई वहुई जोयणकोडीओ बहूई जोयणकोडाकोडीओ उडढं दूरं उप्पइत्ता' सोहम्मीसाण - सगंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतग-महासुक्क-सहस्सारआणय-पाणय-आरण-अच्चुत-गेवेज्ज -अणुतरेसु य, एत्थ णं वेमाणियाणं चतुरासीति विमाणावाससतसहस्सा सत्ताणउति च सहस्सा तेवीसं च विमाणा भवंतीति मक्खाया। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव' पडिरूवा । एत्थ' णं वहवे वेमाणिया देवा परिवसंति। सोधम्भीसाण जाव अणुत्तरा य देवा मिग-महिस-वराह-सिंह-छगल-दद्दुर-जाव' आयरक्खदेवसाहस्सीण विहरंति ।। १०३६. कहि णं भंते ! सोधम्मगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते ! सोधम्मगा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इभीसे रयणप्पभाए जाव एत्थ णं सोधम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते--पाईणपडिणायते उदीणदाहिणवित्थिपणे जाव एत्थ णं सोधम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं विमाणाणं वहुमज्झदेसभाए पंच वडेसगा पण्णता। तत्थ णं यहवे सोधम्मगा देवा परिवसंति जाव विहरंति । सक्के यत्थ १. अतः १०३६ सूत्रपर्यन्तं क, ख, ग, ट, त्रि' ४. जी. ३१२६१ । आदर्श' संक्षिप्ता वाचना विद्यते---जहा ५. तत्थ (ता)। ठाणपदे तहा सव्वं भाणियध्वं णवरं परिसाओ ६. पृष्ण० २१४६ । भाणितव्वाओ जाव सक्के, अन्नेसि च बहूणं ७. अत्र अग्रेपि च कतिचित् स्थानेषु पाठसंक्षेपो सोधम्मकप्पवासीणं देवाण य देवीण य जाव विद्यते, स च वृत्ती अथवा प्रज्ञापनायाः विहरंति । द्वितीयपदे द्रष्टव्यः । २. वीतिवतित्ता (ता)। ८. विधरंति (ता)। ३. सं. पा.---सोहम्मीसाण जाव अणुतरेसु । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० जीवाजीवाभिगमे देविदे देवराया मघवं पागसासणे जाव' विहरंति ।। १०४०. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-समिता चंडा जाता, अभितरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, वाहिरिया जाता। १०४१. सक्कस्स' णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अभितरियाए परिसाए कति देव१. पण्ण० २।५० । २. १०४१-१०५५ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ किञ्चिद भेदेन पाठरचनास्ति–सक्कस्स गंभं अभंतर. परि कति देवसहस्सा पं मज्झिमप कति देव बाहिरप कति देवसहस्सा पं अभितरपरिसाए कति देविसया पं मज्झिम कति देवि बाहिरपरिसाए कति देविसया पं? गो सक्कस्स णं दे ३ अभितरपरिसाए बारस देवसहस्सा पं मज्झि चोद्द बाहिरप सोलस देवसहस्सा, अभितरपरिसा सत्त देविसता मज्झिमप छ देविसता बाहिरप पंच देविसया। सक्कस्स णं भं ३ अभंतरपरि देवाणं केवतिकालं ठिती पं मज्झिमप दे केवतिका ठिती पं बाहि देवा के ठिती अभंतरपरिसाए देवीणं केवतिकालं ठिति पं मज्झिमप के बाहिरपरिसाए देवीणं केवतिकालं ठिती पं? गो! सक्कस्स णं ३ अभंतरप देवाणं पंच पलितोवमाई ठिती पं मज्झि ४ बाहिरप ३ पलि, अभंतरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलितोवमाइं ठिती मज्झिमप दो पलितो बाहिरप देवीणं एगं पलितोवमं ठिती पं! से केगळेणं भंग व सक्कस्स देवि ३ तओ परिसाओ पं तं समिया चंडा जाव अभंतरिया समिया जाव बाहिरिया जाता? गोयमा ! सक्के णं दे ३ अभंतरप बाहित्ता हव्व तहेव जहा चमरस्स, अदुत्तरं अणं गोतमा बाहिरपरिसाए सद्धि पयं पयंदेमाणे २ विहरति । से तेणठे णं? गोयमा एवं बु सक्कस्स णं दे ३ जाव बाहिरिया जाता। __ कहि णं भंते ईसाणगाणं देवाणं विमाणा पं ? कहिणं भं ईसाणगा देवा परिवसंति जाव ईसाणे दे विहरति । ईसाणस्स गंभ कति परिमाओ पं जव सक्कस्स णवरं पमाणं ठितीणाणत्तं अब्मतरपरिसाए दस देवसहस्सा मज्झि वारस दे सह वाहिरपरि चोद्दस दे सह अभंतरपरि णव देविसता मज्झिमप अटू वा सत्त सता, अब्भतरंपरिसाए देवाणं सत पलितोवमाइं ठिती पं मज्झिम छ वाहि पंच, अभंतरप देवीणं पंच मज्झि चत्तारि वा तिण्णि पलि । अछे जहा सक्कस्स। ___ कहि णं भंते ! सणंकूमारा देवाणं विमा जाव सणकूमारस्स कति परिसाओ? गो! तओ परिसा तं समिया चंडा जाता, तधेव णवरं पमाणं ठिती अभंतरपरि अट्ठ देवसहस्सा मज्झिम दस सह वाहि वारस सह, अभंतरपरिसाए देवा अद्धपंचमाई सागरोवमाइं पंच य पलितोवमठिती पं मज्झिमपरि अद्धपंचमाइं सागरो ४ पलि बहिरपरि अद्धपंचमाइं सागरो तिणि य पलि । अट्टो जहा सक्के णवरं देवीओ पत्थि । कहि णं भंते ! माहिंदाणं देवाणं विमाणा जाव माहिदस्स अब्भंत रपरिसाए छ देवसहस्सा मज्झिमप अट्ट सह बाहि दस स । ठितीए अभंतरपरि अद्धपंच सागरोवमाइं सत्त य पलि मभिम अद्धपंच सागरो छच्च पलि वाहि अद्ध पंच सागरो पंच य पलितोवमाइं ठिती पं। अट्टो जहा सक्कस्स। बंभलोगाण वि सोच्चेव ठाणपदं गमो जाव बंभे विहरति । तस्स अभंतरपरिसाए चत्तारि देवसहस्सा मज्झिमप छ देवसह बाहिरप अटु देवसहस्सा। ठिती Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्धिहपडिवत्ती ४६१ साहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव' बाहिरियाए पुच्छा । गोयमा ! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए चोइस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तहा अभितरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि पण्णत्ताई॥ १०४२. सक्कस्स णं भंते ! देविदस्स देवरण्णो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? एवं मज्झिमियाए वाहिरियाएवि ? गोयमा! सक्कस्स देविदस्स देवरणो अभितरियाए परिसाए पंच पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवाणं तिणि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, देवीणं ठिती--अभितरियाए परिसाए देवीणं तिष्णि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए दुण्णि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए एग पलिओवमं ठिती पण्णत्ता । अट्ठो सो चेव जहा' भवणवासीणं ।। १०४३. कहि णं भंते ! ईसाणगाणं देवाणं विमाणा पण्णता ? तहेव सव्वं जाव ईसाणे एत्थ देविदे देवराया जाव' विहरति ।। अब्भंतपरिसाए अद्धणवमाइं सागरो पंच य पलिओवमाई मज्झिमपरिसाए अद्धणवमाइं सागरो चत्तारि पलि वाहिरप अद्धणश्माई सागरो तिण्णि य पलि । कहि णं भंते ! लंत जाव अभंतरप दो देवसहस्सा मज्झिमप चत्तारि देवसह बाहिरपरि छ देवसह । अभंतरप देवाणं बारस सागरो सत्त य पलि मज्झिमपरि बारस साग छच्च पलि बाहिरपरि बारस साग पंच य पलि । __ कहि णं भंते ! महासुक्के ठाणपदगमेणं जाव सपरिवारो विहरति । अभंतरपरिसाए एगा देवमाहस्सी मज्झिमपरि दो देवसाह बाहिरपरिसाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, अभंतरपरिसाए अद्धसोलससागरोवमाइं पंच य प मभिमपरि अद्धसोलससाग चत्तारि य पलि बाहिरपरि अद्धसोलससा तिण्णि य पलि। कहि णं भंते ! सहस्सारे विमाण पं जाव अब्भतरपरि पंच देवसया मज्झिम एग देवसाहस्सं बाहिर दो देवसह, अभंतरपरि अट्ठारससागरोवम सत्त य पलि मन्भिमप अद्धट्ठारससाग च्छच्चपलि बाहि अद्धद्वारससा पंच य पलि । अट्टो । कहिणं भंते ! आणत-पाणता णाम दुवे कप्पा पं? गो ! जाव पाणतस्स अब्भंतरपरि अड्ढाइज्जा देवसता मज्झिमपरि पंच देवसता बाहिर एग देवसहस्सं, अब्नंतरप एकूणवीसं सागर पंच य प मज्झिम एकणवीसं सा चत्तारि य पलि बाहिरप एकूणवीसं सा सिणि य प । अट्ठो य । कहिणं भंते ! आरुणच्चुता जावच्चुते सपरिवारे विहरति । अभंतरपरि देवाणं पणबीस सयं मज्झिम अडढाइज्जा सता बाहिरप पंचसया, अभंतर परि एक्कवीसं सागरो सत्त य पलि मज्झि एक्कवीसं सा च्छच्च प बाहिर प एक्कवीसं सा पंच य प ठिती पं। __ मलयगिरि बत्ती विस्तृतपाठो व्याख्यातोस्ति । एवं वाचना त्रयं जायते । १. जी० ३१२३६,२३७ । ३. पण्ण० २।५१ 1 २.जी. २२३६। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ जीवाजीवाभिगमे १०४४. ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पण्णताओ. तं जहा-समिता चंडा जाता, तहेव सव्वं, णवरंअभितरियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मज्झिमियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ, वाहिरियाए चोइस देवसाहस्सीओ। देवीणं पुच्छा । अभितरियाए णव देवीसता पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठ देवीसता पणत्ता, वाहिरियाए परिसाए सत्त देविसता पण्णत्ता, देवाणं ठिती पुच्छा। अभितरियाए परिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाई ठिती पण्णता, मज्झिभियाए छ पलिओवमाई, वाहिरियाए पंच पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता। देवीणं पूच्छा। अभितरियाए पंच' पलिओवमाइं, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए तिणि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । अट्टो तहेव भाणियध्वो ॥ १०४५. सणकुमाराणं पुच्छा । तहेव' ठाणपदगमेणं जाव १०४६. सणकुमारस्स तओ परिसाओ समिताई तहेव, णरि-अभितरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पण्णताओ, मज्झिमियाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ ! अभितरियाए परिसाए देवाण ठिती--अद्धपंचमाइसागरोवमाइपच पलिओवमाई ठिती पणता, मज्झिमियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पण्णता, वाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाई सागरोवमाई तिण्णि पलिओवमाई ठिती पण्णता । अट्ठो सो चेव ।। १०४७. एवं माहिदस्सवि तहेव' तओ परिसाओ, णवरि-अभितरियाए परिसाए छद्देवसाहस्सीओ पण्णताओ, मज्झिमियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए दस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती देवाण-अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोवमाइं सत्त य पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सावरोवमाइं छच्च पलिओवभाई, वाहिरियाए परिसाए अद्धपंचमाइं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता ।। १०४८. तहेव सव्वेसि इंदाण ठाणपयगमेणं विमाणा तव्वा । ततो पच्छा परिसाओ पत्तेयं-पत्तेयं वुच्चति १०४६. बंभस्सवि तओ परिसाओ पण्णताओ-अभितरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, मज्झिमियाए छ देवसाहस्सीओ, वाहिरियाए अट्ठ देवसाहस्सीओ। देवाणं ठितीअभितरियाए परिसाए अद्धणवमाइं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाई मज्झिमियाए परिसाए अद्धनवमाइं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाई, वाहिरियाए अद्धनवमाई सागरोवमाइं तिणि य पलिओवमाई। अट्रो सो चेव ।। १०५०. लंतगस्सवि जाय तओ परिसाओ जाव अभितरियाए परिसाए दो देवसाहस्सीओ, मज्झिमियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए छद्देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती भाणियव्वा-अभितरियाए परिसाए वारस सागरोवमाई सत्त १. साइरेगाई पंच (त्रि)। ३. पण्ण० २१५३ । २. पण्ण० २१५२ । ४. पण्ण० २१५४-५६ । Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउव्विहपडिवत्ती पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए वारस सागरोवमाइं छच्च पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए वारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता ॥ १०५१. महासुक्कस्सवि जाव तओ परिसाओ जाव अभितरियाए एग देवसहस्सं, मज्झिमियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, वाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ । अभितरियाए परिसाए अद्धमोलस सागरोक्माई पंच पलिओवमाई, मज्झिमियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं चत्तारि पलिओवमाई, बाहिरियाए अद्धसोलस सागरोवमाइं तिण्णि पलिओवमाई । अट्ठो सो चेव ।। १०५२. सहस्सारे पुच्छा जाव अभितरियाए परिसाए पंच देवसया, मज्झिमियाए परिसाए एगा देवसाहस्सी, वाहिरियाए दो देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ठिती-अभितरियाए अद्धद्वारस सागरोवमाइं सत्त पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, एवं मज्झिमियाए अद्धद्वारस छप्पलिओवमाइं वाहिरियाए अट्ठारस सागरोवमाइं पंच पलिओवमाइं । अट्ठो सो चेव ॥ १०५३. आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाव तओ परिसाओ, णवरि-अभितरियाए अड्ढाइज्जा देवसया, भज्झिमियाए पंच देवसया, वाहिरियाए एमा देवसाहस्सी। ठितीअभितरियाए एगूणवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं, एवं मज्झिमियाए एगोणवीसं सागरोवमाइं चत्तारि य पलिओवमाइं, बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोक्माइं तिण्णि य पलिओवमाइं ठिती। अटो सो चेव ।। १०५४. कहि णं भंते ! आरणअच्चुयाणं देवाणं तहेव अच्चुए सपरिवारे जाव विहरति ।। १०५५. अच्चुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ। अभितरपरिसाए देवाणं पणवीस सयं, मज्झिमपरिसाए अड्ढाइज्जा सया, वाहिरपरिसाए पंचसया, अभितरियाए एक्कवीसं सागरोवमाइं सत्त य पलिओवमाइं, मज्झिमियाए एक्कवीसं सागरोवमाइं छप्पलिओवमाइं, वाहिरपरिसाए एकवीसं सागरोवमाइं पंच य पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता॥ १०५६. कहिं णं भंते ! हेद्विमगेवेज्जगाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते ! हेटिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? जहेव' ठाणपए तहेव । एवं मज्झिमगेवेज्जा उवरिमगेवेज्जगा अणुत्तरा य जाव अहमिदा नामं ते देवा पण्णत्ता समणाउसो ! ॥ वेमाणियउद्देसओ बीओ १०५७. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! घणोदहिपइट्ठिया पण्णत्ता ॥ १०५८. सणकुमार-माहिदेसु कप्पेसु विमाणपुढवी किंपइट्ठिया पण्णता ? गोयमा ! घणवायपइट्ठिया पण्णत्ता ।। १. पण्ण०२१६०1 २. पण्ण० २।६१.६३ । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे १०५६. बंभलोए णं भंते! कप्पे विमाणपुढवी' गं पुच्छा | घणवायपइट्ठिया पण्णत्ता || ૪૬૪ १०६०. लंतए' तदुभयपइट्टिया पण्णत्ता ॥ १०६१. महासुक्क सहस्सारेसुवि तदुभयपइट्टिया || १०६२. आणय जाव अच्चुएसु णं भंते! कप्पेसु पुच्छा | ओवासंत रपइट्टिया पण्णत्ता ॥ ओवा संतरपट्टिया १०६३. गेवेज्ज विमाणपुढवीणं भंते! पुच्छा । गोयमा ! पण्णत्ता ॥ १०६४. अणुत्तरोववाइयपुच्छा ! ओवासंतरपट्टिया पण्णत्ता ॥ १०६५. सोहम्मीसाणकप्पेसु विमाणपुढवी केवइयं वाहल्लेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्तावीस जोयणसयाई वाहल्लेणं पण्णत्ता || १०६६. एवं पुच्छा -- सणकुमार- माहिदेसु छव्वीसं जोयणसयाई । बंभ-लंत एसु पंचवीसं । महासुक्क सहस्सारेसु चउवीसं । आणय- पाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाई । वेज्जविभाणपुढवी बावीसं । अणुत्तरविभाणपुढवी एक्कवीस जोयणसयाई बाहल्लेणं ॥ १०६७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं ? गोयमा ! पंचजोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं ॥ १०६८. सणकुमार-माहिदेसु छ जोयणसयाई । बंभ-लंतएसु सत्त । महासुवकसहस्सारेसु अट्ठ | आणय पाणयारणाच्चुएसु नव ॥ १०६९. गेवेज्जविमाणाणं भंते! केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं ? गोयमा ! दस जोयणसयाई ॥ १०७०. अणुत्तरविमाणाणं एक्कारस जोयणसयाई उड्ढं उच्चतेणं ॥ १०७१. सोहम्मीसाणेणं भंते! कप्पेसु विमाणा किंसंठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आवलियापविट्ठा य आवलियावाहिरा य । तत्थ णं जेते आवलियाविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- वट्टा तसा चउरंसा । तत्थ गं जेते आवलियाबाहिरा ते णं णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता । एवं जाव गेवेज्जविमाणा ।। १०७२. अणुत्तरविमाणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - वट्टे य तंसा य ।। १०७३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु विमाणा केवतियं आयाम विक्खंभेणं ? केवतियं परिवखेवेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- संखेज्ज वित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य । 'तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाई जोयणसहस्साई आयाम - विक्खभेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिवखेवेणं । तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं आयाम विक्खंभेणं, असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं । एवं जाव गेवेज्जविमाणा || ९. पुढवी (ग, ट, ता, त्रि) । २. लंत णं भंते गो (क, ख, ग, ट, श्रि ) । ३. जोयणाई (ना) । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विपडिवत्ती १०७४. अणुत्तरविमाणा पुच्छा । गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा" संखेज्जवित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य । तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से 'एग जोयणसयसहस्सं जंबुद्दीवप्पमाणे 'जाव' अद्धंगुलगं च”। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाई जोयणसहस्साई •आयाम-विवखंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता ।। १०७५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! विमाणा कतिवण्णा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहा-किण्हा नीला लोहिया हालिद्दा सुक्किला ।। १०७६. सणकुमार-माहिदेसु चउवण्णा-नीला जाव सुक्किला, बंभलोग-लंतएस तिवण्णा-लोहिया हालिद्दा सुक्किला, महासुक्क-सहस्सारेसु दुवण्णा-हालिद्दा य सुक्किला य, 'आणय-पाणतारणच्चुएसु सुक्किला, गेवेज्जविमाणा सुविकला, अणत्तरोववातियविमाणा परमसुक्किलावण्णणं पण्णत्ता ।।। १०७७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया पभाए पण्णता ? गोयमा ! णिच्चालोया णिच्चुज्जोया सयंपभाए" पण्णत्ता जाव अणुत्तरविमाणा। १०७८. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया गधेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए---कोट्टपुडाण वा जाव' एत्तो इद्रुतरा चेव जाव अणुतरविमाणा ॥ १०७६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा केरिसया फासेणं पण्णत्ता ? गोयमा से जहानामए-आईणेति वा 'जाव एतो इद्रुतरा चेव जाव अणुत्तरविमाणा ॥ १०८०. सोहम्मीसाणस् णं भंते ! कप्पेस विमाणा केमहालया पण्णत्ता? गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे 'जहा णिरयुद्देसे जाव" छम्मासेणं वीतिवएज्जा-अस्थेगतिए वीतिवएज्जा अत्थेगतिए नो वीतिवएज्जा एमहालया" णं गोयमा! एवं जाव अणुत्तरविमाणा५ ॥ १०८१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु विमाणा किंमया" पण्णत्ता ! गोयमा ! १. जहा परगा तहा जाव अणुत्तरोववातिया (क, १. जी० ३।२८३ ॥ ___ ख, ग, ट, त्रि)। १०. गंधेणं पण्णता एवं जाव एत्तो (क, ख, ग, २. ४ (क, ख, ग, ट, त्रि)। ट, त्रि)। ३. जी० ३२५२ ११. जी० ३।२८४। ४. x (क, ख, ग, ट, त्रि)। १२. रूतेति वा सवो फासो भाणियव्वो (क, ख, ५. जोयणसयाई (क,ख,ग,ट,त्रि); ___ ग, ट, त्रि) ___ सं० पा०-जोयणसहस्साई जाव परिक्खेवेणं । १३. जी० ३।८६ । ६. आणतादि जाव अणुत्तरा ताव सुक्किला (ता) १४. एम्महलया (ता)। आनतप्राणतारणाच्युतकल्पेषु एकवर्णानि शुक्ल. १५. सव्वदीवसम्हाणं सो चेव गमो जाव छम्मासे वर्णस्यैकस्य भावात् अवेयकविमानानि अनुत्तर- वीइवएज्जा जाव अत्थे गतिया विमाणावासा नो विमानानि च परम शुक्लानि (मव)। बीईवएज्जा जाव अणुत्तरोववातिय विमाणा ७. सयंपभपभाए (ता); स्वयं प्रभाणि (मव) । अत्येगतियं विमाणं वीईवएज्जा अत्थेगतिया ८. अणुत्तरोववातियविमाणा णिच्चालोया णिच्चु- नो वीईवएज्जा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ज्जोता सयंपभाए पण्णत्ता (क,ख,ग,ट,त्रि)। १६. किम्मया (ता)। Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ जीवाजीवाभिगमे सब्वरयणामया 'अच्छा जाव पडिरूवा" ! तत्थ णं वहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववज्जति'। सासया णं ते विमाणा दव्वट्ठयाए, 'वण्णपज्जवेहि गंधपज्जवेहिं रसपज्ज बेहिं फासपज्जवेहि य असासया । एवं जाव अणुत्तरविमाणा" । १०८२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कओहितो उववज्जति ? उववातो' जहा वक्कतीए' जाव अणुत्तरविमाणा ।। १०८३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति । एवं जाव सहस्सारे ॥ १०८४. 'आणतादी गेवेज्जा अणुत्तरा य जहणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति" । १०८५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा केवतिएणं कालेणं अवहिया सिया ? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए-समए अवहीरमाणाअवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया जाव सहस्सारो॥ १०८६. आणतादिसुचउसु कप्पेसु देवा पुच्छा । गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समएसमए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहिया सिया । एवं जाव अणुत्तरविमाणा ।। १०८७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं 'जासा भवधारणिज्जा सा" जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो, उक्कोसेगं सत्त रयणीओ । तत्थ णं 'जासा उत्तरवेउन्विया सा" जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागो उक्कोसेणं जोयणसतसहस्सं ॥ १. पण्णता (क, ख, ग, ट, त्रि)! एवं पाठोस्ति-आणतादिगेसु चउसुवि २. उवचयंति (क,ख,ग,ट,त्रि); उपचीयन्ते (मव) गेविज्जेसु य समए जाव केवतिकालेणं अवहिता द्रष्टव्यं जी० ३७२४ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । सिया? गो ते णं असंखेज्जा समये २ अबहीरमाणा ३. जाव फासपज्जवेहि असासता जाव अणुत्तरो- २ असंखेज्जमेत्तपलियस्स सुहमस्स असंखेज्जेणं ववातिया विमाणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। कालेणं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया। ४, उववातो णेयव्वो (क, ख, ग, ट, त्रि) । अणुत्तरोबवाइयाणं पुच्छा। तेणं असंखेज्जा ५. पण्ण० ६।१०५-१०८ । समये समये अबहीरमाणा पलिओवम६. वक्कतीए तिरियमणुएसु पंचेंदिएसु समुच्छिम- असंखेज्जतिभागमेते अवहीरति नो चेव ण वज्जिएसु, उववाओ वक्कंतीगमेणं (क, ख, अवहिया सिया। ग, ट, ता, त्रि)। ६. दुविहा सरीरा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. सेसा संखेज्जा (ता)। १०. जेसे भवधारणिज्जे से (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शेषु ११. जेसे उत्तरवेन्दिए से (क, ख, ग, द, त्रि) । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चव्विहपडिवत्ती १०८८. सणकुमार' - माहिदेसु भवधारणिज्जा उत्तरवेउब्विया । भवधारणिज्जा छरयणीओ, उत्तरवेउब्विया तधेव । बंभ-लंतएस पंच रयणीओ, महा सुक्क सहस्सा रेसु चत्तारि रयणीओ, आणतपाणतारणच्चएस तिण्णि रयणीओ, उत्तरवेउव्विया तधेव जोयणसतसहस्सं सव्वेसि || १०८६. गेवेज्जादेवाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! वेज्जादेवाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरए पण्णत्ते से जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागे, उक्कोसेणं दो रयणीओ । अणुत्तरदेवाणं एगा रयणी ॥ १०६०. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरमा किसंघयणी पण्णत्ता ? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी' - नेवट्ठि नेव छिरा नेव व्हारू' । जे पोगला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुष्णा मणामा ते तेसि सरीरसंघातत्ताए परिणमति । एवं जाव अणुत्तरोववातिया || १०६१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किसंठिता पण्णत्ता ? गोमा ! दुविहा सरीरा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ पं जेते भवधारणिज्जा ते समचउरंसठाणसंठिता पण्णत्ता । तत्थ णं जेते उत्तरवेउब्विया ते णाणासंठाणसंठिता पण्णत्ता जाव अच्चुओ || ४६७ १०६२. गेवेज्जादेवाणं भंते ! सरीरा किंसंठिता पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे भवधारणिज्जे सरीरए समचउरंस संठाणसंठिते । एवं अणुत्तराणवि ॥ १०९३. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरंगा केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! कणगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पण्णत्ता ॥ १०९४. सणकुमार माहिदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पण्णत्ता । 'एवं बंभेवि" ।। १०६५. लंत णं भंते ! गोयमा ! सुक्किला वण्णेणं पण्णत्ता । एवं जाव गेवेज्जा ॥ १०६६. अणुत्तरोववातिया परमसुक्किला वष्णेणं पण्णत्ता || १०६७. सोहम्मीसाणे णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरंगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता ? 'जहा' विमाणाणं गंधो जाव अणुत्तरोववाइयाणं”” ।। ६. अस्य सुत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एवं पाठोस्ति-अवेउग्विया गेविज्जणुतरा, भवधारणिज्जा समचउरंसठाणसंठिता, उत्तरवेव्विा णत्थि | ७. वंभलोगे णं भंते ! गोयमा ! अल्लमधुगवण्णाभावणं पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. १०६५, १०६६ सूत्रयोः स्थाने 'ता' प्रतौ एवं पाठोस्ति--सेमा सुक्किला वण्णेणं पं १. १०८५१०८६ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि, आदर्शषु एवं पाठोस्ति - एवं एक्केक्का ओसारेत्ताणं जाव अणुत्तरा णं एक्का रयणी गेविज्जणुत्तराणं एगे भवधारणिज्जे सरीरे उत्तरवेउव्विया नत्थि । २. महालिया (ता ) 1 ३. असंघतणी (ता) | ४. हारू व संघयणमत्थि ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ५. 'ता, प्रतौ 'जेसे' इत्यादि एकवचनान्त: पाठो दृश्यते, वृत्तावपि स च एकवचनान्तो व्याख्यातोस्ति । जाव णुत्तरा । ६. जी० ३३१०७८ । १०. गोयमा ! से जहाणामए कोट्ठपुडाण वा तदेव Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ जीवाजीवाभिगमे १०६८. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पण्णत्ता? गोयमा ! थिरमणिद्धसुकुमालफासेणं पण्णत्ता । एवं जाव अणुत्तरोववातियाणं ।। १०६६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं केरिसया पोग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति ? गोयमा ! जे पोरगला इट्टा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं उस्सासताए परिणमंति जाव अणुत्तरोववातियाणं ।। ११००. एवं आहारत्ताए वि। ११०१. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं कति लेस्साओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! एगा तेउलेस्सा पण्णत्ता।। ११०२. सणंकुमार-माहिदेसु एगा पम्हलेस्सा । एवं बंभलोए वि' ।। ११०३. 'लंतए एगा सुक्कलेस्सा जाब गेवेज्जा ताव सुक्कलेस्सा ॥ ११०४. अणुत्तरे एगा परमसुक्कलेस्सा" ॥ ११०५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं सम्मट्ठिी ? मिच्छादिट्ठी ? सम्मामिच्छादिट्ठी ? गोयमा ! 'सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि। एवं जाव गेवेज्जा ॥ ११०६. अणुतरोववातिया सम्मदिट्टी, णो मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी ।। ११०७. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा किं णाणी? अण्णाणी ? 'पाणीवि अण्णाणीवि" 'जे णाणी ते णियमा तिण्णाणी, तं जहा-आभिणिवोधियणाणी सुयणाणी अवधिणाणी । जे अण्णाणी ते णियमा तिअण्णाणी, तं जहा-मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी, विभंगणाणी य" । एवं जाव गेवेज्जा ११०८. अणुत्तरोक्वानिया णाणी, णो अण्णाणी 'नियमा तिण्णाणी" ।। ११०६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कि मणजोगी? वइजोगी ? कायजोगी ? गोयमा ! मणजोगीवि वइजोगीवि कायजोगीवि जाव अणत्तरा ।। १११०. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कि सागारोवउत्ता? अणागारोवउत्ता? गोयमा ! दुविहावि जाव अणुत्तरा।। ___ सव्वं जाव भणामतरता चेव गंधेणं पण्णता ७. गोयमा दोवि (क,ख,ग,ट,त्रि)। जाव अणुत्तरोववातिया (क, ख, ग, ट, त्रि)! ८. तिण्णि णाणा तिणि अण्णाणा नियमा (क,ख, १. "सुकुमालच्छविफासेणं (क, ख, ग, ट, त्रि) गट,त्रि); जे पाणी तिण्णि गाणा तिण्णि २. वि जाव अणुत्तरोक्वातिया (क, ख, ग, ट, अण्णाणा नियमा (ता); चिह्नाङ्कितः पाठो वत्त्याधारेण स्वीकृतः, द्रष्टव्यं ३।१०४ सूत्रम् । ३. वि पम्हा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ..तिणि णाणा नियमा (क,ख,ग,ट,त्रि); नियमा ४. सेसेस एक्का सूक्कलेस्सा अणुत्तरोववातियाणं तिण्णाणी तं आभिणिबो ३ (ता)। एक्का परमसुविकला (क, ख, ग, ट, त्रि)। १०.११०८,११०६ सूत्रयोः स्थाने 'क,ख,ग,ट,त्रि' ५. सम्मामिच्छदिट्ठी (क,ख,ग,त्रि) आदर्शषु पाठसंक्षेपोस्ति-तिविधे जोगे दुविहे ६. तिण्णिवि जाव अंतिमगेवेज्जा (क, ख, ग, ट, उवओगे सव्वेसि जाव अणुत्तरा। त्रि)। Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउविहपडिवत्ती ११११. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अधे जाव 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते", उड्ढं जाव सगाई' विमाणाई, तिरियं जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा एवं सक्कीसाणा पढम, दोच्चं च सणकुमारमाहिंदा । तच्चं च बंभ लंतग सुक्कसहस्सारग च उत्थी ।।१।। आणयपाणयकप्पे, देवा पासंति पंचमि पुढवीं। तं चेव आरणच्चुय, ओहीनाणेण पासंति ॥२॥ छट्ठी हेट्टिममज्झिमगेवेज्जा, सतमि च उरिल्ला। संभिषणलोगनालिं पासंति अणुत्तरा देवा ।।३।। १११२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं कति समुग्घाता पणता ? 'गोयमा ! पंच समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा"--वेदणासमुग्धाते कसायसमुग्धाते मारणंतियसमुग्धाते वेउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्धाते । एवं जाव अच्चुया ॥ १११३. गेवेज्जणुत्तराणं' पुच्छा । गोयमा! पंच-वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्धाते मारणतियसमग्घाते विउव्वियसमग्घाते तेजससमग्घाते। णो चेव णं वेउब्वियसमूग्घातेण वा तेयासमुग्धातेण वा समोहणिसु वा समोहण्णंति वा समोहणिस्संति वा ।। १११४. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसयं खुह-पिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! 'तेसि णं देवाणं णत्थि खुह-पिवासा। एवं" जाव अणुत्तरोववातिया ॥ १११५. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा कि एगत्तं पभू विउवित्तए ? पुहत्तं पभू विउवित्तए ? 'गोयमा ! एगत्तंपि पभू विउवित्तए, पुहत्तंपि पभू विउवित्तए" एगत्तं विउव्वेमाणा एगिदियरूवं वा जाव पंचेंदियरूवं वा विउव्वंति, पुहत्तं विउन्वेमाणा एगि१. अवही (ग)। अनुत्तरोपपातिकसूत्रं पृथगस्ति-एवमनुत्तरो२. रयणप्पभा पुढवी (क,ख,ग,ट,त्रि)। पपातिकानामपि वक्तव्यम् । आदर्शषु प्रस्तुतसूत्रं ३. साइं (क,ख,ग,ट,त्रि)। द्विरूपं लभ्यते-गेविज्जणुत्तरा णं आदिल्ला ४. 'ता' प्रती गाथात्रयस्य स्थाने संक्षिप्तपाठो- तिणि समुग्धाता पण्णत्ता (क, ट); स्ति–सम्वेवि जाव संभिण्णलोगणालि पासंति गविज्जाणं आदिल्ला तिण्णिसमुग्धाता पण्णता अणुत्तरा देवा । वृत्तिकृता प्रज्ञापनाया आधा (ख,ग,त्रि); एष अनुत्तरदेवानां सूत्रं लिखितं रेण विस्तृतपाठः उल्लिखितः, 'उक्तं च' नास्ति । इत्युल्लेखपूर्वकं गाथा त्रयमुद्धतम् । 'ता' प्रतौ ७. णस्थि खुहपिवासं पच्चणुभवमाणा विहरति । ततीयगाथाया अन्तिमचरणद्वयमूल्लिखितमस्ति, (क,ख,ग,ट,त्रि); नास्त्येतद् यत्ते क्षुप्पिपासं तेन ज्ञायते गाथात्रयं ताडपत्रीयादर्शस्य पाठ- प्रत्यनुभवन्तो विहरंति (मवृ)। परम्परायां सम्मतमस्ति । ८. x (ग, त्रि, मव)। ३. पंच आदिल्ला (ता) । ६. पहुत्तं (क, ख, ग, ८); पुहृत्तं (त्रि)। ६. वृत्ती अवेयकसूत्र स्वीकृतपाठवद् विद्यते, केवलं १०. हंता पभू गोयमा (त्रि) । Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जीवाजीवाभिगमे दियरूवाणि वा जाव पंचेंदियरूवाणि वा 'ताई संखेज्जाइं पि असंखेज्जाइंपि सरिसाइंपि असरिसाई पि संबद्धाई पि असंबद्धाइं पि रूवाई" विउव्वंति, विउन्वित्ता 'ततो पच्छा" जहिच्छिताई कज्जाई करेंति ! एवं जाव अच्चुओ।। १११६. गेवेज्जादेवा' किं एगत्तं पभू विउवित्तए? पुहत्तं पभ विउवित्तए ? गोयमा ! एगत्तं पि पभू विउवित्तए, पुहत्तं पि पभू विउवित्तए, णो चेव गं संपत्तीए विउव्विसु वा विउव्वंति वा विउव्विस्संति वा । एवं अणत्तरोववातिया ॥ १११७. सोहम्मीसाणेसु गं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसयं सातासोक्खं पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! मणुण्णे सद्दे मणुण्णे रूवे मणुण्णे गंधे मणुण्णे रसे मणुणे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति जाव गेवेज्जा ॥ १११८. अणुत्तरोववातिया पुच्छा । गोयमा ! अणुत्तरा सदा अणुत्तरा रूवा अणुत्तरा गंधा अणुत्तरा रसा अणुत्तरा फासा पच्चणुभवमाणा विहरंति ।। १११६. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसगा इड्ढीए पण्णत्ता ? गोयमा ! महिड्ढीया महज्जुइया महावला महायसा महेसक्खा महाणुभागा जाव' अच्चुओ।। ११२०. गेवेज्जा देवा पूच्छा । गोयमा ! 'सव्वे समिड्ढीया समज्जुइया समबला समयसा समाणुभागा समसोक्खा अणिदा अप्पेसा अपुरोहिया अहमिदा" णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो ! एवं अणुत्तरावि ।। ११२१. सोहम्मीसाणेसुणं भंते ! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! १. संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संवद्धाणि वा ६. इड्ढीए पण्णत्ता जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । सरिसाणि का असरिसाणि वा (ता)। ७. चिन्हाङ्कितः पाठः १०५४ सूत्रस्य वृत्ते राधारेण २. अप्पणो (क, ख, ग, ट, त्रि)। स्वीकृत.। मलयगिरिणा प्रस्तुतसूत्रस्य वत्तो ३. अस्य सूत्रस्थ स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' नेष पाठो व्याख्यात: ताडपत्रीयादर्श अर्वा आदर्शष एवं पाठभेदोस्ति --गेवेज्जगुत्तरोववा- चीनादर्शषु च 'सब्वे महिड्ढीथा जाव अहमिदा' तिया देवा कि एगत्तं पभू विउवित्तए पुहत्तं एवं पाठोस्ति, किन्तु प्रज्ञापनायाः स्थानपदावपभू विउवित्तए ? गोयमा ! एगपि लोकनेन (२०६०) प्रस्तुतसूत्रस्य १०५४ पहत्तंपि, नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा सूत्रस्य' वृत्तेरवलोकनेन (वृत्ति पत्र ३६३) विउव्वंति वा विउव्विरसंति वा । च स्वीकृतपाठस्यैव सङ्गतिविभाव्यते । ४. १११७, १११८ सूत्रयोः स्थाने क, ख, ग, ट, ८. ११२१-११२३ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु वाचना भेदोस्ति--सोहम्मीसाण- त्रि' आदर्शषु वाचना भेदोस्ति- सोहम्मीसाणा देवा केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुभवमाणा देवा केरिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! विहरंति ? गोयमा ! मणुण्णा सद्दा जाव दूविहा पणत्ता, तं जहा-वेदवियसरीरा य मणुण्णा फासा जाव गेविज्जा। अणुत्तरोववा- अवे उब्वियसरीरा य, तत्थ णं जेते वेउब्वियइया अणुत्तरा सहा जाव फासा ! सरीरा ते हारविराइयवच्छा जाब दस दिसाओ ५. अतः परं ११२० सूत्रपर्यन्तं वृत्तौ एतावदेव उज्जोवेमाणा पभासेमाणा जाव पडिरूवा, तत्थ व्याख्यातमस्ति---एवं तावद् वक्तव्यं यावद- पं जेते अवेउब्वियसरीराते णं आभरणवसणनुत्तरोपपातिका देवाः। रहिता पगतित्था विभूसाए पण्णत्ता। सोह Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउब्विहडिवत्ती दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरणवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पण्णत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते गं हारविराइयवच्छा जाव' दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पण्णत्ता ॥ ११२२. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पण्णत्ताओ? गोयमा ! दुविधाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउब्वियाओ य । तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ गं आभरणवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ। तत्थ णं जाओ उत्तरवेउव्वियाओ ताओ णं अच्छराओ सुवण्णसद्दालाओ सवण्णसहालाई वत्थाई पवर परिहिताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणओ उक्का विव उज्जोवेमाणीओ विज्जुधणमरीइसूरदिप्पंततेयअहिययरसण्णिकासाओ सिंगारागारचारुवेसाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। 'सेसेसु देवा, देवीओ गत्थि" जाव अच्चुतो।। ११२३. गेवेज्जादेवा के रिसया विभूसाए पण्णत्ता ? गोयमा ! गेवेज्जादेवाणं एगे भवधारणिज्जे सरीरए आभरणवसणरहिते पगतित्थे विभूसाए पण्णत्ते । एवं अणुत्तरावि ।। ११२४. सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पसु देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! इठे सद्दे इठे रूवे इठे गंधे इठे रसे इठे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति । एवं जाव गेवेज्जा । ११२५. अणुत्तरोववातियाणं अणुत्तरा सद्दा जाव अणुत्तरा फासा ।। ११२६. ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा देवीणवि ॥ म्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवीओ केरिसि- रावि । याओ विभूसाए पण्णत्ताओ? मोयमा ! दुवि- १. पण्ण० २।४६ । धाओ पण्णत्ताओ, तं जहाउम्बियसरीराओ २. सद्दालगाओ (ता)। य अवेउब्वियसरीराओ य, तत्थ णं जाओ ३. °सद्दालगाई (ता) ! वे उब्वियसरीराओ ताओ सवण्णसद्दालाओ ४. ४ (ता)। सुवष्णसद्दालाई बत्थाई पवर परिहिताओ ५. ४ (ता)। चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणि- ६.४ (ता)। ७. 'ता' प्रतो ईशानस्य पृथग निर्देशोस्ति, अन्योपि पासातीयाओ जाव पडिरूवा, तत्थ णं जाओ पाठभेदो विद्यते---सोहं २ देवा केरिसए कामअवेउब्वियसरीराओ ताओ णं आभारणवसण- भोगे पच्चणुभवमाणा वि ? गो इठे सद्दे ५ रहियाओ पगतित्थाओ विभूसाए पण्णत्ताओ, पच्चणु । एवं देवीओ। एवीसाणेपि २ सेसेसु देवा, देवीओ णत्थि जाव अच्चुओ, सणकुमारादि जहा सोहम्मा जाव अणत्तरागेवेज्जगदेवा केरिसया विभूसाए.? गोयमा! आभरणवसणरहिया, एवं देवी पत्थि भाणि- ८. 'ता' प्रती विस्तृतपाठो विद्यते-सोहम्मादेवाणं यवं, पगतित्था विभूसाए पण्णता, एवं अणुत्त- भंते ! केवतिकालं ठिती पं? गो जहं पलि देवा । Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ११२७. अनंतरं चयं चइत्ता जे जहिं गच्छति तं भाणियव्वं ॥ ११२८. 'सोहम्मे णं भंते! कप्पे वत्तीसाए विमाणावाससतसहस्सेसु एगमेगं सि विमाणावासंसि " सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए' देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उबवण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अतखुत्तों । एवमीसाणेवि ॥ ११२६. सणकुमारे पुच्छा । हंता गोयमा ! असई अदुवा अणतखुत्तो, णो चेव णं देवि - ता जाव गेवेज्जा | ११३०. पंचसु णं भंते ! महतिमहालएसु अणुत्तरविमाणेसु सव्वपाणा' सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो, णो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए ॥ ११३१. रइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई || ११३२. तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलि उक्को दो सागरोवमाणि । देवीणं जहं पलि उक्को सत्त पलि । ईसाणे देवाणं जहं सातिरे पलि उक्को साइरेगाई दो सागरोवमाणि । देवी जहं सातिरे पनि उक्को णव पलितो । सकुमा जहं दो सागरो उनको ७। माहिदे सातिरे ७ । बंभे ७, १० । संतए १०, १४ । महासु १४, १७ : एवं एक्केवर्क जाव अणुत्तराणं जहं ३१ उक्को ३३ | वृत्तावपि विस्तृतव्याख्या विद्यते । पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यं प्रज्ञापनायाश्चतुर्थं पदम् ४१२१३-२९६ सूत्राणि । ६. देवीत्ता एवि (क, ग ); देवाण य (ट); देवत्तावि (त्रि ) । १. 'ता' प्रती किञ्चिद् विस्तृतः पाठोस्तिसोधमा सोहंमा देवेहितो अणंतरे चयं चयित्ता कहिं गच्छति ? पुढ आउ वणस्सति पंचिदिएसु संखाउए । एवीसाणा | सणकुमारा एवं चैव गवरं एगिदिएसु ण उववज्जति । एवं जाव सहस्सारो | आणतादिसु मणुस्सेसु उववज्जेति जाव अणुत्तरा । वृत्तावपि किञ्चिद् व्याख्यातमस्ति । पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यं प्रज्ञापनायाः षष्ठं पदम्, ६।१२३-१२५ सुत्राणि । जीवाजीवाभिगमे २. सोहम्मीसाणे णं भंते कप्पेसु (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सतिकाइयत्ताए (क, ख, ग, ट, त्रि); असौ पाठः समीचीनो नास्ति, मलयगिरिणापि असो पाठः समीक्षितः - पृथ्वीकायतया देवतया देवीतया, इह च बहुषु पुस्तके तावदेव सूत्रं दृश्यते, क्वचित्पुनरेतदपि - 'आउका इयत्ताए तेउक्काइयत्ताए' इत्यादि तन्न सम्यगवगच्छामस्तेजस्कायस्य तत्रासम्भवात् । ४. अत: ११३० सूत्रपर्यन्तं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्ना वाचना दृश्यते---सेसेसु कप्पेसु एवं चैव, णवरि नो चेव णं देवित्ताए जाव वेज्जा, अणुत्तरोववातिएसुवि एवं जो चैव देवता देवित्ताए । सेत्तं देवा । ५. सं० पा०-- सव्वपाणा जाव देवत्ताए देवित्ताए आसण जाव हंता । ६. केवतियं कालं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ७. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति — एवं सव्वेसि पुच्छा, तिरिक्खजोणियाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्को Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तच्चा चउन्विहडिवत्ती ओवमाइं । एवं मणुस्सा । देवा जहा जेरइया ।। ११३३. णेरइए' णं भंते ! णेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति ? जहा कायद्विती देवाणवि एवं चेव ॥ ११३४. तिरक्खिजोणिए णं भंते ! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं ॥ ११३५. मणुस्से णं भंते ! मणुस्सेत्ति कालतो केवच्चिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुत्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई॥ ११३६. णेरइयस्सणं भंते ! केवतिकालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं वणस्सतिकालं ।। ११३७. तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं सागरोक्मसतपुहत्तं सातिरेगं । मणुय-देवाणं वणस्सतिकालं ।। ११३८. एतेसि णं भंते ! गैरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणस्साणं देवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा । सेत्तं चउविहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ सेणं तिण्णि पलिओवमाइं, एवं मणस्साण वि देवाणं जहा णेरइयाणं। १. ११३३,११३४ सूत्रयो: स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति–देवणेरइयाण जा चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा । तिरिक्खजोणियस्स जहणणं अंतोमहत्तं उक्कोसेण वणस्सतिकालो। २.११३६,११३७ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष एवं पाठभेदोस्ति-रइयमणुस्सदेवाणं अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहण्णणं अंतोमूहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तसाइरेग । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थी पंचविहपडिवत्ती १. तत्थ णं'जेते एवमाहंसु-'पंचविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता' ते एवमाहंसु, तं जहा-एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिदिया पंचिंदिया । २. से किं तं एगिदिया? एगिदिया दुविहा पण्णता, तं जहा-'पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य" 'एवं जाव पंचिदिया दुविहा--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य"|| ३. एगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं॥ ४. बेइंदिया जहणणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वारस संवच्छराणि । एवं तेइंदियस्स एगणपण्णं राइंदियाणं, चउरिदियस्स छम्मासा, पंचिदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाई ॥ ५. एगिदियअपज्जत्तगस्सणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । एव पंचण्हवि। ६. एगिदियपज्जत्तगस्सणं जाव पंचिदियाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वावीस वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई । “एवं उक्कोसियावि ठिती अंतोमुहत्तणा सव्वेसि पज्जत्ताणं कायव्वा ! ७. एगिदिए णं भंते ! एगिदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमु हुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।। ८. बेइंदियस्स गं भते ! बेइंदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं जाव चरिदिए संखेज्ज काल ।। ६. पंचेंदिए णं भंते ! पंचिदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ १०. एगिदियअपज्जत्तए णं भंते ! कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं जाव पंचिदियअपज्जत्तए । ११. एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतो१. ४ (क, ख, ग, त्रि)। ५. सव्वेसि अपज्जत्ताणं जाव पंचिदियाणं (क, ख, २. पज्जत्ता य अपज्जत्ता य (ता)। ग, ट, त्रि) ३. ४ (ता)। ६. पज्जत्तेगिदियाणं (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. अपज्जत्तएगिदियस्स (क, ख, ग, ट, त्रि) ७. एवं सव्वेसि अंतोमुहत्तणगा सयाठिति (ता) | ४७४ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचविपडिवत्ती मुहुत्तं, उक्कोसेणं संखिज्जाई वाससहस्साइं । १२. ' एवं बेइदिएवि, णर्वार - संखेज्जाई वासाई ॥ १३. तेइंदिए णं भंते ! संखेज्जा राइंदिया | १४. चउरिदिए णं संखेज्जा मासा ॥ १५. पंचिदिए सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं" ।। १६. एगें दियस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतर होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई ॥ १७. बेइंदियस्स णं 'केवतियं कालं अंतरं" होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ॥ १८. एवं ते इंदियस्स चउरिदियस्स पंचेंदियस्स 'अपज्जत्तगाणं एवं चेव । पज्जत्तगाणवि एवं चेव" ॥ १६. एएसि णं भंते ! एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसा हिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, एगिदिया अतगुणा ॥ २०. एवं अपज्जत्तगाणं- सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जत्तगा, चउरिदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिदिया अपज्जत्तगा अनंतगुणा ॥ २१. सव्वत्थोवा चतुरिदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया पज्जत्तगा अनंतगुणा ॥ २२. एतेसि णं भंते ! एगिदियाणं पज्जत्ताअपज्जत्तगाणं कयरे कयरहितो अप्पा वा बहु वा तुला वा विसेसहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिदिया अपज्जत्तगा, एगि१. एवं जा ठिती सा संखेज्जगुणा जाव चतुरिदिया । पंचि पज्जत्तएति कालतो के गो जह अंतोमु उक्को सागरोवमसतपुत्तं सातिरेगं (ar) 1 २. अंतरं कालओ के व च्चिरं ( क, ख, ग, ट, त्रि ) । ३. जहाहिगणं पंचण्डं अंतरं एवं अपज्जत्ताणवि पंच अंतरं एवं पज्जत्ताणं पंचहं अंतरं (ar) 1 ४. 'ता' प्रती १६-२५ सूत्राणां स्थाने संक्षिप्तवाचना दृश्यते- -अप्पा बहुगा पंच जहा बहुवत्तव्वताए । ५. अतः परं 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु 'सइंदिय TUX पज्जत्तगा विसेसाहिया' इति पाठो विद्यते । वृत्तौ नास्ति व्याख्यातोसो | अपर्याप्तसूत्रे आद शेष्वपि नास्ति 'सइंदियाणं' इति पाठो नास्ति । प्रारंभ तेनोपसंहारेपि नास्ति अपेक्षितोसी । एवं 'इंदिय' सूत्रमपि वृत्तौ नास्ति व्याख्यातम्, पंचविप्रतिपत्तौ नापेक्षितमपि । 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु तदेवं विद्यते-- एतेसि णं भंते ! सइंदियाणं पज्जतगा अपज्जत्तगाणं कयरे ? गोयमा ! सव्वत्थोवा सइंदिय अपज्जगा, सइंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा । अतो एवं एगेंदियावि' इति संक्षिप्तपाठोस्ति । Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै दिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ।। २३. एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं पज्जत्ताअपज्जत्तगाणं अप्पावहुं ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदिया पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ।। २४. एवं तेइंदिय-चरिदिय-पंचिदिया वि।। २५. एतेसि णं भंते ! एगिदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चरिंदियाणं पंचिदियाण य पज्जत्तगाण य अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा, पंचिदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तमा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, पंचिंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, चउरिदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, एगिदिया अपज्जत्ता अणंतगुणा', एगिदिया पज्जत्ता संखेज्जगुणा । सेत्तं पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा ।। १. अगंतगुणा सइंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. संखेज्जगुणा सइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया सईदिया विसेसाहिया (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमासु 'छन्विहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहापुढविकाइया आउक्काइया ते उक्काइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया ।। २. से' किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया बादरपुढविकाइया य॥ ३. सुहमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जतगा य अपज्जत्तगा य । एवं बादरपुढविकाइयावि । ‘एवं जाव वणस्सतिकाइया" ।। ४. से किं तं तसकाइया ? तसकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ।। ५. पुढविकाइयस्सणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वावीस वाससहस्साई।। ६. 'आउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, तेउकाइयस्स तिण्णि राईदियाई, वाउकाइयस्स तिणि वाससहस्साई, वणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, तसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं" ॥ ७. 'अपज्जतगाणं' सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगाणं सव्वेसि उक्कोसिया ठिती अंतोमुहुत्तूणा"। ८. पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइयत्ति कालतो केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! १. पृथिव्यप्लेजोवायुवनस्पतिविषयाणि त्रीणि ...पर्याप्तविषया षट्सूत्री पाठसिद्धा श्रीणि, त्रसकायविषयमेकमिति सर्वसङ्यया (मवृ)। षोडश सूत्राणि पाठसिद्धानि (मवृ)। ६. अपज्जत्ता अंतोमु पज्जत्ताणं ठिती अंतोमुहु२. एवं चउक्कएणं भेएणं आउतेउवाउवणस्सति- तुणा (ता)। काइयाणं चतु णेयव्वा (क, ख, ग, ट, त्रि) ७. ८-१० सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती एवं वाचना ३. स्थितिविषयं सूत्रषट्कं सुप्रतीतम् (मव) भेदोस्ति-पुढविक्काइए णं भंते ! पुढवि ४. एवं सव्वेसि ठिती यब्वा, तसका इयस्स जह- पुढवीणं संचिट्ठणा पुढविकालं जाव वाऊणं । म्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई वणस्सतीणं वणकालो । तसकातियाणं सचिटणा (क, ख, ग, ट, त्रि)। दो सागरोवमसहस्सा संखेज्जवासमन्महिया। ५. अपर्याप्तविषयाण्यपि पट सूत्राणि पाठसिद्धानि Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ' -- असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि ओसप्पिीओ कालओ, खेत्तओ' असंखेज्जा लोया । एवं आउ-तेउ वाउक्काइयाणं ॥ ६. वणस्सइकाइयाणं अणतं कालं -- अनंताओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा -- असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते गं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागे || ४७८ १०. तसकाइए णं भंते ! तसकाइयत्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई || ११. 'अपज्जत्तगाणं छहवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्त " || १२. पुढविक्काइयपज्जत्तए' णं भंते! पुढविक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उनकोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं । एवं आऊवि || १३. ते उक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! तेउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई राइंदियाई ॥ १४. वाउक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! वाउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं | १५. वणस्सइकाइयपज्जत्तए णं भंते ! वणस्सइकाइयपज्जत्तएति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई || १६. तसकाइयपज्जत्तए णं भंते ! तसकाइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ॥ १७. अंतरं पुच्छा । गोयमा ! पुढवीणं वणस्सतिकालो जाव वाऊणं । वणस्तीर्ण पुढविकालो । तसस्स वणस्सतिकालो । एवं अपज्जत्ताणं एवं पज्जत्ताणं अंतरं ॥ १. सं० पा० - कालं जाव असंखेज्जा । २. एवं जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. सं० पा० – कालं जाव आवलियाए । ४. अपज्जत्ताणं संचिट्ठणा अंतोमुहृत्तं ( ता ) ! ५. १२-१६ एतानि पञ्च सूत्राणि मलयगिरिवृत्तिमनुसृत्य प्रज्ञापनायाः कार्यस्थितिपदात् ( १८३१-४४) गृहीतानि सन्ति । 'ता' प्रती या वाचनास्ति सा अर्वाचीनादर्शेषु नोपलभ्यते । ताः - पज्जत्ताणं संचिट्टणा जा जस्सुक्कोसा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतीणं संखेज्जाई वाससहस्साई । तसार्ण पज्जत्ताणं संचिट्टा सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं । क, ख, ग, ट, त्रिः --- पज्जत्तगाणं – वाससहस्सा संखा | पुढविदगाणिलतरूण पज्जत्ता । तेऊ राईदिसंखा तससागरसतपुहत्तमम्भहियं ( पुहुत्ताई - ग ) | पज्जत्तगाणं सव्वैसि एवं ! २. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेषु एवं पाठभेदोस्ति — पुढविकाइयस्स जं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्को सेणं वणस्सतिकालो | एवं आउ-तेउ वाउकाइयाणं वणस्स - इकालो, तसकाइयाणदि, वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो । एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्स इकालो, वणस्सईणं पुढविकालो। पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्स इकालो, पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो | वृत्ती पृथ्वीकायिक सूत्रस्य व्याख्याया अनन्तरं एवं व्याख्यातमस्ति - एवमप्तेजोवायुत्रसूत्राण्यपि भावनीयानि । वनस्पतिसूत्रे उत्कर्ष तो संख्येयं कालम् 'असं खेज्जाओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालतो Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छन्विहडिवत्ती १८. अप्पाबहुयं'-सव्वत्थोवा' तसकाइया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउक्काइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अणंतगुणा । एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि। १६. एतेसि' णं भंते ! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपज्जत्तयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतिकाइयावि। सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ॥ २०. एएसि" णं भंते ! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तग-अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ते उक्काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया आउक्काइया वाउक्काइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया', तेउक्काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, पुढवि-आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा", वणस्सतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा" ॥ २१. सुहमस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । ‘एवं जाव सुहमणिओयस्स", एवं" अपज्जत्तगाणवि, पज्जत्तगाणवि जहण्णेणवि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।।। २२, सुहमे" णं भंते ! सुहुमेत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! जहपणेणं अंतो (ता)। खेत्ततो असंखेज्जा लोगा' इति वक्तव्यम् (वत्ति (क, ख, ग, ट)। पत्र ४१२) तथा अपर्याप्तकानां पर्याप्तकानां ११. संखेज्जगुणा सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया च अन्तरकालो नैव व्याख्यातोस्ति । (क, ख, ग, ८)। १. १८-२० सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतो संक्षिप्ता १२. एवं सव्वं जाव सुहमणिओगे सुहुमवणस्सति वाचनास्ति--अप्पाबहुगा पंच। १३. अतः सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती एवं पाठभेदोस्ति-- २. प्रथममल्पबहुत्वम् । सुहमअपज्जत्तस्स णं भं केव ट्रि? गो! जहं ३. द्वितीयमल्पबहुत्वम् । अंतोमु उक्को अंतो । एवं सव्वे ७ । एवं पज्ज४. तृतीयमल्पबहुत्वम् । त्तावि मुहत्तं ७ । वृत्तौ एतावत: पाठस्य स्थाने ५. चतुर्थमल्पबहुत्वम् । चतुर्दश सूत्राणां सङ्केतोस्ति-एवं सप्तसूत्री ६.सं० पा०-अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया। अपर्याप्तविषया सप्तसूत्री पर्याप्त विषया ७. पञ्चममल्पबहुत्वम् । वक्तव्या, सर्वत्रापि जघन्यत उत्कर्षतश्चान्त८. पृथिव्यवायवोऽपर्याप्तका: क्रमेण विशेषाधिकाः मुहूर्तम् (वृत्ति पत्र ४१४)। प्रभूतप्रभूततरप्रभूततममसंख्येयलोकाकाशप्रदेश- १४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'ता' प्रती एवं पाठराशिमानत्वात् (मवृ)। भेदोस्ति–सुहमे णं भंते ! सुहुमेति कालतो ९. ततः पृथिव्यवायवः पर्याप्ता: क्रमेण विशेषा- केवचिरं होति ? पुढविकालो, एवं सब्वे ७ । धिकाः (म)। सुहमअप जहं अंतोम उक्को अंतो एवं सब्वे ७॥ १०. अगंतगुणा सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया एवं पज्जतापि मुहुत्तं ७॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० जीवाजीवाभिगमे मुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जकालं जाव' असंखेज्जा लोया। सन्वेसिं पुढविकालो जाव सुहमणिओयस्स पुढविकालो। अपज्जत्तगाणं' सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । एवं पज्जत्तगाणवि सव्वेसिं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुत्तं ।। २३. सुहमस्स पं भंते ! 'केवतियं कालं अंतरं" होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं-असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो।। २४. 'सुहमपुढविकाइयस्स गं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जावं आवलियाए असंखेज्जतिभागे"। एवं जाव वाऊ। सुहुमवणस्सति-सुहुमनिओगस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं जहा ओहियस्स अंतरं । एवं अपज्जत्ता-पज्जत्तगाणवि अंतरं ॥ २५. अप्पाबहुगे-सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउ-वाऊ विसेसाहिया, सुहमणिओया असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अणंतगुणा, सुहमा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगाणं', पज्जत्तगाणवि एवं चेव ॥ २६. एतेसि णं भंते ! सुहमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहमा अपज्जत्तगा, सुहुमा पज्जत्ता संखेज्जगुणा" । एवं जाव सुहुमणिगोया ।। २७. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहमपुढविकाइयाणं जाव सुहमणिओयाण य पज्जत्तापज्जत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा सुहुमते उकाइया अपज्जत्तगा, सुहमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमआउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहमवाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सहमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि-आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमणिओया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओया पज्जतगा संखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सुहुमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहमा पज्जत्ता विसेसाहिया ॥ १. जी. ५१८। ६.सहमे पुढविअंतरं वणस्सतिकालो (ता)। २. वृत्तौ एवं' सूत्रसङ्केतो विद्यते---एवं सूक्ष्मा- ७. यथा चेयमौधिकी सप्तसूत्री उक्ता तथाऽपर्याप्तपर्याप्तपथिव्यादिविषयापि पटसत्री वक्तव्या। विषया सप्तसूत्री पर्याप्त विषया च सप्तसत्री एवं पर्याप्त विषयापि सप्तसूत्री। वक्तव्या नानात्वाभावात् (म)। ३. अंतरं केवच्चिरं (ता)। १. एवं अप्पाबहुगं (क, ख, ग, ट, त्रि); २५४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद- २७ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्ता शेषु एवं पाठभेदोस्ति----सुहुमवणस्सति काइयस्स वाचनास्ति अप्पाबहुगाणि पंच । सहमणिओयस्सवि जाव असंखेज्जइभागो। ६. अपज्जत्तगाणं सुहमा अपज्जत्ता विसेसाहिया पुढविकाइयादीणं वणरसतिकालो। एवं (क) । अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणवि । १०. असंखेज्जगुणा (त्रि) इति अशुद्धम् । ५. जी० ५९। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४८१ २८. बायरस्स' णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। वादरपुढविकाइयस्स वावीसं वाससहस्साई, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साई, बादरतेउक्काइयस्स तिण्णि राइंदियाई, बादरवाउकाइयस्स तिण्णि वाससहस्साइं, बादरवणस्सतिकाइयस्स दसवाससहस्साई, पत्तेयबादरवणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, जिओदस्स बादरणिओदस्स य अंतोमुहत्तं जहण्णुक्कस्स, बादरतसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं, अपज्जत्ताणं सव्वेसिं अंतोमुहत्तं, पज्जत्ताणं उक्कोसा अंतोमुहुत्तूणा । णिओदस्स बादरणिओदस्स य पज्जत्तागं अंतोमुहुत्तं जहण्णेणवि उक्कोसेणवि ।। २६. बायरे णं भंते ! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखज्जं कालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओस प्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो' । बादरपुढविसंचिट्ठणा जहण्णेणं अंतोमुह तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव वादरवाऊ। बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ । बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। णिोते जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं अणंताओ उस्स प्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अड्ढाइज्जा पोग्गलपरियट्टा । बादरणिोते जहा बादरपुढवी । बादरतसकाइयस्स दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाई । अपज्जत्ताणं सब्वेसि अंतोमुहत्तं । वादरपज्जत्ताणं संचिटणा जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं । बादरपुढविकाइयस्स संखेज्जाइं वाससहस्साइं, एवं आऊ, तेउकाइयस्स संखेज्जाइ राइंदियाई, वाउकाइयस्स संखेज्जाई वाससहस्साइं, एवं बादरवणस्सतिपज्जत्तए, पत्तेगवादरवणस्सतिकाइयस्सवि. वादरणिओदपज्जत्तए जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, गिओदपज्जत्तए वि अंतोमुहुत्तं, वादरतसकाइयपज्जत्तए सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेग ।। १. वृत्तिकृता अस्मिन्नालापके त्रिशत् सूत्राणि वाचना दृश्यते-बायरपुढविकाइयआउतेउव्याख्यातानि । वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायर२. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शष एवं निओयस्स एतेसि जहण्णेणं अंतोमु उक्कोसेणं वाचना भेदो विद्यते--ठिई पण्णत्ता, एवं बाय- सरि सागरोबमकीडाकोडीओ।। रतसकाइयस्सवि, बायरपुढवीकाइयरस बावीस संखातीयाओ समाओ, अंगुलभागे तहा असंखेज्जा। वाससहस्साई, बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं, ओहे य बायरत रु-अणुबंधो सेराओ वोच्छं ॥१॥ बायरतेउस्स तिणि राइंदिया, बायरवाउस्स उस्सप्पिणि-ओसप्पिणी, अडढाइय पोग्गलाण तिणि वाससहस्साई, बायरवण दस वाससह __ परियट्टा! स्साइं, एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि, जिओयस्स बेउदधिसहस्सा, खलु साधिया होंति तसकाए ॥२॥ जहणणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायर- अंतोमुत्तकालो होइ अपज्जत्तगाण सम्वेसि । णिओयस्सवि। अपज्जत्तगाणं सब्वेसि अतो- पज्जत्तबायरस्स य, बायरतसकाइयस्सावि ॥३॥ महत्तं, पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमूह- एतेमि ठिई सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं तूणा कायव्वा सव्वेसि । तेउस्स संख राइंदिया, दुविहणिओए मुहत्तमद्धं तु । ३. अतः परं क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु भिन्ना सेसाणं संखेज्जा, वाससहस्सा य सध्वेसि ॥४॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ३०. बादरस्स' णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो । बादरपुढविकाइयस्स वणस्सतिकालो जाव बादरवाउकाइयस्स, वादरवणस्सतिकाइयस्स पुढविकालो, पत्तेयवादरवणस्स इकाइयस्स वणस्सतिकालो, णिओदो बादरणिओदो य जहा बादरो ओहिओ, बादरतसकाइयस्स वणस्सतिकालो | अपज्जत्ताणं पज्जत्ताणं च एसेव विही ॥ ३१. अप्पाबहुयाणि – सव्वत्थोवा वाय रतसकाइया, बायर उकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवादरवणस्सतिकाइया असंखेज्जगुणा, बायरणिओया असंखेज्जगुणा, वायरपुढ विकाइया असंखेज्जगुणा आउ वाउकाइया असंखेज्जगुणा, वायरवणस्स तिकाइया अनंतगुणा, बायरा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगाणवि । पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायर उक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेगसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव वादरा विसेसाहिया || ३२. एतेसि णं भंते! वायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा वायरा पज्जत्ता, वायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुण एवं सव्वे जाव बायरतसकाइया || ३३. एएसि णं भंते ! वायराणं वायरपुढविकाइयाणं जाव वायरतसकाइयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा बायर उक्काइया पज्जत्तगा, वादरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरतसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरी वायरवणस्सतिकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरणिओया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पुढवि-आउ वाउकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायर उकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीर वायरवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरा णिओगा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरपुढवि-आउ वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा अनंतगुणा, वायरपज्जत्तगा विसेसाहिया, वायरवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरा विसेसाहिया || ३४. एसि णं भंते ! हुमाणं सुहमपुढविकाइयाणं जाव सुहमनिगोदाणं बायराणं बारपुढविकाइया जाव वायरतसकाइयाथ य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा वायरतसकाइया, बायर तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरी वायरवणस्स इकाइया असंखेज्जगुणा, तहेव जाव बायरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमते उक्काइया असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम ४८२ १. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदशेंषु वाचनाभेदो विद्यते--- अंतरं बायरस्स बायरवणस्पतिस्स जिओयस्स बायरणिओस्स एतेसि चउन्हवि पुढविकालो जाव असंखेज्जा लोया, सेसाण वणस्सतिकालो । एवं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणवि अंतरं । आहे व बायरतरु, ओघनओए वायरणिओए य । कालमसखेज्जं अंतरं, सेसाण वणस्पतिकालो ॥१॥ २. ३१-३६ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ संक्षिप्ता वाचनास्ति अप्पा बहुताणि पंच मीसमाणि विभाषितव्वाणि पंच जहा बहुवत्तव्वताए । Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४८३ आउकाइया सुहुमवाउकाइया विसेसायिा, सुहम निमओया असंखेज्जगुणा, वायरवणस्सतिकाइया अणंतगुणा, वायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, सुहमा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि, णवरि-सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया पज्जत्ता, बायरतसकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहुमा पज्जत्ता विसेसाहिया ॥ ३५. एएसि णं भंते ! सुहुमाणं बादराण य पज्जत्ताणं अपज्जत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? (गोयमा! ? ) सव्वत्थोवा वायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्ता, सुहमपज्जत्ता संखेज्जगुणा, एवं सुहुमपुढविबायरपुढवि जाव सुहुमनिओया वायरनिओया, नवरं--पत्तेयसरीरवायरवणस्सतिकाइया सव्वत्थोवा पज्जत्ता, अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा। एवं वादरतसकाइयावि ॥ ३६. सव्वेसिं पज्जत्तअपज्जत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा वायरतेउक्काइया पज्जता, वायरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ते चेव अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरवाय रवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरणिओया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्जगणा, आउ-वाउकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगणा, बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगणा. पत्तेयसरीरवायरवणस्सइकाइया असंखेज्ज गुणा, वायरणिओया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बायरपुढवि-आउ-वाउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा. सहुमते उकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि-आउ-वाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि-आउ-वाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहमणिगोया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहमणिगोया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, वायरवणम्सतिकाइया पज्जत्तगा अणंतगुणा, बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरवणस्सइकाइया अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, वायरा अपज्जत्ता विसेसाहिया, वायरा विसेसायिा, सुहुमवणस्सतिकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्ता संखेज्जगुणा, सुहुमा पज्जतगा विसेसाहिया, सुहमा विसेसाहिया ॥ ३७. कतिविधा' णं भंते ! णिओदा' पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा' पण्णत्ता, तं जहाणिओदा य णिओदजीवा य॥ १. क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शपु वृत्तौ च निगोदा निगोदजीवाश्च यथा सन्निधिलिखिता व्याख्याताश्च सन्ति । ताडपत्रीयादर्श निगोदानां पूर्ण प्रकरणं एकत्र विद्यते, तदनंतरं च निगोदजीवानां, ततश्च निगोदानां निगोदजीवानामल्पवहृत्वम् । अस्माभि: ताडपत्रीयादर्शक्रमोतिप्राचीनत्वेन च व्यवस्थितत्वेन स्वीकृतः । अस्मिन् क्रमे नमापतितानां मूत्राणां व्यवस्था निम्नाइर्बोद्धव्या-- ता अर्वाचीनादर्शवृत्तिः ता अर्वाचीनादर्शवृत्तिः ता अर्वाचीनादर्शवृत्तिः १४-१६ २०-२२ २०-२२ १७-१६ १७-१६ ५-७ २३-२४ २३-२४ २. गिओता (ता)। ३. दुविहा णिओदा (क, ख, ग, ट, त्रि) । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ जीवाजीवाभिगमे ३८. णिओदा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहमणिओदा य बायरणिओदा य ।। - ३६. सुहमणिओदा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-'पज्जत्ता य अपज्जत्ता य"। ४०. बादरणिओदावि दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--पज्जत्ता य अपज्जत्ता य॥ ४१. णिओदा णं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अगंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणता ॥ ४२. अपज्जत्ता' णं भंते ! णिओदा दवट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४३. पज्जत्ता णं भंते ! णिओदा दवट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखंज्जा, असंखज्जा, णो अणता ।। ४४. सहमणिओदा णं भंते ! दवद्वयाए कि संखेज्जा? असंखेज्जा? अणता? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४५. अपज्जत्ता'णं भंते ! सुहमणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४६. पज्जत्ता णं भंते! सुहमणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा? असंखेज्जा? अणता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४७. वादरणिओदाणं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता॥ ४८. अपज्जत्ता णं भंते ! वादरणिओदा दवट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणता? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ।। ४६. पज्जत्ता णं भंते ! वादरणिओदा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता? गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता ॥ ५०. णिओदा णं भंते ! पदेसट्टयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा ? अणंता ? गोयमा ! पो संखेज्जा. णो असंखेज्जा, अणंता। एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि ।। ५१. 'एवं सुहमाणवि तिग्णि आलावगा पदेसट्टयाए सव्वे य अणंता। एवं पदेसट्टताए बादराणवि तिण्णि आलावगा सत्वे य अणंता । एमए दव्वपदेसेहिं अट्ठारस आलावगा। ५२. एतेसि णं भंते ! णिओदाणं सुहुमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं दब्वट्ठयाए १. पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. ४२,४३ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तपाठोस्ति-एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि। ३.४५,४६ सूत्रयोः स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेष संक्षिप्तपाठोस्ति-एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । ४. ४७-४६ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ८, त्रि' आदर्शषु संक्षिप्तपाठोस्ति-एवं बायरावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । ५. एव सुहमणिओयावि पज्जत्तगावि अपज्जत्त गावि । एवं बायरणिओयावि पज्जत्तयावि अपज्जत्तयावि सध्वे अर्णता (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४८५ पदेसट्टयाए दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दवट्ठयाए, बादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमणिओदा अपज्जत्ता दन्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमणिओदा पज्जत्ता दवट्ठयाए संखेज्जगुणा। 'पदेसद्वताए-सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, वादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा"। दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए-सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए, 'बादरणिओदा अपज्जत्ता दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमणिओदा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमजिओदा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए संखज्जगुणा सुहुमणिओदेहितो पज्जत्तएहितो दन्वट्ठयाए वादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए अणंतगुणा, बादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेसट्ठताए संखेज्जगुणा ॥ ५३. णिओदजीवा णे भंते ! कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---सुहमणिओदजीवा य बादरणिओदजीवा य ॥ ५४. 'सुहमणिओदजीवा णं भंते ! कति विहा पण्णत्ता ? गोयमा" ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ॥ ५५. 'वादरणिओदजीवा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ताय ।। ५६. शिगोदजीवा णं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा? अणता? गोयमा ! णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अणंता। एवं अपज्जत्तावि अणंता, पज्जत्तावि अणंता ॥ ५७. 'एवं सुहमावि पज्जत्ता अपज्जत्ता तिविधावि अणंता॥ ५८. 'बादरणिओदजीवा णं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा ? असंखेज्जा? अणंता ? गोयमा ! णो संखेज्जा, णो असंखेज्जा, अणंता। एवं अपज्जत्तावि, एवं पज्जत्तावि। एवेते णिओदजीवेसु दबट्टयाए णव आलावगा सव्वेवि अणंता" ‘एवं पदेसट्टयाएवि णव आलावगा सव्वेवि अणंता । एवमेते णिओदजीवेसु सुहुम-वादरेसु दन्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए अट्ठारस आलावगा अणंता" ॥ १. एवं पदेमटुताएवि (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ३. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि)। ४. सुहमणिगोदजीवा (क, ख, ग, ट, त्रि)! ५. बादरणिगोदजीवा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ६. एवं सुहमणिओयजीवावि पज्जत्तगावि अपज्ज तगावि (क, ख, ग, ट, त्रि)। ७. बादरणिओयजीवावि पज्जत्तगावि अपज्जत्त गावि (क, ख, ग, ट, त्रि) । ८. एवं णिोदजीवा नवविहावि पएसट्टयाए सम्वे अणंता (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमै ५६. एतेसि' णं भंते! णिओदजीवाणं सुहृमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं या पट्टया दव्वटु-पदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा । पदेसट्टयाए -- सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा । दव्वटु-पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा वादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए, वादरगिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहृमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवेहितो पज्जतेहितो दव्वट्टयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, बादरणिओदजीवा' अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा || ६०. एतेसि णं भंते ! 'णिओदाणं णिओदजीवाणं सुहमाणं बादराणं पज्जत्ताणं अपज्जन्त्ताणं" दव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वट्ट-पदेसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा बादरणिओदा पज्जत्ता दव्वटुयाए, वादरणिओदा अपज्जत्ता दव्बट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिओदा पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहुमणिओदेहितो' पज्जत्तएहितो दव्वट्टयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्टयाए अनंतगुणा, वादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुमणिओदजीवा' पज्जत्ता दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा । पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए, वादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, मणिगोदजीवापज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा', सुहुमणिओदजीवेहितो " पज्जत्तएहितोपदेयाए बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए अनंतगुणा, वादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुम१. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आद- ३. निगोदाणं सुहुमाणं बायराणं शेषु एवं पाठभेदोस्ति एवं णिओयजीवावि, वरि संकमए जाव सुहुमणि आयजीवेहितो पज्जत्तएहितो दव्वट्टयाए बायरणिओयजीवा पज्ज पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहुमणिओयजीवा पज्जत्ता पएसट्टयाए संखेज्जगुणा । २. °णिओता जीवा (ता) अग्रेपि एवमेव । ४८६ पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं निओयजीवाणं सुहुमाणं बायराणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं ( क, ख, ग, ट, त्रि) । ४. सुहुमणिओतेहितो (ता) । ५. ओदा जीवा (ता) अग्रेपि एवमेव । ६. असंखेज्जगुणा (ता) । ७. सुमणिओगा जीवेहिंतो ( ता ) । 5. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि ) । Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी छविहपडिवत्ती ४८७ हिओदा पज्जता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा । दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा वादरणिओदा पज्जत्ता दवट्ठयाए, वादरणिओदा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, 'सुहुमणिओदा अपज्जत्ता दबटुताए असंखेज्जगुणा", सुहमगिओदा पज्जत्ता दन्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, सुहमणिओदेहितो पज्जत्तएहितो दव्वट्टयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, 'बादरणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, मुहमणिओदजीवा अपज्जत्ता दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा", सुहमणिओदजीवा पज्जत्ता दबट्टयाए संखेज्जगुणा, सुहुमगिओदजीवेहितो' पज्जत्तएहितो दव्वट्ठयाए बादरणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, 'वादरणिओदजीवा अपज्जत्ता पदेट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहमणिोदजीवा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, मुहमणिओदजीवा पज्जत्ता पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, सुहमणिोदजीवेहितो पज्जत्तएहितो पदेसट्ठयाए बादरणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए अणंतगुणा, वादरणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओदा अपज्जत्ता पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा", सुहुमणिओदा पज्जत्ता पदेसट्टयाए संखेज्जगुणा । सेत्तं छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ १. जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। २. सेसा तहेव जाव (क,ख,ग,ट,त्रि) । ३. सुहुमणिओतजीवेहितो (ता)। ४. सेसा तहेव जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठी सत्तविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंस, तं जहा–नेरइया तिरिवखा तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ ॥ २. जेरइयस्स' ठितो जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं॥ ३. तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई ।। ४. एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मणुस्साणवि, मणस्सीणवि ॥ ५. देवाणं ठिती तहा णेरइयाणं ॥ ६. देवीणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपण्णपलिओवमाणि ॥ ७. नेरइय-देव-देवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा ।। ८. तिरिक्खजोणिएणं भंते ! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ह.तिरिक्खजोणिणीणं जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुन्वकोडिपुहत्तमन्भहियाई । एवं मणुस्सस्स मणुस्सीएवि ।। १०. गैरइयस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं सव्वाणं तिरिक्खजोणियवज्जाणं ।। ११. तिरिक्खजोणियाणं जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ।। १२. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ, मणुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्जगणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा', देवीओ १. २-११ सूत्राणां स्थाने ताडपत्रीयादर्श संक्षिप्ता कृता उभयत्रापि 'देवाः संख्येयगुणाः' इति वाचनास्ति--सत्तण्हवि ठिती, सत्तण्हवि व्याख्यातम् । सम्भाव्यते वत्तिकृता आदर्शेष संचिटणा ओहियाणं अपज्ज पज्जत्ताणं, देवा संखेज्जगुणा' इति पाठो लब्धः, इदानीतिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहं अंतोमु उक्को मपि केषुचिदादर्शेषु एष पाठो लभ्यते, तं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं सेसाणं छवि । पाठमनुसृत्य वृत्तिकृता 'देवाः संख्येयगुणा' इति २. आदर्शषु नवमप्रतिपत्तावपि (१२२०) देवा पाठस्य महादण्डकानुसारेण समर्थनं कृतम्असंखेज्जगुणा' इति पाठो लभ्यते, किन्तु वृत्ति- ताभ्यो देवाः संख्येयगुणाः, वानमन्तरज्योतिष् ४८८ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठी सत्तविहपडिवत्ती ४८६ संखेज्जगुणाओ, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा ।। काणामपि जलचरतियंग्योनिकीभ्य: संख्येयगुणतया महादण्डके पठितत्वात् (वृत्तिपत्र ४२८) महादण्ड के जलचरस्त्रीभ्यः व्यन्तराणो देवानां संख्येय गुणत्वमस्ति (प्रज्ञापनावृत्तिपत्र १६५) । एतदपेक्षया वृत्तिकृतो मतं समीचीनं, किन्तु समग्रदेवापेक्षया नैतत समीचीनं भवति, प्रज्ञापनायास्तस्मिन्नेव पदे (३१३६) 'देवा असंखे ज्जगुणा' इति पाठोस्ति । वृत्तिकृता इत्थमेव व्याख्यातमस्ति--ताभ्योपि देवा असंख्येयगुणाः, असंख्येयगुणप्रतरासंख्येयभागवर्त्य संख्येयश्रेणिगतप्रदेशराशिमानत्वात् (प्रज्ञापनावृत्तिपत्र १२०) अनेन इदं स्पष्टं भवति यत्र समनदेवापेक्षः पाठस्तत्र 'असंखेज्जगुणा' इति पाठ एवं युक्तः। Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो अट्ठविहपडिवत्ती १. तत्थ जेते एवमाहंसु 'अट्टविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु-पढमसमयनेरइया अपढमसमयने रइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणुस्सा अपढमसमयमणुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा ।। २. पढमसमयनेरइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता? गोयमा ! 'एगं समयं ठिती पण्णत्ता" ॥ ३. अपढमसमयनेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साई समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई।। ४. 'एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एग समयं"॥ ५. अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहणणं खुड्डाग भवगहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाइं समयूणाई॥ ६. 'मणुस्साणं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाइं समयूणाई"। ७. देवाणं जहा णेरइयाणं ।।। ८. रइय-देवाणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिटणावि" ।। ६. पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होती? गोयमा ! 'एक्कं समयं ॥ १०. अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहणणं खुड्डाग भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ११. पढमसमयमणुस्साणं एक्क" समयं ।। १. पढमसमयने रइयस्स जह एककं समयं उक्का ४. णरइयाणं ठिती (क,ख,ग,ट,त्रि)। एक्कं समय (क,ख,ग,ट,त्रि)। ५. संचिट्ठणा दुविहाणवि (क,ख,ग,ट,त्रि)। २. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जह एक्कं समयं ६. जह एक्कं समयं उक्को एक्कं समयं (क,ख,ग, उक्को एक्कं समय (क,ख,ग,ट,त्रि)। ट,त्रि) । ३. एवं मणुस्साणवि जहा तिरिक्खजोणियाणं ७. जह उ एक्कं (क,ख,ग,ट,धि)। (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४६० Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमी अविहपडिवत्ती १२. अपढमसमयमणुस्साणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुदकोडिपुहत्तमब्भहियाई॥ १३. अंतर-पढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहत्तमब्भयिाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ॥ १४. अपढमसमयणेरइयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं', उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १५. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहणणं दो खुड्डागाई भवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ १६. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं । १७. पढमसमयमणुस्सस्स जहणेणं दो खुड्डाई भवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।। १८. अपढमसमयमणुस्सस्स जहणेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहिय, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ॥ १६. 'देवा जहा नेरइया" ॥ २०. अप्पाबहगं-एतेसि णं भंते ! पढमसमयणे रइयाणं जाव पढमसमयदेवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, पढमसमयणे रइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा ।। २१. अपढमसमयणे रइयाणं जाव अपढमसमयदेवाणं एवं चेव अप्पावहुं, णवरि--- अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ।। २२. एतेसि पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा पढमसमयणेरइया, अपढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा । ‘एवं सब्वे, णवरं-- अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा" ।। २३. 'पढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, अपढमसमयमणुस्सा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं अट्ठविहा संसारसमावण्णगा जीवा॥ १. अत: परं ताडपत्रीयादर्श वृत्तौ च 'देवा जहा अंतोमुहुतमब्भहियाई उक्को वणस्सइकालो, रइया' इति पाठो लभ्यते, किन्तु 'णे रइय- अपढमसमय जह अंतो उक्को वणस्सइकालो देवाणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिटणावि' इति (क,ख,ग,ट,त्रि)! सूत्रेण गतार्थत्वात नापेक्षितोसो विद्यते । ४. एवं सव्वे (क,ख,ग,ट,त्रि); पुच्छा सव्वत्थो पढमसमयति अपतिरि अणं (ता) । २. अप्रथमसमयने रयिकसूत्रे पृथग् नोक्तः (म)। ५. अटूण्हवि पुच्छा (ता)। ३. देवाणं जहा रइयाणं जह दसनासहस्पाई ६. जीवा पाता (क,ख,ग,ट,त्रि)। Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमी नवविपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'णवविधा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसुपुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चरिदिया पंचेंदिया || २. ठिती सव्वेसि भाणियव्वा ॥ ३. पुढविक्काइयाणं संचिणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ॥ ४. अंतरं सव्वेसि अणंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं ॥ ५. अप्पा बहुगं - सव्वत्थोवा पंचिदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, ते उक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा । सेत्तं णवविधा संसारसमावण्णगा जीवा ॥ १. २-४ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ एवं पाठभेदोस्तिठिती पुव्वभणिता aura संचिट्ठणा, पुढविभाउते उबाऊणं पुढविकालं, वणस्सतीणं वणस्सतिकालं बिदिग ३ संखेज्ज ४६२ कालं पंचिदिए सागरोवमसहस्सं सातिरेगं । पुढविस्तरं वणकालो जाव वाऊ, वणस्सति पुढविकालो, विदि ३, ४, ५ वणकालो अंतरं । २. अप्पाबहुए पुच्छा (ता) | Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती १. तत्थ णं जेते एवमाहंसु 'दसविधा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहापढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया' पढमसमयतेइंदिया अपढमसमयतेइंदिया पढमसमयचरिदिया अपढमसमयचरिदिया पढमसमयपंचिदिया अपढमसमयपंचिंदिया । २. पढमसमयएगि दियस्सणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! 'एगं समयं" | अपढमसमयएगिदियस्स जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं ससहस्साई समयणाई। एवं सव्वेसि पढमसमयिकाणं 'एग समयं अपढमसमयिकाणं जहण्णेणं खुड्डागं भवरगहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई॥ ३. संचिट्ठणा-पढमसमइयस्स 'एग समयं"। अपढमसमयिकाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं' एगिदियाणं वणस्सतिकालो, बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं संखेज कालं, पंचिंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ।। ४. पढमसमयएगिदियाणं केवतियं अंतरं होति ? गोयमा! जहण्णेणं दो खड्डागाई १. सं० पा०--अपढमसमयबेइंदिया जाव पढम- अपढएगिदियस्स अंतरं जहं खड्डा समयाधिगं समयपंचिंदिया। उक्को दो सागरोवमसहस्साई। एवं पढम२. २-४ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रतौ एवं पाठभे- समयिगाणं सम्बेसि जहं दो खु समयूणाई दोस्ति-पढमसमयिगाणं एग समयं ठिती, उक्को बणकालो अपढ जहं खुड्डा समयधिगं अपढम जहं खुडाग भ समयूणं उक्कोसाग उक्को वणकालो। सता ठिती समयूणा जाव पंचिदिया। पढम- ३. जहणणं एक्कं समयं उक्को एक्कं (क, ख, ग, समयिगाणं सव्वेसी एगं समयं संचिटुणा, ट, त्रि)। अपढमसमयेमेंदिया जहं खुड्डागं भ समयूर्ण ४. जहणेणं एक्को समओ उक्कोसेणं एक्को समओ उक्को वणकालो, बेइंदियातेइंदिय चउ जहं खुड्डा समयूर्ण उक्को संखेज्ज कालं पंचिदियो ५. जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं एक्कं समय अपढमस जहं खड़ा समऊणं उक्को सागरोवम- (क,ख,ग,ट.त्रि)। सहस्सं सातिरेगं । पढमसमयएगिदियस्स अंतरं ६. उक्कोस्सेणं (ख)। जहं दो खुड्डाई समयूगाई उक्को वणकालो, ४६३ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ जीवाजीवाभिगमे भवग्गहणाई समयूणाई, उवकोसेणं वणस्सतिकालो ! अपढमसमयएगिदियाणं अंतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गणं समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमभहियाई । सेसाणं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं अंतरं जहण्णेणं दो खुड्डागाई भवग्हणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहण्णणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो॥ ५. पढमसमइयाणं सव्वेसि सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, पढमसभयवेइंदिया विसेसाहिया, पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया । एवं अपढमसमयिकावि, णवरि-अपढमसमयएगिदिया अणंत गुणा ।। ६. दोण्हं अप्पवयं-सव्वत्थोवा पढमसमयएगिदिया, अपढमसमयएगिदिया अणंतगुणा, सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमयिगा अपढमसमयिगा असंखेज्जगुणा ॥ ७. एतेसि णं भंते ! पढमसमयएगिदियाणं अपढमसमयएगि दियाणं जाव अपढमसमयपंचिदियाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयच उरिदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया, 'पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया', पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया, अपढमसमयपंचेंदिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयचरिदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिदिया अगंतगुणा । सेत्तं दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा । सेत्तं संसारसमावणगजीवाभिगमे ॥ ८. से किं तं सव्व जीवाभिगमे ? सव्वजीवेसु णं इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जति । एगे एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता जाव' दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ।। ६. तत्थ णं जेते एवमाहंसु दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा--सिद्धा चेव असिद्धा चेव ।। १०. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! साइए अपज्जवसिए॥ ११. असिद्धे णं भंते ! असिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! असिद्धे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाइए' वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए ।। १२. सिद्धस्स णं भते ! कवतिकालं अंतर होति ? गोयमा !'साइयस्स अपज्जवसियस्स" णत्थि अंतरं ।। १३. असिद्धस्स 'ण भंते ! केवइयं अंतरं होइ ? गोयमा !' अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। १४. एएसि णं भंते ! सिद्धाणं असिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा का वहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा सिद्धा, असिद्धा अणंतगुणा ।। १. एवं हेट्ठामुहा जाव (क,ख,ग,ट,त्रि)। ४. अंतर कालतो केवचिरं (ता)। २. एगे एव २,३,४,५,६,७,८,६ एगे एवमाहंसु : ५. x (ता)। ६. पुच्छा (ता)। .. ३.. अणादीए (ता)। . Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६५ नवमी दसविहपडिवत्ती १५. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णसा, तं जहा --सइंदिया चेव अणिदिया चेव || १६. 'सईदिए णं भंते ! सइदिएत्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! सईदिए दुविहे पण्णत्ते-- अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, अणिदिए साइए वा अजबसिए । दोहवि अंतरं णत्थि " ।। १७. अप्पाबहुयं - सव्वत्थोवा अणिदिया, सइंदिया अनंतगुणा || १८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सकाइया चेव अकाइया चेव ॥ १६. सकाइस्स' संचिट्ठणंतरं जहा असिद्धस्स, अकाइयस्स जहा सिद्धस्स ॥ २०. अप्पा हुयं - सव्वत्योवा अकाइया, सकाइया अनंतगुणा || २१. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - अजोगी य सजोगी य तधेव ॥ २२. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सवेदगा चैव अवेदगा चेव || २३. सवेदए णं भंते ! सवेदएत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! सवेदए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणादीए वा अपज्जवसिते, अणादीए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं - अणताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढ पोम्गलपरियट्टं देसूणं ॥ २४. अवेदए णं भंते! अवेदएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अवेदर दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिते । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते, से जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ २५. सवेदगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! अणादिस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणादियस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ २६. अवेदगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ ? गोयमा ! साइयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव' अवड्ढ पोलपरियट्टं देसूणं ॥ २७. अप्पा बहुगं - सव्वत्थोवा अवेदगा, सवेदगा अनंतगुणा || २८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सकसाई य अकसाई य । सकसाई जहा सवेद, अकसाई जहा अवेदए । सव्वत्थोवा अकसाई, सकसाई अनंतगुणा ॥ २६. अहवा दुविहा सव्वजीवा - सलेसा य अलेसा य जहा असिद्धा सिद्धा । सव्वत्थोवा अलेसा, सलेसा अनंतगुणा ॥ १. सइंदियस संचिणा अंतरं च जहा असिद्धस्म, अणिदियस्स जहा सिद्धस्स (ता ) ! २. १९ - २१ सूत्राणां स्थाने 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु भिन्ना वाचना विद्यते एवं चेव । एवं राजोगी चैव अजोगी चैव तहेव । एवं सलेस्सा चेव अलेस्सा चैव ससरीरा चेव असरीरा चेव । संचिणं अंतर अप्पाबहुयं जहा इंदिया ( कसाइया-ग) एषु आदर्शेषु सकपाविकसूत्रानन्तरं लेश्यासूत्रं पुनलखितमस्ति । ३. जी० ६।२३ । ४. अस्य सूत्रस्य स्थाने 'क, ख, गट, त्रि' आदर्शषु एवं पाठभेदोस्ति एवं सकसाई चेव अक्साई चे, जहा सवेयके तहेव भाणियन्वे । ५. सकसादी (ता) 1 Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ जीवाजीवाभिगमे ३०. ' अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा " गाणी चेव अण्णाणी चेव ॥ ३१. गाणी णं भंते ! णाणीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! णाणी दुविहे पण्णत्ते -- सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते से जहणणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं छावट्टिसागरोवमाई सातिरेगाई || ३२. अण्णाणी तिविहे जहा सवेदए" ॥ ३३. 'णाणिस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस पत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स" जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवढं पोम्गलपरियट्टं देसूणं ॥ ३४. अण्णाणिस्स ' अंतरं अणादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणादीयस्स सज्जवसियस्स" णत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छाव सागरोवमा साइरेगाई || ३५. अप्पाबहुयं --- सव्वत्थोवा णाणी, अण्णाणी अनंतगुणा ॥ ३६. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता - सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य, संचिअंतरं जणे उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं" ।। ३७. अप्पा बहु-- सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता, सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा || ३८. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - आहारगा चेव अणाहारगा चैव ॥ ३६. आहारए णं भंते! आहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! आहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -- छउमत्थआहारए य केवलिआहारए य ।। ४०. छउमत्थआहारगस्स जहणणेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमपूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं - ' असं खेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ" कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ॥ ४१. केवलिआहारएणं भंते! केवलिआहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ॥ ४२. अणाहारए गं भंते ! अणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - छउमत्थअणाहारए य केवलिअणाहारए य ॥ ४३. छउमत्थअणाहारए णं भंते! छउमत्थअणाहारएत्ति कालओ' केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया ॥ ४४. केवलिअणाहारए णं भंते! केवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! केवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - सिद्ध केवलिअणाहारए य भवत्थ केवलि - १. २. जी० ६१२३ । ३. अण्णाणी जहा सवेदया (क, ख, ग, ट, त्रि ) । ४. पाणिस्स अंतरं ( क,ख,ग,ट, त्रि) 1 ५. दोहवि आदिल्लाणं (क, ख, ग, ट, श्रि ) । ६. संचिणा दोहवि एवं अंतरपि (ता) । (क, ख, ग, ट, त्रि) । ७ छउमत्थ आहारए णं जाव केवचिरं होति ? गोमा ! (क, ख, ग, ट,त्रि ) । ८. जाव (क, ख, ग, ट, त्रि) 1 ६. सं० पा०- णं जाव केव चिरं । १०. सं० पा० णं जाव केवचिरं । Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपहिवत्ती अणाहारए य॥ ४५. सिद्धकेवलिअणाहारए ‘णं भंते ! सिद्धकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति" ? गोयमा ! साइए अपज्जवसिए । ४६. भवत्थकेवलिअणाहारए 'णं भंते ! भवत्थकेवलिअणाहारएत्ति" कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! भवत्थकेवलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते---सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य अजोगिभवत्थकेबलिअणाहारए य ।। ४७. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए' णं भंते ! अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ।। ४८. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए' णं भंते ! सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारएत्ति कालओ केवचिरं होइ? अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ।। ४६. छउमत्थआहारगस्स केवतियं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो समया ।। ५०. केवलिआहारगस्स अंतरं अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ॥ ५१. छउमत्थअणाहारगस्स अंतरं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयूणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं ।।। ५२. सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णं भंते ! अंतरं केवतियं कालं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ।। ५३. अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णत्थि अंतरं ।। ५४. सिद्धकेवलिअणाहारगस्स 'साइयस्स अपज्जवसियस्स" णत्थि अंतरं ।। ५५. 'एएसि णं भंते ! आहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा" ! सव्वत्थोवा अणाहारगा, आहारगा असंखेज्जगुणा॥ ५६. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-भासगा य अभासगा य॥ ५७. भासए णं भंते ! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ।। ५८. अभासए णं भंते ! अभासएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अभासए दुविहे पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए १. वृत्तौ 'ता' प्रती च एतत्सूत्रं अयोगिभवस्थ- केवल्यनाहारकसूत्रानन्सरमस्ति । २. पुच्छा (ता)। ३. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शषु ४७,४८ एतस्य सूत्रद्वयस्य व्यत्ययो दृश्यते । ४. सजोगिभवत्थकेवलि पुच्छा (ता)। ५. क, ख, ग, ट, त्रि आदर्शेषु अतः परं 'सिद्ध- केवलिअणाहारसूत्र' लिखितं दृश्यते । ६. x (ता)। ७. ४ (ता)। ८. सभासगा (ग,त्रि) सर्वत्र । ६. प्रज्ञापनायां (१८।१०५) अभाषकस्य त्रिवि धत्वं प्रतिपादितमस्ति-अभासए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाईए वा अपज्जवसिए, अगाईए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ जीवाजीवाभिगमे सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ५६. भासगस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतर होति ? जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। ६०. अभासगस्स' साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥ ६१. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा ।। ६२. अहवा दुविहा सव्वजीवा ससरीरी य असरीरी य । 'ससरीरी जहा असिद्धा" असरीरी जहा सिद्धा । सव्वत्थोवा असरीरी, ससरीरी अणंतगुणा ॥ ६३. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-चरिमा चेव अचरिमा चेव ॥ ६४. चरिमे णं भंते ! चरिमेत्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! चरिमे अणादीए सपज्जवसिए ।। ६५. अचरिमे दुविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा अपज्जवसिए। 'दोण्हपि णस्थि अंतरं ।। ६६. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा अचरिमा, चरिमा अणंतगुणा । सेत्तं दुविहा सव्वजीवा ।। संगहणीगाहा सिद्धसइंदियकाए", जोए वेए कसायलेसा य । नाणुवओगाहारा, भाससरीरी य चरिमे य ॥१॥ ६७. तत्थ णं जेते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमासु, तं जहासम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ॥ ६८. सम्मदिट्ठी णं भंते ! सम्म दिट्ठीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सम्मदिट्री दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ जेसे' १. अणतं कालं अगता उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ तोस्ति । अत्र लिपिदोषात् पुनलिखित: वणस्सतिकालो (क, ख, ग, ट, त्रि)। सम्भाव्यते। २. अणंतकालं वणस्सतिकालो (क ख,ग,ट,त्रि)। ७. वृत्तौ एषा गाथा पाठान्तररूपेण उद्धृतास्ति,--- ३ अभासगस्स पुच्छा (क, ख, ग, ट, त्रि)! 'अत्र क्वचिद्विविधवक्तव्यता सङ्ग्रहणी गाथा'। ४. चिह्नाङ्कितः पाठः वत्त्याधारेण स्वीकृतः। अर्वाचीनादर्शेष्वपि नास्ति । ५. चरिमस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं ५. अतः परं ७४ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रतो संक्षिप्तपाठः होति ? णस्थि अंतरं । अचरिमस्स पुच्छा। पाठभेदश्च विद्यते---जहा णाणिस्स, मिच्छद्दिअणादिगस्स अप णस्थि अंतरं, सादीगस्स अप द्विस्स संचिट्टणंतराई जहा अण्णाणिस्स, सम्माणत्थि अंतरं (ता, मव)। मिच्छद्दिट्ठिस्स संचिट्ठणा जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, ६. अतः परं क,ख,ग,ट,त्रि' आदर्शष साकारा- ___उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं, तस्से व अंतरं जहणेणं नाकारालापको लिखितोस्ति, स च ३५ अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवडढं सूत्रानन्तरं पूर्वमेवागतः, वृत्तावपि तत्रैव पोग्गलं परियझे देसूर्ण, अप्पाबहुयं भाणिव्याख्यातोस्ति, उक्तादर्शषु तत्रापि लिखि- तवं । Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपरिवती ४६ साइए सपज्जवसिते, से जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं छावढि सागरोवमाइं सातिरेगाई।। ६६. मिच्छादिट्ठी तिविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिते, अणाइए वा सपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ जेसे साइए सपज्जवसिए, से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियटें देसूणं ॥ ७०. सम्मामिच्छादिट्ठी जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।। ७१. सम्मदिटिस्स अंतरं साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढं पोग्गलपरियढें ॥ ७२. मिच्छादिहिस्स अणादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियरस नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्टि सागरोवमाइं सातिरेगाई। ७३. सम्मामिच्छादिट्ठिस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढे पोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ ७४. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा सम्मामिच्छादिट्ठी, सम्मदिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ ७५. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता-परित्ता अपरित्ता नोपरित्ता-नोअपरित्ता ॥ ७६. परित्ते णं भंते ! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति ? परित्ते दुविहे पण्णत्तेकायपरित्ते य संसारपरित्ते य॥ ७७. कायपरित्ते णं भंते ! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति ? 'गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो'। ७८. संसारपरित्ते ‘णं भंते ! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा"। जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं जाव' अवड्ढे पोग्गलपरियट देसूणं ।। ७६. अपरित्ते गं भंते ! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति'? अपरित्ते दुविहे पण्णत्ते-कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य । ८०. कायअपरित्ते 'जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं" वणस्सतिकालो ॥ ८१. संसारापरित्ते दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- अणादीए वा अपज्जवसिते, अणादीए वा सपज्जवसिते॥ ८२. णोपरित्ते-णोअपरित्ते सादीए अपज्जवसिते ।। ८३. 'कायपरित्तस्स जहष्णेणं अंतर अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो"। ८४. संसारपरित्तस्स णत्थि अंतरं ।।। १. जी० ६।२३। ६. x (ता)। २. x (ता)। ७. x (ता)। ३. असंखेज्जं कालं जाव असंखेज्जा लोगा (क,ख, ८. अणंतं कालं वणस्सतिकालो (क, ख ग, ट, __ग,ट,त्रि)। त्रि)। ४. x (ता)। ६. कायपरिते अंतरं वणस्सतिकालो (ता)। ५. जी० ॥२३ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० जीवाजीवाभिगमे ८५. 'कायापरित्तस्स जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं" पुढविकालो ।। ८६. संसारापरित्तस्स अणाइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, णोपरित्त-नोअपरित्तस्स वि णत्थि अंतरं।। ८७. अप्पावहुयं-'सव्वत्थोवा परित्ता, णोपरित्ता-नोअप रित्ता अणंतगुणा, अपरित्ता अणंतगुणा" ॥ ८८. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा' अपज्जत्तगा नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तगा।। ८६. पज्जत्तगे णं भंते ! पज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं साइरेगं ।। 60. अपज्जत्तगे णं भंते ! अपज्जत्तगेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ॥ ६१. नोपज्जत्त-णोअपज्जत्तए साइए अपज्जवसिते ।। ६२. पज्जत्तगस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं ।। ६३. अपज्जत्तगस्स अंतरं जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं साइरेगं । 'णोपज्जत्तग-णोअपज्जत्तगस्स' पत्थि अंतरं ।। ६४. अप्पाबहुयं-'सव्वत्योवा नोपज्जत्तग-नोअपज्जत्तगा, अपज्जत्तगा अणंतगुणा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा" ॥ ६५. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सुहुमा बायरा नोसुहुमनोबायरा ॥ ६६. सुहमे णं भंते ! सुहमेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? 'गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं”, उक्कोसेणं पुढविकालो ॥ ७. वायरे गं भंते ! बायरेत्ति 'कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं- असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो" ॥ १८. नोसुहम-नोबायरे साइए अपज्जवसिए । ६६. सुहुमस्स अंतरं वायरकालो । वायरस्स अंतरं सुहुमकालो।" 'नोसुहुम-नोबायरस्स" 'अंतरं णस्थि" ॥ १. कायअपरित्ते (ता)। ८. x (ता)। २. असंखिज्ज कालं पुढविकालो (क, ख, ग, ट, ६. असंखिज्जं कालं पुढविकालो (क, ख, ग, ट, त्रि) । ३. x (ता)। १०. कालो जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं (ता)। ४. पज्जत्ता (ता) प्रायः सर्वत्र । ११. वणस्सतिकालो (ता)। ५. अंतरं पुच्छा (ता)। १२. तइयस्स (क, ख, ग, ट, त्रि) । ६. तइयस्स (क, ख, ग,ट, त्रि)। १३. णत्यंतरं (त!)। ७. x (ता)। Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमौ दसविहपडिवत्ती १००. अप्पाबहुयं—'सव्वत्थोवा नोसुहुम-नोबायरा, बायरा अणंतगुणा, सुहमा असंखेज्जगुणा । १०१. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–सण्णी असण्णी नोसण्णीनोअसण्णी। १०२. 'सण्णी णं भंते ! सण्णीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोबमसतपुहत्तं सातिरेग ।। १०३ असण्णी णं भंते ! असणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो" ॥ १०४. नोसण्णी-नोअसण्णी साइए अपज्जवसिते ।। १०५. 'सण्णिस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।। १०६. असण्णिस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं" ।। १०७. 'णोसण्णी-णोअसण्णिस्स" णत्थि अंतरं ।। १०८. 'अप्पावहुयं-सव्वत्थोवा सण्णी, नोसण्णी-नोअसण्णी अणंतगुणा, असण्णी अणंतगुणा" ।। १०६ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-भवसिद्धिया अभवसिद्धिया नोभवसिद्धिय-नोअभवसिद्धिया ।। ११०. भवसिद्धिए' अणादीए सपज्जवसिए, अभवसिद्धिए अणादीए अपज्जवसिए णोभवसिद्धिय-णोअभवसिद्धिए सादीए अपज्जवसिए ।। १११. भवसिद्धियस्स पत्थि अंतरं, 'अभवसिद्धियस्स णत्थि अंतरं, णोभव सिद्धियणोअभवसिद्धियस्स पत्थि अंतरं॥ ११२. अप्पावहुयं--'सव्वत्थोवा अभवसिद्धिया, णोभवसिद्धिय-गोअभवसिद्धिया अणंतगुणा, भवसिद्धिया अणंतगुणा" । से तं तिविधा सव्वजीवा ।। १. X (ता)। (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. सण्णी जहा अपज्जत्तओ (ता)। ६. x (ता); अतोनन्तरं 'क, ख, ग, ट, त्रि' ३. असण्णी दणकालो (ता) । आदर्शषु सस्थावरालापको लिखितोस्ति । ४. सणि अंतरं वणकालो असण्णि अंतरं सण्णि- 'ता' प्रतौ वृत्तौ च नास्ति व्याख्यातः, इति कालो (ता)। मूले न स्वीकृतः, स चैवम् अहवा तिविहा सव्व ५. ततियस्स (क, ख, ग, ट, त्रि)! तं तसा यावरा नोतसा नोथावरा, तसे ॥ ६. X (ता)। भंले ! कालओ? जहणणं अंतोमुहत्तं उक्को७. अर्वाचीनादर्शषु एषोतिरिक्तः पाठोपि लिखि- सेणं दो सागरोबमसहस्साई साइरेगाई, थावरतोस्ति --भवसिद्धिए णं भंते ! भवसिद्धीत्ति स्स संचिट्ठणा वणस्सतिकालो, णोतसनोकालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! भव- थावरा सातीए अपज्जवसिए । तसस्स अंतरं सिद्धिए। वणस्सति कालो, थावरस्स तसकालो, गोतसणो८. एवं अभवसिद्धियस्सवि ततियस्स पत्थि अंतरं थावरस्स पत्थि अंतरं। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे ११३. तत्थ णं जेते एवमाहंसु चउन्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहामणजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी ।। ११४. मणजोगी णं भंते ! मणजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं । एवं वइजोगीवि । ११५. कायजोगी णं भंते ! कायजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ॥ ११६. अजोगी साइए अपज्जवसिए । ११७. मणजोगिस्स अंतरं जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं वइजोगिस्स वि ।। ११८. कायजोगिस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ।। ११६. अयोगिस्स णत्थि अंतरं ।। १२०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा मणजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा,' अजोगी अणंतगुणा, कायजोगी अणंतगुणा ।।। १२१. अहवा चउन्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थिवेयगा' पुरिसवेयगा नपुंसगवेयगा अवेयगा ॥ १२२. इथिवेयए णं भंते ! इथिवेयएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! 'एगेण आएसेणं जहा' कायद्वितीए" ॥ १२३. पुरिसवेदस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ।। १२४. नपुंसगवेदस्स जहण्णणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १२५. 'अवेयए दुविहे पण्णत्ते–साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए, [तत्य णं जेसे सादीए सपज्जवसिते? ] से जपणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं ।। १२६. 'इत्थिवेदस्स अंतरं" जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।। १२७. पुरिसवेदस्स अंतरं जहण्णेणं एग समयं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ।। १२८. 'नपुंसगवेदस्स अंतरं" जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं ।। अप्पाबहु सव्वत्थोवा तसा, नोतसानोथावरा ३. जी० २।४८; पण्ण० १८१७१ । अणंतगुणा, थावरा अणंतगुणा । ४. पलियसयं दसुत्तरं अट्ठारस चोइस पलियपुहत्तं १. मखेज्जगुणा (क,ख,ग,ट,ता,त्रि); सर्वेष्वप्या- समयो जहण्णो (क, ख, ग, ट, त्रि)। दर्शषु 'संखेज्जगुणा' इति पाठो लभ्यते, किन्तु ५. अणंतं कालं वणस्सतिकालो (क, ख, ग, ट, नैष समीचीनोस्ति, वृत्तिकृता 'असंख्येयगुणा' त्रि)। इति व्याख्यातम्-तेभ्यो वाग्योगिनोऽसंख्येय- ६. कोष्ठकान्त रगतः पाठः अत्र त्रुटितो दृश्यते ! गुणाः, द्विविचतुरसज्ञिपञ्चेन्द्रियाणां वाग्योगि- द्रष्टव्यं ६।२४ सूत्रम् । त्वात् । प्रज्ञापनाया (३।६६) मपि असंखेज्ज- ७. अवेदए जहा अकसायी (ता)। गुणा' इति पाठो लभ्यते। ८. इत्थिवेदंतरं (ता)। २. वेदा (ता) सर्वत्र। ६. नपुंसगंतरं। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवतो १२. 'अवेदगो जहा' हेट्ठा " ॥ १३०. अप्पाबहुयं -- सव्वत्थोवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अनंतगुणा, नपुंगवेदगा अनंतगुणा || १३१. अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा- चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी' केवल दंसणी || १३२. चक्खुदंसणी णं भंते ! चक्खुदंसणीति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं । १३३. अचक्खुदंसणी दुविहे पण्णत्ते - अणादिए वा अपज्जवसिए, अणादिए वा सपज्जवसिए || १३४. ओहिदंसणी जणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो छावट्टीओ सागरोवमाणं साइरेगाओ || १३५. केवलदंसणी साइए अपज्जवसिए || १३६. चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || १३७. अचक्खुदंसणिस्स दुविधस्स णत्थि अंतरं ॥ १३८. ओहिदस णिस्स जहणेणं 'एक्कं समयं ", उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || १३. केवलदंसणिस्स पत्थि अंतरं ॥ १४०. अप्पाबहुयं - सव्वत्थोवा ओहिदंसणी, चक्खुदंसणी असंखेज्जगुणा, केवलदंसणी अनंतगुणा, अचक्खुदंसणी अनंतगुणा ।। ५०३ १४१. अहवा चउव्विा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - संजया असंजया संजया संजया पोसंजया-णोअसंजया - णोसंजया संजया || १४२. 'संजए णं भंते ! संजएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा" ! जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी | १४३. असंजया जहा अण्णाणी ॥ १४४. संजतासंजते जहणणं अंत्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देणा पुव्वकोडी | १४५. णोसंजत-णोअसंजत - णो संजतासंजते साइए अपज्जवसिए || १४६. 'संजयस्स संजयासंजयस्स दोपहवि अंतरं जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं १. जी० १२६ । २. अवेदकस्स अंतर जहा अकसाइस्स (ता) | ३. अवधिदंसणी (ग, त्रि); अधिदंसण ( ता ) | ४. ओहिदंसणस्स ( क, ख, ग ) ; ओहिदंसणिस्स (ट, त्रि) 1 ५. अंतमुत्तं ( क, ख, ग, ट, त्रि); अवधिदर्श निनो जघन्येनैकं समयमन्तरं प्रतिपातसमयानन्तरसमय एव कस्यापि पुनस्तल्लाभभावात् क्वचिदन्तर्मुहूर्त्तमिति पाठः स च सुगमः तावता चायं व्यवधानेन पुनस्तल्लाभभावात् न निर्मूल: पाठो मूलटीकाकारेणापि मतान्तरेण समर्थितत्वात् (मवृ) तयान्तराभिधानात् अवधिदर्शनी जघन्येनैकं समयं भवत्यवधिप्रतिपत्तिर्मुहूर्त्तान्तरमेव मरणमिथ्यात्वगमनाभ्याम् (हावृ) । ६. संजतस्स संचिट्ठा (ता) ७. जी० ३२ । Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ जीवाजीवाभिगमे अवं पोग्गलपरियटं देसूणं । असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसि - यस्स जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुग्वकोडी । चउत्थमस्स णत्थि अंतरं" || १४७. 'अप्पाबहुयं - सव्वत्थोवा" संजया, संजया संजया असंखेज्जगुणा, णोसंजयगोअसंजय-णोसंजयासंजया अनंतगुणा, असंजया अनंतगुणा । सेत्तं चउव्विहा सव्वजीवा ॥ १४८. तत्थ जेते एवमाहंसु पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तं जहा'कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई लोभकसाई अक्साई ॥ १४६. कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई णं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतमुत्तं ॥ १५०. 'लोभकसाइस्स जहणणं एकं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं " ॥ १५१. 'अकसाई दुविहे जहा ' हेट्ठा " ॥ १५२. 'कोहकसाई माणकसाई मायाकसाई णं अंतरं जहणणेणं एवकं समयं उक्कोसेणं १५३. लोहकसाइस्स अंतरं जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं " ॥ १५४. अक्साई तहेव जहा " हेट्ठा ॥ १५५. अप्पाबहुयं - 'सव्वत्थोवा अकसाई, माणकसाई अनंतगुणा, कोहकसाई विसेसाहिया, मायाकसाई विसेसाहिया, लोभकसाई विसेसाहिया " || १५६, अहवा पंचविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा -- णेरइया तिरिक्ख जोणिया मस्सा देवा सिद्धा | १५७. 'संचिणंतराणि जह" हेट्ठा भणियाणि " ॥ १५८. अप्पा हुयं - सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिया अनंतगुणा । सेतं पंचविहा सव्वजीवा ॥ १५६. तत्थ" णं जेते एवमाहंसु छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा १. संजयस्स अंतर जह भु उ जावड्ढं पोग्गलपरियह देसूण, असंजयंतरं जधेव अण्णाणिस्स, संजयास जधेव संजयस्स, णोसं णत्थि अंतरं (ar) 1 २. थोवा (ता) । ३. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु नैरयिकाद्यालापकः पूर्वमस्ति । क्रोध कषायीत्याद्यालापकस्तदनन्तरमस्ति । ४. कोधक ज एवं समयं उ मु एवं माण माया लोभस्स अंतरं जहणणे एवं समयं उभु (ता) चिन्तनीयोसौ पाठभेदः । ५. जी० ६२८ । ६. अकसायी जहा पुग्वभणिता दुविधेसु (ता) 1 ७. कोधंतरं ज एवं समयं उ मु । एवं भाण माया लोभस अंतरं जधेव से दुविधेसु पुच्छा (ता) चिन्तनीयोसौ पाठभेदः । ८. जी० ६२८ । ९. अकसाइनो सव्वत्थोवा, माणकसाई तहा अनंत गुणा को माया लोभे विसेसमहिया मुणेतव्या ॥१॥ (क, ख, ग, ट, त्रि) । १०. जी० ६ ७, ८, १०, ११; ६।१०; १२ । ११. सव्वेसि संविटुणा, सिद्धे सातिए अप सव्वेसि अंतरं, सिद्धस्स अंतरं गत्थि ( ता ) । १२. 'क, ख, ग, ट, त्रि' आदर्शेषु एष ज्ञानालापको नोपलभ्यते । ता' प्रतौ एष आलापकः संक्षि Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी ओहिनाणी मणपज्जवणाणी केवलनाणी अण्णाणी !! १६०. आभिणिवोहियणाणी णं भंते ! आभिणिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावद्धि सागरोवमाइं साइरेगाई। एवं सुयणाणीवि ॥ १६१. ओहिणाणी णं भंते ! ओहिणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं छावढेि सागारोवमाइं साइरेगाई॥ १६२. मणपज्जवणाणी णं भंते ! मणपज्जवणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी ।। १६३. केवलनाणी णं भंते ! केवलणाणीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ १६४. अण्णाणिणो तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ साइए सपज्जवसिए जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं अवढं पोग्गलपरियट्टू देसूणं ।। १६५. अंतरं--आभिणिवोहियणाणिस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । एवं सुयणाणिस्सवि ओहिणाणिस्सवि मणपज्जवणाणिस्सवि, केवलणाणिणो णत्थि अंतरं। अण्णाणिस्स साइय-सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोवमाइं साइरेगाई॥ १६६. अप्पावहुयं--सव्वत्थोवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगणा, आभिणिबोयिणाणी सुयणाणी सट्ठाणे दोवि तुल्ला विसेसाहिया, केवलणाणी अणंतगुणा, अण्णाणी अणंतगुणा ।। १६७. अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदिया बेंदिया तेंदिया चरिदिया पंचेंदिया अणिदिया ॥ १६८. 'संचिट्ठणंतरं जहा' हेट्ठा ॥ १६६. अप्पाबयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेदिया विसेसाहिया, अणिदिया अणंतगुणा, एगिदिया अणंतगुणा" ।। १७०. अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी ।। १७१. ओरालियसरीरी णं भंते ! ओरालियसरीरीत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं जाव' अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं । प्तोस्ति तथा अष्टविधप्रतिपत्तये समपितोस्ति- आभिणियोहियणाणी ५ अण्णाणी, सन्वेसि संचिणा सव्वेसि अंतरं अप्पाबहं च भाणितव्वं जहा अविधेसु सब्वजीवेसु । १. जी. ४१७-६, १६-१८%81१६ । २. सव्वेसिं संचिटणा सम्वेसि अंतरं अप्पाजहं च भाणितव्वं (ता)। ३. जी० ५।२३। ४. ओरालियसरी रस्स संचिट्ठणा जहणेणं खुड्डागं भ दुसमयूर्ण उ बादरकालो (ता)। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ जीवाजौवाभिगमे १७२. वेउव्वियसरीरी जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमभहियाइं !! १७३. आहारगसरीरी जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं ॥ १७४. तेयगसरीरी कम्मगसरीरी य ‘पत्तेयं दुविहे", तं जहा- अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिते ।। १७५. 'असरीरी साइए अपज्जवसिते ।। १७६. ओरालियसरीरस्स अंतरं जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तमब्भहियाई ।। १७७. वे उब्वियसरी रस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। १७८. आहारगसरीरस्स जहणेणं अतोमुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव' अवड्ढे पोग्गलपरियट देसूणं ।। १७६. 'तेयग-कम्मगाणं दोण्हवि अणाइय-अपज्जवसियाणं णत्थि अंतरं, अणाइयसपज्जवसियाणं णस्थि अंतरं"। १८०. 'असरीरिस्स साइय-अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं"। १८१ अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा आहारगसरीरी, वेउब्वियसरीरी असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरी असंखेज्जगणा, असरीरी अणंतगुणा, तेयाकम्मसरीरी दोवि तुल्ला अणंतगणा । सेत्तं छबिहा सव्वजीवा ॥ १८२. तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमासु, तं जहा-- पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया अकाइया ।। १८३. 'संचिट्ठणंतरा जहा हेढा"। १८४. 'अप्पावहुयं--सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, बाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया' अणंतगणा, वणस्सइकाइया अणंतगुणा १६५. अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहाकण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा ॥ १८६. कण्हलेसे णं भंते ! कण्हलेसत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाइं"। १८७. गीललेस्से णं भंते ! णीललेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं १. दोवि दुविहा (ता)। ६.४ (क, ख, ग, ट, त्रि, मव) । २. x (ता)। ७. जी० ५।८-१७,६१६ । ३. अणंतं कालं वणस्पतिकालो (क, ख, ग, ट, ८. सव्वेसि संचिट्ठणंतराई भाणितब्वाई अकाइए त्रि)। मादीए अप णत्थि य से अंतरं (ता)। ४. जी. ६२३ । ६. सिद्धा (क, ख, ग, ट, त्रि)। ५ तेयं कम्मसरीरस्त हदि त्यि अंतरं (क, ख, १०. अप्पाबहग भाणियव्वं (ता)। ग, ट, त्रि); द्विवानि नास्त्यन्त रम् (मवृ)। ११. मन्मतियाई (ता) सर्वत्र । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०७ नवमी दसविहडिवत्ती अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमभहियाई ।। १८८. काउलेस्से णं भंते ! काउलेरसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमभहियाई ।। १८६. तेउलेस्से णं भंते ! तेउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दोण्णि' सागरोवमाई पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भहियाई १६०. पम्हलेसे णं भंते ! पम्हलेसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई ।। १६१. 'सुक्कलेसे णं भंते ! सुक्कलेसेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमभहियाई ।। १६२. अलेस्से णं भंते ! सादीए अपज्जवसिते ।। १६३. 'कण्हलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई । एवं नीललेसस्सवि, काउलेसस्सवि"। १६४. 'ते उ-पम्ह-सुक्काणं अंतरं जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो" ॥ १६५. 'अलेसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। १६६. अप्पाबहुयं-सञ्वत्थोवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया । सेत्तं सत्तविहा सव्वजीवा ।। १६७. तत्थ णं जेते एवमाहंसु अविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा१. दो (ता)। काद्यालापको विद्यते ततश्च ज्ञानाद्यालापकः । २. सुक्का जहा किण्हा (ता) । 'ता' प्रती च पाठोपि संक्षिप्तो वर्तते । वत्ति३. कण्हणीलकाउतिण्हवि अंतरं जहा कण्हाए कृता एतादृशं संक्षिप्तपाठमेव लक्ष्यीकृत्य एषा संचिट्ठणा (ता)। टिप्पणी कृतास्ति-सूत्रपुस्तकेष्वतिसंक्षेप इति ४. तेउलेमस्सणं भंते ! अंतरं का? जह अंतो- विवृतम् । 'ता' प्रतिगतः पाठः एवं विद्यते-- मुहत्तं उक्कोसेणं बणस्मतिकालो 1 एवं पम्ह- आभिणिबोधियणाणी जाव केवलणाणी मतिलेसस्सवि, सुक्कलेसस्स वि (क, ख, ग, ट, अण्णाणी सुत विभंग । आभिणिबो सुतणा जाणं संचिट्ठणा जहं अंतो उक्को छावद्धिसागरो ५. अलेसे पत्थंतरं (ता)! सातिरेगाणि, ओहिणाणीवि एमेव गवरं जह ६. एतेसि गं भंते ! जीवाणं कण्हलेसाणं नीलकाउ समयं, मणपज्जवणा जह एगं समयं उक्को तेउ पम्ह सुक्क अलेसाण य कतरे २ (क, ख, देसूणा पुवकोडी, केवलणाणी सादीए अपज्ज । ग, ट, त्रि) मतिअण्णाणी सुतअण्णाणी जहा सवेदओ ७. असंखेज्जगुणा (ता)। विभंगणाणी जहं एग समयं उक्को तेत्तीस ८. अतः परं 'ता' प्रतौ अर्वाचीनादर्शष च नैरथि- सागरोवमाई देसूणाए पुग्वकोडीए अभतिया । त्रि)। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे आभिणिवोहियनाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगणाणी।। १९८. आभिणिवोहियणाणी णं भंते ! आभिणिवोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाई सातिरेगाई। एवं सुयणाणीवि ॥ १६६. ओहिणाणी णं भंते ! ओहिणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कं समय, उक्कोसेणं छावट्टिसागरोवमाइं सातिरेगाई ।। २००. मणपज्जवणाणी णं भंते ! मणपज्जवणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं एवकं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी॥ २०१. केवलणाणी णं भंते ! केवलणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिते॥ २०२. मतिअण्णाणी णं भंते ! मतिअण्णाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! मइअण्णाणी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा --अणादीए वा अपज्जवसिए, अणादीए वा सपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिते । तत्थ णं जेसे सादीए सपज्जवसिते, से जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंत कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । सुयअण्णाणी एवं चेव । २०३. विभंगणाणी णं भंते ! विभंगणाणित्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई देसूणाए पूव्वकोडीए अब्भहियाई ।। २०४, आभिणिवोहियणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्ट देसूणं । एवं सुयणाणिस्सवि, ओहिणाणिस्सवि, मणपज्जवणाणिस्सवि ।। २०५. केवलणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं ।। २०६. मइअण्णाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! अणादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं, अणादीयस्स सपज्जवसियस्स गत्थि अंतरं, सादीयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं छावद्धि सागरोवमाइं सातिरेगाई। एवं सुयअण्णाणिस्स वि ॥ २०७. विभंगणाणिस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? मोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। आभिणिबोहित जाव मणपज्ज अंतरं जहं अंतो मुहत्तं उक्कोसेणं अणतका अवढं दो देस मति सूत अण्णाणरणं अंतर अणादि अप णत्यंतरं, सादी सपज्ज जहं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं छावदि सागरोवमाइं साति, विभंगणाणिस्स वणकालो। पच्छा गो अप्पाबयस्स थोवा मणप ओधिणा असं आभिणिबो सुयणाणी दोवि तुल्ला विसे विभ असं केवल अणं, मतिअ सुत स दोवि तुल्ला अणंतगुणा । सेतं एवमाहंसु अट्ठविहा। Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती २०८. अप्पाबयं-सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी सटाणे दोवि तुल्ला विसेसाहिया, विभंगणाणी असंखेज्जगुणा, केवलणाणी अणंतगुणा, मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य सट्ठाणे' दोवि तुल्ला अणंतगुणा ॥ २०६. अहवा अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहाणेरइया, तिरिवखजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ सिद्धा॥ २१०. णेरइए | भंते ! नेरइयत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ।। २११. तिरिक्खजोणिए णं भंते ! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।। २१२. तिरिक्खजोणिणी णं भंते ! तिरिक्खजोणिणीति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाई ! एवं मणूसे मणूसी।। २१३. देवे जहा नेरइए।। २१४. देवी गं भंते ! देवीत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपन्न पलिओवमाई ।। २१५. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए । २१६. णेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २१७. तिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं ॥ २१८. तिरिक्खजोणिणी णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं मणुस्सस्सवि मणुस्सीएवि, देवस्सवि देवीएवि ॥ २१६. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णात्थि अंतरं ।। २२०. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा मणुस्सीओ, मणुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया १. एएसि णं भंते ! आभिणिबोहियणाणीणं सुय- संक्षिप्तपाठोस्ति—संसो रसमावण्णेसु पुवुत्ता णाणि ओहि मण केवल मइअयणाणि सुय- संचिटणा अंतरं वा अप्पाबहुमं जहा अण्णाणि विभंगणाणीण य कतरे ? गोयमा! वत्तव्बताए । (क,ख,ग,ट त्रि)। ५. एतेसि णं भंते ! गैरइयाण तिरिक्खजोणि२. एए (क, ख, ग, ट, त्रि)। याणं तिरिक्खजोणिणीणं मणूसाणं मणूसीणं ३. x (क,ख,ग,ट,त्रि)। देवाणं देवीणं सिद्धःणं य कतरे २ (क, ख, ग, ४. अतः परं प्रस्तुतालापकपर्यन्तं 'ता' प्रतो ट, त्रि)। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाजीवाभिगमे असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा', देवीओ संखेज्जगुणाओ, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा । सेत्तं अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता || ५१० २२१. तत्थ जेते एवमाहंसु णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा - एगिदिया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया णेरड्या पंचेंद्रियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा' ।। २२२. एगिदिए णं भंते ! एगिदियत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || २२३. बेंदिए णं भंते ! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं । एवं तेइंदिएवि, चउरिदिएवि ॥ २२४. रइए णं भंते ! णेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ॥ २२५. पंचेंदियतिरिक्खजोगिए णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमहियाई । एवं मणूसेवि ॥ २२६. देवा जहा रइया || २२७. सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसि ॥ २२८. एगिदियरस णं भंते ! अंतर कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतमुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाई ॥ २२६. बेंदिवस गं भंते ! अंतर कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो' । एवं तेंदियस्सवि चउरिदियस्सवि णेरइयस्स वि पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्सवि मणूसस्सवि देवस्सवि सव्वेसिमेवं अंतरं भाणियव्वं ॥ २३०. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ २३१. अप्पावहुयं * -- सव्वत्थोवा मणुस्सा, पेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, दिया विसेसाहिया, सिद्धा अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा || २३२. अहवा णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमसमयणेरइया अपढम३. वणप्फतिकालो (क, ख, ग ) 1 ४. एतेसि णं भंते! एगेंदियाणं बेइंदि ते इंदि चउरिदियाणं णेरइयाणं पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाणं देवाणं सिद्धाण य कयरे २ ? गोयमा ! (क,ख,ग,ट,त्रि) । ५. अतः परं 'ता' प्रती प्रस्तुतालापकपर्यन्तं संक्षिप्तपाठोस्ति पढमसमयणेरइया १. संखेज्जगुणा ( मवृ ) । द्रष्टव्यम्--६।१२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । २. अतः परं प्रस्तुतालापकपर्यन्तं 'ता' प्रतौ संक्षिप्तपाठोस्ति - णवण्हवि संचिणा अंतरं च पुव्वत अप्पा बहु थोवा मगुस्सा र असं देवा असं पंचिदियतिरिक्ख असं चतु वि ते वि बे वि सिद्धा अणं एगिंदिया अणं । जाव Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती ५११ समयणेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य ।। २३३. पढमसमयणेरइया णं भंते ! पढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ।। २३४. अपढमसमयणेरइए णं भंते ! अपढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा! जहण्णणं दस वाससहस्साइं समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई॥ २३५. पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढसममयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ।। २३६. अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो।। २३७. पढमसमयमणूसे णं भंते ! पढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ।। २३८. अपढमसमयमणूसे णं भंते ! अपढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुवकोडिपुहत्तमन्भहियाई॥ २३६. देवे जहा णेरइए ।। २४०. सिद्धे णं भंते ! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिते॥ २४१. पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुत्तमभहियाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २४२. अपढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ।।। २४३. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं दो खुड्डागाइं भवग्गणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २४४. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स गं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं खडागं भवरगहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपहत्तं सातिरेगं ॥ २४५. पढमसमयमणूसस्स जहा पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स ।। २४६. अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। २४७. पढमसमयदेवस्स जहा पढमसमयणेरइयस्स ।। पढमसमयदेवा अप २ सिद्धा य एतेसि संचिद्रणंतरं च जहा हेटा। अप्पाबहं तधेव जाव अपढमसमयदेवा असंखे सिद्धा अणंतगुणा अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगूणा। Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ जीवाजीवाभिगमे २४८. अपढमसमयदेवस्स जहा अपढमसमयणेरइयस्स ।। २४६. सिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ।। २५०. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, पढमसमयणरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा ॥ २५१. एएसि पं भंते ! अपढमसमयणेरझ्याणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमणूसाणं अपढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा अपढमसमयमणूसा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ॥ २५२. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा ।। २५३. एएसि णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ।। २५४. मणयदेवाणं अप्पाबहयं जहाणेरइयाण ॥ २५५. एएसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयणे रइयाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयमणसाणं अपढमसमयदेवाणं सिद्धाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयमणूसा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अणंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं नवविहा सव्वजीवा।। २५६. तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमासु, तं जहापुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिदिया पंचेंदिया अणि दिया । २५७. पुढविकाइए' णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं --'असंखेज्जाओ उस्स प्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया । एवं आउ-तेउ-वाउकाइए। २५८. वणस्सतिकाइए णं भंते ! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं 'अणतं कालं" ॥ १. २५७.२६५ सूत्राणां स्थाने 'ता' प्रती संक्षिप्त- २. वणस्सतिकालं (क,ख,ग,ट,त्रि)! पाठोस्ति-संचिट्टणंतराइं पुवुत्ताई। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी वसविहपडिवत्ती ५१३ २५६. दिए णं भंते ! बेदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्ज कालं । एवं तेइंदिएवि चउरिदिएवि ॥ २६०. पंचेंदिए णं भंते ! पंचेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं ।। २६१. अणिदिए णं भंते ! अणिदिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए॥ २६२. पुढविकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो । एवं आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स ॥ २६३. वणस्सइकाइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा ।। २६४. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिय-पंचेंदियाणं एतेसि चउण्हंपि अंतरं जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।। २६५. अणिदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स पत्थि अंतरं ।। २६६. अप्पाबयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, बाउकाइया विसेसाहिया, अणि दिया अणंतगुणा, वणस्सतिकाइया अणंतगुणा॥ २६७. अहवा दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–पढमसमयणेरइया अपढमसमयणेरइया' पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणसा अपढमसमयमणूसा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा। २६८. पढमसमयणेरइए णं भंते ! पढमसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ।।। २६६. अपढमसमयणेरइए णं भंते ! अपढ मसमयणेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं समयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समयूणाई॥ "२७०. पढ मसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ।। २७१. अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते ! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं १.तेसिणं भंते ! पढविकाइयाणं आउ तेउवाउ वण बेंदियाणं तेइंदियाणं चरि पंचेंदियाणं अणिदियाण य कतरे २ गोयमा! (क, ख, ग, ट, त्रि)। २. अतः परं २८७ सूत्रपर्यन्तं 'ता' प्रती पाठभेदो विद्यते--जाव पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा। संचिट्ठणंतरं पुवुत्तं पढमसमयसिद्ध एग समयं, अपढमसमयसिद्धे सादीए अपज्जवसिए । दोण्हवि सिद्धस्स णत्वंतरं। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ वणस्सइकालो ॥ २७२. पढमसमयमणूसे णं भंते ! पढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोमा ! एक्कं समयं ॥ २७३. अपढमसमयमणूसे णं भंते ! अपढमसमयमणूसेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं खुड्डागं भवग्गहणं समपूणं, उनकोसेणं तिष्णि पलिओवमाई पुख्वकोडपुहत्तमम्भहियाई ॥ जीवाजीवाभिगमे २७४. देवे जहा रइए || २७५. पढमसमयसिद्धे णं भंते ! पढमसमयसिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! एक्कं समयं ॥ २७६. अपढमसमयसिद्धे णं भंते ! अपढमसमय सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति ? गोमा ! सादीए अपज्जवसिए || गोयमा ! २७७. पढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? जहणणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || २७८. अपढमसमयणेरइयस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणे अंतमुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो ॥ २७६. पढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोमा ! जहणेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो || २८०. अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स णं भंते ! अंतर कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साति रेगं ॥ २८१. पढभसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! जहणेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो | २८२. अपढमसमयमणूसस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? जहणं खुड्डू गं भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणरसतिकालो || २८३. देवस्स णं अंतरं जहा णेरइयस्स || २८४. पढमसमयसिद्धस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? णत्थि अंतरं || २८५. अपढमसमयसिद्धस्स . णं भंते ! सादीयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं ॥ गोयमा ! गोयमा ! अंतरं कालओ केवचिरं होति ? गोयमा ! २८६. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं पढमसमयदेवाणं पढमसमयसिद्धाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" पढमसमयसिद्धा, पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा || २८७. 'एतेसि णं भंते! अपढमसमयणेरइयाणं जाव अपढमसमयसिद्धाण य कतरे १. थोवा (ता); अल्पबहुत्वाम्यत्रापि चत्वारि तत्र प्रथममिदं ---सर्वस्तोकाः (मवृ) । Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमी दसविहपडिवत्ती कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" अपढमसमयमणूसा, अपढमसमयणेरड्या असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयसिद्धा अणंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' || २८८. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" पढमसमयरइया, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा || २८. 'एतेसि णं भंते ! पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा" पढमसमयतिरिक्खजोणिया, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा ॥ २६०. एतेसि णं भंते ! पढमसमयमणूसाणं अपढमसमयमणूसाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पदमसमयमणूसा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा ॥ २६१. 'एतेसि णं भंते! पढमसमयदेवाणं अपढमसमयदेवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयदेवा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा " ॥ २६२. एतेसि णं भंते ! पढमसमयसिद्धाणं अपढमसमयसिद्धाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमयसिद्धा, अपढमसमय सिद्धा अनंतगुणा ॥ २६३. एतेसि णं भंते ! पढमसमयणेरइयाणं अपढमसमयणेरइयाणं 'पढमसमयतिरिक्खजोणियाणं अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं पढमसमयमणूसाणं अपढमसमय मणूसाणं पढमसमयदेवाणं अपढमसमयदेवाणं पढमसमयसिद्धाणं " अपढमसमयसिद्धाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पढमसमय सिद्धा, पढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयमणूसा असंखेज्जगुणा, पढमसमयणेरड्या असंखेज्जगुण, पढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयणेरइया असंखेज्जगुणा, अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा, अपढमसमयसिद्धा अनंतगुणा, अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा । सेत्तं दसविहा सव्वजीवा' । सेत्तं सव्वजीवाभिगमे || ग्रंथ परिमाण कुल अक्षर १८२३७८ अनुष्टुपश्लोक ५७२७ अक्षर १४ १. धोवा (ता); द्वितीयमिदं सर्वस्तोकाः (मवृ) | २. असंखेज्जगुणा (ता) अशुद्धं प्रतिभाति । ३. तृतीयं प्रत्येकभाविनै रयिकतिर्यङ्मनुष्यदेवानां पूर्ववत्, सिद्धानामेवं सर्वस्तोकाः (मवृ) 1 ४. वे पुड सव्वत्योवा (ता) | ५१५ ५. थोवा (ता) । ६. जहा मणूसा तहा देवावि (क, ख, गट, त्रि) । ७. समुदायगतं चतुर्थमेवं सर्वस्तोका : ( मवृ ) | ८. जाव (ता) | ९. सव्वजीवा पण्णत्ता (क, ख, ग, ट, त्रि)। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश ओवाइयं पूर्ति आधार-स्थल सूत्र पूर्त-स्थल सूत्र ११७ १५७ ~ 2. > WP ~ .. ८६ १५३ १४६ १८३ ११७ वृत्ति, पृष्ठ १८८ १०५ संक्षिप्त-पाठ अगामियाए जाव अडवीए अद्रारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहया सेसं तं चेव अणंते जाव केवलवरणाणदंसणे अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अपज्जवसिया जाव चिट्ठति अपडिविरया एवं जाव परिग्गहाओ अभिगय जीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसी' एयं ण बुच्चई अयबंधणाणि वा जाव महद्धणमोल्लाई अवहमाणए जाव से असंजए जाव एगंतसुत्ते आगमेसिभद्दा जाव पडिरूवा आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी आयारधरा जाव विवागसुयधरा आवलियाए जाव अयणे इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी उदए जाव झीणे एक्कतीसं सागरोवमाइंठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चेव एवं एएणं अभिलावेणं तिरिक्खजोणिएसु एवं चेव पसत्थं भाणियव्वं १. क्वचित्-'चियत्तघरतेउरपवेसी' ति (व) । १२० १०६ १३७ ८५,८७ ७२ ८४ वृत्ति, पृष्ठ १५३ नंदी सू०२ नंदी सू० ७६ वृत्ति, पृष्ठ ६८ १५२ ११७ ० ० Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवं जाव सव्वं परिमा एवं माण माया लोहा एवं सुपष्णते सुभातिए सुविणीए सुभाविए एवमाइक्खर जाव एवं एवमादयामि जाव परुबेमि कंदमते जाव पविमोयणे कंदमंतो एएसि वण्णओ भाणियव्वो जाव सिविय कंपिल्लपुरे जाव धरतए करयल जाव एवं करयल जाव कट्टु गामागर जावसणिवेसे घरसए जाय वसहि चंदण जाव गंधवट्टिभूयं जावज्जीवाए जाव परिग्गहे नवरं सव्वे मेहुणे पच्चक्खाए जावज्जीवए णमंत्तिए वा जाव पज्जुवासित्तए ५२० हाए जाव अप्प० व्हाया जाय पायछताओ तं चैव पसत्यं यव्वं, एवं चेव वइविणओवि एएहि पहि चैव यव्वो तं चैव सव्वं वरं चउरासी वाससहरसाई ठिई पण्णत्ता तं चैव सव्वं वरं ठिई चउसवास सहरसाई तित्यगरस्स जाव संपाविकामस तिदंडए य जाव एगंते तेत्तीस सागरोवमाई ठिई आराहगा चेव सेसं तं चैव तेरस सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता परलोगस्स आराहगा सेसं तं चेव दस सागरोवमाई टिई पण्णत्ता सेसं तं चैव देवे..... ****** धम्मिया जाव कप्पेमाणा नागभावे जावतमद्रुमाराहिता नम्गभावे जाब मंत नडपेच्छा इ वा जाब मागहपेच्छा ११७ १६८ ७६ ११८ ११८ १० ११८ २१,११७ १ से १३, १५, १६ १५५,१५० से १६१. १६२.१६८ ६२ ११६ ५५ १२१ १३६ ५३ ७० ४० ६३ ६१ २१ ११७ १६७ १५५ ११७ ११४ ७३ १६३ १६६ १६५ १०२ ११७ १६८ ७६ ११८ ११५ ५,७ ५,७ ११८ २० २० ८६ ११८ २ ११७ २ २० २० ४० ६१ ८६ E ११७ ८६ ८६ * * ८६ ७३ १६१ १५४ १५४ २ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "पंडियं जाव अलंभोगस मत्थं पगइभट्याए जाव विणीययाए पडिविरया जाव सव्वाओ परिमाहवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे परिव्वायए जाव वर्साहि पलिओचमं वासयहस्सममहिय ठिई सेसं तं चैव पावयणे जाव किमंग पोमणे जाव हियए बावीसं सागरोवमाई ठिई अणाराहगा सेसं तं चेव बावीसं सागरोवमा ठिई आशहगा सेस तं चेव" बावीस सागरोवमाई ठिई परलोगस्स अणाराहगा सेसं तं चैव भासासमिया जाव णमेव मणुस्सेसु ******** ****** महिडिएस जाव महासोक्सु महिदिया जाय चिरट्टिया मूलभोष वा जाव बीभोवणे लख्या जाव मंदिर खा लोभाओ जाय मिच्छादंसणसल्लाम लोभे अत्थि जाव मिच्छादंसण सल्ले वणं जान जाइ वहमाणए जाव णो बहमाणए जाव णो सगडं वा एवं तं चैव भाणियव्वं जाव गण्णत्थ एक्काए गंगामट्टियाए ५२१ सग वा जाव संमाणियं सच्चेव हेडिल्ला बत्तव्या जाव मिसीय सिभ जाब मंत तुजाव हियए हट्ट जाव हियया १. तहेव (क, ख ) 1 १४६ ११६ १६३ ७१ ११८,११६ ६४ ८०.८१ ६२ १५८ १६२ १५९ १६४ ७३ ७२ ७२ १२३-१३३ १०० ५३, ५४ १८१ सिम्झिहिति जाव मंत १६६ सुकुमालपाणिपाए जान समिसोमाकारे १४३ सेस तं चैव जान चउतद्विवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ६२ सेस तं चैव वरं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई ex २१,५३,५६,६३,८० १३५ १० १६३ ७१ १७० ११२.११३ १३८ २०.७८ १४८ ६१ ११७ ठाण १।११४-१२५ ११८ ८६ ७६ २० ८६ ८६ ८६ भगवती २११ ७३ ४७ ७२ वृत्ति & ७१ ठा १२१००-१०७ १६६ १११ १३७ १००-११० वृत्ति, पृष्ठ १७६ २०,२१ १७७ १५४ १५. ६१ ८६. २० २० Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ ७ हट्टतुटु जाव हिययाओ हयगय जाव सण्णाहियं हारविराइयवच्छा जाव पभासेमाणा रायपसेणइयं १३०; जी० २६४ ७५० ७७४ ७६५ ७७४ वृत्ति, पृष्ठ २२५ १५७ अंकामया"उवरिपुंछणीओ १६० अकंताहिं जाव अमणामाहिं अगामियाए जाव अडवीए ७७४ अगामियाए जाव किंचि अग्गमहिसोहिं जाव सोलसहि अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ २४०,२७६ अच्छं जाव पडिरूवं ३२,३४,३६ अच्छाई जाव पडिरूवाई अच्छाओ जाव पडिरूवाओ अच्छे जाव पडिरूवे अज्झस्थिए जाव संकप्पे ७६८ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ६८८,७३२,७३७,७७७,७६१,७६३ अज्झत्थियं जाव संकप्पं अज्झत्थियं जाव समुप्पण्णं २७६,७४६ अजोयगाई........ अट्टाई जाव पुच्छइ ७१६ अडवि जाव पविट्ठा अड्ढे जाव बहुजणस्स ६७५ अणगारसएहिं जाव विहरमाणे ७११ अणियाहिवइणो जाव अण्णेवि २८० अणेगखंभसयसण्णिविट्ठं जाव जाणविमाणं अण्णत्ते वा जाव लहुयत्ते ७६२,७६३ अण्णत्ते वा... लहुयत्ते ७६२ अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि अण्णया जाव चोरं अरिय जाव सव्वतो अप्पेगतिया गयगया जाव पायविहारचारेणं ६८८ अभवसिद्धिए जाव चरिमे अभिगमेणं जाव वंदइ ७७८ २६१ २४४ ७१६ ७६५ ओ० १४ ६८६ Mur ओ० ५२ ६२ ओ०६६ १. वृत्ती विशेषणानि किञ्चिदन्यूनानि दृश्यन्ते । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८६ ६१८ ७६४ ७६० ७६४ ७८७ ७६४ ओ०८,१३ ३,४ ७१३ ७७४ mero ७१६ १८३ २६६ २६४ २६१ अभिगयजीवाजीवे...विहरइ अभिगथजीवा सव्वो वण्णओ जाव अप्पाणं अयभारगं वा जाव परिवहित्तए असणं जाव अलंकार असणं जाव साइम असोयबरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया उववाइयगमेणं नेया अहापडिरूवं जाव विहरइ आइण्णं तं चेव जाव सहावेत्ता आपूरेमाणाओ जाव चिह्रति आपूरेमाणा जाव चिट्ठति आराम वा जाव पवं आरामगयं वा तं चेव सव्वं भाणियव्वं आइल्लएणं गमएणं जाव अपाणं आलिघरगेसु जाव आयंसघरगेसु आसत्तोसत्त... कयग्गहगहिय..."धूवं आसत्तोसत्त जाव धूवं आसयंति जाब विहरंति इठं जाव फुसंतु इटुसराए चेव जाव गंधेणं इट्ठत राए चेव जाव फासेणं इट्टतराए चेव जाव वष्णे इट्टतराए चेव जाव वण्णेणं इठे... किमंग इरियासमिए जाव सुहुयहुयासणे इहमागए जाव विहरइ ईसर-तलवर जाव सत्थवाह उक्किट्ठाए जाव जेणेव क्किट्ठाए जाव तिरियमसंखिज्जाणं उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणा उच्चत्तेणं वण्णओ उच्छुब्भइ जाव अरमणिज्जे उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई उपायपब्वएमु पक्खंदोलएसु उम्मुक्कबालभावं जाव वियालचारि उवट्ठवेह जाव पच्चप्पिणह १८५ ओ०११७ २६ से २६ ७५३ ८१३ ७५० ओ० २७ ६८७ २१० ७८५ २८८ १८१ ८१० ६८१,७१४ २०६ ७८५ १६७ १८० ८०६ ६८२ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ ६८१,६८२ ७२५ ७५४ ७२४ ७५६ ७६६ ७१६ ३१० जी० ३१३३६ ७१६ ३०५ २७६ ३०५ ७१६ ७७१ २९४ ७१६ ७७१ ६८३ ७८ ७८ ७७२ ७६४ ७७२ ७६५ ७७४ १४२-१४४ ७७४ उवट्ठवेह जाव सच्छत्तं उवटुवेंति उवट्ठवेहि जाव पच्चप्पिणाहि उवट्ठाणसालाए जाव विहरामि उबवायसभाए जाव उववणे उवस्सयगयं. उवागच्छइ तं चेव उवागच्छंति तहेव जेणेव उवागच्छित्ता"थूभं एएण वि जाव लभइ एयंतं जाव तं तं एयम→ जाव हियए एवं अभए सिंगारे उराले मणुण्णे एवं आहार-नीहार-उस्सासन्नीसास-इढि-महज्जूइ अप्पत राए चेव एवं जाव संखेज्जहा एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं एवं पंतीओ वीही मिहुणाई एस जाव नो एस सण्णा जाव एस समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे एस सण्णा जाव समोसरणे.... एस सष्णा""तयाणंतरं ओराले... चउदसपुवी ओहिनाणं भवपच्चइयं खोवसमियं कंखंति जाव अभिलसंति कंते जाव पासणयाए कते जाव मणामे कयग्गहगहिय जाव धूवं कयग्गहगहिय जाव पुंजोबयारकलियं कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कयबलिकम्मा जाव लंकिया कयबलिकम्मा जाव हव्वमागच्छेइ कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव चाउम्घंटे जाव दुरुहिता सकोरेंट""महया भडचडगरेणं तं चेव ७६४ ७४६ ७५०,७७३ ७७३ ७७३ १४१ ७५४ ७४८ ७४८ ७७३ ७७३ मो० ८२; भ० १६ नंदी ७ ७४३ ७१३ ७५१,७५२ ७७४ २६५ २६३ ७२० २९४ ६६२ ८०२ ७६५ ६६२ ६९२ १. अंतराए (क,ख,ग,घ,च,छ) । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ ६६२-६६४ ७१३ MPS ४६ १७० जाव पज्जुबासइ । धम्मकहाए जाव तए णं ७१६,७१७ करयल जाव कट्ट ७२३ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वढावेत्ता ७०८ करयलपरिगहियं जाव एवं ७०७ करयलपरिग्गहियं जाव कटु ६८३ करयलपरिग्गहियं जाव पच्चप्पिणति करयलपरिगहियं जाव पडिसुणेइ करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करेमिणो ७६४ कलकलरवेणं" एगदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया ६८८ कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं कल्लं जाव तेयसा ७८८ कालागरुपवर जाव चिट्ठति २३६ किण्हचामरज्झए जाव सुविकल्लचामरझए किण्होभासा..." किण्होभासे जाव पडिरूवे ७०३ कुसुमियाओ सव्व रयणामईओ कोडुबियपुरिसा जाव खिप्पामेव ७१५ कोरव्वा जाव इब्या कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं ७६६ खुड्डागमहिंदज्झए तं चेव ३५४ गिज्जइ जाव णो रमिज्जइ ७८३ गिहित्ता तहेव जेणेव २७६ गोसीसचंदणेणं.. पुप्फारहणं आसत्तोसत्त.."धूवं चरमाणे समोसढे जाव विहरइ ७१३ चवलाए जाव तिरियमसंखेज्जाणं जाव वीतिवयमाणा २७६ चालेइ जाव णो गंधवो ७७१ चित्तमाणदिए जाव परमसोमणस्सिए छिज्जइ जाव तया णं ७८४ छिडेइ वा जाव अणुपविट्ठा छिड्डेइ वा जाव निग्गए छिड्डेइ वा जाव राई ७५४ से ७५६ छिड्डेइ वा. जेणं जणसण्णिवाए इ वा जाव परिसा पज्जुवासइ ६८७ वृत्ति, पृष्ठ २८६ २७६ ওওও १३२ वृत्ति, पृष्ठ ८० ओ०४ ओ०४ ओ०५ ६८२ वृत्ति, पृष्ठ २८५ ओ० ११७ स ३५२ ७८३ २७६ २६४ ७१३ ওও? m ७५६ G 6 CcX1 6 6 ७५४ ७५६ ७५४ ७५४ ७५७ ७५४ ओ० ५२ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ ७६० ७६० २३५ m १८४ " २ ३०६-३०६ 6 ~ 6 ८०२ ८०२ ओ० १२ ओ० १५० ७७४ जराजज्जरियदेहे जाव परिकिलते जहा मणोगुलिया जाव णागदंतया जाइमंडवएसु जाव मालुयामंडवएसु १८५ जाणविमाणं जाव दाहिणिल्लेणं ४८ जाणह जाव उवदंसित्तए जिणपडिमा तं चेव ३१७-३२० जीवो तं चेव ७५५,७५६,७७१,७७२ जुण्णे जाव किलंते ७६०,७६१ जोयणाई जाव अहाबायरे जोयणाई जाव दोच्चं २७६ णाइअणिवाहि जाव णाइलमणामाहि णाइ जाव परिजणं णाइ जाव परिजणेण णिच्चं कुसुमियाओ.... गोवलिप्पिहिति"मित्त बहाए जाव उप्पि बहाए जाव सरीरे सकोरेंट..."महया बहाएणं जाब सवालंकारभूसिएणं ग्रहायस्स जाव पायच्छित्तस्स ७६४ तउयभंडे जाव मणामे ७७४ त उयभंडे जाव सुबहुं ७७४ तज्जीवो तं चेव ७५८,७६२ तत्थुप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई २७६ तरुणे जाव सिप्पीवगए ७५८,७५६ तहेव केवलनाणं सव्वं भाणियन्वं तिक्खुत्तो जाव वंदित्ता १२ तिट्ठाणकरणसुद्धं....पगीयाणं तेणेव तहेव जेणेव तेल्लसमुग्गाणं जाव अंजणसमुग्गाणं २५८,२७६ तारणाण झया छत्ताइछत्ता य णेयब्बा १७६-१७६ दक्खा जान उवएसलद्धा ওও दप्पणा जाव पडिरूवा दलयइ जाव कडागारसालं ७८८ दाहिणिल्ले दारे तहेव अभिसेयसभासरिसं जाव पुरथिमिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवाग २ तातोरणे य सिसोवाणे य सालि ६६२ ७७४ ७७४ ७५२ १९७ १२ नंदी २६ १७३ २७६ २७६ २०-२३ वत्ति, पृष्ठ १६ ७८७ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भजियाओ वालरूवए य तहेव, जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तहेव सीहासणे च मणिपेढियं च सेसं तहेव आययणसरिसं जाव पुरस्थि - मिल्ला नंदा पुक्खरिणी जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता जहा अभिसेयसभा तहेव सव्वं जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता तव लोमहत्ययं परामुसइ पोत्थयरयणे लोमहत्यएर्ण पमज्जइ २ ता दिव्वाए दगधाराएं अग्गेहि वरेहिं य गंधेहि मल्लेहि य अच्चे २ ता मणिपेढियं सोहासणे च सेसं तं चैव पुरथिमिल्ला नंदा क्खरिणी जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता तोरणे य तिसोवाणं य सालिभंजियाओ य बालरूवए य तहेव । दाहिणिल्ले दारे पच्चत्थिमिल्ला खंभपंती उत्तरिल्ले दारे तं चैव पुरथिमिल्ले दारे तं चैव दिव्वेहिं जाव अोववण्णे दुपय जाव सिरीसिवाणं दुहाफालिए वा जाव संखेज्जहा दुहाफालियंसि वा जोति देवसयणिज्जे तं चैव देवा जाव अब्भणुष्णाय मेयं देविड्ढि जाव दिव्वं देवढी जाव देवाणुभागे देवे जाव पच्चपिणंति धम्मत्थिकार्य जाव णो afe जाव विहराहि धम्मिया जाव वित्ति नमसइ जाव पज्जुवासेइ नमसामि जाय पज्जुवासामि नमसिस्संति जाव पज्जुवाससिस्संति नागदंता तं चैव जाव गपदंतसमागा नानामणि जाव पीवरं निसिरति अहाबारे अहासुहमे दोच्चंपि defore मुग्धाएणं जाव बहुसम पण ५२७ ३५७-६५३ ३३४-३३७ ७५३ ७०३ ७६५ ७६५ ३५३ ११ ५६ ६६७ ६५५ ७७१ ७५२ ७५२ ७१६ ५८ ७०४ १३२ ७० ६५ ७६० २६४-३५० २६६-२६६ ७५३ ७०३ ७६५ ७६५ वृत्ति, पृष्ठ २३५ ११ ५६ ६६७ १२ ७७१ ७५२ ६७१ ७१६ & E १३२ ६६ १० ७५३ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o००४ Norm ओ० ११ ओ० ११ ओ० १५० ७५३ ७५३ ७५७ ६६३ ६६३ ३०१ से ३०४ ७३७ ७३२ ७३२ ७३२ १४२-१४५ १६३-१६६ २३३ १७४ पउमलयाओ जाव सामलयाओ पउमलयापविभत्ति जाव समलयापवित्ति पउमे इ वा जाव सयसहस्सपत्ते इ वा पएसी तं चेव पएसी ! तहेव पच्चक्खाए जाव परिग्गहे पच्चक्खामि जाव परिम्गह पच्चथिमिल्ले दारे तं चेव, उत्तरिल्ले दारे तं चेक, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे तं चेव पज्जुवासंति जाव पवियरित्तए पज्जुवासंति जाव बूया पडिरूवा जाव पंतीतो वीहीतो मिहणाणि लयाओ पण्णताओ.... पतणतणायंति जाव जोयणपरिमंडलं पत्तं वा तहेव पत्तठे जाव उवएसलद्धे पाडिहारिएणं जाव संथारएणं पावकम्मं जाव उववज्जिहिसि पासाईयाओ... पासाईयाओ जाव चिठ्ठति पासादीए जाव पडिरूवे पासादीया जाव पडिरूवा पासायवरगए जाव विहरतो पासायवरगए जाव विहरमाणे पिहावेमि जाव पच्चइएहिं पीढफलग जाव उवनिमंतिज्जाह पुण्णोवचयं जाव उववज्जिहिसि पुप्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाई जाव लोमहत्थपडलगाई पुप्फपडलगाणं जाव लोमहत्थपडलगाणं पुप्फारुहणं ""आसत्तोसत जाव धूवं पुरिसेहिं जाव उवक्खडावेत्ता पेच्छाघरमंडदे एवं थमे जिणपडिमाओ चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदापुक्खरिणी ७६५ ७१३ ७५० ७५० १३६ १३३ ६६८,६७० जी० ३१३०३ २१ ७७४ ७७४ ७०४ ७५२ ७७४ ७७४ ७५६ ७०६ ७५२ २५८,२७६ १५७ २५८,२७६ ३००,३०५,३५५ ७८८ १५६ १५६ २६४ ७८७ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तं चैव जाव धुवं दलइ २ सा पोसहवासस्थ जाव विहरिस्तामि फरिस जाव विहर फरिस जाय विहरति बहूहि य जाव देवेहि बाले जाव मंदविष्णाचे भंते जाव नो भंते जाव विहरामि भंते पणसंडे भूमिभागा उल्लोया मंगलगा सज्झया जाव छत्तातिछत्ता मणपज्जवणाणे मणसंकरणं जाव भियायमाणं मणसंकरपे व भिषायसि मणिपेढियं च.... दिव्वाए महन्वपरिसाए जाब धम्मं महत्थं जाव उवणेइ महत्वं जान गेह महत्थं जाव पडिच्छ महत्यं जाव पाहुड महत्वं जाव विसब्जिए तं चैव जाव समोस रह महाहिमवंत जाव विहरइ महाकम्मतराए चैव तं चैव महाकिरिय जाव हंता महामोरं जाव नमसिता महिद भए.....तं चैव महिदिया जाय पलिओचमद्वितीया महिष्ठीए जाव महाणुभागे माहणं वा जाव पज्जुवासे मित्त जाव परिजणस्स मुच्छिए जाव अज्कोववण्णे ५२८ ३३८-३५० ७८७ ७१० ७७४ २६१ ७५८,७५६ ७६२ ७६२ ७८२ २१६ १६६,१६७,१६८ ૭૪૪ ७६५ ७६५ ३०५ ७७६ ७०८ ७०८ ७०६ ६८०,६०१,६०३,६८४,६६१,७०० ७०२ ૬. ७७२ ७७२ ૭૪ ३११ १८६ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ वृत्ति, पृष्ठ २६४ सू० ३००, २६६, २६७, २६६, २६, ३०५, ३०६, ३०६, ३०६,२०६, ३१०, ३११. ३१२ ७८६ ६८५ ६८५ ७५८ ७५४ ७५४ ७८१ २१३ २१,२२,२३ नंदी २३ ७६५ ७६५ २६४ ६६३ ७०० ६८१ ६०४ ६८० ७०० ओ० १४ ७७२ ७७२ ε ३०५ छो० ४७ ६६६ ७१६ ८०२ ७५३ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६० ७६१ ७६१ १२ १० ७७७ ওওও १० १६५ १२ ६८० जी० ३।२६४ ६२ १९० ७७५ ६८६ ७८६ ७८७ २११-२१४ १४८ ओ० ५२; राय०६८८ ७८१ ७५१ २०६,२१०,२३७,२५१ १३१ ७६७ ७७६,७७७ ७६८ १७५,१८० २७६ १७४ रज्जं च जाव अंतेउरं रहें जाव अंतेउरं रयणाणं जाव रिद्वाणं रयणीए जाव तेयसा रयणेहिं जाव रिोहिं रायंगणं वा जाव सम्वतो रायकज्जाणि य जाव रायववहाराणि वइरामया सुवण्णरुप्पामया फलगा नाणामणिमया वंदइ जाव एवं वंदणवत्तियाए जाव मया वणसंडे इ वा.... वणसंडे इ वा जाव खलवाडे वण्णओ सभाए सरिसो वरकमलपट्टाणा जाव महया वरकमलपइट्टाणा तहेव बामेणं जाव वट्टित्ता वामेणं जाब विवच्चासं वावीणं जाव बिलपंतियाणं वासधरपब्वया तहेव जेणेव विउलेणं जाव पडिलाभेइ विविहतारारूवोवचिया जाव पडिरूवा वीसाएमाणा जाव विहरंति संखंक....सव्वरयणामया संठिय जाव जोयणसहस्समूसिएणं सच्छत्तं जाव चाउग्घंट सण्णद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवेत्ता सद्द जाव विहरइ सद्दहेज्जा....जहा अण्णो जीवो तं चेव सद्दहेज्जा तं चेव सद्दहेज्जा तहेव समज्जिणित्ता जाव देवलोएसु समणं वा जाव पज्जुवासेइ समणं वा तं चेव जाव एएण समण जाव परिभाएमाणे समागा जाव पडिसुणेत्ता समिद्धे... समुदया जाव सिरीए २७६ ७१६ २० २२२ ८०२ १६० ५२ ६८१ ६८३ ७६१ ६८३ ओ०१५ ७५६,७५८ ७६२,७६४ ७५४ ७५४ ७५२ ७५२ NMMs. ०४ Wwxx ७१६ ७८७ ६६८ ० Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ ७५२ ७७१ २७६ २७६ २७६ ओ०६७ ७५४ ६८७ ७७२ ४६ २१ २८३ वृत्ति, पृष्ठ २६६ ८०१ ३५२ ओ०१५ ७५१ ७५२ ७५० २३१ सरीरं तं चेव ७५६,७६४ सरूविस्स जाव ससरीरस्स ७७१ सव्वंतरणईयो जेणेव २७६ सव्वतूयरे तहेव जेणेव २७६ सव्वतूयरेहिं जाव सम्वोसहिसिद्धत्थएहि २५० सचिड्ढीए जाव (णा) नाइयरवेणं १३,६५७ ससक्खं जाव उवणेति सामाणियसाहस्सीहि जाव सोलसहि सिंघाडग""महया जणसद्देइ वा परिसा ७१२ सिया जाव गंभीरा सिरिवच्छ जाव दप्पणा सीहासणे जाव सण्णिसणे २८६ सीहासणे ते व सुकुमालपाणिपाए जाव पडिरूवे सुकुमालपाणिपाया धारिणी वण्णो ६७२ सुबहु जाव उववण्णा ७५३ सुबहुं जाव उववणे सुसिलिट्ठ जाव पडिहवे २४७ सुरियाभविमाणवासिणो जाव देवीओ २८६ सोच्चा जाव हट्ठ....उट्ठाए जाव एवं ७०० सोत्थियं जाव दप्पणं २६१ हंसासणाई जाव दिसासोवस्थियासणाई हट्ठ जाव करयल जाव पडिसुणंति हट्ठ जाय जेणेव हट्ट जाव पडिसुणेत्ता हट्ट जाव भवह ७१३ हट्ठ जाव समणं हट जाव हियए ४७,६६५,७१० हट्ठ जाव हियया १२,२७६ हतुटु जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे ७२६ हट्ठतुट्ठ जाव आसणाओ ७१४ हट्ठतुट्ठ जाव सूरिया २६० हट्ठतुट्ठ जाव हियए १३,१४,१७,१८,६२,२७७, ६६०,७१३,७१६,७२५,७७८ हट्ठतुटु जाव हियया १०,१६,२८१,७०७,७१३,७७४ हट्टतुट्ठ तहेव एवं हत्यच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ ७५१ हत्थेण वा जाव आवरेत्ताण ७१३ ६६५ १८३ १८१ ७४ ६८१ १ ६६५ ७५१ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंठाणं जाव उसभकंठाणं इयर्सघाडा जाव उसभसंघाडा हिरण्णं तं चैव जाव पव्वइत्तए अकंततरंगा चेव जाव अमणामतरगा अणिट्ठा जाव अमणामा अपढमसमयबेदिया जाव पढमसमयपंचिदिया अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया आयामेणं जाव दो आसमंत जाव विहरति आसादणिज्जे जाव इट्टतराए चेव आसादे आसादणिजे जाव पल्हाय पिज्जे आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा आहेवच्चं जाव दिव्वाइं आहेवच्च जान पालेमाणा इंगाले जाव तत्व नियमा ईहामियउसभ जाव पउमलयभत्तिचित्ता (वा) जीवाजीवाभिगमे उविकट्टाए जाव दिव्वाए उदात्ता सो चेव विही एवं धायइसडेवि उप्पलाई तं चैव उपनेते जाव सव्विदिवगात पल्हायगिज्जे उपागच्छत्ता जाव कट्टु एएवं अभिलावेणं जाव दसविहा एवं चचारिवि गमा, पढमवियमंसु अपरिवाइत्ता एगंतरियगा अच्छेत्ता अभेत्ता, सेसं तहेव (क, ख, त्रि) ते च्चेव आलावता ह जाय हंता पभू ५३२ एवं जहा पणवणापदे जाव पंच कतरेहिंतो जाव विसे साहिया मम्माहमहित जान पुँजोवयारकलितं कयगाह जाव धूवं कामावत्ताई जाव कामुत्तरवडिसयाई कालं जाव असंखेज्जा कालं जाव आवलियाए हिता चैव एवं जहा अच्चीणि नवरं एवतियाई पंच ओवासंतराई एवं जहा पण्णवणाए जाव से २५८ १९२ ६१५ ३१८४ ३।६२ દા ५३१९ ३।३७६ ३१२१७ ३/०६६ ३१८७२ १२० ३।३५० ३/६३६ ११७८ ३।३११ २०४४५ ३१७१८,७२० ३१४४५ ३८७८ ३।५५५ १११० ३६६५-६६७ ३।१७८ १५. ३।२२६ २११३४-१३६ ३।४५८ ३१४६० ३३१७६ ५८ ५५६ ३२४४५ १५५ १४१ ६६५ ३।२७८ भ० ११२२४ ४११,१११ ४।१९ ६।३७२ ३१२१७ ३१८६० ३।८६० पण ० ८११ ओ०सू० ६८ ३।३५० पण्ण० ११२६ ३।२८८ ३।०६ ३२५७५,५७६ ३२४४५ ३२८६० ३२४४५ १११० ३६६१-६६३ ३।१७६ पण्ण० १1३ पुण्ण० १९८७ ४१९ ३१४५७ ३१४५८ ३.१७५ पण्ण० १५ २६ पण्ण० १८१३ ३४४५ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३३ ३१४५६ ३।२८३ ३१२७८ ३१२७८ ३।१७६ गोसीसचंदणेणं जाव चच्चए दलयति आसत्तोसत्त कयरगाह धूवं ३१४६१ चेव जाव फासेणं ३१२८४ चेव जाव मणामत राए ३१२८३ चेव जाव वण्णणं ३१२७६-२८२ जहा अच्चीणि णवरं सत्त ओवसंत राई विक्कमे सेसं तहेव ३११८० जहा अविसुद्धलेस्सेणं छ आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणवि छ आलावगा भाणितवा जाय विसुद्धलेस्से ३।२०५-२०८ जहा गईओ ३१४४५ जातीकुलकोडीजोणीपमुह व पण्णत्ता ३.१६६ जातीकुल जाव समक्खया ३।१६८ जोयणकोडी जाव अब्भंतरपुक्खरद्धस्स ३१८३५ जोयणसहस्साई जाव परिक्खेवेणं ३।१०७४ णं जाव केवचिरं ४१,४३ तं चेव जाव महावेदणतरा ३११२६ तं चेव णं जाव णो ३।११६ तहेब जाव सायासोक्खबहुले ३१११६ तित्थसिद्धा जाव अणेगसिद्धा १८ तित्थाई तहेव जहेब ३।४४५ तुरियाए जाव दिव्वाए ३११७६ पगतिभद्दगा जाव विणीता ३१८४१ पच्छावि जाव आणुगामियत्ताए ३१४४२ पणिहाय जाय सव्ववस्खुड्डिया ३३१२४ पण्णत्ता जाव तेसु ३१३६८ पत्तेयं जाव णिसीयंति ३३५६० पयलाएज्ज वा जाव उसिणे ३।११६ पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया ३।१२५ पुप्फारुणं जाव धूवं ३१४६५ पोग्गला य जाव असासयावि ३।७२७ भविस्स इ जाव अवढिए ३१३५० महज्जुतीए जाव महाणुभावे ३१३५० महताहतनगीयवादितरवेणं दिवाई भोगभोगाइं भंजमाणा ३१८४५ महिड्ढीए जाव महाणुभागे ३.८६ मुत्ताजालंतरुसिया तहेव जाव समणाउसो ३।३०२ लवणस्स णं पएसा धाय इसंडं दीवं पुट्ठा तहेव जहा जंबूदीवे धाय इसंडेवि सो च्चेव गमो ३१७१५-७१८ वट्टे जाव चिट्ठति ३८६२,८६५,८७१, ५७७,६२५ ३११६६-२०२ ३१४४५ ३१६० ३.१६७ ३१८३२ ३।८२ है।३६ ३११२६ ३।११८ ३१११८ पण्ण० १११२ ३१४४५ ३१८६ ३१७६५ ३४४१ ३३१२४ ३१३६७ ३१५५८ ३।११८ ३११२४ ३३४५६ ३१७२४ ३।२७२ ३८६ ३१८४२ वृत्ति, पत्र १०६ ३।३०२ ३१५७१-५७४ ३१७०४ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वलयागार जाव चिट्ठति वलयागारसंठाणसंठिते जाव चिट्ठति वलयागारठाणसंठिते जाव संपरिविखत्ताणं वलयागारे तहेब जाव जे गम्यतुमरे तहेव मध्यपाना जाव देवताए देवित्ताए आनण जाव ईता सम्पुण्फे तं चैव सामाजिसागीहि जाव अहि सिज्यंति जाव अंतं ३१८५६ ३१८६८ ३१८४८ ३॥४७ ३२४४५ ३।११३० ३२४४५ ३।५५७ १।१३२ ३५८० ३१७८, १८२ ३।१०३६ ३।४४३ जावहिया ३।४४५ हट्ठा करतल जाव कट्टु एवं देवोत्ति जाव परिसुता ३।५५५ हट्टतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया ३२४४७ सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा सेस तं चैव मोहम्मीसाण जाव अणुत्तरेसु हट्ट जान हियए ५३४ कंठगाणं जाव उसकंठगाणं पुण्फ चंगेरीणं जाय लोमहत्यचंगेरीणं पुष्कपटलगाणं अस तेल्लसमुग्गाणं जाय धूवकच्छ्रयाणं हिमे जाव जे ३०४१६ १।६५ ३१७०४ ३७०४ ३॥७०४ ३।४६ २३२४४५ ३।११२५ amx Fire ओ० सू० ७२ जंबु० २।१० ३११७६ पण्ण० २१४६ वृत्ति, पत्र २४३ ३२४४३ ३२४४५ ३।४४१ ३।३२८-३३५; वृत्ति पत्र २३४ पण्ण० १।२३ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-२ तुलनात्मक ओवाइय सूत्र १४ राज-वर्णक जंबुद्दीवपण्णत्ती ३.२,३ अत्र राजवर्णकस्य प्रकारान्तरं चापि लभ्यते । देवी-वर्णक नायाधम्मकहाओ शराम नमोत्थु-पूर्वावस्था-वर्णक रायपसेण इयं सूत्र ८,७१४ नायाधम्मकहाओ ॥११११ ओवाइय सूत्र १५ ओवाइय सूत्र २१,५४ नमोत्थु-सूत्र बोवाइय सूत्र २१: रायपसेणइयं सूत्र ८: णमोत्थ णं अरहताणं भगवंताणं आइगराणं नमोत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं आदिगराण तित्थगराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससी- तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं हाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयजीवदयाणं दीवो ताणं सरणं गई पइदा धम्मवर- गराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं जीवचाउरंतचक्कवट्टीणं अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं दयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाण धम्मवियदछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं देसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरतारयाणं मुताणं मोयगाणं बुद्धाणं बोया चाउरतचक्कवट्टीणं अप्पडिहय वरनाणदंसणधराणं सवण्णणं सव्वदरिमीणं सिवमयलमरुयमणतमक्ख- वियदृछाउमाणं जिणाणं जावयाणं तिण्णाणं तारयाणं यमब्वाबाहमपुणरावत्तगं सिद्धिगइणामधेज्जं ठाण बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वण्णणं सव्वसंपत्ताणं। दरिसीणं सिवमयलमस्यमणंतमक्खयमब्वाबाहम पुण रावत्तयं' सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं। १. २६२ सूत्रे नास्ति । ३. २६२ सूत्रे सिवं अयलं अरुअं अणतं अक्खयं २. १६ सूत्रे 'जाणए' पाठो विद्यते । अव्वाबाहं अपुणरावित्ति । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ समणे भगवं महावीरे आइगरे विभक्ति भेदेनैव पाठो निर्दिष्टसूत्रांकेषु विद्यते सूत्र १६,२१,५४ ओवाइय सूत्र २२ : कल्ले पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगध्पगासकिसु-सुमुह - गुंजद्ध राग-सरिसे कमलागरसंडबोहए उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयता जलते | समवाओ ११२ : समणेण भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएण पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरे अभयदपणं चक्खदणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरतचक्क वट्टिणा अप्पडियव रणाणदंसणधरेण वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावरणं तिष्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वष्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणक्याबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेणं । भगवती ११७ समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयद चक्खुदए मग्गदए सरणदए धम्मदेस धम्मसारही धम्मवरचा उरंतचक्क वट्टी अप्पडियवरना णदंसणधरे विट्टछउमे जिणे जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोए सव्वष्णू सव्वदरिसी सिवमयल मरुयमगंत मक्खयमव्याबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे । प्रभात-वर्णक - जंबुद्दीवपण्णत्ती ५२१ --नायाधम्मकहाओ १११/७ - अणुत्तरोववाइयदसाओ ३।७५ रायपसेणइयं सूत्र ७२३ : कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावस्सए सहस्ररिसम्मि दिणयरे तेयसा जलते । रायपसेणइयं सूत्र ७७७ : कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल -कमल-कोमलु Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३७ म्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागर-लिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते । भगवती २०१६६६ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासे किसुय - सुयमुह - गजद्धरागसरिसे कमलागरसंहबोहए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते । नायाधम्मकहाओ १११।२४ (अतिरिक्त पाठ) अणओगदारं, लोइयं दव्वावस्सयं सू० १६ अनगार-प्रव्रज्या ओवाइय सूत्र २३: आयार-चूला १५।२६: चइता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धणं एवं- चिच्चा हिरणं, चिच्चा सुवणं, चिच्चा बल, चिच्चा धणं बलं वाहणं कोसं कोट्रागारं रज्जं रठं पुरं वाहणं चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सारअंतेउर, चिच्चा विउलधण - कणग-रयण-मणि- सावदेज्ज, विच्छड्डेत्ता, विगोवित्ता, विस्साणित्ता. मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्त-रयणमाइयं संत-सार- दायारेसु णं दायं पज्जभाएत्ता सावतेज्ज, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइ- रायपसेणइयं सूत्र ६६५ : याणं परिभाय इत्ता, मुंडा भवित्ता अगाराओ चिच्चा हिरणं, एवं-धणं धण्णं बलं वाहणं कोसं अणगारियं पव्वइया । कोट्रागारं पुरं अतेउरं, चिच्चा विउलं धण-कणगरयण-मणि - मोत्तिय - संख-सिल-प्पवाल-संतसारसावएज्ज, बिच्छत्तिा विगोव इत्ता, दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता, मुंडा भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयंति । सूत्र २४,३२,३४,३५,३६ सूत्र २५,२६ निर्ग्रन्थ-तप-वर्णक पण्हावागरणाई ६६ रायपसेणइयं सूत्र ६८६ भगवती ।९५ नायाधम्मकहाओ ११२४ भगवती २१५५ रायपसेणइयं सूत्र ८१३ निरयावलियामओ ३१४ पण्हावागरणाई १०।११ सूत्र २७ सूत्र २७,२८,२६ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २७,२८,२६,३२,३४-३६ सूत्र ३०-४४ सूत्र ३१ सूत्र ३२ सूत्र ३३ सूत्र ३६ सूत्र ३७ सूत्र २८ सूत्र ३६ सूत्र ४० सूत्र ४१ सूत्र ४२ सूत्र ४३ सूत्र ४७-५१ बाह्यतप जंबुद्दीपणती २२६० से ७० पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७८,७६,८० द्रष्टव्यम् - अंगसुत्ताणि भाग - १ परिशिष्ट २ आलोच्यपाठ तथा वाचनान्तर यावत्कथिक ऊनोदरिका कायक्लेश ५३८ ठाणं २१२००,२०१ प्रायश्चित्त विनय वैयावस्य ध्यान सुगडी २०२०६४ से ६६ भगवती २५।५५७ से ६१८ उत्तरज्झयणाणि ३०, ७-३६ स्वाध्याय ठाणं ६६६५ प्रतिसंलीनता देव वर्णक आभ्यन्तरतव भगवती २४ ववहारो ८१७ ठाणं ७ ४९ ठाणं ४ ११०, ११२ ठाणं ५१३५ ठाणं ६६६ ठाणं १० ३७ ठाणं ७।१३०-१३७ ठाणं १०।१७ ठाणं ५२२० ठा ४१६०-७२ पण्णवणा २४०-६३ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ परिषद्-गमन-वर्णक सूत्र ५२ रायपसेणइयं सूत्र ६८८,६८६ नगरी-सज्जा-वर्णक सूत्र ५५ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३१७ नित्यकर्म-वर्णक नायाधम्मकहाओ ११११२४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३९ निगमन-वर्णक भगवती ।।२०४ से २०६ सूत्र ६४-६६ जंबुद्दीवपणात्ती ३।१७७-१८६ सूत्र ६६ पज्जोसवणाकप्पो सूत्र ७५ पर्युपासना-वर्णक सूत्र २६,७० भगवती ६१३३, १४५,१४६ दासीनाम सूत्र ७० रायपसेणइयं सूत्र ८०४ जंबुद्दीवपण्णत्ती ३।११ नायाधम्मकहाओ १११८२ परिषद्-वर्णक रायपसेणइयं सूत्र ६१ : तीसे ये महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणि- तीसे य महतिमहालिताए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए परिसाए जतिपरिमाए विदुपरिसाए देवपरिसाए अगसयवंदाए अणेगसयवंदपरियालाए ओहबले." ! खत्तियपरिसाए इक्खागपरिसाए योरव परिसाए अणेगसयाए अणेगवंदाए अणेगसयवंद परिवाराए महतिमहालियाए ओहबले.... । देवलोक और देव-वर्णक सूयगडो २२२ आयुबंध ठाणं ४।६२५,६२८ भगवती ८१४२५ से ४२८ धर्मश्रद्धा-प्रकटन सूत्र ७६ रायपसेणइयं सूत्र ६६५ भगवती २१५२,६।१६४ नायाधम्मकहाओ १११११०१ उवासगदसाओ ११५१ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ८२ गौतम-वर्णक भगवती ११ उवासगदसाओ ११६६ वाणमंतर-उपपात भगवती ११४६ गंगाकुलवासी-वानप्रस्थक-तापस भगवती १२५६ निरयावलियाओ ३१३ सूत्र ८८,८६ सूत्र ६४ सूत्र १७ परिव्राजक-वर्णक भगवती २।२४ । अम्मड-परिव्राजक भगवती १४:११० से ११२ दृढप्रतिज्ञ रायपसेण इयं सूत्र ७६६-८१६ सूत्र ११५-१५४ सूत्र १४१-१५४ सूत्र १४६ रायपसेणइयं सूत्र ८०६ ७२ कलाएं जंबुद्दीवपण्णत्ती समवाओ वृत्ति पत्र १३६,१३७ ७२।७ लेहं लेह गणियं रूवं नट २. गणियं ३. रूवं ४. णटें ५. गीयं ६. वाइयं ७. सरगयं ८. पुक्खरगयं ६. समतालं १०. जूयं ११. जणवायं १२. पासगं १३. अट्ठावयं १४. पोरेकव्वं १५. दगमट्टियं गणियं रूवं नटें गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं गणियं रूवं नट गीयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समताल णायाधम्मकहाओ १।१८५ लेहं गणियं रूवं न गोयं वाइयं सरगयं पोक्खरगयं समतालं जूयं गीअं वाइयं सरगयं पोक्ख रगयं समताल' जूअं जणवाय पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं जूयं जयं जणवायं पोरेकव्वं जणवायं पासगं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं अट्टावयं जणवायं पासयं अट्ठावयं पोरेकव्वं दगमट्टियं दगमट्टियं अन्नविहिं १. क्वचित् 'तालमान'मिति पाठः । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अण्णविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहि सयणविहिं अज्जं पहेलियं मागहियं गाहं १६. अण्णावहिं १७. पाणविहि १८. वत्थविहि १६. विलेवणविहिं २०. सयणविहि २१. अजं २२. पहेलियं २३. मागहियं २४, गाई २५. गोइयं २६. सिलोयं २७. हिरण्णजुत्ति २८. सुवण्णजुत्ति २६. गंधत्ति ३०. चुराणजुत्ति ३१. आभरणविहि ३२. तरुणीपडिफम्म ३३. इत्थिलकखणं ३४. पुरिसलक्खणं ३५. हयलक्खणं ३६. गयलक्खणं ३७. गोण लक्खणं ३८. कुक्कुडलक्खणं ३६. छत्तलक्षणं ४०. दंडलक्खणं ४१. असिलक्खणं ४२. मणिलक्खणं ४३. काकणिलक्खणं ४४. वत्थविज्ज ४५. खंधावारमाणं ४६. नगरमाणं ४७. वूह ४८. पडिवूह ४६. चार ५०. पडिचारं ५१. चक्कवूह ५२. गरुलवूह ५३. सगडव्हं अन्नविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहि सयणविहि अज्जं पहेलियं मागहियं गाई गीइयं सिलोग हिरण्णजुत्ति सुवण्णजुत्ति आभरणविहिं तरुणीपडिकम्म इस्थिलकावणं पुरिसलक्षणं हवलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्षणं छत्तलक्षण चक्कलक्खणं दंडलक्षण असिलक्खणं मणिलक्खणं कागणिलखणं वत्थुविज्ज गरमाणं खंधावारमाणं चारं पडिचारं अन्न विहिं पाणविहि पाणविहि लेणविहिं वस्थ विहिं सयणविहिं विलेवणविहि अज्ज सयविहि पहेलियं अज्ज मागहियं पहेलियं मागहिअं सिलोग गाहं गंधजुत्ति गीइ मधुसित्थं सिलोग आभरणविहिं हिरण जुत्ति तरुणीपडिकम्म सुवण्णजुत्ति इत्थीलक्खणं चुण्णजुत्ति पुरिसलक्षणं आभरणविहिं हयलक्खणं तरुणीपरिकम्म गयलक्खणं इथिलक्खणं गोणलक्खणं पुरिसलक्खणं कुक्कुडलक्खणं हवलक्षणं मिढयलक्खणं गयलक्खणं चक्कलक्खणं गोगलक्खणं छत्तलक्खणं कुक्कुडलक्खणं दंडलक्खगं छत्तलक्खणं असिलक्षणं दंडलक्खणं मणिलक्खणं असिलखणं काकणि लक्खणं मणिलक्खणं चम्मलक्खणं कागणिलक्खणं चंदचरियं वत्थुविज्ज सूरचारियं खंधावारमाणं राहुचरियं नगरमाणं गहचरियं चार सोभाकरं पडिचार दोभाकरं विज्जागयं पडिवूह मंतगयं चक्कवूह रहस्समयं गडवूह सभास मुगडवूहं चारं पडिचारं गीइयं सिलोयं हिरण्णजुत्ति सुवाणजुत्ति चुण्णजुत्ति आभरणविहि तरुणीपडिकम्म इत्थीलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं गोणलक्खणं कुक्कुडलक्खणं छत्तलक्खणं दंडलक्खणं असिलक्षणं मणिलक्खणं कागणिलक्खणं वत्थुविज्ज खंधारमाण नगरमाणं पडिवूहं चक्कवूह गरुलवूह सगडवूह जुद्धं पडिवूह चारं पडिचारं चक्कव्हं गरुलवूह सगडवूह जुद्ध Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ पडिवहं ५४. जुद्धं ५५. निजुद्धं ५६. जुद्धाइजुद्धं ५७. मुट्ठिजुद्धं ५८. बाहुजुद्धं ५६. लयाजुद्ध ६०. ईसत्थं ६१. छरुप्पवाद ६२. धणुवेदं ६३. हिरण्णपागं ६४. सुवण्णपागं ६५. वट्टखेड्ड ६६. सुत्तखेड्डं ६७. णालियाखेड्ड निजुद्धं जुद्धजुद्धं अट्ठिजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं ईसत्थं छरुप्पवायं धणुवेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्डं नियुद्धं जुद्धातियुद्ध दिट्ठिजुद्धं मुट्ठिजुद्धं बाहुजुद्धं लयाजुद्धं इसत्थं छरुप्पवायं धणुव्वेयं हिरण्णपागं सुवण्णपागं सुत्तखेड्डं वत्थखेड्डं नालिआखेड्ड ईसत्थं निजुद्धं जुद्धाइजुद्धं खंधावारमाण अट्ठिजुद्धं नगरमाणं मुट्ठिजुद्धं वत्थुमाणं बाहुजुद्ध खंधावारनिवेस लयाजुद्ध नगरनिवेसं ईसत्थं वत्थुनिवेस छरुप्पवायं धणुवेयं छरुप्पगयं हिरण्णपागं आससिक्खं सुवण्णपाग हत्थिसिक्खं वट्टखेड्डं घणुब्वेयं सुत्तखेड्डं हिरण्णपागं नालियाखेड्डं सुवण्णपागं मणिपागं धातुपागं बाहुजुद्ध दंडजुद्धं पत्तच्छेज्जं मुट्ठिजुद्धं अट्ठिजुद्धं निजुद्धं जुद्धाति वट्टखेड्डं णालियाखेडड ६८. पत्तच्छेज्ज पत्तच्छेज्ज पत्तच्छेज्ज ६६. कडगच्छेज्जं कडगच्छेज्ज कडच्छेज्ज नालियाखेड्ड कडच्छेज्ज वट्टखेड्डं ७०. सज्जीवं सज्जीवं सज्जीवं पत्तच्छेज्ज सज्जीवं कडगच्छेज्जं ७१. निज्जीवं निज्जीवं निज्जीवं सज्जीवं निज्जीवं निज्जीवं ७२. सउणरुयं सउणरुयं स उणरुअं सउणरुयं सउणरुतं मुनित्व आराहणा सूत्र १५४ राइपसेणइयं सूत्र ११६ जस्सदाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जस्सदाए कीरइ णग्गभावे मंडभावे केसलोए बंभअदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तगं चेरवासे अण्हाणगं अदंतवणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं अणोवाहणगं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसज्जा भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परघरपवेसो लदावलपरघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहि हीलणाओ द्वाई माणावमाणाई परेहि हीलणाओ निदणाओ निंदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ खिसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ तालणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसदोवसरमा Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामकंटगा बावीसं परिसहोवसग्गा अहिया- गामकंटगा अहियासिज्जति, तमलैं आराहेहिइ, सिज्जति तमट्ठमाराहिता.... आराहिता"। सूयगडो २।२।६७ जस्सट्ठाए कीरइ जग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अगोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धं माणावमाणणाओ हीलणाओ निदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकंटगा बावीसं परीसहोबसग्गा अहियासिज्जति तमह्र आराहेति, तमलैं आराहेत्ता....। ठाणं १९६२ से जहानामए बज्जो! मए समणाणं णिगंथाणं नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अणुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कटूसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परधरपवेसे लावलद्धवित्तीयो पण्णत्ताओ। भगवती ३४३३ जस्साए कीरइ नग्गभावे मंडभावे अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणोवाहणयं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोओ बंभचेरवासो परपरप्पवेसो लद्धावलद्धी उच्चावया गामकंटगा बावीस परिसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमलैं आराहेइ, आराहित्ता..। नायाधम्मकहाओ १११६३३२४ निरयावलियामओ ॥१ सूत्र १५५ सूत्र १६१, १६२ सूत्र १६२ देवकिल्विषक-उपपात भगवती २४० श्रावक-वर्णक सूयगडो २२७१,७२ रायपसेणइयं सूत्र ६६८ भगवती रा६४ अनगार-वर्णक सूयगडो २०२१६३.६४,६७ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६६-१८४ सूत्र १७० केवली-समुद्घात पण्णवणा ३६७६-६४ गंधसमुद्गक विकिरण भगवती ६।१७३ ईषत्प्राग्भारापृथ्वी पण्णवणा २१६४-६६ ठाणं पा१०६,११० समवाओ १२।११ सिद्ध-वर्णक पण्णवणा २०६७ सूत्र १९२-१६४ सूत्र १६२,१६३ सूत्र १६५ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Į परिशिष्ट - ३ सद्दसूची प्रमाणविधि अव्यय, सर्वनाम, क्त्वा, तुम्, यप् प्रत्यय के रूप और धातुरूप के साक्ष्य स्थल का निर्देश प्रायः एक बार दिया गया है । • रूट ( / ) अंकित शब्द धातुएं हैं। उनके रूप डॅस ( - ) के बाद दिए गए हैं। • शब्द के बाद साक्ष्य स्थल का अंक सूत्र का है, तथा दो अंक प्रतिपत्ति व सूत्र का है, तीसरा अंक सूत्र के अन्तर्गत गाथा का है । जहां एक या दो संगहणी गाथाएं हैं वहां उसके प्रमाण उसी सूत्रांक में दे दिए गए हैं । ] अ • अ [च] रा ६७५ as [ अ ] ० ११,५६,६२ अह [ अति ] रा० ७६७ अइकंत [ अतिकान्त ] जी० ३।५६७ अइक्कंत [ अतिक्रान्त ] ओ० १६८,१६५ / अइक्कम [ अति - - - क्रम् ] - अइक्कमंति ओ० ६२ अइक्कीलावास [ अतिक्रीडावास ] जी० ३।७५६, ७५७ अगाढ [ अतिगाढ] रा० ७७४ अदूर [ अतिदूर ] ओ० ४७,५२, ५३. रा० ६=७ अइबल [ अतिबल ] ओ० ७१. रा० ६१ अमट्टिय [ अतिवृत्ति | रा० ६ अइमुत्तकलया [ अतिमुक्तकलता ] जी० ३३५८४ अमुत्तलया [ अतिमुक्तकलता ] ओ० ११. रा० १४५ अहमुत्तयलयापविभत्ति [ अतिमुक्तकलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ अरुग्गय [ अचिरोद्गत ] रा० ४५ अइरेग [ अतिरेक ] ओ० २३. जी० ३१५६०, ७२६, ७३१,७३२ safe [ अतिविकृष्ट ] रा० ६८३ अइसेस [ अतिशेष ] ओ० ५२,६६,७०. जी० ३।५६८ अईव [ अतीव ] रा० १३२. जी० ३।५८० अउणतीस [ एकोनत्रिंशत् ] जी० ३।२२६।५ अउणपण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३१२२६ । ३ अणाणउति | एकोननवति ] जी० ३१८२३ अणापण्ण [ एकोनपञ्चाशत् ] ओ० १९२ अउणासीति [ एकोनाशीति ] जी० ३१५७० अत | अयुत ] जी० ३३८४१ ५४५ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ अउल-अंजणगिरि अउल [अतुल] ओ० १६५५१६. जी० ३.११६ अओकुंभी [अयस्कुम्भी] रा० ७५४,७५६ अमोज्या [अयोध्य] ओ० ५७ अओमय [अयोमय ] रा० ७५४,७५६. जी० ३१११६ ग्रंक [अङ्क] ओ० ४८,५१. रा. १०,१२,१८, २६,३८,६५,१३०,१६०,१६५,१७३,२२२, २५६,२७६,५०४. जी० ३१७,२८२,२८५, ३००,३१२,३३३,३८१,४१७,५६६,८६४ अंक (मय) अङ्कमय] जी० ३१७४७ अंकवाई [अधात्री रा०८०४ ग्रंकमय [अङ्कमय रा० १३०,२७०. जी० ३१३००,३२२,४३५ अंकवाणिय [अङ्कवाणिज्] रा० ७३७ ग्रंकहर {अङ्कधर] जी० ३१५६६ अंकामय [अङ्कमय] रा० १३०,१४६,१६०,२५४, जी० ३१२६४,३००,४१५ प्रकिय [अङ्कित] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ ग्रंकुर अङ्कुर ओ० ५,८,१८४. रा० २७, २२८. जी. ३१२७४,२८०,३८७,६७२ ग्रंकुस [अकुश] रा० ३६,४०. जी० ३३१३, ३३८,५६७,६३४,८६२ अंकुसय [अङ्कुशक] ओ० ११७ अंकोल्ल [अङ्कोठ] जी० ११७४ | अंग अङ्ग ओ० १५,६३,१४३. रा० ५०६, ८१०. जी० ३।५६६ अंगण अङ्गन] ओ० २८ अंगपविट्ठ [अङ्गप्रविष्ट] रा० ७४२ अंगबाहिरक [अङ्गबाह्यक] रा० ७४२ अंगमंग | अङ्गाङ्ग] ओ० १४. रा० ७०,६७१, जो०३१५६८ अंगय अङ्गक | ओ० ६३ अंगय अङ्गद] ओ० ४७,७२,१०८,१३१. रा० २८५. ३१४५१ अंगारक अङ्गारक] ओ० ५० अंगुल | अगुल] ओ० १६,१७०,१६२,१६५७. रा० ५६,१८८,७६६. जी० १३१६,७४,६६,६४, १०१,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५; ३८२,६१,२६०, ४३६,५६६,५६७,७८८,८३८:१७,६६६, १०७४,१०८७,१०८६,११११: ५।२३,२६; ६४०,५१,६७,१७१ अंगुलक [ अगुलक] जी० ३।२६० अंगुलग [अगुलक] जी० ३।१०७४ मंगुलय [अङ्गुलक] जी० ३।८२ अंगुलि ] अङ्गुलि] रा० २६२. जी० ३।४५७ अंगुलिज्जग [अङ्गुलीयक] ओ० ६३ अंगुलितल [अगुलितल] ओ० २,५५. रा० ३२, २८१,२६३,२६५. जी० ३१३७२,४४७,४५८, ४६०,५५४ अंगुलिय [अङ्गुलिक] ओ० १७० अंगुली [अगुली] ओ० १६ अंगुलीय [अङ्गुलीक] ओ०६३. जी० ३।५९६, ५६७ अंगुलेज्जग अङ्गुलोयक] जी० ३१५६३ भिंच [कृष्]--अंचेइ ओ० २१. रा० ८. जी० ३४५७ अंचितरिभित [अञ्चितरिभित] जी० ३१४४७ अंचित्ता [कृष्ट्वा] रा० २९२ अंचिय [अञ्चित] रा० १०५.११६,२५१. जी० ३१४४७ अंचियरिभिय अञ्चितरिभित] रा० १०७,२८१ अंचेता कृष्ट्वा ] ओ०२१. रा०८. जी. २४५५ अंजण | अञ्जन] ओ० ४७. रा० १०,१२,१८,२५, ६५,१६१,१६५,२५८,२७९. जी० ३७,२७८, ३३४,४१६,४४५ अंजणफेसिगा [अजनकेशिका ] जी० ३१२७६ अंजणकेसिया (अञ्जनकेशिका रा० २६ अंजणग [अञ्जनक] ओ० १३. जी० ३१८८२, ८८३,६१०,६१३ से ११६ मंजणगिरि [अजनगिरि ओ०६३ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजणपुलय-अंतो अंजणपुलय अञ्जनपुलक] रा० १०,१२,१८,६५, १६५,२७६. जी० ३१७ अंजणमय [अञ्जनमय] जी० ३१८८२ अंजणा [अञ्जना] जी० ३१४,६८७ अंजलि [अञ्जलि ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६६,११७. रा०८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२,७४,११८,२७६,२७६,२८२,२६२,६५५, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६६. जी० ३।४४२,४४५,४४८,४५७, ५५५ अंजलिपग्गह अञ्जलि प्रग्रह] गो. ६६,७०, रा०७७८ अंजलिप्पग्गह अञ्जलिप्रग्रह] ओ० ४० अंजू [अजू] जी० ३।६० अंडग [अण्डक] ओ० ३३ अंख्य [अण्डज] जी० ३।१४७,१४८,१६१ अंडबद्धग [अन्दुबद्धक ओ० ६० अंत [अन्त] ओ० ७२,७४१४,१५४,१६५,१६६, १७७,१८१. रा० ३७,७७१,८१६. जी० १११३३, ३१५२,१२४,१२५,३११,६४२,६५३, ७२३,७५४,७६२,७६५ से ७७६ प्रतकम्म [अन्तकर्मन् ] रा० २८५. जी० ३।४५१ अंतगडदसाघर [अन्तकृतदशाधर ] ओ० ४५ अंतर [अन्तर] रा० १३२,२८१,७५४ से ७५७, ७६३,७६४. जी० १११४१,१४२; २१६३,६६, ५६,८८,६२,१२५,१२६,१३३,१५०,१५१; ३१६० से ६३,६५,६६,६८ से ७२,११८,११६, २८८,३०२,४४७,५७०,५६८,७१४,८०२,८१५, ८२७,८३८.२७,८५२,६५२,१०२२,११३६, ११३७, ४११६,१७, ५।१७,२३,२४,३०; ६।१०।७१३८१४; ६।४,१२,१३,१६,२५, २६,३३,३४,३६,४६ से ५४,५६,६०,६५,७१, ७२,८३,८४,८६,६२,६३,६६,१०५ से १०७, १११,११७,११६,१२६ से १२८,१३६,१३७, १३६,१४६,१५२,१५३,१६५,१६,१७७, १७६,१८०,१६३ से १६५,२०४ से २०७, २१६ से २१९,२२८ से २३०, २४१ से २४४, २४६,२४६,२६२ से २६५,२७७ से २८५ अंतरणई [अन्तर्नदी] रा० २७९ अंतरणदी [अन्तर्नदी] जी० ३१४५५,६३७ अंतरचीव [अन्तर्वीप] जी० २०६१ अंतरदीवक | अन्तीपज,°क] जी० २।८६ अंतरदीवग [अन्तर्वीपज,क) जी० २५५,१०१, ११६,१२६; २१३४,७०,७२,७७,८५,६६, १०६,११६,१२४,१३३,१३७,१३८,१४७, १४६ ; ३।१५५,२१५,२१६,२२७,८३६ अंतरदीवय [अन्तर्वीपज, क जी० १.१०१ अंतरदीविया [अन्तर्वीपिका ] जी० २१११,१३,६६, ७०,७२,१४७,१४६ अंतरा अन्तरा] ओ० ५५. रा० २०,६८३,७०६. __ जी० ३१७२६ अंतराय [अन्तराय] ओ० ४४ अंतरित [अन्तरित] जी० ३।४३६ अंतरिय [अन्तरित ] रा०७६६. जी० ३८३८१२६ अंताहार [अन्त्याहार] ओ० ३५ अंतिय [अन्तिक] ओ० २१,४७ से ५१,५४,६३, ७८,८०,८१,११७,१२०,१२११५१. रा० १२, १३,१५ से १७,४७,६२,२७७,६६७,६८१, ६८३,६८५,६६०,६६४ से ६६६,७००,७०६, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२०,७२६, ७७४,७७५,७६६,८१२. जी. ३१४४३ अंतेउर [अन्तःपुर ओ० २३,७०,१६२. रा० ६७४,६६५,६६८,७५२,७७७,७७८, ७८७ से ७६१ अंतेउरिया [अन्तःपुरि की ] ओ० ६२ अंतेपुर अन्त:पुर] जी० ३१२८५ अंतेवासि [अन्तेवासिन् ] ओ० २३ से २५,२७,८२, ११५. रा० ६७६ अंतो [अन्तर् | ओ० ७०,६२ रा० २४,३३,६६, १३०,१३७,१८७,२५४,७५४,७५५,७५७, Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अंतोमुहुत्त-अकसाइ ७७२. जी० १११२७, ३१७७,१११,११८,२१४, अंबरतल [अम्बरतल] ओ० ५२. रा०६८८ २७७,२६८,३००,३०७,३०६,३३६,३५२, अंबसालवण | आम्रशालवन | रा०२,८ से १०, ३५९,३६०,३६४,३६८,३६६,३६६,४१५, १२,१३,१५,५६ ६४८,६७३,७५५,७५७,८३८११५,८३६,८४०, अंबिल [अम्ल जी० ११५, ३१२२ ८४२,६०५ अंबिलोदय [अम्लोदक ] जी० ११६५ अंतोमुहुत अन्तर्मुहूर्त | जी० ११५२,५६,६५,७४, अंबुभक्सि अम्वुभचिन् ] ओ० ६४ ७६,८२,८७,८८,१० १,१०३,१११,११६,१२१, अंसुय [अंशुक जी० ३१५६५ १२३ से १२५,१२७,१२८,१३३,१३७ से अकंटय [अकण्टक ] ओ०६,१४. रा० ६७१. १४०,१४२; १२० से २२,२४ से ३४,४६, जी० ३।२७५ ५०,५३ से ६१,६३,६५ से ६७,७६,८२ से अकंडुयय अकण्डयक ओ० ३६ ८४,८७,८८,१०,११,१०७,१०६ से १११, अकंत अकान्त] T० ७६७. जी. १९६५३।६२ ११३,११४,११६,११६ से १३३; ३३१५६, अकंततरक [अकान्तत क जी० ३१८४ १६१,१६२,१६५,१८६ से १६१,२१४,११३२, अकक्कस अकर्कश] ओ० ४० ११३४ से ११३७, ४१३ से ११,१६,१७, १५, अकडुय [अकटुक ओ० ४० ७,८,१० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६३, अकण्ण | अकर्ण जी० ३।२१६ ८ से ११;७१ १३, १४ ; ६॥२३ से २६,३१,३३, अकम्मभूमक [अकर्मभूमक] जी० २११३३ ३४,३६,४१,४७,५२,५७ से ६०,६८ से ७३, अकम्मभूमग [अकर्मभूमक] जी० ११५१,५५, ७५,७८,८०,८३,८५,८६,९०,६२,६३,६६,६७, १०१,११६,१२६; २।३०,३२ से ३४,७७,८५, १०२,१०३,१०५,११४,११५,११७,११८, ६६,१०६,११६,१२४,१३७,१४७,१४६; १२३,१२५,१२६,१२८,१३२,१३६,१४४, ३।१५५,२१५,२२८,८३६ १४६,१५०,१५२,१५३,१६०,१६४,१६५, अकम्मभूमि [अकर्मभूमि ] जी० २११३७ १७२,१७३,१७६ से १७८,१८६ से १६१, अकम्मभूमिक [अकर्मभूमिज,°क] जी० २।५७,५८, १६३,१६४,१६८,२०२,२०४,२०७,२११, २१६ से २१८,२२२,२२३,२२५,२२८,२२६, अकम्मभूमिग [अकर्मभूमिज,°क ] जी० २१५६ से २४१,२४२,२५७ से २६०,२६२,२६४,२७७, ६१,६६,७०,७२,१३८,१४७,१४६ २७८ अकम्मभूमिय अकर्मभूमिज जी० ११०१ अंतोमुहुत्तिय [अन्तर्मुहर्तिक | ओ० १७३,१८२ अकम्मभूमिया [अकर्मभूमिजा] जी० २।११,१३, अंतोसल्लमयग [अन्तर्शल्यमृतक ] ओ०६० ७०,७२,१४७,१४६ अंदोलग [अन्दोलक] रा० १८०. जी० ३।२६२ अकयत्य अकृतार्थ रा० ७७४ अंदोलय [अन्दोलक] रा० १८१ अकयलक्खण [अकृतलक्षण] रा० ७७४ अंधकार [अन्धकार] ओ० ४६ अकरंडुय | अकगण्डक ] ओ० १६. जी० ३१५६६, अंधयार [अन्धकार | ओ० ५,८,५७. जी० ३१२७४ अंधिया [अन्धिका | जी० १८६ अकरण | अकरण ] ओ० ७८ से ८१ अंब [आम्र] जी० ११७१ अकरणिज्ज अकरणीय ] ओ० ११७. रा० ७६६ अंबड [अम्बड] ओ०६६ अकसाइ | अकपायिन् ] जी० १३१३१६२८, अंबपल्लवपविभत्ति [आम्रपल्लवप्रविभक्ति] रा०१०० १४८,१५१,१५४,१५५ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाइय-अग्गलपासाय अकाइय [अकायिक] जी० ६।१८ से २०,१८२, अक्खीण [अक्षीण] रा० ७५१ १८४ अक्खीणमहाणसिय [अक्षीण महानसिक] ओ० २४ अकामछुहा [अकामक्षुध् ] ओ० ८६ अक्खुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३,७८४ अकामणिज्जरा [अकामनिर्जरा] ओ० ७३ अक्खेवणी [आक्षेपणी] ओ० ४५ अकामतहा [अकामतृष्णा] ओ० ८६ अखंड [अखण्ड] ओ० १६. जी० ३१५६६ अकामबंभचेरवास [अकामब्रह्मचर्यवास] ओ० ८६ अखुभियजल [अक्षुभितजल] जी० ३१७८३ अकाल [अकाल] रा० १३,१५ से १७ अगड [अवट] ओ० १,६६ अकिंचण अकिञ्चन ] ओ० २७. रा० ८१३ अगडमह [अवटमह] 'रा० ६६८ अकित्तिकारग [अकीतिकारक] ओ० १५४ अगणि [अग्नि ] रा० ७५७. जी० ३१७७ अकिया [अकृत्वा] ओ० १७२ अगणिकाय [अग्नि काय] रा० ७६७. अकिरिय [अक्रिय ] ओ० ४० जी० ३८४१ अकुडिल [अकुटिल] ओ० ४६ अगत्थिगुम्म [अगस्तिगुल्म] जी० ३१५८० अकुणत्तर एकोनसप्तति] जी० ३८२७ अगरला [अगरला,अगरल्लि] ओ० ७१. रा० ६१ अकुव्वमाण [अकुर्वत्] रा० ७६२ अगरुलघुयत्त [अगरुल चुकत्व] रा० ७६३ अकुसल [अकुशल] रा० ७५८,७५६ अगलुय [अगरुक] ओ० ११०,१३३ अकुसलमण [अकुशलमनस् ] ओ० ३७ अगामिया [अग्रामिका] ओ० ११६,११७. अकुसलवय [अकुशलवचस्] ओ० ३७ रा० ७६५,७७४ अकोसायंत [अकोशायमान, विकसत्] ओ० १६ अगार अगार] ओ० १५,२३,५२,७६,७८,१२०, अक्किट्ठ [अक्लिष्ट] जी० ३१६३० १५१. रा० ७०,१३३, ६७२, ६८७, ६८९, अक्कोह [अक्रोध] ओ० १६८ ६६५, ५०६, ८१०, ८१२ अक्ख [अक्ष] ओ० १२२ अगारपम्म [अगारधर्म] ओ० ७५,७७ अक्षय [अक्षय] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२००, अगारसामाइय [अगारसामायिक ] ओ० ७७ २६२. जी० ३।५६,२७२,३५०,४५७,७६० अगिला दे० अग्लानि] ओ० ७१. रा० ७२० अक्सर [अक्षर ओ०७१,१८२. रा० ६१,२७०. अगुरु [अगुरु रा० ३० जी० ३१४३५ अगेज्म [अग्राह्य] ओ०५ जी० ३१२७४ अक्खाइगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] जी० ३।६१६ अग्ग [अग्र] ओ० २३,६६. रा० ६६,७०,१३३, अक्खाङग [अक्षवाटक] रा० ३५,६६,२१८,३००. २६१,३५१,५६४. जी० ३१३०३,४५७,५१६, जी० ३।३७७,४६५,८६१ ५४७,५८०,५६७,६७४ अक्खाडय अक्षवाटक] रा०३६,२१७,३००, आगमहिसी [अग्रमहिषी] रा० ७,४२,४७,५६,५८, ३२१,३३८. जी० ३।४६५,४८६,५०३,८६० २८०,६५६. जी. ३१३४०, ३५०, ३५६, अक्खात [आख्यात] जी० ३२३२ ४४६,४४८,५५७,५५६,५६३,६१६ से १२२, अक्खामित्ता [अक्षमयित्वा रा० ७७६ १०२३,१०२६ अक्खाय [आख्यात] रा० १२४,१२६,१६३,१६६. अग्गय [अग्नक ] जी० ३१५६१ जी० ११३७७,१६१,१७४,२५७,३३५, अग्गलपासाय [अर्गलाप्रासाद] रा० १३०. ३५४,३५५,३५७,६५८,७२८,७३३,१०३८ जी० ३३०० Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्गला-अच्छ अग्गला [अर्गला] रा० १३०. जी० ३१३०० अगसिहर [अग्रशिखर] ओ० ५,८. रा० ३२. जी० ३१२७४,३७२ अग्गसो अग्रशस्] जी० ११५८,७३,७८,८१ अग्गहत्य [अग्रहस्त] ओ० ४७. रा० १२,७१४, ७५८ से ७६१. जी० ३.११८ अग्गि अग्नि ] ओ०४८,१८४. रा० ७६१. जी० ३१६०१,८६६ अम्गेश अग्राह्य] ओ०८ अग्गोदय [अग्रोदक ] जी० ३३७३३ अचंड [अचण्ड] जी० ३१५६८ अबक्खुदंसणि [अचक्षुर्दर्शनिन् ] जी० १।२६,८६, ६०; ६१३१,१३३,१३७,१४० अधरिम [अचरम] रा० ६२. जी० ६।६३,६५,६६ अचवल [अचपल] रा० १२ अचित्त [अचित्त ] ओ० २८,४६,६६,७०. रा०७७८ अचिर [अचिर] जी० ३१५६० अचोक्स [दे० अचोक्ष ] रा० ६,१२. जी० ३१६२२ अच्च [अ]—अच्चेइ ओ० २. रा० २६१. __जी० ३१५१६-अच्चेति जी० ३१४५७ अच्चंत [अत्यन्त] ओ० १४. स० ६७१ अच्चणिज्ज [अर्चनीय] ओ० २. रा० २४०,२७६. जी० ३१४०२,४४२,१०२५ अच्चगिया [अर्चनिका] रा० ६५४,६५५. जी०३१४६३,४६६,५१७,५५४,५५५ अच्चा [अर्चा] ओ०७२ अच्चासग्ण अत्यासन्न ] ओ० ४७,५२,८३. रा०६०,६८७,६६२,७१६ अच्चि अचिस् ] ओ० ४७,७२. रा० १७,१८,२०, ३२,१२६. जी० २७८,३३८५,१७५,२८८, ३००,३७२ अच्चिकत चिःकान्त] जी० ३११७५ अच्चिकूड [अचि कूट] जी० ३३१७५ अच्चिज्झय [अचिवंज] जी० ३११७५ अच्चिप्पभ [अर्चिःप्रभ जी० ३३१७५ अच्चिमालि [अचिर्मालिन रा० १२४ अच्चिमाली | अचिर्मालिनी] जी० ३१६२०,१०२३, १०२६ अच्चियावत्त [अचिरावत जी० ३३१७५ अच्चिलेस्स [अचिर्लेश्य ] जी० ३६१७५ अच्चिवण्ण [अचिर्वर्ण] जी० ३३१७५ अच्चिसिंग अचिः शृङ्ग) जी० ३११७५ अञ्चिसिट्ठ [अचिः शिष्ट] जी० ३११७५ अच्चुत [अच्युत] जी० ३११०३८,११२२ अच्चुत्तरडिसग [अचिरुत्तरावतंसक] जी० ३३१७५ अच्चुय [अच्युत] ओ० १५८,१५६,१६२,१६०, १६२. जी० २१९६३।१०५४,१०५५,१०६२, १०६६,१०७४,१०८८,१०६१,११११,१११२, १११५,१११६ अच्चुयवइ [अच्युतपति ] ओ० ५१ अच्चुत्ता [अचित्वा] रा० २६१. जी० ३४५७ अच्चोदग [अत्युदक रा० ६,१२. जी० ३।४४७ अच्चोयग अत्युदक] रा० २८१ अच्छ अच्छ] ओ० १२,१६४. रा० २१ से २३. ३२,३४,३६,३८,१२४ से १२८,१३१,१३२, १३४,१३७,१४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से १५७,१६०,१६१,१७४,१८० से १८५,१८८,१६२,१६७,२०६,२११,२१८, २२१,२२२,२२४,२२६,२३०,२३३,२३८, २४२,२४४,२४६,२५३,२५६,२६१,२७३, २६१. जी० ३।११८,११६,२६१ से २६३, २६६,२६८,२६६,२८६,२८६ से २६७,३०१, ३०२,३०४,३०७,३०८,३१२,३१८,३१६, ३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३२,३३४, ३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५, ३६२,३६५,३६६,४००,४०४,४०६,४०८, ४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२५,४२७, ४३७,४५७,६३२,६३६,६४४,६४६,६४६, ६५५,६६१,६६८,६७१,६७५,६८६,७२४, ७२७,७३६,७५०,७५८,८३६,८४२,८५४, Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छ- अट्ठ ८५७,८६३,८८१, ८८२,८१,८६३ से ८६५, ८६७,८६६,६०१,६०४,६०६,६०७,६१०, ११,१८,५७,१०३८, १०३६,१०८१ अच्छ ] आस् ] —अच्छेज्ज ओ० १६५।१८ अच्छ] [ ऋक्ष ] जी० ३।६२० घर [आसनगृहक] रा० १०२, १८३. जी० ३।२६४ अच्छा [आच्छन्न ] जी० ३१५८१ अच्छत्तग [ अछत्रक ] ओ० १५४,१६५,१६६ रा० ८१६ अच्छरस [ अच्छरस ] रा० १६२. जी० ३।४५७ अच्छरा [ दे० ] ओ० १७० जी० ३१८६ अच्छरा [ अप्सरस् ] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३१३७२,५६७, ६२१,११२२ अfor [ अक्षि ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३११२६८, ३०३,४१५,५६६ च्छित [आच्छिद्यमान ] रा० ७७ अछि [ अच्छिद्र ] ओ० ५,८,१६,२६. जी० ३१२७४,५६६, ५६७ अपित्त [ अक्षिपत्र ] रा० २५४. जी० ३३४१५ अच्छिवेदना [ अक्षिवेदना ] जी० ३३६२८ अच्छेत्ता [ अछित्वा ] जी० ३३६६० अच्छेकर [ अछेदकर ] ओ० ४० अच्छेरग [ आश्चर्य ] जी० ३१५६७ अज [अज ] जी० ३१६१८ अजरा [ अजरा ] ओ० १६५।१८ अजहरण [ अजघन्य ] जी० ३३५६७ अजहष्णमणुक्कोस [अजघन्योत्कर्ष ] जी० ६२४८, ५० अजिण [ अजिन ] ओ० २६ अजित [ अजित ] जी० ३।४४८ अजिय [ अजित ] ओ० ६८. रा० २८२. जो० ३२४४८ अजोरग [ अजीरक ] जी० ३१६२८ अजीव [ अजीव ] ओ० ७१,१२०, १३७,१३८, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ १५१ अजीवाभिगम [ अजीवाभिगम ] जी० ११२ से ५ अजोगत [ अयोगत्व ] ओ० १८२ अजोगि [ अयोगिन् ] जी० १ १३३; ६।२१,४६, ४७,५३, ११३, ११६,१२० अज्ज [ अद्य ] रा० ६८८,६८९ अज्ज [ आर्य ] ओ० १४६ अज्जग [ आर्यक ] रा० ७५०, ७५१,७७३ अज्जय [ आर्यक ] रा० ७५०,७५१ अज्जव | आर्जव ] ओ० २५,४३. ० ६८६,८१४ अज्जा [ आर्या | रा० ८०६ अज्जिया [ आर्यिका ] ओ० १६. रा० ७५२,७५३ अज्जुण [ अर्जुन ] ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ अज्जुण सुवण्णगमय [अर्जुन सुवर्णकमय ] ओ० १९४ अज्झत्थिय [ आध्यात्मिक ] रा० ६, २७५, २७६, ६८८, ७३२,७३७, ७३८, ७४६, ७६८, ७७७, ७६१,७६३. जी० ३।४४१, ४४२ अयण [ अध्ययन ] जी० १।१ अज्झवसाण [ अध्यवसान ] ओ० ११६,१५६. जी० ३११२६/६ असोयरय [ अध्यवतरक ] ओ० १३४ अज्झोववज्ज [ अधि + उप + पद् ] -- - अज्झोववज्जिहिति ओ० १५० रा० ८११ अझोववरण [ अध्युपपन्न ] रा० ७५३ अ] [आ] ओ० ७४ अट्ट (झाण) [ आर्तध्यान ] ओ० ४३ अट्टज्झाण | आर्तध्यान ] रा० ७६५ अट्टणसाला / अनशाला ] ओ० ६३ अट्टालग [ अट्टालक ] जी० ३१५६४,६०४ अट्टल [ अट्टालक ] ओ० १. रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४ afgefer | अतितचित्त ] ओ०७४।५ अट्ठ ]अर्थ ] ओ० २०,२१,५२,५४,५७,५६,६१, ६३, ८ से ६५,१११ से ११४,११७ से १२०, १५४,१५५, १५७ से १६०,१६२,१६५ से १६७,१६६,१७०, १७२, १७७, १८३, १८४, १८६ से १६१. रा० १३, १६, २५ से ३१,४५, Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ अट्ठ-अणईई ४७,६४,१२३,१७३,१६७,१६६,२७७,६८३, अट्ठावय [अष्टापद] ओ० १४६. रा० ८०६. ६८७,६६०,६६८,७०१,७१३,७१४,७१६, जी० ३१५६७ ७१६,७२६,७५१ से ७५३,७५५,७५७,७५६, अट्ठावीस [अष्टाविंशति] ओ०१७०. रा० १५५. ७६१,७६३,७६५,७७१,७७४,७७६ से ७७८, जी. ३५ ७८६,७८६,७६२,८१६. जी० ३।५८,८४,८५, अट्ठावीसइविह [अष्टाविंशतिविध ] जी० २०१२ १६ से २०३.२३६,२४७,२५६,२६६,२७१ अदावीसतिविष [अष्टाविंशतिविध] जी० २१६ २७० से २८५,३५०,४४३,५७७,५६६,६०१, अट्ठावीसतिविह । अष्टाविंशतिविध] ओ० ५० ६०२,६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से अट्ठासीत [अष्टासीति] जी० ३।८३७ अट्रि [अस्थि ] ओ० १२०. रा०६९८,७५२, ६७४,७००,७०६,७२१,७३१,७३८,७४१, ७८६. जी० ११९५,१३५:३१६२,१०६० ७४३,७४६,७५०,७६०,७६३,७६५,७६८, अद्विद्ध [अस्थियुद्ध] रा० ८०६ ७७०,७७६,७८२,७८६,७८७,८०८,८१६, अट्टिसुह [अस्थिसुख ] ओ०६३ ८२६,८३३,८३६,८४०,८५४,८५७,८६०, अडड [अटट] जो० ३८४१ ८६३,८६६,८६६,८७२,८७५,८७६,५८०,६२३, अडतालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] जी० ३८२७ ६२५,६२७,९४१,९४८,६४६,६८९ से १६२, अडयाल [अष्टचत्वारिंशत् ] रा० १२६. ९६४ से ६९६,६६९,१०२४,१०२५,१०४२, जी० ३१३५१ १०४४,१०४६,१०४६,१०५१ से १०५३ अडयालीस [अष्टचत्वारिंशत् ] रा०२३५. जी० ३१६८ अट्ट [अष्टन् ] ओ० १२. रा० ८. जी २३६ अट्टअट्टमिया [अष्टाष्टकिका] ओ० २४ ।। अख्यालीसप्रंसिय अष्टचत्वारिंशदस्त्रिक] रा० २३६ अद्वतीस [अष्टात्रिंशत्] जी० ३१७० अडयालीसइकोडीय [अष्टचत्वारिंशत्कोटीक] रा०२३६ अट्ठपिटुणिहिता [अष्टपिष्टनिष्ठिता] जी० ३८६० अख्यालीसइविपहिय अष्टचत्वारिंशद्विग्रहिक अट्ठभाइया [अष्टभागिका] रा० ७७२ रा० २३६ अट्ठभाग [अष्टभाग] जी० २१३६,४४ अडवो [अटवी ] ओ० ११६,११७. रा० ७४४,७६५ अट्ठम {अष्टम ] ओ० १७४,१७६ अट्ठमभत्त [अष्टमभक्त] ओ० ३२. जी० ३।५६६ अडहत्तर [अष्टसप्तति ) जी० ३७७ अड्ढ [आढय] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५, अट्ठमी [अष्टमी ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७६६. जी० ३१५६४ ___ ७५२,७८६. जी० ३।७२३,७२६ अड [अर्ध] जी० ३१६६२ अट्ठया [अर्थ ] ओ० २०,१३७,१३८ अड्डबावट्टि [अर्धद्विषरिट | जी० ३१६६३ अदविह अष्टविध] जी० ११५,१०,२।१७; ३।११७, ८।१,२३, ६।१६७,२०६,२२० अड्डाइज्ज [अर्धतृतीय ] ग० १२६. जी० ३।६१, अट्ठसिर [अष्टशिरस् ] ओ० १३ २३७,२३८,२४३,३५५,६३२,६४७,६४६, ६७३,६६४,६७३,१०५३,१०५५:५।२६ अटार अष्टादशन् ] ओ०१६२ अट्ठारस [अष्टादशन् ] ओ० १४८. जी० २।४८ अणइक्कमणिज्ज [अनतिक्रमणीय ] ओ०१२०, अट्ठारसविह [अष्टादविध] रा० ८०६,८१० १६२. रा०६६८,७५२,७८९ अणइक्कमणिज्जवयण [अनतिक्रमणीयवचन] अट्ठावण्ण [अष्टपञ्चाशत् ] जी० ३।६६१ ओ०६१ १. ईति रहित। अणईइ अनीति'] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणंत-अणाढिया अणंत [अनन्त] ओ० १६.२१,५४,१५३,१६५, अणगारसामाइय [अनगारसामायिक ] ओ० ७६ १६६,१७२,१८२,१६५८. रा० ८,२६२,८१४, अणगारिया [अनगारिता] ओ०२३,५२,७६,७८, जी० १९,६७,७३,७४,१३६२६३,६५,८८, १२०,१५१. रा०६८७,६८६,६६५,८१२ १३२; ३१४५७ ; ५।६,२४,२६,४१ से ५१,५६ अणच्चासायणा [अनत्याशातना] ओ० ४० से ५८; ८१४;६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, अणच्चासायणाविणय [अनत्याशातनाविनय ] १६४,१६५,१७८,२०२,२०४,२५८ ओ० ४० अणंतक [अनन्तक] जी० ३४५१ अणट्ट [अनर्थ ] ओ० १२०,१६०. रा० ६६८, ७५२,७८६ अणंतखुत्तो [अनन्तकृत्वस्] जी० ३।१२७,६७५, ११२८ से ११३० अबढावंड [अनर्थदण्ड ओ० १३६ अणंतग [अनन्तक] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ अणण्हयकर अनास्लवकर] ओ० ४० अणंतगुण [ अनन्तगुण] ओ० १६५।१४. अणत्थर [अनर्थदण्ड] ओ० १०४,१२७ जी० ११३५,३७,४०,१४३; २१३४,१३६, अणत्यग्वेरमण [अनर्थदण्डविरमण] ओ० ७७ १३८ १४१,१४२,१४५,१४६,१४६; अणवसमाण [अनवकांक्षत् ] ओ० ११७ ३।११३८;४।१६ से २१,२५,५॥१८,२०,२५, अणवज्ज [अनवद्य ] ओ० १३७,१३८ २७,३१,३३,३६,५२,६०; ६।१२:७:२१ से अणवटुप्पारिह [अनवस्थाप्याह| ओ०३६ अगवदित [अनवस्थित जी० ३३८३८।१० २३; ८१५६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से । अणवट्ठिय अनवस्थित] जी० ३१८३८१३२,८४१ २६,३५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००,१०८, अणवणिय [अनपन्निक] ओ० ४६ ११२,१२०,१३०,१४०,१४७,१५५,१५८, अणवयम्ग [अनवदन] ओ०४६ १६६,१६६,१८१,१८४,१६६,२०८,२२०, अणवरय अनवरत ] ओ० ६८ २३१,२५१,२५३,२५५,२६६,२८७,२८६, अणसण [अनशन ओ० ३१,३२,११७,१४०,१५४, २६२,२६३ १५७,१६२,१६५,१६६. रा०८१६ अणंतपएसिय [अनन्तप्रदेशिक] जी० ११३३ अणह [अनघ] ओ०६८ अणंतर [अनन्तर] ओ०६४,१४१,१८२,१६२. अणाइ [अनादि] ओ० ४६ रा० ५० से ५५,७०,२६२,७७३,७६६. अणाइय [अनादिक जी० ६।११,१३,१६,६५, जी० ११४३,६१,११६,३११२१,१५६,६६८, ६६,८६,१६४,१७६ ८३८।२५,८८२,११२७ अणाउत्त [अनायुक्त | ओ० ४० अणंतरसिद्ध [अनन्तरसिद्ध] जी० ११७८ अणागय [अनागत ] ओ० १८३,१८४,१६५ अणंतवाग [अनन्तवर्ग | ओ० १६५।१५ अणागार [अनाकार] ओ० १६५।११. अणंतवत्तियानुपेहा [अनन्तवृत्तिता(का)नुप्रेक्षा] जी० १२३२,८७, ३.१०६,१५४,१११० ओ०४३ ६।३६,३७ अणंतसंसारिय [अनन्तसंसारिक] रा० ६२ अणाढायमाण [अनाद्रियमाण] रा०७६०,७६१ अणगार [अनगार] ओ० २७,४५,८२,१५२, अणाढित [अनादृत] जी० ३१७०० १६४,१६६. रा०६८६,७११,८१३. अणाठिय [अनादृत ] जी० ३।६८०,७००,७०१, जी० ३.१६८ से २०६ ७६५ अणगारषम्म [अनगारधर्म] ओ० ७५,७६ अगाढिया [अनादृता] जी० ३१७००,७०१ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ gat [पूर्वी | जी० ११४८ अणाfar [ अनादिक | जी० ६ २५,१३३ tata [ अनादिक] जी० ६।२३,३१,३४,६४, ७२,८१,११०, १७४,२०२, २०६ अारंभ | अनारम्भ | ओ० १६३ अणारिय [ अनार्य | ओ० ७१. जी० ३१६२८ अणालो | अनाजोचित | ओ० ६५, ११५,१५६ अणाहारग [ अनाहारक ] जी० ६२३८, ५१ से ५५ अणाहारय [ अनाहारक ] जी० ६।४२ से ४८ अर्णव | अनिन्द्र | जी० ३।११२० अणियि | अनिन्द्रिय | जी० ६ १५ से १७,१६७, १६६,२५६,२६१, २६५,२६६ affar [ अनिक्षिप्त ] ओ० ११६ अणिगण [ अनग्न | जी० ३१५६५ अणिच्च [ अनित्य ] ओ० ७४ अणिच्चाणुपेहा [ अनित्यानुप्रेक्षा | ओ० ४३ अणिज्जिण [अनिर्जीर्ण] रा० ७५१ अट्ठ [ अनिष्ट ] रा० ७६७. जी० ११६५; ३६२,६७,१२२, १२३, १२८, १२६ अणितरक [ अनिष्टतरक | जी० ३३८४,८५ अfigar ( अनिष्टतरक | जी० ३।११८, ११६ अणिट्ठर | अनिष्ठुर ] ओ० ४० अणि | अनिष्ठीवक | ओ० ३६ अणित्थंस्थ] [ अनित्यंस्थ] ओ० १९५५८, जी० ११६७,७४ अणिय [ अनीक ] रा० ७,४७,५६,५८,२८०. जी० ३।३५०, ४४६, ५५७, ५६३ अट्ट [ अनिवृत्ति ] ओ० ४३ अणियाण [ अनिदान ] ओ० २५,१६४ अणियाविs [ अनीकाधिपति] रा० ७,५६,५८, २८० जी० ३३५०, ४४६,५५७,५६३ अणियाविति [ अनीकाधिपति] ० ४३. जी० ३।३४४,५६१ अणिल [ अनिल ] ओ० २७. १० ८१३ अमिसिg [ अनिसृष्ट ] ओ० १३४ अवी-अत्तरोवात्तिय अणिहृतिदिय [ अनिभृतेन्द्रिय ] ओ० ४६ अणीय [ अनीक ] ० ५६ अणीयाfees [ अनीकाधिपति] २०५३ अणु [ अणु | जी० १/४४, ३१६६८,६६६ अणुतब्व | अनुगन्तव्य ] जी० ३।५,१२,३५५, ७७५ अणुगच्छ [ अनु + गम् | अणुगच्छइ ओ० २१, रा० --अणुगच्छति जी० ३।४५५ अच्छा [ अनुगम्य | ओ० २१. रा० ८ grafer [पत] रा० १४६ अणुचर ( अनु + चर्] अनुचरंति जी० ३१८३८।११ अणुचरंत [ अनुवरत् ] जी० ३१८३८।१० अणुचरिय [अनुचरित ] ओ० १ अणुचिण | अनुचीर्ण ] जी० १1१ / अणुजाण [ अनु + ज्ञा] - अणुजाणउ रा० ६८. - अणुनाति रा० ७१३. - अणुजाणेज्जाह रा० ७०६ अणुता [ अनुताप | जी० ३।१२८ अणुत [ अणुत्व ] जी० ३१६६६ अणुत्तर [ अनुत्तर | ओ० ७२,७६ से ८१, १५३, १६५, १६६. रा० ८१४. जी० ३११२,७७, ११७, १०३८, १०५६,१०८४, १०८६, १०९२, ११०४,११०६ से ११११,१११३,१११८, ११२०,११२३,११२५ अणुत्तरविमाण [ अनुतर विमान ] ओ० १६०. जी० ३।१०६६, १०७०, १०७२, १०७४, १०७७ से १०८२, १०८६, ११३० अणुत्तरोबवाइय [ अनुत्तरोपपातिक ] जी० १११२३; ३।१०६४,१०६७ अणुत्तरोववाइयदसाधर [ अनुत्तरोपपातिकदशाधर] ओ० ४५ अणुत्तरोववातिय | अनुत्त रोपपातिक] जी० २२६३, ६६, १४८, १४९, ३३१०७६, १०९०,१०६६, १०६८,१०६६, ११०६,११०८,१११४,१११६, १११८,११२५ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवणकर-अणुवीइ अनुद्दवणकर [अनुदवणकर) ओ० ४० अणुप्पविस [अनु-प्रविश ] ----अणुप्पविसति अणुपत्त [अनुप्राप्त ] ओ० ११६,११७. रा० ८०६, रा० ७५५. जी० ३।४४३ ८१० अणुप्पविसमाण [ अनुप्रविशत् ] जी० ३।१११ अणुएवाहिण अनुप्रदक्षिण] जी० ३।४४३ अणुप्पविसित्ता अनुप्रविश्य ] रा० ७५५. अणुपयाहिणीकरमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत्] जी० ३४४३ रा० ४७,४८,२७७,२८३,२८६,३१३,३७६, अणुप्पविसित्ताणं [अनुप्रविश्य रा० १२३ अणुप्पेह | अनु-+ प्र+ईश्] --अणुप्पेहंति अणुपरियट्टित्ता [अनुपरिवर्त्य ] ओ० १७० __ ओ० ४५ अणुपरियट्टिताणं [अनुपरिवर्त्य | जी० ३८६ अणुप्पेहा | अनुप्रेक्षा] ओ० ४२,४३ अिणुपरियड [अनु+परि+वृत् -अणुपरिय- अणुबद्ध ( अनुबद्ध] जी० ३।११६,१२६ डंति जी० ३१८४२ अणुब्भड [अनुभट] जी० ३१५९७ अणुपविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० ७५६,७५७,७६५, अणुभाव [अनुभाव ] जी० ३।१२६।६,८३८११६ ७७४ अणुमय [अनुमत] ओ० ११७. रा०७५० से अिणुपविस | अनु- प्र+विश्] --अणुपविसइ ७५३,७६६. जी० १४१३५६७ ओ०५६. रा०२७७.-अणुपविसति अणुयत्तेमाण [अनुवर्तमान] रा० १६ रा०२८३. जी० ३१४४३ अणुरत्त [अनुरक्त ] ओ० १५. रा० ६७२ अणुपविसमाण [ अनुप्रविशत् रा० ७५३,७६५ अणुराग [ अनुराग] ओ ० ६६,१२०,१६२. अणुपविसित्ता अनुप्रविश्य ] ओ० ५६. रा०६९८,७५२,७८६ रा० २७७. जी. ३१४४३ अणुलिप [अनु+लिम्प]--अणुलिपइ अणुपाल [अनु+पालय् ].--अणुपालेंति ३.२१८ रा० २६१. जी० ३.४५७.--अणुलिपति अणुपालेता [अनुपाल्य ] ओ० १६२. जी० ३१६३० रा० २८५. जी० ३१४५१ अणुपालेमाण [अनुपालयत् । ओ० १२०. अणु लिपइत्ता | अनुलिप्य] रा० २६१ रा० ६६८,७५२,७८६ अणुलिपित्तए अनुलेप्तुम् ] ओ० ११०,१३३ अणुपुल्व [अनुपूर्व ओ० ५,८,१६,११६,११७, अणुलिपित्ता [अनुलिप्त] रा० २८५. १६८. रा० ८०३. जी० ३।११८,११६,२७४, ___जी० ३।४५१ ५६६,५६७ अणुलित [अनुलिप्ज] ओ० ४७,६३ अणुप्पण्ण [अनुत्पन्न | ओ० १६६ अणुलिहंत [अनुलिहत्] ओ० ६४. रा० ५०,५२, अणुप्पत्त [अनुप्राप्त रा० ७६५,७७४ ५६,१३७,२३१,२४७. जी० ३१३०७,३६३ अणुप्पवाहिणीकरेमाण [अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् | अणुलेवण [अनुलेपन | ओ० ४७,७२ जी० ३।४५२ अणुवएस अनुपदेश] रा० ७६५ अणुप्पयाहिण [अनुप्रदक्षिण जौ० ३१४४५ अणुवत्तेमाण [ अनुवर्तमान] रा० १६ अणुप्पयाहिणीकरेमाण अनुप्रदक्षिणीकुर्वत् अणुवाय अनुवात ] रा० ३०. जी० ३।२८३ जी० ३।४४६,४५४,४५७,४७८,५२३,५२६, । अणुवाहणग अनुपानल्क] रा०८१६ ५३७,५४४,५५१,५५६ अणुविद्ध [अनुविद्ध] रा० २६२. जो० ३।४५७ अणुप्पविट्ठ [अनुप्रविष्ट ] रा० १२२,१२३ अणुवीइ [अनुवीचि] जी० १११ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवेलंघर-अति अणुवेलंधर [अनुवेलन्धर] जी० ३१७४७ से ७५० ५६३,५६६,६३७,६३८,६५२,६५८ से ६६०, अणुव्वय [अणुव्रत ] ओ० ७७ ६६५,६६६,६७६,७१०,७१३,७२१,७३६, अणुसज्ज [अनु-+ सङ्ग्] -अणुसज्जति ७४७,७६०,७६१,७६३ से ७६६,७६८,७७० ____ अगोवमा (दे) खाद्यविशेष से ७७४,८००,८१४,८४३,८४६,६१७,१०२५ अणुसज्जणा [अनुसउजना] जी ० ३१२१८,६३१ ।। अण्ण [अन्न ] ओ० १४६.१५०. रा०८१०,८११ अणुसार [अनुसार] जी० ३१७७ अण्णउत्थिय [अन्ययूथिक ] ओ० १३६. अणुहो [अनु+भू]----अणुहोति ओ० १९५२१ जी० ३।२१०,२११ अणूण [अनून] जी० ३१८३८:२७ अग्णगिलायय [अन्नग्लायक] ओ०३४ अग अनेक ] ओ० १.५ से ८,१०,१६,४६,६३, अण्णजीविय [अन्य जीविक] रा० ७३३,७३४,७३६ ७१,१६५. रा०७,१७,१८,२४,३२,५२,५६, अण्णत्त [अन्यत्व रा० ७६२,७६३ ६१,६६,१७४,२०६,२११,२३१,२४७,७५४, अण्णत्य [अन्यत्र ओ० ८६ जी० ३१७२१ ७५६,७६२,७६४. जो० ३।११८,११९,२५६, अण्णमण्ण [अन्यान्य ] ओ० ५२,११७,११८. २७४ से २७७,२८६,३७२,३७४,३६३,५८१, रा० १६,४०,१३२,१३३,६८७,७१३,७७४. ५८५ से ५६६,६३६,६४६,६७३,६७४,७५६, जी० ३२२,२७,११०,१११,२६५,३०३,६२०, ८८४,८८८ ६२५,८४५ अणेगजीव [अनेकजीव] जी० १७१ अण्णयर [अन्यतर ओ०२८,७२,८६ से १३, अणेगवासपरियाय [अनेकवर्षपर्याय ओ० २३ १०५,१०६,१२८,१२६,१८६. रा० ७५० से अणेगविष [अनेकविध] जी० २११०३ ७५३,७६६. जी० ११३३, ३१२३९ अणेगविह अनेकविध ] ओ० ३२ से ३६, अण्णया अन्यदा] बो० ११६. रा०६८० जी. १९६५.७१ से ७३,७८,८१,५४,८८, अण्णलिंगसिद्ध । अन्यलिङ्गसिद्ध] जी० श८ ८६,१०७,१०८,११२,११४,११५,२।६ अण्णविहि [अन्नविधि] ओ० १४६ अगसिद्ध [अनेकसिद्ध] जी० ११८ अण्णाण [अज्ञान] ओ० ४६. जी० १।१०१,१२८; अणोगाढ [अनवगाढ ] जी० ११४२ ३१५२ अणोग्यसिय [अनवर्षित ] जी० ३:३२२ अण्णाणवोस [अज्ञानदोष ] ओ० ४३ अणोवम अनुपम ओ० १६५१७,२२. अण्णाणि [अज्ञानिन्] जी० ११३०,८७,९६,११६, अणोवमा [दे०] खाद्यविशेष जी० ३१६०१ १३३,१३६, ३।१०४,१५२,११०७,११०८%, अणोवाहणम [अनुपानक] ओ० १५४,१६५,१६६ है।३०,३२,३५.१४३,१५६,१६४ से १६६ अण्ण [अन्य ] ओ० १७,२३,५२,७६ से ८१. रा० ४०,५६,५८,१३२,१८५,२०५ से २०८, अण्णाणिय अज्ञानिक जी० ६।३४ २४०,२७६,२८०,२८२,२८६,२६१,६५७, अण्णायचरय [अज्ञातचरक ओ० ३४ ६८७,६८८,७०४,७४८ से ७६४,७७१ से अण्णोग्ण [अन्योन्य] ओ० १६५९ ७७३,९०३,८०४. जी० ११५०,६५,७१ से अण्ह आ+स्नु-अहाइ ओ०५४ ७३,७८,८१,८४,८८,१००,१०३,१११,११२, अण्हयकर (आस्नवकर] ओ० ४० ११४ से ११६,११८,१२१,३१२६७,३०२, अण्हाणग [अस्नानक | ओ० ८६,६२. रा० ८१६ ३१३,३५०,३५१,३६८ से ३७१,३८८,३६०, अण्हाणय [ अस्नानक] ओ० १५४,१६५,१६६ ४०२,४४२,४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, अति [अयि ] रा० १२१,६६८ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिक्कम अस ५५७ अत्यत्पिय [अर्थाथिक] ओ०६८ अत्यमणत्यमणपविभत्ति [अस्तमनास्तमनविभक्ति] रा० ८६ अत्थरग आस्तरक] रा० ३७. जी० ३१३११ अस्थसत्य | अर्थशास्त्र] रा० ६७५ अत्यि अथिन् ] रा० ७७४ अस्थि [अस्ति] ओ० ७१. जी. ३१२२ अस्थिभाव [अस्तिभाव] ओ० ७१ अत्यिय [अस्थिक ] जी० ११७२ अदंतमणग [दे० अदन्तधावनक] रा० ८१६ अवंतवणय [दे० अदन्तधावनक ] ओ० १५४, अतिक्कम अति + क्रम् ]--अतिक्कमइ जी० ३.८३८।१६ अतित्यगरसिद्ध अतीर्थकरसिद्ध ] जी० १८ अतित्यसिद्ध [अतीर्थसिद्ध ] जी० ११८ अतिदूर [अतिदूर रा० ६०,६६२,७१६ अतिमट्टिय [अतिमृत्तिक] रा० १२,२८१. जी० ३.४४७ अतिमुत्तग लया] [अतिमुक्तकलता] जी० ३.२६८ अतिमुत्तमंडवग अतिमुक्तमण्डपक ] जी० ३१२९६ अतिमुत्तलयामंडवग [अतिमुक्तलतामण्डपक] रा० १८४ अतिमुत्तलयामंडवय अतिमुक्तलतामण्डक रा०१८५ अतिरस [अति रस] जी० ३१५६२ अतिरेग [अतिरेक] रा० २८५. जी० ३१४५१, ५६७,७२३,७३०,७३२ अतिवय [अति+व -अतिवयंति जी० ३।१२६ अतिहिसंविभाग [अतिथिसंविभाग] ओ० ७७ अतीत [अतीत] ओ० १६८ अतीव [अतीव ] रा० ४०,१३५,२३६. जी० ३१२६५,३०२,३०३,३०५,३१३,३६८, ५८१,५६६ अतुरिय [अत्वरित | रा० १२ अतुल अतुल ] ओ०१६२२ अत्तगवेसणया [आर्तगवेषणता| ओ० ४० अत्तय [आत्मज) रा०६७३ अत्तुक्कोसिय [आत्मोत्कर्पिक] ओ० १५६ अस्थ अर्थj ओ० ३७. रा० १५,२६२,७३७, ७७४. जी० ३।२५०,४५७ अत्थ अस्त ] जी० ३।१७६,१७८,१८०,१८२ अत्थओ [अर्थतम् ] ओ० ४६. रा० ८०६,८०७ अत्यगिउर [अर्थनिकुर जी०६:८४१ अबक्ख [अदक्ष रा० ७५८,७५६ अवत्तावाण अदत्तादान] औ० ७१,७६,७७ अदत्तावाणवेरमण [अदत्तादानविरमण ] ओ०७१ अविट्रलाभिय अदष्टलाभिक] ओ० ३४ अविण्ण [अदत्त ] ओ० १११ से ११३,११७,१३७, १३८ अदिण्णादाण [अदत्तादान ] ओ० ११७,१२१,१६१, १६३. रा० ६६३,७१७,७६६ अवुत्तरं ! दे०] जी० ३१२३६ अदुवा [दे०] जी० ३।१२७ अदूरसामंत [अदूरसामन्त) ओ० ५२,६९,७०,८२. रा० १२३,६८७,६६२,७१६,७३१,७३६, ७४८,७७१ अद्द आद्र] ओ० ४७ अद्दारिट्ट आारिष्ट ] रा० २५. जी० ३।२७८ अद्ध [अर्ध [ ओ० १७०. रा० ४०,१२८,१४६, १८८,१८६,२०५ से २०८,२२७,२३१,२४७, ६६८,६६६.६८३,७०६,७११,७७२. जी० २।३८,३६,४१,४२, ३८२,१०७,२३८, २४७,२५०,२५६,२६०,२६२,२६३,३००, ३१०,३१३,३५२ से ३५४,३५९,३६१ से ३६४,३६८ से ३७१,३७७,३८३,३८६,३६२, ३६३,४०१,४०४,४०६,४०८,४२२,४२७, ५६६,५६० से ५७०,५६४,५९६,६३४,६४२, Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ अबकविठ्ठ-अपच्छिम ६४४,६४६,६५२,६५३,६५५,६७२ से ६७४, ६७६,६८३,६८५,७०६,७०८,७११,७२७, ७३२,७३७,७५६,७५८,८००,८१४,८२५, ८५१,६३६,६४४,१०१२ से १०१४,१०२८, १०३०.१०३२,१०३३,१०७४,११२४ अद्धकविट्ट [अधकपित्थ! जी० ३.१००८ अद्धकविट्ठक [अर्धकपित्थक ) जी० ३१२५७ अद्धकाय अर्धकाय | जी० ३।३२२ अडचंद अर्धचन्द्र ] रा० १२४,१३०,१३७. जी० ३।३००,३०७,५७७ अद्धच्छि [अर्धाक्षि] रा० १३३. जी० ३।३०३ अबछट्ट [अर्धषष्ठ] जी० ३।४३ अट्टम [अर्धाष्टम] ओ० १४३. रा०८०१. जी० ३।३६३,४०१,६३२ अवट्ठारस [अर्धाष्टादशन् ] जी० ३.१०५२ अवणवम अर्धनवम] जी० ३३१०४६ अद्धतेरस [अर्धत्रयोदशन् ] ओ० ५४. रा० १२६, १७०. जी० ३११६६,३५२, ३७२,३७४,३७६, ३६५,४१२,४२५,६६८ अखनवम |अर्धनवम] जी० ३।१०४६ अद्धनाराय [अर्धनाराच ] जी० ११११६ अवपंचम [अर्धपञ्चम] जी० २०३६ ; ३।४२,४७, २२,४०२,१०४६,१०४७ अक्षमागह | अर्धमागध ] जी० ३,५६४ अद्धमागहा अर्धमागधी ओ०७१ रा०६१ अद्धमास [अर्धमास] जी० ३३११८, १२६ अद्धमासपरियाय [अर्धभासपर्याय | ओ० २३ अद्धमासिय [अर्थमासिक ] ओ० ३२ अद्धसेलसुष्ट्रिय [अर्धशैलसुस्थित ] जी ० ३१५६४ अद्धसोलस [अर्धषोडशन् | जी० ३१३६८, ३६६, १०५१ अद्धाहार [अधंहार ओ० ५२,६३,१०८,१३१ रा० ४०,१३२,२८५,६८७, से ६८६. जी० ३१२६५,३०२,४५१,५६३ अद्धा [अद्धा, अध्वन् ] ओ० ११६,११७,१८२ से १८४,१६५।१४,१५,२२. रा०७६५,७७४ अद्धाज्य [अन्वायुष्क] जी० ३२१४ अबाढय अर्धाढक ओ० ११२,१३७ अद्धाण [अन् ओ० ६६,१२२ अद्धासमय (अध्वसमय | जी० ११४ अद्भुट्ट दि० जी० ३।१०७,२३७,२४२,२४३ अद्भुव [अत्रुव | ओ० २३ अद्धकूणणउति [ अधैंकोननवति | जी० ३१७५४ अद्धकोषणउइ [ अर्धे कोननवति | जी० ३७६२ अद्धकोणणवति | अधुकोननवति । जी० ३।७६८ अधष्ण [अधन्य ] रा० ७७४ अधम्म अधर्म ] रा० ६७१ अधम्मकेउ [अधर्म केतु] रा० ६७१ अधम्मक्खाइ [अधर्माख्याति ] रा० ६७१ अपम्मत्यिकाय [अधर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. ___ जी० १४ अधम्मपलज्जण | अधर्मप्ररञ्जन] रा० ६७१ अधम्मपलोइ ! अधमप्रलोकिन् । रा०६७१ अधम्मसीलसमुयाचार अधर्मशीलसमुदाचार] रा० ६७१ अघम्माणय [अधर्मानुग] रा०६७१ अपम्भिय [आधर्मिक रा०६७१,७१८,७५०,७५१ अपम्मिट्ठ [अधमिष्ठ । ६७१ अधर अधर जी० ३।५६७ अघिय | अधिक ] जी० ३।३८७,८७८ अधे [अबस् ] जी० ३११११ अधेसत्तमा | अधःसप्तमी] जी० २११००,१०८, १२७,१३८,१४६, ३१२१,३८,४४,४६,४७, ५० से ५२,५४ से ५६,५८,५६,८३ से ५६,८८ से १०,६२,६६,१०२,१०४,१०७,१०६,११६, १२०,१२३,१२६ असत्तमो अधःसप्तमी] जी० ३१६६ अन्न अन्य रा०७ अन्नयिहि [अन्नविधि ] रा० ८०६ अपंडिय अपण्डित रा० ७३२,७३७,७६५ अपच्छिम [अपश्चिम ओ०७७ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपज्जत्त-अपुराण ५५६ अपज्जत्त अपर्याप्त | रा० ७५६. जी० ११५१,६३, अपराजित | अपराजित जी० ३१८१,२६६,७०७, ६५,१०१, ३११२६६,१३३,१३४, ४।२५; ७१३,८२४ ५५१७,२४,२६ से ३०,३३,३५,३६,३६ ४०, अपराजिय [अपराजित | ओ० १६२.जी० ३१७९६, ४२,४५,४८,५०,५२,५४ से ६० ८१३ अपजतग | अपर्याप्तक | ओ० १८२. जी० १३१४, अपराजिया (अपराजिता] जी० ३ ६१६, १०२६ ५८,६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००, अपरिगह | अपरिग्रह | अं.० १६३ १०३,१११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५; अपरितावणकर [अपरितापगकर अं० ४० ३।१३६,१३६,१४०,१४६, ४।२,५,१८,२०, अपरित्त अपरीत ] जी० ११६७,७४; ६७५,७६, २२,२३,२५: ५।३,४,७,११,१८ से २२,२५ ८ ७ से २७,३१ से ३४,३६; १०,६३,६४ अपरिपूय [अपरिपूत] ओ० १११ से ११३,१३७, अपज्जत्तय [अपर्याप्तक] जी० ११५५,१०१, ४११० १३८ अपज्जत्ति [अपर्याप्ति ] जी० श२७,८६,६६,१०१, अपरिभूय [अपरिभूत ] ओ० १४१. रा० ६७५, ११६,१२८,१३३,१३६ ७६६ अपज्जवसित अपर्यवसित ] जी ० ६।२३,२४,६६, अपरिमिय [अपरिमित | ओ० ४६,७१. रा०६१ ८१,८२,६२,१०४,१२५,१७५,१९२,२०१,२४० अपरियाइत्ता अपर्यादाय] जी० ३९९० अपरियाधिय | अपरितारित] जी० ३१६३० अपज्जवसिय अपर्यवसित] ओ० १८३,१८४,१६५. अपरिवार [अपरिवार रा० २०७,२६५,२६७, जी० ६११० से १३,१६,२५,२६,३१,३३,३४, २६६. जी० ३।४२८,४३१,४३४ ४५,५४,५८,६०,६५,६८,७१,७२,८६,६८, अपरिसेसिय [अपरिशेषित] जी० ३।७५१ ११०,११६,१३३,१३५,१४५,१६३,१६४,१७४. अपलिक्खीण [अपरिक्षीण | ओ १७१ १७६,१८०,१६५,२०२,२०५,२०६,२१५,२१६, अपवरक अपवरक जी० ३।५९४ २२७,२३०,२४६,२६१,२६५,२७६,२८५ अपसस्थकाय विणय अप्रशस्तकायविनय | ओ० ४० अपडिकूलमाण [अप्रतिकूलयत् ] ओ० ६६ अपसस्थमणविणय अप्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० अपडिक्कत | अप्रतिक्रान्त ) ओ ६५,१५५.१५६ अपसत्यवइविणय अप्रशस्तवाविनय ओ० ४० अपडिबद्ध [अप्रतिबद्ध | ओ० ७४४ अपस्समाण [अपश्यत् । ओ० ११७ अपडिविरय | अप्रतिविरत ] ओ० १६१ अपासमाण [अपश्यत् रा० ७६५ अपढम [अप्रथम ] जी० १६; ७:१,३,५,१०,१२, अपि [अपि] ओ० २३. रा० १६. जी० ११३४ १४,१६,१८,२१ से २३; ६:१ से ७,२३२, ___ अपुट्ठ ! अस्पृष्ट] जी० ११४१ २३४,२३६,२३८, २४२,२४४,२४६ २४८, अपुट्ठलाभिय अपृष्टलाभिक ] ओ० ३४ २५१ से २५३ २५५,२६७,२६६,२७१,२७३, अयुणरावत्तग [अपुनराव कि ओ० १९,२१,५४ २७६ २७८,२८०,२८२,२८५,२८७ से २६३ अपुणरायत्तय [अपुनरावर्तक स० ८ अपतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान | जी० ३।१२ अपुणरावित्ति [अनावृत्ति, अपुनरावतिन् ] रा० अपत्तट्ट [अप्राप्तार्थ] ग० ७५८,७५६ २६२. जी० ३:४५७ अपद | अपद जी० ३.१९६ अपुणरुत्त ( अपुनरुक्त ] २१० २६२, जी० ३४५७ अपराइत [अपराजित ] जी० ३।६४१ अपुण्ण [पूर्ण] रा० ७६३ अपराइय [अपराजित] जी० ३१५६६ अपुग्म [अपुण्य] रा० ७७४ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपुरोहिय-अप्पुस्सुय अपुरोपुहय [अपुरोहित] जी० ३३११२० अप्पतराय [अल्पतरक] रा० ७७२ अपुष्य अपूर्व] जी० १४५० अप्पतिट्ठाण [अप्रतिष्ठान] जी० ३:११७ अपूह' [अपोह] ओ० ११६,१५६ अप्पदुस्समाण [अप्रद्विषत् ] रा० ७६६ अपेज [अपेय ] जी० ३१७२१ अप्पनीसासतराय [अल्पनिःश्वासतरक] अप्प [अल्प ओ० २०,५३,६१ से ६३. रा० १२, रा० ७७२ ६८५,६६२,७००,७१६,७२६.७५३,७५८, अप्पनीहारतराय [अल्पनीहारतरक] रा० ७७२ ७५९,७७२,७७४,८०२. जी०१।१४३; २०६८ अप्पपरिग्गह । अल्पपरिग्रह ] ओ० ६१ से १३, से ७२,७५,९६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; १६१,१६३ ३३११८,६६५,१०३७,११३८; ४:१६,२२, अप्पबहु [अल्पबहु] जी० २११५१ ; ४१२५ २५, १६,२०,२६,२७,३२ से ३६,५२, अप्पबहुप [अल्पबहुक] जो०६६ ५६,६०; ७४२०,२२,२३ ; ६७,१४,५५, अप्पमत्त अप्रमत्त ] ओ० २७ रा० ५१३ २५० से २५३,२५५२८६ से २६३ अपमहतराय [ अल्पमहत्तरक १० ७७२ अप्पमाण [अल्पमान] ओ० ३३ अप्प [आत्मन् ] ओ०२१ से २६,४५,५२,७१,८२, अप्पमाय (अल्पमाय] ओ० ३३ ८६,६४,६८,१२०,१४०,१५४,१५५,१५७, अप्पलोह {अल्पलोभ ओ० ३३ १६०.रा०८,९,२८५,६८६,६८७,६८६,६६८, अप्पसद्द [अल्पशब्द ] ओ० ३३ १११,७१३,७१६,७५२,७५३,७८७,७८६, अप्पाण [प्रात्मन् ] जी० ३।१९८ से २०६.४५१ ५१४,८१६,८१७. जी. ३.५६६,६४४ अप्पाबहु [अल्बहु] जी० ४।२२:७।२१; ६३३७ अप्पकंप [अप्रकम्प ओ० २७. रा० ८१३ अप्पाबहुग [अल्पबहुक] जी० श२५,७४२०; अप्पकम्मतराय [अल्पकर्मतरक] रा० ७७२ का५;६२७ अप्पकिरियतराय [अल्यक्रियातरक रा० ७७२ अप्पाबहुय [अल्पबहुक } जी० २१६४,५११८,३१% अप्पकोह [अल्पक्रोघ] ओ० ३३ ६६१२,६४१७,२०,३५,६१,६६,७४,८७,६४, अप्पगति [अल्पगति] जी० ३.११२० १००,१०८,११२,१२०,१३०,१४०,१४७, अप्पज्जइतराय [अल्पधुतितरक] रा० ७७२ १५५,१५८,१६६,१६६,१८१,१८४,१६६, अप्पझंश {अल्पझञ्झ] ओ० ३३ ।। २०८,२२०,२३१ २५४,२६६. अप्परिकम्म [अप्रतिकर्मन् | ओ० ३२ अप्पारंभ [अल्पारम्भ | ओ०६१ से ३,१६१,१६३ अप्पडिबद्ध [अप्रतिबद्ध] ओ० २६ अप्पासवतराय [अल्यानवतरक] रा० ७७२ अप्पडिलेस [अप्रतिलेश्य ओ० २५ अप्पाहार [अल्पाहार] ओ० ३३ अप्पडिलोमया | अप्रतिलोमता] ओ० ४० अप्पाहारतराय [अल्पाहारतरक] रा० ७७२ अप्पडिवाइ [अप्रतिपातिन् । ओ० ४३ अप्पिच्छ [अल्वेच्छ} आ० ६१ से १३ जी० ३३५६८ अप्पडिहय [अप्रतिहत] ओ० १६,२१,२७,५४,८४, अप्पिडितराय [अल्पर्धितरक] रा० ७७२ ८५,८७,८८.० ८,२६२,७५५,७५७,८१३. अपिडिय [अल्पधिक] जी० ३।१०२१ जी० ३।४५७ अप्पिय अप्रिय ] रा० ७६७ जी० १२९५, ३१९२ अप्पणया [आत्मन् जी० १,५०,६६ अप्पियतरक [अप्रियता क] जी० ३८४ अप्पतर [अल्पतर ओ० ८६ अप्पुस्सासतराय [अल्पोच्छ्वासतरक] रा. ७७२ १. वृत्ती-बूह [ व्यूह] इति व्याख्यातमस्ति । अप्पुस्सय [अल्पौत्सुक्य ] मो० १६४ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पेस- अन्भुट्ठ अप्पेस [ अप्रेष्य ] जी० ३।११२० अप्पो [ अल्पौत्सुक्य ] ओ० २५ / अप्फाल [ आ + स्काल् ] - अल्फालेइ ओ० ५६ अफालिज्माण [ अस्फाल्यमान ] रा० ७७ अप्फालेता [ आस्फाल्य ] ओ० ५६ अप्फुडिय [ अस्फुटित ] ओ० १६ जी० ३। ५६६ / अष्फोड [ आ + स्फोटयू | - अप्फोडेंति रा० २८१ जी० ३०४४७ अप्फोतामंडवग [ दे० अप्फोयामण्डनक ] जी० ३१२६६ फोयमंड [ दे० अप्फोयामण्डपक ] जी० १८४ restrisar [ दे० अप्फोयामण्डपत्र ] रा० १८५ अफर [ अपरुष] ओ० ४० अफुरमाण गइ | अस्पृशद्गति । ओ० १५२ fa [द्धि] ओ० १६० अहिलेस [ अबहिर्लेश्य ] ओ० २५, १६४ अपसरण [ अबहुप्रसन्न ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ अबाधा [ अबाधा ] जी० २।१३६; ३ ३३ से ३६, ६० से ६३, ६५, ६६, ६८, से ७२, ३००, ५६६,५७०,६६२,६६१, ७१४,८२७, १०२२ Ram [ अबाधा ] ओ० १६२. रा० १७०. जी० २|७३, ६७, ३३६६, ३५८, ५६६, ६३६, ७१४, ८०२, ८१५, ८२७, ८५२, १००१ से १००६, १०२२ अबाहूनिया [अबाधोनिका ] जी० २१७३, १७, १३६ अब्भ [ अ ] ओ० १६. जी० ३१५६७, ६२६ अब्भंतर [ अभ्यन्तर ] ० १७० जी० ३१०३८।१२ अभ्यंतर [ अभ्यन्तरक ] जी० ३१६६, २६०.६८१ अब्भक्खाण [ अभ्याख्यान ] ओ० ७१, ११७, १६१, १६३. रा० ७६६ अब्भक्लाणविवेग [ अभ्याख्यानविवेक ] ओ० ७१ अन्भणुष्णाय [अभ्यनुज्ञात] रा० ११, ५६ अभक्त [ अभ्ररुक्ष ] जी० ३६२६ ५६१ अन्भवद्दलय [ अभ्रवालक ] रा० १२, १२३ अम्भeिa [ अभ्यधिक ] ओ० ६५,६४,६५. जी० २३३६.४१,४८,४६,५३ से ५५, ५७ से ६१,६६,८३,८४,१२६; ३३१०२७ से १०३०, ११३५ ४११६; ५।१०,२६ ६ ६; ७११२, १३, १४,१७२,१७६,१८६ से १६१,१६३, २०३,२१२,२५,२२८,२३८,२४१,२७३,२७७ अब्भासवत्तिय [ अभ्यासवर्तित ] ओ० ४० अभंग [ अभ्यङ्ग ] ओ० ६३ अभिगण [ अभ्यङ्गन ] ओ० ६३ अभिगिय [ अभ्यञ्जित ] ओ० ६३ अभिंतर [ आभ्यन्तर ] ओ० ६,३०,५५,६० से ६२. रा० ४३. जी० ३।२३६,२५५, २७५,४४७, ६४३, ६५८,७६६,७६७,७७५,८३१ से ८३४, १०५५ अभिंतरय [आभ्यन्तरक ] ओ० ३०,३८,४४. जी० ३।६५८ अतिरिय [ आभ्यन्तरिक ] २० ६६०,६८३. जी० ३१२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, २४७, २४६, २५० २५४ से २५६, २५८, ३४१, ५६०,७३३,१०४० से १०४२, १०४४,१०४६, १०४७, १०४६, १०५३,१०५५ अभिंतरिल्ल [ आभ्यन्तरिक ] जी० ३|१००७ / अवभुक्ख [ अभि + उक्ष् ] - अब्भुक्ख इ जी० ३१४७० - अब्भुक्खति जी० ३।४५८अन्भुवखेइ रा० २९३ - - अभुक्खेति जी० ३१४६० अभुति [अभ्युक्ष्य ] जो० ३२४५८ अब्भुवखेत्ता [ अभ्युक्ष्य ] रा० २६३. जी० ३।४६० अब्भुग्गत [ अभ्युद्गत ] जी० ३१३०२,३५६,३६८, ३७०,६३४,१००८ अन्य [ अभ्युद्गत ] ओ० ६७. २० ३२,१३२, १३७,१५६,२०४ से २०६,२०५. जी० ३।३०७ ३५५, ३६४,३६६, ३७१, ३७२, ५६७,६७३ / अब्भु [ अभि + उत् + ष्ठा ] -- अब्भुट्ठेइ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ भुट्टा अभिवंदा ओ० २१. ०८. जी० ३।४४३ -- अब्भुट्ठेति अभिणिसिह [ अभिनिसृष्ट ] रा० १३२ जी० रा० २७७ जी० ३।४५४ अब्भुट्ठेमि रा० ६६५ अभुट्ठाण [ अभ्युत्थान] ओ० ४० अभुट्टिय [ अभ्युत्थित ] ओ० २६ अब्भुट्ठेता [ अभ्युत्थाय ] ओ० २१ रा० ८. जी० ३।४४३ । अभुण्णय [ अभ्युन्नत] रा० १३३. जी० ३/३०३, ૬ ૨૭ अम्भु [ अद्भुत ] रा० ७ अभयवय | अभयदय ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २६२. जी० ३।४५७ अभवसिद्धिय [ अभवसिद्धिक ] रा० ६२. जी० ६ १०६ से ११२ अभाग [ अभाषक ] जी० ६ ५६, ६०, ६१ अभास [ अभावक | जी० ६५८ अभि [ अभिजित् ] जी० ३१८३८/३२,१००७ अभिक्खणं [ अभीक्ष्णम् ] रा० १७३. जी० ३ २८५ afreeera [ अभिक्षाला भिक] ओ० ३४ अभिगच्छ [ अभि + गम् ] -- अभिगच्छइ ओ० ६६. ० ७१६-- अभिगच्छति ओ० ७०. - - अभिगच्छामो रा० ७३५ अभिछणा [ अभिगमन ] ओ०४० अभिगम [ अभिगम ] ओ० ६६, ७० ८० ७७८ अभिगमण [ अभिगमन ] ओ० ५२. रा० ६, १२, ४७,६८७. जी० ३।८४१ अभिगमणिज्ज | अभिगमनीय] रा० ७०३, ७३५ अभि [ अभिगत ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ अभिगिन [ अभिगृह्य ] जी० ३।५६२ अभिघट्टिज्जमाण | अभिघट्यमान | रा० १७३. जी० ३।२८५ अभिगवंत [ अभिनन्दत् ] ओ० ६८ अभिणं दिज्ज माण | अभिनन्द्यमान | ओ० ६६ अभिनय [ अभिनय ] रा० ११७, २८१. जी० ३१४४७ अभिविट्टित्ताणं [ अभिनिर्ययं ] रा० ७७० ३।३०२ अभिस्सिव [ अभि + निर् + स्रु ] -- अभिणिस्स वंति, रा० १७३. जी० ३।२८३ / अभिणी | अभि + नी ] - अभिणयति रा० २८१जी० ३।४४७ - अभिणिज्जइ रा० ७८३अभिर्णेति रा० ११७ अभित | अभिष्टवत् ] ओ० ६८ अभिवमाण [ अभिष्ट्यमान | ओ० ६६ अभि | अभिद्रुत ] जी० ३।१२६.७ अभिनव | अभिनिर्+ स्रु ] - अभिनिस्सदति रा० ३० अभि | अभिमुख ] ओ० ४७, ५२,६६,७०,८३. २० ६०, ६८७,६६२,७१४,७१६ अभिराम [ अभिराम ] ओ० २,५५,५७,६३. रा० ६,१२,१७,१८,२०,३२,३७,५२, ५६, १२६, १३२,२३१,२३६,२४७, २८६. जी० ३।२८८, ३००,३०२, ३११,३७२, ३६३, ३६८, ४४७, ५८६ अभिव | अभिरूप ] ओ० १,७,८,१० से १३,१५, ७२,१६४. १० १,१६ से २३,३२,३४, ३६ से ३८, १२४,१३०,१३३, १३६, १३७, १४५, १५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८,६७०, ६७२, ६७६,७००,७०२. जी० ३।२३२,२६१,२६६,२६६, २७६,२५६ से २८८,२१०, ३३०, ३०३, ३०६, ३०७, ३११, ३८७, ३६३, ४०७,४१०,५८१, ५८४, ५८५, ५६६,५६७,६३९, ६७२,८५७,८६३, ११२१, ११२२ अभिलस [ अभि + लब् ] – अभिलसइ रा० ७१३ ...अभिलसंति ओ० २०. रा० ७१३ अभिलाव [ अभिलाप ] जी० ३।४, ५,१२,४१,४३, ४४,७७,८८, १२५,२२६,४५१ अभिवंद | अभिवन्दितुम् ] ओ० ५५. रा० १३ अभिवंदा [ अभिवन्दितुम् ] ओ० ६२. Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसमण्णागय-अयभारग ५६३ अभिसमण्णागय [अभिसमन्वागत] रा०६३,६५, अमम्मण [अमन्मन] ओ०७१. रा०६१ ६६७,७६७ अमय अमृत] रा० ३८,१६०,२२२,२५६. जी० अभिसमागच्छ [अभि-+सं+आ+ गम् । ३३३३३,३८१,३८७,८६४ ...अभिसमागच्छइ रा०७१६. अमयरस | अमतरस ] रा० २२८. जी० ३.२९६ -----अभिसमागच्छति रा०७५३ अमर [अमर ओ० ४६,१६॥२०. रा० ५१ अभिसिंच [अभि-+सिच |--अभिसिंचति रा० अमरवह [अमर पति ] ओ० ६४ २८०. जी० ३।४४६ अमलगंधिय [अमलगन्धिक] ओ० १२. ० २२ अभिसिंचित्ता [अभिषिच्य] रा० २८२. जी० अमलगंधीय [अमलगन्धिक] जी० ३।२६० ३४४८ अमला अमला] जी० ३१६२१ अभिसित्त [भिषिक्त रा० २८३. जी० ३।४४६ अमाण [अमान | ओ० १६८ अभिसेक (अभिषेक जी० ३ ४३६ अमाय [अमाय] ओ० १६८ अभिसेगसभा [अभिषेकसभा] रा० २६५,२६७ ।। अमिय [अमृत ! ओ० १६५।१८ अभिसेय [अभिषेक ] ओ० ६८. स० २६६,४७५. अमेहावि अमेधाविन् । रा० ७५८,७५६ जी० ३१४४५,५३४,५६७ अमोह [ अमोघ ] जी० ३१६२६,८४१ अभिसेयसभा अभिषेकममा रा० २७७,२७६, अमोहा [अमोघा | जी० ३१६६६,६१० २५३,४७४,४७६,४७७,४६६,५१४,५१५. अम्मड | अम्बड ओ० ११५,११७ से १४१ जी० ३.४२६,४३०,४३१,४३४,४४३,४४५, अम्मापिइ [अम्बापितृ औ० १४२,१४६ ४४६,५५३,५३५ से ५३९ अम्मापिउ अम्बापितृ] ओ० १४७,१४६. रा० अभिहड [अभिहृत ओ० १३४ ८००,८०७ अभिहणमाण [अभिघ्नत् ] जी० ३३११० अम्मापिउसुस्सूसग | अम्बापितृशुश्रूषक ] ओ०६१ अभिहय [अभिहत ] जी० ३।११८,११६ अम्मापियर [ अम्बापितृ] ओ० १४४,१४५. रा० अभूओवघाइय [अभूतोपघातिक] ओ० ४० ८०२,८०३,८०५.८०८,८१० अमेत्ता [अभित्वा] जी० ३।६६० अभेयकर [अभेदकर] ओ० ४० अम्ह [अस्मत् रा० ८. जी. ३.४४१ अय [अयस् ] रा०७५४,७५६,७५७,७७४ अमच्च [अमात्य] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ७६२,७६४ अयकोट्ट । अयःकोष्ठ ] जी० ३७८ अमछरियया [अमत्रारिकता] ओ० ७३ ।। अयगर [अजगर जी० १.१०५,१०६, ३१६२५ अमणाम [दे० अमन 'आप'] रा० ७६७. जी० अयगरी [अजगरी] जी० २१८ ११६५; ३ ६२,१२२,१२३, १२८ अयण [अयन ओ० २८. जी० ३१८४१ अमणामतरक दे० अमन 'आप' तरक] जी० अयपाय [अयस्पात्र ओ० १०५,१२८ ३३८४,८५ अपिंड [अयस्पिण्ड] जी० ३१११८,११६ अमणुण्ण [अमनोज्ञ ] ओ० ४३. रा० ७६७. अयपुग्गल [ अयस्पुद्गल] रा० ७७४ जी० ११६५; ३.३६९२ अयबंधण [अयोबन्धन] ओ० १०६,१२६ अमणुण्णतरक [अमनोज्ञतरक] जी० ३१८४ अयभंड [अयोभाण्ड ] रा० ७७४ अमत [अमृत] जी० ३.३१२,४१७ अयभार [अयोभार] रा० ७७४ अमम [अमम } ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३।६३१ अयभारम [अयोभारक] रा ० ७६०,७६१,७७४ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयभारय-अलेस अयभारय [अयोभारक] रा० ७७४ अरुणवरभद्द [अरुणवरभद्र ] जी० ३।६२६ अयभारय । अयोहारक, अयोभारक] रा० ७७४,७७५ अरुणवरमहाभद्द [अरुणवरमहाभद्र ] जी० ३.९२६ अयल [अचल] ओ०१६,२१,५४. रा० ८,२६२. अरुणवरोद [अरुणवरोद | जी० ३१६३०,६३१ जी०३।४५७ अरुणवरोभास [अरुणवरावभास] जी० ३१६३१, अयसकारग [अयश:कारक] ओ० १५५ अयसि [अतती] ओ० १३,४७. रा० २६. जी० अरुणवरोभासभद्द | अरुणवरावभासभद्र ] जी० ३१६३१ ३२२७६ अरुणवरोभासमहाभद्द [अरुणवरावभासमहाभद्र] अयहारय [अयोहारक, अयोभारक] रा० ७७४,७७५ जी० ३१६३१ अया [अजा) जी० ३।६१६ अरुणवरोभासमहावर [अरुणवरावभासमहावर ] अयागर [अयआकर] रा० ७७४, जी० ३.११८ अयोगि [ अयोगिन) जी० ६.११६ __ जी० ३१६३२ अयोमय [अयोमय ] जी० ३।११६ अरुणवरोभासवर [अरुणवरावभासवर] जी०३ ६३२ अरुणोद [अरुणोद जी० ३:६२८,६२६ अयोमुह [अजमुख ] जी० ३१२१६ अरुय | अरुज ओ० १६.२१,५४. रा०८,२६२. अरह [अरति] ओ० ४६. जी० ३:१२८११० . __ जी० ३।४५७ अरइरइ [अरतिरति ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ रा० ७६६ अरूवि अरूपिन् जी० ११३,४ अरकमंडस [अरकमण्डल] रा० १७३,६८१. जी. अलं [अलम्] मो० १४८ रा. ८०९ ३१२८५ अलंकार [अलङ्कार] ओ० ६७,७०,६२,१४७, १६१,१६३. रा० १३,५३,१७३,२८६,६५७, अरणि अरणि] रा० ७६५ अरति [अरति ] जी० ३११२८ ७१४,७५१,७६४,८०२,८०५,८०८. जी. ३.२८५,४४६,४५५ अरतिरतिविवेग [अरतिरतिविवेक ओ० ७१ अलंकारिय [अलङ्कारिक] रा० २६८,२८४,५३५. अरमणिज्ज [अरमणीय] रा० ७८१ से ७८७ जी० ३।४३२,५४१ अरसाहार [अरसाहार ] ओ० ३५ अलंकारियसभा अलङ्कारिकसभा] रा०२६७, अरह [अर्ह] रा०७७१,८१५,८१७ २६६,२८३,२८६.५३४,५३६, ५३७,५५६, अरहंत [अर्हत् ] ओ० २१,४०,५२,५४,७१,११७, ५७४,५७५. जी० ३.४३१,४३३,४३४,४४६ १३६. रा०८,११,५६,२६२,७१४,७४६, ४५२,५४०,५४२ से ५४६ ७६६. जी० ३६४५७,७६५,८४१ अलंकित [अलंकृत] जी० ४१४५२ अरि [अरि] जी० ३१६१२,६३१ अलंकिय अलङ्कत ] ओ० २०,५३,६३ रा० अरिस [अर्शस्] जी० ३।६२८ १३०,२८५,२८६,६८५.६८६,६६२,७००, अरिह [अहं] ओ०७१,१४७. रा० ६१, ७१४, ७१६,७२६,८०२. जी० ३३००,४५१ ७७६, ८०८ अलभमाण [अलभमान ] ओ० ११७ अवण [अरुण] जी० ३।६२७,६२८,६५० अलाउपाय [अलाबुपात्र] ओ० १०५,१२८ अरुणप्पम [अरुणप्रभ] जी० ३,७४८,७४६,७५३ अलाय | अलात] जी० ११७८%; ३१८५ अरुणमहावर [अरुणमहावर] जी० ३।६३० अलियवयण [अलीकवचन] ओ०७३ अरुणवर [अरुणवर] जी० ३।७७५,६२६,६३० अलेस [अले श्य] जी० १२१३३; ६।२६,१६५ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अलेस्स-अक्सेस अलेस्स [अलेश्य] जी० ६।१८५,१६२,१९६ अलोग [अलोक ] ओ० १६०२ अलोय [अलोक] ओ०७१ अलोह [अलोभ] ओ० १६८ अल्लई [आद्रको] जी० ३१२८१ अल्लकी [आद्रकी] रा० २८ अल्लोण [आलीन ] ओ० १६,६१ रा० ८०४. जी० ३१५६६ से ५१८,७६५,८४१ ।। अल्लीणया [आलीनता] ओ०११६ अवउडग दे० अवकोटक] रा० ७५४,७५६,५६४ अवंक [अवक्र] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ अवंग [अपाङ्ग] रा० १३३. जी० ३।३०३ अवंगुयदुवार [दे० अपावृतद्वार] ओ० १६२. रा०६९८,७५२,७८६ अवक्कम [अप+क्रम् ] -अवक्कमति रा०१०. जी० ३१८७-अवक्कमति स०१८ अवक्कमित्ता अपक्रम्य ] रा०.१० जी० ३।४४५ अवक्खेवण [अवक्षेपण] ओ० १८० अवगय [अपगत] ओ० ६३ अवगाल [अवगाढ] रा० ७७४ अबक्षाणायरिय [अपध्यानाचरित] ओ० १३६ ।। अवट्टित [अवस्थित ] जी ० ३१५६.५६६ । अवद्विय [अवस्थित] ओ० १६. रा० २०० जी० ३१२७३, ३५०, ७६०, ८३८:११ अब [अपार्घ] जी० २१६५, ८८,१३२; ३१८३६, ६।२३,२६,३३,६६,७१,७३,७८, १४६, १६४, १६५, १७८, २०२, २०४ अवड्डोमोदरिय [अपार्धायमोदरिक, उपार्धा०] ओ० ३३ अवद्ध [अवनद्ध] रा० ७६०, ७६१ अवणी [अप-+नी] --- अवणेमो रा०७२६ अवणीत [अपनीत जी० ३८७८ अवणीयउवणीयचरय अपनीत उपनीतचरक] ओ० ३४ अवणीयचरय [अपनीतचरक] ओ० ३४ अवणेमाण [अपनयत् ] रा० ७३२ अवण्णकारग [अवर्णकारक] ओ० १५४ अवतासिज्जमाण [अपत्रस्यमान] रा०८०४ ‘अवकाल [अव-दलय --अवदालेइ ओ० १७० अवदालिय [अवदालित] ओ०१६ अवदालेत्ता [अवदल्य ] ओ० १७० अवधिणाणि ]अवधिज्ञानिन् ] जी० ३।१०४,११०७ अवमाण [अपमान ] रा० ८१६ अवमाणण [अपमानन] ओ०४६ अवयंसग [अवतरक } रा० १७३, ६८१ अवर अपर] रा० ४०, १३२, १६३, १६६ जी० ३१२६५, २८५, ३५८, ५६५ विरजा [अप्+ग -अवरज्झइ रा० ७६७ अवरह [अपराल रा०६८५ अवरत्त अपरात्र] रा० १७३ अवरविदेह [अपर विदेह जी० २१२६,५६,७०, ७२,८५,६६,११५,१२३,१३७, १३८, १४७, १४६ ; ३।४४५, ७६५ अवरविदेहक [अपर विदेहक | जी० २।१३२ अवरविदेहिया [अपर विदेहिका] जी० २१६५ अवराहि [अपराधिन् ] रा० ७५१ अवरुत्तर [अपरोत्तर] रा०४१,६५८. जी० ३।३३६,५५८,६३५,६५७,६८० अवलंबण [अवलम्बन] रा० १६, १७५. जी० ३२८७, ८६० अवलंबणबाहा अवलम्बनबाहु] रा० १६,१७५. जी० ३१२८७ अवलद्ध [अपलब्ध] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ अवलि अवलि] रा० २६ जी० ३१२८२ अवलिया [अवलिका रा० २५ जी० ३।२७८ अवव [अवव ] जी० ३१८४१ अवसाण [अवसान ] ओ० ६३ अवसेस [ अवशेष ओ० ७२, ७६, १६७ रा० ४८, ५७, १६४ जी० ११५६, ६७, ३.२५०, ३४५, ३५६, ६३०, ६६४, ६६५, १०२६ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ अववहारि [ अव्यवहारिन् ] रा० ७६६ अवहट्टु [अपहृत्य ] ओ०६६ अवमाणय [अवमानक ] ओ० १११ से ११३, १३७,१३८ अवहार [ अपहार ] जी० ३।१२७ अवहित [ अपहृत ] जी० ३६० अवहिय [ अपहृत ] जी० ३।१०८५ २०८६ / अवहीर [ अप + हृ] - अवहीरंति जी० ३६० अवहीरमाण [ अपह्रियमाण ] जी० ३६०, १०८६ अवाईण [ अवातीन, अवाचीन ] ओ०५, ८ जी० ३।२७४ अवाड [ अप्रावृतक ] ओ. ३६ अवाय [ अवाय ] रा० ७४० वायविजय [ अपायविचय] ओ० ४३ अवाणुप्पेहा [अपायानुप्रेक्षा ] ओ० ४३ अवि [अपि ] रा० १२ जी० १११६ श्रविश्रोसरणया [अव्युत्सर्जन ] ओ० ६६, ७० रा० ७७८ rfare [ अविग्रह ] ओ० १८२ afara [ अविघ्न ] ओ० ह अवितह [ अवितथ ] मो० २६, ६६,७२. रा० ६६६ अविद्धत्य [ अविध्वस्त ] जी० ३।११८ अविपयोग [ अविप्रयोग ] ओ० ४३ अवियारि [ अविचारिन् ] ओ० ४३ अविरत [ अविरक्त ] ओ० १५ रा ६७२ अविरय [ अविरत ] ओ० ८४ ८५ ८७ ८८ अविरल [ अविरल ] ओ० ४, ८, १६ जी० ३१२७४, ५६६, ५६७ अविरहिय [ अविरहित ] जी० ३८३८ । १७ अविराय [ दे० अप्रस्फुटित ] जी० ३।११८ अविरुद्ध [ अविरुद्ध ] ओ० ६३ अविलोण [ अविलीन ] जी० ३।११८ अविसंधि [ अविशन्धि ] ओ० ७२ अविसय [ अविषय ] जी० १/४७ अववहारि-असंखेज्ज afaaita [ अविशुद्धलेश्य ] जी० ३।१६९ से २०४, २०६, २०६ अविस्साम [ अविश्राम ] ओ० ५० अवेय [ अवेदित ] रा० ७५१ raar [ अवेदक ] जी० ६ २२, २६, २७,१२६, १३० अवेar [ अवेदक ] जी० ६१२४, २८ अवेय [ अवेद ] जी० १|१३३ अवेग [ अवेदक ] जी० ६ १२१ अवेयय ] अवेदक ] | १२५ अष्वत्तिय [अव्यक्तिक] ओ० १६० अव्यय [ अव्यय ] रा० २०० जी० ३३५६,२७२, ३५०, ७६० व्यवहारि [अव्यवहारिन् ] रा ७६६ वह [ अव्यथ] ओ० ४३ अवहित [अव्यथित ] जी० ३।६३० अब्याबाह [अव्याबाध] ओ० १६, २१, ५४, १६५।१३ ० ८,२९२ जी० ३।४५७ अवाहित [ अव्याहृत ] जी० ३१२३६ अस [ अ ] - अस्थि, ओ० २८ २० २०० जी० ११८२ - अथ ओ० २१ रा० ८ जी ३२४५७ - असि रा० ७४७ आसि रा० २०० जी० ३।२६ - आसी ओ० १६५/३ रा० ६६७ - सिप रा० १६८- सिया ओ० ३३ रा०१२ असई [ असकृत् ] जी० ३२६७५ असंकलिg [ अक्लिष्ट ] ओ० ४७ असं किलि परिणाम (असंक्लिष्टपरिणाम ] ओ० ६० असंख [असंख्य ] जी० १११२८ असंखिज्ज [असंख्येय ] रा० ५६ जी० ११८०, १२१ ३१८६ असंखेज्ज [असंख्येय ] ओ० १७३, १५२. रा० १० १२,१२४,१२६,२७६,७७२. जी० १ ३३,५१ ५५,५६,५८,६१,६२,६४,६५,७३, ७७ से ७६ ८१,८२,८७,८८,१०,१६,१०१,१०३, ११२. Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असंखेज्जइभाग-असरिस ११६,११६,१२३,१२८,१३३,१३६,१३६, जी०६१४१, १४३,१४६,१४७ १४०; २।१२०,१३१, ३।१६,२१,२६,२७, असंत असत् ] ओ० १६५।१६ ५१,६४,६५,८१,८२,१०,११०,१५५,१६५, असंविद्ध [असन्दिग्ध] ओ० ६६. रा० ६६६ २५७,२५६,३५१,४४५,६३८,७०१,७१०,७३६, असंनिहि । असन्निधि] जी० ३२५६८ ७४७,७६१,७६४,७६८,७६६,७७६ से ७७६, असंपत्त | असम्प्राप्त ] ओ० ४७,८४,८५,८७. रा० ८१४,८३८१,६४०,६४४,६५२,६५३,१००६, ४०,५६, १३२. जी १५८, ७३,७८,८१, १०७३.१०७४,१०८३,१०८५,१०८६,११११, १११५, १८, ६,२२,२३,२६,४१ से ५० असंबद्ध असम्बद्ध जी० ३३११०,१११५ ५६,५८, ८१४; ६४०, ५१,६७,१७१,२५७ ।। असंभंत | असम्भ्रान्त ] रा०१२ असंखेजहभाग [असंख्येयतमभाग | रा० ७६६. असंवुड [असंवृत] ओ० ८४,८५,८७ जी० ११६,७४,८६,६४,१०१,१०३,१११, असंसहचरय [असंसृष्टचरक] ओ०२४ ।। ११२,११६,१११,१२१,१२३,१२५,१३०, असंसारसमावण्ण [असंसारसमापन्न] जी ११६ से ६ १३५,१३६; २।२५, ३० से ३४,५३, ५७ से असच्चामोसमणजोग अमत्यमृषामनोयोग] ६१,७३, ६/६७, १८६ ओ० १७८ असंखेज्जगुण [असंख्येयगुण ओ० १८२,१६५।१०. असच्चामोसवइजोग [असत्यमृषावाग्योग] ओ० जी० २१६६, ७१,७२,६५,६६,१३४ से १३६, १७९ १३८,१४३ से १४६; ३।१६५, ११३८ असण [अशन] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. ४॥२३,२५, ५११८ से २०, २५,२७,३१ से रा०६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६,७८७ ३६,५२,५६,६०, ६११२, ७.२०, २२,२३; से ७८६,७६४ से ७६६,८०२,८०८ ८।५, ६, ७,५५,१००,१२०,१४०,१४७, असणग [अशनक] ओ० १३ १५८,१६६,१८१,१८४,२०८,२२०,२३१, असणि [अशनि] जी० २१७८ २५० से २५२, २५५,२६६.२८६ से २८८, असण्णि [असं शिन् ] जी० १२२४, ८६,६६,१०१, २६०,२६१,२६३ ११६,१२८,१३६; ३८८; १०१,१०३, असंखेज्जजीविय [असंख्येयजीविक] जी० ११७१,७२ . १०६,१०८ अखेजतिभाग [असंख्येयतमभाग) जी० २११३९; असति [अपकृत् ] जी० ३११२७. ३१६१, १५६,२१८,४३६,६२६,९६६,१०८६, असब्भावपट्टवणा [असद्भावप्रस्थापना] १०८७,१०८६,११११, ५६, २३,२४,२६ जी० ३.१०६,११८,११६ ९४०, ५१,१७१,१८७,१८८ असब्भावभावणा [असद्भावोद्भावना] असंखेज्जभाग [असंख्येयभाग] ओ० १६२. ओ०१५५,१६० जी० ३६१ असमोहत [असमवहत ] जी० १।१२८; ३३१५८, असंग [असङ्ग] ओ० २० १६८, १६६,२०४,२०५ असंघयण [असंहनन | जी० ३११२६४ असमोहय (असमवहत] जी० ११५३,६०.८७ असंघयाणि [असंहनिन् ] जी ० ११६५, १३५; असम्मोह [असम्मोह ] ओ०४३ ३३६२,१०६० असरणाणुप्पेहा (अशरणानुप्रेक्षा] ओ० ४३ असंजय [असंयत] ओ० ८४,८५,८७,८८. असरिस [असदृश ] जी० ३६११०,१११५ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ असरीर-अहापडिरूव असरीर [अशरीर] ओ० १८३,१८४,१६५।११. असुरहार [असुरद्वार] जी० ३८८५ रा० ७७१ असुरिंद असुरेन्द्र ] ओ० ४८. जी० ३१२३५ से असरीरि [अशरीरिन् ] जी० ६।६२,१७०,१७५, २३६,२४३ १८०,१८१ असुह [अशुभ] जी०३६२,१२६१० असहिज्ज [असाहाय्य] रा० ६६८,७५२,७८६ असोग [अशोक ओ०८,९,१२,१३. रा० ३,४, असहेज्ज [असाहाय्य ] ओ० १२०,१६२ १३३. जी० १७१; ३१३०३,६२७ असावज्ज [असावद्य] ओ० ४० असोगलया [अशोकलता] ओ० ११. रा० १४५.. असासत [अशाश्वत ] जी० ३१५७,५६ जी० ३.२६८,५८४ असासय [अशाश्वत] रा० १६८,१६६. जी० ३१८७, असोगलयापविभत्ति [अशकलताप्रविभक्ति] २७०,२७१,७२४,७२७,१०८१ रा० १०१ असि [असि] मो० ६४. जी० ३६११०,६०७,६३१ असोगवडेंसय [अशोकावतंसक] रा० १२५ असिइ [अशीति] जी० ३१५ असोगवण [अशोकवन] रा० १७०. जी० ३।३५८ असिद्ध [असिद्ध] जो० ६६,११,१३,१४,१६,२६, असोय [अशोक रा० १८६. जी० ३३५६,५६० असोयपल्लवपविभत्ति [अशोकपल्लवप्रविभक्ति] असिपत्त [असिपत्र] जी० ३१८५ रा० १०० असिय [असित] रा० १३३. जी० ३३०३ अस्स [अश्व ] जी० ३।७६३ असिलक्खण [असि लक्षण] ओ० १४६. रा ८०६ । अस्सकण्णि [अश्वकर्णी] जी० ११७३ असिलिट्ठ [अश्लिष्ट] रा० ७७४ अस्साद आस्वाद] जी० ३१९५८ असीत [अशीति] जी० ३१३५५ अस्साय [असात ] जी० ३३१२६५,१० असोति [अशीति] जी० ३३१७ अस्सुय [अश्रुत] ओ० ५२ असीय [अशीति ] रा० १६३. जी० ३।३३५ अह [अथ ] ओ० २२ असुइ [अशुचि] ओ० ६८,१४४, रा० ६,१२,७५३, अहसायचरितविणय | यथाख्यातचरित्रविनय] ८०२ जी० ३८४,६२२ ओ० ४० असुभ [अशुभ] रा० ७५३. जी० ११९५; ३७७, अहत [अहत] जी० ३।४५१ ११६,१२६४ अहमिद [अहमिन्द्र] जी० ३११०५६,११२० असुभाणुप्पेहा [अशुभानुप्रेक्षा] ओ ४३ अहय [अहत ] ओ०६३. रा०७,२६१. जी० ३१४५७ असुय [अश्रुत] रा० १६ अहर [अधर ] ओ० १६,४७. जी० ३३५६६ असुर [असुर] मो० ६८,१२०,१६२. रा० २८२, अहव [अथवा] जी० ३।५९४ ६६८,७५२,७७१,७८६,८१५. जी० ३।२३२, अहवा [अथवा जी० १११३३ ४४८,८८५ अहवणवेव [अथर्वणवेद] ओ० ६७ असुरकुमार [असुरकुमार] ओ० ४७. जी० २।१६, अहाणुपुथ्वी [ यथानुगूर्वी | ओ ६४. रा० ४६ से ३७, ३१२३३,२३४,२४० ५४,७७४ असुरकुमारराय [असुरकुमारराज] जी० ३।२३४ ।। अहा [अय] रा० ७२३ ___ से २३६.२४३ अहापडिरूव [ यथाप्रतिरूप] ओ० २१,२२,५२. असुरकुमारिद [असुरकुमारेन्द्र] जी० ३।२३४ रा० ८,६,६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहापरिग्गहिय-आइय अहापरिग्गहिय [ यथापरिगृहीत] ओ० १२० अहाबायर [ यथाबादर] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३।४४५ अहाह [पथासुख) रा०६६५,७७५ अहासुहम यथासूक्ष्म] रा० १०,१२,१८,६५, २७६. जी० ३१४४५ अहि [अहि] जी० १११०५.१०६,१०८; ३१८४,६५,६२५,६३१ अहिगय [अभिगत] रा० ६८८ अहिगरण [अधिकरण] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७८६ अहिय [अधिक] ओ० ५७,६३ रा०७०, १३३, २३८. जी० २११५१; ३३२२६६२,५,३०३, ६७२,११२२, ७.१६,१८, ६।४,२४४,२४६, २८०,२८२,११२२ अहिययर [अधिकतर रा० १३३. जी० ३।३०३, ११२२ अहियास [अधि+ आस्, सह |-अहियासिज्जति ओ० १५४. रा० ८१६ अहिलाण [अमिलान] ओ० ६४ अही [अही] जी० २१८ अहीण [अहीन] ओ० १५,१४३.रा० ६७२,६७३ ८०१ अहणा [अधुना] जी० ३१४४८ अहुणोववण्ण [अधुनोपपन्न ] रा० ७५१,७५३ अहणोक्यपणमित्तय [अधुनोपपन्नमात्रक रा० २७४ अहणोववण्णय [अधुनोपपन्नक] रा० ७५१,७५३, ७६७ अहे [अधस् ] ओ० १८६. रा० १३२ जी० ११४५ अहेसत्तमा [अधःसप्तमी] जी० ११६२,११६, १२२ ; २।१३५,१४८,१४६ ; ३१११ से १३, २७,३२,४३,४७,४६,५३.७६,७७,७६,८०,८२, ८७, ६३ से ६५,६७,१०३,१०४,१०६,१०८, ११५.११७,१२१ से १२३,१२५,१२७,१२८ अहो [अहो] रा०६६६ अहोनिस [अहनिश] जी० ३।१२६८ अहोरत [अहोरात्र] ओ० २८ जी० ३८४१ अहोवहिय [आधोवधिक] रा० ७३३,७३४,७३६ अहोवाय [अधोवात] जी० १८१ अहोसिर [अधःशिरस् ] ओ० ४५,८२ आ आइ [आदि] ओ० २३,६३,६६. जी० १०१३३; ३।१०२७ आई [३०] रा० ७०५ आइक्स [आ+चक्ष,ख्या} - आइक्खइ ओ० ५२. रा० ६८७-आइक्खंति जी० ३।२१०आइक्खह ओ० ७६-आइक्खामि जी० ३१२११–आइक्खिस्सामो रा०७१६ -आइक्खेज्जा रा०७१५-आइक्खेज्जाह रा० ७२० आइक्सग [आख्यायक] ओ० १,२ आइक्खगपेच्छा [आख्यायकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ आइक्खमाण [आचक्षाण,आख्यात् ] ओ०७६ से ८१ रा० ७२०,७३२ आइक्खित्तए [आचक्षितुम् ,आख्यातुम् ] ओ० ७६ आइगर [आदिकर] ओ० १६,२१,५२,५४ रा०८ आइच्च [आदित्य] जी० ३१८३८।४ आइज्ज आदेय ] ओ०१६ आइण [आजिन] रा० ३१ आइणग [आजिनक] जी० ३:४०७,५६५ आइग्ण [आकीर्ण ] ओ० १,१४,१६,६४. रा० १७३,६७१,६७५,६८१,७७४. जी० ३१२८५,६६५ आइपण [आचीर्ण ] रा० ११,५६ आइण्ण [दे० जात्यश्व जी० ३।५६६ आइय | आदिक] ओ० २३,१२०,१४६,१६२ जी० ३१२५६ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आईण-आगार आओसित्तए [आक्रोष्टुम् ] रा० ७६६ आकति [आकृति | रा० १४८ आकारभाव {आकारभाव] जी० ३१२५६ आकासतल [आकाशतल जी० ३६५६४ आकिति [आकृति ] जी० ३१४५४ आकोसायंत {आकोशायमान, विकसत्] जी० ३१५६६,५६७ आगइ | आयति] जी० १११४ आगइय [ आगनिक] जी० ११७४,७७,८७,८८,६६, आईण आजिन] जी० ३।२८४,१०७६ आईणग [आजिनक] ओ० १३ रा० ३७,१८५, २४५. जी० ३।२६७,३११ आउ [आयुम् | जी० ११२८ आउ दे० अप्] जी० २११३०,१३६ ; ३११२३, ६७४; ५८,१२,२०,२७,२६,३३,३६; ६२५७ आउकाइय [अप्कायिक] जी० १११२; ३।१८२, । १८४,२५६,२६२,२६६, १६,१८,८५ आउकाय [अप्काय ] जी० ३११३५,७२५,७२८ आउक्काइय | अप्कायिक जी० ११६३,६५; २११०२,१३८,१४६,१४६,३३१३५, ११, १६,२०; १ आउक्खय | आयुःक्षय ] ओ० १४१. रा० ७६६ आउज्ज [आतोद्य] रा० ७०,७१,७५ आउधागार [आयुधागार ओ० १४. रा० ६७१ आउय | आयुष्क] ओ० ४४,६१ से ६३,१५७, १७१,१८८. रा० ७५३. जी० ११५१,५५,६१, ८७, १०१,११६,१२७,१३३, ३।१५५,६३० आउर | आतुर रा० ७६०,७६१. जी. ३१११८, आउल | आकुल | ओ०६३. जी०३१८४ आउस आयुष्मत् ] ओ० ७६,१२०,१७०. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१,१८५,१६७,६६८) ७५०,५२,७८६. जी०१:५६,६२,६५,८२,६६, १२८,१४०, ३११७६,१७८,१८०,१८२,२५६, २६६,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४,५८२, ५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से ६०७,६०६ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५,६२७,६२८,६३०, ६६५,१०५६,११२० आउसेस [आयुःशेष] रा० ८१६ आउह [आयुध] रा०६६४,६८३. जी० ३१५६२ आएज्ज [आदेय | जी० ३१५६७ आएस [आदेश j जी० २।१५०, ६.१२२ आओग आयोग] ओ० १४,१४१ रा० ६७१,७६६ आओस [आक्रोश] रा० ७६६ आगंतुं [अगन्तुम् ] रा० ७५० आगच्छ [आ+ गम् |-- आगच्छइ ओ० १७७ --आगच्छंति जी० ३२३६-आगच्छिज्जा रा० ७०६ -आगच्छेज्ज ओ०१८०.आगरेज्जा औ० २१. जी. ३९६ आगच्छेन या०.७६५ आगच्छित्तए आगन्तुम् ] रा० ७५१ आगत | आगत रा० १७३. जी० ३३२६५,२८५ आगति आगति स०८१५ आगतिय आगतिक] जी० ११५६,६२,६४,६५, ६७,७६,८०,८२,१०३,१११,११२,११६,११६, १२१,१२३,१२८,१३४,१३६ आगमण आगमन ] ओ० ५१. रा०६८९ आगमणागमणपविभत्ति आगमनागमन प्रविभक्ति रा०५७ आगमेसिभह | आगमिष्यद्भद्र] ओ० ७२ आगम्म आगन्य | ओ०२ आगय आगत | ओ० ५२. रा० ४०,७०,१३२, ६८५,६८७,६८६,७१३,७६५,८०२. जो० ११६६ आगरकर ओ०६८,८४ से ६३,६५,९६, १५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७. जी० ३१८४१ आगार आकार | ओ०१६. जी० ३१४८ से ५०, ३०३,३४६,३५७,६३७,६५९,७३८,७४३, ७६३,११२२ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगारभाव - आताडिज्जंत आगारभाव [ आकारभाव ] जी० ३१२१८,५७८, ५६६, ५६७ आire [ आकाश ] ओ० १३,१६ आगासस्थिकाय [ आकाशास्तिकाय ] रा० ७७१. जी० ११४ or referra [ आकाश थिग्गल' ] रा० २५ जी० ३२७८ आगासफलिह [आकाशस्फटिक ] जी० ३१४५१ आगासफालिह [ आकाशस्फटिक) । रा० २=५ आसाsars [आकाशातिपातित्] ओ० २४ आगासिय [ आकाशिक ] ओ० १६ आगिति [ आकृति ] रा० २८८. जी० ३।३२१ / आघव [ आ + ख्या ] -- आधविज्जति जी० ३८४१ आघवण [आख्यान ] रा० ७७४ आघवित्तए [आख्यातुम् ] रा० ७७४ आघवेमाण [आख्यात् ] ओ०६८ आजीवविट्ठत [आजीवदृष्टान्त ] जी० ३११७४ आजीवय [ आजीवक ] ओ० १५८ √ चाह [ आ + धा] - आहइ, ओ० ५६ आहिता [आधा ] ओ० ५६ आठ [आढक ] ओ० ११३,१३८. रा० ७७२ आढा [ आ + दृ] - आढाइ रा० ६४. --- आढाति रा० ७५३ आणंदा [ आनन्दा] जी० ३१६१४ आविय [ आनन्दित ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, ६२,६३,७८,८०, ८१. ० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४, २७७, २७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६६३,६९०,६६५. ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६,७७४, ७७८. जी० ३१४४३, ४४५, ४४७, ५५५ आणण [ आनन ] ओ० ५१,६३,६५ आणत [आनत ] जी० २२६२,६६, १४८, १४९ ; ३३१०८४, १०८६, १०८८ ५७१ आलिया [ आज्ञप्तिका ] ओ० ५५ से ६१. रा० ६,१२,१७,४६,७३,११८,६५४,६५५,६८१, ६८२,६६०, ६६१,७०६,७१४, ७१५, ७२४, ७२५. जी० ५५४,५५५ आणपाणपज्जत्ति [आनप्राणपर्याप्ति, आनापान - पर्याप्ति ] रा० २७४,७९७ आपण पज्जत्ति [आनप्राणपर्याप्ति, आनापान - पर्याप्ति ] जी० १।२६ आia [ अन ] ओ० ५१,१६२. जी० ३३१०३८, १०५३, १०६२, १०६६, १०६८, १०७६, ११११ / आणव [ आ + ज्ञापय् ] - आणविज्जइ रा० ७६७. --आणवेइ रा० १३. – आणवेज्जा रा० ७७६ आणा [ आज्ञा ] ओ० ५६,५७,५६,६१,६८,७६, ७७. रा० १०,१४,१८,७४, २७६, २८२,६५५, ६८१,७०७. जी० ३३३५०, ४४५, ४४८, ५५५, ५६३,६३७ आपण [आापान, आनप्राण] ओ० २८. जी० ३१८४१ आणापाणु अपज्जत्ति [आनामनापर्याप्ति, आनाप्राणापर्याप्ति ] जी० ११२७ पाणुपत्ति [आनापान पर्याप्त आनप्राणपर्याप्ति ] जी० ३।४४० trea | आतामित ] जी० ३१५६७ आणामिय [ आनामित ] ओ० १६ जी० ३१५९६ आणारुs [ आज्ञारुचि ] ओ० ४३ आणाविजय ] आज्ञाविचय ] ओ० ४३ √ आणी [ आ + नी ] - - आणस्सामि रा० ७२० आगामियत्त | अनुगामिकत्व ] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३:४४१, ४४२ आण पुष्व [आनुपूर्व्य ] रा० १७४. जी० ३३२५६ आणुपुब्वी [आनुपूर्वी ] जी० ११४८ आतंक [ आतङ्क ] जी० ३३६२८ आतंब [ आताम्र ] जी० ३।५६६ आतपत्त [आतपत्र ] जी० ३।४१६ आताडिज्जत [आताड्यमान ] रा० ७७ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ आतिय-आमतेत्ता आतिय [आदिक] रा०६३,६५ आतोज्ज [आतोद्य | जी० ३१५८८ आदंसग [आदर्शक] जी० ३१३५५ आवंसमुह [ आदर्शमुख ] जी० ३।२२६ आदर | आदर] ओ०६७. रा० १३,६५७ आदरिसफलग [आदर्शफल क] ओ० २७. रा० ८१३ आदि [आदि] ५२,७०. जी० ११४६; २११३१; ३.२२६,२५०.८६६.८७२,८७५.८७६,८७६, ८८१,६२६,६२७,६३७,६४१,६४८,६४६, ६५२,१०८४,१०८६,६४१४६ आदिगर | आदिकर ओ० ५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ आदिय | आदिक] रा० ७४,८२,११८. जी० ४५७,४५९,४६१,४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५४७,७७५,६३६,११२१ से ११२३ आभरणचित्त आभरणचित्र] जी० ३५९५ आभरणविहि [आभरणविधि] ओ० १४६ रा० ८०६ आभा | आमा] ओ० ५१ आभासित आमाषिक जी० ३।२१६ आभासिय आभाषिक ] जी० ३।२१६ आभासियदीय | आभाषिकद्वीप] जी० ३.२१६, २२३ आभासिया (आभाषिका] जी० २११२ आभिओगिय [आभियोगिक ओ० १५६. रा० ६,१०,१२,१३,१७ से १६,२४,३२,४१,४६, ५४,२७८,२७९,२६०,६५४,६५५. जी. ३।४४४,४४५,४५०,४५३,४५६,५५४,५५५, आदीय |आदिक] जी० ३१२५६,६५० आवेज्ज [आदेय ] जी० ३१५६६,५६७ आदेस [आदेश] जी० ११५८,७३,७८,८१,२।२०, ४८ आधार [आहार | जी० १.१२८ आधाव आ+धाव-आवावंति जी० ३.४४७ आपडिपुच्छमाण आप्रतिपृच्छत् | ओ०६६ आपुच्छणिज्ज [आपच्छनीय] रा० ६७५ आपूरत [आपूर्यमाण] जी० ३१७३१ आपूरेमाण [आपुर्यमाण'] रा० ४०,१३२, १३५,२३६. जी० ३।२६५,३०२,३०५,३६८. आबाह [आबाध | ओ०१६६ आवाहा (आराधा जी० ३६२०,६२५ आभरण [आभरण] ओ० २०,५२,५३,६३. रा०६९,७०,१५६,१५७,२५८,२७६,२८१, २८६,२६१,२६४,२६६,३००,३०५,३१२, ३५५,६८५,६८७,६८६,६६२,७००,७१६, ७२६,६०२. जी० ३.३२६,४९६,४४७,८५२, १-आपूरयन्ति शत्रन्तस्य शाबिंद रूपम् [जी० वृत्ति । आभिणिबोधियणाणि आभिनिबोधिकज्ञानिन | जी० ३.१०४,११०७ आभिणिबोहियणाण [आभिनिबोधिकज्ञान) ओ०४० रा० ७३६ से ७४१,७४६ आभिणिबोहियणाणविणय [आभिनिबोधिकज्ञान विनय ओ० ४० आभिणिबोहियणाणि आभिनिबोधिकज्ञानिन् । ओ० २४. जी० ११८७,६६,११६,१३३; ६।१५६,१६०,१६५,१६६.१६८,२०४,२०८ आभिणिबोहियनाणि आभिनिवाधिकज्ञानिन] जी०६।१९७ आभियोग | आभियोग्य ] रा० ४७ आभियोग्ग [अभियोग्य] रा १० आभिसेक्क आभिषेक्य] मो० ५५ से ५७,६२ से ६४,६६ आभोएत्ता | आय] १०८१६ अभीएमाण [आभागयत् | रा० ७ आमंत | आ.+ मन्त्रम् ---आमतेइ ओ० ५५ आमंतेत्ता आमन्त्र्य] ओ०५५. रा०६६८ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आमरणंतदोस-आयावणभूमि आमरणंतदोस आमरणान्तदोष] ओ० ४३ आमलकप्पा [आमलकल्पा] रा० १,२,८ से १०, आमलग [आमलक] रा० ७७१ जी ११७२ आमलय [आमलक] रा० ७७० आमेल [आपीड] ओ० ४६ रा० ६९,७० आमेलग [आपीडक ] रा० १३३ जी० ३३०३, ५६७ आमेलय {आपीडक ] ओ० ५७ आमोट [आमोट] रा० ७७ आमोडिज्जत [आमोट्यमान] रा० ७७ आमोसहिपत्त [आमाँषधिप्राप्त ] ओ० २४ आय [आत्मन् ] जी० ११५० आयंक [आतङ्क] ओ० ४३,११७. रा० १२,७५८, ७५६,७६६. जी० ३३११८ आयंत [आवान्त ] ओ० २१,५४. रा० २७७, २८८,७६५,८०२ जी० ३.४४३ आयंब [आताम्र ओ० १६ आयंबिलय [आचाम्लक ] ओ० ३५ आयंबिलवनमाण आचाम्लवर्धमान] ओ० २४,३५ आयंस [आदर्श] रा० १४६,२५८,२७६, जी० ३१५९७ आयंसग [आदर्शक] जी० ३ ३२२,४१६,४४५ आयंसघरग [आदर्शगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३.२६४ आयंसघरय आदर्शगृहक जी० ३।२६५ आयसमंडल [आदर्शमण्डल] रा० २४ जी० ३३२७७ आयंसमुह [आदर्श मुख जी० ३३२१६,२२६।४ आयंसय आदर्शक] ओ० १३ आयत [आयत] ओ० १६,४७. रा० १२४. जी० २५३१५७७,५९६,६३६,१०३६ आयपच्चइय | आत्मप्रत्यायिक, प्रात्ययिक] रा० ७५४,७५६ आयय [आयत] जी० ३.२२,५६७ आयर [आदर] जो० ३।४४६ आयरक्ख [आत्मरक्ष रा०७,४४,५६,५८,२८०, २८२,२८६,२६१,६५७,६६४. जी० ३१३४५, ३५०,३५६,४४६,४४८,५५७,५६२,५६३, ६३७,६५६,६८०,७००,१०२५,१०३८ आयरिय [आचार्य] ओ० ४०,४१,१५५. रा० ७७६ आयव [आतप] ओ० ८६ आयवस [आतपत्र] ओ०६४. रा० ५०,५१,२५५ आयवाभा [आतपाम ] जी० ३.१०२६ आयाए [आदाय] रा० ७७४ आयाण [आदान] ओ०१६. जी० ३१५९६ आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिय [प्रादानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित ओ० २७,१६४ आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिय आदानभाण्डामत्र निक्षेपणासमित] ओ० १५२. रा० ८१३ आयाम [आयाम] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६,१२८,१३७,१७०,१८८,२०६, २११,२१८,२२१,२२२,२२४,२२६,२२७, २३०,२३३,२३८,२४२,२४४,२४६,२५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी० ३.५१८१,८२, ८६,२१७,२२२,२२६,२६०,३०७,३१०,३५१, ३५३,३५५,३५८,३५६,३६१,३६४,३६५, ३६८ से ३७२,३७४,३७६,३७७,३८०,३८१, ३८३,३८५,३८६,३६२,३९५,४००,४०४, ४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५,४२७, ४३७,५७७,५६७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४६४६,६४६,६५२,६५५,६६८,६७१,६७३ से ६७५,६७६,६८३,७३६ ७३७,७५४,७५८, ७६२,७६५,७६८,८३५,८५२,८८४,८८७, ८६१,८६३ से ८९५,८६७,८६६,६०१,९०६, १०७,६१०,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ आयामसित्यभोइ आयामशिक्थभोजिन् ओ० ३५ आयारषर आचारधर ] ओ० ४५ आयारवंत [आकारवत् ओ० १ आयावणभूमि [आतापनभूमि] ओ० ११६ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयवणा-आवथ आयावणा [आतापना] ओ०६४ आयाक्य | आतापक] ओ० ३६ आयावाय आत्मबाद ओ० २६ आयावेमाण आतापयत् ] ओं० ११६ आयाहिण आदक्षिण | ओ०४७,५२,६९,७०,७८, ८०,८१. रा०६,१०,१२,५६,५८,६५,७३,७४, ११८,१२०,६८७,६६२,६६५,७००,७१६, ७१८,७७८ आयिण [आजिन जी० ३१६३७ आरंभ आरम्भ | ओ०६१ से ६३,१६१,१६३ आरंभसमारंभ आरम्भसपारम्भ ] ओ०६१ से १३ आरण | आरण] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५४,१०६६,१०६८,१०७६,१०८८,११११ आरबी | आरबी] ओ० ७०. रा०८०४ आरभड [आरभट] रा० १०८,११६,२८१. जी० ३१४४७ आरभडभसोल [आरभटभसोल] रा० ११०,२८१. जी० ३१४४७ आराम | आराम ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, ६५५,७१६. जी. ३१५५४ आराह आ+राध्]--आराहेहिइ रा०८१६ आराहग आराधक | ओ० ८६ से १५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ आराहणा आराधना ओ० ७७ आराहय [आराधक ओ०७६,७७. रा० ६२ ।। आराहिता | आराध्य ] ओ० १५४. रा० ८१६ आरिय | आर्य | ओ० ५२,७१. रा० ६६७,६८७. जी० ३१२२६ आरहण आरोहण] रा० २६१,२६४,२६६,३००, ३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७,४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५६४ आरोहग आरोहक] ओ०६४ आलंकारिय [आलङ्कारिक] जी० ३१४५० आलंबण [आलम्बन | ओ० ४३. रा० ६७५ आलंबणभूय [आलम्बनभूत] रा० ६७५ आलय [आलय] रा० ८१४ आलवंत आलपत्] रा० ७७ । आलावग [आलापक] जी० ३१६२; १५१,५८ आलिंग | आलिङ्ग] रा० २४,६५,६७,१७१. जी० ३।२१८,२७७,३०६,५७८,५८८,६७०,७५५, ८८३ आलिगक [आलिङ्गक] जी० ३१७८ आलिंगणवट्टिय [आलिङ्गनतिक रा० २४५. जी० ३४०७ आलिघरग [आलिगृहक] रा०१८२,१८३. जी० ३ २६४,८५७ आलिघरय आलिगृहक जो० ३।२६५,८५७ आलिह [आ-+-लिख्]-..आलिहइ रा० २६१. ....आलिखति जी० ३,४५७ आलिहिता [आलिख्य ] रा० २६५. जी. ३१४५७ आलुय [आलुक | जी० ११७३ आलोइय [आलोचित] ओ० ११७.१४०,१५७, १६२,१६४,१६५ रा० ७६६ आलोय आलोक] ओ० ६३,६४. रा० ५०,६८, २९१,३०६. जी० ३।४५७,४७१,५१६ आलोयणारिह [आलोचनाह] ओ० ३६ आवइ [आपत् ! रा० ७५१ आवइकाल [आपत्काल ] ओ० ११७ आवकहिय यावत्कथिक ] ओ० ३२ आवज्जीकरण [आवर्जीकरण] ओ० १७३ आवड आवृत्त] रा० २४. जी. ३१२७७ आवडपच्चावडसेढिपसेढिसोत्थियसोवत्थियप्रसमाणबवद्धमाणगमच्छंडमगरंडाजारामाराफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंगवसंतलतापउमलयभत्तिचित्त [लावृत्तप्रत्यावृत्तश्रेणिप्रवेणिस्वस्तिकसौवस्तिक पूष्यमाण ववर्धमाणकमत्स्याण्डमकराण्डकजारकमारकफुल्लाबलिपद्मपत्रसागरतरङ्गवासन्तीलतापमलताभक्तिचित्र] रा० ८१ आवडिय [आपतित] रा०१४ आवण [आपन] ओ०१,५५. रा०२८१. जी. ३.४४७,५६४ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवत्त-आसाय - आवत्त [आवर्त ] रा० ६६. जी० ३१८३८११० आवतणपेढिया [आवर्तनपीठिका] रा० १३०. जी० ३१३०० आवबहुल [आपबहुल ] जी० ३.६,१०,१७,२५, आवरण आवरण] ओ० ५७,६४. रा० १७३, ६८१. जी० ३१२८५ आवरणावरणपविभति आवरणावरणप्रविभक्ति रा०८८ आवरित्ता [आवृत्य] १० ७१६ आवरिस | आ-वृष-आवरिसेज्जा रा० १२ आवरेत्ता [आवृत्य] रा० ७१६ आवरेत्ताणं [आवृत्य ] रा० ७१६ आवलिपविभत्ति [आवलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ आवलियपविट्र आवलिकाप्रविष्ट] जी. ३१७८ आवलियबाहिर आवलिकाबाह्य | जी०३१७८ आवलिया [आवलिका] ओ० २८ जी० १११३६, ७२०, ७२३, ७२४, ७२६, ७३१. ७३२. जी० २।८४; ३१६१८, ६३१, १०१५ आसकण्ण अश्वकर्ण] जी० ३।२१६, २२६ आसग [आस्यक ] जी० ३।१०६ आसण आसन ओ० १४, १४१. रा० १८५, ६७१, ६७५ ७१४, ७६६. जी० ३।२६७ ५७६, ६८३, ११२८, ११३० आसणप्पयाण [आसनप्रदान] ओ० ४० आसणाभिग्गह [आसनाभिग्रह ओ०४० आसत्त आसक्त) ओ० २.५५. रा० ३२, २८१ २६१,२९४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।३७२, ४४७, ४५६, ४६१, ४६२, ४७०, ४७७, ५१६, ५२० आसपर [अश्वधर ] ओ०६६ आसम [आश्रम] ओ० ६८, ८६ से ६३, ६५ ६६, १५५, १५८ से १६१, १६३, १६८. रा०६६७ आसमुह [अश्वमुख ] जी० ३१२१६, २२६ आसय आस् --आसयंति रा० १८५ जी० ३१२१७---आसयह रा०७५३ आसरह [अश्वरथ ] रा० ६८१ से ६८३,६८५१६६० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२,७२४,७२६ आसल आसल] जी० ३८१६, ८६०, ६५६ आसव आश्रव ओ० ७१,१२०,१६२. रा० ६६८, ७५२ ७८९ आसव | आसव] जी० ३१५८६ आसवोद [आसवोद | जी० ३।२८६ आसवोयग | आयवोदक रा० १७४ आसा | आशा] ओ० २५, ४६, रा० ६८६ आसाएमाण [आस्वादयत् ] रा० ७६५, ८०२ आसाद [आस्वाद | जी० ३.९६०, ८६६, ८७२ ८७८, ६५५, ६६० आसादणिज्ज [ आस्थादनीय] जी० ३६६०२, ८६० ८६६,८७२,८७८,६५५,६६० आसाय आस्वाद] जी० ३१६०१ ६०२, ६६१ आवलियापविट्ठ [आवलिकाप्रविष्ट ] जी० ३।१०७१ आवलियाबाहिर [आवलिकाबाह्य जी० ३।१०७१ आवस्सय | आवश्यक ] रा० ७२३ आवास [आवास] ओ० १,१६२. रा०६८४, ६८५, ७००, ७०६. जी० ३१२५७ ७३५ से ७४३, ७४५ से ७४७,७४६ से ७५१, ७७५, ६३७ आवाह | आवाह] जो० ३।६१४ आविद आद्धविद्ध ओ० ५२, ६३. रा० ६६, ___७०, १३१, १४७, १४८, २८०, ६६४, ६८७ से ६८६, जी० ३१३०१, ४४६ आविल [ आविल ] जी० ३।७२१ आवीकम्म [आविष्कर्मन् ] रा० ८ १५ आस अश्व] ओ० ६६, १०१,१२४. रा० Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसालिय-इंदाभिसेग आसालिय [आशालिक] जी० १११०५, ११०, आहारसपणा [आहारसंज्ञा] जी० ११२०,१३२; १३३, २।१०५ ३।१२८ आसित्त आसिक्त ओ० ५५, ६० से ६२ आहारित्ता आहार्य ] जी० ३१६०३ आसिय [ आषिक्त] रा० २८१. जी० ३।४४७ आहारेत्तए [ आहर्तुम् ] ओ०६३ आसीत [अशीति जी० ३१५ आहारेमाण [आहरत् ] ओ० ३३. रा० ७६५ आसीविस [आमीविष] जी० १११०७ आहाव | आ-+धाव्]--आहावति रा० २८१ Vआह []-आहंसु जी० १११० आहिय [आख्यात] जी० ३।८३८।३ ___ आहिज्जति जी० ११० आहु [आहोत] ओ० २ आहत [आहत ] जी० ३१८४५ आहुणिज्ज [आहवनीय ] ओ०२ आहम्मत आयमान] रा० ७७ आहुणिय [आहत्य] रा०६ प्राय [आहत ] ओ०६८ आहेवच्च [आधिपत्य] ओ० ६८. रा० २८२. आहर [आ+ह ]--आहरेइ ओ०११८ जी० ३।३५०,३५६,४४८,५६३,६३७,६५९, आहरण [आभरण] ओ० ४६. रा०६८८ ७६०,७६३ आहाकम्मिय [आधामिक] ओ० १३४ आहार ! आहार) ओ०३३,७३,६२,११७ से ११६. रा० ७३२,७३७,७७२,७६६. जी०१।१४,३३, _[चित्] ओ० ७४।४ ५०,५६,६५,८२,८७,९६,१०१,११६,१३३, इ [इति ) जी० ३।६५ १३६,३१६७,१२७,१२६,५६६,६००,६०३, इइ-एति जी० ३।१७६---एह रा०७२३ ६३१,६६६ इइ [इति ] रा० २४ आहार | आधार रा० ६७५ इओ [इतस्] ओ०८८ ‘आहार [आ+ हारय् ]-~~-आहारेइ रा० ७३२-- इंगाल [अङ्गार रा० ४५. जी० १७८; ३१८५, आहारेति रा०७०३. जी०१:३३ आहारअपज्जत्ति [आहारापर्याप्ति] जी० ११२७ ।। इंगालसोल्लिय [अङ्गारपक्व | ओ०६४ आहारग | आहारक जी०६।३८ से ४०,४६, इंगिय [इङ्गित ओ०७०. रा०८०४ इंद |इन्द्र ओ०६८, रा० २८२. जी० ३.४४८, आहारगमीसासरीर | आहारकमिश्रक्शीर] ओ० ७५५,८४३,८४६,८४७,६३७,१०४८ इंदकील | इन्द्रकील] ओ० १. रा० १३० इंदखील [इन्द्रकील] जी. ३।३०० आहारगसरीर [आहारकशरीर] ओ० १७६ जी , इंदगोव [इन्द्रगोप] रा० २७ ६।१७८ इंदगोवय [इन्द्रगोपक] जी० ३।२८० आहारगसरीरि [आहारकशरीरिन् ] जी० ६।१७०, इंदग्गह [इन्द्रग्रह] जी० ३१६२८ १७३,१८१ इंदट्ठाण [इन्द्रस्थान जी० ३१८४४,८४७ आहारत्त आ हारत्व] जी० ३।११०० इंदषण [इन्द्रधनुष ] जी० ३१६२६,८४१ आहारपज्जत्ति आहारपर्याप्ति | २० २७४,७६७ इंदभूइ [३न्द्रभूति | ओ० ८२ जी० १२२६३१४४० इंदमह | इन्द्रमह] रा०६८८,६८६ जी० ३१६१५ आहारभूय [आधारभूत ) रा० ६७५ इंदाभिसेग [इन्द्राभिषेक] रा० २८२,२८३. आहारय आहारक] जी. ३६,४१ जी० ३.४४६,४४७ ५०,५५ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंदाभिसेय-इन्भ इंदाभिसेय [इन्द्राभिषेक रा० २७८ से २८१ इडि [ऋद्धि] मो० ४७,६५,६७,७२,८६ से १५, जी० ३.४४४,४४८,४४६ ११४,११७,१५५,१५७ से १६०.१६२,१६७. इंदिय [इन्द्रिय ] ओ०६३. जी० १११४,२२,८६, रा० १३,१५ से १७,५५,५६,५८,२८०,२६१, ८८,६०,९६,१०१,११६,१२८,१३६, ३१५६२, ६५७,७७२,८०३,८०५. जी० ३।४४६,४४८, ४५७,५५७,६०६ इंदियपज्जत्ति [इन्द्रियपर्याप्ति ] रा० २७४,७९७. इण [एतत् ] जी० ३।५ जी० ॥२६; ३१४४० इणं [इदम्] ओ० ७२ इंदियपडिसंलोणया [इन्द्रियप्रतिसंलीनता] ओ० इति [इति रा० ८. जी० ३११८ इतिहास [इतिहास] ओ०६७ इंदु [इन्दु] रा० २५५. जी० ३१४१६ इत्तरिय [इत्वरिक ] ओ० ३२ इक्कमिक्क [एकक] जी. ३११२७ इत्ति [इति] जी० ११३६ इक्खाग [इक्ष्वाकु] रा० ६८८ इत्तो [इतस् ] ओ०१६५।१७. ० २५. इक्खगपरिसा [इक्ष्वाकुपरिषद् ] १० ६१ जी० ३।२७८ इक्खुवाड [इक्षुवाट] रा० ७८१,७८४,७८६, इस्थ [अत्र) जी० ३१२४४ ७८७ इत्थंठिय [इत्थंस्थित] ओ०७२ इगयालीस [एकचत्वारिंशत् ] जी० १७१८ इरिय [स्त्री] जी० २११०५ इच्छ [इष]--इच्छइ रा० ७५१- इच्छसि इथिकहा [स्त्रीकथा] ओ०१०४,१२७ रा० ७६५-इच्छसी जी० ३१८३८२६ इत्थिया [स्त्री] ओ० ६२. जी० २१११,१५ से १६, -इच्छामि रा०६३--इच्छेज्ज रा० ७५१ ३७,६७ से ७२,७४,१४४,१४६ से १४८,१५१; - इच्छेज्जा रा० ७५१ ३.८८ इच्छा [इच्छा] ओ० ४६ इथिलक्खण [स्त्रीलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ इच्छापरिमाण [इच्छापरिमाण] ओ०७७ इथिवेद [स्त्रीवेद जी० १६१३६; २१७३,७४; इच्छिय [इष्ट] मो० २३,६६. रा० ६६५ ।१२६ इच्छियपरिच्छिय [इष्टप्रतीप्ट ] ओ० ६६. इत्थिवेदग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१३० रा०६६५ इत्यिवेय [स्त्रीवेद] जी० ११२५,१३३ इट्ठावाय [इस्टकापाक] जी० ३।११८ इथिवेयग [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२१ इट्ट [इष्ट] ओ० १५,६८,११७. रा० ६७२,६८५, ५. इत्थिवेयय [स्त्रीवेदक] जी० ६।१२२ ७१०,७५० से ७५३,७७४,७६६. इत्थी स्त्रिी ] ओ० ३७. जी० २।१ से ३,६,१०, जी० ११३५, ३.१०६०,१०९६,११२४ १४,२० से ३०,३२ से ३६,३६ से ४६,५४, इद्रुतर [इष्टतर] जी० ३।१०७८, १०७६ ५६ से ६६,७०,७६,७८,८०,८३,८५.८६,९४, इट्टतराय [इष्टतरक] २२० २५ से ३१,४५. १०५,१४१ से १५१, ३३१४८,१४६,१६४ इत्थीलिंगसिद्ध [स्त्रीलिङ्गसिद्ध] जी०११८ जी० ३१२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८,६५६,६६१ इदाणि [इदानीम् ] जी० ३१८४३ इम्भ | इभ्य] ओ० २३,५२,६३. रा०६८७ से इड्डरग [दे०] रा० ७७२ ६९६,६६५,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४. इड्र य (दे०] रा० ७७२ जी. ३६०६ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ इन्भपुत [ इभ्यपुत्र ] रा० ६८८, ६८६,६६५ इम [ इदम् ] ओ० ७ जी० १११० इयाणि [ इदानीम् ] ओ० ११७. २० ७५३ इरियासमिय | ईर्यासमित | ओ० २७,१५२,१६४ इव [ इव] ओ० २३. रा० ७० जी० ३२४४८ इसिपfरसा | ऋषिपरिषद् | ओ० ७१. रा० ६१, ७६७ sferfar [ ऋषिवादिक] ओ० ४६ इह [ इह | ओ० २१. रा० ६८७. जी० १।१ हं [ह] ओ० २१. रा० ६८७. जी० ३।११६ इहगत | इहगत ] रा० ८ हाय | इहगत ] ओ० २१. ० ७१४ इहभव [इहरुव ] यो० ५२. रा० ६८७ लोग [ इहलोक ] ओ० २६ ई ईयाल [ एकचत्वारिंशत् ] जी० ३।७३६ ईरियासमिय [ ईयसमित ] रा० ८१३ ई सत्य [ इष्वस्त्र ] ओ० १४६. रा० ८०६ ईसर [ ईश्वर ] ओ० १८, २२,६३,६८० २८२, ६८७, ६८८, ७०४, ७५४, ७५६, ७६२,७६४. जी० ३।३५०, ४४८, ५६३, ६०, ६३७, ७२३ ईसा [ ईषा ] जी० ३१२५४ ईसाण [ ईशान ] ओ० ५१,१६०, १६२. जी० ११५६, २ १६,४७,६६, १४८, १४६; ३६१६,२१,१०३८, १०४३, १०४४, १०५७, १०६५, १०६७,१०७१, १०७३, १०७५, १०७७ से १०८३,१०८५, १०६७, १०६०, १०६१, १०६३, १०६७ से १०६६,११०१,११०५, ११०७,११०९ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११, ११२१,११२२, ११२४,११२८ ईसाग | ईशानक ] जी० ३११०४३ ईसि [ ईषत् ] ओ १३. रा० ४. जी० ३१२६५ ईसिणिया [ ईशानिका | ओ० ७०. रा० ८०४ ईसी [ ईपत्] ओ० ४७ ईसीपभारा [ ईषत्प्राग्भारा] ओ० १६१ से १९५ ईहा [ ईहा ] ओ० ११६, १५६. रा० ७४० ईहामs [ ईहामति ] रा० ६७५ हामि असभतुरगनरम गर विहगवालग किन्नररुदसरभचमरकुंजरवणलथपउमलयभत्तिचित [ ईहामृगवृषभतु र गन रमकर विहगःयालककिन्नररुरुस रभचम र कुञ्जरवनलतापघलता भक्तिचित्र ] रा० ८३ हामि [ ईहामृग ] ओ० १३. रा० १७, १८, २०, ३२. ३७, १२६. जी० ३१२८८,३००, ३११,३७२ इन्भपुत्त-उक्कोस उ उ [तु] जी० २।१५१ उंबर [ उदुम्बर ] जी० ११७२ उंबरtफ | उदुम्बरपुष्प ] रा० ७५० से ७५३ उकंचण [ दे० ] रा० ६७१ उपकंचणया [ दे० ] ओ० ७३ कलिावा [ उत्कलिकावात ] जी० १२८१ उक्कस [ उत्कर्ष ] जी० ५२० उक्का | उल्का ] रा० ७०,१३३. जी० ११७८ ३१११८, ३०३, ५६०,११२३ उक्कापात [ उल्कापात ] जी० ३१६२६ कामु [ उल्कामुख | जी० ३१२१६,२२६ feng [ उत्कृष्ट ] ओ० ५२. रा० १०,१२,५६, २७६,६८७,६८८. जी० ३३८६,१७६, १७८, १८०,१८७, ४४५, ८४२,८४५ उक्किट्टि [उत्कृष्ट ] जी० ६।४४७ उक्किट्टिया | उत्कृष्टका ] रा० २०१ करिज्माण [ उत्कीर्यमाण ] रा० ३०. जी० ३१२८३ उक्कुड्यासणिय [ उत्कुटुकासनिक ] ओ ३६ ents [ औकोटिक ] ओ० १ उक्कोस [ उत्कर्ष ] ओ० ९४, ९५, ११४, १५५,१५७, १५६,१६०,१६२,१६७,१८७,१८८, १६५३५. जी० १।१६, ५२.५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से ८८,६०,६४,६६,१०१,१०३, १११,११२,११६. ११६,१२१,१२३ से १२५,१३०,१३३,१३५ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्कोसपद-उच्छलंत ५७६ से १४०,१४२, २०२० से २२,२४ से ५०, उम्गत उद्गत जी० ३।३००,५६५ ५३, से ६१,६३,६५ से ६७, ७३,७६,८२ से उगतव { उग्रतपस् ] ओ० ८२ ८४,८६ से ८८,६० से ६३,६७ १०० से १११, उग्गपुत्त उग्रपुत्र ] ओ० ५२. रा०६८७ से ६८६, ११३,११४,११६ से १३३,१३९; ३१८६,८६ ६१,१०७,११८ से १२०,१२६१२,१३६,१६१, उगमणग्गमणपविभत्ति (उदगमनोगमन प्रविभक्ति १६२,१६५,१७६,१७८,१८०,१८२,१८६ से रा०८६ १६२,२१८,६२६,८४४,८४७,८६०,९६६, उम्गय [उद्गत रा०१७,१८,२०,३२,१२६. १०२२.१०२७ से १०३६,१०८३,१०८४, जी० ३१२८८,३७२,५६० १०८७,१०८६,११११,११३१,११३२,११३४ उग्गलच्छाव | दे०]-- उगलच्छामि ग०७५४ से ११३७; ४३ से ११,१६.१७, ५५,७,८, उग्गलच्छावित्ता दे०] रा० ७५४ १० से १६,२१ से २४,२८ से ३०; ६२,३, उगह [अवग्रह] रा० ७४०,७४१ ६,८ से ११, ७३,५.६,१०,१२ से १८; उग्धोसेमाण [ उद्घोषयन् | स०१३,१५ ६२ से ४,२३ से२६,३१,३३,३४,३६,४०,४१, उच्च {उच्च ] जी ० ३१३१३ ४३,४७,४६,५१,५२,५७ से ६०,६५ से ७३, उच्चंतग [उच्चन्तक] रा० २६. जी. ३१२७६ ७७,७८,८०,८३,८५.८६,१०,६२,६३,६६,६७, उच्चत्त [उच्चत्व] ओ०१८७. रा० ४०.१२७ से १०२,१०३,१०५,१०६,११४,११५,११७,११८, १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२,२२२, १२३ से १२८,१३२,१३४,१३६,१३८,१४२, २२७,२३१,२३६,२४७,२५१,२५३. १४४,१४६,१४६,१५०,१५२,१५३,१६० से जी० ३३१२७,२६१ से २६३,३००,३०७, १६२,१६४,१६५,१७१ से १७३,१७६ से १७८) ३५२ से ३५५,३५६,३६४,३६८ से ३७४, १८६ से १६१,१६३,१६४, १९८ से २००, ३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२,४१४, २०२ से २०४,२०६,२०७,२१० से २१४, ५६६,५६७,६३२,६३४,६४६,६४७,६५२६६१ २१६ से २१८,२२२ से २२५,२२८,२२६, ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, २३४,२३६,२३८,२४१ से २४४,२४६,२५७ ७३६,७३७,७५६,७६५,८३६,८८२,८८४, से २६०,२६२,२६४,२६६,२७१,२७३,२७७ ८८५,८८७,८८८,८६४,८६८,६००,६०७, स २८२ ६११,६१८,१०६७,१०६६,१०७० उक्कोसपद उत्कर्षपद] जी० ३११६५ से १६७ उच्चार [उच्चार] रा० ७६६ उफ्कोसपय [उत्कर्षपद] जी० ३.१६५ उच्चारण [उच्चारण ] ओ०१८२ उक्खित्त [उक्षित] रा० ११५. जी० ३।४४७ ।। उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिद्रावणियासमिय उक्खित्तचरय [उत्क्षिप्तचरक ] ओ० ३४ (उच्चारप्रस्र वणवेलसिंघाणजल्लपारिष्ठापनिउक्खित्ताणिदिखत्तधरय [उत्क्षिप्तनिक्षिप्तचरक कीसमित ] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ ओ० ३४ उच्चावय [उच्चावच] ओ० १४०,१५४,१६५, उक्खित्ताय [उत्क्षिप्तक] रा० १७३,२८१. १६६. रा० ७६६,८१६. जी० ३२३९,९८२ जी० ३।२८५ उच्छंग [उत्सङ्ग] ओ०६४ उक्खु [इक्षु] जी० ३१६२१ उच्छल [उत् + शल्-उच्छलेति रा० २८१. उक्खेवण [उत्क्षेपन] ओ०. १८० जी० ३.४४७ उग्ग [उन] ओ २३,५२. १० ६८७ से ६८६,६६५ उच्छलंत [उच्छलत्] ओ०४६ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० उच्छायणया-उण्णयासम उच्छायणया [उच्छादना] रा०६७१ उट्ठा [उत् + ष्ठा]---उ? इ. ओ० ७८. रा०६६५ उच्छु ! इक्षु] ओ० १. जी० ३८७८,६६१ -उडे ति. ओ० ८१.- उठेति. रा०६० उछभ [ उत+क्षिप- उच्छुभइ. रा०७८५ उद्रा [उत्था] ओ०७८.८०.८१,८३. रा०६०,६२, उच्छूट [उत्क्षिप्त ] ओ १६. जी० ३१५९६ ६९५,७००,७१८,७८० उच्छढसरीर | उत्क्षिप्तशरीर ] ओ० ८२. रा० ६८६ उद्विय [उत्थित ] ओ० २२. रा० ७७७,७७८, उज्जम [उद्यम ] ओ० ४६ ७८८ उज्जल उज्वल ] ओ० ५,८,१६,५७. रा० ३२, उटुता [उत्थाय ] ओ० ७८. रा० ६० ६९,७०,२४६,७६५. जी० ३११०,१११, उउव [उटज] तापसगृह जी० ३१७८ ११७,२७४,३७२,४१०,५८६ से ५६१,५६६ उड़ दे०]-उडुइज्जइ. रा० ७८५ उज्जाण उद्यान ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, उपइ [उडुपति ] ओ० १६ ६५५,६७०,७०६,७११,७१३,७१६,७१६, उडुयति [उडुपति ] जी० ३।५६६ ७२६. जी० ३१५५४ उड्ड [उर्व] ओ० ११६.१८२,१६२. रा० १२४, . उज्जाणपालग [उद्यान पालक रा०७०७,७१३,७१४ १२७ से १२६,१३७,१८६,१८६,२०४ से २१२, उज्जाणपालय [उद्यानपालक] रा० ७०६ २२२,२२७,२३१,२३९,२४७,२५१,२५३, उज्जाणभूमि { उद्यानभूमि [रा० ७३२,७३७,७४७ ७५३. जी. ११४५, ३.२५७,२६१ से २६३, उज्जालिय [उज्वालित] जी० ३१५८६ ३००,३०७,३५२ से ३५५,३५६.३६४,३६८ उज्जु [ऋजु] ओ० १६,४७. जी० ३।५६६,५६७ से ३७४,३७६,३८१,३८६,३६३,४०१,४१२, उज्जमइ [ऋजुमति ] ओ० २४. रा० ७४४ ४१४,५६६,६३२,६३४,६४६,६४७,६६१, उज्जुय [ऋजुक] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ ६६३,६७२ से ६७५,६७६,६८६,७०६,७१३, उज्जुसेढी [ऋजुश्रेणी] ओ० १८२ ७३६,७३७,७५६,८३८११२,८३६,८४२,८४५, उज्जोइय [उयोतित] जी० ३६५६८ ८८२,८८४,८८५,८८७,८८८,८६४,८६८, उज्जोएमाण [उद्योत यत् ] जी० ३।३०३ ६००,६०७,६११,६१८,१०३८,१०६७,१०६६, उज्जोय [उद्द्योत ] ओ० १२. रा० २१, २३,२४, १०७०,११११ ३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७,२२८,२५७. उड्डाण उर्वजानु ] ओ० ४५.८२ जी० ३६२६१,२६६,२६६,२७७,३८७,५८६, उड्ढवाय [ऊर्ध्ववात] जी० १८१ ५६०,६७२ उड्ढीमुह [ उद्धी'मुख] जी. ३८४२ उज्जोव (उद्+द्युत-उज्जोवेइ. रा० ७७२, उण्णइय [उन्नतिक ओ०६ जी० ३।२७५,२८६, जी० ३.३२७ -- उज्जोवेति. रा० १५४. जी० ६३६,८५७,८६३ ३.३२७-उज्जोवेति. रा० १५४ जी०३१७४१ उष्णत [उन्नत] रा० २४५ उज्जोविय [उयोतित ओ० ५१,६३,६५ Vउण्णम [उत् +-नम्] --उण्णमंति. रा० ७५ उज्जोवेमाण [ उद्योतयत् ] ओ० ४७,७२. रा०७०, उण्णमित्ता [उन्नम्य] रा०७५ १३३. जी० ३।११२१,११२२ उण्णय [उन्नत ] ओ० १,१६. जी० ३१४०७,५९६, उट्ट [उष्ट्र] ओ०१०१,१२४. जी० ३१६१८ उट्टियासमम उष्ट्रिकाश्रमण] ओ० १५८ उण्णयासण [उन्नतासन] रा० १८१,१८३, उट्टी [उष्ट्री] जी० ३१६१६ जी० ३१२६३ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उण्णाम-उद ५८१ उण्णामा उद्-नामय ]---उण्णामिज्जइ. जी० १७२६ उण्ड [उष्ण ओ० ११७. रा० ७२८,७६६. जी० ३.११८,११६ उत्तप्प उत्तप्त) रा०७३२,७३७ उत्तम [उत्तम] ओ० २३,५१. रा० २६२. जी० ३.४५७,५६२,५९६ से ५६८ उत्तमंग [उत्तमाङ्ग] जी० ३१५६६ उत्तर [उत्तर] ओ० २१. रा० १६,४०,४१,४४. १३२,१७०,१७३,२१०,२१२,२३५,२३६, ६५८,६६४,६८५,७६५,८०२. जी० २।४० ३१५,२२,२७,६३,६६ से ७२,७७,२२६,२२७, २३२,२५७.२६५,२८५,३३६,३४५.३५८, ३७३,३६७,३६८,५५८,५६२,५६६,५६६, ५७७,५६५,५६७,६०१,६६५,६३८,६३६, ६४७,६५७,६६०,६६१,६६५,६६६,६७३, ६८०, ६८२,६८६,६६२,६६५,६६६,७०१, ७११, ७१३,७२२,७३६,७४५,७४७,८१२, ५३६,८८२,८८५,६०२,१००४,१००६,१०१५ उत्तरंग [उत्तरङ्ग] रा० १३०. जी० ३३०० उत्तरकुरा [उत्तरकुरु] जी० २०१३; ३१५७८, से ५६७,६०५ से ६२८,६३१,६३२,६३६,६६६, ६६८,७०२ उत्तरकुरा [उत्तरकुरा] जी० ३१६१६६३७ उत्तरकुर उत्तरकुरु] जी० २३३,६०,७०,७२, १६,१३७,१३८,१४७,१४६; २२१८,२२८, उत्तरपुरथिम [उत्तरपौरस्त्य] ओ० २. रा० २, १०,१२,१८,४१,५६,६५,२०६,२४६,२५१, २६०,२६२,२६५,२६७,२६६,२७२,२७३, २७६,६५८,६७०,६७८. जी० ३१३३६,३७२, ४०८,४१२,४२१,४२५,४२६,४३१,४३४, ४३७,४३८,४४५,५५८,६३५.६५७,६६८, ६८०,६८३,७५० उत्तरपुरथिमिल्ल [उत्तरपौरस्त्य] जी० ३।२१७, २२२,५५६,६८६,६६८,६१८,६१६. उत्तरमंदा | उत्तरमन्द्रा उत्तरमन्दा] रा० १७३. जी० ३१२८५ उत्तरवेउविवय [उत्तरवैक्रिय] रा० १०,४७. जी० ११६४,६६,१३५,१३६ ; ३।९१,६३,४४६, १०८७,१०८८,१०६१,११२१,११२२ उत्तरागार [उत्तराकार रा० १६५ उत्तरासंग उत्तरासङ्गा ओ० २१,५४, रा० ८, उत्तरासंगकरण [उत्तरासङ्गकरण ओ०६६. रा० ७७८ उत्तरिज्ज [उत्तरीय ओ० ६३ उत्तरित्तए [उत्तरीतुम्] ओ० १२२ उत्तरिल्ल [औदीच्य औत्तराह] रा० ४८,५६, ५७,२६७,३०२,३०७,३१३ से ३१६,३१८, ३२१ से ३३१,३३६,३४१ ३४६,३७६,३६४, ४३५, ४५३,४६६,५१४,५५६,५७४,६१६, ६३४. जी० ३१३३,३६,३८,२२७,२४०,२४८, २५०,२५६,४६२,४६७,४७२ ४७८ से ४५१, ४८३,४८६ से ४६६,५०१,५०६,५११,५२३, ५२४,५२६,५३०,५३७,५३८,५४४,५४५, ५५१,५५२,६७३,६६७,६६८,९१६ उत्ताणग [ उत्तानक] ओ०१ उत्ताणयछत्त [उत्तानकछत्र] ओ० १६४ उत्तालिज्जत [उत्ताड्यमान ] रा० ७७ उत्तासणय [उत्त्रासनक] जी० ३१८३ उत्तिमंग [उत्तमाङ्ग] ओ० १६. जी० ३१५६७ उद [उद] जी० ३२२८६ उत्तरकुरुद्दह [उत्तरकुरुद्रह] जी० ३१६६६ उत्तरकूलग [उतरकूलक अं० ६४ उत्तरतर [उत्तरतर ओ० ७६ से ८१ उत्तरपच्चत्थिम [उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३१२२५, ६८८,७५३ उत्तरपच्चथिमिल्ल [ उत्तरपाश्चात्य ] जी० ३१२२१, ६६६,६६७,६१८,६२२ उत्तरपासग [उत्तरपार्वक] रा० १३० उत्तरपासय [उत्तरपार्श्वक] जी० ३१३०० Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ उदक-उप्पतित्ता उदक [ उदङ्क] जी० ३१५८७ उद्दा(ण) दे०] जी० ३१८७२ उदक [उदक] रा० २६. जी० ३।८१६ उद्दाइत्ता {अवद्राय, अवद्रुत्य ] जी० ३।५७५ उदकजोणिय [उदकयोनिक] जी० ३१७८७ उद्दाल [अवदाल] रा ० २४५. जी० ३१४०७ उदग [उदफा ओ०६३,११७. रा० १५१,२७६, उद्दाल [उद्दाल ] जी० ३१६३१ २८१. जी० ३१४४५,४४७,७२१,७२६,८५४, उद्दालक [उद्दालक] जी० ३१५८२ ८५७,६४६ उद्दिट्ट [उद्दिष्ट] जी० ३१८३८।२५ उदगत्त उदकत्व] जी० ३।७८७ उद्दिट्ठा [दे० उद्दिष्टा] ओ० १२०,१६२. उदगमच्छ [उदकमत्स्य ] जी० ३१६२६,८४१ रा०६९८,७५२.७८६. जी० ३१७२३,७२९ उदगमाल [उदकमाल ] जी० ३७६२ उद्देसिय [औद्देशिक ] ओ० १३४ उदगरस [उदकरस ] रा०२३३. जी. ३१२८६, उद्धसणा [उद्धर्षणा] रा० ७६६ ८१६,८५४,६५६,६५७,६६४ उद्धसित्तए [उद्धर्षितुम् ] रा० ७६६ उदगवारग [उदकवारक] जी० ३.११८ उद्धं मत [उद्धमत् ] जी० ३७३१ उदग्ग [ उदग्र] जी० ३१८३६ उद्धम्ममाण [उद्हन्यमान ] ओ० ४६ उदधि उदधि] जी० ३।१०६,५६७ उद्घायमाण [उद्धावत् ] ओ० ४६ उदय [उदय] ओ० ३७,११६,११७ उद्धार [उद्धार] जी० ३१९७३ उवय [उदक ] ओ० ६,१११ से ११३,११७,१३७, । उद्धारसमय [उद्धारसमय ] जी० ३।६७३ १३८, रा०६,२८०,२८२,२६१,३५१. उद्धारसागरोवम [ उद्धारसागरोपम] जी० ३।६७३ जी० ३१३२४,४४६,४४८,७२६,८६०,८६६, उद्धिय [उद्धृत ] ओ० १४. रा० ६७१ ८७२,८७८,६४६,६५५,६५७,६६१ उड्य [उद्भूत ] ओ० २,५५,६४. रा० ६,१२३२, उदयपत्त उदयप्राप्त] ओ० ३७ ५०,५२.५६,१३२,१३७,२३१,२३६,२४७, उदर [उदर जी० ३।५६६ | २८१. जी० ३१८६,१७६,१७६,१८०,१८२, उदहि [उदधि] मो० ४८ ३०२,३०७,३७२,३६३,३६८,४४५,४४७, उदि [उद्+इ]- उदेति. जी० ३।१७६ उदीण उदीर्चन] रा० १२४. जी० ३१५७७, १०३६ उधुमंत [उद्ध्मायमान] रा०७७ उदोणवाय [उदीचीनवात] जी. ११८१ उधुव्यमाण [ उदयमान ] ओ० ६५ उदीर [उद्+ ईरय]-- उदीरइ. रा० ७७१. उद्ध्य [ उद्धृत] रा० १०,१२,५६,२७६ -उदीरेंति, जी ३६११० उन्नइय [उन्नलिक] जी० ३।११८,११६ उदीरंत [उदीरयत्] रा० ७७१ उन्नय उन्नत ] ओ० १६ जी० ३१५६७,५९८ उदीरण [उदीरण] ओ० ३७ उपप्पुय ! उपप्लुत ] जी० ३।११६ उदीरिय [उदीरित] रा० १७३,७७१. उप्पइत्ता उत्पत्य ] ओ० १६२. जी० ३.१०३८ जी० ३।२८५ उप्पण्ण [उत्पन्न ] ओ० १६६. रा० ७७१ उदु [ऋतु] जी० ३१९४१ उप्पण्णकोऊहल्ल [उत्पन्नकोतूहल्ल] ओ०८३ उद्दडग उदंडक] ओ०६४ उप्पणसंसय [ उत्पन्नसंशय ] ओ०८३ उद्दवणकर [उदवणकर] ओ० ४० उप्पण्णसङ्घ [उत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ उहवेत्ता उद्त्य] रा०७६१ उप्पतित्ता [उत्पत्य जी० ३।२५७ ४५१ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्पत्ति-उराल ५८३ उत्पत्ति [उत्पत्ति] ओ० १८४ उप्फेस दे०] ओ० ६६ उम्पत्तिया [औत्पत्तिको] रा० ६७५ उम्भाम उद्+- भ्रामय]-उब्भामेइ. उप्पय [उत्+पत्]- उप्पयंति. रा० २८१. रा० ७२७ जी० ३१४४७ उभिजमाण [उद्भिद्यमान जी० ३३२८३ उप्पल [उत्पल ] ओ० १२,२२,१५०. रा० २३, उभओ [उभतस् ] ओ०६६,११५. रा० १३१ से १३१,१४७,१४८,१७४,१९७,२७६ से २८१, १३८,२४५.२५६.२७६. जी. ३१३०१ से २८८,२८६,७२३,७७७,७७८,७८८. ३०७,३१५,३५५,४०७,४१७,६३२,६३६, जी० ३३११८, ११६,२५६,२६६,२८६,२६१, ७८८ से ७६०,८३६ ३०१,४४५, ४४७,४५४,४५५,५६८,६३७, उभय उभय ] जी. ३१४४५ ६५६,६६४,७३८,७४३,७५०,७६३,७६५, उभयो [उभयतस् ] जी० ३२८६६ ७७५,८४१,९३७ उम्मजग [उन्मज्जक] ओ०६४ उप्पलगुम्म उत्पलगुल्म] जी०३१६८६ उम्माण [उन्मान] मो० १५,१४३. रा० ६७२, उप्पलटिय [उत्पलवन्तिक] ओ० १५८ ६७३,८०१ उप्पला [उत्पला] जी० ३१६८६ उम्मि [मि] रा० ६८७ उप्पलुज्मला [उत्पलोज्वला] जी० ३।६८६ उम्मिलित [उन्मीलित] जी० ३३०७ उप्पाइत्ता [उत्पाद्य] जी० ११५० उम्मिलिय [उन्मीलित] ओ० २२. रा० १३७, उपाइयपन्वय [औत्पातिकपर्वत] ओ० ५७ ७२३,७७७,७७८,७८८ उपार [उत्+पाद्य]-उप्पाडेंति ओ० १६६ उम्मिसिय [उन्मिषित] जी० ३।११८,११६ उप्पारमय [उत्पाटना] ओ० १०३,१२६ उम्मुक्क [उन्मुक्त] मो० १६५२० रा० ५०६, उप्पातपव्वतग [उत्पातपर्वतक] जी० ३१९४८ ८१० उप्पातपन्चय [उत्पात पर्वत] जी० ३१८५७ उयगरस [उदक रस] रा० १७४ उप्पाद उत्पाद] जी० ३।९१७ उयर [उदर] ओ० १६ उपाय [उत्पाद] जी० ३॥१२६१० उर [उरस्] ओ०७१. रा० ६१,७६ उप्पायनिवायपसत [उत्पादनिपातप्रसक्त] उरग [उरग जी०३३९८ रा० १११,२८१. जी० ३।४४७ उरगपरिसप्प [उरगपरिसर्प] जो० २१११३ उप्पायपव्वत [उत्पातपर्वत] जी० ३.२६३ उरत्य [उरःस्थ] जी० ३१५६३ उपायपव्यय [उत्पातपर्वत] रा० १८१. जी० उरपरिसप्प [उरःपरिसर्प] जी० १११०४,१०५, ३।२६२,८५७ १११,१२२ से १२४; २।२४,१२२; ३३१४३, उप्पायपव्ययग [उत्पातपर्वतक] रा० १५० उपि [उपरि] ओ० १६८. रा० २१. जी० ३८० उरपरिसप्पी [उर:परिसर्पिणी] जी० २१७,८,५२ उम्पिबलभूत [उत्पिञ्जलभूत ] रा० ७८ उरम्भ [ उरभ्र ] रा० २४,२७. जी० २१२७७,२८० उप्पील [उत्+पोड्]-उप्पीले ति. जी० उरस्स [औरस्य ] रा० १२,७५८,७५६. ३१७६५ जी० ३.११८ उप्पीलिय [उत्पीडित] ओ० ५७. रा० ६६,६६४, उराल [दे० उदार] रा० ४०,७८,१३२,१७३, ६८३. जी. ३२५६२ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ उल्ल [ आर्द्र ] रा० ७५३ √ उल्लंघ [ उत् + लङ्घ. ] - उल्लंघेज्ज ओ० १८० उलंघण [उल्लङ्घन | ओ० ४० + उल्साल [ उत् + लालय् ] -- उल्लालेति. रा० १४ उल्लालिथ [ उल्लालित ] रा० १४ उल्लालेमाण [ उल्लालयत् ] रा० १३ उल्लिहिय [ उल्लिखित ] ओ० १५ रा० ६७२ उलोइय [ दे० ] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. जी० ३१३७२, ४४७ उल्लोग [उल्लोक ] जी० ३३५५८८८ उल्लीय [ उल्लोक ] रा० ३४,६६,१३०,१६४, १८६,२०४ से २०७, २१३, २१६, २६७, २५१, २६०. जी० ३३००, ३०८, ३३७, ३५६, ३५६, ३६४.३६८ से ३७१,३७४, ३६६, ४१२, ४२१. ४२६,६३४,६४८, ६७३, ९०४ उet [ उपचित ] मो० १६. जी० ३।५९६ उबउक्त [ उपयुक्त ] ओ० १५२ से १८४, १९५।११. रा० १५. जी० ११३२,८७,१३२,१३३; ३।१०६,१५४,१११०; ६/३६,३७ एस [ उपदेश ] ओ० ५७. ० ७४८ से ७५०, ७६५,७६६,७७०,७७३ उवएसरुइ [ उपदेशरुचि ] ओ० ४३ ओग [ उपयोग] ओ० ४६. जी० ११४,९६, १०१,११६,१२८, १३३.१३६; ३११२७ ४, १६० : १६६ उबकरण [ उपकरण] ओ० ३३ उवकरणत्त [ उपकरणत्व ] जी० ३।११२८, ११३० उवकारियलयण [ उपकारिकालयन ] रा० १८६ √ उवक्खड | उप | स्कृ] – उवक्वडावेस्संति. रा० ८०२ उवक्खड [ उपस्कृत ] जी० ३१५६२ उवक्खडावेत्ता | उपस्कृत्य ] रा० ७८७ उबग [ उपग] जी० ३१८३८२१ उगत [ उपगत ] रा० ७६० जी० ३।११६.३०३ जवगय | उपगत | ओ० ६३, ७४१५, १६५/१३. उल्ल- वणिविट्ट रा० १२, १३३,६८६,७३२, ७३३,७३७,७५८, ७५६, ७६१,७६५. जी० ३ ११८ उवगरण [ उपकरण ] ओ० ३३. रा० ७५६,७६१ उवगाइज्जसाण [ उपगीयमान ] रा० ६८५,७१०, ८०४ उबगारियालयण [ उपकारिकालयत | रा० १८८. जी० ३।३६१ से ३६४ उब गिज्जमाण [ उपगीयमान | रा० ७७४ उमगूढ [ उपगूढ़ ] रा० ७६, १७३. जी० ३२२८५ उवहिज्जमाण | उपगूह्यमान ] रा० ८०४ उवचय [ उपचय ] २१० ७५२,७५३ उचित [ उपचित] जी० ३।२५६ उवचिय [ उपचित] ओ० २,१६,५५. रा० २०, ३२,३७,१३०,१७४,२८१. जी० ३ ११८ ११६,२८६,२८८,३००, ३११,३७२, ४४७, ५६६ उच्छक [ उपस्तृत ] रा० ७७४ उबजुंजिकण [ उपयुज्य | जी० ३१७७ उवज्झाय [ उपाध्याय ] ओ० ४०, १५५ उवज्झायवेयावच्च | उपाध्यायवैयावृत्य ] ओ० ४१ √ उबट्ठव [ उप + स्थापय् ] - उबटूवेइ. रा० ७२५ ----उववेंति. रा० २७९. जी० ३।४४५ उद्ववेत्ता [ उपस्थाप्य ] ओ० ५८. रा० ६८१ उवट्टाणसाला [उपस्थानशाला ] ओ० १८, २०, ५३, ५५,५८,६२,६३. रा० ६८३,६८५,७०८, ७५४,७५६,७६२,७६४ उद्वाविय | उपस्थापित | ओ० ६२ उवट्ठिय [ उपस्थित | ओ० ७६,७७ उवणगरमगाम [ उपनगर म | ओ० १६, २० उवणच्चिज्जमाण | उपनृत्यमः न ] रा० ७१०,७७४, ८०४ उवणिय [ उपनिर्गत ] ओ० ५,८ / उवणिमंत उप + निमन्त्रय् ] उवणिमंतिज्जाह रा० ७०६ - उवणिमतिस्संति. रा० ७०४—उवाणमंतेज्या रा० ७७६. उवणमंत ओ० १४६. ० ८१० उवणिविट्ठ | उपनिविष्ट | रा० १३८. जी० ३२८८ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवणी-उववण्णपुत्व ५८५ उवयारियालेण [उपकारिकालयन] रा० २०१, २०२ उिवणी उप+नी] ---उवणे इ. रा०६८३ --उवणेति. रा० २८७. जी० ३.४५० --उवणेहि. रा०६८०-उवणेहिइ. रा०८०७ -- उवणेहिति ओ० १४५. रा० ८०५---- उवणेहिति ओ० १४६ उवणीत [उपनीत] जी० ३८५६ उवणीय [उपनीत] रा० ७२०,७२३. जी० ३.५६२,६०१ उवणीयअवगीयचरय उपनीतअपनीतरचरक] ओ० ३४ उवणीयचरय | उपनीतचरक] ओ० ३४ उवणेय [उपनेय ] रा० ७२० उिववंस (उप+दर्शयउवदसिस्सामि. रा. ७७१ -उवदंसेंति. रा० ७९. जी० ३.४४७ ---उवदंसेह. रा० ७३ उदवंसित्तए उपदर्शयितुम् | रा० ६३ उवदंसित्ता [उपदये ] रा० ७३ उववंसेमाण [उपदर्शयत् ] रा० ५६ उवदिट्ठ [उपदिष्ट] ओ० ४६ उवद्दव [उपद्रव ] जी० ३१६२४ उवनच्चिज्जमाण | उपनृत्यमान रा०६८५ उनिमंत [उप + नि- मन्त्रम् --उनिमंतति. रा० ७१३ उवनिविट्ट उपनिविष्ट] रा०२० उपप्पयाण उपप्रदान } रा० ६७५ उवभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिमोग परिमाण ] ओ०७७ उवमा [उपमा ओ०१३,२३,१६५।१६. रा० १५६,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ७६४. जी० ३१२७,२३२ उवमा [दे०] खाद्य-विशेष जी० ३१६०१ उवयार | उपचार ०२,१५,५५. ० १२,३२, ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१०. जी. ३७२, ४४७,४५७ से ४६२,४६५.४७०,४७७,५१६, ५२०,५५४,५८०,५९१,५६७ उवयारियालयण (उपकारिकालयन ] रा० २०३ उपरि उपरि रा० १३०, जी० ३.२६४ उरि [उरि ओ० १२. रा० ३७. जी० ३१७७ उरिचर | उपरिचर जी० ३।११७ उरिम [उपरितन | आ० १६०. जी० ३१७१,७२, ३१७, ३४६,३५७ उवरिमगेविज्ज [उपरितनर वेय | जी० २०६६ उवरिमगेवेज्ज {उपरितनवेय] जी० २.१४८,१४६ उरिमगेवेज्जग | उपरितनगंवेयक ] जी० ३:१०५६ उवरिल्ल [उपरितन] ओ० १६२,१६५. जी० ३।६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से १००७.११११ उवलंभ [उप+लभ--उबलभेज्जा . जी० ३.११८--उक्लभिस्साम. रा० ७६८ उबलख | उपलब्ध] ओ० १२०,१६२. रा०६६८, ७५२,७८६ उवलालिज्जमाण [उपलाल्यमान ] रा० ६८५, ७१०,७७४,८०४ उलिप उप लिम्-उलिप्पइ. ओ० १५०. स०८११-उलिप्पिहिति.ओ० १५०. ८१२ उवलित्त [उपलिप्त आ० ५५,६० से ६२. रा० २५१,८०२. जी. ३१४४७ उवलेवण | उपलेपन] रा० ७७२ उववज्ज [उप+पद् |-उववज्जइ. ओ० ८७ ....-उववज्जति. ओ० ७३. जी०१.५१ --उववज्जिहिति ओ० १४०---उववजिहिसि रा० ७५० उववण (उपपन्न | ओ० ११७. रा० २७६,७५० से ७५३,७६६. जी. ३१५३,११७,१२६५, ४३६,४४०,४४५,८३८।२१,८४३,८४६ उबवण्णग | उपन्तक रा० २७६ से २७८,२८४, २८७,६६६. जी० ३१४४३ से ४४५,८४२, ८४५ उववण्णपुष्व [उपपन्नपूर्व] जी० ३।५३,६७५, Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ ११२८,११३० उबवत्त [ उपपत्तृ] ओ० ७२,८६ से १५, ११४, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ उबवन्नपुब्ध [ उपपन्नपूर्व ] जी० ३।१२७ उबवत [ उपपात ] जी० १।१२८ ३३८८,८४४, ८४७,८५६,८८०, ६४६, १०८२ उववातसभा [ उपपातसभा ] रा० २७४. जी० ३।४३६ उथवाय [ उपपात ] ओ० ८ से ६५, ११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ८१५. जी० १११४,५१,५९,६५.७६, ८२, ८७,६६, १०१,११६,१३३,१३६ ३ १२७/३, १२९/६, १६० उववायसभा [ उपपातसभा ] रा० २६०,२६२, २६६,२७७,४१४ से ४१६, ४३५, ४५३, ४५४, ७६६. जी० ३१४२१,४२४, ४२५, ४४३,५२६ से ५३१ उदविणिग्गय [ उपविनिर्गत ] जी० ३।२७४ उवविस [ उप + विश् ] -- उवविसइ. रा० ७४८ -- उब विसामि रा० ७४७ उवयेत [ उपपेत ] जी० ३।६०१,६०२,८६०,८६६, ८७२,८७८ उववेय [ उपपेत ] मो० १, १५, १४३. रा० ६६,७०, १७३,६७२,६७३, ६७५,८०१. जी० ३ २८५, ५८६ से ५६६ वसंत [ उपशान्त ] ओ० ६१. ० ६, १२,२८१. जी० ३।४४७,७६५, ८४१ उवसंतथा [ उपचान्तता ] ओ० ११६ उवसंपज्जित्ताणं [ उवसंपद्य ] ओ० ३७. रा० ६६६. जी० ३।८४३ उवसग [ उपसर्ग ] ओ० ११७,१५४, १६५, १६६. रा० ७०३, ७६६,८१६ उवसम [ उपशम ] बो० ७६ से ८१ उवसम [ उप + शम् ] - उवसमंति रा० १२ - उवसामंति रा० १२ -उव्वग्ग उवसमिता [ उपशम्य ] रा० १२ उवसामिला [ उपशाम्य ] रा० १२ उबसोभित [ उपशोभित] जी० ३।२६५,३०२, ३४६ उसोभय [ उपशोभित] ओ० ६४. रा० २४,४०, _५१,१२८,१३२,१६५, १७१,२३७. जी० ३३०६, ३५३,३५७,३६० उवसोमेमाण [ उपशोभमान ] रा० ४०,१३२, १३५,१६१,२३६,७८२. जी० ३।२६५,३०२, ३०५,३१३,३६८,५८०, ५८१ rator [ उपशोभित] जी० ३।२७७ उवस्य [ उपाय ] रा० ७१६ उवहाण [ उपधान ] ओ० ३० उहिविसग्ग [ उपधिव्युत्सगं ] ओ० ४४ √ उवागच्छ [ उप + आ + गम् [ – उवागच्छइ. ओ० २०.०० ४७. जी० ३।४५७ - उवागच्छति ओ० ५२. रा० १०. जी० ३।४४२ – उवागच्छति रा० १४. जी० ३।४४३ - - उवागच्छामि रा० ७५४ वागच्छत्ता | उपागम्य ] ओ० २०. रा० १०. जी० ३० ४४२ उवाग [ उपागत ] ओ० १६,२० उवा [ उपाय ] ओ० १५२ उवायण [ उपायन] रा० ७२०, ७२३ V उवालंभ [ उप + आ लम् ] -- ज्वालब्भइ. रा० ७६७ उवाल भिता [ उपलभ्य ] रा० ७६७ उवा सगदसाघर | उपासकदशाधर] ओ० ४५ / उबे [ उप + इ ] – उवेइ ओ० ११५. – उवेंति. ओ० ७४. जी० ३३६०३ उट्टणा [ उद्वर्तन! ] जी० ११६६; ३३१२१,१२७ ५,१५६; ६३१1३ उट्टित्ता [ उद्वर्त्य ] जी० ११५४ उट्टिय [ उद्वृत्त ] जी० ३।११८, ११६,१२१ उवलण [ उद्बलन ] ओ० ६३ उविग्ग [ उद्विग्न ] ओ० ४६. जी० ३।२१६ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उठिबद्ध ऊसास उष्विवृष [ उद्विद्ध ] ओ० १ उध्वेग [ उद्वेग ] जी० ३ ॥ ६२८ उब्वेष [ उद्वेध ] जी० ३१७३६, ७६४,६००,१०१, १०,६११ उब्वेह [उद्वेध] रा० २२७,२३१,२३३,२३६,२४७, २६२. जी० ३३८६, ३६३३६५, ४०१, ४२५, ६३२,६३६, ६४२,६५३,६६१, ६७२, ६७६, ६८३,६८६,७२३, ७२६,७८८, ७१४,७६५, ८३६,८८२,६१५ उसड्ड [उत्सृत] रा० १८० उड्डय उत्सृतक ] रा० १८१ उसत | उत्सक्त ] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१,२६१, २१४,२६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।३७२,४४७,४५६, ४६१, ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६,५२० उसभ [ ऋषभ, वृषभ ] ओ० १३,१६,५१. रा० १७० १८,२०,३२,३७,१२६, १४१,१६२. जी० ३२७७,२८८,३००३११,३१८,३७२,५६३, ५६५ से ५६७ उसभकंठ [ ऋषभकष्ठ ] रा० १५५, २५८. जी० ३।३२८ उसभकंग ऋषभकण्ठक । जी० ३:४१६ उसभज्य [ ऋषभध्वज | रा० १६२. जी० ३।३३५ उसभनाराय [ ऋषभनाराच ] जी० १।११६ उसभमंडलपविभत्ति | ऋप भमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ६१ उसमा [ ऋषभा ] रा० २२५. जी० ३।३८४, ८९६ उसिण [ उष्ण ] जी० ११५: ३१२२, ११२ से ११५, ११६ उसिणभूत [ उष्णीभूत ] जी० ३।११६ उसिभूय | उष्णीभूत ] जी० ३।११६ वेद | उष्णवेदना ] जी० ३।११२,११४, ११८ उसवेवणिज्ज | उष्ण वेदनीय ] जी ३११८ उसिणोदय [ उष्णोदक ] जी० १२६५ ५८७ उसिय [ उत्सृत ] रा० १३२. जी० ३।२०२ उसीर [ उशीर ] रा० ३०. जी० ३।२८३ उसु [ उषु ] रा० ७५६. जी० ३१६३१ उसण [ दे० ] बाहुल्यतः भ० ८७. जी० ३३९६४ उस्सप्पिणी [ उत्सर्पिणी ] जी० १ १३६, १४०; २८८, १२०, ३६०, १६५, ८४१, १०८५ ५८, ६,२३, २६; ६ २३,४०, ६७,२५७ उस्सप्पिय [ उत्सर्पित ] जी० ३।५५६ उस्सविय [ उच्छ्रित ] रा० ७५० से ७५३ उस्सास [ उच्छ्वास ] ओ० १५४, १६५, १६६. To ७७२,८१६. जी० ३।१२८ उस्सासत्त | उच्छ्वासत्व ] जी० ३।१०६६ उस्सिय [ उच्छ्रित ] जी० ३१६६६ उस्य [ उत्सुक ] ओ० ५१ उस्सेष [ उत्सेध ] जी० ३१६७६,७८६,७९५,८१६ उस्तेह [ उत्सेध ] ओ० १३,८२. रा० ६, १२, १३०, २२५.२५४,२७६. जी० ३।३००, ३८४, ४१५, ४४२,७८६,७६४ ऊ ऊण [ऊन ] रा० १८८. जी० २५७,६१,७३३.५, ३४,३६,४१,४३,४४,५६७, ४ । ६ ; ५७, २८; ७३, ५, ६, १०, १२, १५, १७ ६१२ से ४,४०, ५१, १७१,२३४,२३६,२३८,२४३,२६६,२७१, २७३,२७६,२८१ अग [ ऊनक ] जी० (३०,३१,५८ से ६०, १३६; _३१२१८,६२ε ऊणय [ ऊनक ] ओ० ३३. जी० २/३२ से ३४ कणिया [ऊनिका ] ओ० १६५३६ ऊरु [ ऊरु ] ओ० १६. रा० १२,२५४, ७५८, ७५६. जी० ३।११८, ४१५,५६६ से ५६८ ऊरुजाल | ऊरुजाल | जी० ३१५६३ ऊसड | उत्कृत ] जी० ३१२६२ ऊसविय [ उच्छ्रित] मो० ६७ ऊसास [ उच्छ्वास ] ओ० ११७. रा० ७६६. ३११२७३ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८८ ऊसासत्त-एगत्त ४५५ ऊसासत्ता | उच्छ्वासता] जी० ३।६७ एक्केक्क [एकेक] जी० ३१६६७ ऊसित | उच्छित जी० ३१२१८,३०७,३५५,६३४, एक्शेक्कय एकक | जी० ३१८३८।४ ६४२,७५४,७६२,७६८.७७०,७७२.१००८ एक्कोणवीसति | एकोनविंशति ] जी० ३.५७७ ऊसितोदग | उच्छ्रितोदक] जी० ३.७८३,७८४ एक्कोदक [एको दक] जी० ३.७६५ ऊसिय उिच्छित ] अ.० ४६,५५,६४,१६२. एक्कोदगएकोदक | जी० ३७६५ र।० ५०,५२,५६,१३७,१८६,२०४ से २०६, एग एक ओ० १६. २४० ३. जी० ११० २०८,२८१,७७४,७८६. जी०३३५९,३६४, एगडय एकक] ओ० २३.४५,५२.७८.८६.१४०, ३६८ से ३७१,४४७,५९७,५६८,६५३,६७३, १५६,१६५,१६६, रा० १६,१७४,२८१,६८७, ७५४,७६२,७६६ ६८६. जी० १९६,११६, ३१८६,१०४,४४७, ऋग्छज्य [ ऋ क्षध्वज ] र:० १६२. जी० ३३५ एगओ एकतस् ] रा०८४,१७३ एमओखह [एकत:खह] रा० ८४ एइय [एजित] रा० १७३. जी० ३१२८५ एगओचक्कवाल [एकतश्चक्रवाल] रा० ८४ एऊणपण्ण एकोनपञ्चाशत् ] जी० ३।८३२ एगओवंक (एकतोवक्र] रा० ८४ एक [एक ] जी० १.७२ एगंत एकान्त ] ओ० ११७. रा० ६,१२,१५, एकत्त [एकत्व ] जी० ३।११० एकत्तीस एकत्रिंशत् जी० ३.६३४ एगंतवंड एकान्तदण्ड] मो०८४,८५,८७ एकाणउति [एकनव त] जी० ३.८१२ एगंतबाल एकान्तबाल ] ओ० ८४,८५,८७ एकावलि [एकादलि] जी० ३१४५१ एगंतसुत्त एकान्तसुप्त] ०८४,८५,८७ एकासीइ [एकाशीति] जी० ३१७०६ एगखुर | क त्रुर] जी० १११०३,१२१:२१६ एकासोति [एकःशःति | जी० ३ ७६४ एगगुण एक गुण जी० ११३५,३७,४० एकाह [एकाह) जी० ३ १७६,१७८,१८०,१८२ एगाग | एक रा० १५ एकूणवीसतिकोनविंशति । जी० ३.५७७ एगच्च एकाचं] ओ० ७२,१६७ एकोवग |एकोदक) जी० ३७९५ एगच्चाओ एकस्मात् ] ओ० १६१ एक्क [एक] ओ० ३. रा०४. जी. २।४८ एगजायजातओ० २७. रा ८१३ एक्कतीस |एकत्रिंशत् ] ओ० ३३. रा०२०७. एगजीव । एकजीव | जी० ११७२ जी० ३६१ एगजोविय एकजीविक] जी. ११७२ एक्कवीस [एकविंशति ] जी० ३१७३६ एगट्ट । एष्टि ] जी० ३१७६८ एक्कार एकादशन् ] जी० ३ १००२ एगट्टिय एकास्थिक जी० १७०,७१ एक्कारस एकादशन्। रा० १७३. जी० ३१२८५ एगतिय कक] रा० १७४,१८५,२८१,२८६, एक्कारसम [एकादश] ओ० १४४. रा०८०२ २६०,६८,६५६. जी० ११३३, ३.८६, एक्कारसमासपरियाय [एकादशमासपर्याय) १०८,१५६,१७८.१८०,१८२,२८६,२६७, ओ०२३ ४४७,५७५,५७६,७१९,७२०,८०६,८०७, एक्कासीत [एकाशीति ] जी० ३१६३२ ८५७,१०८० एक्कासीय [एकाशीति ] जी० ३.२२६।४ एगतो [एकतस् ] रा० २७६. जी० ३।२८५,४४५ एक्किक्किय [एकैकक] 1० ८२ एगत्त एकत्व | जी० ३.११०,१११५,१११६ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एतविक एव reefores [ एकत्रवितर्क ] ओ० ४३ गाहा [ एकत्वानुप्रेक्षा ] ओ० ४३ एगत्तिभावकरण [ एकत्वीभावकरण | ओ० ६६,७० एमसीभावकरण | एकली भावकरण | रा० ७७८ एगदंत | एकदन्त | जी० ३१५६६ एग दिसा [ए [दिशा]] रा० ६०० एगपदेसिय | एकप्रादेशिक] जी० ३१७२३,७२६ एगभूय | एक भूत् । ० ११६ एगमेग [ एकैक | रा० १२६,१६२ से १६४,१६१. जी० ३३१०६,२६५, ३५४, ३५५,६३२, ६६१, ७२३,७२६,१०१, १०००, १०२३ गराइया [ एकरात्रिकी ] ओ० २४ एगसद्धि [ एकuft ] जो० ३।११० एकसाडिय [ एकसाटिक | अ० २१,५४,६६. रा० ८,७१४,७७८ एगसालग | एकश लक ] जी० ३१५६४ एगसिद्ध | एक सिद्ध | जी० ११८ गागार | एकाकार ] जी० १११०६,११६; ३८ से ११,२१३,६५४ free [ काfभख | रा० ६८८ गावलि [ एकावलि ] यो० २४,१०८,१३१. रा० ६६,२८५. जी० ३।५६३ गावपिभित्ति [ एकाननिप्रविभक्ति | रा० ८५ एगाets | एकाशीति | जी० ३७०६ एगाह | एमट | जी० ३३२६,११८,११६ एगाहच्च [ एकाहत्य | रा० ७५१,७६७ गाहिय | एकाहिक | जी० ३३६२८ एगिदिय । एकेन्द्रिय ) जी० १५५ २११०१, १०२, ११०,१११,१२०,१२६,१३६,१३५,१४६, १४६, ३।१३० से १३५,१११५; ४१ से ३, ५, से ७,१०,११,१६,१६ से २२,२५; ६२ से ७, १६७,१६६,२२१,२२२,२२८,२३१ एगुणयाल | एकोनचत्वारिंशत् ] जी० ३२७६४ एगुणपण | एकोनपचाशत् । रा० ७१. जी० ११८ एगुणवीस | एकोनविंशति ] जी० ३।१०५३ एगुणासीति | एकोनाशीति | जी० ३॥२१८ गुरुsar [ एकोरुकिका ] जी० २०१२ गुरु [ एक ] जी० ३।२१६ से २२२,२२७ enerator [ एकterद्वीप ! जी० ३।२२२, २२७ एगोचालीस | एकोनचत्वा शत् | जी० ३१७६६ एगोणवीस | एकोनविंशति ] जी० ३११०५३ एगो [एकोदक ] जी० ३३७६५ rator [ एकोरुक | जी० ३ २१६,२१७,२२६ एगterata | storद्वीव ] जी० ३२१७,२१८ एज्जमाण | एजमान ] रा० ४०,१२३,१३२. जी० ३।२६५ √ एड [इल्.एड् ] ---एडेइ. रा० ७६५ – एडेंति. रा० १२- एडेड. रा० ६ एडिता [ एलित्वा एडित्वा ] ओ० ११७. रा० १२ एडा [ एलिया, एडित्वा ] रा० ६ एणी (एणी] आं० १६. जी० ३२५६६ एतारूव । एतद्रूप ] जी० ३२७८ से २८२,२८४, २८५, ३८७,४४२, ८६०, ८६६,८७२,८७६ एतो [ इतस् ! ओ० ३३ १० २६. जी० ३८४ एत्थ [अत्र ] ओ० १३. रा० ३. जी० ३।७७ एमहज्जुई | इयन्महद्युतिक | ० ६६६ महज्जुतीय यन्महृतिक ] जी० ३३५६५ एमहब्बल | इयन्महाबल | रा० ६६६. जी० ३१५६५ एमहाणुभाग | बन्नानुभाग | रा० ६६६. जी० ३।५६५,६४ ५८१ एमहायस (महापशस् ] रा० ६६६. जी० ३।५६५ एमहालत उन्मत् | जी० ३३८६, १७६,१७८ एमहालय | उदन्महत्] ० ७३२,७३७. जी० ३११५२,१०८० एमहासोक्खन्दास | रा० ६६६. जी० ३।५६५ महिडिय [महधिक | जी० ३।६३८ एमfest | कि० ६६६. जी० ३१५६५, ५६८,७०१,७६४ एमेव [ एवमेव ] जी० ३।२२६ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एम्महिड्डीय [इयन्महधिक] जी० ३।६६४ एय [एतत् ] ओ० २१. रा०६३. जी. १११ एय [ए]--एयइ. रा० ७७१-एयंति. जी० ३७२६ एयंत एजमान] रा० ७७१ एयरव एतद्रूप] रा०६३,६५ एवारूव एतद्रूप] ओ० ३०,६२,१४४,१५८, १५६. रा० ६,१९,२०,२५ से ३१,३७,४५, १३५,१४६,१७३,१७५,१६०,२२८,२४५, २५४,२७०,२७५,२७६,६८८,७३२,७३७, ७३८,७४६,७५१,७६८,७७७,७६१,७६३, ८१६. जी० ३१८४,८५,११८,२६४,२७८ से २८३,२८५,२८७,३०५,३११,३२२,४०७, ४१५,४३५,४४१,५६७,६०१,६०२,६४३,६५४ एरणवत [ऐरण्यवत] जी० २।१४५ एरण्णवय [ऐरण्यवत] रा० २७६. जी० २६१३, ३१,५८,७०,७२ एरवत [ऐरवत] जी० रा६६,१३६,१४७,१४६ एरवय [ऐरवत] रा० २७६. जी० २०१४,२८, ५५,७०,७२,११५,१२३; ३१२२६,४४५,७६५ एरावणदह [ऐरावणद्रह] जी० ३१६६७ एरिस [ई दृश] ओ० ७६ से ८१ एरिसग [ईदृशक] जी० ३।१०६ एल [एड] जी० ३।६१८ एला [एला] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२८३,३३४,४१६ एलिगा | एडिका जी० ३१६१६ एलुय [एलुक] रा० १३०. जी०३१३०० एव [एव] रा० १० एवइय [एतावत् ] जी० ३११८२,८३८।२,३ एवं | एवम् | ओ० २०. रा०८. जी० ११० एवंभूत | एवंभूत ! जी० ३।२८५ एवतिय (एतावत् ] जी० ३१७६,१७८,१८०, १७२,६७३ एवमेव [एवमेव रा० ७०३. जी० ३.१७४ एम्महिड्डीय-ओमित्ता एवामेव [एवमेव] ओ० १५०. रा० १२. जी० ३.११८ एसणासमिय [एषणासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ एसणिज्ज एषणीय] ओ० ३७,१२०,१६२. रा०६६८,७५२,७७६,७८६ एसुहुम [ इयत्सूक्ष्म ] जी० ३।६९३,९९७ ओ ओइम [अवतीर्ण] ओ० ५१ ओगाढ [अवगाढ] रा० ६८४,६८५,७००,७०६. जी०१३३, ४२,४३,५०, ३१२२ योगाह [अव+गाह.]--ओगाहइ. जी० ३।११८-ओगाहति. जी. ३११९ –ओगाहेंति. ओ० ११७ मोगाहणा [अवगाहना] ओ० १९५४ से ८. रा०७६६. जी० १११४,१६,७४,८६,८८, ९०,६४,१०३,१११,११२,११६,११६,१२१, १२३ से १२५,१३०,१३५, ३३९१,२३६, ४३९,६६९,१०८७,१०८६ ओगाहित्तए [अवगाहितुम् ] ओ० ६६ मोगाहित्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. जी० ३७७ ओगाहेत्ता [अवगाह्य ] ओ० ११७. रा० २४० ओपिहित्ता [अवगृह्य ] ओ० २१. रा. ८ ओग्गह | अवग्रह] ओ० २१,२२,५२. रा०८,६, ६८६,६८७६८६,७०६,७११,७१३ ओरिगह [अव+ग्रह.]--ओरिगण्हइ. रा०६८६ ओघ [ओघ] रा० १३,१४ ओचूल [अवचूल ] ओ० ५७ ओच्छण्ण [अवच्छन्न ] ओ०६ ओच्छन्न [अवच्छन्न ओ० ६. जी० ३१२७५ ओ? [ओष्ठ] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी० ३१४१५,५६६,५९७,८६० ओछिपणग [ओष्ठछिन्नक] ओ०१० ओणम [अव+ नम्] -ओणमंति. रा० ७५ ओमित्ता [अवनम्य] रा० ७५ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओणय-ओहस्सर ५६) ओवइय [दे०] जी० ११८८ ओवणिहिय औपनिधिक, औपनिहितिक] ओ० ३४ ओवम्म औपम्य ] ओ० १९५:१७. जी० ३.१२७१५ (ओवय [अव+पत्} —ओवयंति. रा० २८३. ___ जी० ३१४४७ ओवयमाण [अवपतत् ] रा० ५६ ओवहिय [ औपधिक ] ओ० १६१,१६३ ओवासंतर अवकाशान्तर] जी० ३.१३,१६,२१, २६,२७,३०,३२,६५,६७,१७६,१७८,१८०, १८२,१०६२ से १०६४ मोविय दे०] परिमित ओ० ६३. रा० १७, १८,६९,७०. जी० ३२५६३ मिओवील अव+पोड्]- ओवीलेति. जी० ३१७६५ ओस [दे० अवश्याय} जी० ११६५ ओसष्णकारण [अवसन्नकारण] जी० श५०,६५, ओणय अवनत] ओ० ७० ओत्यय [अवस्तृक] ओ० ६३,६५ ओदन [ओदन] जी० ३।५६२ ओषार [अव+धारय]--ओधारेंति. रा० ७१३ 'ओभास [अव+भास्]--ओभास इ. जी० ३१३२७-ओभासेइ. रा० ७७२। --ओभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ ---ओभासेति. रा० १५४.जी. ३७४१ ओभासमाण [अबभासमाण] जी० ३१२५६ ओभिज्जमाण [उद्भिद्यमान] रा० ३० ओमत्त [अवमत्व[ रा० ७६२,७६३ ओमुय [अव+मुच्]-ओमुयइ. ओ० २१. रा० ७१४ ओमुइत्ता [अवमुच्य] ओ० २१ मोमोदरिया [अवमोदरिका] ओ० ३३ ओमोयरिया [अवमोदरिका] ओ० ३१ ओयंसि [ओजस्विन् ] ओ० २५. रा०६८६ मओयविय (दे०] ओ० १६,४७. रा० ३७,२४५. जी० ३१३११,४०७,५६६ ओराल [दे० उदार] ओ० ५२. रा० ३०,१३२, १३५,१७३, २३६,६८६. जी० ११७५,८३, १३६, ३१२६५,२८३,२८५,३०२,३०५, ७२६,७८५,७५६,८४१ ओरालिय औदारिक] ओ० १८२. जी० श१५, ५६,६४,७४,७६,८२,८५,१०१,११६,१२८, १३० ओरालियमोसासरीर [औदारिकमिश्रकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीर औदारिकशरीर] ओ० १७६ ओरालियसरीरि [औदारिकशरीरिन् । जी० ६।१७०,१७१,१७६,१८१ ओरोह अवरोध ] ओ०१ ओलंबियग [अवलम्बितक] ओ०६० ओलित [दे० उपलिप्त] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ ओसणग [अवसन्नक] ओ०६० ओसण्णदोस [उत्सन्नदोष ओ० ४३ ओसप्पिणी [अवसर्पिणी] जी० ११३६,१४०; २।१२०, ३१६०,१६५,८४१,१०८५; शम, ६.२३,२६, ६२३,४०,६७,२५७ ओसर अप+स] -- ओसरति. रा० २६२. जी० ३।४५७ ओसरिता अपसृत्य रा० २६२. जी० ३.४५७ ओसह [ओषध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७५६ ओसहि ओषधि ] रा० १५२,२७६,२८०. जी० ११६९; ३।३२५,४४५,४४६,४४८ ओसारिय | अवसारित) ओ० ५७। ओहबल [ओघबल] ओ०७१. रा०६१ ओहय | उपहत, अवहत ] ओ० १४. रा०६७१, ओहस्सर [ओघस्वर] रा० १३५. जी० ३३०५, ५९८ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ ओहाडणी-कंदणया क ओहाडणी [दे० अवघाटनी] रा० १३०,१६०. कंचणमय [काञ्चनमय] जी० ३१६६१ जी० ३।२६४,३०० कंचणिया [काञ्चनिका ओ० ११७ ओहि [अवधि ] जी० ३११०३, ११११ कंचि [ किञ्चित् ] ओ० ११६,११७. रा० ७६५ ओहि --ओह ओघ] रा० ६,१२ कंची [काञ्ची] जी० ३।५६३ ओहिणाण [अवधिज्ञान ] ओ० ४०. रा० ७३६, कंचुद्द | कञ्चुकिन् ] रा०६८८ से ६६०,८०४ ७४३,७४६ कंचुइज्ज | कञ्चुकीय ] आ० ७० ओहिणाणलखि [अवधिज्ञानलब्धि | ओ० ११६ कंचय | कञ्चुक ! १० ६६,७० ओहिणाणविनय | अवधिज्ञानविनय] ओ०४० कंटक कटक ] जी० ३१६६२ ओहिणाणि [अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. कंटय कण्टक ] ओ०१४. रा०६७१. जी० जी० ११११६,१३३; ६।१६१,१६५,१६६, ३.८५,६२२ १६७,१९६,२०४,२०८ कंठ कण्ठ | ओ०७१. रा०६१,६६,७६ ओहिदंसणि [अवधिदर्शनिन् ] जी० २२६, ८६; कंठमुरवि | दे० कण्ठमुरवी ] ओ० १०८,१३१. ६।१३१,१३४,१३८,१४० रा० २८५ ओहिनाणि | अवधिज्ञानिन्] जी० ११६६; ६।१५६ कंठसुत्त [कगटसूत्र ] जी० ३.५६३ ओहिय [औधिक ] जी० २।५१; ५।२४,२६.३० कंठेगुण [कण्ठेगुण] रा० १३१,१४७,१४८,२८०. ओहीनाण अवधिज्ञान ! जी० ३३११११ जी० ३१३०१,४४६ कठेमालकड [कृतकण्ठेमाल] ओ० ५२. रा० ६८७ से ६८६ क [क] रा० ६५ कंड काण्ड] रा० ६६४. जी० ३१६,७,६,१०,१६, कह [कति] ओ० १७३. रा० ७६६,७७६. १७,२४,२५,६० से ६३,५६२ जी० ०१५,२१ से २३,२६,२७,६४; ३७६, कंडग | काण्डक] रा० ७५८,७५६ १६६ से १७१,७४८,८०६ कंडय [काण्डक] रा० ७५८,७५६ कइसमइय | कतिसामयिक] ओ० १७४ कंडु [कण्ड ओ०६६ कओ | कुतस् जी० ११५१, ३११५५,१०८२ कंडु [कन्दु] जी० ३१७८ कंक [क] जी. ३३५६८ कंत [कान्त ओ० १५,४६.६८,११७ १४३. कंकड |ङ्कट ओ० ६४. रा० १७३,६८१. रा० १७,१८,६७२,६७३,७५० से ७५३, जी० ३२२८५ ७७४,७६६,८०१. जी. १११३५, ३१५९७, किंख काङ्क्ष ) --कखइ. रा० ७१३.- कखंति. ८७२,१०६०,१०६६ ओ० २०.रा० ७१३ कंततराय [कान्ततरक] रा०२५ से ३१,४५. कंखिय काक्षित रा० ७७४ जी० ३१२७८ से २८४,६०१ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२,१५६, कंतारभत्त कान्तारभक्त | ओ० १३४ २६२. जी० ३.३३२,३७२,४५७,४८७,५८६, कतारभयग | कान्तारभृतक) ओ० ६० ५६३,५६७ कति कान्ति ! ओ० २३,६६.७१. रा०६१ कंचणकोसी । काञ्चनकोशी] ओ० ६४ कंद कन्द ओ०६४,१३५. रा०२२८. कंचणग कान्चनक] जी० ३१६६१,६६२,६६४, जी० ११७१, ३४३८७,६४३,६७२ कंबणया [क्रन्दन ओ० ४३ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंदप्प-कडुच्छ्य कंदप्प [कन्दर्भ ] ओ० ४६ ३।११८,११६,२८६,९६५ कंचप्पिय [कान्दपिक] ओ० ६४,६५ कच्छभी [कच्छपी रा०७७. जी. ३.५८८ कंदमंत [कन्दवत् ] ओ०५,८,१०. जी. ३१२७४, कच्छ [कच्छू] जी० ३।६२८ ३८६,५८१ किज्ज [क]--कज्जति. ओ० १६१ कंदरा [ कन्दरा रा०८०४ कज्ज [कार्य ] रा० ६७५. जी० ३१२३६,१११५ कंदाहार [ कन्दाहार] ओ ०६४ । कज्जल किज्जल | ओ० १६. रा०२५. कविय [क्रन्दित ओ० ४६,४६ जी० ३।२७८,५६५,५९६ कंधुसोल्लिय [ कन्दुपक्व] ओ०६४ कज्जलंगी किज्जलाङ्गी| ओ०१३ कपिय [कम्पित ] ० १७३. जी० ३१२८५ कज्जलप्पभा कज्जलप्रभा] जी० ३१६८७ कपिल्लपुर | काम्पित्यपुर] ओ० ११५,११८ कज्जोउ कार्यहेतु ओ० ४० कंपेमाण [कम्पमान ] ओ० ५२ कटु [कृत्वा ] ओ० २०. रा० ८. जी० ३८६ कंबल [कम्बल ] ओ० १२०,१६२. रा० २७, कट्ट [काष्ठ] रा० ६,१२,७६५ ६९८,७५२,७५२,७८६. जी० ३।२८.५६५ कट्ठसेज्जा [काष्ठशय्या] ओ० १५४,१६५,१६६ कंबिया [कम्बिका रा० २७०. जी० ३१४३५ कट्टसोल्लिय [काष्टपक्व ] ओ०६४ कं [कम्बु] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ कड [कृत] ओ०७४१६ रा० १८५,१८७,८१५ जी० ३१२१७,२६७,२६८,३५८ कंबोय [कम्बोज] रा० ७२०,७२३ कंस कांस्य] जी० ३।६०८ कडंब [कडम्ब] रा० ७७ कंसताल [कांस्यताल] रा० ७७. जी० ३१५८८ कडक्ल [कटाक्ष रा० १३३. जी० ३।३०३ कडग [कटक] ओ २१,४७,५४,६३,७२. रा०८, कंसपाई [कांस्यपात्री] ओ० २७ रा० ८१३ ६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१४५१,५६३ कंसलोह पाय] | कांस्यलोहपात्र] ओ० १०५, १२८ कडगच्छेज्ज [कटकच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ कंसलोह [ बंधण] [कांस्यलोहबन्धन] ओ० १०६, कडच्छाय किटच्छाय] ओ०४, रा० १७०,७०३. १२६ जी० ३।२७३ कडच्छुय [दे०] रा० ७५३ कारखकारगकारघकारङ्कारपविभत्ति [ककारख कडय [कटक ] ओ० १०८,१३१. रा० ८. कारगकारघकारङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ जी० ३।४५७ ककारपविभत्ति [ककारप्रविभक्ति] रा० ६५ कडाह [कटाह] जी० ३१७८ कक्करी [कर्करी] जी० ३१५८७ कडि [कटि] ओ० १६,६४. जी० ३१५६६ कक्कस [कर्कश] रा० ७६५. जी० ३.११० कडिय कटित ओ०४. रा० १७०,७०३. कक्कोड [कर्कोट ] जी० ३१७५० जी० ३।२७३ कक्कोडग कर्कोटक ] ३१७५० कडिसुत्त [कटिसूत्र] ओ० ५२,६३ १०८,१३१. कक्कोडय [कर्कोटक] जी० ३१७४८ से ७५० रा० ६८७,६८६ कक्ख [कक्ष] ओ० ६२ जी० ३१५६७ कठिसुत्ताग [ कटिसूत्रक] रा० २८५ कक्खर [कक्खट] जी० ११५.३६,४०,५०, ३३२२ फडिसुत्तय [कटिसूत्रक] रा०६८८ कच्छ [* क्ष] ओ० ५७. जी० ३ ६३७ कडच्छुग दे०] जी० ३६०८ कच्छभ [कच्छप ] रा० १७४. जी० १६६,११८; कडच्छ्य [दे०] रा० २५८,२७६,२८१,२६०, Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ कडुय-कतिविध ६७६ २६२. जी० ३।४१६,४४५,४४७,४५६,४५७, कागवेहण [कर्णवेधन ] रा०८०३ कणिका [कणिका] जी० ३।३३२ कडुय [कटक] ओ० ४०. रा० ७६५. जी० ११५; कणिया [कणिका] ओ० १७०. रा० १५६. ३१२२,११०,७२१,८६०,६५५ जी० ३।६४३ से ६४५,६५४ से ६५६ कड्डिजमाण [कृष्यमान ] रा०५६ कणियार [कणिकार] जी० ३१८७२ कठिण [कठिन ] ओ० ४६,६४ कण्ह [कृष्ण ] ओ०६६. जी० ३।२७८,३४८ कढिय क्वथित] जी० ३१५६२,६०१ कण्हकंद [कृष्णकन्द] जी० २७३ कणइर कणवीर] जी० ३३५६७ कण्हकेसर कृष्णकेसर जी० ३१२७८ कणइरगुम्म [कणवीरगुल्म ] जी० ३।५८० कण्हपरिवाया [कृष्णपरिव्राजक] ओ०६६ कणग [कनक] ओ० १९,२३,५०,६३,६४,८२. कण्हबंधुजीव [कृष्णबन्धुजीव] जी० ३।२७८ रा० २८,३२,६६,७०,१२६,१३०,१३७,१७३, कण्हमत्तिया [कृष्णमृत्तिका] जी० ११५८ २१०,२१२,२८५,६८१,६६५. जो० ३१२८१, कण्हराई कृष्णराजी, कृष्णराज्ञी जी० ३११९ २८५,३००,३०७,३५४,३७२,३७३,४५१, कण्हलेस [कृष्णले श्य] जी० ६।१८६,१६३ ५८६,५६३,५६६,५६७.६४७,७४७,८६६, कण्हलेसा [कृष्णलेश्या] जी० २१३३; ३।१५० ८८५,९३६ . कम्हलेस्स [कृष्णले श्य] जी० ६.१८५,१६६ कणगजाल [कनकजाल] रा० १६१. जी० ३।२६५ कण्हलेस्सा [कृष्णलेश्या] जी० १२१ कणगजालग [कनकजालक] जी० ३।५६३ कण्हसप्प [कृष्णसर्प] जी० ॥२७८ कणगत्तयरत्ताभ [कनकत्वग्रक्ताभ] कण्हासोय [कृष्णाशोक] जी० ३।२७८ जी० ३.१०६३ कत [कृत] जी० ३१५६१ कणगप्पम [कनकप्रभ] जी० ३१८६६ कसमाल [कृतमाल] जी० ३१५८२ कणगमय [कनकमय] जी० ३४१५,६४३,६४४, कतर [कतर] जी० २०६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।११३८, २५२, कणगामय [ कनकमय] रा० २५४. जी. ३।३५२, ५६, ७२०, ६।२५३,२८६ से २६१,२६३ ४१५,६३२,६४३,६५४,६५५,७३६ कति कति रा० ७६७. जी० १३१६,२०,५६, कणगावलि [कनकावलि] ओ० २४,१०८,१३१. ५६,६२,७४,७६,८२,८५, ६०,६३,१०१,११६, जी० ३४५१ १२८,१३०,१३४; ३१७७,६८,१०८,१५०, कणगावलिपविभत्ति [कनकावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ १५७,१६०,१६५,१६७,१७२ से १७४,२३५ कणिया {क्वणिता] जी० ३१५८८ से २३७,२४१,२४२,२४५,२४६,२४६,२५४, कण्ण [कर्ण] रा० १५,४०,१३२,१३५,१७३. २५५,२५८,२६६.७०३,७०७,७२२,७३३ से जी० ३।२६५,२८५,३०५ ७३५,७४६,७६६,८०६,८१३,८२०,२४, कण्णछिण्णग [कर्णछिन्नक] ओ०६० ८३७,८५१,८५५,६६३ से ६६६,१०१५, कण्णपाउरण [कर्णप्रावरण] जी० ३।२१६ १०१७,१०२३.१०२६,१०४०,१०४१,१०४४, कग्णपोट [कर्णपीठ] ओ० ४७,७२ १०७५,११०१,१११२ कण्णपूर [कर्णपूर] ओ० ५७,१०६,१३२ कतिक्त्तो [कतिकृत्वस्] जी० ३१७३० कण्णवाली [कर्णवाली] जी० ३१५६३ कतिविष कतिविध] जी० ३१६ से ११,३७,३८, कग्णवेयणा [कर्णवेदना] जी० ३१६२८ १४७,१६१.१८५, ६३१, ५१३७ ८६६ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतिविह-कम्मभूमिया कतिविह [कतिविध ] जी० ३।१८३,६७६,६७७; ५३८,३६,५३ से ५५ कती [ कुतस् ] जी० ३१८८ कत्तिया [ कृत्तिका ] जी० ३१६३७ कस्थ [ कुत्र ] ओ० १६५३१ कत्य [ कथ्य ] रा० १७३. जी० ३१२८५ कत्थद्द [ कुत्रचित् ] ओ० २८ कस्थल गुम्म [ कस्तुलगुल्म ] जी० ३।५८० कब [ कदम्ब ] जी० ३३५८३ कद्दम [ कर्दम ] जी० ३।७५१ कमय [ कर्दमक ] जी० ३१७४८ मोदय [कर्दमोदक ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ कपिहसिय [ कपिहसित ] जी० ३१८४१ रूप्प [कल्प ] ओ० २६, ६५, ९५, १७, ११४, ११७, १४०, १५५, १५७ से १५६, १६२, १६०. रा० ७, १२,५६,१२४,२७६,७६६. जी० २।१६,४६,६६, १४८, १४९, ३ /७७५, ८४२,८४५,६३७, १०३६, १०५७ से १०५६, १०६२,१०६५, १०६७, १०७१, १०७३, १०७७ से १०८३, १०८५ से १०८७, १०६०, १०६१, १०६३, १०६७ से १०६६,११०१,११०५, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११५, १११७,१११६, ११२१, ११२२, ११२४, ११२८ / कप्प [ कृप् ] – कप्पड़. ओ० ६६. कप्पंति. ओ० ६३. - कप्पेज्जा. रा० ७७६ neer [ कल्पना ] ओ० ५७ कप्परक्त [कल्परूक्ष ] मो० ६३ कखग [ कल्परूक्षक ] १०२८५ कप्परुक्लय [कल्परूक्षक ] रा० ३।४५१ कप्पिय [ कल्पित ] ओ० ५२,६२,६३. रा० ६८७ से ६८६ कप्पूर [ कर्पूर] रा० ३०. जी० ३१२८३ कप्पैमाण [कल्पमान] ओ० ६१ से ६३, १६१,१६३. रा० ६७१,७५२ पू६५ कप्पोवन [कल्पोपग] ओ० ७२ कम् [कट ] ओ० ६८,८९ से ६३,६५,६६, १५५,१५८ से १६१, १६३, १६५. रा० ६६७ कम [ क्रम ] जी० ३।७७८,८३८:१४ कमंडलु [ कमण्डलु ] जी० ३।५६७ कमल [कमल] ओ० २१,२२,५४. रा० ८,१३१, १४७, १४८, १७४,२८०,७१४, ७२३, ७७७,७७८, ७८८. जी० ३।११८, ११६,२८६,३२१,४४६, ४४८,५६७ कमलागर [ कमलाकर ] ओ० २२. रा० ७७७, ७७८,७८८ कम्म [कर्मन् ] ओ० २६, ४६, ७१ से ७४१५,७६ से ८१, ८६, ११६, १५६, १६७,१७१,१०२, १८४, १६५।२० रा० १८५, १८७,७५०, ७५१,७७१, ७७२. जो० २.७३,६७,१३६; ३११२६८६, २१७,२७,२८ कम्मत [ दे० कर्मान्त ] मो० १६१,१६३ कम्मंस [ कमश ] मो० १७१,१५२ कम्मकर [ कर्मकर ] ओ० ६४ कम्म [कर्मक] जी० ६ १७९ कम्मगसरीर [कर्मकशरीर ] ओ० १७६ कम्मगसरीर [कर्मकशरीरिन् ] जी० ६।१७०,१७४ कम्मठिति [ कर्मस्थिति ] जी० २।१३,६७,१३६ कम्मणिसेग [ कर्मनिषेक ] जी० २।१३६ कम्मणिसेय [ कर्मनिषेक ] जी० २२७३,९७ कम्मपि [ कर्मप्रकृति ] ओ० १६८ कम्मभूमक [ कर्मभूमक ] जी० २२८६,१३२ कम्मभूमग [ कर्मभूमक ] जी० १११५६, २०१४, २८, २६,७७,८५,६६, १०६,११५,१२३, १३८, १४७, १४६; ३.२१२,२२६,८३६ कम्मभूमय [ कर्मभूम ] जी० २ २७ भूमि [कर्मभूमि ] जी० २।१३७ कम्मभूमिग [ कर्मभूमिज ] जी० २३७०,७२,१३८, १४७, १४६ कम्मभूमिय [ कर्मभूमिज ] जी० १११०१ कम्मभूमिया [ कर्मभूमिजा ] जी० २१११,१४,५५, Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ ७०, ७२, १४७, १४६ कम्मय [ कर्मक] जी० १११५, ५६, ६४, ७४, ७६, ८, २ ५,६३,१०१,११६,१२८, १३०,१३५ कम्मया [ कर्मजा ] रा० ६७५ कम्मविस्सा | कर्म] ओ० ४४ कम्मसरीर [कर्मशरीर] ओर १७६. जी० ३।१२६६ कम्मसरीरि [ कर्मशरीरिन् ] जी० ६।१८१ कम्मार [ दे० | जी० ३ ११८,११६ कम्मारय | दे० ] जी० ३३६१० कम्हा [ कस्मात् ] ओ० १७१. रा० ७०३. जी० ३।७२३ कय [कृत ] ओ० २,२०,५२, ५३, ५७,६२,६३,७०, ६२. १० १५,१३१, १४७, १४८५, २८०, ६८३, ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०,७१६, ७२३,७२६,७५१,७५३, ७६५, ७७४,७६४, ८०२,८०५. जी० ३१३०१,४४६ कय [ कच ] ओळ ६३. रा० १२,२६१,२६३ से २६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३३४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४ कब [ कदम्ब ] जी० ३३३८८ कयपडिकिरिया | कृतप्रतिक्रिया ] ओ० ४० कयर [ कतर ] ओ० १८५ से १८० रा० ६६७. जी ० १ १४३, ३ | १००७, १०२०,१०२१, १०३७४११६,२२,२५,५१६,२०,२६, २७, ३२ से ३६,६०; ७/२२, २३, ६७, १४,५५, २५० से २५२,२५५, २६२ कलिधरग [ कदलीगृह ] रा० १८२,१८३. जी० ३।२६४ कली [कदली ] जी० ३।५६७ कयवर | कचवर ] जी० ३१६२२ कया [ कदr] जी० ३२७२ sars [ कदाचित् ] ओ० ११६. ० ६८०. जी० ३१५६ कयाई [ कदाचित् ] रा० ७५४ कम्मय-करयल कथाति [ कदाचित् ] रा० २०० काrि [ कदापि कदाचित् ] जी० ३।७०२ कर | कर ] ओ० १५. जी० ३१५८६, ५६७ / कर [ कृ] - करावेति रा० ७७४- करिस्सइ रा० ७७१- करिस्सति रा० ८०३ करिस्सामि रा० ७८७. करिस्सामो ओ० ५२. रा० ६८७. - करेइ. ओ० २१. रा० ५६. जी० ३।४६१. - करेंति. ओ० ४७. रा० १०. जी० ११२७ करेज्ज. जी० ३१६६७. करेज्जा. ओ० १८०, ग० १२. करेति. रा० ८. जी० ३।४४३. करेमि रा० ७६४. करेस्संति.रा० ८०२. करेह. रा० ६ - करेहि. ओ० ५५. ० ६६५. - करेहिति. ओ० १४४. -- करेहिति ओ० १५४. रा० ८१६. कारवेति रा० १२. कारवेह. रा० ६. कारवेहि ओ० ५५. काहिति ओ० १४४. - कीर. ओ० १५४. रा० ७६७ करंड [करण्डक ] ओ० ११७. रा० ७६६ करकंट | करकण्ट | ओ० ६६ करग [करक ] जी० ३१५८७ करड [वरट ] रा० ७७ करडी [करटी ] जी० ३।५८८ करण | करण ] ओ० १६, २५.४६, ६३, १४४, १४५, १६१, १६३. २० ७६, १७३,६८६,८०२,८०३, ८०५. जी० ३२८५,५६६,८५४ करणओ [करणतस् ] ओ० १४५. रा० ८०६,८०७ करणया | करणता ] ओ० १७१ करणिज्ज | करणीय] रा० ११,५६,२७५,२७६. जी० ३।४४१, ४४२ करतल [ करतल ] रा० २४. जी० ३।२७७, ४४५, ४४६,४४८, ४५८ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२०,५५४, ५५५ करभरवित्ति [करभरवृत्ति ] रा० ६७१,७०३, ७१८, ७५०, ७५१ कर [ करक ] जी० १६५ करयल [ करतल] ओ० १५, २०, २१, ५३, ५४,५६, Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करवत-कवल ६२,११७. रा० ८, १०, १२, १४,१८,४६,७२ ७४, ११८,२७६, २७६,२८०,२८२,२६१ से २६६,३००, ३०५, ३१२, ३५५,६५५,६७२, ६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३,७६५,७७०,७७१,७६६. जी० ३१४४२ ૪૫૭ करवत [ करपत्र ] जी० ३१११० करिए [कर्तुम् ] ओ० १०३ करि [कृत्वा ] रा० २९२. जी० ३।४५७ करेत्ता [ कृत्वा ] ओ० २१. स० ६. जी० ३१४४३ करेमाण [ कुर्वाण ] ओ० ५२,६४,६४, ११६, १५६. रा० ६८७,६८५. जी० ३१४४३, ४४५, ८४२, २४५,६१७: करोडिया [करोटिका ] ओ० ११७ करोडी [करोटी ] जी० ३१५८७ कलंक [ कलङ्क ] जी० ३५६८ कलंकीभाव [ कलङ्कुलीभाव ] ओ० १६५ nia [ कदम्ब ] भो० ६,१० कलंबचीरियापत्त : [ कदम्बचीरिकापत्र ] जी० ३१८५ कलंबय [कदम्बक ] जी० ३१८३८२,१५,८४२ कलकल [ कलकल ] ओ० ५२. रा० ६८७,६५८. जी० ३२८४२८४५ कलकलेंत [ कलकलायमान ] ओ० ४६ कलण [कलन ] ओ० ४६ कलमसालि [ कलमशालि ] जी० ३१५६२ कलस [ कलश ] ओ० २,१२,६४. २१० २१,४६, २७६,२८०,२६१. जी० ३१२८६,४४५, ४४६, ४४८,५८७,५६७ कलसिया [ कलशिका ] १० ७७ कलह [ कलह ] ओ० ४६, ७१,११७,१६१,१६३ रा० ७६६. जी० ३।६२७ कलहंस [ कलहंस ] ओ० ६. जी० ३३२७५ लहविवेग [ कलहविषेक ]- ओ०-७१ : कला [कला ] ओ० १४६, १४८, १४९. रा० ८०६, ८०७.०६.१० ५६७ कलावरिय [ कलाचार्य ] ओ० १४५ से १४७. To ७७६,५०५ से ८०८ कलाव [कलाप ] ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, २३५, २८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५, ३१२, ३५५,६६४. जी० ३।३०२, १७२,३६७,४४७, ४५६, ४६१, ४६२,४६५, ४७०,४७७, ५१६,५२०, ५६३, ५६३ कलिंग [ कलिङ्ग ] जी० ३१५६५ कलिकलुस [ कलिकलुष ] रा० ७५०, ७५१ कलित [कलित ] जी० ३१३७२, ४४७, ४५७, ४५६, ४६०,५६४,५६५ कत्ति [ कटित्र ] ओ० १३ कलिय [कलित ] बो० १,२,१५,४६, ५५ से ५७, ६२, ६५. रा० १२,१७,१८,२०,३२,५२,५६, १२६,१३७,२३१,२४७,२८१,२६१,२९३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३।२८८, ३००, ३०७, ३७२,३६३, ४५८, ४६०, ४६२, ४६५, ४७०,४७७, ५१६,५५०,५५४,५८०, ५६१,५६७ [] बो० ४६ [ कलेवर [ कलेवर ] १० १६०. जी० ३।२६४ कल्ल [कल्य ] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, ७८८ कल्लाण [ कल्याण ] ओ० २,५२,७१,१३६. रा० ६, १०,५८,१८५, १८७, २४०, २७६,६८७, ७०४, ७१६,७७६. जी० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ४०२, ४४२, ५७६, ६०२ कल्लाणग [कल्याणक ] बो० ४७,६३,७२. जी० ३५६५ कल्लोल [ कल्लोल ] ओ० ४६ hase [कवचिक ] ओ० ५७ कवड [ कपट ] ० ६७१ कवय [ कवच ] ओ० १९५२०. ० ६६४,६८३. जी० ३३५६२ कवल [ कवल ] ओ० ३३ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ hare [कपाट ] ओ० १,१७४. रा० १३०. जी० ३१३०० efag [ कपित्थ ] जी० ११७२ afaro [ कपिकच्छू ] जी० ३३८५ refer [ कपिल ] ओ० ६. जी० ३।२७५ saiter [afratis ] ओ० १. रा० १२८. जी० ३।३५३ कवितीय [ कपिशीर्षक ] रा० १२८. जी० ३।३५३ कवियि [ कपिहसित] जी० ३३६२६ कवेल्लयावाय [कवेल्लुकापाक] जी० ३३११८ कवोत [ कपोत ] जी० ३५६८ कवोल [ कपाल ] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६, ५६७ कसाथ [ कषाय ] ओ० ४४, ४६. जी० ११५, १४, १६,८६,६६,१०१,११६, १२८, १३६; ३१२२; ६ ६६ कसायलीशया [ कषायप्रति संलीनता ] ओ० ३६ कसायविउस्सग्ग [ कषायभ्युत्सर्ग] ओ० ४४ कसायसमुग्धाय [कषायसमुद्घात ] जी० ११२३, ८५ ३।१०८, १११२,१११३ कणि] [ कृष्ण ] ओ० १६,४७. जी० ३१५६६,५६७ कसिण [कृत्सन ] ओ० १५३, १६५, १६६. रा० ८१४ √ कह [ कथय् ] - कर्हति. ओ० ४५ - कहेइ. रा० ६६३ कहं [ कथम् ] ओ० ११८. रा० ७०३. जी० ३।२११ कहकहभूत [ कहकहभूत ] रा० ७८ कहा [ कथक ] ओ० १, २ कहगपेच्छा [ कथकप्रेक्षा-] ओ० १०२, १२५. जी० ३।६१६ कहा [कथा] ओ० २०,४५,५३. रा० ७१३ कहि [व] जी० १११२७ कहि [क्व, कुत्र ] ओ० १४०. रा० १२२. जी० १।५४ काय [कायिक] ओ० ६६ कार्ड [ कृत्वा ] ओ० १३७ कवाड-काय काउंबरीय [ काकोदुम्बरिका ] जी० ११७२ काउलेस [कापोतलेश्य ] जी० ६ १६३ काउलेसा [ कापोतलेश्या ] जी० Eles, EE काउलेस [ कापोत लेश्य ] जी० ६ १८५, १८८, १६६ काउलेस्सा [ कापोतलेश्या ] जी० ११२१ काऊ [कापोती ] जी० ३१७७ काकणिक्खण [ काकिणीलक्षण ] ओ० १४६ कागणिक्खण [ काकिणीलक्षण ] रा० ८०६ कागणिर्म सक्खावियग [ काकिणीमांसादितक ] ओ० ६० काणण [ कानन] रा० ६५४,६५५. जी० ३।५५४ eferer [ कापिशायन] जी० ३।८६० काम [ काम ] ओ० १५,४३,१४६,१५०, १६८. रा० ६७२,६८५,७१०, ७५१, ७५३, ७७४,७६१, ८११. जी० ३ १७६, ११२४ कामकंत [ कामकान्त ] जी० ३ १७६ कामकूर [ कामकूट ] जी० ३११७६१ terere [ कामकम ] ओ० ४६, ५१ कामगाfम [ कामकामिन् ] जी० ३३५६८,६०६ कामाय [कामध्वज ] जी० ३।१७६ htafter [ कामाधिक] ओ० ६८ eter [ कामप्रभ ] जी० ३।१७६ कामरय [ कामरजस्] ओ० १५० १० ८११ कामवचारि [ कामरूपधारिन्] ओ० ४९ कामलेस्स | कामलेश्य ] जी० ३११७६ कामवरण [ कामवर्ण ] जी० ३११७६ कार्मासंग [ कामशृङ्ग ] जी० ३११७६ कामfig [ कामशिष्ट ] जी० ३११७६ कामात [ कामावर्त्त ] जी० ३।१७९ कामु स [कामावतंसक] जी० १७६ काय [काय ] ओ० २४. रा० १४६,८१५. जो० ३ ११०,१११,१७४; ६/६६ √ काय [काचय् ] -कायामि रा० ७५४ काय [पाय ] [ काचपात्र ] ओ० १०५ १२८ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काय-कालमेह १६४ काय [बंधण] [काचबन्धन] ओ० १०६,१२६ ६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से १०६, कायअपरित्त [कायापरीत] जी० ६७६,८० १११,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२५, कायकिलेस [कायक्लेश] ओ० ३१,३६ १२६,१३१ से १३३,१३६,१५०; ३ १२,२२,४५, कायगुत्त [कायगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ८३.६०,६४,११७ से १२०,१५६,१८६,१६२, रा० ८१३ १६५ से १९७,२१४,२३८,२४३,२४७,२५०, कायजोग [काययोग] ओ० ३७, १७५ से १७७, २५२ से २५६,२५८,४३६,५६४,५६५५८६, १८०,१८२ ५६६,६२६,६३०,७२४,८१६,१३८ । १६,१८, कायजोगि [काययोगिन्] जी० ११३१,८७,१३३; २०,८४४,८४७,१०२७,१०४२,१०८५,१०८६, ३।१०५,१५२,११०६६।११३,११५,११८, ११३१,११३६,११३७, ४।३,५,६,१६,१७; १२० १५,८,९,२१ से २४,२८ से ३०,७।२; काय द्विति [कायस्थिति] जी० ३।११३३; ६।१२२ ८।३।४; ६।२,३,१२,२३,२५,२६,३३,४०, कायपरित्त [कायपरीत] जी० ६७६,७७,८३ ४६,५१,५२,५६.६६,७१,७३,७८,६७,१६४, कायबलिय [कायबलिक] ओ० २४ १७१,१७८,२०२,२०४,२५७ से २५६ कायम्व [कर्तव्य] रा० ७२,७०४. जी० ३.१२७; कालो [कालतस् ] ओ० २८. रा० २००. जी० १२३३,१३६,१४०:२।४८,४६,५४,५७ कायविषय [कायविनय] ओ० ४० से ६२,८२,८३, ३३२७२, ४७ से १९१८, कायसमिय [कायसमित] ओ० १६४ १,१२ से १६,२३,२६६१८७६; १०,११, कायापरित [कायापरीत] जी० ६८५ २३,२४,३१,३६ से ४८,५७५८,६८,७८,७६, कारंरक [कारण्डक] ओ० ६. जी० ३।२७५ ८९,६०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५,१२२, कारण कारण] रा० १६,६७५,७१६,७२०,७५२, १२२,१४२,१६० से १६३, १७१,१८६ से ७५४,७५६,७५८,७६०,७६२,७६४,७६८ १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से कारवाहिया कारवाहिक, कारबाधित] ओ०६८ २१२,२१४,२१६,२२२ से २२५,२२७ से कारवेत्ता [कारयित्वा] ओ० ५५. रा०६ २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, कारावण [कारण] ओ० १६१,१६३ २४६,२५७ से २६३,२६५,२६८ से २७३, कारेमाण [कारयत्] ओ०६८. रा० २८२,७६१. २७५ से २८२,२८४,२५५ जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ कालतो [कालतस् ] जी० २१८४,११७ से १२०, १२२ से १२४,३१५६,१६३,१६४,११३३ से कारोडिय [कारोटिक] ओ०६८ ११३५:५८,१०,२२६।१६,२३,६४,७६,७७ काल [काल] आ० १,१८,२२ स २२,२७,२८,०५, कालधम्म [कालधर्म रा० ७५३ ४७ से ५१,८२,८७,८६ से ६५,११४,११७, कालपोर [दे. कालपर्वन् ] जी० ३८७८ १४०,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. कालमास [कालमास] ओ० ८७,८६ से १५,११४, रा० १,७,६३,६५,१७३,२७४,६६५.६६६, ११७,१४०,१५५.१५७ से १६०,१६२,१६७. ६६८,६७६,६८५,६८६,७५०,७५१ से ७५३, रा० ७५० से ७५३,७६६. जी. २११७, ७७१,७६६,७६८,८१५. जी० ११५,३४,३५, ५०,५२,६६, १२७,१३७ से १४२, २१२० से कालमिगपट्ट [कालमृगपट्ट] जी० ३१५६५ २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,६३,६५, कालमेह [कालमेघ ] ओ० ५७ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालय-कित्तिय कालयकालक] जी०:३१८१६. किसुथ किंशुक] ओ० २२. रा० २७.७७७,७७८, कालसंघिय [कालसन्धित] जी० ३१५८६ ७८. जी० ३३११८, २८०, ५६० कालागरु. [ कालागुरु रा०, ६,१२,३२,१३२ किच्च [कृत्य] रा० ३१, ५६ २३६,२८१,२६२. जी० ३१३०२,३७२,३६८, किच्चा [कृत्वा] ओ० ८७- रा० ६६७, ४४७,४५७ जी० ३.११७ कालागुरु [कालागुरु ] ओ० २,५५. किट्ठिया [कृष्टिका] जी० १९७३ कालाभिग्गहचरय [कालाभिग्रहचरक] ओ० ३४ । किडकर [क्रीडाकर] ओ० ६४ कालायस [कालायस] ओ०.६४. रा० १७३, किणिय [किणित] रा० ७७ ६८१. जी० ३२२८५ किण्णर [किन्नर ओ० १३, ४६. रा०.६६८, कालोद [कालोद ] जी० ३१७७५,८१० से ८१२, ७५२, ७७१, ७८६. जी. ३१२६६, २८५, ८१४,८१६,८१८ २८८, ३००, ३१८, ३७२ कालोभास [कालावभास] जी० ३८३,६४ ... कालोय | कालोद] जी० ३१७७० से ७७३,८००, किण्णरक [किन्न रकण्ठ] जी० ३।३२६ . किण्णरकंठग [किन्नरकण्ठक? जी०३१४१६ ८०३ से ८०७,८१३,८१५,८१६ से ८२१, किण्य [कथम् ] रा० ६६७ ६५६,९६४,६६५,६६७,६५० किण्ह [कृष्ण] ओ० ४, १२, १३, १६. रा० २२, कालोयय [कालोदक] जी० ३।७७२ २४, २५, १२८,१३२, १५३, १६७, १७०, कावपेच्छा [कावप्रेक्षा] जी०.३।६१६ १७८, २३५, ७०३. जी. ३१७८१, २७३, काविल [कापिल ] ओ०६६ काविसायण कापिशायन] जी० ३।५८६ २७७, २७८, २९०, २१८, ३०२, ३२६, ३५.३, ३५८, ३८२, ३९७, ५८५, ५६७, कास [काश] जी० ३१६२८ कासित्ता [काशित्वा] जी० ३।६३० ५३८:१७, १०७५ किइकम्म [ कितिकमन्] ओ० ४० किण्हकणवीर [कृष्णकणवार] रा० २५. कि [किम्] रा० ६२. जी० १०२ . जी० ३.२७८ किंकर [किङ्कर] ओ० ६४, रा० ५१ किण्हकेसर [कृष्णकेसर] रा० २५ किंकरभूत [किङ्करभूत ] जी० ३।५६२ किण्हच्छाय [कृष्णच्छाय] ओ० ४. रा. १७०, फिकरभूय [किङ्करभूत ] रा० ६६४ । -७०३. जी० ३।२७३ किचि | किञ्चित्.) ओ० १६६. रा० ६. जी० २६२ किण्हबंधुजीव { कृष्णबन्धुजीव ] रा० २५ किंचूणोमोदरिय किञ्चिदूनावमोदरिक ओ० ३३ किण्हलेस [कृष्णलेश्य] जी० ३३१०१ किण्हलेस्सा [कृष्णले श्या] जी० ३.१०१, १०२ किपागफल [किम्पाकफ़ल] ओ० २३ किंपुरिस [किम्पुरुष ] ओ० ४६, १२०, १६२... किण्हसप्प [कृष्णसर्प] रा० २५ रा० १४१, १७३, १६२, ६६८, ७५२, ७७१, किण्हासोय [कृष्णाशोक] रा० २५ ७५६. जी० ३.२६६, २८५, ३१८ किण्होभास [कृष्णावभास ] ओ० ४. रा० १७०, किंपुरिसकंछ । किम्पुरुषकण्ठ ] रा० ११५, २५८. . ७०३. जी० ३।२७३,२६८,३५८,५८५ जी० ३१३२८ कित्त [कोतम् ] -- कित्तति. रा० १८५ किपुरिसकंठग [किम्पुरुषकण्ठक] जी० ३,४१६ कित्तिय [कीति ] ओ०:२. किमय किम्मय ] जी०-३१८७, १०८१' १. अगरे, भल्लातक, अर्जुन (आप्टे) Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्नर-कुंभिक्क ६०१ किन्नर [किन्नर] ओ० १२०,१६२. रा० १७, कुंडधारपडिमा [कुण्डधारप्रतिमा] रा० २५७ १८, २०, ३२, ३७, १२६, १४१, १७३,१६२. जी० ३१४१८ जी० ३।३११ कुंडल [कुण्डल ] ओ० १५, २१, ४७, ४६, ५१, किन्नरकंठ [किन्नरकण्ठ ] रा० १५५, २५८ ५४, ६३, ६५, ७२, १०८, १३१. ग०८, किमंग [किमङ्ग] ओ० ५२. रा०६८७ २८५, ६७२, ७१४. जी० ३३४५१, ५६३, किमि [कृमि ] जी० ३१८४ किमिकुंभी [कृमिकुम्भी] रा० ७५६ कुंडलभद्द [कुण्डलभद्र | जी० ३१६३३ किमिय [कृमिक] जी० ३।१११ कुंडलमहाभद्द [कुण्डलमहाभद्र | जी० ३१६३३ किमिराग ] कृमिराग] रा० २७. जी० ३।२८० कुंडलमहावर [ कुण्डलमहावर] जी० ३।६३३ किर [किल ] जी० ३११२६०१ कुंडलवर कुण्डलवर जी० ३।६३३ किरण [किरण] ओ० १६. जी० ३१५६०,५९६, कुंडलवरभद्द [कुण्डलवरभद्र ] जी० ३।९३३ कुंडलवरमहाभद्द [कुण्डलवरमहाभद्र | जी० ३६३३ किरिया [क्रिया] ओ०४०,१२०,१६२. रा०६६८, कुंडलवरोभास कुण्डलवरावभास / जी०३९३३ __७५२, ७८६. जी० ३।२१०,२११ कुंडलबरोभासमहावर | कुण्डलांवरावभासमहावर किलंत [क्लान्त] जी० ३११८, ११६ __ जी० ३६३३ किलाम [क्लम] रा० ७२६, ७३१, ७३२ कंडलवरोभासवर [कुण्डलवरावभासवर | जी० ३१९३३ किलेस [क्लेश] ओ० ४६ किग्विसिय [किल्विषिक] ओ० ६८ इंडिया [कुण्डिका] ओ०.११७ किसलय [किसलय] ओ० ५, ८. रा० १३६, कुंडियालंछणय [कुण्डिकालाञ्ण क | रा०.७६७ __ जी० ३।२७४, ३०६ कुंत कुन्त | ओ०.६४. जी० ३।११० किसि कृषि] जी० ३।६०७ कुंतरंग [कुन्तान] जी० ३.८५ किसिय [कृशित ] रा० ७६०, ७६१ कुंतग्गाह [कुन्तग्राह] ओ०६४ कुंथु [कुन्थु] रा० ७७२. जी० ३,१११ कोड [क्रीड्]-कीडति जी० ३।२६८ कुंद कुन्द ओ०१६. रा०२६, ३८, १६०,२२२, कोयगड [क्रीतकृत] ओ० १३४ २५५, २५६. जी० ३:२८२,३१२,३३३, कील क्रीड्]--कोलंति रा० १८५. जी० ३३२१७ ३८१, ४१६, ४१७, ५६६, ५६७, ८६४ कोलग कोलक] रा० २४. जी० ३।२७७ कुंदगुम्म [कुन्दगुल्म] जी० ३१५८० कोलण [क्रीडन] ओ०४६ कंदलया कुन्दलता] ओ० ११. रा० १४५,३.२६८, कोलिया [कीलिका] जी० ११११६ कुंकुम [कुङ कुम] ओ० ११०, १३३. रा० ३०. कुंदलयापविभत्ति | कुन्दल ताप्रविभक्ति] रा० १०१ जी० १२८३ कुंदुरुक्क [कुन्दुरुक] ओ० २, ५५. रा० ६, १२, कुंचस्सर [ कोञ्चस्वर] रा० १३५ ३२, १३२, २३६,२८१, २६२. जी० ३१३०२, कृषिय [कुञ्चित] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६६ ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ कुंजर कुञ्जर] ओ० १,१३, २७. रा० १७, १८, कुंभ [कुम्भ ] जी० ३।५६७ २०, ३२, ३७, १२६, ८१३. जी० ३।११८, कुंभारावाय [कुम्भकारापाक] जी० ३१११८ ११६,२८८, ३००, ३११, ३७२ कुंभिक्क[कौम्भिक, कुम्भार] रा० ४०. जी० ३३१३ Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ कुंभी [कुम्भी ] रा० ७५६ कुक्कुइय [ कौकुचिक ] ओ० १५ कुक्कुड [ कुक्कुट ] ओ० १, ३३ कुक्कुडलक्खण [कुक्कुटलक्षण ] ओ० १४६. T० ८०६ कुठि [ कुक्षि ] ओ० १६. जी० ३३५६६ से ५६८, ७८८ कुटिल [ कुक्षिशूल ] जी० ३१६२८ कुज्जायगुम्म [कुब्ज कगुल्म ] जी० ३।५८० कुट्टिज्अंत [कुट्टयमान ] रा० ७७ कुट्टिमतल [कुट्टिमतल] ओ० ६३ कुट्ट [ कुष्ठ ] जी० ३१६२८ कुडभी [कुडभी] रा० ५२, ५६, २३१,२४७. जी० ३।३६३ कुड [ कुटज ] ओ० ६,१०. जी० ३२८८,५८३ कुटिल [ कुटिल ] ओ० १, ४६. जी० ३ । ५६७ कुटुंब [कुटुम्ब ] रा० ६७५ कुड्ड [कुद्य ] जी० ३।७२४, ७२७ कुणाला कुणाला ] रा० ६७६, ६७७, ६८३, ७०६ कुणिम [ दे० कुणप ] ओ० ७३. जी० ३।८४ कुतुंब [ कुस्तुम् ] रा० ७७ कुतुंबर [ कुस्तुम्बर ] रा० ७७ कुत्तियावण [ कुत्रिकापण ] ओ० २६ कुतुंबक [ कुस्तुम्बक ] जी० ३।७८ कुमार [ कुमार ] रा० ६७३, ६७४, ७९१ से ७६३ कुमारग्गह [कुमारग्रह ] जी० ३१६२८ कुमारसमण [कुमारश्रमण ] रा० ६६६, ६८७, ६८९,६६२ से ६६७, ७०० से ७०६, ७११, ७१३,७१४, ७१६ से ७२२,७३१ से ७३३, ७३६ से ७३६ ७४७ से ७८१, ७८७, ७६६ कुमुद [ कुमुद ] रा० २६, ३१. जी० ३।११८, ११६, २५६, २८२, २८४,५६७ कुमुदप्पभा [ कुमुदप्रभा ] जी० ३।६८३ कुमुदा [कुमुदा] जी० ३१६८३,६१५ कुमुय [ कुमुद] [कुमुद ] ओ० १२,१५०. कुंभी- कुसुम रा० १७४, १९७, २७६,२८१,२८८,८११. जी० ३३२८२,२८६ कुम्म [ कूर्म ] ओ० १६,२७,३७. रा० ५१६. जी० ३१५६६, ५६७ कुरा [ कुरु, कुर] जी० ३१५७८ से ५६६,६०५ से ६२८,६३९,६३२,६३९,६६६, ६६८,७०२, कुद [ कुरु ] जी० ३।७७५।३ कुरुविंद [ कुरुविन्द] ओ० १६. जी० ३१५९६ कुल [ कुल ] ओ० १४,२३,४०, १४१, १५५. रा० ७६६. जी० ३।१६० कुलकोडि [कुलकोटि ] जी० ३।१६० से १६२, १६५ से १६६,१७१,१७४,६६६,९६८ कुलक्खय [ कुलक्षय ] जी० ३१६२६,६२८ कुलघरविखया [कुलगृहक्षिता ] ओ० ६२ कुलणितिय [ कुलनिश्रित ] रा० ७७३ कुलरोग [ कुलरोग ] जी० ३१६२८ कुलव [ कुडव ] T० ७७२ कुलवेयावच्च [ कुलवैयावृत्य ] ओ० ४१ कुल संपण्ण [ कुलसम्पन्न ] बो० २५. रा० ६८६ कुब्विय [ कुटीत ] ओ० ६६ कुवलय | कुवलय ] ओ० १३. जी० ३।५६७ कुस [ कुश ] ओ०८,१०. रा० ३७. जी० ३।३११, ३८६,५८१ से ५८३,५८६, से ५६५ कुसग्ग [ कुशाग्र ] ओ० २३ कुसल | कुशल ] ओ० १५,३७,६३,६४,१२० १४८, १४६,१६२. रा० १२,७०,१७३, ६७२,६८१, ६६८,७५२,७५८,७५६,७६५,७६६,७७०, ७८६,८०४, ५०६,८१० जी० ३।११८,२८५, ५८८,५६७ कुसुम [ कुसुम ] ओ० १३,४७,४६. रा० ६, १२, २६ से २८,३१,२२८,२६१,२६३ से २६६,३००, ३०५, ३१२,३५५. जी० ३१२७६ से २८१, २८४,३८७,४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, _५१६,५२०,५५४,५८०, ५०, ६७२ √ कुसुम [ कुसुमय् ] -- कुसुमति. जी० ३१५८० Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुसुमघरग केवतिय ६०३ कुसुभघरग [कुसुमगृहक रा० १५२,१८३. केकय | केकय रा० ७०६ जी० ३।२६४,८५७ केतकी [ केतकी] जी० ३१२८३ कुसुमघरय [कुसुमगृहक ] जी० ३१८५७ केतगी (केतकी १० ३० कुसुमदाम [कुसुमदामन् ] जी० ३१५६१ केयह [केकय रा० ६६८, ६६६,६८३,७११ कुसुमासव [कुसुमासव] ओ० ६. जी० ३।२७४ ।। केमहालत [किरन्महत्] जी० ३११७६,१७८,१८२ कुसुमित [कुसुमित] जी० ३।५८६ केमहालय [कियन्महत् जी० १११६,३८६ ६१, कुसुमिय [कुसुमित ओ०५,८,१०,११. ६४,१८०,२५६,७६० से ७६२,६६९,१०८०, रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४,३६०,५८४, १०८७,१००८ ७०२,८०८,८२६ केयुय [ केतुक] जी० ३।७२३ कुहंड [कूष्माण्ड ] ओ० ४६ केयूर [केयूर] रा० २०५. जी० ३१४५१,५६३ कुहंडिया [ कूष्माण्डी] रा० २८. जी. ३१२८१ केरिसग [कीदृशक ] जो० ३।६४,१११६ कुहणा [कुहणा] जी० ११६६,७२ फेरिसय [की दृशक | रा० १७३. जी० ३८३ से ८५,६५ से कुहर [कुहर] रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ ७,१०६,११६,११८,११६,१२२, कहिय कुथित ] जी० ३१८४ १२३,१२८,२१८,२८३, से २८५,५७६,५६६. कर कट] ओ०६३. रा० १३०, १७१. ५६७,६०१,६०२,६५५,६५८,६६१,१०७७ से १०७६,१०६३,१०६७ से १०६६,१११४, जी० ३१११६,३००,६८६,६६०,६६२ से ६६८, १११७,११२१ से ११२४ ७७५,८४५,६३७ फेरिसिय (कीदृशक) जो० ३।११२२ कूडागार [कुटाकार ओ० १६. जी० ३१५६४, केलास ! कैलाश ] जी० ३।७४८,७४६,७५२,६२३ केलासा [कैलाशा जी० ३।७५२ कूडागारसाला [ कूटाकारशाला] रा० १२३,७५५, केली [ केली] ओ० ४६ ७७२,७८७,७८८ केवइ [कियत्] जी० ११४१,१४२ कूडाहच्च [कूटाहत्य] रा० ७५१,७६७ केवइय [कियत् ] ओ० ८६ से ६५,११४,११७, कूणिय [कूणिक ] ओ० १४,२०,२१,५३ से ५६, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० ६५५, ६२ से ७१,८०. रा० ७७८ ६६६. जी० ११५२; ३१७७,८१,२५९,७९८, कल [कूल ओ० ११५. रा० १७४,२७६. ८०२,८३०,१००४,१०४२,१०६२,१०६७, जी० ३।२८६,४४५,६३२,६३६,६६८ १०६९; ४१३ कूलषम्मग [कूलमायक] ओ० ६४ केवचिरं [कियच्चिरम् ] रा० २०० जी० ४७ कूवागाह [कृपग्राह] ओ० ६४ केवच्चिरं [किच्चिरम् | जी० १११३६ कूवमह [कूपमह ] जी० ३१६१५ कूवय [कूपक ] मो० ४६ केवति | कियत् ] जी० ३।६०,१६२,१६५ से १६७, केउ केतु] ओ० ६ से ८,१०,५०. रा० १६२, ५६६,६२६,११३१,११३६.११३७, ६।१२, १६३. जी० ३।२७५,२७६,३३५,३५५ केउकर [ केतुकर] ओ० १४. रा० ६७१ केवतिय [कियत्] रा० ७६८ जी० १११३७,१३८; केऊर [केयूर] ओ० २१,५४,१०८,१३१. २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६, रा० ८,७१४ ६३,६६,७३,७६,८६,८८,६२,६७,१०७ से Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केवल-फोक्कुइय १०६,१११,११३,११४, ११६,१२५,१२६, जी० ३।४५२ १३३,१३६,१५० ; ३१५,१२,१४ से २१,३३, केसंतकेसभूमी ( केशान्तकेशभूमी] ओ० १६. ३४,३६,४०,४२,४४,५१,६० से ६३,६६,७७, रा० २५४. जी०३.४१५,५६६ ८०,१,८६,१०७,१२०,१५६,१८६,१९२, केसर [केसर] रा०२५,३७,१७४. जी. ३१११८, २३८,२४३,२४७,२५०,२५६,५६४,५६५, ११६,२५६ २७८,२८६,३११,६४३ ५७०,७०६,७१४,७३२,७८८,७८६,७६४, केसरिबह केसन्द्रिह | जी० ३।४४५ ८१२,८१५,८२३,८२७,८३२,८३४,८३५, केसरिद्दह [केसरिद्रह] रा० २७६ ८३६,८४४,८४७,८५०,६५३,६५४,६७२, केसरिया केसरिका] ओ० ११७ ६७३,१००० से १००६,१०१०,१०२२,१०२७, केसलीय [ केशलोच ] औ० १५४,१६५,१६६. १०७३,१०८३,१०८५,११११, ४१५,१६,१७; रा० ८१६ ५१५,२१,२३,२४,२९,३०,७१२६२,४, केसव | केशव | जी० ३।१२६ २५,२६,३३,४६,५२ केसि [कैशि] रा०६८६,६८७,६८६,६६२ से केवल [केवल] ओ० १५१,१५३,१६०,१६५, ६९७,७०० से ७०६,७११,७१३,७१४,७१६ १६६. रा० ८१२,८१४. जी० ३.१०२५ से ७२२,७३१ से ७३३,७३६ से ७३६,७४७ केवलकप्प [केवलकल्प] ओ० १६६. रा० ७. से ७८१,७८७,७६६ ___ जी० ३१८६. केसि [केशिन् ] रा० १३३. जी. ३१३०३ केवलणाण [ केवलज्ञान] ओ० ४०,१६५।१२. रा० केसुयं [किंशुक | रा० ४५ कोइल [कोकिल ] ओ० ६. जी० ३।२७५,५६७ केवलणाणविणय केवल ज्ञानविनय औ० ४० कोउय [कौतुकं ] ओ० २०,५२,५३,६३,७०. केवलणाणि [ केवलज्ञानिन् ओ० २४. जी० ६।१६३, रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००, १६५,१६६,१६७,२०१,२०५,२०८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,९७४,८०२, केवलयंसणि [केवलदर्शनिनु ] जी० १।२६,८६; ८०५ ६।१३१,१३५,१३६,१४० केवलदिट्ठि [ केवलदृष्टि] ओ० १६५।१२ कोउयकारग | कौतुककारक ] ओ० १५६ केवलनाणि [ केवलज्ञानिन् ] जी० १६१३३ कोउहल्ल [कौतुहल] जी० ३।६१६ ६१५९,१६३ कोऊहल [कोतुहल ] ओ० ५२. रा० १५,१६.६८७, केवलपरियाग [ केवलपर्याय ] ओ० १६५ केवलि [ केवलिन् ] ओ० ७२,१५४,१७१,१७२.। कोंच | कौञ्च | १० २६. जा० ३।२८२ रा० ७१९,७७१,७७५,८१५,८१६. कोंचणिग्घोस | कोञ्चनिर्घोष ] ओ०७१. रा०६१ जी० २१२६, ६।३६,४१,४२,४४ से ४८,५०, कोंचस्सर क्रिोम्चस्वर) जी० ३.३०५,५६८ ५२ से ५४ कोंचासण | क्रौञ्चासन | रा० १८१,१८३. केवलिपरियाग | केवलिपर्याय ] ओ० १५४. जी० ३।२६३ रा० ५१६ कोंडलग [ कोण्डलक ओ० ६. जी. ३१२७५ केवलिसमुग्याय [ केवलिसमुद्घात ] ओ० १६८, कोकंतिय [ कोकन्तिक जी० ३।६२० १७४. जी० १११३३ कोकासित [दे० ] जी० ३१५६६ केस [केश] ओ० १३,४७,६२. रा० २८.६. कोक्कुइय [कौकुचिक ] ओ० ६४ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौट्टण-कोह कोट्टण [ कुट्टन ] ओ० १६१,१६३ कोट्टिज्माण [ कुद्र्यमान ] रा० ३० कोट्टिमतल ( कुट्टिमतल ] रा० १३०,१७३,८०४. जी० ३१२८५,३०० कोट्टिय [कुट्टयित्वा ] जी० ३।११८, ११६ कोट्टेज्जमाण [ कुट्टधमान ] जी० ३१२०३ कोट्ठ [कोष्ठ ] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२३४, २८३, ४१६,६३७,१०७८ star [ कोष्ठक ] रा० ७११. जी० ३१५६४ nigefa [ hiroefa ] ओ० २४ कोga [ कोष्ठक ] रा० ६७८,६८६,६८७,६८६, ६६२,७००,७०६ कोट्ठागार [ कोष्ठागार ] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६६५, ७८७,७८८,७६०, ७६१ कोद्वार [कोष्ठागार ] रा० ६७४ कोडकोडी [कोट कोटी ] जी० ३१७०३, ७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८३३१,८५५, १००० nistratfs | कोटाकोटि ] ओ० १६२. रा० १२४ कोडाकोडी | कोटाकोटी] जी० २२७३,६७, १३६; ३७०३, ५०६, १०३८; ५२६ कोडि | कोटि ] ओ० १,१६२. रा० १२४ कोडिकोडी | कोटिकोटी ] जी० ३१००० कोडी | कोटी ] रा० ६६४. जी० ३१२३२,५६२, ५७७,६५८, ८२३,८३२,८३५,८३६, १०३८ कोडीय [ कोटीक ] रा० २३६. जी० ३१४०१ फोडुंब [ कौटुम्ब ] जी० ३।२३६ कोडुंब [ कौटुम्बिन् | जी० ३४१२६ डुंबिय | कौटुम्बिक ] ओ० १,१८,५२,६३. रा० ६८१ से ६-३, ६८७.६८८,६६०,६६१, ७०४,७०६,७१४ से ७१६,७५४,७५६, ७६२, ७६४. जी० ३।६०६ कोण | दे०कोण ] रा० १५३. जी० ३१२८५ कोणिय ] कोणिक ] आं० १५, १६,१८,२०,६२ कोत्तिय | कोत्रिक ] ओ० ६४ कोद्दालक [ कुद्दालक ] जी० ३१५८२ कोमल [ कोमल ] ओ० ५,८,१६,२२,६३ रा० ७२३,७७७,७७८,७८८. जी० ३।२७४, ५६६,५६७ कोई [ कौमुदी ] ओ० १५. ० ६७२. जी० ३१५६७ ६०५ कोयासिय [ विकसित' ] ओ० १६ कोरंट [कोरण्ट ] ओ० ६३,६४. रा० ५१,२५५ कोरंटक [ कोरण्टक ] रा० २८. जी० ३१२५१ कोरंयगुम्म [कोरण्टक गुल्म ] जी० ३२५८० कोरक [ कोरक ] जी० ३१२७५ कोरव्a [ कौरव्य ] ओ० २३. रा० ६८८. जी० ३।११७ कोरव्यपरिसा [ कौरव्यपरिषद् ] रा० ६१. कोरिल्लय [ दे० ] रा० ७५६ कोरेंट [कोरण्ट ] ओ० ६५. रा० ६८३,६६२, ७००,७१६. जी० ३१४१६ कालसुण [कोलशुनक ] जी० ३१६२० कोलाहल [कोलाहल ] ओ० ४६ कोव [कोप ] जी० ३११२८ कोस [क्रोश ] १४,२३,१७० रा० १५८,२०७, २०८, २३१,२४७,६७१, ६७४, ६६५, ७६०, ७६१. जी० ३।४३,४४,८२,२६०,३५२ से ३५५, ३५०, ३६१,३६४३६८, ३६६, ३७२,३७४, ३६३३६५, ४०१,४०२, ४१२, ४२५, ६३४, ६४२,६४४,६४६,६५३, ६५५,६६३, ६६८, ६७३,६७४,६७६, ६८३,६८५, ६६१, ७१४, ७३६,७५४,७५६,७६२,७६८ से ७७०, ७७२, ८०२,८१५,८३६,१०१२ से १०१४ कोसंब [कोशात्र ] जी० १/७१ कोसंब पल्लवविभत्ति [कोशाम्रपल्लवप्रविभक्ति ] रा० १०० कोसेज्ज [ कौशेय ] ओ० १३. जी० ३।५६५ कोह [ क्रोध ] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६,१६१, १६३,१६८. २१० ७९६. जी० ३११२८, ५६८,७६५,८४१ १. हे० ४१६५ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहंगक-खलु कोहंगक [कोभङ्गक] ओ०६ कोहकसाइ [क्रोधकधायिन् ] जी० १११३१; ६.१४८,१४६,१५२,१५५ कोहकसाय {क्रोध कषाय ] जी० १११६ कोहविवेग [ क्रोधविवेक ] ओ० ७१ ख [ख] रा० ६५ खइय [क्षायिक] रा० ७६१,८१५ खइय [खचित] जी० ३३३७२ खमोवसम [क्षयोपशम ] ओ० ११६,१५६ खंजण [खञ्जन] ओ०१३. रा० २५. जी० ३१२७८ खंड [खण्ड] जी० ३१५६२,६०१,८६६ खंडरक्स [खण्डरक्ष] ओ० १ खंडिय [खण्डिक] ओ० ६८ खंति [क्षान्ति । ओ० २५,४३. रा०६८६,८१४ संतिखम [क्षान्तिक्षम ओ० १६४ खंवग्गह [स्कन्दग्रह] जी० ३ ६२८ खंदमह [स्कन्दमह] रा०६८८. जी० ३१६१५ खंघ [स्कन्ध] ओ० ५,८,१३,१६. रा० ४,१२, २२७,२२८,७५८,७५६. जी० ११५,७१,७२, ३३२७४,३८६,३८७,५६६,६७२,६७६,७६३ खंषमंत | स्कन्धवत् ] ओ० ५,८. जी० ३.२७४ खंधावारमाण [स्कन्धावारमान] ओ० १४६. रा० ८०६ खंधि [स्कन्धिन् ] जी० ३१२७४ खंभ [स्तम्भ ] रा० १७ से २०,३२,६६,१२६, १३०,१३८,१७५,१६०,१६७,२०६,२११, २७६,२६७,३०२,३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६४,२६६,२८७,२८८,३००,३७२, ३७४,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५, ५६७,६४६,६७३,६७४,७५६,५८४,८८७, ११२८,११३० खंभपुडन्तर [स्तम्भपुटान्तर रा० १६७. जी० ३१२६६ खंभबाहा स्तम्भबाहु] स० १६७. जी० ३१२६६ खंभसीस [स्तम्भशीर्ष ] रा० १६७. जो० ३।२६६ खकारपविभत्ति खकारप्रविभक्ति] रा० ६५ खग्ग [खड्ग] ओ० २७,५१,६६. रा० २४६,६६४, ८१३. जी० ३१५६२ खरगपाणि खड्गपाणि] रा०६६४. जी० ३१५६२ खधित [खचित ] जी० ३१४१० खचिय [खपित] रा० ३२,१६०,२५६,२८५. ___ जी० ३३३३३,४५१ खज्जूर (सार) [खर्जू रसार] जी० ३१५८६ खजूरसार खजूरसार] जी० ३।८६० खजूरिवण [खजूरीवन] जी० ३१५८१ खट्टोदय [खट्टोदक ] जी० ११६५ बडहडग [दे० ] जी० ३।२६२ खण |क्षण] रा० ११६,७५१,७५३ खत्तिय क्षत्रिय ] ओ० १४,२३,५२. रा०६७१,६८७ खत्तियपरिब्वाय क्षत्रियपरिव्राजक] ओ०६६ खत्तियपरिसा [क्षत्रियपरिषद् ] रा० ६१,७६७ खन्न | दे० } जी० ३७८१,७८२ खम क्षम] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३.४४१,४४२ खध क्षय रा० ७६६ खयर [खदिर] रा० ४५ खर [खर] ओ० १०१,१२४. जी० ११५७,५८%; ३६६६.६१८ खरकंड [खरकाण्ड ] जी० ३,६,७,१४,२३,२६ खरपुढवी [खरपृथ्वी ] जो० ३११८५,१९१ खरमुहिवाय [खरमुखीवादक] रा०७१ खरमही खुरमुखी | ओ० ६७. रा० १३,७१,७७, ६५७. जो० ३।४४६,५८८ खल [खल ] ओ० २८ खलवाड [खलवाट ] रा० ७८१,७८५ से ७८७ खलु खलु] ओ० ५२. रा० ६. जी० १२१ Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खव-खुडाय खिव [क्षपय् ]--खवेइ ओ० १५२. खिम्जमाण [खिद्यमान] ओ० १३३. जी० ३।३०३ जी० ३०८३८।१८ खित्त [क्षिप्त जी० ३१६८६ खवयंत [क्षपयत् ] ओ० १८२ खिप्पामेव [क्षिप्रमेव] ओ० ५५. रा० ६. जी. खवेत्ता क्षियित्वा] ओ० १६८ खसर खसर] जी० ३१६२८ खिवित्ता [क्षिप्वा] जी० ३।६८८ खहयर खेचर] ओ० १५६. जो० १६८,११३, खीण [क्षीण] ओ० १६८ ११६,११७,१२५, २।२५,६६,७२,७६,८३, खीर [क्षीर] ओ० ६२,६३,. रा० २६. जी० ८७,६६,१०४,११३,१३१,१३६,१३८,१४६, ३२८२,७७५ १४६; ३.१३७,१४५ से १४७, १६१ खीरधाई [क्षीरधात्री] रा०८०४ खहयरो [खेचरी] जी० २।३,१०,५३,६९,७२, खोरपूर [क्षीरपूर] रा० २६. जी० ३।२८२ १४४,१४६ खीरवर [क्षीरवर] जी० ३८६२,८६३,८६५ खिा [खाद्-खज्जइ. रा० ७८४---खाइ. खीरासव क्षीराश्रव] ओ० २४ खीरोद [क्षीरोद] जी० ३२८६,४४५,८६५,८६६ रा० ७३२ खाइ [दे०] ओ० १६२ ८६८,६५६,६६३ खाइम [खाद्य ] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. खोरोदग [क्षीरोदक] जी० ३।४४५,९६३ खोरोबय [क्षीरोदक] जी० ११६५ रा० ६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६, खोरोयग [क्षीरोदक] रा० १७४,२७६ ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ ख क्षुध्] जी० ३।१२७,५६२ खाओवसमिय {क्षायोपमिक] रा० ७४३ खुज्ज [कुब्ज] जी० १६११६ खाणु स्थाणु] जी० ३६२५,६३१ खुज्जा [कुब्जा] ओ० ७०. रा० ८०४ खाम [क्षमय ]-खामेइ. रा० ७७७ खुडू क्षुद्र रा० १७४,१७५,१८०. जी. ३१२६६, खामित्तए [क्षमयितुम् ] रा० ७७७ २८७,२६२,४१०,५७६,६३७,७३८,७४३, खाय [खात] ओ०१ ७६३,८५७,८६३,८६६,८७५,८५१ खायमाण खादत् ] जी० ३।१११ खुडखड्डग [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८० खार [क्षार] जी० ३३६२७,६५५ खुडखुडय [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८१ खारय [क्षारक] जी० ३१७३१ खुड्डय [क्षुद्रक] रा० २४७. जी० ३।४०६ खारवत्तिय क्षारवतित ] ओ० ६० खुड्डा क्षुद्रक } रा० २४८,२४६. जी० ७११७ खारा [खारा] जी० २६ खुड्डाग [क्षुदक] ओ० २४. रा० ३५४. जी. खारोदय [क्षारोदक ] जी० ११६५ ३१५१६, ७५,६,१०,१२,१५,१६,१८६२ से खिखिणिजाल [किङ्किणीजाल] रा० १६१. जी. ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८,२४३,२४४,२४६, ३३२६५,३०२ २७१,२७३,२७६ से २८२ खिखिणी ! किङ्किणी ] ओ० ६४. रा० १३२,१७३, खुड्डापाताल [क्षुद्रकपाताल] जी० ३१७२६,७२८, ६८१. जी० ३१२८५,५६३ ७२६ खिसण [ खिसन ] ओ० ४६ खुड्डापायाल क्षुद्र कपाताल जी० ३१७२६,७२७, खिसणा [खिसना] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ७२६ खुड्डाय [क्षुद्रक] ओ० १७०. जी० ३।८६,२६० Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुड्डालिंजर-गंडलेहा खुडालिजर [दे० क्षुद्रकालिञ्जर जी० ३।७२६ खोतोदय [क्षोदोदक जी० ११६५ खुड्डिय [क्षुद्रिक जी० ३५९३ खोद क्षीद] जी ३४१३१,६४६ खुड्डिया [क्षुद्रिका] ओ० २४. रा० १७४,१७५, खोदरस [क्षोदरस] जी० ३१८७८ १८०,७७२. जी० ३।१२४,१२५,२८६,२८७, खोदवर। र] जी० ३१८७४,८७५,८७७,६२७ २६२,५७६,६३७,७३८,७४३,७६३,८५७,८६३, खोदोद [क्षोदोद | जी० ३१८७७,८७८ ८८०,६२५, ८६६,८७५,८८१ ६२८,६३२ खुत्तग [दे०] ओ०६० खोदोदग [क्षोदोदक जी० ३१८७५,८८१, ६१० खुद्द क्षुिद्र ] रा० ६७१ खोदोय क्षोदोद, जी० ३।२८६ खुम्भ [क्षुभ् !-- -खुब्भंति जी० ३।७२६ खोदोयग [क्षोदोदक रा० १७४ खुभियजल क्षुभितजल | जी० ३१७८३,७८४ खोमिय क्षोमित ] रा० १७३. जी० ३१२८५ खुरपत्त [क्षुरपत्र] जी० ३।५।। खोम क्षौम ] रा० ३७,२४५ जी० ३३३११ खुहा [क्षुधा ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ४०७,५६५ ३३१०६,११८,११६,१२८,१११४ खोय क्षोद] जी० ३१७७५ खेड (खेट | ओ०६८,८४ से ६३,६५,९६,१५५, खोयरस {क्षोदरस ] जी० ३।५८६ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७ खेत [क्षेत्र] ओ० २८,१६२. जी० ११५०; २।२६ से २६,५४ से ५६,६५,८४,८८,११४,१२३, गग] रा०६५ १३२, ३।१०७, ७४१,७६१,८३८।२५, गइ { गति ] ओ० १६,२१,२७,४६,५०,५४,८६ से ११११ ६५, ११४,११७, १५५, १५७ से १६०, खेत्तओ क्षेत्रतस् । ओ० २८. जी० ११३३,१३६, १६२,१६७,१७२. रा० ७५५,७५७,८१३ १४०।२।१२०, ५८,९,२३.२६; २३, जी० ११४; ३१८३८१२२ ४०,६७,२५७ गइय [गतिक ] जी० ११६४,७४,७७,८७,८८, खेतच्छेद [क्षेत्रछेद ] जी० ३१४६,४७ खेत्तच्छेय [क्षेत्रछेद जी० ३।२१ से २७,४५ गइरइय | गति रतिक ओ० ५० खेत्ताभिग्गहचरय क्षेत्राभिग्रहबरक] ओ० ३४ गंगा [गङ्गा] ओ० ११५,११७. रा० २४५,२७६. खेम [क्षेम ओ०१,१४. ० ६७१ जी० ३१४०७,४४५,६३७ खेमंकर [क्षेमकर] ओ० १४. १० ६७१ गंगाकूला [गङ्गाकूल क] ओ० ६४ खेमंधर [क्षेमधरj ओ०१४. रा० ६७१ गंगामट्टिया (गङ्गामृत्तिका] ओ० ११०,१३३ खेय [खेद] ओ० ६३ गंगावत्तग [गङ्गावर्तक] ओ० १९ खेलूड (दे०] जो० ११७३ गंगावत्तय [गङ्गावर्तक] जी० ३१५६६,५६७ खेलोसहिपत्त (वेलौषधिप्राप्त ओ० २४ गठि [ ग्रन्थि ] ओ० १. रा० २७०. जी० ३।४३५, खोखुन्भमाण | चोक्षुभ्यमान] ओ० ४६ ८७८,६६३,६६७ खोत [क्षोद | जी० ३१६६२ गंड | गण्ड] ओ० ४७,६४,७२ खोतरस [क्षोपरस जी० ३१६६४ गंडमाणिया | गण्डमानिका] रा०७७२ खोतोद क्षोदोद | जी०३१६६१ गंडलेहा [गण्डलेखा] ओ० १५. रा० ६७२. जी० खोतोदग [क्षोदोदक] जी० ३६९४८ ३१५६७ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ jatra गज्ज गंडीपय [ गण्डीपद ] जी० १११०३ मंडोवहाण [ गण्डोपधानक ] रा० २४५ डोहाणिया [ गrडोपधानिका ] जी० ३।४०७ गंता [ गत्वा ] ओ० १८२ जी० ३२७८८ गलूंग [ गत्वा ] ओ०. ११५ गं [ ग्रन्थ ] रा० २९२. जी० ३।४५७ [प्रन्थिम] ओ० १०६,१३२. रा० २८५. जी० ३१४५१,५६१ गंध [ गन्ध ] ओ० २,१५, ४७,५१,५५,६३,६७,७२. ६२,१४७,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० ६. १२, १३,३०,३२,४५, १३२, १५६,१५७,१७२, १६६,२३६,२५८,२७६ से २८१,२६१,२६२, ३५१,५६४,६५७,६७२,६८५,७१०,७१४, ७५१,७५,३,७७१,७७४,७६४,८०२,८०८. जी० ११५,३६,५०,५८,७३,७८,८१ ३२२, ५८,८४,८७, ६५, १२७,२७१, २८३,३०२, ३०६, ३२६, ३७२,३६८, ४१६, ४४५ से ४४७, ४५१, ४५७,५१६,५४७,५७८, ५०६, ५१२, ५६८, ६०१, ६०२,६४५,६४८,६५६,७७५, ८६०,८६६ ८७२,८७८,६३७,६७२, १६२, १०७८, १०८१, १०६७,१११७,१११८,११२४ मंघओ [ गन्धतस् ] जी० ११३७, ५० iverers [गन्धकषायिन् ] ओ० ६३. रा० २८५. जी० ३।४५१ गंग [ गन्धाङ्ग ] जी० ३११७० ति [ गन्धयुक्ति ] ओ० १४६ गंपतो [ गन्धतस् ] जी० ३।२२ गंधद्वाणि [ गन्धप्राणि] ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ गंधमंत [ गन्धवत् ] जी० १/३३, ३६; ३५६२ गंभावण [ गन्धमादन] जी० ३१६६८ गंधमायण [ गन्धमादन] जी० ३१५७७ गंपट्टि [ गन्धवति ] ओ० २,५५,६२. रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२०१ जी० ३।३०२, ३७२, ४४७ java [ गन्धर्व ] ओ० ४६, १२०,१४८.१४६. १६२. रा० १४१, १७३, १६२,६८५, ६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० २।१७१३१२६६, २८५,३१८,५८८ गंषवर्क [ गन्धर्वकण्ठ ] रा० १५५, २५८ जी० ३।३२८ कंठ [ गन्धर्व कण्ठक ] जी० ३।४१९ रंग [ गन्धर्वगृह ] रा० १०२, १८३ जी० ३।२६४ ६०६ गंधव्यणट्ट [ गन्धर्व नृत्य ] रा० ८०६,८१० गंधव्वनगर [ गन्धर्वनगर ] जी० ३१६२८ गंधव्वाणि [ गन्धर्वानीक] रा० ४७,५६ मंहत्थि [ गन्धहस्तिन् ] ओ० १४,१६,२१,५४ रा० ८,२६२,६७१. जी० ३।४५७ गंधादति [ गन्धापातिन् ] जी० ३१७६५ घावाति [ सन्धापातिन् । रा० २७६. जी० ३१४४५ गंधि [गन्धिक] ओ० २,५५. रा० ६,१२,२२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७, ४५१ गंधीय [गन्धिक ] जी० ३।२१० गंभीर [गम्भीर ] ओ० १, ५, ८, १६,२७,४६,४६, ७१. ० १३,१४,६१,१७४, २४५, ८१३. जी० ३८३,११५, ११६,२७४, २८६,४०७, *LE,489 Tere विभत्ति [गकारप्रविभक्ति ] रा० ६५ गगण [ गगन ] ओ० २७,६४. २१० ५०, ५२,५६, १३७,२३१,२४७,८१३. जी० ३।३०७,३९३ √ गच्छ [ गम् ] -- गच्छ. रा० ६८०. - गच्छइ. रा० १५ - गच्छति ओ० १७१. जी० १५४. --- गच्छति, रा० १३. जी० ३ | ४४० - गच्छह रा० ६:-- गच्छामि रा० १६ - गच्छामो. ओ० ५२. रा० ६८७. गच्छाहि. रा० ६६६. - गच्छिहिति. ओ० १४० गच्छंत [ गच्छत् ] ओ० ४० गच्छत्तए [ गन्तुम् ] ओ० १०० गज्ज [ गद्य ] रा० १७३. जी० ३३२८५ √ गज्ज [ गर्ज ] -- गज्जंति. रा० २८१. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० गज्जित-गयलक्षण जी० ३.४४७ गम्भस्थ [गर्भस्थ ] ओ० १४२,१४४ गज्जित [गजित] जी. ३१६२६ गम्भवक्कैतिय [गर्भावक्रान्तिक] जी० ११६७,११७, गड्ड [गतं] जी० ३१६२३,६३१.३ १२५,१२६,१२६; ३।१३८,१४०,१४२,१४५, गिढ [ग्रथ् ]-- गढेज्जा. जी० ३।६६३ १४६,२१२,२१५,२२६ गठित्तए [ग्रथयितुम्] जी० ३१६६० गम्भवास [गर्भवास] ओ० १६५ गढिय [ग्रथित ] रा० ७५३ गम्भाहाण [गर्भाधान ] रा० ८०३ गण [गण] आ० ६.१६,४०,४१,४६,५०,६३,६८, गम गिम्]--गमिस्सामो. ओ १८.-गमिहिति. १५५,१६२,१६२. रा० ३२,२०६,२११. रा० ७६६.-—गम्मती. ओ०७४ जो० ३ ११८,११६,२७५,३७२,५८२,५८६ स गम गम] जी० ३१२१८,६६६,७१३,७४२,७४४, ५६६, ६००,६०३ से ६१७,६२०,६२५,६२७, ७४५,६२८,९२६.१०४५,१०४८ ६२८,६३०,६३९,७४६,११२० गमण [गमन] ओ० ४०,४६,६५,६६,१२२, गमग [गणक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६,७६२, रा० १७,१८,२८८,६५६,६६७,७७५,७७६, ७६४ ७८०. जी० ३४५४,५५६ गणणायक [मणनायक] ओ०१८ गमय [गमक] रा०२५१,२६५. जी०३७५१ गणनायक [गणनायक ] ओ० ६३. रा० ७५४,७५६, गमित्तए [गन्तुम् ] ओ० १०० ७६२,७६४ गय [गज] ओ० १६,४८,५२,५५ से ५७,६२,६४, गणविउस्सग्ग {गणव्युत्सर्ग ] ओ० ४४ ६५. रा०२५,१४१,१४८,१६२,६८७ से ६८६. गणिय [गणित] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ जी० ३१२६६,२७८,३१८,३२१,३५५,४५४, गणवेयावच्च {गणवैयावृत्य] ओ० ४१ ५८६,५६६,५६७,१०१५ गणेत्तिया [दे०] ओ० ११७ गय [गत] ओ० १५,१६,२१,४६ से ४६,६५,१७२, मत [गत] रा० १२२,२८३,२८६. जी० ३१४४३, १७५,१७७,१६५।२२. रा०८,४७,६८,१२२, ४४७,४४६,४५६,५५७,७४६ १२३,१७३,२७५,२७७,२८१,२८६,२६०, गता [गदा जी० ३।११० ६५७,६७२,६८७ से ६८६,७१०,७१९,७५३, गति गति] रा०८१५. जी. ३१५६७,८४२,८४५ ७६५,७७४,७६४,८००,८०२,८०६,१०, गतिकल्लाण [गतिकल्याण] ओ०७२ जी. ३१२८५,४४१,४५५,५६६,५६७ गतिय [गतिक जी० ११५६,६२,६५,६७,७९,८०, गयकंठ [गजकण्ड ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ ८२,१०३,१११,११२,११६,११६,१२३,१२८, गयकंठग [गजकण्ठक] जी० ३१४१६ १३४,१३६ गयकरण [गजकर्ण] जी० ३१२१६,२२३ गयकण्णदीव [गजकर्णद्वीप] जी० ३ २२३ गत गात्र] ओ० ४७,६३. रा० १२,३७,७५८ से गयकलभ [गजकलभ] रा०२५. जी० ३.२७८ ७६१ जी० ३३११८,३११,४०७ गयजोहि [गजयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. गत्तग [गात्रक] रा० २४५ रा० ८१०,८११ गम्भ [गर्भ रा० ८००,८०२. जी० ३.५६२ गयवंत | गजदन्त] रा० २६,१३२. जी० ३१२८२, गम्भघर गर्भगृह जी० ३१५६४ गन्भघरग [गर्भगृहक ] रा ० १८२,१८३. पयवहया [गतपतिका] ओ०६२ जी० ३.२६४ गयलक्षण [गतलक्षण] ओ० १४६. रा० ८०६ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयवइ-गामरोग ares [ गजपति ] ओ० ५१,६३ गयविलंबिय] [ गजविडम्बित ] रा० ६१ गलिसिय [ गजविलसित ] रा० ६१ गया [ गदा] ओ० १. रा० २४६ रहणा [ गर्हणा] ओ० १५४, १६५, १६६रा० ८१६ गरुडज्य [ गरुडध्वज ] रा० १६२. जी० ३।३३५ neu [गरुक ] जी० ११५; ३२२ ror [गरुकत्व ] रा० ७६२,७६३ गल [ गरुड ] ओ० १६,४७, ४८, १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६. जी० ३।५२६ वह [ गरुडव्यूह ] ओ० १४६. रा० ८०६ Toraण [ गरुडासन] २० १८१,१८३२. जी० ३४२६३ यस [गल ] ओ० ५७. जी० ३।५६७ गवख [ गवाक्ष ] जी० ३१६०४ गवखजाल [ गवाक्षजाल ] रा० १३२,१६१. जी० ३।२६५,३०२ व [ दे० आच्छादनम् ] १० १५३. जी० ३।३२६ गवल [ गवल ] ओ० ४७. रा० २५. जी० ३।२७८ गलग [गवेल ] ओ० १,१४,१४१. T० ६७१, ७४४,७६६ वेसण [ गवेषण] ओ० ११७, ११६,१५६ गवसणया [ गवेषणा ] रा० ७६५, ७७४ गवेसि [ गवेषिन् ] रा० ७७४ गह [ग्रह] ओ० ५०, ६३, १६२. रा० १२,७६, १७३, २६१,२६३ से २६६, ३००,३०५, ३१२,३५५. जी० २।१५ ३३२८५,६३१,७०३, ८०६, ८३८३, ६, ६,२२,२६,३०, ८४५, १०२०,१०२१, १०२६, १०३७, १०३८ अवसब्द [ ग्रहापसव्य ] जी० ३।६२६ गहगज्जित [ग्रहगजित ] जी० ३३६२६ गहगण [ ग्रहगण ] रा० १२४. जी० ३।५८६, ६३८११०,२१,८४१,८४२, १०२० जुद्ध [ ग्रहयुद्ध ] जी० ३।६२६ गहण [हणता ] ओ० ५२. रा० ६८७ ग्रहणी [ग्रहणी] जी० ३५६८ गहदंड [ ग्रदण्ड ] जी० ३१६२६ हमुसल [ मुसल ] जी० ३।६२६ विमाण [ग्रहविमान ] जी० २२४२: ३११००६, १०१२,१०१७,१०३१ संघाड [हटङ्गाटक] जी० ३।६२६ हाय [गृहीत्वा ] रा० १२. जी० ३।११८ महित | गृहीत ] जी० ३1३०३,४५७, ४५६,४६१ ४६५ गहि | गृहीत ] ओ० ४६, ४६,७०,११६, १२०, १६२. रा० १२,६६,७०,१३३,२९१,२६३ से २६६, ३००,३०५,३१२,३५५.६६४, ६८३, ६८६, ६१८, ७५२, ७८१,८०४. जी ३/४५८, ४६०, ४६२, ५२०,५५४,५६२ √ गा [ ] - गायंति रा० ११५. जी० ३१४४७. — गिज्जइ. रा० ७८३ गाउय [ गब्यूत, गव्यूति] ओ० १६५. ६ जी० १३८८,६०,१०३, १२१, १२४, १३०; ३३१०७,७८८,६१८,१०२२ गाढ [ गाढ] रा० ७७४ गात [ मात्र ] जी० ३१४५१, ४५७, ६०२, ८६०, ८६६, ८७२,८७८ गाल [ गात्रयष्टि ] जी० ३।५६७ गाया [ गाथा ] जी० ३८८ गाषा [ गाथा ] जी० ३/६३१ गाम [ ग्राम ] ओ १,२८,२६,४६,६८,८९ से १३, ६५,६,१५५ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा० ६६७, ७८७,७८८. जी० ३३६०६,६३१, ८४१ गामकंटग [ ग्रामकण्टक] ओ० १५४, १६५, १६६. रा० ८१६ गामदाह [ ग्रामदाह ] जी० ३१६२६ गाममारी [ग्राममारी ] जी० ३१६२८ गामरोग [ ग्रामरोग ] जी० ३६२८ Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामाणुगाम-गुणं गामाणुगाम [ग्रामाणुग्राम ] ओ० १६,२०,५२,५३. गिलाय [ग्लै] -गिलाएज्जाह. रा० ७२० .... रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ गिल्लि [दे० ] ओ० १००,१२३. जी० ३१५८१. गाय [गात्र ] ओ० १,३६,३७,५२,६३,७०,६४, ५८५,६१० . ११०,१३३. २१० २८५,२६१,६८७ से ६८६. गिह [ गृह ) ओ० २०,५३. रा० ६८१,६८३,७०८, जी० ३।११८ ७१०,७१३,७२३,७२६ गाय [गो] जी० ३।६३१ गिहिथम्म [गृहिधर्म | ओ० ५२,७८,६३. रा० ६८७, गायंत [गायत् ] ओ०६४ ... ६८६,६६५,६६६.७७५ गायलद्वि [गात्रयष्टि] ओ० ७०. रा० २५४. गिहिलिगसिद्ध [गृहिलिङ्गसिद्ध) जी० ११८ ... __ जी० ३।४१५ गीइया | गीतिका ओ० १४६. रा० ८०६ ।। गांवो [गो] जी० ३।६१६ गीत [गीत ] जी० ३१८४२,८४५ गाह ग्राह ] जी० ११६६,११८, ३२४५७. से ४६२, गीय गीत ओ० ४६.६८,१४६. रा० ७,७८, ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ ८०६. जी० ३.३५.०,५६३,१०२३ । गाह [ग्राहय् ] — गाहेइ. ओ० ५६ गीयजस गीत यशस् ] जी० ३१२५६ माहा गाथा ओ० १४६. रा०८०६. जी० ३।५, गीयरई [गीत रति ] ओ० १४८,१४६. रा० १७३, १२,१२७,३५५ ८०६,८१० गाहावइपरिसा [गृहपतिपरिषद् ] रा० ७६७ . . गीयरइप्पिय [गीत रतिप्रिय | ओ०६५ गाहेत्ता [ग्राहयित्वा] अॅ०५६ गीयरति [गीतरति] जी० ३।२८५ V गिज्य [गृध् --गिज्झिहिति ओ० १५०. ... गोवा [ग्रीवा ] ओ० १६. रा० २६. जी० ३१२७६, रा० ८११. . ... . गिण्ह [ग्रह, }--गिहइ. ओ १७०.:-गिम्हति. गुंजत [गुञ्जत् ] ओ० ६ रा० ७६,१७३.. .. - जी० ३।२७५,२८५ .. . रा० २८१. जी. ३१४४५.---गिण्हति. ... रा० २८८-- गिराहामो. ओ० ११७ गुंजद्धराग [गुजार्धराग] ओ० २२. रा०२७,७७५ ७७८,७८८. जी. ३२८० . गिहित्तए [ग्रहीतुम् ] ओ० ११७. जी० ३।६८८ गिम्हित्ता [गृहीत्वा] ओ १७०. रा० २८१. गुंजा [गुजा] रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ जी० ३१४४५ गुंजालिया [ गुजालिका] ओ० ६६. रा० १७४, . गिद्ध [गृद्ध] रा० ७५३ १७५,१८०. जी. ३१२८६ .. गिम्ह [ ग्रीष्म ओ० २६ गुंजावाय {गुजावात ] जी० १८१ गिम्हकाल [ग्रीष्मकाल] ओ० ११५ गुज्झ [गुच्छ ] ओ०.६ से ८,१०. जी० ११६९; गिरा [गिर्] जी० ३।५६७ ..३२७५ गिरि [गिरि रा० ८०४. जी० ३।५६७,८३६ गुज्म [ गुह्य ] रा० ६७५ गिरिपक्खंदोलग [गिरिपक्षान्दोलक | ओ० ६० . गुज्झदेस [गुह्यदेश] जी० ३।५६६ ... गिारपाडयग | गारपतितक] आ० ६० गुड [ गुड] जी० ३४५६२ गिरिमह [गिरिमह] रा०६८८ .... . गुण [ गुण] ओ० १,१४,१५,२३,२५,६३,६६,१२० मिलाणभत्त [ग्लान भक्त ] ओ० १३४ . . . . . १४०,१४३, १५७. रा ६६,७२,१७३,६७१२ गिलाणवेयावच्च ग्लान वैयावृत्य] ओ० ४१:. ६७३,६८६.६६८,७५२७८६,५०१. Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण-गोक्खीर जी० ११५० ३३२८५,५१६, ५१७ गुणकिण [ गुणनिष्पन्न ] ओ० १४४ गुणतर [ गुणतर] रा० ७१८ गुणभाव [ गुणभाव ] ओ० १६५/१२ गुणयालीस [ एकोनचत्वारिंशत् ] रा० १२६ गुणवय [ गुणव्रत ] ओ० ७७. रा० ७८७ गुणसेढिया गुणश्रेणिका ओ० १८२ गुणिय [ गुणित ] जी० ३१८३८२६ गुत्त [ गुप्त ] ओ० २७,१५२, १६४. रा० १२३, ६६४,७७५,७७२,८१३. जी० ३५६२ गुत्तवार [ गुप्तद्वार] रा० १२३, ७५५,७७२ गुत्तपालित [गुप्तपालिक] जी० ३।५६२ गुत्तपालिय [गुप्तपालिक] रा० ६६४ गुत्तभयारि [गुप्तब्रह्मचारिन् ] ओ० २७,१५२, १६४. ० ८१३ गुति [ गुप्ति ] ० ६८६,८१४ सुतिदिय | गुप्तेन्द्रिय ] ओ० २७,३७,१५२,१६४. रा० ८१३ गुप्पमाण [ गुप्यत् ] ओ० ४६ गुफ [ गुल्फ ] ओ० १९. जी० ३ / ५६६ गुमगुमंत [ गुमगुमायमान ] ओ० ६. जी० ३।२७५ गुम्म [ गुल्म] ओ० ६ से ८, १० जी० ११६६; ३।२७५,५८०,६३१ गुरु [गुरु] रा० ६७१ गुल [ गुड ] ओ० ६२. जी० ३।६०१, ८६६ गुल | दे० ] ओ० ५,८,१०. २० १४५. जी० ३१२६८,२७४ गुलगुलंत [ गुलगुलामान ] ओ० ५७ गुलिका [ गुलिका ] ओ० ४७. रा० २५, २६, २८. जी० ३।२७८, २७६, २८१ गुहा [ गुहा ] रा० १७३. जी० ३१२८५ गूढ [ गूढ ] ओ० १६. जी० ३३५६६ गूढवंत [ गूढदन्त ] जी० ३।२१६ गेज्म [ ग्राह्य ] रा० १३३. जी० ३१३०३ / वह [ ग्रह ] - गेण्ह इ. १० ७०८. जी० ३।४५६ - हंति. रा० ७५. जी० ३१४४५ हित्तए [ ग्रहीतुम् ] जी० ३६८६ हिता [गृहीत्वा ] रा० ७५. जी० ३२४४५ पग [ पृष्ठक ] ओ० १० गेय [ गेय ] रा० ७६, ११५,१७३,२८१. जी० ३।२८५,४४ विज्ज [ वेध ] रा० ६६४,६८३ विज्जविमाण [ ग्रैवेयविमान ] ओ० १९२ वेज्ज | ग्रैवेय ] ओ० ५७,१६० रा० ६६,७०. जी० २१६२ ३२५६२,५६३, १०३८,११०३, ११०५, ११०७,१११६,१११७,११२०, ११२३, ११२४,११२६ वेज्जक [वेक] जी० २ १४८, १४९ वेज्जक [ ग्रैवेयक ] ओ० ६३ वेज्जविमाण [ ग्रैवेयविमान ] ओ० १६०. जी० ३ १०६३, १०६६, १०६६, १०७१, १०७३, १०७६ गेवेज्जा [ ग्रैवेयक ] जी० ३३१०८४,१०८६, १०२, १०६५.११०३, ११०५, ११०७, १११६,१११७, ११२०,११२३,११२४, ११२६ ६१३ गेह [ गेह ] जी० ३१६०५,६३९,८४१ गेहागार [ गेहाकार ] जी० ३।५६४ गेहाययण [गेहायतन ] जी० ३१६०५ गेहाव [य ? ] ण [गेहायतन ] जी० ३१८४१ गो [ गो] ओ० १,१४,१४१. ७६६. जी० ३१८४ ० ६७१,७७४, गोकण | गोकर्ण ] जी० ३।२१६.२२४ गोrata [ गोकर्णद्वीप ] जी० ३।२२४ गोकलजग | गोकिलिञ्जक ] रा० १५१. जी० ३।३२४ गोफिलिज | गोकिलिञ्ज] १० ७७२ गोक्खीर [ गोक्षीर] ओ० १६,१६४ जी० ३।६०१, Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोखीर-गोयम ८६६,६५६ गोखीर | गोक्षीर ओ० ४७ रा० १३०. जी० ३:३००,५६६ गोषयवर [गोधृतवर] जी० ३१८७२,६६० गोच्छिय [गुच्छित ] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३।२६८,२७४ गोण [गो] ओ०१०१,१२४,१४४. ___ जी० ३१६१८ गोणलक्षण [गोलक्षण] ओ० १४६ रा० ८०६ गोणस | गोनस] जी० १११०८ गोतमदीव [गौतमद्वीप] जी० ३१७६२ गोतित्य गोतीर्थ ] जी० ३ ७६०, ७६१,७६३ गोधूम गोस्तूप] जी० ३१७३४ से ७४०, ७४२, ७४५,७५० गो)भा गोस्तूपा] जो० ३।७३८,६१०,६२१ गोधूम [ गोधूम] जी० ३१६२१ गोपुच्छ गोपुच्छ] रा० १२७. जी० ३।२६१, ३५२,५६७,६३२,६६१,६८६,७३६,८८२ गोपुर [गोपुर] ओ० १. रा०६५४,६५५. जी० ३१५५४,५६४,६०४ गोप्फ [गुल्फ] जी० ३१४१५ गोमयकोड (गोमयकीट] जी० १८६ ; ३॥ १११ गोमाणसिया {गोपानस्किा ] रा० १३०,२३६, २५१,२६५. जी० ३१३००,४१२,१०३ गौमाणसी [गोपानसी] जी० ३१३६८,४१२,४२१, ४२६ गोमुह [गोमुख ] जी० ३१२१६ गोमुही [गोमुखी] रा० ७७ गोमेज्जमय [ग:मेदमय ] रा० १३०. जी० ३३०० गोय गोत्र ओ० २०,४४,५२,५३. रा० १,११, ६८७,७१३. जी० ३३१२८ गोयम गौतम ओ० ८३,८६,८८ से १५,११४, ११७ से १२०,१४०,१४१,१५५,१५७ से .१६०,१६२,१६७,१७०,१७१,१७३ से १७६, १७८,१७६,१८४ से १५८,१६२. रा० ६३, ६५,७३,७४,११८,१२१,१२३,१२४,१७३, १९७ से २००,६६५,६६६,६६८,७६७ से ७६६,८१७. जी० ११५ से ३७,३६ से ४६,५१ से ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,६३ से १६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३; २।२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४७६,८२ से ८४,८६,८८, ६२,६५ से १८,१०७ से १०६,११३,११४, ११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १४०; ३१३ से १२,१४ से २१,२८ से ३५,३७ से ४४,४८ से ६३,६६,७३,७६ से १८,१०१ से १०४,१०६ से ११०,११२ से ११६,११८ से १२०,१२२ से १२८,१४७,१५० से १६१, १६३,१६७ से १७४,१७६,१७८,१८०,१८२, १८३,१८५ से २०३.२११.२१४,२१७ से २२३, २२७,२३२,२३५ से २३६,२४१ से २४३, २४५ से २४७,२४६,२५०,२५५ से २५६, २६६ से २७२,२७८,२८५,२६६,३००,३५०, ३५१,५६४ से ५६६,५६८ से ५७०,५७२, ५७४ से ५:८,५६६,५६७,५६६ से ६०४, ६२६ से ६३२,६३७ से ६३६,६५६,६६०, ६६४,६६६,६६८,७०० से ७०३,७०५ से ७०८,७१०,७११,७१४ से ७१६,७१८ से ७२३, ७२६५३० से ७३६,७३८ से ७४३,७४५, ७४६,७४८ से ७५०,७५४,७६० से ७६६, ७६८ से ७७०,७७२,७७६ से ७७८,७८३, ७८४,७८७ से ७६५,७६७ से ८००,८०२, ८०४,८०६,८०८,८०६,८११ से ८१५,८१६, ८२०,८२२ से ८२५,८२७,८२६,८३०,८३२ से ५३६,८३६,८४०,८४२ से ८४७,८४६ से ८५१,८५४,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२,८७५,८७८,८८१,८८२,६१८,६३६, १४०,६४४,६५३ से ६६१,६६३ से १६६, Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोयमदीव-घण ६१५ ६६६,९७२ से ६७६,६८२ से १८७,९८६, ५१६,५२०,५४७,५५४ ६६६ से १००८,१०१०,१०११,१०१५, गोहा [गोधा] जी० ११११२ १०१७,१०२० से १०२३,१०२५ से १०२७, गोही [गोधी] जी० २६ १०३७ से १०४२,१०४४,१०५७,१०५८, १०६३,१०६५,१०६७,१०६६,१०७१, घ [घ] रा० ६५ १०७३ से १०७५,१०७७ से १०५१,१०८३, __ घओद [घृतोद] जी० ३६२८६ १०८५ से १०८७,१०८६ से १०६३, घओदय [घृतोदक] जी ० ११६५ १०६५,१०१८,१०६६,११०१,११०५,११०६ से घओयग | घृतोदक] रा० १७४ ११२४,११२८ से ११३१,११३४ से ११३८% घंटय [घण्टाक] जी० ३१२८५ ४।३,५ से ११,१६,१७,१६,२२,२३,२५; घंटा [घण्टा ओ० २,१२,५७,६४. रा० १३.१५, ५।५,८,१०,१२ से १७,१६ से २४,२८ से २३,३२,१३५,१७३,२५८,६८२. जी. ३०,३४,३५,३७ से ३६,४१ से ५०,५२ से ३.२६१,३०५,३७२,४१६ ५६,५८ से ६०, ६८,७२,६,२०, ६२,४, घंटाजाल [घण्टाजाल] रा० १३२,१६१. जो० १० से १४,१६,२३ से २६,३१,३३,३६,४१ ३१२६५,३०२ से ४७,४६,५२,५५,५७,५८,६४,६८,७७.७८, घंटापास [घण्टापाचं ] रा० १३५. जी० ३१३०५ ८६,१०,६६,६७,१०२,१०३,११४,११५, घटायलि [घण्टावलि] रा० १७,१८,२० १२२,१३२,१४२,१६० से १६३,१७१,१८६ घंटिया [घण्टिका | रा० १७,१८. जी० ३१५६३ से १६१,१६३,१६५,१६८ से २०७,२१० से घंस [घर्ष ] जी० ३१६२३ २१२,२१४ से २१६,२२२ से २२५,२२७ से घंसियग [घर्षितक] ओ०६० २३०,२३३ से २३८,२४० से २४४,२४६, घकारपविभत्ति [घकारप्रविभक्ति रा० १५ २४६ से २५३,२५५,२५७ से २६३,२६५, घट्ट [घट्ट] घट्टइ. रा० ७७१--घटेंति २६८ से २७३,२७५ से २८२,२८४ से __ जी० ३७२६ २६३ घटुंत [घट्टयत् ] रा० ७७१ गोयमदीव [गौतमद्वीप] जी० ३६७५४,७५५,७६०, घट्टणया [घट्टन] ओ० १०३,१२६ घट्टिजंत घट्टयमान ] रा० ७७ गोयरग्ग [गोचराग्र] रा० ७१६ घट्टिय | घट्टित] रा० १७३. जी० ३१२५५ गोर [गौर] ओ० ८२ घटु घृिष्ट] ओ० १२,१६४. रा० २१,२३,३२, गोलवट्ट | गोलवृत्त ] रा० २४०,२७६,३५१. जी० ३४.३६,१२४,१४५,१५७. जी. ३।२६१, ३।४०२.४४२,५१६,१०२५ २६६,२६६ गोलियालिछ । गोलिकालिञ्छ | जी० ३।११८ घडग [घटक | जी० ३।५८७ गोव्वइय [गो प्रतिक ओ०६३ घडत्त [घट त्व) जी० ३।२२,२७,७८४,७८७ गोसीस | गोशीर्ष ] ओ० २,५५,६३. रा० ३२, पण [धन ] ओ० १,४,५,८,१३,१६,४७,६८. रा० २७६,२८१.२८५,२६१,२६३ से २६६,३००, ७,१२,११४,१३३,१७०,२८१,७०३.७५५, ३०५,३१२,३५१,३५५,५६४. जी० ३:३७२, ७५८,७५६,७७२. जी० ३१६७,८०,११८, ४४५,४४७,४५१,४५७,४६२,४६५,४७०,४७७, २७३,२७४,३००,३०३,३५०,४४७,५६३, Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमदंत-चउद्दस ५८६,५९६,८४२,८४५,१०२५,११२२ घणदंत | घनदन्त] जी० ३।२१६,२२६ घणवतद्दीव [घनदन्तद्वीप ] जी० ३।२२६॥६ घणवात [धनवात] जी० ३१३,१६,२१,२६,२७, ३७,४७,४६,५०,६४ घणवाय घिनवात ] जी० १९८१, ३१३०,३८,४२, १०५८,१०५६ घणोदधि [घनोदधि] जी० ३६१३,२६,३०,३२, ३७ से ४०, ४५,४६,४८,४६,६० से ७२ घणोदहि [घनोदधि] जी० ३।१८,२०,२७,६३, १०५७ घम्मा [धर्मा] जी० ३।३ घय [धृत] जी० ३३५६२,७७५ घयवर [धृतवर] जी० ३८६८,८६६,८७१ घयोदघतोद] जी० ३८७१,८७२,८७४,६६०, घुण [घुण] रा० ७६१ घुम्मत [पूर्ण्यमान] ओ०४६ घोड [घोट] जी० ३.६१८ घोर घोर | ओ० ४६,८२ रा० ६८६ घोरगुण [घोरगुण] ओ० ८२. रा०६८६ घोरतवस्सि [घोरतपस्विन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोरबंभचेरवासि | घोरब्रह्मचर्यवासिन् ] ओ० ८२. रा० ६८६ घोलंत [घोलयत् ] ओ० २१,५४. रा०८,७१४ घोलियग [धोलितक] ओ०६० घोस [घोय] मो० ६६ घोसण [ घोषण] रा० १५ घोसाडिया कोशातकी] रा० २८. जी० ३।२८१ घोसेयब्व [घोषयितव्य ] जी० ३।८८ [ड] रा०६५ कारपविभत्ति [ङकारप्रविभक्ति] रा० ६५ घयोदग [घृतोदक] जी० ३ घर [गृह } ओ० २८,११८,११६,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६६८,७५२,७८६. जी० ३१५६४ घरग गृहक ] जी० ३१५७६ घरय [गृहक ] ओ०७,८,१०. रा० १८३. जी० ३१५७६,५६३ घरसमुदाणिय [गृहसामुदानिक ] ओ० १५८ घरह | गृहक ] जी० ३१८६३ घरोलिया गृहकोकिला | जी० राई घाइ | घातिन् ] ओ० ८७ घाण घ्राण ओ० १७०. रा०३०,१३२,२३६. जी० ३१२८३,३०२,३९८ घाणिदिय घ्राणेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी. ३१९७६ घातक [घातक जी० ३४६१२ घाय [घात] रा०६७१ घास | ग्राम | ओ० ३३ छ [च ] ओ० ७, रा० ७. जी० २१ चइता [त्यत्वा, चित्वा] ओ०२३. रा० ७६६ चइत्ताणं [त्यक्त्वा ] ओ० १६५।१ चउ [चतुर्] ओ०१६. रा० ७. जी० श१६ चउपक [चतुक] ओ० १,५२,५५. रा०६५४,६८७, ७१२. जी०३।२२६५५४ चउक्कत चतुष्कक मी० ३३१४२,१४४ चउक्कय [चतुष्कक] ० ६५५ चउणउय | चतुर्नवनि | जी० ३१८२३ चउत्थ [चतुर्थ] ओ० १७४,१७६. जी० १।१२१ चउत्थग [चतुर्थक जी० ६.१४६ चउत्थभत्त | चतुर्थभक्त ] ओ० ३२ चउत्था | चतुर्थी ] जी० ३१२ चउत्थी चतुर्थी | जी० २।१४८,१४६; ३.४, ६६,८८,६१.१६५,११११ चउदसपुन्वि [चतुर्दशपूर्विन् ] रा०६८६ चउद्दस [चतुर्दशन् ] ओ० १६. जी० २१४८ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउद्दसी-चंददीव चउद्दसी चतुर्दशी] ओ० १२० १०३,१०५,११३,१२१,१२५,१३५; २।६, चरहसभत्त [चतुर्दशभक्त] ओ० ३२ १०,१५,७८ ; ३२३०,४५१,४५२,५८८, चउप्पई [चतुष्पदी जी० २१५,६ ११३८, ६।११३,१२१,१३१,१४१,१४७ चउप्पद [चतुष्पद] जी० २।११३,१२२, ३।१४२ चउसट्टि [चतुष्पष्टि ] ओ० ६२. जी० ३६११ चउप्पय | चतुष्पद] रा० ६७१,७०३,७१८, चउट्टिया चतुष्पष्टिका | रा० ७७२ जी० ११०१ से १०३,१२०,१२१; २३१,२३, चउसालग [चतुःशालक] जी० ३५९४ ५१, ३८८,१४१,१४२,१६३,७२१ चउहा [चतुर्धा] रा० ७६४,७६५ चउप्पाइया | चतुष्पादिका] जी० २६ चंकमंत [चक्रम्यमाण] ओ०५७ चउम्भाग (चतुर्भाग | जी० ३१२४७,२५०,२५६, चंगेरी [चङ्गेरी रा० १५६,२५८.२७९. १०२७ से १०३५ जी० ३५३२६,३५५,४१६,४४५ चउभाग [चतुर्भाग] जी० २।४० से ४३; ३।२४७ ।। चंचल [चञ्चल | ओ० २३,४६,४६ चउमासिय | चातुर्मासिक | ओ० ३२ चंडचण्ट ] ओ० ४६. रा० १०,१२,५६,२७६, चउम्मुह [चतुर्मुख ! ओ० ५२,५५. रा० ६५४, ६७१,७६५. जी० ३३८६,११०,१७६,१७, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ १८०,१८२,४४५ चउरंगल [चतुरङ्गुल रा० ५६. जी० ३२५६६, चंडा | चण्डा जी० ३१२३५,२३९,२४१,१०४०, ८३८११७ १०४४ चउरत [चतुरंत) ओ० ४६ चंद [चन्द्र | ओ० १६,२७,५०,६४६८,१७०. चउरंस [चतुरस्र] जी० ११५, ३१२२,७७,७८, रा० २६,७०,१३३,२८२,८०२,८०३,८१३. ३५२,५६४,५६७,१०७१ जी० १११८, ३२५८,२८२,३०३,४४८,५६६, चउरकप्प | चतुष्कल्प जी० ३.५६२ ५६७,७०३,७२२,७६२ से ७६४,७६६,७६८, चउरासीइ | चतुरशीति | ओ० ६३. जी० १:१०३ ७७०,७७२,७७४ से ७७६,७७८,८०६,८२०, चउरासीति [ चतुरशीति | जी० ३।१६ ८३०,८३४,८३७,८३८४,७,१०१५ से २३, चउरिदिय चतुरिन्द्रिय ] जी० ११८३,६०; । २५ से २७.२६,३२,८४५,८७३,८७६,८७६, २६१०१,१०३,११२,१२१,१३६,१४६,१४६; ६२६,६३७.६५३,१०१७,१०२०,१०२१, ३।१३०,१३६,१६७,४११,४,८,१४,१८ से १०२३ से १०२६,११२२ २०,२४,२५, ८१,३,५,६।१,३,५,७,१६७, चंदण | चन्दन । ओ० ६.१०,२६,४७,५२,६३, १६६,२२१,२२३,२२६,२३१,२५६,२५६, ११०,१३३. रा० ३०,१३१,१४७,१४८, २६४,२६६ १७३,२५८,२७६,२८०,२८५,२६१,२६३ से चउविसाण [चतुर्विषाण रा० १६२. २६८,३००,३०५,३१२,३५१,३५५,५६४, जी. ३३३३५ ६८७ से ६८६. जी० ३।२८३,२८५,३०१, चउवीस [चतुर्विंशति ] ओ० ३३. जी० ३।२३६ ४४५,४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, चाउम्विध | चतुर्विध] जी० ३।१,४४७ ५१६,५२०,२४७,५५४,५८३,८३८।२६ चउठिवह । चतुर्विध ] ओ० २८,३७,४५,६३,११७. चंदत्यमणपविभत्ति चन्द्रास्तमन प्रविभक्ति | रा० ११४ से ११७, २८१,२८५,२८६,६७५, रा० ८६ ७४०,७४६,७६६. जी० ११५,१०,८३,६१, चंददीक [चन्द्रद्वीप] जी० ३१७६२,७६३,७६६, Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदद्दह-चक्कट्टि ७६८,७७०,७७२,७७४,७७६,७७८ चंदद्दह | चन्द्रदह ] जी० ३१६६७ चंदद्दीव [चन्द्रद्वीप] जी० ३१७६३ चंदद्ध [चन्द्राधं ] ओ० १६. रा०७०,१३३. जी० ३।३०३,५६६,११२२ चंदपडिमा [चन्द्रप्रतिमा] ओ० २४ चंदपरिएस [चन्द्रपरिवेश] जी० ३॥८४१ चंदपरिवेस [चन्द्रपरिवेश] जी० ३१६२६ चंदप्यम चन्द्रप्रभ] स० १६०,२६२. जी० ३१३३३,४५७ चंदप्पभा [चन्द्रप्रभा जी० ३।५८६,७६३,८६०, ६५८,१०२३ चंदप्पह [चन्द्रप्रभ | रा० २५६ जी. ३३४१७ चंदमंडल [चन्द्रमण्डल ] रा० २४,५१,१४६. जी० ३२७७,३२२ चंदमंडलपविभति [चन्द्रमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० चंदव.सय [चन्द्रावतंसक ] जी० ३।१०२४, जी० ३१३०३,३८४,८६६,११२२ चंदावरणपविभत्ति [चन्द्रावरणप्रविभक्ति] स० ८८ चंदावलि [चन्द्रावलि ] रा० २६ चंदावलिपविभत्ति | चन्द्रावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ चंदिम [चन्द्रनम् ] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३।२५७,८४१,८४२,८४५,६६८ से १०००,१०२०,१०२१,१०३८। पन्दुग्गमणपविभत्ति चन्द्रोद्गमनप्रविभक्ति] रा० ८६ चंपक [चम्पक जी० ३।२८१ चंपग [चम्पक | ०२८,८०४. जी० ३१२८१ चंपग [लया | चम्पकलता] जी० ३१२६८ चंपगलया | चम्पकलत! | ओ० ११. रा०१४५. जी० ३.५६४ चंपगलयापविभत्ति [चम्प कलताप्रविभक्ति | स० १०१ चंपगवडेंसय | चम्कावतंसक ] रा० १२५ चंपगवण [चम्पकवन] रा० १७०. जी० ३१३५८. चंपय | चम्पक रा० २८,१८६. जी० ३१२८१, ३५६ चंपारम्पक 10 २८,३०. जी. ३१२८१,२८३ चंपा | चम्पा औ० १,२,१४,१६ से २२,५२,५३ ५५,६० से ६२,६७,६८,७० चंपापविभत्ति । चम्पकप्रविभक्ति ] ० ६३ चकारवग्ग |चका वर्ग) रा०६६ चक्क | चक्र] ओ०१६,१६. रा० १५०,१५१ जी० ३।११०,३२३,३२४,५६६,५६७ चक्कग | चक्रक] जी० ३३५६३ चक्कज्झय चक्रवज रा० १६२. जी. ३१३३५ चक्कद्धचक्कवाल चक्रार्ध चक्रताल रा० ८४ चक्कपाणिलेहा वक्राणि खा जी० ३।५९६ चक्कल ! दे०] रा० ३७. जी० ३६३११ चक्कलक्खण | चक्रलक्षण] रा० ८०६ चक्कवट्टि (चक्रवर्तित् ] ओ० १९,२१,५४,७१. चंदवण्ण चन्द्रवर्ण जी० ३१७६३ चंदवण्णाभ [चन्द्रवर्णाभ] जी० ३१७६३,१००८, १०१०,१०१५ चंदविमाण [चन्द्रविमान] जी० २।१८,४०; ३३१००३ से १००६,१०२७ चंदविलासिणी | चन्द्रविलासिनी रा० १३३. जी० ३।३०३,११२२ चंदसालिया [चन्द्रशालिका] जी० ३५९४ चंदसूरदसणग [चन्द्रसूरदर्शनक ] रा० ८०२ चंदसूरदसिणया [चन्द्रसुरदर्शनिका] ओ० १४४ चंबा [चन्द्रा] जी० ३१७६४,७७६,७७८ चंदागमणपविभत्ति चिन्द्रागमनप्रविभक्ति। रा० ८७ चंदागार [चन्द्राकार | रा० १५६. जी० ३१३३२, चंदाणणा [चन्द्रानना] १० ७०,१६३,२२५. Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्फवाग-चरमणाणुप्पायनिबद्ध ६११ १०८,१५४,२७६,२६२. जी० ३।३२७,४४५, ४५७,५६२,६०२,७६५,८४१,८६६,६५६ चक्कवाग | चक्रवाक ओ०६. जी० ३।२७५ चक्कवाल [चक्रवाल ओ० ७०,१७०. रा० २०१, १०४. जी. ३१८६,२६०,२७३,३६२,५८६, ७०५,७०६,७३२.७६४,७६५,७९७,७९८, ८११,८१२,८२२,८२३,८३२,८४६,८५०, ८८२,६१८ चक्कवह [चक्रव्यूह | ओ० १४६. रा०८०६ चक्किय । चक्रिक | ओ०६८ चक्खिदिय [चक्षुरिन्द्रिय] ओ० ३७. जी० ३१६८ चक्खु [ चक्षुष | रा० ६७५. जी० ३१६३३ चक्खुदंसणि [चक्षुर्दर्श निन् ] जी० ११२९,८६,६०; ___१३१,१३२,१३६,१४० चक्खुदय [चक्षुर्दय] ओ० १६,२१,५४. १०८, २६२. जी० ३१४५७ चक्खुप्फास [चक्षुस्स्पर्श | ओ० ६६,७०. रा० ७७८ चक्नुभूय [चक्षुर्भूत | रा० ६७५ चक्खुल्लोयणलेस [चक्षुलोकनलेश] रा० १७,१८, २०,३२,१२६,१३३. जी० ३२२८८,३००,३०३, ३२,३३.१२६,२८२. जी० ३.२३४ से २३९, २४३,२४५,२४७,२५०,२५६,२५८,२८८, ३००,३११,३७२,४४८ चमस [चमस] ओ० १११ गे ११३,१३७,१३८ चम्म चर्मन् ] रा० २४,६६४. जी. ३१२७७,५६२, चम्म [पाय] चर्मपात्र ] ओ० १०५,१२८ चम्म | बंधण] [चर्मबन्धन ] ओ० १०६,१२६ चम्मपक्खि [चमपक्षिन् ] जी० ११११३,११४,१२५ चम्मयक्खी ! चर्मपक्षिणीj जी० २०१० चम्मपाणि | चर्म पाणिj १० ६६४. जी० ३१५६२ चम्मेढग { चर्मेप्टक रा० १२, ७५८, ७५६. जी० ३.११८ चय | चय, ज्यव ] ओ० १४१. रा० ७६६. जी० ३१११२७ चय [शक्]—चएइ. ओ० १६५।१६ चय |--चयंति. जी. ३०८७ चय [त्यज्]—चय इ. जी० ३३१२६।५ चयंत त्यजन् ] ओ० १९५३ चयण | च्यवन ] जी० ३।१६० चिर [चर्| - -चरइ. जी० ३१८३८१२....चरंति. ओ० ४६. जी. ३१७०३-चरति जी० ३.१००१-चरिसु. जी० ३१७०३ -चरिस्संति जी० ३१७०३ चरण [चरण] ओ० १५, २५. रा० ६८६. जी० ३४५६७ चरमअभिसेयनिबद्ध [चमाभिषेकनिबद्ध ] रा० ११३ चरमंत [चरमान्त ! जी० ३।६६८ चरमकामभोगनिबद्ध चरमकामभोगनिबद्ध] रा० ११३ चरमचवणनिबद्ध चमच्य इननिरद्ध] रा० ११३ चरमजम्मणनिबद्ध | चरमन्मनिबद्ध र० ११३ चरमजोवणनिबद्ध | चरम यौवनगिबद्ध रा० ११३ चरमणाणप्पायनिबद्ध | चरमज्ञानोत्पादनिबद्ध ] रा० ११३ ३७२ चक्खुहर [चक्षुहर रा० २८५. जी. ३१४५१ चच्चय [चर्चक] ग० २६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५९४. जी. ३१४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५४७ चच्चर [चल्वर | ओ० १,५२,५५. रा० ६५४, ६५५,६८७,७१२. जी० ३१५५४ चच्चाग | दे० चर्चाक ] रा० १३१,१४७,१४८, जी० ३.३०१ चच्चाय | दे० चर्चाक] रा० २८०. जी० ३।४४६ चडगर [दे०] रा० ५३,६८३,६६२,७१६ चत्तालीस | चत्वारिंशत् ] जी० ३।६६ चतुरासीति | चतुरशीति | जी० ३।८८२ चतुरिदिय | चतुरिन्द्रिय ] जी० २।१३८,१४६; ४२१ चमर [चभर] ओ० १३,६८. रा० १७,१८,२०, Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० चरमतयचरणनिबद्ध [ चरमतपश्चरणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमतिस्तनिबद्ध [ चरमतीर्थप्रवर्तन निबद्ध ] रा० ११३ ataforefros [ चरमनिष्क्रमणनिबद्ध ] रा० ११३ चरमनिदाघकाल [ चरमनिदाघकाल ] जी० ३१११८, ११६ चरमनिबद्ध [ चरमनिबद्ध ] रा० ११३ चरमपरिनिव्वाणनिबद्ध | चरमपरिनिर्वाणनिबद्ध ) रा० ११३ चरमपुष्वभवनिबद्ध [ चरमपूर्व भवनिबद्ध ] रा० ११३ चरमबालभावनिबद्ध [चरमबालभावनिवद्ध ] रा० ११३ चरमसाहरणनिबद्ध | चरमसंहरणनिबद्ध | रा० ११३ चरमाण [ चरत् ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. २० ६८६, ६८७, ७०६, ७११, ७१३ aft [ चरित्र ] रा० ६८६, ८१४ चरितविणय | चरित्रविनय | ओ०४० चरितसंपण्ण [ चरित्र सम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ चरिम | चरम ] ओ० ११७, १५४, १९२, १९५१३. रा० ६२, ७६६, ८१६. जी० ६१६३, ६४,६६ चरिमंत | चरमान्त | जी० ३।३३, ३४, ३७, ३८, ६० से ६८,२१७,२१६ से २२५, २२७,६३२, ६३. ६६६, ११११ चरिमभव [ चरमभव ] ओ० १६५४४ चरिममोहणिज्ज [ चरममोहनीय] ओ० ८६ aft [ चरित] ओ० ४६ चरिया [ चरिका ] ओ० १, १६०. रा० ६५४, ६५५. जी० ३।५५४, ५६४ रियल सामण्ण [ चर्यालिङ्गसामान्य ] ओ० १६० चर [ चरु ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ √ चल [ चल् ] - चलइ. रा० ७७१ -- चलति. जी० ३७२६ -- चाले. रा० ७७१ चलंत [ चलत् ] ओ०५, ८, ४६. ० ७७१ चरमतवचरण निबद्ध - चामर जी० ३।२७४ चलण [ चरण ] ओ० १६. जी० ३।५६६, ५६७ चलणमालिया । चरणमालिका ] जी० ३।५९३ चलणी | चलनी । जी० ३।६२३ चलिय | चलित ] रा० १७, १८, २० √चव [ च्यु ] -- चवति जी० ३१८४३ चवण [ च्यवन ] रा० ८१५. जी० १११४ चबल [ चपल ] ओ० २१,४६, ४६, ५४.०८, १०, १२ १५, ३२, ५६, १७६, ७१४. जी० ३३८६, १७६, १७८, १८०, १८२, ४४५ चवलायत [ चलायमान ] जी० ३१५६७ चवलिय [ चलित ] जी० ३१५८७ चसग [ चपक] जी० ३।५८७ art [ त्यागिन् ] ओ० १६४ चाउवकोण | चतुष्कोण ] रा० १७४. जी० ३३११८, ११६, २८६ चाउरघंट [ चतुर्घण्ट ] रा० ६८१ से ६६३, ६८५, ६९० से ६६२, ६६७, ७०६, ७१०, ७१४, ७१६, ७२२, ७२४, ७२६ चाज्जाता | चतुजतक ] जी० ३१८७८ चायाम [ चातुर्याम ] रा० ६६३,७१७,७७६ चाउज्जामिय | चातुर्यामिक ] रा० ६६५, ६६६ चात्थगाहिय | चातुकाहिक ] जी० ३२६२८ चाउस [ चतुर्दश | T० ७७४ उसी [ चतुर्दशी | ओ० १६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ चार भाइया | चातुर्मागिका ] २१० ७७२ चाउमासिय[ चानुमनिक ] जी० ३।९१७ चाउरंगणी [ चतुरङ्गिणी] ओ० ५५ से ५७,६२, ६५ चाउरंत | चतुरन्त | ओ० १६,२१,५४. रा०८, १५४,२९२. जी० ३ ३२७, ४५७, ६०२,८६६, ६५६ चाउरक्क [ चातुरक्य ] जी० ३।६०१,८६६ चाडुकर [ चाटुकर] ओ०६४ चामर [ चामर] ओ० १२,१६,६३ से ६५. Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चामरग्गाह-चियत्त रा० २२,२३, ५०, १६०, १६७, १७८, २५६, २७६. जी० ३।२६०, २६१,३३३, ३४८, ३५५, ३८२,४१७,४१६, ४४५, ५६७ चामरगाह [ चामरग्राह ] ओ० ६४ चामरधारपडिमा | चामरधारप्रतिभा ] रा० २५६. जी० ३।४१७ चार [ चार] ओ० ५०,१४६. रॉ० ८०६. जी० ३।७०३, ७२२, ८०६, ८२०,८३०, ८३४, ८३७,८३८१२,१३,२०,२२,८४२, ८४५, १००१, १००३ से १००७ चारगबद्धग [चारकबद्धक ] ओ० ६० चारण [ चारण ] ओ० २४. जी० ३।७६५,८४०, ८४१ चारि [चारित् ] ओ० ५०. जी० ३३५६७ चारु [चारु ] ओ० १५, १६,२५,४६. रा० ७०,७६, १३३,१७३,६६४,६७२,८०६,८१०. जी० ३३२८५,३०३, ५६२,५८७,५६६,५६७, ११२२ चारुपाणि [ चारुपाणि] २० ६६४. जो० ३।५६२ चालय [ चालित ] रा० १७३. जी० ३।२८५ चालेमाण [ चालयत् ] जी० ३।१११ चाव [ चाप] ओ० १६,६४. रा० १७३,६६४, ६८१. जी० ३३२८५, ५६२,५६६,५६७ चावग्गाह [ चापाह ] ओ० ६४ चावपाणि | चापपाणि] रा० ६६४. जी० ३।५६२ चास [ चाप ] रा० २६. जी० ३।२७६ चासपिच्छ | चापपिच्छ ] रा० २६. जी० ३।२७६ चिउर | चिकुर ] रा० २५. जी० ३१२८१ चिउरंगराग | चिकुराङ्गराग ] जी० ३१२८१ चिउरंगरात | चिकुराङ्गराग ] रा० २८ fear | चिन्ता | ओ० ४६. जी० ३६४८, ६४६ चितिय | चिन्तित | ओ० ७० रा० ६, २७५, २७६, ६८८, ७३२,७३७,७३८, ७४६,७६६,७७७, ७६१,७६३,८०४. जी० ३।४४१, ४४२ fe | चिह्न | ओ० ४७ से ५१. रा० ६६४,६८३. जी० ३३५६२ ६२ चिक्खल [ दे०] ओ० ४६ fever [ त्यक्त्वा ] ओ० २३. रा० ६६५ / चिट्ठ [ ष्ठा ] - चिट्ठइ. ओ० ३७. रा० १२३. जी० ३१४८. -- चिट्ठति ओ० १०३. रा० ४०. जी० ३।२२. - चिट्ठति रा० २७६. जी० ३ । ४८. - चिट्ठह रा० ७५३. चिट्ठेज्ज ओ० १८० चिट्ठ ] दे० ] रा० ७२३ चिट्ठित [ चेष्टित ] रा० १३३ चिट्टिय [ वेष्टित ] रा० ७०,८०६,८१० चित्त [चित्त] ओ० २०,२१,४६,५३,५४,५६,६२, ६३,७८,८०, ८१. रा० ८,१०,१२ से १८,२०, २४, ३२, ३४, ३७,४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४, १२६, २७७, २७६, २८१,२६०,६५५, ६८१, ६८३,६९०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०,७१३. ७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६,७७४, ७७८ चित्त [चित्र, चित्त ] रा० ६७५,६८०, ६८१,६८३ से ६८५, ६५६,६९०,६९२,६६३,६६५ से ७१०,७१३,७१४,७१६ से ७३६,७४८ चित्त [ चित्र ] ओ० १६,४६,५७,६४. २० ६६, १३०, १३७,१५४,१६०, १७३,२५६,२५८, २७६, २८५,६८१. जी० ३।२८५,३००, ३०७, ३२७,३३३, ३५५,४१६,४४३, ४४५, ४४७, ४५१,५५५,५१६ चित्तंग [चित्राङ्ग ] जी० ३।५६१ चित्तंग | चित्राङ्गक ] जी० ३२०५६१ चित्तंतरलेस [चित्रान्तरलेश्य | जी० ३।८४५ चित्तंतरलेसाग | चित्रान्तरलेश्याक ] जी० ३१८३८/२ farara [चित्रगृह ] रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ चित्तपट्ट [चित्रपट्ट ] रा० ६६ चित्तरस | चित्रस] जी० ३ ५६२ चित्तल [ चित्र | जी० ३।६२० चित्तवीणा [चित्रवीणा ] रा० ७७ चित्तसाल | चित्रशाल | जी० ३१५६४ चित्त [ ० प्रीत, सम्मत ] ओ० ३३, १६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६ Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ चिरट्रिइय-चोयग चिरदिइय [ चिरस्थितिक] ओ०७२ १३, १५, ५६, ५८, २४०,२७६, ६७८,६८६, चिराईय [विरादिक, चियतीत ] ओ० २. रा० २ । ६८७,६८६,६६२,७००, ७०४, ७०६,७११, चिराहड [विराहत] रा० ७७४ ७१६, ७७६ चिलाइया | किरातिका] रा०८०४ चेइयखंभ [चैत्यस्तम्म। रा० २३६ से २४२,२४४, चिलाई किराती ओ०७० ३५१. जी० ३४०१ चिल्लय दि० ओ० ४६. जी० ३१५८६ चेइयथभचत्यस्तू। रा० २२२ से २२४, २२६, चिल्ललग | दे०] १० ६६. जी० ३१६८२ ३०५,३१६,३४३. जी० ३,३८१,३८२,३८५, चोणंसुय [ची नाशुक | जी० ३१५६५ ४७०, ४८१, ५०८ चीणपिट । चीनप्रष्ट ] रा० २७. जी० ३१२८० चेइयमह [चैत्यमह] रा०६८८. जी. ३१६१५ धुण्ण | चूर्ण | रा० १५६, १५७, २५८, २७६, चेइयरक्य | चैत्यरूक्ष ] 1० २२७ से २३०, ३१०, २८१,२६१. जी० ३।३२६, ८१६, ४४७,४५७ ३१५, ३४८. जी० ३।३८६ से ३८८, ३६१, चुण्णजत्ति [चूर्णयुक्ति ] ओ० १४६ ३६२,४१२, ४७५. ४८०, ५१३ चुय | च्युत | ओ० ८८ चेद्रिय [चेष्टित ] जी० ३।३०३, ५६७ चुलणिसुत | चुलनीसुत] जी० ३१११७ चेड [चेट] ओ० १८. १० ७५४, ७५६, ७६२, चुलसीत [चतुरसीति] जी० ३१७२८ ७६४ चुल्लहिमवंत [क्षुल्ल हिमवत् ] रा० २७६. चेडिया [ चेटिका ओ० ७०. रा०८०४ जी० ३।२१७, २१६ से २२१, ४४५, ७९५, चेतिय [चंत्य ] जी० ३।४०२, ४४२ ६३७ चेतियखंभ [चल्यस्तम्भ ] जी० ३।४०२ से ४०४, चूचुय [चूचुक] रा० २५४. जी० ३६४१५, ५६७ ४०६, ४४२, ५१६, १०२५ चूममणि | चूडामणि] रा० २८५. जी० ३१४५१ चेतियथूभ । चैत्यस्तूप] जी० ३१३८३, ४८१,६६४, धूत [चूत ] जी० ३१३५१ ८६५, ८६७ चूतवण | चूतवन] जी० ३१३५८ चेतियरुक्ख [चैत्यरूक्ष जी० ३।८६८, ८६६ चूय [चूत] रा० १८६ चेल (पाय) [चेलपात्र] ओ० १०५, १२८ चूय (लया) | चूतलता जी० ३।२६८ चेल (बंधण) चेलबन्धन ओ० १०६, १२६ चूयलया । चूतलता ओ० ११. रा० १४५. चेलुक्खेव [चेलोत्क्षेप] रा० २८१. जी० ३।४४७ जी०३:५८४ चोउट्टि [ चतुष्पष्टि] जी० ३।२१८ चूयलयापविभत्ति तलनाविभक्ति] रा० १०१ चोक्ख [चोक्ष] ओ० २१, ५४, ६८. रा० २७७, चूयवडेंसय | चूतावतंसक रा० १२५ २८८, ७६५, ८०२. जी० ३१४४३ चूयवण | चूतन रा० १७०. जी० ३३५८ चोक्खायार चोक्षाचार] ओ०६८ चूलामणि | चूडामणि ओ० ४७, १०८, चोत्तीस | चतुत्रिशत् ] जी० ३।६६६ जी० ३।५६३ चोट्स | चतुर्दशन् ] जी० ३१३६ चूलिया । चलिका ० ३८४१ चोप्पाल [चोप्पाल] रा० २४६ जी० ३।४१०, चूलोषणय [ चूडपनय ] श०८०३ ५२०,६०४ चूलोवणयण ! बूढानमन] जी० ३।६१४ ।। चोप्यालय चोप्पालक ] रा० ३५५ चेइय [चे य] ओ० १ से ३,१६ से २२, ५२, ५३, चोय [दे०रा० ३०. जी० ३।२८३,३३४,४१६.५८६ ६५, ६६, ७०, १३६. रा० २, ८ से १०,१२, चोयग दे०] रा० १६१,२५८,२७६ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोयाल-छरु चोयाल [प्रतुश्चत्वारिंशत् ] जी० ३.८३० चोयासव [दे० कोशासव] जी० ३८६० चोर चोर ओ० ११७ ग० ७५४,७५६,७६२ चोरकहा चोरकथा ओ० १०४,१२७ चोवत्तरि चतु:सन्तति जी० ३१७३३ (छ) छ षष् ] रा० १७३ जी०१:४६ छउमत्थ छमस्थ] ओ० १६६,१७०. रा० ७७१. जी० १३१२६३।६६३,३,६६७, ९३६,४२ से ४४,४६,५१ छउमत्यपरियाग [छयस्थपर्याय ] ओ० १६६ छंद [छन्द] ओ० ६७ रा० ७२० छकोडीय [षट्कोटोक] जी० ३६४०१ छगल [लगल] ओ० ५१ जी० ३.१०३८ छज्जीवणिया [षट्जीवनिका ओ० ७४१३ छट्ट | षष्ठ| ओ०६७,१४४,१७४,१७६, रा० छत्त [छत्र] ओ० २,१६,५२, ५७,६३ से ६५, ६७,६६,७०. रा० १५६,१७३,२७६,६८१ से ६८३,६६१,६६२,७००,७१५,७१६,७१६. जी० ३।२६६,२८५,३३२,३५५,४१६,४४५. ५९६,५६७,६०४ छत्तज्मय [छत्रध्वज ] २० १६२. जी० ३।३३५ छत्तपारपडिमा [छत्रधारप्रतिमा] जी० ३१४१६ छत्तधारमपहिमाछत्रधारकप्रतिमा रा०२५५ छत्तय | छत्रक] ओ०११७ छत्तलक्खण [छत्रलक्षण औ० १४६. रा० ८०६ छत्ताइच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० २०२,२०४, २०५ छत्ताइछत्त [छत्रातिछत्र) ओ० १२. रा० १३७, २२६. जी० ३१२६१,३१४,३५७,३७१,३७५, ४३३ छतातिच्छत्त [छत्रातिछत्र] रा० ५२,५६,२०६, २३१,२४७,२४८,२५०,२५६ छत्तातिछत्त [छत्रातिछत्र] रा० २३,१६८,१७६, २०७,२०८,२२०,२२३,२३२,२३४,२६१, जी० ३.३०७,३४६,३५६,३६७ से ३७०, ३७६,३८२,३६१,३९३,३६४,३६६,४०३, ४११,४२०,४२४,४३०,४३६,६६६ छत्तीस [षत्रिंशत् ] ओ० १६. रा० २४०. जी. ३७१० छत्तोव | छत्रोष ओ० ६,१०. जी० ३।५८३ छत्तोवग छत्रोपका जी० ३।३८८ छप्पण्ण षट्पञ्चाशत् जो० ३१३०० छप्पन्न | पटपञ्चाशत् । रा० १३० जी० ३१५६८ छप्पय (षट्पद] ओ० ६. रा० १३६,१७४. जी० ३१११८,११६,२७५,२८६,३०६ छब्भाग षड्भाग ओ० १६५ छन्भामरी पड्भ्रामरी न०७३ छम्मासिय [पाण्मासिक ओ० ३२ छयाल [षट्च वाभित्] जी० ३१८१५ छरु सरु | ओ० १६. जी. ३५६६ छठंछट्ठ षष्ठंषष्ठ] ओ० ११६ छट्ठभक्त [षष्ठभक्त ] ओ० ३२ छट्ठा षष्ठी | जी० २११३५,१३८; ३१२,६१ छविया षष्ठिका] जी० ३।१२५ छट्ठी [पष्ठी] जी० २११४,१४६ ; ३।४,३६.७१ ७४,७५,७७,८०,११११ छडिय [छटित रा० १५० जी० ३१३२३ छिडछर्दय, मुच्]-छड्डेति. रा० ७७४ छड्डेस्यामि. रा ० ७७३-छड्डेहि रा० ७७४ छडिल्लिया छाँदा ओ० ६२ छ?त्तए [दयितुम् ] रा० ७७४ छड्डेत्ता छदिया] 1. ७७४ छण्ण | छन्न | जी० ३।२७५ छण्णउय [षण्णवति । जो० ३१८२० छण्णालय [दे० पणालक] ओ० ११७ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ छरुप्पवाद-जंधा छरुप्पवाद [सहप्रवाद] ओ० १४६ छिप्पंत [स्पृश्यमान] रा० ७७ छरप्पवाय [त्सरुप्रवाद] रा० ८०६ छिरा [शिरा) जी० १।६५,१३५ ; ३६६२,१०६० छरुह [त्सरुक] जी० ३।३२२ छिरिया | दे० ] जी० ११७३ छलस [पड़न] जी० ३३४०१ छिवाडो [दे० ] रा० २६. जी० ३।२८२ छलसीत [पडशीति] जी० ३१७३६ छोइत्ता क्षुत्वा जी० ३।६३० छल्लो (दे०] रा० २८. जी० ३१२८१ छोरबिरालिया [क्षीरबिडालिका] जी० राह छवि [छवि जी०३६६,५६८ छोरविरलिया [क्षीरबिडालिका] जी० १७३ छविगहित / पविग्रहिक] जी० ३।४०१ छुभ [क्षिप्]-~छुभइ रा० ७८८.---छुभिस्सामि छविच्छेद छविच्छेद] जी० ३१६२० रा० ७८७ छविच्छेय [छविच्छेद रा० ७६२. जी० ३६२५ छुहा [क्षुध् ] ओ० १६०१८ छम्विह [पविध ] ओ० ३० ३१,३८. जी० १।१०, छुहिय [क्षुधित] जी० ३.११६ ११६; ३।१८३,१८५,६३१; ५।१,६०; ६:१५६. छेत्ता [छित्त्वा ] जी० ३१९६१ १६७,१७०,१८१ इछेद [छिद् ] -- छेदेति ओ० ११७ छव्वीस षड्विंशति | जी० ३।१०६६ छेदारिह [छेदाई ] मो० ३६ छाउमस्थिय छानस्थिक] रा० ५४६ छेदित्ता [छित्वा ] ओ० ११७ छादण [छादन] रा० २७०. जी० ६।२६४,३००, छदेत्ता [छित्त्वा] ओ० १६२ छेदोवद्रावणियचरित्तविणय [छेदोपस्थापनीय छायण [छादन] रा० १३०,१६० चरित्रविनय ] मो० ४० छाया छाया] ओ० १२,४७,७२,१६४. रा० २१, पछेय [छेदय् ]-छेइस्सइ. रा०८१६ २३,२४,३२,३४,३६,१२४,१४६,१५६,१७०, ० छेय [छेक ] ओ० ६३,६४. रा० १२,१७३,६८१, २२८,६७०,७०३. जी० ३१२६१,२६६,२६६, ७५८,७५६,७६५,७६६,७७०. जी. ३८६, ११८,१७६,१७८,१८०,१८२,२८५,४४५, २७७,३२२,३३२,३८७,५६८,६०४,६७२ छाक्ट्ठ [षट्पष्टि] जी० ३.१०२२ छावट्टि [षट्पप्टि ) जी० ३१८३८।४ छेयकर [छेदकर] ओ० ४० छेयारिय [छेकाचार्य] ओ० १.५७ छावत्तर षट्सप्तति] जी० ३१७०३ छिद | छिद्-छिद. रा०६७१...दिति रा० छवट्ट सेवात] जी० १।१७,५६,१०१,१११ २८१. जी० ३।४४७ ___ छोडिय [छोटित] जी० ३।५६६ पछिज्ज छिद् ]-छिज्जइ. रा० ७८४ छिज्जमाण [छिद्यमान] जी० ३१२२ से २५,२७, ज [यत् ओ० ३७. रा० ६. जी०१५ ४५ से ४७ जइ [यदि] ओ० ५७. रा० ७१८. जी०२५५ छिड्ड [छि:! ० ७५४ से ७५७ जइण [जविन् ] ओ० ५७. रा० १२,७५८,७५६. छिण्णावाय छिन्नापात | ओ०११६,११७. जी० ३ ८६,१७६.१७८,१८०,१८२,४४५ रा० ७६५,७७४ जइपरिसा यतिपरिषद् ] ओ० ७१ छित्त [क्षेत्र] ओ०१ जओ (यतस् ] रा० ७५४,७५५. जी० १६६ छिद्द [छिद्र ] रा० ७६३ जंघा [जङ्घा ओ०१६. रा०२५४. जी. ३१४१५, Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंत-जनबोल ६२५ ५६६,५६७ यूकस [जम्बूफल ] ओ० १३. रा० २५.५ जंत [यन्त्र] ओ० १४ रा० १७,१८, २०,३२, जी० ३।२७८ १२६,६७१. जी. ३२२८८,३००,३७२ अंबफलकालिया जिम्बूफलकालिया] जी० ३१८६० जंतकम्म [ यन्त्रकर्मन् ] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जंबूरुक्ख [जम्बूरूक्ष ] जी० ३१७०२ जी० ३।२८५ जंबूवण (जम्बूवन] जी० ३१७०२ अंतवारचल्ली [यन्त्रपाट चुल्ली] जी० ३१११८ जंबूसंउ [जम्बूपण्ड] जी० ३।७०२ जंबुद्दीव [जम्बूद्वीप] ओ० १७०. रा. ७ से १०, जंभाइत्ता | जृम्भयित्वा] जी० ३१६३० १३,१५,५६,१२४,६६८. जी. ३८६,२१७, जक्ख ! यक्ष ] ओ० ४६,१२०.१६२. रा०६९८, २१६ से २२१.२२७२५६,२६०,२६६. ७५२,७८६. जो० ३१७८०,६४७,६५० ३००,३५१.४४५,५६६,५६८ से ५७७,६३८, जक्खगह [यक्षग्रह | जी० ३।६२८ ६६०,६६५,६६६.६६८,७०१ से ७०४,७०८, जक्खपडिमा [ यक्षप्रतिमा ] रा० २५७. जी० ३१४१५ ७२३,७३६,७४०,७४२,७४५,७५०,७५४, जक्खमंडलपविभत्ति (यक्षमण्डलप्रविभक्ति। रा०६० ७६२,७६४ से ७६६,७७५,७६५.६.१६ से १२२, जक्खमह [यक्षमह] रा० ६८८, जी० ३१६१५ ६५३,१०३६.१०७४,१०८० जस्खालित्त [यक्षादीप्त ] जी० ३।६२६ जंबुद्दीवग [जम्बूद्वीपक] जी० ३१७०६,७१०, जगईपब्वय [जगतीपर्वत] रा० १८१ ७६२,७६४ से ७६६,८१४ जाईपव्वयग [जगतीपर्वतक] रा० १८० जंबुद्दीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति] जी० ३।७६५ अगती [जगती] जी० ३।२६० से २६३,२७३, जंबुपेठ ]जम्बूपीठ] जी० ३१६६८,६६६ जंबू [जम्बू ] जी० ०७१, ३॥६६८,६७२,६७३, बगतीपश्चयग [जगतीपर्वतक] जी० ३२६२ ६७८ से ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, अघण [जधन ] ओ०१५ जच्च [जात्य ] ओ० १६,६४. जी० ३.५६६,५९७, जंबूणदमय [जाम्बूनदमय जी० ३१३२३ ८५४,८७८ जंबूणय [जाम्बूनद] रा० १५६,२२८. जच्चकणग जात्यकनक] ओ० २७. रा० ८१३ जी० ३१३३२,३८७,६७२ जच्च हिंगुलुथ [जात्यहिंगुलुक] जी० ३१५६० बंधणयमय [जाम्बूनदमय रा० ३७,१५०. जज्जरिय [जर्जरित रा०७६०,७६१ जी० ३१३११,४०७,६४३ जडि [जटिन्] ओ० ६४ जंबूणयामय जाम्बूनदमय] रा० १३५,१८८, जड्ड [जाड्य] रा० ७३२,७३५,७६५ २४५. जी० ३।३०५,३६१,६६६,६८६, जण जन] ओ० १,६,६८,११६. रा० १२३, ८३६ ७६६ जंबूदीव [जम्बूद्वीप] जी० ३१७००,७५४,१००१, जणइत्ता [जनयित्वा] ओ० ६६ १००७,१०२२ जणउम्मि [जनोमि रा०६८७,७१२ जंबूदीवाहिवति [जम्बूद्वीपाधिपति ] जी० ३१७०० जणकलकल {जन कलकल ] ओ० ५२. रा० ६८७, जंबूपल्लवपविभत्ति [जम्बूपल्लवप्रविभक्ति] ६८८,७१२ रा० १०० जणक्सय [जनक्षय ] जी० ३।६२८ जंबूपेढ [जम्बूपीठ] जी० ३१६६८,६७० जणबोल जनबोल] ओ० ५२. रा० ६८७,७१२ २६८ ७६५ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२६ जणवय-जल जणवय जनपद] ओ० १४६. रा०६६८,६६६, ६७१,६७६,६८३,७०६,७११,७१८,७५०, ७७४,७६०,७६१ जणवयकहा [जनपदकथा] ओ० १०४,१२७ जणवयपाल [जनपदपाल ] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपिय [जन पदप्रिय] ओ० १४. रा० ६७१ जणवयपुरोहिय [जनपदपुराहित | ओ० १४ रा०६७१ जणवाय | जनवाद] ओ० १४६. रा० ८०६ जणवूह [ जनव्यूह ! मो० ५२ रा० ६८७,७१२ जणसण्णिवाय [जनसन्निपात ] ओ० ५२. रा०६८७,७१२ जणसद्द [जनशब्द ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ७१२ जणिय [जनित] ओ० ५१ जणुक्कलिया [जनोत्कलिका] ओ० ५२ जम्मि [जनोमि ] ओ० ५२ जण्णइ याज्ञिक ! ओ०६४ जण्णु [जानु ] रा० १२ जति [यदि] रा० ७५० जतिपरिसा [यतिपरिषद् ] रा० ६१ जतो [यतस् | रा० ७५६ जत्ताभिमुह यात्राभिमुख ओ० ५५,५८,६२,७० जत्तिय [ यावत् ] जी० ३१७७,१२७ जत्थ [यत्र] रा० ७१६. जी० ११५८ जया (यथा] जी० ३६८ जन्न [यज्ञ] जी० ३१६१४ जन्नु [जानु] रा०६ जप्पभिइ | यत्प्रभृति रा० ७६०,७६१ जमहत्ता [दे० '] ओ० २६ जमग यमक जी० ३३६३२,६३३,६३५,६३७ से जमगवण [यमकवर्ण] जी० ३१६३७ जमगवण्णाभ [यमकवर्णाभ] जी० ३१६३७ जमगसमग [दे०] ओ०६७. रा० १३,६५७ जी० ३१४४६ जमगा [यमका] जी० ३१६३७ से ६३६ जमगागार [यमकाकार जी० ३१६३७ जमबग्गिपुत्त जमदग्निपुत्र] जी० ३३११७ जमल [यमल] ओ० १,५७. रा० १२,१७,१८,२०, ३२,१२६,१३३,७५८,७५६. जी० ३.११८,२२८,३००,३०३,३७२,५६७ जमलिय यमलित ओ० ५,८,१०. रा० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जम्म | जन्मन् ] ओ० १८४ जम्मण जन्मन्] ओ० ४६. रा० ८०३. जी० २:३० से ३४,५७ से ६१,६६,११६, १२४,१३३ : ३।६१७ अम्हा [यस्मात्] रा० ७५० जय [जय] ओ० २०,५३,६२ से ६४,६८. रा० १२,४६,७२,११८,२७६,२७६,२८२, ६५५,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७२३. जी० ३।४४२,४४५,४४८ जयंत [जयन्त ] ओ०१६२. जी० ३।१८१,२६४ ५६८,७०७,७१२,७६६,८१३,८१४,६४१ जयंती [जयन्ती] जी० ३।६१६,१०२६ जयणा [यतना] ओ० ४६ जया [ यदा] ओ० २१. रा० ७० ६. ३।७२६ जर [जरा] ओ० ४६,१७२ जर [ज्वर] जी० ३३११८,११६,६२८ जरद [जरठ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ जरा जरा] आं०७४,१६५,१६५।८,२१. रा० ७६०,७६१ जल जल ओ० १,२३,४६,६८,१११ से ११३, १२२,१३७,१३८,१५०. रा० १७४,८११. जी. ३।११८,११६,२८६,६४२,६५३,७५४, ७६२,७६८,७७०,७७२ जिस [ज्वल्] —जलंति. रा० २८१, जी० ३।४४७ जमगप्पमा [यमकप्रभा जी० ३१६३७ १. पुनरावर्तनेनातिपरिचितं कृत्वा (३०) । Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलत-बहण्ण जलंत ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ___ ७७८,७८८,८१३ जलकिडा [जलक्रीडा] रा० २७७. जी. ३१४४३ जलचर [जलचर | जी० ३:१२६:१,१६६ जलज [जलज) जी० ३.१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् । ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण जलमज्जन } रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ०१२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ० १५६. जी० १२९८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २१२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३११३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी जलचरी] जी० २,३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह ! जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६५ जल्लपेच्छा [जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३१६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त ] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३।५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित) जी० ३३२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम रा०४५ जस [ यशस्] ओ०८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [ यशोधरा जी० ३,६६६ जह यथा ] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण | जघन ) जी० ३१५६७ जहण [जघन्य | अं० १८७, १८८, १६५. जी० १२१६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से १८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २१२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, 801 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३८६, ८६,६१, १०७, १२०, १५६,१६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०, २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६,१०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३८ से ११३७; ४।३, ४,६ से ११, १६, १७; १५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६१२, ३, ६, ८ से ११, ७.३, ५, ६, १०, १२ से १८६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६,४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १६८ . से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० जवण [जवन] रा०१०, १२, ५६, २७६. जी० ३३११८ जवमा | यवमध्य ] जी० ३७८८ जयममा [यवमध्या ओ०२४ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ से २१२, २१४, २१६ से २१८, २२२, २२५, २२८, २२६, २३४, २३६, २३८, २४१ से २४४, २४६, २५७ से २६०, २६२, २६४, २६६, २७१, २७३, २७७ से २८२ जहष्णजोगि [ जघन्ययोगिन् ] ओ० १५२ जहणपद [ जघन्यपद ] जी० ३।१६५ से १६७ जहा [ यथा ] ओ० ६६. ० १०. जी० १/४ जहाणामत | यथानामक | जी० ३१६६० जहाणामय [ यथानामक ] ओ० १५०,१६४, १८४. रा० १२, २४, २५, २७, २८, ३० १५४, १७३, १०३, ७३७, ७५५, ७५८ से ७६१, ७६५, ७७२, ७७४, ८११. जी० ३।८४, ११८, ११६,२१८,२८०,२८१,२८३ से २८५, ३०६, ३२७, ५७८, ६०१, ६७०, ८८३ जहानामय [ यथानामक ] रा० २६, २७, ३९, ४५, ६५, १२३, १७१, १७३. जी० ३३८५, ६५, २७७ से २७६, २८२, ६०२, ७५५, ८६०, ८६६, ८७२, ८७८ ६५८, ६५६, ६६१, १०७८, १०७६ जहाभणिय [ यथाभणित ] रा० ६६६ जहासंभव [ यथासम्भव ] जी० १ । १३६ जहि [ यत्र ] जी० ३।११२७ जहिच्छित [ यथेप्सित ] जी० ३११११५ जहिच्छिय [ यथेप्सित | जी० ३२५६८, ६०६ √ जा [ या] - जति जी० ३१८३८१ जाइ [जाति ] ओ० २३, १६५, १६५१२१ जाइमंडवग | जातिमण्डपक] रा० १८४ जाइमंडवय [ जातिमण्डपक] रा० १८५ जाइसंपण्ण [ जातिसम्पन्न ] ओ० २५ जाइसरण [जातिस्मरण] ओ० १५६, १५७ जाइहिंगुलय [ जातिहिङ्गुलक ] रा० २७ जाई मंडवग [ जातिमण्डपक ] जी० ३१२९६ जाईमंडदय [जातिमण्डपक] जी० ३१२६७ जाग [ याग ] ओ० २ जागर [ जागू] - जागरिस्संति. रा० ८०२ जागरिया [ जागरिका ] ओ० १४४. १०८०२, जहणजगि- जाय ८०३ आण [ यान ] ओ० १, ७, ८, १०,१४,५२, ५५, ५८, ५६,६२,७०,१००, १२३, १४१. रा० ६७१, ६७५,६८७,७६६. जी० ३।२७६,५८१,५८५, ६१७ √ जाण | ज्ञा ] - जाणइ. ओ० १६६. रा० ७७१. जी० ३।१६८ - जाणंति. रा० ६३. जी० ३।१०७ जाणंती. ओ० १६५/१२ - जाणति, जी० ३१२०० - जाणह. रा० ६३ - जाणामि. रा० ७४६ --- जाणासि रा० ७६७ जाणिस्वामी. १०७२१- जाणिहिति ० ८१५ जाणमाण [जानान, जानत् ] रा०८१५ जाणय [ज्ञ ] ओ० १६,२१,५४. २१० ७४७ जाणविमाण [ यानविमान ] रा० १३,१७ से १६, २४,३२,४५ से ४६,५६,५७,१२० जाणसाला [ यानशाला ] ओ० ५६ जाणसालिय [ यानशालिक ] ओ० ५८, ५६ जाणिता [ज्ञात्वा ] ओ० १४५. रा० ७६४ जाणु [ जानु ] ओ० १६, २१, ५४. रा० २५४,२६२. जी० ३।४१५, ४५७,५६६, ५६७ जात [जास] रा० ११६,८११ जातव [ जातरूप ] रा० ७६६. जी० ३३७, ३८७ जातरूवमय [ जातरूपमय ] जी० ३।२६४ जाता [ जाता ] जी० ३।१०४०, १०४४ जाति [ जाति ] रा० ३० जी० ३।१६० से १६२, १६६ से १६६,१७१, १७४, २८३, २६७.६६६ ६६८ जातिगुम्म [ जातिगुल्म ] जी० ३२५८० जातिपन्ना | जातिप्रसन्ना ] जी० ३१८६० जाति मंडवग [ जातिमण्डपक] जी ३२८५७ जातिमंडय [ जातिमण्डपक | जी० ३१८५७ जातिसंपण्य [ जातिसम्पन्न ] रा० ६८६,६८७, ६५६, ७३३ जाति हिंगुलय [ जाति हिङ्गुलक ] जी० ३।२८० जय [ जात ] ओ० २७,१५०. २० १४,६६८, ७६०, ७६१,८०२,८११ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जायकम्म-जियपरीसह ६२६ जायकम्म [जातकर्मन] ओ० १४४ जावतिय [यावत् । जी० ३.९७२,६७३ जायकोउहल्ल जातकोतहल्ल] ओ ८३ जावय [जापक] ओ० २१,५४. रा. ८,२६२. जायम । जातक] ओ० १४५. रा० ८०५ जी० ३१४५७ जायत्याम जातस्थामन्] रा०८१३ जासुअण [जपासुमनस् । रा० २७ जायरूप | जातरूप] ओ० १४,२७,१४१. रा० १०, जासुयण [जपासुमनस् | जी० ३१२८०,५६० १२,१८,६५,१३०,१६५,२२८,२७६,६७१, जाहिया | जाहिका] जी० २१६ ८१३. जी. ३१३००,६७२ जाहे ! यदा ] रा० ७७४. जी० ३.८४३ जायरूप पाय] [जातरूपपात्र] ओ० १०५, जिइंदिय जितेन्द्रिय] ओ० २५,४६,१६४ १२८ जिण [जिन ] ओ० १६,२१,२६,५१,५२,५४,१७२. जायरूव बंधण] [जातरूपबन्धन] ओ० १०६, रा०८,१६,२२५,२५४, २६२,७७१,८१५, ८१७. जी० ११:३३३८४,४१५,४४२,४५७, जायसवमय [जातरूपमय] रा० १३०,१६०, जी० ८३८।१,८६६,९१७ जिण [जि]-जिणाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जायसंसय जातसंशय] ओ०८३ जी० ३।४४८ जायसड्ढ जातश्रद्ध] ओ० ८३ जिणपडिमा [जिनप्रतिमा ] रा० २२५,२५४ से जाया जाता] जी०३:२३५,२३९,२४१ २५८,२७,२६१,३०६ से ३०६,३१७ से जार [जार] रा० २४. जी० ३३२७७ ३२०,३४४ से ३४७. जी० ३१३८४,४१५ से जारापविभत्ति [जारकप्रविभक्ति] रा०६४ ४१६,४४२.४५७,४७१ से ४७४,४८२ से जारिसय यादृशक रा० ७७२ ४८५,५०६ से ५१२,६७६,८६६,६०८ जाल [जाल] ओ०१६,६३,६४. रा० १७,१८.. जिणमय [जिनमत ] जी० १११ जी० ३१८४,५९६ जिणवर [जिनवर] ओ० ४६. रा० २६२. जी० जालंतर जालान्तर] रा० १३७. जी० ३१३०७ ३।४५७ जालकडग [जालकटक] रा० १३४. जी० ३।३०४ जिणसकहा दे० जिण 'सकहा ] रा० २४०,२७६, जालकडय [जाल कटक] जी० ३।२६२ __ ३५१. जी० ३,४०२,४४२,५१६,१०२५ जालघरग | जालगृहक ] रा० १८२,१८३. जी० जिणिव [जिनेन्द्र ] रा० ४७ ३।२७५,२६४ जित [जित] जी० ३।४४८ जालपंजर | जालपञ्जर] रा० १३०. जी० ३१३०० जितिदिय [जितेन्द्रिय] रा०६८६ जालवंद जालवृन्द] जी० ३१५६४ जिभछिण्णग [जिह्वाछिन्नक] ओ०६० जालहरय जलिगृहक ] ओ०६ जिन्भिंदिय | जिह्वन्द्रिय] ओ० ३७ जाला | ज्वाला जी०११७८; १९८३१८५, जिमिय [निमित १० ६८५,७६५,८०२ ११८, ११६,५८६ जिय [जित ] ओ० ६८. रा० २८२,६८६. जी० जाव [यावत् । ओ०६०. रा० १ जी०१२३४ ३४४८ जावइय | यावत् ) जी० ३:१७६,१७८,१८०,१८२ जियकोह [जितक्रोध ओ० २५. रा० ६८६ जावं [यावत् ] जी. ३८४१ जियणिद्द [ जितनिद्र] ओ० २५. रा० ६८६ जावज्जीव यावज्जीव ओ०११७,१२१,१३६, जियपरीसह जितपरीषह] ओ० २५. रा. १६१,१६३ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० जियभय-जुत्तपालित जियभय [जितभय] 1० ८१७ जियमाण [जितमान ] ओ० २५. रा० ६८६ जियमाय [जितमाय ] ओ० २५. रा०६८६ जियलोभ {जितलोभ ] ओ० २५ जियलोह [जितलोभ] रा० ६८६ जियसत्तु [जितशत्रु] रा० ६७६,६८०,६८३ से ६८५,६६८ से ७००,७०२ जीमूत [जीमूत] जी० ३१२७८ जीमूतय [जीमूतक] रा०२५ जीय [जीत] ओ० ५२. रा० ११,१६,५६,६८७, जीवपएसिय जीवप्रदेशिक ओ० १६० जीवा [जीवा] रा० ७५६. जी० ३६५७७,६३१ बोधाजीवाभिगम [ जीवाजीवाभिगम] जी १:१,२ जीवाभिगम [जीवाभिगम] जी० ११२,६ से १०; ६७,८,२६३ जोविय [जीवित ] ओ० २३,२५. रा० ६८६,७५० से ७५३,७५६,७६२,७६७ जीविया [जीविका ओ०१४७. रा० ७१४,७७६, जीव [जीव] ओ० २७,७१ से ७३,७४।४,५,८४ से ८६,१२०,१३७,१३८,१६२,१८५ से १८८. रा० ६६८,७१६,७४८ से ७६४,७६८,७७० से ७७३,७८६,८१३,८१५. जी० ११०,११, १५ से ३३,५१ से ५४,५६,५६ से ६२,६४, ७४,७६,८२,८५ से ८७,६०,६३ से ६६,१०१, ११६,१२८,१३० से १३४,१४३,२।१,१५१ ३११,५३,५४,८७,११८,१२६,१२७,१२७७२, ५,१२६५,९,१५० से १६०,१८३,१६२,२१०, २११,५७५,५७६,७१६,७२०,७२४.७२७, ७८७,८०६,८१८,८२८,८५३,८५६,८५०, ६४६,९७४,६७५,१०८१,११२८,११३०, ११३८, ४११,२५, ५॥१,६०, ६।१,१२,७१, २३:८1१,५,६।१७ से ८,१५,१८,२१,२२, २८ से ३०,३६,३८,५६,६२,६३,६६,६७, ७५,८८,६५,१०१,१०६,११२,११३,१२१, १३१,१४१,१४७,१४८,१५६,१५८,१५६, १६७,१७०,१८१,१८२,१८५,१६६,१६७, २०८,२०६,२२०,२२१,२३२,२५५,२५६, २६७,२६३ जीवजीवग जीवंजीवक] ओ० ६. जी० ३१२७५ जीवंत [जीवत् ] रा० ७५४,७६२,७६३ जीवंतग [ जीवत्क] रा० ७६२ जीवघण [ जीवधन] ओ.० १८३,१८४,१६५।११ जीवदय [जीवदय] ओ० १६,२१,५४, रा०८ जीबोवलंभ [जीवोपलम्भ] रा० ७६८ बोहा जिह्वा] ओ० १६,४७. रा० २५४. जी. ३४१५,५९६,५६७ ह [द्युति] ओ० ४७,७२,८६ से ६५,११४, ११७,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० १३,६५७ जुज [युज्}-जुजइ. ओ० १७५ झुंजमाण [युजान ] ओ० १७६,१७८ से १८० जुग युग] ओ० १६. जी० ३।५९६,८४१ जुगल [बुगल] रा०२३. जी. ३१५६७ जगव [युगपत् ] ओ०१८२ जगव युगवत् रा० १२,७५८,७५६. जी० ३३११८,११६ अग्य [सुग्य] ओ०१,७,८,१०,१००,१२३. जी० ३।२७६,५८१,५८५,६१७ जुझसज्ज [ युद्ध सज्ज ] रा० १७३,६८१ जुण्ण [जीणं ] रा० ७६०,७६१,७८२ जुण्णय [जीर्णक] रा० ७६१ जुति [द्युति] रा० १३,१२१,६५७. जी० ३.४४६, ४५७ जुत्त [युक्त ] हे० १५,१६,२३,५५,५७,५८,६२, ७०,७१.० १७,१८,२०,३२,६१,७०, १२६,२८५,२६२,६६४,६७२,६८१,६५२, ६६०,६६१,७०६, ७१४,७२४,८०६,८१०. जी० ३१२८८,३००,३७२,४५१,४५७,५६२, ५८६,५६२,५६६,५६७,३८३२ जुत्तपालित [युक्तपालिक] जी० ३१५६२ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुत्तपालिय-जोतिस जुतपालिय [ युक्तपालिक] रा० ६६४ नृतय [युक्तक ] रा० ७७६ जुत्तामेव [ युक्तमेव ] रा० ७०६ जुति [ युक्ति ] ओ० ६७ जुद्ध [ युद्ध ] ओ० १४६. रा० ८०६. जी० ३३६३१ जुद्धबुद्ध [ युद्धयुद्ध ] रा० ८०६ जुद्धसज्ज [ युद्धसज्ज ] ओ० ५७,६४. रा० ६८२, ६६१. जी० ३२८५. जुद्धा जुम्ह [ युष्मत् ] To & जुयल [भुगल ] ओ० १२,५७ १० १२, १७, १८, २०,३२,१२६,१३३,२८५.२६१, ७५८,७५६. जी० ३।११८,२८८, २६१,३००,३०३, ३७२, _४५१,४५९,५६७ जुयलग [ युगलक ] जी० ३१६३० जुवइ [ युवति] खो० १ [ युद्धातियुद्ध ] ओ० १४६ जुवराय [ युवराज ] रा० ६७४. जी० ३६०६ जुलिय [ युगलित ] ओ० ५,८,१०. २१० १४५. जी० ३१२६८,२७४ जूहिया मंडवय | यूथिकामण्डपक ] रा० १८५ जे [ ज्येष्ठ ] ओ० ८२. रा० ६७३, ६७५ जेट्ठामूल [जष्ठाभूल ओ० ११५ जेणामेव [ यत्रेव ] रा० ७५४. जी० ३१४४३ जोइ [ ज्योतिस् ] 1० ७५७,७६५, ७७२ जोभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोइस [ ज्योति, ज्योतिष ] ओ० ५०. रा० ५६. जी० ३१८३८१२ जुवाण [ युवन् ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३।११८ जोणि [ योनि ] ओ० १६५ जूय [ द्यूत ] ओ० १४६. रा० ८०६ जूयय [ यूपक] जी० ३ ७२३ ज्या [ यूका ] जी० ३३७८६ जूद [ यूप ] जी० ३१५६७ जूवय | यूपक ] जी० ३६२६ जूवा [ यूका | जी० ३६२४ जूहिया | यूथिका ] 1० ३० जी० ३।२८३ जूहियागुम्म | यूथिका गुल्म ] जी० ३१५८० जूहिया मंडव | यूकामण्डपक] रा० १८४. जी० ३:२६६ जोइसामयण [ ज्योतिषायण ] ओ० ६७ जोइसिणी [ ज्योतिषी ] जी० २१७१,७२,१४८ जोइसिय [ ज्योतिष्क, ज्योतिषिक ] ओ० ५०,९४. रा० ११. जी० १११३५ २३१५, १८, ३६ से ४४,७१७२,६६, ३।२३०, ८३८।२१,६१७ जोईरस [ ज्योतीरस] २० १०, १२,१८, ६५, १६५, २७६ जोईरसमय [ ज्योतीरसमय ] रा० १३०,१६० जोता [ योजयित्वा ] ओ० ५६ जोग | योग ] ओ० ११७. रा० ८१५. जी० १ ३४, ६,१०१,११६,१२८, १३६; ३११२७, १६०, ७०३, ७२२, ५०६, ८२०, ८३०, ८३४,६३७, ८३८११०,३२ जोगनिरोह [ योगनिरोध ] ओ० १८२ जोडिलीया [ योगप्रति संलीनता ] ओ० ३६ जोगि [ योगिन् ] ओ० ६६ जोग्ग [ योग्य ] ओ० ६३. रा० ६, १२,४७ ६३१ [ योनिमुख ] जी० १२५८,७३,७८, ८१ जोणिया [ योनिका ] ओ० ७०. रा० ८०४ जोणिसंग्रह [ योनिसंग्रह ] जी० ३६१४७ जोसिल [ योनिशूल ] जी० ३।६२८ [ योनिमुख ] जी० ३३१६० से १६२, १६६ से १६६, १७१, १७४, ६६६, ६६८ जगह [ योनिसङ्ग्रह ] जी० ३ १६०, १६१, १६३ जोह [ ज्योत्स्न ] जी० ३१८३८१६, २० जोति [ ज्योतिस् ] रा० ७६५ जोतिभायण [ ज्योतिर्भाजन ] रा० ७६५ जोतिरस | ज्योतीरस ] जी० ३१७ जोतिरसमय [ ज्योतीरसमय ] जी० ३१२६४, ३०० जोतिस [ ज्योतिस् ज्योतिष ] जी० ३३८५८,८६१, Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ जोतिसराय-झय ५६४, ८६७, ८७०, ६२४, ६४२, ६५२, ४४५, ५६६, ५६८ से ५७०, ५७७, ६३२, १००१, १००२, १००६ ६३४, ६३८, ६३६, ६४२, ६४४,६५३,६५६, जोतिसराय [ज्योतीराज] जी० ३१२५७, २५८, ६६०, ६६१, ६६३, ६६६,६६८, ६७१,६७८, १०२३ से १०२६ ६७६ ६८२, ६८३, ६८६ से ६८६, ७०६, जोतिसविसय [ज्योति विषय ] जी० ३.१००६ ७१०, ७१४, ७२३ से ७२८, ७३२, ७३६, जोतिसिंद ज्योतिरिन्द्र, ज्यौतिपेन्द्र | जी० ३।२५७, ७३७, ७३६ से ७४२, ७४५, ७५०, ७५४, २५८, १०२३ से १०२६ ७५६, ७५८, ७६१, ७६२, ७६४ से ७३९, जोतिसिणी [ज्योतिषी] जी० २११४६ ७८० से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२, जोतिसिय [ज्योतिप्क, ज्योतिपिक ] जी० २१९५, ८१२ ८१४, ८१५, ८२३, ८२७, ८३२, ६६, १४८, १४६; ३१२५७, ५६०,७६३, ८३५, ८३८।२७, २८, ८३६, ८४२, ८४५, १०२५ ८५०, ८५२, ८८२,८८४, ९८५, ८८७, जोय | योग] ओ० ६४. रा० ५१, ७६६. ८८८, ८६१, ८६३ से ८६५, ८६७ से १०१, जी० ३७०३, ६।६६ ९०६, ६०७, ६१०, ११,६१८, ६४०,६४४, १६६ से १७१, १००१ से १००६, १०१० से जोय योजय् —जोइंसु. जी० ३७०३जोइस्सति.जी० ३७०३--जोएइ. ओ० ५६ १०१२, १०३८, १०६५ से १०७०, १०७३, जोएस्संति. जी० ३७०३ -जोयंति. ३७०३ १०७४, १०८७. १०५८ जोयणय [योजनक] जी० ३३२२६, ६६३ जोयण [ योजन] ओ० ७१, १७०, १६२, १६५. जोयणिय [योजनिक] ओ० १६२ रा०६, १०, १२, १४, १७, १८, ३६, ५२, जोवण | यौवन] ओ० ४७. रा०६६, ७०. ५६, ६१, ६५, १२४, १२६ से १२६, १३७, जा० ३१५६७ १७०, १८६, १८८, १८६, २०१, २०४ से जोव्वणय [यौवनक] रा० ८०६, ८१० २१२, २१८, २२१, २२२, २२४, २२६, जोह [योध] ओ० २३, ५२, ५५ से ५७,६२,६५. २२७, २३०, २३१, २३३, २३८ से २४०, रा० १७३, ६८१,६८७,६८८. जी. ३१२८५ २४२, २४४, २४६, २४७, २५१ से २५३, झ २६१, २६२, २६७, २७२,२७६, ७२७,७५३. झंझा (झञ्झा रा०७७ जी० ११७४, ८६. १०१, १११, ११६, १२३, झंझावाय [झञ्झावात ] जी० १८१ १३५; ३१५, १४ से २१, २५ से २७, ३३ से झड | दे० ] रा० ७८२ ३६, ३६ से ४३, ४७, ६० से ७२, ७७, ८० झय ध्वज] ओ० २,१२,५५, ५७, ६५. रा० २२, से ८२, ८६, १२६७, २१७, २१६ से २२७, १६७, १७३, १७८, २०२, २०४ से २०८, २३२, २५७, २६० से २६३, २७३, २६८, २१४, २२०, २२३, २२६, २३२, २३४, ३००, ३०७, ३१०, ३५१, ३५२, ३५४, २४१, २४८, २५०, २५८, २५६,२६१,२७६, ३५५, ३५८, ३५६, ३६१, ३६२, ३६४, २८१,६८१, ७१५. जी० ३।२८५, २६०, ३६५, ३६८ से ३७४, ३७६, ३७७, ३८०, ३४८, ३५६, ३६७ से ३७१, ३७५, ३७६, ३८१, ३८३, ३८५, ३८६, ३६२, ३६३, ३८२, ३६१, ३६४, ४०३, ४१२,४१६,४२०, ३६५, ४०० से ४०२, ४०४, ४०६, ४०८, ४२४, ४३०, ४३३, ४३६, ४४५,४४७.५८६ ४१२ से ४१४, ४२२, ४२५, ४२७, ४३७, ५६७, ६०४ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झल्लरी- ठियलेस झल्लरी | झल्लरी ] ओ० ६७. रा० १३,७७, ६५७. जी० ३२८ से ३२, ७८, ४४६, ६१८ शस [ झप ] ओ० १६. जी० ३१५६६ शाण [ ध्यान ] ओ० ३८, ४३, ४६ झreetghara [ ध्यानकोष्ठोपगत ] ओ० ४५,८२ झाम [ दग्ध ] जी० ३।६६ झाम [ दह ] झाभिज्जइ रा० ७६७ √ झिया | ध्यै ] -- झियाइ रा० ७६५ - - शियामि रा० ७६५ -- क्रियायसि रा० ७६५ झियायमाण [ ध्यायत् ] रा० ७६५ झीण [ क्षीण ] ओ० ११६,११७. रा० ७७४ Attar [tries ] आ० ११७ [षित ] जी० ३।११८,११६ झुसिर [शुषिर ] जी० ३१८०,६६,४४७,५८८ झूसणा [जूषणा ] ओ० ७७ सूसिता | जुषित्वा ] आ० १४० सिय [ जुष्ट, शुषित ] ओ० ११७ द कारवग्ग [टकारवर्ग ] रा० ६७ (ठ) √ ठव [ स्थापय् ] --- ठवेइ १० ६०१ -- ठवेई रा० ५६ – ठवेंति ओ० ५२. २०६८७ -ठवेति ओ० ६६. २० ६८३ far | स्थापयित्वा रा० ७६१ ofan | स्थापित ] ओ० १३४ saar [ स्थापयित्वा ] ओ० ५२. रा० ५६ ठाण | स्थान ] ओ० १६,२१,४०,५४,७३,६५, ११७,१५५, १५६. रा० ८,७६,१७३,२६२, ६७५.७१४,७१६,७५१,७५३,७७१,७६६. जी० १११२४, ३३२=५,४५७,८४३,८४५, ८४६ ors [ स्थानस्थितिक] ओ० ३६ ठाणधर | स्थानवर ] ओ० ४५ tree [ स्थानपद ] जी० ३।२३३,२३४,२४८, २५० से २५२,२५७, १०४५ ६३३ Drive [ स्थानपद ] जी० ३।१०४८,१०५६ aritra [ स्थानपद ] जी० ३।७७ tentगण [स्थानमार्गण ] जी० १ ३४,३६,३६ for [ स्थिति ] ओ० ८६ से १५, ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७, १७१. रा० ६६५.६६६. जी० १११४,५२,५६,६०; २११५१; ३१२७१५,१२६१५,१६०,६३१,१०४२ foster [ स्थितिक्षय ] ओ० १४१ रा० ७६६ fotu | स्थितिक ] ओ० ७०. जी० ११३३ fosaडिया | स्थितिपतिता ] मो० १४४ ठिईय [स्थितिक ] जी० ३,७२१ ठिच्चा [ स्थित्वा ] रा० ७३६ ठित [ स्थित ] जी० ३।३०३,८४५ ठिति [ स्थिति ] रा० ७६८,८१५, जी० ११६५, ७४,८२,८७,८८,६६, १०३, १११, ११२,११६, ११६,१२०, १२३ से १२५,१२८, १३३,१३६ से १३८२।२० से २४,२६ से ३०, ३२ से ३६,३६,४६,७६ से ८१,८५,१०७ से १०६, १११ से ११४,११६, ११८, १५० ३ १२०, १५६,१६२,१६५,१८६,१६२,२१८,२३८, २४३.२४७,२५०,२५६,२५८, ५६४, ५६५, ६२६,१०२७,१०४२, १०४४, १०४६, १०४७, १०४६, १०५०, १०५२, १०५३, १०५५, ११२६, ११३१, ४१३, ५, ६, ५५, ७,२१,२८ ६ २, ५, ७ ७२,८; १२६६२ fotoपद [ स्थितिपद ] जी० ३।१६२ ठितिवडिया | स्थितिपतिता | रा० ८०२,८०३ द्वितीय [ [स्थितिक ] रा० १८६. जी० ३।३५०, ३५६,६३७, ६५६,७००,७२४,७२७,७३८, ७६०,७६३,७६५,८०८,८१६,८२,८४२, ८४५,८५४,८५७,८६३,८६६,८६६,८७२, ८७५८७८८८५६२३,६२५ ठिय [ स्थित ] ओ० ४०. रा० १७,१८,१३०,१३३, ७०३. जी० ३।३०० ठियलेस [स्थितलश्य ] ओ० ५० Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डंड-णग्योहपरिमंडल जी० ३।२८५, ३०५ डंड [दण्ड] रा० ७५१ गंविजणण [नन्दिजनन ] रा० ७५० उज्झत दह्यमान] जी० ३।४४७ णंदियावत्त निन्द्यावर्त ओ० ५१,६४. रा० २१, उमर [डमर] ओ० १४. रा० ६७१. ४६. जी० ३।२८६,५६४ ___जी० ३१६२७ णंविरुक्ख [नन्दिरूक्ष] ओ०६,१०. जी० ३१५८३ गंदिवद्धणा नन्दिवर्धना। जी० ३१९१४ रमरकर [डमरकर ओ०६४ डिडिम [डिण्डिम ] रा० ७७. जी. ३।५८८ णं दिसेणा [न्दिषेणा] जी० ३।६१० डिब डिम्ब] ओ० १४. रा० ६७१. जी०३१६२७ मंदिस्सर | नन्दिस्वर रा० १३५. जी० ३१३०५ णंदिस्सर | नन्दीश्वर] जी०३१६४८, १४६ शंदिस्सरवर [नन्दीश्वरवर] जी० ३।८८० से ढंक [दे० ढङ्क] जी० ११११५ ८८२,६१८,६२५ दिकुण [दे० ] जी० ३६२४ गंदिस्सरोद [नन्दीश्वरोद] जी० ३।६२५,६२७ दी | नन्दी जी० ३१७७५ ण नि ओ०४७. रा०६. जी. श८२ गंदीमुह [नन्दीमुख ] ओ०६ णउत [नयुत] जी० ३१८४१ णंदुत्तरा नन्दोतरा] जी० ३.६१४,६१६ पउत [नवति] जो० ३३१००३ पक्ष नख । ओ० १६. जी० ४ १५,५९६ णउति नवति] जी० ३.१००४ णखत्त निक्षत्र | ओ० ५०,१४५,१६२. णउय [नवति] जी० ३३२५७ रा०८०५. जी. १७७५,८०६,८२०,८३०, पउल [नकुल] जी० १२११२ ८३४, ८३७,८४१,८४२,८४५,६३७,१०००, णउली । नकुली] जी० २।६ १००७,१०२०,१०२१,१०३७,१०३८ गं [दे० ] ओ० १. रा० २. जी० ११० णखत्तविमाण [ नक्षत्रविमान] जी० २।४३, गंगूलिय [लाङ्गुलिक जी० ३।२१६ ३११०१३,१०१८,१०३३ गंगूलियदीव लाङ्गलिकद्वीप] जी० ३।२२४ ।। णख नख] जी० ३१५६७ गंगोलिय [लाङ्गलिक] जी० ३।२२० णगर नगर| ओ० ४६. जी० ३१६०६ गंगोलियवीव [लागूलिकद्वीप] जी० ३।२२० । णगरगुत्तिय | नगर गुप्तिक] रा० ७५४,७५६, गंदणवण [नन्दनवन] रा० २७६. जी० ३।४४५ गंदा नन्दक'] ओ०६८ गरमाण नगरमान रा० ८०६ नंदानन्दा] रा० २३४,२८८,३१३,३७६,४३५, जगररोग [नगररोग जी० ३१६२८ ४६६,५५६,६१६. जी० ३१३६५. ३६६,४१२, शगरी नगरी ओ० २०,५३. रा० ६७१,६८६, ४२५,४३८,४५४,४७७,४७८,५१५,५२३, ६६२,७००,७०२,७०६,७०८,७१३,७१६, ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३,६८५, ७५० ६८६,६८८,६०१,६१०,६१४ से ६१६,११६ मंदिघोस | नन्दिघोष । ओ० ६४. रा० १३५. जग्गभाव | नग्न भाव रा० ८१६ णग्गोह [न्यग्रोध] जी० १७२ गोहपरिमंडल न्यग्रोधपरिमण्डल णमिदम्, इह च दीर्घत्वं प्राकृतत्वात् (व)। जी० ११११६ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णच्वंत-णव मच्चंत [नृत्यत् ] ओ० ६४ णमिय [नमित] जी० ३।३८७,५६७ गच्चण [नर्तन] ओ० ४६ णमेत्ता [नमयित्वा] जी० ३।४५७ पट्ट [नाट्य ] ओ० १४६,१४८,१४६. णमो नमस् ] ओ० २१. रा० ८१७. जी० ३।६३१,१०२५ ___ जी० ३१४५७ गट्टग [नाट्यक ] ओ० १,२ गय [नत ] रा० २४५.६६४. जी० ३।४०७,५६२ गट्टगपेच्छा [नाट्यकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५ णयण नियन] ओ० १९,२१,४७,५४. रा०८. गट्टपेच्छा [नाट्यप्रेक्षा] जी० ३१६१६ ७१४. जी० ३।३८७,५६७ गट्टमाल [नृत्तमाल जी० ३।५८२ णयणकीयरासि [नयनकीकाराशि) ओ० १३ पट्टविधि [नाट्यविधि] जी० ३१४४७ णयणुप्पांडियग [उत्पाटितकनयन] ओ०६० गट्टविहि [नाट्यविधि | रा०७३,८१ से ६५,१०० गयर [नगर ओ० २८,२६,६८,८६ से ६३,९५, से १११,११३,११६,२८१. जी० ३।४४७ ६६,११५,११८,११६,१५५,१५८ से १६१, णट्टसम्ज [नाटयसज्ज] रा० ७६,१७६ १६३,१६८ णसाला नाटयशाला] रा० ७८१,७८३,७५६, णयरगुत्तिय [नगरगुप्तिक] ओ० ६०,६१ ७८७ णयरी [नगरी] ओ० २,१४,२० से २२,५२,५५, भट्टाणिय [नाटयानीक] रा० ४७,५६ ६० से ६२,६७,६८,७०. रा० १०,१३,६८७ ण नष्ट] रा० ६,१२. जी० ३३४४७ से ६८६,७००,७०३,७५०,७५३ णमेच्छा [नटप्रेक्षा] जी० ३१६१६ णर [नर ओ० १३,४६. रा० १२६,१७३,६८१, णतय [नप्तक] रा० ७५० से ७५३ ७५३. जी० ३१२८५,२८८,३११,३१८,३७२ त्यिभाव [नास्तिभाव] ओ० ७१ फरक नरक] जी० ३१७८ से ८१,८४ गदिमह [नदीमह] जी० ३६६१५ ण रकंठक [न रकण्ठक] जी० ३१३५५३ ण पुंसग [नपुंसक जी० १३१२८ ; २११ ; ३३१४८, जरग नरक ओ०७४।१,३. जी० ३११२,७७, १४६,१६४ ८५ से १७,१२७ णपुंसगवेय [नपुंसकवेद] जी० १०२५,१०१ णरपवर [नरप्रवर] ओ० १४ णपुंसगवेयम नपुंसकवेदक] जी० १८६ णरय नरक] ओ०७४. जी० ३७७,५५,११७ णम [नम्]-णमेइ. जी. ३१४५७ से ११६ णमंस [नमस्य }---अमंस इ. ओ० २१-णमसति. परवइ [नरपति ] ओ० १,२३,६३,६५ ओ० ४७. रा०६८७. जी. ३।४५७ णरक्सभ [नरवृषभ ओ० ६५ —णमंसति. रा० ८......णमंसह. रा०६ परसीह [नरसिंह] ओ०६५ -णभंसामो. ओ० ५२. रा०१० परिद [नरेन्द्र ] ओ० ६५ --मंसेज्जा . रा० ७७६ णलागणि [नलाग्नि ] जी० ३.११८ णमंसण [नमस्यन ओ० ५२ जलिण नलिन | रा० २३,१६७,२७६,९८८. णमंसमाण [नमस्यत् ] ओ० ४७,५२,६६,८३. जी० ३।११८,११६,२५६,२८६,२६१,८४१ रा०६०,६८७,६६२,७१६ पलिणी [नलिनी] ओ० १. रा० ७७७,७७८, णमंसित्तए [नमस्थितुम् ] ओ० १३६ णमंसित्ता निमस्यित्वा] ओ०२१. रा०८ णव [नवन् ] ओ० १४३. रा० ८०१. जी० ३४५७ जी० ११० ७८८ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ णव-जातिय णव नव] ओ० १,५,८,७१. रा०६१. जी० ३,२७४,५६७ णवंग नवाङ्ग] रा० ८०६,८१० णवण वमिया [नवनबकिका] ओ० २४ णवणीइयागुम्म नवनीतिकागुल्म] जी० ३३५८० णवणीत ( नवनीत | जी० २८४,२६७ णवणीय [नवनीत | ओ० १३,६२,६३. रा० ३१, ३७,१८५,२४५. जी० ३१४०७ णवनीय [नवनीत | जी० ३१३११ णवतय [नवत्वक् ] रा० ३७ णवमिया [नवमिका] जी० ३१६२१ गवय [नवक] रा० ७५६,७६१ णवरं | दे०] जी० ११५६ णवरि [दे०] जी० ११६६ गवविष [नवविध जी० ८१,५; ६।२२१,२३२ णह [नख ] ओ० ६२. रा० ८,१०,१२,१४,१८, ४६,७२,७४,११८,१५०,२७६,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४,७२३. जी० ३१५६७ गाइ [ज्ञाति ] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४,८०२, णागद्दार [नागद्वार] जो० ३।८८५ णागधर [नागधर] ओ० ६६ णागपइ [नागपति] ओ० ४८ णागफड | नागस्फटा] ओ० ४८ णागमह नागमह] जो० ३३६१५ णागराय नागराज जी. ३७३४ से ७३६, ७४०,७४२,७४५,७४८ से ७५०,७८१,७८२ णागरुक्ख [ नागरूक्ष] जी० ११७१ णागलया [ नागलता] ओ० ११. जो० ३।५८४ गागलयामंडवग [ नागलतामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ जागलयामंवय नागलतामण्डपक रा० १८५ णाङग नाटक] रा० ६८५ जाण [ज्ञान ओ० ४६,५४,१५३,१६५,१६६, १८१,१८,१६५१११. रा० २६२,६८६,७३३, ७३६,७४६,७७१,८१४. जी० ३।१५२,४५७, जाणत्त नानात्व] जी० ११११६; ३।१६१,१६५, २१८ णाणविणय ज्ञानविनय ] ओ० ४० माणसंपण्ण ज्ञान:म्पन्न ओ० २५ णाणा [नाना] ओ० ५०,६३,७०. रा० १६,२०, ३२,३७,४०,१३०,१३३,१३५.१३६,१३५, १७५,१६०,२४५,८०४. जी० ३१७८,२६४, २६५.२८६ से २८८,३००,३०२,३०५, ३०६,३११,३२२,३७२,४३५,६५४,१०७१, गाइय [नादित ] औ० ६,६७. रा० १३,५६,५८. जी० ३१२७५,२८६,४५७,५५७ णाऊण ज्ञात्वा] ओ० २३ णाग नाग] ओ० ६६,१२०,१६२. रा०६६८, ७५२,७७१,७८६. जी० ३।३३५,५६६,७३३, ८८५,६४४,६४५,६४७ जागरगह नागग्रह] जी० ३१६२८ भागदंत नामदन्त) रा० १३२,२४०. जी० ३।३०२,३१७,४०२ जागवंतग नागदन्तक] जी० ३।३०२,३१७,३२६, णाणावरणिज्ज जानावरणीय ] ओ० ४४ जाणाविह नानाविध] ओ०६ से ८,१०,४६,५५, १०७,१३०. रा० २४,३२,१२८,१३३,१५१, १५२,१७१,२८१. जी० ३।२७५,२७७,३०३, ३२४,३२५.३५३.४४७ जाणि | जानिन् | जी० ११८७,६६,११६,१३३, १३६, ३३१०४,१५२,११०७,११०८६।३०, णागदंतय नागदन्तक रा० १३२,१५३,२३५, २३६. जी० ३।३०२,३२६,३५५ णागदीव नागट्टीप] जी० ३१९४४,६४५ णातिय नादित रा० २६१ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णाभि-णिग्गय णाभि नाभि | ओ० १६. जी० ३।४१५,५६६, णि उण [निपुण] ओ० १५,४६,६३. रा० १२,१७, ५६७ १८,७५८,७५६,८०८,८१०. जी० ३।११६, णाम [नामन् ] ओ० १४,१५,२०,४४,५२,५३,८२, ५८८,५६२,५६७ १४४,१७१,१६२,१६५५१६. रा०११,१७, जिओग निमोद | जी० ५१३३ १८,७६,८१,८३ से ६५,१०० से १११,११३, णिओत [निगोद जी० ५।१६ २८१,६६६ से ६७२,६७५,६८७,७१३,७५१, हिओद [निगोद] जी० ५२८ से ३०,३७,३८,४१ ८०२. जी. ११३१३,४,१२८,२१७,२१६ से ४३,५०,५२,५६ से २२३,२२५,२२७,२६०,३००,३५०,३५१, णिोदजीव [निगोदजीव ] जी० ५।३७,५३,५८ से ४०१,५६६,५६८,५६६,५७७,५८२,५८६ से ५६२,५६५,६३२ ६३८,६३६,७००,७०१, णिकरिय निकरित] ओ०१६ ७०४,७०८,७१०,७११,७३६,७४०,७४२, णिकाय निकाय] ओ० ४६ ७४५,७५०,७५४,७६१,७६२,७६५,७६६, णिकरंब [निकुरम्ब] ओ० ४. रा० १७०. ७६८ से ७७०,७७२,७७५ से ७७८,७६५, ___ जी० ३१५९६ ७६६,८००,८१०,८१४,८२१,८२५,८२६, णिक्कंकड निष्कङ्कट] जी० ३.२६१,२३६ ८४८,८५६,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, णिक्कंखिय | निष्काङ्क्षित] ओ० १२०,१६२. ८७४,८७७,८८०,६२५,६२७ स ६३२ रा०६६८,७५२,७८६ ६३८ से १४१,६४३,६४४,९७२,१०३६, मिक्खित्तउक्खित्तचरय निक्षिप्त उत्क्षिप्तचरक] ओ० ३४ णामक | नामाङ्क] ओ० ५० णि क्खित्तचरय [निक्षिप्तचरक ] ओ० ३४ मामधेज्ज [नामधेय ] ओ० १६,२१,५१,५४, णिक्खड [निष्कुट ] रा० १४ १४४,१६३. जी० ३१३५०,६६६,७०२,७६०, णिगर [निकर] रा० १३०. जी० ३१३००,५६०, ५६७ णामधेय [नामधय } ओ० ११७. रा० २६२. णिगरण निगरण] जी० ३१५८६ जी० ३१४५७ णि गरित निकरित जी० ३६५६७ णामय नामक रा०६६७. जी. ३१७७५ णिगलमालिया [ निगडमालिका ] जी० ३१५६३ णाय |ज्ञात ओ०२. रा०६८८ इणिगिण्ह [नि !-ग्रह --णिरिहाइ रा०६६३ णाय । ज्ञात, नाग ओ०२३ णिगोदजीव [ निगोदजीव जी० ५१५६ णायव ज्ञातव्य रा० १७२ णि वर्गथ (निम्रन्थ । ओ० २५,३३,७२,७६. णाराय [ नाराच जी० ३।११० रा०६६८,७४८ से ७५०,७५२,७८९ णारी नारी] जी० ३१२८५ णिग्गंथी [निन्थी] ओ० ७६ णालबद्ध नालबद्ध जी० ३।१७४ :णि गच्छ निर --गम् |-णिग्गच्छइ, रा० ६९. णालिएरिवण नालिकेरीवन जी० ३१५८१ जी० ३।४४३...णिगच्छति. ओ०५२. णालियाखेड नालिकाखेल ओ० १४६. २०६८७. जी० ३।४४५ रा० ८०६ णि ग्गच्छित्ता निर्गत्य] ओ० ५२. रा० ६८७. णासा (नासा ओ० १६,४७. जी०३:५६६,५१७ जी० ३।४४३ जासिया नासिका जी० ३१४१५ जिग्गय [निर्गत] ओ० ६३. रा० ७५४,७५५ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ जिगह [ निग्रह] ओ० २५ रिघात [ निर्धात ] जी० ३१६२६ णिधाय | निर्घात ] जी० ११७८ णिग्धायण [ निर्वातन ] ओ० २६ णिग्घोस [ निर्दोष ] ओ० ६७. रा० १३. जी० ३१४४६, ४५७ घिस [ निकष ] ओ० ८२ जिचय [ निचय ] ओ० २३. जी० ३।२८४ णिचिय [ निचित] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३:५६६ पिच्च [ नित्य ] ओ० ५,८,१०,११. रा० १४५, २०० जी० ३५६, ११६,२६८,२७२,२७४, ३५०,६३७,५०२,७२१, ७३८, ७६०, ७६३, ८०८८१६८२६,८३३,८३६,८३८१७, ८४०, ८५४,६२३ free मंडिया [ नित्यमण्डिता ] जी० ३।६९६ पिच्चालोय [ नित्यालोक ] जी० ३।१०७७ निबुज्जोय | नित्योद्योत ] जी० ३।१०७७ ffee | निश्छिद्र ] रा० ७५५,७७२ निच्छिण [ निच्छिन्न ] ओ० १९५५२१ जिज्जरण [ निर्जरण] ओ० ४६ णिज्जरा [ निर्जरा ] ओ० ७१,१६९, १७० / जिज्जा [ निर् + या ] --- णिज्जंतु. ओ० ६२. णिज्जा हिस्सा मि. ओ० ५५ पिज्जामा [निर्याणमार्ग | ओ० ७२. रा० ५६ णिज्जामय [ निर्यानिक ] ओ० ४६ निज्जास | निर्यास | जी० ३१५८६ गिज्जुत [ नियुक्त ] ओ० ४८, ४६,६४, रा० १७३, ६८१ णिज्जूह [ निर्यूह ] जी० ३५६४ णिज्जोय | वियोग | रा० ५४,६६,७० निठुर | निष्ठुर ] ओ० ४० विडाल [ ललाट ] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३५६०, ११२२ णिडालपट्टिया ललाटपट्टिका ] रा० २५४. जी० ३३४१५ णिग्गह- नियाणमयग जिव्हग [ निह्नव] ओ० १६० √ णिद्दा [ति + द्रा ] - णिद्दा एज्ज. जी० ३।११८ fra [ स्निग्ध ] ओ० ४,१३,१६,४७. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२२,२७३,५८६, ५६६, ५६७, १०६८ णित [ निर्मात] ओ० १६.४७ गिद्धच्छाय | स्निग्धच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ fraोभास | स्निग्धावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३ जी० ३।२७३ षि [निधि ] जी० ३।६३७ frris [ निष्पक] ओ० १६४. जी० ३।२६१,२६६ free [ निर्भय ] ओ०४६ विभिज्जमाण | निर्भिद्यमान] जी० ३।२८३ णिभ | निभ | ओ० ६४. जी० ३.५६६ णिमरण | निमरत ] ओ० १६ जी० ३५६६ निमिसिय | निमिषित ] जी० ३।११८ णिम्मच्छ [निर्मत्स्य ] जी० ३१६६५ जिम्मल [ निर्मल ] ओ० १६,४७,१८३, १८४, १९४. जी० ३/२६१,२६६, २६६,३०० णिम्मा [नेमा ] रा० १६,१३० जिम्मा | निर्मात] ओ० ६३ णियइपव्यय [ नियतिपर्वत ] जी० ३।२६२ / नियंस | नि + वस् ] नियंसेइ. जी० ३।४५१ नियंसण ] निधन ] ओ०४६ नियंत्ता | निवस्त्र ] जी० ३।४५१ यिग [ निजक ] ओ० ७०, १५० रा० १३,७५१, ८०२,८११ नियत्य [ दे० ] रा० ६६, ७० नियम [नियम ] ओ० ३२. जी० ११५८,५६,७८, ६१,६६,१३३,१३६; ३।१०४,११०७ मिसा [नियमात् ] ओ० १६५:१० नियय | नियत ] रा० २०० जी० ३१५६,३५० जिया [नियता ] जी० ३१६६६ जिलबद्धग [ निगडबद्धग] ओ० ६० णियाणमय [ निदानमृतक ] ओ ९० Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिरंतर-णिहि ६३६ णिरंतर [निरन्तर] ओ० १४. रा०६७१ ७५२,७८६ जी० ३.२५६,५६७ णिवुइकर [निर्वतिकर ] ग० २८८. जो० ३।३०२, णिरंतरित निरन्तरित जी० ३१३०० ३९८ णिरय निरय] ओ० ४६. जी. ३१११६ णितिकर [निर्वृतिकर] रा० ४०,१३२. णिरयावास निरयावान | जी० ३१२ ____ जी० ३१२८३, २८५.३८७ णिरयुद्देस निरयोद्देश ] जी० ३।१०८० णिन्वय [निर्वत | ओ०१ जिरवयव | निरवयव ] जी० ३ २५० णिन्वेयणी [निर्वेदनी] ओ० ४५ मिरवकख निरवकांक्ष| ०४६ । णिसंत | निशान्त ] रा० १५ हिरातंक निरालङ्क | जी० ३१५६८ णिसग्गरुड [निसर्गरुचि ] ओ० ४३ णिरावरण [निराबरण रा०८१४ णिसढ | निषध रा० २७६. जी० ३१७९५ णिरुवद्दव | निरुपद्रव] ओ० १ णिसग्ण [निषण्ण ] ओ० ६३. जी० ३१३८४ णिरुवलेव | निरुपलेष] ओ० १६. जी० ३१५६६ णिसम्म [निशम्य ] ओ० २१. ग० १६. णिरुवहत [निरुपहत] जी० ३।५६२ जी० ३,४४३ णिरुवय [निरुपह्त ] जी० ३६५६४ णिसह निषध ] जी० ३६४४५ णिरोह निरोध ओ० ३७ इणिसिर [नि--सृज]---णिसिरति. जी० ३१४४५ जिल्लेव [निर्लेप ] जी० ३।१६५ णिसीइत्ता | निषद्य) ओ० ५४ ‘णिवाड [नि- पात्] --णिवाडे. बी० ३।४५७ ।। णिसीद [नि--षद् ]-निसंदति. जी० ३६३५८ शिवाय (निपात ] ओ० १५० णिसीषिया (निपीधिका, नैधिकी] जी० ३१३०३. णिवाय (निवात] रा० १२३,७५५,७७२ ३०५,३०६,८५६ णिवायगंभीर [ निवातगम्भीर १० १२३,७५५, इणिसीय [ निषद् -णिनीएज्ज. ओ. १८० ७७२ -णिसीयइ. ओ० ५४--णिसीयंति. णिवृद्धि { निवृद्धि ) जी० ३१८४१ रा० ४८. जी० ३१२१७ इणिवेद नि । वे रय् ....णिवेदे . ओ० १६ ... णिसीहिया नियोधिका, नैषेधिकी रा० १३२ णिवेदेति, ओ० १७.--णियेदेमि, ओ० २० से १३४,१३६,१३७. जी. ३१३०१,३०२, णिध्वण निव्रण) ओ०१६. जी. ३१५६७ ३०४,३०७,३१५,३५५ णिवत्त निवृत्त ओ० १४४. ग० ८०२ णिस्संकिय नि:शङ्कित ) ओ० १२०,१६२. णिवत्त । निर--वर्तय ----णिवत्तेइ. रा० ७७२ रा०६९८,७५२,७५६ णिव्वत्तिय निर्वतित जी० ३१५६२ हिस्सा निश्रा जी०१:५८, ७३,७८,८१ णिध्दाघातिम | नियाधातिन् . निर्यापातिम णिस्सास [निःश्वाग] ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३.१०२२ णिस्सिय [नि मृत ] जी० १७८ णिज्वाधाय [नियाघात ओ० १५३,१६५, १६६. णिस्सेयस [निःश्रेयस् ग० २७५. जी० ३।४४१, रा० ८०४,८१४. जी० १८२ ४४२ णियाणमग | निर्वाणमार्ग अं.० ७२. रा० ८१४ णिहत !नित जी. ३.४४७ णिवादित निर्वाटिन नी० ३१८७८ णिहय निहत रा० ६,१२ णिव्यितिगिच्छनिविचिकिता रा० ६१८, णिहि निधि] जी० ३१७७५,८४१ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० यि [ निभृत ] ओ०४६ जीण | णी | - जीणेइ. ओ० ५६ गोणेसा [नीत्वा ] मो०५६ णीय [नीरजस्] ओ० १६४. रा० २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी०३।२६१,२६६, २६६ गोल | नील] ओ० ४७. रा० २४,२६,१३२, १५३, ६६४. जी० ३१३२६,५६२, ५६५,५६६ नीलकणवीर | नीलकणवीर | रा० २६. जी० ३२७६ गोलग | नीलक ] जी० ३।२७६ गोलपाणि | नीलपाणि | रा० ६६४. जी० ३५६२ नीलबंधुजीव | नीलबन्धुजीव ] रा० २६. जी० ३२७६ गीललेस्स [नीललेश्य ] जी० ६ १८७ जललेस्सा | नीललेश्या | जी० ३।६६ नीलवंत | नीलवत् ] रा० २७६. जी० ३ ५७७, ६६० पीलवंतद्दह [नोलवद्रह ] जी० ३।६५६, ६६६ नीलासोग [नीलाशोक ] रा० २६ नीलासोय | नीलाशांक ] जी० ३।२७६ नीली [नीली ] रा० २६. जी० ३।२७६ जोलीगुलिया | नीलीगुलिका | रा० २६. जी० ३।२७६ नीलोभेद | नीलीभेद | रा० २६. जी० ३।२७६ णीलुप्पल | नीलोत्पल ] ओ० १३. २१० २६. जी० ३.२७६ जीव [नीप] ओ० ६,१०. जी० ३५८३ णीसास | नि:श्वास | ओ० ११७. जी० ३।४५१ नोहारि [ निर्धारिन् ] ओ० ७१. २० ६१ नीहारिम | निर्धारित्] ओ० ७,८,१०. जी० ३।२७६ णी [ स्तिg ] जी० ११७३ णू [ नूनम् | ओ० १६९. रा० ७०३. जी० ३२६८३ fig-tभव सिद्धिय उर [ नूपुर ] जी० ३।५६३ म [नैक ] रा० ७२७ मि [ नेमि ] ओ० ६४. रा० १७३,६५१. जी० ३१२८५ तव्व | नेतव्य ] जी० ३३२१८,६६६,८८६,१०४८ यय [ नेतव्य ] जी० १ ४० ३ २६८, ६६७, ७६१ या [ नैर्यात्रिक] ओ० ७२ रय [ नैरयिक] ओ० ४४,७१,७३, ७. जी० १११०,१२८ : २ ११८,१२६,१३४, १३५,१३८, १४४,१४५,१४८ ३३८ से ६२,६४,६७, १०४,११६,११८ से १२१, ११३१ से ११३३, ११३६,११३८, ६२, ५, १०६ ७ ७, ८, १३, १४, २० से २३ : ६।१५६,१५८,२०६,२१०, २१६,२२१,२२४,२२६, २२, २३१ से २३४, २३६,२४१,२४२,२४७, २५० से २५२, २५४,२५५,२६७ से २६६, २७४, २७७,२७८, २८३, २८६ से २८८, २६३ रयत [नैरयिकत्व ] ओ० ७३. रा० ७५०, ७५१. जी० ३।११७,११३३ वच्छ [नेपथ्य ] ओ० ४६ वस्थ [ नेपथ्य ] ओ० ७०. रा० ५३, ५४,८०४ जेवत्थि [नेपथ्य ] ओ०५७ बुतिकर [ निर्ऋतिकर ] जी० ३१२६५ ह | स्नेह ] जी० ३।५८६ जौ [नो ] ओ० ३३. रा० २५. जी० १।२५ अपज्जत्त | नोअपर्याप्तक | जी० ६२६३ जोअपज्जतय [नोअपर्याप्तक | जी० ६६१ गोअपरित [तोपरीत ] जी० ८२ अभवसिद्धिय | अभवसिद्धिक ] जी० ६ ११० से ११२ गोअसंगत | नोअसंयत ] जी० ६ १४५ संजय [ नोअसंयत ] जी० ९१४१,१४७ णोअणि [नोअसं ज्ञन् ] जी० ६ १०७ गोपज्जत | नोपर्याप्त ] जी० १६६६३ गोपरित [ नो/रीत ] जी० ८२,८६,८७ गोभवसिद्धिय [ नोभवसिद्धिक] जी० ६।११० से Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोमालिया-तच्च ६४१ ताउयभंड [अपुकभाण्ड] रा० ७७४ णोमालिया [नवमालिका] रा०३०. जी० ३१२८३ तउयभारग [त्रपुकभारक] रा० ७६०,७६१, जोमालियागुम्म [नवमालिकागुल्म] जी० ३।५८० ७७४ गोमालियामंडवग (नवमालिकामण्डपका तउयभारय [त्रपुकभारक] र ०७७४ १८४. जी० ३.२६६ तउयागर त्रिपुकाकर] जी० ३१११८ णोमालियामंडवय [नदमालिकामण्डपक ] रा० तए ।ततम् ] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३१४४० १८५ तओ [ततम् 7०११,५६,७०,८०२. णोसंजत | नोसंयत ] जो० ६.१४५ जी० ३।६८६ णोसंजतासंजत [नोसंयतासंयत जी० १४५ Vतंडव ताण्डवय् -- -तंडवेति. :०२८१. गोसंजय नोसंयत जी०६।१४१,१४७ जी० ३.४४७ णोसंजयासंजय | नोसंयतासंयत | जी० ६११४१, तंत नान्त] रा० ७६५ १४७ तंती [तन्त्री ओ०६८. रा० ७,७६,१७३. गोसणि [नोसंज्ञिन् ] जी० ६१०७ जी० ३।२८५,३५०,५६३,८४२,८४५, व्हाइत्ता [स्पनयित्वा] रा० २६१ १०२५ व्हाण (स्नान] ओ० १६१,१६३ तंतुमय तन्तुमय | जी० ३३५६५ पहाणपोढ स्नान पीठ] ओ० ६३ तंबुल ( तण्डुल | रा० १५०,२६१. जी० ३।३२३, व्हाणमंडव स्नानमण्डप] ओ० ६३ ४५७,५६२ व्हाणमल्लिया [स्नानमल्लिका] रा० ३०. तंदुलछिण्णग [तण्डुलछिन्नक] ओ०६० जी० ३१२८३ तंब [ताम्र ओ० १६,४७. जी. ३५५६६, व्हाय [स्नात] ओ० २०,५२,५३,७०. स०६८३, तंबच्छि [ताम्राक्षि] जी० ३१८६० ६८५,६८७ से ६८६,६६२,७००,७१०, तंबपाय [ताम्रपात्र ओ० १०५,१२८ ७१६,७२६,७५१,७५३,७६५,७७४,७६४, तंवबंधण [ताम्रवन्धन ] ओ० १०६,१२६ ८०२,८०५ तंबागर [ताम्राकर] रा० ७७४. जो० ३।११८ हाय स्नपय]---हाएइ. रा० २६१ संबिय ताम्रिक] ओ० १०८,१३१ हारु [स्नायु] जी० १६५,१०५; ३।६२, तंबोलिमंडवग ताम्बूलीमण्डपक] स० १८४ १०६० तंबोलिमंडवय ताम्बूलीमण्डपक] रा० १८५ बिहाव [स्नपय-हावेति. जी. ३१४५७ तंबोलीमंडवग | ताम्धूत्रीमण्डपक] जी० ३।२६६ व्हावेत्ता [स्नपयित्वा ! जी० ३।४५७ तंस यस्र जी० ११५; ३१२२,७८,७६.५६४, १०७१,१०७५ त तत् ] ओ० १. रा० १. जी० १११ तकारवग्ग [तकारवर्ग) रा०६८ तइय तृतीय] ओ० १४४,१७४,१७६,१८२ तक्क [ तर्क | रा० ८१५ तउआगर [वपुकाकर रा० ७७४ तक्कर [तस्कर] ओ० १ तउय [पुक] रा० ७५४,७५६,७७४ तगर [तगर] रा० ३०,१६१,२५८,२७६. तउयपाय [त्रकात्र] ओ० १०५,१२८ जी० ३.२८३,३३४,४१६ तउयबंधण [वयुकबाधन] ओ० १०६,१२६ तच्च [तृतीय] रा० १२,६५,७०२,७०३ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ तच्चसत्तराइंदिया-तरुणी तच्चसत्तराईदिया [तृतीयसप्तरात्रिदिवा] ओ०२४ तच्चा | तृतीया] जी० ११२५:२।१४८,१४६%; ३३२,४,६८,७४,६१,१२५,११११ तज्जण | तर्जन अं.० १६१,१६३ तज्जणा तर्जना ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ तज्जायसंसद्धचरय | तज्जातमंसृष्टचरक] ओ० ३४ तज्जोणिय [तद्योनिक | जी० ३।७२१,६१५ तड | तट] जी० ३।४४५ तडवडा | दे०] रा० २८. जी. ३२२८३ तण तु न | रा० ६,१२,१७१,१७३,७६७. सी०११६६; ३१२७७ से २८५,२६८,३६०, ५७८,६२२,६६० तणवणस्सइकाइय [तृणवनस्पतिकायिक] स० ७७१ तणु । तनु] ओ० १६. जी० ३१५६६ से ५६८ तणु य तिनुक) रा० १२७. जी० ३१२६१,३५२, ५६५.५६७,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६, ८५४,८८२ तणुयतर तिनुकतर ओ० १६२ तणुयरी | तनुतरी] ओ० १६३ तणु बात [तनुवात ] जी० ३.१३,१६,२१,२६, ३७,५०,६५,६७ तण वाय [तनुवात | जी० १८१; ३।३०,३८,४४, ४७ तणू तनू ] ओ० १६३ तण्हा तृष्णा] ओ० ११७,१६५।१८. ० ७२८, जी० ३.११८,११६ तत तत] रा० ११४,२८१. जो० ३१४४७,५८८ ततिय [तृतीय रा०८०२ ततिया [तृतीया] जी० ३१८८ तते [ततस् ] जी० ३:५५५ ततो [ततस् ] ओ० १४१. जी० ३.१०२३ तत्त [तप्त | ओ० १६,४७,५०. जी. ३१११८, ५६०,५६६ . तत्ततव [तस्ततपस् ] ओ० ८२ तत्तिय [तावत् ] रा० १३०. जी० ३।३०० तत्तो [ततस् ] जी० ३११२७ तत्य [तत्र ओ० १४. रा० ८. जी० ११११ तत्थ त्रस्त ] जी० ३.११६ तत्यगत [तत्रगत ] रा०८ तत्थगय | तत्रगत | ओ०२१,५४. रा० ७१४, ७६६ तदावरणिज्ज |तदावरणीय ओ० ११६,१५६ तदुभय [तदुभय] ओ० १५५,१६०. ___ जी० ३।१०६०,१०६१ तदुभयारिह । तदुभयाह ] ओ० ३६ तद्देवसिय [तद्देवतिक] ओ० १६,१७ तप्पढमया | तत्प्रथमता] ओ० ६४. रा०६६, २५. जी० ३१४५० तप्पभिइ [तत्प्रभृति । रा० ७६०,७६१ तमतमप्पभा [तमस्तम:प्रभा] जी० ३।४१ तमतमा [तमस्तमा] जी० ३।४ तमप्पभा [तमःप्रभा] जी० ३४१,४३,४४ तमा [तमा ] जी० ३।७८,८१,१०२,११५ तमाल |तमाल | ओ०६,१०. जी. ३।३८८, ५५३ तम्हा [तस्मात् ] रा० ७५० तय त्वच्] जी० ३१३११ तया [तदा] ओ० २१. रा० २६२ तया [त्वच्] ओ० ६४. रा० ७६१. जी० ११७१ तयामंत | त्वग्वत् ओ०५,८. जी० ३।२७४ तयासुह [वकसुख ] ओ०६३ तयाहार [वगाहार] ओ०६४ तिर |त--तरंति. ओ० ४६ तरंग तरङ्ग] ओ० १६,४६. रा० २४,८१. जो ३,२७७,५६६,५६७ तरमिल्लहायण [तरोमल्लिहायन] ओ० ६४ तरुण तरुण] ओ० ५,८,१६,६४. रा० १२,७५८ से ७६१. जी० ३.११८,११६,२७४,५९६,५६७ तरुणो [तरणी] रा० ७१०,७७४,८०४ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरुणीपडिकम्म-ताराख्व ६४३ तवोकम्म तपःकर्मन् ] ओ० २४,११६,१२० तस प्रस] ओ० ८७. जी० ११११,७५,८३,१३६, १३८,१४० से १४३; ५२१७. तसकाइय [सकायिक] श्री० ३१८३,१६४, १९७; १,४,६,१०,१६,१८ से २०१८२, तरुणीपडिकम्म [तरुणीप्रतिक मन् ] ओ० १४६. स० ८०६ तरुपक्खंदोलग [तरुपक्षान्दोलक] ओ०६० तरुपडियग [तरुपतिनक] ओ० ६० तल तल] ओ० १३,१६,६३,६४,६८,१६४. रा० ७,१२.५०,५२,५६,७६,७७,१३७,१७३, १७४,२३१,२४८,७५८,७५६,७७४. जी० ३।२८५,२८६,३०७,३५०,३६३,५६३, ५८८,५६६,६०४,६४२,८४५,१०२५ तलभंगय [तलभङ्गक ओ० ४७. रा० ३३५६३ तलवर [३०] ओ० १८,५२:६३. रा ० ६८७, ६८८,७०४,८५४,७५६,७६२,७६४. जी० ३।६०६ तलाग [तडाग] ओ०१ तलागमह [तडागमह] जी० ३१६१५ तलाय [तडाग] ओ० ६६ तलिण [तलिन ] ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ ।। तव तपस् ] ओ०२१ से २४,२६,३०,३८,४५, ४६,५२,८२,११७. रा०८,६,६८६,६८७, ६८६,७११,७१३,८१४,८१७. जी० ३REE तिवातप्]---तवंति. रा०२८१. जी० ३१४४७ --तविसु. जी० ३१७०३-तविस्सति. जी० ३७०३–तवेति. जी० ३१८४५ तवणिज्ज [तपनीय] ओ०१६,४७,५०. रा० ४०, १३०,१३२,१३७,१७४,१६१,२८८. जी० ३१२६५,२८६,३००,३०२,३०७,३१३, ३८७,३६७,५६०,५६६,६७२ तबणिज्जमय [तपनीयमय] स०१३०,१४६, २८५,२५४,२७०. जी० ३।३००,३०५,३०८, ३११,३२२,३३७,३६६,४०७,४१५,४३५, ६४३,६०४ तवणिज्जामय तपनीयमय रा० ३७ तवस्सि [तस्विन् ] ओ० २५ तवस्सिवेयावच्च [तर स्त्रियावृत्य] ओ० ४१ तवारिह [तोह ] ओ० ३६ तसकाय [प्रसकाय] जी० ३:१७४ तसिय [त्रासित ] जी० ३१११६ तह तथा ओ० ६६. रा० १०. जी० १।१४ तहप्पगार तथा:कार ओ० ४०,१०५,१०६, १२८,१२६,१४१,१६१,१६३. जी. १९६५, ७१ से ७३,७८,८१,८४,८८,८६,१००.१०३, १११,११२,११४ से ११६.११८,१२१ तहा तथा] ओ० १७७. रा० १०. जी०११४ तहारुव [तथारूप] ओ०५२,१५१. रा०६६७, ६८७,८१२ तहिं तत्र] ओ० ८६. रा० १७४. जो० ३।२६६ ताडना [ताडना] रा० ८१६ साडिज्जत [ताड्यमान] रा० ७७ ताण [श्राण] ओ० १६,२१,५४ तार [तार] रा०७६ तारग [तारक] जी० ३१८३८।११ तारम्ग [ताराग्र] जी० ३१६३८:२,२६ तारय तारक ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२, जी० ३।४५७ तारयाग [तारकाग्र] जी० ३१८३८२६ तारा [तारा] ओ० ५०,६३,६८,१९२. रा० २५४,२८२. जी० ३१४१५,४४८, ८३८.१,२१,३०,१०२०,१०३७ तारागण तारागण जी० ३१७०३,७२२,८०६, ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८॥३१,८५५, १००० तारापिंड (तारापिण्ड] जी० ३१८३८११ तारारुव तारारूप] रा० २०,१२४. जी० ३,२८८,८४१,८४२,८४५,६६८,१००३ से १००६,१०२० से १०२२,१०३७,१०३८ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ तारावलिपविभत्ति-तिय ४४५ तारावलिपविभत्ति [तारावलिप्रविभक्ति] रा ० ८५ तिगिन्छिदह [तिगिच्छिद्रह ] जी० ३१४४५ ताराविमाण [ तारा विमान] जी० २:१८,४४ तिगुण [त्रिगुण ] जी० २११५१३३१०१० से ३।१००६,१०१४,१०१६,१०३५ ताल [नाल] ओ० ६,१०,६८. रा०७,७६,७७, तिगुणिय [ त्रिगुणित] जी० ३१८३८१२४ १७३. जी० ११७२३।२८५,३५०,३८८, तिघरंतरिय [त्रिगृहान्तरिक] ओ० १५८ ५६३,५८८,८४२,८४५,१०२५ तिण [इदम् | रा० ७५१. जी. ३१२७८ Vताल ताडय) ---तालेज्जा. रा० ७५५ तिणिस [तिनिश] ओ० ६४. रा० १७३,६८१ तालण | ताडन ] ओ० १६१,१६३ तिण्ण [तीर्ण ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. तालणा [ताडना | ओ० १५४,१६५,१६६ जी० ३१४५७ तालायर [तालाचर] ओ०१ लित्त | तस्तओ० १६५।१८,१६.जी० ३११०६ तालिज्जत ताड्यान रा० ७७ तित तिक्त जी० १.५, ५०; ३।२२ तालियंत [तालवृन्त ओ० ६७ तित्थ [तीर्थ ] रा० १७४,२७६. जो० ३२८६, तालु [तालु] ओ० १६,४७. जी०३१५९६,५६७ तालुय तालुक] रा० २५४ जी० ३,४१५ तित्थगर [तीर्थकर ओ०१६,२१,५२,५४. रा०८, ताव [तावत् ] ओ० ७६. रा० ७५१. जी० २१८१ २९२. जी० ३,४५७ ताव [तापय –तावे इ. जी. ३१३२७ -ताति. तित्यगरसिद्ध तीर्थकरसिद्ध] जी० १८ रा० १५४ जी० ३१३२७–तावेति. रा० तित्थगराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ओ० २१,५४ १५४ जी० ३७४१ तित्थयर तीर्थकर ओ० ६९,७०. रा०८ तावइय [तावत् ] रा० १२६. जी० ३१३७३ तित्थयराभिमुह [ तीर्थकराभिमुख ] स० ८,६८ तावं [तावत् ] जी० ३१८४१ तित्यसिद्ध | तीर्थ सिद्ध] जी० ११८ तावक्खेत [तापक्षेत्र] जी० ३१८३८।१४,१५,८४२, तिस्थाभिसेय [तीर्थाभिषेक ] ओ०१८ तित्थोदग [तीर्थोदक] रा० २७६. जी. ३१४४५ तावतिय [तावत् ] रा० २१०,२१२ जो ३१३००, तिदंडय [त्रिदण्डक] ओ०११७ ३५४,६४७, ८८५ तिपडोगार [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार] जी० तावस [तापस ] ओ०१४ ताविय [तापयित्वा | जी० ३:११८ तिपडोया [त्रिप्रत्यावतार, त्रिपदावतार जी० ताहे [तदा | जी० ३.८४३ ३१६३६ ६३८,६५० ति [त्रि] ओ० ७७. २१० ७. जी० १११७ तिप्पणयार | तेपन, तेवन | ओ० ४३ ति [इति ] रा० ७०३ तिभाग | त्रिभाग ओ० १९५४ से ६,८ जी० तिक्युत्तो त्रिम ] ओ० २१,४७,५२,५४,६६,७०,७८, ३३४ से ३६,४०,४१,४४,४६,७२५,७२८, ८०,८१,८३.रा०८ से १०,१२,से १४,५६,५८, ७२६,८७६ ६५,७३,७४,११८,१२०,२६२,६८७.६९२, तिमासपरियाय [त्रिमासपर्याय ] ओ० २३ ६६५,७००,७१६,७१८,७७८. जी. ३४५७ तिमिर तिमिर जी० ३१५८६ तिग त्रिक] ओ० १,५२ तिय [यिक] ओ० ५५. ० ६५४,६५५,६८७, तिगिच्छि [तिगिच्छि] रा० २७६ ७१२. जी. ३१५५४ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तियाह-तिसालग ६४५ तियाह {यहजी ३८६,११८,११६ तिल [तिल जी० ११७२; ३१६२१ तिरिक्ख { तिर्यच् ! जी० ११५१,१२३, २२५,६४, तिलकरयण [तिलकरत्न] जी० ३।३०७ १२२, ६३१ तिलग | तिलक] जी० ३१५६३,६३१ तिरिक्खजोणि तिर्यग्योनि ] मो०७४.१,३ जी० तिलगरयण तिलकरल] रा० १३०,१३७. जी० ३३०० २१२,३,६,१०,२१ से २४,४६,६८,६६, तिलपप्पडिया [तिलपर्पटिका] जी० ११७२१३ ७२,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१ तिलय [तिलक] ओ० ६ से ११. रा० ६६,७०, तिरिक्खजोणिणी [ तिर्यग्यो निकी } ओ० ७१. जी० ११७२; ३१३८८ से १०,५८३,७७५।२ जी० ६.१,४,६,१२, ६२०६,२१२,२१८.२२२ तिलागणि तिलाग्नि जी० ३१११० तिरिक्खजोणिय लियंग्योनिक अं०७१,७३, तिवइ त्रिपदी] रा०२८१ १५१, जा० ११२१.१८,२५५६:२१.६१,६७, तिवति | त्रिपदी| जी० ३।४४७ १८,१०१ से १०३,११६,११७,११६,१२५, तिवलि ( त्रिवलि ] ओ० १५. रा० ६७२. २१७५,७६,८२,८३,८८,६६,६६,१०१ से १०५, जी० ३३५६७ १०७ से १११,११३,११,१२२,१८,१२६, . तिवासपरियाय [त्रिवर्षपर्याय ] ओ० २३ १३८,१३६,१३८,१४२,१४५.१४६,१४६,१५१; ३११,१२१,१३० से १४७,१५५, १५६,१६१ से तिविष त्रिविध] जी० २११०४,१०६,१५१ः ३१३८,१४८,१४६,१५३,१६४,२१५,८३६; १६३,१६६,११३२,११३४.११३७,११३८ ६१३,८,१० से १२; ७.१,५,६,१०,१५,१६,२० ५५७; ६११२ से २३; १५६,२०६,२११,२१७,२२०,२२१, तिविह [विविध] ओ० ३३,३७,६६,७०,७६. २२५,२२६,२३१,२३२,२३५,२३६,२४३, से रा० ७६. जी० ११०,१२,७५,९६,११७, २४५,२५०,२५१,२५३,२५५,२६७,२७०, ११६,१२६,१३३,१३६; २१ से ३,८,११, २७१,२७६,२८०,२८६,२८७,२८६,२६३ ७५ से ७७,६६,१५१, ३३७,७८,१३७, तिरिक्खजोणियत्त [ तिर्यग्योनिकल्व ] ओ० ७३. १६१:१०७१, ६२३,३२,६७,६९,७५,८८, जो० ३:११३४ ६५.१०१,१०६,१६४,२०२ तिरिय तर्यच आ० ४४,४६. रा० १०,१२,५६, तिब्व [तीन] ओ० ४,४६,६६. रा० १७०,७०३, १२६,१३२.२७ ६. जी० ११४५,७६८७,६६, ०६५. जी० ३१११०,२७३,६०८,६११ १०१,१३६; ३.१२६१२,२५७,३०२,३५१, तिब्वच्छायतीव्रच्छाय] ओ० ४. रा० १७०,७० ४४५,६३८,३०१,७१०,७९६,७४७,७६१,७६४, जी. ३१२७३ ७६८,७६६,८१४,८३८११२,६४०,६४४,१००६, लियोभास तीवावभास] ओ० ४. रा० १७०, ११११, ६।१५८ ७०३. जी० ३३२७३ तिरियक्खेवण तिर्यक्क्षेपण ] ओ० १८० तिसत्तक्खुत्तो [त्रिसप्तकृत्वस् ] ओ० १७०. तिरियलोय (तिर्यग्लोक ] जी० ३:२५६ जी० ३८६ तिरियवाय तिर्यमःत ] जी० ११८१ तिसर | त्रिसर] ओ० ५२,६३. रा० ६८७ से ६८६ तिरोड [किरीट ओ० ५१ तिसरय त्रिमरक] ओ०१०८,१३१ तिरुव त्रिरूप | जी० २।१५१ तिसालग त्रिशालक] जी० ३५९४ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ तिहा [ त्रिधा ] रा० ७६४,७६५ तिहि [ तिथि ] ओ० १४५. २० ८०५ तीर [ तीर] ६१० ० १७४. जी० ३ ११८,११६,२८६, तीस [त्रिशत् ] ओ० १६२. जी० ३।१२ तीतिवह [ शिद्विध | जी० २ १३ तीसविध [ त्रिशद्विध ] जी० ३।२२८ तु [तु] जी० ३८३८५ तुंग [ तुङ्ग ] ओ० १६, ४६, ४७, ६४. २०५२, ५६, १३७, २३१,२४७. जी० ३।३०७, ३६३, ५६६, ५६७ तुंड [ तुण्ड ] जी० ३।१११ बीणपेच्छा [ तुम्बीणाप्रेक्षा ] जी० ३।६१६ तुंबवीणा [तुम्बवीणा ] रा० ७७ ववीणिय [ तुम्ववीणिक | ओ० १,२ तुंबवीणियपेच्छा [तुम्बवीणिकप्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५ तुंबा [तुम्बा ] जी० ३।२५८ तुच्छतराय [तुच्छत रक] रा० ७६५ तुच्छत्त [ तुच्छत्व ] रा० ७६२,७६३ तुट्ट [तुष्ट ] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ६८,७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४, १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७, २७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६६३, ६०, ६६५, ७००, ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५, ७२६, ७७४,७७८. जी० ३ । ४४३, ४४५, ४४७, ५५५ यि [ त्रुटित | ओ० २१,४७,५४,६३,७२, १०८, १३१. T० ८,६६,७०,२८५,७१४. जी० ३१४५१,४५७,५६३ तुडिय | तूर्य | ओ० ६७,६८. रा० ७,१३,३२,२०६, २११,६५७. जी० ३३३५०, ३७२, ४४६, ५६३, ६४६,८४२,८४५ तुडिय [ दे० | जी० ३१८४१ तुडिय [ तुटिक ] ' जी० ३।१०२३ से १०२५ १. आर चूर्णिकृत् - तुटिकमन्तपुरमुपदिश्यते' [वृत्ति पत्र ३८४ ] | तिहा- तुसार डियंग [ दे० ] जी० ३१५८८,८४१ तुडिया [ त्रुटिता ] जी० ३१२५४, २५८ √ तुट्ट [ त्वग् + वृत् ] - तुयट्टति रा० १८५. जी० ३।२१७ – तुयगृह. रा० ७५३. तुट्टेज्ज ओ० १८० गुण [त्वग्वर्तन ] ओ० ४० सुरक्क [तुरुष्क ] ओ० २,५५ तुरग [तुरंग ] ओ० १,१३, १४,६४. रा० १७, १८, २०,३२,३७,१२६,१७३,६८१. जी० ३३२८५, २८८,३००,३११,३७२,५६६ सुरय [तुरंग] रा० ६८३,६८५,६६२,७०८,७१०, ७१६,७३१ सुरित [वरित ] जी० ३१८६ रिय [ ] जी० ३।४४६ सुरिय [ त्वरित ] ओ० २१,४६, ५४. रा० ८, १०, १२,१५,५६,२७६,७१४. जी० ३।१७६,१७८, १८०, १८२,४४५, ६८६ रियति [ त्वरितगति ] जी० ३६८६ सुरुक्क | तुरुष्क ] रा० ६, १२,३२,१३२,२३६,२८१, २२. जी० ३१३०२, ३७२, ३६८, ४४७, ४५७ तुल [ सोलय् ] - तुलेमि. रा० ७६२ तुला [तुला ] रा० ७४८५ से ७५०, ७७३ तुलिय [तुलित ] रा० ७६२,७६३ तुलेत्ता [ तोलयित्वा ] रा० ७६२ तुल्ल [ तुल्य ] ओ० १६. जी० १११४३; २६८ से ७२,६५,६६,१३४ से १३८,१४१ से १४६; ३।७३ से ७५,५६६.६६८, ६६६, १०३७, ११३८ ४८१६ से २३,२५; ५११६,२०, २६, २७, ३२ से ३६,५२,५६,६८ ७ २०,२२,२३, ६१७, १४, ५५, १६६, १८१,२०८, २५० से २५३,२५५, २८६ से २६३ तुल्लत्त [ तुल्यत्व ] जी० ३१६६६ तुवर [तूबर ] जी० ३/४४५,४४६,४४८ तुलागणि [तुपारित ] जी० ३३११८ सुसार [तुवार ] ओ० १६४. जी० ३ ११६ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुसारकूड-तोरण तुसारकूड [ तुषारकूट ] जी० ३।११६ तुसारपडल | तुषारपटल ] जी० ३।११६ तुसारपुंज [ तुषारपुञ्ज ] जी० ३।११६ तुसिणीय [ तुष्णीक ] रा० ६४,७०१,७६२ तू [तु] रा० ७७ सूणइल्ल [ तूणावत् ] ओ० १,२ तूणहरुलपेच्छा [तृणावत्प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३३६१६ तूयर [ तूबर] रा० २७६,२८० तुल [तुल ] ओ० १३. रा० ३७,१८५,२४५. जी ३२७, ३११,४०७ तुली [ तुली ] रा० २४५. जी० ३०४०७ इंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० ११८३,८८, ६० २ १०१ १०३,११२, १२१,१३६, १३६, १४६, १४६; ३११३०,१६८; ४१, ४, १३, १८ से २१,२४, २५; ८ ११,३,५, ६।१,३,५,६,१६६, २२३,२३१, २५६,२६४,२६६ ते [तेजस्] जी० १३१२८,१३३; २/१३०; ५८ ९ १६४, २५७ ders | तेजस्कायिक ] जी० ५२६, २६; १८२,१८४,२५६,२६२,२६६ तेक्काइय [ तेजस्कायिक ] जी० १२७५,७६,७६, ८०; २३१००,१३६,१३८, १४६, १४६ ५४१,१३ १८,२०,८१,५ उलेस्स [तेजोलेश्य ] जी०९।१८५,१६६,१६६ तेउलेस्सा [तेजोलेश्या ] जी० ३।११०१ तेंदिय [त्रीन्द्रिय ] जी० ११६७, २२१,२२६,२५६ तेंदु [तिन्दुक ] जी० १।७२ तेजससमुग्धाय [ तैजससमुद्वात] जी० ३ । १११२, १११३ तेणानुबंधि [ स्तेनानुबन्धिन् ] ओ० ४३ तेणामेव [ तत्रैव]] रा० ७५४ जी० ३३४४३ तेणिस [निस ] जी० ३।२८५ तेतलि [तेजस्सलिन, तेतलिन् ] जो ३।६३१ तेत्तीस [ त्रयत्रिशत् ] ओ० १६७. जी० १/६६ तेत्तीस [ त्रयस्त्रिश ] रा० १६४ मासि [ त्रैमासिक ] ओ० ३२ मासिया [ त्रैमासिकी] ओ० २४ तेय [तेजस्] ओ० २२, ४७, ५७, ६५, ७१,७२, १८२. रा० ६१,१३३, ७२३, ७७७,७७८, ७८८,८१३. जी० ३१३०३,५८६,११२२ तेयंसि [तेजस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ तेय [तेजस ] जी० १७६ तेयगसरोरि [ तैजसशरीरिन् ] जी० ६।१७०, १७४ तथ्य [ तेजस ] जी० १ १५,५६,६४,७४,७६,८२, ८५,६३,१०१,११६,१२८,१३५ ६४७ तैया [ तैजस | जी० ३।१२६ ६ ६ १८१ तेयासमुग्धात [ तैजसन मुद्धात ] जी० ३।१११३ तेयासमुग्धाय [तेजसममुद्धात ] जी० ३ । १५७ तेयाहिय [त्र्याहिक ] जी० ३१६२८ तेर [ त्रयोदशन् ] जी० ३१२६६३५ तेरस [ त्रयोदशन् ] ओ० १५५. रा० १८८. जी० ३३४ तेरासिय [ त्रैराशिक ] मो० १६० तेल्ल [तेल ] ओ० ६३, ६२, ६३. रा० १६१,२५८, २७६. जी० ३।३३४, ४१९, ४४५, तेल्लग [ तैलक ] जी० ३१५८६ तेल्लापूय [ तैलापूप] ओ० १७०. जी० २।२६० तेल्लापूव [ तैलापूर ] जी० ३१८६ तेवण्ण [ त्रिपञ्चाशत् ] जी० १।१११ date [ त्रयोविंशति ] जी० ३।७३६ तोण | तुण] ओ० ६४. रा० १७३,६८१. जी० ३.२८५ तोमर [ तोमर ] ओ० ६४. जी० ३ ११० तोमरग [ तोमराय ] जी० ३३८५ तो [तोय ] ओ० २७ तोयपट्ट [ तोयपृष्ठ ] ओ० ४६ तोरण [ तोरण] ओ० १,२,५५,६४. रा० २० से २३,३२,१३८ से १६१,१७३, १७६,२०२,२३४, २७७,२८१,२८८, ३१२, ४७३, ६४५, ६५५,६८१ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ति-धेरवेयावच्च ६४८ जी० ३१२८५,२८८ से २६१,३१५ से ३३४, ३५५,३६३,३७२,३६६,४२५,५४३,४४७, ४५४,४७७,५३२,५५४,५५६,५७६,५६७, ६०४,६४१,६६६,६८४,८५७,६०१ त्ति [इति ] रा०६ थंभ [ स्तम्भ] रा० २० थंभणया | स्तम्भन } ओ० १०३,१२६ थंभिय स्तम्भित ] ओ० २१,४७,५४,६३,७२. रा० ८. जी० ३.४५७ ।। थिक्कार [दे०] - थक्कारेंति. रा० २८१. जी० ३१४४७ थण स्तन ] ओ० १५. जी० ३४५६७ थणिय [स्तनित] ओ० ४८,७१. स० ६१ थणियकुमार [स्तनितकुमार] जी० २०१६ थणियकुमारी | स्तनितकुमारी] जी० २।३७ थणिय सद्द [स्तनित शब्द ] जी० ३१८४१ थलचर [स्थलचर जी० २।१२२ थलज [स्थलज] जी० ३।१७१ थलय [स्थलज] रा० ६,१२ थलयर स्थलचर] ओ० १५६. जी० ११६७,१०२ से १०४,११२,११७,१२०,१२४, २१६,२३, २४,६६,७२,७६,६६,१०४,५१३,१३६,१३८, १४६,१४६; ३.१३७,१४१ से १४४,१६१ से पालिपाग [स्थालीपाक] जी० ३।६१४ याली [स्थाली ] जी० ३१७८ पावर [स्थावर जी० ११११,१२,७४,१३७,१३६, १४१,१४३ यावरकाय [ स्थावरकाय ] जी० ३।१७४ थासग [स्थासक] ओ०६४ थिबुग [स्तिबुक] जी० ११६४,६५ थिभुग स्तिबुक ] जी० ३६५६ विभुय [स्थिबुक ] जी० ३.६४३ थिमिओदय [दे० स्तिमितोदक ] अ० १११ से ११३,१३७,१३८ थिमिय [दे० स्तिमित ] ओ०१. रा० १,७५, ६६८,६६६,६७६,६७७ पिर [स्थिर} ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. जी० ३१११८,५६६,१०६८ पिल्लि [दे०] ओ० १००,१२३. जी० ३।५८१, ५८५,६१७ बीड [दे०] जी० ११७३ पिक्कार [थूत्कारय - थुक्कारेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ शुभ स्तूिप] जी० ३१४१२,५६७,६०४ यूभमह [स्तूपमह ] रा०६६८, जी० ३.६१५ पभाभिमुह | स्तूपाभिमुख ] रा० २२५. जी० ३।३८४,८६६ थूभियग्ग [स्तूपिकाग्र] ओ० १६२ यूभियाग (स्तूपिकाक] रा० ३२,१२६,१३०, १३७,२१०,२१२. जी० ३१३००,३०७,३५४, ३७२,३७३,६४७,८८५ थूभियाय [स्तुपिकाक] जी० ३।३०० थूल [स्थूल ] ओ० ७७ थूलय [स्थूलक | ओ० ११७,१२१. रा० ७६६ थेज्ज [स्थैर्य ] रा० ७५० से ७५३ पेर स्थविर | ओ० २५,४०,१५१. रा० ६८७, ८१२. जी० १.१; ३११ थेरवेयावच्च [स्थविरवैयावृत्य] ओ० ४१ २५.८९६ थलचरी [स्थलचरी] जी० २।३,५,५१,६६,७२, १४६,१४६ थवइय [स्तवकित] ओ०५,८,१०. रा० १४५. जी० ३२६८,२७४ थाम [स्थामन् ] ओ० २७ थारुइणिया [थारुकिनिका ओ०७०, रा. ८०४ थाल स्थाल ] रा० १५०,२५८,२७६. जी० ३६३२३,३५५,४१६,४४५,५८७,५६७ थालइ [स्थालकिन् । ओ०६४ थालिपाक | स्थालीपाक] जी० ३१६१४ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोब दगपासायय ta [स्तक ] ओ० २८, १७१. जी० ११४३; २४६६ से ७३,६५,६६,१३४ से १३८, १४१ से १४६; ३।५६७.६४१, १०३७,११३८, ४.१६ से २३,२५: ५।१८ से २०,२५ से २७, ३१ से ३६,५२,५६,६०; ६११२; ७१२०,२२, २३, ८५, ६५ से ७,१४,१७,२०,२७ से २६, _३५,३७,५५,६१,६२,६६,७४,८७,६४,१००, १०८,११२,१२०,१३०, १४०, १४७, १५५, १५८, १६६, १६६, १८१,१८४, १६६,२०८, २२०,२३१,२५० से २५३,२५५, २६६,२८६ से २६३ थोवतरक | स्तोकतरक ] जी० ३११०१,११४ थोक्तरग [ स्तोकतरक ] जी० ३।६६, ११३ द भास [ कावभास ] जी० ३।७३५, ७४०, ७४१, दंड | दण्ड | ओ० १२,६४, १७४. २० १०,१२,१८, २२,५१,६५,१५६,१६०, २५६, २७६,२६२, ६६४,६७५,७५५,७६०,७६१,७६७,७६८, ७७६,७७७. जी० ३।११७, २६०, ३३२,३३३, ४१७,४४५,४५७,५६२,५८६ वडणायक | दण्डनायक । ओ० १८ aster [ दण्डनायक ] रा० ७५४,७५६,७६२, ७६४ isits [ दण्डनीति | रा० ७६७ दंडनायग | ओ० ६३ [ दण्डनायक ] दंडपाणि | दण्डपाणि] रा० ६६४ दंडय | दण्डक ] रा० ७५५ दंड लक्खण | दण्डलक्षण | को० १४६. रा० ८०६ दंडपुच्छी [दे० दण्डसंपुच्छणी, दण्डसम्पुसनी ] रा० १२ दंड | दण्डिन् | ओ० ६४ दंत | दन्त | ओ० १६.२५,४७, ६४. रा० २५४, ७६०, ७६१- जी० ३१४१५,५६६ दंत [ दन्त ] ओ० १६४ दंत [पग] ] [ दन्तपात्र ] ओ० १०५,१२८ ६४६ दंत [बंध ] [ दन्तबन्धन ] ओ० १०६,१२६ दंतमाल [ दन्तमाल ] जी० ३,५८२ दंतवेदणा [ दन्तवेदना ] जी० ३।६२८ दंतुक्खलिय [ दन्तोलूखलिक ] ओ०६४ वंस [ दंश ] ओ० ८६, ११७. ० ७६६. जी० ३।६२४,६३१।३ सण [ दर्शन ] ओ० १५, १६ मे २१,४६,५१ से ५४,६४,१४३, १५३, १६५,१६६, १८३, १८४. रा०८,५०,७०,१३३,२६२,६८६,६८७.६८६, ७१३, ७३८, ७६८,७७१,८१४. जी० १११४, ६, १०१,११६, १२८, १३३,१३६; ३।३०३, ४५७, ११२२ विजय [ दर्शन विनय ] ओ० ४० सण संपण्ण [ दर्शनसम्पन्न ] ० २५. रा० ६८६ सणोवलंभ [ दर्शनोपलम्भ ] रा० ७६८ दक्ख [ दक्ष ] ओ० ६३. ० १२,७५८,७५६, ७६५, ७६६,७७० जी० ३।११८ दक्खिण [दक्षिण ] जी० ३१५६०, ५६६, ६३६,६७३, ७४०, ७४१ दक्खिकूल [दक्षिण कूलग] ओ० ६४ after earn [दक्षिणाश्चात्य ] जी० ३१६८७ दक्खिणपुरत्यिम [दक्षिणपौरस्त्य ] जी० ३१६८६ affee [ दाक्षिणात्य ] जी० ३०४८६ दग [दक ] रा० १२. जी० ३।७४१ एक्कारसम [ कैकादश ] ओ० १३ दगलसग [ दककलशक ] रा० १२ कुंभग [ दककुम्भक ] रा० १२ anasu | दतृतीय ] ओ० ९३ गालग [ कस्थालक ] रा० १२ दगधारा [दकधारा ] रा० २९३ से २६६, ३००, _३०५,३१२.३५१,३५५, ५६४. जी० ३।४५७ से ४६२,४६५,४७०, ४७७,५१७,५२०,५४७, ૪ दगपासाग | दकप्रासादक ] रा० १८० जी० ३।२६२ दपासा [दकप्रासादक ] रा० १८१ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दगविइय-दलइत्ता दगबिइय [दकद्वितीय] ओ० ६३ दधिषण [दधिधन] रा० १३०. जी० ३१३०० दगमंचग [दकमञ्चक] रा० १८०. जी० ३।२६२ दषिमुह (दधिमुख ] जी० ३।६११,६१२ कामंचय [दकमञ्चक] रा० १८१ दधिवासुयमंडवम [दधिवासुकामण्डपक ] जी० दगमंडय दकमण्डप] रा० १८१ ३।२६६ दगमंडव [दकमण्डप] रा० १८० दप्पण [दर्पण] ओ० १२,१६. रा० २१,४६,२६१. दगमंडवग [दकगण्डपक] जी० ३।२६२ जी० ३६२५६,३४७,५९६ वगमट्टिया [दकमृत्तिका] ओ० १४६. रा० ८०६ दप्पणय : दर्षणक | ओ० ६४ दगमालग [दकमालक ] रा० १८०. जी० ३।२६२ दप्पणिज्ज [दर्षनीय | ओ० ६३. जी० ३.६०२, दगमालय [दकमालक ] रा० १८१ ५६०,८६६,८७२,८७८ दगरय [दकरजस्] ओ० १६,४६,४७,१६४. रा० दब्भसंथारग [दर्भसंस्तारक | रा० ७६६ ३८,१६०,२२२,२५६. जी० ३१२८२,३१२, दमणा [ दमनक] रा० ३०. जी० ३।२८२ ३३३,३८१,४१७,५७६,५६७,८६४ दमिला [द्रविडा, द्रमिला रा० ८०४ वगवार [दकवार] जी० ३।११६ दमिली द्रविडा, द्रमिला] ओ०७० वयपत्त [दयाप्राप्त दगवारक [दकवारक] जी० ३१५८७ ओ० १४.' रा०६७१ दयरय !दारजम् ] रा० २६ दगवारग [ दकवारक] रा ० १२ दरिमह [दरीमर रा०६८८ दगसत्तम [दकसप्तम] ० ६३ दरिय [दृप्त ) ओ० ६. जी० ३१२७५ दगसीम [दकसीम जी० ३१७३५,७४५ से ७४७ दरिसण [दर्शन] रा० ८०३ दच्चा दित्वा ] रा०६६७ दरिसणावरणिज्ज [दर्शनावरणीय! ओ० ४४ दड्ड [दग्ध] ओ० १८४ दरिसणिज्ज दर्शनीय ] ओ० १,५,७,८,१० से १३ दढ [दृढ ] ओ० १,१४२,१४४. रा० १२,७५८, १५,४६,६४,७२,१६४. १०१७ से २३,३२,३४ ७५६,८००,८०२. जी० ३.११८ ३६ से ३८,५०,१२४,१३०,१३१,१३६,१३७, दढपइण्ण दृढप्रतिज्ञ] ओ० १४४ से १५०,१५४. १४५,१५७,१७४,१७५,२२८,२३१,२३३, रा०८०२,८०५ से ८११,८१६ २४५,२४७,२४६,६६८,६७०,६७२,६७६, वढपतिण्ण दृढप्रतिज्ञ | रा०८०४ ७००,७०२. जी० ३१८४,२३२,२६१,२६६, दढरहा [दृढरथा] जी० ३१२५४ २६६,२७८,२७६,२८६ से २८८,२६०,३००, दढाउ [दृढायुष्] जी० ३१११७ ३०३,३०६,३०७,३११,३८७,३६३,४०७,४१०, बद्दर | दे० दर्दर ] ओ०२,५२,५५. रा० ३२,१५६, ५८१,५८४,५८५,५९६,५६७,६३६,६७२, २७६,२८१,२८५. जी० ३३३२,३७२,४४५, ८३६ ८५९,८६३,११२१,११२२ ४४७,४५१,५६४ दरिसणीय [ दर्शनीय ] रा०१ बद्दरग [दे० दर्द रक] रा० ७७. बी० ३।५८७ दरी [दरी | जी. ३१६२३ दहरय दे० दर्दरक] रा० २८१. जी० ३१७८, दल | दल] जी० ३।२८२,५६७ दलइत्ता | दत्वा ओ० २१. रा० २६३. दहरिगा | दे० दर्दरिका] रा० ७७ जी० ३.४५८ दबुदुर [दर्दुर ओ० ५१. जी० ३११०३८ १. प्राप्तकरुणागुणः [व दयाप्राप्तः स्वभावतः दधि दधि] जी० ३१५६७ शुद्धजीवद्रव्यत्वात् । Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दलय-दार वलय [ दलक] रा० २६ / दलय [ दा] -- दलइस्संति. ओ० १४७. रा० ८०८ – दल सामि रा० ७८७ -- दलएज्जा. रा० ७७६---दलयइ. ओ० २१. रा० २६३ जी० ३१५१५ - दलयंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ – दलयति जी० ३१४५८ दलयित्ता [ दत्वा ] रा० २६३ देवकर [ द्रवकर ] ओ० ६४ दवfor [ दवाग्नि] जी० २६८ ३:११८,११६ afrass [ दवाग्निदग्धक ] ओ० ९० aar [ द्रवप्रिय ] ओ० ४६ ard [ द्रव्य ] ओ० २८,४६,६६,७० रा० ७७८. जी० १ ३३ ३३२२, २३, २७, ४५, ५०६, ५६२; ५।५१ दव्वओ [ द्रव्यतस् ] ओ० २८. जी० ११३३ दव्व [ द्रव्यार्थ ] जी० ५१५२,५६,६० दवा [ द्रव्यार्थ ] रा० १६६. जी० ३३५८,८७, २७१,७२४, ७२७.१०८१ दविसग्ग [ द्रव्यभ्युत्सर्गं ] ओ० ४४ दस्वभिग्गचरय | द्रव्याभिग्रहचरक] ओ० ३४ aate [ दर्वीकर ] जी० १११०६,१०७ दव्योमोदरिया [ द्रव्यावमोदरिका ] ओ० ३३ दस दशन् । ओ० ४७, रा० ८. जी० १।७४ 1 दसण [ दशन] जी० ३५६७ su [ उत्पातिकदशन] ओ० ६० दसदसमिका | दशदशकिका ] ओ० २४ दसद्ध [ दशार्ध ] रा० ६. जी० ३१४५७ दसमभत [ दशमभक्त ] ओ० ३२ दविष [ दशविध ] जी० ६१,२५६ दविह [ दशविध ] ओ० ३९, ४१. जी० ११४,१०; २१६, ३/२३१; १८, २६७,२६३ वह [ह] रा० २७६. जी० ३०४४५,६३९,६४०, ६६६,७७५,६३७ हम | मह ] जी० ३१६१५ दहि [दधि ] ओ० ६२, ६३ दहिण [दविधन ] रा० २६. जी० ३१२८२ ६५१ दहिता [ दग्ध्वा ] जी० ३१५१६ दहिवण्ण [दधिपर्ण ] ओ० ६,१०. जी० ३३८८ दहिवासुयमंडवग [दविवासुकामंडप ] रा० १८४ दहिवासुयमंड [दधिवासुका भण्डवक] रा० १८५ √दा ]दा] - दिज्जइ ० ७८४ - देह रा० ७६६ दाइ [दायिक ] ओ० २३. रा० ६६५ दाऊण [ दत्वा ] रा० २६२. जी० ३१४५७ दाडिम [ दाडिम ] ओ० २,१०. जी० ११७२; ३५६६,५६७ वाण [दान ] ओ० २३. २० ६६५ दाणधम्म [ दानधर्म ] ओ०६८ दातु [ दातृ ] ओ १९१७ दाम [ दामन् ] रा० २८,३२,४०,५१,६७,१३०, १३२,१३७, १४०, १५८, २३५,२५५,२६५. २८१,२६१, २६४,२६६,३००,३०५,३१२, ३५५,६८३, ६९२, ७००,७१६. जी० ३१२८१, ३००,३०२, ३१३,३३१,३३८,३५५,३५६, ३६७,४१२, ६३४, ८६२ दामिण [ दामिनी ] जी० ३३५६७ वाम [ द्राविड ] जी० ३।५६५ दार [ द्वार] ओ० १,१६२. रा० १२६ से १३८, १६२ से १६६,२१० से २१२,२१५,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१,२६४ से २६६,३०१ से ३०४,३२२ से ३२४,३२७ से ३२९,३३१ से ३३४,३३६,३३७,३३६, ३४१, ३४२,३५१,३५७, ३६४,३६५,४१४,४१६,४५३, ४५४,४७४, ४७७,५१४,५१५,५३४,६३७, ५७४, ५७५, ५६४,५६७,६३४,६३५,६५४,६५५,६५७. जी० ३।२६६ से ३०७,३१५, ३३५, ३३६,३४६ से ३५१,३५४ से ३५७, ३७३,३७४, ४१२, ४२१, ४४३, ४४५, ४४६, ४५२, ४५४, ४५७, ४५६ से ४६१,४६३,४६४,४६६, ४६८, ४६६, ४७५, ४७६, ४८५७ से ४८६,४९१ से ४६४,४६६ से ४६६,५०१,५०२,५०४, ५०६, ५०७, ५१६, ५१७,५२२, ५२४ से ५२६,५२८,५३०,५३१, ५३३, ५३६,५३८ से ५४०,५४३,५४५ से Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दारग-दित्ततेय १०० ५४७,५५०,५५२ से ५५४,५५७,५६३,५६६, दाहिणपच्चस्थिम | दक्षिणाश्चात्य रा० ४३, ५६८ से ५७०,५६४,६४७,६७३.६७४,७०७ ६६२. जी० ३।२२४,३४३,५६०,७५२ से ७११,७१३,७१४,७६६ से ८०२,८१३ से दाहिणपच्चथिमिल्ल [दक्षिणपाश्चात्य जी० ८१५,८२४ से ८२७,६५१,८५२,८८५ से ३।२२०,६६४,६९५,६१८,६२१ ८८८,६३६,६४०,६४४,६५५ दाहिणपुरथिम [दक्षिणपौरस्त्य | रा० ४३,६६०, दारग [दारक] ओ० १४२,१४४ से १४७, रा० जी० ३६४१,५६०,७५१ ८००,८०२,८०४ से २१० दाहिणपुरस्थिमिल्ल | दक्षिणपौरस्त्य | रा०५६ दारचेडा [द्वारचेटा] र१० १३०,२६४,२६६.२६८ जी० ३१२१६,२२३,६६२,६६३,६१८,९२० २६६ जी० ३३०० दाहिणवाय | दक्षिणवात ] जी० १८१ दारचेडी ! द्वारचेटी] जी० ३४५६,४६१ दाहिणहत्य दक्षिणहस्त ओ०६६ दारय दारक] ओ० १४३,१४४,१४८, से १५० दाहिणिल्ल दाक्षिणात्य ०४८,५७,२६४ से रा० १२,८०१,८०२,८०६,८११ ३०५,३०६ से ३१२,३२०,३२१,३२५,३३४, जी० ३।११८,११६ ३३६,३१,३५७,४१६,४७७,५३७,५६७. दारुइज्जपव्यय [दाहकीयपर्वत | रा० १८१ जी० ६१३३,३८,२१७,२१६ से २२३,२२५, दारुइज्जपव्ययय [दारुकीयपर्वतक] रा० १८० २३४,२४४,२५०,२५३,४५६ से ४७०,४७४ दारुपब्वयग | दारुपर्वतक] जी० ३१२६२ से ४७७,४६५,४६०,४६५,४६६,४,५०६, दारुपाय [दारुपात्र] ओ० १०५,१२८ ५२२,५२,५३६,५४३,५५०,६३२,६३६, दारुय दारुक] आ०६४ ६६६,६-३,६६३,६६४,६१४ । दारुयाग [ दारुकक] जी० ३।२.५ दिलैंतिय दान्तिक १० ११७,२८१. दारुयाय [दारुकक) रा०१७३,६०१ जी० ३३८४७ दालिम | दाडिम ओ०१६ दिदुलाभियाटलाभिक | ओ० ३४ दास दास] ओ० १४,१४१. स० ६७१,७७४, दिट्टि दृष्टि रा० ७४८ से ७५०,७७३. ___७६६. जी० ३।६१०,६३ ११२ जी० ११४,६६,१०१,११६,१२८,१३३,१३६ दासी । दासी | ओ० १४,१४१. रा०६७१,७७४, ३११२,१६० दिहिय दृष्टिक रा० ७६५ दिद्विवायष्टिादरा० ७४२ दाह [दाह ] रा० ७६५. जी० २।१४०,३१११८, दिणयर दिनक ओ० २२. रा० ७२३,७७७, ११६,६२८ ११७८,७८. जी० ३१६३८१२,१३,२६ दाहिण | दक्षिण ओ० २१,५४. रा०८,१६,४०, दिण्ण दत्त | ओ० २,१७,५५,१११ से ११३, ४३,४४,६६,१२४,१३२,१७०,१७३,२१०, १३७,१३८. रा० १५,३२,२८१,७८७,७८८. २१२, २३५,२३६,२६२,६६१,६६४. जी० जी० ३४८७ ३।२१७,२१६ से २२१,२६५,२८५.३४२, दित्त | दृप्त, शप्न ! ओ० १४,१४१. रा० ६७१, ३४५,३५८,३७३,३६७,३६८,८५७,१.६९५६६, ६७५,७६६ ५६७,५६६,५७७,६४७,६६८,६५२,५८६ दित्त ] दीप्त ओ०६३,६५ जी० ३।६३८१२६ ६६२,६६५,६६६,७११,८५२,८८५,६०२, दित्ततव दीप्तनपम् । ओ० ८२ १०१५,१०३६ दित्ततेय दीप्ततेजस् ] ओ०२७. रा० ८१३ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन-दौविम दिन्न दत्त] जी० ३१३७२ ३६३,३७३,३८३,३६६,६४७,६६६,६७३, विप्पंत [दीप्यमान ओ० ६३. रा० १३३. ६७४,६८४,७२३,८८२,८८५,८८८८६५, जी० ३३०३,५८६,५६०,११२२ ११०,६१४ से ६१६,६१६ से १२२ दिप्पमाण | दीप्यमान | ओ० ६५. जी. ३:५६१ दिसिव्यय [दिग्द्रत ] ओ०७७ विवङ् [व्यध, द्वयपार्ध जी० २१७३; ३१२३८, विसौभाग [ दिग्भाग] रा० १०,१२,१८,५६,६५, २४३ २७६,६७०. जी. ३।४४५ दिवस | दिवश ! ओ० १४४, रा० ८०२. विसीभाय [दिग्भाग] ओ० २. रा० २,६७८ जी० ३।८३८३१८,८४१ दोणारमालिया [दीणारमालिका] जी० ३१५६३ दिव्व [दिव्य ] ओ० २,४७,६४,७२. रा० ७,६, वीद [द्वीप] ओ० १६,२१,४८,५४,१७०. रा. ७, १०,१२,१७ से १६,२४,३२,४५ मे ५०,५६,५७. १०,१२,१३,१५,५६,१२४,२७६,६६८. ६३,६५,७३,७६,७८ से १५,१०० से ११३. जी० ३१८६,२१७,२१६ से २२३,२२५ से ११८ से १२०.१२२,१७३,२०६,२११,२७६, २२७,२५७,२५६,२६०,२६६.३००,३५१, २८१,२८५,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ४४५,५६६,५६० से ५७७,६३८,६६०,६६८, ३५१,३५५,५६४,६६७,७५३,७६७. ७०१ से ७०४,७०८,७११,७१५ से ७१६, जी०३८६,१७६.१७८,१८०,१८२,२८५, ७२३,७३६,७३९,७४०,७४२,७४५,७५०, ३५०,३७२,४४५,४४६,४५१,४५७ से ४६२, ७५४,७५५,७६०,७६२,७६४ से ७६६,७६८ ४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५५४, से ७८०,७६५ से १००,८०२ से ८०४,८०६, ५६३,६४६,८४२,८४५,१०२४,१०२५, ८०८ से ११०,८१४,८१६,८१७,८२१ से विश्वा [ दिव्याक] जी० १११०८ ८२५,८२७,८२६ से ८३१,८३८.२३,२६, दिसा दिशा) ओ० ४७,७२,७६ से ८१. ८४८,८५१,८५६,८५७,८५६,८६२,८६३, रा० २६४,६८८. जी० ३।३६,७५२,७५३, ८६५,८६८,८६६,८७१,६७४,८७५,८७७, १०१८,१०१६,१०२१ ८८० से ८८२,६१८,६२५,६२७ से १३५, विसाकुमार दिशाकुमार) ओ० ४ ६३७ से १४०,६४३,६४५, ६५० से ५४, दिसादाह | दिशादाह ) जी० ३१६२६ ६७२ से ६७५,१००१,१००७,१०२२,१०३६, दिसापोक्खि | दिशाप्रोक्षिन् । ओ०६४ १०८०,११११ दिसासोत्थिय दिशास्वस्तिक ] ओ० १६ दीव दीप] रा० ७७२ दिसासोवत्यिय दिशासीवस्तिक रा० १४६. दीवग [द्वीपक] जी० ३७७० जी०३:३१६,५९६ दीवचंपग [दोपचम्पक] रा० ७७२ दिसासोबत्थियासण |दिशा वस्तिकाभन । दीवचंपय [दीवचम्पक] रा० ७७२ रा० १८१.१५३,१८५. जी. ३१२६३,२६५, दीवणिज्ज (दीपनीय] जी० ३१६०२,८६०,८६६, २६७,८५७ ८७२,८७८ दिसि ! दिग्] रा० १६,४४,६१,१२०,१७०,१७५, दीवसिहा ! दीपशिखा जी० ३१५८६ २०२,२१०,२१२,२२४,२३४,६६४,६६४, दीवायण [टीपायन | ओ० ६६ ६६७,७१७,७७,७८७. जी. ११४६,५६, दीविच्चग [द्वीपग] जी० ३१७८० ८२,८७,६६,१०१, ३।३४,३५,२८७,३५८, दौविग द्वीपिक] जी० ३१६२० Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ दीaिr [ द्वीपिक ] रा० २४. जी० ३१८४, २७७ दीविया [ दीपिका ] जी० ३.५८६ बीविल्लग | द्वीपग] ] जी०३२७७५ बीह [ दीर्घ ] ओ० १४,१६,२८,११६,११७, १६५४.२० १६०, २५६,६७१,७६५,७७४. जी० ३१३३३,४१७,५६६,५६७ दीहासण | दीर्घासन रा० १८१, १८३. जी० ३।२६३ दोहिया [ दीधिकः ] ओ० १,६,६६. ० १७४, १७५, १८० जी० ३।२७५,२८६ दहीकर | दीर्घा -: कृ | — दोहोकरेज्जा. जी० ३३६६७ tatafone | कतुम् ] जी० ३१६६४ से ६६७ दु [द्वि ] रा० ४७. जी० १३६ बुंदुभिस्सर [दुन्दुभिस्वर ] ओ० ७१. रा० ६१ कुंदुहिणिग्घोस | दुन्दुभिनिर्घोष ] ओ० ६७. रा० १३,१३५. जी० ३।४४६, ५.५७ दुहिनिग्घोस [ दुन्दुभिनिर्घोष ] रा० ६५७. जी० ३।५५७ दुहिस्सर [दुन्दुभिस्वर | रा० १३५. जो० ३१२०५ दुही [ दुन्दुभी ] रा० ७७ दुक्ख | दुःख ] ओ० २६,४६,७२,७४१,४,५, १५४,१६५, १६६,१७७,१८१, १६५ २१. रा० ७७१,७६५,८१६. गो० १११३३ ३११० १२६७८ ८३८।१३ दुक्खुत्तो द्रिम् | जी० ३।७३०, ७३१ दुखुर | द्विर जी० १।१०३ गुण | द्विगुण] जी० ३।२५६ दुगुणित ( द्विगुणित ] जी० ३२५६७ दुगुणिय | द्विगुणित ] जी० ३८३४१२४ दुगुल्ल | दुकूल ] रा० ३७,२४५. जी० ३१३११, ४०७,५६५ दु [] ०७६५. जी० ३।११० दु | दुर्गन्ध ] रा० ७५३ दुधण [दुषण ] रा० १२, ७५८,७५६. जी० ३।११८ दीविय दुय दुघरंतरिय | द्विगृहान्तरिक ओ० १५८ दुचिण | दुश्चीर्ण ] ओ० ७१ दु [दुष्ट ] ओ०४६ दुत | द्रुत | जी० ३,४४७ दुतविलंबित [ द्रुतविलम्बित | जी० ३२४४७ बुद्ध [ दुग्ध ] जी० ३१५६२ बुद्धजाति ( दुग्धजाति ] जी० ३१५८६ दुसरिस [ दुर्धपं ] ओ० २७. रा० ८१३ दुपार | द्वित्यावतार, द्विपदावतार] ओ० ५२. रा० ६८७ दुपय [ द्विपद ] रा० ७०३, ७१८ पाय [ द्विपक] जी० ३।११८,११६ दुप्पय [ द्विपदं | रा० ६७१ दुप्पवेस | दुष्प्रवेश ] बो० १ फास [ दुःस्पर्श ] जी० ३२९८१ फासत [ दुःस्पर्शत्व ] जी० ३।६८७ दुब्बल [ दुर्बल ] ओ० १४. रा० ६७१,७६०,७६१. जी० ३ ११८, ११६ दुम्बलय [ दुर्बलक ] रा० ७६१ दुभिक्ख [दुनिक्ष] ओ० १४. रा० ६७१ दुभिक्खभत्त | दुर्भिक्षभक्त | ओ० १३४ दुभिखमय [ दुर्भिक्षमृतक ] ओ० ६० दुभिगंध [दुर्गन्ध | रा० ६, १२. जी० ११५, ३६, ३७, ५०, ३१२२,६२२,६७६,६८५ दुभिगंधत्त | दुर्गन्धत्व ] जी० ३२६८५ दुब्भिसद्द [ दुःशब्द ] जी० ३।६७७, ६८३ बुब्भसद्दत्त [ दुःशब्दत्व | जी० ३१६६३ बुब्भूय [दुर्भूत ] जी० ३३६२८ दुभागत्तोमोरिय| द्विभागाप्तवमोदरिक ] ओ० ३३ दुम [भ] रा० १३६. जी० ३१३०६,५८२,५८६ से ५६५,६०४ दुमासपरियाय [हिमाप] ओ० २३ दु [] रा० १०२,२०१ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुविलंबिय-देव दुयविलंब [ द्रुतविलम्बित ] रा० ६१,१०४, २८ १ बुयाह | द्वयह ] जी० ३३८६, ११८, ११६, १७६, १७८, १८०,१५२ दुरंत [ दुरन्त ] रा० ७७४ दुरभि [ दुरभि ] जी० ३१८४ दुरस ] दूरस] जी० ३६८० दुरहियास | दुरध्यास, दुरधिसह ] २० ७६५. जो० ३।११०,१११,११७ √ दुरुह [ आ + रुह ] - दुरुह इ. रा० ६८५--- दुरुहंति रा० ४८. दुरुहति. रा० ४७-दुरुहेति रा० ६८३ दुरुहिता [ आरुह्य ] रा० ४७ दुरुता [ आरुह्य ] रा० ६८३ दुरूढ ( आरूढ | ओ० ६३,६४, ० १३,४६ दुरूव [ दुरूप ] जी० ३६७८,६८४ √ दुरूह [ आ + रुह ] -- दुरूति जो० ७० दुहिता [ आरुह्य ] ओ० ७० दुहिताणं [ आरुह्य ] ओ० १०१ दुल्लभ [ दुर्लभ ] रा० ७५० से ७५३ दुल्लभबोहिय | दुर्लभबोधिक ] १० ६२ दुध [ द्वि ] जी० ३।२५१ दुवारवयण ( द्वावदन] रा० ७५५,७७२ दुवालस [ द्वादशन् | ओ० ३३. जी० ३।३३ बालसंग | द्वादशान् । ० २६ दुवालसहि [ द्वादशविध | रा० ५२७७७८. जी० १६६ वासपरियाय विपर्याय] ओ० २३ विष | द्विविध | जी० ३।१३६, १४०, १४१,१६३, ११२२, ६ १३७ दुहि [ विविध ] ओ० ३२,४०,७४. १० ७४१ से ७४५. जी० १ २, ३, ५ से ७, १०, ११, १३.१४, ५७,५८,६३,६५ से ६८,७०,७६,८०,८१,८४, ८,८६,६२,६४,१६,६७,१०० से १०४, १०६,१११,११,११६,११८ से २२,१२६, ६५५ १२६,१३३,१३५,१३६, १४३, २५, ७, १६ ३:७८,७६,८१,८२,६१, १३, १२७१५, १३२ से १३५,१३८, १३६.१४२ से १४६, २१२,२२६, ६७७ से १८१,१०२२,१०७१ से १०७४, १०८७,१०९१,१११०, ११२१ ४ २ ५२ से ४,३७ से ४०, ५३ से ५५; ६८, ६, ११, १५,१६,१८,२१,२२,२४,२८ से ३१,३६, ३८,३९,४२,४४,४६,५६,५८,६२,६३,६५, ६६,६८,७६,७९,८१,१२५,१३३,१५१, १७४ gror [दुवर्ण ] जी० ३५६७ हओ [ द्वितस्, द्वय ] रा० ६६,७०,१३१ से १३८, २४५, ७५५,७७२. जी० ३।३०१ से ३०३, ३०५ से ३०७,३१५,३५५,४०७,५७७ ओखा [ द्वितः खहा ] रा० ८४ दुहओचक्कवाल [ द्वितश्चक्रवाल ] रा० ८४ दुहतो द्वितस्, द्वय ] रा० १२३. जी० ३।३०४ दुहा ( द्विधा ] रा० ७६४,७६५. जी० ३८३१ इज्जत [दूगमाण ] ओ० ४६ दूइज्माण | दूयमाण ] ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६,६८७,६८६,७०६,७११,७१३ दूय [दूत ] ओ०१८,६३. रा० ७५४,७५६, ७६२, ७६४ दूर [दुर] ओ० १६२. रा० १२४. जी० ३११०३८ दूरंगइय [ दुरंगतिक ] ओ० ७२ तरसत्त [ दूरतत्व ] जी० ३२६८६ वराहड [दूराहृत ] रा० ७७४ { गुरूदत्त दुरूपत्व | जी० ३१६८४ दूस [ दुव्य ! ओ० ५६. जी० ३।६०८ दूसरवण | दृष्यरत्न ] ओ० ६३ देव [देव] ओ० ४४, ४७ से ५१,६८,७१,७३,७४, से ६५,११४,११७,१२०,१४०,१४१, १२५,१५७ से १६०, १६२, १६७, १७०, १६५:१३,१४, रा० ७,६ से १६,२४,३२,४१ Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५६ देवउक्कलिया-देवत्त से ४४,४६ से ४६,५४ से ६५,६८,६६,७१ देवउक्कलिया [देवोत्कलिका जी०३१४४७ से ७४, ११८ से १२०,१२२.१२४,१२६, देवउल | देवकुल ] रा० १२ १८५ से १८७,२४०,२४६.२६६,२६८,२७०, देवकज्ज [देवकार्य ] जी० ३।६१७ २७४ से २६१,६५४ से ६६७,६६८,७५२,७५३, देवकम्म [देवकर्मन् ] जी० ३।१२६६,८४० ७७१,७८६,७९७ से ७६६.८१५. जी० ११५१, देवकहकह [देवकहकर] जो० ३।४४३ ५४,५६,६१,६५,८२,८७,६१,१०१,११६, देवकहकहग | देवकहकहक रा० २८१ १२३,१२८,१३५,१३६; २१२,१५ से १६ देवकिबिसिय | देवकिल्विपिक ! ओ० १५५ ३५ से ३:३६ से ४७,६२,६७,६८,७१,७२, देवकिदिबसियत्त | देवकिल्विषिकत्व ओ० १५५ ७५,७८,८१,६० से ६३,६५,६६,१४४,१४५, देवकुमार ( देवकुमार] रा० ६६,७१ से ७५,७६ १४८,१४६,१५१: ३३१,८६,१२७,१२६२, से ८१,८३,११२ से ११८ १७६, १७८,१८०,१८२,१८४,१६४,१६८ से देवकुमारिया [ देवकुमारिका ] रा० ८३, ११५ से २०६,२१७,२३० से २३४,२३६,२३८,२३६, २४२ से २४४,२४६,२४७,२४६ से २५२, देवकुमारी | देवकुमारी | रा०७० से ७५,७६ से २५५ से २५७,२६७,२६८,३३६ से ३४५, ८१,११२ से ११४ ३५०,३५१,३५८ से ३६०,३७२,४०२,४१०, दवकुरा [दवकुरु] जा० २।१३, ३१९१६,६३७ ४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५४ से ५६५ देवकुर ! देवकुरु | जी० २१३३,६०,७०,७२,६६, ५६७,५६८,६३५,६३७,६३८,६५६,६६४, १३७,१३८,१४७,१४६; ३३२२८,७६५ ६६६,६८०,७००,७०१,७१०,७२१,७२४, देवकुल [देवकुल ] ओ० ३७. रा० ७५३ ७३८,७४१७४३,७४६,७६०,७६३,७६५, देवगइ [देवगति] रा० १०,१२,५६,२७६ ३.७८,७६५,८०८,८१६,८२६,८४०,८४२, देवगण | देवगण | रा०६९८,७५२,७५६. ८४३,८४५,८४६,८५४,८५७,८६०,८६३, जी० ३६११२० ८६९,७२,८७५,८५,६१७,६२३,६२५, देवगति | देवगति ] जी० ३१८६,१७६,१७८,१८०, १८२,४४५ ६२७ से ६३५, ६३८ से ६४०,६४२ से ६४५, ६४७,६५०,६५१,६५४,६८८ से ६६७,६६६, देवगुत्त [ देवगुप्त | ओ०६६ देवच्छंदग | देवच्छन्दक जी० ३।६०७ १०१५,१०१७,१०२५,१०२७,१०२६,१०३१, देवच्छंदय | देवच्छन्दक | रा०२५३,२५८,२६१. १०३३,१०३५,१०३८,१०३९,१०४१ से जी० ३४१४,४१५,४१६,४५७,६७५,६७६, १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ स १०५६, ६०७,९०८ १०८२,१०८३,१०८५ से १०८७,१०८६ से देवजुइ । देवधुति | रा० ६३,६५,११६ १०६३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५. ११०७,११०६ से १११२,१११४ से १११७, देवजुति [देवद्युति] रा० ५६,७३,११८,७६७ १११६ से ११२४,११३२,११३३,११३७, देवज्जुइ । दवद्युति ] रा० ६६७ ११३८, ६६१,५,७,८,१२, ७.१,७,८,१६ से देवज्जुति [देवधुति ] रा० १२२ देवता | देवतः] जी० ३१७३७ २१,२३, ६।१५६,१५८,२०६,२१३,२१८,२२०. २२०, देवत्त देवत्व ओ० ७२,७३,८६ से ६५,११४, २२१,२२६,२२६,२३१,२३२,२४८,२५४,२६७, ११७,१४०,१५७ से १६०,१६२,१६७. २७४,२८३,२८६,२६१,२६३ ।। रा० ७५२,७५३. जी० ३.११२८,११३० Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदीव-देस ६५७ ५६,५८,६०,६२,११७,११८,१२०. स०६,१०. १३,१४,१७,५८,६३,६५,७२,७३,२७६,२७८, ६ ५४,६८१,६८७ से ६६०,६६५,७०४,७०६, ७१३,७१४,७१८,७२०,७२३,७५१,७६५, ७६८,७७४,७७५,७७७,८०२. जी० ३.४४२, देवदीव [देवद्वीप जी० ३१७७६,७७७४ देवदीवग [देवद्वीपक ] जी० ३१७७६,७७७ देवदुहहग देवदुहदुरका रा०२८१. जी० ३२४४७ देवदूस | देवदृष्य रा० २७४,२८५,२६१,७५६. जी० ३।४३६,४४३,४५१,४५७ देवदार | देवद्वार] जी० ३:८८५ देवद्दोवग देवद्वीपक] जी० ३१७७६,७७७ देवपरिसा [देवपरिषद् ओ० ७१. ६० ६१ देवभद्द [देवभद्र] जी० ३:९४२.६५१ देवमहाभद्द | देवमहाभद्र) जी० ३।६४२,६५१ देवमहावर [देवमहावर जी० ३६५१ देवय दैवत ] ओ० २,५२,१३६. रा० ६,१०,५८, २४०.२७६,६८७,७०४,७१६,७७६. जी० ३१४०२,४४२ देवया [देवता] ओ० १३६ देवरमण देवरमण] रा० ७८,८०,८२,११२ देवराय [देवराज] जी० ३।६१६ से १२२,१०३६ से १०४४ देवलोग [देवलोक] ओ० ७४१२,१४१. रा० ७६६. जी० ३१६३० देवलोय [ देवलोक ] ओ०७१,७२,७४१२,८१ से ६३. रा० ७५२,७५३. जी० ३.६३० देववर | देववर जी० ३६५१ देवविमाण [देवविमान] रा० १८७ देवसणिवाय [ देवसन्निपात रा० २८१ देवसन्निवाय [देवसन्निपात] जी० ३।४४७ देवसमवाय [देवसमवाय जी० ३।६१७ देवसमिति [देवस मिति ] जी० ३१६१७ देवसमुदय [देवसमुदय] जी० ३१६१७ देवसमुद्दग देवसमुद्रक] जी० ३१७७८ देवसयणिज्ज [देवशयनीय] रा० २४५,२४६,२६१, ३५३,४१४,७६६. जी० ३।४०७,४०८,४२३, ४३६,४४३,५१६,५२६,६५०,६७३,७५६ देवसोक्ख देवगौख्य ] ओ० ७४१२ देवाणुप्पिय [देवानुप्रिय] २०,२१,५२,५३,५५, देवाणुभाग | देवानुभाग] र!० ६६७ देवाणुभाव | देवानुभाव] रा० ५६,६३,६५,७३, ११८,११६,१२२.७६७ देविंद देवेन्द्र] जी० ३१६१६ मे १२२,१०३६ से १०४४,१०५५ देविडि [देवधि ] ओ० ७४१२. ग० ५६,६३ ६५, ७३,११८,११६,१२२,६६७ ७६ 3 देवित्त (देवीत्व] जी० ३१ ११२८ से ११३० देवी [देवो ] ओ० १५,५५,५८,६२,७०,०१,८१. रा०५,७,१५ से १७,४८,५४ से ५८,१८५, १८७,२४०,२७६,२८०,२८२,२८६ से २६१. ६५७,६७२,६७३,७५१,७७६,७६१ से ७६४, ७६६. जी० ३११६८ से २०६,२१७,२३७, २३८,२४३,२४६,२४७,२४६,२२०,२५६,२६७, २६८,३५०,३५८.३६०,४०२,४४२,४४६,४४८, ४५५ से ४५७,५५७,५६३,६३७,६५६,७६०, ७६३,१०२३,१०२५,१०२८,१०३.,१०३२, १०३४,१०३६,१०४१,१०४२,१०४४,११२२, ११२६, ६।१,६,७,१२,६।२०६,२१४,२१८, २२० देधुक्कलिया [देवोत्कलिका ] रा० २८१ देवुज्जोय (देव द्य त] रा० २८१. जी० ३६४४७ देवोद [देवोद] जी० ३१७७६,७७७,६४३,६४४ देवोदग | देवोदक | जी० ३१७७८,७७६ देस [ देश] ओ० १६,१६५।१०. रा० १७४,१८०, १८२,१८४,१८८,१६२ से १९७,७६५,७७४, ८०४. जी० ११४,५; ३१२६६ से २६६,२८६, २६२,२६४,२६६,५७६ से ५६६,६४०,६५९, ६६४,७०२,७२६,८०८,८२६,८५७,८६३, ८६६,८७५,८८१ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ देसंतर-धणुवेय देसंतर [देशान्तर ओ० ११६,११७ ६५,२७६,७०२,७०३. जी० ३१२४,४४५ देसकहा । देशकथा] ओ० १०४,१२७ दोच्चा | द्वितीया] जी० १११२४,२।१३५,१३८, देसकालण्णया | देशकालज्ञता ] ओ० ४० १४८,१४६; ३।२,४,६६,६७,७३,७४,८८,६१, देसभाग ग] रा० ३२,३६,३६,६६,१६४, २१८,२६१,२८१,३००,३२१,३३३. जी. दोणमुह द्रिोशमुख ] ओ०६८,८९ से १३,६५, ३१२७५,३६५.३७२,४४७,४६०,४६५,५५४, ६६,१५५१५८ से १६१,१६३,१६८. ५६६,७५६,७६२,७८२,८८२,९१३ रा० ६६७ देसभाय | देशभाग ] ओ० २,६,८,१६,५५,१६२. दोभग दौर्भाग्य | जी० ३१५६७ रा० ३,३५.१२५,१८६,२०४,२१७,२२७,२३८, दोमासिय द्वैमामिक । मो० ३२ २५२,२६३,२६५,३२६,३३८,३५६,४१५, दोमासिया द्वैमासिकी ओ० २४ ४७६,५३६,५६६,७५५,७७२. जी० ३।२६३, दोर [दवरक] रा० २७०. जी. ३४३५ ३१०,३१३,३३८,३५६,३५६,३६१,३६४, दोवारिय [दोवारिक] ओ० १८. रा० ७५४,७५६, ३६८,३६६, ,६८६,४००,४१३,४२२, ७६२,७६४ ४२७,४५८,४६०,४८६,४६१,४६८,५०३, दोस | दोष ओ० ३७.७१,११७,१६१,१६३. ५२१,५२७,५३५,५४२,५४६,६३४,६३६, रा० १७३,७९६. जी० ३,२८५,५६८ ६४२,६४६,६४६,६६३,६६८,६७१ से ६७३, दोसिणाभा [दे० ज्योत्स्नाभा] जी० ३३१०२३ ६७६,६८५,६६१,७३७,७५८,८३१,८८४, ८६०,८६१,६०६,६११,६१८,१०२३,१०३६ देसावयासिय [देशावकाशिक] ओ० ७७ धंत | ध्मात] रा० २६,७५७. जी० ३।२८२ देसिय [देशित ] जी० १११ धंतपुश्व [ध्मातपूर्व] रा० ७५७,७६३ देसी [देशी] ओ०४६,७०. रा० ८०६,८१० वण [धन ] ओ०५,१४,२३,१४१. रा०६७१, देसीभासा {देशीभापा] ओ० १४८,१४६ ६६५,७६६ देसूण [देशोन रा० १२८,२०१. जी० २०२६ से । घणक्खय [धनक्षय ] जी० ३१६२८ ३४,३७,५४ से ६१,६५,८४,८८,११४११६, धणिय [दे०] ओ० ४६. रा० ७७४. जी० २५५६ १२३,१२४,१३२ ; ३।२४७,२५०,२५६,२७३, २६८,३६२,३६६ से ३७१,५७०,६२६,६४६, घणु [धनुष ] ओ० १,६४,१७०,१८७,१६५. ६७३,६७४,७०६,७३२,८८२, ६।२३,२६,३३, रा० १८८,१८६,२४६,६६४,७५६. जी०११६४,११२,११६,१२५,३८२,६२, ४१,६६,७३,७८,१४२,१४४,१४६,१६२,१६४, २१८,२६०,२६३.३५३,५६२,५६८,६४७, १६५,१७८,२००,२०२ से २०४ देसोण देशोन | जी० ३.३५३ ६४६,६७३ से ६७५,६८३,७०६,७८८, देह [देह] रा० ७६०,७६१. जी० ३१५६६ १०१४,१०२२ देहधारि [देहधारिन् ] ओ० १६ घणुग्गह [धनुह] जी० ३१६२८ दो [द्वि] ओ० १७० धणुपट्ट [धनुष्ष्ठ ] जी० ३।५५७,६३१ दोकिरिय [वक्रिय] ओ० १६० घणुवेद [धनुर्वेद ] ओ० १४६ दोच्च [द्वितीय] ओ० ११७. रा० १०,१२,१८, घणुवेय [धनुर्वेद] रा०८०६ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घण्ण-धायतिसंड ६५६ घण्ण [धान्य] ओ० २३ पम्मिय [धार्मिक ] ओ० ५२,५७,१६१,१६३. रा० धन्न [धन्य] ओ० १६४. रा० ६६५ २७०,२८८,६६७,६८७,७५२,७५३. जी० धमावियपुव्व [मापितपूर्व ] स० ७५७,७६३ धम्म [धर्म] ओ० १६,२१,४०,४६,५४,६९,७१, धम्मोवदेसग [धर्मोपदेशक] ओ० २१.५४,११७. ७२७४ से ७७,७६ से८१,१४२,१४४,१६१, स०७१४,७६६ १६३. रा०८,१६,६१,६२,२६२,६९३ से घिर [५]--धरंति जी० ३१७३३ ६६५,७००,७१७ से ७२०,७३२,७५२,७७५, घर [घर] ओ० ५,८,१६,२१,४७,४६,५४,७२. ७७६,७८०,८००,५०२. जी० ३.४५६ रा०८,२२,१४५,२९२,६६४,७७१. जी० ३३२६८,२७४,३८७,४५७,२६२,५८४,६७२ धम्मकहा [धर्मकथा] ओ० ४२,४३. ० ७७५ ७०२,०८,८२६ धम्म [माण] [धर्म्य ध्यान ] ओ० ४३ धरण [धरण] अॅ०६८. रा० २८२. जी०३:२४४ धम्मक्खाइ [धर्माख्यायिन् ] ओ० १६१,१६३. से २४७,२५०,४४८ रा० ७५२ परणितल धिरणितल ओ० २१,५४. रा०८, धम्मचरण [धर्मचरण] जी० २.२६ से २६,५४ ५६,२६२. जी० ३।४५७ से ५७,६५,८४,८८,८६,११४,१२३,१३२ धरणियल धिरणितल] जी० ३४५७,८८२ षम्मचितग धर्मचिन्तक] ओ०६३ परिज्जमाण [ध्रियमाण] ओ० ६३,६५. रा० धम्मज्मय धर्मध्वज ] ओ० १६ ६६२,७००,७१६ धम्मणायग [धर्मनायक] रा० २६२. जी० ३।४५७ धरिसणा [धर्षणा] ओ० ४६ धम्मस्थिकाय [धर्मास्तिकाय ] रा० ७७१. जी. घरेज्जमाण [ध्रियमाण] रा०६८३ २४ धव [धव ओ० ६.१०. जी० ११७२:३१३८८ धम्मदय [धर्मदय ] रा० ८,२६२. जी० ३।४५१ ५८३ धम्मदेसय [धर्मदेशक | रा०८,२६२. जी. ३१४५७ बल [धवल] ओ०१६,४६,४७.६३,६४. रा० धम्ममायग [धर्मनायक ] रा०८ २५५,२५६,२८५. जी० ३।३७२,४१६,४१७, धम्मपलज्जण धर्मप्ररञ्जन] ओ० १६१,१६३. ४५१,५६६,५६७ रा० ७५२ घवलहर [धवलगह) जी० २५६४ धम्मपलोइ [धर्मप्रलोकिन् ] रा० ७५२ घाई [धात्री] रा०८०४ धम्मप्पलोइ [धर्मप्रलोकिन् ] ओ० १६१,१६३ घाउरत्त [धातुरक्त] ओ० १०७,११७,१३० धम्मसमुदायार [धर्मसमुदाचार ] ओ० १६१,१६३ ।। धातइसंड [घातको ड] जी. ३१७११ धम्मसारहि [धर्मसारथिन् ] रा० ८,२६२. जी० धायइरुक्ख [धातकीरूक्ष जी० ३१८०८ ३१४५७ धायइवण धातकीवन | जी० ३८०८ धम्मसीलसमुयाचार [धर्मशीलसमुदाचार] रा० धायइसंड [धातकीपण्ड] जी० ३१७०८,७१५ __७५२ से ७२०,७६८,७७०,७७१,७६६ से ८००, धम्माणुय (धर्मानुग] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ ८०२ से ८०४,८०६,८०८,८०६,८३८।२३,२५ धम्मायरिय [धर्माचार्य ] ओ० २१,५४,११७. रा० धायई [धातकी] जी ० ३१७७५,८०८ ७१४,७७६,७६६ घायईसंड [धात कोरण्ड] जी० ३१८०६,८३८।२४ धम्मिट्ठ [धर्मिष्ठ] ओ० १६१,१६३. रा० ७५२ धायतिसं [धातीण्ड] जी० ३।७६६ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० धार [ धारक ] मो० ६७ धारणा [ धारणा ] १० ७४०, ७४१ धारि [धारिन् ] ओ० ४७,५१,७२. जी० ३।५१७, १०१५ धारिणी [ धारिणी] ओ० १५. रा०५ धारित [ धारयितुम् ] ओ० १०५ धारेमाण [ धारयत् ] रा० २५५. जी० ३।४१६ fus [ धृति ] ओ० ४६ जी० ३१११५ घिति [ धृति ] जी० ३।११८,११६ धीर [ धीर] ओ० ४६ घुरा [ धूर् ] ओ० ६४ घुराग [ धूक ] रा० १७३,६८१. जी० ३।२८५ ध्रुव ध्रुव ] रा० २०० जी० ३३५६, २७२,३५०, ७६० धूमकेतु [ धूमकेतु] ओ० ५० धूमप्पभा [ घूमप्रभा ] जी ०३।४१,४३,४४,१०१, ११०,११४ धूमवट्टि [ धूपर्वात ] जी० ३।४५७ धूमिया [ धूमिका ] जी० ३।६२६ धूया [दुहित ] जी० ३३६११ धूलि [ धूलि ] जी० ३१६२३ धूव [ धूप ] ओ० २,५५. ० ६, १२,३२,१३२, २३६,२५८,२७६,२८१,२६०,२६२ से २६७, ३००,३०५,३१२,३५१,३५५, ३५६. जी० ३३०२,३७२,३६८, ४१९, ४४५, ४४८, ४५६ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५५४, ६७६,६०८ धूवघडिया [ धूपघटिका ] रा० २३६. जी०३ ३८, ४१२,६०३ धूवघडी [ धूपघटी ] रा० १३२. ३१३०२ धूववट्टी [ धूपदत] रा० २६२ पोत [धीत ] जी० ३,५६६ घोय [ धौत ] ओ० १६,४७. १० २६. जी० ३१२८२,५६० धारग-रग रगुण न न [न] ओ० ४७. रा० २०० जी० ३।२७२ नई | नदी ] ओ० ६६. जी० ३१७७५ नईम | नदीमह ] ०६८ नल [ नकुल ] रा० ७७ नंगलिय [ लाङ्गलिक | ओ० ६८ नंदणवण [ नन्दनवन । रा० १७३,६७०. जी० ३1२८५,५६७ नंदा बन्दक] ० २८२. जी० ३।४४८ नंदा | नन्दा | रा० २३३,२७३, २८८,३१२,३५०, ६५६. जी ३५५६ नंदाचं पाविभत्ति [ नन्दाचम्पाप्रविभक्ति । रा० ६३ नंदापविभत्ति [ नन्दाप्रविभक्ति ] रा० ६३ fare [नन्दिघोष ] १० ७७,१७३,६८१. जी० ३५६८ नंदिमुयंग [ नन्दिमृदङ्ग [ जी ३७८ नंदियावत्त | नन्द्यावर्त ] ओ० १२. रा० २६१ नंदि [ नन्द्रिरूक्ष ] जी० ३३८८ से ३६० नंदिस्सर [नन्दस्वर ] जी० ३२५६८ नंदी] [ नन्दी ] रा० ७४१,७४३ नंदीमुइंग | नन्दी मृदङ्ग ] रा० ७७ नंदी [ नन्दीमुख ] जी० ३।२७५ नंदीसरवर [ नन्दीश्वरवर | रा०५६ नक्कणिग [छिन्नक] ओ० ६० नक्ख [ नख] २५४ नक्खत्त [ नक्षत्र ] रा० १२४. जी २२१८३/७०३, ७२२,८३०, ८३८३, ५, ८, ११, १३, २२,३०, १००७ विमाण [ नक्षत्रविमान ] जी० २२४३; ३११००६ वेदा [नवेदना ] जी० ३।६२८ नम [ नग ] जी० ३५६६ नगर [ नगर ] ओ० १८. रा० ६६७,७५४,७५६ ७६२, ७६४,७७४. जी० ३१५६६ नगरगुण ! नगरगुण] ओ० १६५/१६ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगरदाह-नसिण नगरदाह [नगरदाह] जी० ३१६२६ नगरमाण [नगरमान] ओ० १४६ नगरी [नगरी] ओ० १६. रा० ६६६,६७०,६८०, ६८१,६८३,६८५,६५७,६८८,६६९,७००, ७०२ से ७०४,७०६,७०८,७१० से ७१२, ७२६,७५२,७७५,७७६,७८० नग्गा [नग्नजित्] ओ० ६६ नग्गभाव [नम्नभाव] ओ० १५४,१६५,१६६ निच्च [नृत्-नच्चिज्जइ. रा०७८३ नच्चंत [नृत्यत् ] ओ० ४६ नच्चणसील [नुत्यनशील] ओ०६५ नट्ट [नाट्य ] ओ०६८. रा० ७,७८,८०६. जी० ३१२९५,३५० नट्टविधि [नाट्यविधि ] १० ७६ नट्टविहि ! नाट्यविधि रा० ६३,६५,११८,२८१ नट्टसज्ज [नाट्यसज्ज] रा० ६६,७० न? [नष्ट] रा० २८१ नक [नट] ओ० १,२ नहपेच्छा [नटप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५ नत्तुय [नप्त] रा० ७५०,७५२ निद [नद्]-नदंति. जी० ३१४४७ नदी नदी] जी. ३१८४१ नपुंसग [नपुंसक] जी ० २।६६ से ११६, १२०, १२१,१२३,१२५ से १२६,१३२ से १३८, १४० से १५० नपुंसगलिगसिद्ध [नपुंसकलिङ्गसि] जी० ११८ नपुंसगवेद [नपुंसकवेद] जी० २११३६, १४०; ६।१२४,१२८ नपुंसगवेदग [नपुंसकवेदक] जी० ६।१३० नपुंसगवेय [नपुंसकवेद] जी० ११६६,१३६ नपुंसगवेयम [ नपुसकवेदक] जी० ६।१२१ नपुंसय [नपुंसक] जी० २।११७ से ११६, १२२ । से १२४ निमंस [नमस्य -नमसइ. रा० ७१४ नमसंति. रा०१०--नमंसति. रा० १२० -नमंसह. रा०७३--नमंसिज्जाह. रा० ७०६--नमंसिस्संति. रा०७०४ नमसण [ नमस्यन] रा० ६८७ नमंसणिज्ज नमस्यनीय] ओ० २ नमंसित्तए नमस्यितुम् ] रा०६ नमंसित्ता [नमस्यित्वा ] ओ० ६६. रा० १०. जी० ३१४७१ नमियनमित] रा०२२८. जी. ३१६७२ नमो नमस्] रा०८ नय [नय] ओ० २५. रा० ६८६ निय [नद्]—नयंति. रा०२८१ नयण नयन ओ० १,१५,६६. रा० २२८. जी० ३१५६६ नयरो नगरी] ओ० १,१६,६९. रा० १,२,८, ६,१५,५६,६७७ से ६७६,६५३,६८६ से ६८६,७५०,७५२ नर [नर] ओ० ५,८,६४,६६. रा० १७,१८,२०, ३२,३७,१४१,१७३,१६२. जी० ३।२६६, २७४,३००,५६७ भर (कंता) [नरकान्ता] रा० २७६ नरक [नरक] जी० ३६६ नरकंठ | नरकष्ठ] रा० १५५,२५८. जी० ३१३२८ नरकंठग [नरकण्ठक] जी० ३।४१६ नरकंता [नरकान्ता] जी० ३.४४५ नरग [नरक ] ओ० ७१. जी० ३।८६,१२७ नरपवर [नरप्रवर ] रा० ६७१ नरय [नरक] रा० ७५०,७५१. जी०३१८३, ___ ८७,११६,१२६२ नरयपाल [नरकपाल रा० ७५१ नरयावास [नरकावाम] जी० ३१७७,१२७ नरवइ निरपति] ओ०१ नरवसभ [नरवृषभ ] जी० ३११२६११ नरिंद नरेन्द्र ] ओ० २१,५४ नलवण [नलवन ] ओ० २६ नलिण [नलिन] ओ०१२,१५०. रा. १७४, ८११. जी० ३१५६५ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ नलिणा [ नलिना ] जी० ३१६८६ नव [नवन् ] ओ० ९३. रा० ८०१. जी० २।२० नव [नव] जी० ३।३११ नवंग [नवाङ्ग ] ओ० १४८, १४९ नवणि हिपति [ नवनिधिपति ] जी० ३।५८६ नवम [ नवम ] जी० ३१३५६ नयय [नवक ] रा० ७५६ नवरं [ दे० ] जी० ११७७ नवविह [ नवविध ] जी० १३१०; ६ २५५ नह [ नख] जी० ३।३२३ नाइय [नादित ] रा० ५५,२८०,६५७. जी० ३।११८, ११६,४४८,८५७,८६३ नाउं [ ज्ञातुम् ] जी० ३१८३८,२६ नाग [ नाग] ओ० १६,६८. रा० १६२,२८२. जी० ३।२३२, ४४८, ७३३,७८०,६५० नागकुमार [नागकुमार ] जी० २१३७ ३३२४४, २४८ नागकुमारराय [नागकुमारराज ] जी० ३।२४४ से २४७, २४६, २५०,६५७,६५६,६६० नागकुमारिद [ नागकुमारेन्द्र ] जी० ३।२४४ से २४७, २४६, २५०, ६५७, ६५६,६६० नागवंत | नागदन्त ] रा० १३२,२४० नागवंत [ नागदन्तक ] रा० १४०. जी० ३१३६८ नागदंतय [ नागदन्तक ] रा० १५३,२३६. जी० ३३६७, ३६८, ४०३ नागपडिमा [ नागप्रतिमा ] रा० २५७. जी० ३२४१८ नागमंडलपविभत्ति | नागमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ६० नागम [ नागमह ] रा० ६८८ नागरपविभत्ति [ नागरप्रविभक्ति ] रा० १२ नागराय [नागराज ] जी० ३१७४८, ७५० नागलया [ नागलता ] रा० १४५. जी० ३।२६८ नागलयापविभति [ नागलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ नाय [नाटक] रा० ७१०,७७४ नलिणा-नारिकंता नाण [ज्ञान ] ओ० १९,२६. ० ८,६८६,७३८, ७६८. जी० १११४,१०१, ३ १२७, १६०; ६६६ नाणस [ नानात्व ] रा० ७६२,७६३ नाणसंपण्ण [ ज्ञानसम्पन्न ] रा० ६८६ माणा [नाना ] रा० ६६,७०,१३०,१३२,१६०, १६०,२२८,२५६,२७०,७६८. जी० १११३६; ३।२६४,२८८, ३११, ३८७, ४०७,४१७, ६४३, ६७२ नाणाविह [ नानाविध ] जी० ११७२; ३१२७७, ३७२ नाणि [ज्ञानिन् ] जी० २।३० ३ १०४ नाणोवलंभ [ ज्ञानोपलम्भ ] रा० ७६८ नातव्य [ ज्ञातव्य ] रा० ३१६८८ नादित [नादित ] जी० ३।४४६ नाणा [नाना ] जी० ३।३३३ नाभि [ नाभि ] रा० २५४ नाम [ नामन् ] ओ० १, २. रा० १, २, ६, ५६, १२४, २४६, २८१,६६८, ६७२,६७३,६७६ से ६७६, ६८६,६८७, ६८ ६, ७०३, ७०६,७१३, ७३२, ७६६. जी० ३।३, ४, १२८, ३००, ४१०, ४४७, ५६३, ५६४,६३२,६३८, ६३६, ६६०, ६६६, ६६८,७११,७५६,७६४,८१४,८३१,८३८१३, ८५१,६३३,१०५६ नाम [ नामक ] जी० ३१२४ नामाधिज्ज [ नामधेय ] रा० ८०३ नाम घेज्ज [ नामधेय | जी० ३१६६६, ६७२ नामधेय [ नामधेय ] रा० ८,७१४,७९६ नायव्य | ज्ञातव्य | जी० ३११२६१३ नायाम्महार [ जाताधर्मकथाघर ] ओ० ४५ नार [नारद] ओ० ६६ नाराय [ नाराच ] जी० ११११६ नारायणा | नाराचाय ] जी० ३१८५ नारि | नारी | ओ० ६६. नारिकता | नारीकान्ता ] रा० २७९. जी० ३४४५ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारी-निभ नारी [नारी रा० १७३ निग्गह [निग्रह ] ओ० ३७. रा० ६८६ नाल [नाल जी० ३६४३ निग्गुण [निर्गुण] रा० ६७१। नालिएर | नालिकेर जी० १७२ निग्धोस [निर्घोष ] जी० ३१४४८,५५७ नाली नाडी] जी० ३१७८ निघट निघण्टु] ओ०६७ नावा [नो] जी. ३७६३ निघस | निकष ) रा० २८. जी० ३१२८१ नासा नासा रा०२८५. जी० ३१४५१ निचय (निचय ! रा० ३१ नासिगा नासिका] रा०२५४ निचिय |निचित ओ० १६. १० १२,७५५,७५८, निउण ! निपुण] ओ० ६३. रा० ६६,७०,६७२, ७५६,७७२. जी० ३।११८,५९६ ७५६ से ७६१,८०४. जी. ३१११८ निच्च | नित्य ओ०४६. रा० १५. जी० ३।३६०, निदणा [ निन्दना] ओ० १५४,१६५,१६६. ५८४,८३८।१७ रा०८१६ निच्छय [निश्चय ] ओ० २५, रा० ६७५,६८६ निंब [निम्ब ] जी० १७१ निच्छोडणा | निश्छोटना] रा० ७७६ निकर [निकर] ओ० १३ निच्छोडित्तए । निश्छोटयितुम् ! रा० ७६ निकुरंब [निकुरम्ब ) रा० ७०३. जी० ३।२७३ ।। निजुद्ध नियुद्ध ] ओ० १४६. जी० ८०६ निकुरुब [निकुरुम्ब ] ओ० १६ निज्जरा निर्जरा ओ० १२०,१६२,१६६. रा०६६८,७५२,७८६ निक्कंकड निष्कङ्कट] ओ० १२,१६४. रा० २१, २३,३२,३४,३६,१२४,१४५,१५७. निज्जिय ! निजित ] ओ० १४. रा० ६७१ निज्जीव | निर्जीव | ओ० १४६. रा०५०६ जी० ३।२६६ निक्कोह | निष्क्रोध ] ओ० १६८ निज्जत्त [नियुक्त ] जी० ३१२८५ निक्खमंत | निष्क्रामत् | जो० ३१८३८१४ । निट्टिय [निष्ठित ] औ० १८३,१८४. रा० ७७४ निखमण निष्क्रमण जी० ३१५६४,६१७ निठुर निष्ठुर रा० ७६५. जी० ३१११० निडाल ललाट] जी० ३१३०३,५९६ निगम (निगम] ओ० १८,६८,८९ से ६३,६५, इनिद्दा | नि-|-द्रा--निद्दारज्ज. जी० ३।११६ ६६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. निद्ध स्निग्ध | जी० ११५,५०, ३।२७५,५६६ रा०६६७,७५४,७५६,७६२,७६४ निद्धत । निर्मात | जी० ३१५६०,५६६ इनिगिण्ह [नि !-ग्रह ।-निगिहइ. रा०६८३ निधूम [निर्धूम | जी० ३१५६० निगंय | निर्ग्रन्थ ] ओ० २४,७६ से ८१,१२०, निळूय नि« त ओ० ५,८. जी० ३।२७४ १६२,१६४. रा० ६३,६५,७३,७४,११८, निप्पंक ! निष्पङ्क] ओ० १२. रा० २१,२३,३२, ६६५,६६८,७३८,७५२,७८६ ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी० ३२२६६ ‘निगच्छ [निर्+ गम्]--निग्गच्छइ. ओ० ६७. निप्पकंप निष्प्रकम्प | आं० ४६ रा० २७७—निम्गच्छति. ओ० ७०. रा०७४ निप्पच्चक्खाण निष्प्रत्याख्यान | रा०६७१ -निग्गच्छति. रा० २८३ निष्फन्न | निष्पन्न ] जी० ३६०२ निग्गच्छमाण | निगच्छत् | ओ०६८ निबद्ध निवद्ध] रा० ७७२ निग्गच्छित्ता [निर्गत्य ] ओ० ६६. रा० २८३ निभछगा [ निर्भर्त्सना रा० ७७६ निगमण [निर्गमन जी० ३१८४१ निभंछित्तए । नित्सितुम् | रा० ७७६ निग्गय [निर्गत ] रा० ६,७५४ निभ [निम] रा०५१ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ निमज्जग-निविसय निमन्जग [निमग्नक ] ओ०६४ इनिरंभ [नि+रुध्] --निरंभइ ओ० १८२ निमित्त | निमित्त] जी० ३३१२९६६ निरंभित्ता | निरुध्य ] ओ० १८२ निमिसिय | निमिषित] जी० ३।११६ निरुत्त [निरुक्त } ओ०६७ निमीलिय | निमीलित] जी० ३६१२६८ निरुवलेव निरुपलेप] ओ० २७. रा. ८१३. निम्मल | निर्मल } ओ०१२,१६,४७. रा० २१, जी० ३।५६८ २३,३२,३४,३६,१२४,१३०,१४५,१४६,१५७. निस्वसग्ग | निरुपसगं] जी० ३१४८८ जी० ३१३२२,५६६,५६७ निरुवहय | निरुपहत] ओ० १६. जी० ३१५९६ निम्माण | निर्माण] ओ० १६८ निरयन [निरेजन ] ओ० १८३,१८४ निम्भाय | निर्माय ओ०१६८ निरोदर | निगेदर जी० ३३५६७ निम्मिय (निर्मित] रा० १७३. जी० ३१२८५ निरोय [निरोग | जी० ३।२७५ निम्मेर | निर्मर । रा०६७१ निरोयय { निसंगक ] ओ०६ नियइपव्वय [नियतिपर्वत ] रा० १८१ निरोह [निरोध ओ० ३७ नियइपवयग | नियतिपर्वतक] रा० १८० निलाड [ललाट | रा०७० नियंस | नि.+वस्]-नियंसेइ. रा०२६१ निल्लेव (निर्लेप । जी० ३.१६६,१६७ --नियंसेति. रा. २८५ नियंसण | निवसन] रा०६६ निल्लेवण | निर्लेपन] जी० ३।१६६ नियंसेत्ता | निवस्य] रा० २८५ निल्लोह | निर्लोभ] ओ० १६८ नियम निजक] रा० १२०.७७४ ‘निवाड नि+पातम्]-निवाडेइ रा० २६२ नियडि [निकृति] रा० ६७१ निवाहित्ता [निपात्य रा० २६२ निवाय [निपात | जी० ३।८६ नियम [नियम ] ओ० २५. रा०६८६,७२३. निवेद | नि ! वेदय। निवेदिज्जासि. ओ० २१ जी० १३०,६५,८७,६६,११६,१३३,१३६; निदेय | निवेदयनिवेएमो. रा०७१३ ३।१०४; १२६१३८३८॥१४,६६६,११०८ निवेस [नि-1-वेशय् ]-निवेसेइ. ओ० २१. नियय [नियत | जी० ३।२७२,७६० रा०८ निरंगण [निरङ्गण] ओ० २७. रा०८१३ निवेसेत्ता निवेश्य-ओ० २१. रा. ८ निरंतर | निरन्तर रा० १२.७५५,७७२ निठवण [निर्बण जी० ३१५६६ निरंतरिय निरन्तरित] रा० १३० ‘निव्वत्त निर्- वर्तम्]-निव्वत्तेज्जासि निरय निरय | जी० ३।१२६,१२७०२ रा० ७५१ निरयभव | निरयभव ] जी० ३।११६, १२६५ निन्वय [ निर्बत ] ० ६७१ निरयवेयणिज्ज | नि रयवेदनीय ] रा० ७५१ निव्याघाइम [नियाधातिन्, निाघातिम] निरयाउय | निरयायुष्क रा० ७५१ __ औ० ३२. जी० ३।१०२२ निरयावास निरयावास | जी० ३।१२, ७७,१२७ निव्वाण निर्वाण | ओ० १६५।१६ निरवसेस [निरवशेष ] जी० ३।१८४, ४१२,४२६, निविइय निविकृतिक ] ओ० ३५ निविग्ण [निविण्ण] रा० ७६५ निरालंबण | निरालम्बन] ओ ० २७. रा० ८१३ । निविण्णाण | निर्विज्ञान ] रा० ७३२,७३७,७६५ निरालय | निरालय] ओ० २७. र। ० ८१३ निवितिमिच्छ निविचिकित्स] ओ० १२०,१६२ निरावरण [नि सवरण | ओ० १५३,१६५,१६६ निविसय [निविषय | रा० ७६७ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्वुइकर तोपज्जत्त निव्बुडकर [ निर्वृतिकर ] रा० १७३. जी० ३:३०५, ६७२ निव्वुतिकर [ निर्वृतिकर | रा ३०,१३५ निसरण [ निषण्ण ] ओ० ११७. रा० ७६६. जी० ३१८९६ निसन्न [ निषण्ण ] रा० २२५ निसम्म [ निशम्य ] रा० १३ निसामित्तए | निशमितुम् ] रा० ७७५ निसिय [ निशित ] रा० २४६ / निसिर [ नि + सृज् ] निशिरंति. रा० १०--- निसिरति रा० ६५-निसिरेइ रा० ७६४ निसित्तिए [ निसटुम् ] रा० ७५८ freisत्ता [ निषद्य ] औ० २१ निलोदण [ निषीदन] ओ० ४० निसीय [नि + षद् ] – निसीयइ ओ० २१-निसीयंति रा० ४८ - निसीयह. रा० ७५३ निसोहिया [निषीधिका, नैषेधिकी ] रा० १३१, १३५ निस्सकिय [ निःशङ्कित ] ओ० ५२. रा० ६८७, ६८६ निस्सास [ निःश्वास ] रा० ७६६,८१६ निस्सील [ निःशील ] रा० ६७६ निस्सेयस [ निःश्रेयस ] ओ० ५२. रा० २७६,६८७ निहट्टु [ निहृत्य ] रा० ८ निह [ निहत ] ओ० १४. ० ६७१ नीर [नीरजस् ] ओ० १२, १८३, १८४ नील नील | ओ० ४, १२. रा० २२, १२८, १७०, ६६४, ७०३. जी० १ ५, ५०, ३१२२,४५, २७३,२६०, १०७५, १०७६ नीलच्छाय | नीलच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, १७३. बी० ३।२७३ नीललेस | नीललेश्य | जी० ६११६३ नोललेसा (नीलया । जी० २६६,१०० नीललेस्स | नीललेश्य | जी० ६.१५५,१९६ नीललेस्सा [नीललेश्या ] जी० १४२१ नीलवंत [नीलवत् ] जी० ३१४४५,६३२,६५७,६५६ ६६८, ७६५ नवंत [नीलवद्द्रह ] जी० ३६३६,६४०, ६४२ ६५ से ६६१,६६६ नीलवंता | नीलवती ] जी० ३३६५६ नीलुप्पल [नीलोत्पल] ओ० १३. ० २६ नीलोभास [नीलावभास ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ नोव | नीप ] जी० ३।३८८ नीसास | निःश्वास ] रा० २८५,७७२. जी० ३५६८ ६६५ नीहार [नीहार] रा० ७७२ नृणं [ नूनम् ] जी० ३६८२ नेम [म] रा० १७५, १६० जी० ३।२६४,२८७, ३०० नेयव्व | नेतव्य ] जी० २।१५० ३१३०६ des [ नैरयिक] रा० ७५१. जी० ११५१,५४, ६१,८२,८७,६२,६६, १०१,११६, १२१, १२३, १२८,१३६, २६६, १००, १०८, १२७, १३४, १३५,१३६, १४८, १४९, ३१,२,७७,६८,६३, ६५,६६,६८,१०३,१०६ से ११२,११८,११६, १२१ से १२३,१२८, १२६१४, ६, ७, ८, १५५, १५३ १६२; ६१,७,१२; ७११ से ३, १६, २२; २१०,२१३,२२० नेरइयत्त [नैरयिकत्व ] जी० ३११२७ नेल [नैल] ओ० १६ सज्जिय [धिक ] ओ० ३६ नेहाणुराग [ स्नेहानुराग ] जी० ३।६१३ तो तो | रा० ६२. जी० ११२४ नोपज्जत | अपर्याप्तक | जी० ६८८६४ नोअपरित | तोपरी ] जी० २२७५,८६,८७ atra सिद्धिय [ नोभवसिद्धिक | जी० ६ १०६ नोअसण्ण | नोअसंज्ञिन् ] जी० १/१३३; ६।१०१, १०४,१०८ नोइंद्रिय [नोइन्द्रिय | जी० १११३३ नोपज्जत [नोपर्याप्त ] जी हा Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोपज्जत्तग-मएसघण नोपज्जत्तग [नोपर्याप्तक] जी० ६।८८,६४ पउमजाल [पद्मजाल] रा० १६१. जी. ३।२६५ नोपरित्त [नोपरीत] जी० ७५ पउमद्दह [पद्मद्रह] जी० ३।४४५ नोबायर [नोबादर) जी० ६६५,९८ से १०० पउमपत्त [ पद्मपत्र रा० २४. जी० ३।२७७ नोभवसिद्धिय [नोभवसिद्धिक ] जी० ६।१०६ पउमपम्हगोर पद्मपक्ष्मगौर| ओ०५१, जी० नोसण्णा | नोसंज्ञा] जी० १२१३२ ३१०६४ नोसण्णि [नोसंझिन्] जी० १११६,१३३; ६।१०१, पउमप्पभा [पदरप्रभा जी० ३१६८३ १०४,१०८ पउमरुक्ख [पझरूक्ष ] जी० ३१८२६ नोसुहम [नोसूक्ष्म ] जी० ६१६५.६८ से १०० पउमलया [पघलता ओ०११,१३. रा०१७,१८, २०,३२,३४,३७,१२६,१४५,१८६. जी. ३३२६८,२७७,२८८,३००,३०८,३११,३१५, पइट्ठा प्रतिष्ठा] ओ० १६.२१,५४ ३३७,३५६,३७२,३६०,३६६,५८४,६०४ पइट्ठाण प्रतिष्ठान ] ओ० १६८. रा० १३०, । पउमलयापविभत्ति पद्मलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ १३१,१४७,१४८, १६०,२८०. जी० ३ २६४, पउमवण [पनवन] जी० ३१८२६ ३०१,३२१ पउभवरवेइया [पद्मवरवेदिका रा० १७४,१८६ पट्ठिय [प्रतिष्ठित] ओ० १६०१,२. से १६८,२००,२०१,२३३,२६३. जी. जी० ३३१०५७ से १०६४ ३।२१७,२५६,२६४ से २७०,२७२,२७३, पइण्णा [प्रतिज्ञा ] ओ० १४२,१४४. रा० ७४८ से ३६२,३६५,६३२,६३६,६६१,६६८,६७८, ७५०,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ६८३,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२७६९, ७६४,७७३,८००,८०२ ८५७ पइभय [प्रतिभय] ओ० ४६ पउमवरवेदिया पिद्मवरवेदिका] जी० ३१२१७, पइरक्खिया | पतिरक्षिता] ओ०६२ २६३,२६६,२८६.२६८,७९८,८१२,८२३, पइरिक्क [दे०] जी० ३३५६४ ८३६८५०,८८२,६११ पइसेज्जा [पति शय्या] ओ० ६२ पउमसंड [पापण्ड] जी० ३१८२६ पईव [प्रदीप रा० ७७२ पउमा [पना] जो० ३।६८३,९२० पउंज प्र+युज]-पउंजइ. रा०६७१. पउमासण पासन रा० १८१,१८३. जी० -पउंजंति ओ०६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ ३.२६३,३६६,३७१ पउंजमाण [प्रयुञ्जान ] ओ० ६४ । पउमुत्तर पद्मोत्तर | जी० ३१६०१ पउंजियव प्रयोक्तव्य] रा० ७७६ ।। पउमुप्पल [पोत्पल ] रा० ८११ पउट्ठ [प्रकोष्ठ ओ० १६. जी० ३४५६६ पउर [प्रचुर] ओ० १,१४,४६,७४,१४१. रा० पउत प्रयुत] जी० ३१८४१ ६७१,७६६ पउम | पद्म ओ० १२,१६,१५०. रा० २३,१३१, पउसिया' [बकुलिका ] ओ० ७० १३८,१४७,१४८,१९७,२७६,२८०,२८८, पएस प्रदेश] ओ० १६५.१०. रा० ४०, १३२, ८११. जी. ३।२५६,२६६,२६१,३०१,४४६, १५४. जी० ११५,३३, ३३०२,३६८,५७१, ४५४,५६७,५९८,६४२,६४३,६५२ से ६५४, ७१५,८०८,८१६ ६५७,६५८,८२६,८४१,६३७ पएसघण प्रदेशधन ] ओ० १६॥३ पउमगंध [पगन्ध | जो० ३।६३१ १. बउतियाहिं [ राय० सू० ८०४] Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पपसि-पंति २६६ पएसि [प्रदेशिन् ] रा०६७१ से ६७५,६७६ से पंचणउइ [पञ्चनवति] जी० ३१७१४ ६८१,७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०, पंचणउति [पञ्चनवति] जी० ३१७६८ ७१८ से ७२०,७२३ से ७२६,७२८ से ७३४, पंचनउति [पञ्चनवति जी० ३।७६६ ७३६ से ७३६, ७४६ से ७८२,७८६ से ७६१, पंचाणउत [पञ्चनवति जी० ३३६१ ७६३ से ७६६ पंचाणउति [पञ्चनवति ] जी० ३१७२३ पयोग [प्रयोग] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७६१, पंचाणुष्वइय [पञ्चानुवतिक] ओ० ५२,७८ ७९४ पंचिदिय [पञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५,७३,१४३,१८२. पओयघर [प्रतोदधर ओ० ५६ रा०६७२,६७३,८०१. जी० २५५२१०१, पोयलट्टि [प्रतोदर्याष्ट] ओ० ५६ ११३,१२२.१३८,१४६; ३३१३०,४१,४,६, पओहर [पयोधर] रा० १३३. जी० ३।३०३ ६,१०,१५,१६,२४,२५, ८.५६।१ से ३,७ पंक [पङ्क] ओ० ८६,६२,१५०. रा० ८११. पंचेंदिय पिञ्चेन्द्रिय] जी० ११८३,६१,६७,६८, __ जी० ३,६२३ १०१ से १०३,११६,११७.१२५,१३६; पंकप्पभा [पङ्कप्रभा] जी० ३।३६,४१,४३,४४, २११०४,१०५,१३६,१३८,१४६,१४६ १००,११३ ३।१३७ से १४७,१६१ से १६३,१६६,१११५; पंकबहुल [पङ्कबहुल] जी० ३।६,६,१६,२५,३०, ४१६,१८,२०,२१:१५,७,१६७,१६६,२२१, २२५,२२६,२३१,२५६,२५६,२६०,२६४, पंकरय [पङ्कजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ पंकोसण्णग [पङ्कावसन्नक] ओ०६० पंजर [पञ्जर] रा० १३७. जी० ३०७ पंच [पञ्चन् ] ओ० ५०. रा० २४. जी० ३१३४ पंजलिउड [प्राञ्जलिपुट] ओ० ४७,५२. रा०६०, पंचगिताव [पञ्चाग्निताप] ओ० ६४ । ६८७,६६२,७१६ पंचम [पञ्चम] ओ०६७,१७४,१७६. जी० पंजलिकड {कृतप्राञ्जलि ] ओ० ७० पंडग [पण्डक] ओ० ३७ ३।३३८ पंचमा [पञ्चमी] जी० १६१२३; २११४८,१४६; पंखगवण [पण्डकवन ] रा० १७३,२७६. जी० ३२८५,४४५ ३१२,३६ पंडरग (पण्डरक] जी० ३।९६३ पंचमासिय [पाञ्च मासिक] ओ० ३२ पंडिय पण्डित] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० पंचमी [पञ्चमी] जी० ३१४,७४,८८,६१,१६२, पंड पाण्डु] ओ० ५,८. रा० ७८२. जी० ३।२७४ १११११२ पंडुर [पाण्डुर ओ० १,१६,२२,४७. रा०७२३, पंचविध [पञ्चविध] जी० २११०१,१०२; ७७७,७७८,७८८. जी० ३१५९६ ३३१३० ; ४१२५, ६१४८ पंडुरतल [ हम्मिय] [पाण्डुरतलहH] जी० ३५९४ पंचविह [पञ्चविध] ओ० १५,३७,४०,४२,६६, पंडुरोग [पाण्डुरोग] जी० ३१६२८ ७०. रा० २७४,२७५,६७२,६८५,७१०, पंत प्रान्त्य | रा० ७७४ ७३६,७५१,७७४,७७८,७६७. जी० १:५, पंताहार प्रान्त्याहार ओ० ३५ ६६,११८,२.४,१८, ३११३१,४५०,४४१, पंति [पङ्क्ति ] ओ० ६६. रा० ७५,२६७,३०२, ८३८१२१,६७६,४११, ६.१५६,१५८ ३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६७,३१८, पंचसयर [पञ्चसप्तति जी० ३१८३८१३१ ३५५,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५,५६४, Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६८ ८३८१७ से 8 पंथ [ पन्थ, पथिन् ] To ७३७ पंथिय [ पायिक ] रा० ७८७,७८८ सुविट्ठि [पांशुवृष्टि ] जी० ३१६२६ पकडिज्ज माण ( प्र कृष्यमाण ] ओ० १६ √ पकर [ प्र + कृ ] - पकरेंति. ओ० ७३. जी० ३११२४.-- पकरेति. जी० ३।२१० पकरेत्ता [ प्रकृत्य ] ओ० ७३ पकरणता | प्रकरण ] जी० ३।२१० पकरणया [ प्रकरण ] जी० ३।२११ पकाम [ प्रकाम रा० ७३२,७३७ पकामरसभोइ [प्रकामरसभोजिन् ] ओ० ३३ पकार [ प्रकार ] जी० २६८ ३३५६५ पक्कारवग्ग [ पकारवर्ग ] रा० ६६ पक्कणी [ पक्कणी ] ओ० ७०. रा० ८०४ पक्कट्ट [ पक्वेष्टक ] जी० ३१८४५ पक्कीलित [ प्रक्रीडित] जी० ३।६१७ पक्कीलिय [ प्रक्रीडित] रा० १७३. जी० ३१२८५ पक्ख [ पक्ष | ओ० २८. रा० १३०, १६०, १६७. जी० ३१२६४, २६६, ३००,८४१ पक्खंदोलग [ पक्ष्यन्दोलक, ' पक्षान्दोलकर ] रा० १८० पगतित्थ [ प्रकृतिस्थ ] जी० ३।११२१ से ११२३ पगति [ प्रकृति ] जी० ३।२८६ ५१८, ६२०,७६५, ८१६,८४१,८५४,६५६, ६५७,६६४ जी० ३।२६२,८५७ पगन्भ [ प्रगल्भ ] जी० ३५६१ पक्खंदोलय [ पक्ष्यन्दोलक, पक्षान्दोलक ] रा० १५१. पगाढ [ प्रगाढ ] रा० ७६५. जी० ३ ११० जी० ३।२६३, ६५७ पाय [ प्र + गै] - पगाइंसु. रा० ७५ पगार [ प्रकार ] रा० ८०६,८१० जी० २१७४, १४०, १५१ पगास [प्रकाश] ओ० १३,१६,२२,४७. रा० १३०, २५५,६७०,७७७,७७८,७८८. जी० ३।३००, ४१६,५८६,५६६,५,६७ गिज्ज्ञ [ प्रगृह्य ] रा० ६६४ पक्षिय [ प्रगृह्य ] ओ० ११६ it | गीत] ०७६,१७३. जी० ३।२८५ √ पण्ह [ प्र + ग्रह ] - पगेहति रा० २८८ पगेण्हित्ता | प्रगृह्य ] रा० २८८ परहित्तु [ प्रगृह्य ] जी० ३।४५७ पाहि [ प्रगृहच ] ओ० ६७. रा० २६२ पुडंतर [ पक्षपुटान्तर] रा० १६७ पखपेरंत [ पक्षपर्यन्त ] रा० १६७. जी० ३।२६६ पाहा [ पक्षबाहु ] रा० १३०,१६०, १६७ जी० ३।२६४, २६६,३०० / पखाल [ प्र + क्षालय् ] - पक्खालेइ रा० ३५१. पखालेति रा० २८८. जी० ३।४५४ १. यत्र तु पक्षिण आगत्यात्मानमन्दोलयन्ति ते पक्ष्यन्दोलका: [ राय० बु० ] | २. 'गिरिपक्खंदोलया' गिरिपक्षे पर्वतपार्श्वे छिन्नटङ्कगिरी वात्मानमन्दोलयन्ति ये ते तथा [ओ० वृ० ] | पंथ- पग्गहिय खाण [ प्रक्षालन ] ओ० १११ से ११३, १३७, १३८ पखालिय [ प्रक्षालित] ओ० ६८ पक्खालेता [ प्रक्षाल्य ] रा० २८८. जी० ३३४५४ पक्लासण [ पथ्यासन, पक्षासन] रा० १८१, १८३. जी० ३३२६३ पक्खि [पक्षिन् ] रा ६७१,७०३, ७१८. जी० ११०१ ३२८८, १६५,७२१ v पक्खिय [ प्र + क्षिप् ] पविखवइ जी० ३/५१६. - पविखवेज्जा. जी० ३११०६ पक्खिव ( प्र + क्षेपय् ] पविखवावेमि. रा० ७५४ पक्खिवित्ता [ प्रक्षिप्य ] जी० ३।५१६ पक्खुभित [ प्रक्षुभित] जी० ३१८४२,८४५ क्युभय | प्रक्षुभित | ओ० ४६,५२, रा० ६८७ rs [ प्रकृति ] ओ० ७३,६१,११६. रा० १७४, २३३. जी० ३८६२५ ठग [ प्रकण्ठक ] रा० १३७, १४६. जी० ३३३०७, ३५५ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचंकमणग-पच्चोत्तर पचंकमणग [प्रचंक्रमणक] रा० ८०३ -पच्चप्पिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ पिच्चक्ख, वखा प्रति--आ+ख्या]-पच्चक्खंति —पच्चप्पिणाहि. ओ० ५५. रा० १७ ओ० १५७--पच्च क्खामि. रा०७६६ -पच्च पिणेज्जा. ओ० १८० —पच्चक्खामो. ओ० ११७ --- पच्चक्खाइस्सइ. --पच्चप्पिणेज्जाह. रा. ७०६ रा०८१६ पच्चमाण पिच्यमान जी०३।१२६॥ पच्चक्खाण [प्रत्याख्यान] ओ० १२०,१४०,१५७. पच्चामित्त (प्रत्यमित्र ] ओ०१४. रा०६७१. रा०६९८,७५२,७८७,७८६ ___ जी० ३१६१२ पच्चक्खाय प्रित्याख्यात ] ओ० ८४,८५,८७,८८, पच्चाया [प्रति+आ+जन् ] .....पच्चाइस्सइ. ११७,१२१,१३६ रा० ७६६ रा० ७६७--पच्चायति. ओ०७१. पच्चक्खित्ता |प्रत्याख्याय ] ओ० १५७ जी० ३:५७२-पच्चायाहिति. ओ० १४१. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] रा० १८५,१८७, पच्चावड [प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी० ३१२७७ ७५१. जी० ३११०६,११८,११६,१२२,१२३, पच्चुण्णम [प्रति ।-उत् ! नम्] -पच्चुण्णमइ २१७,२६७,२६८,५७६ ओ० २१. रा० २६२-पच्चुष्णमति. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५. जी० ३।४५७ रा०६७२,६८५,७१०,७७४. जी० ३।११६, पच्चुण्णमित्ता [प्रत्युन्नम्य ] ओ० २१. रा०२६२. ११८,११६,१२८,३५८,१११४,१११७,१११८, जी० ३.४५७ ११२४ पिच्चुत्तर [प्रति+उत्+त]-पच्चुत्तरति. पच्चत्थिम [पाश्चात्य ] रा० ४३,४४,१७०,२३५, जी० ३.४४३-पच्चुत्तरेइ. रा० ६५६. जी० ३।४५४ २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३१३००, पच्चुत्तरित्ता [प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३१४४३ ३४४,३४५,३६७,३६८,४०६,४१०,५६१, पच्चुत्तरेता [प्रत्युत्तीर्य] रा० ६५६. जी' ० ३४५४ ५६२,५६८,५७७,६३२,६६१,६६६,६६८, ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७,६६८,७०८, पच्चुत्थत [प्रत्यवस्तृत] जी० ३।३११ ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१,७६५,७६८, पिच्चुद्धर [प्रति ।-उद्-+-धृ] -पच्चुरिस्सामि जी० ३.११८ ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००,८१४, पच्चुरित्तए प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ ८२५,८५१,८८२,८५,६०१,९३६,६४०, पिच्चुन्नम [प्रति+उत्- नम्]--पच्चुन्नमइ. १४४,१०१५ रा०८ पच्चथिमिल्ल [पाश्चात्य रा० २६६,२६७,३०१, पच्चन्नमित्ता प्रत्युन्नम्य] रा०८ ३०६,३१७,३२२,३२७,३३५,३४०,३४५. पच्चूसकाल [प्रत्यूएकाल] जी० ३।२८५ जी० ३.३३,२२०,२२१,२२४,२२५,४६१, पिच्चवेक्ख प्रिति-उप-+ ईक्ष] —पच वेखे इ. ४६६,४७१,४८२,४८७,४६२,५००,५०५, ओ० ५६ ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६६,७७१, पच्चवेक्खमाण प्रत्यक्षमाण] रा०६७४,६८०, ७७३,७७५,७७७,९१५ पच्चत्य [प्रत्यवस्तृत] रा० ३७ पच्चुवेक्खेत्ता | प्रत्युपेक्ष्य] ओ० ५६ पिच्चप्पिण [प्रति-अपय-पच्चप्पिण इ. पच्चोणिवयंत [प्रत्यवनिपतत्] ओ० ४६ ओ० ५७ -पच्चप्पिणंति. रा० १२. पिच्चोत्तर [प्रति --उत्+त]-पच्चोत्तरइ. जी० ३१५५५-पच्चप्पिणति, रा०४६ रा०२७७-पच्चोत्तरति. रा०२८८ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पच्चोत्तरित्ता-पट्टिया ६४६ पच्चोत्तरित्ता [प्रत्युतीर्य ] रा० २७७ जी० ११४,२६,८६,६६,१०१,११६,१३३, पच्चोयर [दे०] रा० १५४,१७४. जी० ३।२८६, १३६,३१४४०,४४१ पज्जत्तिभाव [पर्याप्तिभाव] रा० २७४,२७५, पिच्चोरभ [प्रति + अव--रुह-पच्चोरुभति. ७६७. जी. ३१४४०,४४१ जी० ३१५५६ पजलिय [प्रज्वलित ] रा० ४५ पच्चोरुभित्ता [प्रत्यवरुह्य ] जी० ३१५५६ पज्जव [पर्यव] रा० १६६. जी० ३।५८,८७, पिच्चोरुह प्रति+अव+रुह.]-पच्चोरुहइ. २७१,७२४,७२७,१०८१ ओ० २१. रा०२७७. जी. ३१४४३ पज्जवसाण [पर्यवसान ] ओ० १४६. रा० ८०६, ---पच्चोरहति ओ० ५२. रा० ५७ ८०७. जी० ११४६; ३३२५०,२५६,६४८, -पच्चोरुहति रा०८. जी० ३।४४३ पच्चोरुहित्ता प्रत्यवरुद्ध] ओ० २१. रा०८. पज्जालिय [प्रज्वालिता जी० ३५९४ जी० ३१४४३ पिज्जुवास [परि+उप-आस् ]--पज्जुवास इ. पच्छय [प्रच्छद] ओ० ५७ ओ०६६. रा०६- पज्जुवासंति. ओ०४७. पच्छा [पश्चात् ] ओ० १६५,१६६,१७७. रा० ६८७.-पज्जुवासति. रा०६० रा० ५६,६३,६५,२७५,२७६७८१ से ७८७, -पज्जुवासामि. रा०५८-पज्जुवासामो. ८०२. जी. ३.४४१,४४२,६८६,१०४८, रा० १०-पज्जुवासिस्संति. रा० ७०४ १११५ -पज्जुवासेइ. रा०७१६-पज्जुवासेज्जा पच्छाणुताविय [पश्चादनुतापिक] रा० ७७४, रा० ७७६ पच्छियापिडय [पच्छिकापिटक] रा० ७६१,७७२ पज्जवासणया [पर्युपासना] ओ० ४०,५२. रा०६८७ पजेमणग [प्रजेमनक] रा० ५०३ पज्जुवासणा [पर्युपासना] ओ० ६६ पजोग [प्रयोग[ रा० ७६४ पज्जवासणिज्ज [पर्युपासनीय ओ० २. पज्ज [पद्य] रा० १७३. जी० ३।२८५ १० २४०,२७६. जी० ३।४०२,४४२,१०२५ पज्जत्त [पर्याप्त ] जी० ११५१,५५,६३,६५; पज्जवासमाण [पर्युपासीन] ओ० ८३ ३।१३३,१३४; ४१६,२२,२३,२५,५।१७,२६, पज्जयासित्तए [पर्युपासितुम् ] ओ० १३६. २८ से ३०,३२ से ३६,३६,४०,४३,४६,४६, रा०६ ५२,५४ से ६० पज्जोसवणा [पर्युषणा,पर्युपशमन | जी० ३१६१७ ज्जत्तग[पयाप्तक] आ० १८२.जा. ११२, पझंझमाण [पझञ्झमान ] रा० ४०,१३२. ६७,७३,७८,८१,८४,८८,८६,६२,१००,१०३, जी० ३१२६५ १११,११२,११६,११८,१२१,१२६,१३५, पदपि ] रा० ३७,२४५,६६४,६८३. ३३१३६,१३६,१४०,१४६,४१२,६,१८,२१ से २३,२५,५॥३,४,७,१८ से २२,२४,२५,२७, पण पित्तन] ० ६८,८६ से ६३,६५,६६,१५५, ३१,३३,३४,३६,५०; 815८,८६.६२,६४ १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७. पज्जत्तय [पर्याप्तक] ओ० १५६. जी० १११०१ जी० ३।५६५ ४.११, ५॥१२ से १६,२६,५२,६० पट्टिया [पट्टिका] रा० १३०,१६०,६६४,६८३. पम्नत्ति [पर्याप्ति] रा० २७४,२७५,७६७. जी. ३१२६४,३००,५६२ . ७७५ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्ठ-पडिपाद ६७१ ४०७ पट्ट [प्रष्ठ] जी० ३.११८ --पडिच्छए. ओ०२ पड [पट] ओ० २३,६३ पडिच्छण्ण [प्रतिच्छन्न] जी० ३१५८१ पडत [पतत् ] जी० ३।५६० पडिच्छमाण [प्रतीच्छत् । ओ०६६ पड़ग [पटक ] रा० ७५३ पडिच्छयण [प्रतिच्छदन] रा० २४५. जी० ३१३११, पडबुद्धि [पटबुद्धि] ओ० २४ पडल [पटल ] रा० १२,१५४,१७४. पडिच्छायण [प्रतिच्छादन] रा० ३७ जी० ३१११६,२८६,३२८,३३०,३५५१३ पडिच्छिय [प्रतीप्ट] ओ० ६६. रा० ६६५ पडलग [पटलक] रा० १२,१५७,२५८,२७६. पडिजागरमाण प्रतिजाग्रत् ] रा० ७६३ जी० ३।४१६,४४५ पडिजागरेमाण [प्रतिजाग्रत्] रा० ५६ पडह पिटह] ओ० ६७. रा० १३,७७,६५७. पडिजाण [प्रतियान] ओ० ६२ जी० ३११७८,४४६,५८८ पडिण [प्रतीचीन ] जी०३१५७७,१०३६ पडागा [पताका] ओ० ५५,६४. रा० ३२,५०,५२, पडिणिकास [प्रतिनिकाश ] रा० १४६. जी. ५६,१३७,१७३.२३१,२४७,६८१.जी०११८०, ३१२२२ ८२; ३२२८५,३०७,३७२,३६३ पिडिणिक्खम [प्रति+निस् + क्रम्]-पडिणिपडागाइपडागा [पताकातिपताका ] ओ० २,१२, खमइ. ओ० २०. रा०२८६. जी० ३४५४. ५५. रा० २३,२८१. जी० ३१२६१ ____पडिणिक्खमंति रा० १२. जी० ३४४५ पडागातिपडागा पताकातिपताका] पडिणिक्यमित्ता [प्रतिनिष्क्रम्य] ओ० २०. रा० जी० ३।४४७ १२. जी० ३।४४५ पिडिकम्प प्रति+कल्पय् ]-पडिकप्पेइ. परिणिक्खिव [प्रति-नि-क्षिप ....पडिणिओ० ५७-पडिकप्पेहि. ओ० ५५ क्खिव इ. रा०२८८. जी० ३१५१६.--पडिणिपडिकम्पिय [प्रतिकल्पित ] ओ० ६२ विखवेइ, जी० ३।४५४ पडिकप्पेत्ता [प्रतिकल्प्य ] ओ०५७ पडिणिक्विवित्ता प्रतिनिक्षिप्य] रा० २८८. जी० पडिकूल [प्रतिकूल ] रा० ७५३,७६७,७६५,७७६, ३१५१६ ७७७ पडिणिविखवेत्ता [प्रतिनिक्षिप्य] जी० ३१४५४ पडिक्कंत [प्रतिक्रान्त] ओ० ११७,१४०,१५७, पिडिणियत्त प्रति+नि-वृत् |---पडिणियत्तइ. १६२. रा० ७६६ ओ० १७७---पडिणियत्तंति.जी. ३७४६ पडिक्कमणारिह [प्रतिक्रमणार्ह ] ओ० ३६ पडिणियत्तित्ता [प्रतिनिवृत्य] ओ० १७७ पडिगय [प्रतिगत ] ओ० ७ से ८१. रा० ६१, पडिणीय [प्रत्यनीक] ओ० १५५. जी० ३।६१२ पडिदुवार {प्रतिद्वार] ओ० २,५५. रा० ३२,२८१. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७ पडिगाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम्] ओ० १११ जी. ३१३७२,४४७ पडिग्गह [प्रतिग्रह] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पिडिनिक्खम [प्रति-+निस् । कम्] -पडिनिक्ख७५२.७८६ मइ. रा० ७१०.–पहिनिक्खमंति. रा० २७६. पडिग्गाहित्तए [प्रतिग्रहीतुम् ] ओ० ११२ ___ --पडिनिक्खमति जी० ३१४४६ पडिचंद [प्रतिचन्द्र ] जी० ३१६२६,८४१ पडिनिक्खमित्ता [प्रतिनिष्कम्य] रा० २७६. जी० पडिचार प्रतिचार ओ०१४६. रा० ८०२ ३१४४६ पिडिच्छ प्रति+इष्]--परिच्छइ. रा० ६८४ पडि पाद प्रतिपाद] जी० ३,४०७ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिपाय-पडिविसज्ज पडिपाय [प्रतिपाद] रा० २४५ ३१६,३२३ से ३२६,३२८ से ३३०,३३३, पिडिपिधा [प्रति + पि+-धा-पडिपिधेइ. जी० ३३४,३३७,३४७,३४८,३५२,३५३,३५५,३६१, ३३५१६ ३६५,३७२,३७७,३८०,३८१,३८३,३८५.३८७, पडिपिधेत्ता [प्रतिपिधाय] जी० ३३५१६ ३६०,३६२,३६३,३६६,४००,४०१,४०४,४०६ पिडिपुच्छ [प्रति-+प्रच्छ ] – पडिपुच्छंति. ओ० ४५ ।। से ४०८,४१०,४१३,४१४,४१८,४२२,४२७, परिपुच्छण [प्रतिप्रश्छन] ओ० ५२. रा० ६८७ ४३७,५८१,५८४,५८५,५६६,५६७,६३२,६३६, पडिपुच्छणा [प्रतिप्रच्छना] ओ० ४२ ६४४,६४६,६४६,६५५,६६१,६६८,६७१,६७२, परिपुच्छणिज्ज प्रतिपृच्छनीय रा० ६७५ ६७५,६८६,७२४,७२७,७३६,७५८,८३६,८५७, पडिपुण्ण [प्रति पूर्ण] ओ० १४,१५,१६,६३,७२, ८६३,८८१,८८२,८६१,८६३ से ८६५,८६७, १२०,१४३,१५३,१६२,१६५,१६६,१७०. ८६८,६०४,६०६,६०७,६११,६१८,१०३८, रा० १३१,१४७,१४८,१५०,१५२,२८०,२८६, १०३६,१०८१,११२१,११२२ ६७१ से ६७३,६६८,७५२,७८६,८०१,८१४. पडिरूवय [प्रतिरूपक | रा०१६.२०,१७५ से १७६, जी० ३।३०१,३२३,३२५,४४६,४५२,५६२, २०२,२३४,२६४. जी० ३१२८७,२८८,३६३, ५६६,५६७,६१० ३९६,५७६,६४०,६४१,६६६.६८४ पडिपुग्णचंद [प्रतिपूर्णचन्द्र ] जी० ३१८६,२६० परिचय [प्रतिरूपक रा० १६,४७,४८,५६,५७, पडिपुग्न [प्रतिपूर्ण] जी० ३१५९६ २७७,२८८,३१२,४७३,६५६. जी०३।४४३, परिबंध [प्रतिबन्ध ] ओ० २८. रा० ६६५,७७५ ४५४,४७७,५३२,५५६ पडिबद्ध प्रतिबद्ध] जी० ३।२२ पिडिलाभ [प्रति+लाभय]-पडिलाभिस्संति. पडिबोहण [प्रतिबोधन] रा० १५ रा०७०४.- पडिलाभेइ. रा०७१६. पडिबोहिय [प्रतिबोधित] ओ० १४८,१४६. रा० -पडिलाभेज्जा. रा० ७७६ ८०६,८१० पडिलामेमाण [प्रतिलाभयत् ] ओ० १२०,१६०. पडिमट्ठाइ [प्रतिमास्थायिन् ] ओ० ३६ रा० ६६८,७५२,७८९ पडिमोयण [प्रतिमोचन] जी० ३२७६,५८१,५८५ पिडिलेह [प्रति + लिख्]—पडिले हेइ. रा० ७६६ पडियाइक्खिय [प्रत्याख्यात ] ओ० ११७ पडिलोम [प्रतिलोम] रा० ७५३,७६७,७६८,७७६, पडिलव [प्रतिरूप] ओ०७,१० से १२,१५,७२,१६४. रा० १,२,१६ से २३,३२,३४,३६ से ३८, पडिवंसग [प्रतिवंशक] रा० १३०. जी० ३१३०० १२४ से १२८, १३० से १३४,१३६,१३७, पिडिधज्ज [प्रति-: पद्—पडिवज्जइ. १४१,१४५ से १४८,१५० से १५३,१५५ से ओ० १८२. रा० ७७५.–पडिबज्जति. १५७,१६०,१६१,१७४,१७५,१८० से १८५, ओ०१५७. ....पडिवज्जिामि. रा०६९५. १८८,१९२,१९७,२०६,२११,२१८,२२१,२२२, --पडिवज्जिमामो. ओ० ५२. रा०६८७ २२४,२२६,२२८,२३०,२३१,२३३,२३८,२४२, २४४ से २४७,२४६,२५३,२५६,२५७,२६१, पडिज्जित्ता [प्रतिपद्य ] ओ० १५७ २७३,६६८ से ६७०,६७२,६७३,६७६,६७७, पडिवण्ण [प्रतिपन्न] ओ० २४,७८,८२,१८२ ७००,७०२,७०३. जी० ३१२३२,२६० से २६३. पडिवत्ति [प्रतिपत्ति] जी० १०; ६१८ २६६ से २६६,२७६,२८६ से २६७,३०० से पडिविरय प्रतिविरत ] ओ० १६१,१६३ ३०४,३०६ से ३०८,३१० से ३१२,३१८, पिडिविसज्ज [प्रति-+-वि+सर्जय्] ७७७ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिवह-पणाम ६७३ —पडिविसज्जे इ. ओ० ५४. रा०६८४. पडुप्पन्न [प्रत्युत्पन्न ] जी० ३३१६५ से १९७ --पडिविसज्जेहिति. ओ० १४७. रा०८०८ पडपाएमाण [प्रत्युत्पद्यमान] जी० ३।२५६ पडिवह [प्रतिव्य ह] ओ०१४६. रा० ८०६ पडोयार [प्रत्यवतार] ओ० ४३. जी. ३२१८, पडिसंखेवेमाण प्रतिसंक्षिपत्] रा० ५६ २५६,५७८,५६६,५६७ पडिसलीणया [प्रतिसंलीनता] ओ० ३१,३७ पढम [प्रथम ] ओ० ४७,१४४,१७४,१७६,१८२. पडिसंसाहणया [प्रतिसंसाधना] ओ ४० रा०८०२. जी० १२२६,६८२,६८३,६८८; पिडिसार [प्रति+-सं+ह]-पडिसाहर इ. ७१,२,४,६,११,१३,१५,१७,२०,२२२३; ओ० २१. रा०८ ६।१ से ७,२३२,२३३,२३५,२३७,२४१,२४३, पडिसाहरित्ता | प्रतिमहत्य] ओ० २१ २४५,२४७,२५०,२५२,२५३,२५५,२६७,२६८, पडिसाहरेत्ता [प्रतिसंहृत्य ] रा० ८ २७०,२७२,२७५,२७७,२७६,२८१,२८४,२८६, पडिसाहरेमाण [प्रतिसंहरत् ] रा० ५६ २८८ से २६३ पिडिसुण [प्रति--- श्रु]-पडिसुणंति. रा० १०. पढ़मग [प्रथमक] रा० २२८. जी० ३१३८७,६७२ जी० ३१४४५.–पडिसुणिज्जासि. रा० ७५३. पढमसत्तराइंदिया प्रथमसप्त रात्रिंदिवा] ओ० २४ --पडिसुणे इ. ओ० ५६. रा० १८.--पडि- पढमसरयकाल[प्रथमशरत्काल] जी० ३।११८,११६ सुर्णेति ओ० ११७. रा० ७०७. जी. ३१५५५. पढमा [प्रथमा] जी० ३१२,३,८८,११११ --पडिसुणेति. रा० १४, पडिसुणेज्जासि, पढमिल्लुय [प्रथम] रा० ७६८ रा० ७५१ पणगजीव [पनकजीव | ओ०१८२ पडिसुणित्ता [प्रतिश्रुत्य] रा० १८. जी० ३६४४५ पणच्च [+ नृत्य]--पच्चिसु. रा० ७५ पडिसुणेत्ता [प्रतिश्रुत्य] ओ० ५६. रा० १०. पणतीस [पञ्चत्रिंशत् ] जी० ३.८०२ जी० ३१५५५ पणपण्ण [दे० पञ्चपञ्चाशत् जी०६।६ पडिसुय [प्रतिश्रुत] रा० १४ पणपन्न दे० पञ्चपञ्चाशत् | जी० २।२० पडिसूर [प्रतिसूर] जी० ३।६२६,८४१ पणमिय [प्रणत | ओ० ५,८,१०. रा० १४५. पडिसेग [प्रतिषेक] रा० २५४ जी० ३१२६८,२७४ पडिसेविय | प्रतिषेवित ] रा० ८१५ पणयाल ! पञ्चचत्वारिंशत् | जी० ३१२२६३६ पडिसेह {प्रतिषेध] जी ० २।६६,१०१ पणयालीस [पञ्चचत्वारिंशत् ] ओ० १६२. पडिहत | प्रतिहत] जी० ३१७४६ जी० ३१३०० पडिहत्य | दे० रा. १७४. जी. ३।३२४,८५७, पणयालीसविह [पञ्चचत्वारिंशविध ] ओ० ४० ८६३,८६६,८७५,८८१,६४८ पणयासण [प्रशतासन ] रा० १८१,१८३. पडिहय | प्रतिहत ] ओ० १६५।१,२ जी० ३।२६३ पडीण | प्रतीचीन ] रा० १२४. जी० ३१६३६ पणव पणव] ओ०६७. रा० १३,७७,६५७. पडीणवात | प्रतीचीनवात | जी० १८१ जी० ३७८,४४६,५८८ पड़ीणवाय प्रतीचीनवात जी० ३१६२६ पणवण्णिय |पणपन्निक] ओ० ४६ पड़ पटु] ओ० ६८. रा० ७,१३,६५७. पणवीस [पञ्चविंशति | रा० १२७. जी० ३१६१ जी० ३१३५०,४४६,५६३,८४२,८४५,१०२५ पणस [पनस] जी० ३३८८ पडुच्च [प्रतीत्य ] रा० ७६३. जी. ११३४ पणाम [प्रणाम] रा०६८,२६१,३०६. Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पणि-पत्तियमाण जी. ३.४५७,४७१,५१६ पणि [पर ] जी० ३ ६०७ पणिय पणित, पण्य ] ओ०१. रा० ७७४ पणियगिह । पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ पणियसाला [पणित, पण्यशाला] ओ० ३७ पणिहाय प्रणिय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से ७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ पणीत प्रणीत | जी० ११ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग | ओ० ३५ पणुवीस [पञ्चविंशति | जी० ३।२२६३५ पणोल्लिय प्रणोदित ] ओ० ४६ पण्णओ | प्रज्ञातम्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८, ७६०,७६२,७६४ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३१३०२ पण्णट्ठ पञ्चपष्टि] जी० ३१२२२ पण्णट्टि [पञ्चपष्टि] रा० १६४ पण्णत्त | दे०] ओ० १ पण्णत्त प्रज्ञप्त) ओ०२. रा० ३. जो०११ पण्णत्तर पञ्चनप्तति | जी० ३१२४६ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३१६६१ पण्णत्ति प्रज्ञप्ति स० ८१७ पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ पण्णरसविष [पञ्चदशविध] जी० ३३२२६ पण्णरसविह [पञ्चदश विध] जी० ११८०; २०१४ 4/पण्णव | प्र-! ज्ञापय | -- wणवइंसु. जी० ११. ----पण्णवे:ओ० ५२. रा०६८७ -पण्णवेति जी० ३१२१०..-पण्णवे हेंति. जी० ३१८३८.३ पण्णवणा प्रज्ञापना] T० ७७४. जी० ११५,५८, ७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५ १८६३।१८४,२१४,२३२,२३३ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पण्णवित्तए प्रज्ञापयितुम् | रा० ७७४ पण्णवीस पञ्चविंशति ] जी० ३।१२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ०६८ पिण्णाय [प्रज्ञा-पण्णायति. जी. ३.६६E पण्णास [पश्चात् ] रा० २०९. जी० २१३९ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर | ओ० ४५ पतणतणाइत्ता | प्रतनतनाय्य | रा० १२ पितणतणाय प्र-तनतनाय }- पतणतणायंति. रा० १२ पतणु [प्रतनु ] ओ० ६१,११६ पतरग [प्रतरक | जी० ३.३०२ पितव |प्र : तव — पतवंति, जी० ३।४४७. -पतवेंति. रा० २८१ पतिट्ठाण प्रतिष्ठान ] रा० १६,१७५. जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पत्त [पत्र] ओ० ५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६, १२.२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३१११८,११६, २०४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५६६, ६२२,६४३,६७२ पत्त प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२, १६५।१६,२२. राः १,६३,६५.६६७,७६६, ७९७. जी० ३.८६७ पत्तच्छज्ज पत्रच्छेद्य | ओ० १४६. रा० ८०६ पत्तट्ठ | दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८, ७५६,७६५ ७६६,७७० पत्तभार [पत्रभार) ओ० ५,८. जी० ३.२७४ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ० ५.८. जी० ३१२७४ पत्तल [पत्रन ओ०१६,४७. जी० ३१५९६,५६७ पत्तासव वानव जी० ३१८६० पत्ताहार पत्राहार ओ०६४ पत्तिय |प्रति। ---पत्तिएज्जा. रा० ७५०. ----पत्तियामि, रा०६६५ पत्तिय | पत्रित | रा० ७८२ पत्तियमाण प्रतियत् | जी० १११ १ द्रष्टव्यम् -निशीथभाष्य ४४३५ । १. अनुकरण वचन । Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्ती-मभास पत्ती [पात्री] जी० ३॥५८७ ७६१,७९३,८०४. जी०३१४४१,४४२ पत्तेग | प्रत्येक जी० ॥२६ पद पिद] रा०७६,२६२. जी० ३१८४,४५७ पत्तेगसरीर | प्रत्येकशरीर] जी० १३१ पत्तेय [प्रत्येक ओ० ५०. रा० २०,४८,१३७, पदाहिण [प्रदक्षिण ] जी० ३१४४३ १६४,१७०,१७४ से १७६, १८६,२११,२१५, पदाहिणावत्तमंडल [प्रदक्षिणावर्तमण्डल] २१७ से २१६,२२१,२२२,२२४२२६,२२७, २३०,२३१,२३३,२५५,२५६,२८२,६६४. पदीव [प्रदीप] रा० ७७२ जी०३।२५६,२८६ से २८८,३०७ से ३१३, पदेस प्रदेश रा० १३५,२३६,७७२. जी०१४; ३४५,३५५,३५६,३५८,३५६,३६३,३६८, ३१३०५, ३२७,५७३,५६७,६६८,७१७,७८८, ३६६,३७२ से ३७८,३८०,३८१,३८३ से ७८६,८०३,८२८,८२६,८४५,८५३,९४६; ३८६,३६२,३६३,३६५,४१६,४१७,४४८, ५१५१ ५५८ से ५६२,६३२,६३४,६३५,६३७,६४१, पदेसट्टता प्रदेशा] जी० ५१५१,५२ ६६१,६६२,६८३ ६८४,७२५,७२७,७२८, पदेसट्ठया [प्रदेशार्थ ] जी० १५० से ५२,५८ ७६२,७६३,८५७,८८२ से ८८५,८८७ से ८६१,८६३,६०३,९०६,६०८,६१०,६११, पन्नगल [पन्नगार्ध] रा० १३२ ६१३,१०४८; ५:२८, ३०; १।१७४ पन्नरस [पञ्चदशन् ] रा० २०८. जी० ३।३८३। पत्तेयजीव प्रत्येकजीव] जी० ११७१ पम्नरसइ पञ्चदश] जी० ३१८३८.१६ पत्तेपबुद्धसिद्ध [प्रत्येकबुद्धसिद्ध] जी० २८ पन्नरसविह [पञ्चदशविध] जी० २०१४ पत्तेयरस [प्रत्येकरस] जी० ३१६६३ पन्नास [पञ्चाशत् ] रा० १२७. जी० २०२० पत्तेयसरीर [प्रत्येकशरीर] जी० १.६८,६६,७२; पप्पडमोयय [पर्पटमोदक ] जी० ३१६०१ ३१,३३ से ३६ पप्फाल [प्रफुल्ल ] जी० ३१२५६ पतोमोवरिय [प्राप्तावमोदरिक] ओ० ३३ पन्भट्ट [प्रभ्रष्ट] रा० १२,२६१,२६३ से २६६, पित्य {प्र+अर्थय् ] —पत्यंति. ओ०२०-पत्थेइ. ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७ से रा०७१३-पत्यति. रा० ७१३ ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५५४ पत्य [प्रस्थ ] ओ० १११ पन्भार प्रारभार ओ० ४६ पत्य [पथ्य ] जी० ३८५४,८७८,६५७ पभंकरा प्रभङ्करा] जी० ३।१०२३,१०२६ पत्थड प्रस्तट | रा० १३०, १३७. जी० ३३००, पभंजण |प्रभञ्जन] जी० ३७२४ ३०७ पभा प्रभा ओ० ४७,७२. रा० २१,२३,२४, पत्थडोदय प्रस्तटादक ] जी० ३.७८३,७८४ ३२,३४,३६,१२४,१४५,१५४,१५७,२२८,२७३ पत्यय (पथ्यक रा० ७७२ ७७७,७७८,७८८. जी. ३१२६१,२६६,२६६. पत्थयण [पथ्यदन रा० ७७४ ३२७,३८७,६३७,६५६,६७२,७२८,७४३, पत्थर [प्रस्तर] ओ० ४६ ७५०,७६३,७६५,१०७७ पत्थिज्जमाण [प्रार्थ्यमान, ओ० ६६ पभाय | प्रभात ओ० २२. रा०७२३,७७७,७७८, पत्थिय [प्रार्थित ] ओ० ७०. रा०६,२७५,२७६, ७८८ ६८८,७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७, पभास [प्रभास] रा० २७६. जी० ३।४४५ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ प्रभास-पयावण प्रभास [प्र--भास्]-पमासिसु. जी० ३१७०३ -~-पभासिरसंति. जी० ३१७०३.- पभासे इ. रा० ७७२. जी. ३।३२७ --पभासेति. रा० १५४. जी० ३।३२७ ---पभासेति. १० १५४. जी० ३१७४१ पभासेमाण |प्रभासमान ! ओ० ४७,७२. जी० ३.११२१ पभिइ |प्रभृति ] रा० ७६०,७६१ पभिति प्रभूति | ओ० ५२,६३. रा० ६८७,६८८, ७०४. जी० ३८३८१२५ पभु | प्रभ] रा० ७५८ से ७६१. जी० ३।११०, १८८ से १६७,१०२३ से १०२५,१११५, पभूय [प्रभू] ओ० १,१४,४६,१४१. रा०६, १२,६७१,७६६. जी० ५८६ पमज्ज प्र--मृज् ---एमज्जइ. रा० २६१ --पमज्जति. जी० ३४५७ पमज्जित्ता [प्रमृज्य ] रा० २६१. जी० ३१४५७ पमत्त प्रमत्त | रा० १५ । पमण [प्रमर्दन] ओ०२६. रा० १२,७५८.७५६. जी० ३.११८ पमाण |प्रमाण] ओ० १५,१६,३३,१२२,१४३. रा० ६.१२,४०,२०५ से २०८,२२५,२५४, २७६,६७२,६७३,६७५,७४८ से ७५०,७७३, ८०१. जी० ३।३१३,३६८ से ३७१,३८४, ४०६,४१२,४१५,४४२,५६८,५६६,५६६,५६७, ६५२,६६६,६७३,६७६,६७६,६८५,६८६, ६८८,६९१ से ६६८.७३७,७५०,७५३,७६४, ७६५,८००,८८६,८६६,८६८,६१६ से १२१, ६४१,१०७४ पमाणपत्त प्रमाणप्राप्त ओ० ३३ पमाणभूय ] प्रमाणभूत | स० ६७५ पमाय प्रमाद ] ओ० ४६ पमावायरिय | प्रमादावरित | ओ. १३६ पमुइय | प्रमुदित] ओ० १,१६,४६. ग. १७३. जी० ३.५६ पमुच्चमाण [प्रमुञ्चत् ] जी. ३१११८ पमुदित प्रमुदित जी० ३१२८५ पमुह |प्रमुख | ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. रा० २४६,७७६ पमोकक्स प्रमं क्ष] रा० ६६८,७५२,७८६ पम्ह [पक्ष्मन् | ओ० ८२ पम्ह [पद्म | श्री० ६।१६४ पम्हल | पक्ष्मल ओ० ६३. रा० २८५. __ जी० ३।४५१ पम्हलेस पथ मेश्य | जी० ६।१६० पम्हलेस्स [पद्मलेश्य ] जी. ६।१८५,१६६ पम्हलेस्सा | पद्मलेश्याj जी० ३१११०२ पय पद | ओ० २१,५४. रा० ८,७१४, जी० ॥२३६,२८५ पयंठग प्रकण्टक / जी० ३।३२२ पियच्छ [प्रयम् ].-पयच्छइ. रा०७३२ पयण |पचन] ओ० १६१,१६३ पयण प्रतनु] जी० ३१५९८,६११,७९५,५४१ पयत [प्रयत] जी० ३.४५७ पयत्त प्रयत्न रा०२६२. जी. ३.६०१,८६६ पयबद्ध | पदबद्ध रा० १७३, जी० ३१२८५ पययदेव पतगदेव,पतकदेव ] ओ० ४६ पयर प्रतर | रा० ४०,१३२ पयरग [प्रतरक | जी. ३१२६५,३१३,५९३ पयला (प्र--- वलाय]-पयलाएज्ज. जी० ३१११८ पयर्यालय | प्रचलित | ओ० २१,५४. रा०८, ७१४ पयसंचार | पदञ्चार रा० ७६,१७३. जी० ३।२८५ पिया प्र-जनय् | -पयादिइ. रा०८०१ -पयानिति. ओ. १४३ पयाणुसारि [पदानुकारिन् ओ० २४ पयार | प्रचार ] ओ० ३७ फ्यावण [पाचन] ओ० १६१,१६३ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहण-परिक्खित्त पाहिण [ प्रदक्षिण | ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, ८०, ८१, ८३. रा० ६, १०, १२, ५६, ५८, ६५. ७३,७४, ११८, १२०,६८७,६६२, ६६५.७००, ७१६,७१८७७८ पाणावत | प्रदक्षिणावर्त । ओ० १६. जी० ३५६६,५६७,८३८ १०.११ पयोधर [ पयोवर ] जी० ३१५६७ पर [पर] ओ० १५४, १५५,१६० से १६३, १६५, १६६. रा० ८१६ परं परम् | जी० ३१८३८२३ परंगमाण | पर्यङ्गन] ८० ८०४ परंपर | परम्पर] जी० ११४३ परंपरगय | परम्परगत | ओ० १६५/२० परंपरसिद्ध [परम्प सिद्ध ] जी० ११७, ६ परक्कम | पराक्रम ] जो० ८६ से ६५, ११४,११७, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७ परग [ परक ] जी० ३१५८७ परघर | परगृह ] रा० ८१६ परच्छंवाणुवत्तिय [परच्छन्दानुवर्तित ] ओ० ४० परपरिवाइय [परपरिवादिक । ओ० १५६ परपरिवाय परपरिवाद । ओ० ७१,११७, १६१. १६३ परपरिवाविवेग | परपरिवादविवेक ओ० ७१ परपुट्ट | परपुष्ट ] रा० २५. जी० ३२७८ परम | परम] ओ० २०, २१, ५३, ५४, ५६, ६२, ६३,७८,८०,८१. ० ८, १०, १२ से १४,१६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, २७६, २८१,२८८, २६०, ६५५, ६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०, ७१३,७१४, ७१६,७१, ७२५, ७२६, ७६५, ७७४७७८, ८०२. जी० ३।११६, ४४३, ४४५, ४४७, ४५५ परम किण्ह | परमकृष्ण | जी० ३१८३, ६४ परम किहलेस्सा | परमकृष्ण श्वा | जी० ३ १०२ परभट्ट [ परमार्थ ] ओ० १२० १६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६ ६७७ परमण्ण [ परमान्न ] जी० ३।५६२ परमसीय [ परमशीत ] जी० ३१११५ परमसुक्क लेस्सा [ परमशुक्ललेश्या ] जी० ११०४ परमसुक्कल [ परमशुक्ल जी० ३।१०७६, १०६६ परमहंस [ परमहंस ] ओ० ६६ परमाउ | परमायुष्] ओ० ६८ परमाणु | परमाणु ] जी० ७७१. जी० ११५ परलोग [ परलोक ] ओ० २६, ८६ से ६५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ परवाइ | परवादिन् ] ओ० २६ परवाय [परवाद | ओ० २६ परसु [ परशु ] रा० ७६५ परस्सर [पराशर ] जी० ३।६२० पराइय | पराजित ] ओ० १४. जी० ६७१ परामुस [परा | मृश् ] ---परामुसइ. रा० २६४. जी० ३३४६० --परामुसति. रा० २६८. जी० ३२४५७ परामुसिता [ परामृश्य ] रा० २६४. जी० ३।४५७ परावतं [परा + वृत् ] - परावत्तेइ रा० ७२६ - परावतेहि रा० ७२८ परासर | पराशर ] ओ० ६६ परिकच्छिय | परिकक्षित | रा० ५२ परिकम्म [ परिकर्मन् ] ओ० ३६ परिह | परि + कथय् । - परिकहेइ ओ० ७१. रा० ६१ परिकहेउं [ परिकथयितुम् | ओ० १६५ १६ परिकिलंत [ परिक्लान्त ] रा० ७२८, ७६०,७६१ परिकिलेस | परि + क्लिश् ] – परिकिले संति ओ० ५६ परिकिलेस [ परिक्लेश ] ओ० १६१, १६३ परिकिलेसित्ता | परिक्लिश्य ] ओ० ८६ परिक्खित [ परिक्षिप्त | ओ० १, ५२, ६४, ७०. रा० १७,१८,१३२, १७०, १७४, २३३,६८१, ६८३, ६५७, ६८, ६६२, ७००, ७१६,८०४. जी० ३१२५६, २८६, ३०२, ३५८, ३६५,६३२, ६६१, ६५३, ७६२, ८५७,८८२,६१०,६११ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खेव-परिभव परिक्खेव [परिक्षेप] ओ० १७०. रा० १२४,१२६, ५१८ १८८,१८६,२०१. जी० ३।५१,८१,८२,८६, परिणम | परिणम् - परिणमइ, ओ० ७१. १२७, २१७, २२२, २२६१३ से ६, २६०, रा० ७७१ -परिणमंति, जी० १६५ २६३, २७३, २६८,३५१, ३६१, ३६२,५७७, परिणमंत | परिणमत् ] रा०७७१ ६३२, ६५८, ६६१, ६६८,६८६, ७०६,७३६, परिणममाण [परिणमत्] जी० ३१९८२ ७५४, ७६२, ७६५, ७७०,५६४, ७६५,७६८, परिणय [परिणत] ओ० ५,८. रा० १२,७५८,७५६ ८१२, ८२३, ८३२, ८३५, ८५०,८८२,६११, ८०६,८१०. जी० ११५; ३,२२,११८,२७४,५८६ ६१८, ६५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ ५८८ से ५६२,५६४ । परिखित्त | परिक्षिप्त ] ग० ५६, १७३, ६८१. परिणाम [परिणाम | ओ०७१,१०,११६,१५६. रा० जी० ३२२८५ १३३. जी. ३।१२८,३०३,५८६,५८८,५६२, परिगत [परिगत] जी० ३।२८८, ३००, ३३२ ६७४,६७६ से १८२ परिगय [परिगत ] ओ० २ रा० १७, १८, २०, परिणाम [परि। णामय ] ...परिणामेइ. रा०७३२ ३२, १२६, १५६, ७६५. जी० ३।३७२ अपरिणिवा | परि-- निर+बा]-परिणिबाइ.ओ. परिग्गह [परिग्रह ] ओ०७१, ७६, ७७, ११७, १७७-परिणि व्वायंति. ओ०७२. जी० १११३३ १२१, १६१, १६३. रा० ६६, ७१७, ७६६ ...-परिनिवाहिति. ओ० १६६ --परिणिबा. परिग्गहवेरमण [परिग्रहविरमण | ओ० ७१ हिति. ओ० १५४ परिग्गहसण्णा [परिग्रहसंज्ञा] जी० ११२०; ३।१२८ परिणिन्वाण [ परिनिर्वाणj ओ० ७१ जी० ३।६१५ परिगहिय [परिगृहीत] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, परिणिन्य परिनिर्वत ओ०७१ ६२,६४,११७,१३६. रा० ८,१०,१२,१४,१८, परिताव [परिताप ] ओ० ८६ ४६,५१,७२,७४,११८,२७६,२७६ से २८२,२६२' परितावणकर [परितापनकर | ओ० ४० ६५५,६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, परिताविय परितापित | ओ० ६२ ७२३,७६०,७६१,७६६. जी० ३१४४२,४४५, परित परीत] जी० १.२६,६२,६४,६५,७७,७६, ४४६,४४८,४५७,५५५,६३०,७२७ ८०,८२,८७,८८,६६,१०१,१०३,११२,११६, परिघट्टिय [परिघट्टित रा० १७३. जी. ३।२८५ ११६,१२१,१२३,१२८,१३४,१३६, ६७५, परिषट्ठ परिघृष्ट ] रा० ५२,५६,२३१,२४७. जी. ३१३६३,४०१ परित्तसंसारिय [परीतसंसारिक] रा०६४ परिचत्त परित्यक्त] ओ०६२ परिघाव [परि+धाव -परिधावंति. रा० २८१. परिचंबिज्जमाण |परिचम्व्यमान | रा०८०४ जी० २१४८७ परिच्छेय परिच्छेद । ओ० ५७ परिनिव्वा परि + निर ।-वा ] .....परिनिव्वापरिजण [परिजन । ओ० १५०. रा० ७५१,८०२ हिति. रा०८१६ परिपोलता [परिपीड़य] जी० १५० पिरिजाण {परि ज्ञा}--परिजाणाइ. रा० ७०१ परिपुण्ण [परिपूर्ण] रा० २४ —परिजाणाति. रा० ७५३ परिपूत [परिप्त | जी० ३।८७८ परिजूसिय [परिजुष्ट ] ओ० ४३ परिपूय परिपूत ] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ परिणत [परिणत] जी० ११५, ३१५८७,५६३,५६५, परिभव (परिभव] ओ० ४६ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभवणा-परिवढि ६७६ ८०२ परिभवणा [परिभवना | ओ० १५४,१६५,१६६ ७७८,८०४ परिभाइत्ता[ परिभाज्य रा० ६६५ परियावणकर [परितापनकर] ओ० १६१,१६३ परिभाएमाण [परि भाजयत् ] रा०७६५,७८७,७८८, । परिरय [परिरय] ओ० १६२. जी० ३१२१६११, २,४,५,८३६,६१० परिभायइत्ता | परिवाज्य] ओ० २३ परिलित [परिलीयमान] ओ० ६२. जी० ३।२७५ परि जमाण परि जान | ओ० ११६,११७ परिलो [दे०] रा० ७७ परिभुजेमाण [परिभुञान ० ७६५,८०२ परिवंदिज्जमाण [परिवन्धमान ] ० ८०४ परिभुज्जमाण | परिभुज्यमान] ० ३०,१३६.१७४, परिवच्छिय [परिवनित'] ओ० ५७ ___ ८०४. जी० ३! ११८,११६,२८३,२८६,३०६ ।। परिवज्जिय [परिवजित ] जी० ३।६२२ परिभोगत्त [परिभोगत्व | जी० ३।६१८ परिवड्ड [परि--- वृध्] ----परिवड्ढइ. जी. ६१६,६२१ ___ ३१८३८।१८.---परिवढिस्स इ. रा० ८०४ परिमंडल परिमण्डल| रा०६,१२,१४. जी. परिक्य [परि : वृत् ] -परिवयंति. रा० २८१. ११५; ३ २२ जी० ३२४४७ परिमंडित [परिमण्डित ] जी० ३।३७२ परिवस [परि-1-वस] परिवस इ. ओ०१४ परिमंडिय परिमण्डिन । ओं० १,५७,६४,७०. रा० २०७०३.-.-परिवसंति औ०१८४. ३२,५२,५६,१७३,२३१.२४७,६८१,८०४. रा० १८६. जी० ३१२३२.-परिवसति. जी० ३:३६३ जी० ३१२३४ परिमद्दण [परिमर्दन] ओ० ६३ परिवसण [परिवसन] जी० ३१५६८ परिमाण |परिमाण ] जी० ३।१२७४३,२५०,२५८ परिवह [परिवह]-परिवहति परिमिय परिमित | जो० १५. रा० ६७२ जी० ३११०१५ परिमिपिंडवाइय [परिमितपिण्डपातिक ] ओ० ३४ परिवहितए [परिवोढुम्] रा० ७६० परियट [परिवत] - परिययंति ओ० ४५ परिवाइणी [परिवादिनी | जी० ३१५८८ परिवाहिती परियट्टणा परिवर्तना] ओ० ४२,४३ परिवाडी [परिपाटी] रा० १३१ से १३३,१३५, परियत परिवर्त जो० ४६ १३६. जी० ३१३०१ से ३०३ परियर [परिकर रा० ६६,७६५ परिवायणी पिरिवादिनी] रा०७७ परियाई परि + आ---दा--परियाएइ रा० । परिवार [परिवार ओ० ७०. रा० ७,४२,४७, १८-परियायनि रा० १०.जी. ३१४४५ ५६,५८,६१,६७,१६४,१८६,२०४ से २०६, परियाइत्ता मर्यादा रा० १०. मी० ३।४४५ २१६,२४३,२८०. जी० ३।३४०,३५०,३५६, परियाइय | पर्यात १०६६४. जो० ३.५६२ ३६६,३६८,३७८,४०५,४४६.४४८,५५७, परियाग [पर्याय | ओ० ६४,१५५,१५८ से १६०, ५६३,६३५,६५७,६६३६७३,६८०,६८५, ७३.७,७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५, परियाण परि-ज्ञा - परियाणइ रा० ६४ ७६८,७७०,१०००,१०२३,१०५४ परियाय पर्याय ! ओ० २३,११४,१४०. परिवाल [परिवार रा० १३,१२० रा० ८१५ परिविद्धंसइत्ता [परिविद्धवस्य ! जी० ११५० परियारणिति [परिचारद्धि] जी. ३३१०२५ परिवुष्टि [परिवृद्धि] जी० ३।७८८,७८६ परियाल [परिवार] ओ० २३,७०,७१. रा० ७७७, १. परिपक्षितं -परिगृहोतं परिवृत्तम् (व)। Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० परिश्वय-पलिओवम परिव्वय परिव्यय ] रा० ७७४ परिवायग | परिव्राजक] ओ० १०१ से १३३ परिवाया [परिव्राजक] ओ०६६ से १६,११७ परिसडिय परिशटित ] ओ० १४. रा०७६०, ७६१,७८२ परिसप्प [परिसर्प ] जी० १११०२,१०४,१२०, १२२; ३।१४१,१४३ परिसप्पो [परिसी] जी० २१५,७ परिसा | परिषद] ओ०४३,७६. रा० ६,७,४३, ५६,५८,६१.२७६ से २८०,२८४,२८७,६६० से ६६२,६६६,६६३,६६४,७१२,७१७,७३२, २४१ से २४३,२४५ से २४७,२४६,२५०,२५४ से २५६,२५८,३४१ से ३४३,३५०,३५६,४४२ से ४४६,५५७,५६०,५६३,८४२,८४५,१०४० से १०४२,१०४४,१०४६ से १०५३,१०५५ परिसार परि + शाटय् !-परिसाउंति जी० ३१४४५.—पडिसाडेइ ४० १८. -परिसाडेति रा० १० परिसाडइत्ता [परिशाट्य] जी० ११५० परिसाडित्ता [परिशाट्य ] रा० १८. जी० ३।४४५ परिसाडेत्ता परिशाट्य रा० १० । परिसामंत [परिसामन्त] जी० ३३१२६ परिसेय [परिषेक | जी० ३१४१५ परिसोधित पिरिशोधित जी० ३१८७८ परिस्संत [परिश्रान्त ] ओ० ६३. रा० ७६५ परिस्सम (परिश्रम] ओ० ६३ पिरिहा परि +धा]--परिहेइ जी० ३।४४३ परिहत्य [दे०] ओ० ४६. रा० ६६,१५१. जी० ३११८,११६,२८६ । परिहा [परि+हा ] ---परिहायइ. जी० ३८३८:१६.--परिहायति. जी. ३.१०७ परिहाणि | परिहाणि] जी० ३१६६८,८३८।१६,२० परिहायमाण [परिहीयमाण ] ओ० १९२. जी० ३।६६८,८८२ परिहारविसुद्धिचरित्तविणय [परिहारविशुद्धिचरित्र विनय ओ० ४० परिहित [परिहित ] रा०६८५,६६२,७००.७१६, ७२६,८०२. जी. ३।११२२ परिहिय परिहित] ओ० २०,४७,५२,५३,७२. रा०६८७,६८६ परिहोण परिहीम | ओ० ७४।६,१८२, १९५८. रा० १३,१५,१७ परिहेता परिधाय | जी० ३ ४४३ परीसह [परीपह] ओ० ११७,१५४,१६५,१६६ परूढ [प्ररूढ ] ओ० ६२ । पिरूव प्र+रूपय] —परूवेइ. ओ०५२ रा० ६८७..-परूवेति. जी० ३।२१०, —पस्वमि. जी० ३१२११ परूविय प्ररूपित जी० ११ परूबमाण [प्ररूपयत् ] ओ०१८ पलंब [प्रलम्ब ] ओ० ४७,४६,५७,६४,७२. रा० ५१,६६,७० पलंबमाण [प्रलम्बमान ] ओ० २१,५२,५४,६३. रा०८,४०,१३२,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५ पलाल [पलाल] रा० ७६७ पलिओवम [पल्यापम ओ० ६४,६५. रा० १८६, २८२,६६५,६६६,७६८. जी० १११२१,१२५, १३३, रा२०,२१,२५ से २८,३० से ४६,५३ से ५५,५७ से ६१,७३,८३,८४,१३९; ३११५६, १६५,२१८,२३८,२४३,२४७,२५०,२५६, ३५०,३५६,४४८,५६४,५६५,६२६,६३७, ६५६,७००,७२१,७२४,७२७,७३८,७६१, ७६३,७६५,८०८,८१६,८२६,८४१,८५४, ८५७,८६०,८६३,६६६,८६६,८७२,८७५, ८७८,८८५,६२३,६२५,१०२७ से १०३६, १०४२,१०४४,१०४६,१०४७.१०४६ से १०५३,१०५५,१०८६,११३२,११३५, ६३, ६,६; ७४५,६,१२, ६१८७ से १८६,२१२, २१४,२२५,२३८,२७३ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलिच्छन्न- पबीइय पच्छिन्न [ परिच्छन्न | ओ० ६. जी० ३।२७५ पलित्त [ प्रदीप्त ] जी० ३०५८ पलिया [लित ] जी० ३३५६७ पलियंक [पर्यङ्क ] रा० २२५. जी० ३।३८४ हि [ परिघ ] ओ० १६ / पलीव [ प्र + दीपय् ]-पलीवेज्जा. रा० ७७२ / पल्लंघ [ प्र + लंघ् ! - पल्लं वेज्ज. ओ० १५० पल्लंघण [प्रलङ्घन ] ओ० ४० पल्लग [ पल्यक] जी० ३।६११ पल्लत्यमुह [ पर्यस्तमुख] १० ७६५ पल्लव [ पल्लव ] अ० ५,८. २०१३६,२२८. जी० ३।२७४, ३०६, ३८७,६७२ पल्लवपविभत्ति | पल्लवप्रविभक्ति ] रा० १०० पहविया [पह्नाविका ] ओ० ७० रा० ८०४ पल्हायजिज्ज [प्रह्लादनीय] ओ० ६३ पर्वच [प्रपञ्च ] ओ० ११५ पयंचेमाण [ प्रपञ्चयत् ] जी० ३।२३९ ear [ प्लवक ] ओ० १,२ पवगपेच्छा [प्लवकप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५. जी० ३।६१६ पण [ पवन ] ओ० ४८, ५७ पवण [प्लवन ] रा० १२,७५८, ७५६. जी० ३१११८ पवत्त [ प्रवृत्त ] रा० १८,७८,८०,०२, ११२ जी० ३।४४७ पवत्त [ प्र + वर्तय् ] - पवत्ते. रा० ६७१– पवतेति रा० ७५० पवत्तेमि. रा० ७५०. पवतेहि, रा० ७५० पत्त [ प्रवर्तक ] रा० ६७१ पत्ता | प्रवृत्तक | जी० ३२२८५ पवयणणिण्हग [ प्रवचननिह्नवक ] ओ० १६० पवर [ प्रवर] आं० २,२०,४७, से ५३, ५५ से ५७, ६३ से ६५, ७२ ० ६, १२,३२,५१,१३०,१३२, २३६,२८१,२६२,६८५,६८७ ६८६,६६२, ७००,७१६,७२६,८०२. जी० ३।३००,३०२, ३७२,३६८, ४४७, ४५, ७,५६७, ११२२ पाइया [दे० ] जी० २६ पवहण [ प्रवहण ] ओ० १००,१२३ पवा [प] ओ० ३७ रा० १२ वाइ प्रवादित ] ओ० ६७,६८. रा० १३,६५७. जी० ३।३५०, ५६३, १०२५ पवादित | प्रवादित ] रा० ८४२, ८४५. जी० ३१४४६ पवादिय | प्रवादित ] रा० ७ V पवाय [-] - वादय् ] - पवाएं सु. रा० ७५ पवाल [ प्रवाल | ओ० ५,८,१२,२३,४७ रा० २७, २२८६६५. जी० ११७१.२७४, २८०, ३८७, ५६६,६०८, ६७२ पवालमंत [ वलवत् ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ fasor | प्रविकीर्ण ] ओ० १ परिमाण [ प्रविरित्] जी० ३१११८ पविचरित [ विचरित ] रा० १७४ पविचरिय [ प्रविचरित ] जी० ३।२८६,६३६ पविट्ठ [ प्रविष्ट ] ओ० ६४. जी० ३।५५,७८ √ पविणी ( प्र + वि + नी ] पविणेज्जा, जी० ३।११५ । पवित्तय [पवित्रक] ओ० १०८,११७,१३१ पविति [ प्रवृत्ति ] ओ० १६,१७ पवित्तिवाउय | प्रवृत्तिव्यात प्रवृत्तिवादुक] ओ० १६,१७,२०,२१,५३, ५४ पवित्थरमाण [ प्रविस्तरत् ] जी० ३१२५६ पविद्धत्य [ प्रविध्वस्त] जी० ३१११८, ११९ पविमायण [ प्रविमोचन ] ओ० ७,८,१० पविपरित | प्रविचरितम् ] रा० ७३२, ७३७ पविरल [ प्रविरल ] रा० ६, १२, २०१, ७६०, ७६१जी० ३० ४४७,५६१ विराय [ दे०प्रस्फुटित ] जी० ३१११८,११६ पविलीण | प्रविलीन ] जी० ३ ११८, ११६ √ पविस [ प्र + विश् ] -- पविसइ. रा० ७९६. - पविसामो रा० ७६५ ६८१ पविसंत [ प्रविशत् ] जी० ३८३८१४ पaisa [ प्रवीजित ] ओ० ६७ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ पवीणी-पहरण पिवीणी [प्र. विनी]-पवीणेइ ओ० ५६ पसण्णा [प्रसन्ना] जी० ३।८६० पवीणेत्ता [प्रविणीय ] ओ० ५६ पसत्त [प्रसक्त] रा० १५ पिबुच्च [प्र+वच्] पबुच्चति जी० ३१८४१ पसत्य |प्रशस्त ] ओ० १५.१६,४६,५२,११६,१५६. पवेस [प्रवेश ] ओ० १५४,१६२,१६५,१६६. रा० रा० ३३,१३३ ६७२. जी० १११, ३।३०३, १२६,२१०,२१२,६६८,७५२,७८६,८१६. जी. ३७२,५९६ से ५६८ ३।३००,३५४,३७७.५६४,६४३,८८५ पसत्यकायविणय [प्रशस्तकायविनय आ० ४० पव्वइत्तए [प्रवजितुम् ] ओ० १२०. रा. ६९५ पसस्थमणविणय प्रशस्तमनोविनय ] ओ० ४० पवइय [प्रवजित ] ओं० २३,७६,७८,६५,१५५, पसस्थवइविणय [प्रशस्तवाग्विनय ] ओ० ४० १५६ पसत्थु [प्रशास्तु] ओ० २३. रा०६८७,६८८ पम्वग [पर्व ग] जी० ११६६ पसम्ना प्रसन्ना] जी० ३१५८६ पम्वत | पर्वत | रा०२७६. जी० ३१४४५,६३२, V पसर [ प्रस]-पस रंति. रा०७५ ६३७,६६१,६६२,६६४,६६६,६६८,७३५,से पसरिय [प्रसृत ओ० ४६. जी० ३१५८६ ७४३,७४५,७४६,७५०,७९५,८३१,८३३,५३६ पसव [प्र+] —पसवति. जी. ३१६३० से ६४२,८४५,८६६,८८२,६१० से ११२,६१४ पसवित्ता { प्रसूय ] जी० ३।६३० से ११६,६१८से९२३ पसाधण [प्रसाधन] रा० १५२. जी० ३१३२५ पव्वतग (पर्वतक] जी० ३८६३,८७५,८८१,९२७ पसाधणघरग [प्रसाधनगृहक ] रा० १५२,१८३ पव्वतय [पर्वतक] जी० ३१८६३ पिसार [प्र--सारय-पसारेति. रा०६६ पिन्वय [प्र-व्रज् |--पब्वइस्सति. रा० ८१२. पसासेमाण [प्रशासयत् ] ओ० १४. रा० ६७१,६७६ -पन्वइस्सामो, ओ० ५२. रा०६८७. पसाहणघरग [प्रसाधनगृहक ] जी० ३१२६४ -~-पवइहिति. ओ०१५१. -पव्वयंति पसाहा [प्रशाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. रा० ६६५. जी० ३१२७४,३८७,६७२ पव्वय | पर्वत] रा०५६,१२४,२७६,७५५,७५७. पसिढिल [प्रशिथिल ] ओ० ५१ जी० ३१२१७,२१६ से २२१,२२७,३००,५६८, पासण [प्रश्न] मा पसिण [प्रश्न ] ओ० २६. रा० १६,७१६ ५७७,६३२,६३३,६३८,६३६,६६८,७०१, पसु [पशु आ० ३७. रा०६७१,७०३,७१८. ७३६,७३८,७४०,७४२,७४४,७४५,७४७,७४६ जी० ३७२१ ७५०,७५४,७६२,७६५,७६६,८७५,८८३,६३७पसेढि [प्रश्रेणि] रा०२४. जी० ३१२७७ १००१,१०३६ पस्सा [पश्या] रा० ८१७ पवयग पर्वतक] जी० ३१५७६ पस्सवणी [प्रस्रवणी] रा० ८१७ पन्चयमह [पर्वतमह] जी० ३।६१५ पह [गथ ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४,६५५,६८७, पवयराय | पर्वतराज] जी० ३१८४२ ७१२. जी० ३१५५४,८३८।१५ पम्वहणा [प्रव्यथना] ओ० १५४,१६५,१६६ पहकर दे० ओ० १,६. रा०६८३. जी. ३।२७५ पव्वा [पर्वा ] जी० ३३२५८ पहार दे० स०५३ पसंग [प्रसङ्ग] धो० ४६ । पहट्ट [प्रहृष्ट] ओ० १६. जी० ३१५६६ पसंत [प्रशान्त ] ओ० १४. रा० ६,१२,१५,२८१, पहरण [प्रहरण ] ओ० ५७,६४. रा० १७३,६६४, ६७१. जी० ३।४४७ ६८१,६८३. जी० ३१२८५,५६२ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहरणकोस-पागाइवाय ६८३ पहरणकोस [प्रहरण कोश] रा० २४९,३५५. पाउन्भवमाण [प्रादुर्भवत् ] रा०१७ जी० ३.४१०,५२० पाउन्भूय [प्रादुर्भूत] ओ० ७६ से८१. रा० ६१, पहरणरयण [प्रहरण रत्न रा० २४६,३५५. १२०,६६४,६६७,७१७,७२२,७७७,७८७,७६५ जी० ३।४१०,५२० पाउया पादुका] ओ० २१,५४,६४. रा० ५१, पहसित | प्रहसित ] जी. ३१३०७,३६४,६३४,६३६, १४ पाओवगमण [प्रायोपगमन] ओ० ३२ पहसिय प्रहस्ति | रा ० १३७,१८३. जी० ३१३५५, पाओवगय प्रायोपगत ! ओ० ११७ ३५६,३६८ से ३७१,५८६,६७३ पागडभाव {प्रकट भाव] औ० २७. रा० ८१३ पहा प्रभा] ओ० १२,२२. १० १५४. पागडिय [प्रकटित ] ओ० ५०,५१ जी० ३२५८६ पागय [प्राकृत] जी० ३।८३८.३ पहाण [प्रधान ओ० २३,२५,१४६. ० ६८६, पागसासण [पाकशासन ] जी० ३।१०३६ ८०६,८०७. जी० ३.५६२,५६७ पागार प्राकार ओ० १. रा० १२१,१२८,१७०, ‘पहार प्र+धारय् ]-पहारेज्जा. ओ० ४०. ६५४,६५५. जी० ३१३५२, ३५३,३५८, ___ --हारेत्थ. ६५,२८८.जी० ३।४५४ पहाविय प्रधावित ] ओ० ४६ पाड [पातम्] --पाडेइ. रा० ७६५ पहिट [प्रहृष्ट ] ओ० ५१ पाउंतिय [प्रात्यान्तिक] रा० ११७,२८१ पहिय पिथिक] रा० ७८७,७८८ पाडलि [पाटलि ] ओ० ३०. जी. ३१२८३ पहियकित्ति प्रथितकीति ] ओ० ६५ पाडिसुय [प्रतिश्रुन] जी० ३१४४७ पहीण [प्रहीण] ओ० ७२ पाडियक्क [प्रत्येक ओ० ५५,५८,६२,७० पहु [प्रभु] ओ० ११६. रा० ७६१ पाउिहारिय प्रातिहारिक ] ओ० १२०,१६२. पहेलिया [प्रहेलिका] ओ० १४६. रा० ८०६ रा० ७०४,७०६,७११,७१३,४७६ पाई [पात्री | रा० २५८,२७६ पाडिहेर [प्रातिहार्य ] ओ०२ पाईण प्राचीन रा० १२४. जी० ३३५७७,६३६, पाण[पान] ओ०१४,११७,१२०,१४१,१४७, १०३६ १४६,१५०,१६२. रा० ६७१,६८६,७०४, पाईणवात प्राचीनवात] जी०११८१ ७१६,७५२,७६५,७७४,७७६,७८७,७८६, पाईणवाय [प्राचीनवात | जी० ३१६२६ ७६४,७६७,७६६,८०२,८०८,८१०,८११ पाउ [प्रादुम् ] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, पाण [प्राण] ओ०८७,१६१,१६३. जी० ३३१२७, ७८८ ६७५,१०२८,११३० पाउग्ग [प्रायोग्य] रा० ६६६ पाणक्खय प्राणक्षय ] जी० ३१६२६,६२८ पाउण प्र+आप ].---पाउणइ. ओ०१५२. पाणत [प्राणल ] जी० ३।१०७६,१०८८ -पाउणंति. ओ० ६४.-पाउणिहिति. पाणय [प्राणत ओ० ५१,१६२. जी० २१०३८, ओ० १४०. रा० ८१६ १०५३,१०६६,१०६८ पाउणित्ता प्राप्य | ओ०६४. रा० ८१६ पाण विहि [पागविधि ] मो० १४६. रा० ८०६ 1 पाउन्भव प्रादुस्+भू-पाउम्भवति. पाणाइवाय प्राणातिपात ] ओ० ७१,७६,७७, रा० १६--पाउन्मह. रा० १३ ११७,१२१,१६१,१६३. रा०६६३,७१७, –पाउभवित्या, ओ०४७ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ पाणाइवायवेरमण-पारिणामिया पाणाइवायवेरमण [प्राणातिपात विरमण] ओ०७१ पायतल [पादतल] रा० २५४. जी० ३३४१५ पाणि [पाणि] ओ० १५,१६,३७,६३,६४,१४३. पायत्त [पादात] ओ० ६४ रा० १२,६६४,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१, पायवाणियाहिबइ पादातानीकाधिपति, पादात्यनीजी० ३३११८,५६२,५६६ काधिपति ] २० १३,१६ पाणिलेहा {पाणिरेखा] ओ० १६. जी० ३१५९६, पायत्ताणियाविति पादातानीकाधिपति, ५६७ पादात्यनीकाधिपति | रा० १४ पाणिय [पानीय] ओ० ४६ पायत्ताणीय [पादातानीक, पादात्यतीक। पाताल [पाताल जी० ३१७२६,७२८ ओ० ६४ पाती पात्री] रा० १५१. जी० ३।३२४,३५५, पायत्ताणीयाहिवइ पादातानीकाधिपति, पादात्यनी काधिपति | रा० १५ पाद [पाद] रा० २८१,२८८. जी० ३१३११, पायत्ताय [प्रवृत्तक, पादारतक] रा० १७३ ४०७,४१५,४४७,४५४ पायपीढपादपीठ ओ० २१,५४. रा० ८,३७, पादचारविहारि | पादचारविहारिन् ] जी० ३.६१७ ५१,७१४. जी. ३:३११ पादपीढ [पादपीठ ] ओ० ६४ पायपंछण पादो छा] ओ० १२०,१६२. पादव [पादप] जी० ३३०३ रा० ६६८,७५२,७८६ पामिच्च {पामृत्य] ओ० १३४ पायबद्ध पिादबद्ध] रा० १७३. जी० ३२८५ पामोक्ख [प्रमुख, प्रमुख्य] रा० ३५५,७८७,७८८. पायरास [प्रातराश] रा०६८३ जी० ३१४१०,५२० पायव [पादप] ओ०५,८,९,१२,१३. रा० ३,४, पाय [पात्र] ओ० ३३ १३३,८०४. जी० ३१२७४ पाय [पाद] ओ० १५,३७,५२,६३,६६,६०,१११ पावविहारचार [पादाविहारचार] ओ० ५२. से ११३,१३७,१३८,१४३. रा० १२,३७, रा०६८७ से ६८९,७०० २४५,६५६,६७२,६७३,७५८,७५६,८०१. पायचीट [पादपीठ] ओ०१६ जी. ३१११८,५५६ पायसीस [पादशीष ] जी० ३।४०७ पायए [पातुम् ] ओ० १३४,१३५ पायसीसग [पादशीर्षक] रा०३७,२४५. जी० ३।३११ पायंचणी {पादकाञ्चनी] जी० ३१५८७ पायाल [पाताल ] ओ० ४६. जी० ३१७२८, पायंत प्रवृत्त, पादान्त] रा० ११५ पायंताय [प्रवृत्तक, पादान्तक] रा० २८१ पारंचियारिह पारञ्चिताह ] ओ० ३६ पायच्छिण्णग [पादच्छिन्नक] रा० ७५१ पारग [पारग ओ०६७ पायच्छिण्णय [पादच्छिन्नक रा० ७६७ पारगय | पारगत ) ओ० १६५।२० पायच्छित्त [प्रायश्चित्त ] ओ०२०,३८,३६.५२, पारगामि [पारगामिन् । ओ० २६ ५३,७०. रा० ६८३,६८५,६८७ से ६८९, पारब्भमाण [प्रारभमान] ओ० ११७ ६६२,७००,७१६,७२६,७५१,७५३,७६५, पारसी पारती] ओ०७०. रा०८०४ ७६४,८०२,८०५ पारावय [पारापत] जी० ३१३८८ पायछिण्णा [पादछिन्नक] ओ० ६० पारिजातकवण [पारिजातक वन] जी० ३१५८६ पायजाल [पादजाल ] जी० ३६५६३ पारिणामिया पिारिणामिकी] रा०६७५ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारियाय-पासायघडेंसक ६८५ पारियाय [पारिजात] रा० ४५ पारिहेरग प्रातिहायक जी० ३१५६३ पारी [दे० पारी] जी० ३१५८७ पारेवय [पारापत] रा० २६. जी० ३१२७६. 4 . पाल [पालय ....पालथाहि. ओ० ६८. जी० ३१४४ : ...-पालेति. श्रो०६१---पालेहि रा० २८२ पालंब [प्रालम्ब] ओ० २१,५२,५४,६३,१०८, १३१. रा०८,२८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१५६३ पालग पालक ] ओ० ५१ पालित्ता पालयित्वा] ओ०६१ पालियाय [पारिजात ] १० २७. जी० ३।२८० पालेमाण [पालयत् ] ओ० ६८, रा० २८२,७६१. जी० ३६३५०,४४८,५६३,६३७ पाव पाप] ओ०७१,७६ से ८१,१२०,१६२. रा०६७१,६६८,७५२,७८६ पाव [प्र+आप्]--पावइ, ओ० १६५।१४ -पाविज्जामि. रा० ७५१-पाविज्जिहिह. रा० ७५१ पावकम्म [पापकर्मन् ] ओ० ८४,८५,८७,८८. रा० ७५०,७५१ पावकम्मोवएस [पापकर्मोपदेश] ओ० १३६ पावग [पापक] ओ० ७४१६ पाक्य [पापक ओ० ७१ पावयण [प्रवचन] ओ० २५,७२,७६ से ८१, १२०,१६२,१६४. रा० ६६५.६६८,७५२, ७८६ पावसण [पापशकुन ] रा० ७०३ पास (पार्श्व ओ० १६. रा० १३१ से १३८, २५६,८१७. जी० ३१३५८,४१५,५६६,५६७, ७७५ पास [पाश] रा० ६६४. जी० ३१५६२ पास | दश्]-पास इ. ओ०५४. रा० ७१४. जी० ३१११८-पासंति. ओ०५२. रा० ७६५. जी० ३११०७- पास ति. रा०७. जी० ३१२००-पाससि.० ७७१.. पासह. रा०६३–पासामि. रा० ७६६-पासिज्जा. रा० ७७६. -पासिज्जासि. रा० ७५१. --- पासेज्जा. जी० ३।११५ पासंत [पश्यत् ] रा० ७६४ पासगापाशक ) ओ० १४६. रा०८०६ पासग्गाह पाशग्राह] ओ०६४ पासणया [दर्शन] रा० ७५० से ७५३ पासतो पार्श्वतस् ] ० ५५ पासपाणि [पाशपाणि रा०६६४ पासमाण [पश्यत् ] रा ० ८१५ पासवण |प्रस्त्रवण] रा० ७६६ पाससूल [पावशूल, जी. ३१६२८ पासाइय [प्रामादीय, प्रासादिक] जी० ३।२८६ से २५८,२६० पासाईय [प्रासादीय, प्रासादिक ओ० ७२. रा० २०,३७,१३०,१३३,१३६,२५७. जी० ३।२६६, ३०६,३११,४०७,४१०,५८५,५६६,५६७, ६७२,११२१ पासाण [पाषाण] रा० १७४. जी० ३१२८६ पासाद [प्रासाद] जी० ३७६२ पासादवडेंसग [प्रासादावतंसक ] जी० ३७६२ पासादीय [प्रासादीय, प्रामादिक] ओ० १,७,८, १० से १३,१५,१६४. रा० १,१६,२१ से २३, ३२,३४,३६.३८,१२४,१३७,१४५,१५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३,२४५,२४७, २४६,६६८,६७०,६७२,६७६,६७८,७००, ७०२. जी० १२३२,२६१,२६६,२७६,३००, ३०३,३०७,३८७,३६३,५८१,५८४,६३६, ८५७,८६३,११२२ पासाय [प्रासाद] रा० १४,७१०,७७४. जी० ३१५६४,६०४ पासायडिसय [प्रासादावतंसक जी० २७७० पासायव.सक प्रासादावतंसक ] जी० ३१३६६, ३७० Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ पासायवर्डेसन [ प्रसादावतंसक ] रा० १३७, १८६, २०५,२०७, २०८, ७७८. जी० ३।३०७ से ३०६, ३१४,३५५,३५६,३६४,३६७, ३६९ से ३७३, ६३४,६३६,६८६,६८६,६६२ से ६६८, ७६२ पासावर्डेस [प्रासादावतंसक ] रा० २०४ पासवर्डेस [ प्रासादावतंसक | सं० २०४ से २०६. जी० ३।३५६,३६४,३६८ से ३७१, ६६३,६७३,६८५,६८८,७३७ पासावचिचज्ज [ पाश्र्वापत्य ] रा० ६८६,६८७, ६८९,७०६,७१३, ७३३ पासि [ पार्श्व ] ओ० ६६. जी० ३१३०१ से ३०७, ३१५,३५५,४१७,६३६,७८८ से ७६०, ८३६, ८८६ पासितए [ द्रष्टुम् ] रा० ७६५ पासिता [ दृष्ट्वा ] ओ० ५२. रा० ८. जी० ३. ११८ पासेत्ता [ दृष्ट्वा ] रा० ६८ पाहुड | प्राभूत] रा० ६८०,६८१,६८३,६८४, ६६६,७००,७०२,७०८,७०६ पाहुणगभत्त [ प्राणकभक्त ] ओ० १३४ पाहुजिज्ज [ प्राहवनीय ] ओ० २ पि [ अपि ] ० १० पण [ प्रियदर्शन ] ओ० ६३ पिउ | पितृ] ओ० १४. रा० ६७१,७७३ पिंगल | पिङ्गल ] ओ० ६३ frगलक्ख [ पिङ्गलाक्ष ] जी० ३१२७५ पिंगलक [ पिङ्गलाक्षक ] ओ० ६ पिछि | निच्छिन् | ओ० ६४ पिंजर [ पिञ्जर] जी० ३१८७८ fiscal [पिण्डहरिद्रा ] जो० ११७३ पंडि [ पिण्डि ] ओ० ५,८,१०. १० १४५. जी० ३।२६८,२७४ पिडिम [ पिण्डिम ] ओ० ७,८,१० जी० ३१२७६ पिडियग्गसिरय [पिण्डिताशिरस्क] ओ० १६ पिंडियसिर पिडितशिरस् ] जी० ३१५९६ पासायवडेंसग-पियंगु पिच्छज्य [ पिच्छध्वज | रा० १६२. जी० ३३३३५ पिच्छणधरण [ प्रेक्षणगृहक ] रा० १०२, १८३ पिच्छाघरमंड [ प्रेक्षागृहमण्डप ] रा० ३२, ३३,६६ पिट्टण [ पिट्टन ] ओ० १९१,१६३ पिटुओ [ पृष्ठतस् ] ओ० ६६. जी० ३,४१६ पिट्छंतर [ पृष्ठान्तर ] रा० १२,७५८,७५६ जी० ३१११८,५६८ पिट्ठतो ( पृष्ठतस् ] रा० २५५, २६६, २६० जी० ३।४५५,४५६ fugees [freereas ] जी० ३,७८ पिट्टिकरंड [ पृष्ठिकरण्डक ] जी० ३१२१८,५६८ पिडग [पिटक ] जी० ३१८३८ १४ से ६ पिडय [पिटक ] जी० ३१८३८१३,५,६ पिनद्ध [ पिनद्ध] ओ० १७,६३. रा० ६६,७०, १३३,६६४,६८३. जी० ३।३०३, ५६२ पिणय [पिनक ] रा० ७६१ पिणय [ पीनक ] जी० ३।५८७ / विद्धि [ प + न पि + नि + धा ] --पिणिदेइ. -१० २८५. जी० ३।४५१. -- पिणिद्वेति. रा० २८५. जी० ३१४५१ पिणिद्धre [पिनद्धम् ] ओ० १०८ पिषिद्धेत्ता [पिना ] रा० २८५. जी० ३।४५१ पितिपिंड निवेदन [ पितृपिण्डनिवेदन | जी० ३।६१४ पित्तजर [वित्तम्बर] रा० ७५ वित्तिय | पैत्तिक | ओ० ११७. रा० ७९६ विषाण | विधान | रा० १३१,१४७, १४८. जी० ३।४४६ पिबित्तए [ पातुम् ] ओ० १११ पिय | प्रिय ] ओ० १५,२०,५३,६८,११७,१४३. रा० ७१३,७५० से ७५३,७७४,७६६. जी० १११३५; ३।१०६०, १०६६ पिय | पितृ ] ओ० ७१. / पिय | पा] - पिज्ज ० ६७१. जी० ३।६११ रा० ७८४ - पियइ. रा० ७३२ पियंगु [प्रियङ्गु ] ओ० ६,१०. जी० ३३८८, ५८३ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पियतराय-पुंज पियतराय [प्रियत रक] रा० २५ से ३१,४५. जी० २७६,२८१.६०,६५५,६८१,६८३,६६०, ३१२७८ से २८४,६०१ ६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६, पियदसण | प्रियदर्शन] रा० ६७२,६७३,८०१. ७१८,७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३१४४३, जी०३१८०८ ४४५,४४७,५५५ पियय [प्रियक] मो० ६,१० पीठ पीठ | ओ० २७,१२०,१६२. ग. ६६८, पियर | पितृ] रा० ८०२,८०३,८०५,८०८,८१० ७०४,७०६,७११,७१३,७५२,७७६,७८६ पियरक्खिया पितृरक्षिता] ओ० ६२ पोढग्गाह | पीठनाह] ओ०६४ पियाल [प्रियाल| जी० ३।३८८,५८३ पीढमद | पीढमद ओ०१८. रा० ७५४,७५६, पिरली पिरली] जी० ३१५८८ ७६२,७६४ पिरिपिरिया {पिरिपिरिया। रा०५१,७७ पोण [पीन] ओ० १६. रा० १३३. जी० ३.३०३, पिरिपिरियावायग [पिरिपिरियावादक] रा० ७१ ५६६,५६७ पिव [ इव] ओ० २७. १० १७. जी० ३१४५१ . पीण [ पीनम्] -पीणंति. जी० ३३४४७. पिवासापिपासा ] ओ० ४६,११७. रा० ५६६. --पी0ति. रा० २८१ जी० ३।१०६,१२७,१२८,५६२,१११४ पीणिज्ज प्रीणणीय ] ओ० ६३ पिवासिय पिपासित रा० ७६०,७६१,७७४. पोत पीत ] जी० ३१५६५ जो० ३।११८,११६ . पोतपाणि [पीतपाणि] रा० ६६४ पिसाय | पिशाच ओ० ४६. जी० ३।१७,२५२,२५३ पीय [पीत ] रा० ६६४. जी० ३१५६२ पिसायकुमार [पिशाचकुमार] जी० ३।२५३ पीयकणवीर पोतकणवीर रा० २८. जी. ३१२८६ पिसायकुमारराय (पिशाचकुमारराज जी० पीयपाणि [पीतपाणि] जी० ३१५६२ ३६२५२ से २५६ पीयबंधुजीव [पीतबन्धुजीव ] रा० २८. पिसायकुमारिद [पिशाचकुमारेन्द्र] जी० ३१२५३ जी० ३।२८१ से २५६ पीयासोय पीताशोक] रा० २८. जी० ३१२८१ पिहडग । पिठरक जी० ३१७८ पीलियम [पीडितक] ओ०६० इपिहा (पि+धा--पिहावेमि. रा०७५४. पोलु [पोलु] जी० १७१ ---पिहेइ. रा० ७५५ --पिहेज्जा. रा० ७७२ पोवर पीवर) ओ० १६. रा०६६,७०. पिहाण | पिधान रा०२६०. जी. ३१३०१ ___ जी० ३६५६६,५६७ पिहाणय पिधानक] रा० ७५४,७५६ पीह स्पृिह.] - पोहंति. ओ० २०. ---पीहेइ. पिहुणमिजिया [दे० पिहुणमज्जा रा० २६ .. रा० ७१३. --पीहेंक्ति. रा० ७१३ पिहुल [पृथुल ] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ पुंछणी [पुच्छणी रा० १३०,१६०. जी० ३१२६४. पोइगम {प्रीतिगम] ओ० ५१ पोइदाण [प्रीतिदान] ओ० २१,५४,१४७. रा० पुंज [पुज] ओ० २,५५. रा० १२,३२,३८,१६०, ७१४,७७६,८०८ २२२,२५६,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००, पीइमण [प्रीतिमनस्] ओ०२०,२१,५३,५४,५६,. .. ३०५,३१२,३५५. जी. ३।३१२,३३३,३५२, ६२,६३,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, ३०१,४१७,४४७,४५७ से ४६२,४६५,४७०, १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, ४७७,५१६,५२०,५५४,५८०,५६०,५६१,८६४ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पुंडग-पुढविक्काइय पुंडग [पुण्ड्रक] जी० ३१८७८ पुच्छणा [प्रच्छना] ओ० ४३ पुंडरिंगिणी [पुण्डरीकिणी] जी० ३।६१५ पुच्छा पृच्छा] ओ० १६०. जी० ११६१, ३१४, पुंडरीय { पुण्डरीक ओ० १२,१६,२१,५४. १२,३५,४१,४३,८२,९६ से १०२,११३ से रा० ८,२७६,२६२. जी० ३।११८,११६,४५७, ११५,१२५,१५५,१५६,१६२,१६३,१६६, ५६.६,६२६ १६८,१६६,१८७ से १६१,२३३,२३४,२४३, पुररीयद्दह [पुण्डरीपंद्रह | जी० २४४५ ७२२,५३६, ८२०,८३०,८३४,८३७,६५६,६५७. पुक्खर पुष्कर ओ० १७०. रा० २४,६५,१७१. ६५६,६६०,६६८,६७८,९७६,१०११.१०४१, जी० ३१२१८,२७७ ३०६,५७८,६७०,७५५, १०४४,१०४५,१०५२,१०५६,१०६२ से १०६४, ७७५,८१६,८१७,८२१ से ८२५,८२७,८२६ से १०६६,१०७४,१०८६,१११८,११२६,११३२ ८३१,८४८,८८३ पुक्खरकणिया [पुकरणिका] जी० ३१८६२६ पुच्छितव्य [प्रष्टव्य] जी० ३।३६,७७ पुक्खरगय [पुष्करगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ पुच्छिय [पृष्ट ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, पुक्खरणो पुरकरणी] जी० ३१९०१,६१०,६११, ७५२७८६ ६१४ से ६१६ पुच्छियध्व [प्रष्टव्य] जी० ३।२४४ पुषखरस्थिभग [ पुष्करस्थिभुक] जी० ३१६५४ पुट्ट [स्पृष्ट ] ओ० १६५।६,१०. जी. ११४१, ३१२२,५७१,५७३,५७७,७१५,७१७,८०३, पुक्खरस्थिभुय [पुष्करस्थिभुक ] जी ० ३३६४३,६५४ ।। पुक्खरद्ध [या कराई ] जी० ३।८३१ से ८३४ ८१६,८२८ पक्खरपत्त करपत्र ओ० २७. रा०८१३ पुट [पुष्ट] जी० ३१५९७ पुखरवर | पुष्करवर] जी० ३१७७४,७७५ पुटलाभिय [पृष्टलाभिक ] ओ० ३४ पुक्खरवरग [ पुष्करवरग] जी० ३१७७४ पुट्टि [पुष्टि] जी० ३१५६२ पुखरिणी (पु' करिणी] ओ० ६,६६. रा. १७४, पुड [पुट] रा० ३०. जी० ३।२८३,१०७८ १७५.१८०,२३३,२३४,२७३,२८८,३१२,३१३ पुढवि [पृथिवी] ओ० १८६,१६१ से १९५. ३५०,३७६,४३५,४६६,५५६,६१६,६५६. जी० श१२,१२१ से १२५,२।१००,१०८, जी०३।११८,११६,२७५,२८६,३६५,३६६, १३०,१३५,१३८,१४८,१४६:३।१६१,१६२, ४१२,४२५४३८,४५४,४७७,५१५,५२३, १६५,१६६,३०३,७७५,६३७,६७४; १२०,३३ ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३ से ६८६ पुढविकाइय [पृथ्वीकाधिक ] जी० १११२,१३,६२, पुक्खरोद | पुरोद] जी० ३.४४५.७७५,८२५, १२८, २०१०२,१११.१३६,१३८,१४६ ; ८४८ से ८५१,८५४ से ६५६,८५६,८७६,६४६, ३२१३१ से १३५.१८३.१८४,१६४१९५; १४६९५७,६६२,९६४ ५१,२,५,८,१८ से २०,८१५६१८२,१८४, पुक्खरोदा [पुष्कमोदक] जी० ३१४४५ २५६,२५७,२६२,२६३,२६६ पुक्खरोदय | पुष्करीद ० २७६ पुढविकाल [पृथ्वी काल] जी० ५।१७,२२,३० पुग्गलपरियट्ट [ पुलारिवर्त! जी० १३१३६ ८.३,६७७,८५.६६ पुच्छ [प्रच्छ] ---पुच्छ३. २० ७१६.-.पुछोत. पुढविक्काइय [ पृथ्वी कायिक] जी० १:६७; रा० ७१३.--पुन्छसि. रा०७३७. २११३६,१४९, ३३१२६,१३२,५।१२,२०, -पच्छिर सामोरा० १६ ८.१,३ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुढविसिलापट्टग पुरत्या भिमुह पुढविलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक] रा० १८५. जी० ३।२६७,८५७,८६२ पुढविलापट्ट [ पृथ्वी शिलापट्टक ०४ पुढवी [पृथिवी ] रा० १२४,१३३,७५५,७५७. जी० २।१२७, १४८, १४९, ३२ से ६, ११ से ३५, ३७ से ४०, ४२,४४ से ५७,५६ से ६६, ७३ से ८१, ८३ से ६८, १०३,१०४,१०६ से ११२,११६,११७,१२०, १२७, १२८ १६ १५, १८५ से १६१,२३५, २५७,६००,६०१, १००३,१०३८,१०५७ से १०५६, १०६३, १०६५, १०६६,११११: ५।१७ पुढवाइयत [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।१२८ पुढक्काहत्त [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।११२८, ११३० पुढवीसिलापट्टग [ पृथ्वीशिलापट्टक ] जी० ३।५७६ पुढवी सिलापट्ट | पृथ्वीशिलापट्टक ] रा० १३ पुण [पुनर् ] ओ० ५२. रा० ७५० जी० २१५० पुण [ पू] - पुर्णिज्जइ. रा० ७८५ पुणभव [ पुनर्भव] ओ० १६५ पुणो [ पुनर् ] ओ० ६३. जी० ३८३८ । १४ पूण | पूर्ण ] २० १७४, २८८,७६३. जी० ३।११८, ११६, २०६, ४५४,५८६,७८४,७८७,८७८ पुण्ण [पुन्य] ओ० ७१.१२०,१६० रा० ६६८, ७५२,७५३,७७४,७८६ पुण्णकलस [ पूर्णकलश ] ओ० ४८,६४. रा० ५० पुण्णप्पभ [ पूर्णप्रभ ] जी०३८७८ पुण्णरयमाण [ पूर्णप्रमाण ] जी० ३१७८४,७८७ पुष्णभद्द | पूर्णभद्र ] ओ० २,३, १६ से २२, ५२, ५३, ६५,६६,७० पुण्णमासिणी [पौर्णमासी, पूर्णमासी ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८,७५२, ७५६. जी० ३१७२३, ७२६ पुण्णरत्ता [ पूर्णरक्ता] ओ० ७१. रा० ६१ पुण्णा [पुन्दाग ] जी० १/७१ ६८६ पुत [पुत्र ] रा० ६७३, ७६१. जी० ३६११ पुत्ताणुपुत्तिय [ पौत्राणुपुत्रिक ] रा० ७७६ पुप्फ [पुष्प ] ओ० २,६,१६,४७. ५५,६७, ६२, ६४. रा० १२,१३,२६, ३२, १५६, १५७, २५८,२७६ से २८१,२६१,२६३ से २६, ३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४,६५७, ६७०, ७७६. जी० ११७१ ३.१७१, २७५, २८२,३२६,३३०, ३७२, ४१९, ४४५ से ४४८, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६, ५२०,५४७,५५४, ५८०,५८१,५८६,५६१,५६६, ५६७,६००, ६०२,८३८/२,१५,८४२८७२ पुप्फग [ पुष्पकः ] ओ० ५१ पुष्पचंगेरिया [ पुष्पचङ्गेरिका रा० १२ पुष्कछज्जिया [ पुष्पछाधिका ] रा० १२ पुष्पदंत [ पुष्पदन्त ] जी० ३३८६३ पुप्फमंत [ पुष्पवत् ] ओ०५.०३।२७४ पुप्फबद्दलय [ पुप्पवादलक] रा० १२ पुष्कासव [ पुष्पाराव ] जी० ३१८६० पुष्काहार [ पुष्पाहार ] ओ० ६४ पुफिय | पुष्पित ] रा० ७८२ पुष्कुतर | पुष्पोत्तर ] जी० ३।६०१ goफोदय [ पुष्पोदक ] ओ० ६३ पुमत | पुंस्त्र ] ० १४१. १०७८६ पुर [ पुर] ओ० २२. रा० ६७४, ६६५, ७६०, ७६१ पुरओ | पुरतम् ] ओ० १६,६४,६६, ७०. रा० २०, १२४,१३६ से १६१, १७६, २११,२२१. जी० ३।३२७,३५६, ३७४, ३७६, ३८०, ३८५, ३६२,३६५,४१६,८७ पुरओकाउं [ पुरस्कृत्य ] ओ० २५,१६४ पुरच्छिम [ पौरस्त्य ] जी० ३१३०० पुरतो | पुरतस् ] रा० ४१ से ५६,२१५,२३३, २५७, २५८,२६१, ८०२. जी० ३२८८,३१६ से ३२६,३६३, ४५७, ६४१, ८३, ८६७, ८६६, ६०१ पुरत्याभिमुह [ पुरस्तादभिमुख ] ओ० २१,५४, Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७. रा० ४७,२७७,२८३,२८६,६५७,७९६, जी०३८४३,४४६,४५२,५५७ पुरत्यिम [पौरस्त्य] ० १६,४२,४४,१२६,१७०, २१०,२१२,२३५,२३६,२४२,६५.६. जी० ३।३००.३४०,३४५,३५१,३७३.३६७, ३६८,४०४,४४३,४४६,५५६,५६२,५६८, ५७७,६३२,६४७,६६१,६६६,६६८,६७३, ६८२,६६४,६६७,६६८,७०८,७१०,७३६, ७२६,७६२,७६४,७६६,७६८ से ७७०,७७२, ७३,७५३,७७६,८००,८१४,८२५,८५१, ८-२,८८५.६०२,६३६,६४४,१०१५, पुरथिमिल पोरस्त्य] रा० ४३,५६,२७७, २८३,२८६,२८८,२६१.२६८,३०३,३०८, ३१६,३२४,३२६,३३२ से ३४३ ३४७ से ३५१.३६५,४१४,४५४,४५४,५१५,५३४, ५७५,५६४,६३५,६१ ६.६५७,६६४. जो०३१३३ से ३५,३३,२१६.२२२.२२३, २२७,४४३,४४५,४५२,४५४,४५३,४६३, ४६,४७३,४८४,४८६,४६४ ४६७ से ५०८, ५१२ से ५१६,५२५,५२६,५३१,५३३,५३६, ५४०.५४६,५४७,५५३,५५६,५५७,५७७, ६६८,६७३,६८६,६६२,६६३,७६८,७७०, ७३२,७४,७७६,७७८,६१० पुरवर वर ! i० १६ जी० ३१५९६ परापरा रा० १८५,१८७. जी०३।२१७, २६७,२६८,३५८,५७६ पुरिमताल पुरिमताल' ओ० ११५ पुरिस | 'पुरुष ओ० १४,१६,१७,१६,५२.६३,६४, १६५।१८. रा०८ २८,२६२,६७१,६८१ से ६.३,६८७ सु ६६१ ७००,७०६,७१४ ७१६,५३२.७३५,७३७,७५१,७५३ ते ७५६, ७५८ से ७६२,७६४,७६५,७६८,७६६,७७२, ७७४,७७५,५६७,७८८. जी० २.१,७५ से ८६० से ३,९५,९६,६८,१४१ से १५१; पुरस्थिम-पुन्व ३११२७१५,१४८,१४६,१६४,४५७ पुरिसक्कार [पुरुषकार ओ० ८६ से १५,११४, ११७,१५५ १५७ से १६०,१६२,१६७ पुरिसपुंडरीय [पनपपुण्डरीक] ओ० १४. ग०६३१ पुरिसलक्षण पुमालक्षण | ओ० १४६. ग० ८०६ पुरिलिगसिद्ध | (रुषलिङ्गसिद्ध जी० १०८ पुरिसवग्ध युध्यमान ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवर पुरुषवर ओ० १४. रा० ६७१ पुरिसवरगंधह स्थि । सुरुषवरगन्धहस्तिन् | ओ. १४, १६,२१,५४. : ० ८,२६२,६७१ जी. ३.४५७ पुरिसवरपुंडरीय [ 'पुरुषवरपुण्डरीक ओ० १६,२१, ५४. रा ८,२६२. जी. ३१४५७ पुरिसवेद | जी० १।१३६; २।६७,६८; १२३,१२७ पुरिसवेदग [ पुरुषवेदक ] जी० ६.१३० पुरिसवेय पुरुषवेद ] जो० ॥२५ परिसवेयग [पुरुपवेदक ] जी० ६।१२१ पुरिससोह [पुरुषसि | ओ० १४, १६, २१, ५४. रा० ८, २६२, ६७१. जी० ३।४५७ पुरिसासीविस [पुरुषाशीविष] ओ० १४. रा० ६७१ परिसुत्तम [पुरुषात्तम रा०८ पुरिसोत्तम पुरुषोत्तम ! ओ० १६,२१, ५२, ५४. रा० २६२. जी० ३४५७ पुरोवग [पुरंपग ओ० ६, १० पुलंपुल [दे० ओ० ४६ पुलग पुलक आ० ८२. रा० १०,१२, १८, ६५, १६५, २७६ पुलय (पुलक | जी०३१७ पुलाकिमिय | पुलाकृमिक | जी० श६४ पुलिंदी मुनिन्दी | ओ० ७०. रा. ८०४ पुलिण ! लिन] र६० २४५. जी० ३।४०७ पुष [पूर्व | ओ० ७२, ११६, १५६, १६७,१८२. रा० ४०, १३२,१७३,६८५,७७२. Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुव्वंग-पेम जी० ३३२६५, २८५, ३५८, ८४१८८१,६८८, ६८६ पुवंग [ ए ] जी० ३८४१ goaकोड [ पूर्व ] जी० १।१०१. ११६, १२३, १२४, २ २२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ से ६१,८३,८४,१०६, ११३, ११४, ११६.१२२ से १२४, ३।१६१,१६२,११३५:६६ ७११२ ६१४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३, २१२,२२५,२३८,२७३ पुरुवकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८८ geet [ पूर्वक्रम ] जी० ३३८८० पुणत्थ | पूर्वन्यस्त] रा० ४८. जी० ३।५५८ से ५६०, ५६२ पुवपुरिस | पूर्वपुरुष] ओ० २ पुवभणित | पूर्वभणित ] जी० २००१ पुण्वभव | पूर्वभव ] रा० ६६७ पुव्वरत [ पूर्वरात्र ] रा० १७३ पुव्वविदेह ( पूर्वविदेह | जी० २ २६,५६,६५,७०, ७२,८५,६६,११५१२३, १३२, १३७, १३८, १४७, १४६ ३।४४५, ७६५ युवाणुपुच्ची | पूर्वानुपूर्वी । ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पुष्वाभिमु | पुर्वाभिमुख ] रा०८ पुण्यावर | पूर्वापर ] रा० १६३, १६६. जी० ३।१७४, ३३५,३५५ ३५७,६५८, ७२८, ७३३, १००६, १०२३ पुवि [ पूर्व ] ओ० ११७. २०६३, ६५, २७५, २७६,७८१ से ७८७. जी० २१२५०, ३१४४५, ४४२ पहल [ पृथक्त्व | जी० १ १०३, १११, ११२, ११६, १२४, १२५, २४८ से ५०, ५३, ५४,५६,८२ से ५४,६२,६३,१२२ से १२५, १२८ ३ ११०, ११७,१११५,१११६, ११३५, ११२७, ४ । १५; ५।१३ २६, ६६, ११:६१८६,६३,१०२, १०६, १२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४, २७३, २५० पुराविषक [ कन्वत्रितर्क ] ओ० ४३ पूइकम्म [ पूतिकर्मन् ओ० १३४ see [ पूजयितुम् ] ओ० १३६ पूय ( पूजित ] ओ० १४. २०६७१ gst | प्रतिक ०६, १२ जी० ३६२२ पूय [ पूत ] ओ० ६८ पूयण | पूजन ] ओ० ५२. ० १६,६८७,६८६ व्यणिज्ज [पुजनीय ] ० २. रा० २४०, २७६. जी० ३।४०२, ४४२ ६६१ पूयफलिवण (पलीवन ] जी० २०५८१ पूर | पुरय् ]--पूरेड. ओ० १७४ पूरिमरिम, पूर्थ्य ] ओ० १०६,१३२. रा०२८५. जी० ३२४५१,५६१ पूस | पुण्य | जी० ३१८३८३२ समाण | पुष्यमाण ] जी० ३।२७७ समाजय [ पुण्यमानव | ओ० ६८ समाव | यमाणव । रा० २४ पेच्च प्रेत्य ] ओ०प० पेच्चभव | प्रेत्यभव ] आं० ५२. रा० ६८७ पेणधर [ प्रेक्षण गृह ] जीं ३२६४ पेच्छणिज्ज | प्रेक्षणीय | ओ० १. जो० ३।५६७ पेच्छाघर | प्रेक्षागृह ] जी० ३३५६१,६०४ पेच्छाघरमंडव [ प्रेक्षागृह मण्डप ] १० ६४,२१५, २१६.२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५, ३३८ से ३४२. जी० ३१३७६३७६, ३८०, ४१२, ४६५ से ४६६, ४५६ से ४६०, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ पेच्छिज्जमाण | प्रेक्ष्यमाण ] ओ०६६ पच्छित्तए | प्रेक्षितुम् | ओ० १०२,१२५ पेज्ज | प्रेपम् ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. रा० ७६६ पेज्जबंधण [ प्रेयं बंधन | जी० ३।६११ पेज्ज विवेग [क] ओ० ७१ पेढ पीड ] जी० ३१६६८ पेम | प्रेम | ओ० १२०, १६२. ० ६६८,७५२, ७८६ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पेम्म-फलय पोराण पुराण] ओ० २.१० ११,५६,१८५, १८७,६७८.जी०१२५०; ३३२१७,२६७,२६८, ३५८,५७६ पोरेकव्व | पुर:काव्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पोरेवच्च पीरपत्य, पीरोवृत्य | ओ० ६८. ग० २८२. जी० ३१३५०,५६३,६३७ पोस [पोस] जी० ३.५६८ पोसह पोपध] ओ० १२०,१६२. रा० ६७१, ६६८,७५२,७८७,३८६ पोसहसाला गौरधशाला | स० ७६६ पोसहोववासपोपधापवास ओ०७७,१२०,१४०, १५७. 10 ६७१,७५२,७६७,७८९ पेम्म प्रेगन् रा० ७५३ पेया ! पेसा] रा० ७१,७७ पेयावायग पेयावादक] रा०७१ पेरंत | पर्यत] ओ० १६२. जी० ३१२८५,३००, ५६६,५६८,५६६,७०८,७११,८००,८१४, ८२५,८५१,६३६,६४४ पेलव पिलव) रा०२८५. जी०:४५१ पेस [प्रेष्] जी० ३१६१० पेसल |पेशल श्री० ३१८१६,८६० पेसुण्ण पैशुन्य ! ओ० ७१,११७.१६१, १६३. H० ७६६ पेसुण्णविवेष | पंजुन्य विवेक ओ०७१ पेहुणमिजा | दे० पहुणमज्जा] जी० ३१२८२ पोंडरीय पौण्डरीक] ओ० १५०. रा० २३,२६, १३७.१७४,१६७,२७६,२८८,८११. जी० २:२५६२८२,२८६,२६१,३०७ पोग्गल [पुगल औ० १६६,१७०, रा० १०, १२,१८,६५,२७६,७७१. जी० ११५,५०,६५, १३५, ३१५५,५६,८७,६२,६७,१०६,१२७, १२८,१२६३, १०,४४५,७२४,७२७,७८७, ६७४,६७६,६७७,६८२ से १८५,९८८ से ६९७,१०८१,१०६०,१०६६ पोग्गलपरियट्ट पुगलरिक्त जी०।६५,८८, १३२, ५६,२६, ६।२३,२६,३३,६६,७१, ७३,७८,१४६,१६४,१६५,१७८,२०२,२०४ 'पोच्छल उत् । शल--- पोच्ले ति. रा०२८१. जी० ३।४४७ पोट्टरोग [दे० जी० ३।६२८ पोतय पतिज जी० ३।१४६ पोत्तिय पोतिक | ओ०६८ पोत्तिया (दे० जी० १८६ पोत्थयग्गाह | गुस्तकमाह] ०६४ पोत्ययरयण पुस्तकरत्न | M० २७०,२८७,२८८, ५६४. जी० ३।४३५,४५३,४५४,५४७ पोय [पात | लो० ४६ पोयय पोतन] जी० ३३१४७,१६१,१६३,१६४ Vफंव सन्द्.ि .... फंदइ. रा० ७७१.-फंदंति. जी०६७ फंवंत स्पन्दमान रा०७७१ फंदिय स्पिन्दि] रा० १७३. जी० ३१२८५,५८८ फणस [पना | ओ० ६,१०. जी० २७२; ३।५८२ फरसु परशु! रा० ७६५ फरिस [स्पर्श औ० १५,१६१,१६३. रा० २८५. ६७२,६५,७१०,७५१,७७४. जी० ३४५१, ५८६,५६२ फरुस [पर ओ० ४०,४६. रा० ७६५. जी० ३.६६.११८ कल [लो०६,७१,१३५. रा० १५१,२२८, २८१,६७०.८१४. जी० ११७१,७२, ३५१७४, २७४,३२४,३८७,५८६,६००,६०२,६४२ फलग पलक ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. रा० १६,१५३, ७५,१६०,२३५,२३६,२४०,६६८, ७०४,१०६. जी०३२६४,२८७,३२६,३९७, ३६८,४०२,६०२ फलगगाह । लकमा | ओ०६४ फलमंत लवत् ओ० ५,८. जी० ३।२७४ फलय फलक रा० ७११,७१३,७५२,७७६,७८६. जी० ॥३२६,४०२ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फलवित्ति बंधण फल वित्ति | कनवृत्ति ] जी० ३१२१७,२६७,२६८, ३५८,५७६ फल विवाग [ फलविपाक ] ओ० ७४६. रा० १८५, १८७ फलहसेज्जा | फलकय्या | ओ० १५४, १६५, १६६. रा० ८१६ फलासव | फलाभव | जी० २८६० फलाहार [ फलाहार ] ओ० ६४ फलिय | फलित | ० ७८२ फलिह | परिघ | ओ० १,१६,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६. जी० ३३५६६ फलिह | स्फटिक ] रा० १०, १२,१८, ६५, १६५, २७६. फुडिय [स्फुटित ] जी० ३१६६ जी० ३।५ ४५१, ८५४ फलिहरण | परिघरत्न रा० २४६, ३५५. जी० ३१४१०, ५२० फलिहा | परिखा | ओ० १ फाणिय [काणित ] ० ३ फालिय | स्फाटिक | ओ० १५४, १७४. जी० ३१२८६,३२७ फालिय | पाटिल, स्काटित | रा० ७६४७६५ फालिग [पातिक स्फाटितक ओ० ६० } फालियम | स्फटिकमय | जी० ३७४७ फालियामय [स्फटिकमय ] ० १६. रा० २५४. जी० ३१४१५,८५७,६११,१००८ फास | स्पर्श | ओ० १३,२७,४७,५१,७२,१६६, १७० रा० ३१,३३,३७,४५, ६५, १७२, १८५, १६६, २०३, २३७,२४५,८१३. जी० ११५,३६, ५०,३८,७३,७८,८१ ३५८,८५,८७,६६, १२२,१२३,१२७११,३,२७१, २६४,२६७,३०६, ३११,३३६, ३६४,३७६, ३६६, ४०७, ४१२, ४२१,५७८,६०१,६०२,६४५,६४८,६५६, ६७०, ७२४, ७२७,७५७,८६०,६६६,८७२,८७८, ६७२,६८१,६२,१०७६, ११, १०६८, १११७,१११८, ११२४,११२५ फास | स्पर्शतम् ] जी० ११४०, ५० फासतो [ स्पर्शतस् ] जी० ३।२२ फासमंत [ स्पर्शवत् ] जी० ११३३, ३६ फासिदिय [स्पर्शेन्द्रिय ] ओ० ३७. जी० ११२२: ३१६७६ फाय | प्राक, स्पर्शक] ओ० ३७,१२०,१६२. रा० ६६८,७५२,७७६,७८६ फिडिय [ स्फिटित ] ओ० २३ फुंफुअग्गि [ दे० ] जी० २७४ फुटमाण [ स्फुटत् ] रा० ७१०,७७४ फुट्टिज्जत [स्फोटधमान ] रा० ७७ फुड [ स्पृष्ट ] ओ० १६६, १७० फुड [ स्फुट ] रा० ७७४ ६६३ फुल्ल [ फुल्ल ] ओ० २२. रा० १७४,७२३,७७७, ७७८,७८८. जी० ३।११८, ११६,२८६ फुल्लग [ फुल्लक ] जी० ३।५६३ फुल्लावलि [ फुल्लावलि | रा० २४. जी० ३।२७७ √ फुस [ स्पृश् ] - फुसइ. ओ० ७१.--फुसंतु. ओ० ११७. रा० ७६६ फुसित्ता [ स्पृष्ट्वा ] ओ० १६६ फुसिय [स्पृष्ट ] रा० ६,१२,२८१. जी० ३१४४६ फूमिज्जेत [ फुत्क्रियमान] रा० ७७ फेण [ फेन ] ओ० १६,४६, ४७. रा० ३८,१३०, १६०,२२२,२५६. जी० ३३००, ३१२,३३३, ३८१,४१७,५६६, ८४ फेणक [ फेनक ] रा० ६६ फोडेमान | स्फोटयत् ] ओ० ५२. रा० ६८८ (ब) बसिया [ वकुशिका ] रा० ८०४ बंध | बन्ध | ओ० ४६,७१, १२०,१६१ से १६३. २०६६८,७५२,७८६ बंध [ बन्धु ] --- बंध. अ० ८६. रा० ७६५. -- बंधति रा० ७७४ बंधति रा० ७५. - बंधाहि. रा० ७७४ बंधठिति | अन्धस्थिति | जी० २४७५,६७, १३६,१५१ बंध [ बन्धन ] ओ० १३,४६,१७१,१६५५२१. रा० ७५४,७५६,७६४, ७७४ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ बंधित तदम् ० ७७४ बंघित्ता | बढ़वा | रा० ७५ agrtana [धुजीवकगुल्म | जी० ३१५८० बंभ | हान् ० २५,५१,१६२. ० ६०६. डी० ३।१०४६, १०६६, १०८८, १०६४,१११० बंभचेर | चर्य ] जी० ३१६६६ बागा बनाकर रा० २६ बंभचेरवास | ब्रह्मचर्यवा म० १५४, १६५, १६६. बलाया | बल का | बी० ३१२८२ रा० ८१६ बंभणय | ब्रह्मण्यक ] ओ०६७ भदत्त [ ] जी० ३।११७ बंभोग [ate] ०३:१०७६ बंभलीय [ ब्रह्मलोक ] ओ० ११४,११७,१४०. जी० २।१४८, १४९, ३११०३८,१०५६,११०२ V बज् [ बन्धू ) बज्झती. ओ०७४|४ बत्तीस | द्वात्रिंशत् ] ओ० ३३. रा० १२४. जी० ३१५ बत्तीसइगुण [ द्वात्रिंशद्गुण] जी० २।१५१ aritesबद्ध | द्वात्रिंशद्बद्ध ] रा० ७३,११८ बत्तीसइबद्धय [ द्वात्रिंशद्वद्धक ] रा० ७१०,७७४ बत्तीसतिबद्ध (द्वात्रिंशद्बद्ध ! रा० ६३,६५ बशीसिया [द्वात्रिशिका | रा० ७७२ बद्ध ! बद्ध | अ१० ५.८,५७. रा० १३२, २३५,६६४, j ६८.३, ७५४, ७५६, ७६४,७७१,७७४. जी ३१२२, १७४, २७४, ३०२, ३२६, ३६७, ५६२ बद्धग | बद्धक ] १० ७७ बद्धीसा | बध्वीवा ] ० ७७ बफ ! आप ! जी० ३१५६२ बबरिया [वरिका ] रा० ८०४ बबरी ! जबेरी | ओ० ७० बरहिण | बहिन ] ० ६ ० ३१२७४ बल [नः] अ० २३,६७,७१,८ से ६६, ११४, ११, १५५,१५७ से १३०,१६२,१६७. ग० १२.१३,६१,६५७, ६७४,६९५, ७५८, ७५६, ७८७,७८,७०,७६१ जी० ३ ११८, ४४६, ५८६,५६२ बंधितए - बहिया · बलदेव बलदेव ओ० ७१. जी० ३७६५, ८४१ बलव | बलवत् ] ओ० ४. रा० १२,६७१,७५८, ७५६. ३३११८,११६ बलवाय मृत | ० ५५ से६३ बलसंपण्ण लम्पन्न | ओर २५. १० ६८६ . लाभिओग [ नलानियोग] श्र० १०१,१२४ बलाहक बल ] जी० ३२७८२,७८६,८४१ लाह [ बलाहक | ० २६. जी० ३।२८२ बलि | बलि ! जी० ३१२८० से २४३ afone (बलिकर्मन् ) ओ० २०,५२, ५३, ७०. २०६०३,६८५,६८७ से ६०६,६६२,७००, ७१०,७१६. ७२६,७५१, ७५३,७६५, ७७४, ७६४,८०२,६०५ बलिपीढ | बलिपीठ | रा० २७२,२७३,६५४. जी० ३।४३७, ४३८, ५५४,५५६ बलिविसज्जन | अलिविसर्जन ] रा० ६५४. जी० ३१५५६ बल्लकी | वल्लकी | रा० ७७ बहली [बली ! ० ७० रा० ८०४ बहद | बहु] अं० १२,१७,२३,४७ से ५२. रा० १६, १७,२२,२३,५४,५५, ७१ से ७५, ७६ से ८१,८३,११२ ११८, १३२,१५३, १६७, १६८, १७ से १८०,१०२, १८४, १८५, १८७, १६२ से १६४,१६६,२३५, २३६,२४०, २४६, २८०, २८२२८६, ६-७ से ६८६.६६५,७०३, ७०४. जी० ३३८३, २१७,३४८, ३५८, ३५६, ३६७,३१७,३६८,४०२, ४१०, ४११, ४२०, ४४६,४४८,४५५,४५६,५७६ से ५८३५८६ से ५६५,६४०, ७०२,७२४, ७२६, ७२७,७२६, ७८५७८७६०७, ८२६,८४१, ६५७,६०२, ६१७,१०३०,१०३६,१०८१ बहि वन रा० १३०. जी० ३।३०० [हस्तात् ] ओ० २. रा० २. जी० ३१८३८११ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहु-बाणउति बहुबा ओ० १४,२३,५२,६३,६१,६८,७०,६१, ३।२६३,३१०,३१३,३१८,३३८,३५६,३५६, ६२,६४,११४,११७,१४०.१४१,१५४,१५५, ३६१,३६४,३६५,३६८,३६६,३७७,३८६, १५७ से १६०.१६२,१६५,१६६,१६५. रा०७ ४००,४१३,४२२,४२७,४६०,४६५,४८६, १५,५१,५६,५८,१२४,१७४,१८१,१५३,१६५, ४६१,४६८,५०३,५२१,५२७,५३५,५४२,५४६, २४,२७६,२८२.२६१,६५७,६७१,६७५, ५५४,६३४,६३६,६४२,६४६,६४६,६६३, ६८३,६६८,७१८,७५२,७७४.७८७ से ७८६ ६६८,६७१ से ६७३,६७६,६८५,६६१,७३७, ४६६,८०३,८०४,२१६. जी० ३११११,११८, ७५६,७५८,७६२,८३१,८८२,८८४,८८७, ११६,२५६,२६९,२८६,२६३.२६५,३८८, ८६१,९०६,६११,९१३,६१८,१०३६ ३६०,४०२,४४२,४८८,४५७.५५७,५६३, बहुमय बहुमत ओ० ११७. १० ७५० से ७५३, ५.६,५८४ से ५६५,६३७,६५,६,७२१,७३८, ७६६ ७४३,७५०,७६०,७६३,८५७,८६३,८६६, बहुमाण [बहुमान ] ओ० १४,४०. रा० ६७१ ८७५,६०१,६१७,६६५,१०२५,१०३८ बहुय बहुक ] ओ० १७१. रा ० १९७. बहुउदग | बहूदक ] ओ०६६ जी० ११७२,१४३; २०६८ से ७२,६५,९६, बहुगुणतर [ बहुगुणत र ] रा० ७१८ १३४ से १३८,१४१ से १४६ ३.४०२,५७६, बहुजणब जन आं० २,१४,५२,११८,१४६. १०२५,१०३७,१०३८४१६,२२,२५, १६, रा० ६७१,६७५,६५७ २०,२६,२७,३२ से ३६,५२,५६,६०,७४२०, बहुतरक [ बहुतरक | जी० ३.१०१ २२,२३, ६७,१४,५५,२५० से २५३,२५५, बहुतरग |बहुतरक जी० ३१६६,११३,११४ २८६ से २६७ बहुदोस | बहुदोरा ओ० ४३ बहुरय बहुरत ] ओ० १६० बहुपडिपुष्ण | बहुप्रतिपूर्ण | आ. १४३. रा० १५१, बहुल | बहुल] ओ० १,७,८,१०,४६,४६. १५२,८०१. जी० ३६३२४,३२५ रा० ६७१. जी० ३३११८,११६,२३६,२७५, २७६ बहुपरिसपरंपरामय [बहुपुरुषपरम्परागत रा० बहुविह | बहुविध ) ओ० १६५१६ ७७३ बहुप्पकार | बहुप्रकार ] जी० ३१५६५ बहुसम [बहुसम] रा० २४,३२,३३,३५,६५,६६, बहुप्पगार [बहुप्रकार जी० ३३५८६ मे ५८८, १२४,१७१,१८६ से १८८,२०३,२०४,२१७, २३७,२३८,२६१. जी० ३१२१८,२५७,२७७, बहुप्पसन्न बहुप्रसन्न] आ० १११ से ११३, ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, १३७,१३८ ३६८,३६६,३७२,३६६,४००,४२२,४२७, बहबीयवहुवीज जी. १९७०,७२ ५८०,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६,६४८, बहुवीयग बहुबीजक जी. ११७२ ६४६, ६५६,६६२,६६३,६७०,६७१,६७३, बहुमज्श बहुमध्य] ओ० ८,१६२. रा. ३,३२, ६६०.६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८,८८३, ३५,३६,३६,६६,१२५,१६४,१८६.१८८,२०४, ८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३,१००३, २१७.२१८,२२७.२३८,२५२.२६१,२६३, १०३८,१०३६ २६५,३००.३२१,३२६,३३३,३३८,३५६, बाण वाण ता० ३६. जी० ३१२७६ ४१५,४७६,५३६,५९६,७३५,७७२. जी० बाणउति [द्वानवति ] जी० ३१८१५ Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाणगुम्म-बालदिवाकर बायरकाल बारकाल] जी० ६६E बायरणिओद (वादरनिगोद] जी० ५।३८ बायरणिओय [बाद निगोद] जी० ५१३१,३३,३५, बायरतसकाइय | बादर त्रसकायिक जी. ५१३१ से बाणगुम्म बाणगुल्म | जी० ३.५८० बादर [बादर] जी० ३१८४१; ५।२६ से ३१,३५, ५१,५२,५८ से ६० बावरआउकाइय [बादरअ'कायिक | जी० ५।२८ बादरणिओत बादरनिगोद जी० २२६ बादरणिओद [बादरनिगोद जी० ५।२८ से ३०, ४०,४७ से ४६,५२ बावरणिओवजीव | बादरनिगोदजीव ) जी० ५१५३. ५५,५८ से ६० बादरनियोवबादरनिगोद ] जी० १४० बादरतसकाइय [बादर त्रसकायिक ] जी० ५२८ से बायरतेउक्काइय बादरत जस्कायिक जी० ५।३१,३३,३४ बायरतेउक्काइय | बादरतेजस्कायिक] जी० ११७६ ; ५१३३,३४,३६ बायरपुढवि बादर पृथ्वी । जी० ५।३१,३३,३५,३६ बायरपुढविकाइय (वादरपृथ्वीकायिक जी० १११३,५७,६५,७४; ५:३१,३३,३४,३६ बायरपुढविक्काइय [बादरपृथ्वीकायिक __ जी० ११५७,५८,६२ बायरवणस्सइकाइय बादरवनस्पतिकाथिक] जी० १५६६,६८,६६,७२ से ७४ ; ५१३३,३४, बादरतेउक्काइय [ बादरतेजस्कायिक] जी० ११७८, ७६; २८ बादरपत्तेयवणस्सतिकाइय [बादरप्रत्येकवनस्पति कायिक] जी० ५।२६ बाबरपुढवि [ बादरपृथ्वी जी० ५।२६ बावरपुढविकाइय [बादरपृथ्वीकायिक ] जी० ११५८, ३११३२,१३४; ५।२,३,२८ से ३० बाबरवणस्सइकाइय वादरवनस्पतिकायिका जी० ५।३० बादरवणस्सति [बादरवनस्पति ] जी० ५.२६ बादरवणस्सतिकाइय [बादरवनस्पतिकाधिक] जी० ॥२८ से ३१ बादरवाउ | बादरवायु] जी० ५२२६ बादरवाउकाइय [बादरवायुकायिक जी. श२८, बायरवणस्सतिकाइय | बादरवनस्पतिकायिक] जी० ५१३१,३३ से ३६ बायरधाउकाइय [ बादरवारकायिक जी० ॥३४ बायरवाउक्काइय वादरवायुकायिक ] जी० ११८०, ८२ बायाल द्वचत्वारिंशत् | जी० ३.१०२२ बायालीस द्वः बत्वारिंशत् ] ओ० १६२. जी० ११११२ बारस द्वादशन् ओ० ६०. रा०४३.जी. ११८६ बारसभत्तद्वादशभक्त ओ० ३२ बारसम द्वादश ] रा० ८०२ बारसाह द्वादशाह ओ० १४४ बाल बाल ] रा० २७,३१,७५८,७५६. जी० ३१२८०,२८४,६६० से ६६७ बालतवोकम्म बालतपःकर्मन् ओ०७३ बालदिवाकर | बालदिवाकर रा० २७. जी० ३१२८० बादरवाउक्काइय [बादरवायु कायिक] जी० श८१ बायर बिादर जी०१४४; ३१८४१५२८,२६, ३१ से ३६; १६५,६,६६,१०० बायरआउकाइयबादरअप्कायिक जी० ५२६ बायरआउक्काइय [बादरअकाधिक जी०१४६३,६५ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालभाव-बुक्कार बालभाव [बालभाव] रा०८०६,८१० पाहिरिया (बाहिरिका] ओ० १८,२०,५३,५५, बालविहवा [बालविधवा] ओ०१२ ५८,६० से ६३ रा०६८३,६८५,७०८,७५४, बालिय बाल रा० ४५ ७५६,७६२,७६४ बावट्ठ [द्वाषष्टि ] जी० ३१:३२ बाहिरिल्ल बाह्य ] जी० ३१७२३,१००७ बावट्ठि । द्वारिट] रा० २०६. जी० ६१६१ बाहु | बाहु] ओ० १६. रा० १२,७५८,७५६. बावपण [द्विपञ्चाशत् | जी० ३१६:१ ___ जी० ३।११८,५६६ बावत्तर द्विाराति जी० ३.६३२ बाहुजुद्ध [बाहुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ बावत्तरि [द्वासप्तति]० २०६. जी०११११६ बाहुजोहि [ बाहुबोधिन् | ओ० १४८,१४६. बावन्न ! द्विपञ्चाशत् ] ओ० १२६ रा० ८०६,८१० बावीस द्वाविंशति] ओ० १५४. स० ८१६. बाहुप्पमहि । बाहुप्रमदिन् ] ओ० १४८,१४६. जी० ११५६ श० ८०६,८१० बिइय द्वितीय | ओ० ४७,१७६,१८२. बाहल्ल बाहल्य] ओ० १९२. रा० ३६,१३७. जी० ३।२२६ १८८,२१८,२२१,२२४,२३०,२३८,२४२, बिट {वृन्त] रा० २२० २४४,२४६,२५२,२६१,२७२. जी० ३.५,१४ बिंदिय [वीन्द्रिय ओ०१८२ से २७,३६ से ४७,५२,७३ से ७५,७७,८०, बिलु [बिन्दु] ओ० २३ १२४,१२५,१२७,२३२,२५७,३०७,३१०, बिबफल | दिम्बफल] ओ० १६,४७. जी० ३१५९६ ३५५,३६१,३६५ ३७७,३८०,३८३,३८५, बिहणिज्ज [ बृहणीय] जी० ३।६०२,८६०,८६६, ३६२,४००,४०४,४०६,४०८,४१३,४२२, ८७२,८७८ ४२७,४३७,६३४,६४२,६४४,६४६.६५३, बिब्बोयण [दे०] रा० २४५. जी० ३।४०७ ६५५,६६८,६७१,७२४,७२५,७२७,७२८, बिलपंतिया | दिलपंक्तिका रा० १७४,१७५,१८०. ७५८,८६१,८६३,८६५,८६७,८६६,६०६, जी० ३.२८६,२८७,२६२,५७६.६३७,७३८, १००६,१०१० से १०१४,१०६५,१०६६ ७४३,७६३,८५७,८६३ बाहा बाह] 3० ११६. जी० ३।३५४,४१५ बिसालग | द्विशालक] जी० ३१५६४ बाहि बहिस्] रा. ७७२. जी. ३१७७ बीभच्छ {बीभत्स ] जी० ३।१४ बाहिर बाह्य] ० ६.१० ४३. जी० ३१७८, बीय बीज! ओ० १३५,१८४ २३६,२७५,६४३.६८१,७६८,७६६७७५, बीय द्वितीय ] ओ० १७४ ८३१,८३८११२,८४५,१०५५ बोयग बीयक जी० ३२२८१ बाहिरग [बाहिरक, बाक] जो० ३१७८४,७८७ ।। बोयगुम्म वीजगुल्म] जी० ३।५८० बाहिरय बाहिरक, वाहक ] अं० ३०,३१,३७. बीयबद्धि बोजबुद्धि] ओ० २४ जी० ३१६५८,७८२,७८६,७८७.६६० से १६७ बीयमंत | बीजवत् । ओ० ५,८. जी० ३१२७४ बाहिरिय बाहिरिक, बाह्यक] रा०६६२. बीयय (बोयक ! रा० २८ जी० ३१२३५ से २३६,२४१ से २४३,२४६, ___ बोगसत्तराई दिगा द्वितीयसप्तरात्रिदिवा] मो० २. २४७,२४६,२५०,२५४ से २५६,२५८,३४३, बीयाहर [बीजाहर] ओ०६४ ४४७,५६०,७३३,८४२.१०४० से १०४२. बुषकार [दे० --बुक्कारेति. रा० २८१. १०४४,१०४६,१०४७,१०४६ से १०५३ जी० ३।४४७ Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ बुज्झ-भंत २६२,७७७,७७८,७८८. जी० ३१४५७ बोहि [बोधि ] ओ० १५१. रा०८१२ बोहिदय [वोधिदय रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ बोहिय [बोधित ] ओ० १६ बुज्झ दे०|--- बुज्झइ. ओ० १७७.---बुझंति. ओ० ७२. जी० १११३३.--बुझिहिति. ओ० १६६.- वृज्झिहिति. ओ० १५४. स० ८१२ Vबुज्न बुध् ] -बुझिहिति. ओ० १५१ बुझिहित्ता [बुद्ध्वा | ओ० १५१ बुद्ध [बुद्ध] ओ० १६,२१,५४.१९५।२०. रा०८, २६२. जी० ३४५७ सुद्धबोहियसिद्ध [बुद्धबोधितसिद्ध | जी० १८ बुद्धि बुद्धि | रा० ६७५ बुब्बुय (बुबुद] ओ० २३ बुह | बुध] ओ० ५० बूि [ब्र]--दूया. रा० ७३२ बर बर ओ० १३. रा०७३२. जी. ३।२८४, २६७,३११,४०७ बेइंदिय द्वीन्द्रिय] जी० ११८३,८४,८७,८८, १२८,२।१०१,१०३,११२,१२१,१३१,१३६, । १३८.१४६,१४६ ३३१३०,१३६,१६६% ४११,४,८,१२,१६,२०,२१,२३,२५; ११, ३.५; १।१,३,५,७,२६४ बॅट [वन्त] जी० ३११७४ बॅटट्ठाइ [वृन्तस्थायिन् ] रा० ६.१२ बंदिय [द्वीन्द्रिय ] जी० ४११७, ६।१६७,१६६, २२१,२२३,२६४ बेयाहिय [द्वयाहिक जी० ३१६२८ बेलंव [बेलम्ब] जी० ३१७२४ बेला बेला जी० ३१७३३ बोंड [दे०जी० ३।५६६ बोंदि [दे० ] ओ० ४७,७२,१६५।१,२. रा० ७७२ बौद्धन्व | बोद्धव्य] ओ० १६५४५,६. ___जी० ३.१२६।१० बोधव बोद्धव्य ] जी० ११६६ बोषिय [बोधित ] जी० ३।५६६,५९७ बोल [दे०] ओ० ४६,४६,५२. रा० १५,६८७, ६८८. जी० ३।६२७,८४२,८४५ बोय बोधक ] ओ० १६,२१,२२,५४. रा. ८, भइ [भृति रा० ७८७,७८८ भइणो भगिनी] जी० ३।६११ भइय [ भक्त्र] ओ० १६५।१५ भइय | भृतिक ] रा ० १२ भंगुर [भङ्गुर ओ० १६. जी. ३१५६६,५६७ भंजिज्जमाण [भज्यमान रा० ३० भंड [भाण्ड] ओ० ४६,११७. रा० ३०,१५२, २६६,२६८,२८४,४७५,५३५,७७४,७६६. जी० ३१२८३,३२५,४२६,४३२,४५०,५३४, ५४१,११२८,११३० भंग (दे० ओ० ५६ भंग्यिालिछ [भण्डिकालिञ्छ] जी० ३।११८ भंत भदन्त ओ० ६६,७६,८४ से ६५,११४, ११७,११८,१५५,१५७ से १६०,१६२,१६७, १६६ से १७२,१५४,१७५,१७७,१८१,१८४ से १६२. रा० १०,५८,६२,६३,६५,१२१ से १२४,१७३,१९७ से २००,६६५ से ६६७, ६६५,७००,७०२ से ७०४,७१८,७२०,७३६, ७३८,७४७,७४८,७५० से ७५४,७५६,७५८ से ७६१,७६२,७६४ से ७६७,७७०,७७२ से ७७५,७७७,७८२ से ७८५,७८७,७६८,८१७. जी० श१५ से ३३,४१ से ४६,५१ से ५४, ५६,५६ से ६२,६४,७४,७६,८२,८५ से ८७, १०,६३ से १६,१०१,११६,१२७,१२८,१३० से १३४,१३७ से १४३; २१२० से २४,२६ से ३०,३२ से ३६,३६,४६,४८,४६,५४,५७ से ६३,६६,६८ से ७४,७६,८२ से ८४,८६.८८, १२,९५ से १८,१०७ से १०६,१११,११३, ११४,११६ से ११६,१२२ से १२६,१३३ से १५० ३१३ से १,११ से २०,२४ से ३५,३७ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंतसंभंत-मति से ३६,४२,४४ से ६६,७३ मे १८,१०३ से ११०,११२,११६,११८ से १२८,१४७,१५० से १६२,१६५,१६७,१६६ मे १८३.१८५,१८६, १६२ से २११,२१४,२१७ से २२३,२२७, २३२ से २४२,२४४ २ २४६,२४८ से २५९, २६६ से २७२,२८३ से २८५,२६६,३००, ३५०,३५१,५६४ से ५७८,५६६,५९७,५६६ से ६३२,६३७ से ६३६.६५६,६६०,६६४,६६६ से ६६८,७००,३०१,७०३, १०५ से ७११, ७१३ से ७२३,७३० से ७६६,७३८,७४० से। ७४३.७४५.७४६ ७४८ से ७५०.७५४,०६० से ७६६,७६८ से ७७०,७७२,७७६ से ७७८, ७८१ से ७६५,७९७ से ८००,८० से ००४, ८०८,८०६,८११ से ८१६,८१८ से ८२०, ८२३ से ८२५,८२७,८२६,८३०,८३२ से ८३७,८३६५४०,८४२ से ८४७,८४६,८५०, २५४,८५५,८५७,८६०,८६३,८६६,८६६, ८७२,८७५,८७८ से १८१,६३६,६४०,६४४, ६५३ से १५५,६५८,६६१,६६३ से ६६६, ६६६,६७२ से १७७,६८२ से १८४,९८८ से १००८,१०१०,१०१५,१०१७,१०२० से १०२७,१०३७ से १०४४,१०५४,१०५६, १०५६,१०६२,१०६३,१०६७,१०६६,१०७१, १०७३,१०७५,१०७७ से १०८३,१०८५, १०८७,१०८६ से १०६३,१०६५,१०६७ से १०६६,११०१,११०५,११०७,११०१ से १११२,१११४,१११५,१११७,१११६,११२१, ११२२, ११२४,११२८,११३०,११३१,११३३ से ११३८; ४३,७ से ११,१३,१६,२२,२३, २५; ५१५,८,१०,१२ से १६,१६ से २४,२६ से ३०,३२ से ३५,३७ से ३६,४१ से ५०,५२ से ५६.५८ से ६० ६१८3;७.२,६,२०, २,3, १० से १४,१६,२३ २६,३१,३३,३६,४१ से ४८,५२,५५.५७ से ५६,६४,६८,७६ से ७६,८६,६०,६६,६३,१०२,१०३,११४,११५, १२२,१३२,१४२,१६० से १६३,१७१,१८६ से १६३,१६५,१६८ से २०५,२१० से २१२, २१४ से २१६,२२२ से २२५,२२५ से २३०, २३३ से २३८,२४० से २४४,२४६,२४६ से २५३,२५५,२५.५ से २६३,२६५,२६८ से २७३,२७५ से २८२.२८४ से २६३ भंतसंभंत [भ्रान्तमंभ्रान्त ] रा० १११,२८१. जी०३४४७ भंभा दे० भम्भा ना० ७७. जी० ३१५८८ भंसेउकामशयितुकाम रा० ७३७ भगंदल [भगन्दर जी० ३१६२८ भगव [भगवत् ०१६,१७,१६ से २५,२७ ४७ से ५५,६२.६६ से ७१,७८ से ८३,११७. ग०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,३,७४, ७६,८१,८३,११३,११८,१२०,१२१,६६८, ७१४,७६६.८१४,८१५,८१७ भगवई [भगवती] रा० ८१७ भगवंत [भगवत् ] ओ० १६,२१,२३,२६ से ३०, ५१,५२,५४.११७,१५२,१६५,१६५. न०८, ६,११,५६,२६२,६८७,७१४,७४६,७६६. जी० १११ ; ३२४५७ भगवती [भगवती] रा० ८१७ भग्गइ [भन्नजित् ] ओ०६९ भज्जा [भार्या] जी० ३१६११ भट्टित्त भर्तृत्व] ओ०६८. रा० २८२. जी. ३२३५०,५६३,६३७ भट्टजट रा०६,१२,२८१. जी. ३४४७ भड । भट] अ० १.२३,५२. रा० ५३,६८३,६८७, ६८८,६६२,७१६ भणित [भणित] जी० ३८८१ भणिय [भणित] ओ० १५,४६,१६५६४ से ७. रा. ७०,६७२,८०६,८१०, जी० २११५०; ३।१२६,५६७,८३८।१,२६१५७ भण्ण [भण्]-- भण्णति. जी० ३३९४६ भति [भति] ओ०१७ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भत्त-भवगहण भत्तभक्त] ओ० १४,१७,३२,३३,११७,१४०, भमुया [5] ओ० ३१५६७ १४१,१५४,१५७,१६२,१६५,१६६. रा० भमुह [5.] ओ० १६. स० २५४, जो० ३१४१५ ६७१,७७४,७८७.७८८,७६६,८१६ भय भय] ओ०१४,२५,२८,४६. रा० ६७१, भत्तकहा भिक्तकथा] ओ० १०४,१२७ ६८६. जी० ३:१२७,१२८ भत्तपच्चक्खाण भत.प्रत्याख्यान] ओ० ३२ भयंत [भदन्त'। ओ०७२,१६७ भतपाणविउस्सग्ग [भक्तपानमुत्सर्ग ] ओ० ४४ ।। भयग [भृतक) जी० ३१६१० भत्ति | भक्ति ] ओ० ४०,५२. रा० १६ भयणा भजना) जी. १११३६ : ३२१५२ भत्तिघर [भक्तिगृह] जी० ३१५६४ भयव ! भगवत् रा० १२१ भत्तिचित्त भक्तिचित्त | ओ० १३,६३. ० १७, चित्ता ओर १३.६३. १० १७. भयसण्णा | भयमज्ञा] जी० ११२० ; ३११२८ १८,२०,२४,३२,३४,३७,५१,१२६,१३७, भर [भर रा० २२८. जी० ३।३८७,७८४,७८७ १५६,२६२. जी० ३।२७७,२८८,३००,३०७, भरणी [भरणी ] जी० ३।१००७ ३०८३११.३३२,३३७,३५६,३७२,३६६, भरत [भरत ] जी० २.१३२,३ ६७२ भरह भरत ४५७,५६७,५६३,५६५,९०४ ओ० ६८. रा० २७६,२८२. जी. भत्तिपुवग भक्तिपूर्वक ] रा० ६३,६५ २१४,२८,५५,७०,७२,६६,११५,१२२,१४.०, भद्द [भद्र] ओ० ४७,६८,७२. रा० २८२. जी० १४६ ; ३१२२६,४४५,४४७७९५ ३२४४८ भरिय [भरित] ओ० ४६,५७,६४. रा० १७३, भङ्ग [भद्रक] जी० ३१५६८,६२०,६२५,७६५,८४१ भद्दपडिमा [भद्रप्रतिमा] ओ० २४ भिव[भू–भवइ. ओ०२८, रा० २००. जी० ३१५६-भव उ. ओ० २०.रा०७१३. भद्दमोत्था [भद्रमुस्ता] जी० ११७३ -भवंति. ओ०२०, रा० १२४. जी. ३१७७ भद्दय [भद्रक] जी० ३१७६५ -भवति. रा० १२६. जी० ३३२७२-भवह. मद्दया [भद्रता] ओ० ७३,६१,११६ भद्दसालवण | भद्र शालवन] रा०१७३,२७६. रा०७१३--भवाहि. रा०७५०...-भविस्सइ. ___ जी० ३१२८५,४४५ अं.० ५२. रा० २००---भविस्सति. भद्दा [भद्रक] ओ०६८. रा०२८२. जी. ३ ४४८ जी. ३१५६ --भविस्सामि. रा०७७५ भद्दा भद्रा] जी० ३३६१५ -भवे. रा० २५. जी० ३१८४--भवेज्जासि. भद्दासण [भद्रासन] ओ० १२,६४. रा० २१,४१ रा० ७७४- भुवि. रा० २००. जी. ३५१ से ४४,४८,४६,१८१,१८३,२६१,६५८ से भव [भव ] ओ० ४६,१६५१३,७,८ ६६४. जी० ३.२८६,२६३,३३६ से ३४५, भवंत [भवत् ] रा० १५ ३६८,३७०,५५० से ५६०,६३५ भवक्षय [भवक्षय ओ० १४१,१६५१६. रा० ७६६ भमंत [भ्रमत् ] ओ०४६. रा. १७४. जी० भयग्गहण भिवग्रण] जी० ७।५,६,१०,१२,१५ ३१११८,११६,२८६ से १८;६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८, भममाण [भ्राम्यत, भ्रमत्] ओ० ४६ भमर [म्रमर] ओ० ६.१६. रा० २५. जी० १. 'भयंतारो' ति भदन्ताः कल्याणिनः भक्तारो वा ३१२७५,२७८,५६६ नेग्रन्थ प्रवचनस्थ सेवयितारः [वृ० पृ० १५२] भमरपतंगसार [भ्रमरपतङ्गसार] रा०२५. जी० 'भयंतारो' ति भक्तार: अनुष्ठान विशेषस्य ३1२७८ सेवयितारो भयत्रातारो वा [वृ० पृ० २०३] । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवण-भासा ७०१ २४३,२४४,२४६,२७१,२७३,२७६ से २८२ १०५,१०८,१११,११८,१२३, ३।७५,'33, भवण भवन] ओ० १,१४,६६,१८१ रा०६७१, १५६,१६२,२३१,२५०,३५६.३५८,३५६, ६७५,७६६. जी० ३१२३२ से २३४,२४०, ३६,४१२,४६३,६७३,६७६,६८२,७५६, २४४,२४८,५६४,५६७,६०४,६४६ से ६४८, ७६६,७६६,७७५,८००,८०१,८१८,८२८, ६५१,६७३,६५२,६८६,६६२ ले ६६८,७५६ ६३६,६३६,१०४४,१०५०,११२६,११२33; भवणवइ | भवनपति रा० ११,५६. जी० २१६५ ८.२, ६.२२६ भवणवति भवनपति जी० ३।६१७ ।। भामरी [भ्रामरी ] रा० ७७ भवजवासि | भवनवारिन् | ओ० ४८. जी० १.१३५: भाय | भ्रातृ ] जी० ३।६११ २११५,१६,३६,३७,७१,७२,९१,९५,९६,१४८, भाय भाग] रा० ७८८. जी० ३१५७७ १४६; ३।२३० से २३२,१०४२ भाय भाज्-भाएंति. रा० २८१. जी० ३।४४७ भायरक्खिया [भातृ रक्षिता ओ०६२ भवणवासिणी भवनवाहिनी } जी० २१७१,७२, भार [भार| रा०३७४ १४८,१४६ भारह [भारत] रा०८गे १०,१३,१५५६,६६८ भवणावास भवनानास ] जी० ३३२३२ भारुडपक्खि भारुण्डपक्षिन् यो० २७. रा० ८१३ भवत्थ भवस्थ ६४४ से ४८,५२,५६ भाव [भाव] रा० ६३,६५,१३३,७७१,८१५. भवत्थकेवलणाण भवस्थकेवलज्ञान ] रा० ७४५ जी० ३।३०३,७२६ भवधारणिज्ज [भवधारणीय] जी० ११६४,६६, भावओ [भावतस् ] ओ०२८. जी० १३३,३४, १३५,१३६, ३.६१,६३,१०८७ से १०५६, १०६१,१०६२,११२१ से ११२३ भावविउस्सग्ग [भवात्सर्ग ] ओ० ४४ भवपच्चइय [भवप्रत्ययिक रा०७४३ भावाभिगवरय [भावाभिग्रहन रक] ओ० ३४ भवसिद्धिय भवसिद्धिक] रा० ६२. जी० ६।१०६ भावियप्प भावितात्मन् ] ओ० १६६ से १११,११२ भावेमाण भावयत् ] ओ०२१ से २४,२६,४५, भविता | भूत्वा] ओ० २३. रा०६८७ ५२,८२,१२०,१४०,१५७. रा० ८,६,६८६, भसोल [भसोल] रा० १०६,११६,२८१. ६८७.६८६,६६८,७११,७१३,७५२,७५३, जी० ३।४४७ ७८७,७८६,५१४,८१७ भाइल्लग [भागिक ] जी० ३१६१० भावोमोदरिया [भावावमोदनिका] औ० ३३ भाउय [ भ्रातृक] रा० ६७५ भास् [भाष्..भासइ. ओ० ५२. रा०६१ भाग [भाग] रा० ७८७,७८८. जी ० ३।५७७, --भाति. जी० ३१२१० ६३२,६३६,८३८1१६,१०१० से १०१४ भास (य) {भाक जी० ६६६ भागि [ भागिन् ] रा० ८१५ ।। भासंत भाषमाण ] ओ० ६४. जी० ३१५६१ भाजण |भाजन जी० ३.५८७ भासग [ भाषक] जी० ३१५६,५६,६१ भाणितब्ध भणितव्य ] जी० २१११२ ३१७४, भासमणपज्जत्ति | भापामनःपर्याप्ति ] रा०२७४, १२०.१२१,१४४,२२७,५७८,६३१.६५७,६४७ ७६७. जी० ३.४४० भाणियव्व भणितव्य ] रा०८०,१६४,२०१, भासय [भागका जी० ६।५७ २०४ से २०६,७४२. जी० ११५१,७२,९६ भासरासि धरमराशि] रा० १२४ ११८,१२३,१२६,१३५, २१७६,७८,८०,८१, भासा [भाषा | ओ० ७१. रा० ६१,८०६,८१० Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ भासास मिय [भापासमित] ओ० २७,१५२,१६४. रा० ८१३ भासुर [भासुर] ओ० ४७,७२. रा० ६,१२ भिउम्व [भार्गव] ओ० ६६ भिंग [ भृङ्ग] ओ० १६. रा० २६. जी० ३:२७६ भिगंगय [भृङ्गाङ्गक] जी० ३:५८७ भिगणिभा भृङ्गनिभा] जी० ३६६८७ भिंगा [भृङ्गा] जी० ३१६८७ भिंगार भुङ्गार] ओ०६४,६७. रा० ५०,१४८, २५८,२७६,२८१,२८८,७५३. जी० ३।४४५, ४५४,५८७ भिंगारक [भृङ्गारक] ओ० ६. जी० ३।२७५, ३२१,३५५,४१६ भिगि [भृङ्गि] जी० ३१५६५,५६६ भिण्डमाल [भिण्डमाल, भिन्दपाल] ___ जी० ३११० भिडिमाल [भिण्डिमाल, भिन्दिपाल ] ओ० ६४ ।। भिरिमालग [भिण्डिमालय, भिन्दिपालाग्र] जी० ३८५ अभिद भिद्]-भिंद. रा० ६७१–भिज्जइ. रा० ७८४ भिभसारपुत्त [भिम्भसारपुत्र] ओ० १५,१८,२०, २१,५३ से ५६, ६२ से ६४,६६,६७,६६, ७१,८० भिक्खलाभिय [भिक्षालाभिक ओ० ३४ भिक्खायरिया [भिक्षाचर्या ] ओ० ३१,३४ भिक्खुपडिमा [ भिक्षुप्रतिमा | ओ० २४ भिक्खुय [भिक्षुक] रा० ७१८,७८७,७८८ भिगु | भृगु] जी० ३।६२३ भिच्चा भित्वा] रा० ७५५ भित्ति भित्ति ] रा० १३०. जी. ३१३०० भित्तिगुलिया [भित्तिगुलिका] रा० १३०. जी० ३।३०० भिन्नमुहुत्त [भिन्नमुहूर्त जी० ३।१२६४२,१० भिब्भिसमाण [बाभास्थमान | रा० १७,१८,२०, ३२,५२६. जी. ३१२८८, ३००,३७२ भासासमिय-भूइकम्मिय भिलुंग [दे० भिलुङ्ग] रा० ७०३ भिस [बिस] रा० २६,१७४. जी. ३३११८,११६, २८२,२८६ भिसंत [भासमान] ओ० ५,८,६४. रा० ५१ जी० ३१२७४ भिसकंद (बिसकन्द] जी० ३:६०१ भिसमाण [भासमाण ] ० १७,१८,२०,३२,१२६. जी० ३१२८८,३००,३७२ भिसिया पिकाओ० ११७ भीत भीत ] जी० ३.११६ भीम [भीम] ओ० ४६,५७. जी० ३१८३ भुंजमाण [भुजान ] ओ० ६८. ४० ७. जी० ३३५०,५६३,८४२.८४५,१०२४, १०२५ । भुकुंड [ दे०] -भुकुंडेति. रा० २८५. जी० ३१४५१ भु कुंडेता [दे० ] जी० ३।४५१ भुजंग भुजङ्ग ] जी० ३१५६७ भुज्जतर [भूयस्तर] ओ० ८६ भुज्जो [ भूयस् ] ओ० १५६. रा० ७५१ भुत्त [भुक्त] रा० ६८५,७६५,८०२,८१५ भुयम [भुजग] ओ० २,५१ । भुयगपद [भुजगपति ] ओ० ४६ भुयगपरिसप्प [भुजगपरिसर्प ] जी० २१११३ भुयगपेच्छा [भुजगप्रेक्षा] ओ० १०२, १२५ भुयगीसर [भुजगेश्वर] ओ० १६. जी. ३१५६६ भुयपरिसप्प भुजपरिसर्प जी० १।६०४, ११२. १२२, १२४;२७,६,२४,५२,१२२; ३३१४३, १४४, १६१,१६२,१६६ भुममोयग [भुगम चक] ओ० १६. जी० ३१५६६ भुया [ भुजा] ओ० १६,२१,४७,५४,६३,७२. रा० ८,६६,७०, जी० ३।४५७,५६६ भुवा [भ्रू का[ जी० ३१५९६ भुसागणि [बुषाग्नि ] जी० ३।११८ भूइकम्मिय [भूतिकर्मिक] ओ० १५६ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूओवधाइय-भोम भूओवाइय [ भूतोपघातिक ] ओ० ४० भूत [ भूत ] रा० ६,१२,३२,२८१. जी० ३१३६८, ४४३,७८०, ८४२, ८४५, १४७, ६४६, ६५० भूतक्वय [ भूतक्षय ] जी० ३१६२६ भूतग्गह [ भूतग्रह ] जी० ३१६२८ भूतपडिमा [भूतप्रतिमा [ जी० ३।४१८ भूतमंडलपविभत्ति [ भूतमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ० भूतमह [ भूतमह ] जी० ३१६१५ भूतवडेंसा] [भूतावतंगा ] जी० ३।६२१ भूता [ भूता] जी० २१ भूताणंद [ भूतानन्द | जी० ३।२५० भूमि [ भूमि ] ओ० ५२. रा० ७६६ भूमिगय [ भूमिगत ] रा० ७६५ भूमिचवेडा [ भूमिचपेटा ] रा० २८१. जी० ३।४४७ भूमिभाग [ भूमिभाग ] ओ० १६२. रा० २४, ३२, ३३. ३५, ६५,६६,१२४,१६४, १७१, १८६ से १८८, २०३ से २०६,२०८,२१३,२१६,२१७, २३७,२३८,२५१,२६१. जी० ३।२१८, २५७, २७७,३०६,३१०,३३६,३५६,३५६ से ३६१, ३६४,३६५.३६८ से ३७२,३७४, ३६६, ४००, ४१२,४२१,४२२,४२७,५८०, ६२३, ६३३, ६३४,६४५,६४६,६४८,६४६,६५६,६६२, ६६३,६७०,६७१,६७३, ६६०, ६६१,७३७, ७५५ से ७५८, ७६२, ७६५, ७६८,७७०, ८८३, ४ से ६०,६०५, १०६, ६१२,६१३, १००३,१०३८ भूमिभाय [ भूमिभाग ] जी० ३।४२६ भूमिया [ भूमिका ] रा० ६७५ भूमिसेज्जा [ भूमिशय्या ] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ८१६ भूमी [भूमी ] जी० ३।६३१ भूय [ भूत ] ओ० २,४,६,२६,४६,५५,६२. रा० १३२,१७०,२३६,७०३. जी० ३ १२७, २७३,३०२,३७२,४४७, ६७५, ११२८, ११३० भूयपडिमा [ भूतप्रतिमा] रा० २५७ भूयमह [ भूत मह] रा० ६६८ ७०३ भूयवादिय [ भूतवादिक] ओ० ४६ भूयानंद [ भूतानन्द ] जी० ३।२४६, २५० भूसण [ भूषण ] ओ० २१,४७,५४,५७. ० ६६, ७०. जी० ३।५६३ भूसणधर [भुगणधर ] रा० ८,७१४ भूसिय [ भूषित ] ओ० ६४. २०५३, ७५१ भेत्ता [भित्वा ] जी० ३१६६१ भेद [ भेद ] ओ० २६. जी० ११११८, १२१,१२३, १२४, १२६,१३५ २७६,७८, १०५, १०६ ; _३३१३५,१४२, १४४, २३१,२७६,२८१,९३६ मेय [द] ओ० १. रा० २८,६७५,७६३. जी० ११५८ २ १५१, ३ १२६ ६, ६५० भेकर [ भेदकर ] ओ० ४० भेरव [ भैरव ] ओ० ४६ भेरी [भेरी ] ओ० ६७. रा० १३,७७, ६५७, ७५५. जी० ३१७८, ४४६ मेरुड [ भेरुण्ड ] जी० ३१८७८ heartar [ भेरुतालवन | जी० ३५८१ सज्ज [ भैषज्य ] ओ० १२०,१६२ रा० ६६८, ७५२,७८६ भो [भोस् ] ओ० ५५. रा० १३. जी० ३।४४४ भोग [भोग] ओ० १६,२३,४३,४६, १४८ से १५०. रा० ६७२, ७५१, ७५३, ७६१,५०६ से ८११. जी० ३५६, ११२४ भोग [भोज ] ओ० ५२. ० ६८७,६८८,६६५ httfter [भोगार्थ ] ओ०६८ भोगपुत्त [ भोजपुत्र ] ओ० ५२. रा० ६८७ भोगभोग | भोग्यभोग ] ओ० ६८. रा० ७. जी० ३३५०, ५६३, ८४२, ८४५, १०२४, १०२५ भोगरय [ भोगरजस् ] ओ० १५० रा० ८११ भोच्चा] [भुक्वा ] रा० ६६७ भोजण [भोजन ] जी० ३।५१२ भोत्तए [भोक्तुम् ] ओ० १३४ भोत्तूण | भुक्त्वा ] ओ० १६५।१८ भोम [ भूम ] रा० १३०. जी० ३३०० भोम [ भौम ] २० १६४. जी० ३।३३६ से ३३८, Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०४ भोमिज्ज-मंति ३४५,३५५,३५६ २४१,२४८,२५०,२५६,२६१. जी० ३१२८६, भोमिन्ज [ भौमेय] 1० २७६,२८० ३१४,३४७,३५९,३६७ से ३७१,३.५ ३७६, भोमेज्ज [भौमेय] जी० ३३२५१,२५२ ३:२,३६१,३६४,४०३.४११,४२०,४२४, भोय भोग | ओ० १५. रा०६८५,७१०,७७४ ४३० ४१३,४६६६३६,६५१,६७७,७०८, भोय भोजय]--भोयावेज्जा. मा० ७७६ ७१.६,८८८,८६२,८६४,८६८,६००,६०६६१३ भोयण भोजन ओ० १३५, १९५१८. मंगलय | मङ्गक ! ओ० ६४. जी. ३१३५५,४५७ जी० ३१६०२ मंगल्ल माङ्गल्य रा०६८५,६६२,७००,७१६, भोयणमंडव (भोजनमण्डप रा० ८०२ ७२६,८०२ मंचाइमंच | मानिमञ्च ओ० ५५.१० २८१ मंचातिमंच मजातिमञ्च जी० ३१४४९७ मइ [मति ] ओ० ४६,५७ मंजरि जरी ओ० ५,८,१०. र. १४.. मइअण्णाणि मत्यज्ञानिन् ] जी० ११३०, ८७,६६; श्री० ३१२६८,२७४ ६२०२,२०६,२०८ मंजु, मञ्ज ओ०६६. स.० ५३५.० ३.३०५, मउ | मृदु । रा०७६,१७३ मउंदमह । मुकुन्दमः०६८८ मंड [ग]...-मंडावेज्जा. रा० ७७६ मउड [मुकुट] आ० २१,४७,४६ से ५१,५४,६३, मड मण्ड] जी० ३१८७२,६६० ६५,७२,१०८,१३१. रा०८,२८५,७१४. मंडणधाई मानधात्री] र० २०४ जी० ३१४५१,५६३ मंडल [मण्डल] अं० ५०,६४. रा० १४६. जी. मज्य [ मृटुक] ओ० १६. रा० २८८.जी० ११५०; ३३३२२,८३८११० से १२ ३२२,२८५,३८७,५६६,५९७,६७२,१०६८ मंडला मण्डलक] १०२६५. जी० १४६० मडल [मुकुल ] जी० ३:५६७ मंडलपविभत्ति [मण्डलप्रविभक्ति ग०६० मजलि [ मुकलिन जी० १११०६,१०८ मंडलरोग [मण्डलरोग जी० ३।६२८ मउलि [मौलि ओ० ४७,७२ मंडलिय माडलिक जी० ३३१२६११ मलिय । मुकुलित ] ओ० २१,५४. रा ७१४ मडलियावाय [ मालिक वात! जी० १८१ मऊर { मयूर] जी० ३४५६७ मंडव मण्डप जी० ३।५६४,८६३ मंख मङ्ग] ओ० १,२ मंडवग [माडपक ०६ से ८,१०. जी. अंखपेच्छा [मप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ३१२७५,५०६ जी० ३।६१६ मंडवय | मण्डपको जी०३:५७६,८६३ मंगल मिल] ओ० २.१२,२०,५२,५३,६३,६८, मंडित मण्डित जी० ३.२८५,३०२,४४७ ७०, १३६. ग० ६,१०,४६,५८,१५६,२४०, मंडियमण्डित। ओ०२,४७,५५.५६, रा. २७६,२६१,६८३,६८५,६८७ से ६८६, ६६२, २८१. जी० ३ २६५,३१३ ७००,००४,७१६,७१९,७२६,७५१,७५३, मंडिया पण्डितक | M० १३२ ७६५,७७६,७६४,८०२,८०५. जी. ३.३३२, मंडियागमण्डि क] रा०४० ४०२,४४२ मंत ओ० २५. रा०६७५,६८६,७६१ मंगलग गङ्गलक] रा० २१,१६६,१७७,२०२, मंति मन्धिन् । .. १८. रा० ७५४,७५६,७६२, २०४ से २०८,२१४,२२०,२२३,२२६,२३२, Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंथ-मज्झमझ ७०५ मंथ मन्थ] ओ० १७४ मंद मन्द ] रा०.७६,१७३,७५८,७५६. जी. ३.२८५,६०१,८६६ मंदगति मगनिजी० ३१६८६ मंदर [मन्दर । ० १४,२७. ० १२४,२७६, ६७१,६७६,८१३. जी. ३..१७.१६ से २२१,२२७,३००,४४५,५६६ ५६८,५६६. ५७४,६६८,७०१,७३६,७४०,७४२,७८५, ७५.०,७५४,७६२,७६५,७६६,७७५,६३७, मंदरगिरि म द गि०१२. २2. मंदलेस | गन् श्य जी० ३१८३८१२६ मंदलेस्स मंदलेश । जी० ३।८४५ मंदाय | मन्द रा० ४०,११५,१६२,१७३,२५१. जी० ३।९६५,९८५,४४७ मंदायवलेस्समदातालेय जी० ३१८४५ मंस मांस] आ० ६२.६३ २०७०३ मंसल माल ओ० १६. जी० ३१५६६,५६७ मंसमुह माससुख ओ० ६३ मंसु श्मश्रु .० १६. जी० ३१४५५,५९६ मकरंडकमक गडक जी० ३।२७७ मगदंतियागुम्म २० जी० ३१५८० मगर मकर ओ० १३,४६. रा० १७,१८,२०, ३२,३३.१२६. ज.० १.६६.११८, ३१२८८, ३००,३११,७२,५६६,५६७ मगरंडा मकाण्डका रा० २४ मगरासण मकरासन रा० १८१,१८३. जी. ३।२६३ मगरिया मकरिका! रा०७५. जी० ३१५६३ मगुंद | मुकुन्द जी० ३१५८६ माग [ मार्ग आ०४६,६५,७२ मरगण मागं औ० ११७,११६,१५६ मगतो पृष्ठतस् | अं० ५५ मग्गदय मार्गदय आं० १६.२१,५४. २०८, २६२. जी० ३।४५७ मघमघेत [प्रसरत् ओ० २.५५. रा०६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२६२. जी० ३।३०२,३७२, ३९८,४४७ मघव | मघवन् ] जी० ३३१०६८ मघा [मधा जी० ३।४ मच्चु [मृत्यु] ओ० ४६ मच्छ [ मत्स्य ओ० १२,४६,६४. रा० २१,४६, १७४,२६१. जी० १११००, ३१८८,११८, ११६,२८६,२८६,५९७.६६५,६६६,६६८,९६६ भच्छंडक गत्स्याण्डक जी० ३:२७७ मच्छंडग [ मत्स्याण्डक रा० ८४ मच्छंडापविभत्ति मत्स्याण्डकप्रविभक्ति | रा०६४ भन्छंडामयरंडाजारामारापविभत्ति [मस्याण्डकमक राण्डकमारकमारकत्रावभक्ति रा०६४ मच्छडिया | मत्स्य गिट्टका जी० ३१६०१,८६६ मच्छंडी मत्स्यण्डी] जी० ३।५६२ मच्छग मत्स्य जी०१:१६ मच्छियपत्त ! मक्षिकापत्र] ओ० १६२ मच्छी [मत्स्थी जी० २।४ भज्ज मद्य | ओ० ६२,६३. जी० ३१५६६ मज्जा मस्ज्--मजावेज्जा. रा० ७७६ मज्जण | मज्जन ओ०६३ मज्जणघर मजनगृह | ओ० ६३ मज्जणघरग मज्जनगृहक रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ मज्जणधाई मज्जनधात्री रा. ८०४ मज्जार [मार्जार] जी० ३१८४ मज्जिय [मज्जित ] ओ० ६३ मज्झ मध्य ] ओ० १५,१६,६३,६८. रा० १२५, १२७,२४०,२४५,२८२,६७२,७६६.. जी० ११४६, ३.५२,५७,८०,२६१,३५२, ५६६,६३२,६६१,६८६.७२३.७२६,७३६,८३६ ८८२ मज्झंभज्झ मध्यमध्य ] ओ० २०,५२,६७ से ७०. रा० १०,१२,५६,२७६.६८३,६८५,६८७, ६६२,७००,७०६,७०८,७१०,७१६,७२६. जी० ३,४४५,५५७ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्झमय-मणिजाल मज्झगय [मध्यगत ] रा० ७३२ मणपज्जक्याण मनःपर्यवज्ञान] ओ० ४०. मजाछिष्णक [मध्यछिन्नक ] ओ०६० १० ७३९,७४४,७४६ मज्झिम मध्यम] ओ० १६५१६. २०० ४३,६६१. मणपज्जवणाणविणय [मन पर्यवज्ञानविनय जी० ३१७७,२३६,६५८,६८१,१०५५ ओ० ४० मज्झिमगेविज्ज [मध्यमग्रे बेय] जी० २०६६ मणपज्जवणाणि [मनःपर्यवशानिन् | ओ० २४. मज्झिमगेवेज्जा [मध्यमवेयक ] जी० ३।१०५६, जी. ११३३; १५६,१६२,१६५,१६६, १६७,२०२,२०४,२०८ मज्झिमिय (मध्यमिक] जी० ३१२३५ से २३६, मणबलिय | मनोबलिक] ओ० २४ २४१ से २४३,२४६,२४७,२४६,२५०,२५४ मणविणय मनोविनय | ओ० ४० से २५६,२५८,३४२,५६०,१०४० से १०४२, मणसमिय | मन समित | औ० १६४ १०४४,१०४६,१०४७१०४६ से १०५३,१०५५ मझिय मध्यक जी० ३१५६७ मणहर | मनोहर ] ओ०७,८,१०. रा० १७,१८, मज्झिल्ल | मध्यम] जी० ३१ ३२५,७२८ २०,३० ४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६. मट्टिया [मृत्तिका] ओ०१८. रा०६,१२,२७६ से जी० ३।२७६.२८३,२८५,३०२,३०५ २८१ जी० ३।४४५,४४६,४४८ मणाभिराम [ मनोभिराम] ओ०६८ मट्टियायाय मृत्तिकापात्र औ० १०५,१२८ मणाम | दे० ओ० ६८,११७. रा० ७५० से मट्ठ [मृष्ट] बो० १२,१६,८७,७२,१६४. रा० २१, ७५३,७७४,७६६. जी० १११३५; ३३१०६०, २३,३२,३४,३६,५२,५६,१२४,१४५,१५७, २३१.२४७. जी. ३:२६१,२६६,२६६,३६३, मणामतराय दे०रा०२५ से ३१, ४५. ४०१,५६६,५६७. जो० ३।२७८ से २८४,६०१,६०२,८६०, मड [ मृत] जी० ३१८४,६५ ८६६,८७२,८७८,६६० मडब मिडन] अं० ६८,८६ से ६३,६५,६६,१२५, मणि मिडि | ओ० २३,४७,४६,५२,६३,६४. १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६७ रा० १७,१८,२४ से ३३,३७,४०,४५,५१,६५, मड्डय [दे० मड्डक | रा० ७७ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१५४,१६०,१७१, मण मनस् | ओ० २४,३७,४०,५७,६६,७० १७३,१७४,२०३,२२८,२३७,२५६.२६२, रा० ३०,४०,१३२,१६५.१७३,२२८,२३६, ६८७ से ६८६,६९५,८०४. जी. ३।२६५, ७६५,७७८,८१५. जी. ३।२६५,२८३,२८५, २७७ से २८६,३००,३०२,३०७,३०६ से ३०२,३०५,३८७,३६८,६७२ ३११,३३३,३३६,३६०,३६४,३७२,३७६, मणगुत्त [मनोगुप्त ] ओ० २७,१५२,१६४. ३८७,३९६,४१२,४१७,४२१,४५७,५७८, रा० ८१३ ५८७,५८६,५६०,५६३,६०८,६४५,६४८, मणगुलिया [मनोगुलिका] जी० ३१४१२,४१६,४४५ ६५६,६७०,६७२,६६०,७५७ भणजोग | मनोयोग] ओ० ३७,१७५,१७७,१७८, १८२ मणि (पाय) मणिपात्र ] ओ० १०५,१२८ मणजोगि [मनोयोगिन् जी० ११३१,८७,१३३; मणि (बंधण) [मणिबन्धन ] ओ० १०६,१२६ ३३१०५,१५३,११०६; ६११३ ११४,११५, मणिजाल मणि जाल] ग० १६१. जी० ३१२६५, १२० ५६३ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिपेढिया मोग मणिपेढया | मणिपीठिका | रा० ३६,३७,६६,६७, २१८,२१६,२२१,२२२,२२४ से २२७,२३०, २३१,२३८, २३६,२४२ से २४७, २५२, २५३, २६१,२६४,२६७,२६६,३००,३०५ से ३११, ३१७ से ३२१, ३३८, ३४४ से ३४७, ३५२ से ३५४, ४१४,४७४, ५३४, ५६५. जी० ३१३१०, ३११,३६५, ३६६, ३७७.३७८, ३८०, ३८१,३८३ से ३८६,३६२,३९३,४००, ४०१,४०४ से ४०६,४१३,४१४,४२२,४२३, ४२७, ४२८, ४५७, ४६५, ४७० से ४७४, ४८२ से ४८६,५०३, ५०६ से ५१२, ५१६ ते ५१६, ५२६,५३३,५४०,५४८, ५५७, ६३४, ६४६, ६५०,६६३,६७१ से ६७५, ७५८, ७५६,७६५, ७६८,७७०, ८६१ से ६००,६०६,६०७ मणिमय [ मणिमय ] रा० १६,२०,३६,३७,१३०, १३५,१३८, १५५,१६०,२१८,२२१,२२४, २२६,२२८,२३०,२३८, २४२, २४४ से २४६, २६१,२७०, २७६,२८० जी० ३।२६५,२८७, २८८,३००,३०५,३११,३१३,३२२,३५३, ३६५,३७७, ३८०, ३८३, ३८५, ३६२,४००, ४०४,४०६ से ४०८, ४१३, ४२२,४२७, ४३५, ४४३, ४४५, ६४६, ६४६, ६५४,६७१,७५८, ८६१,८६३,८६५, ८६७,८६६,६०६ मणियंग [ मव्यङ्ग | जी० ३१५६३ मणिलक्खण [मणिलक्षण | ओ० १४६. रा० ८०६ fan | मणिवृत्तक | जी० ३०५८७ मणिसिलामा | मणिशलाका ] जी० ३१५८६,८६० मई [ मनुजी ] जी० ३।५६७ मणुष्ण | मनोज ] ओ० ४३,६८,११७. रा० ३०, ४०,७८,१३२,१३५,१७३,२३६,७५० से ७५३, ७७४,७६६. जी० ११३५; ३।२६५, २८३,२८५,३०२,३०५, १०६०, १०६६, १११७ गुणतराय [मनोज्ञतरक] २० २५ से ३१,४५. जी० ३२७८ से २८४, ६०१ म [ मनुज ] ०४४,६८,६०,६१,६३,१६१, ७०७ १६३,१६८. रा० २८२,८१५. जो० ११५२; ३८८,१२६, ४४८,५५६, ५६६, ५६८ से ६००, ६०३,६०५ से ६२१,६२५, ६२७ से ६३१, ७६५,८४१,११३७; २५४ मणुरायवसभ [ मनुजराजवृषभ ] ओ० ६५ मणुयलोग [मनुजलोक ] जी० ३१८३८११,४ से ६ मणुयलोय [ मनुजलोक ] जी० ३१८३८१३ मणुस [ मनुष्य ] ओ० ७३,१७० रा० २७,७३२, ७३७,७७१. जी० ११५१,५४, ५५,५६,६१,६५, ७६,८७,६१,६६,१०१,११६, १२३.१२६,१२६, १३४,१३६; २१२,११,१४,२६ से ३०, ३२ से ३४,५४, ५७ से ६१,६५,६६,६८,७०,७२,७५, ७७,८०,८४,८५,८८, १६, १०६, ११४, ११५, १२३,१२४,१३२ से १३४, १३७,१३८, १४३, १४५, १४७, १४६; ३११,८४,११८, २१२ से २१५, २१७ से २२५, २२७ से २२६,२८०, ५७६, ८३६,८३८११३, ८४०, ११३२, ११३५, ११३८ ६१.४,६,१२ ७११, ६, १२, १७, १८, २०,२३; ११५६,१५८, २०६,२१८,२२०, २३१ मस्सखेत [ मनुष्यक्षेत्र ] जी० १११२७; ३।२१४, ८३५ से ८३७,८३८२१ मस्सजोणिय [मनुप्ययोनिक ] जी० राष्ट मणस्तत [ मनुष्यत्व ] ओ० ७३ मस्सिद [ मनुष्येन्द्र ] ओ० १४. रा० ६७१ मस्सी [ मानुषी ] जी० ३: ५७६; ६ । ११४, ६, १२; ६२०६,२१८,२२० मणूस [ मनुष्य ] ओ० १. जी० ३९६३, ६६७; २१२, २२१,२२५,२२६,२३२, २३७,२३८, २४५,२४६,२५०,२५१,२५५,२६७,२७२, २७३,२८१,२८२,२८६,२८७,२६०,२६३ मणूसपfरसा [ मनुष्य परिषद् | ओ० ७८ मसी [ मानुषी | जी० ६।२१२ मणोगम [ मनोगम] ओ० ५१ मोगय [ मनोगत ] रा ० ६,२७५, २७६,६८८, Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणोगुलिया-मल ७३२,७३७,७३८,७४६,७६८,७७७,७६१, ७२३,३७४,७६६.जी०३१४४२,४४५,४४८, ७९३. जी० ३।४४१,४४२ ४५७,५५५ मणोगुलिया [मनोलिका ] रा० १५३,२३५, मद [मद] गी० ३१८६० २५८,२७६. जी० ३१३०६,३५५,३६,६०२ मद्दण मर्दन | ओ० १६१,१६३ मणोजगुम्म [मनोज गुल्म] जी० ३१५८० मद्दय मर्दक | जी० ३१५८६ मणोणुकूल [मनोनुकून जी० ३१५६४ मद्दल | मर्दल | रा० ७७ मणोमाणसिय [मनोमानसिक रा०८९५ मद्दव [ मार्दव ! ओ० २५,४३. ६० ६८६,८१४. मणोरम [ मनोरम | जी० ३.६३४ जी० ३१५६८,७६५.८४१ मणोरमा | मनोरमा जी० ३१६२० भधु [मधु जी० ३.८६० मणोरह | मनोरथ ] ओ० ६६ मधुर मधुर जी० ३१२८५ मणोसिलक | मनःशिलक! जी० ७४५ ममत्तभाव | ममत्वभाव जी० ३.६०८ मणोसिलग मनःशिलक| जी० ७४५ मम्भ मर्मन् ] रा० ७६३ मणोसिलय | मनःशिल की जी० ७३४,७४६ मय [मृत] रा० ७६२. जी०१४ मणोसिला मनःशिवारा० १६१,२५८,२७६. मयणसाला दे० ० ६. जी० ३३२७५ जी०३:३३४,४१६,७४७ मयणिज्जमदनीय औ० १३. श्री० ३.६०२, मणोसिलाइढवी मनःशिलापृथ्वी जी० ३.१८५. ६०,८६६,८७२,८७८ १८६ मयपइया मृतपत्रिका | ओ० ६२ मणोहर मनोहर रा० ७६,१७३. जी० ३।२६५, मयर [मकर] ओ० ४८ २८५ भयरंडापविभत्ति | मकाण्डक पविभक्ति रा०६४ मति | मति | जी० ३.११८,११६ मिर म---मरंलि. जी ०१:५३ मतिअण्णाणि मत्यज्ञानिन | जी० ३.१०४,११०७. भरगय मरकत अं० १३ ६।१६७,२०२ भरण | मरण | ओ० २५,४६,७४,१७२ १६१८, मत्त । अम जी० ३.११२८,१५३० १२ रा०६८६ मत्त गो० १,६,२६,५७,६८. १० १४८, ___ भरीइ मावि जी० ३:११२२ २८८. जी. ३।११८,११६,२७५,३२१,४५४ ।। मरोइया । मरीचिका] रा० २१,२३,२४,३२,६४, ३६,१२४.१४५ मत्तंगय | मत्ता क जी. ३.५८६ मरीचिया मरीचिका ओ० १६४ मत्तगयर्यावलंबियम जविलम्बित रा०६१ मरीतिकक्ष्य मीचिकवच १० ३२ मत्तगयविलसिय मिजावलसि०६१ भरुंडोम ० ७० मत्तहविलंदिय । मलहविलम्वित । रा०६१ मरुपक्खंदोलग [मरुपक्षान्दोलक | ओ०६० मत्तहयविलसित | मत यविलहित रा०६१ मरुपडियग [मरुपतितक | ओ०६० मत्थगसूल [मस्तकल जी० ३१६२८ मरुया | मख्यक,मरुत्तक | M०३०. जी० ३२८३ मत्थय । मस्तक | ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२, मल | मल| ओ० ८६,६२. जी० ३५६८ ११७. रा ८,१०,१२,१४,१८,४६,७२,७४, मिल मृद्-मलः ज्जइ. रा० ७८५ ११८,२७६,२७६२८२,२६२,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१०,७१३,७१४, १. मुरंडी (रा० ८०४) । Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलय-महज्जुईय ७०६ मलय मलय] ओ० १४. रा० १५६.१७३,२७६, मसीगुलिया [मगीगुलिका ] रा० २५. ३८५,६७१,६७६. जी० ३१२८५,३३२,४४५, जी० ३।२०८ मसूर [ मसूर] जी० १११८ मलिय [मर्दित ओ० १४. रा० ६७१ मसूरग [ मसूरक ] ग० ३७. जी० ३१३११ मल्ल [ माल्य] ओ० ४७,५१,६७,७२,६२,१०६, मह | मथ् ] ----महेइ. रा० ७६५ १३२.१४७,१६१,१६३. २०१३,१३३,१५६, मह मिह ] जी० ३६३११२ १५७,२५८,२७६ से २८१,२८५,२८६,२६१, मह । महत्] ओ० ३,७,८,१०,१४,४६,५२,६७ ३५१,५६४,६५७,७००,७१४,७१६,७६४. से ६९. रा० ३,४,१२,१३,१५,३२,३५ से ३६,५३,१२३,१४८,१८८,२०४,२३८,२४२ ८०२,८०८. जी० ३१३०३,३२६,४१६,४४५, ४४६,४५१,४५७,५१६,५४७,५६१ से २४६,२५१ से २५३,२६० से २६२,२६५, २६७,२६६,२७०,२७२,२७३,२८८,६८८, मल्ल मल्ल और १,२ ७६०,७६१,७७४. जी० ३१११०,११८,११९, मल्लइ मल्लवि] ओ० ५२ रा०६८७,६८८ २७३,२७६,२६८,३३८,३६१,३६४ से ३६६, मल्लइपुत्त मल्ल विपुत्र] रा० ६८७,६८८ ४००,४०१,४०४ से ४०८,४१०,४१२ रो ४१४, मल्लग [दे० मल्लक] जी० ३१५८७ ४२१ से ४२३,४२५ से ४२८,४३१,४३४, मल्लजुद्ध मल्लद्ध] ओ० ६३ ४३५,४३७,४३८,४४६ से ४४६,४५४,६४२, मल्लदाम माल्यदामन् । ओ० २,५५,६३ से ६५. ६४६,६५०,६७१ से ६७५, ६८२,६८३,६८५, रा०३२,५१,१३२,२३५,२५५,२६४,२६६३००, ६८६,६६२ से ६६८,७३७,७५६,७५८ ३०५,३१२,३५५,६८३,६६५. जी० ३१२८२, महइ महती स०७३२. जी० ३१७७,२६२, ३०२,३७२,३६७,४१६,४४७,४५२,४५७,४५६, ७२३ ४६१,४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२० महंत महत् । ओ०१४,४६. रा०६७१,६७९. मल्लपेच्छा [मल्लप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. __जी० ३११११,१२४,१२५ जी० ३३६१६ महंती [महती] रा० ७७ मल्लिया [मल्लिका]:10 ३०. जी. ३१२८३ महामह [महाग्रह | जी० ३१७०३,७२२,८०६, मल्लियागुम्म [मल्लिकागुल्म जी० ३.५८० ८२०,८३०,८३४,८३७,८३८१६,१३, मल्लियामंडवग मल्लिकामण्डपक] रा० १८४. १००० जी०३।२९६ महग्ध महाघ ओ०२०,५३. रा० २७८,२७६, मल्लियामंडवय मल्लिकामण्डपक । स० १०५ ६८०,६८१,६८३ से ६८५,६६२,६६६,७००, मसग | मशओ० ८६,११७. रा० ७६६. ७०२,७०८,७०६,७१६,७२६,८०२. जी० ३।६२४ जी० ३१४४४,४४५ मसार मार | रा० १३ महच्च | महार्च, महार्य ] रा०६६३,६६४.७१७, मसारगल्ल | मसार गल्ल रा० १०,१२,१८,६५. ७३२,७६६,७७६ २६५.२७६. जी० ३७ महज्जुइतराय [महाद्युतितक] रा० ७७२ मसिंहार | मो. हार ओ० ६६ महज्जुइय माद्युतिक ! ओ० ४७,७२,१७०. मसी [ मसी, मपीरा ० २५,२७०. जी० ३॥ २७८, रा० १८६,५७२. जी० ३।११६ ४३५,६०७ महजईय [ महाद्युतिक] रा० ६६६ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० महज्जुतीय-महापउमरुवख महज्जुतीय [महायुतिक ] जी० ३।४६,३५०, महण [मथन] जी० ३३५६२ महता महत्] जी० ३१३०१,३०२,३२१ से ३२३ महति [महती| ओ०७१,७६. रा०५२,५६,६१, ६६३,६६४,७१७,७७६,७८७. जी. ३२१२, ११७,११३० महती महती। जी० ३१५८८ महत्तर महतर ओ० ७० महत्तरगत महत्तरकत्व ] ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३३३५०,५६३,६३७ महत्थ महार्थ] रा० २७८,२७६,६८०,६८१, ६८३,६८४,६९६,७००,७०२,७०८,७०६. जी०३१४४४,४४५ महद्धण [महाधन] ओ० १०५,१०६,१२८,१२६ महप्पभ [महाप्रभ] जी० ३।९८५ महम्फल [महाफल ओ० ५२. रा०६८७ महब्बल [महाबल] ओ० ४७,७१,७२,१७०. ०६१,६६६. जी० ३१५६५ महन्भूय [महाभूत] रा० ७५१ मयर [महत्तर रा० ८०४ महया मत् | रा०७,१३१,१३२,१४७ से १५१, १६७,२८० से २८३,६५७,६७१,६७६,६८३, ६८७ मे ६८६.६६२,७००,७१२,७१६,७३२, ७३७,७५५.८०३,८०५. जी. ३१३२४,३५०, ४४७,५६३,८४२,८४५,१०२५ महरिह [महाह] ओ० ६३. रा० ६६,७०,२७८, २७६,६८०,६८१,६८३,६८४,६६६,७००, ७०२,७०८,७०६. जी० ३१४०४४४५, ५८६ महल्ल मिहत्) औ० ४६ महल्लिया [ महती ] ओ० २४ महआसवतर महानवतर] जी० ३।१२६ महाउस्सासतराय [महोच्छ्वासतरक] रा०७७२ महाकदिय [महाऋन्दित ओ० ४६ महाकम्मतर [महाकर्मतर] जी० ३॥ १२६ महाकम्मतराय [महाकर्मतरक] रा० ७७२ महाकाय [महाकाय] ओ० ४६ महाकाल [महाकाल ] जी० ३११२,११७,२५२, ७२४ महाकिरियतर महाक्रियतर] जी० ३।१२६ महाकिरियतराय [महाक्रिपतरक] रा० ७७२ महागुम्मिय महागुल्मिक ] जी० ३११७१ महाघोस ] महाघोष ] जी० ३।२५० महाजस [महायश- ] ओ० १७० महाजाइगुम्म महाजातिगुल्म] जी० ३१५८० महाजुद्ध [महामु जी ० ३।६२७ महाणई महानदी ओ० ११७. रा० २७६. जी० ३।४४५,६३६, महाणगर महानगर] जी० २११४० महाणदी [महानदी रा० २७६. जी० ३।३००, ५६८,६३२,६६८,७४६,८००,८१४,६३७ महाणरग [महानरक] जी० ३११२,११७ महाणिरय [महानरक] जी० ३७७ महाणील [महानील ] ओ० ४७ महाणुभाग महानुभाग] आ० ४७,७२,१७०. रा० १८६,६६६. जी. ३३८६,९८८ से १६७, १११६ महाणुभाव [महानुभाब जी० ३.३५०,७२१ महातराय महत्तरक] रा० ७७२ महातव [महातपस् ] ओ० ८२ महापायइरुक्ख [महाजातकीरूक्ष जी० ३१८०८ महानई महानदी] ० ११५,११७. रा० २७६ महानीसासतराय [महानिःश्वासत रक] रा० ७७२ महानोहारतराय [ महानीहारत रक] रा० ७७२ महापउम महापम रा० २७६ महापउभद्दह महाप मद्रह] जी० ३१४४५ महापउमरुख ! महापद्मरूक्ष जी. ३१८२६ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापट्टण-महिंदकुम महापट्टण महापत्तन | ओ० ४६ ।। महालय महत् ] ओ० २४,७१,७८. रा० ५२, महापरिग्गहया [महापरिग्रहता ओ० ७३ ६१,६६३,६६४,७६६,७७२,७७६,७८७. महापह महापथ] ओ० ५२,५५. रा० ६५४, जी० ३११२,७७,११७,७२३,११३० ६५५,६८७,७१२. जी. ३१५५४ महालयत्त महत्त्व जी० ३.१२७ महापाताल [महायताल] जी० ३१७२३,७२६ महालिजर [महालिञ्जर जी० ३।७२३ महापायाल [महापाताल] जी० ३।०२३ से ७२५, महालिया [महती] २० ७६६,७७२ ७२६ महावत्त [महावत ] ओ० ४६ महापुंडरीय [महापुण्डरीक] ओ० १२. महावाय महावात रा० १२३ जी० ३.११८,११६ महाविजय [महाविजय] जी० ३६६०१ महापुंडरीयद्दह [महापुण्डरीकद्रह] जी० ३६४४५ महापुरिसनिपडण [महापुरुषतिपतन ] महावित्त [महावृत] रा० २६२. जी० ३।४५७ महाविदेह महाविदेह आं० १४६. रा० ७६६. जी० ३.११७,६२७ महापोंडरीय [महापौण्डरीक] ओ० १५०. जी० २११४; ३१२२६ महाविमाण (महाविमान ओ० १६७,१६२. रा० २३,१६७,२७६,२८८.८११. रा० १२६ जी० ३।२५६,२६१ महावीर [महावीर] ओ० १६ से २५,२७,४५,४७ महाबल [महाबल] रा० १८६. जी० ३१८६, से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३,११७. ३५०,७२१,१११६ रा०८ से १३,१५,५६,५८ से ६५,६८,७३, महाभद्दपडिमा [महाभद्रपतिमा | ओ० २४ ७४,७६,८१,२३,११३,११८,१२०,१२१, महाभरण [महाभरण] रा० ६६,७० ६६८,८१७ महमद महामति रा०७६५,७३६,७७० महावेयणतर [महावेदनतर] जी० ३।१२६ महभंति महामन्त्रिन् । ओ०१८. रा० ७५४, महासंगाम [महासंग्राम [ जी० ३.६२७ ७५६,७६२,७६४ महासत्यनिपडण । महाशस्त्रनिपतन] जी० ३१६२७ महामहतराय (महामहत्तरक] रा० ७७२ महासन्नाह [ महासन्नाह ] जी० ३१६२७ महामहिम [महाममिन् । जी० ३१६१५,९१७ महासमुद्द [महामुद्र ओ०५२. रा०६८७. महामुह महामुख रा० १४८,२८८. जी० ३१८४२,८४५ जी. ३३३२१,४५४ महासवतराय [महास्रवतरक स० ७७२ महामेह [महामेध ओ० ४,६३. रा० १७०,७०३. महासुक्क महाशुक्र] ओ० ५१,१९२. जी० २।६६, जी० ३२७३ १४८,१४६ ; ३११०३८,१०५१,१०६१,१०६६, महायस महायशस् ] ओ० ४७.७२. रा० १८६, १६८,१०८६,१००८ ६६६. जी० ३८६,३५०,७२१,१११६ महासोक्स [महासौख्य ] ओ० ४७,७२,१७०. महारंभ [महा:म्भ] जी० ३।१२६ रा० १८६,६६६ महारंभया [महारम्भता] ओ०७३ महाहारतराय | महाहारतरक] रा० ७७२ महारव [महारव ओ०४६ | महाहिमवंत महाशिमवत् ] रा० २७६. महारुक्ख [महारूक्ष डी० ३.१७१ जी० ३।२८५,४४५,७६५ महारोरुय [महारोरुक जी० ३।१२,११७ महिंद महेन्द्र ] ओ०१४, रा०६७१,६७६ महासत महत] रा० ५६० महिंदकुंभ [महेन्द्रकुम्भ] रा० १३१, १४७. Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ महिंदज्झय-माणणिज्ज जी० ३।३०१ महेसक्ख महेशाख्य | जी० ३।६६,३५०,७२१, महिंदज्झय महेन्द्रध्वज] र: ० ५२,५६,२३१ से २३३,२३६,२४७ से २४६,३११,३१४,३४६, महोरग [मोरग ओ० १२०,१६२. २०१४१, ३५४. जी. ३।३९३ ले ३६५,४०१,४०६. १७३,१६२,६९८,७५२,७७१,७८६. ४१०,४१२.४७६,४७६,५१४,५१६,६००,९०१ जी०१:१०५,१२१, ३१२६६,२८५,३१८,६२५ महिच्छ नहेच्छ] ओ०४: महोरगकंठ महोर गकण्ठ ] रा० १५.५,२५८. महिडियम.द्धिक] ओ० ४ से २.१,७२,१७०. १० १८६ जी० ३२५३,२५७,६५,७९५ महोरगकंठगम गकाण्डक। जी० ३.४१६ ८०८,८२६,८५.७,८६०,८६३,८६६,६६६.८७३, महोरगी महोगी जी० २१८ ८७५,५७,६२१,१०२६ मा [मा ओ० ११७. रा ६६५ माहिडियतरायमालिकारक। रा०७२ माइय दे! ओ० ५.८,१०. रा० १४५. जी. महिडीयम"! रा०६६६. जी० ३८६, ३.२६८२७४ ३५.६,६३७,६६४,७००,७२१,७२४,७३८, माइय मात्रिक ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ ७४१,७४३,७४६,७६०,३६३,७६५,८१६, माइरक्खिया मातृरक्षिता ओ० ६२ ८५४,८५५,६२३,६८८ से ६६७,१०२१, माइल्लयामायिता । ओ०७३ १११६ माउ [मातृ] ओ० १४. रा ० ६७१ महिम [ महिमन् । जी० ३।६१६ मागथ मागध] जी० ३:४४५ महिय | मथितारा० ३८,१६०,२२२,२५६. मागह [मागध] आ० २,१११ से ११३. रा० २७६ ० ३१२१२,३३३,३-१,८६४ मागहमेच्छा [मागधप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० महिय माहित आ० २,५५. रा०:२.२८१. जी० ३१३७२,४४७ मागहय |मागका ० १३७.१३८ महिया मका, जी० ११६५, ३॥६२६ मागहिया [मागधिका | ओ० १४६. रा० ८०६ महिवइवह । महीपतिपथ | t० १ माघवती मायवती जी० २६४ महिस महिप० १,१४,१६,५१.१०१,१२४, माइंबिय मामित्रक) ओ०१८,५२,६३. रा० १४१. रः० २७,६७१,७७४,८६६. मी० ३१८४, ६८७,६८८,७०४,७५४.७५६,७६२,७६४. २८०,५६६,६१८,१०३८ जी० ३.६०६ महिसी महिपी जी० ३३६१६ माण मान | ओ०१५,२८,३७,४४,७१,६१,११७, मह मदु ओ० ६२,६३. जी. ३५८६,५६२ ११६,१४३,१६१,१६३,१६८. रा०६७१ से महुयर [मधुकर) ओ० ५७ ६७३,७४८ से ७५०,७७३,७६६,८०१,८१६. महुयरी मधुकरी । ओ० ६. जी० ३१२७५ जी० ३१२८,४३८,५६८,७६५,८४१ महुयासव मध्वाश्रक ओ० २४ माणकसाइ [मानरूपायिन् | जी० ६१४८,१४६, महरमपुर अ.०६,७१. ० १३,१४,१७,१८, १५२,१५५ २०,६१,७६,१७३. जी० २५,५०, ३१२२, माणकसाय मानकषाय ! जी०१।१६ ११८,११६,२७५,२८६,५६७,६३६,८५७,८६३ माणणिज्ज [ माननीय ] रा० २४०,२७६. जी० महेला [महेला जी० ३३५६७ ३१४०२,४४२ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणवक- माहण माणवक [मानवक ] जी० ३।४०२, ४०४,५१६ मानवा | मानवक ] रा० २४४,३५१. जी० ३४०३, ४०६,१०२५ मानवय [ मानवक ] रा० २३६, २७६.३५१. जी० ३।४०१,४४२,५१६ माणविवेग [मानविवेक] ओ० ७१ माणस [मानस ] ओ० ७४. १० १५ मास | मानसिक ] ओ० ६६ माणूस [ मानुष] ओ० १६५.१३. रा० ७५१, ७५३. जी० ३८३२ माणुसना | मानुनग ] ०३८३८२०, ३२ माणुसभाव [ मानुभाव | ओ०७४ | ३ माणुसुत्तर | मानुषोत्तर जी० ३१८३१,८१३. ८६८४२८४५ माणुस [ मानुष्य ] औ०७४।२. ० ७५१,७५३. जी० ३ ११६ माणुस्त [ मानुष्यक ] १० ७५१ माणुस [ मानुष्यक ] ओ० १५. ० ६८५,७१०, ७५३,७७४, ७६१ मातंग [ मातङ्ग ] ओ० २६. जी० ३।११८ माता [मातृ | जी० ३६११ माता [ मात्रा | जी० ३।६६८,८८२ / माय [ मा] - माएज्जा ओ० १६५।१५ मायंग [ मातङ्ग | जी० ३।११६ [मातृ] ओ० ७१,१६२. जी० ३१६३११२ माया [ माया ] ओ० २८,३७,४४,७१,६१,११७, ११६, १६१, १६३,१६८. २० ६७१,७६६. जी० ३१२८, ५६८, ७६५, ८४१ मायासा | मायापायिन् ] जी० ९११४८, १४९, १५२, १५५ मायासाय | मायकपाय ] जी० १।१६ amite [मायामृश ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३ मायामविवेग [ मायामृगाविवेक | ओ० ३१ मायाविवेग | मायाविवेग | ओ० ७१ मार [ मार] रा० २४. जी० ३।२७७ ७१३ मारणंतिय [ मारणान्तिक | ओ० ७७ ० १८६ मारणं तियसमुग्धात | मारणान्तिकसमुद्घात | जी० ३।१११२, १११३ मारणंतियसमुग्धाय मारणातिर मुद्धात जी० ११२३,५३,६०,८२,१०१, ३०१०८,१५८५ मारापविभत्ति नाक विक्ति | ०४ मारि [ मारि] ओ० १४. २१० ६७१ मालणीय | माननीय २०१७,१८,२,३२.४२६. जी० ३२८८,३७२ मालय (दे० मालक जी० ३१५६४ मालवंत माल्यवत् | जी० ३१५०७,६६४,६६७ लवंत व ३।६६७ मालवंतपरियाग माध्यम पर्याय २७६ जी० ३:४४: मालवंतपरिया | माल्यवत्पर्याय ] बी० ३।७६५ मालामाल ] ४७,५०,६३,६६,७२. जी० ३५६१ मालागार [ मालाकार ] रा० १२ मालिघरग [ मालिगृहक] १० १८२१८२. जी० ३२६४ मालिनीय | मालिनीय | जी० ३।३०० मायामंडव | मालुकामण्डपक रा० १८४. जी० ३१२६६ मालुयामंडन | मालुका मण्डपक] ० १८५ मास ( माग ! ओ० २८,२६.११५,१४३. ग ८०१. जी० ११८६, ३१११६,१७६,१७८, १८०, १८२,६३०, ८४१, ८४४,८४७, १०८० ४.४,१४ मास | मात्र ] जी० १८१६ मारिया | मासपर्वा | ओ० २३ मासल | मांदल ] जी० ३८१६,८६०,६५६ मासि [मा]ि ओ० ३२ मासिया माती] ओ० २४,१४०,१५४ माहण | माहन ] ओ० ५२,७६ से ८१. ० ६६७, ६७१,६८७,६८८,७१८,७१६,७८७,७८६ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१४ माणपरिवाय-मुएत्ता माहणपरिष्वाय माहनपरिव्राजक] ओ०१६ ८०२,११. जी० ३.६१३,६३१ माहणपरिसा माहनपरिषद् ] रा० ७६७ मित्त मात्र] रा० २५४,८०६,८१० माहप्प [माहात्म्य] ओ० ७१. रा०६१ मितपक्ख [मित्रपक्ष] जी० ३१४४८ माहिद माहेन्द्र ] ओ० ५१,१६२. जी. २०६६, मिथुण मिथुन] जी० ३१६३६ १४८,१४६, ३।१०३८,१०४७,१०५८,१०६६, मिघुण (मिथुन] जी० ३६३५५ १०६५,१०७६,१०८८,१०६४,११०२,११११ मिय (मग] रा०६७१,७०३,७१५ मिउ मृदु] रा० ३७,१३३. जी० ३।३०३,३११, मिय [मित] ओ० १६ ५६२,५६६,५६८,७६५,८४१ ।। भियगंध [ मृगगन्ध] जी० ३१६३१ मिउमद्दवसंपण्ण [मृदुमार्दवसम्पन्न ] ओ० ११ मियवण [मृगवन ) रा० ७०६,७११,७१३.७१६. मिउमद्दवसंपणया [मृदुमार्दवसम्पन्नता] ओ० ११६ मिजा [मज्जा] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, मिरिय [ मरीचि ] रा० १३३. जी. ३१२६१,३०३ ७५२,७८६ मिरीइकवच [मरीचिकवच जी० ३१३७२ मिग मिग] ओ०५१. रा०२४. जी०३१०३८ मिरीय [मरीचि जी० ३१२६६,२६६,२७७ मिगज्य [मगध्वज] रा० १६२. जी०३१३३५ मिल ! मिल्] -मिलति जी० ३।४४५ मिगलुद्धग [ मृगलुब्धक] ओ० ६४ इमिलाय [मिल्]--मिलायंति. रा० २७६ मिगलोम [ मृगलोम] जी० ३१५६५ मिलाइत्ता [मिलित्वा] रा० २७६ भिगवण [मृगवन] रा० ६७० मिलायमाण म्लायत्] रा० ७८२ मिच्छ [म्लेच्छ ] ओ० १९५१६ मिलित्ता [मिलित्वा] जी० ३।४४५ मिच्छत्त [मिथ्यात्व] ओ० ४६ मिलेच्छ [म्लेच्छ ] जी० ३।२२६ मिच्छत्तकिरिया [भिथ्यात्वक्रिया] जी० ३१२१०, मिसिमिसंत दे० ओ०६३ मिसिमिसेत [दे०] रा० १७,१८,६६,७० मिच्छत्ताभिणिवेस [मिथ्यात्वाभिनिवेश] ओ० मिस्स [मिश्र जी० ११७११२ मिहुण [मिथुन] ओ० ६. जी० ३।२७५,२८६ मिच्छदिदि [मिथ्यादृष्टि] ओ० १६०. रा० ६२. मिहुणग [मिथुनक] रा० १७४. जी० ३१३१८ जी० ३३१०३,१५१ मिट्ठणय [मिथुनक] जी० ३।११८,११६ मिच्छा [मिथ्या जी० ३३२११ मीरिय [मरीचि] ओ० १२ मिच्छासणसल्ल [मिथ्यादर्शनशल्य ] ओ०७१, मीसजाय [मिश्रजात] ओ० १३४ ११७,१६१,१६३. रा०७६६ मोसय [मिश्रक] ओ० ४६ मिच्छादसणसल्लविवेग [मिथ्यादर्शनशल्यविवेग] मोसिय मिश्रित] ओ० २८ ओ० ७१ मुइंग [मृदङ्ग] ओ०६७,६८. रा०७,१३,२४,७७, मिच्छादिट्टि [ मिथ्यादृष्टि] जी० ११२८,८६; ६५७,७१०,७७४. जी० ३३२७७,३५०,४४६, ३१११०५,११०६६।६७,६९ ५६३,५८८,८४२.८४५,१०२५ मिणालिया [ मृणालिका] जी० ३१२८२ मुइत्ता [मुक्त्वा ] रा० २८८ मित [मित] जी० ३१५६६,५६७ मुइय [मुदित] ओ० १४. रा०६७१ मित्त [ मित्र ] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४, मुएत्ता [मुक्त्वा ] जी० ३४५४ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स०५७ मुंच-मुय मुंच मुच्] -मुच्चर. ओ१७७. मुच्चंति. ओ० मुणिपरिसा मुनिपरिषद् ] ओ० ७१. रा० ६१ ७२. जी० १११३३. -- मुच्चंती. ओ०७४।४. मुणिय [ज्ञात्वा] ओ० २३ मुच्चिहिति, ओ० १६६. ---मुच्चिहिति. ओ० मुणतथ्व [ज्ञातव्य ] जी० ३३६३४ १५४. रा० ६१६. मुणेयव्व ज्ञातव्य ] जी० ३८३८१११,२२ मुंड [मुण्ड] ओ० २३,५२,७६,७८,१२०. रा० मुत्त । मुक्त] ओ० १६,२१.४६,५४. रा० ८,२६२. ६८७,६८६,६६५,७३२,७३७,८१२ जी० ३।४५७ मुंडभाव [ मुण्डभाव ओ० १५४,१६५,१६६. रा० मुत्ता | मुक्ता] रा० २०. जी० ३।२८८ मुत्ताजाल [मुक्त, जाल] 10१३२,१५६,१६१. मुंडमाल [ मुण्डमाल ] जी० ३१५६४ जी० ३।२६५,३०२,३३२ मुंडि [मुण्डिन् ! ओ० ६४ मुत्तादाम [मुक्तादामन् ] रा० ४०. जी. ३.३१३, मुक्क [मुक्त] ओ० २,२७,५५. रा० १२.३२, २८१. जी० ३।१२६६,३७२,४४७,५८०, मुत्तालय [ मुक्तालय] ओ० १६३ ५६१,५६७ मुत्तालि मुक्तावलि ] ओ० १०८,१३१. र० २८५. जी० ३४५१,६३६ मुक्कतोय [ मुक्ततोय] रा० ८१३ मुत्तावलिपविभत्ति [ मुक्तावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ मुखछिण्णग [मुग्वछिन्नक] ओ० ६० मुत्ति [ मुक्ति] ओ० २५,४३,१६३. रा० ६८६, मुगुंद [ मुकुन्द] रा० ७७ ८१४ मुगुंदमह [मुकुन्दमह] जी० ३।६१५ मुत्तिमग [ मुक्तिमार्ग ओ०७२ मुगुंसिया [दे० ] जी० २६ मुत्तिसुह { मुक्तिसुख ] ओ० १६५।१४ मुच्छिज्जेत [मूच्छ्यमान] रा०७७ मुद्दा [ मुद्रा] ओ० ४७. रा० २८५ मुच्छिता [मूच्छिता जी० ३।२८५ मुद्दिया [ मुद्रिका ] ओ० ६३,१०८,१३१. जी० मुच्छिय मूच्छित] रा० १५,७५३ ३१४५१ मुच्छिया [ मूच्छिता] रा० १७३ मुद्दियामंडवग [मृद्वीकामण्डपक ] रा० १८४. जी. मुज्झ मुह.]मुज्झिहिति. ओ० १५०. रा० ३१२६६ ८११ मुद्दियामंडवय [मृद्वीकामण्डपक] रा० १८५ मुट्टि [ मुष्टि] रा० १३३. जी० ३१३०३ मुद्दियासार [मृद्वी कासार] जी० ३६५८६,८६० मुट्ठिजुद्ध [मुष्टियुद्ध] ओ० १४६. रा० ८०६ मुद्ध { मूर्धन् } ओ० १६,२१,५४. जी० ३१५६६ मुट्ठिय [मौष्टिक, मुष्टिया] ओ० १,२. रा० १२, मुद्धज [ मूर्धज] जी० ३१४१५ ७५८,७५६. जी० ३३११८ मुद्धय [मूर्धज] रा० २५४ मुट्ठियपेच्छा मौष्टिक प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. मुद्धाण [मूर्धन् ] रा०८,२६२ जी० ३१६१६ मुद्धाहिसित्त [ मूर्धाभिषिक्त ] ओ० १४. रा०६७१ मुणाल मृणाल ओ० १६४. रा० १७४. जी. मुम्मुर [ मुर्मुर) जी० ११७८; ३८५ ३१११०,११६,२८६ मुय { मृत] रा० ७६२,७६३ मुणालिया मृणालिका] ओ० १६,४७. रा० २६. मुय {मुच्]-मुयइ. रा० २८८. मुयति. जी० जी० ३१५९६ ३।४५४ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मयंग-मोयम मुयंग [ मृदङ्ग] जी. ३७८ मुयंत । मुञ्चत् ] ओ० ७,८,१०. भी० ३:२७६ मुरंडी' [मुरण्डी] रा० ८०४ मुरय मुरज ओ० ६७. ० १३.७७,६५७ मुरव [मुरजजी० ३७८,४४६ मुरवि | दे०] ओ० १०८,१३१. रा० २८५ मुसंढी | दे० जी० ११७३ मुसल [ मुसल] ओ० १६. जी० ३३११०,५६६ मुसाबाय [ मृषावाद] ओ० ७१,७६ ७७,११७, १२१,१६१,१६३. रा० ६६३,७१७,७६६ मुसावायवेरमण [मृपावादविरमण] ओ०७१ मुसुंढि [दे० ओ० १. जी० ३६११० मुहमंगलिय [मुखमाङ्गलिक] ओ० ६८ मुहमंडव | मुखमण्डप ] रा० २११ से २१५,२६५ से २६६३२६ से ३३०,३३३ से ३३७. जी० ३।३७४ से ३७६,४१२,४२१,४६० से ४६४, ४६१ से ४६५,४६६ से ५०२,८८७ से ८८६ मुहमूल [मुखमूल ] जी० ३।७२३,७२६ मुहत्त | मुहन] अ० २८,१४५. रा०७५३,८०५ मुहुत्तंतर [मुहून्तिर रा० ७६५ मुहुत्ताग [ मुहूर्त ] रा० ७५१,७५३ मूढ | मूढ | रा० ७३२,७३७,७६५ मूढतराय [ मूटतरक रा० ७६५ मूल मूल] ओ० ६४,१३५. रा० १२७,२०४, २०५,२०६,२२८. जी० १७१,७२, ३१२६१, ३५२,३६४,७२,३८७,६३२,६४३,६५४, ६६१,६७२,६७८,६७६,६८६,७२३,७२६, ७३६,७६२,८३६,८७८,८८२.१००७ मूलमंत | मूलयत् ] ओ० ५,८,१०. जी. ३१२७४, ३८६,५८१ मूलय | मूलक ] जी० ११७३ मूलारिह ! मुलाह | ओ० ३६ मूलाहार | मूलाहार ] ओ० ६४ मूसग [मूषक | जी० ३१८४ १. मरुण्डी ओ० ७०] मूसिया ! मूषिका] जी० २। मेइणी [ मेदिनी] जी० ३१५६७ मेंढमुह | मेषमुख | जी० ३१२१६ मेघ | मेष रा० १३,१४ मेदि | मेढी', रा० ६७५ मेढिभूय : मेडीभूत | रा० ६७५ मेत्त मात्र ओ० ३३,१२२. रा० ६,१२,४०, २०५ से २०८,२२५,२७६ मेत्तय मात्रक] जी० ३.४४० मेधावि [ मेधाविन् | रा० १२,७५८,७५६ मेरग | मेरक जी० ३।५८६ मेरय [मेरक जी० ३।६६० मेरु | मेरु | जी० ३।८३८।१०,११ मेरुयालवण | मस्तालयन जी० ३.५८१ मेलिय [ मेलित जी० ३:५६२ मेहमुह | मेवमुख) जी० ३१२१६ मेहला [ मेखला] जी० ३,५६३ मेहस्सर [मेघस्वर ] रा० १३५. जी० ३।३०५ मेहावि | मेधाविन् | ओ० ६३. श्री० ३।११८ मेहुण | मैथुन] ओ०७१,७६,७७,११७,१२१, १६१,१६३ मेहुणवत्तिय [मैथुनप्रत्यय] जी० ३.१०२५ मेहुणवेरमण [मैथुनविरमण] ओ०७१ मेहुणसण्णा [मथुनसंज्ञा] जी० १२०; मोक्ख [ मोक्ष] ओ० ७१,१२०,१६२ मोग्गर [ मुद्गर] जी० ३३११० मोग्गरगुम्म [ मुद्गरगुल्म] जी० ३।५८० मोणचरय मौनचरक] ओ० ३४ मोत्तिय [मौक्तिक) ओ० २३. रा० ६६५. जी० ३१६०८ मोय (मुच्]..मोएति. रा० ७३१ मोयग [मोचक | ओ० २१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५६ १. आप्टे, पृष्ठ १२८६-- मेठिः, मेढी, मेथिः । Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोयपडिमा-रत्तबंधुजीव मोयपडिमा ['मोय' प्रतिमा ओ० २४ रखाव [ रक्षापय]- रक्खावे मि. रा० ७५४ मोयय [मोचक ओ०१६ रक्खोवग [ रक्षोपग] रा० ६६४ मोर [मयूर] रा ० २६. जी० ३।२७६ रगसिगा [ रगसिका] जी ० ३१५८८ मोल्ल [मूल्य ] ओ० १०५,१०६ रचिय [रचित] जी० ३१३०३ मोसमणजोग ! मृपामनोयोग] ओ० १७८ रज्ज { राज्य ] ओ० १४,२३. रा० ६७१,६७४, मोसवइजोग [मृपावायोग] ओ० १७६ ६७६.७६०,७६१ मोसाणुबंधि [मृषानुवन्धिन् ! ओ० ४३ रज्ज [र]----रजिहिति. ओ० १५० मोह [मोह ] ओ० ४६. १० ७७१ रज्जधुराचितय [राज्यधूश्चिन्तक] रा० ६७५ मोह (मोहय् ] ... मोहंति. जो० ३।२१७ रज्जसिरी [राज्यश्री] रा० ७६१ ___-मोहे ति. रा० १८५ रज्जु ! रज्जु रा० १३५. जी० ३.३०५ मोहणधर [मोहनगृह] जी० ३१५६४ रटु राष्ट्र ओ० २३. रा०६७४,७९०,७६१ मोहणघरग [मोहनगृहक] रा० १८२,१८३. रण [अरण्य] ओ० २८ __जी० ३।२६४ रतण रत्न जी० ३१३४६ मोहणिज्ज मोहनीय] 3० ८५.८६ रतणसंचया रत्नसञ्चया] जी० ३९२२ मोहणीय (मोहनीय] ओ० ४४ रतणुच्चया (रलोच्चया] भी० ३१६२२ मोहरिय [मौखरिक] ओ० ६५ रति [रति ] जी० ३।११८,११६,५६७ रतिकर [रतिकर] रा० ५६. जी० ३१६१८ से य [च] ओ० ३२. रा० ७. जी० ११२ ६२२ यज्जुब्वेद [यजुर्वेद ] ओ०६७ रतिय [रतिद] जी० ३१५६६,५६७ या [च] रा० ७०५ रतिय [रसिक ] जी० ३८४२,८४५ रत्त ( रक्त] ओ० ४७,५१,६६,७१,१०७,१२०, रह [रति] ओ० ४६. रा० १५,८०६,८१० १३०,१६२. रा० २७,७६,१३३,१७३,२२८, ६६४,६६८,७५२,७७७,७७८,७८८,७८६. रहय [रचित ] ओ० १,२१,४६,५४.६४,१३४, जी० ३१२८०,२८५,३०३,३८७,५६२,५६५ से १५२. रा०८,३२,६९,७६,१३३.७१४. ५६७,६७२ जी० ३१३७२,५६१,५६६,५६७ रइय [रतिद] ओ० १६. जी० ३१५९६,५६७ रत्तंसुय [रक्तांशुक] रा० ३७,२४५. जी० रइय [रतिक ] ओ० ६३,६५ ३।३११,४०७ रइल [रजस्वत् ] जी० ३१७२१ रत्तकणवीर [ रक्तकणवीर] रा० २७. रउग्घात [रजउद्घात] जी० ३१६२६ जी० ३१२८० रंगत [ रङ्गत् ] ओ०४६ रत्तचंदण [ रक्तचन्दन] ओ० २,५५. रा० ३२, रक्खंत [रक्षत् ] ओ० ६४ २८१. जी० ३।३७२,४४७ रक्खस [राक्षस ] ओ० ४६,१२०,१६२. रततल रक्ततल] ओ० १६,४७. जी० ३१५९६ रा०६९८,७५२.७८६ रत्तपाणि [क्तपाणि] रा० ६६४, जी० ३।५६२ रक्खसमहोरगगंधश्वमंडलपविभत्ति [राक्षसमहोग- रत्तबंधजीव रक्तबन्धजीव रा० २७ गन्धर्वमण्डलप्रविभक्ति] रा०६० जी० ३१२८० Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१८ रत्तरयण-रयणामय रत्तरयण [रक्तरत्न ] ओ० २३ रयण [रत्न ओ० २३,४७,४६,६३,६४. रत्तबई [ रक्तवती] रा० २७६ रा० १०,१२,१७,१८,३२,३७,४०.५१,६५, रत्तवती [ रक्तवती] जी० ३।४४५ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१६०,१६५,२२८, रत्ता [ रक्ता] रा० २७६. जी० ३१४४५ २५६,२७६,२८१,२८५,२६२,६६५,७७४. रत्तासोग रक्ताशोक] ओ० २२. रा०२७,७७७, जी० ३७,२४६० से ६३,२६५,३००,३०२. ७७८,७८८. जी० ३१२८० ३०७,३११,३३३,३४६,३५७,३७२,३८७, रत्ति [रात्रि] रा० ४५ ४१७,४४५,४४७,४५७,५८७,५८६,५६०, रत्तुप्पल [रक्तोत्पल] ओ० १६. रा० २७. ५६३,६७२,७७५,६३६,६३७ जी० ३।२८०,५६६,५६७ रयणकंड [रत्नकाण्ड | जी० ३१८,१५,२० रत्था [ रथ्या] ओ० ५५. रा०२८१. रयणकरंडग [रत्नकरण्डक] ओ० २६. २० १५४, जी० ३४४७ २५८,२७६,७५० से ७५३. जी० ३।३२७, रथ [रथ ] जी० ३१८६ ४१६,४४५ रद्ध [राद्ध] जी० ३१५६२ रयणकरंडय [ रत्नकरण्डक ] रा० १५४. रम रिम् ] --- रमंति. ग०१८५. जी. ३२१७. जी० ३१३२७ ----रमिज्जइ. रा० ७८३ रयणकरंडा [रत्नकरण्डक] जी० ३।३५५ रमणिज्ज [रमणीय] ओ० १६,४७,६३,१९२. रयणजाल [रत्नजाल ] रा० १६१. जी० ३।२६५ रयणप्पभा [ रत्नप्रभा] रा० १२४. जी० १९२ रा० २४,३३,३५,६५,६६,१२४,१७१,१८६ २११००,१२७,१३५,१३८,१४८,१४६, ३१३, से १८८,२०३,२०४,२१७,२३७,२३८,२६१, ५ से १,१२ से १९,२२ से २६,२६,३०,३३, ७८१ से ७०७. जी० ३.२१८,२५७,२७७, ३७ से ३६,४२,४४,४५,४७ से ५७,५६ से ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, ३६८,३६६,३६६,४००,४२२,४२७,५८०, ६५,७३,७६ से ७८,८०,८१,८३ से १८,१०३ से ११०,११२,११६,१२० से १२४,१२६ से ५६६,५६७,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६, १२८,२३२,२५७,१००३,१०३८,१०३६, ६४८,६४६,६५६,६६२,६६३,६७०,६७१, ६७३,६६०,६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८, ___ रयणप्पहा [रत्नप्रभा | ओ० १८६,१६२. ८८३,८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३, जी० १११०१:२११३५ १००३,१०३८ रयणभार [रत्नभार] रा०७७४ रम्म [रम्य ] ० ४,६. रा० १७०,१७३,६७०, रयणभारय [ रत्नभारक] रा० ७७४ ७०३,८०४. जी० २२७३,२७५,२८५,५६१ रयणमय रिलमय जी० ३१७४७ रम्मगवास [म्यक वर्ष ] रा० २७६. जी० २।१३, रयणा [रला] जी० ३५६७ से ७२,६२२ ३२,५६,७०,७२,६६,१४७,१४६; ३१२२८, रयणागर [रत्नाकर] रा० ७७४ रयणामय [रत्नमय] ० १२. रा० २१,२३,३८, रम्मयवास [रम्पकवर्ष] जी० ३।७६५ १२४,१२५,१२७,१२८,१३१,१३४,१४१, रय रजस् ] ओ० २३. रा०६,१२,२५१. १४५,१४८,१५१,१५२,१५५ से १५७,१६०, जी० ३।४४७,५६८ १६१,१८० से १८५,१६२,१९७,२२२,२५३, रय रय] लो० ४६ २५६,२५७,२७२. जी० ३।२६२,२६३,२६६, Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रयणावलि-राइंदिय ७१६ २६८,२६६,२८९,२६१ से २९६,३०१,३०४, ३१०,३१२,३१८,३१६,३२४,३२५,३२८ से ३३०,३३३,३३४,३४७,३४८,३८१,४१४, ४१८,४३७,६७५,७५०,७५३,८६३,८६६, ६०७,६१८,१०३८,१०३६,१०८१ रयणावलि [रत्नावलि ओ० १०८,१३१. रा०२८५. जी०३,४५१ रयणावलिपविभत्ति [ रत्नावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ रयणि (रलि] भो० १६५६ रयणिकर [रजनिकर | जी०३१५६७ रणियर रजनिकर औ० १५. रा० ६७२. जी० ३१८३८।१२,१३ रयणी [रजनी] ओ० २२. रा० ७२३,७७७,७७८, ७५८ रयणी रत्नी] ओ० १८७,१९५७. जी० १११३५, ३१११,७८८,१०५७ से १०८६ रयत रजत] जी० ३१७,३००,३३३,४१७ रयत्ताण [रजस्त्राण] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११,४०७ रयय [रजत ] ओ० १४,१४१. रा० १०,१२,१८, ६५,१३०,१६०,१६५,१७४,२२८,२५५, २५६,२७६,६७१,७६६. जी. ३१२८६,३००, ३८७,४१६,६७२,६७६,७४७ रयय [पाय] [रजतपात्र] ओ० १०५,१२८ रयय [बंधण] [रजत बन्धन ] ओ० १०६,१२६ रययामय [ रजतमय] रा० ३७,१३०,१३२,१३५, १५३,१७४,१६०,२३६,२४०,२४५,२८८, २६१. जी० ३।२६४,२८६,३००,३०२,३०५, ३११,३२४,३२६,३६८,४०२,४०७,४५४, ४५७,६३६ रल्लग [रल्लक जी० ३१५६५ रव (रव ओ० ४६,५२,६७,६८. रा० ७,१३, १५,५५,५६,५८,२८०,२६१,६५७,६८७, ६८८. जी. ३१३५०,४४६,४५७,५५७,५६३, ८४२,८४५,१०२५ रवंत [रवत् ] ओ० ४६ रवभूय [ रवभूत] अ.० ५२. रा० ६८७,६८८ रवि [रवि] ओ० १६. जी. ३१५९६,५६७,८०६, ८३८३ रस [रस] ओ० १५,१६१,१६३,१६६,१७०. रा० १७३,१६६,६७२.६८५,७१०,७५१, ७७४. जी० ११५,३८,५८,७३,७८.८१; ३३५८,८७,२७१,२८५,२८६,३८७,५८६,५६२, ६०१,६०२,७२१,७२७,८६०.८६६,८७२, ८७८,९७२,६८०,६८२,१०८१,१११८,११२४ रसओ [रस्तस् ] जी० ११५० रसतो [रसतस् ] जी० ३२२ रसपरिच्चाय रसपरित्याग] ओ० ३१.३५ रसमंत [रसवत् ] जी० ११३३ ।। रसविगइ [रसविकृति ओ० ६३ रसिय [रसित] रा० १३,१४ रसोदय [रसोदक जी०११६५ रह रथ ] ओ० १,७,८,१०,५२,५५ से ५७,६२, ६४ से ६६,१००,१२३,१७०. रा० १५१, १७३,६८३,६८५,६८७ से ६८६,६६२,७०८, ७१०,७१६,७२७ से ७२६,७३१,७३२. जी० ३१२६०,२७६,२८५,३२३,५८१,५८५, ५६७,६१७ रहघणघणाइय [रथघनघनायित] रा० २८१. __ जी० ३।४४७ रहजोहि [रथयोधिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ५०६,८१० रहवाय [ रयवात] रा० ७२८ रहस्स | रहस्य] ओ०६७. रा० ६७५,७६३ रहित | रहित ] जी० ३।११२१ से ११२३ रहिय [रहित ] ओ० १. जी० ३१५६७ रहोकम्म [रह कमन् ] रा०८१५ राइ राजि] ओ०१६. रा०७५४ से ७५७. जी० ३४५६७ राइंदिय | त्रिदिव] ओ० २४,१४३. रा०८०१. जी० ११७६,८८, ३१६३०,४४,१३, ५१६,१३, २८,२६ Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२० राइण्ण-रिसि राइण्ण राजन्य ] ओ० २३,५२. रा०६८७,६८८। राषववहार [राजव्यवहार रा०६८०,६६८ राइय [गत्रिक] ओ० २६ रायहाणी [राजधानी] रा० २८२,६६७. जी० [एगराइय (एकरात्रिक) पंचराइय (पंचरात्रिक) ३१३५०.३५१,३५४,३५५,३५७,३५८,३६०, राईभोयण रात्रिभोजन ओ०७६ ४३६,४४२,४४५,४४७,४४८,५५५,५५५, राग [राग] ओ० ३७,४६,१२,५५,७४१६,१०७, ५५७,५६३,५६७ से ५६६,६३७,६३८,६५६, १३०,१६८. रा० १६.१३३,२८१,७७१. जी० ६६०,६६५,६६६,७०१,७१०,७९२,७१३, ३।३०३,४४७,५६५ ७२१,७३८,७३६,७४१,७४४,७४७,७५१ से रातिदिय रात्रिंदिव! जी० ३१२१८ ७५३,७६०,७६१,७६३ से ७८०,८००,८१४, राम [लाम] ओ० ६६. जी० ३.११७ १०२,६१६ से १२२,६४०,६४५ रामरक्खिया [ रामरक्षिता] जी० ३।११६ रायारिह [राजाह] रा०६८०,६८१,६८३,६५४, रामा रामा] जी० ३।६१६ ६६६,७००,५०२,७०८,७०६ राय [राजन् ] ओ०१४ से १६,१८,२०,२१,५२ रासि [राशि] ओ० १६५११५. ० २७,२६,३१. से ५६,६२ से ६८.७०,७१,८०,६६. रा०५, जी० ३१२८०,२८२,२८४,८१६,८३६ ६,१५४,६ १, ६७५,६७६ से ६८१,६८३ से राहु [राहु] ओ० ५० ६८५,६८७,६८८,६६८ से ७००,७०२ से राहुविमाण [राहुविमान ] जी० ३१८३८११७ रिउवेद ऋगवेद ओ०१७ से ७२६,७२८ से ७३४,७३६ से ७३९,७४७ ।। रिगिसिया [दे० रिङ्गिसिका] रा० ७७ से ७८१,७८८ से ७६१,७६३ से ७६६. जी. रिक्ख [ऋक्ष ] ओ० ६३. जी० ३।८३८१२६ ३:१२६,३२७,५६२,६०२,६०६,६३१,७४७, । रिट रिष्ट ] रा० १०,१२,१८,६५,१६५,२७६. जी० ३।७,८,१५,२४,३०,६२,३४६,४४५ रायंगण | राजाङ्गण] रा० १२,१७३. जी० रिटुमय [रिष्टमय ] जी० ३,४३५ ३१२८५ रिद्वय [रिष्टक ] ओ० १३ रायतेउर राजान्तःपुर] रा० १२,१७३ रिट्ठा शिष्टा] जी० ३।४ रायकउह राजककुद | ओ०६६ रिट्ठाभ [रिष्टाभ ] जी० ३१५८६ रायकज्ज ! राजकार्य ] रा०६८०,६६८ रिद्वामय रिष्ट प्रय] रा० १६,१३०,१७५,१६०, रायकहा | राजकथा ओ० १०४,१२७ २२८,२५४,२७०. जी. ३१२६४,२८७,३००, रायकिच्चगजकृत्य ] रा० ६८०,६६८ ३८७,४१५,४३५,६४३,६७२ रायकुल राजकुल रा० ६७१ रिद्ध [ऋद्ध ] ओ० १. रा० १,६६८,६६६,६७६, रायणीइ [राजनीति रा०६८०,६६८ रायधाणी [ राजधानी जी० ३१४४६,७००,७०१ रिभित [रिभित ] जी० ३.४४७ रायमग राजम १. रा०६८४,६८५, रिभिप [रिभित रा० ७६,१०६,११६,१७३, ७००,७०६ २८१. जी० ३।२८५ रायरुक्ख [राजरूक्ष] ओ० ६,१०. जी० ३१३८८, रियारिय [रितारित] रा० १११,२८१. ५८३ जी० ३.४४७ रायलदखण | राजलक्षण] रा०६७१ रिसि [ऋषि ] ओ०७१ ६७७ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२१ रोतिया(पाय)-रोग रोतिमा (पाय) [रीतिकापात्र ] ओ० १०५, १२८ रीतिया (बंधण) रीतिकाबन्धन] ओ० १०६,१२६ रुइ रुचि रा० ७४८ से ७५०,७७३ रुहर | रुचिर | जी० ३१५६६,६७२ रुइल | रुचिर अं० ५,८,१६. ०२२८, जी. ३१२७४,३८७,५६६,५६७ रुंद (दे० विस्तीर्ण ओ० ४६ रुक्ष (रूक्ष रा० ७८२, जी० ११६६,७०,७२, ३१५८१,६०३,६०४,६३१.६७६,६३७ रुक्खगेहालय [ रूक्षगेहालय ] जी० ३१६०३,६०५ रुक्खमह रूक्षमह] रा० ६८८. जी० ३१६१५ ।। रुक्खमूल [रूक्षमूल | ओ०८,१०. जी. ३३३८६, ५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ रुक्खमूलिय रिक्षम लिकओ०६४ रुचिजमाण [रुच्यमान ] जी० ३।२८३ रुद्द रौिद्र] ० ६७१ रुद्द (साण) रौद्रध्यान] ओ० ४३ रुद्दमह [रुद्रमह] रा० ६८८. जी० ३६१५ रुप्पकूला रूप्यकला रा०२७६. जी० ३४४५ रुप्पच्छद रूप्यच्छद जी. ३३३३२ रुप्पपट्ट रुप्यपट्ट | रा०२२,२६. जी. ३:२८२, २१० रुप्पमणिमय रूप्यमणिमय रा० २७६,२८० रुपमय { रूप्यमय रा० १५६,२७६.२८० रुप्पागर रुप्यापर| रा० ७७४. जी. ३१११८ रुप्पामणिमय [ रूप्यमणिमय जी० ३.४४५ रुप्पामय रूप्यमय जी० ३:४४५,४४६ रुपि रुक्मिन् ] रा० २७६. जी० ३१४४५, रुयमवरमहामह रचावरमहाभद्रजी० ३१६३४ रुपगवरोभास [रुचवरावभा० ३१६३४ रुयगवरोभासभ६ सिवरावभासमद्र] जी० ३।६३४ रुयगवरोभासमहाभद्द [रु कवरावभास महाभद्र | जी० ३९३४ रुयगवरोभासमहावर रुचकरराव भार महावर ] जो० ३।६३४ रुयगवरोभासवर [रुचकवरावभासवर जी० ३.६३४ रुयय रुचक ओ० १६. जी० ३६३४ रुरु | रुरु] ओ० १३. स. १७,१८,२०,३२,३७, १२६. जी. ३.२८८,३००,३११,३७२ रुहिर [ रुधिर] रा० २७. जी० ३.२८० रूत रूत] जी० ३।४०७ रूय | रूत | ओ० १३. रा० ३१,३७,१८५,२४५. _जी० ३।२८४,२९७,३११ रूव [ रूप] ओ०१५,२३,४७,६३,७२,१४६,१६१, १६३,१६२. रा० १०,४७,५४,६६,७०,७६, १७३,१६०,६७२,६८५,७१०,७५१,७७१, ७७४,८०६,८०६८१०. जी० २११५१; ३१११०,१११,२६४,२८५,५६०,५६४,५६६, ५६७,९८२,१११५,१११७,११२४ रूवग [रूपक ! २.० १७,१८,२०,३२,१२६,१३२. जी० ३.२८८,३००,३७२ रूवसंपण्ण रूपसम्पन्न आं० २५. रा०६८६ रूवि रूपिन् | रा० ७७१. जी. ११३,५ रेणु | रेणु रा० ६.१२,२८१. जी० ३।४४७ रेयग रेवक स० ७६ रेरिज्जमाण राराज्यमान रा० ७८२ रोइयाबसाण | रोचितावसान] रा० ११५,१७३, २८१. जी. ३१४४७ रोएमाण रोचमान जी० १११ रोचियावसाण रोचितावतान ओ० ३.२८५ रोग रोग ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३.६२८,६३१ ७६५ रुयग! रुचक ओ० ४७. जी० ३१५९६,५६७, ७७५,६४२,९५२ रुयगवर रुचकवर जी० ३१६३४ रुषगवरभद्द रुचकवरभद्र जो० ३१६३४ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२२ रोम-ललिय रोम [रोमन् ] ओ० ६२. जी ० ३१५९७ रोमराइ मराजि ओ० १६. रा० २५४. जी० ३,४१५,५९६,५६७ रोमसुह (रोमसुख ओ०६३ रोष [रुच्)--नोएज्जा रा० ७५० एमि. रा० ६६५ रोरुप | रोरुक] जी० ३११२,११७ रोहिणिय | रोहिणिक जी० ११८८ रोहिणी | रोहिणी ] जी० ३१६२१ रोहितंसा | रोहितांशा] जी० ३.४४५ रोहिया! रोहिता] रा०२७६. जी०३४४५ रोहियंसा | रोहितांशा २० २७६ लउड [लकुट] जी० ३।११० लज्यलकूच ] ओ० से ११. जी०७२, ३१५८३ लउल | लकुट | ओ०६४ लउलग्ग लकुटान] जी० ३१८५ लउसियालाओसिया, ल उसिया | आ० ७०. रा० ८०४ लख लङ्घ ! ओ० १,२ लेखपेच्छा लडप्रेक्षा ओ० १०२,१२५. जी० ३।६१६ लंघण [लङ्घन] रा० १२,७५८,७५६. ___ जी० ३३११८ लंतक लान्तक] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५०,११११ लतय लान्तक | मो० १५५. जी० २११४८, १४६; ३३१०६०,१०६६,१०६८,१०७६, १०८८,१०६५,११०३ लंबत | लम्बमान | जी० ३१५६१ लंबियग [लम्बितक औ० ६० लंबूसग [लम्बूसक रा० ४०,१३२,१६१. ___जी० ३:२६५,३०२ ३१३,३६७ लक्खण लक्षण ओ० १४,१५,१६,४३,१४३, १६५।११. रा० १३३,६७२,६७३,७७४,८०१. जी० ३।३०३,५९६,५६७ लक्खारसग [लाक्षारसक] रा० २७ लक्खारसय लाक्षारगक जी० ३।२८० लग्ग लग्न ] ओ० २३ लच्छी | लमी] ओ० ६५ लज्जा ! लज्जा] ओ० २५ लज्जासंपण्ण [लज्जासम्पन्न ओ० २५. रा० ६८६ लज्जु | लज्जावत ओ०१६४ लटू लाट] ओ०१,१६,६३. रा० ३२,५२,५६, २३१,२४७. जी. ३:३७२,३६३,४०१,५६६, ५६७ लटुदंत [लप्टदन्त ] जी० ३।२१६ लट्ठिग्गाह । यष्टिग्राम ओ० ६४ लाह [दे० ओ०१६. जी. ३५६६,५६७ लण्ह | एलक्ष्ण] ओ० १२,१६४, रा. २१,२३,३२, ३४,३६,१२४,१४५,१५७. जी. ३।२६१, २६६,२६६ लता [लता] जी० ११६६; ३।१७३,३५५ लत्तिया (दे०] रा० ७७ लद्ध | लब्ध्र | ओ० २०,४६,५३,१२०,१५४,१६२, १६५,१६६. रा० ६३,६५,६६७,६६८,७१३, ७५२,७६५,७६६.७७०,७८६,७६७,८१६ लद्धपच्चय लब्ध प्रत्यय ) रा०६७५ लिभ लम्-~-लब्भति. स० ७७४. -- लभइ. रा० ७१९. --लभज्ज. रा० ७१६ लयला ] रा० ७६,१७३. जी. ३१२८५ सया लतः रा. १३६. जी. ३।३०६,६३१ लयाघरग [लतागृहक] रा० १८२,१८३. जी० ३१२६४ लयाजुद्ध [लता सुद्ध] ओ० १४६. ग० ८०६ लयापविभति [लताप्रविभक्ति रा० १०१ लिल लल्] - ललंति. रा० १८५. जी. ३.२१७ सलिय [ललित] ओ० १५,५७,६३. रा० १०,७६, १७३.६७२ जी०३१२८५,५६७ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लव-लेसा ७२३ लव लव] ओ० २८. जी० ३१८४१ जी० ३१६१६ लवइय | दे० लवकिन] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. लासिया [ल्हामिका | ओ० ७०. रा०८०४ जी० ३।२६८,२७४ लिंद लिन्द्र] जी० ३१७२१ लवंग | लवङ्ग रा० २६,३०. जी. ३ २८२ लिंब | लिम्ब] रा० ३७ लवण लवण जी० ३।२१७,२१६ से २२७,३००, लिक्खा [लिक्षा] जी० ३१६२४,७८८ ५६६,५६८,५६६.५७१, से ५७६,७०४ से लिच्च [लिच्च जी० ३।३११ ७०८,७१०,७११,७१३ से ७२३,७२६,७२८ से लित्त लिप्त रा० १२३,७५५,७७२ ७३१,७३३,७३६,७३६ से ७४१,७४५,७४७, लिप्पासण लिप्यासन | रा० २७०. जी० ३१४३५ ७५०,७५४,७६१,७६२,७६५ से ७६६,७७५, लोला लीला] रा० १७.१८,१३०,१३३. ७८१ से ७८६,७०८ से ७६६.८३८/२४,६५१, जी० ३१३००,३०३ लुक्ख रूक्ष] जी० १६५,३६,४०,५०, ३१२२ लवणगलवणक) जी० ३७१० तुद्धग | लुब्धक } रा० ७७४ लवणतोय लवणतोय] जो० ३१८३८।२३ लिय [0] लुज्जइ. रा० ७८४ लवणसिहा [ लवणशिखा जी० ३१७३२ लूसणया [लूपण } ओ० १०३,१२६ लवणाहिवइ (लवणाधिपति ] जी० ३१७२१,७५४, लूसमाण { लूषत् ] रा० १३३ लूसेमाण [लूषत् | जी. ३३०३ लवणोदय [ लवणोदक जी० ११६५ लूह रूक्षय्, मृज्—लू हेति. रा० २८५. लवय लवक] जी० ३१३८८ जी० ३४५१ लहू लघु | जी० ३.२२ लूहाहार [रूक्षाहार। मो० ३४ लहुय [लघुक | ओ० ४६. जी० ११५; ३१८७८ लूहिय रूक्षित] औ० ६३ लहुयत्त लघुकत्व स० ७६२,७६३ लूहेत्ता / रूक्षयित्वा] रा० २५५. जी० ३१४५१ लाइय (दे० ओ० २,५५. रा० ३२.२८१. लेक्ख लख्य रा० २७०. जी० ३१४३५ जी० ३३७२,४४७ लेच्छइ लिच्छवि, लेच्छवि ०५२. रा० ६८७. लाधव | लाघव ] ओ० २५. रा० ६८६,८१४ ६५८ लाघवसंपण्ण लाघवराम्पन्न | ओ० २५. रा० ६८६ लेच्छईपुत्त । लिच्छविपुत्र, लेच्छविपुत्र ] ओ० ५२. लाभत्थिय लाभार्थिक ओ६८ रा० ६८७,६८८ लाला लाला ० १३५,२८५. जी० ३३०५, लेच्छतिपुत्त लिच्छविपुत्र,लच्छविपुत्र जी० ३.११७ लेढ़ लेष्टु] आ० २६ लावणग लावणिक जी० ३१७६६ से ७६६ लेण ! लयन प्रो० १४६,१५०. रा० ८१०,८११. लावणिग लावणिक जी० ३।२८।२४ जी० ३१५६४ लावण्ण लावण्य] अरे० १५,२३. रा० ६६,७०. जी० ३१५६७ लेस लेश्या] रा० ७७१ कलास [लासम् ]- -लाति. रा. २८१. लेसणया (लेशन ] ओ० १०३,१२६ जी० ३३४४७ लेसा लेश्या ओ० ४७,७२,११६ जी० १११४ लासग लाराक ओ० १,२ २१,५६,८६,६६,१०१,१२८, ३१६८,९६, लासगपेच्छा [लासकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. १२७.४,१२८,१५०,८४१९६६ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२४ लेस्सा [ लेश्या ] ओ० १५६. जी० ११२१,७६, ११६,१३६, ३१०१,१२८, १५०,१६०, ११०१ लेह [ लेख] ओ० १४६. रा० ८०६,८०७ लेणी [ लेखनी ] रा० २३०. जी० ३।४३५ लोग | लोक ] रा० ७५१, ७५३,८१५. जी० १ १४० ; ३७६५८३८१२, ६७२ : ५६ लोगंत [लोकान्त ] ओ० १६५, १६५५६ लोगट्टिति [ लोकस्थिति ] जी० ३२७६५ लोगणा [लोकनाथ ] रा० २६२. जी० ३२४५७ लोगनाली | लोकनाडी, "नाली | जी० ३।११११ लोगनाह | लोकनाथ ] रा०८ लोग ईव | लोकप्रदीप | रा० ८,२६२. जी० ३१४५७ लोगपज्जोयगर [ लोकप्रद्योतकर ] रा० ८,२६२जो० ३१४५७ लोग मज्झावसायि [ लोकमध्यावसानिक ] रा० ११७,२५१ जी० ३,४४७ लोगहिय [लोकहित ] रा० ८,२६२. जी० ३।४५.७ लोगाणुभाव [लोकानुभाव | जी० ३१७६५ लोगुत्तम [लोकोत्तम ] ०८,२६२. जी० ३२४५७ लोगोवयारविणय [लोकोपचार विनय ] ओ० ४० लोण ! लवण ] ओ० ६२. जी० ३।७२१ लोढ [ लोध्र ] ओ० ६,१०. जी० ११७२३२८८, ५८३ लोभ | लोभ | ओ० ४६, ७१.०३:१२८, ५६८, ७६५,८४१ लोभ साइ [ लोभकपायिन् ] जी० १।१३१ : ६।१४८, १५०,१५५ लोभविवेक [ लोभविवेक ] ओ० ७१ लोप [लोमपक्षिन् ] जी० १ ११३, ११५ लोमहत्य [ल महस्त | ओ० २. रा० १५६, १५७, २५८,२७६,२६५ से २६६,३५१. जी०३/३२६, ३३०,४१६,४६० लोमहत्य | लोमहस्तक ] १० २६१,२६४ से २६६, २६८,३००,३०५,३१० से ३१२,३५१ से ३५६,४१४,४८३ से ८७५,५३४,५३५, लेस्सा-लोह्रियक्ख ५६४, ५६५. जी० ३।४४५, ४५७,४६० से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५३२, ५४७ लोमहत्यय [ मस्तक ] रा० २६१, २६४ से २६७,३००, ३०५, ३१० से ३१२,३५२ से ३५६, ४१४, ४७३ से ४७५, ५३४, ५३५,५६४ ५६५. जी० ३१४५८ लोमहरिस | लोमहर्ष ] जी० ३१८३ लोय | लोक ] ओ० ७१,१६६,१७०,१७४. जी० १ १३६ : २ १२०, १३१ ३ ११५, ११६, ८४१५१८२२ ६२५७ लोयंत [लोकान्त | श्री० ३३३३ से ३६, १००२ लाया | लोकाग्र ] ओ० १६८,१६३, १६५२ लोभिया [ लोकाग्रस्तूपिका | ओ० १६३ डिबुझा | प्रतिबोधना ] ओ० १९३ लोण [ल.चन ] जी० ३,५६७ लोल [लोल ] ओ० ६. जी० ३१२७५ लोव [लोप] ओ० ११७ लोह | लोम] ओ० २८, ३७, ४४, ६१, ११७, १६१, १६३,१६८. रा० ७ε६. जी० ३११२८ लोकसाइ [ लोभकषायिन् ] जी० ६ १५३ लोहकसाथ [ लोभकवाय ] जी० १।१६ लोहा | लोभता | ओ० ११६ लोहारं बरिस कारम्बशेष | जी० ३।११८ लोहित लोहिया | रा० १२८,१३२. जी० ३।२२, 1 ४५ लोहितक्ख | लं हिताक्ष | जी० ३१७,३००, ४१५ लोहितक्खर्माण [ लोहिताक्षमणि | जी० ३१२८० लोहितखमय | लोहिताक्षमय ] रा० १६, १७५, १६०. जी० ३१२६४, २८७, ३०० लोहिता [ लोहित ] जी० ३ २८० लोहिय | लोहित | ओ० १२. रा० २२,२४,२७, १५३. जी० १:५०: ३: १११,२६०,३२६. १०७५, १०७६ लोहियक्ख [लोहिताक्ष ] रा० १०,१२,१८,६५, Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहियक्खमणि-वंदणकाम ७२५ १३०,१६५,२५४,२७६. जी. ३३४१५ लोहियक्खमणि [ लोहिताक्षमणि] रा० २७ लोहियक्खमय [लोहिताक्षमय [ रा० १३०,२४५ जी० ३१४०७,४७७ लोहितपाणि [लोहितपाणि] रा० ६७१ लोही | लोही] जी० १७३ लोही लौही] जी० ३१७८ व | इव] ओ० २७ वच जी. ३६१२९६ यइ [वाच्] ओ० ३७,४० वइकच्छछिण्णम [वैकक्षछिन्नक | ओ०६० वइगुत्त [वाग्गुप्त ] ओ० १६४ वइजोग [वाग्योम | ओ० ३७ वहजोगि [वाग्योगिन् } जी० ११३१,८७,१३३; ३३१०५,१५३,११०६६।११३,११४,११७, ३००,३२१,३३८,३५१. जी. ३१६७,१११, २६१,२६४,२८६,२८७,३००,३०२,३०५, ३०७,३११,३१३,३२२,३२६,३५५,३७७, ३८७,३६३,३६७,३६८,४०१,४०२,४०७, ४१०,४१५,४३५,४४२,४६५,४८६,५०३, ५१६,५६२,६४३,६५४,६७२,६७६,७२४, ७२७,८८१,८६१,६००,६२७,६४८,१०२५ वइरोयणराय | वैरोचन राज] जी० ३१२४० से २४३ वइरोणिद | वैरोचनेंद्र ] जी० ३१२४० से २४३ घहरोसभणाराय | वज्रऋषभनाराच] ओ० १८५ बहरोसभनाराय विज्रऋषभनाराच] जी० २११६ वइविणय [वाग्विन य] ओ० ४० वइसमिय वाक्समित ओ० १६४ वंक [वक्र] ओ०१ वंग वङ्ग] जी० ३१५६५ वंग व्यङ्ग] जी० ३१५९७ वंधण [वञ्चन] रा० ६७१ चंचणया [वञ्चनता] ओ०७३ वंजण [व्यञ्जन ] ओ० १५,१४३. रा० ६७२, ६७३,८०१. जी० ३।५९६ बंद विन्द्]--वंदइ. ओ० २१.--वदंति ओ० ४७. रा० १०.-वंदति. रा० ८. जी० ३।४५७.....वंदर. रा० ...---वंदामि. ओ० २१. रा० ६.- वंदामो. ओ० ५२. रा० १०.--वंदिज्जाह. रा०७०६. ---वंदिस्सति रा०६०४.-.वंदेज्जा. रा० ७७६ वंद वृन्द आ० ७०,७१. रा० ६१,६९२,७१६, १२० वइर वज्र ओ०१२,१६,४८. रा० १०,१२, १७,१८,२०,२२,३२.६५.१२६,१५६,१६०, १६५,२५६,२७६,२८१,२६२,७७४. जी० ३७,६१ से ६३,२८८,२६०,३००,३३२, ३६३,३४६,३७२,४१७,४५७,५६६ वहरणाभ वज्रनाभ जी० ३।३२३ वइरनाभ वज्रनाभ ] रा० १५० वइरभंड वज्रभाण्ड] रा० ७७४ वहरभार दज्रभार स० ७७४ वइरभारय वनमारक रा० ७७४ वइरमझा मध्याआं० २४ वइररिसहणाराय वज्रपभनाराच ओ० ८२ वइरोगर वज्राकर रा० ७७४ वइरामय वज्रमय रा० १६,३५,३७,३६,४०, ५२,५६,१३०,१३२,१३५,१३७,१५३,१७५, १६०,२१७,२१८,२२८,२३१,२३५,२३६, २४०,२५,२४७,१४६.२५४,२७०,२७६, ८०४ वंदण [वन्दन] ओ० २,५२. रा० १६,६८७,६८६ बंदणकलस वंदनकलश ओ० २,५५. रा० ३२, १३१,१४७,२५८,२८१,२६०. जी. ३१३०१, ३२०,३५५,३७२,४१६,४४७,४५६,८८६ बंदणकाम वन्दनकामा ओ०५१ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२६ वंदणघड [वन्दनघट [ ओ० २,५५. रा० ३२, २८१. जी० ३।३७२, ४४७ वंदणिज्ज [वन्दनीय ] ओ० २. रा० २४०,२७६. जी० ३।४०२, ४४२ बंदावंदय [ वृन्दवृन्द ] रा० ६८८,६८६ दत्तए [ वन्दितुम् ] ओ० १३६. रा० ६ वंदित्ता | वन्दित्या ] ओ० २१. रा० ८. जी० ३।४५७ वंस | वंश ] ओ० १४. १० ७६,७७,१३०, १७३, १६०,६७१. जी० ३१२६४,२८५,३००,५८८ वंसकवेल्लय | वशकवेल्लुक ] रा० १३०,१६०. जी० ३।२६४,३०० श्रंसग [ वंशक ] रा० १३०. जी० ३।३०० सा [ वंशा ] जी० ३१४ वक्कंति [ अवक्रांति ] जी० १।५१ : ३।१२१,१५६, १०८२ वक्कंतिय [ अवक्रांतिक । स० ७६५ वक्कम [ अव + क्रम् ] - वक्कमंति जी० ११५८ वक्ख | वक्ष ] जी० ३३५६७ वक्खार (क्षार, वक्षस्कार ] रा० २७६. जी० ३३४४५, ५७७, ६६८, ७७५, ९३७ वग्ग [ वल्ग् ] वग्र्गति. रा० २८१. जी० ३।४४७ वगण ! वल्गन ] ओ० ६३ arrary [[वर्गवर्ग ] जो० १९५११४ वग्गु [ वाच्] ओ० ६८. रा० ७६७ व | वागुरा ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८, ७०० वग्गुलि | वल्गुलि | जी० १ ११४ TE [ व्याघ्र ] रा० २४. जी० ३१८४,२७७,६२० araमुह | व्याघ्रमुख ] जी० ३१२१६ वारित | ० | जी० ३:३०३, ३६७,४४७, ४५६ वारिय [ दे० ओ० २,५५. रा० ३२,१३२, २३५,२८१,२६१,२६४,२६६,३००,३०५, ३१२,३५५. जी० ३।३०२, ३७२, ४६१, ४६२. वंदणघड - वट्टखेड ४६५, ४७०, ४७७, ५१६,५२० √ वच्च [ ज् ] - वच्चति जी० ३११२९३६ deaf [ वर्चस्वन् ] ओ० २५. रा० ६८६ वच्चग [ तच्चक] जी० ३८८ घर [वर्चोगृह ] रा० ७५३ वच्छ | वक्षम् ] ओ० १६, २१, ४७,५४, ५७, ६३, ६५, ७२. रा० ८, ६६,७१४, जी० ३.५६६, ११२१ यज्ज [ वर्ज | ओ० २९. जी० ११५१, ५५,६१, ८७. १०१,११६, १२३, १२८ : ३।१५५, ६०५ ; ६।१० वज्ज [ वज्र ] जी० ३३५६७ यज्ज्जकंद [ वज्रकन्द ] जी० १।७३ वज्ज रिसभनाराय [ वज्रऋपभनाराच ] जी० ३५६८ वज्जित्ता [ वर्जयित्वा ] जी० ३।७७ जय [ वर्जित ] ओ० ४८. रा० ७३४, जी० ३।५६८ यज्जेत्ता [ वर्जयित्वा ] रा० २४० जी० ३।४०२ झवत्तिय [व] ओ० ६० वट्ट [ वृत्त ] ओ० १,२,१६,५५, १७० रा० १२, ३२,५२,५६,२३१,२५१,२६१, २६४,२६६, ३००,३०५,३१२.३५५, ७५८,७५६. जी० १ ५ ३२२,४८ से ५०,७७ से ७६, ८६,२६०,२७४,३५२,३७२,३६३, ४०१, ४४७,४५६.४६१,४६२, ४६५, ४७०, ४७७, ५१३.५२०,५,६४,५६६, ५६७, ७०४,७६३, ७६६,८१०,८२१,८३१,८४८,८५६,८५६ ६६२,८६५, ६६८,८७१,८७४,८७७, ८८०, ६१०,६२५,६२७ से ६३२,६३८,६४३, १०७१, १०७२ √ वट्ट ( वृत्) - वट्टसि रा० ७६७ - वट्टिस्यामि रा० ७६८ age [वर्तक | जी० ३।५८७ वट्टखेड [वृत्तखेल ] ० १४६. रा० ८०६ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वट्टभाव-वणस्सतिकाल वट्टभाव [वृत्तभाव ओ० ५,८. जी. ३१२७४ ।। वणमाला [वनमाला ओ० ४७,४८,७२. वट्टमग्ग [वृत्तमार्ग,वर्त्म गार्ग] ओ० ५६ रा०१३६,२१०,२१२. जी० ३१३०६,३५४, वट्टमाण [वर्तमान ] ओ० ४७. रा० २८१,८१५. ३७३,५६१,६४७,६७३,८८६,८८८ जी० ३,४४७ वणराइ | वनराजि] रा०६५४,६५५. जी. वट्टमाल [वृत्तमाल] जी० ३१५८२ ३।२७६,५५४,५५५,५८५,६३१ वट्टलोह पाय] (वृत्तलोहपात्र] ओ० १०५,१२८ वणराति [वनराजि] रा०२६ वट्टलोह [बंधण] वृत्तलोहबन्धन | ओ० १०६, ____ वणलया[वनलता] ओ० ११,१३. रा० १७,१८,२०, १२६ ३२,३७,१२६,१४५. जी० ३३२८८,३००,३११, वट्टवेत [वृत्तवैताढ्य ] जी० ३।४४५ ३७२,५८४ वट्टवेयड्ड [वृत्तवैताढ्य ] रा० २७६. जी० ३।४४५, वलयापविभत्ति [वनलताप्रविभक्ति रा० १०१ वणसंड [वनषण्ड | ओ० ३,४,८. रा० ३,१७०, वट्टि [वत्ति] जी० ११७२,३१५८६ १७१,१७४,१८२,१८४,१८६,१८६,२०१, २३३,२६३,६५४,६५५,७०३,७८१,७८२, वट्टिजमाणचरय [वय॑मानचरक] ओ० ३४ वट्टित्ता । वतित्वा] रा ० ७७६ ७८६,७८७. जी० ३१२१७,२५६,२७३,२७७, २८६,२९४,२६६,२६८,३५८,३५६,३६२, वट्टिय ! वतित ओ० १६.७१. रा० ६१,१३३, २४५,७६८,७७७. जी० ३३१७२,३०३,५६६, ३६५,५५४,६३२,६३६,६६१,६६८,६८१ से ५९७ ६८३,६८८,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२, ७६५,७६८,७६८,८१२,५२३,८३६,८५०, वडभिया [वडभिका] रा०८०४ ८५७,८८२,६१०,६११ वडभी [वडभी ] ओ० ७० वडिसग [अवतुंसक ओ० १० वणस्सइ [वनस्पति जी० ८३ वडिसब [अवतसक] ओ० १२. जी. ३१५८४ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक जी० १२१२,६६ वउँसग [अवतंसक] ओ० ५,८,६४. रा० १२५, से ७४, २११३८, ३।१३१,१३५: ५।६१५, १४५. जी० ३।२६८,२७४,२८५,७०२,८०८, ८.१६१८४,२६३ ८२६,१०३६ वणस्सइकाइयत्त [वनस्पतिकायिकत्व } जी० वडेंसय अवतंक] रा० १२५ ३:१२७ १ वडवृ] .. वड्डइ. जी. ३.७३१....वड्ढए. वणस्सइकाल[वनस्पतिकाल ] जी० ११४२ जी० ३:८३८११४.....बड्ढति. जी० ३।७२३ रा६३,६५ से ६७,११७,१२६,१२७,१३०: वण बन] रा० ४५.६५४,६५५,७६५. ४६१२७, ९:११७,१२७,२६४,२७१ जी०३५५४,५८१ वणस्सति [वनस्पति जी०५।१७ वण {लया) [वनलता] जी० ३१२६८ वणस्सतिकाइय [वनस्पतिकायिक] जी० २११०२, वत्यि | वनार्थिन् । रा० ७६५ १२०,१३१,१३६.१३८,१४६.१४६, ३५१३५ वणप्फइकाइय वनस्पतिकायिक जी० ३.१९६ ५६,३,६,१८ से २० , ८,४,५, ६।१८२,२५६, वणप्फति वनस्पति जी० ३.१२३ २५८,२६६ यणप्फतिकाइय [वगालिकायिक] श्री ३।१२६, वणस्सतिकाल वनस्पत्तिकाल] जी० २८६ से ८८,६० से १२,११६,१३१,१३३, ३।११३४ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२८ ११३७, ४१७: ५।१७,३० ६ ८, १०; ७ १०, १३ से १५, १७, १८,६३३, ४, ५८,५६,८०,८३, १०३,१०५, ११५,१२४, १२६.१३६,१३८, १७७,१६४, २०७, २११,२१६,२१८,२२२, २२६,२३६,२४१ से २४३,२४६,२६२,२७७ से २७६,२१,२८२ वर्णिय [ वज्]ि o १ aणोजीवि | नापजीविन् ] रा० ७६५ ण | वर्ण २,१३, २३, २५,४७,४६ से ५१, ५५,७२,१६६,१७०,१६४. रा० ६,१२,२४ से २६, ३२, ४५, ५२, ५६, १२८, १३०, १७१,१६६, २३१,२४७,२८१,२८५, २६१, २६३ से २६६, ३००,३०५,३१२,३५५. जी० ११५, ३४, ३८, ५०, ५८,७३,७८,८१ ३३५८,८३,८७,६४, १२७, २७१, २७७ से २५२,३००,३०६, ३५३, ३६०, ३७२,३८३,४४७, ४५१, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०,४७७,५१६,५२०,५५४,५७८,५८०, ५८६,५६१,५६२,५६५,५६७,६०१,६०२, ६३७, ६४५,६४८, ६५६, ६५६,७२४, ७२७, ७३८, ७४३,७६३,८६०,८६६, ८७२, ८७८, ६७२, १०७५.१०७६.१०८१,१०६३ से १०६६ aur [ac] जी० ११३५,५०,९६,१३६ aon | वर्णक ओ० ६३, १६१,१६३ [वर्णक] २४३. जी० ३।२१७ तो [वर्णतम् ] ० ३१२२,२७,४५ वणमंत | वर्णवत् | जी० ११३३,३४ वण्णय | वर्णक ] २१० ६६, १५३, १६४ १७०, २०१, २०२,२०४ से २०८, २१६, २३३, २३८,२६१, २६३.११०३२६८,३१५ से ३१७,३२०, ३२१, ३३८,३५४,३५५,३५८,३६२,३६३, ३६६, ३६८,३७३,३७४,३७८,३६४,३६६,४०१४०६, ४२३,४२५,४२८,६३२ से ६३४,६३० से ६४१, ६४६,६४७,६५०,६६१,६६८,६७३,६७४, ६७८,६७६,६८३ से ६८५,६८९,७०६,७३६, _३५४,७५६,७५६,७६२, ७६८८१२,८२३,८३६, वर्णिय-वस्थि ८५०,६५७,८८२,८८४८८५८८७ ६१०, ११,३६,१००८ वण्णसंजलणया [वर्णसं ज्वलता ओ० ४० वण्णाभ[वर्णाभ ] रा १२४. जी० ३१७७,६३७, ६५६,६६४, ७३८,७४३, ७६३, ८१६,८५४, ८७२ वण्णावास | वर्णावास | रा० १६,२०,२५ से २६, ३७,४५, १३५, १४६,१७५,१६०,२२८,२४५, २५४,२०० जी० ३।२६४,२७८ से २८२, २८७,३०५,३११,३२२,३५६, ३८७, ४०७, '४१५,४३५,६४३,६५४,८६८ यत्त' [ वर्त | ओ० १६. जी० ३१५६६ वत्तमंडल ( वृत्तमण्डल ] बो० ६४ aa [ वक्तव्य ] ओ० ३३. जी० ६२५,६८२ बत्तव्वता [ वक्तव्यता | जी० ३३५६६,८५६,८८६ १३,६२५,६२७,६३२, ६३४,६३५ यत्तब्वया [ वक्तव्यता ] रा० ५२,२१५, ३२१,७५० से ७५३. जी० ३१३२,२५०,४१२,४३१,४३४, ६७६, ६६१,७०१,७१०,७७६,८००,८५६ वत्तिय प्रत्यय ] ओ० ५२. रा० १६,६८७, ६८६ वत्य | वस्त्र ] ओ० २०,३३,४७,४६,५१ से ५३,७२, १०७, १२०.१३०, १४७, १४६, १५०, १६२. रा० १५६, १५३,२५८, २७६, २८६,२६१, ६८५,६८७, ६८६, ६६२, ६६८, ७००,७१४, ३१६,७१६,७२६,७५२, ७८६,७६४, ८०२, ८०८,८१०,८११. जी० ३।३२६, ४१६,४४७, ४५२, ५६५,६७३,७७५, ८७८, १३७, ११२२ चत्यंत [ वस्त्रान्त ] रा० ६६ त्यहि [ वस्त्रविधि] ओ० १४६. ० ८०६ वत्यव्व [ वास्तव्य ] ० २८२. जी० ३१४४२, ४४८, ५२७ areer [artoon जी० ३१३५०, ४४६, ५६३ af | वस्ति ] रा० ७६३. जी० ३।५६७ १. वत्रं च सूत्रव जनकम् (ओ० वृ० । । वर्त - सूत्रवलनकम् [ जी० वृ० ] | Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्यु-वरुणोद ७२६ यत्यू [वस्तु,वास्तु ओ०१ वयजोग [चोयोग] ओ० १७५,१७७,१७६,१८२ वत्थुलगुम्म [वास्तुलगुल्म ] जी० ३।५८० वयण वचन ] ओ० ४६,५६,५७,५६,६१,६६. वस्थुविज्जा वास्तुविद्या ओ० १४६. ग० ८०६ रा० १०,१४ से १६,१८,७४,२७६,६५५,६८१, Vबद [वद्]-वदत्. ओ० ६६. रा० ६९५. ६६६,७०७. जी०३१४४५,५५५ -वदेज्जा. रा० ७५१। वयण वदन] ओ० १५,१६,२१,५४, रा०६७२. वदण विदन] जी० ३१५६६ से ५९८ जी० ३.५९७ वदित्ता [वदित्वा] ओ० ७६ क्यबलिय वचोबलिक] ओ०२४ यद्दलियाभत्त बालिकाभक्त ] ओ० १३४ क्यरामय [वनभय रा०१७४ बद्धण वर्धन ] जी० ३१५६२ वर [वर ओ० १,२,५,८ से १०,१२ से १४,१६, बद्धणी [नर्धनी ! जी० ३।५८७ २१,४६,४८,४६.५१,५४,५७,५.६,६३ से ६५, वद्धमाण [वर्धमान ओ० ४८,६८ ६७.१०७,१५३,१६५,१६६,१७२. रा० ३,४, वद्धमाणग [वर्धमानक) ओ० १२,६४. रा० २१, ८,६,१२,१३.२८,३२,४७,५२,५६,६८ से ७०, २४,४६,२६१. जी० ३१२७७,२८६ ७६,१२६,१३१ से १३३,१४७,१४८,१५६, वद्धमाणा [ वर्धमाना] रा० २२५. जी० ३.३८४, १६२,१७३,१८५,२१०,२१२,२२८,२३१,२३६, २४०,२७७,२८०,२८३,२८६,२६१,२६२,३५१, विद्धाव वर्धय]- वद्धावेइ. ओ० २०. रा० ६८०। ५६४,६५७,६६४,६७१,८१,६८३,७१०, -बद्धावेंति. रा० १२. जी० ३।४४२. ७१४,७६५,७७४,७६४,८०२,८०४,८१४. --वद्धावेति. रा० ४६ जी० ३१२७४,२८१,२८२,२८५,२६७,३०० से वडावेत्ता [वर्धयित्वा] ओ० २०. रा० १२. ३०३,३२१,३३२,३३५,३५४,३७२,३७३, जी० ३१४४२ ३८७,४४३,४४६ से ४४६,४५७,५१६,५४७, वप्प वप्र] रा० १७४. जी० ३.११८,११९,२८६ ५५७,५६२,५८६,५६१ से ५६३,५६५ से ५६७, वप्पिणी [दे०] ओ०१ ६०४,६४७,६७२,८५७,८६०,८८५ वम्भिय [वमित] रा० ६६४,६८३. जी० ३१५६२ वरवरय-बरइ. जी. ३१८३८,१६ वय [वचस्] ओ० २४. रा० ८१५ वरंग [वराङ्ग] जी० ३।३२२ वय {क्यस्] ओ० ४७ वरदाम वरदामन् । रा० २७६. जी. ३।४४५ वय [व्रत ] ओ० २५,४६ वरपुरिस वरपुरुप] जी० ३१२८१ विय विद्]--वइस्संति. रा० ८०२.--वएज्जा. वराह [वराह ] ओ० १६,५१. रा०२४,२७. रा० ७५०.-वयइ. ओ०७१.-..-वयामि. ___ जी० ३।२७७,२८०,५६६,१०३८ रा० ७३४.--वयासि. ओ० २०. रा० ७३४. जी० ३१४४८.-वयासी. रा०८. वरिसधर वर्षधर] ओ० ७०. रा० ८०४ जी० ३१४४२.--वयाहि. रा०१३ वरुण [वरुण ] जी० ३१७७५,८५७ विय वच-वच्छं. ओ० १६५१७. वरुणप्पभ | वरुणप्रभ] जी० ३१८५७ ___ जी० ३३२२६ वरुणवर वरुणवर] जी० ३१८५१,८५६,८५७, ८५६ वयंस [वयस्य ] जी० ३६१३ वयंसय वयस्थक] रा० ६७५ वरुणोद [वरुण द] जी० ३।२८५,८५६,८६०, वयगुत्त [वचोगुप्त] ओ० २७,१५२. रा० ८१३ ८६२,९५८,६६३ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३० बलक्ख-वा ववहारग व्यवहारक] रा० ७६६ ववहारि [व्यवहारिन् रा० ७६६ वस [बश ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ७८,५०,८१. १०८,१०,१२ से १४,१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५, ७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३१४४३,४४५, ४४७,५५५ विस वस्}-वसाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१४४८ वसंतलया [वासन्तीलता] रा० २४ यसट्टमयग [वशार्तमृतक] ओ० १० वसण [वसन] रा० २६,२८,६६,७०,१३३. जी० ३१२७६,२८१,३०३,११२१ से वलवख [वलक्ष] जी० ३१३२२,५६३ वलभी [वलभी] जी० ३१६०४,७६३ वलभीघर [वलभीगृह ] जी० ३१५६४ वलय [वलय ] जी० ११६६, ३।३७ से ४०,४२, ४४ से ५०,५६३,७०४,७६३,७६६,८१०, ८२१,८३१,८४८,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ बलयमयग [वलयमृतक] ओ०१० वलयामुह [वडवामुख ] जी० ३१७२३ वलयाबलिपविभत्ति ] वलयावलिप्रविभक्ति रा० ८५ वलि [वलि] जी० ३१५६७ दलित {वलित] जी० ३१५६६ वलिय [वलित ] ओ० १५,१६. रा० १२,६७२, ७५० से ७६१. जी. ३५६७ बल्ली [वल्ली] जी० ११६६,३११७२ यवगत व्यपगत] जी० २५६७,६१०,६१२ से ६१६,६२४,६२७,६२८ ववगय [व्यपगत] ओ० १४,६२. रा० ६७१. जी० ३।६०७,६०६,६२२ विवरोव [व्यप+रोपय] - ववरोबएज्जा. रा० ७५१-ववरोविज्ज इ. रा० ७६७ --अवरोवेमि. रा० ७५६- ववरोवेहि. रा० ७५१ ववरोवेत्ता [व्यपरोप्य] रा० ७५६ विवस [वि+अव+सो]--ववसइ. रा० २०८. जी० ३।४५४ ववसइत्ता [व्यवसाय] रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसाय [व्यवसाय] ओ० ४६. रा० २८८. जी० ३४५४ बवसायसभा व्यवसायसभा] रा०२६९.२७१, २७२,२८६,२८८,५६४,५६६,५६७,६१६, ६३४,६३५. जी० ३.४३४,४३६,४३७,४५२, ४५४,५४७,५४६ से ५५३ ववहार [व्यवहार] रा० ६७५ वसणभूत [व्यसनभूत] जी० ३।६२८ वसणुप्पाडियग [उत्पाटितकवृषण] ओ०६० वसभ [वृषभ ] ओ० २७. रा. ८१३. जी० ३१०१५ वसमाण [वसत् रा०६८३,७०६ षसह [वृषभ ] रा० २४ वसहि [वसति ] ओ० ३७,११८,११६,१६५. जी० ३१६०३ यसु [वसु] जी० ३३११७ वसुंधरा | वसुन्धरा] ओ० २७. रा०८१३. जी० ३१६२२ वसुगुत्ता [वसुगुप्ता] जी० ३।६२२ वसुमित्ता वसुमित्रा ] जी० ३१६२२ क्स [वसू] जी० ३१९२२ वह [वध] ओ० ४६,७३,१६१,१६३. रा० ६७१ वहक वधक ] जी० ३१६१२ वहमाणय [वहमानक] ओ १११ से ११३,१३७, वा [वा] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३।११७ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाइज्जत-बायणा बाइज्जत वाद्यमान] रा० ७७ वाणमंतर [वानव्यन्तर] ओ० ४६,८६ से १३. वाइत्त [वादित्र] २१० ११४,२८१ रा० ११,५६. जी० १११०१,१३५, २११५, वाइय [वाद्य] जी० ३१४४७ १६,७१,७२,९५,६६,१४८,१४६ ; ३१२१७, घाइय [वादित] ओ० ६८,१४६. रा० ७,७८, २३०,२५१,२६७,२६८,३५८,४०२,४४६, ८०६. जी ० ३१३५०,५६३,१०२५ ४४८,४५५,४५७,६२७,६५६,७६०,८५७,६१७ वाइय [वातिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ वाणमंतरी [जानव्यन्तरी] जी० २।३८,७१,७२, वाइय [वाचिक] ओ० ६६ १४८,१४६ वाउ | वायु ओ० ४६. जी० १४१२८,१३३; वाणिज्ज [वाणिज्य] जी० ३३६०७ २ १३०,१३६; ३:३०७,३६३; ११७,२०,२४, वात [वात] रा० १७३ २५ २७ बातकरण [वातकरक] जी० ३।३५५,४१६,४४५ वाउकाइय वायुकायिक जी० २११३८; ५।१,६, वाव [वादय् ] ---वादेति, जी० ३१४४७ २६,३१,३३,३६,८१५: ६।१८२,१८४,२५६, बादित [वादित ] जी० ३१८४२,८४५ २५७,२६२,२६६ वाबाहा {व्याबाधा] जी० ३१६२०,६२५ वाउकाय [वायुकाय रा०७७१. जी. ३१३५, वाम [वाम] ओ० २१,४७,५४. रा० ८,७०, ७२५,७२८ १३३,२६२,७६७,७६८,७७६,७७७. जी. ३.४५ वाउक्कलिया [वातोत्कलिका ] जी० १८१ वाम [वाम,व्याम] ओ० ५,८ जी० ३२७४ वाउक्काइय [वायुकायिक ] जी० ११७५,८०,८२; वामण [वामन] जी० ११११६ २२१०२,१४६,१४६; ११६५:२८,१४,२०, बामणिया [वामनिका] रा० ८०४ ८.१,३ वामणी [वामनी] ओ०७० वाउभाम [वातोद्भ्राम] जी० ११८१ वामद्दण [व्यामर्दन] ओ० ६३ वाउयाय [वायुकाय] रा० ७७१ दामहत्थ वामहस्त ] जी० ३।३०३ वाउवेग वायुवेग ] जी० ३३५६८ वामुत्तग दे० वामोत्तक,व्यामोत्तक] जी० ३२५६ वाएसा वाचयित्वा] रा० २८८. जी० ३।४५४ वाय [वात] ओ० ४६,६४. रा० ४०,५०,५२,५६, वाकवासि [वल्कवासिन् ] ओ० ६४ १३२,१३७,२३१,२४७,२८५,७७१. वागर वि-+आ+क]-बागरेइ. ओ०६६ जी०३.२६५,२८५,४५१,५८०,७२६ वागरण व्याकरण] ओ० २६,६७. रा०१६, विाय वाचय]-वाएति. रा० २८८. ७१६,७६८ जी० ३४५४. बायंति.--ओ० ४५ वागरमाण [व्याकुर्वाण ] ओ० २६ वाय [वादय् ]--वाइज्जइ रा० ७८३--वाएंति वागरेयत्व [व्याकर्तव्य] जी० ३१७७ रा० ११४ वाघाइम [व्याघातिन् व्याधातिम] ओ० ३२. वायंत वादयत] ओ०६४ जी० ३।१०२२ वायकरग वातकरक] रा० १५३,२५८८,२७६. वाघातिम [ व्याघातिन्, व्याधातिम] जी० ३११०२२ जी० ३।३२६ वाघाय व्याघात] जी० २०४६,८२ वापणा [वाचना] ओ० ४२,४३ वाड [वाड, वाट] जी० ३८७८ १. अनेकाभिर्नरवामाभि: सुप्रसारिताभिः (ओ०० वाण [वाण ] ओ० १३ अनेकनरव्यामः पुरुषव्यामः सुप्रसारितैः । वाणपस्थ [वानप्रस्थ ] ओ०६४ (जी०वृ०) Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३२ बायमंडलिया-वासंतिलया वायमंडलिया [वातमण्डलिका] जी० १८१ जी० ३१२८६,३००,३०७,४०७ वायाम व्यायाम ओ०६३ वालुयापुढवी [बालुकापृथ्वी] जी० ३१८५,१८८ वारण [वारण] ओ० १६ वालुयासंथारय बालुकासंस्तारक] ओ० ११५ वारय [वारक] जी० ३१५६६ वावण्ण [व्यापन्न ] जी० ३१८४ वारि [वारि] रा० १३१,१४७,१४८,१८०. वायत्तरि [द्विसप्तति ] ओ० १४६ __ जी० ३।३०१,४४६ यावी [वापी] ओ० ६,६६. रा० १७४ १७५, वारिसेणा [वारिषेणा रा० २२५. जी० ३।३८४, १८०. जी० ३१२७५,२८६,२८७,२६२,५७६, ८६६ ५६७,६६४,८७५,८८१,६४८ वारुणि [वारुणी] जी० ३१८६० वास [वर्ष ] ओ० ६८.८६ से ६५.११४,१४०, वारुणिकत वारुणिकान्त ] जी० ३१८६० १४१,१४५,१५४,१५५,१५७ से १६०,१६५, वारुणिवरोदय [वारणीवरोदक जी० ३१८५७ १६६,१८८,१६२. रा. ८ से १०,१२,१३, वारुणी [वारुणी] जी० ३१५८६ १५,५६,२७६.२८१,६६८,७६६,८०५,८१६. वारुणोद [वारुणोद] जी० ३१२८६ जी० १३५१,५५,५६,६१,६५,७४,८२,८७,६६, वारुणोदय [वारुणोदक] जी० ११६५ १०१,१०३,१११,११२,११६,११६,१३३, वारणोयग [वारुणोदक रा० १७४. जी० १७४ १३६,१३७, २१३५ से ३६,४१,६६,७३,६२, वाल [व्याल] ओ० ११७. रा० ७६६. ६३,६६,६७,१०८,११०,१११,११८,१२६, जी० ३:३००,६२५,८२२ १३६, ३३१५५,१०६ से १६२,४४५,४४७, वाल बाल ] रा. १६०,२५६. जी. ३३३३३, ७८५,७८६,७६५,८४१,१०२७ से १०३०, ४१७ १०३८,११३१, ४।३,६,११,१२,१६, २५, वालग व्यालक] ओ० १३. रा० १७,१८,२०, ६,१०,१२,१४,१५.२८,२६, ६२,६; ७:३, ३२,३७,१२६. जी० ३।२८८,३००,३११, १३, ६२,४,२१०,२१४,२२४,२२८,२३४, ३७२ २४१,२६६,२७७ बालाग [बालान] जी० ३१७८८,७८६ वास [वास] रा० ३०,६८३,७०६. जी० ३।२८३ वालग्गपोतिया (दे० बालाग्रपोतिका] जी. ३१६०४ Vवास [व]-वासंति. रा० १२. वालरूवग व्यालरूपक] रा० १३० जी० ३.४४७–वासह. रा०६ वालरूवय [व्यालरूपक ] रा० २६४,२६६ से वासंति [वासन्ती] जी० ३१५९७ २६६,३१२,४७३, जी० ३४५६,४६१,४६२, वासंतिकलया [वासन्तिकलता] जी० ३२५८४ ४७७,५३२ वासंतिमंडवग [वासन्तीमण्डपक] रा० १८४ वालवीइय [वालवीजित] ओ० ६३ वासंतिमंडक्य [वासन्तीमण्डपक] रा० १८५ वासंतिय लयावासन्तिकलता] जी०२६८ वालवीयणय [वालवीजनक ] ओ०६६ वासंतियलया [वासन्तिकलता] ओ० ११. वालवीयणी [ वालवीजनी] ओ० ६७ रा० १४५ वाली दे० ] रा० ७७ वासंतियलयापविभत्ति [ वासन्ति कलताप्रविभक्ति] वालुयप्पभा [बालुकाप्रभा] जी० ३३३५,४१,४३, रा० १०१ ४४,६६,११२ वासंतियागुम्म [वासन्ति कागुल्म] जी० ३१५८० चालुया [बालुका] ग० १३०,१३७,१७४,२४५. वासंतिलया वासन्तीलता] जी० ३।२७७ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासंतीमंडवग-विक्खंभ ७३३ वासंतीमंडवग [वासन्तीमण्डपक] जी० ३।२९६ वासधर वर्षधर रा० २७६. जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२२७,४४५,६३२,६६८,७६५,८४१, ६३७ वासपरियाय [वर्षपर्याय] ओ० २३ वासवद्दलय [वर्षबादलक] रा० १२३ वासहर [वर्षधर रा० २७६. जी० ३,४४५, ७७५,७६५ वासा [वर्षा] रा० ६,१२ वासावास [वर्षावास ओ० २६ वासिक्क [वार्षिक] रा० १६७. जी० ३।२६६ वासित्ता [वषित्वा) रा०२० वासी [वासी ] ओ० २६ वासुदेव [वासुदेव [ ओ० ७१. जी० ३।७६५, वासेत्ता [वर्णित्वा] रा ० २० वाहण [वाहन ] ओ० १४,२३,५२,५६,६६,१४१. रा०६७१,६७४,६७५,६८७,६६५,७८७,७८८ ७६०,७६१,७६६ वाहणसाला [वाहनशाला] ओ० ५६ वाहणा | उपानह.] ओ० ११७ वाहा बाहु] जी० ३१५६७ वाहि [व्याधि ] ओ० ७४१२. जी० ३।१२८, ७००,७०२,७०४,७०८,७०६,७१४,७१६, ७६५,७७४,७७६,७८७,७८८,७६६८०२, ८०८,८१०,८११. जी. ३३११०,११७,२७४, ३७२,४६१,४६२.४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०,५६६ विउलकयवित्ति विपुलकृत वृत्तिक] ओ० १६ विउलमइ (विपुलमति ओ० २४. रा० ७४४ (विउव्य वि-+] - विउव्वइ. रा० ३२. --विउव्वति. रा०१०. जी०३।११०. -विउन्वति. रा० १६.---विउव्वाहि. रा० १७. —विउब्बिसु. जी० ३३१११६.-विउविस्मति. जी० ३३१११६ विउम्पिपिडिपत्त [विक्रियद्धिप्राप्त ] ओ० २४ विउव्वणा [विकरण ] जी० ३११२७।४,१२६२ से ४ विउम्बित्तए [विकर्तुम् ] जी० ३.११० विउम्वित्ता विकृत्य] रा० १० जी० ३।११० विउम्विय [विकृत] ओ० ४६ विउठवेमाण {विकुर्वाण ] जी० ३१११०,१११५ विउस्सग्ग [ व्युत्सर्ग ओ० ३८,४३,४४ विउस्सापारिह | पुत्सहि ] ओ० ३६ विओग | वियोग] ओ० ४६ विओसरणयाँ व्युत्सर्जन] ओ०६६,७०. रा. ७७८ विद वृन्द] स०६८३. जी० ३१५८६ विहणिज्ज वृंहणीय] ओ०६३ विकच्छसुत्तग वैकक्षसूत्रक] रा०२८५ विकल्प [विकल्प] ओ० ५७. जी० ३१५६४ विकिट्ठ । विकृष्ट ओ० १. रा०६८३ विकुस विकुश ] ओ०८,१०. जी ० ३.३८६,५८१ ___से ५८३, ५८६ से ५६५ विक्कम विक्रम | ओ०१६,२३. जी० ३१७६, १७८,१८०,१८२,५९६ विक्किरिज्जमाण [विकीर्यमाण | रा० ३० विक्खंभ [विष्कम्भ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६ से १२६,१३७.१७०, १८६,१८८,१८६,२०१,२०४ से २१२,२१८, वाहित [ व्याहृत] जी० ३।२३६ वि अपि ओ० ६७. रा० २७६ विअदृच्छउम [विवृत्तछद्मन् ] जी० ३।४५३ विइय द्वितीयj ओ० १८२ विउक्कम [वि-+-उत्+क्रम् ]-विउक्क मंति. जी० ३८७ विउल विपुल | ओ० १,२,५,८,१४,१६,२३,४६, ५२,५५,६८,१४१,१४७,१४६,१५०. रा०७, १५,३२,२२८,२७८,२७६,२८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५.३१२,३५५,६७१,६७५, ६८०,६८१,६८३,६८४,६८७,६६५.६६६, Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३४ विक्खरिज्जमाण-विज्जुदंर २२१,२२२,२२४,२२६,२२७,२३०,२३१, २३३,२३८,२३६,२४२,२४४,२४६,२४७, २५१ से २५३,२६१,२६२,२७२. जी. ३१५१ ८१,८२,८६,१२७,२१७,२२२,२२६,२६० से २६३,२७३,२६८,३००,३०७,३१०,३५१ से ३५५,३५८,३५६,३६१,३६२,३६४,३६५, ३६८ से ३७४,३७६,३७७,३८०,३८१,३८३, ३८५,३८६,३६२.३६३,३६५,४००,४०१, ४०४,४०६,४०८,४१२ से ४१४,४२२,४२५, ४२७,४३७,५७७,६३२,६३४,६३६,६४२, ६४४,६४६,६४७,६४६,६५३,६५५,६६१, ६६३,६६८,६७१ से ६७५, ६७६,६८३,६८५, ६८६,७०६,७२३,७२६,७३२,७३६,७३७, ७५४,७५६,७५८,७६२.७६५,७६८,७७०, ७६४,७६५,७६८,८१२,८२३,८३२,८३५, ८३६,८५०,५८२,८८४,८८५,८८७,८८८, ८६१,८६३ से ८६५,८६७,८९६ से १०१, १०६,६०७,६१०,६११,६१८,९५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ विक्खरिज्जमाण [विकीर्यमाण] जी० ३१२८३ विक्खेवणी [विक्षेपणी] ओ० ४५ विग [ वृक] जी० ३८४,२७७,६२० विगय [विगत ] जी० ३३०४ विगसिय [विकसित ] रा० ८,७१४ विगोवइत्ता विगोप्य] ओ० २३. रा० ६६५ विरगह [विग्रह] ओ० ५६ विग्गहिय [विगृहीत] जी० ३१५६८ विचरिय [विचरित] जी० ३३११८,११६ विचिक्की | दे० रा. ७७ विचित्त | विचित्र | ओ० ६,४७,४८,६३,७२. रा० १७३,२२८,६८१. जी० ३।२७५,२८५, ३८७,५८७,५८६,५६१,६७२ विच्छड्डइत्ता विच्छई | मो० २३ विच्छड्डित्ता [विच्छद्य ] रा० ६६५ विच्छड्डिय [विदित] ओ० १४,१४१. रा०६७१, ७६६ विच्छविय [विच्छिविक] जी० ३१६६ विच्छिण्ण [विस्तीर्ण] ओ० १४,१६. रा० ६७५, ७७४. जी० ३।२६१,३५२.५६६,५६७,६३२, ६३६,६८६,८.२ विच्छिन्न [विस्तीर्ण] रा०६७१ विच्छिप्पमाण [विस्पृश्यमान] ओ० ६६ विच्छ्य [वृश्चिक] जी० ३८५ विजढ वित्यक्ता जी. ३१५४,५६ विजढपुस्व [वित्वक्तपूर्व जी. ३.५४,५६ विजय [विजय ] ओ० २०,५३,६२,६४,६८,१९२. रा०१२,४६,५०,५२,५६,७२,११८,१३७, २३१,२४७,२७६,२७६,६६५,६८३,६८६, ७०७,७०८.७१३,७२३. जी०३११८१,२९४ से ३०७.३१५,३३५,३३६,३३६ से ३५१,३७२, ३६३,४०२,४१०,४२६,४३२,४३५,४३६ से ४५७,५५५ से ५६५,६०१,६३८,६६०,६६५, ७०१,७०७ से ७१०,७१३,७६२,७७५.७६६, ८००,८१३,८१४,८२४,८२५,८५१,८६८, ६१६,६३७,६३६,६४०,९४४ विजयदूस [विजयदूप्य ] रा० ३८,३६. जी० ३।३१२,३१३,३३८,६३४,८६२ विजया [विजया] जो ० ३१३५०,३५१,३५४,३५५, ३५७,३५८,३६०,४३६,४४२,४४५ से ४४८, ५५४,५५५,५५७,७०४,७१०,७३६,७४४,९०२ विजाति | विज्ञाति] जी० ३१७८१,७८२ विज्जा [विद्या] ओ० २५. रा० ६८६ विज्जावर | विद्याधर] जी. ३७६५ विज्जाहर | विद्याधर ओ० २४. रा० १७,१५, २०,३२,१२६. जी. ३१२८८,३००,३७२,७६५, ८४०,८४१ विज्ज [विद्युत् ] ओ० ४८,५७. रा० १३३. ___ जी० १७८ ; ३३३०३,५६०,११२२ विज्जुकार [विद्युत्कार ] जी० ३१८४१ विज्जत [विद्युत् ] जी० ३१६२६ विज्जवंत [विद्युद्दन्त ] जी० ३१२१६ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज्जुप्पभ-विदेह ७३५ विज्जुप्पभ [विद्युत्प्रभ] जी. ३७४६ जी० ३१३७२,४५७ विज्जुष्पभा [विद्युत्प्रभा] जी० ३।७५१ विणिम्मुयमाण [विनिर्मुञ्चत् ] जी० ३३११८ विज्जुमुह [विद्युन्मुख जी० ३।२१६ विणिवाय [विनिपात ] ओ० ४६ विजयंतरिय [विद्युदन्तरिक] ओ० १५८ विणीत [विनीत] जी० ३१७६५,८४१ विज्जयाहत्ता | तितायित्वा] रा० १२ विणीय विनीत] ओ० ६१. रा० ७६५,७६६, /विज्जुयाय [विद्युताय]-विज्जुयायंति. रा० १२. ७७०,८०४. जी० ३१५६८,७६५,८४१ जी० ३४४७ विणीयया [विनीतता] ओ० ११६ विज्जयार [विद्युत्कार] जी० ३६४४७ विष्णय [विज्ञक] रा० ८०६,८१० विज्सव [वि+ध्यापय् ] -विज्झवेज्जा. रा० ७६५ विण्णव [वि + ज्ञपय]-विष्णवेहि. रा०६६६ विज्झाय [विध्यान ] रा० ७६५ विष्णाण [विज्ञान] ओ० २३. रा० ७५८,७५६, विदुर [विप्टर] जी० ३१५८७ ७६५,७६६,७७० विडंग [विटङ्क] जी० ३१५६४ वितण्ह [वितृष्ण] जी० ३३१०६ विडाल [बिडाल ] जी० ३१६२० विततावितत] रा० २४,११४,२८१. विडिम दे० विटप} ओ० ५,८,५१. रा० २२७, जी० ३।२७७,४४७,५८८ २२८. जी० ३।२७४,३८६,३८७,५६८,६७२, विततपक्खि [विततपक्षिन्] जी० १६११३; २०१० विणइय [विनयित रा० ७२३ वितार [वितार] रा० ७६ वितिक्कत व्यतिक्रान्त ] रा०८०१ विण? [विनष्ट ] जी० ३१८४ विणमिय[विनत] ओ० ५,८,१०. रा० १४५. वितिमिर वितिमिर जी० ३१५८६ जी० ३।२६८,२७४ वित्त [वित्त] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,६७५ विणय [विनय] ओ० २,२३,३८,४०,४७,५२,५६, वित्ति वृत्ति] ओ०६१ से ६३,१६१,१६३. रा० ७५२,७७६ । ५७,५६,६१,६६,७०,८३,१३६. रा० १०,१४, १८,६०,७४,२७६,६५५,६७१,६८१,६८७,६६२, वित्थड [विस्तृत ] ओ० ७१. रा० ६१. " जी० ३८१,८२,८३८:१५,१०७३,१०७४ ७०७,७१६,७३७,७७७,७७८. जी०३१४४५, वित्थरतो विस्तरतस् ] जी० ३१२५६ ५५५ विस्थार [विस्तार जी० ३.७३ विणयमओ विनयतस् ] स० ६६४ पिस्थिण्ण विस्तीर्ण ओ०१४१. रा० १७,१८, विणयतो [विनयतस् ] जी० ३१५६२ १२४,१२७,७६६. जी. ३१५७७,६६१,७३६, विणयपडिवत्ति [विनयप्रतिपत्ति] रा० ७७६ १०३६ विषयसंपण्ण [विनयसम्पन्न ] ओ० २५. रा० ६८६ विदिण्णविचार [विदत्तविचार] रा० ६७५ विणासण | विनाशन] रा०६,१२,२८१. विदित (विदित] ओ० २६ जी० ३१४४७ विदिसा [विदिशा] जी० ३।६१८ विणिच्छय विनिश्चय रा०६८९ विदिसीवाय [विदिग्वात जी० ११८१ विणिच्छिय [वि निश्चित ] मो० १२०,१६२. विदपरिसा [विदवत्परिषद ] रा०६१ रा० ६६८,७५२,७८६ विदेस [विदेश] ओ० ७०. रा० ८०४ विणिम्मुयंत विनिर्मुञ्चत् ] रा० ३२,२९२. विदेह [विदेह ] ओ० ६६. जी० २१८६ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेहजंबू-वियाणय विदेहजंबू [विदेहजम्बू ] जी० ३१६६६ विधाण [विधान ] जी० ३१२५६ विधि [विधि ] जी० ३६१६०,२५६,४४७,५८७ से ५८६,५६५,६३४ विपंची [विपञ्ची] रा० ७७. जी० ३१५८८ विपक्क विपक्व | जी० ३।५६२ विपरिणामाणुप्पेहा [विपरिणामानुप्रेक्षा] ओ०४३ विपुल [ विपुल ] रा०६८६,७६५. जी० ३१४४४, ४४५,४४७,४५६,५६६ विप्पइट्ट [विप्रकृष्ट] जी० ३।५६१ विघ्पओग [विप्रयोग] ओ० ४३ विप्पजहणा विप्रहाणि | ओ०१८२ विप्पजहिता | विप्रहाय] ओ० १८२ विप्पमुक्क [विप्रमुक्त ] ओ० १४,२५,२७,३६, १७२,१६५८. रा० १२,१७३,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२,३५५,६७१,६८६, ८१३. जी. ३२२८५,४५७ विप्परिणामइत्ता [विपरिणमय्य | जी० ११५० विप्पोसहिपत [विघुडौषधिप्राप्त ] ओ० २४ विस्फालिय [ विस्फारित ] जी० ३१५९६ विफलीकरण [विफलीकरण] ओ० ३७ विभम [विभ्रम] जी० ३६५६४ विभंगणाणि [विभङ्गज्ञानिन् ] जी० १।६६; ३।१०४,११०७, ६३१६७,२०३,२०७,२०८ विभत्त | विभक्त | जी० ३१५६७ विभयमाण [विभजमान] जी० ३८३१ विभति | विभक्ति] जी० ३।५६४ विभाग [विभाग] जी० ३।५६१ विभासा [विभाषा] जी० ३।२२७ विभूइ [विभूति ] ओ० ६७. रा० १३,६५७ विभूति [विभूति ] जी० ३१४४६ विभूसण [विभूषण] ओ० ४६ विभूसा | विभूषा] ओ० ३६,६७. रा० १३, ६५७. जी० ३।४४६,११२१ से ११२३ विभूसित । विभूषित] जी० ३।४५१ विभूसिय [विभूषित | अ०६३,७०. रा० २८५, २८६,८०५. जी० ३।४५२ विमउल [विमुकुल | ओ०१ । विमउलिय [विमुकुलित जी० ३।५६० विमल | विमल आ० १५,१६,४६,४३,५१,६३, ६४,१६४. रा० ३२,५१,६६,७०,१३०,१५६, १७४,८८,२९२,६६४,६७२,६८३. जी० ३३११८,११६,२८६ ३००,३३२,३७२, ४५४,४५७,५६२,५८६,५६६,५६७८६६ विमलप्पभ विमलप्रभ जी. ३१८६६ विमाण | विमान ] ० ५१. रा० ७,१२ से १४, १२४ से १२६,१२६,१६२,१६३,१६९.१७०, २७४,२७६,२७६,२८१,२८२,६५४,६५५, ७६६, जी० ३११७५ से १८२,२५७,८४२. ८४५,१०२४ से १०२६,१०३८,१०३६, १०४३,१०४८,१०५६ से १०५९,१०६५, १०६७,१०७१,१०७३,१०७५ से १०५१, १०६७,११११ विमाणावास [विमानावास रा० १२४. जी० ३.२५७,१०३८,१०३६,११२८ विमुक्क [विमुक्त ] ओ० १६५।६,१८,२१. जी० ३१४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७, ५१६,५२०,५५४,५६७ विम्हावण [विस्मापन] ओ० ११६ वियट्टछउम [ विवृत्तछद्मन् ] ओ० १९,२१,५४, रा०८ वियड |विकट ] औ० १६. जी. ३१५६६,५६७ वियडावति | विकटापातिन् ] जी० ३७९५ वियडावाति | विकटापातिन् । रा० २७६. जी० ३।४४५ वियसंत | विकसत् | ओ० ४६ वियसिय | विकसित ओ०५१,४७,५४. रा० १३७. जी० ३१३०७ वियाणंत [विजानत् ] ओ० १६०१६ वियाणय [विज्ञायक | रा०५०४ Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वियाणित्ता-विसय विवच्चास विपर्यास रा० ७६७,७६८,७७६, वियाणित्ता [विज्ञाय] ओ०१४६. रा०८१० वियाणिय | विज्ञात ] ओ०७० वियालचारि | विकालचारिन् । ओ० १४८,१४६. रा० ८०६.८१० विरइय विरचित] ओ०६,६३. जी० ३१२७५ विरचिय ! विरक्ति | रा०६६,७० विरत [विरत | ओ० ४६ विरय [विरत | श्रो० १६२ विरल्लिय | विरल्लित] जी० ३२५६१ विरसाहार | विरसाहार ओ० ३५ विरहित विहिन जी० ३।७६१,८४४ विरहिय विहित ] ओ० ३७. जी. ३१८४७ विराइय [विगजित ] ओ० १४,४७,५७,७२. E09०,६७१. जी० ३१५६७,११२१ विरागया | विलगता ओ० ४६ विरायंत (विराजत् । ओ० २१,५४,५७. रा०८, विवणि [विपणि ओ०१. जी० ३.६०७ विवर विवर| रा० ७५४ से ७५७,७६३ विवागविजय | विशाकविचय औ० ४३ विवागसुयधर विपायाश्रुतधर | ओ० ४५ विवाह [विवाह | जी० ३३६३१ विवाहपण्णत्तिधर | व्याख्याप्रज्ञप्निधर | ओ० ४५ विवित्तसयणासणसेवणया विविक्तणनासन सेवनता ओ० ३७ विविध विविध जी० ३।३०२,३८७,५८८,५६४ विविह विविध | ओ० १,४६,५१,११७. रा०२०, ४०,१३२,१३७,२२८,७६६. जी०६२६५, २८८,३०७,३११,५८६.५८७,५८६ से ५६३, ५६५,६७२ विवेग | विवेक ] ओ०४३,७९ से ८१ विवेगारिह { विवेकाह] ओ० ३६ विस । विषरा० ७६१,७६४,७६५ विसज्जित [विजित रा०६८५ विसज्जिय विजित ] ओ० २१. रा०६८० ६६६,७००,७०२,७१० विसप्पमाण | त्।ि ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,६३ ७८,८०,८१. रा०८,१०,१२, से १४.१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८, जी० ३।४४३,४४५,८४७,५५५,५६७ विसभक्खियम | विषक्षितक ओ०६० विसम | विषम | ओ. १७१. जी० ३१६२३,७०५, ७६७,८११,८२२,८४६ विसय विशद रा० १३३. जी० ३१३०३,५६२, विरायमाण | विराजमान] ओ० १ विराहय [ विसाधक ] १० ६२ विरिय | वीर्य] जी० ३१५६२ विरुद्ध विरुद्ध | ओ० ६३ विस्वरूव । विरूपरूप] रा० ८१६ विलंबिय बिलम्बित • १०३.२८१. जी० ३.४४७ विलवणया विलपनता | ओ० ४३ क्लिविय | विलपित ] ओ० ४६ विलसिय विलासित ओ०१६ विलास विलाय ओ० १५. रा० ७०,६७२, ८०६.८१०. जी० ३४५६७ विलासित विलाशित जी० ३ ५९६ विलोण विलीन जी० ३१८४ विलेवजलिपन ओ०६३,१६१,१६३,१७० विलेवणविहि वि पनविधि ] १० १४६. रा० ८०६ विव [इव | ओ० १६. रा० १३३. जी० ३३१११ विसय विषय ] ओ० २३,३७. रा० १५. जी० ३१९७६,९७७ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३८ विसह | विषह् | ओ० २७. रा० ८१३ विसाण | विषाण | ओ० २७. रा० ८१३ विसाय | विवाद ] ०४६ विसारय | विशारद ] ओ० ६७, १४८, १४९. रा० ६७५,८०६,८१० विसाल [ विशाल ] ओ० ६४. रा० २२८. जी ० ३१३८७, ५६७, ६७२ विसाला | विशाला ] जी० ३३६६६,६१५ विसि | विशिष्ट ] ओ० १६,६३. रा० ३२,५२ ५६,१५,२३१,२४७. जी० ३।२६७,३७२, ३६३, ५६२,५६६,५६७,६०४,८५७ विज्झमाण [ विशुध्यमान ] ओ० ११६,१५६ विसुद्ध | विशुद्ध ] ओ० ८, १०, १४,४६, १८३, १८४. रा० २६२,६७१. जी० ३।३८६,४५७, ५८१ से ५८३,५८६ से ५५ विसुद्ध लेस्स | विशुद्धलेश्य ] जी० ३ १६६,२०१, २०३ से २०६ विसेस | विशेष ] ओ० १६५।१७. रा० ५४,१८८. जी० ३११२६५, २१७, २२६।५, ३५८, ५७६, ८३८/१३ विसेसहीण [ विशेषहीन ] जी० ३३७३ विधि | विशेषाधिक ] जी० ३१८२ विसेसाहिय | विशेपाधिक] ओ० १७०,१६२. जी० १।१४३, २,६८ से ७२,६५,६६, १३४ से १३८, १४१ से १४६; ३ । ७३,७५,८६,१६७,२२२, २६०,३५१,३६१,६३२,६६१,६६८,७३६, ८१२,८३२,८३५,८३६,८८२, १०३७,११३८, ४२१६ से २२,२५,५३१८ से २०,२५ से २७ ३१ से ३६,५२,५६,६०; ७१२०,२२,२३; ८५, ६५, ७, १४,५५, १५५, १६६, १६६, १८४, १६६,२०८,२३१,२५० से २५३,२५५, २६६, २८६ से २६३ विस्संत [ विश्रान्त ] जी० ३१८७२ विस्geत्तिय | विश्रुतकीर्तिक ] ओ० २ विहंगिया | विङ्गिका ] रा० ७६१ विसह विहि विहग [ विहग ] ओ० १३, १६, २७. रा० १७, १८, २०,३२,३७,१२६,८१३. जी० ३१२८८, ३००, ३११,३७२, ५६६ विहत्थि | विहस्ति | जी० ३२७६८ विहर | वि + ह् । विहरइ. ओ० १४. रा० I ६. जी० ३१२३६. विहरति ओ० २३. रा० १८५. जी० ३१०६. - विहरति रा० ७. जी० ३१२३४. - - विहामि २०७५२.विहराहि. ओ० ६० रा० २८२. जी० ३/४४ -- विहरिस्सह, रा० ८१५- विहारस्संति. रा० ८०२. विहरिस्वामि रा० ७५७. - विहरंज्जा. ओ० २१ विहरत | विहरत् । रा० ७७४ विहरमाण [ विश्त् ] ओ० १६, ३०,७६,७७, ६२, ५, ११४, १५३, १५८, १५६, १६५. रा० ६८६, ७११.७७४,८१६ विहरित [ विहर्तुम् ] ओ० ११७. रा० ७६१. जी० ३३१०२४ विहरिता [ विहृत्य ] ओ० १५५ विहव | विभव ] रा० ५४ विहस्सति | वृहस्पति ] ओ० ५० विहाड [ वि + घटय् ] -- बिहाडेइ. रा० २०८. जी० ३१५१६. - विहाडेंति. ओ० ७४१५. - विहाडेति जी० ३।४५४ विहाडिता | विषय ] रा० २०६ विहाडेत्ता [ विघटय ] रा० ३५१. जी० ३।४५४ विहाण | विधान ] रा० ७१,७५. जी० ११५८,७३, ७८,८१ विहाणमग्गण [विधानमार्गण | जी० १३४, ३६, ३६ विहार [ विहार ] ओ० ३०,१२,६५,११४,११५, १५३,१५८, १५६,१६५. रा० ८१४,८१६ विहि [विधि ] ओ० ६३. रा० २८१. जी० ३।४७५. ४७६,५८६,५८८,५६० से ५६५,८३८।१३ ५३३० Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहिय-बेउब्वियामुग्धात ७३६ विहिय [विहित] ओ० १५. रा० ६७२ वीसाएमाण [विस्वादयत् | रा०७६५,८०२ विहुय [विधुत | जी० ३१५८० वीसादणिज्ज विश्वादनीय ] जी. ३१६०२,८६०, विहूण | विहीन जी० ३।२६८,३६० ८६६,८७२,८७८ वीइक्कंत अतिक्रान्त , मो० १४३,१४४. वीहि वोहि जी० ३।६२१ रा०८०२ वीहि [वीथि | जी० ३१२६८,३१८ वोईवइत्ता [व्यतिबज्य | ओ० १६२. रा० १२६. वीहिया [वीथिका ] ओ० ५५. रा० २८१. जी० ३१६३८ जी० ३१४४७ वोईवययाण अतियजत् ] रा० १०,१२,२७६. वीस विंशति जी० ३.१३६ जी० ३।४४५ बुग्गाहेमाण | व्युग्राह्यत् | ओ० १५५,१६० वोचि बीचि ओ० ४६. जी० ३।२५६ विच्च विवुच्चइ. ओ० ८६. रा० १२३. वीचिपट्ट | वाचिपट्ट] जी. ३१५६७ जी० ३१२३६ –बुच्चलि. जी० ३१५८ बीजेमाण | वीजयत् भी० ३१४१७ -~-बुच्चति. रा० १२३. जी. ३२२३६ वीणगाह [बीणाग्राह] ओ० ६४ वुड्डसावग [वृद्धश्रावक ओ० ६३ वीणा मीणा रा० ७७,१७३. जी० ३.२८५ बुड्डि वृद्धि] जी० ३।७५१,७८२,८४१ घोतसोग [वीतशोक] जी० ३१६२७ वृत्त | उक्त ओ० ५६. रा० १०,१२,१४,१८, थीतिवइत्ता [अतिव्रज्य ] जी० ३१७३६ ६०,६३,६४,७४,२७६,६५५,६८१,७०१, वोतिवतित्ता व्यतिव्रज्य ] जी० ३१३५१ ७०३,७०७,७२५,७६२. जी० ३१४४५,५५५ वीतिवः वि + पति+व्रज्]-वीतिबइंसु. जी० ३१८४०-वोतिवइस्संति. जी. ३२८४० वृपाएमाण [गुलादयत् ] ओ० १५५,१६० -~-वोतिवएज्जा. जी० ३८६-वीतिवयंति. बूह [व्यूह ! ओ० १४६. रा० ८०६ घेइय [व्येजित] रा० १७३. जी० ६।२८५ जी० ३१८४० गेइयपुडंतर [वेदिकापुटान्तर] रा० १६७ वोतिवयमाण [पतित्रजत् ] रा०५६. जी० ३१८६, नेइयफलक [वेदिकाफलक] रा० १६७ १७६,१७८,१८०,१८२ बेइया |वेदिका रा० १७,१८,२०,३२,१२६, वीतीवइत्ता व्यतियज्य रा० १२६ १६७. जी० ३।३७२,६०४,७२३,७७६,७७७, वोषि वीथि] श्री० ३।३५५ ७७६,६१० थोरवलए [वीरवलय] ओ० ६३ गेइयावाहा वेदिकाबाहु | रा० १६७ वीरासणिबीरासनिक ओ० ३६ घोउखि विकारिन् ] ओ० ५१ वोरिय [वीर्य ओ० ७१,८६ से १५,११४,११७, वेउवि [विकर्तुम् रा०१८ १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा०६१. जी० ३१५८६ वेउविध ! वैक्रिय रा० २७६,२८०. जी० १९८२, वीरिभलाद्ध वीर्यलब्धि] ओ० ११६ ६३,११६,१३५; ३।१२६।४,४४५,८४२ वीवाह | विवाह ] श्री० ३१६१४ वेउन्विामीसासरीर वैक्रियकमिश्रकशरीर] वीसंद ! वि-+स्यन्द् ]--बीगंदति. जी० ३१५८६ ओ० १७६ वीसंदित विस्यन्दित ] जी० ३१८७२ देउम्वियलद्धि [वैक्रिय लब्धि] प्रो० ११६ वोसत्य विश्वस्त] ओ० १ वेउब्वियसमग्घात [वैक्रियसमुद्घात] वीससा | विनसा] जी० ३६५८६ से ५६५ जी० ३।१११२,१११३ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० देउब्वियसमुग्घाय-वेराणुबंध १४६ वेउब्वियसमुग्धाय [ वैक्रिपसमुद्धात | रा० १०,१२, वेदिया | वेदिका | जी० ३।२६६,२८८,३००,३७२, १८,६५,२७६. जी० ११८२, ३३१०८,४४५ ७६५,७६६ से ७७५,७७८ वेउब्वियसरीर वैक्रियशरीर ओ० १७६. वेवियापुडंतर | वेदिकापुटान्तर | जी० ३१२६६ जा०६।१७० वेदियाबाहा | वेदिकाबाहु | जी० ३१२६६ वेउवि सरीरि वैक्रियशरीरिन् जी० ६ १७०, वेदेमाण | वेदयत् | ओ० ८६ रा० ७५१ १७७,१८१ वेमाणिणो [वैमानिकी] जी० २.७१,७२,१४८, वेंट [वृन्त ] जी० ३।३८७,६७२ वेग वेग] ओ० ४६,५७ वेमाणिय वैमानिक ओ० ५०. रा० ७,११,१५ वेच्च व्युत, व्यूत | रा० ३७.२४५. जी. ३.३११, से १७,५५,५६,५८,५६,१८५,१८७.२७६, ४०७ २८६,२६१.६५७. जी० १११३५, २०१५,१६, वेजयंत [ वैजयन्त ) ओ० १६२. जी० ३.१८१, ४५,४६,७१,७२,६५,६६,१४८,१४६; १२३०, २६६,५६६,५६७,७०७,७११,७९६,८१३, ६१७,१०३८ वेय विद} ओ० २५. रा० ६८६,७७१. वेजयंती | वैजयन्ती] ओ०६४, ०० ५०,५२,५६, जी० २१४,११६; २११५१, ६६६ १३७,२३१,२४७. जी० ३।३०७,३६३,६१६, 1वेय वि.+ एज् |– वेथ इ. रा० ७७१.--वेयंति. जी० ३१७२६ १०२६ वेयंत (व्ये जमान ] रा० ७७१ वेडंतिय (पाय) (दे० ओ० १०५,१२८ वेडंतिय (बंधण) | दे० ] ओ० १०६,१२६ वेषण | वेतन रा० ७८७,७८८ वेढ | वेष्ट } २०० ७६७ वेयण [दे० विक्रय | रा० ७७४ वेढणग | वेष्टनक] जी० ३.५६३ वेषणा | वेदना | ओ० १७,४६,७१,७४.१६५. रा० ७५१,७६५. जी० ११८६, ३७७,११०, वेढित्ता [ष्टित्वः रा० ७६७ १२७१४,५,१२८।१,१२६७ वेढिमवेष्टिम | ओ०१०६,१३२. रा. २८५. वेयणासमुग्धा ! वेदनाम मुद्घात ) जी० ११२३,८२. जी० ३१४५१,५६१ वेणतिया । बनयिकी स० ६७५ वेषणिज्ज [वेदनीय ] ओ० ८६,१७१ वेणु वेणु जी० ३।५८८ वेयणीय [ वेदनीय | ओ० ४४ वेणुदेव (वेगुदेव जी० ३।२५० वेदिय । विदिक औ० २ वेणुसलाइ | देणुशलाकिको ] रा० १२ वेयालिया वेवालिकी| रा० १७३. वेव | वेद] ओ० ६७. जो० २११५१ । जी० ३:२८५ वेद | वेदय् ] - वेदति. जी० ३१११२ वेयावच्च [वैयावृत्य] ओ० ३८,४१ वेदणा | वेदना] जी० ३।१११ से ११५,११७, वेर [वै] जी० ३.६२७ १२८ वेरग्ग | वैराग्य ] ओ० ४६,७४१५ वेदणासमुग्धात [वदनास मुद्घात ] जी० ३।१११२. वेरमण [विरमण } आ० ७६,७७,७६ से ८१, १२०,१४०,१५७. ०६६३,६९८,७१७, वेदणासमुग्धाव वेदनास मुद्घात जी० ३।१०८, ७५२,७८७,७८६ वेराणुबंध वैराणुबन्ध] जी० ३२६१२ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेरि उज्झिय वेरि | वैरिन् । जो० ३३६१२ afra | वैरिक | जी० ३१६३१ defer | वैडूर्य ] ओ० ६४. २० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६, १६०, १६५, १७४, २२८,२५६.२७६,२ε२. जी० ३१७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७, ४१७, ४५७, ६७२ doलियमणि [ वंडूर्यमणि | जी० ३१२८६,३२७ वेरुलयमय | वैडूर्यमय | ० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३/३२२,४३५ वेरुलियामय | वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, ११०,२३६. जी० ३:२६४,२८७,३००, ३०२, ३२६, ३६८, ४५७, ६४३,८७५ वेलंधर | वेलन्धर | जी० ३ ७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७६१,७८२ वेलंब | वेलम्ब | जी० ३।७२४ ajar | विडम्बक ] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा | विडम्बक प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३०६१६ वेलवास | वेलावासिन् ] ओ० ९४ वेला वेला ] ओ० ४६. जी० ३।७३२ | वेलु [ वेणु ] २४० ७७ वेस | वेष ] ओ० १५,४६,५३, ७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३।३०३,५६७, ११२२ समण [ श्रमण ] ओ० ६५ dear [ श्रमणमह ] रा० ६८८. जी० ३।६१५ साणिय | वैपाणिक ] जी० ३।२१६,२२१ वसायिदीव | पाणिकद्वीप ] जी० ३१२२१, २२५ darfar | वैश्वासिक | ओ० ११७. रा० ७५० से ७५३, ७६६ हाणसिय | वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्य व्यवच्छिन्नक ] रा० ७५३ वोस [ उ ] रा० २८५. जी० ३१४५१ वोलट्टमाण | व्यपलोटत् ] जी० ३।७८४,७८७ deमाण [ विपत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसिर | वि + उत् + शृज् ] - बोसिशमि. ओ० ११७. रा० ७९६ अब [ इव] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ 1 ७४१ स स स ] ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०, १६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७, ५०, ५१,५६,५८,६७, ६६,७६, १२४, १४५, १५७, १६३, १६४, १६६, १७३, १८६,२०४ से २०६,२१६, २४३,२४५, २५५,२५६.२८०,६७२,६८ १ से ६८३,६६१, ६६२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०, ४१, ४३, ४४, ४६, १७४, २६१,२६६, २६६,२७७, २८५,२८८,३००, ३०६, ३०७:३११,३३५,३४०,३५०, ३५२, ३५५, ३५६, ३६६,३७२, ३७४, ३७६, ३८७, ३६५, ४०५, ४०७,४१२, ४१६, ४२५, ४४६ स ४४५, ५५७,५६३,५६२, ५९६,६५८, ६६३, ६७२,६७३, ६८५,७२८, ७३३, ७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२,७६५,७६८,७७०, ८३८१२,१००६, १०३३,१०५४ स [स्व | ओ० ६४, ७१. ० ६,११,१३, ५६, १५४ २८१,६८३,७२३, ७२६,०३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३।३२७,३५६ [स्मृति] ओ० ४३ सइंदिय [सेन्द्रिय ] जी० ६ १५ से १७,६६ सइय [ शतिका ] ओ० १८७. जी० ३,६८१ सण [ शकुन | ओ० ६. रा० १७४. जी० ३३११० ११६,२७५, २६६,६३६ सण [ शकुनरुत] ओ० १४६. रा० ८०६,८० सउणि [ शकुति ] जी० ३१५६८ सउणिज्य [ शकुनिध्वज ] रा० १६२. जी० ३३३३५ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४२ संकेत [ सङ्क्रान्त ] रा० ७५३ is [ सङ्कट ] ओ० ४६. रा० २८५. जी० ३।४५१ संकप [ सङ्कल्प ] रा० ६.२७५, २७६,६८८, ७३२, ७३७,७३८,७४६,७४८ से ७५०,७६५,७६८, ७७३,७७७,७६१,७६३ जी० ३।४४१, ४४२ संकम [सक्रम ] जी० ३१८३८११२ संक्रमण [सङ्क्रमण ] जी० ३८३८।१२ संकला [श्रृङ्खला ] रा० १३५,२७०. जी० ३३३०५,४३५ समाज [ससत् ] जी० ३।११८,११६ संकिg [ सङ्कष्ट ] ओ० १ संकिलिस्स ! सं + क्लिश् ] --संकिलिस्संति. ओ० ७४१४ संकु [ शङ्कु ] रा० २४. जी० ३।२७७ संकुइय [ शङ्कुचित ] ओ० ६६. जी० ३१५० संकुचियपसारिय [सङ्कुचितप्रसारित ] रा० १११, २८१. जी० ३।४४७ संकु [ सङ्कुच ] जी० ३१८३८११५ संकुल [ सङ्कुल ] ओ० ४६. रा० १४ संकुसुमिध [ सकुसुमित ] १० ४५ सं [ शङ्ख] ओ० १९, २२, २७, ४७,६७, १६४. रा० १३,२६,३८,७१,७७, १६०,२२२,२५६, ६५७,६६५, ८१३. जी० ३१२८२, ३१२,३३३, ३८१,४१७,४४६,५६६,५६७,६०८, ७३४, ७३५,७४२ से ७४४, ८६४ संख[साङ्ख्य ] ओ० ६६ संख (पाय ) [ शङ्खपात्र ] ओ० १०५,१२८ संख (बंधण ) [ शङ्खबन्धन ] ओ० १०६, १२६ संखतल [ शङ्खतल ] रा० १३०. जी० ३ | ३०० संघमग [शङ्खध्मायक ] ओ० ६४ संमाल [माल ] जी० ३१५८२ संवाणिय [ शङ्खवणिज् ] रा० ७३७ संखवाय [शङ्खवादक ] रा० ७१ संखाण [ सङ्ख्यान ] ओ०१७ संखादत्तिय [ख्यादत्तिक ] ओ० ३४ संखिज्ज [ नङ्ख्य ] जी० ४।११ संखित्त [ सङ्क्षिप्त ] रा० १२३. जी० ३।२६१, ३५२,६३२,६६१,६८६,७३६,८३६,८८२ संखित्तविउलतेयलेस्स [ सङ्क्षिप्तवि गुलतेजोलेश्य ] ओ० ८२. रा० ६८६ संखिय [ शाङ्खिक ] ओ०६८ संखियवाय [शङ्खिकावादक ] रा० ७१ संखिया [ शङ्खिका ] रा० ७१,७७. जी० ३।५८८ संखेज [ सङ्ख्येय ] रा० १०,१२,१८,६५,२७६. जी० ११५८,७३,७८,८१,१०१,१३४, २१६३, १२१,१२६, ३३८१,८२, ८६, ११०, ४४५, ८५०, ८५२,८५५,८५८,८६१,८६४, ८६७,८७०, ८७६, ६२४, १२६,१०७३, १०७४, १०८३, १०८४,१११५, ४८, १२ से १४, १६ : ५:१०, १२ से १५,२६,४१ से ५०,५६,५८; ८/३; ६।३,४,२२३,२२८,२५६ संकेत-संगेल्लि संखेज्जइभाग [ सङ्ख्येयतमभाग ] जी० १०६४, १२४, १३५ संखेज्जगुण [ सङ्ख्येयगुण] जी० २२६६ से ७२, ६५,६६,१३६ से १३८, १४१ से १४६ ३।७३, ७५,१०३७, ४२२, २५, ५।१६,२०,२६,२७, ३५,३६,५२,५८,६०; ६३१२, ६१३७, ६४, १३०, १६६,२२० संखेज्जतिभाग [ सङ्ख्येयतमभाग ] जी० ३३६१, १०८७ संखेज्जभाग [ संख्येयभाग ] जी० ३३६१ संखेज्जहा [संख्येयधा]] रा० ७६४,७६५ संग [ सङ्ग ] ओ० १६८ संगत [ङ्गत ] जी० ३१५९६,५६७ संगति [ साङ्गतिक | जी० ३४६१३ संग [ सङ्गत ] ० १५,१६ ० ६६,७०,७५. ६७२, ५०६, ८१० जी० ३२५६७ संग्रामिय [साङ्गामिक] बो० ५७ संगेल्लि [ दे० ] ओ० ६६ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगोवंत-संठिति संगोवंग [साङ्गोपाङ्ग ओ० ६७ संघ | सडओ० ४० रा० ३२,२०६ २११ जी० ३७२ संघयण | मंहनन । मो० ८२,१८५ जी०११४, १७,८६,६५१२८,१३५, ३१६२,१२७१३, ५६८,१०६० संघणि कनिन् जी० ११६५,१०१,११६, १३०. ३१६२,१०६० संघरिससमुट्ठिय संघर्षालमुत्थिन] जी० ११७८ संघवेयावच्च वयावृत्य औ० ४१ संघाइम सङ्कातिर ओ० १०६,१३२, रा० २८५ जो० ३४५१,५६१ संघाडबाट रा० १४१,१६२ जी० ३।२६४ २६६.३१८,३५५ संघाडग सङ्घाटक श० १६० संघातत्त सातत्व जी० ३।१०६० संघाय सात ओ० ४७,७२. जी० ११७२२२,३ संघायत्त सवारत्व] जी० १४१३५३१६२ संचय [रावय] ओ० ४६ जी० ३१५९८ सिंचायसं+शक्]--संचाएइ. रा० ७५१ ----संचाएंति. रा० ७७४.. -संच एजहा. जी. ३१११६ -संचाएति. रा० ७५३ बी० ३११८- -संचाएमि रा०६६५ सिंचिट्ठ [सं+ष्ठा ... संविइ. रा० ७०१ चिटुलि. रा०६४ जी० ३.७२५ संचिणा [संस्थान] जी० ११४१, २१६२,८३, ८५,१५०,१५१, २२६; ६,७,७३८,८१३; ६१३,१६,३६,१५७,१६८,१८३,२६३ संछपण सञ्छन्न) जी० ३.११८,११६,२८६ संछन्न सञ्छन | रा० १७४ संजतासंजत संयनासंयत | जी० ६.१४४ संजमाया। ओ० २१ से २६,४५,४६,५२,१२ रा०८,६,६८६,६८७,६८६,७११,७१३,८१४, ८१७ संजमासंजम । संयमासंयम मो० ७३ संजय [संगत, ओ० ४६ जी० ६३१४१,१४२,१४६ १४७ संजयासंजय [संयतासंयत ] जी०६।१४१,१४६, १४७ संजायकोहल [संजातकोतूहल | ओ० ८३ संजायसंसय सातसंशय | ओ० ८३ संजायसड्ड [ सजातश्रद्ध] ओ० ८३ संजत संयुक्त रा० ७५३,७६५ जी० ३१५९२ संजोग [संयोगओ० २८,४६ संझम्भराग [सन्ध्याघ्रराग रा०२७ जी० ३:२८० संझा | सन्ध्या] जी०३१६२६ संझाविराग सन्ध्यादिराग जो ३१५८६ संठाण [संस्थान ओ० ४७,५०,५२,८२,१७०. १८६.१६४,१६५।३,४,८ रा० १२४,१२७, १३२,१८५ जी० १११,१४,७२,१२८,१३६; ३१२२,४८ से ५०,७८,८६,१२७११,३,१२९४३, ४,२५७,२६०,२६१,२९७,३०२,३५२,५७७, ५६८,६०४,६३२,६६१,६८६,७०४,७२३, ७२६,७३६,७६६,८१०,८२१,८३१,८३६, ८४१,८४२,८४५,८४८,८५७,८५६,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८५०,८५२, ६११,९१८,६२५,१००८,१०७१,१०६१, संठाणओ । संस्थानतस् ] जी० ३।२५६ संठाणतो [संस्थानतम् ) जी० ३१२२ संठाणविजय [संस्थानविचय ] ओ० ४३ संठित संस्थित] रा० १२४ जी० ३१२८ से ३२; ४८ से ५०,७८ ७६,८६,६३,२६०,२६१, २६७,३०२,३५२,५७७,५६७,६३२,६६१, ७०४,७०५,७६३,७६६,७६७,८१०,८११. ५२१,८२२,८३१,८३६८४२,८४५,८४८, ८४६,८५७,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८०,८६२,६११,६२५,१००८, १०६१,१०६२ संठिति [संस्थिति] जी० ३१८११ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४४ संठिय-संपरिविखत्त संठिय | संस्थित | ओ० १,१३,१६,५०,८२,१७०, १५६,१७५,१६०,२४५,६६४. जी० ३२६४, १६४. रा० ३२,५२,५६,१२७,१३२,१३३, २८७,३००,३११३३२,४०७,५६२,५६६,५६७ १८५,२३१,२४७. जी. १११८,६४,६५,६७, संधिवाल | सन्धिपाल | ओ० १८.६३. रा०७५४. ७४,७७,७९,८६,६६,११०,११६,१३०,१३६, ७५६,७६२,७६४ ३१३०,५०,७८,२५७,२५६,२६७,३०३,३०७, सिंधुक्त मं-धूक्ष]---संधुक्खेह. रा. ७६५ ३७२,३६३,४०१,५६४,५६६ से ५६८,६०४, संनिकास निकाश जी० ३१३०३ ६८६,७२३,७२६,५३६,७६३,८३८१२,१५, संनिक्खित्त | सलिक्षिप्त जी० ३।८०२,४१०, ६१५,६१८,१०७१ ४१८,४१६,४२६,४३२,४३५,४४२ संड [षण्ड ओ० २२. रा० ७७७,५७८,७८८ संनिखित्त | सन्निक्षिप्त | रा० २४०,२४६,२५४, संडासय मंदंशक] जी० ३।११८,११६ २५३.२५८,२६६,२६८,२७६ संडेय षण्डय] आ० १ संनिविद् सन्निविष्ट जी० ३२८५,३७२,३७४, संणिखित्त (सन्निक्षिप्त ] जी० ३।४१५ ६४६,६७३,६७४,८८४,८८७ संत सत् ] ओ० २३. ० ६६५. जी० ३१६०८ संपउत्त सम्प्रयुक्त] ओ० १४,२१,४३,६४,१४१. संत श्रान्त] ओ०६३. रा० ७६५ रा० ६७१,७१०,७७४,७६६ संताण | सन्तान ओ० ४६ संपओग सम्प्रयोग | ओ०४३. रा०६७१ संति [सत् ] जी० १२७२१३ संपक्खाल सम्प्रक्षाल | ओ० ६४ सिंथर सं+स्तु]-संथरइ. रा० ७६६. संपगाढ | सम्प्रगाढ | जी० ३.१२६१७ --संथरति. ओ० ११७ संपट्ठिय सम्प्रस्थित ] ओ० ६४,११५ संथरित्ता | सस्तृत्व | ओ० ११७ संपणाइय सम्प्रन दित रा० ३२,२०६,२११. संथार (संस्तार] रा०६६८,७०४,७०६,७५२, जी० ३।३७२,६४६ ७८९ संपण्ण | सम्पन्न गी० ३१५६८ संधारग संस्तारक] ओ० ३७,१२०. रा० ७११ ।। संपत्त सम्प्राप्त ! अ.० २१,५२,५४,११५,१४४. संधारय संस्तारक] ओ० १६२,१८०. रा०७१३, रा० ८,२६२,६८७,६८६,७१३,७१४,५६६, ७७६ ८०२. जी० ३४५७ सिंथण सं+स्तु]- संथुगइ. रा० २६२. जी. ३१४५७ संपत्ति । सम्पत्ति संप्राप्ति जी० ३१११६ संथुणित्ता [मंस्तुत्य] रा ० २६२. जी० ३।४५७ संपत्थिय | सम्प्रस्थित ) रा०४६ से ५४,७७४ संवट्ठ सिन्दष्ट] जी० ३३३२३ संपन्न | सम्पन्न] जी० ३।७६५,८४१ संदमाणिया [स्यन्दमानिका] ओ० १,५२,१००, सिंपमज्ज सं+4+मज् ----मपमज्जइ. ओ० १२३. रा०६८७ से ६८६. जी. ३१२७६, ५९. -संपमज्जेज्जा. रा० १२ ५८१,५८५,६१७ संपमज्जेत्ता [सम्प्रमज्य] ओ० ५६ संदमाणी | स्यन्दमानी] रा० १७३ संपरिक्खित्त सम्परिक्षिप्त ] ओ०३,६,११. रा० संदमाणीया | स्यन्दमानिका | डी० ३१२८५ १२७,२०१,२६३. जी. ३२१७,२६०,२६२, संदिव | सन्दिष्ट ] रा० १५० २६५,३१३,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३८८, सिंदिस सं+दिश् ] —संदिसंतु रा० ७२ ३६०,६३६,६५२,६५८,६६८,६७८,६७६, संधि सन्धि] ओ० १६. रा० १६,३७, १३०, ६८१,६८६,७०४,७०६,७३६,७५४,७६६. Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपरिक्खित्ताण-संवृत्त ७४५ ७६८,८१०,१२,८२१,८२३,८३३,८३६, ८४८,८५०,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,६२५ संपरिक्खिताणं [सम्परिक्षिप्य ] जी० ३।४८ संपरिखित्त सम्परिक्षिप्त | रा०४०,१८६,१६१ २०५ से २०८ संपरिवुड [गम्परिवृत] ओ० १८,१६,६३,६८, ७०. रा०९,१३,४७,५६,५८,१२०,२६१, ६५७,६८३,६८६,७११,७५४,७५६ ७६२, ७६४,७७७,७७८,८०४. जी० ३१४५७,५५७, १०२५ संपललिय | सम्प्रललित] ओ० २३ संपलियंक [सम्पर्य] ओ० ११७. रा० ७६६.. जी० ३१८६६ संपविट्ठसम्प्रविष्ट] रा० ७६५ संपाविउकाम | सम्प्राप्तुकाम | ओ० १६,२१,५४, ११७. रा०८ संपिडिय | सम्पिण्डित] ओ०६. जी० ३२७५ संपुच्छण [सम्प्रश्न ] जी० ३।२३६ संपुड [सम्पुट ] जी० ३१७६३ सिंह [सं+ प्र+ईक्ष् ]-संपेहेइ. रा०६ संहिता [सम्प्रेक्ष्य] रा०६ संयेहेत्ता सम्प्रेक्ष्य ] रा० ६८८ संबंषि सम्बन्धिन् ] जी० १५०. रा० ७५१,८०२ संभिग्णसोय [ सम्भिन्नस्रोतस् ] ओ० २४ संभोग [सम्भोग] ओ० ४० संमज्जण [सम्मार्जन] रा० ७७६ संमज्जिय [सम्मार्जित रा० २८१,८०२ संमट्ट सम्मृष्ट ! रा० २०१ | संमय [सम्मत | ओ० ११७. रा० ७६६ V संमुच्छ |सं--- मूच्र्छ ।- समुच्छंति. जी० ३.१२७ संमुच्छिम [सम्मूच्छिम, सम्मूर्छनज] जी० १।६६ से ६८,१०१ से १०५,११२,११,१२६ से १२८ ; ३११३८,१३६,१४२,१४५ से १४७, १४६,१६१,१६३,१६४,२१२ से २१४ संमुहागय | सम्मुखागत ] जी० ३।२८५ संलख [संलब्ध] रा०७६८ संलाव | संलाप] आं० १५. १०७०,६७२. जी० ३१५९७ संलेहणा | संलेखना] ओ० ७७,११७,१४०,१५४ संवच्छर [संवत्सर] जी० ११८७; १९७; ३.८४१,४।४ संवच्छरपडिलेणग [संवत्सरप्रतिलेखनक] रा० ८०३ संवट्ट [सं+वर्तय् ] --संवटेइ. ओ० ५९ संवट्टगवाय [संवर्तकवात] जी० १११ संवट्टयवाय [संवर्तकवात ] रा० १२ संवदे॒त्ता [संवर्त्य ] ओ० ५६ संवड्डिय [संबंधित] रा० ८११ संबर | मवर] औ० ४६,७१,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६ संवाह (संवाह ] ओ०६८ संविकिपण संविकीर्ण] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२ संविद्धणित्ता [संविधूय ] ओ० २३ संवड [ संवृद्ध | ओ० १५०. रा० १११ संवुत संवृतजी० ३।४०७ संवत्त [संवृत्त] रा० ७७१ संबद्ध [सम्बद्ध] जी० ३.११०,१११५ संबाह सम्बाध | ओ०८६ से १३,६५,६६.१५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६३ संबाणा | सम्बाधना । ओ०६३ संबाहिय [सम्बाधित | ओ० ६३ संबुद्ध [सम्बुद्ध] रा० ७७५ संभम | सम्भ्रम] ओ०६७. रा० ५,१३,६५७, ७१४. जी० ३१४४६ संभार (सम्भार] जी० ३१५८६ संभिषण [ सम्भिन्न ] जी० ३१११११२३ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवय | संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संग | सवेग ओ०६९ संवेयणी [संवेदनी ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३१३०३ संवेल्लिय | दे०) रा० ६६,७०,१७३ संसट्टचरय संसृष्टच रक] अ० ३४ संसत्त संसक्त] ओ० ३७. जी. ३१८४ संसार | संसार ] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त (संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत। जी. ७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [ संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न | जी० ११६,१० संसारसमावष्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २।१,१५१ ; ३११,१८३,११३८; ४११,२५, २१,६०, ६.१,१२,७११,२३; ८.१,५; ६।१.७ संसारसमावण्णय संमारसमापन्नक] जी० १११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ । संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ इससेय [सं+ स्विद् ! --संसेयंति. जी० ३३७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २१३० से ३४,५७ से ६१, संवुय-सची सक्कय [ संस्कृत ] जी. ३ ५६५ ।। सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २१०० ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा शर्क] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी ] जी० ३।१८५,१६० सिक्कार मित्+कृ] ...सक्कारिस्पति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सरकारेज्जा. रा०७७६ -- सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा०१०.-सक्कारेस्संति. रा० ८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार | मत्कार, ओ० ४०,५२. रा०१६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी. ३१६०६ सक्कारणिज्ज [स कारणीय] ओ० २. रा० २४० २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सरकारेत्ता [सत्कृत्य ] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३१२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३१२२५ सग स्वक] जी० ३१७६८,७६६,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [श कट] ओ० १००,१२३. जी. ३१२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [राकटब्यूह] ओ० १४६. रा०८०६ सगल [सकल | जी० ११७२, ३।५९२ सगल [शक] जी० ३१५६६ सगेवेज्ज [सगवेय] १० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [स] ओ०६८ सचित्त सचित] ओ० २८,४६,६९,७०. रा. संहित' [संहित] जी० ११७२१३; ३१५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३४५६७ सक [स्वक] ३१७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६३२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३१६२०,९२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरली ७७८ सिचित्तीकर [ सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३१९२० Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सच्च-सह सच्च [सत्य] ओ० २,२५,७२,११८. रा०६८६ समिच्छर [शनैश्चर] ओ० ५० सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग] ओ० १७८ सण्णव [सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८३ सच्चवइजोग [सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सग्णय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ सन्चामोसमणजोग (सत्यमृषामनोयोग] मो० १७८ सण्णव [संज्ञापय] --सण्णवेइ. रा० ७६६ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृपावाग्योग] ओ० १७६ सण्णा (संज्ञा रा० ७४८ से ७५०,७७३. सच्चोवात [सत्यावपात] ओ० २ ओ० १११४,२०,५६,६६,१०१,११६,१२८, सच्छद [स्वच्छन्द] ओ० ४६ २३६, ३।१२८२ सच्छड [संस्तृत] रा० ७७४ सिण्णाह [सं+नहन-सण्णाहेहि. ओ० ५५ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६.२१,४६, सण्णाहिय [सन्नद्ध] ओ० ६२ ४८,५२ सण्णाहेत्ता [संन ह्य] ओ० ५६ सज्ज [सज्ज] ओ० ६४. रा० १७,१८,१७३, सणि संज्ञिन्] ओ० १५६,१८२. रा० १११४, ६८१,६८२,६६१. जी० ॥२८५ २४,८६,९६,१०१,११६,१३३,१३६६।१०१, सज्ज [सद्यस्] जी० ३१८७२ १०२,१०५,१०८ सिज्ज [सस्ज्-सज्जावेइ रा०६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५०. रा०८११. सणिकास [सन्निकाश] जी० ३३३३३,३८१,४१७, -सज्जेइ. रा०६६६ ८६४,११२२ सन्जावेत्ता [सज्जयित्वा ] रा० ६८० सणिखित्त [सन्निक्षिप्त जी० ३३१०२५ सणिणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, सज्जिय [सज्जित] जी० ३१५६२ ६५७. रा० ३।४४६ सज्जीव [सजीव] ओ० १४६. रा०८०६ सज्जेत्ता [सज्जित्वा] रा० ६६६ सणिपंचिबिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय] ओ० १५६ समाय [स्वाध्याय ] ओ० ३८,४२ सण्णिभ [सन्निभ] रा० १६,४७,६३,६५. सट्ठाण [स्वस्थान] जी० ६।१६६,२०८ जी० ३१५९६ सणिमहिय [सन्निमहित ] ओ० १ सहि षष्टि] ओ० १४०. रा० २३१. सण्णिवाइय [सन्निपातिक] ओ०७१,११७. जी. ३११८ रा०६१,७६६ सद्वितंत [षष्ठितन्त्र] ओ०६७ सणिविदुः [सन्निविष्ट] ओ० १. रा० १७,१८, सडंगवि षडङ्गविद् ] ओ० ६७ २०. जी. ३।२८८ सङ्घा श्राद्धकिन्] ओ० ६४ सग्णिवेस [सन्निवेश] ओ०६८,८६ से ६३,६५, सण [सन] ओ० १३ ६६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. सणंकुमार [सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१९२. रा०६६७ जी० २६६,१४८,१४६; ३३१०३८,१०४५, मणिमटा सतिसादात १०४६,१०५८,१०६६,१०६८,१०८८,१०६४, सण्णिसण्ण [सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, ११०२,११११,११२६ २८३. जी० ३।४४३,४४६,४५२,५५७,८३६ सणप्फई [सनखपदी] जी० २।६।। सणिहिय [सन्निहित] ओ०२ सणफय [सनखपद] जी० ११०३ सह श्लिक्ष्ण ओ० १२,१६४. रा०२१ से २३, सणिचर (शनैश्चर जी० ३१६३१ ३२,३४,३६,३८,१२४,१३०,१३७,१४५,१५७, Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૭૪= १७४,२६१. जी० ११५७, ५८ ३१२६१,२६२, २६६, २६६, २५६,२६०, ३००, ३०७, ३६५, ४२५, ४५७, ५६२, ६३६, ८३६ सहपुढवी | श्लक्ष्णपृथ्वी ] जी० ३।१८५, १८६ सत | शत | रा० १२६. जी० ३८२, १७२, १७३, १६७,२२६,२४६,२५५, २५७,२६०, २८५, ३३५, ३५३,३५४,३५७, ३५८, ३६१३७२, ४१५,४१६,४४२, ५७७, ५६८,६३२,६३६, ६४६, ६४७, ६४६, ६५२, ६६१,६६६, ६६८, ६७३,६७४६७६,७०३, ७१४, ७२४ से ७२६,७२८,७३३, ७३६, ७५०, ७५६,७८८, ७६४,७६५, ७६८,८०६,८१२,८१५, ८२०, ८२७,८३०, ८३२,८३५,८३७, ८३६, ८४१, ८४५,८८२,८८४,८८७,६०१,६०८, ६११, ६१८,६७०, १००० से १००४,१००६, १०१६, १०३०, १०३८, १०४४, ११३७, ५।२६ ६।११; ७११६; ६८६,१०२,२१७ सतपत्त [ शतपत्र ] रा० २३. जी० ३३२५६,२६१ सतसहस्य | शतसहस्र | जी० ११५८ ३१२२, २७, ६७ से ७२, ८६, १६१, १६७, १६९, १७४, २५७, २६,६०२,६५८,७०३, ७०६, ७१४, ७२३, ७६४,७६५७६८, ८२३,८३६,६१०,६६६, १६८,१०३८,१०८७, १०८८, ११२८ सताउ [ शतार् ] जी० ३१५८६ सति [ स्मृति ] जी० ३१११८,११६ सतिय [ शतक ] जी० ३१६७३,६७४ [ सप्तन् ] ओ० २१. रा० ७. जी० ११६५ सत्त [ सत्व ] जी० ३।१२७,७२१,६५५,११२८, ११३० सत्तग्ग | शत्रुत्य ] जी० ३१८५ सत्तरंतर | सप्तगृहान्तरिक ] ओ० १५८ सत्तट्टि [प्तषष्टि ] जी० ३४७२२ सत्तणज्य [सप्तनवति ] जी० ३।२२६ सत्ततीस [ सप्तत्रिंशत् ] जी० ३।३५१ सतपण [ सप्तपर्ण] रा० १८६ सही-सह सत्तम [सप्तम] ओ० १७४, १७६, १८६ सतमा [ सप्तमी ] जी० ३१२,४,७२,७५,७७,६१, १११ मासिया [ सप्तमासिकी ] ओ० २४ सप्तमी [ सप्तमी ] जी० ३।३६,८८,११११/२ सत्तरस [मप्तदशन् ] जी० ३।३५६ सतरि [ सप्तति ] जी० ३।२४६ सत्तवण्णवडेंस [ सप्तपर्णावतंसक ] रा० १२५ सत्तवण्णवण [ सप्तपर्णवन ] रा० १७० जी० ३१५८१ विष [ सप्तविध ] जी० २ १०० ३।२६।१८२ सत्तविह [ सप्तविध | ओ० ४० जी० १३१०,५८, ६२ ६ १,१२ ६१२१८५, १६६ सत्तसत्तमिया | सप्तसप्तकिका ] ओ० २४ विवाद [ सप्त शिक्षाव्रतिक ] ओ० ५२,७८ सत्ताउति [ सप्तनवति ] जी० ३।१०३८ सत्तावीस [ सप्तविशति ] ओ० १७० रा० १८८. जी० श८२ सत्तावीसतिगुण [सप्तविंशतिगुण] जी० २।१५१ सत्तावीस [ सप्तविंशति ] जी० २।१५१ सति [ शक्ति ] ओ० ६४ सतिक्षण [ सप्तपर्ण] ओ० ६,१०. जी० ३।३५६, ३८८,५८३ सत्तिवण्णवण [ सप्तपर्णवन ] जी० ३।३५८ सत्तु [ शत्रु ] ओ० १४. रा० ६७१ सतुपक्ख | शत्रुपक्ष ] जी० ३।४४८ सत्य [ शास्त्र ] ओ० ६७ सत्य | शस्त्र ] 1० ७११ सत्यवाह [सार्थवाह ] ओ० १८,४६,५२. रा० ६८७, ६८८, ७०४,७५४, ७५६, ७६२, ७६४. जी० ३१६०६ सत्यवाडिग | शस्त्रावपाटितक ] ओ० ६० सदार संतोस [ स्वदारसन्तोष ] ओ० ७७ ओ० ७०. ० ८०४ देश | स्वदेश ] सद्द [शब्द ] ओ० ६,१५,६३,६४,६७,६८,१६१, Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सह-समचउरंस १६३. रा० १३ से १५,३२,४०, १३२,१३५, १७३,२०६,२११,२८२,६५७, ६७२,६८५, ७१०,७३२, ७३७,७५१, ७५५, ७७१, ७७४. जी० ३१११८,११६,२६५, २७५, २८५, २८६, २८,३०५, ३६०,३७२, ४४६, ४४८, ५७८, ६३९,६४६,६९०,८५७,८६३, ६०५, ६७७, ८२,१११७,१११८, ११२४,११२५ √ सद्दह [ श्रव् + धा] - सद्दहामि रा० ६६५. --- सदहाहि. रा० ७५१ - सद्दहेज्जा. रा० ७५० सहमाण [ श्रद्धान] जी० १/१ सद्दाल' [ दे० ] जी० ३।११२२ √ सद्दाव [ शब्दय् ] - सहावे. ओ० ५८. रा० ६. • सहावेत. ओ० ११७. रा० २७८. जी० ३३४४४. - सहावेति रा० १३. जी० ३।५५४ सद्दावति [ शब्दापातिन् ] जी० ३।७६५ सद्दावाति | शब्दापातिन् ] रा० २७६. जी० ३।४४५ सद्दाविय [ शब्दायित, शब्दित ] रा० ७२ सहावेत्ता | शब्दयित्वा ] ओ० ५८. रा० ६. जी० ३३४४४ सहिय [ शब्दित ] ओ० २ सबद्दल [शार्दूल ] ओ० १६. जी० ३३५६६ सद्ध [ श्राद्ध] जी० ३।६१४ सद्धि [ सार्द्धम् ] ओ० १५. रा० ७. जी० ३।२३६ सन्नद्ध [ सन्नद्ध] जी० ३१५६२ सन्निकास [ सन्निकाश ] रा० १३३. जी० ३।३१२ सन्निति [ सन्निक्षिप्त ] जी० ३१४४२ सन्निति [ सन्निक्षिप्त ] रा० २२५,२७० सन्निगास [ सन्निकाश ] रा० ३८,१६०२२२,२५६ सन्निभ [ सन्निभ] ओ० १६. जी० ३३५६६ सन्निट्ठि [ सन्निविष्ट ] रा० ३२,६६,१३८,२०६, २११. जी० ३.७५६ सन्निवेस [ सन्निवेश ] जी० ३।६०६,८४१ सन्निवेसमारी [सन्निवेशमारी ] जी० ३१६२८ सन्निसन्न [ सन्निषण्ण ] रा० १७३ १. नूपुर, किंकिणी । ૭૪૨ सज्जवसित [ सपर्यवसित] जी० ६ २४,३१,६८, ६६, ८१, १२५, १७४,२०२ सपज्जवसिय [सपर्यवसित] जी० ९1११,१३,१६, २३,२५,२६,३१,३३, ३४, ५८,६०,६४,६८,६६, ७१,७२,८६,११०, १२५, १३३, १४६, १६४, १६५, १७६,२०२, २०६ सम्म [सप्रतिकर्मन् ] ओ० ३२ सपि [ सर्पिस् ] ओ० ६२, ६३ सप्पियासन [ सर्पिराश्रव] ओ० २४ सफल [ सफल ] ओ० ७१ सबरी [ शबरी ] ओ० ७० रा० ८०४ सभा [सभा ] रा० ७,१२ से १४,२०६,२१०, २३५ से २३७,२५०, २५१,२७६,३५१,३५६, ३५७, ३७६,३९४,३१५,६५६, ६५७. जी० ३।३७२, ३७३,३६७ से ३६६,४११,४१२, ४२६, ४४२, ५१६,५२१,५२२,५२४,५२५,५५६, ५५७, १०२४,१०२५ सभाव [ स्वभाव ] जी० ३१५६७ सम [ सम] ओ० १६,२६,५६,१७१, १६२. रा० ७०,७५,७६,८०,११२, १३३, १७३१७४,७७२. जी० ३५२, ११८, ११६,२८५, २६६,३०३, ३६२,३८७,५८६, ५६६, ५६७,७०५, ७२४, ७२७,७३२,७८४,७८७,७९७,८११, ८२२, ८४६,६१०,६११,६१८,६६८,११२२ सम [ श्रम ] रा० ७२६,७३१,७३२ समकंत [ समतिक्रान्त ] ओ० ४७ समइच्छमाण' [ समतिक्रामत्] ओ० ६६ समय [सामयिक ] ओ० १७३, १७४, १५२. जी० ३,५ समंता [ समन्तात् ] ओ० ३. रा० ६. जी० ३३४ समवाय [समाख्यात] जी० ३।१६७ से १६६ समग्ग [ समग्र ] ओ० ६८ समचउरंस [ समचतुरस्र ] ओ० ८२. जी० २१११६, १३६ ३५६८, १०६१.१०६२ १. हे० ४।१६२ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समजोतिभूत-समय समजोतिभूत [समज्योतिभूत] जी० ३।११८ समणुबद्ध [समनुबद्ध] रा० १४६,६७०. समज्जिणित्ता [समय॑] रा० ७५० जी० ३६३२२,५६१ समज्जुइय [समद्युतिक] जी० ३३११२० समणोवासग [श्रमणोपासक] ओ० १६२ समट्ट [समर्थ ] ओ० ८६ से १५,११४,११७,१२०, समणोवासय [श्रमणोपासक] ओ० ७७,१२०,१४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१६६,१७०, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ से ७६१ १७२,१७७,१८१,१८६ से १६१. रा० २५ से समणोवासिया [श्रमणोपासिका] ओ० ७७. ३१,४५,१७३,७५१,७५३,७५५,७५७,७५६, रा० ७५२ ७६१,७६३,७७१. जी० ३०८४,८५,११८, समण्णागय [समन्वागत ] ओ० ४३. रा० १२, १९८ से २०३,२७८ से २८५,६०१,६०२, ७५८,७५६. जी० ३.११८,२८५ ६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से ६१७, समतल [समतल ओ०१६. जी० ३१५९६ ६२२ से ६२४,६२६,६२८,७८२,७८६,८६०, समताल समताल ] ओ० १४६. रा० ८०६ ८६६,८७२,८७८,६६० से ६६२, ६६४ से समतुरंगेमाण समतुरङ्गायत् ] जी० ३.१११ ६६६,१०२४ समत्त समस्त ] ओ० ६३. जी. ३१७०१ समत्तगणिपिडग | समस्तगणिपिटक | ओ० २६ समण [श्रमण ] अं० १६ से २५,२७,३३,४६ से ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३.९५,११७, समत्थ | समर्थ ] ओ० १४८,१४६. स० १२,७३७, ७५८,७५६,७७०,८०६. जी० ३३११८ १२०,१५५,१५६,१६२,१७०. रा०८ से १३, १५,५६,५८ से ६५,६८,७३,७४,७६,८१,८३. समन्नागय [समन्वागत ] रा. १७३ समप्पभ [समप्रभ ] रा० २०५. जी० ३१४५१ ११३,११८,१२०,१२१,१३१,१३२, १४७ से १५१, १८५,१६७,६६७,६६८,६७१,६६८, समबल [समबल ] जी० ३।११२० ७१८,७१९,७३६,७४८ से ७५०,७५२,७८७ से . समभिजाणित्ता [समभिज्ञाय] रा० २७६. जी० ३।४४२ ७८१,८१७. जी० ११५६,६२,६५,८२,६६, १२८, २१४०; ३३१७६,१७८,१८०,१८२, सिमभिलोय [सं+अभि+ लोक्] —समभिलोएइ. रा० ७६५—समभिलोएति. रा०७६५. २५६,२६६,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, --समभिलोएमि रा० ७६४ ५८२,५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से समय समय | ओ० १,१८,१६,२३ से २५,२७, ६०७,६०४ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५, २८,४५,४७ से ५१,८२,११५,१७३,१७४, ६२७,६२८,६३०,७६५,८४१,९६५,१०५६, ११२० १८२,१६५६३. रा० १,७,७६,१७३,२७४, ६६८,६७६,६८५,६८६,७७१. जी० ११९,३३; समणी [श्रमणी जी० ३१७९५,८४१ २१४८,५४ से ५६,६५,८६,८८,८६,११७, सिमणु गच्छ सम् + अनु+ गम् ]-~-समणुगच्छंति १२३,१३२:३१८६,६०,११८,११६,२१०, रा० ५५ २११,२८५,४३६,५८८,५८६,८४१,८४४. समणुगम्ममाण [समनुगम्यमान] ओ० ६५. ८४७,६७३,१०८३,१०८५,१०८६७।१ से ___जो० ३११७४ ६, ६ से १८, २० से २३; ६०१ से ७, २४, समणुगाहिज्जमाण [समनुग्राह्यमान] जी० ३ १७४ २५,४०,४३,४८ से ५१,५७,६०,११४,११८, समणुचितिज्जमाण [समनुचिन्त्यमान ] जी० ॥१७४ १२४,१२५,१२७,१३४,१३८,१४२,१४६, समणुपेहिज्जमाण [समनुप्रेक्ष्यमान | जी० ३।१७४ १५०,१५२,१६१,१६२,१७१,१७२,१७६, Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय- समुग्धाय १६६,२००,२०३,२३२ से २३८, २४१ से २४८, २५० से २५३,२५५, २६७ से २७३, २७५ से २८२,२८४ से २६३ समय [समक] जी० ३1२७३, २६८ समयओ [ समयतस् ] रा० ६६४ समयखेत [ समयक्षेत्र [ रा० २७६. जी० ३१४४५ समयग [ समयक ] जी० ७३४ समयतो [ समयतस ] जी० ३।५६२ समयस [ समयशस् ] जी० ३३११२० समयिक | सामयिक ] जी० ६२ से ५ समयिग [ सामयिक | जी० ६१६ समरस [ समरस ] रा० २२८. जी० ३१३८७ समरसोद [ समरसोद | जी० ३१२८६ समलंकर [ सं --- अलं -+ कृ ] -- समलंकरे. ओ० ५६ समलंकरेत्ता [ समलङ्कृत्य ] ओ० ५६ समल्लीण [ समालीन ] ओ० १३. रा० ४ समवायवर [ समवायधर] ओ० ४५ समसोक्ख [ समसौख्य ] जी० ३ ११२० सम हिद्विजमाण [ समधिष्ठीयमान ] रा० ७५१ माण[समाकीर्ण ] ओ० ७१. रा० ६१ समाउत [समायुक्त ] ओ० ६४. रा० ५१ समाउल [समाकुल ] रा० १३६. जी० ३।३०६ समाण [ सत्] ओ० २०, ५२, ५६, ६३,६४,६८, ११७,१४२, १४४,१५७. रा० १०,१२ से १५, १८,४६,६०,६३,६४.७२,७४, २७४, २७५, २७६, २८३, २८६,६५५,६८१,६८५,७००, ७०१,७०३, ७०७, ७१०,७१३, ७२५, ७२८, ७५७.७६५,७७४,७६२,७६७,८००, ८०२. जी० ३३११८.११६, ४४०, ४४१, ४४५, ४४६, ४५२,५५५, ६१७,६८६ समाज | समान ] ओ० २३,२६,२६,११७. रा० १३१,१३२,१४७ से १५१, १६७.२८८, ७५० से ७५३,७९६, जी० २०७४,३८, १४० ; ३।१११,११८.११६,२६६,३०१, ३०२, ३२१ ७५१ से' ३२४,४५४ समाणुभाग [ समानुभाग ] जी० ३।११२० समादाण [ समादान ] जी० ३।११७ समामेव [समकमेव ] रा० ७५ / समायर [समा + चर्]- समायरह. रा० ७५१ समायरिता [ समाचर्य ] रा० ६६७ समायरेता [समाचर्य | रा० ७५१ समारंभ [ समारम्भ ] ओ० ९१ से १३, १६१,१६३ समावडिय [समापतित | ओ० ४६ समावण्णग [ समापक ] जी० ३१८४२, ८४५ समास | समास ] जी० ३१८३८।१ समास [ समानतस् ] जी० ११५, ५८, ६५, ७३, ८४,८८,८६,६२,१००,१०३, १११, ११२,११६, ११८,१२१, १२६,१३५ समासतो [समासतस् ] जी० ११७८,८१ ३१२२६ समाहय [समाहत ] ओ० ४६. रा० १२,७५८, ७५. जी० ३।११८ समाहि [समाधि ] ओ० ११७, १४०, १५७,१६२. श० ७६६ समिडीय [समधिक ] जी० ३।११२० समिता [ समिता ] जी० ३।२३५. १०४०, १०४४, १०४६ समिद्ध [ समृद्ध ] ओ० १,१४. रा० १,६६५ से ६७१,६७६, ६७७ समिया [ समिता ] जी० ३।२३६, २४५ समुग्ग [ समुद्ग ] ओ० ७४१५. रा० १६१,२५८, २७६, ३५१. जी० ३।३३४,४१६,४४५,५६६ समुक [ समुद्गक ] जी० ३३४०२, ५१६ समुग्गग [ समुद्गक ] जी० ३।३०० पक्[समुद्गपक्षिन् ] जी० १।११३,११६ समुग्गय [समुद्गक ] ओ० १७० रा० १३०,२४० २७६, ३५१. जी० ३३४०२, ४४२, ५१६,१०२५ समुग्धात [ समुद्धात ] जी० ३३१०८,१५७,१११५ समुग्धाय [समुद्घात ] मो० १७१, १७२, १७५, १७७. जी० १११४,२३,८२,८६,६६,१०१, ११६,१३३,१३६; ३११२७ ४,१६० Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५२ समुच्छिष्णकिरिय-सम्मत्तकिरिया समच्छिण्णकिरिय | समुच्छिन्नक्रिय ] ओ० ४३ समुद्रित [समुस्थित] जी० ३३०३ समुट्ठिय [समुत्थित रा० १३३,६७१ समुदय [समुदय ] ओ० ६७. रा० १३,४०,१३२, ६५७,८०३,८०५. जी० ३।३०२,४४६,५६१ समुद्द [ समुद्र] ओ० १७०. रा० १०,१२,५६, २७६,६८८. जी० ३३८६,२१७,२१६ से २२७, २५६,२६०,३००,३५१,४४५,५६६,५६६, ५७१ से ५७६,६३८,७०४ से ७०८,७१०,७११, ७१३ से'७२३,७२६,७२८ से ७३१,७३३,७३६, ७३६ से ७४१,७४५,७४५७,७५०,७५४,७६१, ७६२,७६४ से ७६६,७७२ से ७९६,८००, ८०३,८०४,८०६,८१० से ८१६,८१८ से १२१, ८३८।२६,८४८ से ८५१,८५४ से ८५६, ७५६,८६०,८६२,८६५,८६६,८६८,८७१, ८७२,८७४,८७७,८७८,८८०,६२५,९२७, से ६३५,६३८,८३६,६४३ से १४६,६४६ से ६५२,६५५,६५८,९६१,६६३ से १६६,६६९, ६७२ से ६७५ समुद्दग [समुद्रग] जो० ३१७७५,७७८ समुद्दलिक्खा [ समुद्रलिक्षा] जी० ११८४ समुपविट्ठ [समुपविष्ट ] जी ३१२८५ समुप्पज्ज [सं+उत् + पद्समुपज्जित्या. रा०९-समुप्पज्जइ. ओ० १५६-समुप्प- ज्जति. जी० ३१५६६—समुष्पज्जित्था. रा० ६८८. जी ३१४४१.–समुप्पजिहिति. ओ० १५३. रा० ८१४ समुप्पण्ण [समुत्पन्न] ओ० ११६ १५७. रा० २७६,७३८,७४६. जी० ३१४४२ समुप्पण्णकोऊहल्ल समुत्पन्नकोतूहल] ओ०८३ समुप्पण्णसंसय [समुत्पन्नसंशय] ओ० ८३ समप्पण्णसङ्ग समुत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ समुप्पन्न[समुत्पन्न ] जी० ३।२३६ समुवागत [समुपागत] जी० ३१९१७ समुस्विट्ट [समुपविष्ट ] रा० १७३ समस्सिय [समुत्सृत] रा० ५१ समूसिय [समुच्छ्रित] ओ०६४ समूह [समूह | रा० १२३ समोगाढ | समवगाढ ] ओ० १६६. जी० ३१८४५ समोयर [सं-- अवतु]---समोयरति. जी० ३११७४ समोसढ [समक्सृत] ओ० ५२,५३. रा० ६, ६८७,६८६,७१३ । समोसर [सं+अव--स! समोसरह. रा. ७०० –समोसरिज्जा. ओ०२१ --समोसरिस्सामि. रा०७०३ गमोरिस्सामो. रा. ७०५ समोसरण | समवमरण] रा० ७५,८०,८२,११२, ७४८ से ७५०,७७३ समोसरिउकाम [समवसर्तुकाम] ओ० १६,२० समोहण |सं+अवहन]-रामोहणंति, ओ० १७१ ---समोहणिसु. जी० ३११११३ ---समोहणिस्संति. जी० ३।१११३ समोहणित्ता [समवहत्य] रा० १०. जी० ३१४४५ समोहण [सं+अव-! हन्]-.-समोहण्ण३. रा० १८ --समोहणंति. रा० १०. जी० ३१४४५ समोहत [समवहत] जी० १११२८, ३११५८, २००,२०१,२०६,२०७ समोहतासमोहत समावहतासमवहत ] जी० ३२०२,२०३,२०८,२०६ समोहय समवत ओ०१६६. जी०२५३,६०,८७ सम्म सिम्यक ! ओ० १६२. रा०६७१,६६ ७०३,७१८,७२६,७३१,७३२,७३७,७५० से १५२,७७७,८७८,७८९ सम्मज्जग [ सम्मग्नक ] ओ०६४ सम्मज्जित [सम्माजित] जी० ३१४४७ सम्मन्जिय [सम्माजित } ओ० ५५,६० से ६२. जी० ३१४४७ सम्मट्ठ [सम्मृष्ट ] ० ५५. जी० ३।४४७ सम्मत्त | सम्यक्त्व] ओ० ४६ सम्मतकिरिया | सम्यक्त्व क्रिया) जी० ३१२१० Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मदिट्ठि-सयवत्त सम्मदिट्टि [सम्यग्दृष्टि ] रा० ६२. जी० १।२८, १०१४,१०१६,१०२२,१०४१,१०५२,१०५३, ८६; ३:१०३,१५१,११०५,११०६,६६७, १०५५,१०६५ से १०७०,४१५:५।१६,२६% ६८,७१,७४ ६१६३,१०६,१२३,१२८,१४४ सम्मय [मम्मत] रा० ७५० से ७५३ सय {स्वक] ओ० २०,५३. रा ० ५४,६७१,६८१, सम्माण सम्मान ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७, ७१०,७१८,७५०,७७४ ६८६ सिय |शी —सयंति रा० १८५. जी० ३।२१७ सम्माण सं| मानय —सम्माणिस्संति. रा० सयंपभा [स्वयंप्रभा] जी० ३।१०७७ ७०४....सम्माणेइ. ओ० २१. ७०६--सम्मा- सयंबुद्धसिद्ध [स्वयंबुद्धसिद्ध] जी० ११८ ज्जा. रा० ७७६ ..सम्माति. रा०६८४ सयंभुमहावर | स्वयंभूमहावर जी० ३१६५१ सम्माणमि. रा०५८---सम्माणे मो. ओ० सयंभुरमण स्वयंभूरमण जी० ३.२५६,६४६ से ५२. रा. १० . सम्माहिति. ओ० १४७ ६५१,६६२,६६४,६६५,९६८ सम्माणिज्ज [सम्माननीय ] ओ० २. जी० सयंभूवर स्वयंभूवर ] जी० ३।६५१ ३१४०२,४४२ सयंभूरमण स्वयंभूरमण] जी० ३।९७१ सम्माणित्तए [सम्मानयितुम् ] ओ० १३६. रा० सयंभूरमणग [स्वयंभूरमणक] जी० ३१७८० संयंसंबुद्ध स्वयंसंबुद्ध रा० ८,२६२. सम्माणेत्ता [सम्मान्य ] ओ० २१ ___ जी० ३१४५७ सम्मामिच्छदिट्टि [सम्यमिथ्यादृष्टि ] जी० सयन्धि [शतघ्नि ] ओ०१ ११२८,८६; ३१११०५,११०६ सयण शयन] ओ०१४,१४१,१४६,१५०. सम्मामिच्छादिट्टि (सम्यमिथ्यादृष्टि] जी० रा० १८५,६७१,६७५,७६६,८१०,८११. ३.१०३,१५१,६४६७,७०,७३,७४ जी० ३।२६७,८५७.११२८,११३० सयण स्विजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२, सम्मुह सम्मति जी० ३१२३६ ८११ सय | शत] ओ० ६३,६४,६८,७१,११५.११८, सयणविहि [शयन विधि ] ओ० १४६. रा० ८०६ ११६,१७०,१६२,१६५।५. रा. १७,१८,३२, सयणिज्ज [शयनीय रा० २६१,२७७. ६१,६६,६६ से ७१,१२४,१२७,१२६,१३७, जी० ३३६५०,६८२ १६२,१७०,१७३,१८६,१८८,२०४ से २०६, __ सयपत्त [शतपत्र ] ओ० १२,१५०, रा० ८११. २०६,२११,२३३,२५१,२५४,२५५,२६२, जी० ३।११८,११६,२८६ २६२,६८१,६८६,७११,७५३. जी० १४६४; सयपाग [शतपाक] ओ० ६३ २१४१,४८,७३,६२,६७,१२५,१२८; ३३८२, सयपोराग [शतपर्वक] जी० ३११११ ६१,१२६।६,१७४,२१७ से २२६,२२६६१,३, सयमेव [स्वयंमेव रा० ६७४,६८०,६६८,७५४, ६,२२७,२३७,२४६,२४६,२५५,२५७,२६०, ७६१ २६२,२६३,३५१,३५८,३६१,३७४,४१६, सयराई [सप्तति] जी० ३३१००० ४५७,६३२,६४७,६४६,६७४ से ६७६,६८३, सयराह [दे०] अकस्मात् ओ० १२२ ७०३,७०६,७२२,७३६,७५४,८०२,८०६ सयल [शकल] ओ० १६,४७ ८२०,८२३,८३०,८३४,८३७,८३८१६,६,३१, सयवत [शतपत्र] ओ० ४७. रा० १३७,१७४, ८३६,८८७,९०८,६१८,६६६.१००३,१००५, १९७,२७६,२८८. जी० ३१३०७ Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयसहस्स-सरीरग सयसहस्स [शतसहस्र ] ओ० १,२१,४६,५४,६८, ४५१,४५७ से ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६, ६४,६५,१७०,१६२. रा० १४,१७,१८,१२४, ५२०,५४७,५५४ १२६,१७०,१८८. जी० १७३,७६,८१,१३५; सरसरपंतिया | सरःसर पङ्क्तिका रा० १७४, ३।१२,६३ से ६६,७७,८२.१२७,१६०,१६२, १७५,१८०. जी० ३।२८६ १६६ से १६८,१७१,२३२,२६०,७०६,७१०, सरसी यरसी] रा० १७४,१७५,१८०. ७२२,७२३,७६४,८०२,८०६,८१२,८१५, ___ जी० ३१२८६ ८२०,८२३,८२७,८३०,८३२.५३४,८३५, सरस्सई [सरस्वती] ओ०७१. रा०६१ ८३७,८३८।२८,८३६,८४१,८५०,८५२,६४०, सरागसंजम | मरागमयम ओ० ७३ ६४४,६६६,१०२७,१०३८,१०३६,१०७४ सरासण [शरासन] रा० ६६४,६८३. सयसाहस्सिय [ शतसाहसिक रा० ५६ जी० ३१५६२ सयसाहस्सी [शतगाहस्री | जी० ३।६५८ सरि [सदृश् जी० ३१६६६,७७५ सर | शर] ओ० ६४. रा० १७३,६८१,७६५. सरिता रारिता] जी० ३।४४५ जी० ३।२८५ सरित्तय [सदृक्त्वच ) ० ६६,७० सर [स्वर] ओ० ६,७१. रा० १७,१८,२०,६१. सरिश्वय [सदृग्वयस् ] रा० ६६,७० जी० ३३११८,११६,२७५,२८५,२८६,८५७, सरिस [मदश] ओ० १६,२२,४७. रा० ६६,७०, २७०,७७७,७७८,७५८. जी० ३।११०,४१२, सर [सरस् ] ओ०६६ ५९६ से ५६८,६८२,७०८,७१०,८१४,६२८, सरंधी [दे०जी० २६ सरग [सरक] जी० ३६५८७ सरिसक [सदृशक] जी० ३१६६६ सरगय [स्वरगत] ओ० १४६. रा० ८०६ सरिसय [मदृशक रा० ६९,७०. जी. ३१६६५, सरडी [सरटी] जी० २९ ७६२ सरण [शरण] ओ० १६,२१,५४. जी० ३१५६४ सरिसव [सर्षप] जी० ११७२ सरणबय [शरणदय] ओ० १६,२१,५४. रा०६, सरिसवविगइ [सर्षपविकृति ! ओ०६३ २६२. जी० ३।४५७ सरिसिव [सरीसृप] रा० ६७१ सरतल | सरस्तल] रा०२४. जी० ३१२७७ सरीर [शरीर] ओ० १५,२०,५२,५३,८२.११७, सरपंतिया [सरःपङ्क्तिका] रा० १७४,१७५,१८०. १४३. रा० १२२,१२३,६७२,६७३,६८६ से जी० ३१२८६ ६८६,६६२,७००,७१६,७२६,७२८,७३२, सरम [ शरभ ] ओ० १३. रा० १७,१८,२०,३२, ७३७,७४० से ७६४,७७० से ७७३.७९५, ३७,१२६. जी० ३३२८८,३००,३११,३७२ ७६६,८०१. जी० १११४,१६ से १८,५०, सरमह [सरोमह] रा०६८८ ७२१२,३,७४,८६,८८,६०,६४ से ६६,१०१, सरय [शरद् ] जी० ३१५६० १११,११२,११६,११६,१२१,१२३,१२४, सरल [सरल ] जी० २७२ १३०,१३५; ३।६१ से ६३,१२६।४,१०,५६८, सरलवण [सरलवन] जी० ३१५८१ ६६६,१०८७,१०५६ से १०६२ सरस [सरस]ओ० २,५५,६३.रा०३२,२७६,२८१, सरीरग | शरीरका रा०७९५. जी०१११५,५९, २८५,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५,३१२, ७४,७७,७६,८०,८२,८५,६०,६३,१०१,१०३, ३५१,३५५,५६४. जी. ३३३७२,४४५,४४७, ११६,१२८,१३०,१३५, ३१६४,१३६,१०६०, Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरीरस्थ-सव्वभासाणुगामि १०६१,१०६३,१०९७,१०६८ सव्वंग [सर्वाङ्ग] ओ० १५. रा० ६७२,६७३, सरीरत्य शरीरस्थ] ओ० १७४ ८०१. जी. ३.५६६,५६७ सरीरपज्जत्ति [शरीरपर्याप्ति) रा० २७४,७६७. सव्वकामगुणिय सर्वकामगुणित] ओ० १६५।१८ ___ जी० १०२६ ; ३,४४० सम्वकाल [सर्वकाल] ओ० १६५।१६ सरीरय । शरीरक] जी० ११६४ ; ३।१२,६५,६६, सध्वखरसण्णिवाइ [सर्वाक्षर:न्निपातिन् ] ओ० २६ सरीरविउस्सग्ग [शरीरव्युत्सर्ग] ओ० ४४ सव्वग्ग [सर्वाग्र) रा० २२७. जी० ३.३८६,६४२, सरीरि [शरीरिन] जी० ६।६६ ६५३,६७२,६७६,७६४,७६५ सरीसिव [सरीसृप] जी० ३।८८ सव्वट्ट [ सर्वार्थ ] जी० ३।६३४ सलिल [सलिल] ओ० २७,४६. रा० १७४,२८८. सय्वसिद्ध [सर्वार्थसिद्ध ] ओ० १६७, १९२. जी० ३.११८,११६,२८६,४५४ जी० २१७८,८१,३११८४,१६२ सलिला [सलिला } रा० २७६. जी० ३।४४५ सव्वट्ठसिद्धग [सर्वार्थसिद्धक] जी० २।८५,९६; सलील [सलील] रा० २५५,२५६. जी० ३१४१६, ३१२३१ ४१७ सव्वण्णु [सर्वज्ञ ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. सलेस [गलेश्य] जी० ६२६ जी० ३।४५७ सलोद्द [सले.त्र] रा० ७५४,७५६,७६४ सव्वतो [ सर्वतरा रा० १२,४५,१६१,२०८,७५५, सल्ल [शल्य ] ओ० ७२ ७६४,७६५,७७२,७७४. जी० ३।४६,५०, सल्लई [सल्लकी] जी० ३१८७२ २६०,२६२,२६५,२८३,२८५.३०२,३०५, सल्ली [दे० ] जी० २१९ ३१३,३२७,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३६०, सवण धवण] ओ०१६. रा० २५४. ३६८,४४७,५६१,६३६,६५२,६५८,६६८, जी० ३४१५,५६६,५६७ ६७८,६७६,६८१,६८६,७०४,७०६,७३६, सवणया [श्रवणता] ओ० २०,५२,५३. रा० ६८७, ७४१,७५४,७७०,७७२,७६६,७९८,८१०, ७१३, ७१९,७५० से ७५३ ८२१,८३३,८३६,८४५.८४८,८५६,८६२, सवियारि [सविचारिन् ] ओ० ४३ ५६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ सविसय [सविषय] जी० १२४७ सव्वत्ता [सर्वता] ओ० ७६ सविवेस सिविशेष] जी० ३३१०१०,१०१४ सव्वत्थ सर्वार्थ ] ओ० ४० सवेदग [सवेदक] जी० ६१२२,२५,२७ सम्वत्य [सर्वत्र जी० २१८५ सवेदय [सवेदक] जी० ६२३,२८,३२ सव्वदरिसि [सर्वशिन् ओ० १६,२१,५४. सव सर्व ओ० २७. रा० ६. जी० ११५० रा० ८१२६२. जी० ३१४५७ सव्वओ [सर्वतस् ] ओ० ३,६,२७,७६,११७. सम्वद्धपिडिय [सर्वाध्वपिण्डित] ओ० १६५१४, रा० ६,१२,३०,४०,६३,६५,१२७,१३२, १३५,१५४,१५३,१८६,२०१,२०५ से २०७, सम्बद्धा सर्वाध्व] जी० ३।१६३,१६४ २३६,२६३,२८१,६७०,८१३. जी० १२१७, सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहादहा {सर्वप्राणभूतजीव. ३८८,८१२,८२३,८५० सत्त्वसुखावहा] ओ० १६३ सब्बओभद्द [सर्वतोभद्र ओ० ५१ सम्वभाव [सर्वभाव ओ० १६५।१२ सम्वओभद्दपडिमा [सर्वतोभद्रप्रतिमा ] ओ० २४ सव्वभासाणुमामि [सर्वभाषानुगामिन् ] ओ० २६ . Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५६ सव्वभासानुगामिणी [ सर्वभाषानुगामिनी ] ओ० ७१. रा० ६१ सव्वरता [ सर्व रस्ता ] जी० ३६२२ सवागास | सर्वाकाश ] ओ० १६५।१५ सदिय [ सर्वेन्द्रिय ] जी० ३।६०२,६६०,८६६, ८७२,८७८ सव्व दिया जो गजुंजण्या [सर्वेन्द्रियकाययोगयोजना ] बो० ४० सम्वोउय [ सर्वर्तुक ] मो० ४६. रा० १५६,६७०. जी० ३।३३२ सव्वीस पित्त [ सर्वोषधिप्राप्त ] ओ० २४ सस [शश ] रा० २७ संभम [ ससम्भ्रम ] ओ० २१,५४ ससक [ शशक] जी० ३।२८० सक्खं | ससाक्ष्य, ससाक्षात् ] रा० ७५४, ७५६, ७६४ ससग [ शशक ] जी० ३।६२० सण [ श्वसन] ओ० १६. जी० ३।५९६ ससरोरि [ सशरीरिन् ] जी० ६१६२ सति [ शशिन् ] ओ० १५,१६,४७,६३,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१. जी० ३१५६३,५६६, ५६७,८०९, ८३८१३,२४,२६,२८,३०.३१, १००० ओ० ६२ ससुर कुलरक्खिया [ श्वसुरकुल रक्षिता ] सस्सिरीय [सश्रीक] ओ० ६३. रा० १३६,२२८. जी० ३।३०६, ३८७,५६६,६७२ afratea [ सश्रीकरूप] रा० १७,१८,२०,३२, १२६,१३०,१३७. जी० ३।२८८, ३००, ३०७, ३७२ सह [सह ] जी० ३।६११ सहसंबुद्ध [ स्वयंसम्बुद्ध ] ओ० १६,२१,५२,५४ सहसा [ सहसा ] जी० ३।५८६ सहस [ सहस्र ] ओ० १६,६८,६६,८६ से ९३, १७०,१६२. रा० १७, १८, २०, २४,३२,५२, ५६,१२४, १२६,१२६, १५६,१६३, १६६, सभासानुगामिणी सहस्ससो १८८, २३१,२४७, २७६, २८०, ७८७,७८८. जी० ११५८, ५६, ६५, ७३,७४,७८,८१,९४, ६, १०१, १०३,१११, ११२, ११६, ११६, १२३, १३६,१३७२ ३५ से ३६,६६, १०८, ११०,१११, ११८, १२८, १२६,१३६; ३१४ से २१, २३ से २७,५१,६० से ६३,७७,८० से ८२,६१, ११८, १७४,१५६ से १६२,२२६/६, २४२, २४६,२६०,२७७,२८८, ३००, ३३२, ३३५, ३३६,३५१,३५५,३५८,३६१,३७२, ३ε३,३६८,४४५,४४६, ४४८,५६६, ५६८ से ५७०,५७७, ५६०, ५६८,६३२,६३८,६३६, ६६०, ७०३, ७०६,७१४, ७२२, ७२३, ७२५, ७२६,७२८,७३२,७३३,७३६,७३६,७४०, ७४२,७४५,७५०,७५४, ७६१, ७६२, ७६४ से ७७६,७८८ से ७६२, ७६४, ७६५, ७६८, ८०२,८०६, ८१२,८१४,८१५, ८२०,८२३, ८२७,८३०, ८३२,८३४,८३५,८३७,८३८१२७, ३१,८३६, ८४१, ८८२,६११,६१८, ६७१, १०००,१०१५.१०१७ से १०१६, १०२२, १०२३,१०२८, १०२६,१०३८, १०५१, १०७३, १०७४, ११३१४३, ६, ६, ११, १६; ५०५, ६, १०, १२, १४, १५, २५, २६; ६२, ६,७१३,१३, ८ ३ ६ २ से ४,१३२,२१०, २१४,२२४,२२८, २३४,२४१,२६०, २६६, २७७ सहस्तपत्त [ सहस्रपत्र ] ओ० १२,१५० रा० २३, १७४, २२३,२७६,२६१,२८८,२८१६,६११. जी० ३।११८, ११६, २५६,२६६.२८६,२६१, ३१५, ४४५, ४४७, ४५४, ४५५, ६३६, ६३७, ६५१,६५६,६७७,७३८,७४३,७६३, ८१४ सहस्सपाग [सहस्रपाक] ओ० ६३ सहभाग [ सहस्रभाग] ओ० २ सहस्सरस्सि [सहस्ररश्मि ] ओ० २२. रा० ७२३, ७७७,७७८,७८८ सहसवत [ सहस्रपत्र ] रा० १६७,२७६ सहस्तसो [सहस्रशस् ] जी० ३।१२६६ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्सार-सामण्णपरियाग सहस्सार [महस्रार] ओ० ५१,१५७,१९२. जी० ११११६,१२३,२६१,६६,१४८,१४६, ३११०३८,१०५२,१०६१,१०६६,१०६८, १०७६,१०५३,१०८५.१०८८ सहस्सारग [सहस्रारक) जी० ३१११११ सहा [सभा] ओ० ३७. जी० ३६४१२ सहिणग [ श्लक्ष्णक ] जी० ३१५६५ सहित सहित ] जी० २।१०५; ३।२८५,६२७ सहिय [संहत ] ओ०१६ सहिय [ सहित] रा०७५. जी० ३८३८१२५ सही सखी] जी० ३१६१३ सहोढ सहोढ] २० ७५४,७५६,७६४ साई साचि ] रा० ६७१ साइज्ज [स्वाद् ] -- साइजामो. ओ० ११७ साइजणया स्वादन] ओ. ३३ साइज्जित्तए (स्वादयितुम् ] ओ० ११७ साइम [ स्वाद्य] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. रा० ६९८,७०४,७१९,७५२,७६५,७७६, ७८७ से ७५६,७६४,७६६,८०२,८०८ साइरेग [सातिरेक] मो० २३,१४५,१८८. रा० १७०,२११,२२२,२२७,२५३. जी० २११३ ३१२५०,३५८,३७४,३७६,३८६, ४१४,६५३,६७५,८८२,८८७,८६४६।३४, ८६,६३,१३४,१६०,१६१,१६५ साउ स्वादु ओ० ६. जी० ३.२७५ सागर [सागर] ओ० २७,४६,७४१५.६६, १६५२२. रा० २४,७६५,८१३. जी० ३३२७७,५६६,८३८१२३ सागरनागरपविभत्ति [सागरनागरप्रविभक्ति] रा०६२ सागरपविभत्ति | सागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरमह (सागरमह] रा० ६८८,६८६ सागरोवम सागरोपम] ओ० ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० २८२. जी० श६६,१३६,१३८,२।७३,७६,८२, ६३,१७,१०७,१०८,११८,१२५,१२७,१२६, १३६ ३.१६२,१६७,४४८,८४१,१०४६, १०४७,१०४६ से १०५३,१०५५,११३१, ११३७,४|४,९,१५,१६:५१६,१०,१६२८, २६; ६.२.११७१३,१६, ८.३; ६२ से ४, ३१,३४,६८,७२,८६,६३,१०२,१०६,१२३, १२८,१३२,१३४,१६०,१६१,१६५,१७२, १७६,१८६ से १६१,१६३,१६८,१६६,२०३, २०६,२१०,२१७,२२४,२२८,२३४,२४४, २६०,२६६,२८० सागार [साकार] ओ० १८२,१६५।११. जी० २३२,८७,३३१०६,१५४,१११०% ६।३६,३७ साणुस्कोसिया [ सानुक्रोशता] ओ०७३ सातासोक्ख सातसौख्य] जी० ३.१११७ साति [साचि] जी० ११११६ साति स्वाति] जी० ३३१००७ सातिरेग [सातिरेक] रा० ८०५. जी० ११७४; २१४३,४४,४७,८२,१२५,१२८, ३१२४७, २५६,३८१,६४२,६७२,६७६,६८६,६०७, १०३४,१०३६,११३७, ४१६,१५,५१६, २६; ६३११;७१६,८१३; ६४३,३१,६८,७२, १०२,१०६,१२३,१२८,१३२,१६८,१६६, २०६,२१७,२४४,२६०,२८० सादीय [सादिक ] ओ० १८३,१८४,१६५. जी० ६।२४,२५,३१,३३,३४,८२,११०,१२५, १६३,१६२,१६५,२०१,२०२,२०५,२०६, २१५.२१६,२२७,२३०,२४०,२४६,२६१, २६५,२७६,२८५ साभाविय स्वाभाविक रा० २७९,२८०. जी० ३१४४५,४४६ साम सामन् ] रा० ६७५ सामंत [मामन्त] रा० ७५३ सामग्णपरियाग [श्रामयपर्याय ! ओ० ६५,१५५, १५६,१६० Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५८ सामन्नमोविणिवाइय-साला सामन्नओविणिवाइय [सामान्यतोविनिपातिक] सार [सार ओ०१४,२३,४६. रा० ३७,१७३, रा० ११७,२८१ ६७१,६७६,६६५. जी० ३।२८५,३११,५८६, सामन्नतोविणिवातिय [सामान्यतोविनिपातिका जी० ३1४४७ सारइय [शारदिक] जी० ३१२८२,८७२,६६० सामलतामंडवग [श्यामलतामण्डपक] सारक्सणाणुबंषि [सॉरक्षणानुबन्धिन ] ओ० ४३ जी० ३८५७ सारग [सारक, स्मारक'] ओ०६७ सामलतामंडवय [श्यामलतामण्डपक] सारतिय [शारदिक] रा० २६ जी० ३१८५७ सारय [शारद] ओ० २७,७१. रा० ६१. सामलया [एयामलता) मो० ११. रा० १४५. जी० ३१५९२,५६७ जी० ३।२६८,३०८,३७७,३६०,५८४ सारयसलिल [शारदसलिल] रा०८१३ सामलयापविभत्ति [श्यामलताप्रविभत्ति] रा० १०१ सारस [सारस ] ओ० ६. जी० ३।२७५ सामलयामंडवग [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६६ सारहि [सारथि] ओ०६४. रा० १७३,६७५, सामलयामंडवय [श्यामलतामण्डपक] जी० ३।२६७ ६८०६८१,६८३ से ६८५,६८८ ले ६६०, सामलि [शाल्मली] जी० ३१५९६ ६६२,६६३,६६५ से ७१०,७१३,७१४,७१६ सामवेद सामवेद] ओ० ६७ से ७३४,७३६,७४८. जी० ३१२८५ सामाइय [सामायिक ] ओ० ७७ सारा [दे० ] जी० २।६ सामाइयचरित्तविणय [सामायिकचरित्रविनय] सारिज्जंत सार्यमान रा० ७७ ओ०४० सारीर [शारीर] ओ०७४ सामाणिय [सामानिक] रा० ७,४१,४८,५६ से । साल शाल] ओ० ६,१०. जी० ११७१; ३१५८३ ५८,२७६ से २८०,२८२,२८४,२८७,२८९, सालघरग [शालागृहक ] रा० १५२,१८३. २६१,६५७,६५८,६६६. जी० ॥३३६,३५०, ३५६,४४२ से ४४६,४४८,४५५,४५७,५५७, जी० ३१२६४ सालगग [शालनक] जी० ३१५६२ ५५८,५६३,५६५,६३५,६३७,६५७,६५९,६८०॥ सालभंजिया [शालभजिका] रा० १३३,१३६, ७००,७२१,७३८,७६०,७६३,८४३,८४६, २६४,२६६ से २६६,३१२,४७३. जी० ३१३००, १०२५ ३०३,३१६,३५५,३७२,४५६,४६१,४६२, सामाय [श्यामाक] रा० २६. जी० ३।२७६ ४७७,५३२ सामि [स्वामिन् ] ओ० ५६, रा० ६,६८१,७०७, सालभंजियाग [शालभजिकाक] रा० १७,१८, ७२३,७२६,७३१,७३३ से ७३५,७५१,७५३ ३२,१३० सामित्त [स्वामित्व] ओ० ६८. रा० २०२. सालमंत [शाखावत् ] ओ० ५,८. जी० ३१२७४ जी० ३१३५०,५६३,६३७ सालवण [शालवन] जी० ३१५८१ सामुग्ग [समुद्ग] ओ० १६ साला [शाखा] रा० १३३,२२८. जी०३०३,३८७, सामुच्छेइय [सामुच्छेदिक] ओ० १६० ५८०,६२१,६७२ से ६७४ सामुद्दग सामुद्रग] जी. ३१७८० साय [सात] जी० ३।१२६६ १. 'सारय' ति अध्यापनद्वारेण प्रवर्तकाः स्मारका साया [सात] जी० ३।११८,११६ वा अन्येषां विस्मृतस्य स्मारणात् (वृ)। Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालि-सिंगार ७५६ सालि शालि] ओ०१. रा० १५०. जी० ३।६२१, साहरण [संहरण] जी० २१११६,१२४ साहरणसरीर [साधारणशरीर] जी० ११६८,७३ सालिपि? [शालिपिष्ट] रा० २६. जी० ३।२८२ साहरिज्जमाण [संह्रियमाण] रा० ३०,८०४. सालिसय [सदृशक] रा० २४५. जी० ३४०७ जी० ३१२८३ सावएज्ज [स्वापतेय] रा० ६६५. जी० ३१६०० साहरिज्जमाणधरय [संह्रियमाणचरक] ओ० ३४ सावज्ज सावद्य] ओ०४०,१३७,१३८ साहरित्ता [संहृत्य ] जी० ३।४५७ सावज्जजोग [सावद्ययोग] ओ० १६१,१६३ साहसिय [साहसिक] ओ० १४८,१४६. रा० सावतेज्ज [स्वापतेय] ओ० २३ ८०६,८१० सावत्थी [श्रावस्ती ] रा० ६७५,६७७ से ६८० साहस्सित [साहनिक] जी० ३१८४२ ६८३,६८५ से ६८६,६६२,७००,७०६, साहस्सिय साहसिक] रा०५६. जी. ३१८४२, ८४५ साहस्सी [साहस्री ओ० १६. रा० ७,४१ से ४४, सावय [स्वापद ओ० ४६. जी ३।६२० ४८,५६ से ५८.२३५,२३६,२८०,२८२,२८६, सावय [श्रावक] जी० ३१७६५,८४१ २६१,५६८,६५७.६५८,६६० से ६६२,६६४. सावाणुग्गहसमत्थ [शापानुग्रहसमर्थ ] ओ० २४ जी० ३:२३६,२४६,२५५,३३६,३४१ से साविया श्राविका जी० ३.७६५,८४१ सार्वेत [श्रावयत् ] मो० ६४ ३४५,३५०,३६७,३६८,४४६,४४८,४५५, ४५७,५५७,५५८,५६०,५६२,५६३,६३५, सास श्वास ] जी० ३।६२८ ६३७,६५७ से ६५९,६८०,७००,७२१,७३३, सासंत शासत् ] ओ० ६४ ७३८,७६० से ७६३,६०२,६०३,१०२५, सासत [शाश्वत] जी० ३१५७,५८,८७,७०२, १०३८,१०४१,१०४४,१०४६,१०४६ से १०५२ सासय [शाश्वत) ओ० १८३,१८४,१६५।१६,२१. साहस्सीय साहसिक] रा० ६७१ रा० १३३,१६८ से २००. जी० ३१५६, साहा [शाखा] ओ० ५,८. रा० २२८. १२७१२,२७० से २७२,३०३,३५०,७२१, ___ जी० ३।२७४,३८७,६७२ ७२४,७२६,७६०,१०८१ साहित्ता [कथयित्वा ] रा०६ सासा स्वाशा,शास्या] ओ० ४६ साहियासाधिका ओ०१६१७ सिाह [कथय,शास्]- साहिति. रा० ११ साहिय [सहित] जी० ३।६२५ --साहेति. रा० २८१. जी० ३।४४७ साहिय साधित] रा० ७६५ -साहेह. रा०६ साहु [साधु] ओ० ४६,१६१,१६३ सिाह [साथ् ]-साहेइ रा० ७६५--साहेज्जासि. सिंग शृङ्ग रा० ७१,७७ रा० ७६५. साहेमि. रा०७६५ सिंगबेर [शृङ्गबेर] जी० १९७३ साहटु संहृत्य ) ओ०२१ सिंगमेद [शृङ्गभेद] ओ० १३ साहण [स+हन् ]---साहणेज्जा .जी० ३३११८ सिंगमाल [शृङ्गमाल] जी० ३१५८२ साहम्मि यययावच्च [सार्मिकवैयावृत्य ] ओ० ४१ । सिंगवाय [शृङ्गवादक] रा०७१ साहय [संहत] ओ० १६. जी० ३।५६६,५६७ सिंगार [शृङ्गार ओ०१५. रा०७०,७८,१३३, साहर [सं+ ह!-- साहरति जी० ३१४५७ ६७३,८०६,८१०. जी०३१३०३,५६७,११२२ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिधा -सिय सिंघाडग [नाटक ] ओ० १,५२,५५. रा० ६८७, सित्थ [सिक्थ ] जी० ३।५९२ ७१२. जी० ३१५५४,५५५ सिद्ध [सिद्ध] ओ०७१,७४१३,६,१८३,१८४, सिंघाडय शुङ्गाटका रा०६५४,६५५ १८६ से १६२,१९४१,२,४ से ११,१३,१५, सिंदुवार [सिन्दुवार] जी० ३१२८२ १७,१६ से २१. जी. १६९,१०,१२, सिंदुवारगुम्म [सिन्दुवारगुल्म ] जी० ३१५८० १४,१६,२६,४४,४५,५४,६२,६६,१५६, सिंधु [सिन्धु] रा० २७६. जी० ३।४४५,५६५ १५८,२०६,२१५,२१६ से २२१,२२७,२३० ६३७ से २३२,२४०,२४६,२६५,२६७,२७५,२७६, सिभिध श्लैष्मिक ] ओ० ११७. रा० ७६६ २८४ से २८७,२६२.२६३ सिंह [सिंह | जी० ३.७८१,७८२,१०३८ सिद्धकेवलणाण [गिद्धकेवलज्ञान ] रा० ७४५ सिंहली [सिंहली] ओ० ७०. रा० ८०४ सिद्धत्य | निद्धार्थ रा० १५६,१५७,२५८,२७६ सिक्कग [शिस्यक० १३२,१५३,२३६,२४०. जी० ३१३२६,४१६,४४५ जी० ३३३२६,४०२ सिद्धत्यय [सिद्धार्थक] रा० २७६,२८०. सिक्कय [शिक्यता] १० १३२,१४०,७६१. जी. जी० ३१४४५,४४६,४४८,५६३ ३।३०२,३२६.३६८,४०२ सिद्धवसहि सिद्धव ति] ओ० ७४१३ सिक्खा | शिक्षा | ओ० ७६,७७,६७ सिद्धाश्तण | सिद्धान्तन रा० २५१,२५२,२५६, सिक्खाव | शिक्षय ] ---सिक्खाविहिति ओ० १४६ २६०,२७६,२८८,२६१,२६३,२६४,३१३, -सिक्खावेहिइ, रा०८०६ ३३१,३३२. जी० ३६४१२,४१३,४२०,४२१, सिक्खायय शिक्षाव्रत] ओ० ७७ ४५४,४५७ से ४५६,४७८,४६६,४६७,६७४, सिक्खावित्ता [शिक्षयित्वा ! ओ० १४६ ६७६,६७७,६६१ से ६६८,८२५,८८४,९०१ सिक्खवेत्ता | शिक्षयित्वा] रा०८०७ से ६०५,६०६,६१३ सिग्घ [शीन] रा० १०,१२,५६,२७६. जी० सिद्धालय [ सिद्धालय ] ओ०७४।६,१६३ ३८६,१७६,१७८,१८०,१८२,४४५ सिद्धि [सिद्धि] ओ० ७१,१७२,१६३ सिम्घति शीघ्रगति जी० ३।६८६,१०२० सिद्धिगइ [सिद्धिगति ] ओ० १६,२१,५४,११७. सिग्धगमण [शीघ्रगमन] रा० १७,१८ रा० ८,२६२,७१४,७६६. जी. ३१४५७ सिज्झ | सिध्] ---सिज्झइ. ओ० १७७- सिद्धिभग्ग सिद्धिमार्ग Jओ०७२ सिज्झई. ओ० १९५॥१२-सिति . ओ० सिद्धिमहापट्टणाभिमुह | सिद्धिमहापत्तनाभिमुख ७२. जी० १११३३ --सिज्झिहिंति. ओ० ओ० ४६ १६६- --सिज्झिहिति ओ० १५४ रा० ८१६ । सिप्प [शिल्प ] ओ० ६३. रा० १२,७५८ से ७६१. सिज्झमाण [सिध्यत् | ओ० १८५ ___ जी० ३.११८,११६ सिढिल [शिथिल] २० ७६०,७६१ सिप्पायरिय [शिल्पाचार्य ] रा० ७७६ सिणाइत्तए [स्मातुम् ] ओ० १११ सिप्पि ! शिल्लिन् । ओ० १ सिणेह | स्नेह ] ओ० १६८. जी० ३।२२ सिपि [शुक्ति जी० ३७६३ सिता [स्यात् ] जी० ३।६०,१०६,११८,११६, सिप्पिय शिल्पिक] जी० ३१५६१ १७६,१७८,१८०,१८२.१६५,१६६ सिबिधा [शिधिका] ओ० ५२ सित्त सिक्त] ओ० ५५. जी० ३३५६२ सिय [सित] ओ० ४६ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिघ- सीओसिनवेदना सिय [स्यात् ] जी० ११४६, ७३,८२, ३१५७, ५८, २७० सियरत [सितरक्त ] ओ० ४७ सिया [ स्यात् ] जी० ३१८४,८५,११८, १९७, २७८ से २८५,६०१,६०२,८६०,८६६,८७२ से८७८६८२,१०८५, १०८६ सियाल [ शृगाल ] जी० ३१६२० सिर [ शिरस् ] ओ० ५२,७१. ० ६१,७६, ६८७ से ६८६ सिरय | शिरोज ] ओ० १६,५१. रा० १३३. जी० ३१३०३, ५९६, ५६७ सिरय | शिरस्क | ओ० ६३, ६५ सिरसावत [ शिरसाव ] ओ० २०,२१,५३,५४, ५६,६२,११७. रा० ८,१०,१२,१४,१८,४६, ७२, ७४,११८,२७६, २७६,२८२,२६२.६५५, ६८१,६८३,६८९, ७०७,७०८,७१३,७१४, ७२३, ७६६. जी० ३।४४२, ४४५, ४४८, ४५७, ५५५ सिरिकता [ श्रीकान्ता] जी० ३२६८८ सिरिचंदr [ श्रीचन्द्रा ] जी० ३।६८८ सिरिणितया [ श्रीनिलया ] जी० ३२६८८ सिरिवाम [ श्रीदामन् ] जी० ३५६७ सिरिधर [ श्रीधर ] जी० ३।८५४ सिरिप्पभ [ श्रीप्रभ ] जी० ३।८५४ सिरिमहिया [ श्रीमहिता ] जी० ३२६८८ सिरिली [ दे० श्रीली ] जी० १।७३ सिरिवच्छ [ श्रीवत्स ] ओ० १२,१६,५१,६४. श० २१,४६, २५४,२६१. जी० ३१२५६, _३४७,४१५,५६६१ सिरी [ श्री ] रा० ४०, १३२, १३५, २३६,७३२, ७३७,७७४, ७८२. जी० ३।२६५,३०२, ३०५, ३१३,३६८, ५८०,५८१, ५६१ सिरीस [ शिरीष ] अ० ६,१०. रा० ३१. १. श्रीवृक्षेणाङ्कितं - लाञ्छितं वक्षो येषां ते श्रीवृक्षलाञ्छितवक्षसः ( वृ० पत्र २७१) । ७६१ जी० ३।२८४,३८८, ५८३ सिरीसव [ सरीसृप ] रा० ७१८. जी० ३।७२१ सिरोसिव [ सरीसृप ] रा० ७०३ सिरोवेदना [ शिरोवेदना ] जी० ३।६२८ सिलवालमय [ शिलाप्रवालमय ] रा० २५४. सिला [ शिला] ओ० १६,२३,४७. २० २७, ६९५, ७५५,७५७. जी० ३१२५०, ५६६,६०८ सिलातल [ शिलातल ] जी० ३१५९६ सिलायल [ शिलातल ] ओ० १६ fifts [ सिलिन्ध ] ओ० ४७ सिलेस [ श्लेष ] जी० १८७२/५ सिलोय [ श्लोक ] ओ० १४६. रा० ८०६ सिव [ शिव ] ओ० १४,१६,२१,५४, रा० ८, २६२,६७१. जी० ३।४५७ सिवग | शिवक ] जी० ३।७४० सिमह [ शिवमह] रा० ६८८. जी० ३।६१२ सिवय [ शिवक] जी० ३।७३४, ७४१ सिवा [ शिवा ] जी० ३/२०११,१२२ ferfar [ शिविका ] जी० ३।७४१ सिविया [ शिविका ] ओ० ७,८,१०. ० ६८७ से ६६६. जी० १२८५ सिस्स [ शिष्य ] जी० ३१६१० सिस्ािरिली [ दे० ] जी० १।७३ सिहंड [ शिखण्डिन् ] ओ० ६४ सिहर [शिखर ] ओ० ५. रा०५२, ५६, १३७, २३१,२४७. जी० ३।२७४, ३०७, ३७३ सिहरि [ शिखरिन् ] रा० २७६. जी० ३१२२७, ४४५,७६५ सीढी [ दे० ] जी० १/७३ सीओदा [ शीतोदा] जी० ३२५६८,७०८ सीओभास [ शीतावभास ] ओ० ४. रा० १७०, १७३. जी० ३२७३ सीओया [ शीतोदा] जी० ३२४४५ सीओणिवेदना [ शीतोष्णवेदना ] जी० ३।११२, ११३,११४ Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६२ सीत [शीत ] जी० ३१२२,११३,११४,११८, ११६ सीतल [ शीतल ] जी० ३१११८,११६ सीतवेदा [ शीतवेदना ] जी० ३।११२ से ११४, ११६ सीता [ शीता ] रा० २७६. जी० ३१३००,६३२, ६३६,६६८, ७४६ सीतीभूय [ शीतीभूत] जी० ३१११८ सीतोदय [ शीतोदक ] जी० १६२ सीतोवा [ शीतोदा] १० २७६. जी० ३१७४६, ८१४ सोसोसिण [ शीतोष्ण ] जी० ३।११२, ११५ सो [सीधु ] जी० ३५८६,८६० सीमंकर [ सीमङ्कर ] ओ० १४. रा० ६७१ सीमंतोवणयण [ सीमन्तोपनयन ] जी० ३१६१४ सीमंधर [ सीमन्धर ] ओ० १४. रा० ६७१ सोमा [ सीमा ] ओ० १ सीय [ शीत ] ओ० ४,८६,११७. रा० १७०,७०३, ७६६. जी० ३१११२, ११३, ११५, ११८, ११६, २७३ सीय [ सित] ओ० १६५ सीच्छा [ शीतच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३।२७३ सीयकूड [ शीतकूट ] जी० ३।११६ सीयपडल [ शीतपटल ] जी० ३।११६ सीयपुंज [ शीतपुञ्ज ] जी० ३ | ११६ सीयभूय [शीतीभूत ] जी० ३।११८, ११६ सीयल [ शीतल ] रा० १५६,१७४,६७०. जी० ३१२८६,३३२,६०४ सोयवेदणिज्ज [ शीतवेदनीय ] जी० ३१११६ सीवेय णिज्ज [शीत वेदनीय ] जी० ३।११६ सीया [ शीता ] जी० ३२४४५,८०० सोया [शिबिका ] ओ० १,१००, १२३. रा० १७३. जी० ३/२७६,५८१,५८५,६१७ सील [शील ] ओ० ४६ सील [ शीलजित् ] ओ० ६६ सीत - सीहासण Area [ शीलव्रत ] ओ० १२०, १४०, १५७. रा० ६६८, ७५२,७८७, ७८६ सोवणी [ श्रीपर्णी ] जी० ११७१ सीसगपाय [सीरकपात्र ] ओ० १०५,१२८ सीसबंषण [ सीमकबन्धन ] ओ० १०६, १२६ सीसगभारत [ सोसकभारक | रा० ७६०,७६१ सीसघडी | शीर्ष घटी ] रा० २५४. जी० ३।४१५ सीसणिन | शीर्ष छिन्नक ] ओ० ६० सीस छिण्णय | णी छिन्नक | रा० ७६७ सीसपहेलियंग [ शीर्षप्रहेलिका | जी० ३१८४१ सीसपहेलिया [ शीर्षप्रहेलिका ] जी० ३३८४१ सीसागर [ सीसाकर ] जी० ३१११८ सीह [ शीघ्र ] जी० ३३६८६ सोह [ सिंह ] ओ० १६,२७,४८. १० २४,३७, ८१३. जी० ३१८४, ८८,२७७, ३११, ५०६, ५६७,६२०,६३९,७८२,१०१५ सोहकण्ण [1 [सिंहकर्ण ] जी० ३।२१६ सीहरुण्णी [ सिंहकर्णी ] जी० १।७३ सीहगति [ शीघ्रगति ] जी० ३१६८६ सीहघोस [ सिंहघोष ] जी० ३३५६८ सोहज्य [ सिंहध्वज ] रा० १६३. जी० ३।३३५ सोहणाय [सिंहनाद ] ओ० ५२. रा० ६८७,६८८. जी० ३१८४२,८४५ सोहणिक्कीलिय [सिंहनिष्क्रीडित] मो० २४ सीहfrers [ सिंहनिपादिन् ] जी० ३१८३६ सोहनाद [ सिंहनाद ] जी० ३१४४७ सीनाय [सिंहनाद] २१०२८१ सोहनिक्कीलय [निहनिष्क्रीडित] ओ० २४ सोपुच्छि [सिंहपुच्छितक ] ओ० ६० सोहमंडलपविभत्ति | सिंहमण्डलप्रविभक्ति ] रा० ६१ सोहमुह [ सिंहमुख ] जी० ३१२१६ सीहस्सर [सिंहस्वर ] रा० १३५. जी० ३।३०५, *& सोहासण [ सिंहासन ] ओ० १३,१६,२१,५४,६४. रा० ७, ८,३७,३६,४१ से ४४, ४७, ५१, ६७, Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरक्खाय-सुजात ६८,१५८,१६४,१८१.१८३,१८६,२०४ से २०७,२१६,२४३,२६५,२६७,२६६,२७७, २७६,२८३,२८६,२८८,३००,३२१,३३८, ३५२.४७४,५३४,५६५,६५७. जी० ३।२६३, ३११,३१२,३३१,३३६.३४५,३५५,३५६, ३५६,३६६,३६८,३७८,४०५,४१६,४२८, ४३१,४३४,४४३,४४५,४४६,४५२,४५४, ४६५.४८६,५०३,५१७,५३३,५४०,५४८ , ५५७,६३४,६३५,६६३,६७३,६८५,७३७, ७४०,७४२,७४५,७५०,७६२,७६५,७६८, ७७०,८६२,१०२४ से १०२६ सुअक्खाय [स्वाख्यात] ओ०७६ से २१ सुअलंकित [स्वलङ्कृत] जी० ३।३०३ सुअलंकिय (स्वलकृत रा० १३३ सुइ [शुचि ] ओ० १६,५५,६३,९८. रा०१६, २८१. जी० ३.४४७,५६६,५१७ सुइभूय {शुचीभूत] ओ० २१. रा० ७६५,६०२ सुझसमाचार [शुचिसमाचार बो० १८ सुईभूय [शुचीभूत] यो० ५४. रा० २७७ सुउत्तार {सुखोत्तार] रा० १७४, जी० ३१२८६ सुउमाल [सुकुमार] ओ० ६३ सुओयार [सुखावतार] रा० १७४ सुंक [शुल्क] रा० ७२७ संबर [सुन्दर] ओ० १५,१६,१४३. रा० ६७३, ८०१. जी० ३१५६६,५६७ सुंबरंगी [सुन्दराङ्गी] मो० १५. रा० ६७२ सुंसुमार [शंशुमार, शिशुमार] जी० ११६६,११८ सुंसुमारिया [शिशुमारिका] रा० ७७ संसुमारी [शुशुमार, शिशुमारी] बी० २१४ सुक {शुक] जी० ३५९७ सुर्फत [सुकान्त] जी० ३६७२ सुकठित [सुक्वथित ] जी० ३१८७२ सुरुढिय [सुक्वथित] जी० ३१८६६ सुकय [सुकत] ओ० २,१२,१५,५३ ६५. रा० ३२,१७३,२८१,६८१,६८७,६८९. जी० ३१२८५,३७२,४४७ सकुमाल सुकुमार] ओ०५,८,१५,१६,६३, १४३. रा० २२८,२८०,६७२,६७३,८०१. जी० ३३३८७,४४६,५६६,५६७,६७२,१०६८ सुक्क [शुक्र] ओ० ५०. जी० ३.११११ सुक्क [शुरुक] रा० २६,७८२ जी० ३१२८२ सुक्क [शुक्ल] जी० ६।१५४ सुक्क (झाण) [शुक्लध्यान] ओ० ४३ सुक्कपक्ख शुक्लपक्ष] जी० ३१८३८१८ सुक्कलेस [शुक्ललेश्य] जी० ६।१६१ सक्कलेसा [शुक्ललेश्या] जी० ३११५० सक्कलेस्स [शुक्ललेश्य ] जी० ३१८५,१६६ सुक्कलेस्सा {शुक्ललेश्या जी० ३१११०३ सुक्किल [शुक्ल] ओ० १२. रा० २२,२४,२६, १२८,१३२,१५३. जी० ११५,३४,३५,५०, १३६, ३१२२,४५,२७८,२८२,२६०,३०२, ३२६,३५३,३९७,५६५.१०७५,१०७६,१०६५ सुक्किलग [ शुक्लक ] जी० ३।२८२ सुक्ख [सौख्य ] ओ० १६२१ सुगंध [सुगन्ध] ओ० २,५५,६३. रा० ६,१२,३२, १३२,२३६,२८१,२८५. जी० ३।३०२,३७२, ४४७,४५१,५६२,५६६ सुगंधि [सुगन्धि] ओ० ७,८,१०. रा० १५६. जी० ३.२७६,३३२ सुगंधिय [ सौगन्धिक] ओ० १५०. रा० २७९, ८११. जी. ३१४४५।। सुगुन्सदेस [ सुगुह्यदेश | ओ० १६ सुगूढ [ सुगूढ | जी० ३४५६७ सुघोसा [सुघोषा] रा० ७७. जी० ३।७८,५८८ सुचरिय [सुचरित] रा० ८१४ सुचि [शुचि जी० ३।५६६ सुचिग्ण [सुचीर्ण] ओ० ७१. रा० १८५,१८७. जी० ३१२१७,२६७,२६८,३५८,५७६ सुजात [सुजात] जी० ३१३८७, ५८६,५६६,५६५ Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६४ सुजाय-सुपतिट्टित सुदंसणा सुदर्शना] जी० ३।६६८,६७२.६७३, ६७८ मे ६८३,६८८,६८६,६६२ से ७००, ७६५,६१० ६२१ सुदुत्तार [सुदुस्तार] ओ० ४६ सुद्ध [शुद्ध] ओ० २७. रा० ७६,१७३,८१३. जी० ३।२८५,५८५ सुद्धदंत [शुद्धदन्त] जी० ३।२१६ सुखदंता [शुद्धदन्ता] जी० २११२ सुखप्पावेस [ शुद्धप्रावेश, शुद्धपावेश्य, शुद्धात्मवेश] ओ० २०,५३. रा०६८५,६६२.७००,७१६, सुजाय [सुजात] ओ० ५,८,१४,१५,१६,१४३. रा० १७४,२८८,६७१ से ६७३,८०१. जी० ३१११८,११६,२७४,२८६,५६६,५६७, ६७२ सुजाया [सुजाता] जी० ३१६६६०२ सुज्म [दे०] रा० १७४. जी० ३.२५६ सुट्रिय [सुस्थित] जी० ३.५६४,७२१,७५४,७५६, ७६०,७६१ सुटिया [सुस्थिता] जी० ३१७६१ सुण [१]--सुणंतु. रा० १५-सुणह. ओ० १६५।१७--सुणिस्सामो .रा० १६ -~~~-सुणेस्सामो. ओ० ५२. रा०६८७ सुण [श्वन् । जो० ३१८४ सुणग [शुनक] जी० ३१६२० सुणति सुनति रा० ७६,१७३. जी० ३१२८५ सुणिउण [सुनिपुण] रा० ५७ सुणिद्ध [सुस्निग्ध] ओ० १६ सुणिम्मिय सुनिमित] जी० ३१५६७ सुणिसिय [ सुनिशित] जी० ३१४१० सुणेत शृण्वत् ] रा० ७७४ सुणेत्ता | श्रुत्वा] रा० ६८८ सुहा | स्नुषा] जी० ३१६११ सुतिक्खधार | सुतीक्ष्णधार] रा० २४६. जी० ३१४१० सुत्त [सूत्र] रा० १३२,१५३,२३५. जी० ३.३०२, ३२६,३६७ सुत्त सुप्त] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० सुत्तओ | सूत्रतस् ] मो० १४६. रा० ५०६,८०७ सुत्तग [ सूत्रक] जी० ३१५६३ सुत्तखेड्ड' सूत्रखेल | ओ० १४६. रा० ८०६ सुत्तरुइ [सूत्ररुचि ] ओ० ४३ सुति [शुक्ति जी० ३१५८७ . सुत्थिय [सुस्थित ] जी० ३१७६१ सुवंसण (सुदर्शन ] जी० ३१८०६ १. सूत्रखेल - सूत्रक्रीडा, अत्र खेल शब्दस्य 'खेड्ड' इत्यादेशः (जंबु. वृत्ति) सुद्धपुढवी [ शुद्धपृथ्वी] जी० ३।१८५,१८७ सुद्धवात [शुद्धवात] जी० ३१६२६ सुद्धवाय शुद्धवात | जी० १२८१ सुद्धागणि [शुद्धाग्नि] जी० ११७८,८५ सुद्धसणिय [शुद्धषणिक ! ओ० ३४ सुद्धोदय [ शुद्धोदक] ओ० ६३. जी० ११६५ सुषम्मा [सुधर्मा] रा० २६७,६५६.जी० ३१३७२, ३६६,४१२,४२१,४२६,४४२,१०२४,१०२५ सुनिउण [सुनिपुण] रा० १२ सुनिवेसिय [सुनिवेशित ] ओ०६. जी. ३१२७५ सुपइट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २५८ सुपइटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३१५६७ सुपइट्ठग सुप्रतिष्ठक] रा० १५२. जी० ३१५८७ सुपहटिय [सुप्रतिष्ठित ] रा १३३,१७३,२२८, ७५०,७५२,७५८. जो ३।२८५,३०३,६७६ सुपक्क [सुपरव] जी० ३१५८६,८६० सुपडियाणंद [सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६३ सुपण्णत्त [सुप्रजप्त ] ओ० ७६ से ८१ सुपण्ह [सुप्रश्न ] ओ० ४६ सुएतिट्ट [सुप्रतिष्ठ] रा० २७६. जी० ३१३५५ सुपतिटक [सुप्रतिष्ठक | जी० ३।४१६,४४५ सुपतिट्टग [सुप्रतिष्ठक] जी० ३१३२५ सुपतिहित | सुप्रतिष्ठिन] जी० ३।३८७,३६३, ४०१ Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुतिद्वि-सुरभि सुपतिट्ठिय [सुप्रतिष्ठित ] रा० ५२,५६,२३१, २४७,७५४,७५६,७६०,७६२,७६४. जी० ३०५९६,६७२ सुपरक्त [ सुपराक्रान्त ] रा० १८५,१५७. जी० ३।२१७, २६७, २६८, ३५८, ५७६ सुपरिणियि | सुपरिनिष्ठित ] ओ० ६७ सुपस्सा [ सुपश्या ] रा० ८१७ सुपिणद्ध | सुपिनद्ध ] जी० ३१२८५ सुपट्टिय [सुप्रतिष्ठित ] ओ० १६ सुप्पडियाद [ सुप्रत्यानन्द ] ओ० १६१ सुप्पबुद्धा [ सुप्रबुद्धा ] जी० ३,६९६ सुपभ [ सुप्रभ] जी० ३१८७५ सुप्रभा [ सुप्रभा ] ओ० १९४ सुप्पमाण | सुप्रमाण ] ओ० १३,१६. जी० ३३५९६, ५६७ सुप्पसारिय [सुप्रसारित ] ओ० ५,८. जी० ३।२७४ सुष्वसूय [सुप्रसूत ] आ० १४. रा० ६७१ सुफाल [ सुस्पर्श ] जी० ३।६८१,६८७ सुबद्ध [ सुबद्ध] ओ० १६. रा० १७४. जी० ३२२८६, ५६६, ५६७ सुबह [ सुबहु ] रा० २६६, २६८,७५० से ७५३, ७७४. जी० ३१४३२, ५३४,५४१ सुभिगंध [ सुगन्ध ] जी० ११५,३६,३७,५०, ३६७६,६८५ सुभित्त [ सुगन्धत्व ] जी०३६८५ सुन्भिसद्द [ सुशब्द ] जी० ३१६७७,९८३ सुम्भसद्दत [ सुशब्दस्व ] जी० ३३६८३ सुभ [ शुभ ] ओ० ५१,११६,१५६. १० १८५, १८७,६७० जी० १ १३४; ३ २१७,२६७, २६८,३५८,५७६,६७२,१०६०,१०६६ सुभग [ सुभग | ओ० १२,१५०. ० २३,१७४, १६७,२७६,२८८,८११. जी० ३।११८, ११६, २५६,२८६,२६१ सुभकं [ शुभचक्षुः कान्त ] जी० २०९३३ सुभद्द [ सुभद्र ] जी० ३९२८ सुभद्दा | सुभद्रा ] ओ० ५५,५८,६२,७०,७१,८१. जो० ३१६६६ ७६५ सुभावि [ सुभावित ] ओ० ७६ से ८१ सुभासि [ सुभाषित] ओ० ७६ से ८१ सुभिक्त | सुभिक्ष] ओ० १,१४. ० ६७१ सुभूम | तुभूम ] जी० ३।११७ समझ [ सुमध्य ] रा० १३३. जी० ३१३०३ सुमन | सुमनस् | जी० ३।६२५,६३४ सुमणदाम [ सुमनोदामन् | रा० २७६,२८५. जी० ३१४४५, ४५१ सुमणभद्द [ सुमनोभद्र ] जी० ३१६२८ सुमना | सुमनसी | जी० ३१६६६,६२० सुमहग्घ [सुमहार्घ्य ] ओ० ६३ सुख [ शुक] ओ० ६. जी० ३१२७५ सुम [ श्रुत] ओ० ५२. रा० १६,६८७,६८६ सुयअण्णाणि [ श्रुताज्ञानिन् ] जी० १ ३०,८७,९६, ३३१०४,११०७ ६ १६७,२०२, २०६,२०८ सुवणाण [ श्रुतज्ञान] ओ० ४०. रा० ७३६,७४२, ७४६ सुयणाणविजय [ श्रुतज्ञानविनय ] ओ० ४० सुयणाणि ( श्रुतज्ञानिन् ] ओ० २४. जी० ११८७, ६६,११६,१३३; ३ । १०४,११०७ ६ १५६, १६०,१६५. १६६, १६७, १६८, २०४, २०८ सुयदेवया [ श्रुतदेवता ] रा० ८१७ सुयनाणि [ श्रुतज्ञानिन् ] जी० १११३३ सुपिच्छ | कपिच्छ ] रा० २६. जी० ३।२७६ सुमुह [ शुकमुख ] ओ० २२. रा० ७७७,७७६, ७८८ सुरइ | सुरति ] रा० ७६, १७३ सुरइय [सुरचित] ओ० ४६ सुरति [ सुरति ] जी० ३।२८५ सुरभि [ सुरभि ] ओ० २,७,८,१०,४६,५५. रा० ३२, १३१, १४७, १४८, १५६,२२८,२८०, २८१,२८५,२६१,३५१,६७०. जी० ३१२२, २७६, ३०१,३३२,३७२, ३८७,४४६, ४४७, ४५१,५६८ Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सुदामरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म {सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी० ३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर | सुवर्णाकर रा० ७७४. जो० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस | सुरस] जी० ३१६८०,६८६ सुवासित [सुवासित ] जी० ३१८७८ सुरहि । सुरभि] ओ० ६३. जी० ३१६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से २१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त {सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. ग० ३२,१४५. जी० ३१२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक जी० ३५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३६८४ सुविरचित { सुविरचित] जी० ३१३११ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३६५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३१२८५ सुव्वत्त { सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण | सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [ सुबत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी. ३१२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी. ३१२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत ] जी० ३१२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] मो० ४८,१२०,१६२. रा०६६८, १७३ ७५२,७८६. जी० ३१२३२ सुसंपरिंगहित [सुसम्परिगृहीत | जी० ३।२८५ सवण्णकला [सुवर्णकूला रा० २७६. जी० ३१४४५ सपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३.६८१ सुवण्णजुति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [ सुवर्णयूधिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३१२८१ सुसंवय [सुसंवृत] ओ०६३ सुवण्णदार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय ! सुमंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसस्कय [सुसंस्कृत] जी० ३।५९२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [ सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३१४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण ] जी० ३१५६६ २८०. जी० ३१४४५ सुसव्व [सुगर्व] रा० १५२. जी० ३३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय रा० १७५. सुसामण्णरय सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३.४०२,६०२ सुसाहत सुसंहत] जी० ३।५६६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर शुषिर] रा० ११४२८१ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुसिल - सुहुमवणस्स तिकाइय सुसिल [ सुश्लिष्ट ] ओ० १६,६३,६४. रा० ३२, ५२,५६,२३१,२४७. जी० ३।३७२,३६३, ४०१, ५६६ सुसील | सुशील ] ओ० १६१,१६३ सुसुद्द | सुश्रुति ] ओ० ४६ सुसर | सुस्वर ] रा० १३५. जी० ३१३०५,५६७, ver सुसरघोस [ सुस्वरघोष ] रा० १३५. जी० ३।३०५ सुस्सरणिग्घोस [ सुस्वरनिर्घाप ] जी० ३५६८ सुसरा [ सुस्वरा ] रा० १४ सुस्रवण [ सुश्रवण | ओ० १६ सुस्सूसणाषिय | सुश्रूषणाविनय ] ओ० ४० सुस्सुसमाण [शुश्रूषमाण] ओ० ४७, ५२,६६,८३. रा० ६०,६८७,६६२,७१६ सुह [ सुख ] ओ० १,२३, २६, ५२, १९५११५, १६, २२. १० १५,२७५, २७६, ६८३,६९७. जी० ३११२६६, ४४१, ४४२, ५६४,६०४, ८३८१३ सुह [शुभ] ओ० ६ से ८,१० जी० ३३२७५, २७६ सुसुह [ सुखसुख ] ओ० १६. रा० ६८६,७११, ८०४. जी० ३६१७ सुहफास [सुखस्पर्श, शुभस्पर्श ] रा० १७,१८,२०, ३२,१२६,१३०, १३७. जी० ३/२८८,३००, ३०७,३७२ हम्मा [ सुधर्मा ] रा० ७, १२ से १४,२०६,२१०, २३५ से २३७, २५०, २५१, २७६, ३५१,३५६, ३५७, ३७६, ३४, ३६५, ६५७, ७६५, ७६४, ८०२. जी० ३/३६७, ३६८, ४११, ४१२, ५१६, ५२१ से ५२५,५५६, ५५७ सुहलेसा [ शुभलेश्या ] जी० ३८३८२६ सुहस्सा [ शुभलेश्या ] जी० ३२८४५ सुहविहार [सुखविहार] जी० ३५६४ सुहासण | सुखासन] २० ७६५, ७६४,८०२ सुहि [सुखिन् ] ओ० १६५१६,२२ सुहिय [सुहृद् ] जी० ३।६१३ सुहिरण्ण [ सुहिरण्य ] रा० २८ सुहिरण्णया [ सुहिरण्यका ] जी० ३।२८१ सुम | सुक्ष्म ] ओ० ४७, १७०, १८२. रा० १६०, २५६. जी० ३११३३, ३३३, ४१७, ५६६ ; ५।२१ से २३, २५ से २७,३४ से ३६, ५१, ५२, ५७ से ६०, ६६५,६६,९६,१०० ७६७ सुहुमआउ [सूक्ष्माप् ] जी० ५।२५ सुहुमआउकाइय | सूक्ष्मा कायिक] जी० ५।२७, ३४ सुहुम आउक्काइय [सूक्ष्माकायिक ] जी० ११६३,६४ सुहुमकाल [सूक्ष्मकाल ] जी० Euce सुमरिय [सूक्ष्मक्रिय ] ओ० ४३ सुमणिओद [सूक्ष्मनिगोद | जी० ५।३८,३६,४४ से ४६,५२,६० सुमणिओदजीव [सूक्ष्मनिगोदजीव ] जी० ५५३, ५४,५६,६० सुमणिओय [सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५।२१,२२,२५, २७,३४, ३५ मणिगोद [सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५।४४ सुमणिगोदजीव [सुक्ष्मनिगोदजीव ] जी० ५१६० सुहुमणियोय | सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५।२६,३६ सुहमते काय [सूक्ष्मतेजस्कायिक ] जी० ५२५, २७,३६ मक्काइ [सूक्ष्मतेजस्कायिक ] जी० ११७६, ७७; ५।३४ सुहमनिओग [सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५१२४ सुमनिओ | सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५१३४, ३५ सुमनिगोद [सूक्ष्मनिगोद ] जी० ५।३४ मढविकाइ [सूक्ष्मपृथ्वीकायिक ] जी० १८१३६ १४,५६; ३।१३२,१३३, ५२,३, २४, २५, २७,३४ सुमढवी [सूक्ष्मपृथ्वी ] जी० ५।२७ सुहुमवणस्सइकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक ] जी० ११६६,६७, ५ २७, ३४, ३६ सुहुमवणस्सति [सूक्ष्मवनस्पति ] जी० ५१२४ सुहुमवणस्पतिकाइय [सूक्ष्मवनस्पतिकायिक | जी० ५।२५,२७,३६ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६८ सुहमवाउकाइय [सूक्ष्मवायुकायिक] जी० ५।२७, ३४ सुमवाक्काय [सूक्ष्मवायुकायिक ] जी० १।५० सुमपरायचरितविणय | सूक्ष्मसम्परायचरित्रविनय | ओ० ४० सुमसरीर | सूक्ष्मशरीर | जी० ३११२६/६ सुहय | सुहुत ] भ० २७. रा० ८१३ सुहोत्तार | सुखोत्तार ] जी० ३।५६४ सुहोदय | शुभोदक, सुखोदक | ओ० ६३ सुहोयार | सुखावतार | जी० ३१२८६ सूइभूत | सूचीभूत ] जी० ३१४४३ सूई | शुत्री ] रा० १६,१३०,१७५,१८०,११७. जी० ३।२६४,२६६,२८७, ३०० सूईकलाव [ शुचीकलाप ] जी० ११७७,७६ सूईपुडंतर [ शुचोपुटान्तर | रा० १६७. जी ३१२६६ सूईफलय | शुचीफलक [ रा० १६७. जी० ३१२६६ सूईभूय | शुचीभूत ] रा २८८ सूईमुख [ सूचीमुख ] रा० १६७ समुह शुचीमुख ] जी० ३।२६६ सूचिकलाव [ शुचिकलाप ] जी० ३१८५ सूणगलंछणय [सूणालाञ्छक | रा० ७६७ सूमाल [सुकुमार] रा० २८५. जी० ३१२७४, ४५१ सूयगडघर [ सूत्रकृतधर] ओ० ४५ सूयपुरिस [ सूपपुरुष ] जी० ३१५६२,५६७ सूर [ सूर] मो० १६,२२,२७,५०. रा० १३३, ७७७७७८,७८८८०३,८१३. जी० २ १८; ३।२५८, ३०३, ५८६, ५६३, ५६६,७६५, ७६७, ७६६,७७१,७७३,७७५, ७७७,७७६, ८३८१४, १०,१५,२१,२३,२४,२७,२८,२६,३२,६३७, ६५०,६५३,१०१६, १०२०, १०२१,१०२६, ११२२ सूरकतमणि [ सूरकान्तमणि] जी० १७८ सूरणकंद [ शूरणकन्द ] जी० ११७३ सूरत्थमणपविभत्ति [ सूरास्तमनप्रविभक्ति ] रा० ८६ सुहमवाउकाइय-सूरित्लि मंडवग सूरवीर [सुरद्वीप ] जी० ३।७६५,७६६,७७१,७७७ सूरद्दीव [ सुरद्वीप ] जी० ३।६३७ सूरपरिएस | सूरपरिवेश ] जी० ३१८४१ सूरपरिवेस | सुरपरिवेश ] जी० ३।६२६ सूरख्पभा | सूरप्रभा ] जी० ३ । ७६५, १०२६ सूरमंडल [ सुरमण्डल ] रा० २४. जी० ३।२७७, ५६० सूरमंडलपविभत्ति | सूरमण्डलत्र विभक्ति ] रा० १० सूरवडेंस [ सूरावतंसक ] जी० ३।१०२६ सूरवरोभास | सुरवरावभास] जी० ३।६३८ सूरविमाण [ सूरविमान ] जी० २२४१; ३३१००३ से १००५,१००६,१०११,१०२६ सुरागमणपविभत्ति [ सुरागमनप्रविभक्ति ] रा० ८७ सूराभिमुह | सूराभिमुख ] अ० ११६ सूरावरणपविभत्ति | सुरावरणप्रविभक्ति ] रा० द सूरावलिपविभत्ति [सुरावलिप्रविभक्ति] रा० ८५. सूरि | सूर्य | ओ० १६२. २०४५,१२४. जी० ३२१७६, १७८, १८०, १८२, २५७,७०३, ७२२,८०६,८२०,८३०,८३४,८३७,८४१,८४२, ८४५,६८० से १०००, १०२०,१०३७,१०३८ सूरियकंत [ सूर्यकान्त ] रा० ६७३,६७४,७६१ से ७६३ सूरियता सूर्यकान्ता ] रा० ६७२,६७३,७५१, ७७६,७६१ से ७६४,७९६ सूरियाभ [ सूर्याभ] रा० ७,६,१०.१२ से १८,४१ से ४४,४६ से ४६.५५ ६५,६८,६६,७१ से ७४, ११८ से १२०,१२२, १२४१२६,१२६, १६२,१६३, १६.०, १००, १७, २४० २०९, २६.५. २६८,२७०, २७४ से २६१,६५४ से ६६७, ७७६६ से ७६६ सूरियाभविमाणप | सूर्याभविमानपति ] रा सूरियाभविमाणवासि [ सूर्याभविमानवासिन् ] २० ७,१५ से १७, ५५,५६,५८,२८०, २८२, २८६, २६१,६५७ सूरिल्लि मंडवग [ दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिल्लिमंडवय-सोइंदिय ७६६ सूरिल्लिमंवय | दे० सूरिल्लिमण्डपक] रा० १८५ सेय [सेक] जी० ३४५६२ सूरुग्गमणपविभत्ति [सूरोद्गमनप्रविभक्ति रा० ८६ सेयकणवीर श्वेतकणवीर] रा० २६. सूरोवराग [ सूरोवराग] जी० ३।६२६,८४१ जी० ३१२८२ सूल | शूल] ओ० ६४. जी. ३.११० सेयबंधुजीव [ श्वेतबन्धुजीव] रा० २९. सलग शूलाग्र जी० ३.८५ जी० ३१२८२ सुलभिण्णग [ शुलभिन्नक] ओ० १०. रा० ७५१ सेयमाल [श्वेतमाल ] जी० ३१५८२ सूलाइग ! शुलातिग | रा० ७५१ सेयविया [श्वेतविका] रा० ६६६ से ६७१,६८१, सूलाइय [मूलातिग रा० ७६७ ६८३,६९६,७००,७०२ से ७०४,७०६,७०८, सूलाइयग शूलाचितक, शूलातिग] ओ०६० ७१० से ७१३,७१६,७२६,७५० से ७५३, से | दे० ] ओ० ३१. रा० १२. जी० ११२ ७७५,७७६,७८०,७८७,७८८ सेउ [सेतु } ओ० १,७,८,१०. जी० ३३२७६ सेयासोग श्वेताशोक रा० २६ सेउकर [ सेतुक र ओ० १४. रा० ६७१ सेरियागुम्म [ सेरिकागुल्म] जी० ३१५८० सेज्जा [शय्या ] ओ० ३७,१२०,१६२,१८०. सेल [शल ओ० ४६. जी० ३३५९४ रा०६६८,७०४,७०६,७११,७१३,७५२,७७६, सेलपाय शैलपात्र ओ० १०५,१२८ ७८९ सेलबंधण [शैलबन्धन] ओ० १०६,१२६ सेटि दे० श्रेष्ठिन् । ओ०१८,२३,५२,६३. रा० ६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२, सेला [शैला जी० ३।४ सेलु [शेलु जी० ११७१ ७६४. जी० ३१६०६ सेढी श्रेणी ओ० १६,४७. रा० २४,७६०,७६१. सेलेसी [शैलेसी] ओ० १८२ जी० ३१२७७,५९६,७२३,७२६ सेवालगुम्म [शैवालगुल्मी जी० ३१५८० सेणा | सेना] ओ० ५५ से ५७,६२,६५ सेवालभक्खि [शैवालभक्षिन् ] ओ० ६४ सेणावई [सेनापति ] ओ० १८,२३,५२,६३. सेस शेष] ओ० १२०,१६२. रा० २३६,६६८, रा०६८७,६८८,७०४,७५४,७५६,७६२,७६४ ७५२,७८६. जी० ११६४,६५,७७,७६,८२, सेगावच्च सेनापत्य ओ० ६८. रा० २८२. ८८,६०,१०१,१०३,१११,११२,११६,१२१, जी० ३।३५०,४४८,५६३,६३७ १२३,१२४,२१३७,८६,१२०; ३६८ से ७२, सेणावति | सेनापति] जी० ३६६०६ १६१,१६५,२१६ से २२६,२४३,२५८,३५५, सेत श्वेत जी० ३१३००,३५४,४५४,८८५ ६८७,७०६,७११,७४१,७५०,७६२,७६५, सेतासोय श्वेताशाक] जी० ३।२८२ ७६६,७६६,७७०,७७२,८३८४२२,८५१, सेधा [दे० जी० २६ ६१४ से ६१६,६३६,६५०,६६२,११२२, सेय [श्वेत] ओ० ५१.६५,६७,१९४. रा० १२६, ५:३१,३४; ६।४,६ १३०,१६२.१६०,२१०,२१२,२२२,२८८. सेहवेयावच्च [शैक्षवैयावृत्य] ओ० ४१ जी. ३।२६४,३००,३१२,३३५,३७३,३८१, सेहाव [शिक्षय ]-सेहाविहिति. ओ० १४६. ६४७ --सेहावेहिइ. रा० ८०६ सेय [स्वेद] ओ० ८६,९२. जी० ३।५६८ सेहावित्ता [शिक्षयित्वा ] ओ० १४६ सेय श्रेयस् | ओ० ११७. रा०६,२७५,२७६, सेहावेत्ता [शिक्षयित्वा! रा०८०७ ७७४,७७७,७८१. जी० ३।४४१,४४२ सोइंदिय [श्रोत्रेन्द्रिय] ओ० ३७. जी० १११३३ Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७० सोडियालिछ [ शुण्डिकालिञ्छ ] जी० ३३११८ सोंडीर {शीण्डीर | ओ० २७. रा० ८१३ सोक्ख [ सौख्य | ओ० २३,१६५।१३,१४,१७. जी० ३ ११८,११६ सोग | शोक ] ओ० ४६. रा० ७६५. जी० ३११२८ सोगंघिय | सौगन्धिक | ओ० १२. रा० १०, १२, १८,२३,६५,१६५, १७४, १९७,२८८. जी० ३।११८, ११६,२५६, २८६,२६१ सोच्चा | श्रुत्वा | ओ० २१. रा० १३. जी० ३१४४३ सोणंद [ दे० ] त्रिपदिका ओ० १६. जी० ३५६६ सोणि | श्रोणि ] जी० ३।५६७ सोणिय [ शोणित] रा० ७०३ सोत्ति | श्रोणिसूत्रक ] जी० ३२५६३ सोत [ श्रोतस् ] जी० ३।७४६ सोतिदिय [ श्रोत्रेन्द्रिय | जी० ३२६७६, ६७७ सोत्थि | स्वस्ति ! जी० ३।१७७ सोत्थिकूट [ स्वस्तिकूट ] जी० ३ १७७ सोत्थिय ! स्वस्तिक ] रा० २१,२४,४६,८१,२६१. जी० ३१२७७, २८९, ३१४, ३४७, ३५५, ५६७ सोस्थिकंत [ स्वस्तिककान्त | जी० ३।१७७ सोत्थियज्य [स्वस्तिक ध्वज | जी० ३११७७ सोत्थिय | स्वस्तिकप्रभ ] जी० ३३१७७ सोत्थियलेस [स्तिषय ] जी० ३ | १७७ सोत्थियवण्ण [ स्वस्तिकवणं | जी० ३।१७७ सोत्थियसिरिवच्छनंदिया व त्तबद्ध माणगभद्दासणकलसमच्छदपणमंगलभत्तिचित्त [ स्वस्तिक श्रीवत्सनन्द्यावर्त्तवर्धमानक भद्रासन कल रामत्स्यदर्पणमङ्गलभतिचित्र ] रा० ७६ सोत्ययावत [ स्वस्तिकावर्त ] जी० ३।१७७ सोत्थिसिंग [ स्वस्तिशृङ्ग ] जी० ३.१७७ सोत्थिसि [ स्वस्तिशिष्ट ] जी० ३।१७७ सोत्युत्तरवड [ स्वस्त्युत्तरावतंसक ] जी० ३।१७७ सोडियालिछ- सोमाकार सोधम्म [ सोधम ] रा० ५६०. जी० २०६६, १४८, १४६; ३३१०३८, १०३६ सोधम्मक | सौधर्मक] जी० २ १४८, १४९ सोधम्मग [ सौधर्मक ] जी० ३३१०३६ सोधम्मवडेंस [ सौधर्मावर्तक | २०० १२६ सोधम्मवडेंसय | सौधर्माविनंसक ] रा० १२५ सोपान [ सोपान ] जी० ३।४५४,५६४ सोभ | शोभ ] ओ० ६३. जी० ३७२२,८२०,८३०, ८३४,८३७,८५५ / सोभ [ शोभय् ] -- सोभति जी० ३।७०३. सोभिसु. जी० ३।७०३. – सोभिस्मति. जी० ३।५०३. - सोभेसु. जी० ३२८०५ सोत [ शोभमान ] ओ० ४६. रा० ६६. जी० ३।३०६,५६७ सोभग्ग [ सौभाग्य ] ओ० २३ सोमण [ शोभन ] ओ० १४५. रा० ८०५ सोभमाण [ शोभमान [ जी० ३२५६१ सोभिय[ शोभित ] ओ० १ सोममाण [ शोभमान ] जी० ३३५८६ सोम [ सौम्य ] ओ० १५.१६. रा० ७०,१३३, ६७२ जी० ३।३०३, ५६६,५६७, ११२२ सोमणस [मन] ० ५१. जी० ३.९२५,६३४ सोमणसवण [ सामनमवन] रा० १७३,२७६. जी० ३१२८५, ४४५ सोमणसा [ सौमनसा ] जी० ३१६६६,६२० सोमणस्सिय सोमनस्थित, सोमनस्थिक] ओ० २० २१,५३,५४,५६.६२, ६३, ७८,८०, ८१०८, १०, १२ से १४, १६ से १८,४७, ६०, ६२, ६३, ७२,७४,२७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१, ६८३,६६०,६९५,७००, ७०७, ७१०, ७१३, ७१४,७१६,७१८,७२५, ७२६, ७७४, ७७८. जी० ३१४४३, ४४५, ४४७,५५५ सोमलेस | संमश्य ] ओ० २७. रा० ८१३ सीमाकार [ सौम्याकार] ओ० १५,१४३. रा० ६७२,६७३,८०१ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाण-हत्य सोमाण सोपान | रा० ४७,१७५ से १७६,६५६. सोहम्मा सुधर्मा] जी० ३१३७३ जी० ३.५५६,६४०,६४१,८५७ सोहि [शोधि] ओ० २५ सोय [शौच j ओ० २५. २१० ६८६ सोहिय शोभित | ओ० ५,६,८,१६४ जी० ३३२७४, सोय [श्रोतस् ओ० १२२ २७५ सोयंधिय {सौगन्धिक जी० ३१७ सोयणया शोचनता] ओ० ४३ सोयधम्म शौचधर्म] ओ० ६७ हंत हन्त] रा० १५ सोल (पोडश | जी० ३१२२६।२ हंता हित] ओ० ८४. रा०१७३. जी. ३११३ सोलस पोडशन् ! ओ० ३३. रा. ७. जी. ३२१४ हंस हं।] ओ० १६. रा० २६. जी. ३१२८२, ५६७ सोलसग पोडशक | जी० ३६५ सोलसभत्त पोडशभक्त ओ० ३२ हंसगब्भ हिंसगर्भ ] रा० १०,१२,१८,६५ १६५, सोलसविध पोडशविध ] जी० ३६७,३५७ २७६. जी० ३७,२८४ सोलसविह [पोडशविध रा० १६५. जी० ३।३४६ हंसगन्भतूलिया हसगभलिका] रा० ३१ सोलसिया [पाडशिका र ० ७७२ हंसगन्भतूली | हंसगर्भवली | जी० ३।२८४ सोल्लियपक्व अ० १६४ हंसगम्भमय हसगर्भमय रा० १३०. जी० ३।३०० सोवणियासौवणिक ० ३७,२४५,२७६,२८०. हंसस्सर हंसम्म ] रा० १६५. जी० ३१३०५,५६८ जा०६।३११,४०७,४४५,४४६,४४० हंसालिपविभत्ति | हंसावलिप्रविभक्ति ] रा० ८५ सोवत्थियौवस्तिक ओ० १२,६४. २१० २४. हंसासण [हसासन रा० १८१.१८३,१८५ जी० ३।२७७.५६६ जी० ३१२६३,२६५,२६७,८५५ हवकार आकारय]हक्कारेति रा०२८१. सोवाण | सोपान] रा० १६,२० ४८,५६,५७, जो० ३।४४७ २०२,२३४,२६४,२७७,२८८,३१२,४७३. हट हृष्ट] ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, जी० ३१२९७.२८५,३६३.३६६,४४३,४४७, ६८,७८,८०,१. रा०८,१०,१२ से १४, १६ ५३२,५७६,६६६.६८४ से १८,४७.६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, सोस [शोष जी० ३६२८ २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००, सोह शोभ ओ० ५२. रा० ६६७ से ६८६ ७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६, सोहंत [शभिमान] रा० १३६ ७७४,७७८.जी. ३.४४३,४४५,४४७,५५५ सोहग सौभाग्य] औ० ६६ हडप्पगाह [हडप्पनाह] ओ० ६४ सोहम्म | सौधर्म ] ओ०५१,६५,१६०,१६२. हडिबद्धग [हडिवद्धक) ओ०६० रा० ७,१२,५६,१२४,२७६,७६६. जी०११५६ हण | घातय..-हण रा० ७६१ २११६,४६,१४६; ३१६३७,१०३८,१०५७, हण हनु] ओ० १६ १०६५,१०६७,१०७१,१०७३,१०७५,१०७७ हणुया हनुका] जी० ३१५६६,५६७ से १०८३,१०८५,१०८७,१०६०,१०६१, हत्य हस्त ] ओ० २१,५४,६६,१११ से ११३, १०९३,१०६७ से १०६६,११०१,११०५, १३७,१३८. रा० १३३,२८१,२८८ से २६०, ११०७,११०६ से १११२,१११४,१११७, ६५६,७१६,७५३,८०४. जी. ३१४४७,४५४ ११६,११२१,११२२,११२४,११२८ से ४५६,५६७ Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७२ हत्थ-हल हत्य दे० ओ० ५७ हत्थग [हस्तक] ओ० १२. जी० ३।२६१,३१५, ६३६,६५१,६७७,६६४ हत्यच्छिण्णग [ हस्तच्छिन्न क] रा० ७५१ हस्थच्छिण्णय हस्तच्छिन्नक] रा० ७६७ हत्यछिण्णग | हस्तच्छिन्नक | ओ० ६० हस्थतल हिस्ततल] रा० २५४. जी. ३१४१५ हत्थमालग इस्तमालक जी० ३१५६३ हत्थय हस्तक ] रा० २३,२२३ । हत्याभरण [ हस्ताभरण] ओ० ४७,७२ हत्यि [हस्तिन् ] ओ० १०१,१२४. रा० ७७२.. जी० ३८४,६१८ हत्थिक्वंघ हस्तिस्कन्ध | ओ० ६५ हत्थिगुलगुलाइय [हस्तिगुलगुलायित ] रा० २८१. जी. ३१४४७ हत्यितावस हस्तितापस | ओ०६४ हत्यिमुह [हस्तिमुख ] जी० ३१२१६ हस्थिरयण | हस्ति रत्न ] ओ० ५५ से ५७, ६२ से ६४,६६ हत्थिवाउय [हस्तिव्यात ] ओ० ५६,५७ हत्यिसोंड [हस्तिशौण्ड ] जी० ११८८ हम्मिय [हयं] जी० ३५९४,६०४ । हय हिय] ओ० १६,४८,५१,५२,५५ से ५७,६२, ६५. रा० १४१ से १४४,१६२ से १६५, २८५,६८७ से ६८६. जी० ३।२६६,२६७, ३१८,३५५,४५१,५६६ हयकंठ [ ह्यकण्ठ ] रा० १५५,२५८. जी० ३।३२८ हयकंठग [यकण्ठक ] जी० ३।४१६ हयकण्ण हयकर्ण] जी० ३१२१६,२२२ से २२५, २२६॥३ यकण्णदीव [यकर्णद्वीप ] जी० ३३२२२ हयजोहि [हयपोधिन् ] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० हयलक्षण [ह्यलक्षण] ओ० १४६. रा०८०६ हयविलंबिय हयविलम्बित] रा०६१ हयविलसिय [हरविलसित] रा० ६१ हयहेसिय [यहेसित रा० २८१. जी० ३।४४७ हरतणय हरतनुक] जी० ११६५ हरय ह्रद] रा० २६२ से २६५,२७३,२७७, ४७३. जी० ३१४२५,४२६,४३८,४४३,५३२ हरि | हरित रा० २७६. जी. ३४४५ हरिओभास हरितावभाग] स० १७०,७०३. जी० ३१२७३ हरिकता [हरिकान्ता) २१० २७६. जी० ३।४४५ हरितकाय [हरितकाय ] जी० ३।१७४ हरितग | हरितक जी० ३६३२४ हरिताभ [हरिताभ | श्री० ३१८७८ हरिताल [हरिताल ] जी० ३१९७८ हरिय [हरित ) ओ० ४,५,८,१०३,१२६.१३५. रा० १७०,७०३. जी० ११६६:३१२७३,२७४ हरिय [भरित) जी० ३:२८५ हरियकाय [हरितकाय जी० ३६१७४ हरियग [ हरितक] रा० १५१,७८२ हरियच्छाय [हरितच्छाय ] ओ० ४. रा० १७०, ७०३. जी० ३१२७३ हरियाल हरिताल] रा० २८,१६१,२५८,२७६. जी० ३१२८१,३३४,४१६ हरियालिया [हरितालिका रा०२८ हरियोभास रितावभास) ओ० ४ हरिवास [हरिवर्ष] र:० २७६. जी० १३,३२, ५६,७०,७२,९६,१४७,१४६:३:२२८,४४५, ७६५ हरिवाहण [हरिवाहन जी० ३।६२३ हरिस |हर्ष ] ओ०२०,२१,५३,५४,५६,६२,६३,७८, ८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४,१६ से १८, ४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७९,२८१, २६०,६६५,६८१,६८३,६६०,६६५,७००,७०७, ७१०,७१३,७१४,७१६,७१८,७२५,७२६,७७४, ७७८, जी० ३.४४३,४४५,४४७,५५५ हरिसय [हर्षक] जी० ३।५६३ हरिसिय [हर्षित] रा० १७३. जी० ३।२८५ हल [हल] ओ० १. जी० ३।११० Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलधर-हिययसूल ७७३ हलघर [हलधर] ओ० १३. रा० २६. जी० १६३५ जी० ३।२७६ हारवरोभासमहावर [ हारवरावभासमहावर हलिद्दा [हरिद्रा] रा० २८. जी० ३।२८१ जी० ३१६३५ हिव [भू]-हवंति ओ० १८३. जी० ३।१२ हारबरोभासवर [हारवरावभासवर] -हवेज्ज ओ० १६१४.--हवेज्जा जी० ३।९३५ ओ० १६५।१५ हालिद्द [हारिद्र] ओ० १२. रा० २२,२४,२८, हव्व [अर्वाच] ओ० ५७ १२८,१३२,१५३. जी. ११५,१३६, ३।२२, हव्वं [अर्वाच्] ओ० १७०, रा० ७२०. जी० ३१८६ ४५.२८१,२६०,३२६,१०७५,१०७६ हिस हस् ] -- -हसं ति रा० १८५.---हसिज्जइ हालिग [हारिद्रक) जी० ३१२८१ रा० ७८३ हास [हास] ओ० २८,४६,५१ हसंत [हयत् ] ओ० ६४ हास ह्रिस्व जी० ३७८१,७८२ हसिय हसित ] ओ० १५,४६. रा० ७०,६७२, हासकर हासकर ओ०६४ ८०६,८१०. जी० ३१५६७ हिगुलय [हिङ गुलक] रा० १६१,२५८,२८१. हस्स ह्रस्व] ओ० १८२,१६५०४ जी० ३३३३४,४१६ हाय हा ]----हायइ जी० ३१७३१.. -हायति हिंसप्पयाण [हिंस्रप्रदान ] ओ० १३६ जी० ३।७२३ हिसाणुबंधि [हिंसानुबन्धिन् ] ओ० ४३ हायण [हायन] जी० ३३११८,११६ हिटिमय [अधस्तन ] जी० ३१५ हार हार] ओ० २१,४७,५२,५४,६३,६५,७२, हित [हित] जी० ३।४४१,४४२ १०८,१३१,१६४. रा० ८,२६,४०,१३२, हिम [हिम रा० २५५. जी० ११६५; ३३११६, २८५,६८७ से ६८६,७१४. जी० ३१२६५, २८२,३०२,५६२,६३५,११२१ हिमकूड [हिमकूट] जी० ३।११६ हारपुण्य (पाय) [हारपुटकपात्र] ओ० १०५, हिमपडल [हिमपटल] जी० ३.११६ १२८ हिमपुंज [ हिमपुज] जी० ३१११६ हारपुड्य (बंधण) हारपुटकबन्धन] ओ० १०६, हिमवंत [हिमवत् ] ओ० १४. रा० १७३,६७१, १२६ हारभद्द {हारभद्र ] जी० ३१६३५ हियउप्पाडियग [उत्पाटितकहृदय ] ओ० ६० हारमहाभद्द [हारमहाभद्र] जी० ३१६३५ हिए [हित ] ओ० ५२. रा० १५,२७५,२७६,६८७ हारमहावर [हारमहावर] जी० ३।६३५ हियय हृदय ] ओ० २०,२१,२७,५३,५४,५६,६२, हारवर [हारवर] जी० ३।६३५ ६३,६६,७८,८०,८१. रा०८,१०,१२ से १४, हारवरभद्द [हारवरभद्र] जी० ३६३५ १६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७, हारवरमहाभद्द [हारवरमहाभद्र] जी० ३१६३५ २७६.२८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०, हारवरमहावर [हारवरमहावर] जी० ३।६३५ ६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६, हारवरोभास [हारवरावभास] जी० ३।६३५ ७१८,७२५,७२६ ७५० से ७५३,७७४,७७८, हारदरोभासभद्द [हारवरावभासभद्र] ८१३. जी० ३।४४३,४४५,४४७,५५५ जी० ३१९३५ हिययगमणिज्ज हृिदयगमनीया ओ०६५ हारवरोभासमहाभद्द हारवरावभासमहाभद्र ] हिययसूल [हृदयशूल] जी० ३१११६,६२८ Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७४ हिरण्ण [ हिरण्य] ओ० २३. रा० २८१,६९५. जी० ३।४४७,६०८, ६३१ हिरण्णजुत्ति [ हिरण्ययुक्ति ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णपाग [ हिरण्यपाक ] ओ० १४६. रा० ८०६ हिरण्णवय [ हिरण्यवत ] जी० ३१२८८ हिरिति [ दे० ] जी० ११७३ हिरी [ह्री ] रा० ७३२,७३७,७७४ हीण [हीन ] ओ० १९५२४. रा० ७७४. जी० ३।७३ हीर [हीर ] जी० ३।६२२ हीरय [ हीरक ] जी० ३१६२२ हीला [हीलना ] ओ० १५४, १६५, १६६, रा० ८१६ √ [ भू ] – हुंलि. जी० १।१४ हुंड [ हुण्ड ] जी० ११८६,६५,१०१,११६; ३३६३, १२६१३,४ हुंब [ दे० ] ओ० ९४ हक्क [हुडुक्क ] ओ० ६७. रा० १३,६५७. जी० ३१४४६ हुडुक्की [हुडुक्की ] रा० ७७ तवह [ हुतवह ] जी० ३१५९६ वह [ हुतवह] ओ० १६,४७. जी० ३।५६० हृयासण [ हुतासन ] ओ० २७. रा० ८१३ हु [ हुहुक ] जी० ३१८४१ हुयमाण [ दे० जाज्वल्यमान ] जी० ३१११८ हेउ [ हेतु ] ओ० ११९. ० १६,७१६,७४८ से ७५०,७७३ हेट्ठा [ अधस् ] ओ० १३,१८२. २१०४,२४०. जी० ३१७७,८०,३५६, ४०२ ट्ठि [अस] जी० ३६६८ हेमि [ अधस्तन ] जी० ३।७० से ७२,११११३ हिरण्ण हस्सीकरितए हैट्टिम विज्ज [ अधस्तनग्रैवेय] जी० २२६६ हेट्ठिमगेवेज्जग [ अधस्तन ग्रैवेयक ] जी० ३।१०५६ हेट्टिममज्झिमल्ल [ अधस्तनमध्यम ] जी० ३।७२६ हेट्ठिल्ल [ अधस्तन ] जी० ३३६०,६२ से ७१,७२५, ७२८, ७२६,१००३, १००४,१००७, ११११ हेट्ठिल्लम झिल्ल | अधस्तनमध्यम ] जी० ३१७२६ हिट्टिल्लातो [ अधस्तनतस् ] जी० ३।६६,७२ हेमंत [ हैमन्तिक ] ओ० २६. रा० ४५ हेमजाल [ हेमजाल ] ० १३२, १७३, १६१,६८१. जी० ३१२६५, २८५, ३०२, ५१३ हेप्प [ हेमात्मन् ] जी० ३।५६५ हेमवत [ हैमवत ] जी० २२६६, १४७, १४६, ३७६५ हेमवय [ हैमवत ] ओ० ६४. रा० १७३,२७६,६८१. जी० २ १३,३१,५८,७०,७२: ३१२२८, २८५, ४४५ हेरण्णवत [ हैरण्यवत | जी० २२६६. १४७ ; ३२७६५ रणवय [ हैरण्यवत ] जी० २११४६; ३२४४५ हेरु [ हेरु ] जी० ३।६३१ रुमालवण [ हेरुतालवन ] जी० ३१५८१ / हो [भु] - होइ ओ० १६५/५ २० १३०. जी० १११३६ - होई. जी० ३११२६६३ -- होउ. ओ० १४४. रा० ७३० - होंति. रा० १३०. जी० १।७२ - होति. ओ० १६५८. जी० ३११६४ --- होज्ज. रा० ७५४. जी० ३।५६२ -- होज्जा. रा० ७१८, होत्था ओ० १. रा० १ होत्तिय [ होत्रिक ] ओ० ६४ होरंभा [होरम्भा ] य० ७७. जी० ३२५८० / हस्सीकर [ ह्रस्वी + कृ ] – हस्सीक रेज्ज जी० ३१६६७ ह्रस्सीक रित्तए | ह्रस्वीकर्तुम् ] जी० ३१६६४ कुल शब्द ६६३१ Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुदि-पत्र अशुद्ध बससंडे धम्मोप भगवाओ विउसम्मे विहणि तुंबविणिपेच्छा सयमेब जायमेव घोसेडिया पोंडरिय डिडिमाख रुच्छ वणसंडेण धम्मोव भगवओ विउस्सले विहणि तुंबविणियपेच्छा सयमेव जीयमेव घोसाडिया पोंडरीय डिडिमाष मच्छ ११६ नुब्बने हुब्बो २७३ २६७ असित्ता सुब्भ ३१५ टि० १३ का अन्तिम ३२० ३७५ ३८१ कसिता सुज्झ 'सुवण्णसुज्झरययवालुयाओ' इति सुवर्ण-पीतकान्तिहेम सुझरूप्यविशेष: रजतं—प्रतीतं तन्मय्यो वालुका यासु ताः सुवर्णसुज्यरजतवालुका (म) °णिन्बु इ° ३८६६ पत्तेयंउक्वेता वाघाइमे अणुत्तरो तिरिक्ख पमोक्ख पं०११ टि० १२ पं०१६ पं०६ पं०६ पं०६ पं०४ ४२६ °विन्द्र ३.६८६ पत्तयंउबवेता बाघाइमे अणत्तरों तिरक्खि पमोकक्ख ४५७ ४६५ ४७३ Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Internatione For private & Personal use only www.jainelibrary og